hotaks444
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भैया ने एक ज़ोर की साँस ली, और मैने भी अपनी सासों पर काबू रखने का प्रयास किया. उनके हिप्स एक इंच उपर की तरफ उठे, और उनका लंड बॉक्सर का और उँचा टेंट बनाने लगा. भैया के मूँह से आवाज़ निकली, "उहमम्म्मम," और ये सुन कर मैं मानो एक पल को उछल पड़ी. लेकिन मैं वहीं पर खड़े होकर देखने लगी.
"म्म्म्मम उहह—," उनकी कराहने की आवाज़ आती और फिर बंद हो जाती. भैया का शरीर अकड़ने लगा था. उनके हिप्स उपर की तरफ हो कर स्थिर हो गये थे. भैया का एक हाथ ने अब तकिये को ज़ोर से कस कर पकड़ रखा था, और उनका मूँह आधा खुला हुआ था.
भैया बस होने ही वाले थे—"ऊऊओह," वो एकदम कराह उठते, और मैं भी चौंक गयी. उनका लंड ज़ोर ज़ोर से झटके मार रहा था. "उहंंनणणन्," उनके कराहने की आवाज़ लगातार आ रही थी. मेरी चूत भी गीली हो गयी थी, और मैने अपनी दोनो टाँगों को कस कर एक दूसरे से चिपका लिया. "म्म्म्ममम," भैया धीरे से कराहे. मुझे लगा मैं बहुत ज़ोर ज़ोर से साँसें ले रही हूँ, मैने अपनी सासों पर काबू करने का प्रयास किया. और तभी मैने एक चीज़ पर गौर किया.
उनके बॉक्सर्स पर एक गोल गीला निशान बन गया था, और वो टीवी की दूधिया रोशनी में चमक रहा था. जैसे ही मैं उस गोल गीले निशान को घूरने लगी, उसका साइज़ बड़ा होने लगा. भैया का लंड अभी भी झटके मार रहा था, और मुझे पानी निकलने की हल्की हल्की पिच पिच की आवाज़ भी सुनाई दे रही थी.
मुझसे अब और ज़्यादा बर्दाश्त करना मुश्किल था. मैं भैया के रूम से जल्दी से बाहर निकल गयी, और अपने रूम में पहुँच कर, डोर को लॉक कर लिया. और डोर के सहारे खड़े होकर, ज़ोर ज़ोर से साँसें लेने लगी. मेरी साँस फूल गयी थी. मुझे यथार्थ में आने में कुछ समय लगा, और मुझे एहसास हुआ कि मैं बहुत ज़्यादा गरम हो चुकी हूँ. लेकिन मेरी कुछ समझ में नही आ रहा था.
इसलिए मैं अपने आप को समझाने लगी. किसी का भी किसी दूसरे को नींद में झडते हुए देख कर एग्ज़ाइटेड या गरम हो जाना स्वाभाविक है. ये किसी पॉर्न मूवी देखना जैसा ही था. तो फिर मैने क्या ग़लत किया था? क्या भैया को इस तरफ छुप कर देखना ग़लत था? मैने अभी अभी भैया को नींद में झड्कर पानी निकालते हुए देखा था.
और वो सब देख कर मेरी चूत गीली हो गयी थी.
मैने अपनी गर्दन हिलाई, और डोर से हट कर खड़ी हो गयी, और फिर अपने बेड पर जाकर, कंबल ओढकर लेट गयी. मैने अपनी आँखें बंद कर ली. मेरी आँखों में अभी भी, बॉक्सर के उपर बना वो गोल गीला निशान घूम रहा था, जो धीरे धीरे बड़ा होता जा रहा था. मेरे दिमाग़ में भैया की कमर और लंड ही घूम रहे था. बहुत मज़ा आ रहा था.
मैने अपने होंठों पर जीभ फिराई, और होंठों को चाटा. मुझे लगा कि कहीं मैं अपनी चूत में उंगली ना करने लगूँ, बस ये ख्याल आते ही, मेरा शरीर काँपने लगा. मेरे पूरे शरीर में एक तरंग सी दौड़ गयी. मुझे अपने हाथ साइड में रखने में थोड़ा प्रयास करना पड़ा. नही... मैं भैया के झड्ने की कल्पना करते हुए अपनी चूत में उंगली नही कर सकती.
मैं वैसे ही बेड पर एक घंटे लेटी रही, और अपने उपर नियंत्रण करने की कोशिश करती रही, और सोने का प्रयास करती रही. कुछ देर बाद मेरे दिमाग़ में कुछ और ख्याल आने लगे, और फिर मैं नींद के आगोश में डूब कर सो गयी, और अपनी निज़ी जिंदगी के सपने देखने लगी.
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ये सब बताते हुए, मुझे और दीदी को टाइम का पता ही नही चला, जब मैने घड़ी की तरफ देखा, तो सुबह के तीन बज रहे थे. मैने पूछा, दीदी ये तो ठीक है, लेकिन आपने संध्या से पूछा नही, कि उन दोनो भाई बेहन के बीच ये सब शुरू कैसे हुआ?
