hotaks444
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लगभग 20 मिनट के घमासान के बाद जयसिंह और मधु साथ साथ झाड़ गए, उनके पानी का मिश्रण मधु की चुत से होता हुआ बेडशीट के ऊपर टपक रहा था, दोनों अभी भी बुरी तरह हांफ रहे थे, और जयसिंह का लंड अभी भी मधु की चुत में ही घुस था, पर अब दोनो की वासना सन्तुष्ट हो चुकी थी, इसलिए वो दोनों नंगे ही चुत में लंड घुसे हुए एक दूर की बाहों में मजे से सो गए।
आज साल भर बाद मधु और जयसिंह ने सम्भोग किया था, मधु तो इस असीम आंनद को पाकर गहरी नींद के आगोश में चली गई थी, पर जयसिंह में मन मे अब भी उथल पुथल मची हुई थी,जयसिंह ने सोचा था कि उसके मधु के साथ सम्भोग करने से उसका मन और लोडा दोनों शांत हो जायेगे पर वो कहते है ना सेक्स वो आग है जो एक बार करने से बुझती नही बल्कि भड़क जाती है, और यही जयसिंह के साथ भी हो रहा था ,उसके दिमाग के घोड़े लगातार दौड़े जा रहे थे और हर बार उसे एक ही मंज़िल पर लेकर जाते - " मनिका " ,जयसिंह तुरंत अपने दिमाग को झटकता ताकि मनिका का ख्याल उसके दिमाग से निकल जाए पर हर बार उसकी आँखों के सामने आज शाम का नज़ारा घूम जाता, आखिर किसी तरह अपने मन को शांत करके वो नींद लेने की कोशिश करने लगा
इधर रात में मनिका अपने पापा को अपने करीब लाने कि योजना सोच रही थी, उसे एक बात तो बिल्कुल साफ हो गयी थी कि उसके पापा जानबूझकर उसके सामने आने में और उससे बाते झिझक रहे हैं, ओर इसलिए मनिका ने इरादा बना लिया था कि सबसे पहले उसे अपने पापा की झिझक खत्म करनी होगी, उन्हें यकीन दिलाना होगा कि वो उनसे नाराज़ नहीं है और ये करने के लिए उसे अपने पापा के साथ थोड़ा खुलना होगा, उनसे प्यार से आराम से बात करनी होगी,मनिका रात भर इसी उधेड़बुन में लगी रही और फाइनली अपनी योजना को सफल बनाने के लिए उसने तीन पॉइंट डिसाइड किये
पहला कि अपने पापा से खुलकर बात करना ताकि उनकी झिझक खत्म हो
दूसरा उन्हें मेरे बदन की झलकियाँ दिखाकर उनके होश उड़ाना
तीसरा की उन्हें पूरी तरह काबू में लाकर वो सब हासिल करना जो पहले वो चाहते थे पर अब मैं चाहती हूं,
मनिका जानती थी कि उसे ये सब करने के लिए बड़ी मेहनत करनी होगी और थोड़ा धैर्य रखना होगा वरना बात बिगड़ सकती है, इसी तरह अपनी प्लानिंग करते करते उसे नींद आ गयी थी।
कहते है सेक्स के बाद बड़ी अच्छी नींद आती है और इसीलिए सुबह जयसिंह की आंख खुली तो घड़ी की सुई 8 बजा रही थी, उसने अपने आस पास नज़र दौड़ाई तो मधु वहां से जा चुकी थी, जयसिंह फ्रेश होने के लिए बाथरूम में गया और लगभग 1 घण्टे में आफिस जाने के लिए बिल्कुल रेडी हो गया ,अब सिर्फ नाश्ता करना ही बाकी रह गया था।
