desiaks
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उसके जाने के बाद शीतल ने राहत की सांस ली। वो सोच रही थी की कुछ लोग होते हैं जो वसीम की तरह होते हैं। नहीं तो सबके सब हरामी लार टपकते हए उसे देखते हैं। वसीम तो इंसान नहीं देवता था।
शीतल फिर घर में अकेली थी। वो विकास की बातों को सोच रही थी। और अभी मकसद और वसीम में तुलना करने के बाद उसे लगा की वो तो सच में वसीम की मशीबत और बढ़ा दी है? वसीम चाचा के लिए तो अब खुद को रोक पाना और मुश्किल हो गया होगा। उफफ्फ... में भी कितनी खराब औरत है। बेकार में विकास ने यहाँ घर लिया। किसी की शांत जिंदगी में तफान ले आई मैं। उसपर से ये कैसी मदद करने चली में की और बढ़ा ही दी उनकी मशीबत। सच बात तो ये है की बिना मुझे चोदे वसीम चाचा को राहत नहीं मिल सकती। ये बात मुझे पता थी और में इसके लिए तैयार भी थी। तभी तो गई थी वसीम चाचा की बाहों में नंगी होकर। काश की उस दिन उन्होंने मुझे चोद ही दिया होता तो फिर ये झमेला ही नहीं होता। उनसे चुदवाने के लिए ही ना मैं विकास को पटाई। कितनी चालबाजी करके मैं उसमें पमिशन ली थी वसीम चाचा से चुदवाने की। मुझे तो घिन आती है की पहले उसे चोदने दी और फिर नंगी उससे छिपककर सेंटिमेंटल करके चुदवाने की पमिशन ली। और इतना होने के बाद अब मैं उनसे चुदवाऊँगी भी नहीं, तो मुझसे खराब और बुरी कोई होगी क्या? मैं तो वसीम चाचा की जान को खतरे में डाल दी उफफ्फ..."
शीतल का ध्यान घड़ी की तरफ गया। एक बजने वाले थे। मतलब अब किसी भी बात वसीम चाचा आनं वाले होंगे। बो दौड़कर रूम में से अपनी पैंटी बा ली और छत पे अच्छे से फैलाकर टांग आई। फिर भागती हुई अपने घर में आई और दरवाजा बंद कर ली। शीतल हौंफ रही थी लेकिन वो खुश थी। मैं चुद नहीं सकती लेकिन पैंटी वा बाहर छोड़ने में तो कोई दिक्कत नहीं हैं। कम से कम वसीम चाचा उसमें वीर्य तो निकाल लेंगे। मुझे वहीं पैटी ब्रा पहनने में कोई तकलीफ नहीं है।
थोड़ी देर बाद वसीम के आने की आहट हुईं। शीतल की धड़कन तेज हो गई। वो सिर्फ वसीम के बारे में सोच रही थी की क्या सोच रहे होंगे मेरे बारे में? पता नहीं पैंटी ब्रा छुएंगे की नहीं? उन्होंने कहा तो था की नहीं छएंगे। नहीं वसीम चाचा, कम से कम उसमें वीर्य तो निकाल लीजिएगा। पलीज मेरी मजबूरी को समझिए। मैं एक शादीशुदा औरत हैं, जो अपने पति के अलावा किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकती। लेकिन फिर भी मैं आपकी इतनी मदद कर रही हैं और चुदवाने के अलावा आपकी हर तरह से मदद करेंगी?
वसीम ने अपने रूम में जाते वक्त शीतल की टंगी हुई पैटी बा को देखा तो मुश्कुरा उठा। सुबह पटी बा यहीं नहीं थी? शापद विकास से वो रूपाना चाहती होगी। शायद विकास को पता चल गया होगा या विकास शीतल पे शक करने लगा होगा? हम्म्म... रंडी की चूत तो पूरी गरम है। लेकिन ऐसे खाने में मजा नहीं आएगा। गंड़ मजबूर है पति के हाथों। कोई बात नहीं, दो-चार दिन और देखता हूँ, नहीं तो फिर दूसरा रास्ता अपनाना होगा। लेकिन चुदेगी तो तू जरूर मेरे से शीतल शर्मा।
दोपहर के 2:30 बज गये थे। अब तक शीतल बेचैन हो चुकी थी? अगर कहीं उन्होंने पैंटी ब्रा पे वीर्य नहीं गिराया होगा तो? नहीं नहीं, उन्हें इस तरह तड़पता हुआ छोड़ा नहीं जा सकता। वैसे भी चुदवाने के अलावा मैं बाकी सब कुछ तो कर ही सकती है। अपने पतिव्रता धर्म का इतना त्याग तो करना ही होगा मुझे। और बैंसे भी मेरे पास मेरे पति की पमिशन हैं। उन्हें थोड़े ही पता है की मैं चुदवाने का डिसाइड की हैं। उन्हें तो में बोलकर आई थी की मैं आपको तड़पता नहीं छोड़ सकती चाहे कुछ भी हो। मैं जितना कर सकती हैं उतना तो करेंगी हो। शीतल बेचैन हो गई और छत पे चल दी। उसकी पैंटी ब्रा उसी तरह टंगी हुई थी जैसे वो तंग कर गई थी। मतलब वसीम चाचा ने इसे छुआ भी नहीं। पागल है ये आदमी और मुखें भी पागल कर देगा।
शीतल गुस्से में पैंटी ब्रा को हाथ में ली और वसीम के दरवाजा पे नाक की. "वसीम चाचा... वसीम चाचा.."
