desiaks
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- Aug 28, 2015
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विकास अपनी मीटिंग खतम कर चुका था। उसके पास अब कोई काम नहीं था। लेकिन वो घर नहीं जाना चाहता
था। वा शीतल का बाल चुका था की वा कल आएगा। उसने एक हाटेल लिया और वहीं शिफ्ट हो गया। उसका बिल्कुल मन नहीं लग रहा था। शादी के बाद ये पहली रात थी उसकी शीतल के बिना। जब वो इस शहर में आया था तो एक सप्ताह बड़ी मुश्किल से काट थे उसने। तब मजबी थी। लौकन आज वो यही है और उसकी बीवी किसी और के साथ सुहागरात मना रही है। उसे बहुत बुरा लग रहा था। बहुत गुस्सा आ रहा था की क्यों उसने शीतल को पमिशन दिया।
विकास को शीतल पे भी गुस्सा आ रहा था की कौन औरत ऐसा करती है। वसीम पे भी गुस्सा आ रहा था की उसने मेरी भोली भाली बीवी को फैंसा लिया। लेकिन सबसे ज्यादा नाराज बो खुद से था। मुझे शीतल को शुरू में ही डांटना चाहिए था। मैंने उसे पता नहीं क्यों किसी और से चुदवाने की पमिशन दे दी। अभी बा बढ़ा मेरी हसीन बीबी के जवान जिस्म से खेल रहा होगा। उसका मन हुआ की अभी तुरंत घर चला जाए लेकिन अब काफी देर हो चुकी थी। वो दूसरे शहर में था और अब उसके पहुँचते-पहुँचतें आधी रात हो जाती। इससे तो अच्छा है की अब जो जो रहा है होने दूं।
शीतल किचेन में चली गई खाना लानें। उसके चलने में चड़ियों और पायल की छन-छन और खन-खज हो रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे एक अप्सरा कमरे में चहल-कदमी कर रही है। शीतल खाना डाइनिंग टेबल पे लगा दी। वसीम आकर चयर में बैठ गया और शीतल वसीम की गोद में जा बैठी। वो अपना धर्म निभा रही थी। मदद करने का धर्म और पत्नी होने का धर्म। आज की रात वो वसीम को किसी तरह की कमी नहीं होने देना चाहती थी। उसे वो सब कुछ मिलना चाहिए जो वो सोचता है चाहता है।
शीतल वसीम से पूछना चाहती थी- "कैसा लगा मुझे चोदकर? अब तो आप खुश हैं ना? अब तो आप संतुष्ट हैं ना? अब तो आप रिलैक्स रहेंगे ना?" लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हई। वो अभी भी एक संस्कारी औरत थी जो सेक्स के बारे में ज्यादा बात नहीं कर सकती थी।
शीतल खाना हाथ में लेकर वसीम के मुँह में देने लगी। वसीम शीतल के बदन को सहला रहा था और खा रहा था। फिर वो भी शीतल को खिलाने लगा। बारे प्यार से दोनों खाना खा और खिला रहे थे।
कितनी बार शीतल अपने मुँह में पड़ी का टुकड़ा लेकर लिप-किस करते हुए वसीम को दी। वसीम भी ऐसा ही कर रहा था। शीतल वसीम के लूँगी को साइड में कर दी थी और उसके लण्ड को भी सहला रही थी। शीतल खीर को अपने चहरा पे लगा ली और वसीम चूमते चाटते हुए उसे साफ करने लगा। शीतल का तौलिया उसके बदन से गिर पड़ा और वो फिर से नंगी हो गई। शीतल खीर को अपनी चूचियों में लगा ली और वसीम के सामने कर दी।
वसीम- “आहह... मेरी जान, तुमने मुझे खुश कर दिया उम्म्म... उमान..." बोलता हुआ शीतल की चूचियों में लगी खीर को खाने लगा।
फिर शीतल नीचे बैठकर लण्ड पंखीर लगाकर चूसने लगी। थोड़ी देर में वसीम ने उसे मना कर दिया। वो अभी लण्ड का पानी नहीं गिराना चाहता था।