वो ब्रेकफास्ट करने के लिए हॉल में गया तो वहां का नज़ारा देख उसके माथे पर शिकन की लकीरें उभर आई...मनिका पहले से ही वहाँ पर बैठी नाश्ता कर रही थी ...मनिका ने आज जानबूझकर स्कर्ट पहन रखी थी जो उसके उसके घुटने से थोड़ी सी ही ऊपर थी ...उसकी पीठ जयसिंह की तरफ थी.....जयसिंह ने सोचा कि मनिका की नज़र बचाकर सीधा ऑफिस के लिए निकल लेता हूँ इसलिए वो दबे पांव दरवाज़े की ओर बढ़ने लगा
"अरे, आप कहाँ जा रहे है, नाश्ता तो कर लीजिए" मधु किचन से निकलती हुई जयसिंह को बाहर जाता देख बोली
"अम्ममम्मम .......मधु......वो वो....म.....ऑफिस में ही कर लूंगा नाश्ता......तुमम्म चिंता मत करो" जयसिंह घबराता हुआ बोला
"नहीं कोई जरूरत नही है आफिस में नाश्ता करने की , आप यही नाश्ता करके जाओ, बाहर की चीज़ें ज्यादा नही खानी चाहिए वरना बीमार पड़ जाओगे, चलिए आइए इधर, मैं अभी आपके लिए प्लेट लगाती हूँ....." मधु ने लगभग आर्डर देते हुए अंदाज़ में कहा
अब जयसिंह के पास भी कोई चारा नहीं था.... इसलिए वो हारकर वापस टेबल की तरफ बढ़ने लगा......एक बार फिर उसका दिल धक धक करने लगा..... उसके हाथ पांव फूलने लगे......वो धीरे धीरे चलता हुआ टेबल की तरफ आया और जाकर अपनी सीट पर बैठ गया......उसकी नज़र अभी भी नीचे की ओर झुकी हुई थी......
दूसरी तरफ मनिका ठीक उसके साइड वाली सीट पर बैठी थी, आज उसने पहले से ही डिसाइड कर रखा था कि सुबह अपने पापा के आफिस जाने से पहले उनका दीदार जरूर करेगी, और इसीलिए वो सुबह 6 बजे ही जग गयी थी ,
जयसिंह को अपने पास बैठा देखकर मनिका के होठों पर कुटिल मुस्कान उभर आई,
"गुडमार्निंग पापा..." मनिका बड़ी सी मुस्कान अपने चेहरे पे बिखेरते हुए बोली, वो अपनी पहली चाल पर आगे बढ़ने लगी थी
"अम्म गुड़....मॉर्निंग....मणि.. बेटी...."
जयसिंह ने बिल्कुल सकपकाते हुए नज़रे झुकाकर ही उत्तर दिया,
पर इधर मनिका को अपने लिए बेटी शब्द सुनकर जाने क्यों बिल्कुल भी अच्छा नही लग रहा था , उसे तो मणि सुनना भी पसंद नही था, मनिका तो चाहती थी कि उसके पापा उसे दोबारा मनिका कहकर बुलाये, पर अभी मधु के रहते ऐसा करना उसे ठीक नही लगा,
"आप ऑफिस जा रहे है क्या पापा" मनिका ने जयसिंह के चेहरे पर नज़र गड़ाते हुए पूछा
"हां मणि.....वो.... ऑफिस में काफी काम है ..." जयसिंह ने थोड़ा झिझकते हुए जवाब दिया
"आपका बिज़नेस कैसा चल रहा है" मनिका ने बात आगे बढ़ते हुए कहा
" मम्मम बिज़नेस तो...अच्छा ..ही चल रहा है " जयसिंह ने भी जवाब दिया
"मम्मी तो बोल रही थी कि अब आपका बिज़नेस बड़ा अच्छा चलने लगा है और अब आपको पहले से ज्यादा प्रॉफिट होता है" मनिका ने कहा
