desiaks
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(UPDATE-55)
काला लंड आग की लपतो को भुजाते हुए रास्ते के सामने खड़ा होकर दूर जाते देवश और रोज़ की तरफ देखता है और ज़ोर से दहधाता हाईईईई…देवश निढल रोज़ के सर को अपने सीने पे रख देता है और उसके चेहरे को चूमते हुए बाइक फुरती से दौधने लगता है
जल्दी ख़ुफ़िया घर पहुंचकर…बाइक को किसी तरह अनॅलिसिस ऑफिस वाले घर में लाकर…मैं जल्दी से बाइक रोककर रोज़ को अपने बाहों में भरके उठता हूँ…और उसे लाके सोफे पे लेटा देता हूँ…रोज़ अब भी निढल थी
पहले तो उसके कपड़े जैसे तैसे उतारे और सिर्फ़ उसे ब्रा और कक़ची में रखा..ताकि उसके पूरे बदन का मुआना करूं अफ कितने चोटें थी लाल लाल निशानो की कुछ तरफ खरोचें थी…बाल भी बिखरे हुए थे..आज तो ऊस जल्लाद ने मेरी रोज़ को मर ही दिया होता….मैंने मुआना किया और एक एक अंगों को चेक किया…शुक्र है की हड्डी सलामत कोई अंग नहीं टूटा…असल में जब काला साया के वक्त भी ऐसे गुंडों से टकराने पे खुद को घायल महसूस करता था…तो अपने काबिल डॉक्टर से सीखी कुछ स्किल्स की मदद से खुद को चेक कर लेता था…मेरे हाथ में अब भी ऐसा स्प्रेन है जो अभीतक ठीक नहीं हुआ और ये मेरी एक बेहद दर्दनाक कमज़ोरी है
खैर मैंने ऊपर वाले का धनञयवाद करते हुए..फौरन इलाज के लिए फर्स्ट ाईड बॉक्स और कुछ पत्तियां ले आया….पहले बाल्टी भर वॉर्म वॉटर से रोज़ के जिस्म को स्पंज बात करने लगा…उससे उसका हाथ मुँह धोया…चेहरे और नाक से निकल रहे खून को पोंछा..और फिर उसके बदन को फिर जहां जहां उसे दर्द था वहां वहां पत्तियां कर दी…उसके बाए आर्म के शोल्डर पे पट्टी बाँधी और फिर एक जाँघ के निचले हिस्से पे…रोज़ अब काफी बेहतर महसूस कर रही थी
रोज़ को जल्द ही होश आ गया….”रोज़ अरे यू ऑलराइट? सब ठीक तो है ना”….उसके चेहरे को थपथपाते हुए मैंने बोला….ऊसने जैसे मेरी ओर धुंधली निगाहों से देखा वो मुस्कुराते हुए मेरे गले लग गयी…कुछ देर तक हम वैसे ही बैठे रहे
रोज़ : आहह आज तो ऊस कमीने ने मर ही दिया होता
देवश : हां हां हां और जाए अकेले जंग में कूदने के लिए…क्या जरूरत थी? मुझे तुमने एक फोन तक नहीं किया
रोआए : मुझे लगा तुम खुद बिज़ी हो…बेक उप तो थे ही तुम
देवश : हाँ और कब फोन करती बेक उप के लिए जब तुम ऊपर चली जाती तब…फिर मेरा क्या होता? सोचा है इन ज़ालिमो के अंदर रहें नाम की चीज़ नहीं खैर ये शॅक्स काला लंड तुम्हें कहाँ मिला था?
