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- Dec 5, 2013
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"शायद होश आने पर रूपेश नाम का वह नौजवान भी उसके बारे में कुछ बता सकेगा।"
"मैँने डॉक्टर से कह रखा है , रूपेश के होश में आते ही सूचना दी जाएगी। ”
"हालांकि इस केस की गुत्थियां अभी बुरी तरह उलझी हुई हैं—ऐसे ढेर सारे सवाल हैं , जिनमें से किसी का जवाब हमारे पास नहीं है—यह कि रूबी उसे जॉनी बनाने की कोशिश क्यों कर रही थी ? यह कि युवक ने उसी का कत्ल क्यों कर दिया ? वह अस्पताल से कैसे निकला और राजाराम की दुकान पर ही क्यों पहुंचा आदि?"
तभी कमरे में दाखिल होती हुई नर्स ने सूचना दी— "मिस्टर रूपेश होश में आ रहे हैं।"
दोनों ही इंस्पेक्टर एक साथ ऑन होने वाले बल्बों की तरह खड़े हो गए।
¶¶
विशेष को साथ लिए युवक ने धड़कते दिल से ऊपर वाले कमरे में कदम रखा और दरवाजे पर आकर रुक जाना पड़ा उसे—कमरे के , दरवाजे के ठीक सामने वाली दीवार पर एक बहुत बड़ा फोटो लगा हुआ था।
उसका अपना फोटो।
युवक की आंखें उस पर चिपककर रह गईं—दिल धक्...धक् कर रहा था—हालांकि फर्क था , परन्तु फोटो उसे अपना ही लगा-फर्क सिर्फ दाढ़ी-मूंछ , आंखों पर चढ़े सफेद लैंसों वाले चश्मे और हेयर स्टाइल का था , यानि युवक का चेहरा क्लीन शेव था , जबकि फोटो में यह गहरी मूंछों , घनी दाढ़ी में था—हेयर स्टाइल में मामूली फर्क—आंखों पर चश्मा।
युवक को याद नहीं आया कि उसने कभी इस ढंग की दाढ़ी-मूंछें रखी हैं या नहीं—दरवाजे पर ठिठका अभी वह यह सोच ही रहा था कि यदि एक महीने वह शेव न कराए तथा आंखों पर चश्मा पहन ले और फोटो खिंचवा ले तो उसमें और इस फोटो में कोई फर्क नहीं रहेगा।
फोटो के नीचे , स्टैंड पर अगरबत्तियां जल रही थीं , सारे कमरे में अगरबत्तियों की तीव्र खुशबू-सी की हुई थी—चाहकर भी युवक उस फोटो से नजर नहीं हटा पा रहा था...कि कमरे में रश्मि की आवाज गूंजी— "वह वीशू के पापा का फोटो है।"
युवक ने बौखलाकर रश्मि की तरफ देखा।
सफेद लिबास में वह बहुत पाक लग रही थी—कुरान या गीता की तरह।
युवक चाहकर भी कुछ नहीं कह सका , जबकि विशेष ने फौरन ही चटकारा लिया— “ वाह मम्मी—क्या मजे की बात है , आप पापा से ही कह रही हैं कि यह पापा का फोटो है। ”
"वीशू!" रश्मि का लहजा सख्त था— “तुम हमें डिस्टर्ब नहीं करोगे , और यदि किया तो हम तुम्हें यहाँ से बाहर निकाल देंगे।"
बड़े मासूम अन्दाज में विशेष ने युवक की तरफ देखा।
“ऐसा मत कहिए , बच्चों की तो आदत होती है।"
"आपको ऐसा कोई अधिकार नहीं मिला है मिस्टर , जिसके तहत आप मुझे विशेष को डांटने से रोक सकें।" रश्मि का लहजा पत्थर की तरह सख्त और खुरदरा था।
युवक सकपका गया।
पहले तो उसने कहा ही बहुत हिम्मत करके था , दूसरे—उसके वाक्य को बीच ही में काटकर रश्मि ने चेतावनी-सी दी थी , इस बार भी युवक ने बहुत हिम्मत करके कहा— “स....सॉरी।"
संगमरमर के मुखड़े पर मौजूद तनाव कुछ कम हुआ , वातावरण को सामान्य बनाने की गरज से ही युवक ने कहा— "निश्चय ही सर्वेश से मेरी शक्ल हू-ब-हू मिलती है। केवल दाढ़ी-मूंछ , चश्मे और हेयर स्टाइल में फर्क है , मगर कम-से-कम विशेष के लिए यह फर्क काफी है—कहने का मतलब यह कि मेरा चेहरा क्लीन शेव तथा चश्मे रहित होने पर भी विशेष का सड़क पर मुझे "पापा ' कहकर पुकारना आश्चर्यजनक है।"
"यदि वीशू ने अपने पिता का सिर्फ दीवार पर लगा यह चित्र ही देखा होता तो शायद इससे वह भूल नहीं होती , मगर इसने उनके दूसरे फोटो भी देखे हैं , जैसे यह।" कहकर रश्मि ने अपने हाथ में दबा पासपोर्ट साइज का फोटो उछाल दिया।
युवक ने फोटो को फर्श से उठाकर देखा।
वह दावे के साथ कह सकता था कि फोटो उसका अपना ही है—सर्वेश के इस फोटो में उसके चेहरे पर दाढ़ी-मूंछ और चश्मा नहीं था। हां—हेयर स्टाइल में अब भी फर्क था—इस फोटो पर युवक की नजर चिपककर रह गई। वह सोचने लगा कि क्या वास्तव में दो व्यक्तियों की शक्ल इस सीमा तक मिल सकती है ? कहीं मैं सर्वेश ही तो नहीं हूं ?
