hotaks444
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आज सनडे था, कोर्ट की तो छुट्टी थी, सुवह होटेल में फ्रेश हुआ.. चाय नाश्ता कर के… 10 बजे जस्टीस ढीनगरा जो राजेश का केस देख रहे थे.. उनके बंगले पर पहुँचा….
गेट पर प्रोफ़ेसर. राम नारायण जी का रेफरेन्स देकर अपना कार्ड दिया…
वो उनसे बात कर चुके थे, सो मेरा कार्ड देखते ही उन्होने मुझे अंदर बुलवा लिया…
मेने उन्हें सारी बातें डीटेल में बताई… उन्होने मुझे दो दिन बाद की बेल की सुनवाई की डेट देने का प्रॉमिस कर दिया….!
जस्टीस ढीनगरा के यहाँ से निकल कर, मेने एक वकालत नामा तैयार किया और चल दिया सेंट्रल जैल की तरफ…
जेलर को अपना परिचय दिया और उससे राजेश से मिलने का समय माँगा…
जैसे ही राजेश भाई मेरे सामने आए… मे उन्हें देखता ही रह गया…
क्या हालत हो गयी थी बेचारे की… आँखें सूजी हुई थी… उनके नीचे काले-2 निशान बनने लगे थे.. और वो गड्ढे से में धँस चुकी थीं…
राजेश मुझे अपने सामने देख कर भावुक हो गया… मेने उसके कंधे पर हाथ रखकर हौसला बनाए रखने के लिए कहा….
मेने वकालत नामे को उसके सामने रखते हुए कहा – राजेश भाई… आप इस पर साइन कर दीजिए…
राजेश – ये क्या है… अंकुश जी…?
मे – ये मेरा वकालत नामा है… आज से मे आपका केस लड़ रहा हूँ.. ?
वो – आप ! आप मेरा केस लड़ेंगे…?
मे – क्यों..? मेने भी वकालत की है…! क्या आपको मेरे ऊपर भरोसा नही है…?
वो – ऐसी बात नही है.. अंकुश जी, असल में मुझे अब आशा की कोई किरण ही नज़र आती दिखाई नही दे रही थी… सो इसलिए पुच्छ लिया… सॉरी !
मे – अब आप सारी चिंताएँ मुझ पर छोड़ दीजिए… बस दो दिन और.. उसके बाद आप खुली हवा में साँस ले रहे होंगे…
वो अविश्वसनीय नज़रों से मुझे देखने लगे… मेने कहा – मे सही कह रहा हूँ…, दो दिन बाद हम सभी एक साथ बैठे होंगे… विश्वास कीजिए मेरा..
वो – मुझे तो ये सपना सा ही लग रहा है… क्या सच में मे दो दिन बाद आज़ाद हो जाउन्गा…?
मे – पूरी आज़ादी मिलने में कुछ वक़्त ज़रूर लग सकता है… लेकिन दो दिन बाद आप जैल में तो नही होंगे… ये पक्का है.
उनको हौसला देकर मे अपने घर लौट आया…
शाम को हम सब एक साथ बैठे हुए थे… अभी तक घर में किसी को कुछ पता नही था कि बीते दो-तीन दिन में मे कहाँ और क्या कर रहा था…
बस उनको ये भरोसा ज़रूर था कि मे जो भी कर रहा हूँ.. वो राजेश की रिहाई से संबंधित ही होगा…
मेने बात शुरू की – भैया ! दो दिन बाद राजेश भाई की बैल की हियरिंग है… मे चाहता हूँ.. आप सब लोग उस समय अदालत में उपस्थित हों…
भैया – क्या..? इतनी जल्दी डेट भी मिल गयी..?
मे – हां ! मेने आप लोगों को एक हफ्ते का समय दिया था, तो ये सब करना तो ज़रूरी ही था !
भैया – लेकिन वो जड्ज तो बहुत नलायक था, हमें तो उसने मिलने तक का समय नही दिया था…!
