Vasna Story पापी परिवार की पापी वासना - Page 4 - SexBaba
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Vasna Story पापी परिवार की पापी वासना

16 पुत्र ने सीखा

मिसेज शर्मा ने ऊपर जय के चेहरे पर देखा तो उसकी आंखों में माँ के प्रति पुत्र का निश्छल प्यार उमड़ता पाया। फिर उन्होंने उसके काले फड़कते लन्ड के सुपाड़े को अपनी लाल चूत के होंठों को पाटे हुए देखा। पुत्र को इस घोर पाप का कृत्य करने जाते देख उनके होश उड़ गए। हालंकि उनकी माद इड़ियाँम चीख-चीख कर उन्हें उकसा रहीं थीं, पर उनके मन में कहीं तो समाज का डर था जो प्रेम की इस अभिव्यक्ति को पाप की संज्ञा देता था।

“रुको जय! हम ... हम ऐसा नहीं कर सकते !” मिसेज शर्मा ने पुत्र को दूर हटाने की एक दुर्बल सी चेष्टा की। पर पुत्र प्रेम ने उनके तन को दुर्बल कर दिया था। इससे पहले कि वो अगला लफ़्ज़ कह पायें जय ने निर्दयता से एक ही झटके में अपना पूरा लन्ड माता की योनि में घुसा डाला।

“ जय! क्या चीर डालेगा माँ को ?” पुत्र के भीमकाय लिंग को एक ही बलशाली झटके में अपनी योनि की गहराइयों में उतरता महसूस कर के टीना जी बोलीं।
आहिस्त! मादरचोद आहिस्ता से! दर्द होता है! मेरे लाल प्लीज जरा धीरे-धीरे।”

** ओह अम्मा! कितनी टाईट हो तुम! सालः . जय खुल कर बोल नहीं पाया।

बोल जय! खुल कर बोल मम्मी से !”

“म मैं कह रहा था! साली चूत तो इलास्टिक जैसी टाइट है!” अपने बेटे के मुंह से बेधड़क बेशर्मी से निकलती रंडीखाने वाली भाशा ने टीना जी को और अधिक उत्तेजित कर दिया। माता ने अपने कूल्हे उचका कर पुत्र के अधीर लिंग की पूर्ण लम्बाई को अपनी गहरी योनि में निगल लिया।

जाँघों के बीच देखा तो पाया कि पुत्र का काला मोटा लिंग उनकी योनि के फैले हुए होंठों के बीच चपा-चप्प आवाज करता हुआ कोख की गहराईयों को छू रहा है। । “हरामजादा! बाप जितना बड़ा है!” बेटे के पौरुष तथा बल पर एक आश्चर्य हो रहा था उन्हें। आश्चर्य के साथ ही आनन्द भी। उनके सत्रह बरस के पुत्र का लिंग उनकी लचीली योनि सामान्य से कुछ अधिक खींच कर एक मीठा दर्द दे रहा था।

आश्चर्य जय को भी था। माता की योनि शिशु के जनं के बाद कुच बड़ी और ढीली हो जाती है। पर अनुमान के विपरीत योनि को तंग और लचीली पा कर उसे एक सुखद आश्चर्य हुआ था। इतनी तंग थी योनि कि उसकी एक- एक माँसपेशी, एक एक धमनी को अपने लिंग की संवेदनशील त्वचा पर अनुभर कर सकता था - जैसे रबड़ के दस्ताने पर।

जय ने अब माँ को बदस्तूर चोदना चालू किया। अपने ताकतवर शरीर का भार कोहनी पर टेक कर अपने कुल्हे आगे पीछे चलाने लगा, पहले तो साधारण गति में और फिर जैसे-जैसे माता के तरल मादा-द्रवों से लिंग और योनि का संगम स्थल चिकना होता चला गया, तो अधिक गति से।
। जय अपने लिंग को दनादन बलपूर्वक अंदर अपनी माता की योनि में मारता और बाहर खिंचता।
 