अंदर वसीम मुश्कुरा उठा और हड़बड़ाने की आक्टिंग करता हुआ दरवाजा खोला. "क्या हुआ?"
शीतल ने पैटी ब्रा दिखाते हुए गुस्से में ही पूछा- "ये क्या है? आप समझते क्या है खुद का? हर चीज में जिद। आपने इसपर वीर्य क्यों नहीं निकाला?"
वसीम कुछ नहीं बोला। वो उसे ऐसे देख रहा था जैसे वहाँ शीतल नहीं कोई अजूबा हो। वो हँसना चाहता था, ठहाके लगाना चाहता था लेकिन वो सिर झुकाए खड़ा रहा- "नहीं शीतल, मैं अब ये सब कुछ नहीं करेगा। और प्लीज... मुझे मेरे हाल में छोड़ दो। मेरी तकदीर में खुदा ने तड़पना ही लिखा है.."
शीतल- "आप पागल हैं वसीम चाचा। मैं वो सब नहीं जानती। मुझे आपमें बहस भी नहीं करना। बस ये लीजिए मेरी पैटी ब्रा और इसपर बीर्य गिराइए बस..."
वसीम- "नहीं शीतल प्लीज... अब नहीं। जो गलती में कर चुका है उसे और मत बढ़ाओ। जाओ यहाँ से.."
शीतल आगे बढ़ी और वसीम की लुंगी का खोल दी। लुंगी नीचे गिर पड़ी। वसीम नीचे से नंगा हो गया। वसीम का लण्ड उसके पैरों के बीच शांत बेजान पड़ा था। शीतल उसे पकड़ ली और हाथ आगे-पीछे चलाने लगी। शीतल का स्पर्श पाते ही मुर्दै में जान आ गई और लण्ड टाइट होता चला गया।
वसीम- "आहह... नहीं शीतल आहह... ये क्या कर रही हो? आह्ह.. छोड़ो, नहीं ये गलत है..." कहकर वसीम में शीतल के हाथ को हल्के से पकड़कर हटाने का कोशिश किया। लेकिन ना तो वो हटाना चाहता था और ना ही हटा पाया।
शीतल फिर घर में अकेली थी। वो विकास की बातों को सोच रही थी। और अभी मकसद और वसीम में तुलना करने के बाद उसे लगा की वो तो सच में वसीम की मशीबत और बढ़ा दी है? वसीम चाचा के लिए तो अब खुद को रोक पाना और मुश्किल हो गया होगा। उफफ्फ... में भी कितनी खराब औरत है। बेकार में विकास ने यहाँ घर लिया। किसी की शांत जिंदगी में तफान ले आई मैं। उसपर से ये कैसी मदद करने चली में की और बढ़ा ही दी उनकी मशीबत। सच बात तो ये है की बिना मुझे चोदे वसीम चाचा को राहत नहीं मिल सकती। ये बात मुझे पता थी और में इसके लिए तैयार भी थी। तभी तो गई थी वसीम चाचा की बाहों में नंगी होकर। काश की उस दिन उन्होंने मुझे चोद ही दिया होता तो फिर ये झमेला ही नहीं होता। उनसे चुदवाने के लिए ही ना मैं विकास को पटाई। कितनी चालबाजी करके मैं उसमें पमिशन ली थी वसीम चाचा से चुदवाने की। मुझे तो घिन आती है की पहले उसे चोदने दी और फिर नंगी उससे छिपककर सेंटिमेंटल करके चुदवाने की पमिशन ली। और इतना होने के बाद अब मैं उनसे चुदवाऊँगी भी नहीं, तो मुझसे खराब और बुरी कोई होगी क्या? मैं तो वसीम चाचा की जान को खतरे में डाल दी उफफ्फ..."