मे – भैया ! कुछ चीज़ें क़ानूनी दाव पेंच से ही संभव हो पाती हैं..!
पिताजी – तुम्हें क्या लगता बेटा ! राजेश को बैल मिल जाएगी…?
मे – अपने बेटे पर भरोसा रखिए बाबूजी..! दुनिया का कोई क़ानून अब उन्हें जैल में नही रख पाएगा…!
मेने ऐसे – 2 एविडॅन्स इकट्ठा कर लिए हैं.. कि अगर अदालती प्रक्रिया अपने सिस्टम के हिसाब से ना चलती होती तो सीधे केस ही ख़तम हो जाता…इसी डेट को.
भाभी अपना आपा खो बैठी… उन्होने मेरे पास आकर मेरा माथा चूम लिया... और रोते हुए बोली – मुझे तुम पर नाज़ है लल्ला… माँ जी की आत्मा तुम्हें देख कर आज कितनी खुश हो रही होगी..
मेने उनके आँसू पोन्छते हुए कहा – नाज़ दो दिन बाद करना भाभी… जब आपके भाई आपके साथ होंगे…
रात को भाभी मेरे लिए दूध लेकर कमरे मैं आईं…साथ में निशा भी थी.
भाभी मेरे पास बिस्तर पर बैठ गयी… निशा उनके बाजू में खड़ी रही…
मेने भाभी के हाथ से दूध का ग्लास लेकर निशा से सवाल किया – निशा ! तुम्हें ठीक से याद है वो वाक़या…?
वो नज़र नीची किए हुए बोली – हां मुझे आज भी अच्छे से याद है,… उन मनहूस पलों को भला कैसे भूल सकती हूँ मे.. !
मे – तो एक बार याद कर के बताना… जब राजेश भाई और भानु के बीच हाथापाई हो रही थी,… तो क्या कभी भी ऐसा मौका आया था जब चाकू उनके हाथ लगा हो…?
वो – नही ! मुझे तो एक बार भी नही दिखा कि भैया का हाथ कभी भी उसके चाकू पर गया हो… वो तो उसकी कलाई ही पकड़ कर उसके हाथ को अपनी तरफ आने से रोकते रहे थे…
मे सोच में पड़ गया… की पोलीस का ध्यान इस तरफ क्यों नही गया…? चलो मान लिया कि पोलीस ठाकुर के दबाब में आ गयी… लेकिन भैया तो एसपी हैं.. उन्होने इस तरफ ध्यान क्यों नही दिया..?
मुझे सोच में डूबे हुए देख कर भाभी बोली – किस सोच में डूब गये लल्ला..?
मे – अच्छा भाभी ! एक बात बताइए… उस हादसे के बाद कृष्णा भैया यहाँ आए थे…?
भाभी – एक बार आए थे… तुम्हारे भैया के बुलाने पर…
मे – तो उनका व्यवहार इस केस को लेकर कैसा लगा…? आइ मीन वो मदद करना चाहते थे या कुछ और..? क्योंकि आप तो लोगों की साइकोलजी अच्छे से जान लेती हैं…
भाभी – शुरू में तो लगा कि वो इस मामले में मदद करना चाहते हैं… थोड़ी बहुत भाग दौड़ भी की थी, … कुछ उनकी बातों से लगा भी कि बात बन रही है…फिर…
मे – फिर..! फिर क्या हुआ भाभी…?
भाभी – शाम को जब यहाँ उस विषय पर बातें हो रही थी.. कि आगे क्या और कैसे करना है कि तभी उनको एक फोन आया… बातों से लगा कि शायद कामिनी का ही था…
वो हमारे पास से उठ कर फोन पर बात करते हुए बाहर निकल गये… जब वापस अंदर आए… तो उनका रुख़ बदला हुआ सा था…!
मे – तो क्या उन्होने आगे मदद करने के लिए मना कर दिया था…?
