Gandi Kahani (इंसान या भूखे भेड़िए ) - Page 22 - SexBaba
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Gandi Kahani (इंसान या भूखे भेड़िए )

इधर पार्टी मे आई जिया मंद-मंद मुस्कुरा रही थी, क्योंकि आज मनु के हाथ कंपनी लगी, तो कल ये सब कुछ नताली के पास आ जाएगा.....

इधर सूकन्या भी काफ़ी खुश हो चुकी थी, क्योंकि जैसा मनु शुरू से बोलता आ रहा था.... "एक दिन वो पूरी कंपनी अपने नाम कर लेगा"... आज सच हो गया था....

मनु अपनी घोषणा के आखरी शब्द कहते हुए....

"और अंत मे मैं शुक्रगुज़ार हूँ अपनी बुआ सूकन्या का, जिन्होने अपनी कंपनी हमारे ग्रूप के नाम कर दी... कंपनी की सारी पॉलिसी डिक्लेर हो गयी, अब आप सब पार्टी एंजाय कर सकते है"

सब के सब शॉक्ड.... सूकन्या तो ऐसे दौड़ी मनु की ओर की मानो उसका खून कर देगी..... "मैने कब तुम्हे अपनी कंपनी दी कमीने, जो तू ये अनाउन्स्मेंट कर रहा है"

मनु, धीमे से सूकन्या के कान मे.... "जैसे आप ने मानस की कंपनी मेरे नाम करवाई थी फ्रॉड करवा कर ठीक वैसे ही, और चारा बनी आप की बेटी"...

सूकन्या आग बाबूला होती.... "मैने सिर्फ़ कोन्सेंट लॅटर साइन किया था"

मनु.... कितनी भोली हैं... जब तक आप ने उन पेपर्स को क्रॉस चेक किया तब तक तो कोन्सेंट लॅटर ही था, पर जब आप आँख मूंद कर उस पर बड़े ड्रामा के साथ सिग्नेचर कर रही थी, तब वो अग्रीमेंट पेपर बन गया. वो क्या है ना आप के वकीलों ने इसमे बहुत मदद किया... अब पता चला, किसी से धोका कर के संपत्ति लेने से कैसा लगता है ... पार्टी एंजाय कीजिए.....

गहमा-गहमी से भरा था महॉल, सारे लूटे पिटे लोग एक ओर हो कर बस मनु को ही देख रहे थे, और मनु उन्हे देख कर हंस रहा था....

हर्षवर्धन.... हमने पुरानी बातें भुला कर तुम्हे बेटा कहा, और तुमने हमारे साथ ऐसा किया...

अमृता.... तुझे हमारी दौलत चाहिए थी तो बोल कर ले लेता. तुम सब के साथ जो मैने किया उसके बदले मे ये गया भी तो कोई मलाल नही, बस कभी-कभी आ कर मिलते रहना. छोड़ो हर्ष, ये हमारे बुरे काम का नतीजा है जिसका फल हमे मिला. भूल गये हम भी कभी इन दोनो भाई को ऐसा ही देखना चाहते थे...

भावुक पल थे ये अमृता के लिए और काया अपनी माँ के दर्द को समझ गयी.... वो अपनी माँ को सहारा देती हुई मनु से कही.... "माँ को कोई मलाल नही है भैया, आप को मुबारक हो ये सारी संपत्ति, कुछ छोड़ा है वैसे जिस से हम कुछ दिन गुज़ारा कर लें... या आप की कंपनी मे कोई काम हो तो वही दे दीजिए"

रजत.... देखा आख़िर इस नाजायज़ ने अपनी औकात दिखा ही दिया.... मैं शुरू से जब चिढ़ता था इस पर तो मुझे ही थप्पड़ मारे गये... अब चलो यहाँ से... मुझे नही रहना किसी के अहसान के तले....

कुछ लोग भावुक हो रहे थे, तो कुछ लोग मनु को गालियाँ दे रहे थे.... महज चन्द दीनो मे ही बहुत से लोगों की दुनिया उजड़ गयी...... अमृता की बात सुन कर मनु को थोड़ा अखरा, पर वो खुद को संभालते हुए बस मुस्कुराता ही रहा....

मनु.... आप सब का हो गया हो तो आप सब जा सकते हैं.... कोई भी मुझ से किसी भी तरह का उम्मीद ना रखे, क्योंकि सब मिल कर जो मेरे साथ करना चाहते थे, वही मैने आप सब के साथ किया...

अब कोई कर भी क्या सकता था... सब के सब मुँह लटकाए मूलचंदानी हाउस से निकलने लगे.... पीछे जब सब मुड़े तो लोग बस अपनी आखें मसलते ही रह गये... जैसे कोई अचम्भा घटा हो.... हैरानी से सब की आखें बड़ी हो चुकी थी... मनु और मानस तो जैसे सुन्न ही पड़ गये थे....

आखों के सामने हर्षवर्धन की पहली पत्नी, मनु और मानस की माँ काव्या खड़ी थी, जिसे देख कर सब आश्चर्य से पागल हो रहे थे. सब क्या रिक्ट करे, कैसे रिक्ट करे किसी को कुछ समझ मे ही नही आ रहा था...

