Antarvasnax शीतल का समर्पण - Page 6 - SexBaba
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Antarvasnax शीतल का समर्पण

अब शीतल की शरारत बढ़ गई। वो वसीम को छेड़ने के अंदाज में बोली- "कुछ करेंगी नहीं, बस इसमें किसी की कुछ पिक्चर है वहीं देख रही हैं..."

वसीम. "डलिट मत करना प्लीज.. में बहुत खास लम्हों के पिक्स हैं मेरे लिए। तुम भरोसा रखो की उन्हें कोई और कभी नहीं देख पाएगा..."

शीतल हँस दी, और बोली "डॉलट क्यों करेंगी? जब कोई इतने प्यार से खींच चाई है तो। जिसकी भी है लेकिन पिक्चर है त मस्त। कैसे किसकी पिक्म है ये? शायद आपकी किसी रंडी की लग रही है.. शीतल पहली बार खुद को इस तरह रंडी बोल रही थी और उसे खुद को इस तरह रंडी बोलने में मजा आ रहा हैं

वसीम शीतल की शरारत को समझते हुए माकुरा उठा, और कहा- "जिसकी भी है तुम बस डेलिट मत करना प्लीज... उसे स्विच आफ करके रख दो, मैं रात में आऊँगा तो ले लूँगा.."

शीतल- "वो तो रख दूँगी लेकिन रही है बहुत मस्त। आपको तो इसे बहुत चोदना चाहिए था."

बीम- "ही... अब चोद ही लूँगा प्लीज... उसे रख दो अच्छे से सम्हालकर। स्विच आफ कर दो उसे..."
शीतल मुश्कुराती हुई काल डिसकनेक्ट कर दी।

वसीम का मोबाइल उतना अच्छा नहीं था जिसमें अच्छी पिक आती हो। शीतल नंगी तो थी ही। वो अपने मोबाइल से पिक लेने के लिए उठी लेकिन वीर्य के सूख जाने में अभी वो अच्छी नहीं लग रही थी। घर साफ हो हो गया था। वो नहाने चली गई। जब नहाकर आई तो पूरे घर में घूम-घूमकर अपनी कई सारी पिक्स ली। फुल बाड़ी की, चूची मसलते हुए, न्यूड सेल्फी बहुत सारी।

उनमें से उसने 8-10 पिक्स को सेलेक्ट किया और वसीम के मोबाइल में बल-टूश्च में भेज दिया। फिर वो अपनी वो पिक जिसमें उसकी आँखें बंद थी और माथे और चेहरे पे वीर्य भरा हुआ था उसे वसीम के मोबाइल में बालपेपर में लगा दी। अपने मोबाइल की पिक्स को वो डेलिट कर दी। जो उसने वसीम के मोबाइल से लिया था उसे हाइड कर दी। फिर उसने वसीम के मोबाइल का स्विच-आफ कर दिया और गेस्ट के स्वागत में लग गई। वो एक अच्छी सी साड़ी पहनी थी अभी।

विकास अपने साथी और उसकी वाइफ के साथ ही आया था। वा लोग बातें कर रहे थे।

वसीम अपने टाइम में आया और शीतल के दरवाजा पे नाक किया। शीतल का सारा ध्यान टाइम और वसीम के आने पे ही था। वो उठकर गई और दरवाजा खोली। दरवाजा पे वसीम खड़ा था। शीतल ने उसे रुकने का इशारा की और मोबाइल का बेडरूम से लाकर वसीम के हाथ में दे दी।

वसीम ने पूछा- "पिक्स हटाई तो नहीं?"

शीतल बस एक शरारती मुश्कान मुश्कुरा दी और दरवाजा बंद करती हुई अंदर आ गई।

विकास को लग गया था की वसीम ही होगा फिर भी वो पूछा- "कौन था?"

शीतल नार्मली बोली- "वसीम चाचा थे..."

विकास ने फिर पूछा- "क्या बोल रहे थे?"

शीतल पहले तो चुप रही लेकिन फिर बोली- "कुछ नहीं, उनका मोबाइल यही रह गया था...'

विकास का मन हुआ की कुछ बोलें लेकिन फिर वो चुप रह गया और अपने मेहमानों से नार्मल बातें करने लगा।

वसीम को समझ में नहीं आया की क्या हुभा है? सीढ़ियां चढ़ते हुए उसने मोबाइल ओज किया। उसे बहुत अफसास था की उसका मोबाइल शीतल के यहाँ ही छूट गया था। जब वो दरवाजे पे लुंगी पहन रहा था तो उसने मोबाइल को सोफे पे रख दिया था और फिर भूल गया था।

वसीम को लग रहा था की कितनी सारी पिक्स थी रंडी की, अगर बिकास उसे सीधे चोदजें नहीं दिया तो ये पिक्स काम देगी और नहीं तो पिक्स मजेदार तो थी ही। मोबाइल औन होते ही वालपेपर में उसे शीतल का वीर्य से भरा हुआ चेहरा वाला पिक दिखा। वसीम खुश हो गया और उसका लण्ड टाइट हो गया। वो गैलरी में जाकर देखने लगा। सारी पिक्स थी। उसे एक अलग फोल्डर भी दिखा आपकी रंडी के नाम से। उसने उसे खोला तो शीतल की खुद की ली हई पिक्स थी। वसीम खुश हो गया। अब उसे पी तरह यकीन हा गया की अगर उसने अब तक शीतल को नहीं चोदा है तो अफसोस की कोई बात नहीं है। उसका प्लान बिल्कुल सही है और अब कुछ ही देर की बात है जब शीतल को आराम से बिना किसी डर के चोद सकेगा।

शीतल के गेस्ट चले गये। शीतल घर की साफ सफाई में लग गई। वो सोची की बेड पे जाकर विकास से बात करीगी। लेकिन जब तक वो बेड पे पहुँची विकास सो चुका था। सुबह उसे जल्दी जाना था। कल उसकी मीटिंग थी दूसरे शहर में। पति शहर से बाहर होगा ये सोचकर ही उसे लगा की कल सुबह में ही चुदवा लेंगी वसीम चाचा से। लेकिन इसके लिए विकास को वसीम चाचा को बोलना तो होगा ही, नहीं तो वो तो मुझे चोदने से रहा।

सुबह शीतल ने जाग कर नहाकर पूजा कर ली और विकास के लिए नाश्ता बनाने लगी। आज वो और पहले जागी थी। बिकास उठा और हड़बड़ी में तैयार होने लगा। शीतल को मौका ही नहीं मिल पा रहा था बात करने का। वैसे भी ये कोई सिपल बात नहीं थी। ठीक है विकास ने उस दिन ही कहा था फिर भी अपने पति से किसी और से चुदवाने की पमिशन लेना और उसे दूसरे आदमी को बोलना की आप मेरी बीवी को चोद लो, कोई मामूली बात नहीं थी।
 
जब विकास ब्रेकफास्ट करने बैठा तो शीतल बोली- "कल वसीम चाचा से बात हुई थी..."

विकास नाश्ता करने में बिजी रहा। उसने सुना ही नहीं, क्योंकी उसे लेट हो रहा था तो वो अपने ही ख्यालों में खोया था। शीतल फिर से बोली तो भी विकास का कोई रिएक्सन नहीं हुआ। शीतल को गुस्सा आ गया की वो इतनी इंपाट बात कर रही है और ये सुन भी नहीं रहा है।

शीतल इस बार जोर से बोली- "तुम सुन नहीं रहे हो विकास.."

विकास ने हड़बड़ा कर उसकी तरफ देखा और पूछने के अंदाज में- "हैं.." क्या।

शीतल बोली- "मैं वसीम चाचा से चुदवाना चाहती हूँ..." शीतल एक ही सांस में फाइनल बात बोल गई।

विकास का हाथ रूक गया। वो प्रश्न और आश्चर्य भरी नजरों में शीतल को देखने लगा। वो बोल नहीं पाया क्योंकी उसका मुह भरा हुआ था रोटी से।

शीतल फिर बोली- "वसीम चाचा से बात हुई। अगर तुम उन्हें बोल दो की वो मुझे चोद सकते हैं तो फिर उन्हें कोई प्रोबलम नहीं है..."

विकास ने खाना निगल लिया और बोला- "अचानक... कभी कुछ बोलती हो कभी कुछ.. अब क्या हुआ?"

अब शीतल क्या बताती की वो खुद को रोक नहीं पाती? वसीम के बारे में सोचते ही उसकी चूत गीली हो जाती हैं। वो चाहती है की खूब चुदे वसीम से, लेकिन वसीम है की बिना विकास के बोले उसे चोद ही नहीं रहा। वो तो रोज कोशिश करती है लेकिन बही नहीं चाहते तो अब तुम उन्हें बोल दो फिर मैं उनसे छिनाल बनकर चुदूंगी।
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शीतल बोलना स्टार्ट की की तब तक विकास का नाश्ता खतम हो चुका था। वो हड़बड़ी में उठा और बोला की रात में आता हूँ तो बात करता हूँ। शीतल बेचारी बहुत उदास हो गईं। एक मिनट की बात थी की विकास वसीम चाचा को बोल देता फिर मैं आराम से अभी ही चुद लेती। वो जाने की तैयारी कर रहा था।

शीतल से रहा नहीं गया, वो बोली- "विकास वो बहुत परेशान हैं...'

विकास अपने बैग में डाक्यूमेंट्स रखता हुआ बोला- "रात में बोलता हूँ ना जान..."

शीतल- "इसमें बात क्या करना है। कहीं तुमने अपना इरादा तो नहीं बदल लिया? मैं उन्हें बोल चुकी हूँ की तुम्हें काई परेशानी नहीं है और तुमने मुझे पमिशन दे दिया है। मैं नहीं चाह रही थी। उन्हें कोई दिक्कत नहीं है."

विकास- "कोई इरादा नहीं बदला है। अभी देर हो रही है इसलिए बोला की रात में आता है तो बोलता हूँ."

