Antervasna मुझे लगी लगन लंड की - Page 5 - SexBaba
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Antervasna मुझे लगी लगन लंड की

मैंने सूरज से आगे की कहानी बताने को कहा तो,

सूरज बोला- भाभी, उसके बाद अब हम दोनों रोज ही एक दूसरे के समान से खेलते और पढ़ाई कर रहे थे।

फिर रविवार का दिन आया और रागिनी का फोन आया और बोली कि उसका बर्थडे है और मैं तुरन्त ही उसके घर पहुंचूँ।

मेरे खुरापाती दिमाग में ख्याल आया कि रागिनी की चूत फड़क रही है, मैं तुरन्त ही तैयार होकर रागिनी के घर की ओर चल दिया। घर का दरवाजा रागिनी ने ही खोला, रागिनी बहुत ही सेक्सी नजर आ रही थी, जिससे मुझे और मेरी सोच को बल मिला।

उसने बहुत ही छोटी टॉप और स्कर्ट पहना हुआ था, अगर वो सोफे पर भी बैठ जाये तो उसके सामने बैठे हुए बन्दे को उसका पूरा योनि प्रदेश मुफ्त में ही देखने को मिलेगी। रागिनी ने बहुत ही ज्यादा मेक अप किया हुआ था। मैं अन्दर पहुँचा, देखा कि अन्दर मेरे और रागिनी के अतरिक्त कोई नहीं था,

मैंने रागिनी से कहा- रागिनी अगर तेरे को गांड मरवानी थी तो सीधे बोल देती कि आज घर में कोई नहीं है, तो मैं थोड़ा जल्दी आ जाता।

मेरी बात को इगनोर करते हुये बोली- बता गांडू, मैं कैसे लग रही हूँ?

सूरज - 'इतनी सेक्सी कि मेरा मन कर रहा है कि अभी ही तुझे चोद दूं!'

रागिनी - 'इसीलिये तो मेरे गांडू, तुझे बुलाया है कि आज तेरे साथ मैं अपना बर्थडे मना लूँ!'

कहकर रागिनी मुझे अपने कमरे में ले गई और मुझे बेड पर बैठाते हुए वो अपनी पैन्टी को इस प्रकार उतारने लगी कि मुझे उसके स्कर्ट के अन्दर कुछ भी न दिखे। पैन्टी उतारकर मुझे देती हुई बोली- हमारे पास पूरे दो घंटे है, मुझे आज खूब मजा दो। आज तुम मुझे मसल दो। अच्छे से मेरा बर्थडे मना दो।

जैसे ही उसकी पैन्टी मेरे हाथ में आई तो मुझे गीली लगी। इसका मतलब आज वो सिर्फ मेरे बारे में ही सोच रही थी और जैसे ही उसे पता चला कि आज वो घर में दो-तीन घंट के लिये अकेली रहेगी तो वो मेरे बारे में और सोच सोच कर उत्तेजित हो गई और पैन्टी ही अपने रस को निकाल दिया। मैंने उसकी पैन्टी सूंघी और उसको चाटने लगा। पैन्टी चाटने के बाद मैं घुटने के बल उसके पास बैठ गया और उसके स्कर्ट को ऊपर उठाकर उसकी चूत को भी सूंघने लगा। उसकी चूत की महक बहुत ही अच्छी लग रही थी हालांकि उसकी चूत में झांटें काफी बड़ी हो गई थी। मैंने अपने पूरे कपड़े उतार दिए और अपने लंड को रागिनी को दिखाते हुए उसे चूसने के लिये कहा। रागिनी बिना कोई प्रतिरोध किये मेरे लंड को चूसने बैठ गई। पहली बार रागिनी ने लंड को अपने मुंह में लिया था तो उसके दांत मेरे लंड में गड़ रहे थे लेकिन धीरे-धीरे वो मेरे लंड को सही तरीके से चूसने लगी। अब मुझे लगने लगा कि मेरा माल निकलने वाला है तो मैंने अपने लंड को रागिनी के मुंह से निकाला और उसकी पैन्टी को लंड पर लगाते हुए मूठ मारने लगा।

आज किसी बात का डर नहीं था सो वो भी बड़े मजे से मुझे मुठ मारते हुए देख रही थी।

दो चार हाथ चलाने के बाद मेरा पूरा वीर्य उसकी पैन्टी में आ गया। रागिनी पैन्टी लेकर बड़े ही प्यार से मेरे माल को चाटने लगी। पैन्टी को चाटने के बाद रागिनी ने मेरे लंड में बचे हुए माल को साफ किया और फिर मुझसे चिपकते हुए

बोली- गांडू, मैंने तेरे को पूरा नंगा देख लिया है अब तू मेरे कपड़े उतार कर मुझे पूरा नंगा देख!

मैंने तुरन्त ही उसके कपड़े उसके बदन से अलग किए। उसके नंगे जिस्म को देखकर पूरा विश्वास हो गया कि रागिनी अभी कोरी है और आज उसका कोरापन मैं ही खत्म करूंगा।

मैं आकांक्षा अपने देवर सूरज की कहानी में इतना डूब चुकी थी कि उसने मुझे झकझोरा और पूछने लगा- कहाँ खो गई भाभी?

मैं बोली- काश, मैं भी पैन्टी पहनती तो तुमसे अपनी पैन्टी चटवाती।

सूरज हंसने लगा और बोला- वो तो ठीक है, लेकिन आप कहां खो गई थी?

मैं - 'तुम जो कहानी सुना रहे हो, उसमें मैं अपने आपको ही रागिनी समझने लगी।'

सूरज बोला- तो यह बात है और मैं सोच रहा था कि आप पूछोगी कि तुम कैसे जाने कि रागिनी कोरी होगी।

मैंने भी उसकी हां में हां मिलाते हुए कहा- तो बताओ कि तुमने कैसे जाना कि रागिनी कोरी होगी।

सूरज - 'क्योंकि उसके चूचे सख्त थे और चूचुक भी काफी छोटे थे मतलब वो अभी चूसे हुए नहीं थे। और जब मैंने उसकी चूत पर हाथ फेरा तो उसके मुलायम झांटों के बीच उसकी बुर भी बहुत मुलायम थी। मैंने उसकी चूत सूंघने के बाद उसे घुमाया और उसके गांड के फांकों को फैलाया तो उसकी गांड का छेद क्या लाल लाल था। मेरे होंठ अपने आप ही उसकी गांड को चूमने लगे और रागिनी गहरी गहरी सांसें लेने लगी। गांड चूमने के बाद मैं खड़ा हो गया और रागिनी को अपनी बांहो में भर लिया।

क्या गर्म जिस्म था उसका। फिर मैंने उसे बिस्तर पर लेटाया और उसकी अमरूद जैसी चूची को मुंह में भर लेता और चूसता खास कर उसकी निप्पल को... और उसके जिस्म के हर हिस्से से मैं छेड़खानी कर रहा था। कभी मैं उसके जिस्म से छेड़खानी करता और कभी वो मेरी ही नकल मेरे जिस्म में उतारती। इस तरह बारी-बारी से हम दोनों एक दूसरे के जिस्म से छेड़खानी कर रहे थे कि मेरी नजर रागिनी के हाथों की तरफ गई तो देखा कि रागिनी अपनी चूत को तेज-तेज खुजली कर रही थी। मैंने उसके हाथ को हटाया और उसकी जांघों के बीच आकर बैठ गया और अपने लंड से उसकी चूत को सहलाने लगा। क्या गर्म थी साली की चूत... ऐसा लग रहा था कि कोई दहकती हुई भट्टी हो। जब मैं अपने लंड से उसकी चूत को सहलाने लगा तो,

