desiaks
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” नगीना ने खामोशी से चल रहे देवराज चौहान को देखा। “आप भी तो कुछ कहिए।” नगीना ने कहा।
मेरे पास कहने को कुछ नहीं है।” देवराज चौहान बोला।
अगर पोतेबाबा ने सच कहा है तो रात को बहुत कुछ हो सकता है।”
जब तक हालात मेरे सामने न हों, मैं कुछ नहीं कह सकता।” देवराज चौहान का स्वर कठोर था।
“हालात तो रात को ही हमारे सामने आएंगे।” नगीना बोली।
रुस्तम राव कुछ कहने लगा कि शब्द उसके होंठों में ही रह गए।
‘खटका’ हुआ था।
स्पष्ट आवाज उभरी थी। जैसे किसी के पांव के नीचे सुखी टहनियां आ गई हैं।
वे चारों ठिठके। नजरें हर तरफ घूम ।।
तभी एक आदमी दिखा। जिसके हाथ में कुल्हाड़ी जैसा हथियार था। वो सूखी लकड़ियों पर खड़ा था। उन लकड़ियों पर या तो उसने पैर जान-बूझकर रखा था या अनजाने में आ गया था।
उसे देखते ही देवराज चौहान के चेहरे पर छाई कठोरता में बढ़ोत्तरी हो गई।
पोतेबाबा की पहली बात तो सच होईला बाप ।”
यो त कल्ला ही दिखो हो। साथ में कोई न होवे। अंम इसो को ‘वड' दयो।”
तभी देवराज चौहान बिजली की सी तेजी से पलटा उसके कानों ने सरसराहट सुनी थी। दूसरी तरफ उसने दो व्यक्ति देखे।
फिर उनके गिर्द फैले आदमियों के दिखने में बढ़ोत्तरी होने लगी। पूरा घेरा था जो उन पर पड़ चुका था।
" “हम घिर चुके हैं।” देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा—“ये संख्या में बहुत ज्यादा है। इनका मुकाबला करना बेवकूफी होगी ।”
“यों तो म्हारे को कुत्तों की तरहो खींचो के ले जायो ।”
घेरा तंग होने लगा। बचने को कोई रास्ता नहीं था।
। ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मोना चौधरी और पारसनाथ तेजी से आगे बढ़े जा रहे थे। वो जिस तरफ चल पड़े थे वो चट्टानों से भरा खुला इलाका था। सूर्य पश्चिम की तरफ चलता रहा था। समुद्र से लहरें टकराकर उनकी आंखें चौंधिया रही थीं। ठंडी हवा उन्हें राहत पहुंचा रही थी। वे दोनों समुद्र के किनारे-किनारे आगे बढ़ते रहे थे। ।
“अगर यहां कोई रहता है तो समुद्र के किनारे अवश्य कोई इंसान दिखेगा।” मोना चौधरी बोली।
हता तो जरूर होगा मोना चौधरी ।” पारसनाथ ने कहा। ये तुम कैसे कह सकते हो?”
वीरान जगह पर हमें ला फेंकने से जथूरा का कोई मतलब हल नहीं होने वाला।”
“क्या पता वो चाहता हो कि हम यहां पर भूख-प्यास से तड़पकर मर जाएं।”
ये सम्भव नहीं।”
क्यों?" ।
जगमोहन ने मुझे अपनी और पोतेबाबा की बातचीत के बारे में बताया था, पतेबाबा ने कहा था कि जथूरा हम सब लोंगों पर सीधे-सीधे कोई वार नहीं कर सकता कि जिससे हमारी मौत हो सके। जथूरा का ऐसा वार तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक हम इस पूर्वजन्म में प्रवेश न कर जाएं ।”
पारसनाथ बोला–“वो हममें झगड़ा करवाकर ही हमें मौत दे सकता है और इसी कारण उसने हम सबको एक जगह इकट्ठा किया है।”
“हम झगड़ा नहीं करेंगे।” ।
मेरे खयाल में जथूरा की निगाहों में सबसे कमजोर कड़ी तुम हो।
” मैं—वो कैसे?”
