Gandi Kahani (इंसान या भूखे भेड़िए ) - Page 19 - SexBaba
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Gandi Kahani (इंसान या भूखे भेड़िए )

नताली ने लिंग को अपने हाथों से पकड़ा.... उसे अपनी योनि के द्वार पर रखी और धीरे-धीरे उसके उपर बैठ गयी.... बैठ'ते वक़्त उसके पाँव हल्के कांप गये और उसने अपने हाथों से अपने स्तनों को दबा दिया....

बाल बड़ी तेज़ी से लहरा रहे थे.... थप-थप टकराने की आवाज़ जोरों से आ रही थी.... स्तन बड़ी तेज़ी से उपर-नीचे हो रहे थे.... हल्की मादक आवाज़ के साथ नताली, लिंग के उपर कूद रही थी और पार्थ नीचे से अपनी कमर ज़ोर-ज़ोर से हिला रहा था...

सेक्स करते हुए दोनो के बदन पसीने-पसीने हो गये थे.... अचानक हे धक्कों की स्पीड ने और ज़ोर पकड़ लिया..... नताली बड़ी तेज़ी से लिंग के उपर से हटी और लिंग को अपने हाथों मे ले कर ज़ोर-ज़ोर से उपर नीचे करने लगी....

कुछ ही देर मे पार्थ का बदन अकड़ गया, कमर बड़े ज़ोर से हवा मे हुआ ... और लिंग से कम बाहर आने लगा......

"पार्थ, तुम तो जल्दी ढेर गये, तुम्हरा हथियार तो मुरझा गया.... अभी तो पूरे अरमान बाकी हैं... और तुम ने तो बीच मे ही साथ छोड़ दिए"....

पार्थ..... बस ऐसे ही थोड़ा उसे प्यार करो... अभी तो रात जवान है नताली तुम्हे मायूस नही करेगा ये...

नताली हस्ती हुई उठी... तौलिए से उसके लिंग को सॉफ की और वापस उसे अपने मुँह मे ले कर ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगी..... उत्तेजना एक बार फिर धीरे-धीरे जागने लगी.... लिंग वापस के पूरा तन कर खड़ा हो गया...

इस बार पार्थ ने नताली को बिस्तर पर लिटाया... उसके दोनो पाँव को अपने कंधो के दोनो ओर डाल कर, योनि के उपर लिंग को रब करने लगा.....

"उफफफफ्फ़... पार्थ .. क्या कर रहे हो... वहाँ पहले से ही आग लगी है"...

पार्थ ने भी बिना कोई देर किए जोरदार धक्का मारा और पूरा लिंग योनि के अंदर उतार दिया... तेज झटकों के साथ ही नताली का पूरा बदन हिल गया और स्तन उपर नीचे होना शुरू हो गये.... एक बार फिर वासना अपने पूरे चरम मे थी और मज़े के सातवे आसमान पर दोनो की कमर बहुत तेज़ी से हिल रही थी.....

सेक्स के आनंद मई बेला मे दोनो ने जम कर मज़े उठाए... और फिर एक दूसरे के उपर ढेर हो गये.....

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रात का वक़्त, नताली के घर....

मानस और ड्रस्टी दोनो घर मे अकेले थे. दोनो एक दूसरे के पास बैठे... महॉल भी कुछ अजीब सा था, यूँ तो जब बाहर मिलते तो कहने को 100 बातें होती थी, पर जब आज यूँ अकेले मे मुलाकात हुई तो मानो जैसे शब्द ही ना मिल रहे हो बात करने के लिए..

दोनो खामोश बैठ कर सामने टीवी देख रहे थे, पर मन के अंदर काफ़ी कतुहल भरा महॉल था... एक घंटे करीब, दोनो बिना कुछ कहे एक दूसरे के पास बैठे रहे... अंत मे मानस उठा और कहने लगा.... "ड्रस्टी मैं जा रहा हूँ कल मिलता हूँ"...

ड्रस्टी का दिल जैसे बेचैन हो गया हो, वो मानस को आज कहीं नही जाने देना चाहती थी. लेकिन उठ कर ये बात कह दे, इतनी हिम्मत नही जुटा पा रही थी.. जब से नताली ने "यादगार शाम" की बात कही थी, ड्रस्टी को रह-रह कर उसे वो बात याद आ रही थी और उसके मन की तरंगो को छेड़ रही थी...

इसी बीच मानस अपने धीमे कदमों के साथ गेट तक पहुँच चुका था.... ड्रस्टी की हिम्मत नही हो पा रही थी कि उसे रोक ले, इसी बीच दबी सी आवाज़ मे ड्रस्टी के मुँह से निकल गया... "मानस"...

मानस को अहसास हुआ जैसे ड्रस्टी उसे पिछे से आवाज़ दे रही हो. अपनी जगह रुक कर वो पिछे मुड़ा... ड्रस्टी खड़ी हो कर बस एक टक उसे ही देख रही थी.... मानस ने वापस ड्रस्टी की ओर कदम बढ़ा दिए... पास आ कर धीमे से पूछा .... "क्या हुआ"...

