hotaks444
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जयसिंह ने जानबूझकर मनिका को बाहर पार्क में घूमने चलने को कहा था, ताकि उसे यह न लगे के वे उसके जिस्म के पीछे पागल हैं. मनिका ने तो यही सोच रखा था कि वे इतना लेट (देरी से) लंच करने के बाद रूम में ही जाएंगे. लेकिन जयसिंह के प्रस्ताव ने उसे भी सरप्राइज कर दिया था. किन्तु उनके साथ घूमते-घूमते उसे बड़ा मजा आ रहा था और हर एक पल ने उसकी तृष्णा को बढ़ाने का ही काम किया था. अब वह रूम में आने के बाद थोड़ी सहमी सी लग रही थी और सोफे के पास खड़ी हुई कुछ-कुछ देर में उनसे नज़र मिला कर शरम से मुस्का दे रही थी.
जयसिंह ने कमरे में आकर अपने मीटिंग के दस्तावेज़ संभाल के रखे, वे यूँ जता रहे थे जैसे सब कुछ नार्मल ही था. फिर वे चल कर मनिका के पास आ कर खड़े हो गए व उसके दोनों हाथों को अपने हाथों में ले लिया. मनिका ने सकुचाते हुए नज़र ऊपर उठाई.
'ह्म्म्म...' जयसिंह ने हुंकार भरते हुए कहा, 'खुश है मेरी जान?'
'हूँ...ज..जी...' मनिका ने हामी में सर हिलाते हुए कहा.
'अच्छा है, अच्छा है...' जयसिंह ने मुस्कुराते हुए कहा, फिर अपना स्वर जरा नीचे कर बोले, 'आज बिस्तर में जरा जल्दी चलें...कल तो सुबह ट्रेन है ही, हम्म?'
मनिका उनके सवाल से तड़प उठी थी, 'पापा को तो बिलकुल भी शरम नहीं है..!', उस से कुछ कहते न बना, बस उसने अपना शरम से लाल मुहं झुका लिया था. जयसिंह ने इसे उसकी हाँ समझ आगे कहा,
'मैं तो आज सिर्फ नाईट-ड्रेस में चेंज करने के मूड में हूँ...तुम देख लो क्या करना है.' और मनिका का हाथ छोड़ एक पल रुके रहे फिर मुस्का कर अपने सूटकेस से अपना बरमुडा और टी-शर्ट लेकर बाथरूम में चले गए. मनिका धम्म से सोफे पर बैठ गई थी. पर इस से पहले कि वह अपने आप को इस नई परिस्थिति में ढाल पाती, जयसिंह कपड़े बदल कर बाहर भी आ चुके थे.
उसने उनकी तरफ देखा, वे मुस्कुरा रहे थे, फिर उसकी नज़र बरबस ही उनके लंड पर चली गई, बरमुडे का तम्बू बना हुआ था. उसने एक पल जयसिंह की तरफ देखा और पाया कि वे यह सब देख रहे थे, उसकी जान गले में अटक गई थी, वह तेज़ क़दमों से चलती हुयी अपने बैग के पास पहुँची और अपनी नाईट-ड्रेस निकालने लगी.
मनिका बाथरूम के गेट के पास खड़ी थी, वह नहा ली थी और कपड़े बदल लिए थे. लेकिन अब बाहर जाने की हिम्मत जुटाने की कोशिश कर रही थी. कुछ देर खड़ी रहने के बाद उसने हुक पर से अपना पहले पहना हुआ सूट उतरा और अपनी नाईट-ड्रेस उतार उसे पहन लिया और जा कर वॉशबेसिन पर मुहं धोने लगी. लेकिन कुछ वक्त और बीत गया और वह फिर भी बाहर न निकली, और एक बार फिर सूट उतार कर नाईट-ड्रेस पहन ली. एक दो बार ऐसा रिपीट करने के बाद भी जब उससे कोई फैसला न हो सका. वह अब नाईट-ड्रेस में थी. यंत्रवत सी मनिका ने बाल्टी में पानी चलाया और इस बार सूट को हुक पर टांगने की बजाय बाल्टी में डाल दिया. उसके हाथ कांप रहे थे. अब एक बार फिर वह बाथरूम में लगे शीशे के सामने जा खड़ी हुई और अपने साथ लाया छोटा किट (बैग) खोला.
'कहाँ मर गई कुतिया?' जयसिंह ने झुंझलाते हुए सोचा. वे बेड पर लेटे हुए थे, कमरे की लाइट जल रही थी. जयसिंह अपना फोन हाथ में लिए ऐसा जता रहे थे कि वे उसमे व्यस्त हैं, ताकि मनिका के बाहर निकलने पर उन्हें ऐसा न लगे कि वे बस उसे ही तवज्जो देने के लिए बैठे हैं.
'खट' बाथरूम के दरवाजे की कुण्डी खुलने की आवाज़ आई.
जयसिंह ने झट नज़रें मोबाइल में गड़ा लीं थी. पर कनखियों से उन्हें मनिका के सधे हुए क़दमों से कमरे में आने का आभास हुआ, और एक ही पल में वे आश्चर्य से भर उठे थे. उन्होंने मनिका की तरफ देखा.