अब भला शीतल पूरा दिन कैसे गुजारती? उसकी चूत बगावत कर रही थी। शीतल बोली- "तुम्हें उनकी हालत का अंदाजा नहीं है इसलिए तुम ऐमें बोल रहे हो। एक मिनट लगेगा और इसके लिए तुम्हारे पास टाइम नहीं है। उनकी भी जिद है की बिना तुम्हारी पमिशन के वो मुझे नहीं चोदेंगे और तुम्हारे पास टाइम ही नहीं है.."

विकास कुछ नहीं बोला और अपने बैग को लेता हुआ बाहर चलने लगा- "बाई जान, लव यू..." बोलता हुआ वो बाहर जाने लगा।

शीतल अपना मोबाइल लेकर दरवाजा पे आकर बोली- "इसमें काई करके बोल दो, इसमें तो टाइम नहीं लगेगा..."

विकास रुक गया और शीतल के हाथ से मोबाइल ले लिया। उसने रेकार्डर ओन किया और बोला- "वसीम चाचा, आप शीतल के साथ सेक्स कर सकते हैं, मुझे इसमें कोई परेशानी नहीं है.." कहकर विकास ने शीतल के हाथ में मोबाइल पकड़ा दिया और बाहर निकल गया। वो गुस्से में था।
 
शीतल भी अंदर आ गईं। वो भी विकास पे गुस्सा थी। पहले तो वो गुस्से में ही सोचती रही की खुद बोले की मदद करने के लिए जिश्म दे रही हो तो अच्छी बात है, मैं तुम्हारे साथ है, और अभी जब बोली तो भाव खा रहा है। एक मिनट लगता सिर्फ। तुम्हें क्या है, तुम परेशान नहीं हो ना। दिन भर की अहमियत तुम्हारे लिए कुछ नहीं है। अगर दिन भर में ही वसीम चाचा ने कुछ कर लिया तो?

धीरे-धीरे शीतल का गुस्सा शांत होने लगा और फिर वो सोचने लगी। छिमैं कितनी गंदी है, पागल ह में। क्या क्या बोल दी उन्हें। सुबह-सुबह हड़बड़ी में मीटिंग में जा रहे हैं और मैं उन्हें वसीम चाचा को बोलने के लिये कह रही हैं। एकदम चुदवाने के लिए पागल हो गई हैं मैं। सच की रंडी बन गई हैं मैं। मैं वसीम चाचा की मदद क्या करेगी? मैं खुद चुदवाने के लिए मरी जा रही हैं।

शीतल को अब बुरा लगने लगा था। वा विकास को काल की और उसके काल रिसीव करते ही- "सारी जान, वेरी बेरी सारी। आईलव म। पता नहीं कैसे बोल रही थी मैं और क्या-क्या बोल गई? आई आम रियली बेरी सारी...'

विकास मुश्करा उठा। वो भी अपनी बीवी में बहुत चाहता था, बोला- "इट्स ओके बाबू। ना नोड फार सारी... मैं

समझ सकता हूँ की तुम्हें वसीम चाचा की हालत पे तरस आ रहा होगा, और इसलिए तुम खुद को रोक नहीं पा रही थी। तुम जा सकती हो उनके पास। अगर वो रेकार्डिग से ना माने तो मुझे काल कर लेना। मैं उन्हें फोन पे बोल दूँगा। खुश?"

शीतल- "थैक्स जान, मुझे पता था तुम मुझे समझते हो। तुम मुझसे गुस्सा नहीं हो ना?"

विकास- "नहीं जान, मैं तुमसे गुस्सा हो ही नहीं सकता। आई लव यू। जाओ और उन्हें जो चाहिए वो दो। शर्मा ना मत, उन्हें ये ना लगे की वो किसी और की कोई चीज इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें ये एहसास हो की वो अपनी चीज को इस्तेमाल कर रहे हैं। तभी उन्हें राहत मिलेगी..."

शीतल- "आहह... विकास यू आर सच आ डार्लिंग। आई लव यू."

विकास- "आई लव यू टू। अभी ही चली जाओ उनके पास तो ठीक रहेगा, क्योंकी कुछ देर बाद में काल रिसीव नहीं कर पाऊँगा..."

शीतल अब खुद को रिलॅक्स महसूस कर रही थी। काल डिसकनेक्ट करते ही ये सोचकर की अभी ही वसीम चाचा के पास जाना है और उनसे चुदवाना है, शीतल के पेट में गुदगुदी होने लगी। उसकी धड़कन तेज हो गई। वो सोच रही थी कैसे जाए उनके पास? वो चाय बनाने लगी वसीम के लिए। वो सिर पे आँचल रखकर नई नवेली दुल्हन की तरह शर्माते हए वसीम के दरवाजा के पास पहुँची। बो उस नई दुल्हन की तरह ही शर्मा रही थी जो दूध का ग्लास लेकर सुहागरात वाले कमरे में अपने पति के पास जाती है।

शीतल वसीम के दरवाजा तक तो पहुँच गई थी। लेकिन तब तक उसकी धड़कन और सांसें बहुत तेज हो गई थी। बो अभी चुदने वाली है वसीम से, ये सोचकर डर शर्म उत्तेजना की बजह से वो बहुत घबरा गई। वो दरवाजा में नाक नहीं की और वापस नीचं आ गईं।
……………………..

शीतल सोचती है- "आह्ह... अभी मैं चुदवाने वाली हूँ.. कैसे चोदेंगे वो? मैं उनका लण्ड सह तो पाऊँगी ना? कितना बड़ा है उनका? मुह में तो आता नहीं, कितना फैलाना पड़ता है। पता नहीं चूत में कैसे जाएगा? होगा... विकास का लण्ड अंदर जाता है तो अभी तक दर्द होता है। इनका तो पता नहीं क्या करेगा? कहीं अगर मैं दर्द नहीं सह पाई तो? नहीं फिर तो उन्हें बुरा लगेगा की में जानबूझ कर ऐसा कर रही हैं। नहीं नहीं, मुझे दर्द तो सहना ही होगा। पैर पूरी तरह से फैला लेंगी..."

नीचे आते हुए शीतल बहुत कुछ सोच चुकी थी। वो किचेन में जाकर पानी पी और सोफे पे थोड़ी देर बैठ रही। उसका ध्यान बस वसीम के लण्ड और अपनी चुदाई में ही अटका था। वो खुद को मेंटली तैयार कर रही थी। बो अपने रूम में गई और अपने कपड़े चेंज कर ली।

शीतल सिपल ब्रा पहनी थी जिसे उतारकर डिजाइनर ब्रा पेंटी पहन ली। वसीम चाचा इसमें वीर्य गिरा चुके हैं, आज फाइनली बो इसे पहनने वाली की चूत में वीर्य गिराएंगे। आह्ह.. कितना मजा आएगा। विकास का वीर्य अंदर गिरता है तो मैं झड़ जाती हैं। वसीम चाचा का वीर्य तो बहुत सारा होता है और ये तो एकदम अंदर गिरेगा। आह्ह.. शीतल खुद को आईने में देखी। लाल साड़ी में बा जंच रही थी। साड़ी वो हमेशा नाभि से नीचे ही पहनती थी, आज थोड़ा ज्यादा नीचे पहनी थी। लेकिन आईने में देखकर उसे लगा की साड़ी और नीचे होनी चाहिए, तो वो साड़ी को और नीचे कर ली। वो अपने हाथ से चचियों को ब्लाउज़ से थोड़ा बाहर करते हए क्लीवेज को फैलाई। वो एक साइड आँचल ली जिससे उसकी एक चूची दिख रही थी। वो फिर से मेकप को रीटच की। बिंदी हटाकर बड़ा सा टीका लगा ली कुमकुम से। होठों पे डार्क रेड लिपस्टिक। कांखों पे पफ्यूँम।

आखीर कार, बड़े इंतजार के बाद वसीम चाचा अपनी रंडी को चोदने वाले हैं। सजना तो पड़ेगा ही। सुबह के बारे में तो उन्होंने सोचा भी नहीं होगा। चल शीतल अब देर मत कर, चल चुदवाने।

विकास का काल आया, और पूछा- "कहाँ हो?"

शीतल बोली- "घर में, क्या?"

विकास बोला- "वसीम चाचा के पास चली गई या जाओगी?"

शीतल बोली- "अभी नहीं गई हैं, थोड़ी देर में जाऊँगी..."

विकास ने उसे फिर से समझाने लगा- "इस पल को यादगार बनाना उनके लिए। तुम अपना सब कुछ दे रही हो तो ख्याल रहे की उन्हें भी लगना चाहिए की उन्हें बहुत कुछ मिल गया। वो पूरी तरह संतष्ट होंगे तभी रिलैंक्स हो पाएंगे, नहीं तो फिर ये प्यास खतम नहीं होगी..."

शीतल चुपचाप सुनती रही और हाँ हूँ करती रही। फिर बाइ और लव यू बोलते हुये उसने काल काट दिया। शीतल में फिर से चाय बनाई और चल दी। उसने अपनी साँसों को सम्हाला और दरवाजे पे नाक करती हुई आवाज लगाई- "वसीम चाचा... वसीम चाचा.."