" हाँ... वो तो है, अब बिज़नेस थोड़ा एक्सपैंड हो गया है ना इसलिए...थोड़ा मम्मम ज्यादा ध्यान देना पड़ता है" जयसिंह ने सम्भलकर जवाब देते हुए कहा, उनसे अब भी मनिका से नज़रे नही मिलाई थी
कुछ देर दोनों के बीच थोडी शांती रही जिसे मनिका ने अपने सवाल से तोड़ते हुए जयसिंह से पूछा" पापा.....आप मेरी पढ़ाई के बारे में नही पूछोगे क्या....मम्मी तो जब से मैं आयी हूँ यही पूछती रहती है, पर आपने तो एक बार भी नही पूछा.....आप मुझसे नाराज है क्या" मनिका ने अपनी चाल में हुक्म का इक्का चल दिया था, उसे पता था कि नाराज़गी की बात सुनकर जयसिंह तुरंत उसकी बात का जवाब देगा और हुआ भी ठीक वैसा ही,
जयसिंह ने तुरन्त मनिका की ओर देखते हुए कहा "नाराज़, नहीं तो , मैं भला तुमसे नाराज़ क्यों होने लगा, वो तो बस मुझे थोड़ा टाइम नही मिला इसलिए मैं तुमसे नही पूछ पाया "
मनिका के घर आने के बाद ये पहली बार था जब जयसिंह ने उससे आँखे उठाकर बात की थी, मनिका ने इसे अपनी छोटी सी जीत की तरह लिया पर उसे भी पता था कि मंज़िल अभी बहुत दूर है पर उसे इस बात की खुशि थी कि उसकी पहली चाल बिल्कुल सही दिशा में कामयाबी की ओर जा रही है,
"तो आप मुझसे बातें क्यों नही करते, हमेशा कटे कटे से रहते हैं, मम्मी भी आपकी शिकायत कर रही थी कि आप घर पर कम टाइम स्पेंड करने लगे है" मनिका लगातार जयसिंह को बातों में लगाये रखना चाहती थी ताकि जयसिंह की झिझक कम हो जाये
" नहीं मणि, ऐसी तो कोई बात नही, वो तो बस थोड़ा काम ज्यादा होने की वजह से कभी कभी घर लेट आना होता है वरना तो...... " जयसिंह ने अपना बचाव करते हुए कहा
"वरना तो क्या, मम्मी ने मुझे सब बताया है कि आप कभी कभी नही बल्कि हमेशा ही लेट आते है, खाना भी बाहर ही कहते हो,बोलो मैं सही बोल रही हूं या नहीं" मनिका ने चहकते हुए कहा
" नहीं तो , मैं तो ज्यादातर घर ही खाता हूं खाना" जयसिंह अब मनिका से अपनी पुराने तनाव को भूलकर अपना बचाव करने में लगे थे
"आप ऐसे नही मानोगे मैं अभी मम्मी को बुलाकर पूछती हूँ........मम्मी......ओ...मम्मी.....जरा इधर तो आना" मनिका अब जोर जोर अपनी मम्मी मम्मी को आवाज़ लगाने लगी
"आ रही हु बाबा, ऐसे क्यों चिल्ला रही है, ये लड़की भी न बस" मधु जल्दी ही नाश्ता लेते हुए आयी और खुद भी वहीं बैठ गयी
"क्या है ,क्यों जोर जोर से चिल्ला रही थी " मधु ने हल्का सा गुस्सा करते हुए पूछा और साथ ही जयसिंह की प्लेट में नाश्ता सर्व करने लगी
"मम्मी, पापा बोल रहे हैं कि वो रोज़ाना घर पर टाइम से आते है और हमेशा घर पर ही खाना खाते है, आप बोलो की ये सच है या झुठ" मनिका ने मधु की ओर देखकर कहा
