desiaks
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(UPDATE-43)
आख़िर वो ऐसा क्यों की? चाहती तो मरर्ने के लिए मुझे चोर देती तो क्या वो आहेसन के बदले आहेसन जाता रही थी नहीं पता?…रात का एडमीशन सुबह जब ठीक हो गया तो हवलदारो ने ही मुझे किसी तरह जीप तक लाया मैनब चल सकता था खुद को सवास्त महसूस कर रहा था..कल रात के वाक़ये ने मुझे हिला सा दिया था वो मुझे मारने आई और हालत कहाँ से कहाँ पहुंच गई?
अचानक जीप पे अभी सवार ही हुआ था…की एक खत मिला..ऊसमें कुछ लिखा था…यक़ीनन ये खत ऊस लौंडिया ने ही मेरे जेब में छोडा था मैं उसे सबकी नजारे से बचाए पढ़ने लगा
“तुमने मेरी जान बचाई उसी का ये इंसानियत के नाते एक वास्ता रहा…तुमचहते तो मुझे गेरफ़्तार कर देते…कल रात को तुम अगर मुझे ना बचाते तो शायद मैं कभी नहीं उठती..और अगर ना उठती तो मेरे जिम्मेदारी अधूरे रही जाते…मैं कौन हूँ क्या हूँ? ये मैं तुम्हें नहीं बता सकती पर मैं जो कुछ कर रही हूँ? वो मेरी जरूरत है? मैंने कभी भी इतना कुछ एक पुलिसवाले को बयान नहीं किया यक़ीनन मैं पुलिस वालो को अपना दुश्मन मानी हूँ दो बार गोली भी कहा चुकी हूँ पर तुम जैसा पुलिसवाला जिसके अंदर इतनी इंसानियत थी पहली बार देखा मेरा दो ही सवाल है तुमने मुझे मरने के लिए क्यों नहीं छोडा? अगर बचना चाहते तो मुझे अरेस्ट क्यों नहीं किया? मैं एक मुज़रिम हूँ तुम्हारी निगाहों में? प्रमोशन मिल जाता बंगाल की आधे से ज्यादा पुलिस मुझे मोस्ट वांटेड क्रिमिनल मानती थी फिर भी तुमने मुझे अरेस्ट क्यों नहीं किया? ये आहेसन हमेशा याद रखूँगी लेकिन इस बार अगर तुम मेरे रास्ते में आए तो गोली मर दूंगीइ सोच लेना”………….उसके खत को पढ़ते पढ़ते मैं कब गुम सा हो गया मुझे पता नहीं
क्या क्या लव्ज़ थे उसके मन के? उसके मन के सवालों का जवाब सच में मैं दे नहीं पा रहा था…काश उसका कोई ई-मैल आइडी होता काश कोई फेसबुक होती तो चाट में बताता काश वो मुझसे फिर मुलाकात करती तो उसे बयान करता की ना जाने क्यों? उसे देखकर मेरा मन बदल गया…साली ने अच्छा खत चोद दिया मेरे लिए…लेकिन मिलेगी तो जरूर और मैं ऊस मिलन के लिए ही बेचैन उठा…चाहे वो मुझे सामने गोली क्यों ना मर दे जैसे ऊसने कहा? लेकिन इस बार उसके बारे में बिना जाने उसे जाने नहीं दूँगा
मैंने ऊस खत को पॉकेट में भर लिया…तब्टलाक़ दिव्या का फोन आ चुका था देखा 4 मिस्ड कॉल है…फटाफट उससे बात करके उसे शांताना देने लगा की मैं कहीं फ़ासस गया था इसलिए कल रात आ नहीं पाया…लेकिन सच पूछो तो दिल-ओ-दिमाग में बस वही लड़की बसी हुई ऊस्की बातें घूम रही थी
काश मैं उसका नाम जान पाता…क्या कहती है वो खुद को क्या नाम है उसका? मैंने खुद ही उसका एक नाम रख दिया काली साया अब काली साया से मिलने का प्रोग्राम बनाना बेहद ही जरूरी था..और ये प्रोग्राम किसी के घर में रातों रात चोरी की वारदात से शुरू होगी मुझे पता था लेकिन वो किस मज़बूरी का नाम ले रही थी…ये मेरी समझ नहीं आया शायद वो कोई गरीब हो हाला तो की मज़बूर अक्सर चोर तो ऐसे ही होते है…क्या पता उसका बच्चा हो? या फिर कोई परिवार मेरी कशमकश तब खत्म हुई जब ब्रांडे में खड़ी दिव्या को देखा मेरी जीप देखते हुए
“आहह हाहह सस्स आहह प्लीज़ आहह आअहह ओह टेररीि की”……..अचानक से देवश की नींद खुली तो एक झटके में शीतल ने उसे धकेल दिया
शीतल उठके अपने होठों पे लगे थूक को पोंछते हुए होंठ सहलाने लगी उंगलियों से “पागल हो गये क्या भैया चबा ही जाते इतना कोई क़ास्सके चुम्मा लेता है”…….देवश अंगड़ाई लेकर अपने बेवकूफी पे हस्सता है