पुत्र के लिंग की घर्ष क्रिया में इतना बल था कि टीना जी काँटे पर फसी मछली जैसे हुए बिस्तर पर मचलते हुए हाँफ़ने लगीं। माता-पुत्र की सैक्स-क्रीड़ा में वो ऊर्जा थी की टीना जी सिसकियाँ लेने लगीं - मालूम नहीं मारे लज्जा के या मारे आनन्द के। जगली बिल्लि जैसे पंजों से बिस्तर की चादर को मुट्ठी में भिंचने लगीं। अपने कूल्हे को ऊपर उठा कर पुत्र के लिंग के हर बलशाली झटके को उतने ही प्रबल ममता भाव से ग्रहण करतीं। उन्माद से सर को पीट रहीं थीं जैसे बदन में प्रेतात्मा का कब्जा हो।

योनि की बाहरी संवेदनशील त्वचा पर पुत्र के मोटे लिंग की घर्ष क्रिया से उत्पन्न अनुभूतियों में उनका सर झूम रहा था। गाँड तो ऐसे चक्कर मार रही थी जैसे गन्ने का रस निकालने वालि मशीन। अपने उन्माद में उन्हें इस बात का बिल्कुल खयाल नहीं था कि उन्हें का सत्रह बरस का पुत्र उनकी काम-क्रीड़ा में सहभागी है।

* मादरचोद जय! माँ का दूध पिया है तो चोद अपने काले मोटे लन्ड से मम्मी की चूत !” टीना जी ने दाँत भींचते हुए नागिन सा फुफकारा।।

जय ने नीचे अपनी माँ की पटी हुई जाँघों के बीच अपने लिंग को मातृ योनि में भीतर-बाहर फिसलते हुए देखा। लिंग बाहर को खिंचता तो घने रोमदार योनि-पटल उससे चिपके हुए बाहर दिखते, जब लिंग भीतर को लपकता तो अपने साथ उन्हें भी अंदर छिपा देता। वो लचीली मातृ योनि को अपने लिंग पर लिपटता और उससे खिंचता देख भी सकता था और अनुभव कर सकता था। इस लाजवाब खयाल ने उसकी उत्तेजना को हज़ार गुना बढ़ा दिया था।

कराहते और हुंकारते हुए मिसेज शर्मा ने अपनी टांगें ऊपर को उठा कर अपने घुटने छाती से लगाये और पुत्र के लिंग से अपने जननांगों के संगम स्थल को और तंग भींच दिया। उनके पति को यह कामासन अति प्रिय था। स्त्री जब अपनी टांगें ऊपर को उठा कर घुटनों को स्तनों पर भींचती है तो योनि सबसे अधिक फैली होती है। योनि के अति संवेदनशील शिरा भाग के पुरुष की हड्डी के ऐन नीचे होने से स्त्री को भी अत्यंत आनन्द मिलता है। यह पाश्विक मुद्रा पुरुष को अचानक और बहुत उत्तेजित कर सकती है। साथ ही जननांगों का संगम भी बहुत गहरा होने के कारं गर्भ धारण के लिये भी उत्तम आसन है यह।

| जय के झूलते उदर का सीधा प्रहार उनकी टंगों के द्वारा अब टीना जी की छाती पर हो रहा था जो उनके फेफड़ों से हवा को पम्प की तर्ह निकाल फेंकता था। हाँफ़ते हुए भी माँ ने अपनी कोख के लाल को लाड़ से गालियाँ देना जारी रखा।

“कुतिया की औलाद! चोद अपनी माँ का भोंसड़ा! देखें कितना जोर है !” “साले पिल्ले अपनी छाती से तुझे दूध पिलाया था इसी दिन के लिये !” आज तेरे टट्टे नहीं सुखा दिये तो कुत्ते का सड़का पियूँगी !” हरामजादे एक सैकन्ड भी रुका तो गाँड फाड़ दूंगी।” बाहर क्या हिला रहा है ? और अंदर घुसा !” मादरचोद तेरे बाप का लन्ड था यहाँ कल रात ।” उन्ह उन्ह उन्ह उन्ह ! आउच! उन्घ्ह उन्ह उन्ह उन्ह उन्ह” मम्मी! देख तेरा बेटा तुझे चोद रहा है!”

मम्मी! मेरा लन्ड आपकी चूत में बहने वाला है !” * इंह आह ! इंह आह्ह! इंह आह !” ऊह्ह्ह! जय बेटा! उडेल दे अपने टट्टों का तेल मेरी चूत में! मेरी चूत तेरे गरम वीर्य की प्यासी है! बस बेटा ऐसे ही! अब झड़ने ही वाली हूं! और जोर से! ओह मादरचोद !”
 