रागिनी बोल उठी- बस सूरज, ऐसे ही सहलाते रहो, बड़ा अच्छा लग रहा है।

मैंने उसके कहेनुसार अपने लंड को उसकी बुर में सहलाना चालू रखा और जब मुझे विश्वास हो गया कि रागिनी खूब मस्त हो गई है तो मैंने एक झटके में अपने लंड को उसकी चूत में पेल दिया। अचानक हुए इस हमले से वो बिलबिला गई और चिल्लाने लगी। यह तो अच्छा था कि उस वक्त घर में कोई नहीं था। मैंने तुरन्त ही उसके मुंह में हाथ रखा लेकिन रागिनी अपने हाथों पैरों को पटक रही थी और बार-बार मेरी पीठ पर अपने मुक्के जमाये जा रही थी और अपने से अलग करने की कोशिश कर रही थी। मैं उसके मुंह में हाथ रखते हुए उसकी चूची को मुंह में लेकर बारी-बारी चूसने लगा। जब धीरे-धीरे रागिनी ने अपने हाथ पांव को पटकना बंद कर दिया तो मैंने उसके मुंह से हाथ हटाया तो,

छुटते ही बोली- हरामजादे मुझे मार कर ही दम लेगा क्या?

मैंने उसकी बात को अनसुना कर दिया और उसके चूची को मुंह में लेकर जब तक पीता रहा जब तक कि रागिनी के अन्दर फिर से एक बार उत्तेजना बढ़नी शुरू न हो गई। इस बार रागिनी अपनी कमर उठा कर मेरे लंड को पूरा का पूरा अपने अन्दर लेने की कोशिश करने लगी। मैंने लोहे को गर्म देखा तो तुरन्त ही एक चोट और पहुँचा दी लेकिन इस बार रागिनी ने चिल्लाने के साथ साथ अपने नाखूनों को मेरी पीठ में गड़ा दिया। मैं भी इस तरह नाखून को गड़ा देने से बिलबिला उठा लेकिन अपने ऊपर संयम रखते हुए उसके दिये हुए दर्द को बर्दाश्त करने लगा और उसके जिस्म से एक बार फिर जब तक खेलता रहा और रागिनी को दुबारा जोश दिलाने लगा। जोश आने के बाद रागिनी सब कुछ भूल गई और कमर उठा कर एक बार फिर मेरे लंड को अपने अन्दर लेने लगी।
 
रागिनी का कुंवारापन खत्म हो चुका था, अब वो कमर उचका उचका कर मजे लेने लगी और थोड़ी देर बाद ढीली पड़ गई और हांफने लगी और अपने हाथ-पैरों को इस तरह ढीला छोड़ दिया कि वो चाह रही हो कि भाई मैं पड़ी हूं और तुम्हे जो कुछ भी मेरे साथ करना हो कर लेना। उसके कुछ देर बाद मुझे अहसास हुआ कि मैं भी अब खलास होने वाला हूं तो मैंने अपना लंड निकाल लिया और रागिनी की चूत के ऊपर अपने वीर्य को गिरा दिया, फिर उसके बगल में लेटा रहा।

रागिनी मुझसे बोली- सूरज, अन्दर बहुत जलन हो रही है।

मैं बोला- तुम्हारे अन्दर की झिल्ली फटी है, इस वजह से जल रहा है। उठो, उठ कर अपनी चूत को धो लो, मैं क्रीम लगा देता हूँ, कुछ देर बाद जलन दूर हो जायेगी।

जब हम दोनों ही बिस्तर से उठे तो देखा कि उसके खून से बिस्तर का एक खास हिस्सा सना हुआ था। खून देख कर वो मेरी ओर देखने लगी तो मेरे बताने के बाद उसकी आंखें फटी की फटी रह गई, उसने अपनी जलन को भूलती हुई चादर को उठाया और वाशरूम में ले जाकर साफ करने लगी। मैंने रागिनी को दिलासा देते हुए कहा कि कोई पूछे तो माहवारी बता देना और बोल देना कि मैं गहरी नींद में सोई थी पता नहीं कब हो गया। शायद रागिनी को मेरी बात समझ में आ गई थी, इसलिये उसने जितनी चादर धोई थी, उसके बाद उसे वहीं छोड़ दिया। और फिर मैंने उसकी चूत को साफ करने के बाद चूत के अन्दर क्रीम लगा दी। फिर हम दोनों ने अपने कपड़े पहने। रागिनी ने अपनी उस सेक्सी ड्रेस को अलमारी में छिपा दिया और फिर से सलवार सूट पर आ गई। उसके घर वालों के आने का समय हो चुका था इसलिये उसने मुझे जल्दी जाने के लिये बोला और बोली- बर्थडे गिफ्ट देने के लिये शुक्रिया।

कहानी सुनते सुनाते एक बार फिर हम दोनों देवर भाभी को जोश चढ़ गया और सूरज एक बार फिर मेरी सवारी करने लगा और इस समय उसका जोश केवल मैं ही महसूस कर सकती थी। तीन बार मैं सूरज से चुद चुकी थी और हम दोनों को भी घड़ी इशारा दे रही थी कि समय खत्म हो चुका है। हमने अपने कपड़े पहने और रास्ते में अपने बॉस को चाभी देकर धन्यवाद दिया। बॉस साला हरामी का हरामी ही रहा, विदा करने से पहले मेरी गांड में उंगली करने के साथ-साथ चिकोटी भी काट लिया। उसके बाद मैं जब घर पहुंची तो नमिता ने डॉक्टर की जानकारी ली तो मैंने सूरज की तरफ देखते हुए नमिता के कान में बताया कि डॉक्टर ने अच्छे से चेकअप किया और मेरी चूत के अन्दर उंगली करके बोली कि यह सूख रही है, पति से ही इसका इलाज संभव है। कहकर मैं अपने कमरे में चली गई कपड़े बदले और फिर लेटे ही लेटे रितेश का इंतजार करने लगी। नमिता ने मुझे खाना मेरे ही कमरे में दे दिया था। लगभग एक घंट बाद ही रितेश आ गया, पूरे घर वालों को हाल चाल देने के बाद हम दोनों ने एकांत पाया और फिर हम दोनों अपने कमरे में आ गये। जब तक रितेश घर पर नहीं था तो मैंने अपने कमरे के पर्दे को इस तरह से सेट किया था कि जो चाहे मेरे कमरे में झांक कर अन्दर हो रहे खेल का नजारा लेकर मस्त हो सकता था।

कमरे के अन्दर आते ही रितेश और मैं एक दूसरे की बाँहों में बहुत देर तक रहे। यही हम दोनों का प्यार था कि हम दोनों ने एक दूसरे से कुछ नहीं छिपाते हैं, खुल कर एक दूसरे से बातें करते हैं, किसने किसके साथ कब सेक्स किया है, ये हम दोनों को पूरा पूरा पता था। बहुत देर तक मैं उसकी बाँहों में और वो मेरी बाँहों में था। चूंकि अब हम दोनों को दो-तीन घंटे की पूरी छूट थी तो मैं और रितेश अपने बेड पर एक दूसरे से चिपक के बैठे हुए थे। मैं ज्यादा उत्सुक थी कि सुहाना ने अपने पति के साथ की हुई रतिक्रिया के बारे में क्या बताया। लेकिन रितेश के पास अभी तक सुहाना का फोन नहीं आया था, इसलिये उसको भी कोई जानकारी नहीं थी। फिर मेरे पूछने पर कि सुहाना के साथ कैसा बीता तो वो बोला कि मजा तो आ रहा था लेकिन जब उसके गांड का बाजा बज चुका था तो वो चली गई और बोली कि मेरा गिफ्ट उधार है और अगर कभी मिले तो मुझे वो गिफ्ट पूरा करेगी। मेरी उंगलियाँ रितेश की छाती के बालों से खेल रही थी जबकि रितेश मेरी बांहों को सहला रहा था। तभी रितेश ने पूछा- आज तुम्हारी तबीयत खराब थी?