"अरे वाह, आप तो अब झूठ भी बोलने लगे हो, मनिका ये हमेशा लेट ही आते है, और खाना भी अक्सर बाहर ही खाते हैं, कितनी बार समझाया कि घर जल्दी आया करो पर इनके कानो पर तो जूं तक नही रेंगती, अब तू ही इन्हें समझा" मधु ने लगभग शिकायत के अंदाज़ में जयसिंह की तरफ देखकर कहा
"अच्छा ....तो पापा अब आप मुझसे झूट भी बोलने लगे....हम्म्म्म....." मनिका ने हंसते हुए बड़ी बड़ी आंखे निकालकर जयसिंह से कहा
"अम्म वो वो मणि..... अब मैं क्या बोलू? " जयसिंह थोड़ा सा घबराकर बोला
उसके इस तरह डरने से मधु और मनिका को भी हंसी आने लगी , और उनको इस तरह हसता देख जयसिंह भी थोड़ा मुस्कुरा दिया
,
"आज कितने दिनों बाद आपको हसता देखा है, वरना तो मनिका के जाने के बाद जैसे आपकी हंसी भी चली गयी थी" मधु ने जयसिंह को मुस्काता देख कहा
"आप चिंता मत कीजिये मम्मी, मेरे जाने की वजह से ये हसना भूल गए थे पर अब मैं आ गयी हूँ ना, तो अब मैं इनको बिल्कुल पहले जैसा बना दूंगी" मनिका ने 'पहले' शब्द पर कुछ ज्यादा ही जोर दिया
था
धीरे धीरे जयसिंह भी मनिका से थोड़ा खुलता जा रहा था और धीरे धीरे उसकी झिझक कम होती जा रही थी,उसे यकीन होता जा रहा था कि मनिका शायद दिल्ली वाली घटना को भुलाकर उसे एक ओर मौका देना चाहती है, क्योंकि मनिका ने घर आने के बाद से उससे हमेशा ठीक से ही बात की थी, इससे जयसिंह को थोड़ा थोड़ा यकीन होने लगा था कि शायद मनिका ने उसे माफ कर दिया है, इसलिए जयसिंह को भी अब उससे बातें करने में कम झिझक हो रही थी
वो सब अभी बाते कर रहे थे कि मनिका ने अपनी अपनी चाल का अगला हिस्सा चला
"मम्मी मेरी वो पुरानी 12th की बुक्स कहाँ है, मुझे उनमे से एक बुक चाहये थी, मेरी स्टडी के लिए" मनिका ने तिरछी नज़रो से जयसिंह के चेहरे को देखते हुए मधु से पूछा
"मणि.... वो तो स्टोर रूम में ऊपर टांड पर रखी है, तेरे कॉलेज जाने के बाद मैंने उन्हें एक बॉक्स में रखकर वहां रखवा दिया था, पर वो तो बहुत ऊपर हैं तेरे हाथ कैसे आएगी, मैं एक काम करती हूं , शाम तक किसी से उतरवा दूंगी, " मधु ने कॉफी पीते हुए ही कहा
"पर मम्मी मुझे तो अभी ही चाहिए , मुझे उनमे से कुछ जरूरी नोट्स बनाने है" मनिका ने बड़ा ही मासूम से चेहरा बनाते हुए कहा
"चल तो फिर तेरे पापा ही तेरी हेल्प कर देंगे उन्हें उतरवाने में" मधु ने बड़े ही सामान्य तरीके से जवाब दिया
"पर....मधु.....मुझे तो ऑफिस जाना है.....लेट हो रहा है...." जयसिंह ने कहा
"क्या ऑफिस..... थोड़ा लेट चले जाओगे तो पहाड़ नही टूट जाएगा....बच्ची यहां पढ़ने के लिए बुक्स मांग रही है और आप हो कि 5 मिनट ऑफिस लेट नही जा सकते...."