17 आवेश

मिसेज शर्मा का पूरा बदन जवान बेटे के अद्भुत जोशीले कामबल को झेल-झेल कर निरंकुश वासना से जल रहा था। लन्ड के बाहर खिंचने पर उनकी योनि उस पर लिपटती जाती और लन्ड के वापस उनके अन्दर झोंकने पर योनि फैल कर कठोर पुर्षाग के हर इंच को निगल लेती।

टीना जी ने अपनी जाँघे पूरी फैला कर योनि को अपने उन्मत्त पुत्र के दनदनाते लन्ड के झटकों के लिये समर्पित कर रखा था। अपने बुरी तरह से चुदती हुई योनि की गहराईयों से अगले ऑरगैसम की उमड़ती गर्माहट ने उनके होंठों से एक सिसकी निकाल दी थी। बेटे के चेहरे की तरफ़ पलके फड़का कर जब उन्होंने अपनी आँखें खोली तो पाया कि जय की भी आँखों में वैस ही शुरूर था। जाहिर था कि वो भी अब झड़ने ही वाला था।

“ऊउंह! चोद! ओओओओ, चोद डाल मम्मी को! मैं तो झड़ी !” टीना जी चीखीं। काम -संतुष्टी की लहरें उनकी धमकती ऐंठती योनि के हिरोबिन्दु से बाहर पुरे बदन पर उमड़-उमड़ कर फैल रहीं थीं।

माँ की वासना भरी बेशरम चीखें सुन कर जय और अधिक उतावला हुआ और अपनी माता को और बल से चोदने लगा। उसके कूल्हे दे पटक पटक ऊपर-नीचे हरकत कर रहे थे। जय का कठोर लिंग माता की फड़कती योनि की नर्म गहराईयों में पुत्र- प्रेम की पावन भावना से गर्माहाट उड़ेले देता था।

अपने प्रति पुत्र के हृदयानुराग की इस अभिव्यक्ति ने माँ को निहाल कर दिया। अपनी सिहरती कोख़ पर पुत्र के बलशाली लिंग के हथौड़े जैसे प्रहारों के तले टीना जी को अपनी जाँघे मोम की तरह पिघलती सी लगीं, नेत्रों के सामने चरमानन्द की धुंधलाहट छाने लगी। वे अपनी ऐंठती कमर को ऊंचा उठा कर योनि के संवेदनशील शिरोबिन्दु को पुत्रलिंग पर मसलते हुए झड़ने लगीं। पुत्र से सम्पन्न हुई पाशविक संभोग के आनन्द - भंवर में डुबती सी चली जा रहीं थीं।
 
“मेरे लाल! ओहह, जय” मिसेज शर्मा कईं बार कराहीं थीं। जय की उखड़ती साँसों, मन्द पलकों और भिंचते जबड़े से उस पर बड़ता तनाव साफ़ जाहिर होता था। टीना जी ने चर्मानन्द की दिव्य अनुभुति में उसके फुदकते हुए नितम्बों को ने अपनी बाहों के मातृ पाश में ले कर अपनी कोख में और अन्दर खेंच लिया। काम क्रीड़ा के परमानन्द के अन्तिम पलों में उनका पूरा बदन थरथरा उठा। स्फुटित होती आनन्द तरोंगों से योनि जकड़- जक्ड़ कर पुत्र के दीर्घ लिंग को भिंचती जाती थी। अपनी चीख को दबाने के लिये टीना जी ने निचले होंठ को दाँतों से काट खाया। उनके तीखे नाखुन जय कि भींची हुई गाँड पर निर्दयता से कसे जाते थे। |