यूँ तो सुलगते अरमान मानस के दिल मे भी थे, पर अपनी भावनाओ को काबू किए वो चुप-चाप जा रहा था. उसे भी शायद पता था कि आज यदि वो ड्रस्टी के साथ रहा तो कहीं कोई नादानी ना हो जाए... पर खामोश खड़ी ड्रस्टी का वो मासूम चेहरा.... "आहह, भला क्यों ना प्यार आए"....

ड्रस्टी, अपने काँपते होतों से बड़ी धीमी आवाज़ मे कही.... "कुछ नही"...

मानस, उसके सिर पर हाथ फेरते हुए, बारे प्यार से कहा.... "तुम बहुत प्यारी लग रही हो ड्रस्टी". ड्रस्टी, मानस की इस बात पर बिल्कुल खामोश हो गयी. वो ऐसे पलकें झुका कर अपनी नज़रें उपर की जैसे दिल के अरमान आखों से बयान कर रही हो.

पर उसके मन मे झिझक थी और आगे बढ़ने के लिए इनकार था. मानस से अपना मुँह फेर कर ड्रस्टी पिछे मूड गयी और दो कदम आगे बढ़ गयी... मानस एक कदम आगे बढ़ कर ड्रस्टी के कलाई को थाम लिया....

सिर्फ़ कलाई ही पकड़ा था, और ऐसा लगा जैसे ड्रस्टी के दिल की धड़कने तेज हो कर बाहर आ जाएगी. आगे क्या होना है ये बात सोच कर ही उसके बदन मे अजीब सी सिहरन पैदा हो रही थी. मानस का हर छोटी से छोटी बात भी उसे एक मादक अहसास दिला रही थी.

वही हाल मानस का भी था. वो भी प्यार की कामुकता मे धीरे-धीरे डूब रहा था. कलाई को थाम उसने झटके से ड्रस्टी को अपने ओर खींच. ड्रस्टी के होश इस कदर उड़े कि वो सीधे सीने से जा कर टकराई. मारे शर्म के उसने अपने सीने के उपर अपना हाथ मोड़ लिया, सीने से लग गयी मानस के.

एक दूसरे के सीने से लगे दोनो अजीब सी खामोशी मे खो गये. एक एहस्सास एक दूसरे के होने का. मानस उसकी पीठ सहलाता उसे अपने बाहों मे भर लिया. इस कदर बदन टूट रहा था ड्रस्टी का, कि वो बाहों मे आकर बस उस एहस्सास मे डूब कर चूर हो गयी. पीठ पर हाथ फेरते-फेरते ना जाने कब मानस के हाथ खुले गले के अंदर नंगी पीठ पर चलने लगा.

सिसकती साँसे अंदर खींची, होंठ मानो सुख रहे हों और होंठो से मिलने को बेताब हो, पर अंदर की लज्जा ड्रस्टी को आगे नही बढ़ने दे रही थी. अंजाने मे ही ड्रस्टी ने अपना चेहरा उपर कर के मानस को देखने लगी. नज़रों से नज़र मिलते ही जैसे नज़रे ठहर सी गयो हो, दिमाग़ सुन्न सा पड़ गया हो.

चेहरा करीब और करीब और करीब होता चला गया और दोनो एक दूसरे के होंठो को चूमने लगे. काँपते हुए बिल्कुल नरम होंठ मानस के होंठो के बीच थी. साँसे गरम हो कर तेज होने लगी, बदन मे मादक फुहार रेंगने लगी और ड्रस्टी का बदन ढीला पड़ने लगा. दो सीने के बीच जो हाथ अटका था वो खुद-व-खुद झूल कर नीचे आ गया.

और मानस बड़े प्यार से, धीमे से होंठ को चूमते हुए इस कदर अपने होंठ बाहर कर रहा था कि उसके होंठ से फस कर ड्रस्टी के होंठ भी आहिस्ते खिंचे चले आ रहे थे. ड्रस्टी की साँसे पूरी बेकाबू हो चुकी थी, तेज-तेज साँसे लेती वो ड्रस्टी के बालों पर हाथ फेर रही थी.

मानस ने ड्रस्टी की कमर मे हाथ डाल कर उसे अपने गोद मे उठा लिया. होंठ से होंठ को चूमते उसे बारे प्यार से बिस्तर पर लिटा दिया और खुद उसके पास करवट लेट कर उसके चेहरे को देखने लगा.

ड्रस्टी बिस्तर पर लेटी आखें मूंद तेज-तेज साँसे ले रही थी. उसका योबन इस कदर सीने की कसावट को दिखा रहा था कि मानो आज ये योबन मिटने को तैयार हो.

बड़े प्यार से मानस, ड्रस्टी के चेहरे पर हाथ फेरता, धीरे-धीरे हाथ को गर्दन तक ले आया ... "ओह्ह्ह्ह... कितनी खूबसूरत हो तुम ड्रस्टी, बिल्कुल किसी मासूम शहज़ादी जैसे". आवाज़ जैसे ही कानो मे गयी, ड्रस्टी मारे शर्म के पानी पानी हो गयी, और उल्टी लेट कर तकिये मे अपना मुँह छिपा लिया.

मानस कुछ देर तक उसे देखता रहा, फिर आहिस्ते अपना चेहरा पीछे से सूट के खुले हिस्से की ओर बढ़ा दिया. कंधों के बीचो बीच उस खुले हिस्से पर, अपने होंठ लगा कर प्यार भरे चुंबन का एक स्पर्श दिया.