तभी जैसे उस महॉल मे रोबदार आवाज़ गूँजी.... ऐसा लगा जैसे कोई लेडी दबंग की आवाज़ गूँज़ रही हो.... "क्यों उम्मीद नही किया था क्या, मैं जिंदा भी हो सकती हूँ.... और शाबाश मेरे बेटों... तुमने तो सब को सड़क पर ला दिया.... अब तुम दोनो को इनाम देने की बारी है, दिल जीत लिया मेरा".....
 
काव्या आगे बढ़ कर मनु और मानस के पास पहुँची... दोनो भाइयों के बीच खड़ी हो कर कहने लगी.... "तो मेरे होनहार बेटों... ये है तुम दोनो का इनाम... पेश है असली मनु और मानस. तुम दोनो भाइयों ने जो भी किया उसे देखते हुए मैं ये सोच रही हूँ कि, अब तुम्हे भी तुम्हारी ज़िम्मेदारियों से मुक्त किया जाए"...

पहले तो अपनी माँ को जिंदा देख कर दोनो भाइयों की आखों मे आसू थे, पर अब उसकी बात सुन'ने के बाद दोनो के दिल मे जैसे कोई दर्द उठा हो....

मानस.... मोम, ये आप ही हो ना.... आप जिंदा हो... क्यों इतने दिन तक आप दूर रही हम से... क्यों खुद को हम से दूर रखा. और आप ये कैसी बहकी-बहकी बातें कर रही है... मैं ही तो हूँ आप का बड़ा बेटा मानस....

मनु.... मोममम्म... कुछ तो कहो मोम... ऐसे चुप क्यों हो....

काव्या..... ठीक है मैं ही कहती हूँ.... एस.एस ग्रूप के संस्थापक मिस्टर. शम्शेर जी आप मेरी बातों को कन्फर्म करेंगे, या मैं डीयेने टेस्ट करवा दूं कि कौन असली मनु और मानस है....

शम्शेर..... कोई टेस्ट की ज़रूरत नही है, काव्या ठीक कह रही है, ये दोनो असली मनु और मानस नही हैं....

क्या ड्रामा चल रहा था, किसी के कुछ समझ मे नही आ रहा था... पहले तो मनु और मानस ने पूरी कंपनी धोके से अपने नाम करवा ली. बाद मे कई साल पहले मरी हुई एक औरत जिंदा हो जाती है. और उस औरत का कहना है कि ये दोनो मनु और मानस है ही नही.... बलकी उसके साथ आए दो लड़के हैं मनु और मानस.

पूरा नाटकिया महॉल हो चुका था वहाँ का. जितने पार्ट्नर्स थे, उन्हे तो बहुत खुशी हो रही थी, पर नताली और जिया को झटके पर झटका लग रहा था.... नताली ने हर संभव कोसिस की ये साबित करने की कि असली वही दोनो हैं और नकली वाले को काव्या असली कह रही....

पर कोई भी हथकंडे ये साबित नही कर पाए कि वही दोनो असली हैं. काव्या ने वहाँ से सब को धूतकार कर भगाया.... मनु और मानस सब कुछ जीतने के बाद भी एक हारे हुए खिलाड़ी साबित हुए और वो भी वहाँ से चल दिए.... जाते-जाते काया पलट कर एक बार मनु को देखी और उसके गले लग कर रोती हुई कहने लगी.... "भाई धोका, धोका होता है, जैसा आप ने सब के साथ किया वैसा हे आप के साथ भी हो गया. बाकी आप से कोई गिला नही"

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अगले दिन सुबह... अखिल के घर....

अखिल.... साला ये तुम लोगों का फॅमिली ड्रामा समझ मे नही आता... बालाजी टेलिफील्म्स की कोई सीरियल दिखा रहे हो क्या, जिसमे मरा हुआ करेक्टर जी जाता है. वारिस अनाथ हो जाते हैं, और जिनको कोई नही जानता वो पूरा मालिक.

मनु.... सर फटा जा रहा है मेरा. मैं खुश होऊँ या रोऊँ मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा....

मानस.... 4 साल दर-दर की ठोकर खाई मैने, सिर्फ़ इस बात का पता लगाने के लिए की मेरी माँ को किसने मारा. और आज वही माँ कहती है हम उनके बच्चे नही.... ऐसा कैसे हो सकता है...

अखिल.... असली गेम तो तेरा दादा खेल गया, जिसने काव्या की बात पर अपनी हामी भर दी....

मनु.... बकवास मत बोल, वो मेरी माँ है इज़्ज़त से नाम ले....

अखिल.... देख भाई अपनी पोलीस की नौकरी है, और अपनी सोच बिल्कुल क्लियर रहती है....

मनु.... ज़रा हमे भी बताओ तुम्हारी सोच. बताओ इस वक़्त तुम्हारी सोच क्या कह रही है....

अखिल.... देख भाई, तुम्हारी माँ के ऐसा करने के पीछे ज़रूर कोई वजह रही होगी... अब, जब तक उस से बात ना कर लिया जाए, किसी भी नतीजे पर नही पहुँच सकते. मजबूरी भी हो सकती है या प्लॅनिंग भी....

मानस..... इस बात का भी पता अभी चल जाएगा.... चल मनु चलते हैं मोम के पास और उन से पूछते हैं, आख़िर उन्होने ऐसा क्यों कहा.....
 
