desiaks
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किताब के कवर पर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा था—‘रोमियो-जूलियट!’
पढ़कर विजय विचित्र ढंग से मुस्करा उठा!
शीघ्र ही उसे किताब के अन्दर से वह फोटो भी मिल गया जिससे उसने रात अलफांसे को बात करते देखा था, फोटो इर्विन का ही था— इसके बाद उसने पूरी सावधानी के साथ सारे कमरे की तलाशी ली—शेरो-शायरी की कई किताबें उसने देखीं।
कहने का मतलब यह कि वह कमरा किसी दीवाने प्रेमी का-सा ही था।
तलाशी उसने बहुत सावधानी से ली थी, क्योंकि जानता था कि हल्की-सी गड़बड़ से ही अलफांसे ताड़ जाएगा कि उसके बाद इस कमरे में कोई आया था— प्रत्येक वस्तु को वह वापस ठीक उसी ढंग से रखता था जिस ढंग में पहले रखी होती थी।
तीस मिनट की लगातार मेहनत के बावजूद उसे कहीं भी कोई ऐसी वस्तु नहीं मिल सकी, जिससे यह प्रतीत होता कि अलफांसे इश्क का नाटक करके किसी तरह की स्कीम पर काम कर रहा है।
¶¶
“वह आ गया!” विजय को दूर से देखते ही पनवाड़ी की दुकान के बाहर पड़ी पर बैंच पर बैठा हैम्ब्रीग कहता हुआ खड़ा हो गया, उसके साथ ही वे चार-पांच गुण्डे भी खड़े हो गए थे, जो बैंच पर बैठे थे। ये वे गुण्डे नहीं थे जो कि विजय के हाथ से पिटे थे, बल्कि दूसरे ही थे।
अपनी लम्बी-लम्बी बांहों को झुलाता हुआ विजय, लापरवाही से भरी चाल से पैदल ही चला आ रहा था, उसके चेहरे पर किसी परले दर्जे के खतरनाक गुण्डे जैसे भाव थे—जिस्म पर वही जीन, चमड़े की जैकेट और लाल स्कार्फ।
हैम्ब्रीग के चेहरे पर जहां उसे देखकर हल्की-सी सफेदी उभर आई थी, वहीं उसके साथी अजीब दृष्टि से इसी तरफ आते हुए विजय को देख रहे थे।
विजय उनके समीप पहुंचा, परन्तु रुका नहीं बल्कि बीच में से गुजरता हुआ पनवाड़ी की दुकान पर पहुंच गया। आज पनवाड़ी ने उसके पहुंचने से पहले ही सिगरेट व माचिस काउण्टर पर रख दी।
विजय ने कल की तरह टसन में सिगरेट जलाई, परन्तु आज वह सिगरेट का पेमेंट किए बिना ही घूम गया तथा अपनी तरफ देख रहे हैम्ब्रीग और उसके साथियों की तरफ बढ़ा। पनवाड़ी ने पेमेंट के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा।
विजय ने हैम्ब्रीग के नजदीक जाकर पूछा—“कहां है बोगान?”
“बोगान दादा से तुम्हें ये मिला सकते हैं!” हैम्ब्रीग ने उनमें से सबसे लम्बे गुण्डे की तरफ इशारा किया।
विजय उसकी तरफ घूमा, उससे आंखें मिलाकर बोला—“तुम ही मिला दो!”
“क्या नाम है तुम्हारा?” लम्बे गुण्डे ने पूछा।
विजय की आंखों में सख्त भाव उभर आए, बोला—“मुझे हैमेस्टेड कहते हैं!”
“दादा से क्यों मिलना चाहते हो?”
“यह मैं सिर्फ उसी को बताऊंगा।”
“मैं उनका दायां हाथ हूं!”
“मैं किसी दाएं-बाएं हाथ से बात नहीं किया करता!”
“उनसे मिलने से पहले इच्छुक व्यक्ति को मुझे कारण बताना ही होता है!”
“अगर न बताए तो?”
“नहीं मिल सकता!”
