hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
उसके कपड़ों में चूमा था वो सब बाहर से साफ देख रहा था और अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे थे वो अपने हाथों से एक बार अपने को सहलाते हुए अपने को मिरर में देखती रही और पलटकर जल्दी से कमरे में आ गई थी और बिस्तर पर धम्म से गिर गई उसका पूरा शरीर में आग लगी हुई थी पर उसने किसी तरह से अपने को कंट्रोल किया हुआ था उसने चद्दर खींचकर अपने को ढका और सबकुछ भूलकर सोने की कोशिश करने लगी उसने कामेश के तकिए को भी चद्दर के अंदर खींच लिया और अपने आपको अपनी बाहों में भर कर सोने की कोशिश करने लगी थी
और उधर भीमा अपने काम से फुर्सत हो गया था पर उसकी नजर बार-बार इंटर काम पर ही थी उसे आज भी उम्मीद थी कि बहू जरूर उसे बुला लेगी पर जब बहुत देर तक फोन नहीं आया तो उसने कई बार फोन उठाकर भी देखा कि कही बंद तो नहीं हो गया था पर टोन आती सुनकर उसने फोन वापस जल्दी से रख दिया और किचेन में ही खड़ा-खड़ा इंतजार करने लगा था पर कोई फोन नहीं आया वो अपने आपको उस हसीना के पास जाने को रोक नहीं पा रहा था पर अपनी हसियत और अपने छोटे पन का अहसास उसे रोके हुए था पर कभी वो निकलकर सीडियो की ओर देखता और वापस किचेन की ओर चला जाता वो अपने को रोकते हुए भी कब सीढ़ियो की ओर उसके पैर उठ गये वो नहीं जानता था
कहाँ से उसमें इतनी हिम्मत आ गई वो नहीं जानता था पर हाँ… वो अब सीढ़िया चढ़ रहा था बार-बार पीछे की ओर देखते हुए और बार अपने को रोकते हुए उसका एक कान किचेन में इंटरकम की घंटी पर भी था और दूसरा कान घर में होने वाली हर आहट पर भी था वो जब बहू के कमरे के पास पहुँचा तो घर में बिल्कुल शांति थी भीमा की सांसें फूल रही थी जैसे की बहुत दूर से दौड़ कर आ रहा हो या फिर कुछ भारी काम करके आया हो भीमा अपने कानों को बहू के दरवाजे पर रखकर अंदर की आहट को सुनने लगा पर कोई भी आहट नहिहुई थी अंदर
वो पलटकर वापस जाने लगा पर थोड़ी दूर जाके रुक गया क्या कर रही है बहू कही उसका इंतजार तो नहीं कर रही है अंदर फोन नहीं कर पाई होगी शायद शरम से या फिर उसे लगता है कि कल ही तो उसने बुलाया था तो आज बुलाने की क्या जरूरत है हाँ शायद यही हो वो वापस मुड़ा और फिर से बहू के कमरे के बाहर आके खड़ा हो गया धीरे से बहुत ही धीरे से दरवाजे पर एक थपकी दी पर अंदर से कोई आवाज नहीं आई और नहीं कल जैसे दरवाजा ही खुला
पर भीमा तो जैसे अपने दिल के हाथों मजबूर था उसका दिल नहीं मान रहा था वो देखना चाहता था कि बहू क्या कर रही है शायद उसका इंतेजार ही कर रही हो और वो अपने कारण इस चान्स को खो देगा वो हिम्मत करके धीरे से दरवाजे को धकेल ही दिया दरवाजा धीरे से अंदर की ओर खुल गया थोड़ा सा पर हाँ अंदर देख सकता था अंदर जब उसने नजर घुमाकर देखा तो पाया कि बहू तो बिस्तर पर सोई हुई है एक चद्दर ढँक कर तकिया पकड़कर एक टाँग जो कि चद्दर के अंदर से निकलकर बाहर से तकिये के ऊपर लिया था वो पूरी नंगी थी सफेद सफेद जाँघो के दर्शान उसे हुए उसकी हिम्मत बढ़ी और वो थोड़ा सा और आगे होके देखने की कोशिश करने लगा वो लगभग अंदर ही आ गया था और धीरे-धीरे