मूलचंदानी हाउस....

मनु को ले कर मानस पहुँच गया मूलचंदानी हाउस. लेकिन एक रात मे ही वहाँ का नज़ारा बदला हुआ था. गेट का वॉचमन चेंज. जैसे ही दोनो भाई अंदर घुसे वो वाचमेन धूतकारते हुए पूछने लगा..... "कहाँ मुँह उठाए हुए चले आ रहे हो दोनो"

मानस तो उसे मारने ही वाला था, पर मनु ने रोक लिया...... "अंदर जा कर बोलना मनु और मानस आए हुए हैं"...

वॉचमन वहीं से फोन लगाया.... और उधर से शायद अंदर भेजने को कहा गया हो. उस वॉचमन ने सॉरी कहते हुए दोनो को अंदर जाने के लिए कहा.

दोनो हे अपने सवालों का जबाव लेने तेज-तेज कदम बढ़ते अंदर पहुँचे. जैसे ही दोनो हॉल मे पहुँचे..... काव्या का लाया हुआ मानस ज़ोर से चिल्लाया..... "साले बाहरूपीए, तेरी अंदर आने की हिम्मत कैसे हुई".

तभी पिछे से आवाज़ आई.... "किट्टू तुम ऑफीस जाओ... और तुम दोनो बैठो, ऐसे खड़े क्यों हो. तुम्हारा ही घर है".

किट्टू चला जाता है, और काव्या उन दोनो के पास बैठ जाती है. रोनी सी सूरत बनाए काव्या कहने लगती है.... "कल जो तुम दोनो के साथ मैने किया उसके लिए मुझे माफ़ कर देना मेरे बच्चो. मैं मजबूर थी"

मानस..... मोम आप मायूस क्यों होती हैं. हम आप के बच्चे हैं, हमे काट भी दोगि तो गम नही, पर मर तो तब गये जब आप ने कहा हम आप के बच्चे नही"

मनु.... हां मोम, नही चाहिए ये दौलत, नही चाहिए ये रुतवा. आप जिसे चाहो दे दो, पर फिर कभी ना कहना कि हम आप के बच्चे नही....

महॉल काफ़ी गमगिन हो गया था.... सब अपनी-अपनी बातें बोल कर खामोश हो गये. तभी उस खामोश से महॉल मे काव्या के अट्टहास भरी हसी की आवाज़ आने लगी. वो ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगी. मनु और मानस दोनो आश्चर्य से उस की ओर देखने लगे....... "क्या हुआ तुम दोनो काफ़ी हैरान दिख रहे हो"

काव्या की बात पर दोनो को और भी ज़्यादा हैरानी हो गयी. दोनो लगातार काव्या को ही देखे जा रहे थे. तभी फिर से काव्या बोली......

"मैं काव्या हूँ. यदि मेरी हिस्टरी नही जानते तो जान लो, जहाँ मैं होती हूँ, वहाँ मेरा ही सिक्का चलता है. तुम दोनो गंदी नली के कीड़े, तुम्हे क्या लगता है मैं झूठ बोल रही थी, या मैं मजबूर थी कल रात, जो तुम दोनो सच का पता लगाने चले आए".

"तुम्हे क्या लगा, शम्शेर ने प्रॉपर्टी पाने के लिए मेरी बात का समर्थन किया. ओह्ह्ह्ह ! मैं तो भूल ही गयी तुम दोनो के मन मे तो अभी कई सवाल होंगे" ????....

"जैसे कि...... उस वक़्त हुआ क्या था, मैं मरी नही तो थी कहाँ ? तुम दोनो मेरे बच्चे कैसे नही ? शम्शेर ने मेरी बातों का समर्थन क्यों किया.... वगेरह-वगेरह"
 
"हां एक बात तो मैं बताना ही भूल गयी तुम्हे मानस.... वो जो रेप का इल्ज़ाम लगा था ना तुम पर उसके पिछे और किसी का हाथ नही, बल्कि मेरा ही हाथ था. अब तुम दोनो सोच रहे होगे कि आख़िर ये सब मैने क्यों किया... कैसे किया"

"इट'स ऑल अबाउट "दा सेक्स गेम" बेबी.... और सब इसी गेम के शिकार है यहाँ"....

ये कहानी तब की है जब शम्शेर शहर आया था. गाँव की ज़िंदगी को अलविदा कह कर सहर मे अपना बड़ा नाम करने. किसी भी बिज़्नेस के लिए एक तन्द्रुस्त दिमाग़ और पैसे की ज़रूरत होती है, और शम्शेर के पास दोनो था.

और उसी वक़्त बना था ये एस.एस ग्रूप ऑफ कंपनीज़. अजीब सी कहानी रही है इस कंपनी की. शुरू से उलझी सी. शम्शेर के पिता और उसके 3 दोस्त. प्रॉपर्टी बेचते वक़्त शम्शेर के पिता ने अपने दोस्तों की भी प्रॉपर्टी बिकवा दिया और हो गये इस ग्रूप के 4 पार्ट्नर.

शम्शेर चालाक था, उसने शुरू से ही कंपनी की पूरी कमान अपने हाथ मे रखी और उसका हुकुम मानो पत्थर की लकीर. एस.एस ग्रूप उम्मीद से बढ़ कर तरक्की कर रही थी, और इसका पूरा क्रेडिट जाता था शम्शेर को.

