hotaks444
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धीरज भैया मेरी चूत में तेज़ी से अपनी उंगलियाँ अंदर बाहर कर रहे थे, और अपनी उंगलियों से मुझे छोड़ रहे थे. वो अपने होंठों से मेरे छूट के दाने को चूस रहे थे, और जीभ से उसको सहला रहे थे. मैं हाँफ रही थी, और काँप रही थी, गुर्रा रही थी. मैं झडने के लिए तय्यार हो रही थी, और बस किसी भी वक़्त मेरी चूत से पानी निकलने ही वाला था.
मैने अपना ध्यान भैया के लंड पर लगाना शुरू कर दिया. उनका लंड तो इसका इंतेजार ही कर रहा था, और मेरे खुले हुए मूँह से बस कुछ ही इंचों की दूरी पर था. मैं भैया के लंड को उत्सुकता से चाटने लगी. मैने अपना हाथ उनके लंड से हटा कर उनके पैर पर रख दिया. अब मेरे दोनो हाथ उनके पैरों का सहारा ले रहे थे. तो अब ऐसा कुछ भी रखने की चीज़ नही थी, जो रोक पाती कि भैया का लंड मेरे मूँह में कितना अंदर तक घुसेगा.
लेकिन मुझे अब कोई फिकर नही थी.
धीरज भैया की जीभ जल्दी जल्दी मेरी चूत के दाने को सहलाते हुए रगड़ रही थी, और तभी उन्होने अपनी तीसरी उंगली मेरी चूत में घुसा दी. मैं अपना सिर आगे करते हुए, ज़ोर से कराही. मुझे सुपाडे को मूँह में भरते हुए थोड़ी भी झिझक नही हुई. भैया का लंड मेरे मूँह में 3-4 इंच अंदर घुस कर मेरे गले तक पहुँच चुका था, और मैं गूणगूँग की आवाज़ निकाल रही थी. किसी तरह मैने आप को थोड़ा पीछे किया. मैने लंड को अपने मूँह में से पूरा नही निकलने दिया, और फिर आगे बढ़कर उसको अंदर ले लिया.
भैया ने अपनी चौथी उंगली मेरी चूत में घुसा दी, मैं एक ज़ोर की साँस ली. अब चार उंगलियों के साथ, करीब करीब लंड वाला साइज़ ही बन चुका था. बस फरक इतना था कि वो उंगलियों को मेरी चूत में डाल के फैला सकते थे. वो उनको मेरी चूत में अंदर बाहर करने लगे, मानो मेरी चुदाई कर रहे हो.
मैं भी भैया के लंड को जल्दी जल्दी अपने मूँह में अंदर बाहर करने लगी. मेरा शरीर काँप रहा था, और मुझे पसीने आ रहे थे. मेरे शरीर के निचले हिस्से में तो मानो तूफान आ रखा था. मेरे पूरे बदन में आग लगी हुई थी. मैं किसी भी वक़्त झड सकती थी. मैने अपने हाथों से सहारा लेकर अपने आप को स्थिर किया, और फिर अपने मूँह से लंड को चोदने लगी. भैया का लंड जल्दी जल्दी मेरे होंठों के अंदर बाहर हो रहा था. वो मेरी चूत में मूँह घुसाए हुए ही कराह रहे थे, और मैं उनका लंड अपने मूँह में लेकर.
तभी कुछ विस्फोट सा हुआ. मुझे पता नही, पहले कहाँ हुआ.
मेरा शरीर अकड़ने लगा. मैं झड रही थी. मुझे पता भी नही चला ये कब हुआ. एक सेकेंड पहले वो शुरू हुआ, और अगले ही पल मेरे सारे शरीर पर इसका असर होने लगा, मेरे पूरे बदन में अजीब सी गुदगुदी होने लगी. उसी वक़्त भैया का शरीर ज़ोर से काँपने लगा. मैं अपने होंठ उनके लंड पर दबा रही थी, और वो अपने हिप्स से मेरी तरफ धक्का मारने लगे, जिस की वजह से उनका लंड मेरे मूँह में पहले से ज़्यादा अंदर घुसने लगा. उनका लंड अपनी पूरी लंबाई का करीब आधा मेरे मूँह में घुस गया था, तभी उस में से निकली पिचकारी मेरे गले के पिछले हिस्से से जा टकराई.