तो मैं सूरज की पूरी कहानी सुनाने लगी ताकि रितेश को समझ में आ जाये कि मेरी तबीयत क्यों खराब हुई। अचानक रितेश को याद आया कि उसके जीजा के साथ मैंने क्या किया तो,

मुझे रोकते हुए बोला- तुमने जीजाजी को अपने पानी का भरपूर मजा दिया।
 
मैं - 'हाँ दिया तो... लेकिन वो मेरा गुस्सा था। उस रात को तुम्हारे बिना मुझे नींद नहीं आ रही थी तो मैं छत पर चुपचाप टहल रही थी कि अचानक मैंने नमिता और अमित की लड़ाई की आवाज सुनी तो देखा कि अमित चाह रहा था कि नमिता उसके साथ सेक्स करे जबकि नमिता तैयार नहीं थी। तभी मुझे समझ में आ गया कि अमित इसलिये हर जगह हाथ पाँव मारने की कोशिश करता है।'

रितेश - 'फिर तुमने क्या किया?' रितेश ने पूछा।

मैं - 'कुछ नहीं... नमिता को रास्ते पर ले आई। दोनों खूब मजा करते है। एक बार तो हम तीनों ने मजा भी साथ ही साथ लिया।'

रितेश मेर निप्पल को दबाते हुए बोला- तुम खूब मजे कर रही थी मेरे पीछे?

थोड़ा सा भाव मारते हुये,

मैं बोली- अगर तुम्हें न पसंद हो तो मैं नहीं करूंगी।

रितेश - 'अरे नहीं यार, मैं तो मजाक कर रहा था।'

उसके बाद मैंने अपने, नमिता और अमित के बीच हुई कहानी को एक बार फिर रितेश को बताया। रितेश को कहानी सुनाने के बाद मैं बोली- यार, चल आज रात हम दोनों ही अमित और नमिता की चुदाई देखते हैं।

रितेश - 'यह क्या कह रही हो?'

मैं - 'तो क्या हुआ, वो भी तो तुम्हारे बारे में अब सब जानती है।'

रितेश - 'अच्छा, चल रात की रात देखते हैं, अब मेरा लंड तन रहा है।'

तो मैं बड़ी ही स्टाईल से रितेश के सामने खड़ी हुई और अपने गाउन को ऊपर करते हुये बोली- ये छेद दूँ तुम्हारे इस लंड को?

फिर मैं पीछे घूम कर अपनी गांड को दिखाते हुये बोली- या तुम्हारे लंड को इस छेद की जरूरत है या फिर मेरा मुंह?

रितेश छुटते ही बोला- मुँह!! आओ दोनों एक दूसरे का पहले पानी निकालें, फिर तुम मुझे सूरज के बारे में बताना!

हम दोनों ही 69 की अवस्था में आ गये, रितेश अपने मुंह से मेरे चूत की सेवा कर रहा था और मैं उसके लंड की सेवा कर रही थी। कुछ देर बाद ही हम दोनों का पानी एक दूसरे के मुंह में था। उसके बाद मैं फिर रितेश के बगल में बैठ गई। हाँ, बीच बीच में मेरी नजर खिड़की की तरफ उठ जाती थी। मैं लंड चूस के उठी ही थी कि मुझे लगा कि किसी की परछाई है जो कमरे के अन्दर झांक रही थी। मैंने तुरन्त अपने गाउन को उतारा और पूर्ण रूप से नंगी होकर थोड़ा सा खिड़की के और करीब आ गई और रितेश से भी पूरे कपड़े उतार कर मेरी बुर को एक बार और चाटते हुये कहानी सुनने को कहा। रितेश को भला क्या ऐतराज हो सकता था, वो भी तुरन्त अपने कपड़े उतार कर मेरे पास आ गया और नीचे बैठ कर अपनी जीभ मेरी बुर में लगा दी। मैं तिरछी नजर से खिड़की पर देखते हुए रितेश को अपनी और सूरज की कहानी थोड़ा ऊँची आवाज में सुनाने लगी ताकि जो बाहर खड़ा है, उसे भी खुली खिड़की का मजा आये। मैंने रितेश को अपने और सूरज की चुदाई के बारे में शुरू से कहानी सुनानी शुरू की कि कैसे मुझे पता लगा कि उसके अन्दर मेरे लिये क्या है और उसने मुझे कब कब और कहाँ कहाँ नंगी देखा। मैं रितेश को कहानी सुना रही थी पर मेरी नजर बाहर ही थी और जो मैंने देखा तो मुझे मेरे मन मुताबिक ही लगा। वो मेरा सबसे छोटा देवर रोहन ही था जिसको मेरा चस्का लग गया था।

इधर मेरी कहानी खत्म हुई, उधर रितेश कि चटाई खत्म हुई। रितेश खड़ा हुआ तो उसका लंड मेरी चूत चूसाई और चटाई और ऊपर से मेरे और सूरज की कहानी सुनने के बाद काफी टाईट हो चुका था।

वो मुझे अपना लंड दिखाते हुए बोला- जान, तेरी चूत का तो काम हो चुका है, अब मेरे लंड का क्या होगा?

मैं बोली- मेरी जान, चिन्ता क्यों कर रहे हो, तुम्हारी यह प्यारी रंडी दुल्हन कब काम आयेगी। चलो आ जाओ, अपने लंड महराज को मेरी गांड की सैर करा दो।

मैं रितेश के और करीब आ गई, उसके कान में बोली कि बाहर उसका सबसे छोटा भाई काफी देर से हम लोगों को देखकर अपना लंड हिला रहा है, लेकिन उसका पानी नहीं निकला है।
 
बात काटते हुए रितेश बोला- तो मेरी प्यारी रंडी बीवी अपने शौहर को छोड़ कर उसका पानी निकालने जायेगी?

'नहीं यार!' मैं बोली। तुम मेरी गांड इस तरह मारो कि रोहन को मेरी गांड और लंड की चुदाई पूरी दिखे पर उसे ऐसा नहीं लगे कि हम उसे देख रहे हैं।

रितेश मेरी बात समझ गया, मैं और रितेश खिड़की के और करीब आ गये। हमारी पीठ खिड़की की ही तरफ थी, लेकिन मेरी समझ से मेरी गांड चुदाई बाहर से पूरी तरीके से देखी जा सकती थी। अब मैं झुक चुकी थी और रितेश मेरे पीछे थोड़ा सा इस तरह से हट कर खड़ा होकर मेरे गांड की उठान को इस प्रकार फैलाया था कि अन्दर का छेद बाहर खड़े रोहन को अच्छे से दिखे। उसके बाद मुझे मेरी गांड पर कुछ गीलापन सा लगा, रितेश अपने थूक से मेरी गांड को तीन-चार बार गीली कर चुका था। तभी गप्प से उसका लंड मेरी गांड में घुस गया... चीख के साथ मेरे मुंह से गाली भी निकली- माआआदरचोद... मेरी गांड में अपने गधे जैसा लंड को प्यार से नहीं डाल सकता क्या?

उधर रितेश ने भी वैसा ही जवाब दिया- हाँ बहन की लौड़ी, तेरी गांड है या गुफा? मेरा लंड एक ही बार में पूरा का पूरा अन्दर चला गया। चल बता बुर चोदी कितनों से अपनी गांड मरवाई है?