होंठो का वो पहला स्पर्श दिया पीठ पर... कंधे छटपटा कर ऐसे टाइट हुए कि उनकी हड्डियाँ दिखने लगी... पीठ के उस खुले हिस्से पर चूमते हुए, मानस अपने हाथ उसकी पीठ पर फिराने लगा... नया योबन उसपर से अपने अनछुए बदन पर मानस के हाथ का स्पर्श... बदन तो मानो ऐसी कसमसाहट से गुजर रहा था कि, जैसे वो चूर चूर हो गयी हो.
 
पूरा बदन तब मचल गया, जब मानस ने सूट का किनारा पकड़ कर उसे कमर से उपर कर दिया, और अपने होंठ उसकी कमर के उपर खुले हुए हिस्से से लगा कर प्यार भरे स्पर्श से चूमने लगा.

पूरे बदन मे जैसे झंझनाहट हुई हो, ऐसी कसमसाहट कि हाथों की चूड़ियों की खन-ख़ानाहट और पाँव की पायल की आवाज़ आने लगी... पर मारे शर्म के नज़र उठा कर मानस को देखने की हिम्मत नही हो रही थी. तकिये मे बस मुँह छिपाये वो तेज तेज साँसे ले रही थी.

तभी लगा कि सूट को उपर खींचने के लिए मानस ज़ोर लगा रहा है. ड्रस्टी को एहस्सास हुआ कि मानस उसे उपर से निकालने की कोसिस कर रहा है. उफफफफफ्फ़ .... वो पानी पानी सी हुई जा रही थी... मन झिझक रहा था और बदन हाँ कह रहा था....

हां ना के कस-म-कस के बीच कब सोच सुन पड़ी ड्रस्टी को भी पता नही चला. उसका सरीर खुद ही ढीला पर गया, पाँव से बिस्तर पर टेक लगा कर आगे के बदन को थोड़ा उपर कर दी... और मानस ने पूरा सूट समेत कर उसे सिने के उपर कर दिया...

उफफफ्फ़ पीछे से गोरी और मखमली पीठ का वो नज़ारा... एक मादक उन्माद पैदा कर रहा ही. पीठ पर बारे ध्यान से नज़र टिकाए मानस ने अपने पचों उंगलियों के स्पर्श मात्र से, ड्रस्टी के कमर से ले कर पूरी पीठ धीरे धीरे सहलाने लगा और अपने होंठो के स्पर्श से धीरे धीरे चूमने लगा...

होंठो से कोई अल्फ़ाज़ नही निकल रहे थे... लेकिन ड्रस्टी का बदन इस कदर हल्की गुदगुदी मे हिल रहा था कि हाथों की चूड़ियों की खन-खानाहट, .. और पाँव के पायल की छन छन आवाज़ें आ रही थी

ड्रस्टी के होश उड़ चुके थे, पर शर्म की चादर मे लिपटी वो कुछ कर ना पा रही थी... तभी ड्रस्टी के मुँह से धीमे से निकला ... "इस्सह नहिी"... और मानस तब तक ब्रा के हुक खोल चुका था.

ब्रा के हुक खोल कर मानस ने ब्रा का एक किनारा पकरा और उसे धीरे धीरे खींचने लगा.. ब्रा कप.. स्तानो से सरकता हुआ धीरे धीरे खींचा जा रहा था.. और ड्रस्टी मारे शर्म के बिस्तर मे गारी जा रही थी.

तभी मानस ने पूरी ब्रा खींच कर बाहर निकल दिया, और उसे अपने नाक से लगा कर ब्रा की तेज खुसबू लेने लगा... धीरे से खुले पीठ पर हाथ फेरते कहा... "काफ़ी मादक खुसबु है ब्रा की"...

सिर्फ़ ये शब्द सुन कर ही जैसे आग लग गयी हो ड्रस्टी के बदन मे... नीचे पाँव योनि पर इस कदर बंद हो रहे थे.... खुल रहे थे, और तिलमिला रहे थे.... मानो योनि मे कुछ हो रहा हो...
 
अंदर कोई चिंगारी फुट रही हो, जो ड्रस्टी को बेचैन कर रही थी. मानस ने एक बार फिर धीमे से अपना हाथ उसकी पीठ पर फिराया और एक साइड से पकड़ कर ड्रस्टी को सीधा करने लगा. मारे शर्म के मारे ड्रस्टी की साँसे काबू से बाहर हो गयी थी, दिल बैठा जा रहा था और वो सीधी ही नही हो रही थी... फिर मानस ने हल्का ज़ोर लगाया... और वो सीधी हो गयी...

जैसे ही पलटी अपने दोनो हाथ स्तनों पर डाल कर, उसे हाथों के बीच छिपा लिया. उफफफ्फ़ क्या उत्तेजक नज़ारा था. ड्रस्टी के गले मे सूट फसा हुआ... स्तनों पर मुड़े हुए हाथ, और चेहरा बाएँ ओर बिस्तर से टिका.