शीतल सारा बर्तन समेटी और छन-छन करती हई नंगी ही किचेन में चली गई। दो मिनट में बर्तन धोकर वो बाथरूम में घुस गई। पशीने से ऐसे ही उसका बदन भीग चुका था और खीर लगने से चिपचिप कर रहा था। वो नंगी ही बाथरूम में गई और दो मिनट में ही जल्दी से नहाकर बदन पोकर बाहर आ गई। वो वसीम को अकेला नहीं छोड़ना चाह रही थी। वो नहीं चाहती थी की वसीम को लगे की शीतल उससे दूर है। वो उसके लिए हमेशा उपलब्ध रहना चाहती थी।
शीतल रूम में आ गई और अपना मेकप ठीक करने लगी। वो चेहरे में कीम लगा ली और काजल, बिंदी लगाने के बाद माँग में सिंदूर भरने लगी। उसे विकास का ख्याल आया। शीतल सच में आज विकास को भूल गई थी। सबह बात करने के बाद वो विकास से बस एक बार शाम में बात कर पाई थी, बो भी बस एक मिनट।
शीतल का वसीम से चुदवाने की हड़बड़ी थी और उसकी तैयारियों के बीच वो विकास से बात ही नहीं की। विकास ने दिन में भी दो बार काल किया था लेकिन पार्लर में होने की वजह से वो काल लें नहीं पाई थी। शाम का काल भी विकास ने ही किया था, जिसमें शीतल ने ठीक से बात नहीं की थी। शीतल अपराधी महसूस करने लगी। शादी के बाद वा विकास से कभी अलग नहीं रही थी। एक हफ्ते के लिए जब विकास यहाँ आए थे पहली बार
और रूम नहीं मिला था तब और फिर आज। बाकी हर रात दोनों ने एक साथ गजारी थी।
विकास भी उस एक हफ्ते में परेशान हो गया था और शीतल भी पिया बिना 'जल बिन मछली की तरह तड़प उठी थी। लेकिन आज तो उसे विकास का ख्याल भी नहीं आया था। वो साची की मैं तो यहाँ हैं, लेकिन वो तो अकेले होंगे। वो तो परेशान होंगे। वो साची की बात कर लेती हूँ विकास से और उसे बता देती हैं। लेकिन फिर उसे लगा की अभी बात करेंगी तो वसीम को पता चल जाएगा और हो सकता है की उसे बुरा लगे। नहीं, कहीं ऐसा ना हो की मेरी कोई छोटी सी बात से इतना सारा कुछ किया हुआ बेकर हो जाए। वो सोच रही थी लेकिन फिर उसे लगा की नहीं, आज वो वसीम की है। ये वसीम के नाम का सिदर है। और विकास भी तो यही चाहता
था की वो पूरी तरह वसीम को संतुष्ट करें।
शीतल अपना मेकप भी जल्दी परा कर ली थी। उसे नंगी बाहर जाने में शर्म आ रही थी, लेकिन वो कोई कपड़ा भी नहीं पहनना चाहती थी। हो सकता है की कपड़ा पहन लेने में वसीम कुछ आइ महसूस करें। वो तौलिया उठाकर लपेटने लगी फिर उसे खुद पे हँसी आ गई की अभी थोड़ी देर पहले भी वो तौलिया पहनी थी और ओड़ी देर भी उसके बदन पे रह नहीं पाया था। और वैसे भी अभी तुरंत तो चुदवाकर उठी हैं और इस तौलिया से मैं क्या टक पाऊँगी भला।
फिर शीतल नंगी ही बाहर आ गई और वसीम के पास पहुँची। वसीम तब तक सोफे पे बैठकर आज की वीडियो कार्डिंग देख रहा था, और अपने लण्ड को अपने हाथ से हल्का-हल्का सहला रहा था। शीतल भी वसीम के पीछे खड़ी होकर देखने लगी। बहुत अच्छे से कार्डिंग की थी वसीम ने।
शीतल अपना नंगापन देखकर शर्माने लगी। वो आह्ह.. अहह... करती हई अपना बदन ऐंठ रही थी और चुदवाने के लिए पागल हो रही थी। उसे बहुत शर्म आ रही थी की वो कैसी थी और क्या हो गई? उसने कभी सपने में भी खुद को इस तरह नहीं देखा था और यहाँ बो पोर्न फिल्मो की इंग्लीश हीरोइनों को भी मात दे रही थी।
शीतल का शमांना देखकर वसीम हँस दिया और कैमरा बंद कर दिया। शीतल वसीम की गोद में बैठने आ रही थी, ताकी वसीम से पूछ सके की अब वो कैसा महसूस कर रहा है? तब तक वसीम खड़ा हो गया।
शीतल चकित हो गई- "क्या हुआ?"