मैं - 'अरे मेरे गांडू राजा, ऐसा अपनी प्यारी रंडी के लिये मत बोलो, मेरी चूत के अन्दर किसी का भी लंड सैर कर सकता है, पर मेरी गांड में केवल तेरा ही लंड सैर करता है।'

इस तरह हम लोग गाली गलौच वाली भाषा का प्रयोग करके चुदाई का मजा भी ले रहे थे। बाहर खड़े रोहन का तो मुझे पता नहीं लेकिन रितेश की स्पीड बढ़ गई और कुछ देर बाद रितेश का माल मेरे मुंह में था। मैं धीरे से पर्दे के पीछे गई और देखने लगी कि रोहन क्या कर रहा है। बाहर का नजारा कुछ अलग ही था, रोहन मदहोश होकर अपने लंड को फेंट रहा था और थोड़ी देर बाद उसकी मलाई उसके हाथ में थी। रोहन ने अपनी जीभ इस तरह अपनी मलाई में लगाई मानो कि वो नमक चाट रहा हो। एक दो-बार ऐसा करने के बाद वो अपनी मलाई ही पूरी चाट गया कि तभी रितेश का मोबाईल बजने लगा और रोहन अपनी मदहोशी से बाहर आया।

उधर रितेश थोड़ी उँची आवाज में बोला- आकांक्षा, मेरा मोबाईल बज रहा है।

मैं भी थोड़ी ऊँची आवाज में बोली- आई।

ताकि रोहन को यह समझ में आ जाये कि कोई भी उसे देख सकता है।

और मेरी बात भी सही हुई, रोहन ने तुरन्त अपना लोअर पहना और दरवाजा खोलकर नीचे भाग गया।

रितेश ने मोबाईल उठा लिया, फोन सुहाना का था।

मैं भी रितेश के पास बैठ गई, रितेश ने मोबाईल को स्पीकर में कर दिया, उधर से सुहाना बोली -हैलो!

रितेश- हैलो!

सुहाना- कौन बोल रहा है?

रितेश- मैं रितेश!
 
रितेश ने अपना पूरा परिचय दिया। पूरा परिचय लेने के बाद सुहाना जब कन्फर्म हो गई कि उसकी बात रितेश से ही हो रही है तो वो बोली- रितेश मैं सुहाना बोल रही हूँ।

रितेश- ओह, हाँ मैम बोलिये, बन्दे को कैसे याद किया।

सुहाना- मुझे तुम सुहाना ही बोलो।

रितेश- ओ के सुहाना, कल रात मैं तुम्हारे ही फोन का इंतजार ही कर रहा था, जब नहीं आया तो सोचा कि बिजी होगी इसलिये मैंने डिस्टर्ब नहीं किया।

सुहाना- हाँ, रात मैं ज्यादा थक गई थी और फिर सुबह ऑफिस में ही बिजी थी। अब जा कर थोड़ा फ्री हुई हूँ तो तुमको फोन लगा लिया। बाई दी वे तुम क्या कर रहे हो?

रितेश ने मेरी तरफ देखा, मेरी चूत को अपनी दूसरी हथेली से कस कर भींच दिया और हौले से मुस्कुराते हुए कहा- काफी दिनों बाद मैं अपनी वाईफ से मिला तो उसकी गांड मार रहा था।

सुहाना- तो क्या वाईफ भी तुम्हारे साथ बैठी है?

रितेश ने इस जगह पर थोड़ा सा झूठ बोला- नहीं, वो अन्दर अपनी गांड साफ करने गई है।

रितेश की यह बात सुनकर सुहाना बोली- रितेश, तुमको गांड मारने में बड़ा मजा आता है? तुमने मेरी भी गांड चोदी और इस समय अपनी वाईफ की गांड चोद दी?

रितेश- क्या करूँ सुहाना, आकांक्षा ने ही मुझे ये गांड मारने की आदत डलवाई है।

मेरा सिर रितेश के सीने पर था, दोनों की बाते सुनते-सुनते मैं उसके निप्पल के साथ भी खेल रही थी।

सुहाना- इसका मतलब तुम्हारी वाईफ को भी वाईल्ड सेक्स पसंद है?

रितेश- क्यों नहीं, मेरी वाईफ है ही ऐसी! जो एक बार उसको देख भर ले तो उसके चूत और गांड के पीछे अपना लंड लिये हुए दौड़ता रहे।

सुहाना- इसका मतलब अगर तुम्हारी परमिशन उसे मिल जाये तो वो किसी के साथ भी सेक्स कर सकती है?

रितेश- क्या सुहाना जी, सेक्स नहीं इसको चुदना बोलते है और इसमे परमिशन की क्या बात है। उसका छेद है, जिसे देना चाहे वो दे सकती है।

सुहाना- इसका मतलब तुम चाहते हो कि आकांक्षा किसी के साथ भी चुदे?

रितेश- मैं चाहता नहीं, जानता हूँ कि वो कब किससे चुदी है। मेरी आकांक्षा है, मुझसे कुछ नहीं छिपाती है और वो भी जानती है कि मैं किसकी चूत में अपना लंड डालता हूँ।

सुहाना- वाव! क्या जोड़ी है तुम दोनों की!

रितेश- हाँ सुहाना! हम दोनों का मानना है कि जिसको जहाँ भी मौका मिले वो एन्जॉय करे। अब बतायें कि क्या हुआ था रात को?

सुहाना- अपनी वाईफ को भी बुला लो, वो भी मेरी कल रात वाली कहानी सुने!

मैं सुहाना की बात सुनने के बाद बोली- हाय सुहाना जी, कैसी हैं आप?

सुहाना- मैं ठीक हूँ, तुम कैसी हो। तुम्हारा पति तो कमाल का है, क्या चुदाई करता है।

मै- हाँ! अभी-अभी उसने मेरे गांड का भी बाजा बजाया है।

सुहाना- वाआओ... तुम भी खुले शब्दों का प्रयोग करती हो।

मै- तो क्या हुआ, सेक्स करना है तो खुले दिल से करो।

रितेश- हाँ, अब आप सुनाओ अपना किस्सा!

सुहाना- कल रात जब मैं तुम्हारे पास से अपनी गांड मरवा कर घर गई तो देखा मेरा हबी आशीष मेरा इंतजार कर रहा था। उसने तुरन्त ही मेरे लिये कॉफी बना कर दी और मेरे कंधे को दबाने लगा। मेरे मना करने के बाद भी वो दबाता रहा और बोल रहा था कि तुम बहुत थक गई हो और तुमको इससे रिलेक्स मिलेगा।
 
वास्तव मैं मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा था और सोच रही थी कि जब मैं एक गैर मर्द के साथ खुल कर सेक्स कर सकती हूँ तो अपने पति के साथ क्यों नहीं। कल से पहले मुझे पता नहीं क्यों उसके साथ सेक्स केवल तब तक अच्छा लगता था जब तक कि उसका पानी मेरी चूत के अन्दर न चला जाये।

रितेश- तो क्या वो जल्दी झर जाता था?

सुहाना- नहीं, आशीष का बस चले तो वो पूरी रात चोदे तो भी उसका स्टेमिना कम न हो।

रितेश- फिर आपको मजा क्यों नहीं आता था?

सुहाना- मुझे समझ में कभी नहीं आया। लेकिन मैं उसके साथ पहले कभी नहीं खुल पाई।

मैं- फिर कल क्या हुआ आप दोनों के बीच?