रोज़ : इसने मेरे रास्ते को घैर लिया…इसका टारगेट मैं ही थी हो ना हो इसकी मेरे से कोई दुश्मनी है (रोज़ अभी कशमकश में खोई सी थी इतने में कमिशनर और ब्ड के ऑफिसर उस्मान की बात दिमाग में घूम गयी और एक ही नाम सामने आया खलनायक)
फिर मैंने तफ़सील से रोज़ की ओर देखते हुए उसे बताया की खलनायक एक शातिर माफिया है और इसके गान्ड में दो खतरनाक गुंडे है जो इसके पलूए है और अब शायद इनके निशाने में तुम इसलिए हो क्योंकि तुमने खलनायक के ड्रग्स और उसके आदमियों को मर गिराया जावेद हुस्सियान उसी का आदमी था
रोज़ : ओह ई से (रोज़ फिर गहरी सोच में दुबई फिर ऊसने मुझे ऊन्हें एलिमिनेट करने का कोई रास्ता पूछा)
देवश : नहीं रोज़ मैं तुम्हें और खतरे में नहीं डालूँगा तुम ऊन ल्गो से दूर रहो
रोज़ : ऐसे कैसे कह सकते हो तुम? मैं एक सूपरहीरो हूँ और मैंने अक्चाई से लार्न के लिए वचन लिया
देवश : अचाई क्या जिंदगी से बढ़के है तुम्हारे? मेरी पुलिस फोर्स है ऊन लूग के पीछे अब तुम्हें अकेले मौत के मुँह में दावत देने नहीं चोदूंगा समझी तुम
मेरे परवाह और आंखों में अपने लिए डर को देख….रोज़ मुस्कराई ऊसने ऐसे कई ख़तरो से खेला था…पर आज ऊस्की कोई परवाह करने वाला सामने बैठा था….रोज़ ने हल्के से मुस्कराया लेकिन वो फीरसे सोफे पे लाइट गयी उसे थोड़ा दर्द था बदन में “तुम आराम करो मैं निकलता हूँ”……..देवश उठने ही वाला था की रोज़ ने उसके हाथ को क़ास्सके पकड़ लिया
रोज़ : मुझे छोढ़के आज कहीं मत जाओ ना (ऊस्की आंखों में अपने लिए जो प्यार उमड़ते देखा उससे साला मेरे पाओ जम गये)
बात भी ठीक ही थी उसे अकेला छोढ़ने का मेरा भी कोई मन नहीं था…पर दिव्या वो भी तो अकेले थी…लेकिन रोज़ पे जानलेवा हमला मतलब अब खलनायक उसे टारगेट कर रहा है कहीं ना कहींशायद मुझे भी करेगा…और ऐसी हालत में दूर रहना ठीक बात नहीं…मैंने फौरन घर पे फोन किया हाल जाना….दिव्या आज गुस्सा नहीं हुई उसे मुझपर यकीन नहीं था…मैंने फोन कट कर दिया….तभी मामुन का भी फोन आ गया…ऊनसे बताया की वो अपने यार के यहां तेहरा है आज घर नहीं आएगा वहां पार्टी है…मैंने कहा मैं कौन सा घर में हूँ जहाँ मर्जी वहां तहेर? आज वैसे भी मैं घर नहीं आने वाला बिज़ी हूँ काम पे…उससे भी बात करके फोन कट कर दिया
फिर अपने शर्ट और जीन्स को उतारके वैसे ही चड्डी पहने…रोज़ के बगल में आकर उसे लिपटके लाइट गया…रोज़ ने हम दोनों के ऊपर चादर ओढ़ ली और मेरे सीने पे मुँह लगाए मेरे पीठ पे हाथ फेरते हुए आराम करने लगी मैं बस उसके ज़ुल्फो के साथ खेलने लगा…आज सेक्स करने का मूंड़ नहीं था ऊससकी हालत ठीक नहीं थी मैं बस उसके साथ वैसे ही लिपटे आनंद ले रहा था और कब मेरी भी आँख भारी होने लगी मुझे पता नहीं