वसीम जाग चुका था। रात में कई बार बो शीतल की पिक्स देखा था। जो उसने लिया था, वो भी और जो शीतल अपने मोबाइल से लेकर दी थी वो भी। रात में उसने मूठ भी मारा था। वसीम को लगा की शीतल या तो उसे बुलाने आई होगी, या फिर विकास को लेकर आई होगी। वसीम ने अपने कपड़े ठीक किए। वो अपनी लूँगी गंजी में ही था। दरवाजा खोलते ही जैसे उसका दिन बन गया। शीतल सिर पे आँचल लिए मुश्कुराती खड़ी थी।

शीतल "गुड मार्निंग' बाली और चाय का प्याला वसीम की तरफ बढ़ा दी। अनायास ही वसीम के मुंह से "सुभान अल्लाह' निकल पड़ा। वसीम नेचाय का कप ले लिया और शीतल रास्ता बनाती हई अंदर आ गई। शीतल के अंदर आने के बाद वसीम को एहसास हुआ की वो दरवाजे पे ही खड़ा है। वसीम ने पीछे मुड़कर देखा तो उसके सामने शीतल की पीठ थी। उफफ्फ... वसीम का लण्ड थोड़ा सा मह में आ रहा था, और शीतल की पीठ देखते ही एक झटके में टाइट हो गया।

शीतल की पीठ पूरी नंगी थी। साड़ी गाण्ड की लाइन के पास बंधी हुई थी। उसके चूतड़ और उभरे हए लग रहे थे। गर्दन से लेकर गाण्ड तक के बीच में बस ब्लाउज़ की 2" इंच की पट्टी थी और बाकी का पूरा हिस्सा चमक रहा था।

शीतल वसीम की तरफ पलटी और बोली- "मेरा गिफ्ट कैसा लगा कल?"

शीतल सामने से तो किसी को भी अपनी तरफ देखने के लिए मजबूर कर सकती थी। अभी शीतल को देखकर शरीफ से शरीफ आदमी का लण्ड टाइट हो जाता। ब्लाउज़ पूरी गोलाई में सम्हाले था चूचियों को लकिन चूचियां फिर भी बाहर आने को बेताब थी। चिकना सपाट पेंट चूत की लाइन तक चमक रहा था।

शीतल दुबारा बोली- "बोलिए ना कसा लगा मेरा गिफ्ट आपको?"

वसीम तब अपनी दनियां में लौट पाया। उसे शीतल की पिक्स याद आ गई और वो वालपेपर भी। वसीम बोला
"लाजवाब..."

शीतल- "थैक्स। जल्दी चाय पीजिए, ठंडी हो जाएगी.."

वसीम चाय के घुट मारने लगा। तुरंत ही चाय खत्म हो गई। शीतल तब तक वसीम के मोबाइल की वालपेपर देख रही थी। शीतल वसीम का मोबाइल रख दी और चलती हुई वसीम के सामने आई और उसके गले लग गई

और उसके होठों को चूमने लग गई। वो अपने हाथ के मोबाइल में विकास का का मेसेज़ प्ले कर दी। वसीम समझ गया की अब उसके और शीतल के बीच में कुछ भी नहीं है। फाइनली रंडी उसकी हई। उसका जी चाहा की अपने स्टाइल में शुरू हो जाए लेकिन वो शीतल के आक्सन का इंतजार करने लगा।

शीतल वसीम के होठ को चूमना छोड़ दी और उसके सीने में अपने सिर को रखकर बडे अपनेपन से बोली- "बस तड़पना खत्म, आपके मन में मुझे लेकर जितने भी अरमान हैं सबको पूरे करने का वक़्त आ गया है। अब कहीं कोई रोक-टोक नहीं है। अब सब कुछ सही है। मैं पूरी तरह से आपको समर्पित है अब। अपनी इच्छा से और अपने पति के पमिशन से। अब आप निश्चित होकर खुले मन से मुझे चोद सकते हैं। अब मत रोकिए वसीम चाचा खुद को और जो जी में आए को करिए, जैसे चाहे वैसे करिए। मैं पूरी तरह आपका साथ दूँगी...'

वसीम ने भी शीतल की पीठ पे हाथ रखकर उसे गले लगा लिया। उसनें शीतल के माथे में किस किया तो शीतल ऊपर वसीम के चेहरा की तरफ देखने लगी। शीतल के रसीले होंठ देखकर वसीम खुद को रोक नहीं पाया लेकिन फिर भी बस छोटा सा किस किया और बोला।
वसीम- "तुम लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया शीतल। ये बहुत बड़ी बात है की मुझे समझकर और मेरी मदद करने के लिए तुम इतना बड़ा फैसला ली और विकास ने इसमें तुम्हारा साथ दिया। ऊपर वाले की बहुत मेहरबानी है। मेरे ऊपर। मैं बहुत खुशनशीब है की तुम मेरी जिंदगी में आई। लेकिन फिर भी मैं तुमसे कहना चाहूँगा की एक बार फिर से सोच ला शीतल। किसी गैर-मर्द को अपना जिक्ष्म देना आसान बात नहीं है। तुम एक बार फिर से अपने फैसले में सोच सकती हो..'

शीतल- "जितना सोचना था सब सोच चुकी हूँ वसीम चाचा। अब मेरा जिस्म आपका है। आज मेरा तन और मन दोनों आपका है। मैं पूरी तरह से अपने आपको आपके हवाले करती हूँ । आप जो कछ भी करेंगे में आपका साथ हूँ

वसीम- "फिर भी एक बार सोच लो शीतला कहीं ऐसा ना हो की बीच में या बाद में तुम्हें लगे की तुम गलत की
या तुम्हें अफसोस हो? क्योंकी फिर मैं खुद को माफ नहीं कर पाऊँगा। मेरे लिए जीना मुश्किल हो जाएगा.."

शीतल- "बहुत बार सोच ली वसीम चाचा। हर तरह से सोच ली। में अब पूरी तरह से आपको समर्पित हूँ। में अपने आपको आपजे हवाले करती हूँ और मैं विकास की कसम खाकर कहती हूँ की आप मेरे साथ जो भी करेंगे उसमें मेरी और मेरे पति की मंजूरी है, और मैं हर तरह से आपका साथ दूँगी.. शीतल वसीम से अलग होकर दो कदम पीछे और अपने पल्लू को जमीन में गिरा दी, और बोली- "अब आप मेरे साथ जो चाहें कर सकते हैं, में शीतल शर्मा आपका परा साथ देगी..."
 
वसीम- "फिर भी एक बार सोच लो शीतला कहीं ऐसा ना हो की बीच में या बाद में तुम्हें लगे की तुम गलत की
या तुम्हें अफसोस हो? क्योंकी फिर मैं खुद को माफ नहीं कर पाऊँगा। मेरे लिए जीना मुश्किल हो जाएगा.."

शीतल- "बहुत बार सोच ली वसीम चाचा। हर तरह से सोच ली। में अब पूरी तरह से आपको समर्पित हूँ। में अपने आपको आपजे हवाले करती हूँ और मैं विकास की कसम खाकर कहती हूँ की आप मेरे साथ जो भी करेंगे उसमें मेरी और मेरे पति की मंजूरी है, और मैं हर तरह से आपका साथ दूँगी.. शीतल वसीम से अलग होकर दो कदम पीछे और अपने पल्लू को जमीन में गिरा दी, और बोली- "अब आप मेरे साथ जो चाहें कर सकते हैं, में शीतल शर्मा आपका परा साथ देगी..."
वसीम ने आगे बढ़कर शीतल को गले लगा लिया और बोला- "शुक्रिया शीतल, बहत बहुत शुक्रिया.." कहकर वसीम बेड पे बैठ गया और शीतल उसकी गोद में बैठ गई।

शीतल वसीम के गले में छाती में चमनें लगी सहलाने लगी थी।

वसीम बोला- "हाँ... शीतल, अब तुम मेरी हो, पूरी तरह से मेरी, मैं तुम्हें अब पूरी तरह से पा सकता हैं बिना किसी डर के बिना किसी हिचकिचाहट के। लेकिन शीतल, मैं इस लम्हें को जीना चाहता हैं। महसूस करना चाहता हैं। मैं नहीं चाहता की इतना कीमती लम्हा मेरी जिदगी में आए और एक-दो घंटे में खतम हो जाए। मैं तुम्हें पाना चाहता हूँ लेकिन ऐसे नहीं। ऐसे की जैसे तुम मेरी दुल्हन हो और आज हमारी सुहागरात हो। मैं तुम्हें दुल्हन के लिबास में देखना चाहता हूँ और पूरी रात तुम्हारे आगोश में बिताना चाहता हूँ.."

शीतल एक पल के लिए सांची, क्योंकी रात में विकास आ जाएगा लेकिन अभी तुरंत वा बाली की पूरी तरह वसीम का साथ देगी तो वो उसे मना नहीं कर सकती है। वो मुश्कुराते हुए बोली- "जैसा आप कहें। रात में आपकी दुल्हन आपका इंतेजार करेंगी। आज आपको हमारी सुहागरात होगी.."

वसीम खुश होता हुआ शीतल के होठों को कस के चूम लिया और ब्लाउज़ के अंदर हाथ डालकर एक चूची को कस के मसल दिया।

शीतल अचानक हुए इस हमले से हड़बड़ा गई और दर्द से उसके मुह से "आह" निकल गई।

वसीम बोला- "आहह... शीतल में खुद को रोक नहीं पा रहा। मैं बहुत खुश हैं। आज मेरी जिंदगी का सबसे हसीन दिन है... और वो फिर से शीतल के होंठ चूमने लगा और चूची को मसल दिया।

शीतल दर्द बर्दाश्त की और मुश्कुरा दी। वसीम बोला- "उफफ्फ... शीतल अब तुम जाओ यहीं से, नहीं तो मैं पागल हो जाऊँगा। मैंने इतने साल इतने दिन खुद को रोका है तो एक दिन और मुझे खुद को रोकना ही होगा, ताकी मैं अपनी सुहागरात को पूरी तरह से मना पाऊँ...'

सही बात है। अब रोक पाना वाकई मुश्किल था। शीतल भी गोद से उठ खड़ी हुई और आँचल ठीक कर ली। उसकी चूचियों पे वसीम की उंगलियों के निशान छप चुके थे। आज शीतल के परे जिस्म वसीम का निशान लग जाजा था। शीतल की राह में भी वसीम का कब्ज़ा हो जाना था। शीतल चाय का कप उठाई और जाने लगी,
और बोली "शाम में शादी के जोड़े में आपकी दुल्हन आपका इंतजार करेंगी वसीम चाचा.."