बहू के बिस्तर की ओर बढ़ने लगा था उसकी आखों में बहू की जांघे और फिर गोरी गोरी बाहें भी देखने लगी थी चादर ठीक से नहीं ओढ़ रखी थी बहू ने पर वो जो कुछ भी देख रहा था वो उसके शरीर में जो आग लगा रही थी और उसके अंदर एक ऐसी हिम्मत को जनम दे रही थी की अब तो चाहे जो हो जाए वो बहू को देखे बगैर बाहर नहीं जाएगा वो बहू के बिस्तर के और भी पास आ गया था बहू अब तक सो रही थी पर उसकी चद्दर के अंदर से उसके शरीर का हर उतार चढ़ाव उसे दिख रहा था वो थोड़ा सा झुका और अपने हाथों को बहू की जाँघो पर ले गया वो धीरे-धीरे उसकी जाँघो को अपनी हथेली से महसूस करने लगा उसके हाथो में जैसे कोई नरम सी और चिकनी सी चीज आ गई हो वो बड़ी ही तल्लीनता से बहू की जाँघो को उसके पैरों तक और फिर ऊपर बहुत ऊपर तक उसकी कमर तक ले जाने लगा था पर बहुत ही आराम से जैसे
उसे डर था कही बहू उठ ना जाए पर नहीं बहू के शरीर पर कोई हरकत नहीं हुई थी उसकी हिम्मत और बढ़ी और वो धीरे से बहू के ऊपर से चद्दर को हटाने लगा बहू की पीठ उसकी तरफ थी पर वो बहू की सांसों के साथ उसके शरीर के उठने बैठने के तरीके से समझ गया था कि वो सो रही थी उसने हिम्मत करके बहू के ऊपर से चद्दर को धीरे से हटा दिया
उूुुुउउफफफफफफफफफफ्फ़ क्या शरीर था चद्दर के अंदर गजब का दिख रहा था, सफेद ब्लाउस और पेटीकोट था पहने हाँ… वही तो था कल वाला तो क्या बहू उसके लिए ही तैयार हुए थी आआआआअह्ह
भीमा के मुख से अचानक ही एक आह निकली और उसके हाथ बहू की पीठ पर धीरे-धीरे घूमने लगे थे उसकी मानो स्थिति उस समय ऐसी थी कि वो चाह कर भी अपने पैरों को वापस नहीं लेजा सकता था वो अब बहू के रूप और रंग का दीवाना था और किसी भी हालत में उसे फिर से हासिल करना चाहता था वो दीवानों की तरह अपने हाथों को बहू के शरीर पर घुमा रहा था और ऊपर वाले की रचना को अपने हाथों से महसूस कर रहा था उसके मन में बहुत सी बातें भी चल रही थी वो अपने चेहरे को थोड़ा सा आगे करके बहू को देख भी लेता था और उसके स्थिति का जायजा भी लेता जा रहा था सोते हुए बहू कितनी सुंदर लगती थी बिल्कुल किसी मासूम बच्चे की तरह कितना सुंदर चेहरा है और कितनी सुंदर उसकी काया है उसके हाथ अब बहू कि जाँघो को बहुत ऊपर तक सहला रहे थे और लगभग उसकी कमर तक वो पहुँच चुका था वो धीरे से बहू के बिस्तर पर बैठ गया और बहू कि दोनों टांगों को अपने दोनों खुरदुरे हाथों से
सहलाने लगा था कितना मजा आ रहा था भीमा को यह वो किसी को भी बता नहीं सकता था उसके पास शब्द नहीं थे उस एहसास का वर्णन करने को उसके हाथ धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठ-ते और फिर बहू की जाँघो की कोमलता का एहसास करते हुए नीचे उसकी टांगों पर आकर रुक जाते थे वो अपने को रोक नहीं पाया और उस सुंदरता को चखने के लिए वो धीरे से नीचे झुका और अपने होंठों को बहू के टांगों पर रख दिया और उन्हें चूमने लगा बहुत धीरे से और अपने हाथों को भी उन पर घुमाते हुए धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठने लगा वो अपने जीवन का वो लम्हा सबकुछ भूलकर कामया की जाँघो को समर्पित कर चुका था उसे नहीं पता था कि इस तरह से वो बहू को जगा भी सकता था पर वो मजबूर था और अपने को ना रोक पाकर ही वो इस हरकत पर उतर आया था उसकी जीब भी अब बहू की जाँघो को चाट चाट कर गीलाकर रहे थे और होंठों पर इतनी कोमल और चिकनी काया का स्पर्श उसे जन्नत का वो सुख दे रही थी जिसकी कि उसने कभी भी कल्पना भी नहीं की थी वो अपने मन से बहू की तारीफ करते हुए धीरे-धीरे अपने काम में लगा था और अपने हाथों की उंगलियों को ऊपर-नीचे करते हुए बहू की जाँघो पर घुमा रहा था
उसके उंगलियां बहू की जाँघो के बीच में भी कभी-कभी चली जाती थी वो अपने काम में लगा था कि अचानक ही उसे महसूस हुआ कि बहू की जाँघो और टांगों पर जब वो अपने हाथ फेर रहा था तो उनपर थोड़ा सा खिंचाव भी होता था और बहू के मुख से सांसों का जोर थोड़ा सा बढ़ गया था वो चौंक कर थोड़ा सा रुका कही बहू जाग तो नहीं गई और अगर जाग गई थी तो कही वो चिल्ला ना पड़े वो थोड़ा सा रुका पर बहू के शरीर पर कोई हरकत ना देख कर वो धीरे से उठा और बहू की कमर के पास आ गया और अपने हाथों को उसने उसकी कमर के चारो ओर घुमाने लगा था और एक हाथ से वो बहू की पीठ को भी सहलाने लगा था वो आज अच्छे से बहू को देखना चाहता था और उसके हर उसे भाग को छूकर भी देखना चाहता था जिसे वो अब तक तरीके से देख नहीं पाया था शायद हर पुरुष की यही इच्छा होती है जिस चीज को भोग भी चुका हो उसे फिर से देखने की और महसूस करने की इच्छा हमेशा ही उसके अंदर पनपती रहती है
वही हाल भीमा का भी था उसके हाथ अब बहू की पीठ और, कमर पर घूम रहे थे और हल्के-हल्के वो उसकी चुचियो की ओर भी चले जाते थे पर बहू जिस तरह से सोई हुई थी वो अपने हाथों को उसकी चूची तक अच्छी तरह से नहीं पहुँचा पा रहा था पर फिर भी साइड से ही वो उनकी नर्मी का एहसास अपने हाथों को दे रहा था लेकिन एक डर अब भी उसके जेहन में थी कि कही बहू उठ ना जाए पर अपने को रोक ना पाने की वजह से वो आगे और आगे चलता जा रहा था
और उधर भीमा अपने काम से फुर्सत हो गया था पर उसकी नजर बार-बार इंटर काम पर ही थी उसे आज भी उम्मीद थी कि बहू जरूर उसे बुला लेगी पर जब बहुत देर तक फोन नहीं आया तो उसने कई बार फोन उठाकर भी देखा कि कही बंद तो नहीं हो गया था पर टोन आती सुनकर उसने फोन वापस जल्दी से रख दिया और किचेन में ही खड़ा-खड़ा इंतजार करने लगा था पर कोई फोन नहीं आया वो अपने आपको उस हसीना के पास जाने को रोक नहीं पा रहा था पर अपनी हसियत और अपने छोटे पन का अहसास उसे रोके हुए था पर कभी वो निकलकर सीडियो की ओर देखता और वापस किचेन की ओर चला जाता वो अपने को रोकते हुए भी कब सीढ़ियो की ओर उसके पैर उठ गये वो नहीं जानता था
कहाँ से उसमें इतनी हिम्मत आ गई वो नहीं जानता था पर हाँ… वो अब सीढ़िया चढ़ रहा था बार-बार पीछे की ओर देखते हुए और बार अपने को रोकते हुए उसका एक कान किचेन में इंटरकम की घंटी पर भी था और दूसरा कान घर में होने वाली हर आहट पर भी था वो जब बहू के कमरे के पास पहुँचा तो घर में बिल्कुल शांति थी भीमा की सांसें फूल रही थी जैसे की बहुत दूर से दौड़ कर आ रहा हो या फिर कुछ भारी काम करके आया हो भीमा अपने कानों को बहू के दरवाजे पर रखकर अंदर की आहट को सुनने लगा पर कोई भी आहट नहिहुई थी अंदर