अपनी वासना लिप्त माँ के मादा जानवर जैसे ऐंठते तन को देख कर जय के सब्र का बाँध टूट पड़ा। हाँफ़ता हुआ, साँड सा हुंकारता हुआ, अपने सर को पिच्छे कि तरफ़ फेंकता हुआ अपने गरम, खौलते वीर्य की लबालब बौछारें माँ कि योनि की गहराईयों मे उडेलने लगा। पुत्र के वीर्य की फुहार ने टीना जी कि योनि में उन्माद की कईं फड़कती थरथराहटें पैदा कर दी। योनि के जकड़ाव - फैलाव की तीव्रता और बढ़ गई। वीर्य स्खलन के आवेग में जय के हाथ लपक कर माँ के पसीने से तर स्तनों पर जकड़ गये थे और उनके मातृ - गौरव को निचोड़ रहे थे। साथ ही वो अपने पौरुष के पिघलते मलाईदार वीर्य से माता की योनि को लबालब भरे देता था। टीना जी चीख पड़ीं - चीख में उनके पाप - कृत्य से उत्पन्न लज्जा और अभूतपूर्व वासना सम्मिश्रित थी। उनका पुत्र उनकी योनि में वीर्य स्खलित कर रहा था। उन्होंने अपने ही पुत्र को काम - क्रिया का सहभागी बनाया था। कितना उत्तेजक था यह कृत्य! जैसे ही पुत्र-वीर्य की पहली बौछार का अनुभव उन्हें हुआ था, उन्होंने जय के फौव्वारे से लिंग को कस के भींच लिया था, कहीं उनके जवान बेटे के उपजाऊ वीर्य की एक भी बूंद व्यर्थ न हो जाए। बेटे जय को और उकसाते हुए बोलीं थीं वे :

* शाबाश बेटा जय! उडेल दे सारा जूस मम्मी की गरम चूत में !” ।
हरामी कैसे चूस चूस कर निप्पल से दूध पीता था! अब वैसे ही तेरे लन्ड को निचोड़ दूगी !”

देखें कितने लीटर स्टोर कर रखा था टट्टों में !” * मेरी कोख़ लबालब कर दे मेरे लाल !”
 
जय कराहता हुआ अपने अडकोष को निचोड़- निचोड़ कर सर्र- सर्र माता की योनि में विर्या को खाली कर रहा था। टीना जी हर बौछार को गिनती जा रही थीं:

“आठ! आह! नौ! एक और बार! दस्स !” हर बौछार के साथ टीना जी जय के नितम्बों को पंजों में जकड़े अपनि योनि के और भीतर धकेले देती थीं।

. ' 'तेरह ।” टीना जी हैरान थीं कि वीर्य की आखिरी बौछार के बाद भी जय ने काम-क्रीड़ा बन्द नहीं की थी। अलौकिक सैक्स- संतुष्टि के बाद भी उसका लिंग काफ़ी कठोर था। यही तो अन्तर है जवान लड़कों में और मेरे पति में - झड़ने के बाद तुरन्त दूसरी बार लन्ड तन जाता

“ऊ, जय लाजवाब सैक्स था !” टिन्न जी ने कमर मटकाते हुए चहचहा कर कहा।

मुस्टन्डे! मम्मी की चूत में एक दर्जन बौछारें उन्डेली और तेरा लन्ड अभी भी तना हुआ है! लगता है ये लन्ड मांगे मोर ?” ।

“ये प्यास है बड़ी!” दोनों पेप्सी-कोला के विज्ञापन की इन लाइनों को दुहरा कर खिलखिलाते हुए हस पड़े।

जय बड़े लाड़ से अपने लिंग की लम्बाई को माँ की योनि के अन्दर आगे-पीछे सड़प - सड़प फिसलाने लगा। टीना जी की योनि सैक्स के उपरान्त स्त्राव के लिप्त हो कर गरम और लिसलिसी हो गई थी। उनकि चूत का चोचला एक गुलाबी जीभ की तरह लपक कर उनके बेटे के काले लन्ड को चाट रहा था। मिसेज शर्मा को विश्वास नहीं हो रहा था कि इतने शीघ्र ही उनका बेटा उन्हें फिर उत्तेजित कर लेगा। कुछ सैकेन्दों में उन्हें फिर वही मीठा सा दर्द अपनी इन्द्रीयों मे उमड़ता सा प्रतीत हुआ। सिर्फ आधे घन्टे में ही क्या वे तीसरी बार झड़ने वाली थीं
 