मधु ने तल्खी से जवाब देते हुए कहा
"पर मधु मेरी बात तो सुनो" जयसिंह ने एक बार और कोशिश करते हुए मधु से कहा
"पर वर कुछ नहीं, आप बुक्स उतारोगे तो उतारोगे, मुझे ओर कुछ नहीं सुनना" मधु ने आर्डर करते हुए जयसिंह से कहा
"चलो ठीक है, उतारता हूँ मैं बुक्स" जयसिंह ने निराश होते हुए कहा, उसे भी पता था कि मधु को ज़िद के आगे उसकी नहीं चलने वाली है
उसने फटाफट बाकी नाश्ता किया और हाथ धोकर स्टोर रूम की तरफ जाने लगा,
"रुकिए पापा, मैं भी आती हूँ" मनिका ने जयसिंह को रोकते हुए कहा
"तुम्म्म्म्म..... क्या करोगी....मणि.... मम्मम मैं...उतारता हूँ ना" जयसिंह घबराते हुए बोला
"पर मुझे जो बुक चाहिए वो मैं निकाल लूँगी, बाकी बुक्स आप दोबारा रख देना" मनिका बड़े ही आराम से बोली
"ठीक है जैसा तुम बोलो" जयसिंह ने भी बेमन से जवाब दे दिया
अब मनिका ने तुरंत हाथ धो लिए और जयसिंह के साथ स्टोररूम की तरफ चल पड़ी जो फर्स्ट फ्लोर पर था।
आज साल भर बाद मधु और जयसिंह ने सम्भोग किया था, मधु तो इस असीम आंनद को पाकर गहरी नींद के आगोश में चली गई थी, पर जयसिंह में मन मे अब भी उथल पुथल मची हुई थी,जयसिंह ने सोचा था कि उसके मधु के साथ सम्भोग करने से उसका मन और लोडा दोनों शांत हो जायेगे पर वो कहते है ना सेक्स वो आग है जो एक बार करने से बुझती नही बल्कि भड़क जाती है, और यही जयसिंह के साथ भी हो रहा था ,उसके दिमाग के घोड़े लगातार दौड़े जा रहे थे और हर बार उसे एक ही मंज़िल पर लेकर जाते - " मनिका " ,जयसिंह तुरंत अपने दिमाग को झटकता ताकि मनिका का ख्याल उसके दिमाग से निकल जाए पर हर बार उसकी आँखों के सामने आज शाम का नज़ारा घूम जाता, आखिर किसी तरह अपने मन को शांत करके वो नींद लेने की कोशिश करने लगा
इधर रात में मनिका अपने पापा को अपने करीब लाने कि योजना सोच रही थी, उसे एक बात तो बिल्कुल साफ हो गयी थी कि उसके पापा जानबूझकर उसके सामने आने में और उससे बाते झिझक रहे हैं, ओर इसलिए मनिका ने इरादा बना लिया था कि सबसे पहले उसे अपने पापा की झिझक खत्म करनी होगी, उन्हें यकीन दिलाना होगा कि वो उनसे नाराज़ नहीं है और ये करने के लिए उसे अपने पापा के साथ थोड़ा खुलना होगा, उनसे प्यार से आराम से बात करनी होगी,मनिका रात भर इसी उधेड़बुन में लगी रही और फाइनली अपनी योजना को सफल बनाने के लिए उसने तीन पॉइंट डिसाइड किये
पहला कि अपने पापा से खुलकर बात करना ताकि उनकी झिझक खत्म हो
दूसरा उन्हें मेरे बदन की झलकियाँ दिखाकर उनके होश उड़ाना
तीसरा की उन्हें पूरी तरह काबू में लाकर वो सब हासिल करना जो पहले वो चाहते थे पर अब मैं चाहती हूं,
मनिका जानती थी कि उसे ये सब करने के लिए बड़ी मेहनत करनी होगी और थोड़ा धैर्य रखना होगा वरना बात बिगड़ सकती है, इसी तरह अपनी प्लानिंग करते करते उसे नींद आ गयी थी।
कहते है सेक्स के बाद बड़ी अच्छी नींद आती है और इसीलिए सुबह जयसिंह की आंख खुली तो घड़ी की सुई 8 बजा रही थी, उसने अपने आस पास नज़र दौड़ाई तो मधु वहां से जा चुकी थी, जयसिंह फ्रेश होने के लिए बाथरूम में गया और लगभग 1 घण्टे में आफिस जाने के लिए बिल्कुल रेडी हो गया ,अब सिर्फ नाश्ता करना ही बाकी रह गया था।
वो ब्रेकफास्ट करने के लिए हॉल में गया तो वहां का नज़ारा देख उसके माथे पर शिकन की लकीरें उभर आई...मनिका पहले से ही वहाँ पर बैठी नाश्ता कर रही थी ...मनिका ने आज जानबूझकर स्कर्ट पहन रखी थी जो उसके उसके घुटने से थोड़ी सी ही ऊपर थी ...उसकी पीठ जयसिंह की तरफ थी.....जयसिंह ने सोचा कि मनिका की नज़र बचाकर सीधा ऑफिस के लिए निकल लेता हूँ इसलिए वो दबे पांव दरवाज़े की ओर बढ़ने लगा
"अरे, आप कहाँ जा रहे है, नाश्ता तो कर लीजिए" मधु किचन से निकलती हुई जयसिंह को बाहर जाता देख बोली
"अम्ममम्मम .......मधु......वो वो....म.....ऑफिस में ही कर लूंगा नाश्ता......तुमम्म चिंता मत करो" जयसिंह घबराता हुआ बोला
"नहीं कोई जरूरत नही है आफिस में नाश्ता करने की , आप यही नाश्ता करके जाओ, बाहर की चीज़ें ज्यादा नही खानी चाहिए वरना बीमार पड़ जाओगे, चलिए आइए इधर, मैं अभी आपके लिए प्लेट लगाती हूँ....." मधु ने लगभग आर्डर देते हुए अंदाज़ में कहा
अब जयसिंह के पास भी कोई चारा नहीं था.... इसलिए वो हारकर वापस टेबल की तरफ बढ़ने लगा......एक बार फिर उसका दिल धक धक करने लगा..... उसके हाथ पांव फूलने लगे......वो धीरे धीरे चलता हुआ टेबल की तरफ आया और जाकर अपनी सीट पर बैठ गया......उसकी नज़र अभी भी नीचे की ओर झुकी हुई थी......
