hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
ये सच है, कि जाने अंजाने ही सही, जब कोई मर्द या औरत सेक्षुयली सेन्सेशन फील करने लगता है, तो वो उसे और ज़्यादा पाने की कोशिश में लग जाता है, फिर उसे अपने आस-पास का भी भय नही रहता…
ऐसा ही कुछ हम दोनो के साथ भी हो रहा था…मेने अपनी वो उंगली, जिसकी गाँठ उसकी गान्ड के छेद पर दबी हुई थी उसको मोड़ कर उपर उठा दिया...
उधर मेघना ने ट्रेन के हिचकॉलों का सहारा लेकर अपनी गान्ड को आगे पीछे मूव करना शुरू कर दिया…
उसने अपनी जाँघ को दूसरी जाँघ पर और ज़्यादा चढ़ा लिया, जिससे उसकी गान्ड थोड़ी और उपर हो गयी, अब वो मेरी उठी हुई उंगली पर अपनी गान्ड के छेद को और अच्छे से घिस सकती थी..!
उसकी गर्मी निरंतर बढ़ती जा रही थी, एक कदम और आगे बढ़ते हुए उसने अपनी गान्ड को और पीछे धकेला….
ट्रेन के हिचकॉलों के साथ-साथ वो अपनी गान्ड को आगे पीछे करते रहने की वजह से अब मेरी उंगली उसकी मुनिया के होठों के अंतिम सिरे तक पहुँचने लगी…
मुनिया के द्वार पर मेरी उंगली की गाँठ की दस्तक पाकर, उसकी आँखें मूंद गयी, उसकी पैंटी गीली हो चुकी थी जो मेरी उंगलियों से पता चल रहा था…
उसका साथ देते हुए, मेने भी अपने हाथ को आगे की तरफ सरकाने के साथ साथ उसे पलटा दिया… अब मेरी उंगली सीधी होकर उसकी चूत के होठों पर सैर कर रही थी..
मेघना का हाल-बहाल हो चुका था, अब उसके कान तक गरम होकर लाल पड़ चुके थे, गले की नसें खिचने लगी……. फिर एक समय ऐसा आया…
और मेघना सारी शर्मो-हया भूल कर उसका हाथ उसकी जँहों के बीच चला गया… और उसने मेरे हाथ को पकड़ कर अपनी चूत के उपर दबा दिया…
मेरी एक उंगली जो उसकी चूत के उपर थी… वो उसकी सलवार और पैंटी को साथ लिए कुछ अंदर तक उसकी चूत में घुस गयी….,
उसने अपने होठों को कस कर भींच लिया जिससे उसकी आहह….होठों से बाहर ना निकले, और अपनी जांघों को कसकर भींचते हुए वो झड़ने लगी…..!
बहुत देर तक वो यौंही अपनी जांघों को कसे रही…फिर जब उत्तेजना शांत हुई…तो धीरे – 2 ढीला छोड़ा…!
उसकी जांघों का कसाव हटते ही मेने अपना हाथ बाहर खींच लिया…
उसने अपनी नज़र आस-पास दौड़ाई, भीड़ में किसी का ध्यान किसी की तरफ नही था…वैसे भी वो पहाड़ जैसी औरत सामने खड़ी थी…तो उसकी आड़ में कॉन देखने वाला था…
फिर उसने मेरी तरफ देखा, तो में अपनी नज़र डिब्बे में बैठे लोगों की तरफ घूमाते हुए उसके रस से गीली उंगलियों को नाक पर रख कर सूंघने लगा..!
ये देखकर वो बुरी तरह शरमा गयी, अपनी नज़र नीची करके मन ही मन मुस्करा उठी…!
फिर मौका देखकर मेघना ने अपनी मुनिया को रगड़ कर उससे निकले रस के गीलेपन को अपने कपड़ों से पोंच्छ लिया….!
कुछ देर के बाद ही एक बड़ा सा स्टेशन आया, और डिब्बे की सारी भीड़ वहाँ उतर गयी, कुछ और नये मुसाफिर भी चढ़े, लेकिन अब उतनी भीड़ नही थी….
हमने कुछ खाने पीने का सोचा, दीदी कुछ समान घर से बना के लाई थी, वो निकालने लगी…
मेघना बोली – आप खाना निकालो भाभी, तब तक में टाय्लेट जाकर आती हूँ, ये कहकर वो टाय्लेट चली गयी…
में समझ रहा था, वो टाय्लेट क्यों जा रही है…!
सफ़र के अंत तक मेघना ने मेरी तरफ आँख उठाकर भी नही देखा,
मुझसे नज़रें मिलाने की उसकी हिम्मत ही नही हुई, और सच कहूँ तो मेरी भी नही.
