hotaks444
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तो बच्चों का फ़र्ज़ भी है, कि वो उनकी भावनाओं का सम्मान करें…
फिर मेने दोनो भाइयों से मुखातिब होकर कहा – आप लोगों ने भी तो वही राह चुनी जो बाबूजी ने सुझाई थी, तो मे कैसे अलग राह चुन सकता हूँ…
मेरी बातें सुनकर सबकी आँखें नम हो गयी, और बारी-बारी से सबने मुझे सीने से लगाकर आशीर्वाद दिया.
बाबूजी ने मेरे सर पर हाथ रखकर कहा - अब मुझे पूरा विश्वास है, कि तू जो भी करेगा उसमें अवश्य सफल होगा…!
आज मे ईश्वर का बहुत अभारी हूँ, जिसने मुझे इतने लायक बेटे दिए… मेरा जीवन धन्य हो गया…!
आज अगर तुम्हारी माँ जिंदा होती, तो अपने बच्चों को देख कर कितनी खुश होती..ये बोलते - बोलते माँ की याद में उनकी आँखें भर आईं.
भाभी ने बाबूजी से कहा – वो अब भी हमारे बीच ही हैं बाबूजी… आज इस घर में जो खुशियाँ दिख रही हैं, वो उनके त्याग और आशीर्वाद का ही तो फल है…!
बाबूजी ने भाभी के सर पर आशीर्वाद स्वरूप अपना हाथ रख कर कहा – तुम सच कहती हो बेटी,
लेकिन इन सबके अलावा विमला के जाने के बाद जिस तरह से तुमने अपनी छोटी उमर में इस घर को संभाला है, वो भी कोई मामूली बात नही है…
ये घर तुम्हारा हमेशा एहसानमंद रहेगा बेटी….
भाभी – भला अपनों पर भी कोई एहसान करता है बाबूजी…! मेने तो बस वही किया जो माजी मुझसे बोलकर गयी थी…
माहौल थोड़ा एमोशनल सा हो गया था, सभी की आँखें नम हो चुकी थी, इससे पहले की मामला कुछ और सीरीयस रूप लेता, कि तभी रूचि बीच में कूद पड़ी…
मम्मी ! आप लोग बात ही करते रहोगे, मुझे भूख लगी है..., सभी को उसके अचानक इस तरह बोलने से हँसी आ गयी, भाभी ने उठ कर उसे दूध दिया, तो माहौल थोड़ा नॉर्मल हुआ…
कुछ देर के वार्तालाप के बाद डिसाइड हुआ कि मुझे लॉ करना चाहिए, वो भी किसी अच्छे कॉलेज से, सो दूसरे दिन ही बड़े भैया, देल्ही के एक अच्छे से कॉलेज का फॉर्म ले आए…
मेरे ग्रॅजुयेशन के अच्छे नंबरों की वजह से देल्ही के कॉलेज में मुझे अड्मिशन मिल गया…, मे अपनी आगे की पढ़ाई के लिए देल्ही जाने की तैयारियों में जुट गया….!
देल्ही जाने से एक दिन पहले शाम को मे अपने सभी परिवार वालों से मिलने के लिए घर से निकला…
पहले बड़े चाचा के यहाँ, फिर मनझले चाचा-चाची से आशीर्वाद लेकर मे छोटी चाची के यहाँ पहुँचा…
चाचा कहीं बाहर गये थे.. चाची ने मुझे देखते ही, चारपाई पर बिठाया और अंश को रूचि के साथ खेलने को भेजकर वो मेरे पास आकर बैठ गयी…
सी. चाची – लल्ला ! सुना है, तुम दिल्ली जा रहे हो पढ़ने के लिए, इसमें तो सालों निकल जाएँगे…
मे – हां चाची लगभग 4 साल तो लग ही जाएँगे…!
वो – हाए राम ! 4 साल..? चाची दुखी सी दिखाई देने लगी ये सुनकर, फिर मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर बोली…
बहुत याद आओगे तुम, वैसे हम सबके बिना कैसे काटोगे इतने दिन अकेले…?
मे – क्या करूँ चाची काटने तो पड़ेंगे ही… अब बाबूजी की आग्या का पालन तो करना ही पड़ेगा… वैसे आप मुझे बहुत याद आओगी चाची…
मेरी बात सुनकर उनकी आँखें डॅब्डबॉ गयी, और मुझे अपने सीने से लगाकर बोली – सच बेटा…! तुम्हें अपनी चाची की याद आएगी..?
ना जाने क्यों , चाची के मुँह से पहली बार बेटा सुनकर मेरा भी मन भर आया, मेरी आँखों से आँसू छलक पड़े, और मे कसकर उनके सीने से लिपट गया…!
