desiaks
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बृन्दा बहुत खौफजदा आंखों से मेरी एक—एक हरकत देख रही थी। उसके बाद मैं वह गिलास लेकर बृन्दा की तरफ बढ़ी।
“अब तुम क्या करोंगी?” बृन्दा के शरीर में झुरझुरी दौड़ी।
“अब यह पानी तुम्हें पिलाया जाएगा। जरा सोचो बृंदा डार्लिंग- एक ‘डायनिल’ लेने के बाद ही तुम्हारा क्या हश्र हो गया था। जबकि अब तो तुम्हें बीस ‘डायनिल’ एक साथ खिलाई जायेंगी। और उसके साथ नींद की गोलियां भी। यह सब टेबलेट्स तुम्हें मौत के कगार तक पहुंचाने के लिये काफी है।”
“नहीं।” बृन्दा आंदोलित लहजे में बोली—”नहीं! तुम यह पानी मुझे नहीं पिला सकती। तुम सचमुच बहुत घटिया हो। तिलक—तिलक तुम इसको नहीं जानते। मैं तुम्हें इसके बारे में...।”
मैं भांप गयी—बृन्दा, तिलक को मेरे बारे में सब कुछ बताने जा रही थी। मैंने एक सैकेण्ड भी व्यर्थ नहीं गंवाया और झटके से उसका मुंह पकड़ लिया।
“बहुत बकवास कर चुकी तुम।” में उसकी बात बीच में ही काटकर दहाड़ी—”यह पानी तो तुम्हें पीना ही पड़ेगा।”
उस क्षण मेरे अंदर न जाने कहां से इतना साहस आ गया था।
मेरे दिल—दिमाग पर कोई अदृश्य—सी शक्ति हावी हो गयी थी, जिसने मुझे इतना कठोर बना डाला था।
बृन्दा ने अपना जबड़ा सख्ती से बंद कर लिया।
“नहीं!” उसने जोर—जोर से अपनी गर्दन हिलाई— “नहीं।”
तिलक राजकोटिया ने आगे बढ़कर उसकी गर्दन कसकर पकड़ ली।
“अपना मुंह खोलो।” वह गुर्राया।
“नहीं।”
उसकी गर्दन पुनः जोर—जोर से हिली।
तत्काल तिलक राजकोटिया का एक प्रचण्ड घूंसा बृन्दा के मुंह पर पड़ा।
बृन्दा की चीख निकल गयी।
उसका मुंह खुला।
जैसे ही मुंह खुला, तुरन्त तिलक ने वहीं ट्राली पर स्टील का एक चम्मच उठाकर उसके हलक में फंसा दिया।
बृन्दा का मुंह खुला—का—खुला रह गया।
उसके हलक से गूं—गूं की आवाजें निकलने लगीं।
नेत्र दहशत से फैल गये।
“शिनाया!” तिलक राजकोटिया, बृन्दा की गर्दन पकड़े—पकड़े चीखा—”जल्दी इसके मुंह में पानी डालो- जल्दी।”
बृन्दा का मुंह अब छत की तरफ था।
तुरन्त मैंने आगे बढ़कर बृन्दा के मुंह में धीरे—धीरे पानी उंडेलना शुरू कर दिया।
उस क्षण मेरे हाथ कांप रहे थे।
उनमें अजीब—सा कम्पन्न था।
वह जोर—जोर से अपनी गर्दन हिलाने की कोशिश करने लगी। लेकिन तिलक उसकी गर्दन इतनी ज्यादा कसकर पकड़े हुए था कि वह गर्दन को एक सूत भी इधर—से—उधर नहीं हिला पा रही थी।
पानी को उसने बाहर निकालने की कोशिश की, तो उसमें भी वह असफल रही।
जल्द ही मैंने सारा पानी उसे पिला दिया।
•••
पानी पिलाते ही मेरी बुरी हालत हो गयी थी।
मैं एकदम दहशत से पीछे हट गयी।
आखिर वो मेरी जिंदगी की पहली हत्या थी। वो भी अपनी सहेली की हत्या! मेरा दिल धाड़—धाड़ करके पसलियों को कूटने लगा और मैं अपलक बृन्दा को देखने लगी।
स्टील का चम्मच अभी भी बृन्दा के हलक में फंसा हुआ था।
अलबत्ता तिलक ने अब उसकी गर्दन छोड़ दी थी। फिर उसने चम्मच भी निकाला।
वो भी अब कुछ भयभीत था और एकटक बृन्दा को ही देख रहा था।
“य... यह तुम लोगों ने ठीक नहीं किया है।” बृन्दा चम्मच निकलते ही कंपकंपाये स्वर में बोली—”तुम्हें इस हत्या की सजा जरूर मिलेगी। तुम बचोगे नहीं।”