18 एक वादा

* अहा जय! फिर चोदो न मुझे !” मिसेज शर्मा ने उखड़ती साँसों में फ़र्माईश की।

जय की कमर के हर झटके के साथ उसके अंडकोष थप्प-थप्प कर माँ के उठे हुए नितम्बों पर टक्कर करते थे। टीना जी एक अंगड़ाईं लेकर बिस्तर पर पीछे लेट गयीं और अपने बदन को पुत्र के कामवेश में समर्पित कर दिया। दोनों में सैक्स के लिये बराबर उतावलापन था। कूल्हे उचका कर उन्होंने अपनी योनि को पुत्र के सनसनाते लिंग पर कसा और अजगर की तरह जकड़ - जकड़ कर अपनी मांद मे निगला।

उसके जवान बेटे का जिस्म उसे वासना से अभिबूत कर देता था। जरा सी देर में काम-कला में कैसी महारत हासिल कर ली थी उसने! क्या जबर्दस्त मर्दानगी थी मुस्टन्डे चोदू में! स्माज इसे पाप कहाता हो तो कहे, उसे समाज की परवाह नहीं। कितना आनन्द था इस पाप में। दो पल की तो जिन्दगानी है, जितना मज़ा लूट सकती है, लूट ले! किसी से भी, कहीं भी चुदवा ले! और इस बात कि भनक भी किसे पड़ सकती है ? क्या लाजवाब लन्ड है जय का - लम्बा और मोटा। ऐसे लन्ड से चुदने का लुफ्त क्यों छोड़े वो ?

| ऐसे खयाल उसके मस्तिष्क में कौन्ध रहे थे। और उसी “लाजवाब लन्ड” ने उसे फिर बहुत आनन्द दिया। पुत्र के प्रचण्ड पुरुषांग से कामदेव ने अपना मीठे बाणों से अनेक बार उनकी वासनेन्द्रियों पर मीठा प्रहार किया। उसके प्रबल युवा अंडकोश ने फिर एक बार गाढ़े मलाईदार तरो-ताज वीर्या की कईं धाराएँ माँ की प्यासी कोख में बहा दीं। इस बार तो जय का यौवन - बल भी सम्पूर्तः व्यय हो चुका था। उसका थका हुआ शरीर माँ की छाती पर गिर पड़ा। टीना जी ने अचानक अपनी छाती पर पड़े इस भार से एक गुर्राहट निकाली। उनकी ऊपर उठी हुई टांगें फिसल कर उसके बदन के दोनों तरफ़ बिस्तर के नीचे लटक पड़ीं। बड़े ही लाड़ से उन्होंने अपने दोनों हाथों से उसकी पसीने से तर पीठ को सहलाया। ममता भरे आलिंगन में बाँध कर
पसीने से तर नंगे जिस्म से कस कर चिपटाया। दोनों कछ मिनटों तक बिस्तर पर सुस्ताते रहे, फिर जय बिस्तर से उठ कर नीचे फ़र्श पर बैठ गया।
 
“मम्मी, ठीक तो हो ?” अपनी माँ की आँकों में शर्म देख कर वो बोला।

मैं तो ठीक हूं बेटे। पर हमें ये सब नहीं करना था। मैं खुद पर काबू नहीं रख पाई। अब क्या होगा ?”

“क्यों मम्मी ? क्या आपको बिल्कुल मजा नहीं आया ?” ।

“अरे बाबा! उसी की तो चिंता है। इतना मजा तो लाईफ़ में कभी नहीं आया! पर माँ और बेटे के बीच ऐसा सोचना भी पाप है, और मैने तुझे भी इस पाप में भागीदार बना डाला !” टीना जी उठते हुए बोलीं।

“पर मम्मी, अगर दोनो अपनी मर्जी से ऐसा करते हैं तो इसे पाप क्यों कहा जाए ? कब से बेटे का माँ पर प्यार जताना पाप हो गया ?”