भैया के लंड से निकली पिचकारी के लिए मैं तय्यार नही थी, और मेरी साँस एक दम रुक गयी. लेकिन उस घबराहट को उसी समय मेरे झडने ने काफ़ी हद काबू में कर लिया, और मैं गहरी साँसें लेने लगी. अपने हाथों से भैया के पैरों का सहारा लेते हुए मैने भैया के लंड से अपने चेहरे को दूर कर लिया. जैसे ही लंड का सुपाड़ा मेरे मूँह में से निकला, उसके छेद में से एक और जोरदार धार निकली. वो धार मेरी आँखों पर गिरी, और मैने अपनी आँखें बंद कर ली. अब भैया के लंड से निकला वीर्य मेरे पूरे चेहरे पर से टपक रहा था.
मेरे शरीर में आनंद का तूफान आया हुआ था, तभी मैने खांस कर अपने गले को सॉफ किया. मैं काँप रही थी. खाँसते हुए भी मेरी आहें निकल रही थी. धीरज भैया की जीभ अभी भी मेरी चूत के दाने को सहला रही थी, हालाँकि अब उन्होने मेरी चूत में अपनी उंगलियों की हरकत बंद कर दी थी, लेकिन उंगलियाँ अभी भी मेरी चूत में ही घुसी हुई थी.
जैसे ही मैने अपना सिर घुमाया, तभी धीरज भैया की आहह सुनाई दी, और तभी उनके लंड से एक और पिचकारी निकली. उसके गरम गरम पानी ने मेरे चेहरे को और गीला कर दिया. मैं अपनी आँख भी नही खोल पा रही थी. मेरे गाल तरबतर हो रहे थे. लेकिन मुझे इसकी कोई फिकर नही थी. जैसे जैसे मैं झडने के बाद नॉर्मल होने लगी, मेरा शरीर काँपने लगा. मेरा दिल अभी भी जोरों से धड़क रहा था.
भैया ने मेरी चूत के दाने को एक बार फिर से चाटा, और फिर वहाँ से अपना चेहरा हटा लिया. जहाँ पर भैया चूस रहे थे, चूत का वो हिस्सा फड़कने लगा. मैने मूँह खोल कर एक गहरी साँस ली. जैसे ही मैने मूँह खोला, भैया के लंड से एक और पिचकारी निकली, और मेरी जीभ पर आ गिरी, एक दम मैं थोड़ा हिचकिचाई. मैने उसको बिना कुछ सोचे, पूरा अंदर निगल लिया. वो वाकई में.... यम्मी था.
झडने के बाद नॉर्मल होते हुए, मेरे पूरा शरीर में चीटियाँ सी चल रही थी. भैया मेरी चूत के द्वार से सामने ज़ोर ज़ोर से साँसें ले रहे थे, और उनका सिर मेरी जाँघ पर रखा हुआ था. मैने अपना चेहरा बेड की बाड़शीट से घिस कर पोछा, और फिर अपनी आँखें खोली. मैं भैया के अपने आप सलामी देते हुए लंड को देखने लगी, कि कहीं इसमे से वीर्य की और धार तो नही निकल रही. लेकिन वैसे कुछ नही था. जैसे ही मैने लंड को एक आख़िरी बार चूसा, भैया काँप उठे.
एक मिनिट को मैं भैया के पिछवाड़े को निहारने लगी. मैं भैया के शरीर की बनावट को अपनी आँखों में क़ैद करने लगी, और उनकी गान्ड की नाज़ुक गोलाईयों को नोट करने लगी. वाकई में भैया का बदन पर्फेक्ट था. मैं भैया के बदन से प्यार करने लगी थी. मैं.... भैया से प्यार करने लगी थी.
जैसे जैसे मेरा दिमाग़ कड़ियों को जोड़ने का प्रयास कर रहा था, मेरा शरीर अकड़ने लगा. मैं भैया के प्यार में डूबती जा रही थी. मैं भैया के प्यार में डूब चुकी थी. और मैं अब भैया के बिना जीने की कल्पना भी नही कर सकती थी. इस सब में खुशी और दुख दोनो का मिश्रित भाव था, और मैं थोड़ा परेशान हो गयी. मैं हँसना नही चाहती थी, और साथ में रोना भी. मैं भैया से दूर नही होना चाहती थी. ये सोचकर मैं सोचने लगी कि भैया को खोने की बात सोचकर ही मुझे डर लगने लगा है.
मुझे नही मालूम था, कि सब कैसे संभव हो पाएगा. मैने जीवन में पहली बार किसी बाय्फ्रेंड के साथ अपनी लाइफ के भविश्य के बारे में सोच रही थी, लेकिन ये भी असंभव लग रहा था. और हां, मैं भैया को बाय्फ्रेंड के रूप में ही देख रही थी. वाकई में मुझे ऐसा ही लग रहा था, और हम दोनो की फीलिंग्स शायद एक जैसी थी. जिस तरह से पिछले कुछ दिनों से हम दोनो आपस में बात कर रहे थे. और अब ये दिमाग़ के सारे पेंच हिला देने वाला सेक्स.