शीतल : आप तो मुझपर टूट ही परे…नींद में भी पता नहीं काली साया काली साया कर रहे थे मैं क्या आपको बाला लगती हूँ (शीतल नाराज़ होकर अपने नंगी छातियो पे चढ़र धक्के मुँह फहर लेती है)
डीओॉश को लगा की वो शीतल के नहीं बल्कि काली साया को किस रहा था उसके साथ सेक्स कर रहा था दिलों दिमाग पे तो चाय थी अब साला नींद में भी उसी को तस्सावार करने लगा था डीओॉश उसे बेहद गुस्सा आया और साथ में शीतल के कटे होंठ को देखकर अफ़सोस भी हुआ
देवश : अच्छा मेरी सफेद रसगुल्ला चल भाई को मांफ कर दे
शीतल : नहीं करूँगी पता है आपको आपने कितने ज़ोर से मेरे साथ सेक्स किया
देवश : अच्छा मेरी मां ई आम सोररय्ी कान पकड़ लिए ठीक (शीतल तभी मायूस थी..देवश ने मुस्कुराकर फ्रीज से एक बड़ा सा कितकट का चॉकलेट शीतल के हाथों में थमा दिया)
शीतल खुशी से पागल हो गयी चॉकलेट की दीवानी थी वो….और देवश मिया को औरत को खुश करने के छोटे छोटे चीज़ें पता है..शीतल का घुसा पलभर में प्यार में बदल गया…”श भैया आप कितने अच्छे हो”…..शीतल फिर देवश के गले लग गयी
देवश ने प्यार उसके गाल पे हल्का चुम्मा लिया और फिर उसके होंठ को प्यार से सहलाया..दोनों कुछ देर तक प्यार भारी बातें करते रहे और फिर देवश अपनी वर्दी पहनें तैयार होने लगा…शीतल भी उठके बर्तन ढोने चली गयी नंगी ही…देवश की नियत फिर नहीं बिगड़ी क्योंकि उसे इसकी आदत थी अब तो एक और सुररूर सा चढ़ चुका था काली साया के नाम की
देवश जल्दी से थाने पहुंचा…अचानक टेलीफोन बज उठा…”हेलो इंस्पेक्टर डीओॉश चटर्जी स्पीकिंग”……..पास ही एक सेठ की मरियल रोई आवाज़ सुनाई दी…पता चला की उनके घर में कोई लड़की घुस गयी है नक़ाब पहनें डकैती कर रही है…और अभी ही फरार हुई है…जगह का नाम सुनकर फौरन मैंने मुस्कुराकर दिल ही दिल में खुश हुआ
पुलिस की जीप भी तीन चार ऊस चोर को पकड़ने के लिए मेरे साथ निकल गयी…साइरन से पूरा रास्ता गूंज उठा…”हवलदार रामू तुम उतार जाओ मैं अकेले ही ऊस लौंडिया को देख ल्टा हूँ तुम बाकी जीप में बैठ जाओ ताकि मैं जब फोन करूं तब पहुंच जाना”……..हवलदार ठीक है साहेब बोलकर उतार गया उसे लगा शायद काला साया की तरह इसे भी मैं मर सकता हूँ
पर वो बंदर क्या जनता था की आद्रक का स्वाद क्या है?….मैंने जीप दूसरी रास्ते मोड़ दी….जल्द ही बाकी पुलिसवाले सेठ के घर पहुंचे…गुण से लेंस पुलिसवालो ने जगह को घैर लिया एक एक कमरा सबकुछ चेक किया चोर तो फरार थी ही साथ में तिजोरी का सामान भी गायब था
जैसे ही हवलदार ने मुझे बताया फौरन मैं दूसरी लोकेशन की ओर मुड़ा…दिमाग कह ही रहा था की वो ज्यादा दूर नहीं गयी है और तभी मैं हाइवे पे ही लौंडिया दिख गयी कैसे मस्तानी अपनी गान्ड बाइक सीट पे रखकर पूरी बढ़ता में बाइक चला रही थी….मैंने उसके पीछे हुआ…..वो काफी दूर थी मेरी जीप भी ठीक उसके पीछे थी…लड़की ने फौरन गाड़ी को फुरती से दूसरे रास्ते मोड़ दिया….वहां नाकाबंदी लगी थी…अब यहां मुझे फीरसे चाल खेलनी थी…”ये लड़की तो गयी अगर पकड़ी गयी तो फिर मेरा क्या होगा?”…..मैं बड़बड़ाते हुए फौरन ऊस रास्ते की ओर मुड़ा
आख़िर वो ऐसा क्यों की? चाहती तो मरर्ने के लिए मुझे चोर देती तो क्या वो आहेसन के बदले आहेसन जाता रही थी नहीं पता?…रात का एडमीशन सुबह जब ठीक हो गया तो हवलदारो ने ही मुझे किसी तरह जीप तक लाया मैनब चल सकता था खुद को सवास्त महसूस कर रहा था..कल रात के वाक़ये ने मुझे हिला सा दिया था वो मुझे मारने आई और हालत कहाँ से कहाँ पहुंच गई?