वसीम बोला- "अब वसीम चाचा मत कहो । सिर्फ वसीम कहो, मेरे वसीम..."

शीतल खिलखिला कर हँस दी, और बोली- "ठीक है वसीम, शाम को आपकी दुल्हन आपका इंतजार करेंगी..."

शीतल नीचे आ गई। वा बहुत उत्तेजित थी। अच्छी बात तो है। मैं काई रडी थोड़े ही ना है की गई और चुदकर आ गई। इतनी मेहनत के बाद पहली बार वसीम चाचा... नहीं नहीं वसीम। मरे वसीम मुझे चोदने वाले हैं। इस लम्हें को तो यादगार बनाना ही चाहिए। मैं तो बहुत खुशनशिब हूँ की दुबारा सुहागरात मनाने वाली हूँ । मुझे वसीम चाचा उफफ्फ.. वसीम को खुश करना है। सौंप देना है उन्हें खुद को। उन्हें लगना चाहिए की यही उनकी सुहागरात है। लेकिन रात में तो विकास भी आ जाएंगे। अफफ्फ... उनके सामने ऐसे सुहागरात मना पाऊँगी में? मेरे लाख चाहने पे भी मैं वसीम को खुद को पूरी तरह नहीं साँप पाऊँगी।

शीतल वसीम को काल लगाई और बताई- "जैसा तुमने कहा था उसी तरह वसीम चाचा उस लम्हे को मेमोरेबल बनाना चाहते हैं। वो मेरे साथ सुहागरात मनाना चाहते हैं। मैं क्या करूँ? उन्हें ना भी नहीं बोल पाई..

विकास बोला- "ये तो अच्छी बात है। तब उन्हें हर बात याद रहेगी और वो संतुष्ट हो पाएंगे। तुम बस ये ख्याल रखना की कोई कमी ना रह जाए। ऐसा ना हो की तुम्हारी इतनी बड़ी कुर्बानी भी किसी छोटी बात की वजह से बेकार हो जाए। और देखो ना, यहाँ आकर पता चला की कल भी कुछ काम है तो मैं कल ही आ पाऊँगा.."

शीतल को भी लगा की विकास के रहने के बाद वो खुलकर वसीम का साथ नहीं दे पाती। थोड़ी और बातें करने के बाद विकास से गुइ-लक लेते हुए उसने काल काट दिया। वो अपने बार्डरोब से शादी की ड्रेस निकाली जिसे पहनकर वो शादी की थी। डिज़ाइनर लहंगा चोली था वो। लहंगा तो ठीक था, बो चोली को देखने लगी की सही फिटिंग आएगी या नहीं। शीतल अपने पल्लू को नीचे गिराई और ब्लाउज़ को उतारकर चोली पहनकर देखने लगी। उसकी चूची अब बड़ी हो गई थी। साइज 32 इंच से बढ़कर 32डी हो गया था। चोली पूरी तरह से सीने में दब गई थी। वो वापस ब्लाउज़ पहन ली।

शीतल कुछ लिस्ट बनाई और मार्कट आ गई। सबसे पहले वो कुछ-कुछ समान ली और फिर एक टेलर वाले के पास गई। टेलर को वो चोली का नाप सही करने बोली, और थोड़ी कांट छांट करने बाली जिसमें बैंक और नेक थोड़ा और डीप हो जाए।

टेलर ने उससे कहा की इसमें तो वक्त लग जाएगा और चोली खराब भी हो सकती है, आप नई चोली ही ले लीजिए। उसने शीतल को इसी चोली से मिलते जलते कलर की कई चोली दिखाई। एक चोली बिल्कुल मैंच कर रही थी और उसका डिज़ाइन भी बहुत अच्छा था। उसके साथ शीतल ने मैचिंग ट्रांसपेरेंट चुन्नी भी ले लिया। एक बहुत बड़ा कम खतम हो गया था उसका।

शीतल फिर अपने ब्यूटी पार्लर में गई। वहाँ वो हाथ में बाजू तक और पैर में जाँघ तक मेहन्दी लगवाई। मेहन्दी लगाने वाली लड़की ने उसकी कमर पें सामने की तरफ भी टैटू जैसा और पीठ में भी एक डिजाइन बना दिया। कमर पे बना डिजाइन सामने में पैटी लाइन में बना था और पीठ में बना डिजाइन उसकी गर्दन के नीचे और ब्रा के हक के ऊपर बना था। शीतल का गोरा जिस्म उस मेंहन्दी में दमक रहा था। पार्लर वाली को ही बोलकर उसने एक फूल वाले से बात कर लिया जो शाम में उसके बेड को सजा देने वाला था।

शीतल को यहाँ से फ्री होते-होते ही 4:00 बज गये थे। वो घर पहुंची और फूल वाले को काल कर दी। जितनी देर में शीतल खाना खाई की बैड सजाने वाले आ गये। शीतल उन्हें बेडरूम में ले आई और वो लोग सुहागरात की। सेज सजाने लगे। एक तो शीतल वैसे ही बहुत खूबसूरत थी, आज मेकप और मेहन्दी लगने के बाद तो वो चमक रही थी। दोनों बेड सजाते हुए आपस में बातें कर रहे थे। शीतल रूम में देखने जा रही थी की बैंड कैसा सज रहा है की उनकी बातों को सुनकर बो बाहर ही रुक गई और उनकी बातें सुनने लगी।
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सेज सजाने वाला-"कितनी मस्त माल है यार, क्या फिगर है, क्या चिकना बदन है। छुओ तो हाथ फिसल जाए।

बदन इन फूलों के ऊपर मसला जाएगा। इसकी ता चूत में पूरी खुजली मची हुई होगी अभी। पूरी तैयारी करवा रही है अपनी चुदाई की। माल तो ये इतनी मस्त है की इसका नंगी करते ही कहीं झड़ ना जाए इसे चोदने वाला। बेचारी की इतनी मेहनत बेकार हो जाएगी। लेकिन सोच की उसे मजा कितना आएगा जब इसके नंगे बदन को फूलों की सेज में लिटाकर चोदेगा। मुझे तो एक मौका मिले तो सारी जिंदगी की प्यास मिट जाए."

शीतल वहाँ से हट गई और किचेन में खाना बनाने में लग गई। वसीम के आने से पहले उसे पूरी तरह फ्री हो जाना था। वो सोचने लगी- "सही तो कह रहे हैं दोनों। मेरी तो चूत में सच की आग लगी हुई है। अपनी ही चराई करवाने के लिए मैं कितनी बिजी हैं। किसी गैर-मर्द के साथ सुहागरात... ओफफ्फ.. नहीं नहीं अब मुझे ये सब नहीं सोचना चाहिए। वसीम का पूरा हक है मेरे जिश्म पें। आज मैं उनकी हैं, पूरी तरह वसीम की। आज विकास मेरे लिए गैर-मर्द हैं। ऊपर वाला भी तो यही चाहता है, तभी तो विकास आज जी टाउन से बाहर । आज मुझे विकास के बारे में नहीं सोचना है। सिर्फ वसीम ही मेरे हैं आज..."

दोनों लड़के शीतल और वसीम की सुहागरात की सेज सजाकर चले गये। शीतल रात के लिए खाना बना चुकी थी। उसने घड़ी पे नजर डाली तो 6:00 बज चुके थे। अब बस शीतल को तैयार होना था। लेकिन वो साची की "सुबह के बाद वसीम से कोई बात भी नहीं हो पाई है तो एक बार उनसे बात तो कर लें। पूछ ताल की वा कितने बजे आएंगे अपनी दल्हन के पास? पता चला की मैं तैयार ही नहीं हुई और वो आ गये या मैं तैयार होकर बैठी हैं और उन्हें लेट हो रही है। शीतल वसीम को काल लगाई- "हेलो.."
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वसीम- "हाँ... हेलो..'

शीतल- "वसीम...

वसीम।- "हाँ... मेरी जान, तुम्हारा वसीम ही बोल रहा हूँ..

शीतल मुश्कुरा दी "कैसे हैं वसीम, कब आएंगे अपनी दुल्हन के पास.." बोलती हुई शीतल शर्मा गई और उसकी चूत में एक लहर सी दौड़ पड़ी।

वसीम- "मैं तो कब से बैठा हूँ अपनी दुल्हन को पानं के इंतजार में, तुम जब बोलोगी तब हाजिर हो जाऊँगा.."

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शीतल खिलखिला कर हँस दी- " आ जाइए ना जल्दी से..."

वसीम- "बस आ रहा है थोड़ी देर में, 8:00 बजे तक आ जाऊँगा। विकास आ गया है क्या?"

शीतल- "नहीं, कल भी उन्हें कम है तो आज वो नहीं आ पाएंगे। आप आइए, 8:00 बजे आपकी दुल्हन आपका इंतजार कर रही होगी.. कहकर शीतल फोन काट दी।

वसीम झूम उठा की विकास नहीं रहेगा।
 
विकास के रहने के बाद भी उसे शीतल के साथ सुहागरात तो मनाना था ही लेकिन तब उसे थोड़ी आक्टिंग करनी पड़ती। लेकिन अब वा बिंदास होकर अपने अंदाज में शीतल के गोरे मखमली जिश्म को लूटेगा। आह्ह... मेरी जान शीतल, बहुत तरसा हूँ तेरे लिए और मैंने बहुत तड़पाया है तुझे। बहुत बार तेरे जिस्म को प्यासा छोड़ा है मैंने। लेकिन आज वो सारी प्यास मिटाकर रख दंगा। आज बताऊँगा की मैं क्या चीज हैं? आज बताऊँगा की चुदाई क्या होती है? बस मेरी रांड़, दो घंटे और, फिर तेरा सुनहला बदन मैरी गिरफ्त में होगा आह्ह.."