“उसकी मर्जी!” कहने के साथ ही विजय ने लापरवाही के साथ कन्धे उचकाए और आगे बढ़ गया, दो या तीन कदम चलने के बाद स्वयं ही ठिठका और बोला—“उससे कहना कि मुझसे मिलकर उसे कम-से-कम पांच हजार पाउण्ड का फायदा होने वाला था!”
“अच्छा रुको!” लम्बे गुण्डे ने उसके आगे बढ़ने से पहले ही कहा—
“मेरे पीछे आओ!”
विजय के होंठों पर मुस्कान दौड़ गई, वह काफी पहले जानता था कि यही होने वाला है—लम्बे गुण्डे के नेतृत्व में वह दल एक तरफ को बढ़ गया, हैम्ब्रीग भी उनके साथ ही था।
सिगरेट में कश लगाता हुआ विजय उनके पीछे हो लिया।
कई संकरी गलियों में से गुजारने के बाद वे उसे एक मकान में ले गए—मकान तिमंजिला और काफी पुराने जमाने का मालूम पड़ता था, मुख्य द्वार काफी भारी किवाड़ों का बना हुआ था।
सीढ़ियां चढ़कर वे दुमंजिले पर पहुंचे।
एक कमरे में दाखिल होते ही विजय की नजर उस गोरे-चिट्टे, लम्बे, बलिष्ठ और कद्दावर व्यक्ति पर पड़ी जो कमरे के बोचोबीच एक मेज के पीछे कुर्सी पर बैठा था। मेज पर एक बोतल रखी थी जिसमें अब केवल एक पाव शराब बाकी बची थी।
विजय ने अनुमान लगाया कि वही बोगान है—उसका चेहरा बहुत चौड़ा था, आंखें भिंची हुई-सी किन्तु लाल-सुर्ख, घनी काली—कटारीदार मूंछें थीं उसकी!
विजय को देखते ही उसने बोतल मुंह से लगाई और फिर जब हटाई तो बिल्कुल खाली हो चुकी थी, खाली बोतल को मेज पर पटकने के साथ ही उसने लम्बे गुण्डे को कुछ इशारा किया।
बाहरी रूप से इस वक्त विजय भले ही लापरवाह नजर आ रहा हो, किन्तु असल में वह पूरी तरह सतर्क था, दोनों कलाइयों को उसने कुछ ऐसे अन्दाज में झटका जैसे स्वयं को बोगान और उसके साथियों से निपटने के लिए तैयार कर रहा हो! बोगान का इशारा होते ही लम्बे गुण्डे ने कमरे का दरवाजा बन्द कर लिया।
हैम्ब्रीग सहित सारे गुण्डे विजय के चारों तरफ बिखर गए।
कुर्सी से उठते बोगान ने पूछा—“तो तुम्हारा नाम हैमेस्टेड है?”
“तुम्हें कोई शक है?”
विजय का यह अक्खड़ जवाब सुनकर बोगान का चेहरा एकदम कठोर हो गया, बहुत ही खूंखार दृष्टि से उसने विजय को घूरा और बोला—“क्यों मिलना चाहते थे?”
“यह मैं केवल बोगान को ही बताऊंगा!”
“मैं ही बोगान हूं बोला!”
“त...तुम?” विजय उसकी खिल्ली उड़ाने वाले भाव से हंसकर बोला—“क्या तुम मुझे इतना मूर्ख समझते हो कि तुम्हारे कहने पर मैं यकीन कर लूंगा?”
“क्या मतलब?”
“मैं तुम जैसे चमचों से बात नहीं करता, अगर मिला सकते हो तो मुझे बोगान से मिलाओ!”
“बको मत!” बोगान दहाड़ उठा—“मेरा ही नाम बोगान है!”
“मैं जानता हूं कि तुम बोगान नहीं हो!”
बोगान कसमसा उठा, दांत पीसे उसने—मुट्ठियां कुछ इस कदर कस गईं जैसे अपने गुस्से को दबाने की भरपूर कोशिश कर रहा हो, बोला—“तुम कैसे कह सकते हो कि मैं बोगान नहीं हूँ!”