सुहाना- कल जब मैं तुम्हारे पास से वापस पहुँची तो तय कर लिया था कि आज आशीष जो भी मेरे साथ करेगा, उसमें मैं उसका पूरा साथ दूंगी। फिर मैंने कॉफी पी और उसके बाद मैं बाथरूम में नहाने चली गई। आज मैं आशीष के लिये अपने दिल से शर्म निकालने जा रही थी। इसलिये मैंने बाथरूम का दरवाजा इस प्रकार बंद किया कि आशीष आसानी से अन्दर देख सके।

मैं शॉवर के नीचे नग्न खड़े होकर शॉवर ले रही थी और एक मेलोडी सॉन्ग गुन गुना रही थी कि मेरी पीठ पर आशीष का हाथ महसूस हुआ। वो मेरी पीठ पर साबुन मल रहा था।

मैं नादान बनते हुए उसकी तरफ घूमी।

अरे तुम? देखा तो आशीष एकदम नंगा था और उसके हाथ में साबुन था।

आशीष बोला- यार सॉरी, दरवाजा खुला था और तुमको साक्षात काम देवी के रूप में देखा तो खुद को रोक नहीं पाया। आज मुझे मत रोकना आज मुझे तुम अच्छे से देख लेने दो।

कहते ही वो मुझे चुमते हुए नीचे मेरी चूत के पास अपनी जीभ निकाल दी और शॉवर का पानी जो मेरे जिस्म के एक-एक हिस्से पर गिरते हुए मेरी चूत से टपक रहा था, उस एक-एक बूँद को वो अपने जीभ में ले रहा था। उस दिन मुझे लगा कि हर आदमी खुल कर सेक्स करना चाहता है, वो चाहता है कि उसकी बीवी या पार्टनर अगर उसके साथ बिस्तर में हो तो पूरी रंडी की तरह हो।

रितेश- फिर क्या हुआ सुहाना?

सुहाना- आशीष ने मेरी दोनों जांघों को पकड़ लिया और फिर अपनी जीभ को मेरी चूत के ऊपर चलाने लगा। एक तरफ पानी मेरे जिस्म को ठण्डा करने की कोशिश कर रहा था तो दूसरी तरफ आशीष की यह हरकत मुझमें एक उत्तेजना पैदा कर रही थी और मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं आशीष को ही समूचा अपनी चूत के अन्दर डाल लूँ।

सुहाना की यह बात सुनकर हम दोनों ही हँसने लगे।

फिर रितेश बोला- फिर आगे क्या हुआ सुहाना?

सुहाना- मैं मस्त होकर आशीष से अपनी चूत चटवा रही थी। वो बार-बार मेरी पुतिया को अपने दाँतों से दबाता, जिससे मेरे मुँह से सिसकारी निकल जाती। वो मेरी चूत चाटने में बहुत मस्त हो गया। उसके इस चूत चटाई से मैं अपना पानी छोड़ चुकी थी, लेकिन पता नहीं क्यों मैं नहीं चाहती थी कि मेरा पानी उसके मुंह में जाये। मुझे अच्छा नहीं लग रहा था।
 
मैं- फिर आगे क्या हुआ सुहाना जी?

सुहाना- मैंने बहुत कोशिश की कि आशीष का मुंह मेरी चूत से हट जाये लेकिन आज आशीष को मेरी भी परवाह नहीं थी और जब तक उसने एक-एक बूंद मेरी चूत की चाट नहीं ली तब तक उसने मुझे छोड़ा नहीं। जिस तरह से आशीष मेरी चूत चाट रहा था तो मैं सोच रही थी कि मैं भी आशीष के लंड को अपने मुंह में ले लूँ और उसको भी मजा दूं। पर आशीष मुझे अच्छे से नहलाने लगा और उसके बाद मुझे अच्छे से पौंछा और खुद भी नहाने के बाद अपने जिस्म को सुखा कर वो मेरे पास आया। मैं कॉम्ब कर रही थी कि उसने मुझसे कंघी ली और मेरे बालों को कंघी करने लगा। फिर उसने मुझे पाउडर लगाया और सेन्ट को मुझ पर अच्छे से छिड़क रहा था। बॉडी लोशन लेकर फ़िर मेरे पीछे आ गया और लोशन कभी मेरी चूचियों में लगा कर मालिश करता तो कभी नाभि के आस-पास, तो कभी मेरी चूत के ऊपर उस लोशन से मॉलिश करता। उसका लंड मेरी गांड में चुभ रहा था।

लोशन लगाते हुए आशीष मुझसे बोला- सुहाना, क्या आज तुम मेरी बात मानोगी?

मैंने भी कहा- हाँ हाँ, बोलो?

आशीष ने मुझे पीछे से कस कर हग किया और बोला- सुहाना, आज तुम मेरे साथ खुल कर मजा लो।

मैंने थोड़ा सा उसे चिढ़ाते हुए कहा- इतनी देर से मैं और कर क्या रही थी।

रितेश- फिर क्या हुआ?

सुहाना- आशीष थोड़ा सा मेरी चिरोरी करते हुए बोला 'सुहाना मेरा लंड तुम्हारे होंठों का प्यासा है, आज इसकी प्यास बुझा दो। मैं उसकी तरफ घूमी और उसकी आँखों में आँखें डाल कर बोली 'मुझसे ये मत कहो प्लीज, मुझे ये अच्छा नहीं लगता।'

मेरा मन भी कर रहा था कि मैं आशीष के लंड का पानी निकाल कर उसके स्वाद को चखूँ, लेकिन मैं थोड़ा उसे और तड़पना चाहती थी। आशीष मेरी पीठ को सहलाते हुए अपने घुटने के बल पर बैठ कर एक फिल्मी हीरो की तरह उसने मेरे दोनों हाथों को पकड़ा और मुझे मनाने लगा, बोलने लगा 'आज पहली बार इस हुस्न का आनन्द ले रहा हूँ।'

पता नहीं क्या-क्या आशीष मेरी हुस्न के तारीफ में कसीदे पढ़े जा रहा था। मुझे लगा कि क्यों सुहाना तुमने इतना सब कुछ मिस किया।

मैं झुकी और आशीष से बोली 'अब से मैं तुम्हारे लिये वो सब करूँगी जो तुम्हें अच्छा लगे।'

कहकर मैंने उसको खड़ा किया और खुद थोड़ा इस तरह झुककर आशीष के लंड को मुंह में लिया कि आशीष जब मेरी गांड शीशे में देखे तो उसे और मजा आये। मैं आशीष के लंड को चूसे जा रही थी और वो मेरी गांड को सहला रहा था और आशीष के मुंह से 'आह ओह... आह ओह...' ही निकल रहा था, बोल रहा था 'जानेमन, बहुत मजा आ रहा है। बस ऐसे ही चूसो। आह, चूसो, चूसो और चूसो बहुत मजा आ रहा है।'

मेरा मुंह उसके लंड को चूसते चूसते दर्द करने लगा था। फिर थोड़ी देर बाद ही खुद आशीष ने मेरे मुंह से अपना लंड निकाला और मेरे पीछे आकर मुझे उसी पोजिशन में रहने के लिये कहा और फिर एक बार वो मेरी चूत को गीला करने लगा। जब उसके हिसाब से मेरी चूत गीली हो गई तो उसने अपना लंड को मेरी चूत के अन्दर बड़े धीरे से डाला। उसका लंड मेरे चूत के अन्दर थोड़ा ही गया था। फिर उसने अपने लंड को निकाला और फिर उसी प्यार से अपने लंड को मेरी चूत के अन्दर से निकाला। इस तरह उसने तीन चार बार किया, तब जाकर उसके लंबे लड़ को मैं अपने अन्दर महसूस कर पाई।

उसके बाद वो मुझे कभी धीरे-धीरे पेलता तो कभी-कभी तेजी से पेलता। फिर एक वक्त आया जब आशीष के मुंह से निकलने लगा 'बहुत मजा आया आज, अब मैं निकलने वाला हूँ।' बस इतना सुनते ही मेरे मन में आज आशीष का पानी पीने का मन हुआ तो मैंने आशीष को रूकने के लिये कहा और जल्दी से उसके लंड को अपने मुंह ले लेकर चूसने लगी। आशीष मुझे मना कर रहा था 'नहीं सुहाना, मेरा पानी तुम्हारे मुंह गिरेगा, अपना मुंह हटाओ।' पर मैंने भी उसकी बात को अनसुना कर दिया और जितनी देर में वो अपना लंड मेरे मुंह से निकालने की कोशिश करता, उतनी देर में उसका पानी मेरे मुंह के अन्दर छूट गया और उसके वीर्य मेरा पूरा मुंह भर गया। मैं अपना मज़ा लेते हुए उसके वीर्य के रस का एक-एक बूंद चट कर गई, आशीष बोलता ही रहा 'यह क्या कर रही हो? मत करो ऐसा!'पता नहीं क्या-क्या!

