hotaks444
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जीशान अपने पैंट की जिप लगाता हुआ बाथरूम से बाहर निकलता है तो सकपका जाता है, क्योंकी सामने नग़मा खड़ी थी। नग़मा ने शायद सब बातें सुन ली थी। उसकी लाल चमकती हुई आँखें साफ बता रही थी कि वो क्या सोचकर यहाँ खड़ी है?
जीशान-अरे नग़मा तुम यहाँ?
नग़मा-“वही तो मैं भी सोच रही हूँ भैया कि आप यहाँ? और हैरत की बात है कि आपी भी अंदर है…”
जीशान-वो मैं… नग़मा मैं तो शावर का वाल्व ठीक करने अंदर गया था।
नग़मा आगे बढ़ती है और जीशान के गाल पे उंगली लगाकर वो चिपचिपा वीर्य उंगली पर लेकर जीशान को दिखाती है-“ये क्या है भाई जान?”
जीशान अपने गाल को साफ करता हुआ आगे बढ़ने लगता है-“मुझे नहीं पता, मुझे बहुत काम है…”
नग़मा-मैं अम्मी से पूछने जा रह हूँ ।
जीशान के पैर थम जाते हैं, साँसें उखड़ने लगती हैं। वो पीछे पलटकर देखता है और नग़मा के होंठों पर कातिलाना हँसी देखकर उसे भी समझते हुये देर नहीं लगते कि नग़मा क्या चाहती है?
नग़मा-क्यों क्या हुआ जाओ ना? आपको तो बहुत काम है ना?
जीशान दरवाजा बंद कर देता है और नग़मा के पास आकर खड़ा हो जाता है। दोनों एक दूसरे की आँखों में देखने लगते हैं।
जीशान-तुम अम्मी के पास नहीं जाउन्गी नग़मा।
नग़मा-जाउन्गी, ज़रूर जाओगी ।
जीशान नग़मा का हाथ पकड़कर उसे दीवार से लगा देता है और अपने होंठों को उसके गाल पे लगाकर धीरे से उसके कान में कहता है-“जो आपी को मिला है तुझे भी मिल सकता है अगर तू अपना मुँह बंद रखेगी…”
नग़मा-“उन्ह… छोड़ो मुझे। मुझे कुछ नहीं चाहिए आपसे, छोड़ो मेरा हाथ…”
जीशान अपने हाथ में नग़मा की चुची पकड़ लेता है-“अगर नहीं चाहिए तो ये इतने मोटी -मोटी कैसे हो गई हैं?” कहकर वो निप्पल को मरोड़ने लगता है।
नग़मा तो पहले से ह गरम थी, ऊपर से जीशान के पत्थर से हाथों की पकड़ से वो मोम की तरह पिघलने लगती है-“आप बड़े खराब हो भाई… आपने अम्मी के साथ भी ऐसा ही किया था…”
जीशान जोर से नग़मा की चुची मरोड़ने लगता है-“तुझे कैसे पता? हाँ, बोल तुझे कैसे पता?”
नग़मा-“उन्ह… मैं देखी थी आपको और अम्मी को रूम में बिना कपड़ों के वो गंदा काम करते हुये…”
जीशान इस बात से अंजान था कि नग़मा ने उसे और शीबा को चुदाई करते हुये देख चुकी थी और यही वजह थी की उसका नज़रिया जीशान के लिए बदल चुका था। जबसे उसने जीशान के मोटे मूसल जैसे लण्ड को अपने अम्मी शीबा की चूत में घुसते हुये देखी थी, तबसे उसकी चूत भी खुद पर सितम ढाने के लिए तैयार बैठी हुई थी। मगर हालत ऐसे नहीं थे कि नग़मा कुछ कह पाती।
शीबा की मौत के बाद से जीशान भी उससे दूर -दूर रहने लगा था। मगर जब आज उसने जीशान और सोफिया को फिर से वही गंदा काम करते हुये देखा तो, उसके चूत में चिंगारी फिर से जल उठी थी।
जीशान धीरे से अपने हाथ का पंजा नग़मा की शलवार पर रख देता है। उसकी उंगलियाँ ठीक नग़मा की चूत के क्लोटॉरिस के ऊपर थीं, और वो हल्के-हल्के उसे सहला रहा था।
नग़मा-भाई क्या करते हो, मत करो ना?
जीशान-तुझे भी करना है ना मेरे साथ वो सब जो अम्मी करती थी?
नग़मा-“उन्ह… नहीं करना आह्ह…”
जीशान-“ये गीली क्यों हो गई है? नग़मा हाँ बोल?”