वसीम- "कुछ नहीं। थोड़ा छत पे टहल कर आता है.."
शीतल- "में भी चलती हैं आपके साथ में..."
वसीम. "चलो, ऐसे ही चलोगी..."
शीतल कुछ पल रुककर सोचने लगी।
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तब तक वसीम खुद ही बोला- "चलो ऐसे ही, वैसे भी अंधेरी रात है..."
शीतल बोली तो कुछ नहीं लेकिन वो सोच रही थी की क्या करे? वो समझ नहीं पा रही थी की क्या रिएक्ट करें? अंधेरी रात तो हैं लेकिन फिर भी किसी ने देख लिया तो? ऐसे नंगी जाना क्या ठीक है? लेकिन वो वसीम को मना भी नहीं करना चाहती थी।
वसीम शीतल का सीरियसली साचता देखकर हँस दिया और बोला- "साड़ी पहन लो..."
शीतल इतना सुनते ही रिलैक्स हो गई। शीतल दौड़कर बेडरूम में गई और जल्दी से एक साड़ी पहनने लगी। वो पेटीकोट और ब्लाउज़ टूट रही थी, लेकिन फिर उसके दिमाग में ख्याल आया की- "अंधेरी रात तो है, साड़ी से तो बद्धन ढका ही रहेगा और अगर कोई होगा ता नीचे आ जाऊँगी...
शीतल ने सिर्फ साड़ी पहन ली और परे जिएम को उसमें छिपाकर बाहर आ गई। वसीम शीतल को देखता रह गया। यही फर्क था जंगे जिस्म में और अधनंगे जिस्म में। नंगी शीतल ने वसीम के लण्ड में हलचल नहीं मचाई थी, लेकिन साड़ी में लिपटी शीतल को देखकर वसीम का लण्ड टाइट होने लगा। पूरे बदन पे सिर्फ साड़ी थी और लाइट में साड़ी के अंदर से शीतल का गोरा बदन चमक रहा था। दोनों छत पे आ गये। पहले वसीम और उसके पीछे इरती छुपति झौंकती शीतल।
छत पे पूरा अंधेरा था। किसी की आहट ना पाकर शीतल भी छत पे आ गई। वैसे भी स्टोररूम के सामने में वो किसी को भी नहीं दिखती तो शीतल वहीं खड़ी हो गई। वसीम धीरे-धीरे छत पे टहलने लगा तो शीतल भी उसके साथ टहलने लगी। भले ही शीतल किसी को दिख नहीं रही हो लेकिन उसके चलने से छन-छन की आवाज तो हो ही नहीं थी। अगर किसी को भी पं अंदाजा होता की शीतल जैसी हसीना सिर्फ साड़ी में छत पें टहल रही है और ये उसकी चड़ी और पायल की आवाज है तो उसका लण्ड उसी वक़्त टाइट हो जाना था। ये वही छत थी जहाँ वसीम शीतल की पटी ब्रा में अपना वीर्य गिराता था और आज बहुत सारी बाधाओं के बाद शीतल बिना पेंटी ब्रा के सिर्फ साड़ी में उसके साथ टहल रही थी और अभी थोड़ी देर पहले वसीम उसकी चूत में अपना वीर्य भरा था।
था। वा शीतल का बाल चुका था की वा कल आएगा। उसने एक हाटेल लिया और वहीं शिफ्ट हो गया। उसका बिल्कुल मन नहीं लग रहा था। शादी के बाद ये पहली रात थी उसकी शीतल के बिना। जब वो इस शहर में आया था तो एक सप्ताह बड़ी मुश्किल से काट थे उसने। तब मजबी थी। लौकन आज वो यही है और उसकी बीवी किसी और के साथ सुहागरात मना रही है। उसे बहुत बुरा लग रहा था। बहुत गुस्सा आ रहा था की क्यों उसने शीतल को पमिशन दिया।
