desiaks
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तिलक के साथ रिश्ते की शुरूआत
अगले दिन तिलक राजकोटिया बहाना भरकर मुझे फिर घुमाने ले गया।
उसकी सफेद बी.एम.डब्ल्यू. कार मानो हवा में उड़ी जा रही थी।
मैं कार की फ्रण्ड सीट पर तिलक राजकोटिया के बराबर में ही बैठी थी।
“आज आप मुझे कहां ले जा रहे हैं?”
“आज मैं तुम्हें एक ऐसी जगह ले जा रहा हूँ, जहां जाकर तुम्हारी तबीयत खुश हो जाएगी।”
“ऐसी कौन—सी जगह है?”
“बस थोड़ा सब्र रखो, अभी हम वहां पहुंचने ही वाले हैं।”
मैं रोमांच से भरी हुई थी।
तिलक राजकोटिया के साथ गुजरने वाला हर क्षण मुझे ऐसा लगता, मानो वह मेरी जिन्दगी का सबसे खूबसूरत क्षण हो।
यह बात मैं अब भांप गयी थी कि तिलक राजकोटिया के दिल में मेरे लिए प्यार उमड़ चुका है, लेकिन मैं अपनी भावनाएं अभी उसके ऊपर जाहिर नहीं कर रही थी।
थोड़ी देर बाद ही कार एक ‘डिस्को’ के सामने पहुंचकर रुकी।
मैं चौंकी।
“यह आप मुझे कहां ले आए?”
“क्यों?” तिलक राजकोटिया बोला—”क्या तुम्हें इस तरह की जगह पसंद नहीं?”
“ऐसी कोई बात नहीं।”
अलबत्ता मेरा दिल धड़क—धड़क जा रहा था।
मैं तिलक राजकोटिया के साथ डिस्को के अंदर दाखिल हुई।
अंदर का दृश्य काफी विहंगमकारी था। वह एक बहुत बड़ा हॉल था, जिसकी छत और फर्श दोनों जगह रंग—बिरंगी लाइटें लगी हुई थीं। सामने मंच पर आर्केस्ट्रा द्वारा बहुत तेज, कान के परदे फाड़ देने वाला म्यूजिक बजाया जा रहा था। हॉल में जगह—जगह घूमने वाले स्तम्भ लगे थे, जिनके ऊपर मिरर फिट थे। हॉल में जलती—बुझती रंग—बिरंगी लाइटों का रिफलेक्शन जब उन घूमने वाले मिरर पर पड़ता- तो पूरे हॉल में ऐसी रंगीनी बिखर जाती, जैसे वह कोई तिलिस्म हो।
हॉल के कांचयुक्त फर्श पर लड़के—लड़कियां मदमस्त होकर नाच रहे थे।
वह मग्न थे।
मुझे घबराहट होने लगी।
“मैं डांस नहीं कर पाऊंगी।” मैं, तिलक राजकोटिया से धीमी जबान में बोली।
“क्यों?”
“क्योंकि मैं किसी ऐसे प्लेस पर जिन्दगी में पहली बार आयी हूं।”
तिलक राजकोटिया हंस पड़ा।
“इंसान हर काम कभी—न—कभी जिन्दगी में पहली बार ही करता है।”
“लेकिन...।”
“कम ऑन!”
तिलक राजकोटिया ने मेरा हाथ पकड़कर डांसिंग फ्लोर की तरफ खींचा।
“नहीं।”
“कम ऑन शिनाया- कम ऑन! डोन्ट फील नर्वस!”
मैंने एक सरसरी—सी दृष्टि पुनः लड़के—लड़कियों पर दौड़ाई।
उनमें आधे से ज्यादा नशे में थे।
एक लड़का—लड़की तो बिल्कुल अभिसार की मुद्रा में थे।
वह दोनों एक—दूसरे से कसकर चिपके हुए थे।
बहुत कसकर।
दोनों के मुंह से आहें—कराहें फूट रही थीं।
तिलक राजकोटिया ने मुझे फिर डांसिंग फ्लोर की तरफ पकड़कर खींचा।
इस बार मैंने उसका अधिक विरोध नहीं किया।
मैं डांसिंग फ्लोर की तरफ खिंचती चली गयी।
वहां ज्यादातर लड़के—लड़कियां बेले डांस कर रहे थे।
लगता था—उन सबका मनपसंद वही नृत्य था।
फ्लोर पर पहुंचते ही तिलक राजकोटिया ने अपने दोनों हाथ मेरे हाथ में ले लिये और धीरे—धीरे थिरकने लगा।
मैंने भी उसका साथ दिया।
मैंने देखा- वह आज मेरे साथ कुछ ज्यादा ही फ्री हो रहा था।
फिर धीरे—धीरे थिरकते हुए उसने खुद को मेरे साथ सटा लिया।
उसका शरीर भभकने लगा था।
“माहौल में गर्मी बढ़ती जा रही है।” मैं मुस्कुराकर बोली।
“हां।” वह भी मुस्कुराया—”हल्की—हल्की गर्मी तो है, लेकिन इतनी गर्मी भी नहीं- जिसे बर्दाश्त न किया जा सके।”
जल्दी ही मुझे भी उस डांस में आनन्द अनुभव होने लगा।
मैं भी अब तिलक राजकोटिया का खूब खुलकर साथ दे रही थी।
फिर एक क्षण वह भी आया- जब तिलक राजकोटिया मेरे साथ डांस करता हुआ मुझे एक कोने में ले गया।
“क्या सोच रही हो?” वह फुसफुसाया।
“कुछ नहीं।” मेरे कदम थिरक रहे थे—”बृन्दा के बारे में सोच रही हूं।”
“क्या?”