“य्ाआआआआआ”……धड़धस धड़धस्स करके चीज़ों को पटकते हुए काला लंड गुस्से से तमतमाए जा रहा था…..खलनायक बस चुपचाप अपने आदमियों के सामने खड़ा उसके गुस्से को घूर्र रहा था….काला लंड के सर पे खून सवार था…आज ऊसने सबसे बड़ी हार वॉ भी महीज़ एक पुलिस ऑफिसर से पाई थी और एक लड़की से…”ऊस कमीने के वजाहह से मेरा सारा मूंड़ खराब हो गया ऊसने मेरे बदन पे आग लगाइइ कमीने को चोदूंगा नहीं मैं मां चोद दूँगा ऊस्की”…….काला लंड गारज़ते हुए पास कहरे आदमी का गला दबोच देता है
निशानेबाज़ सिर्फ़ मुस्कुराता है…गला चोदते ही वो आदमी फर्श पे गिरके मर जाता है….खलनायक अपने आदमियों को ऊस्की लाश ठिकाने लगाकर कहकर पास आत है
खलनायक : जानता हूँ मैं तुम्हारे गुस्से को लेकिन फिहल तुम्हें आराम की सख्त जरूरत है…तुम्हारे ज़ख़्म्म्म
काला लंड : ये ज़ख़्म्म्म तब शांत होंगे जब मैं ऊस रंडी की बच्ची को अपने हाथों से नंगा करके टॉर्चर करूँगा मुझे वो इंस्पेक्टर चाहिईए बॅस (काला लंड के पागलपन और गुस्से को खलनायक जनता था..वो मुस्कुराकर हामी भरके बाहर आ गया साथ में निशानेबाज़ भी)
निशानेबाज़ : अब क्या करे? जो काम आपने इसे दिया था ये ऊसपे खड़ा नहीं उतरा
खलनायक : बिना मारें काला लंड शांत नहीं होगा देखा नहीं कैसे ऊस आदमी को मर डाला जबतक किसी का खून ना बहा दे तबतक शांत नहीं होता यह (काला लंड दीवार पे घुस्से मर रहा था जिसकियवाज़ बाहर सबको सहेमा दे रही थी)
खलनायक : बाकी के गुंडे कहाँ है? कौन था वो शॅक्स जिसने ऊस रोज़ को बचाया?
निशानेबाज़ : सर बाकी गुंडे या तो हॉस्पिटल में साँसें गीं रहे है या कुछ तो मर चुके फिलहाल तो पुलिस के आदमी पे हमला हुआ है ये बात आग की तरह फैल गयी होंगी हुम्हें कुछ दिन तक तो काला लंड का गुस्सा और खुद को अंडरग्राउंड रखान भी जरूरी है
काला लंड आग की लपतो को भुजाते हुए रास्ते के सामने खड़ा होकर दूर जाते देवश और रोज़ की तरफ देखता है और ज़ोर से दहधाता हाईईईई…देवश निढल रोज़ के सर को अपने सीने पे रख देता है और उसके चेहरे को चूमते हुए बाइक फुरती से दौधने लगता है
जल्दी ख़ुफ़िया घर पहुंचकर…बाइक को किसी तरह अनॅलिसिस ऑफिस वाले घर में लाकर…मैं जल्दी से बाइक रोककर रोज़ को अपने बाहों में भरके उठता हूँ…और उसे लाके सोफे पे लेटा देता हूँ…रोज़ अब भी निढल थी
पहले तो उसके कपड़े जैसे तैसे उतारे और सिर्फ़ उसे ब्रा और कक़ची में रखा..ताकि उसके पूरे बदन का मुआना करूं अफ कितने चोटें थी लाल लाल निशानो की कुछ तरफ खरोचें थी…बाल भी बिखरे हुए थे..आज तो ऊस जल्लाद ने मेरी रोज़ को मर ही दिया होता….मैंने मुआना किया और एक एक अंगों को चेक किया…शुक्र है की हड्डी सलामत कोई अंग नहीं टूटा…असल में जब काला साया के वक्त भी ऐसे गुंडों से टकराने पे खुद को घायल महसूस करता था…तो अपने काबिल डॉक्टर से सीखी कुछ स्किल्स की मदद से खुद को चेक कर लेता था…मेरे हाथ में अब भी ऐसा स्प्रेन है जो अभीतक ठीक नहीं हुआ और ये मेरी एक बेहद दर्दनाक कमज़ोरी है
