Bhabhi ki Chudai देवर भाभी का रोमांस - Page 13 - SexBaba
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Bhabhi ki Chudai देवर भाभी का रोमांस

कुल मिलाकर 50 लोगों का टूर बना, जिसमें एक लेडी टीचर को मिलकर 20 फीमेल और वाकई के मेल स्टूडेंट्स & दो टीचर्स थे.

दूसरे दिन रागिनी ने आकर कन्फर्म भी कर दिया, कि उसके पापा एक लग्षुरी बस और टेंपो के लिए मान गये हैं, लेकिन उनका आधा भाड़ा हमें पे करना पड़ेगा…

जिसे हम सभी स्टूडेंट्स कंट्रिब्यूट कर के पे कर सकते हैं..
सभी अपने नये टूर को लेकर बहुत ही एक्शिटेड थे, क्योंकि जीवन में पहली बार कुछ समय के लिए हम सब अपनी तरह से जीने वाले थे…

घर पर भैया और भाभी ने खुशी-खुशी मुझे टूर पर जाने की पर्मिशन दे दी, साथ ही भाभी पूरे दिन मेरे लिए कुछ ना कुछ खाने की चीज़ें बनती रही…!

मेरे लाख मना करने के बावजूद भी वो नही मानी, और ना जाने क्या-क्या बनाती रही, इस तरह से उन्होने 3-4 डब्बे खाने का समान पॅक कर के रख दिया…

उनके इस तरह मेरे लिए परवाह करते देख, मेरी आँखें नम हो गयी, जिन्हें देखकर उन्होने मुझे अपने सीने से लगा लिया और बोली…

क्या हुआ मेरे लाड़ले को, क्यों रो रहे हो..?

मेने रुँधे गले से कहा – मेरी इतनी परवाह क्यों करती हो भाभी ? इतना तो कोई सग़ी माँ भी नही करती होगी अपने बेटे के लिए…!

मेरी बात सुनकर उनकी आँखों में भी आँसू छलक पड़े, मुझे अपने आप से और ज़ोर से कसते हुए बोली –

मे भी नही जानती लल्ला कि मे क्यों तुम्हारी इतनी परवाह करती हूँ, शायद हमारे पूर्व जनम का कोई नाता रहा हो, और ऊपरवाले ने सोच समझकर फिरसे हम दोनो को एक साथ रहने के लिए भेजा दिया हो…

वरना मेरे इस घर में कदम रखते ही, माजी को क्यों बुला लेता वो अपने पास….

हम दोनो का ये रिस्ता मेरी भी समझ से परे है, कभी-कभी जब सोचती हूँ इस बारे में, तो उलझकर रह जाती हूँ, पर कोई जबाब नही मिलता…

फिर उन्होने मेरा माथा चूमकर कहा – लो ये पैसे रखो, तुम्हारे काम आएँगे, ये कहकर उन्होने मुझे एक 500/- के नोटों की गॅडी पकड़ा दी..

मेने कहा – इतने सारे पैसे..? इनका मे क्या करूँगा भाभी…?

वो – कहीं ज़रूरत लगे तो दिल खोलकर खर्च करना अपने दोस्तों के साथ…लो रखलो..तुम्हारे ही हैं…अब ज़्यादा सोचो मत, और अपनी जाने की तैयारी कर्लो..

भाभी का प्यार देखकर एक बार फिर में उनके वक्षों में सर देकर लिपट गया..

आज शाम 4 बजे कस्बे से बस निकलने वाली थी, मेने अपना समान पॅक किया और बाबूजी और भाभी का आशीर्वाद लेकर अपनी बुलेट उठाई, और कॉलेज के लिए निकाल लिया…

बस रेडी खड़ी थी, एक-एक कर के सभी आते जा रहे थे, मे थोड़ा लेट हो गया था…

अपनी बुलेट कॉलेज की पार्किंग में लगाई, और बॅग लेकर बस में चढ़ गया…

अंदर नज़र डाली तो लगभग सारी सीटें भर चुकी थी, सो लास्ट वाली सीट पर जाकर अपना डेरा डाल लिया…

वैसे, लास्ट वाली सीट पर सारे रास्ते जंप ज़्यादा लगने वाले थे, लेकिन इट’स ओके, जब और कहीं जगह नही थी तो अब कर भी क्या सकते थे…

कुछ देर बाद जब सभी बैठ गये तो पीछे की सीट पर ही हमारे एक टीचर और मेडम आकर मेरे पास बैठ गयी…

एक टीचर ड्राइवर के पास बैठे थे, मेरे बगल में मेडम और उनके बाजू वाली सीट पर हमारे स्पोर्ट्स टीचर बैठ गये…!

सबने मिलकर एक जैयकारा लगाया… शेरॉँवली की जय, ….. और इसके साथ ही बस वहाँ से रवाना हुई…!
बस के चलते ही सब मस्ती में आ गये, एक दूसरे के साथ ग्रूप बनाकर मस्ती करने लगे…

कुछ देर बाद स्पोर्ट्स टीचर भी अपने साथी टीचर के साथ गप्पें लगाने चले गये…

मेने विंडो सीट मेडम को दे दी, एसी बस में वैसे तो विंडो खोलने का तो कोई मतलव नही था, लेकिन फिर भी उन्हें बाहर के नज़ारे देखने का शौक रहा होगा शायद…

ये हिस्टरी की मेडम थी, उम्र कोई 35 की, शरीर थोड़ा चौड़ा गया था.. बड़ी-2 चुचियाँ शायद 38 की रही होगी, मोटी गान्ड 38-40 की… पेट थोड़ा बाहर को निकला हुआ…

इतने सबके बाद भी गोरा रंग, नाक-नक्श ठीक तक ही थे…वो इस समय एक हल्के कपड़े की साड़ी में थी…

डीप गले का टाइट ब्लाउज से उनकी दूध जैसी गोरी और मोटी चुचियाँ ऊपर से किन्हीं दो आपस में जुड़ी हुई चोटियों जैसी दिख रही थी…

मेरा इससे पहले उनसे कोई ज़्यादा वास्ता नही रहा था, बस कॉलेज में टीचर स्टूडेंट वाला हाई-हेलो, क्योंकि मे साइन्स स्टूडेंट था और वो हिस्टरी की टीचर…

लास्ट की सीट थी तो थोड़ी बड़ी… सो मे उनसे टोड़ा दूरी बनाए ही बैठा था… लेकिन हिचकोले भी लास्ट में ही ज़्यादा लगते हैं, तो कभी-2 हम दोनो के शरीर टच हो ही जाते थे..

उन्होने मेरे साथ बात-चीत करना शुरू कर दिया… उन्हें पता तो था ही, कि मे राम मोहन का भाई हूँ, तो घर-परिवार के बारे में कोई ज़्यादा बात-चीत नही हुई…!

अपने बारे में उन्होने बताया, कि उनके पति एक शॉप चलाते हैं, दो बच्चे हैं, जो अभी स्कूल शुरू किए हैं…
 
कुछ देर में ही मेने नोटीस किया की बस के हिचकॉलों के बहाने मेडम कुछ ज़्यादा ही हिल-डुलकर मुझसे टच होने की कोशिश कर रही हैं, तो मे थोड़ा और उनसे दूर सरक कर बैठ गया…

मुझे सरकते देख मेडम बोली – अरे अंकुश ! आराम से बैठो, इतना दूर क्यों बैठे हो… कोई प्राब्लम है क्या…?

मे – नही वो आपको कोई प्राब्लम ना हो इसलिए इधर को आ गया, अब आप आराम से बैठ सकती हैं..

वो – अरे मुझे कोई प्राब्लम नही है, आओ मेरे पास बैठो,

वो क्या है, कि कभी-2 बस के झटके लगते हैं, वैसे कोई बात नही, आ जाओ…ये कहकर उन्होने मेरा हाथ पकड़कर अपने पास ही कर लिया…

मेने सोचा, मेडम भी मज़े लेना चाहती हैं, लेने दो, अपने को क्या… कुछ ज़्यादा लिमिट क्रॉस होती दिखेगी तब देखा जाएगा…

कुछ देर तो वो ठीक ठाक रही, मेने अपनी आँखें बंद करली, और मेडम अपनी तरह से मेरे शरीर के साथ मज़े लेती रही…
ग्वालियर निकालकर हमने एक रोड साइड होटेल में खाना खाया..और कुछ देर रुक कर बस फिर चल पड़ी…

खाने के बाद कुछ देर में ही ज़्यादातर लोगों के खर्राटे गूंजने लगे…

इस बार मेडम ने मुझे खिड़की की तरफ बैठने को कहा…हमारे ऑपोसिट सीट पर स्पोर्ट टीचर अकेले बैठे थे…

मुझे भी झपकी सी आने लगी थी, सो मे बस की बॉडी का सहारा लेकर उंघने लगा..