शीतल के पास दो घंटे थे सजने के लिए वो अपनी सजावट में लग गई। चुदवाने की सजावट में। शीतल पूरी तरह नंगी हो गई और आईने में खुद को देखने लगी- चलो शीतल रानी, सुहागरात मानने के लिए तैयार हो जाओ। उसका पूरा जिशम चिकना तो था ही फिर भी वो चूत, गाण्ड और कांखों के बालों पे हेयर रिमूका कीम अप्लाई कर ली। फिर शीतल अपनी कमर के नीचे चूत, गाण्ड और जांघ एरिया और चूची में फेंशियल मसाज की। नहाते वक्त शीतल अपनी चूत में उंगली कर रही थी। वो अपनी चूत से पानी निकालना चाह रही थी। वा चाहती थी की जब वसीम उसके जिस्म से खेलें तो वो वसीम का भरपूर साथ दे। चूत से पानी निकला हुआ रहेगा तो वो देर तक वसीम का साथ दे पाएगी और वसीम से मिलता सूख महसूस कर पाएगी।

शीतल सोचने लगी की कैसे वसीम उसे चोद रहा है। वैसे तो वसीम के बारे में सोचते ही उसकी चूत गीली हो जाती थी, लेकिन अभी कुछ हो ही नहीं रहा था। तभी साचते-सोचते उसका ख्याल बनने लगे की वसीम बेरहमी से उसके साथ पेश आ रहा है। बो बेरहमी से शीतल के जिस्म को नोचता खसोट ताजा रहा है और उसे गालियां देता जा रहा है- रंडी, मादरचोद, कुतिया, हरामजादी, छिनाल और भी बहुत सारी गालियां। ये सब सोचते ही शीतल की चूत गीली हो गई और उंगली करती हुई वो चूत से पानी निकाल ली। पानी निकलने के बाद उसे खुद में बुरा भी लगा की मैं वसीम में किस तरह चुदवाना चाहती हैं और क्या-क्या सुनना चाहती हैं।

शीतल नहाकर वो अपने रूम में आ गई। नहाने के बाद उसका जिश्म और चमक रहा था। उसे फूल वाले लड़कों की बात याद आने लगी- "जो इस माल का चोदेगा उसे कितना मजा आएगा..." शीतल अपने पूरे जिस्म में चाकलेट फ्लेवर की बाडी लोशन लगाई। फिर नई पैंटी ब्रा निकली, लाल रंग की पैंटी ब्रा डिजाइनर थी और ट्रांसपेरेंट थी। पैंटी ब्रा को पहनने के बाद वो घूम-घूमकर आईने में खुद को देख रही थी। कितनी सेक्सी लग रही हैं मैं। आह्ह... वसीम इस चमकते जिश्म पे आज आपका अधिकार है। इतनी मेहनत तो मैं अपनी ओरिजिनल सुहागरात के लिए भी नहीं की थी, जितनी आपके लिये कर रही हैं। मसल देना मझे, रौंद डालना मेरे जिश्म को, अपने मन में कोई कसर मत छोड़ना मेरे दूल्हे राजा। शीतल चेहरे का मेकप पूरा की और उसके बाद शीतल अपने बालों को सवार ने लगी। आधे घंट लग गये उसे बाल बनाने में।

7:30 बज चुके थे। शीतल लहँगा पहन ली। पहले तो बो नाभि से कुछ नीचे पहनी लहँगा को, जहाँ से नार्मली पहनती थी। लेकिन फिर कुछ सोचकर वो लहँगा को और बहुत नीचे कर ली। उसकी कमर पे बने मेहन्दी का डिजाइन अब साफ-साफ दिख रहा था। फिर वा चोली पहन ली। चोली कंधे के किनारे पे थी और सामने थोड़ा डीप था जिससे क्लीवेज थोड़ा सा दिखाते हुए शीतल को सेक्सी बना रहा था। पीठ पे सिर्फ 2 इंच की पट्टी थी।

शीतल अपनी बा को चोली के अंदर करके हक लगा ली। वा अपने माथे पे चुन्नी रखकर माँग में सिंदूर भरने लगी। फिर उसे लगा की अगर मैं लगाऊँगी तो वो विकास के नाम का होगा। आज ऐसा नहीं होना चाहिए। सोच कर वो सिंदूर नहीं लगाती और मंगलसत्र भी उतारकर रख दी। शीतल परे हाथों में चड़ी पहन ली। अब वो पूरी तैयार थी अपनी सुहागरात के लिए। 8:00 बज चुके थे।
***** *****

शीतल कि दूसरी सुहागरात गैरमर्द वसीम के साथ

शीतल अपनी चुदाई के लिए पूरी तैयार थी। पूरा मेकप और पूरी ज्वेल्लारी में वो बहुत ही हसीन लग रही थी। उसकी धड़कन तेज हो गई थी। वो किचन में जाकर एक उल्लास जूस पी ली थी। अब उसे ठीक लग रहा था। शीतल 8:00 बजने का इंतजार कर रही थी।

ठीक 8:00 बजे वसीम खान ने दरवाजा नाक किया। वो भी नये कुर्ता पायजामा और स्कल कैप में था। आँखों में सरमा और बदन में इत्र लगाया हुआ था वसीम खान। शीतल कौंपते हाथों से दरवाजा खोली। वो अपने घर का नहीं चूत का दरवाजा खोल रही थी वसीम खान के लिए। वसीम शीतल को देखता ही रह गया। शीतल बहुत हसीन थी, लेकिन आज तो वो कयामत टा रही थी। उफफ्फ.. वसीम की आँखें चंधिया गई थी इस बेपनाह हश्न को देखकर।
 
शीतल वसीम को में देखती हुई देखी तो शर्मा गई और उसकी नजरें झुक गई। वसीम के लिए ता शीतल का ये अंदाज जानलेवा था। वसीम यूँ ही खड़ा रहा तो शीतल एक कदम आगे बढ़कर उसके गले से लिपट गई, और कहा- "ऐसे क्यों देख रहे हैं, मुझं शर्म आ रही है...

वसीम अपने होश में लौटा, और बोला- "मैंने सुना था हरों के बारे में, आज यकीन हो गया की वो होती होगी, सुभान अल्लाह, तुम्हारा हा न तो बेमिशाल है..."

शीतल अपनी तारीफ सुनकर और शर्मा गई और वसीम को कसकर पकड़ ली। वसीम ने भी प्यार से उसकी पीठ पे हाथ फैरा। शीतल वसीम से अलग हई और थोड़ा पीछे हई दरवाजे से और वसीम अंदर आया। वसीम के हाथ में दो प्लास्टिक का पैकेट था। वसीम साफे के पास प्लास्टिक को रखा और उससे एक कामकाडर और उसका स्टैंड निकालने लगा। शीतल उसे देख रही थी।

वसीम स्टैंड पे कमरा फिक्स करने लगा और बोला- "में आज के हर लम्हे को कैद करना चाहता है.." फिर वा शीतल को देखा और बोला- "तुम्हें इस कैमरे से कोई ऐतराज तो नहीं?"

शीतल ना में सिर हिलाई।

वसीम ने कैमरा सेट किया और शीतल के हरन को उसमें कैद करने लगा। फिर वो खुद शीतल के सामने आया और उसके माथे पे चूमा।

शीतल उसके सीने से लग गई और महसूस करने की कोशिश करने लगी की वसीम ही उसका सब कुछ है। फिर वो वसीम का सीधा खड़ा की और टेबल से आरती की थाली उठा लाई। उसने दिया जला लिया था। वो वसीम की आरती उतारने लगी और फिर उसके माथे पे तिलक लगाई और उसपे फल और चावल फेंकी। फिर वो एक दूसरी थाली ले आई, इसमें दो माला था। शीतल एक माला वसीम को दी और दूसरी अपने हाथ में ले ली।

वसीम समझ गया की शीतल क्या चाहती है? ये तो अच्छी बात थी उसके लिए। कैमरा ऑन था और कैमरे में दोनों की तथाकथित शादी रंकाई हो रही थी। उसे सच में खुशी हुई शीतल का समर्पण देखकर।

शीतल- "आप में माला मेरे गले में डालिए..."

वसीम ने उस फलों के हार को शीतल के गले में डाल दिया। फिर शीतल अपने हार को वसीम के गले में डाल दी। फिर शीतल एक और थाली ले आई। वो जब चल रही थी तो छन-छन की आवाज पूरे घर में गँज रही थी। शीतल वो थाली वसीम के सामने कर दी और शर्माती हुई सिर झुका कर खड़ी हो गई। थाली में सिंदूर और मंगलसूत्र था।

वसीम को पहले तो समझ में नहीं आया की क्या करना है? लेकिन फिर उसकी नजर शीतल के माथे में गई जहाँ सिंदूर नदारद था। वसीम समझ गया की क्या करना है लेकिन वो खड़ा रहा।

शीतल. "मैं चाहती हैं की आप ये सिर मेरी माँग में भरें। अगर मैं खुद से लगाती तो वो विकास के नाम का होता। मैं चाहती हैं की मेरी माँग में आज आपके नाम का सिंदूर हो। मुझे अपने रंग में रंग दीजिए वसीम और अपनी दुल्हन बना लीजिए.."