खैर मैंने ऊपर वाले का धनञयवाद करते हुए..फौरन इलाज के लिए फर्स्ट ाईड बॉक्स और कुछ पत्तियां ले आया….पहले बाल्टी भर वॉर्म वॉटर से रोज़ के जिस्म को स्पंज बात करने लगा…उससे उसका हाथ मुँह धोया…चेहरे और नाक से निकल रहे खून को पोंछा..और फिर उसके बदन को फिर जहां जहां उसे दर्द था वहां वहां पत्तियां कर दी…उसके बाए आर्म के शोल्डर पे पट्टी बाँधी और फिर एक जाँघ के निचले हिस्से पे…रोज़ अब काफी बेहतर महसूस कर रही थी
रोज़ को जल्द ही होश आ गया….”रोज़ अरे यू ऑलराइट? सब ठीक तो है ना”….उसके चेहरे को थपथपाते हुए मैंने बोला….ऊसने जैसे मेरी ओर धुंधली निगाहों से देखा वो मुस्कुराते हुए मेरे गले लग गयी…कुछ देर तक हम वैसे ही बैठे रहे
रोज़ : आहह आज तो ऊस कमीने ने मर ही दिया होता
देवश : हां हां हां और जाए अकेले जंग में कूदने के लिए…क्या जरूरत थी? मुझे तुमने एक फोन तक नहीं किया
रोआए : मुझे लगा तुम खुद बिज़ी हो…बेक उप तो थे ही तुम
देवश : हाँ और कब फोन करती बेक उप के लिए जब तुम ऊपर चली जाती तब…फिर मेरा क्या होता? सोचा है इन ज़ालिमो के अंदर रहें नाम की चीज़ नहीं खैर ये शॅक्स काला लंड तुम्हें कहाँ मिला था?
रोज़ : इसने मेरे रास्ते को घैर लिया…इसका टारगेट मैं ही थी हो ना हो इसकी मेरे से कोई दुश्मनी है (रोज़ अभी कशमकश में खोई सी थी इतने में कमिशनर और ब्ड के ऑफिसर उस्मान की बात दिमाग में घूम गयी और एक ही नाम सामने आया खलनायक)
फिर मैंने तफ़सील से रोज़ की ओर देखते हुए उसे बताया की खलनायक एक शातिर माफिया है और इसके गान्ड में दो खतरनाक गुंडे है जो इसके पलूए है और अब शायद इनके निशाने में तुम इसलिए हो क्योंकि तुमने खलनायक के ड्रग्स और उसके आदमियों को मर गिराया जावेद हुस्सियान उसी का आदमी था
रोज़ : ओह ई से (रोज़ फिर गहरी सोच में दुबई फिर ऊसने मुझे ऊन्हें एलिमिनेट करने का कोई रास्ता पूछा)
देवश : नहीं रोज़ मैं तुम्हें और खतरे में नहीं डालूँगा तुम ऊन ल्गो से दूर रहो
रोज़ : ऐसे कैसे कह सकते हो तुम? मैं एक सूपरहीरो हूँ और मैंने अक्चाई से लार्न के लिए वचन लिया
देवश : अचाई क्या जिंदगी से बढ़के है तुम्हारे? मेरी पुलिस फोर्स है ऊन लूग के पीछे अब तुम्हें अकेले मौत के मुँह में दावत देने नहीं चोदूंगा समझी तुम
मेरे परवाह और आंखों में अपने लिए डर को देख….रोज़ मुस्कराई ऊसने ऐसे कई ख़तरो से खेला था…पर आज ऊस्की कोई परवाह करने वाला सामने बैठा था….रोज़ ने हल्के से मुस्कराया लेकिन वो फीरसे सोफे पे लाइट गयी उसे थोड़ा दर्द था बदन में “तुम आराम करो मैं निकलता हूँ”……..देवश उठने ही वाला था की रोज़ ने उसके हाथ को क़ास्सके पकड़ लिया
रोज़ : मुझे छोढ़के आज कहीं मत जाओ ना (ऊस्की आंखों में अपने लिए जो प्यार उमड़ते देखा उससे साला मेरे पाओ जम गये)