“यही कि उसका क्या होगा, उसकी किस्मत में क्या लिखा है?”
“कुछ नहीं लिखा।” तिलक राजकोटिया ने मुझे अपने सीने के साथ और ज्यादा कस लिया—”अब उसकी मौत निश्चित है। अब कोई करिश्मा ही उसे बचा सकता है। फिलहाल थोड़ी देर के लिये उसे भूल जाओ शिनाया, मैं तुमसे आज कुछ कहना चाहता हूं।”
मैं चौंकी।
“बुरा तो नहीं मानोगी?”
“अगर कोई बहुत ज्यादा ही बुरी बात न हुई,” मैं बोली—”तो मैं बुरा नहीं मानूंगी।”
“नहीं- पहले तुम वादा करो।“ तिलक राजकोटिया बोला—”मैं आज चाहे तुमसे कुछ भी कहूं, तुम बुरा नहीं मानोगी।”
“क्या बात है तिलक साहब- आज बहुत मूड में नजर आ रहे हैं।”
“तुम इसे कुछ भी समझ सकती हो।”
“ठीक है- मैं आपसे वादा करती हूं।” मैं इठलाकर बोली—”आज आप मुझसे चाहे कुछ भी कहें, मैं आपकी बात का बुरा नहीं मानूंगी।”
“पक्का वादा?”
“पक्का!”
तिलक राजकोटिया ने इत्मीनान की सांस ली। फिर वह मुझसे कुछ और ज्यादा चिपक गया।
उस क्षण वो बहुत भावुक नजर आ रहा था।
“मेरी तरफ देखो शिनाया- मेरी आंखों में।”
मैंने कुछ सकपकाकर तिलक राजकोटिया की आंखों में झांका।
उसकी सांसें अब और ज्यादा धधकने लगी थीं।
“आई लव यू शिनाया!”
“क्या?”
तिलक के साथ रिश्ते की शुरूआत
अगले दिन तिलक राजकोटिया बहाना भरकर मुझे फिर घुमाने ले गया।
उसकी सफेद बी.एम.डब्ल्यू. कार मानो हवा में उड़ी जा रही थी।
मैं कार की फ्रण्ड सीट पर तिलक राजकोटिया के बराबर में ही बैठी थी।
“आज आप मुझे कहां ले जा रहे हैं?”
“आज मैं तुम्हें एक ऐसी जगह ले जा रहा हूँ, जहां जाकर तुम्हारी तबीयत खुश हो जाएगी।”
“ऐसी कौन—सी जगह है?”
“बस थोड़ा सब्र रखो, अभी हम वहां पहुंचने ही वाले हैं।”
मैं रोमांच से भरी हुई थी।
तिलक राजकोटिया के साथ गुजरने वाला हर क्षण मुझे ऐसा लगता, मानो वह मेरी जिन्दगी का सबसे खूबसूरत क्षण हो।
यह बात मैं अब भांप गयी थी कि तिलक राजकोटिया के दिल में मेरे लिए प्यार उमड़ चुका है, लेकिन मैं अपनी भावनाएं अभी उसके ऊपर जाहिर नहीं कर रही थी।
थोड़ी देर बाद ही कार एक ‘डिस्को’ के सामने पहुंचकर रुकी।
मैं चौंकी।
“यह आप मुझे कहां ले आए?”
“क्यों?” तिलक राजकोटिया बोला—”क्या तुम्हें इस तरह की जगह पसंद नहीं?”
“ऐसी कोई बात नहीं।”
अलबत्ता मेरा दिल धड़क—धड़क जा रहा था।
मैं तिलक राजकोटिया के साथ डिस्को के अंदर दाखिल हुई।
अंदर का दृश्य काफी विहंगमकारी था। वह एक बहुत बड़ा हॉल था, जिसकी छत और फर्श दोनों जगह रंग—बिरंगी लाइटें लगी हुई थीं। सामने मंच पर आर्केस्ट्रा द्वारा बहुत तेज, कान के परदे फाड़ देने वाला म्यूजिक बजाया जा रहा था। हॉल में जगह—जगह घूमने वाले स्तम्भ लगे थे, जिनके ऊपर मिरर फिट थे। हॉल में जलती—बुझती रंग—बिरंगी लाइटों का रिफलेक्शन जब उन घूमने वाले मिरर पर पड़ता- तो पूरे हॉल में ऐसी रंगीनी बिखर जाती, जैसे वह कोई तिलिस्म हो।
हॉल के कांचयुक्त फर्श पर लड़के—लड़कियां मदमस्त होकर नाच रहे थे।
वह मग्न थे।
मुझे घबराहट होने लगी।
“मैं डांस नहीं कर पाऊंगी।” मैं, तिलक राजकोटिया से धीमी जबान में बोली।
“क्यों?”