शीतल का ध्यान घड़ी की तरफ गया। एक बजने वाले थे। मतलब अब किसी भी बात वसीम चाचा आनं वाले होंगे। बो दौड़कर रूम में से अपनी पैंटी बा ली और छत पे अच्छे से फैलाकर टांग आई। फिर भागती हुई अपने घर में आई और दरवाजा बंद कर ली। शीतल हौंफ रही थी लेकिन वो खुश थी। मैं चुद नहीं सकती लेकिन पैंटी वा बाहर छोड़ने में तो कोई दिक्कत नहीं हैं। कम से कम वसीम चाचा उसमें वीर्य तो निकाल लेंगे। मुझे वहीं पैटी ब्रा पहनने में कोई तकलीफ नहीं है।
थोड़ी देर बाद वसीम के आने की आहट हुईं। शीतल की धड़कन तेज हो गई। वो सिर्फ वसीम के बारे में सोच रही थी की क्या सोच रहे होंगे मेरे बारे में? पता नहीं पैंटी ब्रा छुएंगे की नहीं? उन्होंने कहा तो था की नहीं छएंगे। नहीं वसीम चाचा, कम से कम उसमें वीर्य तो निकाल लीजिएगा। पलीज मेरी मजबूरी को समझिए। मैं एक शादीशुदा औरत हैं, जो अपने पति के अलावा किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकती। लेकिन फिर भी मैं आपकी इतनी मदद कर रही हैं और चुदवाने के अलावा आपकी हर तरह से मदद करेंगी?
वसीम ने अपने रूम में जाते वक्त शीतल की टंगी हुई पैटी बा को देखा तो मुश्कुरा उठा। सुबह पटी बा यहीं नहीं थी? शापद विकास से वो रूपाना चाहती होगी। शायद विकास को पता चल गया होगा या विकास शीतल पे शक करने लगा होगा? हम्म्म... रंडी की चूत तो पूरी गरम है। लेकिन ऐसे खाने में मजा नहीं आएगा। गंड़ मजबूर है पति के हाथों। कोई बात नहीं, दो-चार दिन और देखता हूँ, नहीं तो फिर दूसरा रास्ता अपनाना होगा। लेकिन चुदेगी तो तू जरूर मेरे से शीतल शर्मा।
दोपहर के 2:30 बज गये थे। अब तक शीतल बेचैन हो चुकी थी? अगर कहीं उन्होंने पैंटी ब्रा पे वीर्य नहीं गिराया होगा तो? नहीं नहीं, उन्हें इस तरह तड़पता हुआ छोड़ा नहीं जा सकता। वैसे भी चुदवाने के अलावा मैं बाकी सब कुछ तो कर ही सकती है। अपने पतिव्रता धर्म का इतना त्याग तो करना ही होगा मुझे। और बैंसे भी मेरे पास मेरे पति की पमिशन हैं। उन्हें थोड़े ही पता है की मैं चुदवाने का डिसाइड की हैं। उन्हें तो में बोलकर आई थी की मैं आपको तड़पता नहीं छोड़ सकती चाहे कुछ भी हो। मैं जितना कर सकती हैं उतना तो करेंगी हो। शीतल बेचैन हो गई और छत पे चल दी। उसकी पैंटी ब्रा उसी तरह टंगी हुई थी जैसे वो तंग कर गई थी। मतलब वसीम चाचा ने इसे छुआ भी नहीं। पागल है ये आदमी और मुखें भी पागल कर देगा।
शीतल गुस्से में पैंटी ब्रा को हाथ में ली और वसीम के दरवाजा पे नाक की. "वसीम चाचा... वसीम चाचा.."
अंदर वसीम मुश्कुरा उठा और हड़बड़ाने की आक्टिंग करता हुआ दरवाजा खोला. "क्या हुआ?"
शीतल ने पैटी ब्रा दिखाते हुए गुस्से में ही पूछा- "ये क्या है? आप समझते क्या है खुद का? हर चीज में जिद। आपने इसपर वीर्य क्यों नहीं निकाला?"
वसीम कुछ नहीं बोला। वो उसे ऐसे देख रहा था जैसे वहाँ शीतल नहीं कोई अजूबा हो। वो हँसना चाहता था, ठहाके लगाना चाहता था लेकिन वो सिर झुकाए खड़ा रहा- "नहीं शीतल, मैं अब ये सब कुछ नहीं करेगा। और प्लीज... मुझे मेरे हाल में छोड़ दो। मेरी तकदीर में खुदा ने तड़पना ही लिखा है.."
शीतल- "आप पागल हैं वसीम चाचा। मैं वो सब नहीं जानती। मुझे आपमें बहस भी नहीं करना। बस ये लीजिए मेरी पैटी ब्रा और इसपर बीर्य गिराइए बस..."
वसीम- "नहीं शीतल प्लीज... अब नहीं। जो गलती में कर चुका है उसे और मत बढ़ाओ। जाओ यहाँ से.."
शीतल आगे बढ़ी और वसीम की लुंगी का खोल दी। लुंगी नीचे गिर पड़ी। वसीम नीचे से नंगा हो गया। वसीम का लण्ड उसके पैरों के बीच शांत बेजान पड़ा था। शीतल उसे पकड़ ली और हाथ आगे-पीछे चलाने लगी। शीतल का स्पर्श पाते ही मुर्दै में जान आ गई और लण्ड टाइट होता चला गया।
वसीम- "आहह... नहीं शीतल आहह... ये क्या कर रही हो? आह्ह.. छोड़ो, नहीं ये गलत है..." कहकर वसीम में शीतल के हाथ को हल्के से पकड़कर हटाने का कोशिश किया। लेकिन ना तो वो हटाना चाहता था और ना ही हटा पाया।