कुछ देर शांति से गुज़री, लेकिन जल्दी ही मुझे लगा की मेडम की भारी-भारी चुचियाँ मेरे बाजू पर लदी पड़ी हैं…

मेने कोई प्रतिक्रिया नही दी, और चुप चाप सोने का बहाना करता रहा…

अभी मे उनके शरीर की गर्मी को सहन करने लायक भी नही हो पाया था कि उनका एक हाथ रेंगता हुआ मेरे लौडे पर आ गया, और वो उसे पॅंट के ऊपर से ही सहलाने लगी…

बस की पिच्छली सीट के अनएक्सपेक्टेड झटके मेडम के बूब्स को मेरे साइड से रगड़ रहे थे…

लंड का आकर भाँपते हुए मेडम पर खुमारी चढ़ने लगी, और उन्होने मेरा एक हाथ पकड़ कर अपनी मोटी पपीते जैसी चुचि पर रख लिया और ऊपर से अपने हाथ का सपोर्ट देकर उसे अपने पपीते पर दबाने लगी.

मेडम को अब कुछ बड़ा चाहिए था, लेकिन मेरी तरफ से कोई रेस्पॉन्स ना मिलने से वो मन ही मन कसमसा रही थी, अपनी साड़ी ऊपर कर के आगे से उन्होने अपनी चूत में अपनी उंगलियाँ पेल दी…

दूसरे हाथ की उंगलियाँ मेरे पैंट की चैन से खेलने में लगी हुई थी, और वो उसे नीचे करने का प्रयास करने लगी, लेकिन टाइट जीन्स ऊपर से लंड खड़ा, पॅंट और ज़्यादा टाइट हो गया था, तो वो खुल ही नही पा रही थी…

उन्होने अपना दूसरा हाथ भी अपनी चूत से निकाला और दोनो हाथों के सहारे से वो चैन खोलने लगी…

इससे पहले कि वो मेरी चैन को नीचे कर पाती, कि उन्हें अपने कंधे पर किसी के हाथ का अहसास हुआ,

चोंक कर उन्होने झट से अपने हाथ मेरे पॅंट से हटाए और उधर को देखा…
स्पोर्ट्स टीचर जो अब तक का मेडम का सारा खेल देखकर गरम हो चुके थे, इशारे से उन्हें अपनी सीट पर बुला लिया…

मेडम के मना करने का तो अब कोई चान्स ही नही था, उनकी चोरी जो पकड़ी गयी थी, सो वो उनके बगल में जाकर बैठ गयी,

मेने चैन की साँस ली, और अपनी आँखें बंद कर ली…
लेकिन साला मन तो उधर को ही लगा था, तो नीद आने का कोई मतलव ही नही था अब… सो 5-10 मिनिट के बाद आँखों की झिर्री से नज़र डाल ही ली…

वाह ! क्या नज़ारा था, मेडम की साड़ी कमर तक चढ़ि हुई थी, और वो अपने 25-25 किलो के गान्ड के पाटों को लेकर सर की 4” की लुल्ली को अपनी चूत में लेकर उनकी गोद में बैठी कूद रही थी…

सर के हाथ उनकी चुचियों पर थे, और वो उन्हें आटे की तरह गूँथ रहे थे….

कुछ मेडम कूदने का प्रयास कर रही थी, कुछ बस के झटके सहयोग कर रहे थे… सो कुछ ही देर में वो अपना-अपना पानी छोड़कर शांत पड़ गये…

सुबह होते-2 हम ओरछा पहुँच गये, जहाँ की पहाड़ी नदी के किनारे बस खड़ी कर के सब लोग नित्य क्रिया में लग गये…

सबने जंगल में ही शौन्च इतायादि की, और नदी के निर्मल जल में नहा धोकर वहाँ के मंदिरों में दर्शन किए…
 
आपको अगर पता हो तो यहाँ एक ओर्छा का महल है, जिसके पास ही राम राजा का भव्य मंदिर है…

कहावत है, कि भगवान राम, दिन निकलते ही, अयोध्या छोड़कर यहाँ आ जाते थे… और यहाँ की प्रजा की देखभाल करते थे…

ओरछा झाँसी से कोई 20-25 किमी दूर साउत ईस्ट में पड़ता है….!

आस-पास के यहाँ के हिस्टॉरिकल जगह और राम राजा के दर्शन कर के हमने अपना कारवाँ फिर आगे बढ़ा दिया…!

शाम से पहले हम खजुराहो के पास पहुँच गये…, हाइवे से हटकर थोड़े से जुंगली इलाक़े में हमने अपनी बस रोकी,

पीछे – 2 समान से लड़ा टेंपो भी आ गया, जिसमें चार आदमी काम करने के लिए साथ आए थे, वहीं हम सबका खाना भी बनाने वाले थे..

छोटी-छोटी पहाड़ियों के बीच एक छोटे से मैदान में हमने अपने टेंट लगाने का सोचा…

दो-दो मेंबर के हिसाब से आनन-फानन में टेंट खड़े होने लगे, सारे स्टूडेंट्स भी इस काम में हाथ बाँटने लगे…

एक घंटे के अंदर अंदर सारे टेंट लग चुके थे… मेरे साथ रवि था.

एक एक्सट्रा टेंट थोड़ा सा बड़े आकार में रसोई के सामान के लिए रखा गया…

उसके बाद रसोई का बनाना शुरू हुआ, कुछ इंटेसटेड लोग उन चारों की मदद करने लगे, वाकी के इधर-उधर के एरिया में घूम-फिर कर वहाँ का जायज़ा ले रहे थे…

अंधेरा होते ही, वहाँ पेट्रोमक्ष जला दिए गये… 9 बजे तक खाना तैयार हो गया, और सबको इत्तला करदी..

सब अपना अपना खाना प्लेट्स में लेकर जिसको जहाँ अच्छा लगा वहाँ बैठकर खाने लगे…इस तरह का अनुभव बड़ा ही भा रहा था सबको…
मे, रवि, करण और आशु, एक साथ बैठे खाना खा रहे थे, कि तभी वहाँ रागिनी और रीना, जो एक ही टेंट में थी, अपनी प्लेट लेकर आ गयी,

रागिनी ने पूछा – अगर तुम लोगों को कोई प्राब्लम ना हो तो हम भी साथ बैठकर खाले..

करण – आओ बैठो, हमें क्यों प्राब्लम होगी…, तो हम 6 लोग एक गोलाई बनाकर बैठ गये और खाना खाने लगे,

कोई इधर उधर से कुछ ख़तम हो जाता तो एक दूसरे की प्लेट से ले लेता.. बड़ा ही रोमांचकारी अनुभव था ये हम सबके लिए…

बातों के बीच खाना खाते हुए, अजीब सी सुखद अनुभूति हो रही थी सबको, एक अपनापन सा लग रहा था…..

सबने खाना ख़तम किया, कुछ देर बैठकर बातें की, फिर दोनो लड़कियाँ हम सबकी प्लेट उठाकर ले गयी धोने के लिए…

हमें बड़ा आश्चर्य हुआ, कि रागिनी जैसी बड़े घर की लड़की हमारी झूठी प्लेट धोने के लिए ले गयी… शायद ये ग्रूप में होने की वजह से हो…

कुछ देर हम चारों बैठे बातें करते रहे फिर मुझे नींद के झटके लगने लगे तो उठ कर अपने अपने टेंट में चले गये……!

लेटते ही में गहरी नींद में डूब गया…!
 