अजीब ही उलझन से दिल बैठा जा रहा था. धक-धक करती उठ'ती-बैठ'ती धड़कने.... और इसी बीच ड्रस्टी को अपने बदन पर कुछ भी महसूस नही हो रहा था. धीरे से उसने अपनी आखें खोली. जब उसकी आखें खुली मानस अपना टी-शर्ट उतार कर नीचे फेका रहा था...

गठीला बदन, चौरी छाती, छातियों पर हल्के बाल... देख कर ही ड्रस्टी के बदन मे कुछ-कुछ होने लगा.... नज़र जब उसके खुले बदन पर पड़ी तो नज़र ठहर कर उसे निहारने लगी.... पल मे ही अजीब से ख्यालों ने ड्रस्टी के बदन मे मादक चिंगारियाँ फुक दी. और जब सामने से चौड़ी बाहें फैला कर जब वो धीरे-धीरे मानस को अपनी ओर बढ़'ते देखी उसका बदन अकड़ गया.... सलवार के उपर से ही हाथ योनि पर चला गया....

होंठो से धीमी और लंबी "आआआआहह" की एक मादक सिसकारी निकली और बदन ढीला करती वो तेज-तेज साँसे लेने लगी. योनि से से क्या बाहर निकला था जिसके निकलते वक़्त उसे कुछ भी सुध नही रहा, और निकलने के बाद काफ़ी हल्की महसूस कर रही थी....

ड्रस्टी का तो पहली बार हो गया, पर मानस तो अपने अंदर अब भी पूरा आग समेटे था. सामने का कामुक नज़ारा और मखमली बदन को पूरे नंगे देख कर उसे प्यार से खेलने की लालसा मे वो पागल सा उठा था..... बार बार मानस के हाथ अपने लिंग पर जाते जिसे वो नीचे अड्जस्ट कर रहा था.

मानस तेज़ी से बढ़ता हुआ ठीक उसके पास लेट गया, दोनो के चेहरे आमने-सामने थे... और मानस ने अपने होंठ धीरे-धीरे ड्रस्टी के होंठो की ओर बढ़ा दिए.

ड्रस्टी अपना सिर पीछे ले जाना चाहती थी, पर मानस उसके गालों को थामे रहा और उसे अपनी जगह से खिसकने नही दिया. होंठो से होंठ मिलने के अहसास मे, ड्रस्टी का बदन एक बार फिर सुलगने लगा था... पर मानस थोड़ा उपर होते, उसके कान के ठीक निचले हिस्से पर होंठ लगा कर.. चूमने लगा...

उफफफफफ्फ़ जीभ का स्पर्श अपनी गर्दन पर महसूस की और पाँव आगे पीछे कर के बदन मचलने लगा. मानस का जीभ बड़े धीमे से स्पर्श करते, गर्दन की शुरुआत से ले कर कानो तक पहुँच रहा था.... ड्रस्टी "इसस्शह" की सिसकारी भरती अपनी पीठ को हल्का हवा मे कर के... छटपटाने लगी...

कानो के साइड से जीभ का हल्का स्पर्श गालो से होते हुए धीरे धीरे होंठो की ओर बढ़ रहा था. जैसे-जैसे जीभ आगे बढ़ रहा था, एक सरसराहट जैसे आगे बढ़ रही हो... "उम्म्म्ममम..... इसस्स्स्स्स्स्स्सस्स" की हल्की-हल्की आवाज़ उसके दबे होंठो से निकल रही थी...

 
जीभ का स्पर्श उसे दीवाना बना रहा था... जीभ गालों से चलते हुए होंठो पर आ गयी, जो होंठो को भिगोते उसके मुँह को चूमने के लिए बेताब था... लेकिन तभी मानस रुका, खुद को थोड़ा उपर किया और ड्रस्टी के चेहरे पर हाथ फेरने लगा....

ड्रस्टी अब भी अपने हाथों के बीच अपने स्तनों को छिपाये, आखें मुदे, मादक एहस्सास मे खोई सी थी... तभी प्यार से आवाज़ लगाता मानस उसे आखें खोलने के लिए कहता है....

लेकिन ड्रस्टी बस अपने पाँव पटक'ती ना मे सिर हिलाने लगती है... मानस अपनी उंगलियाँ ड्रस्टी की बाहों पर फिराते, आहिस्ते से उसकी बाहों को चूम कर कहता है .... "आइ लव यू ड्रस्टी, पर यदि तुम ने अपनी आखें नही खोली तो मैं यहाँ से चला जाउन्गा.... हे लव ... देखो तो, आखें तो खोलो"...

पर ड्रस्टी की लज्जा मानस क्या जाने वो तो इस वक़्त एक हटी प्रेमी बन चुका था, जिससे ये लग रहा था कि उसकी प्रेयसी उसकी बात नही सुन रही... दो बार फिर से प्यार से मानस ने उसे अपनी आखें खोलने कहा... पर मारे लज्जा के ड्रस्टी के मुँह से कुछ निकला ही नही और ना ही उसकी आखें खुली....

"लगता है मेरा प्यार एक तरफ़ा है, तुम्हे मेरी बातों की कोई कदर ही नही... मैं जा रहा हूँ"... इतना कह कर मानस ने अपना त-शर्ट उठाया और वहाँ से जाने लगा....