नग़मा-“आह्ह… वो तो हमेशा ह गीली रहती है आह्ह… भाई…”
जीशान-कैसे मेरी बहन?
नग़मा-“उन्ह… आपका सोच-सोचकर भाई आह्ह… अम्मी जीई…”
ये सुनकर जीशान अपनी बहन नग़मा को अपने तरफ घुमा लेता है और अपने रसीले होंठों में उसके नाजुक होंठों को पकड़ लेता है। नग़मा अपने आँखें बंद कर लेती है। क्लोटॉरिस की घिसाई से वो अपने होश-ओ-हवास में नहीं थी। उसका जिस्म थरथर काँप रहा था। वो मुँह वोले बसूजी शान के आगे खड़ी थी। जो कर रहा था जीशान कर रहा था।
जीशान को महसूस हो रहा था जैसे वो शीबा के होंठों को चूम रहा हो, उसे बहुत खुशी थी कि घर की लड़कियाँ उसके दीवानी हैं, मगर वो जिसका दीवाना है वो अब तक उसके इश्क़ से बेमहसूस है। बाहर से किसी के कदमों की आवाज़ सुनाई देती है और जीशान नग़मा को छोड़ देता है।
नग़मा अपने मुँह पर दुपट्टा रख कर वहाँ से निकल जाती है।
नग़मा के जाने के बाद वहाँ फ़िज़ा आती है-“अरे जीशान , तुम यहाँ हो। क्या बात है भाई, अपनी आंटी से मिलने की फुरसत भी नहीं है तुम्हें?”
जीशान-नहीं आंटी , ऐसे बात नहीं है। मैं आपकी ही तरफ आ रहा था।
फ़िज़ा नीचे से ऊपर तक जीशान को देखती है-“बहुत कम मर्द देखे हैं मैंने तुम्हारी तरह जीशान …”
जीशान-क्या मतलब आंटी ?
फ़िज़ा अपना एक हाथ जीशान की छाती पर रख कर धीरे से कहती है-“मर्द तो कई हैं दुनियाँ में, मगर जो इस निगाह को भा जाए वो तुम हो…”
जीशान आँखें फाड़े फ़िज़ा को देखता रह जाता है।
तभी अनुम-“अरे फ़िज़ा, चलो अम्मी तुम्हें बुला रही हैं। और जीशान तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”
उन दोनों के बीच की बात अधूरी रह जाते है अनुम के वहाँ आने से। और दोनों एक दूसरे को आँखों-आँखों में कुछ कहते हुये हाल में चले जाते हैं।
रज़िया हाल में हीबैठे हुई थी-“फ़िज़ा तुम और कामरान सोफिया के रूम में सो जाओ, और सोफिया मेरे साथ सो जाएगी…”
कामरान अपनी अम्मी फ़िज़ा की तरफ देखकर मुश्कुरा देता है, जैसे कह रहा हो चल मेरी जान तेरी चूत कुटाई का वक्त हो गया है।
फ़िज़ा भी सभी को शब्बा खैर कहकर सोफिया के रूम में चली जाती है।
तब तक सोफिया भी फ्रेश होकर हाल में आ चुकी थी।
रज़िया-सोफिया तुम मेरे साथ रूम में सो जाओ।
सोफिया-ठीक है दादी ।
जीशान रज़िया की तरफ ह देख रहा था, और रज़िया बड़े दिलकश अंदाज में जीशान की तरफ देखकर मुश्कुरा रही थी। वो एक तरह से जीशान को चिढ़ा रही थी।
धीरे-धीरे सभी अपने-अपने रूम में चले जाते हैं, और जीशान हाल में बैठा टीवी देखता रहता है। तकरीबन एक घंटे बाद जीशान उठकर अपनी दादी के रूम में चला जाता है। जब वो रूम में दाखिल होता है तो सामने दोनों खूबसूरत औरतों को देखकर मचल जाता है। सोफिया बेड के एक कॉर्नर में गहरी नींद में सो चुकी थी और रज़िया कोइ किताब पढ़ रही थी, जीशान को अपने रूम में देखकर वो इशारे से यहाँ आने की वजह पूछती है।
जीशान दरवाजा बंद कर देता है और नाइटी लाइट ओन करके रज़िया की आँखों में आँखें डालकर पहले अपनी शर्ट उसके बाद अपनी पैंट उतार देता है। रज़िया का दिल जोर से धड़कने लगता है। वो शायद नहीं चाहती थी कि अपने बेटी सोफिया के सामने अपने पोते जीशान के साथ चुदाई करे।
मगर जीशान अमन ख़ान की औलाद था। डर उसे किसी चीज का नहीं था और बेशर्म वो अपने बाप से भी ज्यादा था। जीशान आगे बढ़ता है और रज़िया की बगल में आकर लेट जाता है।