पता नही रात का कॉन्सा प्रहर था, की सोते-सोते मेरी साँसें रुकती सी महसूस होने लगी, सीने में एक गोले सा अटकने लगा, बैचैनि इतनी बढ़ गई…की मे हड़बड़ा कर उठ बैठा…

बॉटल से पानी पिया, लेकिन ज़्यादा राहत नही मिली…तो उठ कर टेंट से बाहर आया, और बाहर आकर टहलने लगा…

चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था, सभी गहरी नींद में डूबे हुए थे… मोबाइल में समय देखा तो 1 बजने को था…

मे थोड़ा टेंट एरिया से निकल कर थोड़ी दूरी पर हरियाली से घिरी एक छोटी सी चट्टान पर आकर बैठ गया…

आसमान में चाँद की रोशनी के बीच तारे टिम-तिमा रहे थे…ठंडी-ठंडी हवा मेरे गालों को सहलकर मेरे बैचैन मन को राहत दे रही थी…

कभी कोई जीव, किसी झाड़ी से निकल कर भागता, तो एक अजीब सा डर का अनुभव भी होता, और मेरे रोंगटे खड़े हो जाते…

इस तन्हाई में घिरे मेरे मन में निशा के साथ बिताए लम्हे याद आते ही मेरे चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कान तैर गयी…

मे अपना सर आसमान की तरफ उठाकर चाँद के आस पास के झिलमिलाते तारों में ना जाने क्या तलाश करने लगा…

मे अपने ख्यालों में डूबा हुआ था, कि तभी मुझे अपने पीछे किसी के आने की आहट महसूस हुई, और मेने मुड़कर उधर को देखा…

कुछ दूरी पर मुझे एक मानव आकृति सी दिखाई दी, जो धीरे-2 मेरी तरफ ही बढ़ती चली आ रही थी…..!

चन्द कदमों में वो मेरे इतने पास आ चुकी थी, अब में उसे देख पाने में समर्थ था, और जैसे ही मेने उसे पहचाना…

चोंक कर मे अपनी जगह से खड़ा हो गया और उससे कहा – तुउउंम….इस वक़्त … यहानं..?

ये रागिनी थी, जो अपने शरीर को एक चादर में लपेटे हुए मेरे सामने खड़ी थी, इस समय उसका सिर्फ़ चेहरा ही दिखाई दे रहा था…

मेने उसे देखते ही कहा – रागिनी तुम यहाँ इस वक़्त क्या कर रही हो…?

वो मेरे एकदम पास आकर बोली – यही सवाल में तुमसे करूँ तो…?

वैसे मे टाय्लेट के लिए बाहर निकली थी, तुम्हें अकेले इधर आते देखा तो देखने चली आई, कि यहाँ अकेले क्यों आए हो…?

मे – मन अचानक से बैचैन हो रहा था, तो खुली हवा में चला आया…, तुम जाओ, जाकर सो जाओ, मे थोड़ी देर और बैठकर आता हूँ…!

मेरी बात अनसुनी सी करते हुए वो मेरे पास आई, और हाथ पकड़ कर मुझे उसी पहाड़ी पर बिठाते हुए बोली – आओ थोड़ी देर मे भी तुम्हारे साथ बैठती हूँ, फिर साथ साथ चलेंगे सोने.

रागिनी बात करने के क्रम को आगे बढ़ाते हुए बोली – वैसे जंगल की रात के मौसम की बात ही अलग है, कितना सुहाना मौसम है, नही…

मे – हां, सही कह रही हो तुम, घर की चारदीवारी के अंदर की सारी सुख सुविधाओं के बबजूद इतना सुकून नही मिलता, जितना यहाँ के शांत वातावरण में है…

वैसे तुम्हारा आइडिया सही रहा, वरना ये सब देखने का मौका कहाँ मिलता.. थॅंक्स.

लेकिन रागिनी, यहाँ तो इतनी ठंडक भी नही है, फिर तुमने ये चादर क्यों डाल रखी है अपने ऊपर…

रागिनी – वो तो बस ऐसे ही, नाइट ड्रेस में थी, तो सोचा किसी ने देख लिया तो क्या सोचेगा बस इसलिए….

ये कहकर उसने अपने बदन से चादर हटा कर एक तरफ उछाल दी…लो अब ठीक है..

मेरी जैसे ही नज़र उसके तरफ गयी… तो… उसे देखते ही मेरा मुँह खुला का खुला रह गया…

वो इस समय एक पारदर्शी मिनी गाउन में थी, जो बस उसकी कमर से थोड़ा सा ही नीचे तक था, उसका वो गाउन उसके सीने पर इतना टाइट था, मानो उसकी चुचियाँ उसमें जबर्जस्ती से ठूँसी गयी हों.
 
उसके पारदर्शी कपड़े से उसकी ब्रा में कसे हुए उसके 34 साइज़ के बूब्स चाँद की चाँदनी में साफ-साफ दिखाई दे रहे थे…

वो मेरी जाँघ सहलाते हुए बोली – वैसे थॅंक्स तो मुझे कहना चाहिए, कि तुमने मेरे प्रपोज़ल पर अपनी हामी भर दी,

वरना तुम्हारे बिना कोई तैयार नही होता यहाँ आने को…और शायद कॉलेज से भी पर्मिशन नही मिलती.

उसका हाथ लगते ही मेरे बदन में एक अजीब सी हलचल होने लगी, जहाँ कुछ देर पहले एक अजीब सी बैचैनि थी, वहीं अब उत्तेजना पैदा होने लगी…

मेरा सर थोड़ा भारी सा होने लगा, मानो उसको कोई पकड़े हुए हो, साँस भी रुकने लगी थी…

लेकिन इस सब के बबजूद मेरे लंड में अजीब सी हलचल पैदा हो रही थी, वो शॉर्ट के अंदर अपना आकर बढ़ाता ही जा रहा था…

जांघें सहलाते हुए रागिनी ने अपनी उंगलियाँ मेरे कोबरा से टच करा दी, जिससे वो और भड़क गया…

उसकी हलचल वो अपनी उंगलियों पर अच्छे से फील कर रही थी, मेरी आँखों में देखते हुए बोली –

सच कहूँ तो मेरी ये फेंटसी रही है, कि रात के इस सुहाने से मौसम में खुले आसमान के नीचे तारों की छान्व तले, किसी जंगल में एक साथी के साथ बैठकर बातें करूँ..

मे उसकी बातों में खोता जा रहा था, की तभी रागिनी ने मेरे नाग का फन अपनी मुट्ठी में दबा लिया, और उसे धीरे-2 सहलाने लगी…

मे उसे ये सब करने से रोकना चाहता था, लेकिन पता नही क्यों उसे रोक नही पा रहा था…

कुछ देर शॉर्ट के ऊपर से ही सहलाने के बाद रागिनी अपना हाथ मेरे शॉर्ट के अंदर डालने लगी…

इससे पहले की वो मेरे हथियार को पकड़ पाती, मेने उसका हाथ पकड़कर झटक दिया, और अपनी जगह से खड़ा होकेर कुछ दूर जाकर उसकी तरफ पीठ कर के खड़ा हो गया…!

दूसरी तरफ मुँह किए हुए ही मेने उसे कहा – तुम यहाँ से जाओ रागिनी, प्लीज़ मुझे अकेला छोड़ दो…!

अभी मे खड़ा उसके जाने की आहट सुनने की कोशिश कर ही रहा था, कि तभी
उसने पीछे से आकर मुझे अपनी बाहों में भर लिया, उसके कठोर लेकिन मखमली उभार मेरी पीठ से दबे होने का अहसास दे रहे थे…

वो मेरी गर्दन चूमते हुए बोली – इतना क्यों दूर भागते हो मुझसे… क्या मेरे शरीर में काँटे हैं, जो तुम्हें चुभते हैं…!

मे तो सिर्फ़ तुमसे तुम्हारे कुछ पल चाहती हूँ, फिर क्यों मुझे बार-बार जॅलील कर के दूर चले जाते हो…

उसके इस तरह लिपटने से मेरी उत्तेजना में और इज़ाफा हो रहा था, मेने बिना कुछ किए उससे कहा – देखो रागिनी ! हम दोनो परिवारों के संबंध किसी तरह से सुधरे हैं…

मे नही चाहता कि फिरसे उसमें कोई दरार पैदा हो, सो प्लीज़ मुझसे दूर ही रहो तो ये हम दोनो के लिए अच्छा होगा…!

मेरी बात सुनकर उसने मुझे अपनी बाहों से आज़ाद किया और मेरा बाजू पकड़ कर अपनी ओर घूमाकर थोड़ी दबे लेकिन सख़्त लहजे में बोली…

किस दरार की बात कर रहे हो..? ये होगा भी कैसे..? यहाँ वीराने में हम दोनो को देखने वाला कॉन है, कि हम क्या कर रहे हैं… तो उन्हें कैसे पता लगेगा..?

सीधे – 2 क्यों नही कहते कि तुम मुझे जान बूझकर अवाय्ड करना चाहते हो…क्या मे इतनी बुरी हूँ..? तुम्हारा दो पल का प्यार ही तो माँग रही हूँ..

वादा करती हूँ, इसके बाद मे कभी तुम्हारे रास्ते में नही आउन्गि….!
 