हम दोनों के मुंह से अब कोई शब्द न निकला।
उसी क्षण एकाएक बृन्दा को जोर—जोर से उबकाइयां आने लगीं। उसकी आंखें सुर्ख होती चली गयीं। शरीर पसीनों में लथपथ हो उठा।
फिर वो जोर—जोर से अपना सिर आगे को झटकने लगी।
“इसे क्या हो रहा है?” मैं भय से कांपी।
“लगता है- इसका अंत समय नजदीक आ पहुंचा है।” तिलक राजकोटिया बोला।
तभी एकाएक बृन्दा बहुत जोर से गला फाड़कर चीखी।
उसकी चीख अत्यन्त हृदयविदारक और करुणादायी थी।
“खिड़की—दरवाजे अंदर से कसकर बंद कर दो। इसके चीखने की आवाज नीचे होटल तक न पँहुचने पाये, जल्दी करो।”
मैं फौरन खिड़की—दरवाजे बंद करने के लिये शयनकक्ष से बाहर की तरफ झपट पड़ी।
अगले ही पल मैं बहुत बौखलाई हुई—सी अवस्था में पैंथ हाउस के सभी खिड़की—दरवाजे धड़धड़ बंद कर रही थी।
तभी बृन्दा की एक और हृदयविदारक चीख मेरे कानों में पड़ी।
उसमें रूदन शामिल था।
उसके बाद खामोशी छा गयी।
गहरी खामोशी!
सभी खिड़की—दरवाजे बंद करके मैं वापस बृन्दा के शयनकक्ष में पहुंची। वहां पहुंचते ही मेरा दिल धक्क से रह गया।
तिलक राजकोटिया ने उसका मुंह कसकर पकड़ा हुआ था- ताकि वो चीख न सके। लेकिन बृन्दा की हालत देखकर फिलहाल महसूस नहीं हो रहा था कि वो अब चीखने जैसी स्थिति में है।
उसकी आंखें चढ़ी हुई थीं।
गर्दन लुढ़की पड़ी थी।
तिलक राजकोटिया उसे छोड़कर आहिस्ता से एक तरफ हट गया।
“इसे क्या हुआ?” मेरे दिमाग में सांय—सी निकली।
“यह मर चुकी है।”तिलक की आवाज काफी धीमीं थी।
मैंने तुरन्त उसकी हार्ट बीट देखी।
नब्ज टटोली।
सब कुछ गायब था।
मैं फौरन उससे पीछे हट गयी।
•••
“अब तुम क्या करोंगी?” बृन्दा के शरीर में झुरझुरी दौड़ी।
“अब यह पानी तुम्हें पिलाया जाएगा। जरा सोचो बृंदा डार्लिंग- एक ‘डायनिल’ लेने के बाद ही तुम्हारा क्या हश्र हो गया था। जबकि अब तो तुम्हें बीस ‘डायनिल’ एक साथ खिलाई जायेंगी। और उसके साथ नींद की गोलियां भी। यह सब टेबलेट्स तुम्हें मौत के कगार तक पहुंचाने के लिये काफी है।”
“नहीं।” बृन्दा आंदोलित लहजे में बोली—”नहीं! तुम यह पानी मुझे नहीं पिला सकती। तुम सचमुच बहुत घटिया हो। तिलक—तिलक तुम इसको नहीं जानते। मैं तुम्हें इसके बारे में...।”
मैं भांप गयी—बृन्दा, तिलक को मेरे बारे में सब कुछ बताने जा रही थी। मैंने एक सैकेण्ड भी व्यर्थ नहीं गंवाया और झटके से उसका मुंह पकड़ लिया।
“बहुत बकवास कर चुकी तुम।” में उसकी बात बीच में ही काटकर दहाड़ी—”यह पानी तो तुम्हें पीना ही पड़ेगा।”
उस क्षण मेरे अंदर न जाने कहां से इतना साहस आ गया था।
मेरे दिल—दिमाग पर कोई अदृश्य—सी शक्ति हावी हो गयी थी, जिसने मुझे इतना कठोर बना डाला था।
बृन्दा ने अपना जबड़ा सख्ती से बंद कर लिया।
“नहीं!” उसने जोर—जोर से अपनी गर्दन हिलाई— “नहीं।”
तिलक राजकोटिया ने आगे बढ़कर उसकी गर्दन कसकर पकड़ ली।
“अपना मुंह खोलो।” वह गुर्राया।
“नहीं।”
उसकी गर्दन पुनः जोर—जोर से हिली।
तत्काल तिलक राजकोटिया का एक प्रचण्ड घूंसा बृन्दा के मुंह पर पड़ा।
बृन्दा की चीख निकल गयी।
उसका मुंह खुला।
जैसे ही मुंह खुला, तुरन्त तिलक ने वहीं ट्राली पर स्टील का एक चम्मच उठाकर उसके हलक में फंसा दिया।