फिर मेने उन्हें अलग करते हुए, उनके आँसू पोंच्छ कर कहा – चाची , एक बार फिरसे बेटा कहो ना… ये शब्द सुनने के लिए कान तरस गये थे मेरे…
चाची – सच बेटा…! मेरा बेटा कहना अच्छा लगा तुम्हें.. ?
मे उनके सीने से एक बार फिर लिपट गया, और हिचकी लेते हुए कहा – हां चाची… मुझे बेटा कहने वाला कोई नही है… आप मेरी माँ बन कर मुझे अपने गले से लगा लो..!
चाची की रुलाई फुट पड़ी, और रोते हुए उन्होने मुझे अपने कंठ से लगा लिया… फिर मेरी पीठ सहलाते हुए बोली – माँ की याद आ रही है मेरे बेटे को… मुझे अपनी माँ ही समझ मेरे बेटे…
मेने रोते हुए कहा – हां ! आप मेरी माँ ही तो हो, जिसने अपने बेटे की हर ख्वाहिश का ख़याल रखा है अबतक…
कुछ देर एमोशनल होने के बाद मेने थोड़ा माहौल चेंज करने की गरज से चाची के होंठों को चूम लिया..और उनकी आँखों में देखते हुए कहा…
वैसे मेरे तो आपसे और भी नाते हैं.. हैं ना चाची…?
वो भी मुस्करा पड़ी, और मेरे होंठों पर प्यारा सा चुंबन लेकर बोली – तुम तो मेरे सब कुछ हो, बेटा, जेठौत (भतीजा)…और..और…
मेने शरारत से उनके आमों को सहलाते हुए कहा- और क्या चाची.. बोलो..
चाची – और मेरे बच्चे के बाप भी…फिर वो मेरी जांघों को सहला कर बोली –
वैसे सच में बहुत याद आएगी तुम्हारी… ख़ासकर इसकी.. ये कहकर उन्होने मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में ले लिया…
मेने उनके आमों को ज़ोर से मसल दिया – सीधे-सीधे कहो ना कि एक बार और चाहिए ये आपको….
वो उसे ज़ोर से दबाते हुए बोली – अभी समय हो तो दे दो ना.. एक बार..
मे – यहीं…?,
ये सुनते ही वो झट से खड़ी हो गयी, और मेरा हाथ पकड़ कर अपने बेडरूम की तरफ चल दी…
फिर मेने दोनो भाइयों से मुखातिब होकर कहा – आप लोगों ने भी तो वही राह चुनी जो बाबूजी ने सुझाई थी, तो मे कैसे अलग राह चुन सकता हूँ…
मेरी बातें सुनकर सबकी आँखें नम हो गयी, और बारी-बारी से सबने मुझे सीने से लगाकर आशीर्वाद दिया.
बाबूजी ने मेरे सर पर हाथ रखकर कहा - अब मुझे पूरा विश्वास है, कि तू जो भी करेगा उसमें अवश्य सफल होगा…!
आज मे ईश्वर का बहुत अभारी हूँ, जिसने मुझे इतने लायक बेटे दिए… मेरा जीवन धन्य हो गया…!
आज अगर तुम्हारी माँ जिंदा होती, तो अपने बच्चों को देख कर कितनी खुश होती..ये बोलते - बोलते माँ की याद में उनकी आँखें भर आईं.
भाभी ने बाबूजी से कहा – वो अब भी हमारे बीच ही हैं बाबूजी… आज इस घर में जो खुशियाँ दिख रही हैं, वो उनके त्याग और आशीर्वाद का ही तो फल है…!
बाबूजी ने भाभी के सर पर आशीर्वाद स्वरूप अपना हाथ रख कर कहा – तुम सच कहती हो बेटी,
लेकिन इन सबके अलावा विमला के जाने के बाद जिस तरह से तुमने अपनी छोटी उमर में इस घर को संभाला है, वो भी कोई मामूली बात नही है…
ये घर तुम्हारा हमेशा एहसानमंद रहेगा बेटी….
भाभी – भला अपनों पर भी कोई एहसान करता है बाबूजी…! मेने तो बस वही किया जो माजी मुझसे बोलकर गयी थी…
माहौल थोड़ा एमोशनल सा हो गया था, सभी की आँखें नम हो चुकी थी, इससे पहले की मामला कुछ और सीरीयस रूप लेता, कि तभी रूचि बीच में कूद पड़ी…
मम्मी ! आप लोग बात ही करते रहोगे, मुझे भूख लगी है..., सभी को उसके अचानक इस तरह बोलने से हँसी आ गयी, भाभी ने उठ कर उसे दूध दिया, तो माहौल थोड़ा नॉर्मल हुआ…
कुछ देर के वार्तालाप के बाद डिसाइड हुआ कि मुझे लॉ करना चाहिए, वो भी किसी अच्छे कॉलेज से, सो दूसरे दिन ही बड़े भैया, देल्ही के एक अच्छे से कॉलेज का फॉर्म ले आए…
मेरे ग्रॅजुयेशन के अच्छे नंबरों की वजह से देल्ही के कॉलेज में मुझे अड्मिशन मिल गया…, मे अपनी आगे की पढ़ाई के लिए देल्ही जाने की तैयारियों में जुट गया….!