वसीम बहुत खुश हुआ। उसने थाली से चुटकी में सिंदूर उठाया और शीतल की मांगटीका को किनारे करके उसकी माँग में सिर लगा दिया।

शीतल का रोम-रोम सिहर उठा। अब वो वसीम की दुल्हन है, वसीम की बीवी है। अब अगर मैं वसीम के साथ कुछ भी करती हैं तो कुछ गलत नहीं कर रही हैं मैं। अब वसीम का पूरा हक है मेरे पे। अब मुझे कुछ भी सोचने की जलत नहीं है। वसीम अब गैर-मर्द नहीं मेरे पति हैं।

शीतल मंगलसूत्र उठा ली और थाली को रख दी। बा मंगलसूत्र को फैलाकर वसीम के सामने कर दी। वसीम ने मंगलसूत्र शीतल के हाथ में ले लिया और उसके गले में पहना दिया। शीतल वसीम के सीने में लग गई। अब वो महसूस कर रही थी की वसीम ही उसका सब कुछ है। वसीम ने शीतल के माथे पे चूमा और प्यार से उसकी पीठ और माथे पे हाथ फेरने लगा। इस वक्त दोनों के दिल की भावनाएं सच्ची थी।

शीतल थोड़ी देर बाद वसीम से अलग हुई और उसे साफा पे बिठाकर खुद किचेन में चली गई। बा छन-छन करती हई बापस लौटी तो उसके हाथ में एक और थाली थी जिसमें दो ग्लास थे। शीतल उसमें से एक ग्लास उठाकर वसीम को दी जिसमें दूध भरा हुआ था। वसीम की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। उसने खुद इतना उम्मीद नहीं किया था। वो दूध पी लिया तो शीतल दूसरे ग्लास से उसे पानी दी। वसीम ने पानी पी लिया और उलास नीचे रख दिया। उसने एक हाथ से शीतल का एक हाथ पकड़ लिया था।

वसीम ने पाकेट में हाथ डाला और एक पेपर निकाला। उसने एक हाथ में ही पेपर को नीचे गिरा दिया और अब उसके हाथ में सोने का कंगन था। उसने दोनों कलाइयों में कंगन पहना दिया। अब शीतल बहुत खुश थी। उसे भी इसकी उम्मीद नहीं थी। एक औरत को जेवर से बहुत प्यार होता है। एक बार वो सोची की मना कर दें, लेकिन फिर सोची की क्यों मना करे? वसीम उसके पति हैं और उनका पूरा हक है और मेरा भी हक है उनसे तोहफा लेने का।

वसीम आगे बढ़ा और शीतल के कंधे को पकड़कर अपने सीने से लगा लिया और शीतल शर्माकर उसके सीने में लिपट गई। वसीम ने शीतल का चेहरा ऊपर किया और उसके फूल से नाजुक होठों पे एक हल्का सा चुंबन लिया। शीतल शर्मा शर्माकर एई-मुई की तरह सिमट गई और वसीम का लण्ड टाइट हो गया। वसीम ने कैमरे को बेडरूम की तरफ मोड़ दिया और फिर शीतल की चुनरी को नीचे गिरा दिया और उसे गोद में उठा लिया और चलता हुआ बेडरूम में आ गया।

वसीम रूम देखकर झम उठा। इसी बेड पे वो शीतल के बेपनाह हश्न के मजे लेगा। उसने शीतल को दरवाजे में ही नीचे उतार दिया और फिर कमरा स्टैंड को लाकर रूम में बैंड के एक कोने में लगाकर ऑन कर दिया।
 
वसीम रूम देखकर झम उठा। इसी बेड पे वो शीतल के बेपनाह हश्न के मजे लेगा। उसने शीतल को दरवाजे में ही नीचे उतार दिया और फिर कमरा स्टैंड को लाकर रूम में बैंड के एक कोने में लगाकर ऑन कर दिया।

शीतल तब तक छई-मुई सी बनी हुई ही नजरें झकाए खड़ी रही। सच में शर्म में उसकी हालत खराब हो रही थी। सोचने और करने में वाकई फर्क होता है। वो सुहागरात मानने जा रही थी। ठीक है उसने वसीम से शादी कर ली थी, या पहले भी उसके साथ बहुत कुछ कर चुकी थी। लेकिन थी तो ये उसकी नकली सुहागरात ही, थी तो उसकी दूसरी मुहागरात। उसकी नजरों में ये सही था लेकिन दुनियां की नजरों में तो ये गलत था।

वसीम ने फिर से शीतल को गोद में उठा लिया और आहिस्ते से उसे बेड पे रखा जैसे वो कितनी नाजुक हो और कहीं टूट ना जाए। वसीम ने अपना फूलों का हार उतारकर रख दिया और शीतल के बगल में बैठ गया। शीतल शर्माती हुई बेड में खुद को सिकोड़ने लगी। वसीम में एक हाथ शीतल के कंधे पे रखा और उसके माथे पे चमा। शीतल और सिमटने लगी और इस चुबन में उसके जिस्म को झकझोर दिया। वसीम ने शीतल को थोड़ा सा झकाया और उसकी दोनों आँखों में बारी-बारी से किस किया।

शीतल की आँखें बंद हो गई थी अब। वसीम ने शीतल का भी फलों का हार उतारकर रख दिया। वसीम की नजरों के सामने शीतल के रसीले होंठ थे। वसीम पहले भी इन हसीन लबों का रस पी चका था, लेकिन आज की तो बात ही कुछ और थी। उसने शीतल को थोड़ा और झुका दिया, तो शीतल के होंठ अपने आप खुल गये। वसीम ने भी देरी नहीं की और अपने होंठ शीतल के होठों पे रख दिया और उनके रस को चूसता हुआ शीतल को बेड पे गिराता चला गया। शीतल अब सीधी लेटी हुई थी और वसीम उसके बगल में लेटा हुआशीतल के होठों को चूमने लगा और साथ ही साथ शीतल के पेट को भी सहलाने लगा था।

अब वसीम के लिए खुद को रोकना मुश्किल हो रहा था। वसीम शीतल के पेंट को चूचियों से नीचे तक और लहँगे तक सहला रहा था। लाल लहँगा और चोली के बीच में गोरा चिकना पेट चमक रहा था। वसीम शीतल के होठों को चूसता हुआ उसके पेट को सामने से और बगल से सहला रहा था। शीतल गर मा रही थी। वो अपने पेंट को अंदर करने लगी, ताकी वसीम का हाथ उसके लहँगे के नीचे उसकी चूत पे चला जाए। वसीम समझ तो गया था लेकिन उसे कौन सी हड़बड़ी थी। पूरी रात उसकी थी और आज उसे रूकना भी नहीं था। शीतल को पूरी तरह पा लेना था।

वसीम अपनी जीभ को शीतल के मुँह में करने लगा। शीतल को समझ में नहीं आया की क्या करना है, तो वो भी अपनी जीभ बाहर करके वसीम के जीभ से टकराने लगी। वसीम ने शीतल की जीभ को अपने होठों के बीच में पकड़ लिया और चूसने लगा। शीतल अब पूरी तरह गरमा गई थी। अब वसीम ने अपना हाथ आगे किया और शीतल की चूचियों को चोली के ऊपर से दबाने लगा।

चोली डीप कट की थी तो उसे कोई तकलीफ नहीं थी। वो अपने हाथ को थोड़ा सा तिरछा किया और वसीम का हाथ शीतल की चोली और बा के अंदर उसकी मलपन चूची पे था। वसीम ने शीतल के निपल के करारेपन को महसूस किया। उसने चूची को हल्का सा दबाया और शीतल आह... करती हुई कमर को उठाकर बदन ऐंठने लगी। वसीम चोली के हक को खोलने लगा। सारे बटन खोलने के बाद उसने चोली के दोनों कपों को किनारे कर दिया।
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शीतल की लाल बा चमक उठी। बाउज निपल और गोरा जिस्म लाल बा के अंदर से चमक रहा था। वसीम ने बा के ऊपर से ही एक चूची को कस के मसल डाला। उफफ्फ... शीतल की हालत खराब होती जा रही थी। वसीम शीतल की ब्रा को किनारे करता हुआ निपल को मसलने लगा और बीच-बीच में चूचियों को भी मसल देता था। ब्रा बहुत साफ्ट और ट्रांसपेरेंट थी तो वो बस दिखावे के लिए ही थी।

शीतल अब जल्दी से जल्दी नंगी होना चाहती थी। उसे अपने कपड़े और ज्वेलरी बोझ लग रहे थे। वसीम शीतल की हालत समझ रहा था। वो शीतल की ज्वेलरी उतरने लगा। पहले उसने मौंगटिका उतारा और फिर नाथ। फिर उसने शीतल के कंधे को पकड़कर उठाया और उसके पीछे बैठते हुए उसके गर्दन पे किस किया और जो 4-5 तरह के हार उसने पहनें थे उन्हें उतार दिया। वसीम शीतल की चिकनी पीठ को चूम रहा था और पीठ को बगल को सहला रहा था। फिर वसीम ने शीतल की चोली को उसके बदन से अलग कर दिया। वसीम चिकनी पीठ को अपने होठों से चूमता जा रहा था।

शीतल अपने पैर को मोड़ ली और सिर को घटने में टिकाकर बैठ गई थी।
 
वसीम ने मेहन्दी से बने डिजाइन को देखा जो उसकी पीठ पे बना था। डिजाइन के बीच में उसे "डबल्यू लिखा हुआ दिखा और उस जगह को चूम लिया। वसीम ने शीतल की ब्रा का भी हक खोल दिया और नंगी पीठ को चमने सहलाने लगा। अब वसीम के लिए खुद को रोकना मुश्किल हो रहा था। उसका वहशिपना कंट्रोल के बाहर हो रहा था। उसने शीतल को फिर से झकाया और उसके साथ उसके बगल में लेट गया। वो शीतल को करवट कर लिया और उसके सामने उसके जिस्म से चिपकता हुआ लेट गया। वो फिर से शीतल के होंठ चमने लगा और उसकी पीठ, पेट को सहला रहा था।

वसीम में हाथ को सामने किया और नीचे से ब्रा के अंदर हाथ डालता हुआ चूचियों को मसलने लगा। वो जोर जोर से चचियों और निपलों का मसलने लगा। वसीम ने बा को हाथ से निकाल दिया। अब शीतल ऊपर से टापलेश थी। अब वसीम ने शीतल को फिर से सीधा लिटा दिया और चूचियों को चूस रहा था। वसीम एक निपल को मुँह में लेकर बच्चों की तरह चूस रहा था। अगर शीतल दूध दे रही होती तो वसीम तुरंत ही उसका टैंकर खाली कर देता। वो दूसरे निपल को मसलता उंगली में लेकर जा रहा था। गोरी चूचियां लाल हो रही थी। शीतल आह्ह... उह्ह.. करने लगी थी। उसे लग रहा था की वसीम जल्दी में उसे नंगी करतें और तुरंत ही चोद डालते।