रज़िया धीमी आवाज़ में उससे कहती है-“ये क्या कर रहे हो? पैंट तो पहन लो, सोफिया उठ जाएगी…”
जीशान रज़िया की गर्दन में हाथ डालकर उसके गाल को चूम लेता है और अपने होंठों को रज़िया के कान में लगाकर धीरे से कहता है-“मैं हूँ अमन विला का एकलौता मालिक मैं तुम सब औरतों का एकलौता मर्द
मैं, जहाँ चाहूं वहाँ जा सकता हूँ । तुम ना सिर्फ़ मेरी दादी हो बल्की बहुत जल्दी मेरी शरीक -ए-हयात भी बनोगी दादी …”
रज़िया फटी-फटी आँखों से जीशान की तरफ देखने लगती है। जीशान ने खुले आम आज रज़िया से शादी की बात कहकर उसे चौंका दिया था।
जीशान रज़िया के होंठों को चूम लेता है-“हाँ दादी , मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ , तुम्हें अपनी पहली बीवी बनाना चाहता हूँ । तुम्हारे दिल-ओ-दिमाग़ से अमन ख़ान का नाम-ओ-निशान मिटा देना चाहता हूँ । इस जिस्म पर आज के बाद सिर्फ़ एक इंसान का कब्जा होगा, मेरा। मैं आज के बाद आपको अपनी दादी की तरह नहीं बल्की अपनी बीवी की तरह देखना चाहता हूँ , अपनी बीवी की तरह चोदना चाहता हूँ । जिस चूत से मेरे अब्बू निकले थे, आज के बाद उस चूत में मेरा, यानी तुम्हारे शौहर जीशान ख़ान का लण्ड रहेगा। तुम रात में अकेले नहीं सोओगी। आज के बाद तुम्हारी ये चूत तरसेगी नहीं । इसका मालिक मैं बनना चाहता हूँ हमेशा-हमेशा के लिए । बोलो दादी करोगी मुझसे शादी ?”
रज़िया की आँखें गीली हो जाती हैं वो अपने हाथ में की किताब फेंक देती है और दोनों हाथों से जीशान के चेहरे को पकड़कर बेसाखता जीशान के होंठों को चूमने लगती है।
जीशान-अरे नग़मा तुम यहाँ?
नग़मा-“वही तो मैं भी सोच रही हूँ भैया कि आप यहाँ? और हैरत की बात है कि आपी भी अंदर है…”
जीशान-वो मैं… नग़मा मैं तो शावर का वाल्व ठीक करने अंदर गया था।
नग़मा आगे बढ़ती है और जीशान के गाल पे उंगली लगाकर वो चिपचिपा वीर्य उंगली पर लेकर जीशान को दिखाती है-“ये क्या है भाई जान?”
जीशान अपने गाल को साफ करता हुआ आगे बढ़ने लगता है-“मुझे नहीं पता, मुझे बहुत काम है…”
नग़मा-मैं अम्मी से पूछने जा रह हूँ ।
जीशान के पैर थम जाते हैं, साँसें उखड़ने लगती हैं। वो पीछे पलटकर देखता है और नग़मा के होंठों पर कातिलाना हँसी देखकर उसे भी समझते हुये देर नहीं लगते कि नग़मा क्या चाहती है?
नग़मा-क्यों क्या हुआ जाओ ना? आपको तो बहुत काम है ना?
जीशान दरवाजा बंद कर देता है और नग़मा के पास आकर खड़ा हो जाता है। दोनों एक दूसरे की आँखों में देखने लगते हैं।
जीशान-तुम अम्मी के पास नहीं जाउन्गी नग़मा।
नग़मा-जाउन्गी, ज़रूर जाओगी ।
जीशान नग़मा का हाथ पकड़कर उसे दीवार से लगा देता है और अपने होंठों को उसके गाल पे लगाकर धीरे से उसके कान में कहता है-“जो आपी को मिला है तुझे भी मिल सकता है अगर तू अपना मुँह बंद रखेगी…”
नग़मा-“उन्ह… छोड़ो मुझे। मुझे कुछ नहीं चाहिए आपसे, छोड़ो मेरा हाथ…”
जीशान अपने हाथ में नग़मा की चुची पकड़ लेता है-“अगर नहीं चाहिए तो ये इतने मोटी -मोटी कैसे हो गई हैं?” कहकर वो निप्पल को मरोड़ने लगता है।
नग़मा तो पहले से ह गरम थी, ऊपर से जीशान के पत्थर से हाथों की पकड़ से वो मोम की तरह पिघलने लगती है-“आप बड़े खराब हो भाई… आपने अम्मी के साथ भी ऐसा ही किया था…”
जीशान जोर से नग़मा की चुची मरोड़ने लगता है-“तुझे कैसे पता? हाँ, बोल तुझे कैसे पता?”