ज़िंदगी भी कितनी अजीब है. मैं, काव्या मेहरा, भिखारियों के घर पैदा हुई. सपनो की उड़ान उँची पर सब कमीने उस उड़ान को रोकने की तक मे रहते. लेकिन मैने भी अपना घर सिर्फ़ इसलिए नही छोड़ा कि मैं हार जाऊ. आइ हॅड टू विन अट एनी कॉस्ट.

काव्या रॉड्स टू हर ड्रीम.....

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फ्लेशबॅक ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

देल्ही की एक शाम, काव्या अपने चचेरे भाई के रूम पर आ धमकी......... सोमिल मेहरा एक कॉलेज स्टूडेंट था और देल्ही मे ही फ्लॅट ले कर रहता था. किस्मत भी कितनी अजीब थी, जिस वक़्त काव्या, सोमिल के घर पहुँची, उसका खास दोस्त यानी कि हर्षवर्धन भी वहाँ बैठ कर सिगरेट पी रहा था.....

सोमिल.... यार उस नयी लड़की को देखा, कैसी पटाखा लग रही थी... कसम से मेरा ईमान डोल गया....

हर्ष.... हरी-भरी जवानी है वो पूरी.... साला तू तो प्ले बॉय है, खाएगा उसे... कुछ मेरे लिए भी तो छोड़ दे....

"उक्खुउऊउ... उखुऊऊुउउ" गले से खाँसी निकालती हुई काव्या रूम के अंदर पहुँची. काव्या को देख कर सोमिल हड़बड़ा कर सिगरेट को पिछे बुझा दिया, और हर्ष बड़े गौर से काव्या को ही निहारे जा रहा था.... "ये कौन सी नयी चिड़िया फसा ली क्या सोमिल ने"

हर्ष, ललचाई हुई नज़रों से देखते हुए..... "ये कौन है"

सोमिल, धीमे से बुदबुदाते..... "साले वो मेरी कज़िन है"........... काव्या इस से मिलो, ये है मेरा दोस्त हर्षवर्धन मूलचंदानी, और हर्ष ये है मेरी कज़िन काव्या.

दोनो मे "हाई-हेलो" हुआ फिर सोमिल...... "काव्या यहाँ अचानक देल्ही कैसे आना हुआ".

काव्या..... भैया अकेली घर पर क्या करती. करनाल मे तो कोई काम भी नही था, इसलिए यहाँ देल्ही आ गयी, सोचा अपने दम पर कुछ करूँ.

सोमिल.... और तू अपने दम पर क्या करने का सोच कर आई है. किस ने कहा तुम से कि काम करो. चलो लौट जाओ वापस.

काव्या..... हुह !!! आप मुझे अपने पास नही रख सकते तो कोई बात नही, मैं कहीं और चली जाउन्गी, लेकिन मैं यहाँ कुछ करने के इरादे से आई हूँ और कुछ बन कर ही रहूंगी....

सोमिल फिर भी काव्या को जाने के लिए बोलता रहा, इसी बीच हर्षवर्धन इन के बीच बोलने लगा...... "सोमिल किसी की महत्वकांक्षा को ऐसे नही रोकते. तुझ मे ये ऑर्तोडॉक्स वाली फीलिंग कब से आ गयी. वैसे आप मिस काव्या कुछ सोचा है, क्या करना है आप को.

काव्या..... काम क्या करना है वो तो सोचा नही है, पर भले काम मुझे छोटा से शुरू करना पड़े, लेकिन एक दिन मैं उस जगह के टॉप पोज़िशन पर पहुँच कर रहूंगी.

हर्ष.... दट'स नाइस. आइ लाइक युवर कॉन्फिडेन्स. आप जैसे आगे बढ़ने वालों की ही ज़रूरत है मेरी कंपनी मे. ये है हमारे ऑफीस का कार्ड, कल सुबह आप ऑफीस पहुँच जाना इंटरव्यू के लिए.

काव्या.... यहीं पर आप इंटरव्यू ले लो ना, पास हुई तो कल से सीधा जाय्न कर लूँगी.

सोमिल..... जी नही, ये अपनी कंपनी मे कुछ भी नही. ये बस ज़रिया है और तुम्हारी इंटरव्यू इसके पापा लेंगे......
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नेक्स्ट डे मॉर्निंग.....

काव्या एक आलीशान ऑफीस के वेटिंग लाउंज मे इंतजार कर रही थी. टॉप पोज़ीशन पर पहुचने की इक्षा तो कल ही जाहिर कर चुकी थी, अभी इस ऑफीस को देख कर बस यही सोच रही थी कि एक दिन ये पूरा ऑफीस और ये पूरा स्टाफ उसी के लिए काम करेगा.....

एमडी ऑफीस का कॉल और काव्या को अंदर बुलाया जाता है. शम्शेर के लिए ये पहला ऐसा मौका था, जब वो किसी लड़की से इतना प्रभावित हुआ था. पर्सनल अस्सिटेंट, यानी पी.ए की नौकरी पक्की हो गयी थी, और काव्या काम सीखने मे लग गयी.