मेरे दूर होते ही रागिनी ने अपने गाउन के बटन खोल लिए थे, जब मेरी नगर उसके आधे से अधिक उसकी कसी हुई ब्रा से झाँकते उसके दूधिया उरोजो पर पड़ी…

मेरी उत्तेजना मेरे दिमाग़ पर हावी होने लगी, ऐसा मेरे साथ आज से पहले कभी नही हुआ था कि इन मामलों में मेने अपने दिमाग़ का कंट्रोल खोया हो…!

मेरे दिमाग़ का कंट्रोल मेरे ऊपर से पूरी तरह ख़तम हो चुका था, मेने लपक कर रागिनी के बाजुओं को पकड़ा और अपने दहक्ते होंठ, उसकी रसीली गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठों से चिपका दिए…!

रागिनी को तो जैसे मुँह माँगी मुराद मिल गयी हो… आँखें बंद किए वो भी किस करने में मेरा सहयोग करने लगी, उसकी मरमरी बाहें मेरी पीठ पर कसने लगी…

बहुत देर तक हम एक दूसरे के होंठों का रस पान करते रहे, साँसें उखड़ने लगी, मुँह से गून..गून की आवाज़ें पैदा हो रही थी, लेकिन दोनो में से कोई भी किस तोड़ने को तैयार नही था…
वासना से आँखें लाल हो चुकी थी, दोनो के बदन दहकने लगे थे,

मेरे हाथों ने हरकत करते हुए, उसके गाउन को उसके कंधों से नीचे सरका दिया, वो सर्सराकर उसके पैरों में जा गिरा…

रागिनी के हाथ भी कुछ कम नही थे, वो मेरे अप्पर में घुसकर बदन पर सरसारा रहे थे…

इन सबके बीच हमारी किस्सिंग बदस्तूर जारी थी, फिर उसने मेरे शॉर्ट को नीचे सरका कर मेरे मूसल को अपने हाथ में पकड़ लिया, और उसे मुठियाने लगी…

मेने उसकी ब्रा के हुक भी खोल दिए, और उसके नंगे उरोजो को मसल्ने लगा…

अब हमें ये सीन चेंज करने की ज़रूरत महसूस होने लगी थी, सो रागिनी किस तोड़कर अपने पंजों पर बैठ गयी, और मेरे कड़क मूसल को अपने हाथ में लेकर बोली…

आअहह…..अंकुश क्या जानदार लंड है तुम्हारा… 3 साल लग गये इसे पाने में… आज मे इसका रस निकाल कर ही रहूंगी…ये कहकर उसने उसे चूम लिया…

मेने उसके निपल को उमेठते हुए कहा – चुसले रानी मेरा जूस, देख क्या रही है मदर्चोद…. जल्दी कार्रररर…

अपने मुँह से इस तरह की गाली सुनकर मे खुद हैरान रह गया… लेकिन कोई कंट्रोल नही था अपने आप पर…

रागिनी ने भी कोई रिक्षन नही दिया, और मेरे टमाटर जैसे सुपाडे को अपने होंठों में क़ैद कर लिया…!

अनायास ही मेरा हाथ उसके सर पर चला गया, और उसे दबाकर मेने अपनी कमर को एक करारा सा झटका दिया…

सरसराकर मेरा मूसल जैसा लंड उसके मुँह में चला गया, और जाकर उसके गले में बुरी तरह से फँस गया…..

रागिनी की साँस अटक गयी, और वो उसे बाहर निकालने के लिए ज़ोर लगाने लगी…जब वो कुछ देर अपने प्रयास में असफल रही, तो उसने फटी-फटी आँखों से मेरी तरफ देखा…

मुझे लगा जैसे वो मुझसे अपना लंड निकालने के लिए फरियाद कर रही हो…मेरे दिमाग़ को एक झटका सा लगा… और मेने अपना लंड उसके मुँह से खींच लिया….!

रागिनी ने राहत की साँस ली और अपनी साँसों को नियंत्रित करते हुए कतर नज़रों से मेरी तरफ देखते हुए बोली ….

बहुत बेरहम हो… जान लेना चाहते थे मेरी… ऐसे भी कोई करता है भला…

मेने अपने कानों को हाथ लगाते हुए कहा – सॉरी डार्लिंग, पता नही आज -मुझे क्या होता जा रहा है, बार-बार अपने आप से कंट्रोल खो रहा हूँ…

वो मन ही मन मुस्करा उठी, लेकिन प्रत्यक्ष में कहा – कोई बात नही डार्लिंग, लेकिन आगे ध्यान रखना प्लीज़…

ये कहकर उसने उसे फिरसे अपने मुँह में ले लिया और पूरी लगान से मन लगाकर उसे चूसने लगी….!

मेरा लंड उसकी जीभ की मालिश और मुँह की गरम-गरम साँसों से और ज़्यादा फूल के कुप्पा हो गया था…

बीच बीच में रागिनी मेरे सुपाडे पर दाँत गढ़ाकर रगड़ देती, जिससे मेरे लंड में और ज़्यादा सुरसूराहट होने लगती…

आयईयी…मदर्चूद्द्द….ऐसा मत कर साली कुतियाअ…, वरना पछ्तायेगी फिरसे…,

ये सुनकर वो मेरी आँखों में देखते हुए मुस्कराने लगी, साथ ही अपने होंठों का दबाब और बढ़ा दिया…

मज़े की वजह से मेरी आँखें मुन्दने लगी, मुँह से स्वतः ही सिसकियाँ निकलने लगी…

कुछ देर लंड चूसने के बाद उसका मुँह दुखने लगा…, तो वो चूसना बंद कर के खड़ी हो गयी, और अपनी नाम मात्र की पेंटी नीचे करते हुए बोली..

बड़ी ही सख़्त जान है तेरा ये मूसल, मेरा मुँह दुखने लगा, लेकिन इस भोसड़ी वाले पर कोई असर ही नही हुआ, और ज़्यादा फूलता जा रहा है…कहते हुए एक थप्पड़ मेरे लंड पर मार दिया उसने…

उसका थप्पड़ खाकर वो फुफ्कार उठा, और चटक से मेरे पेट पर आकर लगा…

उसका ये रूप देखकर रागिनी जैसे फिदा ही हो गयी उसपर…और उसको पकड़कर अपनी चूत के मुँह पर रगड़ने लगी…

आअहह… राजा…अब जल्दी से इसे मेरी चूत में डालकर मेरी खुजली मिटा दे यार… अब नही रहा जा रहा मुझसे, ये कहकर उसने एक बार फिर मेरे होंठ चूस लिए…

फिर उसने अपनी चादर एक साफ सी जगह पर बिच्छा दी और अपनी टाँगें चौड़ी कर के लेट गयी…

मे भी उसकी टाँगों के बीच घुटने टेक कर बैठ गया, वो अपनी चूत को थप-थपाकर बोली… डाल अब इसमें जल्दी से… और फाड़ दे मेरी चूत को अपने मूसल से…

आहह.. क्या मस्त कड़क लंड है तेरा… फिर उसने अपने हाथ से उसे पकड़कर अपनी गीली चूत के मुँह पर रखकर अपनी टाँगों को मेरी गान्ड पर लपेट लिया…

उसका उतबलापन देख कर मे मन ही मन मुस्करा उठा… और उसकी आँखों में देखते हुए उसकी चुचियों को लगाम की तरह पकड़ लिया..

फिर उसकी टाँग चौड़ी कर के एक करारा सा धक्का उसकी चूत में मार दिया…..