क्योंकि तुम्हें जल्दी गुस्सा आ जाता है।”
एक बार तो मुझसे गलती हो गई पारसनाथ जो मैं सपन चड्ढा की बातों में आ गई। परंतु अब ऐसा नहीं होगा। सपन चड्ढा और लक्ष्मण दास पर जथूरा के गुलाम मोमो जिन्न ने काबू पाया हुआ है। दोनों उसके कहने पर चलने को मजबूर थे।” (ये सब विस्तार से जानने के लिए पढ़े राजा पॉकेट बुक्स से अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'जथूरा' ।)
मोमो जिन्न इस वक्त टापू पर ही मौजूद है।”
क्योंकि लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा भी यहां हैं।” मोना चौधरी की निगाह आगे बढ़ते हुए बातें करते हुए हर तरफ घूम रही थी। रास्ते में आने वाले छोटे-बड़े पहाड़ी पत्थरों को वो पार करते जा रहे थे। ।
“हां। उन दोनों की हरकतों से हमें सतर्क रहना होगा। वो मोमो जिन्न के हाथों फंसे, फिर कोई गड़बड़ कर सकते हैं।”
दोनों के बीच कुछ चुप्पी आ ठहरी।
उनके शरीर पर पड़ने वाली सीधी धूप कभी-कभी शरीर में चुभन् पैदा कर देती थी।
कुछ देर बाद ये चट्टानी इलाका खत्म होता दिखा। दूर, सामने घने पेड़ों का जंगल नजर आ रहा था।
“अभी तक कोई नजर नहीं आया।” पारसनाथ ने कहा।
हो सकता है उन पेड़ों की तरफ कोई आबादी हो।” मोना चौधरी बोली।।
हमें वापस भी जाना है।”
काम अधूरा छोड़कर वापस जाने का कोई फायदा नहीं। हम आगे जाएंगे। टापू का पूरा चक्कर लगाकर लौटेंगे।”
क्या पता टापू कितना बड़ा है।” पारसनाथ ने गम्भीर स्वर में कहा।।
देखते हैं।” मोना चौधरी ने पारसनाथ को देखा_“शायद आगे हमें जगमोहन-महाजन मिल जाएं।”
पारसनाथ ने सहमति से सिर हिला दिया। दोनों आगे बढ़ते रहे।
“सोहनलाल का हम सबके बीच न होना अजीब बात है।” पारसनाथ बोला—“सिर्फ बो ही नहीं है यहां ।”
इसकी अवश्य ही कोई वजह होगीं ।”
क्या तुम्हें जथूरा की कुछ याद है?”
“नहीं।” मोना चौधरी ने कहा—“अभी तक तो ये नाम मुझे सुना हुआ नहीं लगता।”
तभी एक पत्थर उनके आगे आकर गिरा। दोनों चौंके। उसी पल फुर्ती से पलटे। फिर दोनों के चेहरों पर ही आश्चर्य नाच उठा।
मेरे पास कहने को कुछ नहीं है।” देवराज चौहान बोला।
अगर पोतेबाबा ने सच कहा है तो रात को बहुत कुछ हो सकता है।”
जब तक हालात मेरे सामने न हों, मैं कुछ नहीं कह सकता।” देवराज चौहान का स्वर कठोर था।
“हालात तो रात को ही हमारे सामने आएंगे।” नगीना बोली।
रुस्तम राव कुछ कहने लगा कि शब्द उसके होंठों में ही रह गए।
‘खटका’ हुआ था।
स्पष्ट आवाज उभरी थी। जैसे किसी के पांव के नीचे सुखी टहनियां आ गई हैं।
वे चारों ठिठके। नजरें हर तरफ घूम ।।
तभी एक आदमी दिखा। जिसके हाथ में कुल्हाड़ी जैसा हथियार था। वो सूखी लकड़ियों पर खड़ा था। उन लकड़ियों पर या तो उसने पैर जान-बूझकर रखा था या अनजाने में आ गया था।
उसे देखते ही देवराज चौहान के चेहरे पर छाई कठोरता में बढ़ोत्तरी हो गई।
पोतेबाबा की पहली बात तो सच होईला बाप ।”
यो त कल्ला ही दिखो हो। साथ में कोई न होवे। अंम इसो को ‘वड' दयो।”
तभी देवराज चौहान बिजली की सी तेजी से पलटा उसके कानों ने सरसराहट सुनी थी। दूसरी तरफ उसने दो व्यक्ति देखे।
फिर उनके गिर्द फैले आदमियों के दिखने में बढ़ोत्तरी होने लगी। पूरा घेरा था जो उन पर पड़ चुका था।
" “हम घिर चुके हैं।” देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा—“ये संख्या में बहुत ज्यादा है। इनका मुकाबला करना बेवकूफी होगी ।”
“यों तो म्हारे को कुत्तों की तरहो खींचो के ले जायो ।”
घेरा तंग होने लगा। बचने को कोई रास्ता नहीं था।
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मोना चौधरी और पारसनाथ तेजी से आगे बढ़े जा रहे थे। वो जिस तरफ चल पड़े थे वो चट्टानों से भरा खुला इलाका था। सूर्य पश्चिम की तरफ चलता रहा था। समुद्र से लहरें टकराकर उनकी आंखें चौंधिया रही थीं। ठंडी हवा उन्हें राहत पहुंचा रही थी। वे दोनों समुद्र के किनारे-किनारे आगे बढ़ते रहे थे। ।
“अगर यहां कोई रहता है तो समुद्र के किनारे अवश्य कोई इंसान दिखेगा।” मोना चौधरी बोली।
हता तो जरूर होगा मोना चौधरी ।” पारसनाथ ने कहा। ये तुम कैसे कह सकते हो?”
