hotaks444
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मेने चिल्लाते हुए कहा – ज़्यादा दाँत मत फाड़ साली कुतिया, ये क्यों नही कहती, कि तू मुझे बेबस करके लंबे समय तक अपनी चूत की प्यास बुझाना चाहती है…!
वो – जो चाहे समझ ले अंकुश, दे जितनी गाली देना चाहता है,
हां मे अपनी प्यास बुझाना चाहती हूँ, और वो भी मन माने तरीक़े से, जब चाहूं तब, और तू बुझाता रहेगा, जब तक मे चाहूं… हाहहहाहा…!
सरोज ! बाँध दे साले के चारों हाथ पैर, हगने मूतने दे साले को बेड पर ही…
ये कहकर वो भभक्ते चेहरे के साथ हेमा को लेकर रूम से बाहर चली गयी…
सरोज मेरे हाथ पैर बाँधने लगी…, ना जाने क्यों उसने मेरे हाथों की रस्सी कुछ ज़्यादा लंबी रख छोड़ी और अपनी एक आँख दबा कर वो भी बाहर चली गयी…!
गुस्से की वजह से मे उस समय उसका इशारा नज़र अंदाज कर गया, अब मेरे पास सिवाय उस बेड पर बिना कपड़ों के पड़े रहने के और कोई चारा नही था…!
श्वेता के चले जाने के बाद में बेबस हालत में पड़ा सोचने लगा, सारी बातें क्लियर हो चुकी थी कि ये क्यों और कैसे हुआ,
अब बस ये सोचना था कि यहाँ से कैसे निकला जाए…!
रात शायद बहुत हो चुकी थी, बाहर से झींगुरों की आवाज़ें आ रही थी, बदन पके फोड़े की तरह टूट रहा था…,
थकान बुरी तरह से हावी थी, फिर भी नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी…
शरीर में इतनी शक्ति बाकी नही थी, कि रस्सियों को किसी तरह तोड़ने की कोशिश की जा सके…!
मे अपनी सोचों में गुम यहाँ से निकलने की कोई तरक़ीब निकालने के बारे में सोच ही रहा था कि तभी ना जाने कहाँ से एक बड़ा सा कीड़ा मेरे गले पर आ गया, और उसने मुझे बुरी तरह से काट लिया…!
मेरे गले में बुरी तरह से जलन होने लगी, उसे भगाने के लिए मे इधर से उधर अपने सिर को हिलाने लगा, इसी दौरान मुझे लगा, कि मेरा मुँह मेरे हाथों तक पहुँच रहा है…!
मेरे दिमाग़ को एक तेज झटका लगा, सरोज शायद जान बूझकर मेरी रस्सी लंबी करके गयी थी, और उसने वो आँख से…. हां ! शायद वो ये इशारा देकर गयी है…!
इसका मतलव वो चाहती है, कि मे यहाँ से निकलने की कोशिश करूँ… !
मेने आँखे बंद करके मन ही मन उसको धन्यवाद किया, और अपना मुँह दाए हाथ की रस्सी की गाँठ तक ले गया…!
निरंतर कोशिश के बाद मेने अपने एक हाथ की गाँठ को अपने दाँतों से खोल लिया…!
अब मेरा एक हाथ और शरीर हिलने डुलने के लिए फ्री था, सो आसानी से एक हाथ और दाँतों के सहारे मेने दूसरे हाथ की गाँठ भी खोल ली…
पैरों की रस्सी खोलकर मेने अपने शरीर को थोड़ा खोलने की कोशिश की जो पड़े-पड़े अकड़ गया था…!
लेकिन खड़े होते ही मुझे कमज़ोरी की वजह से चक्कर सा आ गया, तब मुझे ये एहसास हुआ कि श्वेता की धमकी कितनी सही थी,
अगर ऐसा ही दो-चार दिन और चलता रहा, तो हो सकता है, मेरे शरीर से खून की एक एक बूँद नीचूड़ जाएगी, और बिना कुछ किए मेरे प्राण पखेरू उड़ जाएँगे.
कुछ देर मेने पलंग पर बैठकर दो-चार लंबी लंबी साँसें लेकर अपने अंदर शक्ति का संचार किया और उठकर गेट की तरफ बढ़ गया…!
मुझे पता था, गेट बाहर से बंद होगा, उसे खुलवाने के लिए कोई नाटक तो करना ही पड़ेगा, सो ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगा – अरे कोई हाईईइ…बचाओ मुझे…….!
कुछ देर तक कोई प्रतिक्रिया नही आई, तो मे फिरसे चिल्लाया.., इस बार किसी के कदमों की आहट मुझे सुनाई दी, फिर गेट का सरकंडा सरकाने की आवाज़ हुई, फिर एक इंसानी साया अंदर दाखिल हुया…
मे दीवार से सटा हुआ था, जब उसने सामने बेड खाली देखा तो एकदम से पलटने लगा, लेकिन तब तक मेने उसकी गर्दन अपने बाजू में कस ली…!
उसकी गर्दन पर अपने बाजू का दबाब बढ़ाते हुए मेने गुर्रा कर कहा – कोई होशियारी करने की कोशिश मत करना वरना मे तेरा अभी के अभी गला दबा दूँगा…!
बता बाहर और कितने आदमी हैं…!
ये बातें हम गेट पर खड़े-खड़े ही कर रहे थे, इससे पहले कि वो कोई जबाब देता, पीछे से मेरे सिर पर कोई वजनी चीज़ की चोट पड़ी, और मे अचेत होकर वहीं गिर पड़ा, और मेरी ये निकलने की कोशिश नाकाम हो गयी…………..!
दूसरी तरफ मेरे घर पर…………
जिस दिन मुझे श्वेता ने किडनॅप किया था, उसी दिन मेरी शादी की साल गिरह थी, तो मेरा घर जाना ज़रूरी था…!
छोटा-मोटा सेलेब्रेशन रखा था, घर पर भाभी और निशा ने सभी तैयारियाँ कर ली थी, इसी बहाने प्राची भी ज़िद करके भैया के साथ गाओं पहुँच गयी थी…
जब मे देर रात तक भी घर नही पहुँचा, तो सबको चिंता होने लगी, प्राची ने अपनी मम्मी को फोन लगाकर पता किया, उन्होने कहा कि वो तो आज यहाँ आए ही नही…!
भैया को पता था कि गुप्ता जी मेरे क्लाइंट हैं, सो उन्होने उनको भी फोन किया वहाँ से भी ना ही मिली, सभी तरफ से कोई खबर ना पाकर सबके मन में घबराहट होने लगी…!
निशा ने तो रोना-धोना ही शुरू कर दिया, जिसे प्राची और भाभी ने संभाल लिया…!
आनन फानन में कृष्णा भैया शहर को दौड़ पड़े, और अपना सारा फोर्स मुझे ढूँदने में लगा दिया…!
दो रातें और एक पूरा दिन पोलीस शहर की सड़कों पर चक्कर लगाती रही लेकिन उन्हें मेरा कोई सुराग नही मिला…, हर तरफ से निराशा ही हाथ लगी…!
भैया की तरफ से कोई पॉज़िटिव रेस्पॉन्स ना पाकर सब बहुत परेशान हो उठे..,
कहाँ गया, क्या हुआ, कहीं कोई दुर्घटना तो… नही..नही.. भगवान इतना निर्दयी नही हो सकता…
निशा और भाभी का रोते-रोते बुरा हाल था, बड़े भैया और बाबूजी समेत घर भर में मातम सा च्छा गया…!
लेकिन प्राची…! हां प्राची, मेरी सच्ची सिपाही, उसके दिमाग़ ने काम करना नही छोड़ा और उसने धीरे से भाभी को कहा –
दीदी…! मुझे कुछ कुछ अंदाज़ा है, अंकुश भैया कहाँ होंगे…!
भाभी अवाक उसकी तरफ देखने लगी, निशा का भी रोना थम गया….!
प्राची – हो ना हो, ये उन्ही लोगों में से किसी का काम हो जिन्हें भैया ने उनके अंजाम तक पहुँचाया है…!
भाभी – लेकिन उनमें से अब कोई बचा भी तो नही है, जो लल्ला को नुकसान पहुँचाए…!