फिर वसीम दूसरे निपल को चूसने लगा और शीतल के पेंट, बगल को सहलाने लगा और पेंट सहलाते हए लहँगा के ऊपर से जांघों को सहला रहा था। शीतल का एक पैर सीधा था और दूसरा पैर उसने मोड़ लिया था। वसीम लहँगा ऊपर करना शुरू कर दिया और फिर लहँगे के अंदर हाथ डालकर वो शीतल की नंगी जांघों को सहलाने लगा था। शीतल का जिक्ष्म हिलने लगा था अब। वसीम का हाथ पैंटी के ऊपर से चूत में था और वो चूत के आसपास के एरिया को सहला रहा था। वसीम ने लहँगा का पूरा ऊपर कर दिया।

शीतल अंदर में लाल रंग की डिजाइनर पैटी पहनी थी जो आधी ट्रांसपेरेंट थी चूत के ऊपर। वसीम ने कैमरा को बेड के दूसरे कोने में रख दिया, और शीतल के पैरों के बीच में आ गया और अच्छे से पेंटी को देखता हुआ जाँघों और पैंटी को सहलाने लगा। शीतल की चूत तो कब से गीली थी और वो गीलापन पैटी पे भी आ चुका था। अब शीतल के लिये बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था। वसीम को अपनी गीली पैंटी को देखते पाकर वो शर्मा गई।

वसीम में शीतल के लहंगे को उतार दिया और अपने कुर्ते को उतारते हुए शीतल के बगल में लेट गया। शीतल चाह रही थी की जल्दी से वसीम उसकी पेंटी भी उतार दे और चोदना शुरू कर दें। लेकिन वसीम को बिना पेंटी उतारे बगल में लेटता हुआ देखकर उसे मायूसी हई। शीतल सिर्फ एक लाल पैंटी में वसीम खान के साथ लेटी हुई थी और कैमरा इसकी अच्छे से कार्डिंग कर रहा था। शीतल के हिलने से चड़ी और पायल की आवाज आ रही थी, और कमरे में बैंड में हर तरफ फूल बिखरे हए थे। वसीम शीतल के बगल में लेटकर उसे अपने सीने से चिपका लिया और उसके हठों को चूसने लगा और पीठ को सहलाते हए पैंटी के अंदर हाथ डालकर गाण्ड को सहलाने लगा।

पीछे से शीतल की आधी गाण्ड दिख रही थी तो, वसीम अपना हाथ सामने लाया और शीतल की चिकनी चूत को सहलाने लगा। वसीम का हाथ शीतल की लाल पैंटी के अंदर उसकी चिकनी गीली चूत पे था। वसीम चूत को सहला रहा था और उसने अपनी एक उंगली गरमाई शीतल की गीली चूत के अंदर डाल दिया। उफफ्फ... चूत के अंदर का तापमान पूरा बढ़ा हुआ था। उंगली चूत में जाते ही शीतल का बदन हिलने लगा और वो वसीम को कस के पकड़ ली और उसके होठों को चमने लगी। पेंटी सामने में भी चूत में नीचे हो चुकी थी।

वसीम चूत में उंगली अंदर-बाहर करने लगा और पैटी को नीचे करता गया। पैंटी घुटने तक पहुँच चुकी थी। वसीम उठकर बैठ गया और शीतल को सीधा किया। वसीम शीतल के पैरों के बीच बैठ गया और उसकी पैंटी को उतार दिया।

शीतल अब पूरी नंगी लेटी हुई थी वसीम के आगे। अब उसके जिस्म में बस चूड़ी, कंगन, पायल, मंगलसूत्र ही थे। वसीम शीतल के चमकतें जिस्म को निहारने लगा। शीतल उस तरह वसीम को देखता देखकर शमां गई और अपनी मेहन्दी लगे हाथों से अपना चेहरा छुपा ली।

वसीम मुश्कुरा दिया। उसने शीतल के पैर फैलाए तो गोली चूत के होंठ आपस में खुल गये। वसीम बैंड से उठा
और कैमरा स्टैंड से उतारकर अपने हाथ में ले लिया और अच्छे से शीतल के नंगे कटीले जिएम की रंकार्डिंग करने लगा। वो अपने एक हाथ से चूत को फैलाया और चूत का क्लोजप लेने लगा। शीतल आँख से थोड़ा सा उंगली साइड में करके देखी और वसीम को इस तरह रंकार्डिंग करता देखकर और शर्मा गई। चूत का अच्छे से क्लोजप लेता हुआ वसीम अपनी उंगली चूत में अंदर-बाहर करने लगा।
 
वसीम की उंगली चूत से बाहर आई तो पूरी तरह गीली थी। वसीम कैमरा में अपनी गीली उंगली दिखाने लगा

और उसी हाथ से शीतल की एक चूची और निपल को मसलने लगा। शीतल अभी भी चेहरा टकी हुई थी तो वसीम निपल को कस के मसलकर ऊपर खींचने लगा। शीतल आउ: करती हई दर्द कम करने के लिए अपने बदन को ऊपर उठाई और चेहरे से हाथ हटाकर वसीम का हाथ पकड़ ली। वसीम मुश्कुरा दिया और शीतल के चेहरा के साथ पूरे जिएम का वीडियो काई करता रहा।

वसीम ने कैमरे को वापस स्टैंड में लगा दिया और फिर से शीतल के पैरों के बीच बैठ गया। वसीम ने शीतल के पैरों को अच्छे से फैला दिया, और अपने हाथों से चूत को फैलाता हुआ चूत पे किस किया और फिर चसने लगा। वो अपनी उंगली भी चूत के अंदर-बाहर कर रहा था और चूत को चस भी रहा था। हाथ से चूत के छेद को फैलाकर अपनी जीभ को चूत के अंदरूनी हिस्से में सटा रहा था बसीमा वसीम अपनी जीभ से ही शीतल की चुदाई कर रहा था। वसीम जीभ को चूत के अंदर सटाकर चूस रहा था और फिर चूत के दाने को मुँह में भरकर खींचने लगा था।

शीतल अब खुद को नहीं रोक पाई और उसके मुँह से आऽ5 उड्... की आवाज निकलने लगी। वसीम शीतल की चूत को चूसता जा रहा था और बीच-बीच में उंगली भी करता जा रहा था। शीतल अपने बदन को ऐछने लगी और उसकी चूत में कामरस छोड़ दिया और वसीम को पता चला गया। शीतल हाँफ रही थी।

वसीम अब लेटी हईशीतल के मैंह के पास आया और अपने पायजामें को नीचे कर दिया और उसका विशाल सा लण्ड उसके अंडरवेर को फाड़ने के लिए तैयार था। उसने शीतल का हाथ पकड़कर अपने अंडरवेर पे रखा और शीतल उसे सहलाने लगी। वसीम शीतल के बगल में सीधा लेट गया।

शीतल करवट होकर वसीम से चिपक गई, उसकी चूचियां वसीम के जिश्म से दब रही थी। अब वो वसीम के लण्ड का अंडरवेर के ऊपर से सहला रही थी। फिर शीतल थोड़ा सा उठी और अंडरवेर को नीचे कर दी। अंडरबेर नीचे करते ही फुफकारते हए सौंप की तरह लण्ड बाहर निकला और तनकर खड़ा हो गया। शीतल मुश्कुरा दी।

आज उसे लण्ड और बड़ा और मोटा नजर आया। आज फाइनली इस मोटे और बड़े से लण्ड का शीतल की छोटी मी चूत के अंदर की सैर करनी थी।

शीतल उस लण्ड को सहलाने लगी जिसने कई बार उसके नाम का मूठ मारा था। शीतल का ये सब पहला अनुभव था। वो विकास के साथ ये सब कुछ नहीं की थी, फिर भी वसीम को बुरा ना लगे और उसे खुशी मिले, उसने वसीम का पायजामा और अंडरवेर को नीचे करके उतार दिया और वसीम के पैरों के बीच बैठ गईं। शीतल लण्ड को पूरे हाथ में लेकर पकड़ ली और झुकती हुई उसे किस की। लण्ड की खुश्ब उसे दीवाना कर गई। वो लण्ड पे झकती गई और मैंह को फैलाती गई और फिर उसे मैंह में लेकर चूसने लगी। उसकी चूचियों वसीम के जांघों को सहला रही थी। शीतल अपने मुँह का और फैलाई और अच्छे से लण्ड का मुँह में भर कर चूसने लगी। बो पहले से भी अच्छे तरीके से लण्ड चूस रही थी। अब तो उसके पास लण्ड चूसने का अनुभव भी था।

वसीम ने शीतल को रोक दिया और उसका मैंह हटा दिया। शीतल चौंक गई की अब क्या हो गया? कहीं ये मुझे आज भी नहीं चोदेंगे क्या? लेकिन आज बहुत कुछ होना था। वसीम उठकर बैंड के किनारे पैर लटका कर बैठ गया और शीतल अब नीचे बैठकर वसीम का लण्ड चूस रही थी। वसीम में कैमरा हाथ में ले लिया और खुद काडिंग करने लगा।

शीतल बहुत जतन और ध्यान से वसीम का लण्ड चूस रही थी। वो पी तरह कोशिश कर रही थी की पूरा लण्ड वो मुँह में ले पाए लेकिन ये हो नहीं पा रहा था। शीतल बहुत सेक्सी लग रही थी इस तरह लण्ड को चूसते हुए। वसीम ने शीतल को बेड पे लेटने के लिए कहा। शीतल बैड पं आकर लेट तो गई, लेकिन उसकी टाँगें आपस में सटी हुई थी और एक तरह से वो अपने नंगे बदन को समेट रही थी। वो समझ रही थी की वसीम ने उसे चोदने के लिए बैंड पे लिटाया है और अब उसकी चुदाई होने वाली है। चुदाई के इस एहसास ने उसे रोमांचित कर दिया और वो फिर से शर्मा रही थी।