फिर मैं खड़ी हुई और एक रंडी की तरह मैंने कस कर उसके होंठों को चूसना शूरू कर दिय। आशीष ने मुझे गोद में उठाया और ले जाकर मुझे बिस्तर में पटक दिया और

फिर मेरे बगल में लेटते हुए बोला 'मैं मना कर रहा था तो भी तुम नहीं मानी?'

कहते हुए एक उंगली से मेरी जिस्म के पोर-पोर को वो गिटार के तार की भांति मुझे बजा रहा था। कभी उसकी उंगली मेरी चूचियों की गहराई के बीच होते हुए नाभि तक पहुँचती तो कभी मेरी भगनासा को छेड़ती तो कभी मेरी चूत के फांको के बीच होकर अन्दर खाई में जाती।

मैं उसके इस हरकत का आनन्न्द लेते हुए बोली- तुम ही तो कह रहे थे आज तुम्हें इस खेल को खुल कर खेलना है।

आशीष बोला- वो तो ठीक है। लेकिन!!!

मैंने कहा- लेकिन क्या? तुम भी तो मेरा रस के एक-एक बूंद को जब तक नहीं पी गये तब तक तुमने भी अपना मुंह कहाँ हटाया था।

मेरे इतना कहते ही वो मेरे होंठो पर अपनी उंगलियाँ चलाने लगा और फिर अपनी एक टांग को मेरे ऊपर चढ़ाते हुए मेरे होंठों को चूसने लगा। आज मुझे उसका इस तरह से मेरे ऊपर टांग चढ़ाना भी बहुत अच्छा लग रहा था। होंठ चूसने के बाद उसने मुझे पलटा दिया और फिर फ्रिज से आईस क्यूब एक कटोरे में ले आया और दो-तीन आईस क्यूब मेरी पीठ में थोड़ी थोड़ी दूर रखता हुआ उसे अपने मुंह में रखता और फिर मेरी पीठ में रखता। मेरे साथ बहुत कुछ नया हो रहा था, मैं बेड में लगे हुए शीशे से आशीष की इन सब प्यारी हरकतों को देख कर आनन्दित हो रही थी। तभी आशीष मेरी पीठ पर लेट गया और

मुझसे कान में बोला- जानू, आज तुम बहुत मस्त लग रही हो!
 
मैंने भी उत्तर दिया- तुम्हारा खेल मुझे बहुत पसंद आ रहा है।

वो खुश होते हुए बोला- पक्का पसंद आ रहा है?

'हुम्म सच में!' मैं बोली।

फिर आशीष बोला- और मजा लोगी?

मैं- हाँ।

आशीष- तो अपनी गांड की फांकों को अपने हाथों से फैलाओ।

मैंने आशीष के कहे अनुसार अपनी गांड के पुट्ठे को पकड़ा और उसे फैला दिया, आशीष बोला-वाऊऊउ क्या मस्त गांड है।

कहकर उसने उंगली को गांड के छेद के अन्दर डाल दी, फिर उसने कटोरे से आईस उठाई और थोड़ी ऊँचाई से उस आईस क्यूब को ठीक मेरी गांड के छेद की सीध में लगा दिया और जब उस आईस की एक-एक ठंडी बूंद मेरी गांड की छेद में पड़ रही थी तो मैं अन्दर तक हिल जा रही थी। 10-15 बूंद उस आईस से सीधा मेरी गांड में गिरी। उसके बाद वो उस आईस को मेरी गांड में रगड़ने लगा। आशीष को बहुत दिन बाद इस तरह बिना किसी तनाव के मेरे साथ सेक्स करने का मौका मिला था और वो उस मौके के हर एक पल के आनन्द का मजा लूट रहा था। वैसे भी मजा मुझे भी आ रहा था। फिर मुझे मेरी गांड में कुछ रेंगता हुआ महसूस हुआ। मैंने शीशे से देखा तो आशीष की जीभ मेरी गांड के छेद को चाट रहा था और फिर अचानक आशीष ने मेरे पुट्ठे को पकड़ा और

जोर से कहा- सुहाना, आज तुमको एक और नया मजा मैं देने जा रहा हूँ!

इतना कहने के साथ ही एक झटके में वो अपना लंड मेरी गांड के अन्दर पेल चुका था। मैं चीख उठी और हिलडुल कर मैं उसके लंड को गांड से बाहर निकालना चाहती थी, पर वो मेरे ऊपर पूरी तरह से लेट गया और मुझे हिलने का मौका बिल्कुल नहीं दिया। एक उसका लंड जो अचानक मेरे गांड के अन्दर जा चुका था, उसकी जलन हो रही थी और ऊपर से आशीष का वजन मेरे ऊपर था, सांस घुटती सी लग रही थी। कुछ देर बाद आशीष मेरे ऊपर से उठा और फिर धीरे-धीरे मेरी गांड की चुदाई करने लगा। मुझे भी मजा आ रहा था, लंड के वजह से गांड काफी ढीली पड़ चुकी थी।

अब आशीष मुझे घोड़ी बना कर कभी मेरी बुर चोदता तो कभी मेरी गांड की चुदाई करता। काफी देर तक आशीष मेरी गांड और बुर के छेदों की चुदाई करता रहा और फिर अन्त में वो मेरी गांड के अन्दर ही झड़ गया।

उसके बाद हम दोनों एक-दूसरे से चिपक कर सो गये। आज सुबह जैसे ही उठा उसने मेरी चुदाई शुरू कर दी। फिर दोनों ही तैयार होकर ऑफिस के लिये निकल पड़े।

सुहाना की बात खत्म होते ही हम दोनों साथ-साथ बोल पड़े- मुबारक हो गांड और चूत दोनों के मजे साथ-साथ लेने के!

सुहाना हँसने लगी।

फिर रितेश बोला- मेरा गिफ्ट?

सुहाना बोली- उसको मैं भूली नहीं हूँ।

तभी मैं बोल पड़ी- सुहाना, अगर आप चाहे तो मैं-रितेश और टोनी-मीना एक कपल नोएडा के हैं, हम लोग स्वैपिंग करते हैं।

सुहाना बोल पड़ी- ये स्वैपिंग क्या होता है?

तो मैंने सुहाना को बताया कि इस खेल में कपल्स होते हैं, एक मर्द दूसरे की बीवी से उसके सामने ही सेक्स करता है यानि की अदला बदली कर के!

सुहाना- इसका मतलब तुम भी रितेश के सामने दूसरे मर्द से चुदवाती हो?