आआयययययययययीीईईईईईईईईईईई…………….मुम्मिईीईईईई….मररर्ररर….गाइिईई…रीइ…

रागिनी के मुँह से चीख उबल पड़ी…. मेने उसके मुँह को दबा कर कहा…

भोसड़ी की चिल्लती क्यों है कुतिया साली… तबसे तो इसे लेने के लिए इतनी उतावली हो रही थी, अब क्यों गान्ड फट गयी तेरी…

वो कराहते हुए बोली… आअहह…भेन्चोद साले….इतनी बेदर्दी से कोई पेलता है क्या…? आराम से चोद, फिर देखती हूँ, कितना दम है तेरी गान्ड में…

वैसे इतना कड़क डंडे जैसा लंड है तेरा…. मेरी चूत अंदर तक चीर दी इसने…उफफफफ्फ़… अब आराम आराम से करना… मेरे… रजाअ..जीिीइ…

मेने धीरे-धीरे अपना लंड अंदर बाहर करना शुरू कर दिया… रागिनी सिसकियाँ भरती हुई, चुदाई का मज़ा लूटने लगी…

अब उसको भी मज़ा आने लगा था शायद, सो अपनी गान्ड उठा उठाकर मेरे मूसल जैसे लंड को जड़ तक लेने लगी…

10 मिनिट की धुआधार चुदाई के बाद वो चीख मारकर झड़ने लगी…और फिर सुस्त पड़ गयी…

मेरे धक्के बदस्तूर जारी थे… वो कराहते हुए बोली – थोड़ा रुक ना यार, चूत सूख गयी है मेरी… जलन होने लगी है…

मेने अपने धक्कों को विराम देकर उसकी गान्ड थप-थपाकर उसे घुटनों के बल कर के घोड़ी बना दिया, और पीछे से उसकी गान्ड में मुँह डालकर अपने थूक से उसकी चूत को गीला करने लगा…

थोड़ी देर में ही वो अपनी गान्ड मटकाने लगी और मज़े में आ गयी… तो मेने अपना मूसल फिर से उसकी चूत में पेल दिया…
 
वो आअहह…..सस्स्सिईईईईई…करती हुई पूरा लंड एक बार में ही निगल गयी… मे उसकी गान्ड पर थप्पड़ बरसाते हुए दनादन धक्के लगाने लगा… !
वो भी अपनी गान्ड को मेरे लंड पर पटक-पटक कर चुदाई का मज़ा ले रही थी..

उसके चुतड़ों पर मेरी जाँघ की थप-थप की आवाज़ रात के शांत वातावरण में गूँज रही थी…

मुझे अभी मज़ा आना शुरू ही हुआ था, कि किसी ने पीछे से मुझे अपनी बाहों में लपेट लिया….

धक्के मारते हुए मेने मुड़कर देखा तो रागिनी की टेंट मेट रीना… एकदम नंगी मुझे अपनी बाहों में भरे हुए मेरे बदन से लिपटी हुई थी…!

धक्कों के साथ साथ उसका बदन भी मेरे शरीर के साथ रगडे खा रहा था…

मस्त माल कूर्वी फिगर रीना अपने मोटे-मोटे आम मेरी पीठ से सटाये हुए थी…, उसके कड़क निपल्स मेरी पीठ से रगड़ कर मेरे मज़े को और दुगना कर रहे थे..

बाजू से पकड़ कर मेने रीना को अपने बगल में खड़ा किया, और रागिनी की चूत में धक्के लगाते हुए उसके होंठ चूसने लगा…



फिर मेने उसकी चूत में अपनी दो उंगलियाँ डालते हुए पूछा…

रीना तुम यहाँ कब आई…?

वो सिसकते हुए बोली – सस्सिईईईई….आआहह….जब तुम दोनो किस करना शुरू किए थे, मे तभी से तुम दोनो का खेल देख रही हूँ….

उसकी आवाज़ सुनकर रागिनी ने मुड़कर पीछे देखा…और अपनी गान्ड को ज़ोर ज़ोर से पटकते हुए बोली- आअहह….साल्ल्लीइीइ….कुतियाअ…तू भी आ गयी…. अपनी चूत की खुजली मिटाने…

आआहह…हाईए रे.. बहुत मस्त चुदाई करता है…रीि ये अंकुश….तो.. आहह…आईईई…मे तो फिर गाइिईई….उउउऊओह… करती हुई रागिनी भालभाला कर झड़ने लगी…

इधर मेरा भी नल कभी भी खुल सकता था… सो पूरा दम लगाकर दो-तीन धक्के मारे.. और उसकी चूत में पूरा जड़ तक लंड पेलकर धार मार दी…

साथ ही उत्तेजना में मेरी दोनो उंगलियाँ जड़ तक रीना की चूत में घुस गयी…जिससे वो भी अपने पंजों के बल उचक कर पानी छोड़ने लगी….!

मेने अपना टॅंक खाली कर के पाइप को उसकी टंकी से बाहर खींचा…. फुकच्छ… की आवाज़ के साथ मेरा लंड रागिनी की चूत से बाहर आया, जिसपर रागिनी की चूत का रस लगा हुआ था…

पता नही क्यों… लेकिन वो अभी भी अपनी फुल फॉर्म में ही लग रहा था… उसका आकर देख कर रीना की घिग्घी बँध गयी… वो उसे फटी-फटी आँखों से देख रही थी…

रीना अपने मुँह पर हाथ रखकर बोली - हाए राअंम्म… रागिनी.. तू इतना बड़ा लंड झेल गयी… बाप रे ये मेरी तो चूत के परखच्चे उड़ा देगा…!

रागिनी – बकवास मत कर, मुझे पता है, तू कितनी सील पॅक है, साली खुद के चाचा का सोटा खा जाती है, और अब यहाँ नाटक कर रही है…

रीना – हहहे… वो उनका इतना बड़ा नही है यार… सच में ये तो किसी घोड़े के जैसा लग रहा है…, ये कहकर उसने उसे अपने हाथ में पकड़ा, और उसकी स्ट्रेंत चेक करने लगी..

रागिनी – चल अब बहुत नाटक हुआ, इसे चाट कर सॉफ कर, अगर चाहिए तो जल्दी से चुस्कर तैयार कर…

रीना – पर यार ये तो ऑलरेडी तैयार ही है…

मेने उसे झिड़कते हुए कहा – फिर भी थोड़ी सेवा तो करनी पड़ेगी इसकी, अगर अपनी चूत को मेवा खिलानी है तो..

मेरे झिड़कते ही, उसने उसे अपने मुँह में ले लिया, और चाट-चाट कर चमका दिया…

5 मिनिट बाद ही मेरा खूँटा फिरसे ज्यों का त्यों सख़्त हो गया, जिसे मेने रीना की टाँगें चौड़ा कर उसकी चूत में ठोक दिया…

पहले धक्के पर वो बिल बिलाकर कर गान्ड हिलाने लगी, लेकिन कुछ ही देर में फूल मस्ती में आकर चुदाई का मज़ा लेने लगी…

रीना भी खेली खाई थी, सो अपनी गान्ड उचका-उचका कर लंड का मज़ा अपनी चूत को दिलाने लगी….

दोनो की अच्छे से बजाने के बाद मेने अपने कपड़े समेटे, और उनको गुड नाइट बोलकर अपने टेंट में आकर सो गया…

वो दोनो भी मेरे आने के कुछ देर बाद अपनी जगह पर जाकर सो गयी…!

दूसरे दिन हम सब खजुराहो का मंदिर देखने गये, मंदिर की कलाकृतियाँ इतनी सुंदर और कामुक थी, की जहाँ खड़े होकर देखने लगें लंड अपने आप पेंट के भीतर ठुमके मारने लगता…

वो तो अच्छा था, कि लड़के और लड़कियों को अलग अलग ग्रूप में रख कर घूम रहे थे… कामसूत्र के सारे आयाम उन दीवारों पर दर्शाये गये थे…!

ये सब देखकर बाहर जब सब इकट्ठा हुए तो लड़के और लड़कियों के चेहरों से साफ लग रहा था, कि वो कितनी उत्तेजना में हैं…

मेडम बारी-बारी से सबके पॅंट के उठानों को देख रही थी, और शायद मन ही मन चुदने की कल्पना भी कर रही हो…

लेकिन कुछ होने वाला नही था, सो उसने नज़र बचाकर अपनी टाँगों के बीच हाथ डालकर अपनी गीली चूत को पेटिकोट से सूखा लिया…

इस तरह से रोज एक-दो नये मोनुमेंट को हम लोग देखने जाते और शाम को अपने अपने टेंट में आ जाते…

कुछ लड़के लड़कियाँ की सेट्टिंग भी हो गयी थी, और वो शाम के वक़्त जंगलों की सैर के बहाने अपनी रास लीला का लुफ्त भी उठा लेते थे…

इसी तरह 3-4 दिन निकल गये, रागिनी और रीना ने इस बीच फिरसे मेरे नज़दीक आने की बहुत कोशिश की, लेकिन मेने उन्हें मौका नही दिया…!

ऐसे ही एक दिन एक मंदिर में हम घूम रहे थे, मंदिर प्रांगड़ में एक पीपल का बड़ा सा पेड़ था, जिसके तने (स्टेम) के चारों ओर मिट्टी का गोलाई लिए हुए चबूतरा सा बना हुआ था..

मे भीड़ से अलग होकर उसपर बैठ गया, मौका ताड़ कर रीना मेरे पास आई, और एक चान्स और देने के लिए गिडगिडाने लगी..