नग़मा-“उन्ह… मैं देखी थी आपको और अम्मी को रूम में बिना कपड़ों के वो गंदा काम करते हुये…”
जीशान इस बात से अंजान था कि नग़मा ने उसे और शीबा को चुदाई करते हुये देख चुकी थी और यही वजह थी की उसका नज़रिया जीशान के लिए बदल चुका था। जबसे उसने जीशान के मोटे मूसल जैसे लण्ड को अपने अम्मी शीबा की चूत में घुसते हुये देखी थी, तबसे उसकी चूत भी खुद पर सितम ढाने के लिए तैयार बैठी हुई थी। मगर हालत ऐसे नहीं थे कि नग़मा कुछ कह पाती।
शीबा की मौत के बाद से जीशान भी उससे दूर -दूर रहने लगा था। मगर जब आज उसने जीशान और सोफिया को फिर से वही गंदा काम करते हुये देखा तो, उसके चूत में चिंगारी फिर से जल उठी थी।
जीशान धीरे से अपने हाथ का पंजा नग़मा की शलवार पर रख देता है। उसकी उंगलियाँ ठीक नग़मा की चूत के क्लोटॉरिस के ऊपर थीं, और वो हल्के-हल्के उसे सहला रहा था।
नग़मा-भाई क्या करते हो, मत करो ना?
जीशान-तुझे भी करना है ना मेरे साथ वो सब जो अम्मी करती थी?
नग़मा-“उन्ह… नहीं करना आह्ह…”
जीशान-“ये गीली क्यों हो गई है? नग़मा हाँ बोल?”
नग़मा-“आह्ह… वो तो हमेशा ह गीली रहती है आह्ह… भाई…”
जीशान-कैसे मेरी बहन?
नग़मा-“उन्ह… आपका सोच-सोचकर भाई आह्ह… अम्मी जीई…”
ये सुनकर जीशान अपनी बहन नग़मा को अपने तरफ घुमा लेता है और अपने रसीले होंठों में उसके नाजुक होंठों को पकड़ लेता है। नग़मा अपने आँखें बंद कर लेती है। क्लोटॉरिस की घिसाई से वो अपने होश-ओ-हवास में नहीं थी। उसका जिस्म थरथर काँप रहा था। वो मुँह वोले बसूजी शान के आगे खड़ी थी। जो कर रहा था जीशान कर रहा था।
जीशान को महसूस हो रहा था जैसे वो शीबा के होंठों को चूम रहा हो, उसे बहुत खुशी थी कि घर की लड़कियाँ उसके दीवानी हैं, मगर वो जिसका दीवाना है वो अब तक उसके इश्क़ से बेमहसूस है। बाहर से किसी के कदमों की आवाज़ सुनाई देती है और जीशान नग़मा को छोड़ देता है।
नग़मा अपने मुँह पर दुपट्टा रख कर वहाँ से निकल जाती है।
नग़मा के जाने के बाद वहाँ फ़िज़ा आती है-“अरे जीशान , तुम यहाँ हो। क्या बात है भाई, अपनी आंटी से मिलने की फुरसत भी नहीं है तुम्हें?”
जीशान-नहीं आंटी , ऐसे बात नहीं है। मैं आपकी ही तरफ आ रहा था।
फ़िज़ा नीचे से ऊपर तक जीशान को देखती है-“बहुत कम मर्द देखे हैं मैंने तुम्हारी तरह जीशान …”
जीशान-क्या मतलब आंटी ?