वो पलटकर वापस जाने लगा पर थोड़ी दूर जाके रुक गया क्या कर रही है बहू कही उसका इंतजार तो नहीं कर रही है अंदर फोन नहीं कर पाई होगी शायद शरम से या फिर उसे लगता है कि कल ही तो उसने बुलाया था तो आज बुलाने की क्या जरूरत है हाँ शायद यही हो वो वापस मुड़ा और फिर से बहू के कमरे के बाहर आके खड़ा हो गया धीरे से बहुत ही धीरे से दरवाजे पर एक थपकी दी पर अंदर से कोई आवाज नहीं आई और नहीं कल जैसे दरवाजा ही खुला
पर भीमा तो जैसे अपने दिल के हाथों मजबूर था उसका दिल नहीं मान रहा था वो देखना चाहता था कि बहू क्या कर रही है शायद उसका इंतेजार ही कर रही हो और वो अपने कारण इस चान्स को खो देगा वो हिम्मत करके धीरे से दरवाजे को धकेल ही दिया दरवाजा धीरे से अंदर की ओर खुल गया थोड़ा सा पर हाँ अंदर देख सकता था अंदर जब उसने नजर घुमाकर देखा तो पाया कि बहू तो बिस्तर पर सोई हुई है एक चद्दर ढँक कर तकिया पकड़कर एक टाँग जो कि चद्दर के अंदर से निकलकर बाहर से तकिये के ऊपर लिया था वो पूरी नंगी थी सफेद सफेद जाँघो के दर्शान उसे हुए उसकी हिम्मत बढ़ी और वो थोड़ा सा और आगे होके देखने की कोशिश करने लगा वो लगभग अंदर ही आ गया था और धीरे-धीरे
बहू के बिस्तर की ओर बढ़ने लगा था उसकी आखों में बहू की जांघे और फिर गोरी गोरी बाहें भी देखने लगी थी चादर ठीक से नहीं ओढ़ रखी थी बहू ने पर वो जो कुछ भी देख रहा था वो उसके शरीर में जो आग लगा रही थी और उसके अंदर एक ऐसी हिम्मत को जनम दे रही थी की अब तो चाहे जो हो जाए वो बहू को देखे बगैर बाहर नहीं जाएगा वो बहू के बिस्तर के और भी पास आ गया था बहू अब तक सो रही थी पर उसकी चद्दर के अंदर से उसके शरीर का हर उतार चढ़ाव उसे दिख रहा था वो थोड़ा सा झुका और अपने हाथों को बहू की जाँघो पर ले गया वो धीरे-धीरे उसकी जाँघो को अपनी हथेली से महसूस करने लगा उसके हाथो में जैसे कोई नरम सी और चिकनी सी चीज आ गई हो वो बड़ी ही तल्लीनता से बहू की जाँघो को उसके पैरों तक और फिर ऊपर बहुत ऊपर तक उसकी कमर तक ले जाने लगा था पर बहुत ही आराम से जैसे
उसे डर था कही बहू उठ ना जाए पर नहीं बहू के शरीर पर कोई हरकत नहीं हुई थी उसकी हिम्मत और बढ़ी और वो धीरे से बहू के ऊपर से चद्दर को हटाने लगा बहू की पीठ उसकी तरफ थी पर वो बहू की सांसों के साथ उसके शरीर के उठने बैठने के तरीके से समझ गया था कि वो सो रही थी उसने हिम्मत करके बहू के ऊपर से चद्दर को धीरे से हटा दिया
उूुुुउउफफफफफफफफफफ्फ़ क्या शरीर था चद्दर के अंदर गजब का दिख रहा था, सफेद ब्लाउस और पेटीकोट था पहने हाँ… वही तो था कल वाला तो क्या बहू उसके लिए ही तैयार हुए थी आआआआअह्ह
भीमा के मुख से अचानक ही एक आह निकली और उसके हाथ बहू की पीठ पर धीरे-धीरे घूमने लगे थे उसकी मानो स्थिति उस समय ऐसी थी कि वो चाह कर भी अपने पैरों को वापस नहीं लेजा सकता था वो अब बहू के रूप और रंग का दीवाना था और किसी भी हालत में उसे फिर से हासिल करना चाहता था वो दीवानों की तरह अपने हाथों को बहू के शरीर पर घुमा रहा था और ऊपर वाले की रचना को अपने हाथों से महसूस कर रहा था उसके मन में बहुत सी बातें भी चल रही