अचानक जीप पे अभी सवार ही हुआ था…की एक खत मिला..ऊसमें कुछ लिखा था…यक़ीनन ये खत ऊस लौंडिया ने ही मेरे जेब में छोडा था मैं उसे सबकी नजारे से बचाए पढ़ने लगा
“तुमने मेरी जान बचाई उसी का ये इंसानियत के नाते एक वास्ता रहा…तुमचहते तो मुझे गेरफ़्तार कर देते…कल रात को तुम अगर मुझे ना बचाते तो शायद मैं कभी नहीं उठती..और अगर ना उठती तो मेरे जिम्मेदारी अधूरे रही जाते…मैं कौन हूँ क्या हूँ? ये मैं तुम्हें नहीं बता सकती पर मैं जो कुछ कर रही हूँ? वो मेरी जरूरत है? मैंने कभी भी इतना कुछ एक पुलिसवाले को बयान नहीं किया यक़ीनन मैं पुलिस वालो को अपना दुश्मन मानी हूँ दो बार गोली भी कहा चुकी हूँ पर तुम जैसा पुलिसवाला जिसके अंदर इतनी इंसानियत थी पहली बार देखा मेरा दो ही सवाल है तुमने मुझे मरने के लिए क्यों नहीं छोडा? अगर बचना चाहते तो मुझे अरेस्ट क्यों नहीं किया? मैं एक मुज़रिम हूँ तुम्हारी निगाहों में? प्रमोशन मिल जाता बंगाल की आधे से ज्यादा पुलिस मुझे मोस्ट वांटेड क्रिमिनल मानती थी फिर भी तुमने मुझे अरेस्ट क्यों नहीं किया? ये आहेसन हमेशा याद रखूँगी लेकिन इस बार अगर तुम मेरे रास्ते में आए तो गोली मर दूंगीइ सोच लेना”………….उसके खत को पढ़ते पढ़ते मैं कब गुम सा हो गया मुझे पता नहीं
क्या क्या लव्ज़ थे उसके मन के? उसके मन के सवालों का जवाब सच में मैं दे नहीं पा रहा था…काश उसका कोई ई-मैल आइडी होता काश कोई फेसबुक होती तो चाट में बताता काश वो मुझसे फिर मुलाकात करती तो उसे बयान करता की ना जाने क्यों? उसे देखकर मेरा मन बदल गया…साली ने अच्छा खत चोद दिया मेरे लिए…लेकिन मिलेगी तो जरूर और मैं ऊस मिलन के लिए ही बेचैन उठा…चाहे वो मुझे सामने गोली क्यों ना मर दे जैसे ऊसने कहा? लेकिन इस बार उसके बारे में बिना जाने उसे जाने नहीं दूँगा
मैंने ऊस खत को पॉकेट में भर लिया…तब्टलाक़ दिव्या का फोन आ चुका था देखा 4 मिस्ड कॉल है…फटाफट उससे बात करके उसे शांताना देने लगा की मैं कहीं फ़ासस गया था इसलिए कल रात आ नहीं पाया…लेकिन सच पूछो तो दिल-ओ-दिमाग में बस वही लड़की बसी हुई ऊस्की बातें घूम रही थी
काश मैं उसका नाम जान पाता…क्या कहती है वो खुद को क्या नाम है उसका? मैंने खुद ही उसका एक नाम रख दिया काली साया अब काली साया से मिलने का प्रोग्राम बनाना बेहद ही जरूरी था..और ये प्रोग्राम किसी के घर में रातों रात चोरी की वारदात से शुरू होगी मुझे पता था लेकिन वो किस मज़बूरी का नाम ले रही थी…ये मेरी समझ नहीं आया शायद वो कोई गरीब हो हाला तो की मज़बूर अक्सर चोर तो ऐसे ही होते है…क्या पता उसका बच्चा हो? या फिर कोई परिवार मेरी कशमकश तब खत्म हुई जब ब्रांडे में खड़ी दिव्या को देखा मेरी जीप देखते हुए
“आहह हाहह सस्स आहह प्लीज़ आहह आअहह ओह टेररीि की”……..अचानक से देवश की नींद खुली तो एक झटके में शीतल ने उसे धकेल दिया
शीतल उठके अपने होठों पे लगे थूक को पोंछते हुए होंठ सहलाने लगी उंगलियों से “पागल हो गये क्या भैया चबा ही जाते इतना कोई क़ास्सके चुम्मा लेता है”…….देवश अंगड़ाई लेकर अपने बेवकूफी पे हस्सता है