"आहह... नही".... सिसकती सासों के साथ उठ कर खड़ी हो गयी ड्रस्टी.... मानस गुस्से मे चला जा रहा था.... अधनंगा सरीर, खुले स्तन... उपर से ये लज्जा.... मानस को पुकारने से पहले एक बार फिर ड्रस्टी अपने आप ही सिहर गयी...

थोड़ी सी लज्जा, होंठो मे हल्की मुस्कान, और मासूम सा उसका चेहरा.... अपने दोनो कान अपने हाथों से कुछ इस तरह से वो पकड़ी कि कोहनी उसके स्तनों को कवर किए हुए थी, और खुले बाल उसके कंधे से दोनो ओर उसके वक्ष तक लटक रहे थे.

बड़ी ही मासूमियत से ड्रस्टी ने आवाज़ लगाई..... "प्ल्ज़ ऐसे छोड़ कर ना जाओ, रुक जाओ"

तेज़ी से आगे जाते हुए कदम ठहर से गये... मानस पिछे मूड कर ड्रस्टी को देखने लगा... दोनो अपनी जगह खड़े हो बस एक दूसरे को ही निहार रहे थे.... मासूम चेहरा और ऐसा कामुक स्थिति...

मानस की नज़र गोरे बदन पर खुले लहराते बालो से होते हुए, ड्रस्टी की गहरी नाभि तक पहुँची... और तेज सासों पर पेट के अंदर बाहर होने से नाभि का वो कामुक नज़ारा.... मानस के हाथ अपने आप ही उसके लिंग पर चला गया...

धीरे-धीरे कदम बढ़ाते वो ड्रस्टी के पास जा रहा था... जैसे-जैसे मानस आगे बढ़ रहा था, ड्रस्टी का कलेजा धक-धक .... "हाय्यी अल्ल्ह्ह्ह... अब क्या होगा"

मानस धीरे-धीरे आगे बढ़'ते हुए अपनी टी-शर्ट उतार फेका... खुले बदन को देख कर ड्रस्टी की योनि मे वापस से चिंगारियाँ फूटने लगी.... बड़ी ही असहजता से वो अपने पाँव के बीच अपने योनि को दबाए जा रही थी....

और फिर वो नज़ारा जब आगे बढ़'ते हुए मानस ने अपने पैंट को बड़ी अदा से खोलते उसे पाँव से निकाल लिया.... केवल अडरवेअर मे मानस. ड्रस्टी ने अपनी पूरी नज़र एक बार मानस के उपर डाली... लिंग का वो उभार अंडरवेअर के उपर से देख कर ड्रस्टी के पाँव कांप गये...

 
वो किसी मूरत की तरह वहाँ खड़ी हो कर स्थूल हो गयी... और अपनी जगी उत्तेजना को काबू करने की कोसिस करने लगी.... तभी मानस ड्रस्टी के हाथ को कानो से हटाने लगा....

"इसस्शह" और ड्रस्टी अपने स्तनों को मानस के सीने मे छिपाती उसके सीने से लग गयी. मानस ने भी अपना एक हाथ उस की कमर के थोड़ा उपर रखा और उसे खुद मे समेट लिया... दूसरे हाथ से चेहरे पर बिखरे बालो को सेमेट कर पिछे करते हुए, ठुड्डी से पकड़ कर उसका चेहरा उपर कर दिया....

ड्रस्टी मारे लज्जा के अपनी आखें मुन्दे खुद को मानस के हवाले कर दी... बदन बिल्कुल ढीला पड़ गया था, और साँसे बिखर सी गयी थी.... मानस उसका चेहरा उपर कर के अपना चेहरा थोड़ा नीचे झुकाया और होंठ से होंठ मिला दिए....

होंठो से होंठ मिलते ही "आहह" भरी तेज सांस दोनो ने खींची. दोनो को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे नीचे कोई सुरूर सा भड़क रहा हो, जो सरीर मे तरंगे पैदा करता पूरे सरीर मे फैल रहा हो.....

होंठो को मानस बाद प्यार से ऐसे चूम रहा था कि जब वो अपने सिर को उपर उठा कर होंठो को छोड़ता तो ड्रस्टी के कोमल से होंठ फँसते हुए उपर की ओर धीरे-धीरे खींचे आ रहे हो.

इस कामुक उन्नमाद मे होश का क्या काम. अब तो पूरी तरह टूट कर बिखर सी गयी थी ड्रस्टी... कभी मानस के बालों पर हाथ फेरती तो कभी उसकी नंगी पीठ को अपने पंजों मे दबोच कर नाख़ून घुसा देती....

होंठ चूमते हुए आहिस्ते से मानस ने अपने होंठ ड्रस्टी की गर्दन से लगा दिए और धीमे-धीमे गर्दन चूमने लगा.... "हाआआआआआआआअ" करती ड्रस्टी ने अपने अंदर साँस खींची. कामुक तनाव उसके चेहरे पर सॉफ दिखाई दे रहा था.

मानस के स्पार्स से वो जली जा रही थी और उसके बालों पर अपने हाथ फेरती आहें भर रही थी. मानस गर्दन को चूमते हुए अपने होंठ उस के सीने पर ले आया. ड्रस्टी के पाँव थोड़े काँपने लगे. अंदर हलचल और बढ़ी... हल्की छन-छन पायल की आवाज़ पाँव से आने लगी....

