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- Dec 5, 2013
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जब चारों तरफ छाई खामोशी युवक को बहुत ज्यादा चुभने लगी तो एक नजर उसने अपने पांयते पड़ी गद्देदार कुर्सी में धंसे सांवले रंग के परन्तु आकर्षक युवक को देखा।
वह उपन्यास पढ़ने में मशगूल था। एकाएक युवक ने उसे पुकारा—“सुनो।"
आवाज सुनते ही वह चौंक पड़ा , न केवल उपन्यास बन्द कर दिया उसने , बल्कि एकदम से खड़ा होकर ससम्मान बोला—“जी , हुक्म कीजिए।"
"क्या नाम है तुम्हारा ?" युवक ने पूछा।
“रू.....रूपेश , सर।"
"क्या तुम्हें हमेशा चुप रहना अच्छा लगता है?”
"ज..... ,जी मैं समझा नहीं, सर?"
"मुझे यहां आए चार दिन गुजर गए हैं और तुम्हें मेरे पास तीन दिन—लगभग चौबीस घंटे यहां मेरे पास रहते हो गए , लेकिन तुमने कभी कोई बात नहीं की—यहां तक कि तुम्हारा नाम भी मैं पिछले ही क्षण जान सका हूं।"
"म.....मुझे सेठजी ने आपकी सेवा के लिए रखा है।"
"कब ?”
"तीन दिन पहले ही , अखबार में उन्होंने इस आशय का विज्ञापन दिया था कि एक मरीज की सेवा करने के लिए ऐसे पढ़े-लिखे युवक की जरूरत है , जो कम -से-कम बीस घंटे की ड्यूटी दे सके।"
"क्या तुम मेरे बारे में कुछ जानते हो ?"
"सिर्फ इतना ही कि आपका नाम सिकन्दर बाबू है , आप सेठ जी के लड़के हैं—एक एक्सीडेण्ट में आपकी याददाश्त गुम हो गई है और सेठ जी उसे वापस लाने के लिए धरती-आकाश एक किए हुए हैं।"
"यह सब तुमसे किसने कहा ?"
"सेठ जी और यहां पहले से काम करने वाले नौकरों के अलावा मैं यह भी देखता-सुनता रहता हूं कि आपको देखने बम्बई तक से डाक्टर आ चुके हैं।"
"क्या मेरा कोई दोस्त नहीं है ?"
"क्या मतलब सर ?"
"अगर मैं सेठ जी का लड़का हूं तो इसका मतलब बहुत ज्यादा धनवान भी हूं—और धनवान आदमी का सामाजिक दायरा कुछ ज्यादा ही बड़ा बन जाता है। क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है रूपेश कि मैं चार दिन से यहां पड़ा हूं—मगर मुझे देखने , मेरी खैरियत पूछने कोई नहीं आया है! "
"पता नहीं आप क्या कहना चाहते हैं, सर? सम्भव है कि आपके परिचित आते हों , लेकिन आपकी हालत देखकर बाहर ही से लौटा दिए जाते हों ?"
"क्या ऐसा है?”
"मैं भला विश्वासपूर्वक कैसे कह सकता हूं ?"
रूपेश के इस जवाब पर कुछ देर तक युवक खामोश रहा। बड़े ध्यान से वह रूपेश को देख रहा था , जैसे सोच रहा हो कि यह आदमी विश्वसनीय है या नहीं , फिर अचानक ही उसने सवाल कर दिया —“ क्या मैं तुम पर विश्वास कर सकता हूं, रूपेश ?"
"क्यों नहीं, सर।" रूपेश ने एक मुस्तैद नौकर की तरह ही कहा।
"सबसे पहले तुम मुझे 'सर ' कहना बन्द करो—मेरे हमउम्र हो तुम और मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूं।"
रूपेश चाहकर भी कुछ कह नहीं सका—फिर युवक ने आगे कहा— “जानते हो इस वक्त मैं क्यों दोस्त की जरूरत महसूस कर रहा हूं ?"
"नहीं, सर।"
"मैं तुम्हें अपने दिल की बात बताना चाहता हूं। सच कहता हूं, रूपेश—एक्सीडेण्ट के बाद जब से होश में आया हूं, तब से सैंकड़ों विचार मेरे दिलो-दिमाग में उठ रहे हैं , मगर एक भी शख्स ऐसा नहीं मिला जिससे उन विचारों पर बात करके अपना मन हल्का कर सकूं—जाने क्यों मुझे लग रहा है कि तुम पर विश्वास किया जा सकता है।"
"जरूर।”
“तुम सेठ न्यादर अली के नौकर हो सकते हो , मेरे नहीं—मेरे केवल दोस्त हो—और इसी दोस्ती की कसम खाकर वादा करो कि मेरे और अपने बीच होने वाली बातों का जिक्र किसी से नहीं करोगे।"
"मैं वादा करता हूं।"
युवक के चेहरे पर पहली बार संतोष के भाव थे—ऐसे , जैसे उसे मनचाही मुराद मिल गई हो , और फिर अचानक ही युवक ने उस पर एक प्रश्न ठोक दिया— "अगर तुम मेरी जगह होते तो क्या करते ?"
"मैं समझा नहीं।”
"मेरे साथ जो हो रहा है , मुझे जो भी सुनाया जा रहा है—नहीं जानता कि वह सच है या झूठ—कैसे मान लूं रूपेश कि सच्चाई वही है , जो ये लोग कह रहे हैं—क्या मैं वही हूं जो ये बता रहे हैं या मुझे ऐसा परिचय दिया जा रहा है , जिसका मुझसे दूर-दूर तक भी सम्बन्ध नहीं है।"
"इन बातों का अर्थ तो यह निकलता है कि आपको अपने सिकन्दर होने पर शक है , आप समझते हैं कि आपको एक गलत नाम और परिचय दिया जा रहा है ?"
"क्यों नहीं हो सकता ?"
"आपको ऐसा क्यों लग रहा है?"
"कुछ सवाल बिल्कुल अनुत्तरित होते हैं।"
“जैसे ?”
"यदि मैँ सिकन्दर हूं और वहां से कैडलॉंक लेकर ऑफिस के लिए निकला था तो मैं फियेट में कैसे मिला? मेरी कैडलॉंक कहां गई , और यदि मैं इतना धनवान हूं तो किसी अमीचन्द की गैराज का ताला तोड़कर मुझे फियेट चुराने की क्या जरूरत थी ?”
"और ?"
"वह नेकलेस मैंने किसके लिए खरीदा था—यदि मैं सिकन्दर हूं तो मेरे दायरे के वे लोग कहां हैं , जो सिकन्दर जैसे व्यक्ति के होने ही चाहिए?"
"आप तो निगेटिव ढंग से सोच रहे हैं—पॉजिटिव ढंग से क्यों नहीं सोचते ?"
"पॉजिटिव से तुम्हारा मतलब यही है न कि मैं खुद को सिकन्दर मानकर सोचूं ?"
' “मेरे ख्याल से चारों तरफ इस पक्ष में सबूत कुछ ज्यादा ही बिखरे हुए हैं।"
"तुम्हारा इशारा किस किस्म के सबूतों की तरफ है ?”
“जैसे वह एलबम , इस कमरे की हर अलमारी में आपके कपड़े , जूते—हर नौकर आपको सिकन्दर बाबू कहकर पुकारता है—जोकि सामान्य अवस्था में लाने के लिए सेठजी सचमुच उस पिता की तरह ही प्रयत्नशील हैं, जैसे एक प्यार करने वाला पिता होता है।"
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वह उपन्यास पढ़ने में मशगूल था। एकाएक युवक ने उसे पुकारा—“सुनो।"
आवाज सुनते ही वह चौंक पड़ा , न केवल उपन्यास बन्द कर दिया उसने , बल्कि एकदम से खड़ा होकर ससम्मान बोला—“जी , हुक्म कीजिए।"
"क्या नाम है तुम्हारा ?" युवक ने पूछा।
“रू.....रूपेश , सर।"
"क्या तुम्हें हमेशा चुप रहना अच्छा लगता है?”
"ज..... ,जी मैं समझा नहीं, सर?"
"मुझे यहां आए चार दिन गुजर गए हैं और तुम्हें मेरे पास तीन दिन—लगभग चौबीस घंटे यहां मेरे पास रहते हो गए , लेकिन तुमने कभी कोई बात नहीं की—यहां तक कि तुम्हारा नाम भी मैं पिछले ही क्षण जान सका हूं।"
"म.....मुझे सेठजी ने आपकी सेवा के लिए रखा है।"
"कब ?”
"तीन दिन पहले ही , अखबार में उन्होंने इस आशय का विज्ञापन दिया था कि एक मरीज की सेवा करने के लिए ऐसे पढ़े-लिखे युवक की जरूरत है , जो कम -से-कम बीस घंटे की ड्यूटी दे सके।"
"क्या तुम मेरे बारे में कुछ जानते हो ?"
"सिर्फ इतना ही कि आपका नाम सिकन्दर बाबू है , आप सेठ जी के लड़के हैं—एक एक्सीडेण्ट में आपकी याददाश्त गुम हो गई है और सेठ जी उसे वापस लाने के लिए धरती-आकाश एक किए हुए हैं।"
"यह सब तुमसे किसने कहा ?"
"सेठ जी और यहां पहले से काम करने वाले नौकरों के अलावा मैं यह भी देखता-सुनता रहता हूं कि आपको देखने बम्बई तक से डाक्टर आ चुके हैं।"
"क्या मेरा कोई दोस्त नहीं है ?"
"क्या मतलब सर ?"