वसीम ने कैमरा को स्टैंड पे लगा दिया और शीतल के पैर को फैलाता हुआ बीच में बैठ गया। उसने शीतल के पैर को अच्छे से फैला दिया और चूत में किस करता हुआ उंगली करने लगा। अब वो शीतल के पैरों के बीच में लगा

ही थोड़ा आगें आ गया और अपने लण्ड को शीतल की चूत में सटा दिया और फिर चूत को लण्ड से सहलाने लगा। लण्ड चूत में सटते ही शीतल के जिस्म में करेंट दौड़ गया। वो पूरी तरह गरमा गई और चूत गीली हो गईं। वसीम अपने लण्ड से शीतल की चूत को सहलाते जा रहा था और जगह बनाते जा रहा था।

शीतल चूत में वसीम का लण्ड लेने के लिए आतुर हो रही थी। लण्ड के अंदर जाने पर होने वाले दर्द को सहनें के लिए भी बो मेंटली तैयार हो चुकी थी। शीतल सोच रही थी "आहह... वसीम डालिए ना अब अंदर। मेरी चूत आपके सामने हैं। डाल दीजिए अपने लण्ड को अंदर और चोदिए मुझे। जितने सपने आपने देखें हैं मुझे सोचते हुए, सब पूरे कर लीजिए आह्ह... गरौंद डालिए मेरे जिएम को आहह... वसीम प्लीज़... डालिए ना अंदर .. लेकिन उसके मुँह से बस आहह... उम्म्म ह... की आवाज ही आ रही थी।

वसीम लण्ड के लिए रास्ता बनता हुआ चूत सहला रहा था और शीतल अपनी कमर उठाकर लण्ड अंदर ले लेना चाहती थी। वसीम लण्ड को चूत से सटाकर शीतल के ऊपर लेट गया और उसके होठों को चूमने लगा और चचियों मसलने लगा।

शीतल अब बर्दाश्त नहीं कर पाई, कहा- "डालिए ना वसीम अंदर, क्या कर रहे हैं आप?"

वसीम शीतल के गालों को चमता बोला- "क्या डालं मेरी जान?"

शीतल एक झटके में बोली- "लण्ड..." लेकिन तुरंत ही उसे एहसास हो गया की वो क्या बोली और शर्मा गईं।

वसीम उसकी चूचियों पे दाँत काटता हुआ पूछा- “कहाँ मेरी जान?"

शीतल दो सेकेंड के लिए रुकी लेकिन फिर अपने शर्म को त्यागती हुई बोली- "मेरी चूत में। ओह्ह... वसीम क्यों तड़पा रहे हैं?"

अचानक शीतल को अपना निश्म फटता हुआ महसूस हुआ। वो दर्द से बिलख गई। वसीम ने शीतल को कस के अपनी बाहों में पकड़ लिया था। वसीम का लण्ड शीतल की चूत के रास्ते को खोल चका था। वसीम ने अपनी कमर का भार शीतल की चूत पे बढ़ाया और अपने दर्द को सहती हुई शीतल आह्ह... आह माँ... करती हुई दोनों पैर को पूरी तरह फैला ली और फाइनली वसीम खान का लण्ड शीतल शर्मा की चूत के अंदर आ चुका था। वसीम ने अब एक धक्का मारा और उसका लण्ड शीतल की चूत की गहराइयों में उत्तरता चला गया।

शीतल का दर्द कम हो चुका था। वो कोई कुँवारी लड़की तो नहीं थी फिर भी 3 इंच के बाद आज ही उसका कुँवारापन दूर हुआ था। अभी भी पूरा लण्ड अंदर नहीं गया था। वसीम शीतल के होठों को चूमने लगा, चूसने लगा। वसीम ने एक धक्का और मारा और बचा खुच लण्ड भी शीतल की चूत में समा गया। वसीम अब कस कस के धक्के लगाने लगा।

शीतल आहह ... उऊहह ... करने लगी। वसीम के धक्के में शीतल का पूरा जिस्म हिल रहा था। शीतल की मुलायम चूचियां पूरी तरह से उछल रही थी, और वसीम अपने अरमान पूरे कर रहा था। तुरंत ही शीतल की चूत में अपना पानी छोड़ दिया। लेकिन तुरंत ही वो फिर से गरमा गई थी।
 
शीतल आहह ... उऊहह ... करने लगी। वसीम के धक्के में शीतल का पूरा जिस्म हिल रहा था। शीतल की मुलायम चूचियां पूरी तरह से उछल रही थी, और वसीम अपने अरमान पूरे कर रहा था। तुरंत ही शीतल की चूत में अपना पानी छोड़ दिया। लेकिन तुरंत ही वो फिर से गरमा गई थी।

लण्ड डाले डाले ही उसे ऊपर कर दिया और अब शीतल वसीम के लण्ड पे उछल रही थी। शीतल की चूचियां ऊपर-नीचे हो रही थी और साथ में वो मंगलसूत्र भी। शीतल पूरा ऊपर आ रही थी और फिर पूरा नीचे जा रही थी। थोड़ी देर बाद वसीम ने शीतल को कुतिया की तरह चार पैरों पे कर दिया और उसकी गाण्ड पे कम के एक हाथ मारा। शीतल इस तरह हो गई की उसकी गाण्ड बाहर की तरफ निकल गई और कमर नीचे हो गई। वसीम शीतल के पीछे आया और उसकी चूत में अपना लण्ड घुसेड़ दिया।

शीतल की चूत में फिर पानी बह निकला और वसीम के हर धक्के से शीतल की चूत से वो पानी बाहर आ रहा था। फिर से वसीम ने शीतल को सीधा लिटाया और और उसके ऊपर आकर चोदने लगा। शीतल पस्त हो चुकी थी। बहुत देर हो चुका था। शीतल आधे घंटे में इतने विशाल लण्ड को अपनी नाजुक सी चूत में झेल रही थी।

वसीम शीतल से पूरी तरह चिपक गया और लण्ड चूत के आखिरी छोर में जा सटा और वसीम के लण्ड में पानी गिरा दिया। अंदर वीर्य की गर्मी पाते ही शीतल की चूत तीसरी बार पानी छोड़ दी। जब बीर्य की आखिरी बंद भी शीतल की चूत में गिर गई तो वसीम ने अपने लण्ड को बाहर निकाल लिया और शीतल के बगल में टेर हो गया। लण्ड के बाहर आते ही शीतल की चूत में वीर्य का और चूत के पानी का मिक्स्च र बाहर बेड पे बहनें लगा। दोनों पीने से लथपथ हो चुके थे। इस महयुद्ध में एक बार फिर से चूत की ही जीत हुई और इतना विशाल लण्ड भी अब थक हार कर मुर्दे की तरह पड़ा हुआ था। बेड के सारे फूल रौदे मसले जा चुके थे।

आखिरकार, शीतल आज वसीम से चुद ही गई। इतनी मजेदार चुदाई उसकी आज तक नहीं हुई थी। वो पशीने से लथपथ थी। वसीम भी इस 23 साल की अप्सरा को अपने मन मुताबिक चोदकर निटाल पड़ा था।

शीतल ऐसे ही नंगी लेटी रही। उसकी चूत में अभी भी वसीम का वीर्य और खुद उसकी चूत का पानी मिलकर बाहर बह रहा था और बेंड को गीला कर रहा था। शीतल के जिस्म में तो जैसे जान ही नहीं थी। 6:00 बजे से अभी 10:00 बजे तक में 4 बार उसकी चूत से पानी निकला था। एक बार तो वो खुद नहाते वक़्त निकाली थी
और तीन बार वसीम ने चोदते हुए निकाल दिया।

शीतल मन में- "उफफ्फ... ऐसे भी कहीं चदाई होती है। 8:00 बजे से लेकर 10:00 बजे तक। एक तो इतना बड़ा घोड़े का लण्ड है और उसमें इतनी देर तक चोदते रहे। मेरी तो चूत छिल गई है। पूरा बदन दर्द कर रहा है। लेकिन एक बात की खुशी है की में इनका साथ दे पाई। उन्हें मजा तो आया होगा ना? संतुष्ट तो हए होंगे ला वा? पता नहीं, लेकिन इतने में भी अगर कोई संतुष्ट ना हो तो अब क्या जान निकल के मानेगा?

थोड़ी देर में वसीम बैंड से उठा। उसका लण्ड इतनी पुरजोर चुदाई के बाद ढीला था। लेकिन उसकी जांघों के बीच ऐसे लटक रहा था जैसे कोई काला नाग झल रहा हो। उस झूलते लण्ड को देखकर शीतल की चूत में फिर से आग भर गई। वसीम ने कैमरे को बंद कर दिया। ने लेटी हईशीतल को देखा।

शीतल शर्मा गईं। शीतल भी बेड से उठ गई। उसका पूरा मेकप बिगड़ा हुआ था। आँखों का काजल और लिपस्टिक फैल गया था और बाल बिखरे हुए थे। वो बहुत ही संडक्टिव लग रही थी। वो सीधे बाथरूम में जाकर पेशाब करने लगी। उसकी चूत में तेज जलन होने लगी और चूत से गाढ़ा सफेद पानी पेशाब के साथ निकलने लगा। वो बाथरूम में ही चूत को ठंडे पानी से अच्छे से धो ली और पोंछूकर बाहर आई। शीतल तौलिया लपेटकर बाथरूम से बाहर आई, तब तक वसीम प्लास्टिक बैंग में लगी निकालकर पहन चुका था और सोफे पे बैठा था।

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शीतल अदा से चलती हुई वसीम के सामने आई और बोली- "मैं खाना लगाती हूँ, चलिए कुछ खा लीजिए."
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