desiaks
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पिछली कड़ी में आपलोगों ने पढ़ा कि एक अर्धविकसित बुद्धि वाला रामलाल, अपने जीवन में किस तरह अपने छोटे भाई की पत्नी सरोज, पड़ोसन रबिया और उसकी बेटी शहला के साथ शारीरिक संबंध स्थापित कर स्त्री संसर्ग के आनंद लुत्फ उठा रहा था। यह सब उसने हम सबके बीच, अर्थात, रश्मि, हरिया, करीम और मेरे बीच, अपने शब्दों में बयां किया, जिसे मैंने अपनी शब्दावली से सजा कर आपलोगों के सम्मुख पेश किया। उसके उत्तेजक संस्मरण को सुनने के दौरान हम सभी कामाग्नि में झुलसते अपनी कामपिपाशा भी शांत करते रहे। हरिया, करीम और रामलाल, तीन कामुक मानवरूप पशुओं नें मेरी और रश्मि के जिस्म की ऐसी की तैसी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। पूरी तरह निचोड़ कर रख दिया था कमीनों ने, लेकिन हम दोनों ने जिस हौसले का परिचय उन्हें दिया, दंग रह गये वे। उनकी हर वहशियाना हरकतों से आरंभिक कष्ट के पश्चात हमें जो सुखद अनुभव हुआ वह शब्दों में बयां करना शायद मुश्किल होगा। अटपटा सा लगनेवाला, असंभव से लगनेवाले उस सामूहिक कामक्रीड़ा का दौर गुजरने के पश्चात, अपने शरीर की दुर्दशा पर दुखी होने की बजाए, हम दोनों मुदित मन, अपने शरीर के रोम रोम में मीठी मीठी पीड़ा का अहसास कर रही थीं और उन तीनों नारी तन के भूखे नरपिशाचों का तो कहना ही क्या, उनकी हालत उन बिल्लियों की मानिंद थी जो दूध पी कर अपने होंठ चाटते हैं। सामाजिक दृष्टि से इस घृणित कुकृत्य का समापन होते होते संध्या सात बज गया था। रश्मि, लुटी पिटी, नुची चुदी, थकी हारी, शरीर का सारा बल एकत्रित कर, न चाहते हुए भी लड़खड़ाते कदमों से हमारे यहां से रुखसत होने को वाध्य थी। गयी वह, क्योंकि दूसरे दिन ही उसे कोलकाता लौटना था। कहां तो वह अपने भाई के घर आई थी भाई भाभी से मिलने के लिए और किस्मत नें देखो कहां ला पटका हमारे बीच नुचने चुदने को। शायद तमन्ना थी कि रांची आ कर ,अपने भाई के अनैतिक रिश्ते में कुछ रंगीन लम्हें बिता कर शारीरिक भूख की तृप्ति प्राप्त कर के अपनी तलाकशुदा जिंदगी के मरूस्थल की तपिश मिटा ले। लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं, क्षितिज को मिला कर कुल चार पुरुषों की अंकशायिनी बन कर पूरी तरह तृप्त, कभी न विस्मृत कर सकने वाले यादगार लम्हों को मनोमस्तिष्क में संजो कर वापस हो रही थी क्योंकि दूसरे दिन उसे कोलकाता लौटना था। उसके जाने के पश्चात मैंने अपने आप को संभाला और हम सब अपने अपने कार्य में व्यस्त हो गये।
रामलाल द्वारा शहला के कौमार्य भंग होने की घटना नें यह तो साबित कर ही दिया कि शारीरिक वासना की आग होती ही है इतनी कमीनी कि एक मां अपने अनैतिक शारीरिक संबंध को गुप्त रखने हेतु अपनी कोखजाई पुत्री को भी एक कामपिपाशु पुरुष के सम्मुख परोसने में भी बाज नहीं आई। अब इसे समाज में अपनी इज्जत जाने का भय समझें या कुछ और, रबिया नें जो कार्य किया, उसके परिणाम स्वरूप उसकी नादान बेटी शहला को भी षुरुष संसर्ग का चस्का तो लग ही गया। रामलाल बेचारा तो ठहरा अल्पबुद्धि, संभोग के मजे के आगे रिश्ते नाते और भावनाओं का मोल भला क्या समझता। हमारे तन को भोगने का आनंद लेने से पहले ही ऊपरवाले नें उसे तीन तीन नारियों को उपलब्ध करा दिया था। अब हमें मिला कर हो गयीं पांच। वाह रे ऊपरवाले, कहां तो कुछ बदकिस्मत पुरुष एक औरत की चूत के लिए मारे मारे फिरते हैंं और कहां एक अल्पबुद्धि कामक्षुधा के मारे मनुष्य को पांच पांच नारियां बैठे बिठाए मिल गयीं खुशी खुशी चुदवाने के लिए। इसे कहते हैं किस्मत।
रामलाल द्वारा शहला के कौमार्य भंग होने की घटना नें यह तो साबित कर ही दिया कि शारीरिक वासना की आग होती ही है इतनी कमीनी कि एक मां अपने अनैतिक शारीरिक संबंध को गुप्त रखने हेतु अपनी कोखजाई पुत्री को भी एक कामपिपाशु पुरुष के सम्मुख परोसने में भी बाज नहीं आई। अब इसे समाज में अपनी इज्जत जाने का भय समझें या कुछ और, रबिया नें जो कार्य किया, उसके परिणाम स्वरूप उसकी नादान बेटी शहला को भी षुरुष संसर्ग का चस्का तो लग ही गया। रामलाल बेचारा तो ठहरा अल्पबुद्धि, संभोग के मजे के आगे रिश्ते नाते और भावनाओं का मोल भला क्या समझता। हमारे तन को भोगने का आनंद लेने से पहले ही ऊपरवाले नें उसे तीन तीन नारियों को उपलब्ध करा दिया था। अब हमें मिला कर हो गयीं पांच। वाह रे ऊपरवाले, कहां तो कुछ बदकिस्मत पुरुष एक औरत की चूत के लिए मारे मारे फिरते हैंं और कहां एक अल्पबुद्धि कामक्षुधा के मारे मनुष्य को पांच पांच नारियां बैठे बिठाए मिल गयीं खुशी खुशी चुदवाने के लिए। इसे कहते हैं किस्मत।