दूसरी तरफ मनिका ठीक उसके साइड वाली सीट पर बैठी थी, आज उसने पहले से ही डिसाइड कर रखा था कि सुबह अपने पापा के आफिस जाने से पहले उनका दीदार जरूर करेगी, और इसीलिए वो सुबह 6 बजे ही जग गयी थी ,
जयसिंह को अपने पास बैठा देखकर मनिका के होठों पर कुटिल मुस्कान उभर आई,
"गुडमार्निंग पापा..." मनिका बड़ी सी मुस्कान अपने चेहरे पे बिखेरते हुए बोली, वो अपनी पहली चाल पर आगे बढ़ने लगी थी
"अम्म गुड़....मॉर्निंग....मणि.. बेटी...."
जयसिंह ने बिल्कुल सकपकाते हुए नज़रे झुकाकर ही उत्तर दिया,
पर इधर मनिका को अपने लिए बेटी शब्द सुनकर जाने क्यों बिल्कुल भी अच्छा नही लग रहा था , उसे तो मणि सुनना भी पसंद नही था, मनिका तो चाहती थी कि उसके पापा उसे दोबारा मनिका कहकर बुलाये, पर अभी मधु के रहते ऐसा करना उसे ठीक नही लगा,
"आप ऑफिस जा रहे है क्या पापा" मनिका ने जयसिंह के चेहरे पर नज़र गड़ाते हुए पूछा
"हां मणि.....वो.... ऑफिस में काफी काम है ..." जयसिंह ने थोड़ा झिझकते हुए जवाब दिया
"आपका बिज़नेस कैसा चल रहा है" मनिका ने बात आगे बढ़ते हुए कहा
" मम्मम बिज़नेस तो...अच्छा ..ही चल रहा है " जयसिंह ने भी जवाब दिया
"मम्मी तो बोल रही थी कि अब आपका बिज़नेस बड़ा अच्छा चलने लगा है और अब आपको पहले से ज्यादा प्रॉफिट होता है" मनिका ने कहा
" हाँ... वो तो है, अब बिज़नेस थोड़ा एक्सपैंड हो गया है ना इसलिए...थोड़ा मम्मम ज्यादा ध्यान देना पड़ता है" जयसिंह ने सम्भलकर जवाब देते हुए कहा, उनसे अब भी मनिका से नज़रे नही मिलाई थी
कुछ देर दोनों के बीच थोडी शांती रही जिसे मनिका ने अपने सवाल से तोड़ते हुए जयसिंह से पूछा" पापा.....आप मेरी पढ़ाई के बारे में नही पूछोगे क्या....मम्मी तो जब से मैं आयी हूँ यही पूछती रहती है, पर आपने तो एक बार भी नही पूछा.....आप मुझसे नाराज है क्या" मनिका ने अपनी चाल में हुक्म का इक्का चल दिया था, उसे पता था कि नाराज़गी की बात सुनकर जयसिंह तुरंत उसकी बात का जवाब देगा और हुआ भी ठीक वैसा ही,
जयसिंह ने तुरन्त मनिका की ओर देखते हुए कहा "नाराज़, नहीं तो , मैं भला तुमसे नाराज़ क्यों होने लगा, वो तो बस मुझे थोड़ा टाइम नही मिला इसलिए मैं तुमसे नही पूछ पाया "
मनिका के घर आने के बाद ये पहली बार था जब जयसिंह ने उससे आँखे उठाकर बात की थी, मनिका ने इसे अपनी छोटी सी जीत की तरह लिया पर उसे भी पता था कि मंज़िल अभी बहुत दूर है पर उसे इस बात की खुशि थी कि उसकी पहली चाल बिल्कुल सही दिशा में कामयाबी की ओर जा रही है,