मेने उससे कहा – देखो रीना तुम तो जानती ही हो, मे इस तरह का आदमी नही हूँ, वो तो पता नही मुझे क्या हुआ था उस दिन, और मे बैचैनि में उठ कर अकेले बाहर चला गया, और तुम लोगों ने मौके का फ़ायदा उठा लिया..…

वो – मे मानती हूँ, हमने मौके का फ़ायदा उठाया, और ऐसा तुम्हारे साथ उस दिन क्यों हुआ ये भी जानती हूँ…!

मेने चोंक कर उसकी तरफ देखते हुए पूछा – क्या कहना चाहती हो तुम..? वो तो बस ऐसे ही कुछ बाहर का खाया पीया था तो गॅस बनने लगी होगी, इसलिए बैचैनि हो रही थी… !

रीना – एक काम करो, उस दिन की घटना फिर से एक बार याद करो, क्या वो सब जस्ट गॅस से होने वाली स्वाभाविक सी प्रतिक्रिया थी..?

उसकी बात सुनकर मे सोच में पड़ गया, फिर मुझे कुछ लगा कि वो सब स्वाभविक तो नही था, ऐसा कभी मेरे साथ नही हुआ था की मेने अपना मानसिक कंट्रोल ही खो दिया हो…

और मेरे मुँह से निकलने वाले वो अपशब्द…. ये सब दिमाग़ में घूमते ही मे सोच में पड़ गया…

मुझे यूँ सोच में डूबे हुए देखकर वो फिर बोली – क्या सोच रहे हो…?

मेने अपनी सोच को विराम देते हुए कहा – तुम सही कह रही हो, मेरे साथ उस दिन कुछ तो गड़बड़ थी… क्या तुम्हें पता है…?

रीना मुस्करा कर बोली – मुझे सब पता है, कि तुम्हारे साथ क्या हुआ और किसने किया…?
मेने उसके कंधे पकड़ कर कहा – बताओ मुझे क्या हुआ था उस दिन?, और किसने किया था मेरे साथ…?

एक अर्थपूर्ण मुस्कान रीना के चेहरे पर आ गयी, और उसी अंदाज में वो बोली – मेरी एक शर्त है, अगर मानो तो मे तुम्हें सब कुछ बता सकती हूँ…!

मेने उसकी मनसा समझते हुए अपना एक हाथ उसके पीछे ले गया, और उसकी गान्ड सहला कर कहा – क्या शर्त है तुम्हारी…?

उसने मेरे पेंट के ऊपर से मेरे लौडे को सहला का कहा – एक बार और ये चाहिए मुझे… बोलो दोगे..?

मेने भी हाथ आगे कर के उसकी चूत को सहला दिया, और कपड़े के ऊपर से ही अपनी एक उंगली घुसाकर कहा – ठीक है, मे तुम्हें एक बार और चोदुन्गा, अब बोलो…

वो एक बारगी सिसक पड़ी, और मेरे हाथ को अपनी चूत पर दबाते हुए बताने लगी..

रीना मुझे उस दिन के बारे में बताते हुए बोली – तुम्हें याद होगा…,

उस रात, जब तुम लोग खाना खा रहे थे, तो मेने और रागिनी ने आकर तुम्हें जाय्न किया, और साथ बैठ कर खाने लगे…

मेने हामी भरी…. फिर

रीना – फिर हम सबने एक दूसरे का खाना भी शेयर किया था, …

उसी समय मौका देख कर रागिनी ने एक ऐसा ड्रग तुम्हारे खाने में मिला दिया
जिसके असर से आदमी या औरत सेक्स करने के लिए बैचैन होने लगते है…
 
5-6 घंटे तक इसका असर इतना रहता है, कि अगर लगातार सेक्स करे तो भी उत्तेजना बरकरार रहती है…

मे उसकी बात ध्यान से सुन रहा था…. हुउऊउंम्म फिर..

रीना आगे बोली – तुम्हारे सोने के कुछ देर बाद ही तुम्हें अजीब सी बैचैनि होने लगी… और तुम उठ कर बाहर चले गये…

रागिनी को पक्का पता था कि ऐसा होगा, इसलिए वो तुम पर नज़र बनाए हुए थी.. और तुम्हारे कुछ देर बाद ही वो तुम्हारे पास चली आई…

मे – ये बातें तुम्हें कैसे पता लगी…?

रीना – यहाँ का टूर डिसाइड होते ही रागिनी बहुत एक्शिटेड थी, मेने उससे इसका कारण पूछा तो वो जोश-जोश में कह गयी… कि ये साला अंकुश अपने आप को बहुत बड़ा हीरो समझता है…

अब देखूँगी ये मेरे चंगुल से कैसे बच पाता है…

जब मेने पूछा कि तू क्या करने वाली है… तो उसने ये कहकर बात टाल दी, की ये तो समय आने पर ही पता चलेगा, तू बस देखती जा.

यहाँ आते ही मेरी नज़र हर समय उसकी हरेक आक्टिविटी पर ही थी, मेने उसे वो ड्रग तुम्हारे खाने में मिलाते हुए देख लिया था…

फिर खाने के बाद जब सोने गये, तब मेने उससे पूछा कि उसने तुम्हारे खाने में क्या मिलाया था, तो उसने ये सब बताया…

मेने कहा – तो तुम वहाँ क्यों गयी…? क्या तुम भी पहले से ही उसके साथ मिली हुई थी…..?

रीना – झूठ नही बोलूँगी, मेरे मन में भी तुम्हें पाने की चाहत तो थी जैसे कॉलेज की ज़्यादातर लड़कियों की है, लेकिन मे रागिनी की तरह तुम्हें पाना नही चाहती थी..

फिर जब मौका हाथ आ ही गया था, तो मेने रागिनी को धमकाया, कि मे तुम्हें ये बात बताने जा रही हूँ,

मेरी धमकी से वो घबरा गयी और मुझसे बोली - अरे यार मिलकर मज़ा करते हैं… मेरे बाद तू आ जाना…

मे – हुउंम्म… तो ये बात है, तभी मे साला सोचते – 2 पागल हुआ जा रहा था, कि मेरा दिमाग़ काम क्यों नही कर रहा था उस दिन…

खैर ग़लती तो तुमसे भी हुई है, और इस ग़लती की माफी तुम्हें तभी मिलेगी, जब तुम मेरा भी एक काम करोगी…

रीना गिडगिडाते हुए बोली – देखो अंकुश, मेरी ऐसी कोई इंटेन्षन नही थी कि तुमसे कोई ज़ोर जबर्दुस्ति से अपना काम निकलवाऊ, वो तो बस रागिनी की बातों में आ गयी, प्लीज़ मुझे माफ़ करदो यार…!

मेने हँसते हुए कहा – डरो नही ! मे तुम्हें कोई सज़ा नही देने वाला, बस जैसा कहूँ वैसा करती जाना,

इसमें तुम्हारा भी फ़ायदा होगा, तुम जैसे चाहो मेरे साथ सेक्स कर सकती हो…
वो खुश होकर बोली – सच ! बोलो मुझे क्या करना होगा…?

मे – पता करो वो ड्रग अभी भी रागिनी के पास है, या कन्स्यूम हो गया…

रीना – वो तो होगा ही, मे पता लगा लूँगी, फिर…?

मे – शायद कल हमारे टूर का लास्ट दिन है, हो सकता है कल ही हम लोग यहाँ से निकल लें, तो तुम्हें आज ही उसमें से थोड़ा सा ड्रग, जितना मुझे उसने दिया था, लेकर तुम्हें रागिनी को देना होगा किसी भी तरह…और थोड़ा सा मुझे भी देना…

रात को जब उसका असर उसके ऊपर होने लगे, तो उसे लेकर उसी जगह पर आ जाना…

रीना – लेकिन मेरे साथ कुछ ग़लत तो नही करोगे ना तुम…

मे – विश्वास रखो, मे तुम्हें तुम्हारी मन मर्ज़ी से ही मज़ा दूँगा…

मेरी बात सुनकर रीना खुशी से झूम उठी, और उचक कर मेरे होंठों को चूमकर वहाँ से चली गयी…!