भाभी – सीधे -2 तो नही.. पर घुमा फिरा कर उन्होने जता दिया की अब बहुत देर हो चुकी है…, मामला अदालत में पहुँच चुका है, पोलीस अब इस मामले में कुछ नही कर सकती…!
गेट पर प्रोफ़ेसर. राम नारायण जी का रेफरेन्स देकर अपना कार्ड दिया…
वो उनसे बात कर चुके थे, सो मेरा कार्ड देखते ही उन्होने मुझे अंदर बुलवा लिया…
मेने उन्हें सारी बातें डीटेल में बताई… उन्होने मुझे दो दिन बाद की बेल की सुनवाई की डेट देने का प्रॉमिस कर दिया….!
जस्टीस ढीनगरा के यहाँ से निकल कर, मेने एक वकालत नामा तैयार किया और चल दिया सेंट्रल जैल की तरफ…
जेलर को अपना परिचय दिया और उससे राजेश से मिलने का समय माँगा…
जैसे ही राजेश भाई मेरे सामने आए… मे उन्हें देखता ही रह गया…
क्या हालत हो गयी थी बेचारे की… आँखें सूजी हुई थी… उनके नीचे काले-2 निशान बनने लगे थे.. और वो गड्ढे से में धँस चुकी थीं…
राजेश मुझे अपने सामने देख कर भावुक हो गया… मेने उसके कंधे पर हाथ रखकर हौसला बनाए रखने के लिए कहा….
मेने वकालत नामे को उसके सामने रखते हुए कहा – राजेश भाई… आप इस पर साइन कर दीजिए…
राजेश – ये क्या है… अंकुश जी…?
मे – ये मेरा वकालत नामा है… आज से मे आपका केस लड़ रहा हूँ.. ?
वो – आप ! आप मेरा केस लड़ेंगे…?
मे – क्यों..? मेने भी वकालत की है…! क्या आपको मेरे ऊपर भरोसा नही है…?
वो – ऐसी बात नही है.. अंकुश जी, असल में मुझे अब आशा की कोई किरण ही नज़र आती दिखाई नही दे रही थी… सो इसलिए पुच्छ लिया… सॉरी !
मे – अब आप सारी चिंताएँ मुझ पर छोड़ दीजिए… बस दो दिन और.. उसके बाद आप खुली हवा में साँस ले रहे होंगे…
वो अविश्वसनीय नज़रों से मुझे देखने लगे… मेने कहा – मे सही कह रहा हूँ…, दो दिन बाद हम सभी एक साथ बैठे होंगे… विश्वास कीजिए मेरा..
वो – मुझे तो ये सपना सा ही लग रहा है… क्या सच में मे दो दिन बाद आज़ाद हो जाउन्गा…?
मे – पूरी आज़ादी मिलने में कुछ वक़्त ज़रूर लग सकता है… लेकिन दो दिन बाद आप जैल में तो नही होंगे… ये पक्का है.
उनको हौसला देकर मे अपने घर लौट आया…
शाम को हम सब एक साथ बैठे हुए थे… अभी तक घर में किसी को कुछ पता नही था कि बीते दो-तीन दिन में मे कहाँ और क्या कर रहा था…
बस उनको ये भरोसा ज़रूर था कि मे जो भी कर रहा हूँ.. वो राजेश की रिहाई से संबंधित ही होगा…
मेने बात शुरू की – भैया ! दो दिन बाद राजेश भाई की बैल की हियरिंग है… मे चाहता हूँ.. आप सब लोग उस समय अदालत में उपस्थित हों…
भैया – क्या..? इतनी जल्दी डेट भी मिल गयी..?
मे – हां ! मेने आप लोगों को एक हफ्ते का समय दिया था, तो ये सब करना तो ज़रूरी ही था !
भैया – लेकिन वो जड्ज तो बहुत नलायक था, हमें तो उसने मिलने तक का समय नही दिया था…!
मे – भैया ! कुछ चीज़ें क़ानूनी दाव पेंच से ही संभव हो पाती हैं..!