कहीं रश्मि मेरी पत्नी और विशेष मेरा बेटा ही तो नहीं है ?
"इस फोटो के अलावा विशेष ने अपने पापा को अनेक बार बिना दाढ़ी मूछों और चश्मे के देखा है , शायद इसीलिए सड़क पर आपको देखकर वह...। ”
"प....प्लीज मम्मी—पता नहीं पापा से आप कैसी बातें कर रही हैं , ये मेरे पापा.....।"
"गेट आउट!" अत्यधिक ही रश्मि गुस्से में चीख पड़ी। युवक ने उसके चेहरे को बुरी तरह सुर्ख होकर तमतमाते देखा। यह गुर्रा रही थी—“हमने तुम्हें डिस्टर्ब न करने के लिए कहा था वीशू आई से गेट आउट।"
विशेष ने सहमकर युवक को देखा।
युवक के मन में ममता उमड़ पड़ी , मगर फिर रश्मि का ख्याल आने पर वह कुछ बोला नहीं—युवक को अपना पक्ष न लेते देखकर विशेष मायूस हो गया। अनिच्छापूर्वक कमरे के दरवाजे की तरफ जाने लगा वह और यही क्षण था जब युवक के दिमाग में यह विचार बिजली की तरह कौंधा कि यदि विशेष बाहर चला गया तो इसके साथ वह इस कमरे में अकेला रह जाएगा।
अगर मेरे दिमाग पर पुन: उन्हीं भयानक विचारों ने कब्जा कर लिया तो ?
रूबी की लाश उसकी आँखों के सामने नाच उठी।
फिर मर्डर के बाद से शुरू हुए आतंक ने उसे त्रस्त कर दिया। अधीर-सा होकर अन्जाने ही में वह झपटा और विशेष को अपने से लिपटाकर बोला— “न...नहीँ , तुम बाहर मत जाओ।"
रश्मि ने गुर्राना चाहा—"म...मिस्टर...।"
" 'प...प्लीज रश्मि जी।" युवक एकदम गिड़गिड़ा-सा उठा— "इसे कमरे से बाहर जाने का हुक्म मत दो …म...मैँ अकेला तुम्हारे साथ यहां नहीं रहना चाहता।"
रश्मि की आंखों में उलझनयुक्त आश्चर्य उभर आया।
वह कह रहा था— "प्लीज , अब यह डिस्टर्ब नहीं करेगा—तुम बीच में नहीं बोलोगे बेटे। म...मगर हमें यहां अकेला मत छोड़ो।"
अच्छी खासी सर्दी के बावजूद युवक के मस्तक पर उभर आए पसीने को देखती रह गई रश्मि—युवक के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं—अचानक ही वह बेहद आतंकित-सा नजर आने लगा था—गहन उलझन भरे आश्चर्य के साथ रश्मि देखती रह गई उसे। युवक ने पुन: कहा था— “ मेरी बस यह एक बात मान लीजिए—अब वीशू हमें बिल्कुल डिस्टर्ब नहीं करेगा , प्लीज रश्मिजी।"
हैरत में डूबी रश्मि ने मौन स्वीकृति दे दी।
युवक ने विशेष को एक बार फिर हिदायत दी—बड़े ही मासूम अन्दाज में विशेष ने स्वीकृति में गर्दन हिलाई। रश्मि ने पूछा— "आपका नाम ?"
