desiaks
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खांने के टेबल पर कविता, उसकी बहू और अजय बेथ पड़ते हैं l
अजय : माँ! खुशबु तो बढ़िया आया हैं! क्या बनाया ?
कविता : अरे पगले! पालक पनीर है और क्या! तू भी न!
मनीषा कुछ मनसूबे बनाती हुई अपने में ही खोयी थी कि तभी उसकी लबों पर एक शैतानी मुस्कान आयी l
मनीषा : अरे हाँ! यह मम्मीजी ने ख़ास आप के लिए बनाया हैं!
अजय : ममममम! बहुत बढ़िया हुआ हैं! उफ़! माँ तुस्सी छा गए!
मनीषा : अरे अरे ऐसे थोड़ी न शुक्रियादा करते हैं! ज़रा प्यार से कीजिये न!
अजय और कविता दोनों मनीषा की तरफ देखने लगते हैं l दोनों के चेहरे पे अस्चर्य का भाव था मनीषा मैं ही मैं उत्साहित हो उठी l
अजय : मान्य! मैं समझा नहीं
मनीषा : तुम्हारी माँ ने बड़े प्यार और अदब के साथ तुम्हारे लिए कुछ बनाया! मैं तो इतना ही कहूँगी के कम से कम उन ममता से भरी और प्यार भरे हाथों को ही थोड़ा सा (थोड़ी रुक के) चुम लो!
यह कथन से कविता और अजय दोनों हक्काबक्का रह जाते हैं l
कविता : (थोड़ी शर्माके) ारे! इसकी क्या ज़रूरत है बहु! मेरा अपना लाल है! जब चाहे कुछ भी खिला सकती हूँ!
मनीषा : (अजय के तरफ) देखिये! अगर आपने यह नहीं किया, तो मैं समझूंगी के अपने माँ के प्रति आपका बस कर्त्तव्य है, कोई प्यार नहीं! (मुँह बनाती हुई)
अजय भी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और माँ के तरफ बढ़ने लगा, न जाने क्यों कविता थोड़ी तेज़ सांसें लेने लगी l परिस्थिति तो स्वाभाविक था, न जाने क्यों फिर यह सब उसे अनुभव हो रही थी। आख़िरकार उसके हथेलियों को अजय प्यार से थाम लेते हैं l
अजय : माँ! सच में इन हाथों में बहुत जादू हैं (एक हाथ को चूमते हैं), आपका प्यार इन हाथों में झलकता हैं (दूसरे को भी चूम लेते हैं)
कविता ममता से ज़्यादा कामुकता महसूस कर रही थी, उससे रहा नहीं गयी l
कविता : बीटा! और बोल! बोलता जा। खोल्दे अपने दिल की भण्डार आज! बोल और क्या क्या सोचते हैं मेरे बारे में!!
अजय : (हाथों को बारी बारी चूमता हुआ) माँ! इन हाथों में स्वर्ग का प्रतिभिम्ब नज़र आता हैं मुझे!
कविता : (ममता और वासना का मिश्रण भरे स्वर में) अजेय!! मेरा बेटा! मेरा लाडला!
अजय : माँ!
कविता ( मनन में) अजय! हाथों को चोर! मुझे एक बार गले लगा ले! उफ्फ्फ्फ़ अज्जु! कुछ कर मुझे!
अजय (मनन में) आज माँ को कुछ ज़्यादा ही नज़दीक पा रहा हूँ मैं! उफ्फ्फ यह साले राहुल के वजह से! खुद आपने माँ के पीछे पड़ा हुआ हैं और मेरा भी दिमाग ख़राब कर दिया!
कविता : बीटा! क्या सोचने लगा?
अजय झट से उठ खड़ा हो जाता हैं और कमरे की और चल परता हैं। जाते जाते मनीषा ने उसके ट्रॉउज़र में उभार का जायज़ा कर ली थी। वोह भी मटकती हुई अपने पति के पीछे पीछे चल पड़ती हैं!
रात को बिस्तर के स्प्रिंग फिर हिके मिया बीवी के कमरे में। ज़ोरों की चुदाई के बाद अजय और मनीषा फिर झाड़ गए और सो गए। राहुल के बातें अभी भी गूंज रहा था अजय के मन्न में l
है, दूसरे और कविता अपने हाथों को बार बार देखके बेटे के मीठे चुम्बनों को दिल की तिजोरी में समाये एक प्यारी सी नींद लेलेती हैं l
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अजय : माँ! खुशबु तो बढ़िया आया हैं! क्या बनाया ?