वीरान जगह पर हमें ला फेंकने से जथूरा का कोई मतलब हल नहीं होने वाला।”
“क्या पता वो चाहता हो कि हम यहां पर भूख-प्यास से तड़पकर मर जाएं।”
ये सम्भव नहीं।”
क्यों?" ।
जगमोहन ने मुझे अपनी और पोतेबाबा की बातचीत के बारे में बताया था, पतेबाबा ने कहा था कि जथूरा हम सब लोंगों पर सीधे-सीधे कोई वार नहीं कर सकता कि जिससे हमारी मौत हो सके। जथूरा का ऐसा वार तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक हम इस पूर्वजन्म में प्रवेश न कर जाएं ।”
पारसनाथ बोला–“वो हममें झगड़ा करवाकर ही हमें मौत दे सकता है और इसी कारण उसने हम सबको एक जगह इकट्ठा किया है।”
“हम झगड़ा नहीं करेंगे।” ।
मेरे खयाल में जथूरा की निगाहों में सबसे कमजोर कड़ी तुम हो।
” मैं—वो कैसे?”
क्योंकि तुम्हें जल्दी गुस्सा आ जाता है।”
एक बार तो मुझसे गलती हो गई पारसनाथ जो मैं सपन चड्ढा की बातों में आ गई। परंतु अब ऐसा नहीं होगा। सपन चड्ढा और लक्ष्मण दास पर जथूरा के गुलाम मोमो जिन्न ने काबू पाया हुआ है। दोनों उसके कहने पर चलने को मजबूर थे।” (ये सब विस्तार से जानने के लिए पढ़े राजा पॉकेट बुक्स से अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'जथूरा' ।)
मोमो जिन्न इस वक्त टापू पर ही मौजूद है।”
क्योंकि लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा भी यहां हैं।” मोना चौधरी की निगाह आगे बढ़ते हुए बातें करते हुए हर तरफ घूम रही थी। रास्ते में आने वाले छोटे-बड़े पहाड़ी पत्थरों को वो पार करते जा रहे थे। ।
“हां। उन दोनों की हरकतों से हमें सतर्क रहना होगा। वो मोमो जिन्न के हाथों फंसे, फिर कोई गड़बड़ कर सकते हैं।”
दोनों के बीच कुछ चुप्पी आ ठहरी।
उनके शरीर पर पड़ने वाली सीधी धूप कभी-कभी शरीर में चुभन् पैदा कर देती थी।
कुछ देर बाद ये चट्टानी इलाका खत्म होता दिखा। दूर, सामने घने पेड़ों का जंगल नजर आ रहा था।
“अभी तक कोई नजर नहीं आया।” पारसनाथ ने कहा।
हो सकता है उन पेड़ों की तरफ कोई आबादी हो।” मोना चौधरी बोली।।
हमें वापस भी जाना है।”
काम अधूरा छोड़कर वापस जाने का कोई फायदा नहीं। हम आगे जाएंगे। टापू का पूरा चक्कर लगाकर लौटेंगे।”
क्या पता टापू कितना बड़ा है।” पारसनाथ ने गम्भीर स्वर में कहा।।
देखते हैं।” मोना चौधरी ने पारसनाथ को देखा_“शायद आगे हमें जगमोहन-महाजन मिल जाएं।”
पारसनाथ ने सहमति से सिर हिला दिया। दोनों आगे बढ़ते रहे।
“सोहनलाल का हम सबके बीच न होना अजीब बात है।” पारसनाथ बोला—“सिर्फ बो ही नहीं है यहां ।”
इसकी अवश्य ही कोई वजह होगीं ।”
क्या तुम्हें जथूरा की कुछ याद है?”
“नहीं।” मोना चौधरी ने कहा—“अभी तक तो ये नाम मुझे सुना हुआ नहीं लगता।”
तभी एक पत्थर उनके आगे आकर गिरा। दोनों चौंके। उसी पल फुर्ती से पलटे। फिर दोनों के चेहरों पर ही आश्चर्य नाच उठा।