दीदी ने धीरज की तरफ देखा, और बोली हां, उसकी भी एक रोचक कहानी है, जो मुझे संध्या ने सुनाई थी... संध्या और धीरज की कहानी संध्या की ज़ुबानी....कंटिन्यूड...
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"म्म्म्मम उहह—," उनकी कराहने की आवाज़ आती और फिर बंद हो जाती. भैया का शरीर अकड़ने लगा था. उनके हिप्स उपर की तरफ हो कर स्थिर हो गये थे. भैया का एक हाथ ने अब तकिये को ज़ोर से कस कर पकड़ रखा था, और उनका मूँह आधा खुला हुआ था.
भैया बस होने ही वाले थे—"ऊऊओह," वो एकदम कराह उठते, और मैं भी चौंक गयी. उनका लंड ज़ोर ज़ोर से झटके मार रहा था. "उहंंनणणन्," उनके कराहने की आवाज़ लगातार आ रही थी. मेरी चूत भी गीली हो गयी थी, और मैने अपनी दोनो टाँगों को कस कर एक दूसरे से चिपका लिया. "म्म्म्ममम," भैया धीरे से कराहे. मुझे लगा मैं बहुत ज़ोर ज़ोर से साँसें ले रही हूँ, मैने अपनी सासों पर काबू करने का प्रयास किया. और तभी मैने एक चीज़ पर गौर किया.
उनके बॉक्सर्स पर एक गोल गीला निशान बन गया था, और वो टीवी की दूधिया रोशनी में चमक रहा था. जैसे ही मैं उस गोल गीले निशान को घूरने लगी, उसका साइज़ बड़ा होने लगा. भैया का लंड अभी भी झटके मार रहा था, और मुझे पानी निकलने की हल्की हल्की पिच पिच की आवाज़ भी सुनाई दे रही थी.
मुझसे अब और ज़्यादा बर्दाश्त करना मुश्किल था. मैं भैया के रूम से जल्दी से बाहर निकल गयी, और अपने रूम में पहुँच कर, डोर को लॉक कर लिया. और डोर के सहारे खड़े होकर, ज़ोर ज़ोर से साँसें लेने लगी. मेरी साँस फूल गयी थी. मुझे यथार्थ में आने में कुछ समय लगा, और मुझे एहसास हुआ कि मैं बहुत ज़्यादा गरम हो चुकी हूँ. लेकिन मेरी कुछ समझ में नही आ रहा था.
इसलिए मैं अपने आप को समझाने लगी. किसी का भी किसी दूसरे को नींद में झडते हुए देख कर एग्ज़ाइटेड या गरम हो जाना स्वाभाविक है. ये किसी पॉर्न मूवी देखना जैसा ही था. तो फिर मैने क्या ग़लत किया था? क्या भैया को इस तरफ छुप कर देखना ग़लत था? मैने अभी अभी भैया को नींद में झड्कर पानी निकालते हुए देखा था.
और वो सब देख कर मेरी चूत गीली हो गयी थी.
मैने अपनी गर्दन हिलाई, और डोर से हट कर खड़ी हो गयी, और फिर अपने बेड पर जाकर, कंबल ओढकर लेट गयी. मैने अपनी आँखें बंद कर ली. मेरी आँखों में अभी भी, बॉक्सर के उपर बना वो गोल गीला निशान घूम रहा था, जो धीरे धीरे बड़ा होता जा रहा था. मेरे दिमाग़ में भैया की कमर और लंड ही घूम रहे था. बहुत मज़ा आ रहा था.
मैने अपने होंठों पर जीभ फिराई, और होंठों को चाटा. मुझे लगा कि कहीं मैं अपनी चूत में उंगली ना करने लगूँ, बस ये ख्याल आते ही, मेरा शरीर काँपने लगा. मेरे पूरे शरीर में एक तरंग सी दौड़ गयी. मुझे अपने हाथ साइड में रखने में थोड़ा प्रयास करना पड़ा. नही... मैं भैया के झड्ने की कल्पना करते हुए अपनी चूत में उंगली नही कर सकती.
मैं वैसे ही बेड पर एक घंटे लेटी रही, और अपने उपर नियंत्रण करने की कोशिश करती रही, और सोने का प्रयास करती रही. कुछ देर बाद मेरे दिमाग़ में कुछ और ख्याल आने लगे, और फिर मैं नींद के आगोश में डूब कर सो गयी, और अपनी निज़ी जिंदगी के सपने देखने लगी.
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ये सब बताते हुए, मुझे और दीदी को टाइम का पता ही नही चला, जब मैने घड़ी की तरफ देखा, तो सुबह के तीन बज रहे थे. मैने पूछा, दीदी ये तो ठीक है, लेकिन आपने संध्या से पूछा नही, कि उन दोनो भाई बेहन के बीच ये सब शुरू कैसे हुआ?
दीदी ने धीरज की तरफ देखा, और बोली हां, उसकी भी एक रोचक कहानी है, जो मुझे संध्या ने सुनाई थी... संध्या और धीरज की कहानी संध्या की ज़ुबानी....कंटिन्यूड...
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