मैं- हाँ, शुरू शुरू में अच्छा नहीं लगा पर अब मजा आता है। अगर तुम चाहो तो तुम भी आशीष के साथ मेरे ग्रुप में शामिल हो सकती हो, बहुत मजा आयेगा।

सुहाना- 'चलो देखते हैं, मुझे तो ये बड़ा डेयरिंग खेल लग रहा है, पता नहीं आशीष मानेगा या नहीं!'

फिर बाकी इधर उधर की बात होने लगी और फिर सुहाना ने यह कहकर फोन काट दिया कि एक दो दिन में वो फोन करेगी।

सुहाना की कहानी सुनकर हम दोनों काफी उत्तेजित हो चुके थे तो फोन कटते ही रितेश ने मुझे पटक दिया, मेरी चूत में अपना लंड डाल दिया और तेज तेज चोदने लगा। थोड़ी देर बाद वो डिस्चार्ज हो गया और मेरे ऊपर लेट गया। रितेश हाँफ रहा था। वो फिर मेरे से अलग हुआ तो मेरी उंगली अपने आप ही मेरी चूत की तरफ चली गई और हम दोनों की जो मिक्स मलाई मेरी चूत से बाहर आ रही थी, उसको उंगली पर लेकर उसका स्वाद लेने लगी। मेरी देखा देखी रितेश भी अपनी उंगली से मिक्स मलाई को चाटने लगा। हम दोनों का कोटा पूरा हो चुका था, अब मुझे इंतजार था कि रात में रितेश के साथ उसकी बहन की चुदाई को देख कर आनन्द लेने का। फिर मुझे ऑफिस वाला प्रोपोजल याद आया तो,

रितेश ने कहा- मैं अपने ऑफिस में जाकर बात करता हूँ। अगर छुट्टी मिल जायेगी तो हम दोनों कलकत्ता में हनीमून मनायेंगे।

उसके बाद हम दोनों ने अपने कपड़े पहने और नीचे आ गये।

रितेश घर के बाकी सदस्यों के साथ बात कर रहा था जबकि मैं और नमिता शाम के खाने की तैयारी में लग गये थे। चूंकि घर के सभी सदस्य बड़े से छोटे तक चाहते थे कि मैं घर में गाउन ही पहन कर रहूँ तो फिर मैंने भी मन में ठान लिया था कि अब मैं घर में मटकते हुए चलूँगी ताकि सबको मेरी मटकती हुई गाण्ड का भी मजा मिले। हम लोग खाना बना ही रहे थे कि अचानक बाबूजी ने सबको बुलाया और करीब 20-22 रिश्तेदारो के आने की खबर दी जो मुझसे मिलने कल ही आ रहे हैं और मुझसे पूछने लगे कि दो दिन रहेंगे, तुम्हें तो ऐतराज तो नहीं है। मैं न भी कैसे करती।
 
रितेश मेरे पास आया और बोला- लो दो दिन के लिये फिर मुश्किल हो गई तो आज रात तैयार हो जा, तेरी खूब गांड और चूत चोदूँगा। मुझे भी क्या चाहिए था, रितेश का लंड ही तो चाहिये था। खाना खाते खाते यह तय हुआ कि जितनी लेडीज आयेंगी वो ऊपर मेरे और नमिता के कमरे में रहेंगी और जेन्टस हॉल में तथा विजय और रितेश के कमरे में रहेंगे। चूंकि सासू मां ने पहले से ही मना कर दिया कि कोई भी उनके कमरे में नहीं रहेगा तो बस उनसे यही कहा गया कि यदि मेहमानों की सख्या अधिक हुई तो मैं और नमिता ही उनके कमरे में रात को सोयेंगे। सासू मां इस बात पर मान गई। हम लोग खा-पीकर एक बार फिर सब अपने अपने कमरे में चले गये।

कमरे में पहुँचते ही मैंने हल्की सी रोशनी की ताकि देखने वाले देख सकें। मैं जैसे ही अपना गाउन उतराने लगी तो देखा कि रितेश नंगा खड़ा है,

मुझे देखकर मुस्कुराते हुए कहा- यार अपना कमरा अपना ही होता है, कोई रोक टोक नहीं।

मैंने अपना गाउन उतारा और रितेश की बांहो में अपने को समेट लिया। तभी मुझे हल्की सी आवाज दरवाजे के बन्द होने की आई, इसका मतलब था कि अमित और नमिता दोनों ऊपर आ गये हैं और उन्होंने ही दरवाजा बंद किया है।

उसी समय मैंने रितेश से थोड़ी उँची आवाज में कहा- रितेश, आज 69 की पोजिशन करके तुम मेरी चूत चाटो और मैं तुम्हारे लंड को चूसूँ, लेकिन खड़े वाली 69 की पोजिशन!

चूंकि रितेश भी काफी हृष्ट-पुष्ट था तो वो तैयार हो गया।

मेरी नजर खिड़की पर ही थी जहाँ पर नमिता और अमित दोनों खड़े होकर हमे देख रहे थे।

रितेश ने मुझे उठाया और हवा में ही मुझे उल्टा कर दिया, मेरा मुंह उसके लंड पर आ गया। अब हमारी पोजिशन काफी रोचक थी और शायद बाहर से देखने वालों के लिये भी। मैं रितेश के लंड को चूस रही थी, रितेश मेरी चूत का रसास्वादन कर रहा था। काफी थ्रिल था।

थोड़ी देर बाद रितेश ने मुझे अपनी गोद से उतारा और मुझे घोड़ी बनने का इशारा किया। मैंने जानबूझ कर खिड़की की दीवार से अपने को सपोर्ट दिया, मैं देखना चाहती थी कि नमिताको कैसा लग रहा है। खिड़की की एक तरफ नमिता और दूसरी तरफ अमित छुप कर अन्दर के नजारे का मजा ले रहे थे। रितेश ने मेरी गांड में थूक लगाया और एक झटके में अपने लंड को मेरी चूत के अन्दर पेल दिया।

मैं - 'उईईई ईईईई मां... मादरचोद हमेशा इसी तरह से मेरी गांड मारोगे कि कभी प्यार से भी?'

रितेश - 'अरे बहन की लौड़ी, जब तेरी गांड ही इतनी मस्त है तो मैं अपने को कैसे रोकूँ?'

मैं - 'तो यह बात है- तुमको सिर्फ मेरी गांड ही मस्त लगती है चूत नहीं?'

रितेश बोला- नहीं डार्लिंग, चूत तो तुम्हारी दुनिया की सबसे मस्त चूत है। इतनी चूत चोदी, लेकिन जब तक तेरी चूत न चोदूँ तो मजा नहीं आता है। आज तो पूरी रात मेरा लंड तुम्हारी चूत और गांड की सेवा करेगा। क्योंकि कल से फिर दो तीन दिन के लिये अपना मिलन जरा मुश्किल है।

कहकर वो जोर-जोर से मेरी चूत और गांड का बाजा बजाने लगा और साथ ही साथ मेरे चूतड़ पर कसकर तड़ी मारता और जोर-जोर से मेरी चूची को मसलता। दर्द के कारण मेरे मुंह से सीत्कार निकल जाती।

इधर वो दोनों मेरी बात को सुनकर एक दूसरे को कमरे में चलने का इशारा कर रहे थे लेकिन मेरी नजर में ना आ जायें इसलिये वो वहीं रूके रहे। तब तक रितेश मेरी कायदे से बजा चुका था

और चिल्ला रहा था- मैं झड़ने वाला हूँ!