बात भी ठीक ही थी उसे अकेला छोढ़ने का मेरा भी कोई मन नहीं था…पर दिव्या वो भी तो अकेले थी…लेकिन रोज़ पे जानलेवा हमला मतलब अब खलनायक उसे टारगेट कर रहा है कहीं ना कहींशायद मुझे भी करेगा…और ऐसी हालत में दूर रहना ठीक बात नहीं…मैंने फौरन घर पे फोन किया हाल जाना….दिव्या आज गुस्सा नहीं हुई उसे मुझपर यकीन नहीं था…मैंने फोन कट कर दिया….तभी मामुन का भी फोन आ गया…ऊनसे बताया की वो अपने यार के यहां तेहरा है आज घर नहीं आएगा वहां पार्टी है…मैंने कहा मैं कौन सा घर में हूँ जहाँ मर्जी वहां तहेर? आज वैसे भी मैं घर नहीं आने वाला बिज़ी हूँ काम पे…उससे भी बात करके फोन कट कर दिया
फिर अपने शर्ट और जीन्स को उतारके वैसे ही चड्डी पहने…रोज़ के बगल में आकर उसे लिपटके लाइट गया…रोज़ ने हम दोनों के ऊपर चादर ओढ़ ली और मेरे सीने पे मुँह लगाए मेरे पीठ पे हाथ फेरते हुए आराम करने लगी मैं बस उसके ज़ुल्फो के साथ खेलने लगा…आज सेक्स करने का मूंड़ नहीं था ऊससकी हालत ठीक नहीं थी मैं बस उसके साथ वैसे ही लिपटे आनंद ले रहा था और कब मेरी भी आँख भारी होने लगी मुझे पता नहीं
“य्ाआआआआआ”……धड़धस धड़धस्स करके चीज़ों को पटकते हुए काला लंड गुस्से से तमतमाए जा रहा था…..खलनायक बस चुपचाप अपने आदमियों के सामने खड़ा उसके गुस्से को घूर्र रहा था….काला लंड के सर पे खून सवार था…आज ऊसने सबसे बड़ी हार वॉ भी महीज़ एक पुलिस ऑफिसर से पाई थी और एक लड़की से…”ऊस कमीने के वजाहह से मेरा सारा मूंड़ खराब हो गया ऊसने मेरे बदन पे आग लगाइइ कमीने को चोदूंगा नहीं मैं मां चोद दूँगा ऊस्की”…….काला लंड गारज़ते हुए पास कहरे आदमी का गला दबोच देता है
निशानेबाज़ सिर्फ़ मुस्कुराता है…गला चोदते ही वो आदमी फर्श पे गिरके मर जाता है….खलनायक अपने आदमियों को ऊस्की लाश ठिकाने लगाकर कहकर पास आत है
खलनायक : जानता हूँ मैं तुम्हारे गुस्से को लेकिन फिहल तुम्हें आराम की सख्त जरूरत है…तुम्हारे ज़ख़्म्म्म
काला लंड : ये ज़ख़्म्म्म तब शांत होंगे जब मैं ऊस रंडी की बच्ची को अपने हाथों से नंगा करके टॉर्चर करूँगा मुझे वो इंस्पेक्टर चाहिईए बॅस (काला लंड के पागलपन और गुस्से को खलनायक जनता था..वो मुस्कुराकर हामी भरके बाहर आ गया साथ में निशानेबाज़ भी)
निशानेबाज़ : अब क्या करे? जो काम आपने इसे दिया था ये ऊसपे खड़ा नहीं उतरा
खलनायक : बिना मारें काला लंड शांत नहीं होगा देखा नहीं कैसे ऊस आदमी को मर डाला जबतक किसी का खून ना बहा दे तबतक शांत नहीं होता यह (काला लंड दीवार पे घुस्से मर रहा था जिसकियवाज़ बाहर सबको सहेमा दे रही थी)
खलनायक : बाकी के गुंडे कहाँ है? कौन था वो शॅक्स जिसने ऊस रोज़ को बचाया?
निशानेबाज़ : सर बाकी गुंडे या तो हॉस्पिटल में साँसें गीं रहे है या कुछ तो मर चुके फिलहाल तो पुलिस के आदमी पे हमला हुआ है ये बात आग की तरह फैल गयी होंगी हुम्हें कुछ दिन तक तो काला लंड का गुस्सा और खुद को अंडरग्राउंड रखान भी जरूरी है