जय के उस इस तर्क का जवाब टीना जी के पास नहीं था।

तेरी बात में एक मासूम सच है जय। पर सोच तेरे डैडी को पता चले तो क्या बोलेंगे ?” *

उन्हें भला कैसे पता छलेगा मम्मी ?” जय ने बदमाशी से आँख मारते हुए कहा।

डैडी का बेटा! बड़ा चालाक बनता है।” मिसेज़ शर्मा ने अपनी पैन्टी को अपनी माँसल जाँघों पर से ऊपर चढ़ाते हुए मन ही मन कहा।
 
डैडी का बेटा! बड़ा चालाक बनता है।” मिसेज़ शर्मा ने अपनी पैन्टी को अपनी माँसल जाँघों पर से ऊपर चढ़ाते हुए मन ही मन कहा।

जय ने भी अपनी माँ की आकर्षक सुडौल टांगों को सराहा और सलवार सूट पहनते हुए उनके भरपूर नितम्बों की एह झलक भी देखी। जय अभी भी बिस्तर पर लेटा हुआ था और अपनी माँ को एक अलग नीयत से देख रहा था। जो स्त्री उसके सामने खड़ी थी वो अब उसके लिये खान बना कर परोसने वाली, बर्तन धोने वाली और कपड़े इस्त्री करने वाली माता नहीं थी।
| अब वो उसकी सैक्स पर्टनर थी, सम्भोगिनि थी।

टीना जी के मादक स्तन अब सलवार-सूट ढक गये थे पर महीन कपड़े के नीचे निप्पलों का उभार अब भी देखने वाले को रिझाता था।

“अगली बार कब मम्मी ?” जय ने माँ के स्तनों की गोलाई को निहारते हमे आशापूर्वक भाव में पूछा।

“मेरे लाल, पता नहीं। हमें इस बात का बहुत खयल रखना होगा कि किसी को कानों-कान भनक ना पड़े। नहीं तो लेने के देने पड़ जाएंगे।

टीना जी स्विकार तो नहीं करना चाहती थीं पर पुत्र के शीथील लिंग को देख कर उन को जय के सवाल का जवाब मिल गया था। उस एक झलक ने उन्हें मुद्दतों बाद नसीब हुई प्रबल काम- संतुष्टी की याद ताजा कर दी। नीचे झुक कर टीना जी ने जय के होंठों पर एक ममता भरा चुम्बन दिया। पर अपनी जाँघों पर टीना जी के हाथ का स्पर्श उनके नेक इरादों का अंदेशा जय को दे रहा था।

हुजूर आगे आगे देखिए होता है क्या !” जय को युं असमंजस में डाल कर मिसेज शर्मा कमर मटकाती हुई बेडरूम से बाहर चली गईं।
 
जय के मैच को देखने के लिये जब उसके मम्मी-डैडी घर से चले गये, तो सोनिया अपने बेडरूम में जा कर स्विमसूट ढूंढने लगी। अपने कईं स्विमसूटों में से वो एक ऐसा स्विमसूट चुनना चाहती थी जिससे राज अधिक से अधिक आकर्षित हो। उसने एक काले रंग की बिकीनी को चुना जिसे वो मम्मी से छुपा कर खरीद लायी थी। जानती थी, मम्मी उसे ये छोटी सी बिकीनी, जिससे उसके जिस्म की नुमाइश अधिक और लज्जा निर्वारण कम होता था, कभी नहीं पहनने देतीं। एक मॉडल की तरह वो बिकीनी पहन कर शीशे के सामने इतरा रही थी।

मुश्किल बिकीनी उसके यौवन के गौरव, उसके वक्ष को ढक पा रही थी। स्तनों के निप्पलों का उभार लचीले लायक्रा मैटिरीयल के नीचे साफ़ दिखता था। बिकीनी की जाँघिया क्या थी ? कपड़े का एक छोटा सा टुकड़ा था जो उसकी जाँघों के बीच के त्रिकों को मुश्किल से ढकता हुआ पीछे गाँड की खाई में कहीं गुम हो गया था। लायक्रा ऐसा कस के चिपक गया था कि योनि के दोनों होंठ और उनके आकार की हर बारीकी सामने से साफ़ दिखती थी। ।

“यह एक्दम फ़िट रहेगी!” उसने खुद से कहा। “अब देखें राज कैसे नहीं फंसता !”