अंधेरा होते – 2 हम अपने घर आ गये…मे स्टेशन तक अपनी कार ले गया था, जो लौटने में बहुत काम आई, और आराम से हम साजो-समान के साथ घर तक आ गये…
दीदी सभी से मिलकर बहुत खुश हुई, रूचि को खेलने के लिए आर्यन के रूप में एक और साथी मिल गया…
अभी तक तो वो चाची के अंश के साथ ही थोड़ा बहुत खेल लेती थी… मेघना भी घर में सभी से मिलकर बहुत खुश हुई….!
निशा ने तो उसे अपना दोस्त ही बना लिया…, और उसका समान अपने कमरे में शिफ्ट कर दिया…..! उन दोनो को देख कर लग ही नही रहा था, कि ये पहली बार मिली हैं…
भाभी का लास्ट मंत चल रहा था, वो ज़्यादातर रेस्ट ही करती रहती थी…, रामा दीदी ज़्यादातर भाभी के पास ही अपना समय बिताने लगी…
शादी एक सादा और सिंपल तरीके से होने वाली थी, तो ज़यादा नाते-रिश्तेदारों का जमावड़ा लगने वाला नही था… और कोई विशेष तैयारियाँ भी नही होनी थी…
तय हुआ था, कि हम सभी लोग शहर में ही एक गेस्ट हाउस और पार्टी प्लॉट रेंट पर ले लेंगे, वहीं प्राची और उसका परिवार भी आजाएँगे, सारी रस्म अदा करके, सिंपल तरीके से शादी हो जाएगी…
गाओं में आकर रिसेप्षन करके सारे गाओं को दावत खिला दी जाएगी…!
मे कई दिनो से अपने ऑफीस नही जा पाया था, सो दूसरे दिन सुबह-सुबह ही गाड़ी लेकर अपने ऑफीस को निकल लिया…!
कुछ केसस आए थे, जो मेरे असिस्टेंट ने हॅंडल कर लिए, कुछ बड़े केसस की डेट पोस्टपोन करके कुछ दिन बाद की करवा ली…..!
जल्दी – 2 सब काम निपटाकर मे शाम को ही घर वापस लौट आया…
कपड़े चेंज करके, मे भाभी के कमरे में आकर बैठ गया, कुछ देर
रूचि को पढ़ाता रहा,
फिर मेघना आर्यन को लेकर वहीं आ गयी, तो रूचि अपनी पढ़ाई बंद करके उसके साथ खेलने में लग गयी…!
दूसरे दिन सुबह जल्दी उठकर आदतन मेने एक्सर्साइज़ वग़ैरह की, और चाय पीकर खेतों की तरफ निकलने की सोची…
अभी मे चौपाल तक ही पहुँचा था, कि पीछे से मेघना की आवाज़ सुनाई दी…, आर्यन को गोद में लिए वो मेरे पास आकर बोली –
वो - कहीं जा रहे हैं अंकुश जी…?
मे – हां ! तोड़ा खेतों की तरफ चक्कर मार कर आता हूँ, कोई काम था..?
वो – हमें नही दिखाएँगे अपने खेत…?
मे – अरे ! व्हाई नोट…? चलिए, अच्छा है, ताजी हवा मिलेगी और वैसे भी हमारे खेतों में बहुत कुछ है देखने लायक…!
मेने आर्यन को अपनी गोद में ले लिया और चल पड़े हम दोनो खेतों की तरफ..
आपस में बातें करते हुए, आर्यन के साथ खेलते हुए, हम ट्यूबिवेल तक पहुँच गये…,
रास्ते में आर्यन के बहाने हम दोनो एक दूसरे के काफ़ी नज़दीक भी आए…
ट्यूबिवेल पर आकर, मेने आर्यन को बाबूजी के पास छोड़ा, और मेघना को लेकर अपने बगीचे की तरफ चल दिया…
हम पानी की नाली के साथ – 2 चले जा रहे थे, एक तरफ मे चल रहा था, और नाली के दूसरी तरफ मेरे बराबर में ही वो चल रही थी….
अचानक से उसका पैर स्लिप हो गया, और वो पानी की नाली में गिरने ही वाली थी, कि मेने उसकी कमर में हाथ डालकर उसे थाम लिया….