भैया ने विंडो को थोड़ा खटखटाया, और मेरी विचार तंद्रा टूट गयी. मैने जैसे ही अपना सिर हिलाया, और तभी भैया ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया.
मैने अपना ध्यान भैया के लंड पर लगाना शुरू कर दिया. उनका लंड तो इसका इंतेजार ही कर रहा था, और मेरे खुले हुए मूँह से बस कुछ ही इंचों की दूरी पर था. मैं भैया के लंड को उत्सुकता से चाटने लगी. मैने अपना हाथ उनके लंड से हटा कर उनके पैर पर रख दिया. अब मेरे दोनो हाथ उनके पैरों का सहारा ले रहे थे. तो अब ऐसा कुछ भी रखने की चीज़ नही थी, जो रोक पाती कि भैया का लंड मेरे मूँह में कितना अंदर तक घुसेगा.
लेकिन मुझे अब कोई फिकर नही थी.
धीरज भैया की जीभ जल्दी जल्दी मेरी चूत के दाने को सहलाते हुए रगड़ रही थी, और तभी उन्होने अपनी तीसरी उंगली मेरी चूत में घुसा दी. मैं अपना सिर आगे करते हुए, ज़ोर से कराही. मुझे सुपाडे को मूँह में भरते हुए थोड़ी भी झिझक नही हुई. भैया का लंड मेरे मूँह में 3-4 इंच अंदर घुस कर मेरे गले तक पहुँच चुका था, और मैं गूणगूँग की आवाज़ निकाल रही थी. किसी तरह मैने आप को थोड़ा पीछे किया. मैने लंड को अपने मूँह में से पूरा नही निकलने दिया, और फिर आगे बढ़कर उसको अंदर ले लिया.
भैया ने अपनी चौथी उंगली मेरी चूत में घुसा दी, मैं एक ज़ोर की साँस ली. अब चार उंगलियों के साथ, करीब करीब लंड वाला साइज़ ही बन चुका था. बस फरक इतना था कि वो उंगलियों को मेरी चूत में डाल के फैला सकते थे. वो उनको मेरी चूत में अंदर बाहर करने लगे, मानो मेरी चुदाई कर रहे हो.
मैं भी भैया के लंड को जल्दी जल्दी अपने मूँह में अंदर बाहर करने लगी. मेरा शरीर काँप रहा था, और मुझे पसीने आ रहे थे. मेरे शरीर के निचले हिस्से में तो मानो तूफान आ रखा था. मेरे पूरे बदन में आग लगी हुई थी. मैं किसी भी वक़्त झड सकती थी. मैने अपने हाथों से सहारा लेकर अपने आप को स्थिर किया, और फिर अपने मूँह से लंड को चोदने लगी. भैया का लंड जल्दी जल्दी मेरे होंठों के अंदर बाहर हो रहा था. वो मेरी चूत में मूँह घुसाए हुए ही कराह रहे थे, और मैं उनका लंड अपने मूँह में लेकर.
तभी कुछ विस्फोट सा हुआ. मुझे पता नही, पहले कहाँ हुआ.
मेरा शरीर अकड़ने लगा. मैं झड रही थी. मुझे पता भी नही चला ये कब हुआ. एक सेकेंड पहले वो शुरू हुआ, और अगले ही पल मेरे सारे शरीर पर इसका असर होने लगा, मेरे पूरे बदन में अजीब सी गुदगुदी होने लगी. उसी वक़्त भैया का शरीर ज़ोर से काँपने लगा. मैं अपने होंठ उनके लंड पर दबा रही थी, और वो अपने हिप्स से मेरी तरफ धक्का मारने लगे, जिस की वजह से उनका लंड मेरे मूँह में पहले से ज़्यादा अंदर घुसने लगा. उनका लंड अपनी पूरी लंबाई का करीब आधा मेरे मूँह में घुस गया था, तभी उस में से निकली पिचकारी मेरे गले के पिछले हिस्से से जा टकराई.
भैया के लंड से निकली पिचकारी के लिए मैं तय्यार नही थी, और मेरी साँस एक दम रुक गयी. लेकिन उस घबराहट को उसी समय मेरे झडने ने काफ़ी हद काबू में कर लिया, और मैं गहरी साँसें लेने लगी. अपने हाथों से भैया के पैरों का सहारा लेते हुए मैने भैया के लंड से अपने चेहरे को दूर कर लिया. जैसे ही लंड का सुपाड़ा मेरे मूँह में से निकला, उसके छेद में से एक और जोरदार धार निकली. वो धार मेरी आँखों पर गिरी, और मैने अपनी आँखें बंद कर ली. अब भैया के लंड से निकला वीर्य मेरे पूरे चेहरे पर से टपक रहा था.