फ़िज़ा अपना एक हाथ जीशान की छाती पर रख कर धीरे से कहती है-“मर्द तो कई हैं दुनियाँ में, मगर जो इस निगाह को भा जाए वो तुम हो…”
जीशान आँखें फाड़े फ़िज़ा को देखता रह जाता है।
तभी अनुम-“अरे फ़िज़ा, चलो अम्मी तुम्हें बुला रही हैं। और जीशान तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”
उन दोनों के बीच की बात अधूरी रह जाते है अनुम के वहाँ आने से। और दोनों एक दूसरे को आँखों-आँखों में कुछ कहते हुये हाल में चले जाते हैं।
रज़िया हाल में हीबैठे हुई थी-“फ़िज़ा तुम और कामरान सोफिया के रूम में सो जाओ, और सोफिया मेरे साथ सो जाएगी…”
कामरान अपनी अम्मी फ़िज़ा की तरफ देखकर मुश्कुरा देता है, जैसे कह रहा हो चल मेरी जान तेरी चूत कुटाई का वक्त हो गया है।
फ़िज़ा भी सभी को शब्बा खैर कहकर सोफिया के रूम में चली जाती है।
तब तक सोफिया भी फ्रेश होकर हाल में आ चुकी थी।
रज़िया-सोफिया तुम मेरे साथ रूम में सो जाओ।
सोफिया-ठीक है दादी ।
जीशान रज़िया की तरफ ह देख रहा था, और रज़िया बड़े दिलकश अंदाज में जीशान की तरफ देखकर मुश्कुरा रही थी। वो एक तरह से जीशान को चिढ़ा रही थी।
धीरे-धीरे सभी अपने-अपने रूम में चले जाते हैं, और जीशान हाल में बैठा टीवी देखता रहता है। तकरीबन एक घंटे बाद जीशान उठकर अपनी दादी के रूम में चला जाता है। जब वो रूम में दाखिल होता है तो सामने दोनों खूबसूरत औरतों को देखकर मचल जाता है। सोफिया बेड के एक कॉर्नर में गहरी नींद में सो चुकी थी और रज़िया कोइ किताब पढ़ रही थी, जीशान को अपने रूम में देखकर वो इशारे से यहाँ आने की वजह पूछती है।
जीशान दरवाजा बंद कर देता है और नाइटी लाइट ओन करके रज़िया की आँखों में आँखें डालकर पहले अपनी शर्ट उसके बाद अपनी पैंट उतार देता है। रज़िया का दिल जोर से धड़कने लगता है। वो शायद नहीं चाहती थी कि अपने बेटी सोफिया के सामने अपने पोते जीशान के साथ चुदाई करे।
मगर जीशान अमन ख़ान की औलाद था। डर उसे किसी चीज का नहीं था और बेशर्म वो अपने बाप से भी ज्यादा था। जीशान आगे बढ़ता है और रज़िया की बगल में आकर लेट जाता है।
रज़िया धीमी आवाज़ में उससे कहती है-“ये क्या कर रहे हो? पैंट तो पहन लो, सोफिया उठ जाएगी…”
जीशान रज़िया की गर्दन में हाथ डालकर उसके गाल को चूम लेता है और अपने होंठों को रज़िया के कान में लगाकर धीरे से कहता है-“मैं हूँ अमन विला का एकलौता मालिक मैं तुम सब औरतों का एकलौता मर्द
मैं, जहाँ चाहूं वहाँ जा सकता हूँ । तुम ना सिर्फ़ मेरी दादी हो बल्की बहुत जल्दी मेरी शरीक -ए-हयात भी बनोगी दादी …”
रज़िया फटी-फटी आँखों से जीशान की तरफ देखने लगती है। जीशान ने खुले आम आज रज़िया से शादी की बात कहकर उसे चौंका दिया था।
जीशान रज़िया के होंठों को चूम लेता है-“हाँ दादी , मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ , तुम्हें अपनी पहली बीवी बनाना चाहता हूँ । तुम्हारे दिल-ओ-दिमाग़ से अमन ख़ान का नाम-ओ-निशान मिटा देना चाहता हूँ । इस जिस्म पर आज के बाद सिर्फ़ एक इंसान का कब्जा होगा, मेरा। मैं आज के बाद आपको अपनी दादी की तरह नहीं बल्की अपनी बीवी की तरह देखना चाहता हूँ , अपनी बीवी की तरह चोदना चाहता हूँ । जिस चूत से मेरे अब्बू निकले थे, आज के बाद उस चूत में मेरा, यानी तुम्हारे शौहर जीशान ख़ान का लण्ड रहेगा। तुम रात में अकेले नहीं सोओगी। आज के बाद तुम्हारी ये चूत तरसेगी नहीं । इसका मालिक मैं बनना चाहता हूँ हमेशा-हमेशा के लिए । बोलो दादी करोगी मुझसे शादी ?”
रज़िया की आँखें गीली हो जाती हैं वो अपने हाथ में की किताब फेंक देती है और दोनों हाथों से जीशान के चेहरे को पकड़कर बेसाखता जीशान के होंठों को चूमने लगती है।