उसके पैर नाली में थे, मेरा एक हाथ उसकी कमर को थामे हुए था, उसकी गोल-2 मुलायम एक चुचि मेरे बदन से दब गयी…
दूसरे हाथ का सहारा देने के लिए मेरा हाथ आगे आया, तो वो थोड़ा सा आगे को घूमी, मे पकड़ना चाहता था उसका कंधा, लेकिन उसके घूमने की वजह से मेरा वो हाथ उसकी चुचि पर पड़ा…
ऐसा ही कुछ हम दोनो के साथ भी हो रहा था…मेने अपनी वो उंगली, जिसकी गाँठ उसकी गान्ड के छेद पर दबी हुई थी उसको मोड़ कर उपर उठा दिया...
उधर मेघना ने ट्रेन के हिचकॉलों का सहारा लेकर अपनी गान्ड को आगे पीछे मूव करना शुरू कर दिया…
उसने अपनी जाँघ को दूसरी जाँघ पर और ज़्यादा चढ़ा लिया, जिससे उसकी गान्ड थोड़ी और उपर हो गयी, अब वो मेरी उठी हुई उंगली पर अपनी गान्ड के छेद को और अच्छे से घिस सकती थी..!
उसकी गर्मी निरंतर बढ़ती जा रही थी, एक कदम और आगे बढ़ते हुए उसने अपनी गान्ड को और पीछे धकेला….
ट्रेन के हिचकॉलों के साथ-साथ वो अपनी गान्ड को आगे पीछे करते रहने की वजह से अब मेरी उंगली उसकी मुनिया के होठों के अंतिम सिरे तक पहुँचने लगी…
मुनिया के द्वार पर मेरी उंगली की गाँठ की दस्तक पाकर, उसकी आँखें मूंद गयी, उसकी पैंटी गीली हो चुकी थी जो मेरी उंगलियों से पता चल रहा था…
उसका साथ देते हुए, मेने भी अपने हाथ को आगे की तरफ सरकाने के साथ साथ उसे पलटा दिया… अब मेरी उंगली सीधी होकर उसकी चूत के होठों पर सैर कर रही थी..
मेघना का हाल-बहाल हो चुका था, अब उसके कान तक गरम होकर लाल पड़ चुके थे, गले की नसें खिचने लगी……. फिर एक समय ऐसा आया…
और मेघना सारी शर्मो-हया भूल कर उसका हाथ उसकी जँहों के बीच चला गया… और उसने मेरे हाथ को पकड़ कर अपनी चूत के उपर दबा दिया…
मेरी एक उंगली जो उसकी चूत के उपर थी… वो उसकी सलवार और पैंटी को साथ लिए कुछ अंदर तक उसकी चूत में घुस गयी….,
उसने अपने होठों को कस कर भींच लिया जिससे उसकी आहह….होठों से बाहर ना निकले, और अपनी जांघों को कसकर भींचते हुए वो झड़ने लगी…..!
बहुत देर तक वो यौंही अपनी जांघों को कसे रही…फिर जब उत्तेजना शांत हुई…तो धीरे – 2 ढीला छोड़ा…!
उसकी जांघों का कसाव हटते ही मेने अपना हाथ बाहर खींच लिया…
उसने अपनी नज़र आस-पास दौड़ाई, भीड़ में किसी का ध्यान किसी की तरफ नही था…वैसे भी वो पहाड़ जैसी औरत सामने खड़ी थी…तो उसकी आड़ में कॉन देखने वाला था…
फिर उसने मेरी तरफ देखा, तो में अपनी नज़र डिब्बे में बैठे लोगों की तरफ घूमाते हुए उसके रस से गीली उंगलियों को नाक पर रख कर सूंघने लगा..!
ये देखकर वो बुरी तरह शरमा गयी, अपनी नज़र नीची करके मन ही मन मुस्करा उठी…!
फिर मौका देखकर मेघना ने अपनी मुनिया को रगड़ कर उससे निकले रस के गीलेपन को अपने कपड़ों से पोंच्छ लिया….!
कुछ देर के बाद ही एक बड़ा सा स्टेशन आया, और डिब्बे की सारी भीड़ वहाँ उतर गयी, कुछ और नये मुसाफिर भी चढ़े, लेकिन अब उतनी भीड़ नही थी….
हमने कुछ खाने पीने का सोचा, दीदी कुछ समान घर से बना के लाई थी, वो निकालने लगी…
मेघना बोली – आप खाना निकालो भाभी, तब तक में टाय्लेट जाकर आती हूँ, ये कहकर वो टाय्लेट चली गयी…
में समझ रहा था, वो टाय्लेट क्यों जा रही है…!
सफ़र के अंत तक मेघना ने मेरी तरफ आँख उठाकर भी नही देखा,
मुझसे नज़रें मिलाने की उसकी हिम्मत ही नही हुई, और सच कहूँ तो मेरी भी नही.