"तो आप मुझसे बातें क्यों नही करते, हमेशा कटे कटे से रहते हैं, मम्मी भी आपकी शिकायत कर रही थी कि आप घर पर कम टाइम स्पेंड करने लगे है" मनिका लगातार जयसिंह को बातों में लगाये रखना चाहती थी ताकि जयसिंह की झिझक कम हो जाये
" नहीं मणि, ऐसी तो कोई बात नही, वो तो बस थोड़ा काम ज्यादा होने की वजह से कभी कभी घर लेट आना होता है वरना तो...... " जयसिंह ने अपना बचाव करते हुए कहा
"वरना तो क्या, मम्मी ने मुझे सब बताया है कि आप कभी कभी नही बल्कि हमेशा ही लेट आते है, खाना भी बाहर ही कहते हो,बोलो मैं सही बोल रही हूं या नहीं" मनिका ने चहकते हुए कहा
" नहीं तो , मैं तो ज्यादातर घर ही खाता हूं खाना" जयसिंह अब मनिका से अपनी पुराने तनाव को भूलकर अपना बचाव करने में लगे थे
"आप ऐसे नही मानोगे मैं अभी मम्मी को बुलाकर पूछती हूँ........मम्मी......ओ...मम्मी.....जरा इधर तो आना" मनिका अब जोर जोर अपनी मम्मी मम्मी को आवाज़ लगाने लगी
"आ रही हु बाबा, ऐसे क्यों चिल्ला रही है, ये लड़की भी न बस" मधु जल्दी ही नाश्ता लेते हुए आयी और खुद भी वहीं बैठ गयी
"क्या है ,क्यों जोर जोर से चिल्ला रही थी " मधु ने हल्का सा गुस्सा करते हुए पूछा और साथ ही जयसिंह की प्लेट में नाश्ता सर्व करने लगी
"मम्मी, पापा बोल रहे हैं कि वो रोज़ाना घर पर टाइम से आते है और हमेशा घर पर ही खाना खाते है, आप बोलो की ये सच है या झुठ" मनिका ने मधु की ओर देखकर कहा
"अरे वाह, आप तो अब झूठ भी बोलने लगे हो, मनिका ये हमेशा लेट ही आते है, और खाना भी अक्सर बाहर ही खाते हैं, कितनी बार समझाया कि घर जल्दी आया करो पर इनके कानो पर तो जूं तक नही रेंगती, अब तू ही इन्हें समझा" मधु ने लगभग शिकायत के अंदाज़ में जयसिंह की तरफ देखकर कहा
"अच्छा ....तो पापा अब आप मुझसे झूट भी बोलने लगे....हम्म्म्म....." मनिका ने हंसते हुए बड़ी बड़ी आंखे निकालकर जयसिंह से कहा
"अम्म वो वो मणि..... अब मैं क्या बोलू? " जयसिंह थोड़ा सा घबराकर बोला
उसके इस तरह डरने से मधु और मनिका को भी हंसी आने लगी , और उनको इस तरह हसता देख जयसिंह भी थोड़ा मुस्कुरा दिया
,
"आज कितने दिनों बाद आपको हसता देखा है, वरना तो मनिका के जाने के बाद जैसे आपकी हंसी भी चली गयी थी" मधु ने जयसिंह को मुस्काता देख कहा
"आप चिंता मत कीजिये मम्मी, मेरे जाने की वजह से ये हसना भूल गए थे पर अब मैं आ गयी हूँ ना, तो अब मैं इनको बिल्कुल पहले जैसा बना दूंगी" मनिका ने 'पहले' शब्द पर कुछ ज्यादा ही जोर दिया
था