भले ही काव्या को काम सीखने मे समय लग गया हो, पर वहाँ के महॉल को मुट्ठी मे करने मे टाइम ना लगा. इतनी प्रचंड थी वो ऑफीस मे, कि हर कोई उसके नाम से थर्रा जाता. ऐसा लग रहा था पूरे ऑफीस पर उसने अपना कब्जा जमाया हुआ हो.

काव्या की नज़र अब एक नौकर से मालिक बन'ने की ताक मे थी. इसलिए जब भी उसे मौका मिलता हर्षवर्धन पर डोरे डालने लगती. लेकिन इन सब से परे हर्षवर्धन ने कभी काव्या के उपर ध्यान नही दिया, क्योंकि वो अमृता से प्यार करता था और काव्या ठहरी उसके सब से खास दोस्त की बहन.

काव्या का दिमाग़ तब चटक गया जब उसे हर्षवर्धन और अमृता की शादी की खबर मिली. काव्या के सारे अरमान जैसे हवा हो गये हो. मालकिन बन'ने का सपना जैसे चूर-चूर हो गया हो.

लेकिन काव्या तो काव्या थी. बहुत ही दूर दृष्टि और संयम से काम लेने वाली. काव्या इस शादी को टाल नही सकती थी क्योंकि अमृता की शादी से ना केवल दो परिवार आपस मे जुड़ रहे थे, बल्कि दो उद्योगपति भी आपस मे अपने इंडस्ट्री को जोड़ रहे थे.

हां लेकिन काव्या की मशा बिल्कुल छिपि हुई थी, और पूरे सुचारू रूप से काम कर रही थी. शादी से कुछ दिन पहले हे काव्या ने ऐसा चक्कर चलाया कि हर्षवर्धन शादी के महज 2 दिन बाद विदेश रवाना हो गया.

इधर काव्या ऑफीस मे धीरे-धीरे अपना सिकंजा शम्शेर पर कसने लगी. गले लग जाना, शम्शेर से चिपकना और उसे इनडाइरेक्ट सिड्यूस करना शुरू हो चुका था. पहले-पहले तो शम्शेर इन सारी बातों को अनदेखा करता रहा, लेकिन एक कौतूहल मन उसका भी था जो एक लड़की के स्पर्श पर कर मचल जाता.

यदि सिर्फ़ शम्शेर के बदन मे काव्या के हाथ पाँव लगते तो बात अलग थी, पर काव्या जब भी शम्शेर के गले लगती, अपने स्तनों को ऐसे उसके सीने से चिपकाती, कि शम्शेर के अहसास जाग जाते थे. और जब वो गले लग कर हट'ती, तो उसकी कातिल सी अदा शम्शेर को घायल कर जाती.

वक़्त के साथ शम्शेर का झुकाव भी धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था. यूँ तो वो काबू मे ही रहता था, पर अंदर से वो पूरा बेकाबू था. काव्या, शम्शेर को पूरी तरह . रही थी और शम्शेर पूरी तरह तड़प रहा था.

काव्या का पूरा जाल बिच्छ चुका था, और बस अब उस मे शम्शेर के फँसने की बारी थी. काव्या बड़े ही शातिराना तरीके से . बाँधे बस शम्शेर के फँसने का इंतज़ार कर रही थी. शायद वक़्त भी उस के साथ था, और मौका भी हाथ लग गया.

उस वक्त अमृता के गर्भ मे उसका पहला बच्चा पल रहा था, जिसके जन्म पर शम्शेर खुशियाँ मना रहा था. सारे ऑफीस स्टाफ की दो दिन की छुट्टी थी, और जश्न का महॉल. उसी दौरान मुंबई की एक पार्टी का अर्जेंट डील फस गया. कांट्रॅक्ट साइन करना ज़रूरी था और सारे लोग छुट्टी पर, अंत मे शम्शेर के साथ काव्या गयी उस मीटिंग को अटेंड करने.
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उस रात ... मीटिंग ख़तम होने के बाद....

शम्शेर और काव्या होटेल के कमरे मे बैठ कर सारा पेपर वर्क निपटा रहे थे. काम ख़तम होते-होते तकरीबन 1:00 अम बज गये......

शम्शेर...... वेल डन काव्या, अब तो ये कांट्रॅक्ट हमे ही मिलेगा. तुम खाने का ऑर्डर दे दो जब तक मैं बार से हो कर आता हूँ....

शम्शेर नीचे होटेल के बार मे चला गया, और काव्या खाने का ऑर्डर दे कर नहाने चली गयी. जाल बिच्छ चुका था. काम देवी के रूप मे जैसे खुद को ढाल चुकी थी. आज काव्या को शम्शेर सामने से फँसता हुआ नज़र आ रहा था और वो इस मौके को अपने हाथ से जाने नही देना चाहती थी.

काव्या के लिए सब सेट था, उसे बस अब पर्फॉर्म करना था. भीगे बदन पर स्लिक की एक नाइट ड्रेस उसने चढ़ा ली, जो गले से इतना खुला था छातियाँ देख कर कोई भी मर्द मचल जाए. जूस मे पहले से उसने सेक्स भड़काने वाली दवा मिला दी थी, ताकि शम्शेर कहीं भटके ना....