“बोगान को मैं अच्छी तरह जानता हूं!”
“कहां मिले थे बोगान से?”
“फ्रांस में, आज से चार साल पहले—मिले नहीं थे, बल्कि साथ-साथ रहे थे, अपनी और बोगान की दांत काटी रोटी रही है, खाना मैं खाता था तो पानी बोगान पीता था और अगर खाना बोगान खाता था तो पानी मैं पीता था!”
“म...मैं कभी फ्रांस नहीं गया—और न ही तुम्हें जानता हूं!”
“तभी तो कहता हूं कि तुम बोगान नहीं हो।”
“बोगान मैं ही हूं बेवकूफ!” इस बार गुस्से की अधिकता के कारण बोगान दहाड़ उठा।
विजय ने बड़े आराम से कहा—“तुम्हारे चीखने से मैं तुम्हें बोगान नहीं मान लूंगा!”
“त...तुम—हरामजादे—हमसे जुबान लड़ाते हो।” बोगान अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाया और दहाड़ उठा—“मुझे यह कोई पुलिस का कुत्ता लगता है, यहीं खत्म कर दे इसे!”
आदेश होते ही गुण्डे चारों तरफ से उस पर झपट पड़े—मगर विजय जानता था कि जो वह कर रहा है, उसका अन्त यही होगा और इसीलिए वह स्वयं को इस बन्द कमरे में उनसे टकराने के लिए तैयार कर चुका था।
इधर वे सब विजय पर झपटे और विजय उनसे क्षण-भर पहले ही बोगान पर!
बोगान ने शायद ऐसी कल्पना ख्वाब मैं भी नहीं की थी, इसीलिए वह एक डकार जैसी लम्बी चीख के साथ लड़खड़ाकर मेज से उलझा और धड़ाम् से कमरे के फर्श पर जा गिरा—बोगान की नाक से खून का फव्वारा–सा फूट पड़ा था, क्योंकि पहले वार के रूप में विजय ने अपने सिर की टक्कर उसकी नाक पर ही मारी थी।
क्लिक-क्लिक की आवाज के साथ कई गुण्डों ने चाकू खोल लिए। बिजली की-सी फुर्ती से विजय उनकी तरफ घूमा और इस घूमने के बीच ही वह जीन की पेटी के स्थान पर बंधी मोटर साइकिल की चेन खोलकर हाथ में ले चुका था।
लम्बी चेन का एक सिरा उसके हाथ में था और दूसरा हवा में झूल रहा था, उसके हाथ में चेन देखकर एक पल के लिए सभी ठिठके, जबकि विजय अपने चारों तरफ देख सकता था।
जैसे उसके जिस्म का हर हिस्सा एक आंख हो।
पीछे से बोगान ने जैसे ही उस पर झपटना चाहा, विजय ने घूमकर उसके जिस्म पर चेन का वार किया, चेन ने एक लम्बी रक्तरेखा उसके जिस्म पर बना दी और वह चीखकर पुनः उलट गया। उसके बाद वह कमरा जैसे जबरदस्त रणस्थल बन गया।
गुण्डे रह-रहकर हाथ में चाकू लिए उस पर झपट रहे थे, जबकि बिजली की-सी गति से खुद को बचाता हुआ विजय चेन से उन पर वार कर रहा था, रह-रहकर बोगान भी उसकी चेन के दायरे में आ जाता।
यह युद्ध पन्द्रह मिनट चला और इन पन्द्रह मिनटों में चेन की मार से विजय उन सभी को बुरी तरह जख्मी कर चुका था, ये बात दुसरी है कि इस बीच एक गुण्डे के वार पर, उछटता हुआ हल्का-सा चाकू उसकी बांह पर भी लगा था और वहां से खून बह रहा था।
विजय तभी रुका जब उसने देख लिया कि बोगान सहित अब उनमें से किसी में भी लड़ने की ताकत नहीं रही है, चेन उसने वापस अपने पेट पर बांधी—बोगान की कमीज फाड़कर एक पट्टी बनाई तथा दांतों की सहायता से अपने जख्म पर पट्टी बांधने लगा!
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पढ़कर विजय विचित्र ढंग से मुस्करा उठा!
शीघ्र ही उसे किताब के अन्दर से वह फोटो भी मिल गया जिससे उसने रात अलफांसे को बात करते देखा था, फोटो इर्विन का ही था— इसके बाद उसने पूरी सावधानी के साथ सारे कमरे की तलाशी ली—शेरो-शायरी की कई किताबें उसने देखीं।
कहने का मतलब यह कि वह कमरा किसी दीवाने प्रेमी का-सा ही था।
तलाशी उसने बहुत सावधानी से ली थी, क्योंकि जानता था कि हल्की-सी गड़बड़ से ही अलफांसे ताड़ जाएगा कि उसके बाद इस कमरे में कोई आया था— प्रत्येक वस्तु को वह वापस ठीक उसी ढंग से रखता था जिस ढंग में पहले रखी होती थी।
तीस मिनट की लगातार मेहनत के बावजूद उसे कहीं भी कोई ऐसी वस्तु नहीं मिल सकी, जिससे यह प्रतीत होता कि अलफांसे इश्क का नाटक करके किसी तरह की स्कीम पर काम कर रहा है।
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“वह आ गया!” विजय को दूर से देखते ही पनवाड़ी की दुकान के बाहर पड़ी पर बैंच पर बैठा हैम्ब्रीग कहता हुआ खड़ा हो गया, उसके साथ ही वे चार-पांच गुण्डे भी खड़े हो गए थे, जो बैंच पर बैठे थे। ये वे गुण्डे नहीं थे जो कि विजय के हाथ से पिटे थे, बल्कि दूसरे ही थे।
अपनी लम्बी-लम्बी बांहों को झुलाता हुआ विजय, लापरवाही से भरी चाल से पैदल ही चला आ रहा था, उसके चेहरे पर किसी परले दर्जे के खतरनाक गुण्डे जैसे भाव थे—जिस्म पर वही जीन, चमड़े की जैकेट और लाल स्कार्फ।
हैम्ब्रीग के चेहरे पर जहां उसे देखकर हल्की-सी सफेदी उभर आई थी, वहीं उसके साथी अजीब दृष्टि से इसी तरफ आते हुए विजय को देख रहे थे।
विजय उनके समीप पहुंचा, परन्तु रुका नहीं बल्कि बीच में से गुजरता हुआ पनवाड़ी की दुकान पर पहुंच गया। आज पनवाड़ी ने उसके पहुंचने से पहले ही सिगरेट व माचिस काउण्टर पर रख दी।
विजय ने कल की तरह टसन में सिगरेट जलाई, परन्तु आज वह सिगरेट का पेमेंट किए बिना ही घूम गया तथा अपनी तरफ देख रहे हैम्ब्रीग और उसके साथियों की तरफ बढ़ा। पनवाड़ी ने पेमेंट के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा।
विजय ने हैम्ब्रीग के नजदीक जाकर पूछा—“कहां है बोगान?”
“बोगान दादा से तुम्हें ये मिला सकते हैं!” हैम्ब्रीग ने उनमें से सबसे लम्बे गुण्डे की तरफ इशारा किया।
विजय उसकी तरफ घूमा, उससे आंखें मिलाकर बोला—“तुम ही मिला दो!”
“क्या नाम है तुम्हारा?” लम्बे गुण्डे ने पूछा।
विजय की आंखों में सख्त भाव उभर आए, बोला—“मुझे हैमेस्टेड कहते हैं!”
“दादा से क्यों मिलना चाहते हो?”
“यह मैं सिर्फ उसी को बताऊंगा।”
“मैं उनका दायां हाथ हूं!”
“मैं किसी दाएं-बाएं हाथ से बात नहीं किया करता!”
“उनसे मिलने से पहले इच्छुक व्यक्ति को मुझे कारण बताना ही होता है!”
“अगर न बताए तो?”
“नहीं मिल सकता!”
“उसकी मर्जी!” कहने के साथ ही विजय ने लापरवाही के साथ कन्धे उचकाए और आगे बढ़ गया, दो या तीन कदम चलने के बाद स्वयं ही ठिठका और बोला—“उससे कहना कि मुझसे मिलकर उसे कम-से-कम पांच हजार पाउण्ड का फायदा होने वाला था!”
“अच्छा रुको!” लम्बे गुण्डे ने उसके आगे बढ़ने से पहले ही कहा—
“मेरे पीछे आओ!”
विजय के होंठों पर मुस्कान दौड़ गई, वह काफी पहले जानता था कि यही होने वाला है—लम्बे गुण्डे के नेतृत्व में वह दल एक तरफ को बढ़ गया, हैम्ब्रीग भी उनके साथ ही था।
सिगरेट में कश लगाता हुआ विजय उनके पीछे हो लिया।
कई संकरी गलियों में से गुजारने के बाद वे उसे एक मकान में ले गए—मकान तिमंजिला और काफी पुराने जमाने का मालूम पड़ता था, मुख्य द्वार काफी भारी किवाड़ों का बना हुआ था।
सीढ़ियां चढ़कर वे दुमंजिले पर पहुंचे।
एक कमरे में दाखिल होते ही विजय की नजर उस गोरे-चिट्टे, लम्बे, बलिष्ठ और कद्दावर व्यक्ति पर पड़ी जो कमरे के बोचोबीच एक मेज के पीछे कुर्सी पर बैठा था। मेज पर एक बोतल रखी थी जिसमें अब केवल एक पाव शराब बाकी बची थी।
विजय ने अनुमान लगाया कि वही बोगान है—उसका चेहरा बहुत चौड़ा था, आंखें भिंची हुई-सी किन्तु लाल-सुर्ख, घनी काली—कटारीदार मूंछें थीं उसकी!
विजय को देखते ही उसने बोतल मुंह से लगाई और फिर जब हटाई तो बिल्कुल खाली हो चुकी थी, खाली बोतल को मेज पर पटकने के साथ ही उसने लम्बे गुण्डे को कुछ इशारा किया।
बाहरी रूप से इस वक्त विजय भले ही लापरवाह नजर आ रहा हो, किन्तु असल में वह पूरी तरह सतर्क था, दोनों कलाइयों को उसने कुछ ऐसे अन्दाज में झटका जैसे स्वयं को बोगान और उसके साथियों से निपटने के लिए तैयार कर रहा हो! बोगान का इशारा होते ही लम्बे गुण्डे ने कमरे का दरवाजा बन्द कर लिया।
हैम्ब्रीग सहित सारे गुण्डे विजय के चारों तरफ बिखर गए।
कुर्सी से उठते बोगान ने पूछा—“तो तुम्हारा नाम हैमेस्टेड है?”
“तुम्हें कोई शक है?”
विजय का यह अक्खड़ जवाब सुनकर बोगान का चेहरा एकदम कठोर हो गया, बहुत ही खूंखार दृष्टि से उसने विजय को घूरा और बोला—“क्यों मिलना चाहते थे?”
“यह मैं केवल बोगान को ही बताऊंगा!”
“मैं ही बोगान हूं बोला!”
“त...तुम?” विजय उसकी खिल्ली उड़ाने वाले भाव से हंसकर बोला—“क्या तुम मुझे इतना मूर्ख समझते हो कि तुम्हारे कहने पर मैं यकीन कर लूंगा?”
“क्या मतलब?”
“मैं तुम जैसे चमचों से बात नहीं करता, अगर मिला सकते हो तो मुझे बोगान से मिलाओ!”
“बको मत!” बोगान दहाड़ उठा—“मेरा ही नाम बोगान है!”
“मैं जानता हूं कि तुम बोगान नहीं हो!”
बोगान कसमसा उठा, दांत पीसे उसने—मुट्ठियां कुछ इस कदर कस गईं जैसे अपने गुस्से को दबाने की भरपूर कोशिश कर रहा हो, बोला—“तुम कैसे कह सकते हो कि मैं बोगान नहीं हूँ!”
“बोगान को मैं अच्छी तरह जानता हूं!”
“कहां मिले थे बोगान से?”
“फ्रांस में, आज से चार साल पहले—मिले नहीं थे, बल्कि साथ-साथ रहे थे, अपनी और बोगान की दांत काटी रोटी रही है, खाना मैं खाता था तो पानी बोगान पीता था और अगर खाना बोगान खाता था तो पानी मैं पीता था!”
“म...मैं कभी फ्रांस नहीं गया—और न ही तुम्हें जानता हूं!”
“तभी तो कहता हूं कि तुम बोगान नहीं हो।”
“बोगान मैं ही हूं बेवकूफ!” इस बार गुस्से की अधिकता के कारण बोगान दहाड़ उठा।
विजय ने बड़े आराम से कहा—“तुम्हारे चीखने से मैं तुम्हें बोगान नहीं मान लूंगा!”
“त...तुम—हरामजादे—हमसे जुबान लड़ाते हो।” बोगान अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाया और दहाड़ उठा—“मुझे यह कोई पुलिस का कुत्ता लगता है, यहीं खत्म कर दे इसे!”
आदेश होते ही गुण्डे चारों तरफ से उस पर झपट पड़े—मगर विजय जानता था कि जो वह कर रहा है, उसका अन्त यही होगा और इसीलिए वह स्वयं को इस बन्द कमरे में उनसे टकराने के लिए तैयार कर चुका था।
इधर वे सब विजय पर झपटे और विजय उनसे क्षण-भर पहले ही बोगान पर!
बोगान ने शायद ऐसी कल्पना ख्वाब मैं भी नहीं की थी, इसीलिए वह एक डकार जैसी लम्बी चीख के साथ लड़खड़ाकर मेज से उलझा और धड़ाम् से कमरे के फर्श पर जा गिरा—बोगान की नाक से खून का फव्वारा–सा फूट पड़ा था, क्योंकि पहले वार के रूप में विजय ने अपने सिर की टक्कर उसकी नाक पर ही मारी थी।
क्लिक-क्लिक की आवाज के साथ कई गुण्डों ने चाकू खोल लिए। बिजली की-सी फुर्ती से विजय उनकी तरफ घूमा और इस घूमने के बीच ही वह जीन की पेटी के स्थान पर बंधी मोटर साइकिल की चेन खोलकर हाथ में ले चुका था।
लम्बी चेन का एक सिरा उसके हाथ में था और दूसरा हवा में झूल रहा था, उसके हाथ में चेन देखकर एक पल के लिए सभी ठिठके, जबकि विजय अपने चारों तरफ देख सकता था।
जैसे उसके जिस्म का हर हिस्सा एक आंख हो।
पीछे से बोगान ने जैसे ही उस पर झपटना चाहा, विजय ने घूमकर उसके जिस्म पर चेन का वार किया, चेन ने एक लम्बी रक्तरेखा उसके जिस्म पर बना दी और वह चीखकर पुनः उलट गया। उसके बाद वह कमरा जैसे जबरदस्त रणस्थल बन गया।
गुण्डे रह-रहकर हाथ में चाकू लिए उस पर झपट रहे थे, जबकि बिजली की-सी गति से खुद को बचाता हुआ विजय चेन से उन पर वार कर रहा था, रह-रहकर बोगान भी उसकी चेन के दायरे में आ जाता।
यह युद्ध पन्द्रह मिनट चला और इन पन्द्रह मिनटों में चेन की मार से विजय उन सभी को बुरी तरह जख्मी कर चुका था, ये बात दुसरी है कि इस बीच एक गुण्डे के वार पर, उछटता हुआ हल्का-सा चाकू उसकी बांह पर भी लगा था और वहां से खून बह रहा था।
विजय तभी रुका जब उसने देख लिया कि बोगान सहित अब उनमें से किसी में भी लड़ने की ताकत नहीं रही है, चेन उसने वापस अपने पेट पर बांधी—बोगान की कमीज फाड़कर एक पट्टी बनाई तथा दांतों की सहायता से अपने जख्म पर पट्टी बांधने लगा!
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