देल्ही जाने से एक दिन पहले शाम को मे अपने सभी परिवार वालों से मिलने के लिए घर से निकला…
पहले बड़े चाचा के यहाँ, फिर मनझले चाचा-चाची से आशीर्वाद लेकर मे छोटी चाची के यहाँ पहुँचा…
चाचा कहीं बाहर गये थे.. चाची ने मुझे देखते ही, चारपाई पर बिठाया और अंश को रूचि के साथ खेलने को भेजकर वो मेरे पास आकर बैठ गयी…
सी. चाची – लल्ला ! सुना है, तुम दिल्ली जा रहे हो पढ़ने के लिए, इसमें तो सालों निकल जाएँगे…
मे – हां चाची लगभग 4 साल तो लग ही जाएँगे…!
वो – हाए राम ! 4 साल..? चाची दुखी सी दिखाई देने लगी ये सुनकर, फिर मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर बोली…
बहुत याद आओगे तुम, वैसे हम सबके बिना कैसे काटोगे इतने दिन अकेले…?
मे – क्या करूँ चाची काटने तो पड़ेंगे ही… अब बाबूजी की आग्या का पालन तो करना ही पड़ेगा… वैसे आप मुझे बहुत याद आओगी चाची…
मेरी बात सुनकर उनकी आँखें डॅब्डबॉ गयी, और मुझे अपने सीने से लगाकर बोली – सच बेटा…! तुम्हें अपनी चाची की याद आएगी..?
ना जाने क्यों , चाची के मुँह से पहली बार बेटा सुनकर मेरा भी मन भर आया, मेरी आँखों से आँसू छलक पड़े, और मे कसकर उनके सीने से लिपट गया…!
फिर मेने उन्हें अलग करते हुए, उनके आँसू पोंच्छ कर कहा – चाची , एक बार फिरसे बेटा कहो ना… ये शब्द सुनने के लिए कान तरस गये थे मेरे…
चाची – सच बेटा…! मेरा बेटा कहना अच्छा लगा तुम्हें.. ?
मे उनके सीने से एक बार फिर लिपट गया, और हिचकी लेते हुए कहा – हां चाची… मुझे बेटा कहने वाला कोई नही है… आप मेरी माँ बन कर मुझे अपने गले से लगा लो..!
चाची की रुलाई फुट पड़ी, और रोते हुए उन्होने मुझे अपने कंठ से लगा लिया… फिर मेरी पीठ सहलाते हुए बोली – माँ की याद आ रही है मेरे बेटे को… मुझे अपनी माँ ही समझ मेरे बेटे…
मेने रोते हुए कहा – हां ! आप मेरी माँ ही तो हो, जिसने अपने बेटे की हर ख्वाहिश का ख़याल रखा है अबतक…
कुछ देर एमोशनल होने के बाद मेने थोड़ा माहौल चेंज करने की गरज से चाची के होंठों को चूम लिया..और उनकी आँखों में देखते हुए कहा…
वैसे मेरे तो आपसे और भी नाते हैं.. हैं ना चाची…?
वो भी मुस्करा पड़ी, और मेरे होंठों पर प्यारा सा चुंबन लेकर बोली – तुम तो मेरे सब कुछ हो, बेटा, जेठौत (भतीजा)…और..और…
मेने शरारत से उनके आमों को सहलाते हुए कहा- और क्या चाची.. बोलो..
चाची – और मेरे बच्चे के बाप भी…फिर वो मेरी जांघों को सहला कर बोली –
वैसे सच में बहुत याद आएगी तुम्हारी… ख़ासकर इसकी.. ये कहकर उन्होने मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में ले लिया…
मेने उनके आमों को ज़ोर से मसल दिया – सीधे-सीधे कहो ना कि एक बार और चाहिए ये आपको….
वो उसे ज़ोर से दबाते हुए बोली – अभी समय हो तो दे दो ना.. एक बार..
मे – यहीं…?,
ये सुनते ही वो झट से खड़ी हो गयी, और मेरा हाथ पकड़ कर अपने बेडरूम की तरफ चल दी…