शीतल : आप तो मुझपर टूट ही परे…नींद में भी पता नहीं काली साया काली साया कर रहे थे मैं क्या आपको बाला लगती हूँ (शीतल नाराज़ होकर अपने नंगी छातियो पे चढ़र धक्के मुँह फहर लेती है)
डीओॉश को लगा की वो शीतल के नहीं बल्कि काली साया को किस रहा था उसके साथ सेक्स कर रहा था दिलों दिमाग पे तो चाय थी अब साला नींद में भी उसी को तस्सावार करने लगा था डीओॉश उसे बेहद गुस्सा आया और साथ में शीतल के कटे होंठ को देखकर अफ़सोस भी हुआ
देवश : अच्छा मेरी सफेद रसगुल्ला चल भाई को मांफ कर दे
शीतल : नहीं करूँगी पता है आपको आपने कितने ज़ोर से मेरे साथ सेक्स किया
देवश : अच्छा मेरी मां ई आम सोररय्ी कान पकड़ लिए ठीक (शीतल तभी मायूस थी..देवश ने मुस्कुराकर फ्रीज से एक बड़ा सा कितकट का चॉकलेट शीतल के हाथों में थमा दिया)
शीतल खुशी से पागल हो गयी चॉकलेट की दीवानी थी वो….और देवश मिया को औरत को खुश करने के छोटे छोटे चीज़ें पता है..शीतल का घुसा पलभर में प्यार में बदल गया…”श भैया आप कितने अच्छे हो”…..शीतल फिर देवश के गले लग गयी
देवश ने प्यार उसके गाल पे हल्का चुम्मा लिया और फिर उसके होंठ को प्यार से सहलाया..दोनों कुछ देर तक प्यार भारी बातें करते रहे और फिर देवश अपनी वर्दी पहनें तैयार होने लगा…शीतल भी उठके बर्तन ढोने चली गयी नंगी ही…देवश की नियत फिर नहीं बिगड़ी क्योंकि उसे इसकी आदत थी अब तो एक और सुररूर सा चढ़ चुका था काली साया के नाम की
देवश जल्दी से थाने पहुंचा…अचानक टेलीफोन बज उठा…”हेलो इंस्पेक्टर डीओॉश चटर्जी स्पीकिंग”……..पास ही एक सेठ की मरियल रोई आवाज़ सुनाई दी…पता चला की उनके घर में कोई लड़की घुस गयी है नक़ाब पहनें डकैती कर रही है…और अभी ही फरार हुई है…जगह का नाम सुनकर फौरन मैंने मुस्कुराकर दिल ही दिल में खुश हुआ
पुलिस की जीप भी तीन चार ऊस चोर को पकड़ने के लिए मेरे साथ निकल गयी…साइरन से पूरा रास्ता गूंज उठा…”हवलदार रामू तुम उतार जाओ मैं अकेले ही ऊस लौंडिया को देख ल्टा हूँ तुम बाकी जीप में बैठ जाओ ताकि मैं जब फोन करूं तब पहुंच जाना”……..हवलदार ठीक है साहेब बोलकर उतार गया उसे लगा शायद काला साया की तरह इसे भी मैं मर सकता हूँ
पर वो बंदर क्या जनता था की आद्रक का स्वाद क्या है?….मैंने जीप दूसरी रास्ते मोड़ दी….जल्द ही बाकी पुलिसवाले सेठ के घर पहुंचे…गुण से लेंस पुलिसवालो ने जगह को घैर लिया एक एक कमरा सबकुछ चेक किया चोर तो फरार थी ही साथ में तिजोरी का सामान भी गायब था
जैसे ही हवलदार ने मुझे बताया फौरन मैं दूसरी लोकेशन की ओर मुड़ा…दिमाग कह ही रहा था की वो ज्यादा दूर नहीं गयी है और तभी मैं हाइवे पे ही लौंडिया दिख गयी कैसे मस्तानी अपनी गान्ड बाइक सीट पे रखकर पूरी बढ़ता में बाइक चला रही थी….मैंने उसके पीछे हुआ…..वो काफी दूर थी मेरी जीप भी ठीक उसके पीछे थी…लड़की ने फौरन गाड़ी को फुरती से दूसरे रास्ते मोड़ दिया….वहां नाकाबंदी लगी थी…अब यहां मुझे फीरसे चाल खेलनी थी…”ये लड़की तो गयी अगर पकड़ी गयी तो फिर मेरा क्या होगा?”…..मैं बड़बड़ाते हुए फौरन ऊस रास्ते की ओर मुड़ा