सब सेट करने के बाद, काव्या बार-बार दरवाजे से लॉबी को ही देख रही थी. थोड़ी ही देर मे संशेर हल्का लड़खड़ाता दरवाजे की ओर बढ़ता हुआ नज़र आने लगा. काव्या के जाल बिच्छाने का काम शुरू हो गया था. काव्या भाग कर आयने के सामने बैठ गयी और अपने कपड़ों के अंदर हाथ डाल ली.

कुछ इस तरह से वो अपने स्तनों पर हाथ फेर रही थी कि स्मॅशर जब कमरे मे आए तो आयने मे देख कर उसे ऐसा लगे कि काव्या अपने स्तनों पर कुछ लगा रही है.

जैसा काव्या चाहती थी ठीक वैसा ही हुआ. काव्या गाना गुनगुनाते अपने स्तनों पर हाथ फेर रही थी और सम्शेर उसे आएने मे ऐसा करते देख पागल हुआ जा रहा था. देखने मे वो इतना मगन हो गया कि, कब वो अपने हाथ अपने लिंग पर ले गया उसे भी पता ना चला.

काव्या समझ गयी उसे अब आगे क्या करना है, वो आराम से खड़ी हो कर पिछे मूडी, सम्शेर की हालत देख कर उसने अपने मुँह पर हाथ रख कर एक शॉकिंग एक्सप्रेशन दिया..... "सिर्र्र्र्र्र्र्र्ररर"

काव्या की आवाज़ सुन कर जैसे सम्शेर को होश आया हो. खुद की हालत देख कर वो बिना एक शब्द बोले बाथरूम मे घुस गया. थोड़ी देर बाद जब वो लौट कर आया तो थोड़े शर्म के साथ कहने लगा...... "मुझे मंफ़ कर देना, मैं थोड़ा बेकाबू हो गया था"

"थोड़ा क्या शमशेर अभी इतने मे ही इतना बेकाबू हो आगे-आगे देखते जाओ", अपने मन मे सोची बात पर काव्या हँसने लगी और सम्शेर से कही.... "कोई बात नही है सर, आप की भी अपनी ज़रूरतें हैं". और काव्या इतना कह कर अपने दोनो हाथ उपर कर के ज़ोर की एक अंगड़ाई ली.

अंडाइ लेते वक़्त जो उभरे स्तन देखने का नज़ारा था, कमाल का था. शम्शेर की तो साँसे भी चढ़ने लगी थी. उसे ऐसा लगा कि वो थोड़ी देर और यहाँ रुका तो उसके हाथों कहीं रेप ना हो जाए.

शम्शेर..... रात बहुत हो गयी है, मैं अपने रूम मे सोने जा रहा हूँ. कल मिलते हैं.

काव्या...... सर, मैने भी अब तक कुछ नही खाया, बहुत भूकी हूँ. खाना खा कर फिर चले जाएगा.

शम्शेर कुछ नही बोला और चुप-चाप खाने के लिए चल दिया. काव्या को पता था कौन सी दवा कितनी देर मे असर करती है. इसलिए सेक्स की भूख बढ़ाने वाली दवा जूस के साथ मिला दी थी, जो उसने खाने के पहले दे दिया.

शम्शेर खाते हुए भी अपनी चोर नज़र से बस काव्या के स्तनों को हे देख रहा था. सिल्क ऐसे चिपकी थी उसके बदन से की उसे पैंटी के शेप तक नज़र आने लगे थे. मन अब इस कली को मसल कर फूल बनाने का कर रहा था. लेकिन कंपनी उमर और बदनामी ने संयम नही खोने दिया.

पर कब तक आख़िर काबू रखता. खाना ख़तम होते होते दवा ने अपना काम करना शुरू कर दिया था. पैंट की जेब से जब बार-बार हाथ लगा कर सम्शेर अपने लिंग को अड्जस्ट करता तो काव्या को उसमे अपनी जीत नज़र आती थी.

 
खाना ख़तम हुआ, और काव्या अपना रंग दिखाती हुई कहने लगी..... "गुड माइट सर, अब कल मिलते हैं".

काव्या, शम्शेर को गुड नाइट बोल कर सीधा-सीधा उसे जाने के इशारा कर दी. पर सम्शेर को अब वहाँ से जाने का मन नही कर रहा था. कमसिन सी इस लड़की को भोगने का वो मन बना चुका था.

शम्शेर आगे बढ़ा और काव्या को अपनी बाहों मे भर कर उसे चूमने लगा.... काव्या, शम्शेर की बाहों मे कसमसाती खुद को छुड़ाने की कोसिस करने लगी..... "सर ये आप क्या कर रहे हैं, हट जएए.... होश मे आइए"

शम्शेर, काव्या को और ज़ोर से पकड़ते हुए उसके गर्दन के नीचे से चाटने लगा...... "तुम्हे देख कर पागल हो गया हूँ, साली जो मैं कर रहा हूँ वो मुझे करने दे"....

काव्या, शम्शेर को धक्का दे कर खुद से अलग कर दी...... "बिहेव युवरसेल्फ मिस्टर. शम्शेर.... आप बहक गये हैं, जा कर चुप-चाप सो जाइए"......

"दो कौड़ी की नौकर, हरामजादी तेरी औकात ही क्या है.... तेरा रेप कर के यहाँ छोड़ भी दूं, तो भी मुझे कोई कुछ नही कहने वाला... इसलिए तू भी मज़े ले सेक्स के"....