विकास को शीतल पे भी गुस्सा आ रहा था की कौन औरत ऐसा करती है। वसीम पे भी गुस्सा आ रहा था की उसने मेरी भोली भाली बीवी को फैंसा लिया। लेकिन सबसे ज्यादा नाराज बो खुद से था। मुझे शीतल को शुरू में ही डांटना चाहिए था। मैंने उसे पता नहीं क्यों किसी और से चुदवाने की पमिशन दे दी। अभी बा बढ़ा मेरी हसीन बीबी के जवान जिस्म से खेल रहा होगा। उसका मन हुआ की अभी तुरंत घर चला जाए लेकिन अब काफी देर हो चुकी थी। वो दूसरे शहर में था और अब उसके पहुँचते-पहुँचतें आधी रात हो जाती। इससे तो अच्छा है की अब जो जो रहा है होने दूं।
शीतल किचेन में चली गई खाना लानें। उसके चलने में चड़ियों और पायल की छन-छन और खन-खज हो रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे एक अप्सरा कमरे में चहल-कदमी कर रही है। शीतल खाना डाइनिंग टेबल पे लगा दी। वसीम आकर चयर में बैठ गया और शीतल वसीम की गोद में जा बैठी। वो अपना धर्म निभा रही थी। मदद करने का धर्म और पत्नी होने का धर्म। आज की रात वो वसीम को किसी तरह की कमी नहीं होने देना चाहती थी। उसे वो सब कुछ मिलना चाहिए जो वो सोचता है चाहता है।
शीतल वसीम से पूछना चाहती थी- "कैसा लगा मुझे चोदकर? अब तो आप खुश हैं ना? अब तो आप संतुष्ट हैं ना? अब तो आप रिलैक्स रहेंगे ना?" लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हई। वो अभी भी एक संस्कारी औरत थी जो सेक्स के बारे में ज्यादा बात नहीं कर सकती थी।
शीतल खाना हाथ में लेकर वसीम के मुँह में देने लगी। वसीम शीतल के बदन को सहला रहा था और खा रहा था। फिर वो भी शीतल को खिलाने लगा। बारे प्यार से दोनों खाना खा और खिला रहे थे।
कितनी बार शीतल अपने मुँह में पड़ी का टुकड़ा लेकर लिप-किस करते हुए वसीम को दी। वसीम भी ऐसा ही कर रहा था। शीतल वसीम के लूँगी को साइड में कर दी थी और उसके लण्ड को भी सहला रही थी। शीतल खीर को अपने चहरा पे लगा ली और वसीम चूमते चाटते हुए उसे साफ करने लगा। शीतल का तौलिया उसके बदन से गिर पड़ा और वो फिर से नंगी हो गई। शीतल खीर को अपनी चूचियों में लगा ली और वसीम के सामने कर दी।
वसीम- “आहह... मेरी जान, तुमने मुझे खुश कर दिया उम्म्म... उमान..." बोलता हुआ शीतल की चूचियों में लगी खीर को खाने लगा।
फिर शीतल नीचे बैठकर लण्ड पंखीर लगाकर चूसने लगी। थोड़ी देर में वसीम ने उसे मना कर दिया। वो अभी लण्ड का पानी नहीं गिराना चाहता था।
शीतल सारा बर्तन समेटी और छन-छन करती हई नंगी ही किचेन में चली गई। दो मिनट में बर्तन धोकर वो बाथरूम में घुस गई। पशीने से ऐसे ही उसका बदन भीग चुका था और खीर लगने से चिपचिप कर रहा था। वो नंगी ही बाथरूम में गई और दो मिनट में ही जल्दी से नहाकर बदन पोकर बाहर आ गई। वो वसीम को अकेला नहीं छोड़ना चाह रही थी। वो नहीं चाहती थी की वसीम को लगे की शीतल उससे दूर है। वो उसके लिए हमेशा उपलब्ध रहना चाहती थी।
शीतल रूम में आ गई और अपना मेकप ठीक करने लगी। वो चेहरे में कीम लगा ली और काजल, बिंदी लगाने के बाद माँग में सिंदूर भरने लगी। उसे विकास का ख्याल आया। शीतल सच में आज विकास को भूल गई थी। सबह बात करने के बाद वो विकास से बस एक बार शाम में बात कर पाई थी, बो भी बस एक मिनट।
शीतल का वसीम से चुदवाने की हड़बड़ी थी और उसकी तैयारियों के बीच वो विकास से बात ही नहीं की। विकास ने दिन में भी दो बार काल किया था लेकिन पार्लर में होने की वजह से वो काल लें नहीं पाई थी। शाम का काल भी विकास ने ही किया था, जिसमें शीतल ने ठीक से बात नहीं की थी। शीतल अपराधी महसूस करने लगी। शादी के बाद वा विकास से कभी अलग नहीं रही थी। एक हफ्ते के लिए जब विकास यहाँ आए थे पहली बार
और रूम नहीं मिला था तब और फिर आज। बाकी हर रात दोनों ने एक साथ गजारी थी।
विकास भी उस एक हफ्ते में परेशान हो गया था और शीतल भी पिया बिना 'जल बिन मछली की तरह तड़प उठी थी। लेकिन आज तो उसे विकास का ख्याल भी नहीं आया था। वो साची की मैं तो यहाँ हैं, लेकिन वो तो अकेले होंगे। वो तो परेशान होंगे। वो साची की बात कर लेती हूँ विकास से और उसे बता देती हैं। लेकिन फिर उसे लगा की अभी बात करेंगी तो वसीम को पता चल जाएगा और हो सकता है की उसे बुरा लगे। नहीं, कहीं ऐसा ना हो की मेरी कोई छोटी सी बात से इतना सारा कुछ किया हुआ बेकर हो जाए। वो सोच रही थी लेकिन फिर उसे लगा की नहीं, आज वो वसीम की है। ये वसीम के नाम का सिदर है। और विकास भी तो यही चाहता
था की वो पूरी तरह वसीम को संतुष्ट करें।
शीतल अपना मेकप भी जल्दी परा कर ली थी। उसे नंगी बाहर जाने में शर्म आ रही थी, लेकिन वो कोई कपड़ा भी नहीं पहनना चाहती थी। हो सकता है की कपड़ा पहन लेने में वसीम कुछ आइ महसूस करें। वो तौलिया उठाकर लपेटने लगी फिर उसे खुद पे हँसी आ गई की अभी थोड़ी देर पहले भी वो तौलिया पहनी थी और ओड़ी देर भी उसके बदन पे रह नहीं पाया था। और वैसे भी अभी तुरंत तो चुदवाकर उठी हैं और इस तौलिया से मैं क्या टक पाऊँगी भला।
फिर शीतल नंगी ही बाहर आ गई और वसीम के पास पहुँची। वसीम तब तक सोफे पे बैठकर आज की वीडियो कार्डिंग देख रहा था, और अपने लण्ड को अपने हाथ से हल्का-हल्का सहला रहा था। शीतल भी वसीम के पीछे खड़ी होकर देखने लगी। बहुत अच्छे से कार्डिंग की थी वसीम ने।
शीतल अपना नंगापन देखकर शर्माने लगी। वो आह्ह.. अहह... करती हई अपना बदन ऐंठ रही थी और चुदवाने के लिए पागल हो रही थी। उसे बहुत शर्म आ रही थी की वो कैसी थी और क्या हो गई? उसने कभी सपने में भी खुद को इस तरह नहीं देखा था और यहाँ बो पोर्न फिल्मो की इंग्लीश हीरोइनों को भी मात दे रही थी।
शीतल का शमांना देखकर वसीम हँस दिया और कैमरा बंद कर दिया। शीतल वसीम की गोद में बैठने आ रही थी, ताकी वसीम से पूछ सके की अब वो कैसा महसूस कर रहा है? तब तक वसीम खड़ा हो गया।
शीतल चकित हो गई- "क्या हुआ?"