उसको सुनकर मैं तुरन्त ही नीचे बैठ गई और उसके लंड को अपने मुँह में लेकर उसके माल को जैसा कि आप सभी समझ गये होंगे, लेकर मैंने क्या किया होगा। इधर मुझे दौड़ने की आवाज आई और यही दौड़ने की आवाज रितेश ने भी सुनी।
 
इधर मुझे दौड़ने की आवाज आई और यही दौड़ने की आवाज रितेश ने भी सुनी।

वो बोला- आकांक्षा, ऐसा लगा कि कोई दौड़ रहा है।

मैं जानती थी कि दौड़ने वाले कौन है लेकिन मैंने रितेश को टाल दिया, मैं चाहती थी कि आज रितेश भी चुदाई को लाईव देखे, मैं जानती थी कि अगर मैं रितेश को अमित और नमिता की चुदाई देखने के लिये कहूँगी तो हो सकता है वो मना कर दे।

इसलिये मैं बोली- रितेश, आओ छत पर चलें।

रितेश तो पहले पहल नंगा छत पर घूमने से कतराने लगा लेकिन मेरे फोर्स करने पर वो तैयार हो गया। मैं और रितेश एक-दूसरे के कमर में हाथ डाले अपने कमरे से निकल पड़े। रितेश का सारा ध्यान मैंने अपने ऊपर लगा दिया और टहलते हुए नमिता के कमरे के पास पहुँचे तो दोनों की बातों की आवाज आ रही थी। रितेश मुझसे वापस चलने के लिये इशारा कर रहा था जबकि मैंने रितेश को चुपचाप उन दोनों की बातों को सुनने का इशारा किया और नमिता के कमरे की खिड़की के और पास जाकर खड़ी हो गई, उन दोनों की बातें सुनने लगी।

एक बात तो थी रितेश में वो मेरी कोई बात नहीं टालता था, इसलिये वो मेरे पीछे आकर चिपक गया। मैंने जो जगह बनाई थी नमिता के कमरे के अन्दर देखने की, वहां खड़ी हो गई और अन्दर का नजारा करने लगी। अन्दर अमित की गोद में नमिता बैठी हुई थी और अमित की उंगलियाँ उसकी चूचियों पर चल रही थी और साथ में अमित मेरी ही तारीफ कर रहा था।

दोस्तो, यहां से अमित और नमिता की बातचीत सुनिये।

अमित- यार, रितेश सही ही कह रहा था कि भाभी की चूत है बहुत मस्त... चूत ही क्या उनके जिस्म का एक एक अंग बहुत मस्त है।

नमिता थोड़ा चिढ़ते हुए- हाँ हाँ, अब तुम्हें भाभी की चूत अच्छी लगने लगी।

अमित- लो, मैं क्या गलत कह रहा हूँ। उनके होंठ देखो, ऐसा लगता है कि गुलाब की दो पखुंडियाँ। उनके जब मैंने होंठ क्या रसीले आम की तरह है, मन करता है कि चूसता रहूँ।

नमिता- तो जाओ ना, फिर भाभी के होंठ को चूसो, मुझे छोड़ो। आज मैंने भाई का भी लंड देखा है। क्या लंबा मोटा है। इसलिये तो भाभी भाई से खुश है। काश भाई जैसा लंड मुझे भी मिलता!

अमित- मेरा भी लंड तो तेरे भाई जैसा है।

नमिता- तो मेरी चूत कौन सी बीमार है? जो एक बार मेरी चूत देख ले वो मेरी चूत में ही खो जाये।

रितेश पीछे से मेरी पीठ पर लगातार अपने चुम्बन की झड़ी लगाये हुए थे और मेरा हाथ रितेशके लंड को मसल रहा था। नमिता की इतनी बात सुनते ही अमित रास्ते पर आ गया

अमित- लेकिन नमिता तेरी चूची, क्या गोल गोल है बहुत मस्त है।

कहते हुए अमित नमिता की चूची को उसके कपड़े के ऊपर से ही मसल रहा था और उसकी गर्दन, गालों पर अपने चुम्बन की बौछार लगा रहा था।

इधर रितेश का हाथ भी मेरी चूचियों से खेल रहा था।

नमिता की चूचियाँ मसलते मसलते अमित नमिता के ऊपर के कपड़े को उतार दिया और उसकी चूची को मुंह में ले लिया था और अब उसके हाथ नमिता की चूत को सहलाने में व्यस्त थे। इस बार नमिता ने खुद ही अपने नीचे के कपड़े उतार लिये और अपनी चूत को सहलाने में अमित की मदद कर रही थी। फिर अमित ने नमिता को अपने ऊपर से उतारा और कुर्सी पर बैठा कर उसके दोनों पैरों को खोल दिया और अपनी जीभ को उसकी चूत पर लगा कर चाटने लगा।

नमिता उसके बालो को सहलाते हुए बोली- आज भाई ने भाभी को किस तरह उल्टा लटका कर अपना लंड चुसवाया। देख कर मजा आ गया।

नमिता की बात खत्म होती, इससे पहले मेरे पिछवाड़े एक चपत पड़ी, मैंने पल ट कर देखा तो इशारे में उसने नमिता की कही हुई बात का मतलब पूछा। मैंने उसे चुप रहने का एक बार फिर संकेत किया।

तभी अमित ने अपना सर ऊपर उठाया और बोला- यार तुम्हारे भाई और भाभी सेक्स में बिल्कुल परफेक्ट है। एक से एक नई स्टाईल लाते हैं।

कहकर एक बार फिर वो नमिता की चूत को चाटते हुए बोला- अगर तुम कहो तो तुम भी इस तरह मेरे लंड को चूस सकती हो।

'नहीं बाबा!' नमिता बोली- चलो बेड पर... मुझे भी तुम्हारे लंड को मजा देना है।

फिर दोनों उठ कर बिस्तर पर चले गये और 69 की पोजिशन में आकर एक दूसरे का रसास्वादन करने लगे।

थोड़ी देर तक ऐसा करते रहने के बाद नमिता उठी और घोड़ी बन गई और अमित घुटने के बल बैठ कर अपने लंड को नमिता की चूत में सेट कर एक धक्का मारा, गप्प से अमित का लंड नमिता की चूत के अन्दर समा गया और फिर धक्के की आवाज से साथ साथ दोनों की आहें भी सुनाई देने लगी।

तभी मैं बोल पड़ी- अकेले अकेले मजा ले रहे हो?

दोनों चौंक कर हम लोगों की तरफ देख रहे थे, जबकि नमिता इतना शर्मा गई कि वो आँखें फाड़े हमारी ही ओर देख रही थी, उसको अहसास नहीं था कि मेरे साथ रितेश भी खड़ा है। अचानक जैसे उसे याद आया तो चादर खींचकर नमिता ने अपने आपको ढका।

फिर मैं बोल पड़ी- अगर तुम दोनों को ऐतराज न हो तो क्या हम दोनों अन्दर आ सकते हैं?

नमिता और अमित दोनों एक दूसरे को देख रहे थे।

तभी रितेश बोल पड़ा- आकांक्षा, तुम इन लोगों को परेशान मत करो।

रितेश की बात सुनकर दोनों ने एक दूसरे को इशारा किया और फिर

अमित ही बोला- नहीं साले साहब, आओ अन्दर आओ।

कहकर अमित ने दरवाजा खोला।

रितेश भी थोड़ा बहुत शर्मा रहा था। हालाँकि नमिता की जगह कोई और दूसरा होता तो शायद रितेश इतना न शर्माता। मैं रितेश को पीछे से धकेल कर अन्दर ले गई। दोनों भाई बहन की नजर एक दूसरे से नहीं मिल रही थी। हालाँकि नमिता की नजर बार बार अपने भाई के लंड पर ही थी, वो बार बार कोशिश कर रही थी कि उसकी नजर लंड से हट जाये, लेकिन चाह कर भी नमिता की नजर हट नहीं रह थी।
 
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