युवक गड़बड़ा गया। यह निश्चय नहीं कर सका कि खुद को सिकन्दर बताए , जॉनी या कुछ और , बोला— “मेरा जवाब सुनकर शायद आप चौंक पड़ेंगी।"
"मतलब ?" गम्भीर , कठोर और सौम्य लहजा।
“म …..मुझे अपना नाम मालूम नहीं है।"
रश्मि की आंखों के चारों तरफ का हिस्सा सिकुड़ गया। इस बार उसके मुंह से गुर्राहट-सी निकली—"बद्तमीजी से भरे आपके इस जवाब का अर्थ ?"
अपनी विवशता पर युवक कसमसा उठा। चेहरे पर हल्की-सी झुंझलाहट के भाव उभरे , बोला— “आप यकीन कीजिए रश्मि जी , मैं कोई बद्तमीजी नहीं कर रहा हूं—बहुत विवश हूं मैं—जाने भाग्य मेरे साथ क्या खिलवाड़ करना चाहता है। यह सच्चाई है कि मैं खुद को नहीं जानता—मेरा नाम क्या है , मैं कौन हूं …क्या हूं—ऐसे किसी भी सवाल का जवाब खुद मुझे नहीं मालूम है—दुनिया का कोई भी दूसरा आदमी शायद मेरी उलझन , कसमसाहट और विवशता को नहीं समझ सकेगा—स्वयं आपने किसी ऐसे आदमी की मानसिकता की कल्पना की है , जो खुद ही अपने लिए एक पहेली हो—जो खुद ही इनवेस्टिगेशन करके यह पता लगाने की कोशिश कर रहा हो कि वह कौन है ? शायद मेरी कसमसाहट को कोई नहीं समझ सकेगा रश्मि जी , क्योंकि मैं खुद ही वह आदमी हूं।"
उलझन के असीमित भाव रश्मि के मुखड़े पर उभर आए। कुछ देर तक विचित्र-सी नजरों से युवक को देखती रही वह , फिर बोली—“मैं आपकी पहेली जैसी बात का अर्थ नहीं समझी।"
"उसके लिए शायद मुझे अपने से सम्बन्धित वे सभी बातें आपको बतानी होंगी , जितनी मुझे मालूम हैं।"
रश्मि मौन रही , अर्थ था कि वह सुनने के लिए तैयार है।
इसके बाद युवक ने उसे अपनी याददाश्त गुम होने के बारे में बता दिया—युवक ने न्यादर अली या रूबी के बारे में कुछ नहीं बताया था—बस यही कहा था कि उसकी जानकारी के मुताबिक एक एक्सीडेंट के बाद उसकी याददाश्त गुम हो गई है और अब वह पागलों की तरह यह पता लगाने की कोशिश में घूम रहा है कि एक्सीडेण्ट के पहले वह कौन था।
रश्मि के मुखड़े पर उसकी विचित्र कहानी सुनने के बाद हैरत का समुद्र-सा उमड़ पड़ा—एकदम से चाहकर भी वह कुछ नहीं कह सकी , जबकि युवक ने कहा— “इसी वजह से वीशू के ‘पापा’ कहने पर , यह उम्मीद लेकर मैं यहां आ गया कि शायद मुझे मेरा अतीत मिल
जाए।"
"आप कुछ भी हों , मगर सर्वेश नहीं हो सकते।" रश्मि ने सपाट लहजे में कहा।
"हो सकता है मगर...।"
"मगर......?”
"अगर आप बुरा न मानें तो क्या मैं पूछ सकता हूं कि क्यों—आप यह बात इतने विश्वासपूर्वक किस आधार पर कह सकती हैं कि मैं सर्वेश नहीं हूं ?"
"बता चुकी हूं कि उनकी लाश मैंने अपनी आंखों से देखी है।"
“म....मगर दो इंसानों की शक्ल इस हद तक मिलना भी तो...।"
"यह शायद कुदरत का खेल है।"
"हो सकता है , लेकिन क्या ऐसा नहीं हो सकता कि वह लाश , जिसे आप अपने पति की समझीं , दरअसल किसी अन्य की हो ?"
"क्या आप खुद को मेरा पति साबित करना चाहते हैं ?"
"प...प्लीज रश्मि जी। मेरी बातों को इस ढंग से न लीजिए—मैं तो खुद ही उलझन में हूं—मेरी विवशता को समझने की कोशिश कीजिए—खुद ही को तलाश करना पड़ रहा है मुझे—मैँ ऐसे सबूत नहीं जुटाना चाहता कि जिससे सर्वेश साबित होऊं—मैं आपसे ऐसा ठोस प्रमाण चाहता हूं जिससे साबित हो सके कि मैं सर्वेश नहीं हूं।"
"पहला प्रमाण है यह।" कहने के साथ ही वह कमरे में रखी एक डाइटिंग टेबल की तरफ बढ़ गई , दराज खोलकर उसमें से एक फोटो निकाला उसने , फोटो को उसकी तरफ उछालत्ती हुई बोली— "यह मेरे पति की लाश का फोटो है।"
युवक ने फोटो उठाकर देखा।
फोटो को देखते ही वह चौंक पड़ा , यह फोटो दाढी-मूंछ वाले किसी युवक की लाश का जरूर था , मगर लाश का चेहरा बिल्कुल स्पष्ट नजर नहीं जा रहा था , चेहरा विकृत-सा था। अत: भले ही हेयर स्टाइल सर्वेश जैसा हो , मगर यह दावा पेश नहीं किया जा सकता था कि फोटो सर्वेश की लाश ही का है—और जब यह बात युवक ने रश्मि से कहीँ तो रश्मि ने कहा—
"दूसरा सबूत आपकी पीठ पर से मिल जाएगा।"
"प …पीठ से ?"
“क्या आप कपड़े उठाकर मुझे अपनी पीठ दिखाने का कष्ट करेंगे ?"
थोड़ा हिचकने के बाद युवक ने उसके आदेश का पालन किया , पीठ को देखते ही रश्मि कुछ और ज्यादा दृढ़तापूर्वक कह उठी— “आप सर्वेश नहीं हैं।"
कपड़ों को ठीक करते हुए युवक ने उसकी तरफ घूमकर पूछा—"आपने क्या देखा ?"
"यह।" रश्मि ने दराज से एक फोटो निकालकर उसकी तरफ उछाल दिया , बोली—“आपकी पीठ पर कहीं कोई मस्सा नहीं है।"
युवक ने देखा , इस फोटो में एक युवक की पीठ थी—पीठ पर एक काफी बड़ा मस्सा बिल्कुल स्पष्ट नजर जा रहा था—हालांकि फोटो पीठ का होने के कारण सर्वेश का चेहरा स्पष्ट नहीं था , किन्तु रश्मि उसे सर्वेश का फोटो कह रही थी , सो उसे मानना ही पड़ा।
युवक उस फोटो को अभी देख ही रहा था कि रश्मि ने कहा— "अब तो आपके दिमाग से अपने सर्वेश होने का वहम निकल गया होगा ?"
"ज......जी हां।" इसके अलावा युवक और कह भी क्या सकता था ?
युवक आश्वस्त हुआ हो या न हुआ हो , परन्तु रश्मि अवश्य आश्वस्त हो गई थी। शायद उसके अपने दिमाग में भी कहीं यह विचार कांटा बनकर चुभने लगा था कि कहीं यह सर्वेश ही न हो और उसे यहां बुलाकर रश्मि ने अपने उसी कांटे को साफ किया था , बोली— “वीशू बच्चा है , यह मुझसे ज्यादा अपने पापा को प्यार करता था—शायद इसीलिए मैंने इससे कह दिया था कि इसके पापा आकाश में गए हैं—एक दिन इसके लिए ढेर सारी टॉफियां लेकर जरूर लौटेंगे और शायद उसी भुलावे और आपकी शक्ल के चक्कर में यह भरी सड़क पर आपको ‘पापा ' कहकर पुकार बैठा—मेरे इस नादान बेटे की वजह से अगर आपको कोई मानसिक दुख पहुंचा हो तो मैं क्षमा मांगती हूं।" कहते-कहते रश्मि की आवाज भर्रा गई।
उसकी आंखों में डबडबाते नीर को युवक ने स्पष्ट देखा।
उस विधवा के दिल में उठ रही किसी टीस का एहसास करके युवक को अपने दिल में एक हूक-सी उठती महसूस हुई , वह बड़ी मुश्किल से कह सका— “ न.....नहीं , ऐसी कोई बात नहीं है, रश्मि जी। ”
"मैँने डॉक्टर से कह रखा है , रूपेश के होश में आते ही सूचना दी जाएगी। ”
"हालांकि इस केस की गुत्थियां अभी बुरी तरह उलझी हुई हैं—ऐसे ढेर सारे सवाल हैं , जिनमें से किसी का जवाब हमारे पास नहीं है—यह कि रूबी उसे जॉनी बनाने की कोशिश क्यों कर रही थी ? यह कि युवक ने उसी का कत्ल क्यों कर दिया ? वह अस्पताल से कैसे निकला और राजाराम की दुकान पर ही क्यों पहुंचा आदि?"
तभी कमरे में दाखिल होती हुई नर्स ने सूचना दी— "मिस्टर रूपेश होश में आ रहे हैं।"
दोनों ही इंस्पेक्टर एक साथ ऑन होने वाले बल्बों की तरह खड़े हो गए।
¶¶
विशेष को साथ लिए युवक ने धड़कते दिल से ऊपर वाले कमरे में कदम रखा और दरवाजे पर आकर रुक जाना पड़ा उसे—कमरे के , दरवाजे के ठीक सामने वाली दीवार पर एक बहुत बड़ा फोटो लगा हुआ था।
उसका अपना फोटो।
युवक की आंखें उस पर चिपककर रह गईं—दिल धक्...धक् कर रहा था—हालांकि फर्क था , परन्तु फोटो उसे अपना ही लगा-फर्क सिर्फ दाढ़ी-मूंछ , आंखों पर चढ़े सफेद लैंसों वाले चश्मे और हेयर स्टाइल का था , यानि युवक का चेहरा क्लीन शेव था , जबकि फोटो में यह गहरी मूंछों , घनी दाढ़ी में था—हेयर स्टाइल में मामूली फर्क—आंखों पर चश्मा।
युवक को याद नहीं आया कि उसने कभी इस ढंग की दाढ़ी-मूंछें रखी हैं या नहीं—दरवाजे पर ठिठका अभी वह यह सोच ही रहा था कि यदि एक महीने वह शेव न कराए तथा आंखों पर चश्मा पहन ले और फोटो खिंचवा ले तो उसमें और इस फोटो में कोई फर्क नहीं रहेगा।
फोटो के नीचे , स्टैंड पर अगरबत्तियां जल रही थीं , सारे कमरे में अगरबत्तियों की तीव्र खुशबू-सी की हुई थी—चाहकर भी युवक उस फोटो से नजर नहीं हटा पा रहा था...कि कमरे में रश्मि की आवाज गूंजी— "वह वीशू के पापा का फोटो है।"
युवक ने बौखलाकर रश्मि की तरफ देखा।
सफेद लिबास में वह बहुत पाक लग रही थी—कुरान या गीता की तरह।
युवक चाहकर भी कुछ नहीं कह सका , जबकि विशेष ने फौरन ही चटकारा लिया— “ वाह मम्मी—क्या मजे की बात है , आप पापा से ही कह रही हैं कि यह पापा का फोटो है। ”
"वीशू!" रश्मि का लहजा सख्त था— “तुम हमें डिस्टर्ब नहीं करोगे , और यदि किया तो हम तुम्हें यहाँ से बाहर निकाल देंगे।"
बड़े मासूम अन्दाज में विशेष ने युवक की तरफ देखा।
“ऐसा मत कहिए , बच्चों की तो आदत होती है।"
"आपको ऐसा कोई अधिकार नहीं मिला है मिस्टर , जिसके तहत आप मुझे विशेष को डांटने से रोक सकें।" रश्मि का लहजा पत्थर की तरह सख्त और खुरदरा था।
युवक सकपका गया।
पहले तो उसने कहा ही बहुत हिम्मत करके था , दूसरे—उसके वाक्य को बीच ही में काटकर रश्मि ने चेतावनी-सी दी थी , इस बार भी युवक ने बहुत हिम्मत करके कहा— “स....सॉरी।"
संगमरमर के मुखड़े पर मौजूद तनाव कुछ कम हुआ , वातावरण को सामान्य बनाने की गरज से ही युवक ने कहा— "निश्चय ही सर्वेश से मेरी शक्ल हू-ब-हू मिलती है। केवल दाढ़ी-मूंछ , चश्मे और हेयर स्टाइल में फर्क है , मगर कम-से-कम विशेष के लिए यह फर्क काफी है—कहने का मतलब यह कि मेरा चेहरा क्लीन शेव तथा चश्मे रहित होने पर भी विशेष का सड़क पर मुझे "पापा ' कहकर पुकारना आश्चर्यजनक है।"
"यदि वीशू ने अपने पिता का सिर्फ दीवार पर लगा यह चित्र ही देखा होता तो शायद इससे वह भूल नहीं होती , मगर इसने उनके दूसरे फोटो भी देखे हैं , जैसे यह।" कहकर रश्मि ने अपने हाथ में दबा पासपोर्ट साइज का फोटो उछाल दिया।
युवक ने फोटो को फर्श से उठाकर देखा।
वह दावे के साथ कह सकता था कि फोटो उसका अपना ही है—सर्वेश के इस फोटो में उसके चेहरे पर दाढ़ी-मूंछ और चश्मा नहीं था। हां—हेयर स्टाइल में अब भी फर्क था—इस फोटो पर युवक की नजर चिपककर रह गई। वह सोचने लगा कि क्या वास्तव में दो व्यक्तियों की शक्ल इस सीमा तक मिल सकती है ? कहीं मैं सर्वेश ही तो नहीं हूं ?
कहीं रश्मि मेरी पत्नी और विशेष मेरा बेटा ही तो नहीं है ?
"इस फोटो के अलावा विशेष ने अपने पापा को अनेक बार बिना दाढ़ी मूछों और चश्मे के देखा है , शायद इसीलिए सड़क पर आपको देखकर वह...। ”
"प....प्लीज मम्मी—पता नहीं पापा से आप कैसी बातें कर रही हैं , ये मेरे पापा.....।"
"गेट आउट!" अत्यधिक ही रश्मि गुस्से में चीख पड़ी। युवक ने उसके चेहरे को बुरी तरह सुर्ख होकर तमतमाते देखा। यह गुर्रा रही थी—“हमने तुम्हें डिस्टर्ब न करने के लिए कहा था वीशू आई से गेट आउट।"
विशेष ने सहमकर युवक को देखा।
युवक के मन में ममता उमड़ पड़ी , मगर फिर रश्मि का ख्याल आने पर वह कुछ बोला नहीं—युवक को अपना पक्ष न लेते देखकर विशेष मायूस हो गया। अनिच्छापूर्वक कमरे के दरवाजे की तरफ जाने लगा वह और यही क्षण था जब युवक के दिमाग में यह विचार बिजली की तरह कौंधा कि यदि विशेष बाहर चला गया तो इसके साथ वह इस कमरे में अकेला रह जाएगा।
अगर मेरे दिमाग पर पुन: उन्हीं भयानक विचारों ने कब्जा कर लिया तो ?
रूबी की लाश उसकी आँखों के सामने नाच उठी।
फिर मर्डर के बाद से शुरू हुए आतंक ने उसे त्रस्त कर दिया। अधीर-सा होकर अन्जाने ही में वह झपटा और विशेष को अपने से लिपटाकर बोला— “न...नहीँ , तुम बाहर मत जाओ।"
रश्मि ने गुर्राना चाहा—"म...मिस्टर...।"
" 'प...प्लीज रश्मि जी।" युवक एकदम गिड़गिड़ा-सा उठा— "इसे कमरे से बाहर जाने का हुक्म मत दो …म...मैँ अकेला तुम्हारे साथ यहां नहीं रहना चाहता।"
रश्मि की आंखों में उलझनयुक्त आश्चर्य उभर आया।
वह कह रहा था— "प्लीज , अब यह डिस्टर्ब नहीं करेगा—तुम बीच में नहीं बोलोगे बेटे। म...मगर हमें यहां अकेला मत छोड़ो।"
अच्छी खासी सर्दी के बावजूद युवक के मस्तक पर उभर आए पसीने को देखती रह गई रश्मि—युवक के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं—अचानक ही वह बेहद आतंकित-सा नजर आने लगा था—गहन उलझन भरे आश्चर्य के साथ रश्मि देखती रह गई उसे। युवक ने पुन: कहा था— “ मेरी बस यह एक बात मान लीजिए—अब वीशू हमें बिल्कुल डिस्टर्ब नहीं करेगा , प्लीज रश्मिजी।"
हैरत में डूबी रश्मि ने मौन स्वीकृति दे दी।
युवक ने विशेष को एक बार फिर हिदायत दी—बड़े ही मासूम अन्दाज में विशेष ने स्वीकृति में गर्दन हिलाई। रश्मि ने पूछा— "आपका नाम ?"
युवक गड़बड़ा गया। यह निश्चय नहीं कर सका कि खुद को सिकन्दर बताए , जॉनी या कुछ और , बोला— “मेरा जवाब सुनकर शायद आप चौंक पड़ेंगी।"
"मतलब ?" गम्भीर , कठोर और सौम्य लहजा।
“म …..मुझे अपना नाम मालूम नहीं है।"
रश्मि की आंखों के चारों तरफ का हिस्सा सिकुड़ गया। इस बार उसके मुंह से गुर्राहट-सी निकली—"बद्तमीजी से भरे आपके इस जवाब का अर्थ ?"
अपनी विवशता पर युवक कसमसा उठा। चेहरे पर हल्की-सी झुंझलाहट के भाव उभरे , बोला— “आप यकीन कीजिए रश्मि जी , मैं कोई बद्तमीजी नहीं कर रहा हूं—बहुत विवश हूं मैं—जाने भाग्य मेरे साथ क्या खिलवाड़ करना चाहता है। यह सच्चाई है कि मैं खुद को नहीं जानता—मेरा नाम क्या है , मैं कौन हूं …क्या हूं—ऐसे किसी भी सवाल का जवाब खुद मुझे नहीं मालूम है—दुनिया का कोई भी दूसरा आदमी शायद मेरी उलझन , कसमसाहट और विवशता को नहीं समझ सकेगा—स्वयं आपने किसी ऐसे आदमी की मानसिकता की कल्पना की है , जो खुद ही अपने लिए एक पहेली हो—जो खुद ही इनवेस्टिगेशन करके यह पता लगाने की कोशिश कर रहा हो कि वह कौन है ? शायद मेरी कसमसाहट को कोई नहीं समझ सकेगा रश्मि जी , क्योंकि मैं खुद ही वह आदमी हूं।"
उलझन के असीमित भाव रश्मि के मुखड़े पर उभर आए। कुछ देर तक विचित्र-सी नजरों से युवक को देखती रही वह , फिर बोली—“मैं आपकी पहेली जैसी बात का अर्थ नहीं समझी।"
"उसके लिए शायद मुझे अपने से सम्बन्धित वे सभी बातें आपको बतानी होंगी , जितनी मुझे मालूम हैं।"
रश्मि मौन रही , अर्थ था कि वह सुनने के लिए तैयार है।
इसके बाद युवक ने उसे अपनी याददाश्त गुम होने के बारे में बता दिया—युवक ने न्यादर अली या रूबी के बारे में कुछ नहीं बताया था—बस यही कहा था कि उसकी जानकारी के मुताबिक एक एक्सीडेंट के बाद उसकी याददाश्त गुम हो गई है और अब वह पागलों की तरह यह पता लगाने की कोशिश में घूम रहा है कि एक्सीडेण्ट के पहले वह कौन था।
रश्मि के मुखड़े पर उसकी विचित्र कहानी सुनने के बाद हैरत का समुद्र-सा उमड़ पड़ा—एकदम से चाहकर भी वह कुछ नहीं कह सकी , जबकि युवक ने कहा— “इसी वजह से वीशू के ‘पापा’ कहने पर , यह उम्मीद लेकर मैं यहां आ गया कि शायद मुझे मेरा अतीत मिल
जाए।"
"आप कुछ भी हों , मगर सर्वेश नहीं हो सकते।" रश्मि ने सपाट लहजे में कहा।
"हो सकता है मगर...।"
"मगर......?”
"अगर आप बुरा न मानें तो क्या मैं पूछ सकता हूं कि क्यों—आप यह बात इतने विश्वासपूर्वक किस आधार पर कह सकती हैं कि मैं सर्वेश नहीं हूं ?"
"बता चुकी हूं कि उनकी लाश मैंने अपनी आंखों से देखी है।"
“म....मगर दो इंसानों की शक्ल इस हद तक मिलना भी तो...।"
"यह शायद कुदरत का खेल है।"
"हो सकता है , लेकिन क्या ऐसा नहीं हो सकता कि वह लाश , जिसे आप अपने पति की समझीं , दरअसल किसी अन्य की हो ?"
"क्या आप खुद को मेरा पति साबित करना चाहते हैं ?"
"प...प्लीज रश्मि जी। मेरी बातों को इस ढंग से न लीजिए—मैं तो खुद ही उलझन में हूं—मेरी विवशता को समझने की कोशिश कीजिए—खुद ही को तलाश करना पड़ रहा है मुझे—मैँ ऐसे सबूत नहीं जुटाना चाहता कि जिससे सर्वेश साबित होऊं—मैं आपसे ऐसा ठोस प्रमाण चाहता हूं जिससे साबित हो सके कि मैं सर्वेश नहीं हूं।"
"पहला प्रमाण है यह।" कहने के साथ ही वह कमरे में रखी एक डाइटिंग टेबल की तरफ बढ़ गई , दराज खोलकर उसमें से एक फोटो निकाला उसने , फोटो को उसकी तरफ उछालत्ती हुई बोली— "यह मेरे पति की लाश का फोटो है।"
युवक ने फोटो उठाकर देखा।
फोटो को देखते ही वह चौंक पड़ा , यह फोटो दाढी-मूंछ वाले किसी युवक की लाश का जरूर था , मगर लाश का चेहरा बिल्कुल स्पष्ट नजर नहीं जा रहा था , चेहरा विकृत-सा था। अत: भले ही हेयर स्टाइल सर्वेश जैसा हो , मगर यह दावा पेश नहीं किया जा सकता था कि फोटो सर्वेश की लाश ही का है—और जब यह बात युवक ने रश्मि से कहीँ तो रश्मि ने कहा—
"दूसरा सबूत आपकी पीठ पर से मिल जाएगा।"
"प …पीठ से ?"
“क्या आप कपड़े उठाकर मुझे अपनी पीठ दिखाने का कष्ट करेंगे ?"
थोड़ा हिचकने के बाद युवक ने उसके आदेश का पालन किया , पीठ को देखते ही रश्मि कुछ और ज्यादा दृढ़तापूर्वक कह उठी— “आप सर्वेश नहीं हैं।"
कपड़ों को ठीक करते हुए युवक ने उसकी तरफ घूमकर पूछा—"आपने क्या देखा ?"
"यह।" रश्मि ने दराज से एक फोटो निकालकर उसकी तरफ उछाल दिया , बोली—“आपकी पीठ पर कहीं कोई मस्सा नहीं है।"
युवक ने देखा , इस फोटो में एक युवक की पीठ थी—पीठ पर एक काफी बड़ा मस्सा बिल्कुल स्पष्ट नजर जा रहा था—हालांकि फोटो पीठ का होने के कारण सर्वेश का चेहरा स्पष्ट नहीं था , किन्तु रश्मि उसे सर्वेश का फोटो कह रही थी , सो उसे मानना ही पड़ा।
युवक उस फोटो को अभी देख ही रहा था कि रश्मि ने कहा— "अब तो आपके दिमाग से अपने सर्वेश होने का वहम निकल गया होगा ?"
"ज......जी हां।" इसके अलावा युवक और कह भी क्या सकता था ?
युवक आश्वस्त हुआ हो या न हुआ हो , परन्तु रश्मि अवश्य आश्वस्त हो गई थी। शायद उसके अपने दिमाग में भी कहीं यह विचार कांटा बनकर चुभने लगा था कि कहीं यह सर्वेश ही न हो और उसे यहां बुलाकर रश्मि ने अपने उसी कांटे को साफ किया था , बोली— “वीशू बच्चा है , यह मुझसे ज्यादा अपने पापा को प्यार करता था—शायद इसीलिए मैंने इससे कह दिया था कि इसके पापा आकाश में गए हैं—एक दिन इसके लिए ढेर सारी टॉफियां लेकर जरूर लौटेंगे और शायद उसी भुलावे और आपकी शक्ल के चक्कर में यह भरी सड़क पर आपको ‘पापा ' कहकर पुकार बैठा—मेरे इस नादान बेटे की वजह से अगर आपको कोई मानसिक दुख पहुंचा हो तो मैं क्षमा मांगती हूं।" कहते-कहते रश्मि की आवाज भर्रा गई।
उसकी आंखों में डबडबाते नीर को युवक ने स्पष्ट देखा।
उस विधवा के दिल में उठ रही किसी टीस का एहसास करके युवक को अपने दिल में एक हूक-सी उठती महसूस हुई , वह बड़ी मुश्किल से कह सका— “ न.....नहीं , ऐसी कोई बात नहीं है, रश्मि जी। ”