धीरे धीरे जयसिंह भी मनिका से थोड़ा खुलता जा रहा था और धीरे धीरे उसकी झिझक कम होती जा रही थी,उसे यकीन होता जा रहा था कि मनिका शायद दिल्ली वाली घटना को भुलाकर उसे एक ओर मौका देना चाहती है, क्योंकि मनिका ने घर आने के बाद से उससे हमेशा ठीक से ही बात की थी, इससे जयसिंह को थोड़ा थोड़ा यकीन होने लगा था कि शायद मनिका ने उसे माफ कर दिया है, इसलिए जयसिंह को भी अब उससे बातें करने में कम झिझक हो रही थी
वो सब अभी बाते कर रहे थे कि मनिका ने अपनी अपनी चाल का अगला हिस्सा चला
"मम्मी मेरी वो पुरानी 12th की बुक्स कहाँ है, मुझे उनमे से एक बुक चाहये थी, मेरी स्टडी के लिए" मनिका ने तिरछी नज़रो से जयसिंह के चेहरे को देखते हुए मधु से पूछा
"मणि.... वो तो स्टोर रूम में ऊपर टांड पर रखी है, तेरे कॉलेज जाने के बाद मैंने उन्हें एक बॉक्स में रखकर वहां रखवा दिया था, पर वो तो बहुत ऊपर हैं तेरे हाथ कैसे आएगी, मैं एक काम करती हूं , शाम तक किसी से उतरवा दूंगी, " मधु ने कॉफी पीते हुए ही कहा
"पर मम्मी मुझे तो अभी ही चाहिए , मुझे उनमे से कुछ जरूरी नोट्स बनाने है" मनिका ने बड़ा ही मासूम से चेहरा बनाते हुए कहा
"चल तो फिर तेरे पापा ही तेरी हेल्प कर देंगे उन्हें उतरवाने में" मधु ने बड़े ही सामान्य तरीके से जवाब दिया
"पर....मधु.....मुझे तो ऑफिस जाना है.....लेट हो रहा है...." जयसिंह ने कहा
"क्या ऑफिस..... थोड़ा लेट चले जाओगे तो पहाड़ नही टूट जाएगा....बच्ची यहां पढ़ने के लिए बुक्स मांग रही है और आप हो कि 5 मिनट ऑफिस लेट नही जा सकते...."
मधु ने तल्खी से जवाब देते हुए कहा
"पर मधु मेरी बात तो सुनो" जयसिंह ने एक बार और कोशिश करते हुए मधु से कहा
"पर वर कुछ नहीं, आप बुक्स उतारोगे तो उतारोगे, मुझे ओर कुछ नहीं सुनना" मधु ने आर्डर करते हुए जयसिंह से कहा
"चलो ठीक है, उतारता हूँ मैं बुक्स" जयसिंह ने निराश होते हुए कहा, उसे भी पता था कि मधु को ज़िद के आगे उसकी नहीं चलने वाली है
उसने फटाफट बाकी नाश्ता किया और हाथ धोकर स्टोर रूम की तरफ जाने लगा,
"रुकिए पापा, मैं भी आती हूँ" मनिका ने जयसिंह को रोकते हुए कहा
"तुम्म्म्म्म..... क्या करोगी....मणि.... मम्मम मैं...उतारता हूँ ना" जयसिंह घबराते हुए बोला
"पर मुझे जो बुक चाहिए वो मैं निकाल लूँगी, बाकी बुक्स आप दोबारा रख देना" मनिका बड़े ही आराम से बोली
"ठीक है जैसा तुम बोलो" जयसिंह ने भी बेमन से जवाब दे दिया
अब मनिका ने तुरंत हाथ धो लिए और जयसिंह के साथ स्टोररूम की तरफ चल पड़ी जो फर्स्ट फ्लोर पर था।