कविता : अरे पगले! पालक पनीर है और क्या! तू भी न!
मनीषा कुछ मनसूबे बनाती हुई अपने में ही खोयी थी कि तभी उसकी लबों पर एक शैतानी मुस्कान आयी l
मनीषा : अरे हाँ! यह मम्मीजी ने ख़ास आप के लिए बनाया हैं!
अजय : ममममम! बहुत बढ़िया हुआ हैं! उफ़! माँ तुस्सी छा गए!
मनीषा : अरे अरे ऐसे थोड़ी न शुक्रियादा करते हैं! ज़रा प्यार से कीजिये न!
अजय और कविता दोनों मनीषा की तरफ देखने लगते हैं l दोनों के चेहरे पे अस्चर्य का भाव था मनीषा मैं ही मैं उत्साहित हो उठी l
अजय : मान्य! मैं समझा नहीं
मनीषा : तुम्हारी माँ ने बड़े प्यार और अदब के साथ तुम्हारे लिए कुछ बनाया! मैं तो इतना ही कहूँगी के कम से कम उन ममता से भरी और प्यार भरे हाथों को ही थोड़ा सा (थोड़ी रुक के) चुम लो!
यह कथन से कविता और अजय दोनों हक्काबक्का रह जाते हैं l
कविता : (थोड़ी शर्माके) ारे! इसकी क्या ज़रूरत है बहु! मेरा अपना लाल है! जब चाहे कुछ भी खिला सकती हूँ!
मनीषा : (अजय के तरफ) देखिये! अगर आपने यह नहीं किया, तो मैं समझूंगी के अपने माँ के प्रति आपका बस कर्त्तव्य है, कोई प्यार नहीं! (मुँह बनाती हुई)
अजय भी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और माँ के तरफ बढ़ने लगा, न जाने क्यों कविता थोड़ी तेज़ सांसें लेने लगी l परिस्थिति तो स्वाभाविक था, न जाने क्यों फिर यह सब उसे अनुभव हो रही थी। आख़िरकार उसके हथेलियों को अजय प्यार से थाम लेते हैं l
अजय : माँ! सच में इन हाथों में बहुत जादू हैं (एक हाथ को चूमते हैं), आपका प्यार इन हाथों में झलकता हैं (दूसरे को भी चूम लेते हैं)
कविता ममता से ज़्यादा कामुकता महसूस कर रही थी, उससे रहा नहीं गयी l
कविता : बीटा! और बोल! बोलता जा। खोल्दे अपने दिल की भण्डार आज! बोल और क्या क्या सोचते हैं मेरे बारे में!!
अजय : (हाथों को बारी बारी चूमता हुआ) माँ! इन हाथों में स्वर्ग का प्रतिभिम्ब नज़र आता हैं मुझे!
कविता : (ममता और वासना का मिश्रण भरे स्वर में) अजेय!! मेरा बेटा! मेरा लाडला!
अजय : माँ!
कविता ( मनन में) अजय! हाथों को चोर! मुझे एक बार गले लगा ले! उफ्फ्फ्फ़ अज्जु! कुछ कर मुझे!
अजय (मनन में) आज माँ को कुछ ज़्यादा ही नज़दीक पा रहा हूँ मैं! उफ्फ्फ यह साले राहुल के वजह से! खुद आपने माँ के पीछे पड़ा हुआ हैं और मेरा भी दिमाग ख़राब कर दिया!
कविता : बीटा! क्या सोचने लगा?
अजय झट से उठ खड़ा हो जाता हैं और कमरे की और चल परता हैं। जाते जाते मनीषा ने उसके ट्रॉउज़र में उभार का जायज़ा कर ली थी। वोह भी मटकती हुई अपने पति के पीछे पीछे चल पड़ती हैं!
रात को बिस्तर के स्प्रिंग फिर हिके मिया बीवी के कमरे में। ज़ोरों की चुदाई के बाद अजय और मनीषा फिर झाड़ गए और सो गए। राहुल के बातें अभी भी गूंज रहा था अजय के मन्न में l
है, दूसरे और कविता अपने हाथों को बार बार देखके बेटे के मीठे चुम्बनों को दिल की तिजोरी में समाये एक प्यारी सी नींद लेलेती हैं l
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