पिताजी – तुम्हें क्या लगता बेटा ! राजेश को बैल मिल जाएगी…?
मे – अपने बेटे पर भरोसा रखिए बाबूजी..! दुनिया का कोई क़ानून अब उन्हें जैल में नही रख पाएगा…!
मेने ऐसे – 2 एविडॅन्स इकट्ठा कर लिए हैं.. कि अगर अदालती प्रक्रिया अपने सिस्टम के हिसाब से ना चलती होती तो सीधे केस ही ख़तम हो जाता…इसी डेट को.
भाभी अपना आपा खो बैठी… उन्होने मेरे पास आकर मेरा माथा चूम लिया... और रोते हुए बोली – मुझे तुम पर नाज़ है लल्ला… माँ जी की आत्मा तुम्हें देख कर आज कितनी खुश हो रही होगी..
मेने उनके आँसू पोन्छते हुए कहा – नाज़ दो दिन बाद करना भाभी… जब आपके भाई आपके साथ होंगे…
रात को भाभी मेरे लिए दूध लेकर कमरे मैं आईं…साथ में निशा भी थी.
भाभी मेरे पास बिस्तर पर बैठ गयी… निशा उनके बाजू में खड़ी रही…
मेने भाभी के हाथ से दूध का ग्लास लेकर निशा से सवाल किया – निशा ! तुम्हें ठीक से याद है वो वाक़या…?
वो नज़र नीची किए हुए बोली – हां मुझे आज भी अच्छे से याद है,… उन मनहूस पलों को भला कैसे भूल सकती हूँ मे.. !
मे – तो एक बार याद कर के बताना… जब राजेश भाई और भानु के बीच हाथापाई हो रही थी,… तो क्या कभी भी ऐसा मौका आया था जब चाकू उनके हाथ लगा हो…?
वो – नही ! मुझे तो एक बार भी नही दिखा कि भैया का हाथ कभी भी उसके चाकू पर गया हो… वो तो उसकी कलाई ही पकड़ कर उसके हाथ को अपनी तरफ आने से रोकते रहे थे…
मे सोच में पड़ गया… की पोलीस का ध्यान इस तरफ क्यों नही गया…? चलो मान लिया कि पोलीस ठाकुर के दबाब में आ गयी… लेकिन भैया तो एसपी हैं.. उन्होने इस तरफ ध्यान क्यों नही दिया..?
मुझे सोच में डूबे हुए देख कर भाभी बोली – किस सोच में डूब गये लल्ला..?
मे – अच्छा भाभी ! एक बात बताइए… उस हादसे के बाद कृष्णा भैया यहाँ आए थे…?
भाभी – एक बार आए थे… तुम्हारे भैया के बुलाने पर…
मे – तो उनका व्यवहार इस केस को लेकर कैसा लगा…? आइ मीन वो मदद करना चाहते थे या कुछ और..? क्योंकि आप तो लोगों की साइकोलजी अच्छे से जान लेती हैं…
भाभी – शुरू में तो लगा कि वो इस मामले में मदद करना चाहते हैं… थोड़ी बहुत भाग दौड़ भी की थी, … कुछ उनकी बातों से लगा भी कि बात बन रही है…फिर…
मे – फिर..! फिर क्या हुआ भाभी…?
भाभी – शाम को जब यहाँ उस विषय पर बातें हो रही थी.. कि आगे क्या और कैसे करना है कि तभी उनको एक फोन आया… बातों से लगा कि शायद कामिनी का ही था…
वो हमारे पास से उठ कर फोन पर बात करते हुए बाहर निकल गये… जब वापस अंदर आए… तो उनका रुख़ बदला हुआ सा था…!
मे – तो क्या उन्होने आगे मदद करने के लिए मना कर दिया था…?
भाभी – सीधे -2 तो नही.. पर घुमा फिरा कर उन्होने जता दिया की अब बहुत देर हो चुकी है…, मामला अदालत में पहुँच चुका है, पोलीस अब इस मामले में कुछ नही कर सकती…!