शम्शेर ने काव्या को बिस्तर पर धकेला और उसके उपर कूद गया..... उसके पेट पर बैठ कर उसके दोनो स्तनों को अपने दोनो हाथ मे पकड़ा और ज़ोर-ज़ोर से मसलने लगा..... काव्या की तो साँसे ही उखड गयी.... स्तनों को मानो आज तो शम्शेर दबा-दबा कर सीने मे ही घुसा देगा....

सेक्स के लिए काव्या तैयार तो थी, लेकिन उसे नही पता था कि वो इसमे खोने लगेगी. जोशीला मर्दाना हाथ का जोरदार अनुभव पा कर काव्या की साँसे बेकाबू हो गयी.... उसका मन ज़ोर-ज़ोर से कर रहा था, कि वो ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला कर कहे.... "निचोड़ डाल हरामी इन्हे, आज पूरा निचोड़ दे"

पर खुद पर काबू रखती काव्या ने विरोध ही जताया..... "छोड़ दीजिए ना सर, मैं बदनाम हो जाउन्गी"

शम्शेर उसके दोनो स्तनों को अपने हाथ मे दबोचे, अपना मुँह काव्या के चेहरे की ओर झुका दिया..... उसकी आखों मे देखते हुए कहने लगा..... "तुम्हे किसी भी बात की फ़िक्र करने की ज़रूरत नही. तू बस सेक्स के मज़े ले, बाकी मैं संभाल लूँगा"...

इतना कह कर शम्शेर ने अपना जीभ बाहर निकाला, जीभ से लार टपकती हुई काव्या के होंठो पर गिरने लगी... और शम्शेर किसी भूखे भेड़िए की तरह टूट पड़ा उसके होंठो पर. काव्या अपने सिर दाएँ-बाएँ करती उसे किस नही करने दे रही थी... और शम्शेर पागल हुआ जा रहा था आज काव्या के हर अंग को चूमने के लिए.

उसका मन भी नही हो रहा था कि वो इतने मस्त स्तनों से अपने हाथ हटाए, पर काव्या के विरोध से शम्शेर झल्ला गया और दो थप्पड़ मारते हुए...... "चुप-चाप जो कर रहा हूँ वो करने दे, वरना जिस बदनामी से डर रही है, वही मैं करवा दूँगा"

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"सर ये आप ग़लत कर रहे हो, मैं बहुत शरीफ हूँ. आप को यदि किसी लड़की का ज़िस्म चाहिए तो वो पैसों से मिल जाएगा मुझे जाने दो"

"तुझे ऐसे कैसे जाने दूं".... सम्शेर ने अपने दोनो हाथ उसके चेहरे पर डाल कर उसके गाल को ज़ोर से दबा दिया. दर्द के साथ उसका मुँह खुल गया. मुँह खुलते ही पहले सम्शेर ने अपना जीभ निकाल कर उसके होंठो को चाटने लगा, फिर पूरी जीभ उसके मुँह मे डाल कर चूमने लगा.

काव्या की साँसे मारे उत्तेजना की चढ़ि जा रही थी. दोनो होंठो के बीच से "ऊऊफफफफफ्फ़... ऊऊफफफफफफ्फ़" की आवाज़ें आने लगी थी. शम्शेर होंठ चूमना छोड़ कर उसके चेहरे से अपनी जीभ फिराता उसके सीने तक ले आया.... "साली अब तक तेरे बदन पर ये कपड़ा क्यों है"....

शम्शेर ने सीने के बीच हाथ रखा और दोनो ओर से कपड़े को चीरते हुए दो हिस्सों मे बाँट दिया..... "सर आप ये ग़लत कर रहे हैं"....

शम्शेर पर अब कोई भी बात असर नही हो रहा था.... उसने काव्या को ज़बरदस्ती उलट-पलट कर के उसके सारे कपड़े उतार दिए और अपने कपड़े भी उतारने लगा. काव्या के लिए कपड़े उतरते देखना काफ़ी कामुक नज़ारा था. वो तो बस जल्द से जल्द लिंग दर्शन को तरसी जा रही थी. अंदर ही अंदर मचले जा रही थी....

शम्शेर भी सारे कपड़े उतार कर जल्दी ही काव्या के पास पहुँच गया... और अपना लिंग उसके हाथ मे थमा कर उसे मसलने के लिए कहने लगा..... काव्या बस लिंग को पकड़े हुई थी. काव्या के हाथ का कोमल स्पर्श दीवाना तो बना रहा था पर उसका कुछ ना करना गुस्सा भी दिला रहा था.

काव्या को कुछ ना करते देख, शम्शेर फिर से गुस्से मे आ गया. फिर से दो थप्पड़ लगाते हुए..... "हरामजादी, जो कहा वो करती रह, वरना आसिड से चेहरा जला दूँगा"

"छोड़ काव्या अब नाटक, और मज़े कर..... वरना ये कमीना मारता रहेगा".... काव्या भी पूरे मूड मे आ गयी, लिंग को हाथों मे ले कर पूरे जोश और मज़े के साथ उपर नीचे करने लगी. काव्या इतनी उत्तेजित हो गयी कि बार-बार वो अपने बदन को मचला रही थी. दोनो पाँव के बीच योनि को फसा कर, रगड़ रही थी.