सोनिया ने बिकीनी के ऊपर एक रोयेंदार बाथरोब लपेटा और पूल के पस्स एक आरमकुर्सी पर नॉवल पढ़ती हुई लेट गयी। बाथरोब के कुछ बटनों को ऐसे खोल दिया की उसके जिस्म की एक उत्तेजक झलक दिखती रहे, और राज का इंतजार करने लगी।

साहबजादे बिलकुल सही टाइम पर शर्मा परिवार के घर में दाखिल हुए। राज एक काले घंघराले बालों वाला लम्बा, गबरू जवान था। जिम में कसरत करते-करते अपने शरीर को बड़ा मजबूत कर लिया था। मोहल्ले में बिजली का काम और मोटर - रेपेयर जैसे छोटे-मोटे काम के लिये लोग उसे अक्सर घर पर बुलाते थे।
 
20 जल बिन मछली

“सोनिया, ज्यादा इंतजार नहीं करना होगा तुम्हें। मेझे बस आधा घन्टे का वक़्त दो। फिर आरम से पूल के मजे लेन।” राज मुस्कुराते हुए पूल पर तैरते कचरे को साफ़ करता हुआ बोला।

“बैंक्स राज !” सोनिया ने जवाब में कहा। “जल्दी किसे है यार !” राज के तंग मजबूत पुट्ठों को निहारते हुमे उसने मन में सोचा।

जंघाओं के बीच गर्माती तपन के करं उसे टंगें कुछ खोलनी पड़ी। सोनिया का ध्यान राज को काम करते उसके चौड़े मजबूत कन्धों और टंगों की मजबूत पिंडलियों को देख कर अपने नॉवल पर नहीं टिक पा रहा था। जब वो झुकता तो उसकी जाँघों के बीच उसके पौरुष का उभार खासा भारी-भरकम था। उसने अपने बाथरोब को ऊपर से ढीला कर के अपने वक्ष स्थल के यौवन को बेपर्दा किया।

राज ने तो पहली ही नज़र में सोनिया के बिकीनी में लिपटे हुए जिस्म को ठीक से जाँच लिया था। उसकी नजरें क्षं भर के लिए उसकी जाँघों फर फिसलती हुई सोनिया के स्तनों के उभार पर टिक गयीं। सोनिया की चढ़ती जवानी ने उसके स्तनों को राज की उपेक्षा से कहीं अधिक विकसित कर दिया था। “क्या उम्र होगी ? चौदह ? पन्द्रह ? साले जेल जाना पड़ेगा। चोदने का मौका मिले तो जेल भी क़बूल है। लौन्डी पका हुआ आम है। चूत भी बड़ी टाइट होगी !”

राज ने किसी तरह मन में उठते वासना भरे खयालों को दबाया। उसे डर था कहीं सोनिया उसकी जाँघों के बीच तनते हुए तंबू को नहीं देख ले। पर सोनिया की तीक्ष्ण गिद्ध निगाहें राज के मचलते हुए उभार को भाँप चुकी थीं।

“चल गया मेरा जादू !” बाथरोब को सरका कर कुछ और खोलते हुए उसने सोचा। राज सोच रहा था की सोनिया अपनी माँ का ही युवा रूप थी। बस बाल लम्बे नहीं थे, चुंघराले और छोटे थे। पर फ़िगर तो एकदम माँ जैसा था। माँ और बेटी का चेहरा और हावभाव हू-ब-हू मेल खाते थे। | सोनिया किताब में लीन होने का नाटक कर रही थी। जब भी मौका मिलता एक नजर राज को काम करते हुए देख लेती थी। रह रह कर बड़ी अदाओं से अगड़ाइयाँ ले कर अपने यौवन से उसे रिझाने के लिये जिस्म का प्रदर्शन भि करती। उसका बाथरोब तो कन्धों से नीचे गिरा ही जाता था। उसकी चिकनी लम्बी टांगें जाँघों तक न नंगी थीं। जैसे जैसे सोनिया अपने यौवन के जलवे दिखाती जा रही थी, वैसे वैसे राज का ध्या अपने काम पर लगना और कठिन होता जा रहा था। आखिरकार सोनिया तन के उठ खड़ी हुई और नीचे सरका कर बाथरोब को अपने तन से उतार डाला। राज ने उसके इस रूप को देखा तो मारे हैरानी के पूल में गिरते-गिरते बचा। माशाल्लाह! क्या पोशाक पहन रखी है। ये बिकीनी तो सोनिया के कीसी अंग को भी ढक नहीं पा रही है!
 
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