घूम घाम कर शाम को हम सब अपने टेंट्स में लौट लिए… कल दोपहर बाद हमें यहाँ से लौटना था,

सबको बोल दिया गया, कि कल जिसको जंगल वग़ैरह देखने हो वो सुबह के टाइम जा सकता है, और 1 बजे तक लौट कर अपना समान वग़ैरह पॅक कर के 3 बजे तक रेडी होना है…

कुछ देर हम सब मिलकर धमा-चौकड़ी मचाते रहे, तब तक खाना रेडी हो गया, सबने एक साथ मिलकर खाना खाया…

रीना ने थोड़ी सी ड्रग मुझे भी दे दी थी, और ये भी कन्फर्म कर दिया, कि जैसा तय हुआ था, उतना उसने रागिनी के खाने में मिला दिया है…

जैसा सोचा था वैसा ही हुआ, लगभग 11 बजे रागिनी और रीना अपने टेंट से बाहर निकली, और उस ओर चल दी… मेने उनके पास थोड़ा देर से जाने की सोची..,

करीब 20-25 मिनिट के बाद में भी उस ओर चल दिया…. वो दोनो एक दूसरे के साथ लेज़्बीयन सेक्स करने में गुत्थी हुई थी…

दोनो के शरीर पर कपड़ा नाम की चीज़ नही थी, रीना तो जैसे बस उसका साथ ही दे रही थी, लेकिन रागिनी पर तो जैसे हवस का भूत ही सवार था…

मुझे देखते ही उसने रीना को छोड़, मेरे कपड़ों पर धावा बोल दिया, और एक मिनिट में ही मुझे भी बिल्कुल नंगा कर दिया…

वो मेरे लंड पर किसी भूखी कुतिया की तरह टूट पड़ी.. और चूस-चूस कर चमका दिया…

मेने भी उसे ज़्यादा तरसने नही दिया, और खड़े खड़े ही उसकी एक टाँग उठाकर अपना खूँटा, उसके छेद में ठोक दिया…

जोरदार झटकों की वजह से रागिनी ज़्यादा देर एक टाँग पर खड़ी नही रह पाई, तो मे उसे घोड़ी बनाकर चोदने लगा…

एक बार जमकर रागिनी की चूत चोदने के बाद मेने रीना को अपने पास खींच लिया…

वो तो पहले से ही वासना की आग में बुरी तरह झुलस रही थी, उसकी चूत लगातार चासनी टपका रही थी…

मेने अपना मूसल उसकी गीली चूत में डाल दिया, और उसके मन मुताविक चोदने लगा, वो खुश होगयि…और अपनी गान्ड उठा उठाकर चुदाई का मज़ा लूटती रही…

रीना की मोटी- मोटी चुचियों का रस निचोड़ते हुए मेने उसे उलट-पुलट कर जमकर मज़ा दिया.. अब वो पूरी तरह से संतुष्ट नज़र आ रही थी…
 
कुछ देर सुस्ताने के बाद मेने फिरसे रागिनी की तरफ अपना रुख़ किया….

थोड़ी देर उससे लॉडा चुसवाने के बाद, वो फिरसे फनफनाकर खड़ा था अगली जंग जीतने के लिए…

ड्रग का असर उसे ज़्यादा देर शांति से बैठने ही नही दे रहा था…
रागिनी की हवस भी बुरी तरह बढ़ चुकी थी… उसे अब सिवाय मेरे मोटे लंड के और कुछ भी दिखाई नही दे रहा था…!

मेने उसकी वासना को और थोड़ा भड़काया, और उसके कठोरे निप्प्लो को अपने दाँतों से काटने लगा…

प्रतिक्रिया स्वरूप उसकी हवस और भड़क उठी, और वो मेरे लौडे को जबर्जस्ती से पकड़ कर अपनी चूत पर घिसने लगी…

मेने थोड़ा उसे तरसाते हुए कहा – रागिनी अब अगर तुझे मेरा लंड चाहिए तो जैसे मे चाहूं वैसे तुझे चुदवाना पड़ेगा…

मेरी बात वो फ़ौरन मान गयी, और किसी भूखी कुतिया की तरह पून्छ हिलाते हुए बोली – तुझे जैसे, जो करना है जल्दी कर, और मेरी भट्टी को ठंडा कर्दे प्लीज़…

मेने उसे एक पेड़ के पास खड़ा किया और उसके तने से उसीकि ब्रा से उसके हाथ बाँध दिए…

उसका मुँह पेड़ की तरफ था और वो पीछे को अपनी गान्ड चौड़ा कर झुक गयी…

मेने रीना को बोलकर उसकी ब्रा रागिनी के मुँह में ठूंसवा दिया, जिससे वो चीख ना सके… और अपने लंड को रीना के मुँह में देकर गीला किया…

मेरा लंड ड्रग के असर से इस समय इस पोज़िशन में आ चुका था, कि अगर किसी दीवार में भी पेलता तो वो उसमें भी छेद कर देता…

मेरे लंड का आकार और उसकी कठोरता देख कर रीना ने एक झूर झूरी सी ली…
अब रागिनी को उसके किए का सबक सिखाने का वक़्त आ गया था,

मेने ढेर सारा थूक लेकर उसकी गान्ड के छेद पर रखा, रीना को इशारा किया तो उसने अपने हाथों से उसकी गान्ड के छेद को चौड़ा दिया…

मेरी मनसा जानकार रागिनी कसमसाई, और अपनी गान्ड को इधर उधर करने लगी…

मेने अपनी एक हथेली उसकी गान्ड के एक पाट पर जमाई, मूसल को उसके छेद पर टीकाया, और एक सुलेमानी धक्का अपनी कमर को मार दिया….

छर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्ररर……..की आवाज़ के साथ रागिनी की गान्ड फट गयी…. उसके चूतड़ बुरी तरह से हिलने लगे…. मेरा आधे से भी ज़्यादा लंड उसकी गान्ड में फिट हो चुका था…

उसके मुँह से बस गून..गूणन्.. जैसी आवाज़ें ही निकल पा रही थी… मेने रीना को उसकी चूत सहलाने के लिए कहा, और खुद उसकी चुचियों को मसल्ने लगा…

वो कुछ शांत हुई, तो एक और फाइनल स्ट्रोक लगा कर बॉल बाउंड्री के बाहर…. बोले तो जड़ तक लंड रागिनी की गान्ड में फिट कर दिया…

उसकी आँखों से आँसुओ की बाढ़ सी आ रही थी…टाइट गान्ड पाकर मेरे मूसल की तो बल्ले-बल्ले हो गयी…

वो साला उसके अंदर जाकर और ज़्यादा फूल गया…, कुछ देर और अंदर रखने के बाद मेने अपने खूँटे को बाहर खींचा…

उसपर लाल खून के रेशे दिखाई दे रहे थे, माने रागिनी की गान्ड की दीवारें बुरी तरह डॅमेज हो गयी थी….

लंड निकालकर मेने देखा तो उसकी गान्ड का छेद किसी ब्लॅक होल जैसा दिख रहा था…

थोड़ा सा थूक और उसके छेद में थूक कर मेने फिर से अपने खूँटे को एक साथ ही गाढ दिया… रागिनी एक बार फिर बुरी तरह कसमसाई…

लेकिन हाथ बँधे थे, मुँह में रीना की ब्रा ठूँसी हुई थी, इस बजह से वो कुछ विरोध करने की स्थिति में नही थी…

मेने अपने धक्के लगाना शुरू कर दिए…, ड्रग के असर से मेरा लंड इतना जल्दी हार मानने वाला नही था…

लगभग आधे घंटे तक में बदस्तूर उसकी गान्ड फाड़ता रहा, फिर उसकी छत-विच्छित गान्ड को अपने वीर्य से भर दिया…
अपनी साँसें इकट्ठा करने के बाद मेने रागिनी के हाथ खोल दिए, उसके मुँह से रीना ने अपनी ब्रा निकाली.. वो वहीं पेड़ की जड़ में पस्त होकर पड़ी रह गयी,

उसकी आँखों से अभी भी पानी बह रहा था…, कुछ ड्रग का असर, और ऊपर से उसकी गान्ड सुन्न हुई पड़ी थी सोते जैसे लंड की मार से….!

बहुत देर तक उसकी गान्ड का सुराख खुला का खुला ही रह गया. जिसमें से मेरा वीर्य, एक सफेद लकीर के रूप में धीरे-2 बाहर रिस रहा था..

उसकी गान्ड के होल की दीवारें लाल सुर्ख हो चुकी थी…मुझे लगा कि ये कुछ दिन ठीक से चल भी पाएगी या नही…

खैर इस सबसे अपना ध्यान हटाकर मेने अपने कपड़े पहने और रीना को उसके पास छोड़कर अपने टेंट में जाकर सो गया…

अगली सुबह, मेरे उठने से पहले ही, अधिकतर लोग जंगल घूमने निकल गये, मेने अनमने भाव से नित्या क्रिया की, और फिर रागिनी की खैर खबर लेने उसके टेंट की तरफ चल दिया…

रीना उठ चुकी थी, लेकिन रागिनी अभी भी बेसूध पड़ी थी, कुछ तो ड्रग का असर, ऊपर से फटी गान्ड का दर्द…

रीना को उसका ख़याल रखने का बोलकर मे भी थोड़ा नदी की तरफ निकल गया, और एकांत जगह देख, उसके किनारे पर बैठकर नदी के निर्मल जल को निहारते हुए सोचने लगा…

रागिनी के बारे में सोचकर, मुझे अपने मन में बड़ी ग्लानि सी होने लगी, मुझे रागिनी के साथ ऐसा दुर्व्यवहार नही करना चाहिए था…

वो तो जैसी थी सो थी, लेकिन मुझे ऐसा नही करना चाहिए था…

बहुत देर तक में यूँ ही बैठा पानी को निहारता रहा, फिर सोचा थोड़ा नहा लिया जाए, और अपने कपड़े निकाल कर नदी के पानी में उतर गया…

नदी के ठंडे पानी का अहसास बदन पर होते ही मुझे राहत महसूस हुई, बहुत देर तक में पानी में नहाता रहा…

फिर बाहर आकर अपने कपड़े उठाए, और गीले बदन मात्र अंडरवेर में ही जंगल के बीच से होते हुए अपने टेंट की तरफ चल दिया…

अभी में जंगल से बाहर निकल भी नही पाया था, कि सामने से मुझे रीना आती हुई दिखी…

उसे देखते ही मेने झट से अपने कपड़ों से गीले अंडरवेर को ढक लिया… जब वो पास आ गयी तो मेने पूछा…

रीना तुम यहाँ क्या कर रही हो…, मेरी बात सुनकर वो बोली…

चलो तुम्हें रागिनी बुला रही है, जब मेने उसे पूछा कि अब वो कैसी है..?

तो उसने बताया, कि अभी ठीक तो है, लेकिन चलने में थोड़ी तकलीफ़ हो रही है…

फिर उसकी नज़र नीचे को गयी, और मेरे कपड़ों से अंडरवेर को ढके देखा, तो शरारत करने से वो बाज़ नही आई, और झटके से मेरे कपड़े छीन्कर खिल-खिलते हुए झाड़ियों की तरफ भागने लगी…
 
मे उसके पीछे पीछे दौड़ा, थोड़ा सा ही आगे जाकर वो झटके से रुक गयी, और एकदम से मेरे सामने आकर उसने मेरे गीले अंडरवेर के ऊपर से ही मेरे लंड को पकड़ लिया…

मेने उसकी गान्ड मसल्ते हुए कहा – कल रात से मन नही भरा तुम्हारा..?

वो मेरी आँखों में झाँकते हुए बोली – इसे देखकर फिर से मन करने लगा है..

प्लीज़ अंकुश एक बार और कर्दे ना यार.., ना जाने फिर मौका मिले या ना मिले…
मेरा भी रात के ड्रग का असर अभी वाकी था, सो मेने वही उसे घोड़ी बनाकर पीछे से उसकी मस्त गान्ड को मसल्ते हुए अपना लंड उसकी गान्ड में ठोक दिया…

वो बुरी तरह से कसमसाने लगी, लंड अभी आधा भी अंदर नही गया था, और वो हाए-तौबा करने लगी, और लंड बाहर निकालने के लिए गुहार करने लगी…

मेने भी उसे ज़्यादा परेशान करना ठीक नही समझा, वरना एक और लंगड़ी घोड़ी ग्रूप में शामिल हो जाती,

मेने उसकी गान्ड से अपना लंड खींचकर उसकी चूत में पेल दिया, उसकी एक बार और अच्छे से खुजली मिटाकर हम दोनो वापस आ गये…

अपने टेंट में जाने से पहले रीना ने मेरे होंठों को चूम लिया और बोली –

थॅंक यू अंकुश… तुम्हारे साथ बिताए लम्हों को जीवन भर नही भूल पाउन्गि.

मेने अपने टेंट में जाकर कपड़े चेंज किए, और फिर डरते-डरते रागिनी के पास गया, मुझे देखते ही रागिनी सुबकते हुए बोली –

मुझे तुमसे ये उम्मीद नही थी, मेने जो तुम्हारे साथ किया वो मेरी ज़िद थी तुम्हें पाने की, लेकिन तुमने तो….

अपनी बात अधूरी छोड़कर वो फिरसे सुबकने लगी…

मे उसके पास जाकर बैठ गया, और उसके कंधे को सहलाते हुए कहा - मुझे माफ़ कर दे रागिनी, सच्चाई जानने के बाद में अपने आपे में नही रहा.. सो तुम्हें सबक सिखाने के लिए ये सब कर बैठा…

सच कहूँ तो सुबह से ही मेरा मन आत्मगीलानी से भरा हुआ था, इसीलिए में नदी की तरफ चला गया था…

रागिनी ने अपने को शांत करते हुए कहा – इट्स ओके, ग़लती हम दोनो से ही हुई है..अब बेहतर होगा, कि बीती बातें भूलकर हम फिर से दोस्त रहें..

रागिनी के मुँह से ऐसी समझदारी भरी बातें सुनकर मेने उसे अपने बाजुओं में भरते हुए कहा…

ओह… थॅंक यू रागिनी, तुमने मुझे माफ़ कर दिया, अब हम पक्के वाले दोस्त हैं..

तभी रीना बीच में बोल पड़ी – मुझे भूल गये क्या…?

हँसते हुए हमने उसे भी अपने पास खींच लिया, और हम तीनों ही एक दूसरे से लिपट गये…

जीवन के किसी मोड़ पर फिरसे मिलने का वादा कर के मे अपने टेंट में चला गया, और अपना समान पॅक करने लगा…

दिन ढले हमारा टूर वापसी के लिए चल पड़ा, और दूसरे दिन सुबह हम अपने कस्बे में थे…

कुछ दिनो बाद ही हमारे फाइनल एग्ज़ॅम हो गये, मेने अच्छे ग्रेड से ग्रॅजुयेशन कंप्लीट कर लिया….!

रिज़ल्ट के बाद घर में बड़ों के बीच डिस्कशन का दौर शुरू हुआ, वीकेंड में दोनो भाई घर में मौजूद थे…

बड़े भैया का सुझाव था, कि मे उनकी तरह हाइयर स्टडी करूँ और किसी कॉलेज में लग जाउ…

लेकिन कृष्णा भैया चाहते थे, की मे उनकी तरह किसी प्रशासनिक पद के लिए तैयारी करूँ….

किसी को मुझे पूच्छने की तो जैसे कोई ज़रूरत ही महसूस नही हो रही थी, कि मे क्या चाहता हूँ…

तभी बाबूजी ने अपनी अलग ही राई रख दी और बोले – वैसे तो तुम सब लोग समझदार हो, जो भी कहोगे छोटू के भले के लिए ही कहोगे,

लेकिन मे चाहता हूँ, कि घर में कोई एक ऐसा भी हो जो क़ानून और अदालती कार्यों की जानकारी रखता हो.. तभी हमारा परिवार पूर्ण होगा…

भाभी ने मेरी तरफ देखा और बोली – तुम क्या चाहते हो लल्ला…?

मेने भाभी की तरफ धन्यवाद वाली नज़रों से देखा, कि चलो कम से कम भाभी को तो मेरी इच्छाओं का भान है…

उनकी बात सुनकर सब मेरी तरफ देखने लगे…

मेने कहा – मेरे विचार से हम सभी को बाबूजी की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए, रही बात मेरी अपनी इच्छा की तो वो भी उनके सम्मान से ही जुड़ी हुई हैं…

मेरी बात से बाबूजी की आँखें भर आईं, उन्होने मुझे अपने सीने से लगा लिया..और भरे कंठ से बोले –

जीता रह मेरे बच्चे…, पर बेटा मेने तो बस अपना विचार रखा था, ये तेरे ऊपर निर्भर करता है, कि तू क्या चाहता है…?

मेने उनसे अलग होते हुए कहा – मे बस ये चाहता हूँ, कि आप मुझसे क्या चाहते हैं…

हर माँ बाप अपनी आधी अधूरी हसरतों को अपने बच्चों के रूप में पूरा करना चाहते हैं, और यही सोच लेकर वो अपने बच्चों की परवरिश अपनी ख्वाहिशों को दफ़न कर के करते रहते हैं
 
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