शम्शेर अपनी गर्दन को पूरा आकड़े बस लिंग की घिसाई का मज़े ले रहा था.... शम्शेर कैसी उत्तेजना मे था ये तो उसे भी पता नही था. लिंग अपना हिलवा रहा था और काव्या के स्तनों को बड़े ज़ोर-ज़ोर से दबा रहा था...... "आहह सिर और ज़ोर से.... ज़ोर-ज़ोर से मस्लो सर. बहुत परेशान करते हैं ये स्तन"...

"ये सर कौन है मेरी रानी.... आअहह बहुत मस्त हिला रही है, ले अब लिंग को ज़रा अपने मुँह मे ले कर चूस"..... एक बार फिर शम्शेर, काव्या के सीने के उपर आया.... अपने बॉल को काव्या के होंठो से लगा कर लिंग को उसके चेहरे पर फिराने लगा....

चेहरे पर लिंग को महसूस करना..... "उफफफफफफफफफफफफफ्फ़" .... जैसे आग सी लग गयी हो काव्या के बदन मे. "इसस्स्शह" के साथ काव्या ने बदन को हवा मे कर के आक्ड़ा लिया. अजीब सी रिसन होने लगी काव्या की योनि से.

काव्या बड़ी कामुकता से मुँह खोली और बॉल को मुँह मे ले कर चूसने लगी... चेहरे पर लिंग का छूना इतना मादक था कि उसने लिंग को हाथ मे पकड़ कर अपने चेहरे पर बड़ी बेसब्री से घिसने लगी.... शम्शेर थोड़ा पिछे हो कर लिंग को काव्या के होंठो से लगा दिया...

काव्या अपने दोनो हाथों से लिंग को पकड़ कर उसकी चमड़ी को पिछे की. शुपाडे के छेद पर जीभ लगाती उसे प्यार से चाटी... फिर मुँह खोल कर धीरे-धीरे पूरा लिंग अपने मुँह के अंदर डाल ली. शम्शेर ऐसा जोश मे आया कि, वो अपनी कमर ज़ोर-ज़ोर से हिलाने लग गया.....

पूरे लिंग को उसकी गर्दन तक धकेल कर, वो रुका रह जाता और जब तक काव्या तड़प कर ...., "उन्न्ञननणणन्... उन्न्ञणणन्" नही करती तब तक वो छोड़ता नही.... काव्या के मुँह से पूरा लार टपक रहा था जो होंठो से बहते नीचे तक छू रहा था.....

शम्शेर पूरा वाइल्ड हो कर लगातार मुँह मे ही धक्के लगाता रहा... धक्के लगाते-लगाते उसकी रफ़्तार काफ़ी तेज हो गयी, और अपना सारा वीर्य काव्या के मुँह मे छोड़ दिया.... पर ये दवा का असर था कि, शम्शेर के लिंग का तनाव और मन की उत्तेजना ज़रा भी कम ना हुई......

शम्शेर अब अपनी उत्तेजना की आग बुझाने काव्या के पाँव के बीच आ गया. वो दोनो पाँव के बीच आया और काव्या की योनि मे 2 उंगली डाल कर तेज-तेज हिलाने लगा. ऐसा लग रहा था कि उंगली से ही सारा काम कर देगा आज...... काव्या ज़ोर-ज़ोर से तेज-तेज सिसकारियाँ भरने लगी..... "उम्म्म्मममममम...... आआन्न्‍नणणनह" की आवाज़ तेज... और तेज होती चली गयी.... योनि का रिसाव शुरू हो गया....

एसी मे भी दोनो के बदन पसीने-पसीने थे. शम्शेर आगे बढ़ते हुए अपने लिंग को योनि से लगाया और दोनो पाँव को फैला कर एक जोरदार धक्का योनि मे लगा दिया...... "अंन्‍नमममममममममम... उन्न्ञननननननणणन् माररर्ररर गाइिईईईईई.... कामीनेययययी ऐसे कएर्ते हैं.... पूरा एक बार मे डाल दिया.... निकाल हरामी बहुत दर्द हो रहा है..... ऊऊऊऊऊऊऊओ मर गयी रीई ... आआनन्नह"......

पर शम्शेर, वो तो दवा की गिरफ़्त मे था. कसी योनि के अंदर की चमड़ी घिसने लगी, हर धक्के पर योनि के अंदर की आग बुझने के साथ दर्द भी उठ'ता. पहले 5 मिनट काफ़ी भारी पड़े काव्या को, उसकी आखों से आँसू तक निकल आए...

पर सम्शेर बिना रुके लगातार धक्के लगाता रहा.... धक्के लगाते हुए उसने अपने दोनो हाथ काव्या के दोनो स्तनों पर डाले. उस पर अपने हाथो की ज़ोर आज़मएश करते हुए ज़ोर-ज़ोर से मसलने लगा.... तेज-तेज धक्के लगाने लगा..... काव्या का दर्द भी गायब होने लगा था... खुल कर वो भी मज़े लेने लगी..... "आहह.... उम्म्म्मम... इसस्स्शह.... ऊऊफफफफफफ्फ़" की आवाज़ें गूंजने लगी.

ताबड़तोड़ लंबे सेक्स के बाद दोनो हे नंगे वहीं पर सो गये....

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