प्राची – मुझे कुछ सोचने दो, वो एकांत में जाकर बहुत देर तक सोचती रही, उसने पूरे घटना क्रम को सिरे से सोच डाला,
वो – जो चाहे समझ ले अंकुश, दे जितनी गाली देना चाहता है,
हां मे अपनी प्यास बुझाना चाहती हूँ, और वो भी मन माने तरीक़े से, जब चाहूं तब, और तू बुझाता रहेगा, जब तक मे चाहूं… हाहहहाहा…!
सरोज ! बाँध दे साले के चारों हाथ पैर, हगने मूतने दे साले को बेड पर ही…
ये कहकर वो भभक्ते चेहरे के साथ हेमा को लेकर रूम से बाहर चली गयी…
सरोज मेरे हाथ पैर बाँधने लगी…, ना जाने क्यों उसने मेरे हाथों की रस्सी कुछ ज़्यादा लंबी रख छोड़ी और अपनी एक आँख दबा कर वो भी बाहर चली गयी…!
गुस्से की वजह से मे उस समय उसका इशारा नज़र अंदाज कर गया, अब मेरे पास सिवाय उस बेड पर बिना कपड़ों के पड़े रहने के और कोई चारा नही था…!
श्वेता के चले जाने के बाद में बेबस हालत में पड़ा सोचने लगा, सारी बातें क्लियर हो चुकी थी कि ये क्यों और कैसे हुआ,
अब बस ये सोचना था कि यहाँ से कैसे निकला जाए…!
रात शायद बहुत हो चुकी थी, बाहर से झींगुरों की आवाज़ें आ रही थी, बदन पके फोड़े की तरह टूट रहा था…,
थकान बुरी तरह से हावी थी, फिर भी नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी…
शरीर में इतनी शक्ति बाकी नही थी, कि रस्सियों को किसी तरह तोड़ने की कोशिश की जा सके…!
मे अपनी सोचों में गुम यहाँ से निकलने की कोई तरक़ीब निकालने के बारे में सोच ही रहा था कि तभी ना जाने कहाँ से एक बड़ा सा कीड़ा मेरे गले पर आ गया, और उसने मुझे बुरी तरह से काट लिया…!
मेरे गले में बुरी तरह से जलन होने लगी, उसे भगाने के लिए मे इधर से उधर अपने सिर को हिलाने लगा, इसी दौरान मुझे लगा, कि मेरा मुँह मेरे हाथों तक पहुँच रहा है…!
मेरे दिमाग़ को एक तेज झटका लगा, सरोज शायद जान बूझकर मेरी रस्सी लंबी करके गयी थी, और उसने वो आँख से…. हां ! शायद वो ये इशारा देकर गयी है…!
इसका मतलव वो चाहती है, कि मे यहाँ से निकलने की कोशिश करूँ… !
मेने आँखे बंद करके मन ही मन उसको धन्यवाद किया, और अपना मुँह दाए हाथ की रस्सी की गाँठ तक ले गया…!
निरंतर कोशिश के बाद मेने अपने एक हाथ की गाँठ को अपने दाँतों से खोल लिया…!
अब मेरा एक हाथ और शरीर हिलने डुलने के लिए फ्री था, सो आसानी से एक हाथ और दाँतों के सहारे मेने दूसरे हाथ की गाँठ भी खोल ली…
पैरों की रस्सी खोलकर मेने अपने शरीर को थोड़ा खोलने की कोशिश की जो पड़े-पड़े अकड़ गया था…!
लेकिन खड़े होते ही मुझे कमज़ोरी की वजह से चक्कर सा आ गया, तब मुझे ये एहसास हुआ कि श्वेता की धमकी कितनी सही थी,
अगर ऐसा ही दो-चार दिन और चलता रहा, तो हो सकता है, मेरे शरीर से खून की एक एक बूँद नीचूड़ जाएगी, और बिना कुछ किए मेरे प्राण पखेरू उड़ जाएँगे.
कुछ देर मेने पलंग पर बैठकर दो-चार लंबी लंबी साँसें लेकर अपने अंदर शक्ति का संचार किया और उठकर गेट की तरफ बढ़ गया…!
मुझे पता था, गेट बाहर से बंद होगा, उसे खुलवाने के लिए कोई नाटक तो करना ही पड़ेगा, सो ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगा – अरे कोई हाईईइ…बचाओ मुझे…….!
कुछ देर तक कोई प्रतिक्रिया नही आई, तो मे फिरसे चिल्लाया.., इस बार किसी के कदमों की आहट मुझे सुनाई दी, फिर गेट का सरकंडा सरकाने की आवाज़ हुई, फिर एक इंसानी साया अंदर दाखिल हुया…
मे दीवार से सटा हुआ था, जब उसने सामने बेड खाली देखा तो एकदम से पलटने लगा, लेकिन तब तक मेने उसकी गर्दन अपने बाजू में कस ली…!
उसकी गर्दन पर अपने बाजू का दबाब बढ़ाते हुए मेने गुर्रा कर कहा – कोई होशियारी करने की कोशिश मत करना वरना मे तेरा अभी के अभी गला दबा दूँगा…!
बता बाहर और कितने आदमी हैं…!
ये बातें हम गेट पर खड़े-खड़े ही कर रहे थे, इससे पहले कि वो कोई जबाब देता, पीछे से मेरे सिर पर कोई वजनी चीज़ की चोट पड़ी, और मे अचेत होकर वहीं गिर पड़ा, और मेरी ये निकलने की कोशिश नाकाम हो गयी…………..!
दूसरी तरफ मेरे घर पर…………
जिस दिन मुझे श्वेता ने किडनॅप किया था, उसी दिन मेरी शादी की साल गिरह थी, तो मेरा घर जाना ज़रूरी था…!
छोटा-मोटा सेलेब्रेशन रखा था, घर पर भाभी और निशा ने सभी तैयारियाँ कर ली थी, इसी बहाने प्राची भी ज़िद करके भैया के साथ गाओं पहुँच गयी थी…
जब मे देर रात तक भी घर नही पहुँचा, तो सबको चिंता होने लगी, प्राची ने अपनी मम्मी को फोन लगाकर पता किया, उन्होने कहा कि वो तो आज यहाँ आए ही नही…!
भैया को पता था कि गुप्ता जी मेरे क्लाइंट हैं, सो उन्होने उनको भी फोन किया वहाँ से भी ना ही मिली, सभी तरफ से कोई खबर ना पाकर सबके मन में घबराहट होने लगी…!
निशा ने तो रोना-धोना ही शुरू कर दिया, जिसे प्राची और भाभी ने संभाल लिया…!
आनन फानन में कृष्णा भैया शहर को दौड़ पड़े, और अपना सारा फोर्स मुझे ढूँदने में लगा दिया…!
दो रातें और एक पूरा दिन पोलीस शहर की सड़कों पर चक्कर लगाती रही लेकिन उन्हें मेरा कोई सुराग नही मिला…, हर तरफ से निराशा ही हाथ लगी…!
भैया की तरफ से कोई पॉज़िटिव रेस्पॉन्स ना पाकर सब बहुत परेशान हो उठे..,
कहाँ गया, क्या हुआ, कहीं कोई दुर्घटना तो… नही..नही.. भगवान इतना निर्दयी नही हो सकता…
निशा और भाभी का रोते-रोते बुरा हाल था, बड़े भैया और बाबूजी समेत घर भर में मातम सा च्छा गया…!
लेकिन प्राची…! हां प्राची, मेरी सच्ची सिपाही, उसके दिमाग़ ने काम करना नही छोड़ा और उसने धीरे से भाभी को कहा –
दीदी…! मुझे कुछ कुछ अंदाज़ा है, अंकुश भैया कहाँ होंगे…!
भाभी अवाक उसकी तरफ देखने लगी, निशा का भी रोना थम गया….!
प्राची – हो ना हो, ये उन्ही लोगों में से किसी का काम हो जिन्हें भैया ने उनके अंजाम तक पहुँचाया है…!
भाभी – लेकिन उनमें से अब कोई बचा भी तो नही है, जो लल्ला को नुकसान पहुँचाए…!
प्राची – मुझे कुछ सोचने दो, वो एकांत में जाकर बहुत देर तक सोचती रही, उसने पूरे घटना क्रम को सिरे से सोच डाला,