"अगर मैं सेठ जी का लड़का हूं तो इसका मतलब बहुत ज्यादा धनवान भी हूं—और धनवान आदमी का सामाजिक दायरा कुछ ज्यादा ही बड़ा बन जाता है। क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है रूपेश कि मैं चार दिन से यहां पड़ा हूं—मगर मुझे देखने , मेरी खैरियत पूछने कोई नहीं आया है! "
"पता नहीं आप क्या कहना चाहते हैं, सर? सम्भव है कि आपके परिचित आते हों , लेकिन आपकी हालत देखकर बाहर ही से लौटा दिए जाते हों ?"
"क्या ऐसा है?”
"मैं भला विश्वासपूर्वक कैसे कह सकता हूं ?"
रूपेश के इस जवाब पर कुछ देर तक युवक खामोश रहा। बड़े ध्यान से वह रूपेश को देख रहा था , जैसे सोच रहा हो कि यह आदमी विश्वसनीय है या नहीं , फिर अचानक ही उसने सवाल कर दिया —“ क्या मैं तुम पर विश्वास कर सकता हूं, रूपेश ?"
"क्यों नहीं, सर।" रूपेश ने एक मुस्तैद नौकर की तरह ही कहा।
"सबसे पहले तुम मुझे 'सर ' कहना बन्द करो—मेरे हमउम्र हो तुम और मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूं।"
रूपेश चाहकर भी कुछ कह नहीं सका—फिर युवक ने आगे कहा— “जानते हो इस वक्त मैं क्यों दोस्त की जरूरत महसूस कर रहा हूं ?"
"नहीं, सर।"
"मैं तुम्हें अपने दिल की बात बताना चाहता हूं। सच कहता हूं, रूपेश—एक्सीडेण्ट के बाद जब से होश में आया हूं, तब से सैंकड़ों विचार मेरे दिलो-दिमाग में उठ रहे हैं , मगर एक भी शख्स ऐसा नहीं मिला जिससे उन विचारों पर बात करके अपना मन हल्का कर सकूं—जाने क्यों मुझे लग रहा है कि तुम पर विश्वास किया जा सकता है।"
"जरूर।”
“तुम सेठ न्यादर अली के नौकर हो सकते हो , मेरे नहीं—मेरे केवल दोस्त हो—और इसी दोस्ती की कसम खाकर वादा करो कि मेरे और अपने बीच होने वाली बातों का जिक्र किसी से नहीं करोगे।"
"मैं वादा करता हूं।"
युवक के चेहरे पर पहली बार संतोष के भाव थे—ऐसे , जैसे उसे मनचाही मुराद मिल गई हो , और फिर अचानक ही युवक ने उस पर एक प्रश्न ठोक दिया— "अगर तुम मेरी जगह होते तो क्या करते ?"
"मैं समझा नहीं।”
"मेरे साथ जो हो रहा है , मुझे जो भी सुनाया जा रहा है—नहीं जानता कि वह सच है या झूठ—कैसे मान लूं रूपेश कि सच्चाई वही है , जो ये लोग कह रहे हैं—क्या मैं वही हूं जो ये बता रहे हैं या मुझे ऐसा परिचय दिया जा रहा है , जिसका मुझसे दूर-दूर तक भी सम्बन्ध नहीं है।"
"इन बातों का अर्थ तो यह निकलता है कि आपको अपने सिकन्दर होने पर शक है , आप समझते हैं कि आपको एक गलत नाम और परिचय दिया जा रहा है ?"
"क्यों नहीं हो सकता ?"
"आपको ऐसा क्यों लग रहा है?"
"कुछ सवाल बिल्कुल अनुत्तरित होते हैं।"
“जैसे ?”
"यदि मैँ सिकन्दर हूं और वहां से कैडलॉंक लेकर ऑफिस के लिए निकला था तो मैं फियेट में कैसे मिला? मेरी कैडलॉंक कहां गई , और यदि मैं इतना धनवान हूं तो किसी अमीचन्द की गैराज का ताला तोड़कर मुझे फियेट चुराने की क्या जरूरत थी ?”
"और ?"
"वह नेकलेस मैंने किसके लिए खरीदा था—यदि मैं सिकन्दर हूं तो मेरे दायरे के वे लोग कहां हैं , जो सिकन्दर जैसे व्यक्ति के होने ही चाहिए?"
"आप तो निगेटिव ढंग से सोच रहे हैं—पॉजिटिव ढंग से क्यों नहीं सोचते ?"
"पॉजिटिव से तुम्हारा मतलब यही है न कि मैं खुद को सिकन्दर मानकर सोचूं ?"
' “मेरे ख्याल से चारों तरफ इस पक्ष में सबूत कुछ ज्यादा ही बिखरे हुए हैं।"
"तुम्हारा इशारा किस किस्म के सबूतों की तरफ है ?”
“जैसे वह एलबम , इस कमरे की हर अलमारी में आपके कपड़े , जूते—हर नौकर आपको सिकन्दर बाबू कहकर पुकारता है—जोकि सामान्य अवस्था में लाने के लिए सेठजी सचमुच उस पिता की तरह ही प्रयत्नशील हैं, जैसे एक प्यार करने वाला पिता होता है।"
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