वसीम- "कुछ नहीं। थोड़ा छत पे टहल कर आता है.."
शीतल- "में भी चलती हैं आपके साथ में..."
वसीम. "चलो, ऐसे ही चलोगी..."
शीतल कुछ पल रुककर सोचने लगी।
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तब तक वसीम खुद ही बोला- "चलो ऐसे ही, वैसे भी अंधेरी रात है..."
शीतल बोली तो कुछ नहीं लेकिन वो सोच रही थी की क्या करे? वो समझ नहीं पा रही थी की क्या रिएक्ट करें? अंधेरी रात तो हैं लेकिन फिर भी किसी ने देख लिया तो? ऐसे नंगी जाना क्या ठीक है? लेकिन वो वसीम को मना भी नहीं करना चाहती थी।
वसीम शीतल का सीरियसली साचता देखकर हँस दिया और बोला- "साड़ी पहन लो..."
शीतल इतना सुनते ही रिलैक्स हो गई। शीतल दौड़कर बेडरूम में गई और जल्दी से एक साड़ी पहनने लगी। वो पेटीकोट और ब्लाउज़ टूट रही थी, लेकिन फिर उसके दिमाग में ख्याल आया की- "अंधेरी रात तो है, साड़ी से तो बद्धन ढका ही रहेगा और अगर कोई होगा ता नीचे आ जाऊँगी...
शीतल ने सिर्फ साड़ी पहन ली और परे जिएम को उसमें छिपाकर बाहर आ गई। वसीम शीतल को देखता रह गया। यही फर्क था जंगे जिस्म में और अधनंगे जिस्म में। नंगी शीतल ने वसीम के लण्ड में हलचल नहीं मचाई थी, लेकिन साड़ी में लिपटी शीतल को देखकर वसीम का लण्ड टाइट होने लगा। पूरे बदन पे सिर्फ साड़ी थी और लाइट में साड़ी के अंदर से शीतल का गोरा बदन चमक रहा था। दोनों छत पे आ गये। पहले वसीम और उसके पीछे इरती छुपति झौंकती शीतल।
छत पे पूरा अंधेरा था। किसी की आहट ना पाकर शीतल भी छत पे आ गई। वैसे भी स्टोररूम के सामने में वो किसी को भी नहीं दिखती तो शीतल वहीं खड़ी हो गई। वसीम धीरे-धीरे छत पे टहलने लगा तो शीतल भी उसके साथ टहलने लगी। भले ही शीतल किसी को दिख नहीं रही हो लेकिन उसके चलने से छन-छन की आवाज तो हो ही नहीं थी। अगर किसी को भी पं अंदाजा होता की शीतल जैसी हसीना सिर्फ साड़ी में छत पें टहल रही है और ये उसकी चड़ी और पायल की आवाज है तो उसका लण्ड उसी वक़्त टाइट हो जाना था। ये वही छत थी जहाँ वसीम शीतल की पटी ब्रा में अपना वीर्य गिराता था और आज बहुत सारी बाधाओं के बाद शीतल बिना पेंटी ब्रा के सिर्फ साड़ी में उसके साथ टहल रही थी और अभी थोड़ी देर पहले वसीम उसकी चूत में अपना वीर्य भरा था।