अंधेरा होते – 2 हम अपने घर आ गये…मे स्टेशन तक अपनी कार ले गया था, जो लौटने में बहुत काम आई, और आराम से हम साजो-समान के साथ घर तक आ गये…
दीदी सभी से मिलकर बहुत खुश हुई, रूचि को खेलने के लिए आर्यन के रूप में एक और साथी मिल गया…
अभी तक तो वो चाची के अंश के साथ ही थोड़ा बहुत खेल लेती थी… मेघना भी घर में सभी से मिलकर बहुत खुश हुई….!
निशा ने तो उसे अपना दोस्त ही बना लिया…, और उसका समान अपने कमरे में शिफ्ट कर दिया…..! उन दोनो को देख कर लग ही नही रहा था, कि ये पहली बार मिली हैं…
भाभी का लास्ट मंत चल रहा था, वो ज़्यादातर रेस्ट ही करती रहती थी…, रामा दीदी ज़्यादातर भाभी के पास ही अपना समय बिताने लगी…
शादी एक सादा और सिंपल तरीके से होने वाली थी, तो ज़यादा नाते-रिश्तेदारों का जमावड़ा लगने वाला नही था… और कोई विशेष तैयारियाँ भी नही होनी थी…
तय हुआ था, कि हम सभी लोग शहर में ही एक गेस्ट हाउस और पार्टी प्लॉट रेंट पर ले लेंगे, वहीं प्राची और उसका परिवार भी आजाएँगे, सारी रस्म अदा करके, सिंपल तरीके से शादी हो जाएगी…
गाओं में आकर रिसेप्षन करके सारे गाओं को दावत खिला दी जाएगी…!
मे कई दिनो से अपने ऑफीस नही जा पाया था, सो दूसरे दिन सुबह-सुबह ही गाड़ी लेकर अपने ऑफीस को निकल लिया…!
कुछ केसस आए थे, जो मेरे असिस्टेंट ने हॅंडल कर लिए, कुछ बड़े केसस की डेट पोस्टपोन करके कुछ दिन बाद की करवा ली…..!
जल्दी – 2 सब काम निपटाकर मे शाम को ही घर वापस लौट आया…
कपड़े चेंज करके, मे भाभी के कमरे में आकर बैठ गया, कुछ देर
रूचि को पढ़ाता रहा,
फिर मेघना आर्यन को लेकर वहीं आ गयी, तो रूचि अपनी पढ़ाई बंद करके उसके साथ खेलने में लग गयी…!
दूसरे दिन सुबह जल्दी उठकर आदतन मेने एक्सर्साइज़ वग़ैरह की, और चाय पीकर खेतों की तरफ निकलने की सोची…
अभी मे चौपाल तक ही पहुँचा था, कि पीछे से मेघना की आवाज़ सुनाई दी…, आर्यन को गोद में लिए वो मेरे पास आकर बोली –
वो - कहीं जा रहे हैं अंकुश जी…?
मे – हां ! तोड़ा खेतों की तरफ चक्कर मार कर आता हूँ, कोई काम था..?
वो – हमें नही दिखाएँगे अपने खेत…?
मे – अरे ! व्हाई नोट…? चलिए, अच्छा है, ताजी हवा मिलेगी और वैसे भी हमारे खेतों में बहुत कुछ है देखने लायक…!
मेने आर्यन को अपनी गोद में ले लिया और चल पड़े हम दोनो खेतों की तरफ..
आपस में बातें करते हुए, आर्यन के साथ खेलते हुए, हम ट्यूबिवेल तक पहुँच गये…,
रास्ते में आर्यन के बहाने हम दोनो एक दूसरे के काफ़ी नज़दीक भी आए…
ट्यूबिवेल पर आकर, मेने आर्यन को बाबूजी के पास छोड़ा, और मेघना को लेकर अपने बगीचे की तरफ चल दिया…
हम पानी की नाली के साथ – 2 चले जा रहे थे, एक तरफ मे चल रहा था, और नाली के दूसरी तरफ मेरे बराबर में ही वो चल रही थी….
अचानक से उसका पैर स्लिप हो गया, और वो पानी की नाली में गिरने ही वाली थी, कि मेने उसकी कमर में हाथ डालकर उसे थाम लिया….
उसके पैर नाली में थे, मेरा एक हाथ उसकी कमर को थामे हुए था, उसकी गोल-2 मुलायम एक चुचि मेरे बदन से दब गयी…
दूसरे हाथ का सहारा देने के लिए मेरा हाथ आगे आया, तो वो थोड़ा सा आगे को घूमी, मे पकड़ना चाहता था उसका कंधा, लेकिन उसके घूमने की वजह से मेरा वो हाथ उसकी चुचि पर पड़ा…