मानस अपनी नज़रें थोड़ी नीचे करते अपनी छाती मे दबे स्तनों पर नज़र डाला... उफ़फ्फ़ क्या कामुक दृश्य था... स्तन सीने से दबने के कारण दाएँ-बाएँ से हल्के उभर के साथ निकले थे... मानस सीने को चूमता थोड़ा पिछे हटा और अपने दोनो हाथ स्तनों पर डाल दिए....
 
जैसे ही हाथ स्तनों पर गया "उम्म्म्ममममममममममममम" की लंबी लहराती सिसकारी लेती ड्रस्टी अपनी गर्दन झटकती दाएँ बाएँ करने लगी.... उफ़फ्फ़ क्या स्पार्स का एहसास था... मानस के हाथ जैसे कांप गये हो स्तनों पर डालने से...

वो स्तनों पर अपनी तलहटी लगा कर उसे धीरे-धीरे गोल-गोल घुमाने लगा.... कितना मुलायम अहसास था... वो बस सीने को चूमते हुए स्तनों को हल्के स्पर्श से दबाए ही जा रहा था. दोनो की हालत खराब हो चुकी थी.....

हालाँकि झिझक ड्रस्टी के अंदर और भी ज़्यादा कौतूहल मचा रही थी.... ज़ोर से सिसकती ड्रस्टी, मानस के सिर को अपने सीने से दबाने लगी. मानस सीने को बड़े ही प्यार से चूमते अपने होंठ स्तनों के बीच डाल दिया और दोनो स्तनों को अपने चेहरे से रगड़ने लगा.....

"उम्म्म्ममममममम...... उउफफफफफफफफफफफफफफ्फ़.... आहह... मानस्स्सस्स" तेज सिसकारी ड्रस्टी के होंठो से निकली और ऐसा लगा जैसे कुछ प्यार का मादक एहस्सास फिर से योनि से छूट गया.... सरीर जैसे हल्का हो गया हो और वो एक अलग ही दुनिया मे थी....

ड्रस्टी उस मादक एहसास के बाद सांसो को काबू करने की कोसिस कर रही थी. तभी मानस थोड़ा हट कर ड्रस्टी के स्तनों को निहारने लगा.... ड्रस्टी ने जब अपने स्तनों को ऐसे निहारते देखा, फिर से अपना हाथ अपने स्तनों पर रख ली.... "ऐसे ना देखो, लाज आती है"....

"आअम्म्म्मम, जादू है इनमे ड्रस्टी जो नज़रें खिंची सी चली गयी उन पर" .... कहते हुए मानस ने ड्रस्टी की कलाई पकड़ कर उसका हाथ हटा दिया... ड्रस्टी अपनी कलाई मरोदती फिर से अपना हाथ स्तनों पर ले जाने की कोसिस करने लगी....

लेकिन तब तक मानस ने अपने होंठ आगे बढ़ाते, अपने होंठो से उसके स्तन को चूम लिया और ड्रस्टी के सीने पर अपना सिर रख कर उसे बड़े प्यार से चूसने लगा..... "उम्म्म्ममममम.... आहह" करती ड्रस्टी ने अपना पूरा बदन लहरा दिया और मानस के सिर को अपने स्तनों पर दबाने लगी....

मानस उत्तेजना से जला जा रहा था. दोनो खड़े थे... मानस अपना सिर ड्रस्टी के सीने से टिका कर उसके निपल को चूस रहा था और ड्रस्टी अपने दोनो हाथो से मानस का सिर पकड़े अपने चेहरे को मानस के सिर से टिका कर बड़ी ही मादक सिसकारी ले रही थी....

तभी पेट पर मानस ने अपना पूरा पंजा रख दिया और उसे सहलाते हुए धीए-धीरे नीचे ले जाने लगा.... हाथ सलवार की डोर तक आया... मानस ने अपना हाथ डोर पर रख दिया... ड्रस्टी व्याकुल होती ज़ोर-ज़ोर से मानस के सिर को अपने सीने पर दबाने लगी......
 
मानस ने डोर खींची और सलवार पाँव मे आ गयी..... ड्रस्टी अपनी जांघों पर ठंडी हवा महसूस की और उसका सरीर सिहर गया.... लज्जा से उसने अपने पाँव के बीच योनि को छिपा लिया.... "अम्म्म्मममम.... मानस... मर जाउन्गी... प्लीज़ रुक जाओ"....

पर बेचैन सा मानस अब कहाँ रुकने वाला था.... उसने ड्रस्टी को अपनी गोद मे उठाया, पाँव से सलवार को बाहर निकाल फेका और ले जा कर बिस्तर पर लिटा दिया.... बिस्तर पर लेट'ते ही ड्रस्टी ने अपने पाँव के उपर पाँव चढ़ा कर अपनी योनि को छिपा ली और तेज-तेज साँसे लेने लगी...

मानस थोड़ा दूर हट कर अपने अंडरवेअर भी उतार कर पूरा नंगा हो गया. जल रहे अपने लिंग को अपने हाथों से दो बार सहलाया और ड्रस्टी की ओर बढ़ने लगा...