“क्योंकि मैं किसी ऐसे प्लेस पर जिन्दगी में पहली बार आयी हूं।”
तिलक राजकोटिया हंस पड़ा।
“इंसान हर काम कभी—न—कभी जिन्दगी में पहली बार ही करता है।”
“लेकिन...।”
“कम ऑन!”
तिलक राजकोटिया ने मेरा हाथ पकड़कर डांसिंग फ्लोर की तरफ खींचा।
“नहीं।”
“कम ऑन शिनाया- कम ऑन! डोन्ट फील नर्वस!”
मैंने एक सरसरी—सी दृष्टि पुनः लड़के—लड़कियों पर दौड़ाई।
उनमें आधे से ज्यादा नशे में थे।
एक लड़का—लड़की तो बिल्कुल अभिसार की मुद्रा में थे।
वह दोनों एक—दूसरे से कसकर चिपके हुए थे।
बहुत कसकर।
दोनों के मुंह से आहें—कराहें फूट रही थीं।
तिलक राजकोटिया ने मुझे फिर डांसिंग फ्लोर की तरफ पकड़कर खींचा।
इस बार मैंने उसका अधिक विरोध नहीं किया।
मैं डांसिंग फ्लोर की तरफ खिंचती चली गयी।
वहां ज्यादातर लड़के—लड़कियां बेले डांस कर रहे थे।
लगता था—उन सबका मनपसंद वही नृत्य था।
फ्लोर पर पहुंचते ही तिलक राजकोटिया ने अपने दोनों हाथ मेरे हाथ में ले लिये और धीरे—धीरे थिरकने लगा।
मैंने भी उसका साथ दिया।
मैंने देखा- वह आज मेरे साथ कुछ ज्यादा ही फ्री हो रहा था।
फिर धीरे—धीरे थिरकते हुए उसने खुद को मेरे साथ सटा लिया।
उसका शरीर भभकने लगा था।
“माहौल में गर्मी बढ़ती जा रही है।” मैं मुस्कुराकर बोली।
“हां।” वह भी मुस्कुराया—”हल्की—हल्की गर्मी तो है, लेकिन इतनी गर्मी भी नहीं- जिसे बर्दाश्त न किया जा सके।”
जल्दी ही मुझे भी उस डांस में आनन्द अनुभव होने लगा।
मैं भी अब तिलक राजकोटिया का खूब खुलकर साथ दे रही थी।
फिर एक क्षण वह भी आया- जब तिलक राजकोटिया मेरे साथ डांस करता हुआ मुझे एक कोने में ले गया।
“क्या सोच रही हो?” वह फुसफुसाया।
“कुछ नहीं।” मेरे कदम थिरक रहे थे—”बृन्दा के बारे में सोच रही हूं।”
“क्या?”
“यही कि उसका क्या होगा, उसकी किस्मत में क्या लिखा है?”
“कुछ नहीं लिखा।” तिलक राजकोटिया ने मुझे अपने सीने के साथ और ज्यादा कस लिया—”अब उसकी मौत निश्चित है। अब कोई करिश्मा ही उसे बचा सकता है। फिलहाल थोड़ी देर के लिये उसे भूल जाओ शिनाया, मैं तुमसे आज कुछ कहना चाहता हूं।”
मैं चौंकी।
“बुरा तो नहीं मानोगी?”
“अगर कोई बहुत ज्यादा ही बुरी बात न हुई,” मैं बोली—”तो मैं बुरा नहीं मानूंगी।”
“नहीं- पहले तुम वादा करो।“ तिलक राजकोटिया बोला—”मैं आज चाहे तुमसे कुछ भी कहूं, तुम बुरा नहीं मानोगी।”
“क्या बात है तिलक साहब- आज बहुत मूड में नजर आ रहे हैं।”
“तुम इसे कुछ भी समझ सकती हो।”
“ठीक है- मैं आपसे वादा करती हूं।” मैं इठलाकर बोली—”आज आप मुझसे चाहे कुछ भी कहें, मैं आपकी बात का बुरा नहीं मानूंगी।”
“पक्का वादा?”
“पक्का!”
तिलक राजकोटिया ने इत्मीनान की सांस ली। फिर वह मुझसे कुछ और ज्यादा चिपक गया।
उस क्षण वो बहुत भावुक नजर आ रहा था।
“मेरी तरफ देखो शिनाया- मेरी आंखों में।”
मैंने कुछ सकपकाकर तिलक राजकोटिया की आंखों में झांका।
उसकी सांसें अब और ज्यादा धधकने लगी थीं।
“आई लव यू शिनाया!”
“क्या?”