जब वे लोग दिल्ली आए थे एक वह दिन था और एक आज का दिन था. मनिका ने वही शॉर्ट्स और गंजी पहन रखी थी जो वह उनकी साथ बिताई पहली रात को पहन कर आई थी. जयसिंह आवाक रह गए थे.
***
मनिका हौले से बेड के उपर चढ़ी, कम्बल उसी की तरफ तह करके रखा था, मनिका ने धीरे से उसे खोला और ओढ़ कर लेट गई. उसने अपने पिता की तरफ एक नज़र देखा तो पाया के वे अपना फोन बेड-साइड टेबल पर रख रहे थे, उसकी नज़र उनके अर्धनग्न बदन पर फिसलती हुई उनके बरमुडे पे जा टिकी. पापा का लंड तन चुका था. मनिका ने बरबस ही आँखें मींच लीं.
'मनिका?' जयसिंह की आवाज़ आई. मनिका ने आँखें खोलीं, उसके पिता ने अब उसकी तरफ करवट कर रखी थी और खिसक कर उसके करीब आ गए थे. मनिका उन्हें इतना करीब पा असहज हो उठी, उसने अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से एक पल के लिए जयसिंह को देखा और फिर नज़र नीची कर ली. नीचे देखते ही उसने अपने आप को अपने पिता के बरमुडे में फनफनाते लंड से मुखातिब पाया, उसकी कंपकंपी छूट गई.
जयसिंह ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर मनिका के कंधे पे रखा और सहलाने लगे. 'क्या हुआ मनिका? चुप-चुप कैसे हो?' उन्होंने बात बनाने के बहाने से पूछा. मनिका से कुछ बोलते नहीं बन रहा था, उसे अहसास हुआ के जयसिंह का हाथ धीरे-धीरे उसके कंधे से कम्बल को नीचे खिसका रहा था.
'हूँ?' जयसिंह ने अपने सवाल का जवाब चाहा.
'कुछ नहीं पा..?' मनिका ने हौले से मुहं नीचे किये हुए ही जवाब दिया.
'पैकिंग वगैरह कर ली तुमने?' जयसिंह ने पूछा, कम्बल अब मनिका की बगल से थोड़ा नीचे तक उतर चुका था.
'जी पापा.' मनिका ने बिल्कुल मरी सी आवाज़ में कहा. उसे अपने बदन से उतरते जा रहे कम्बल के आभास ने निश्चल कर दिया था. जयसिंह ने अब कम्बल उसकी कमर तक ला दिया था.
मनिका का दिल जैसे उसके मुहं में आने को हो रहा था. यकायक उसे अपने फैसले पर अफ़सोस होने लगा, 'हाय ये मैंने क्या कर लिया. क्यूँ पहन ली मैंने ये बेकार सी नाईट-ड्रेस..? पापा तो रुक ही नहीं रहे, कम्बल हटा कर ही छोड़ेंगे...' मनिका ने अपने आप को कोसा, फिर उसने धीरे से अपने हाथ से कम्बल पकड़ कर ऊपर करने की कोशिश की.
जयसिंह मनिका की मंशा ताड़ गए थे, जैसे ही मनिका ने कम्बल को धीरे से पकड़ कर ऊपर खींचने की कोशिश की जयसिंह ने अपना हाथ ऊपर उठा लिया और साथ ही उसमे कम्बल का एक सिरा भी फंसा लिया था. एक ही पल में मनिका अब अपने पिता के साथ अर्धनग्न अवस्था में पड़ी थी.
'उन्ह...' मनिका के गले से घुटी सी आवाज़ निकली.
जयसिंह ने कम्बल एक तरफ़ कर दिया. मनिका की नज़र उठने को नहीं हो पा रही थी. उसने अपनी टाँगे भींच कर अपनी मर्यादा बचाने की कोशिश की. पर जयसिंह का पलड़ा आज भारी था. उन्होंने अपना हाथ अपनी बेटी की कमर पर रखा और उसे ऊपर से नीचे तक देखने लगे, जब मनिका ने एक पल के लिए नज़र उठा उनकी तरफ़ देखा तो पाया के वे उसके वक्श्स्थ्ल को ताड़ रहे थे. मनिका की नज़र उठते ही जयसिंह ने भी उसके चेहरे की तरफ़ देखा और मुस्कुराते हुए अपना हाथ उसकी कमर से उठा कर उसके गले पर ले आए और सहलाते हुए कहा,
‘क्या बात है मनिका, आज तो दिल जीत लिया तुमने.’ मनिका क्या कहती, जयसिंह ही आगे बोले, ‘आज ये वाली नाइट ड्रेस कैसे पहन ली?’
मनिका एक बार फिर नज़र झुकाए रही तो जयसिंह थोड़ा उसके ऊपर झुक आए, उनके ऐसा करते ही, मनिका ने पाया के उसके पिता का लंड भी उसे छूने को हो रहा था. ‘बोलो ना?’ जयसिंह ने हमेशा की तरह उसपर दबाव बनाने के लिए पूछा.
‘वो…वो…आपने कहा न पापा कल…’ मनिका ने अटकते हुए कहा.
‘काश पहले पता होता…कि मेरे कहने पर तुम इस तरह…तो पता नहीं कब का कह देता.’ जयसिंह की आवाज़ पूरी तरह बदल गयी थी, उसमें सिर्फ़ हवस और वासना थी.
‘क्या…आह्ह…क्या बोल रहे हो आप पापा…’ मनिका उनके इस रूप से सहम गयी थी.
‘यही कि काफ़ी जवान हो गयी हो तुम…’ जयसिंह ने एक बार फिर उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा, और अपना हाथ अपनी बेटी की नंगी जाँघ पर ले जा कर सहलाने लगे, ‘पर आज तो मज़ा नहीं आया उतना.’
‘पापा आप ऐसे क्यूँ बोल रे हो? क्या…क्या…मज़ा नहीं आया…?’ मनिका ने और ज़्यादा सहमते हुए कहा. दरअसल मनिका ने अभी तक सिर्फ़ जयसिंह की हरकतों को एक दीवाने इंसान की हरकतों की तरह ही देखा था. लेकिन अब उनके अंदर की हवस को पूरी तरह बाहर आते देख उसकी सिट्टी-पिट्टि गुम हो गयी थी.
जयसिंह ने इस बार सीधे जवाब न देकर पहले उसकी जाँघ को अपने हाथ से पकड़ कर दबाया, और फिर अपना मुँह उसके चेहरे से सटाते हुए भरभराती आवाज़ में बोले, ‘अरे डार्लिंग, पिछली बार तो अंदर बिना ब्रा-पैंटी पहने आई थी तू…या वो भी मैं कहूँगा तो उतारेगी आज…हूँ?’
मनिका की सारी इज़्ज़त तार-तार हो गयी थी. उसने एकदम से अपने उन्मादी बाप को धक्का दिया और पीछे खिसकते हुए तेज़ी से बिस्तर से उतर कर बाथरूम की तरफ़ भागी. जयसिंह को उसकी इस प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी, परंतु वे क्या समझते, वासना ने एक बार फिर उनकी बुद्धि को मात दे दी थी. लेकिन मनिका को इस तरह भागते देख वे भी उसके पीछे लपके थे और बेड से नीचे उतर कर मनिका जैसे ही सीधी होकर भागने लगी थी, जयसिंह ने एक ज़ोरदार थप्पड़ मनिका की अधनंगी गाँड पर जड़ दिया था.
‘तड़ाक’ जयसिंह के हाथ के मनिका की गाँड पर लगते ही एक तेज़ आवाज़ हुयी.
मनिका एक पल लड़खड़ाई थी और उसके मुँह से कराह निकली थी, ‘आह्ह्ह्ह…’ और फिर अगले ही पल वह बाथरूम में जा घुसी और एक सिसकी के साथ दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई.
‘आऽऽऽऽ…हाए माऽऽऽऽ…’ मनिका अपने हाथों में मुँह छुपाए रो रही थी. हर एक पल बाद उसका अधनंगा जिस्म भय और शर्म से कंपकंपा जाता था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या सोच कर उसने अपने आप को इस स्थिति तक आने दिया था. जब उसे साफ़ पता चल चुका था कि उसके पिता के इरादे नेक नहीं है, फिर भी उसने उनका प्रतिकार करने के बजाय उनको उकसाया था. अपनी इस लाचार अवस्था पर विचार कर-कर के बार-बार उसकी रूलाई फूट रही थी. उसे अपने पिता, जयसिंह, पर भी बेहद ग़ुस्सा आ रहा था. उन्होंने अपने धर्म का निर्वाह करने के बजाय उसके साथ इस तरह का कुकर्म करने की कोशिश की थी. आख़िर में तो सब उन्हीं की चालबाज़ी का नतीजा था.
‘बस किसी तरह घर वापस पहुँच जाऊँ, सब बता दूँगी मम्मी को.’ मनिका बैठी हुई ख़ैर मना रही थी, ‘कितने कमीने हैं पापा, कितनी गंदी बात बोल रहे थे मुझे, और मेरेको कैसे गंदा टच कर रहे थे.’ मनिका ने सिहरते हुए सोचा, ‘हे भगवान, ये क्या हो रहा है मेरे साथ? पापा को तो मैं कितना अच्छा समझती थी, कितना प्यार करते थे मुझे वे घर पे…और अब तो मुझे सिर्फ़ गंदी नज़रों से देखते हैं…’ मनिका के दिमाग़ में एक के बाद एक ख़याल आते जा रहे थे, ‘पर मैंने भी तो उनको बढ़ावा दिया…पता नहीं मेरा भी कैसे माथा ख़राब हो गया था…हाय…आज के बाद उनसे कभी बात नहीं करूँगी…ऐसा बाप किसी को न दे भगवान…’
जयसिंह की पाप की लंका का दहन हो चुका था, कुछ पल तो वे अपनी वासना के उन्माद से ऊबर ही न सके थे, लेकिन फिर उन्हें अपनी परिस्थिति की नाजुकता जा अंदाज़ा होने लगा. वे उठ कर बिस्तर पर बैठ गए, उनका लिंग भी अब शांत हो कर सुस्त पड़ गया था. कुछ देर बैठे रहने के बाद वे उठ कर दबे पाँव बाथरूम के दरवाज़े के पास गए. अंदर से मनिका के सिसकने की आवाज़ आ रही थी, वे कुछ पल सुनते रहे और फिर वापस बिस्तर पर जा बैठे. उनका सिर झुका हुआ था और वे हार मान चुके थे.
‘पता नहीं क्या होगा, यह तो सब दाँव उलटे पड़ गए…साली मनिका इस तरह पलटी मार जाएगी, यह तो मेरे दिमाग़ में ही नहीं आया.’ वे अपनी हार पर निराशा और भय से भर चुके थे, ‘कहीं इसने किसी के सामने मुँह खोल दिया तो मैं तो कहीं का नहीं रहूँगा…हे भगवान मेरी भी मत मारी गयी थी, इतने मौक़े आए जब मैं संभल सकता था लेकिन इस वासना के भूत ने मुझे बर्बाद करके ही छोड़ा…’
सुबह होते-होते मनिका की आँख लग गयी थी, वह बाथरूम के ठंडे फ़र्श पर ही निढ़ाल हो कर पड़ी हुई थी.*उधर जयसिंह भी अपनेआप को कोसते-कोसते सो गए थे. वह तो शुक्र था कि उनकी ट्रेन का रेज़र्वेशन होटेल के फ़्रंट-डेस्क वालों ने कराया था, क़रीब सवा-सात बजे उन्होंने वेक-अप कॉल किया. जयसिंह हड़बड़ा कर उठ खड़े हुए.
‘हेल्लो?’ उन्होंने रिसीवर उठाते हुए कहा.
‘सर, होटेल फ़्रंट-डेस्क, दिस इज अ वेक अप कॉल फ़ोर योर कन्वीन्यन्स.’ उधर से आवाज़ आयी.
‘ओह! थैंक-यू…थैंक-यू.’ कहते हुए जयसिंह ने फ़ोन रख दिया.
अब जयसिंह को पिछली रात की अपनी करतूत के सही मायने समझ आने लगे थे. वे अब अपनी बेटी से बात करने लायक भी नहीं रहे थे. वे कुछ देर इसी असमंजस में बैठे रहे कि मनिका को बाथरूम से बाहर आने को कैसे कहें. उनकी ट्रेन सवा-नौ बजे की थी. जब घड़ी में पौने-आठ होने लगे, तो उन्होंने किसी तरह हिम्मत जुटायी और बाथरूम के गेट के पास गए.
जयसिंह ने एक पल रुक कर दरवाज़ा खटखटाया.
मनिका अंदर सोई पड़ी थी ‘वह अपने घर की गली में थी, और एक आदमी उसका पीछा कर रहा था. मनिका ने अपनी चाल तेज़ कर दी, उसका घर अभी भी थोड़ी दूरी पर था. एक बार फिर जब उसने पलट कर उसका पीछा कर रहे इंसान को देखना चाहा तो पाया कि वह बहुत क़रीब आ चुका था और उसे पकड़ने ही वाला था. मनिका का कलेजा मुँह में आने को हो गया, यकायक ही वह दौड़ पड़ी. उसका घर अब कुछ ही क़दम की दूरी पर रह गया था, लेकिन वह आदमी भी अब उसके पीछे भागते हुए आ रहा था. मनिका भागते हुए अपने घर में जा घुसी और मुड़ कर देखा — वह आदमी अभी भी नहीं रुका और उसकी ओर आता चला जा रहा था, मनिका अब भाग कर घर के अंदर जा पहुँची, उसने पाया कि घर में कोई नहीं था. डर के मारे उसकी टाँगें काँप रही थी, वह धड़धड़ाते हुए सीढ़ियाँ चढ़ अपने कमरे में जा पहुँची और दरवाज़ा बंद कर लिया. कुछ पल की शांति के बाद, अचानक दरवाज़ा कोई दरवाज़ा खटखटाने लगा.’ मनिका एक झटके के साथ उठ बैठी. कोई बाथरूम का दरवाज़ा खटखटा रहा था.
सपना टूटने के साथ ही मनिका को अपनी इस अवस्था में होने का कारण भी याद आ गया था. वह बिना बोले बैठी रही.
‘ट्रेन का टाइम हो गया है.’ जयसिंह की आवाज़ आयी और दरवाज़े पर खटखटाहट बंद हो गयी.
अब असमंजस में पड़ने की बारी मनिका की थी. क्या करे कैसे बाहर जाए, वह अभी भी पिछली रात वाली अधनंगी हालत में थी. एक सूट था जो उसने बालटी में भिगो दिया था. उसने उठ कर बाथरूम के शीशे में देखा, रोने की वजह से उसका मेक-अप उसके चेहरे को बदरंग कर चुका था. फिर उसने पीछे घूम कर शॉर्टस को नीचे करने का व्यर्थ प्रयास किया - उसने देखा कि उसके एक कूल्हे पर लाल निशान पड़ गया था, जयसिंह के ज़ोरदार थप्पड़ को याद कर उसके रोंगटे खड़े हो गए थे. थोड़ी देर इसी तरह खड़ी-खड़ी वह अपने आँसू रोकने की कोशिश करती रही, पर कब तक वह बाथरूम में छुपी रहती, आख़िर बाहर तो निकलना ही था.
जयसिंह ने कमरे में आकर अपने मीटिंग के दस्तावेज़ संभाल के रखे, वे यूँ जता रहे थे जैसे सब कुछ नार्मल ही था. फिर वे चल कर मनिका के पास आ कर खड़े हो गए व उसके दोनों हाथों को अपने हाथों में ले लिया. मनिका ने सकुचाते हुए नज़र ऊपर उठाई.
'ह्म्म्म...' जयसिंह ने हुंकार भरते हुए कहा, 'खुश है मेरी जान?'
'हूँ...ज..जी...' मनिका ने हामी में सर हिलाते हुए कहा.
'अच्छा है, अच्छा है...' जयसिंह ने मुस्कुराते हुए कहा, फिर अपना स्वर जरा नीचे कर बोले, 'आज बिस्तर में जरा जल्दी चलें...कल तो सुबह ट्रेन है ही, हम्म?'
मनिका उनके सवाल से तड़प उठी थी, 'पापा को तो बिलकुल भी शरम नहीं है..!', उस से कुछ कहते न बना, बस उसने अपना शरम से लाल मुहं झुका लिया था. जयसिंह ने इसे उसकी हाँ समझ आगे कहा,
'मैं तो आज सिर्फ नाईट-ड्रेस में चेंज करने के मूड में हूँ...तुम देख लो क्या करना है.' और मनिका का हाथ छोड़ एक पल रुके रहे फिर मुस्का कर अपने सूटकेस से अपना बरमुडा और टी-शर्ट लेकर बाथरूम में चले गए. मनिका धम्म से सोफे पर बैठ गई थी. पर इस से पहले कि वह अपने आप को इस नई परिस्थिति में ढाल पाती, जयसिंह कपड़े बदल कर बाहर भी आ चुके थे.
उसने उनकी तरफ देखा, वे मुस्कुरा रहे थे, फिर उसकी नज़र बरबस ही उनके लंड पर चली गई, बरमुडे का तम्बू बना हुआ था. उसने एक पल जयसिंह की तरफ देखा और पाया कि वे यह सब देख रहे थे, उसकी जान गले में अटक गई थी, वह तेज़ क़दमों से चलती हुयी अपने बैग के पास पहुँची और अपनी नाईट-ड्रेस निकालने लगी.
मनिका बाथरूम के गेट के पास खड़ी थी, वह नहा ली थी और कपड़े बदल लिए थे. लेकिन अब बाहर जाने की हिम्मत जुटाने की कोशिश कर रही थी. कुछ देर खड़ी रहने के बाद उसने हुक पर से अपना पहले पहना हुआ सूट उतरा और अपनी नाईट-ड्रेस उतार उसे पहन लिया और जा कर वॉशबेसिन पर मुहं धोने लगी. लेकिन कुछ वक्त और बीत गया और वह फिर भी बाहर न निकली, और एक बार फिर सूट उतार कर नाईट-ड्रेस पहन ली. एक दो बार ऐसा रिपीट करने के बाद भी जब उससे कोई फैसला न हो सका. वह अब नाईट-ड्रेस में थी. यंत्रवत सी मनिका ने बाल्टी में पानी चलाया और इस बार सूट को हुक पर टांगने की बजाय बाल्टी में डाल दिया. उसके हाथ कांप रहे थे. अब एक बार फिर वह बाथरूम में लगे शीशे के सामने जा खड़ी हुई और अपने साथ लाया छोटा किट (बैग) खोला.
'कहाँ मर गई कुतिया?' जयसिंह ने झुंझलाते हुए सोचा. वे बेड पर लेटे हुए थे, कमरे की लाइट जल रही थी. जयसिंह अपना फोन हाथ में लिए ऐसा जता रहे थे कि वे उसमे व्यस्त हैं, ताकि मनिका के बाहर निकलने पर उन्हें ऐसा न लगे कि वे बस उसे ही तवज्जो देने के लिए बैठे हैं.
'खट' बाथरूम के दरवाजे की कुण्डी खुलने की आवाज़ आई.
जयसिंह ने झट नज़रें मोबाइल में गड़ा लीं थी. पर कनखियों से उन्हें मनिका के सधे हुए क़दमों से कमरे में आने का आभास हुआ, और एक ही पल में वे आश्चर्य से भर उठे थे. उन्होंने मनिका की तरफ देखा.
जब वे लोग दिल्ली आए थे एक वह दिन था और एक आज का दिन था. मनिका ने वही शॉर्ट्स और गंजी पहन रखी थी जो वह उनकी साथ बिताई पहली रात को पहन कर आई थी. जयसिंह आवाक रह गए थे.
***
मनिका हौले से बेड के उपर चढ़ी, कम्बल उसी की तरफ तह करके रखा था, मनिका ने धीरे से उसे खोला और ओढ़ कर लेट गई. उसने अपने पिता की तरफ एक नज़र देखा तो पाया के वे अपना फोन बेड-साइड टेबल पर रख रहे थे, उसकी नज़र उनके अर्धनग्न बदन पर फिसलती हुई उनके बरमुडे पे जा टिकी. पापा का लंड तन चुका था. मनिका ने बरबस ही आँखें मींच लीं.
'मनिका?' जयसिंह की आवाज़ आई. मनिका ने आँखें खोलीं, उसके पिता ने अब उसकी तरफ करवट कर रखी थी और खिसक कर उसके करीब आ गए थे. मनिका उन्हें इतना करीब पा असहज हो उठी, उसने अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से एक पल के लिए जयसिंह को देखा और फिर नज़र नीची कर ली. नीचे देखते ही उसने अपने आप को अपने पिता के बरमुडे में फनफनाते लंड से मुखातिब पाया, उसकी कंपकंपी छूट गई.
जयसिंह ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर मनिका के कंधे पे रखा और सहलाने लगे. 'क्या हुआ मनिका? चुप-चुप कैसे हो?' उन्होंने बात बनाने के बहाने से पूछा. मनिका से कुछ बोलते नहीं बन रहा था, उसे अहसास हुआ के जयसिंह का हाथ धीरे-धीरे उसके कंधे से कम्बल को नीचे खिसका रहा था.
'हूँ?' जयसिंह ने अपने सवाल का जवाब चाहा.
'कुछ नहीं पा..?' मनिका ने हौले से मुहं नीचे किये हुए ही जवाब दिया.
'पैकिंग वगैरह कर ली तुमने?' जयसिंह ने पूछा, कम्बल अब मनिका की बगल से थोड़ा नीचे तक उतर चुका था.
'जी पापा.' मनिका ने बिल्कुल मरी सी आवाज़ में कहा. उसे अपने बदन से उतरते जा रहे कम्बल के आभास ने निश्चल कर दिया था. जयसिंह ने अब कम्बल उसकी कमर तक ला दिया था.
मनिका का दिल जैसे उसके मुहं में आने को हो रहा था. यकायक उसे अपने फैसले पर अफ़सोस होने लगा, 'हाय ये मैंने क्या कर लिया. क्यूँ पहन ली मैंने ये बेकार सी नाईट-ड्रेस..? पापा तो रुक ही नहीं रहे, कम्बल हटा कर ही छोड़ेंगे...' मनिका ने अपने आप को कोसा, फिर उसने धीरे से अपने हाथ से कम्बल पकड़ कर ऊपर करने की कोशिश की.
जयसिंह मनिका की मंशा ताड़ गए थे, जैसे ही मनिका ने कम्बल को धीरे से पकड़ कर ऊपर खींचने की कोशिश की जयसिंह ने अपना हाथ ऊपर उठा लिया और साथ ही उसमे कम्बल का एक सिरा भी फंसा लिया था. एक ही पल में मनिका अब अपने पिता के साथ अर्धनग्न अवस्था में पड़ी थी.
'उन्ह...' मनिका के गले से घुटी सी आवाज़ निकली.
जयसिंह ने कम्बल एक तरफ़ कर दिया. मनिका की नज़र उठने को नहीं हो पा रही थी. उसने अपनी टाँगे भींच कर अपनी मर्यादा बचाने की कोशिश की. पर जयसिंह का पलड़ा आज भारी था. उन्होंने अपना हाथ अपनी बेटी की कमर पर रखा और उसे ऊपर से नीचे तक देखने लगे, जब मनिका ने एक पल के लिए नज़र उठा उनकी तरफ़ देखा तो पाया के वे उसके वक्श्स्थ्ल को ताड़ रहे थे. मनिका की नज़र उठते ही जयसिंह ने भी उसके चेहरे की तरफ़ देखा और मुस्कुराते हुए अपना हाथ उसकी कमर से उठा कर उसके गले पर ले आए और सहलाते हुए कहा,
‘क्या बात है मनिका, आज तो दिल जीत लिया तुमने.’ मनिका क्या कहती, जयसिंह ही आगे बोले, ‘आज ये वाली नाइट ड्रेस कैसे पहन ली?’
मनिका एक बार फिर नज़र झुकाए रही तो जयसिंह थोड़ा उसके ऊपर झुक आए, उनके ऐसा करते ही, मनिका ने पाया के उसके पिता का लंड भी उसे छूने को हो रहा था. ‘बोलो ना?’ जयसिंह ने हमेशा की तरह उसपर दबाव बनाने के लिए पूछा.
‘वो…वो…आपने कहा न पापा कल…’ मनिका ने अटकते हुए कहा.
‘काश पहले पता होता…कि मेरे कहने पर तुम इस तरह…तो पता नहीं कब का कह देता.’ जयसिंह की आवाज़ पूरी तरह बदल गयी थी, उसमें सिर्फ़ हवस और वासना थी.
‘क्या…आह्ह…क्या बोल रहे हो आप पापा…’ मनिका उनके इस रूप से सहम गयी थी.
‘यही कि काफ़ी जवान हो गयी हो तुम…’ जयसिंह ने एक बार फिर उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा, और अपना हाथ अपनी बेटी की नंगी जाँघ पर ले जा कर सहलाने लगे, ‘पर आज तो मज़ा नहीं आया उतना.’
‘पापा आप ऐसे क्यूँ बोल रे हो? क्या…क्या…मज़ा नहीं आया…?’ मनिका ने और ज़्यादा सहमते हुए कहा. दरअसल मनिका ने अभी तक सिर्फ़ जयसिंह की हरकतों को एक दीवाने इंसान की हरकतों की तरह ही देखा था. लेकिन अब उनके अंदर की हवस को पूरी तरह बाहर आते देख उसकी सिट्टी-पिट्टि गुम हो गयी थी.
जयसिंह ने इस बार सीधे जवाब न देकर पहले उसकी जाँघ को अपने हाथ से पकड़ कर दबाया, और फिर अपना मुँह उसके चेहरे से सटाते हुए भरभराती आवाज़ में बोले, ‘अरे डार्लिंग, पिछली बार तो अंदर बिना ब्रा-पैंटी पहने आई थी तू…या वो भी मैं कहूँगा तो उतारेगी आज…हूँ?’
मनिका की सारी इज़्ज़त तार-तार हो गयी थी. उसने एकदम से अपने उन्मादी बाप को धक्का दिया और पीछे खिसकते हुए तेज़ी से बिस्तर से उतर कर बाथरूम की तरफ़ भागी. जयसिंह को उसकी इस प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी, परंतु वे क्या समझते, वासना ने एक बार फिर उनकी बुद्धि को मात दे दी थी. लेकिन मनिका को इस तरह भागते देख वे भी उसके पीछे लपके थे और बेड से नीचे उतर कर मनिका जैसे ही सीधी होकर भागने लगी थी, जयसिंह ने एक ज़ोरदार थप्पड़ मनिका की अधनंगी गाँड पर जड़ दिया था.
‘तड़ाक’ जयसिंह के हाथ के मनिका की गाँड पर लगते ही एक तेज़ आवाज़ हुयी.
मनिका एक पल लड़खड़ाई थी और उसके मुँह से कराह निकली थी, ‘आह्ह्ह्ह…’ और फिर अगले ही पल वह बाथरूम में जा घुसी और एक सिसकी के साथ दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई.
‘आऽऽऽऽ…हाए माऽऽऽऽ…’ मनिका अपने हाथों में मुँह छुपाए रो रही थी. हर एक पल बाद उसका अधनंगा जिस्म भय और शर्म से कंपकंपा जाता था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या सोच कर उसने अपने आप को इस स्थिति तक आने दिया था. जब उसे साफ़ पता चल चुका था कि उसके पिता के इरादे नेक नहीं है, फिर भी उसने उनका प्रतिकार करने के बजाय उनको उकसाया था. अपनी इस लाचार अवस्था पर विचार कर-कर के बार-बार उसकी रूलाई फूट रही थी. उसे अपने पिता, जयसिंह, पर भी बेहद ग़ुस्सा आ रहा था. उन्होंने अपने धर्म का निर्वाह करने के बजाय उसके साथ इस तरह का कुकर्म करने की कोशिश की थी. आख़िर में तो सब उन्हीं की चालबाज़ी का नतीजा था.
‘बस किसी तरह घर वापस पहुँच जाऊँ, सब बता दूँगी मम्मी को.’ मनिका बैठी हुई ख़ैर मना रही थी, ‘कितने कमीने हैं पापा, कितनी गंदी बात बोल रहे थे मुझे, और मेरेको कैसे गंदा टच कर रहे थे.’ मनिका ने सिहरते हुए सोचा, ‘हे भगवान, ये क्या हो रहा है मेरे साथ? पापा को तो मैं कितना अच्छा समझती थी, कितना प्यार करते थे मुझे वे घर पे…और अब तो मुझे सिर्फ़ गंदी नज़रों से देखते हैं…’ मनिका के दिमाग़ में एक के बाद एक ख़याल आते जा रहे थे, ‘पर मैंने भी तो उनको बढ़ावा दिया…पता नहीं मेरा भी कैसे माथा ख़राब हो गया था…हाय…आज के बाद उनसे कभी बात नहीं करूँगी…ऐसा बाप किसी को न दे भगवान…’
जयसिंह की पाप की लंका का दहन हो चुका था, कुछ पल तो वे अपनी वासना के उन्माद से ऊबर ही न सके थे, लेकिन फिर उन्हें अपनी परिस्थिति की नाजुकता जा अंदाज़ा होने लगा. वे उठ कर बिस्तर पर बैठ गए, उनका लिंग भी अब शांत हो कर सुस्त पड़ गया था. कुछ देर बैठे रहने के बाद वे उठ कर दबे पाँव बाथरूम के दरवाज़े के पास गए. अंदर से मनिका के सिसकने की आवाज़ आ रही थी, वे कुछ पल सुनते रहे और फिर वापस बिस्तर पर जा बैठे. उनका सिर झुका हुआ था और वे हार मान चुके थे.
‘पता नहीं क्या होगा, यह तो सब दाँव उलटे पड़ गए…साली मनिका इस तरह पलटी मार जाएगी, यह तो मेरे दिमाग़ में ही नहीं आया.’ वे अपनी हार पर निराशा और भय से भर चुके थे, ‘कहीं इसने किसी के सामने मुँह खोल दिया तो मैं तो कहीं का नहीं रहूँगा…हे भगवान मेरी भी मत मारी गयी थी, इतने मौक़े आए जब मैं संभल सकता था लेकिन इस वासना के भूत ने मुझे बर्बाद करके ही छोड़ा…’
सुबह होते-होते मनिका की आँख लग गयी थी, वह बाथरूम के ठंडे फ़र्श पर ही निढ़ाल हो कर पड़ी हुई थी.*उधर जयसिंह भी अपनेआप को कोसते-कोसते सो गए थे. वह तो शुक्र था कि उनकी ट्रेन का रेज़र्वेशन होटेल के फ़्रंट-डेस्क वालों ने कराया था, क़रीब सवा-सात बजे उन्होंने वेक-अप कॉल किया. जयसिंह हड़बड़ा कर उठ खड़े हुए.
‘हेल्लो?’ उन्होंने रिसीवर उठाते हुए कहा.
‘सर, होटेल फ़्रंट-डेस्क, दिस इज अ वेक अप कॉल फ़ोर योर कन्वीन्यन्स.’ उधर से आवाज़ आयी.
‘ओह! थैंक-यू…थैंक-यू.’ कहते हुए जयसिंह ने फ़ोन रख दिया.
अब जयसिंह को पिछली रात की अपनी करतूत के सही मायने समझ आने लगे थे. वे अब अपनी बेटी से बात करने लायक भी नहीं रहे थे. वे कुछ देर इसी असमंजस में बैठे रहे कि मनिका को बाथरूम से बाहर आने को कैसे कहें. उनकी ट्रेन सवा-नौ बजे की थी. जब घड़ी में पौने-आठ होने लगे, तो उन्होंने किसी तरह हिम्मत जुटायी और बाथरूम के गेट के पास गए.
जयसिंह ने एक पल रुक कर दरवाज़ा खटखटाया.
मनिका अंदर सोई पड़ी थी ‘वह अपने घर की गली में थी, और एक आदमी उसका पीछा कर रहा था. मनिका ने अपनी चाल तेज़ कर दी, उसका घर अभी भी थोड़ी दूरी पर था. एक बार फिर जब उसने पलट कर उसका पीछा कर रहे इंसान को देखना चाहा तो पाया कि वह बहुत क़रीब आ चुका था और उसे पकड़ने ही वाला था. मनिका का कलेजा मुँह में आने को हो गया, यकायक ही वह दौड़ पड़ी. उसका घर अब कुछ ही क़दम की दूरी पर रह गया था, लेकिन वह आदमी भी अब उसके पीछे भागते हुए आ रहा था. मनिका भागते हुए अपने घर में जा घुसी और मुड़ कर देखा — वह आदमी अभी भी नहीं रुका और उसकी ओर आता चला जा रहा था, मनिका अब भाग कर घर के अंदर जा पहुँची, उसने पाया कि घर में कोई नहीं था. डर के मारे उसकी टाँगें काँप रही थी, वह धड़धड़ाते हुए सीढ़ियाँ चढ़ अपने कमरे में जा पहुँची और दरवाज़ा बंद कर लिया. कुछ पल की शांति के बाद, अचानक दरवाज़ा कोई दरवाज़ा खटखटाने लगा.’ मनिका एक झटके के साथ उठ बैठी. कोई बाथरूम का दरवाज़ा खटखटा रहा था.
सपना टूटने के साथ ही मनिका को अपनी इस अवस्था में होने का कारण भी याद आ गया था. वह बिना बोले बैठी रही.
‘ट्रेन का टाइम हो गया है.’ जयसिंह की आवाज़ आयी और दरवाज़े पर खटखटाहट बंद हो गयी.
अब असमंजस में पड़ने की बारी मनिका की थी. क्या करे कैसे बाहर जाए, वह अभी भी पिछली रात वाली अधनंगी हालत में थी. एक सूट था जो उसने बालटी में भिगो दिया था. उसने उठ कर बाथरूम के शीशे में देखा, रोने की वजह से उसका मेक-अप उसके चेहरे को बदरंग कर चुका था. फिर उसने पीछे घूम कर शॉर्टस को नीचे करने का व्यर्थ प्रयास किया - उसने देखा कि उसके एक कूल्हे पर लाल निशान पड़ गया था, जयसिंह के ज़ोरदार थप्पड़ को याद कर उसके रोंगटे खड़े हो गए थे. थोड़ी देर इसी तरह खड़ी-खड़ी वह अपने आँसू रोकने की कोशिश करती रही, पर कब तक वह बाथरूम में छुपी रहती, आख़िर बाहर तो निकलना ही था.