मारे लाज के ड्रस्टी तो बिस्तर मे गढ़ी जा रही थी. पानी पानी तो तब हो गई जब उसकी नज़र मानस के पाँव के बीच गयी और लिंग को देखा.... नज़रे जैसे कुछ पल ठहरी हो और उत्तेजना कह रही हो उसे छू कर प्यार करो.... सोचते-सोचते ही ड्रस्टी की योनि फिर से गीली हो गयी...

मानस, ड्रस्टी की ओर बढ़ा... उसके उपर आया और एक बार फिर उसके होंठो से अपने होंठ लगा कर होंठ चूमने लगा.... उसके दोनो हाथ ड्रस्टी के पेट पर रेंगने लगा, जो धीरे-धीरे नीचे सरकते पैंटी तक पहुच गये....

बदन मचलने लगा दोनो का.... योनि मे तो जैसे आग लगी हो.... धक-धक कर रहा सीना... अनछुए बदन पर छुअन का वो मादक अहसास.... मानस के हाथ के नीचे तो जैसे कोई मखमली बदन था जिससे वो अपनी उत्तेजना मे बड़े प्यार से मसल कर उसे और खिला रहा हो...

हाथ थोड़ा नीचे जाते ही पैंटी के एलास्टिक से दो इंच अंदर हुआ और ड्रस्टी, मानस के बाल को पूरे ज़ोर से खींचती उसके होंठ को चबा गयी.....

"आअहह" की एक हल्की दर्द भरी आवाज़ मानस के मुँह से निकल गयी... लेकिन उत्तेजना मे ये खींचा-तनी और आग भड़का रहा था... पूरा पंजा योनि के ठीक उपर, पेडू पर रेंग रहा था... ऐसा लगा कि योनि के उपर साँप रेंग रहा हो.....
 
ड्रस्टी ने अपने पाँव के बीच योनि को और ज़ोर से छिपा ली.. मानस अपने हाथ आगे बढ़ाता दोनो पाँव के बीच की गहराइयों पर रख दिया ...... "आआआमम्म्मममम.... मानस्स्स्स्स्स्सस्स"

सिसकती हुई ड्रस्टी ने अपनी पीठ हवा मे कर ली और धम्म से बिस्तर पर गिरा दी.... मचलते बदन मे जैसे कई चिंगारियाँ फुट रही हो.... बहुत स्लो-स्लो खेल, खेल कर मानस आयेज बढ़ रहा था... पर जब से लिंग कपड़ों के बाहर आया था ... खुद-व-खुद झटक-झटक कर अब तेज़ी से आगे बढ़ने के लिए कह रहा था....

मानस, ड्रस्टी के उपर से हट'ते हुए उसके पास बैठ गया, और उसकी जांघों पर हाथ फेरते दोनो पाँव के बीच बनी गहराई पर अपने हाथ फिराने लगा.... "आहह.... उम्म्म्ममम.... आहह" करती ड्रस्टी अपना सिर दाएँ बाएँ करने लगी...

कातिल लग रहे थे ये हाथ, जो योनि के आस-पास फिर रहे थे... ऐसी मादक उत्तेजना मे ड्रस्टी का अपने पाँव पर ज़ोर ना रहा... पाँव काँपने लगे और धीरे-धीरे योनि पर पकड़ ढीली होती चली गयी...

इसी बीच उत्तेजना वश मानस अपना लिंग ड्रस्टी की जांघों से टिकते उस पर फिराने लगा... मुलायम सा गरम लिंग जांघों से टकराने का अहसास .... करेंट जैसे उन्माद दोनो के बदन मे जैसे दौड़ गया था...

ड्रस्टी अपना पाँव हल्का खोलती अपने हाथ अपनी योनि पर ले जा कर उसे पैंटी के उपर से हल्के-हल्के दबाने लगी.... मानस की उत्तेजना अपने काबू मे ना रही और ड्रस्टी का हाथ योनि पर देख कर उसे ये अहसास हुआ कि इन हाथों मे लिंग होना चाहिए...

सोचते ही उसका बदन हिल गया, लिंग झटके खाने लगा... वो थोड़ा उपर आ कर ड्रस्टी की कमर से थोड़ा उपर बैठा... ड्रस्टी का हाथ पकड़ा और उसे अपने लिंग पर ला कर रख दिया.... वो नरम हाथ का एहस्सास लिंग पर होते ही बदन जैसे अकड़ गया हो मानस का....

लिंग पर हाथ पड़ते ही जैसे क्या हो गया हो.... झटके मे ड्रस्टी ने अपना हाथ खींचा और "सीईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई" करती हुई जैसे अपने होंठो से हवा अंदर खींच रही हो....मानस को ड्रस्टी का हाथ हटाना बिल्कुल गवारा नही था इसलिए फिर से हाथों मे लिंग दे कर उसने अपने हाथ अड्रस्टी के हाथों के उपर रख दिया.....

ड्रस्टी के हाथ मे लिंग ... एक बेचैन करने वाला एहस्सास था, जिसे छुने से ही बदन मे चीटियाँ रेंग रही थी.... उफ़फ्फ़ हल्का गरम और टाइट लिंग. हाथों मे थामने के बाद ऐसा लगा कि हाथों मे ले कर बस लिंग को मसल्ति रहे...