थी वो अपने चेहरे को थोड़ा सा आगे करके बहू को देख भी लेता था और उसके स्थिति का जायजा भी लेता जा रहा था सोते हुए बहू कितनी सुंदर लगती थी बिल्कुल किसी मासूम बच्चे की तरह कितना सुंदर चेहरा है और कितनी सुंदर उसकी काया है उसके हाथ अब बहू कि जाँघो को बहुत ऊपर तक सहला रहे थे और लगभग उसकी कमर तक वो पहुँच चुका था वो धीरे से बहू के बिस्तर पर बैठ गया और बहू कि दोनों टांगों को अपने दोनों खुरदुरे हाथों से
सहलाने लगा था कितना मजा आ रहा था भीमा को यह वो किसी को भी बता नहीं सकता था उसके पास शब्द नहीं थे उस एहसास का वर्णन करने को उसके हाथ धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठ-ते और फिर बहू की जाँघो की कोमलता का एहसास करते हुए नीचे उसकी टांगों पर आकर रुक जाते थे वो अपने को रोक नहीं पाया और उस सुंदरता को चखने के लिए वो धीरे से नीचे झुका और अपने होंठों को बहू के टांगों पर रख दिया और उन्हें चूमने लगा बहुत धीरे से और अपने हाथों को भी उन पर घुमाते हुए धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठने लगा वो अपने जीवन का वो लम्हा सबकुछ भूलकर कामया की जाँघो को समर्पित कर चुका था उसे नहीं पता था कि इस तरह से वो बहू को जगा भी सकता था पर वो मजबूर था और अपने को ना रोक पाकर ही वो इस हरकत पर उतर आया था उसकी जीब भी अब बहू की जाँघो को चाट चाट कर गीलाकर रहे थे और होंठों पर इतनी कोमल और चिकनी काया का स्पर्श उसे जन्नत का वो सुख दे रही थी जिसकी कि उसने कभी भी कल्पना भी नहीं की थी वो अपने मन से बहू की तारीफ करते हुए धीरे-धीरे अपने काम में लगा था और अपने हाथों की उंगलियों को ऊपर-नीचे करते हुए बहू की जाँघो पर घुमा रहा था
उसके उंगलियां बहू की जाँघो के बीच में भी कभी-कभी चली जाती थी वो अपने काम में लगा था कि अचानक ही उसे महसूस हुआ कि बहू की जाँघो और टांगों पर जब वो अपने हाथ फेर रहा था तो उनपर थोड़ा सा खिंचाव भी होता था और बहू के मुख से सांसों का जोर थोड़ा सा बढ़ गया था वो चौंक कर थोड़ा सा रुका कही बहू जाग तो नहीं गई और अगर जाग गई थी तो कही वो चिल्ला ना पड़े वो थोड़ा सा रुका पर बहू के शरीर पर कोई हरकत ना देख कर वो धीरे से उठा और बहू की कमर के पास आ गया और अपने हाथों को उसने उसकी कमर के चारो ओर घुमाने लगा था और एक हाथ से वो बहू की पीठ को भी सहलाने लगा था वो आज अच्छे से बहू को देखना चाहता था और उसके हर उसे भाग को छूकर भी देखना चाहता था जिसे वो अब तक तरीके से देख नहीं पाया था शायद हर पुरुष की यही इच्छा होती है जिस चीज को भोग भी चुका हो उसे फिर से देखने की और महसूस करने की इच्छा हमेशा ही उसके अंदर पनपती रहती है
वही हाल भीमा का भी था उसके हाथ अब बहू की पीठ और, कमर पर घूम रहे थे और हल्के-हल्के वो उसकी चुचियो की ओर भी चले जाते थे पर बहू जिस तरह से सोई हुई थी वो अपने हाथों को उसकी चूची तक अच्छी तरह से नहीं पहुँचा पा रहा था पर फिर भी साइड से ही वो उनकी नर्मी का एहसास अपने हाथों को दे रहा था लेकिन एक डर अब भी उसके जेहन में थी कि कही बहू उठ ना जाए पर अपने को रोक ना पाने की वजह से वो आगे और आगे चलता जा रहा था