बृन्दा का मुंह खुला—का—खुला रह गया।
उसके हलक से गूं—गूं की आवाजें निकलने लगीं।
नेत्र दहशत से फैल गये।
“शिनाया!” तिलक राजकोटिया, बृन्दा की गर्दन पकड़े—पकड़े चीखा—”जल्दी इसके मुंह में पानी डालो- जल्दी।”
बृन्दा का मुंह अब छत की तरफ था।
तुरन्त मैंने आगे बढ़कर बृन्दा के मुंह में धीरे—धीरे पानी उंडेलना शुरू कर दिया।
उस क्षण मेरे हाथ कांप रहे थे।
उनमें अजीब—सा कम्पन्न था।
वह जोर—जोर से अपनी गर्दन हिलाने की कोशिश करने लगी। लेकिन तिलक उसकी गर्दन इतनी ज्यादा कसकर पकड़े हुए था कि वह गर्दन को एक सूत भी इधर—से—उधर नहीं हिला पा रही थी।
पानी को उसने बाहर निकालने की कोशिश की, तो उसमें भी वह असफल रही।
जल्द ही मैंने सारा पानी उसे पिला दिया।
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पानी पिलाते ही मेरी बुरी हालत हो गयी थी।
मैं एकदम दहशत से पीछे हट गयी।
आखिर वो मेरी जिंदगी की पहली हत्या थी। वो भी अपनी सहेली की हत्या! मेरा दिल धाड़—धाड़ करके पसलियों को कूटने लगा और मैं अपलक बृन्दा को देखने लगी।
स्टील का चम्मच अभी भी बृन्दा के हलक में फंसा हुआ था।
अलबत्ता तिलक ने अब उसकी गर्दन छोड़ दी थी। फिर उसने चम्मच भी निकाला।
वो भी अब कुछ भयभीत था और एकटक बृन्दा को ही देख रहा था।
“य... यह तुम लोगों ने ठीक नहीं किया है।” बृन्दा चम्मच निकलते ही कंपकंपाये स्वर में बोली—”तुम्हें इस हत्या की सजा जरूर मिलेगी। तुम बचोगे नहीं।”
हम दोनों के मुंह से अब कोई शब्द न निकला।
उसी क्षण एकाएक बृन्दा को जोर—जोर से उबकाइयां आने लगीं। उसकी आंखें सुर्ख होती चली गयीं। शरीर पसीनों में लथपथ हो उठा।
फिर वो जोर—जोर से अपना सिर आगे को झटकने लगी।
“इसे क्या हो रहा है?” मैं भय से कांपी।
“लगता है- इसका अंत समय नजदीक आ पहुंचा है।” तिलक राजकोटिया बोला।
तभी एकाएक बृन्दा बहुत जोर से गला फाड़कर चीखी।
उसकी चीख अत्यन्त हृदयविदारक और करुणादायी थी।
“खिड़की—दरवाजे अंदर से कसकर बंद कर दो। इसके चीखने की आवाज नीचे होटल तक न पँहुचने पाये, जल्दी करो।”
मैं फौरन खिड़की—दरवाजे बंद करने के लिये शयनकक्ष से बाहर की तरफ झपट पड़ी।
अगले ही पल मैं बहुत बौखलाई हुई—सी अवस्था में पैंथ हाउस के सभी खिड़की—दरवाजे धड़धड़ बंद कर रही थी।
तभी बृन्दा की एक और हृदयविदारक चीख मेरे कानों में पड़ी।
उसमें रूदन शामिल था।
उसके बाद खामोशी छा गयी।
गहरी खामोशी!
सभी खिड़की—दरवाजे बंद करके मैं वापस बृन्दा के शयनकक्ष में पहुंची। वहां पहुंचते ही मेरा दिल धक्क से रह गया।
तिलक राजकोटिया ने उसका मुंह कसकर पकड़ा हुआ था- ताकि वो चीख न सके। लेकिन बृन्दा की हालत देखकर फिलहाल महसूस नहीं हो रहा था कि वो अब चीखने जैसी स्थिति में है।
उसकी आंखें चढ़ी हुई थीं।
गर्दन लुढ़की पड़ी थी।
तिलक राजकोटिया उसे छोड़कर आहिस्ता से एक तरफ हट गया।
“इसे क्या हुआ?” मेरे दिमाग में सांय—सी निकली।
“यह मर चुकी है।”तिलक की आवाज काफी धीमीं थी।
मैंने तुरन्त उसकी हार्ट बीट देखी।
नब्ज टटोली।
सब कुछ गायब था।
मैं फौरन उससे पीछे हट गयी।
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