कैसे काबू रखे खुद पर जिस के होश पहले से उड़े थे. हाथों मे लिंग को थामे ड्रस्टी उसे अब हौले-हौले आगे पिछे करने लगी... इसी बीच मानस ने अपना हाथ ड्रस्टी की कमर के दोनो ओर रखा और पैंटी को धीरे-धीरे नीचे खींचने लगा...

उत्तेजना इतनी हावी थी कि ड्रस्टी कब अपनी कमर उठा कर पैंटी को उतारने की सहमति बनाई उसे खुद भी पता नही था.... धीरे-धीरे पैंटी नीचे सरकने लगी.... योनि की शुरुआत जैसे ही मानस को दिखा उसकी कमर अपने आप हिलने लगी....

लिंग, ड्रस्टी के बंद हाथों मे ज़ोर से आगे पीछे हुआ... उफफफ्फ़ क्या अहसास था ये... ऐसा लगा जैसे लिंग फिसल कर आगे पीछे हो रहा हो... ड्रस्टी प्युरे कामुकता से लिंग पर अपने हाथ फेरती रही... इधर मानस पँति को धीरे-धीरे खिसकाने लगा....

आखों के सामने योनि का क्या नज़ारा था... ऐसा लगा जैसे दो लिप के बीच कुछ उभार सा बना हो.... योनि पर नज़र ठहर गयी और अचानक ही मानस का पूरा बदन जैसे फिर से हिल गया हो.... मानस पैंटी को खींचते उपर सरकाने लगा.

पैंटी जब घुटनो मे आई तो मानस अपना एक हाथ जाँघो से लगा कर हल्का उपर करने की कोसिस किया.. मानस ने उसे थोड़ा उपर उठाया, और ड्रस्टी लिंग पर हाथ फेरती अपने दोनो पाँव उपर हवा मे कर दी....
 
मानस ने पैंटी को उपर करते हुए उसके पाँव से निकाल दिया... पर दोनो पाँव उपर होने से, नीचे से जो योनि का मनभावन दृश्य था उपर से कामुकता के साथ ड्रस्टी का लिंग पर हाथ फेरते देखना.... मानस का बदन पूरा झटका खा गया, उसके कमर अपने आप हिलने लगी....

"उम्म्म्ममममम....... ऊऊओफफफफफफफफफफ्फ़....... आआहह" .... मंद-मंद धीमी सिसकारियों की आवाज़ आ रही थी. मानस अपने हाथ थोड़ा आगे बढ़ाया और ड्रस्टी की योनि पर पूरा फिरा दिया.... उफफफफफ्फ़ जैसे दोनो ने कुछ अपने अंदर महसूस किया हो...

योनि पर उंगलियाँ फिराते हुए मानस ने योनि के लिप को हल्का फैला दिया और अपनी उंगली को कुछ इंच अंदर डाल कर उसे उपर नीचे करने लगा.... ड्रस्टी मारे उत्तेजना के पूरी तरह मचल गयी. लिंग पर से अपना हाथ हटाती चादर को अपने मुत्टियों मे भर कर अपना सीना उपर की, और पूरा मुँह खोल कर जोरदार सिसकारी लेने लगी....

उफफफफ्फ़... तने हुए सीने पर वक्ष का क्या उभार था... मानस सीने पर अपने होंठ लगाता स्तनों को ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा.... मानस इतना बेकाबू हो चुका था कि स्तनों को चूस्ते हुए अपने दाँत गढ़ा कर उसे काटने लगा और योनि को अंदर उंगली डाल कर बड़ी बहरहमी से ज़ोर-ज़ोर से अंदर बाहर करने लगा....

ड्रस्टी की हालत खदाब हो गयी.... पूरा बदन च्चटपटा रहा था.... हाथ ज़ोर ज़ोर से बिस्तर पर पटक रही थी... पाँव बेचानी मे आयेज पीछे हो रहे थे... अंदर खींचती ससों के साथ अपने बदन को पूरा उपर उठती, और कुछ च्चन रुक कर गिरती ससों के साथ अपना सीना नीचे ले आती....

मानस पूरे होशों हवास खोता ड्रस्टी के पाँवो के बीच चला आया.... उसके दोनो पाँवो के बीच आकर अपना पाँव फैला कर बैठ गया और ड्रस्टी की जांघों को अपनी जांघों के उपर ले लिया....

जल रहे लिंग के सामने तड़पती हुई योनि..... मानस ने लिंग को योनि के द्वार से लगाया और सुपाडे को टिका कर उपर नीचे घिसने लगा.... ऐसे करते ही ड्रस्टी का पागलपन और बढ़ गया... अपना एक हाथ थोड़ा नीचे कर वो क्लिट को ज़ोर-ज़ोर से रगड़ने लगी और दूसरे हाथ से अपने स्तन मसल्ने लगी....

"उम्म्म्मममममम.... आअहह.... मानस्स्सस्स.... मैं मर जाउन्गी..... उम्म्म्ममम.... आहह" ..... बेचैनी देखते ही बन रही थी ड्रस्टी की.... अब तो बर्दास्त कर पाना काफ़ी मुस्किल था...
 
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