मेरे शरीर में आनंद का तूफान आया हुआ था, तभी मैने खांस कर अपने गले को सॉफ किया. मैं काँप रही थी. खाँसते हुए भी मेरी आहें निकल रही थी. धीरज भैया की जीभ अभी भी मेरी चूत के दाने को सहला रही थी, हालाँकि अब उन्होने मेरी चूत में अपनी उंगलियों की हरकत बंद कर दी थी, लेकिन उंगलियाँ अभी भी मेरी चूत में ही घुसी हुई थी.
जैसे ही मैने अपना सिर घुमाया, तभी धीरज भैया की आहह सुनाई दी, और तभी उनके लंड से एक और पिचकारी निकली. उसके गरम गरम पानी ने मेरे चेहरे को और गीला कर दिया. मैं अपनी आँख भी नही खोल पा रही थी. मेरे गाल तरबतर हो रहे थे. लेकिन मुझे इसकी कोई फिकर नही थी. जैसे जैसे मैं झडने के बाद नॉर्मल होने लगी, मेरा शरीर काँपने लगा. मेरा दिल अभी भी जोरों से धड़क रहा था.
भैया ने मेरी चूत के दाने को एक बार फिर से चाटा, और फिर वहाँ से अपना चेहरा हटा लिया. जहाँ पर भैया चूस रहे थे, चूत का वो हिस्सा फड़कने लगा. मैने मूँह खोल कर एक गहरी साँस ली. जैसे ही मैने मूँह खोला, भैया के लंड से एक और पिचकारी निकली, और मेरी जीभ पर आ गिरी, एक दम मैं थोड़ा हिचकिचाई. मैने उसको बिना कुछ सोचे, पूरा अंदर निगल लिया. वो वाकई में.... यम्मी था.
झडने के बाद नॉर्मल होते हुए, मेरे पूरा शरीर में चीटियाँ सी चल रही थी. भैया मेरी चूत के द्वार से सामने ज़ोर ज़ोर से साँसें ले रहे थे, और उनका सिर मेरी जाँघ पर रखा हुआ था. मैने अपना चेहरा बेड की बाड़शीट से घिस कर पोछा, और फिर अपनी आँखें खोली. मैं भैया के अपने आप सलामी देते हुए लंड को देखने लगी, कि कहीं इसमे से वीर्य की और धार तो नही निकल रही. लेकिन वैसे कुछ नही था. जैसे ही मैने लंड को एक आख़िरी बार चूसा, भैया काँप उठे.
एक मिनिट को मैं भैया के पिछवाड़े को निहारने लगी. मैं भैया के शरीर की बनावट को अपनी आँखों में क़ैद करने लगी, और उनकी गान्ड की नाज़ुक गोलाईयों को नोट करने लगी. वाकई में भैया का बदन पर्फेक्ट था. मैं भैया के बदन से प्यार करने लगी थी. मैं.... भैया से प्यार करने लगी थी.
जैसे जैसे मेरा दिमाग़ कड़ियों को जोड़ने का प्रयास कर रहा था, मेरा शरीर अकड़ने लगा. मैं भैया के प्यार में डूबती जा रही थी. मैं भैया के प्यार में डूब चुकी थी. और मैं अब भैया के बिना जीने की कल्पना भी नही कर सकती थी. इस सब में खुशी और दुख दोनो का मिश्रित भाव था, और मैं थोड़ा परेशान हो गयी. मैं हँसना नही चाहती थी, और साथ में रोना भी. मैं भैया से दूर नही होना चाहती थी. ये सोचकर मैं सोचने लगी कि भैया को खोने की बात सोचकर ही मुझे डर लगने लगा है.
मुझे नही मालूम था, कि सब कैसे संभव हो पाएगा. मैने जीवन में पहली बार किसी बाय्फ्रेंड के साथ अपनी लाइफ के भविश्य के बारे में सोच रही थी, लेकिन ये भी असंभव लग रहा था. और हां, मैं भैया को बाय्फ्रेंड के रूप में ही देख रही थी. वाकई में मुझे ऐसा ही लग रहा था, और हम दोनो की फीलिंग्स शायद एक जैसी थी. जिस तरह से पिछले कुछ दिनों से हम दोनो आपस में बात कर रहे थे. और अब ये दिमाग़ के सारे पेंच हिला देने वाला सेक्स.
भैया ने विंडो को थोड़ा खटखटाया, और मेरी विचार तंद्रा टूट गयी. मैने जैसे ही अपना सिर हिलाया, और तभी भैया ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया.