Gandi Sex kahani दस जनवरी की रात - Page 6 - SexBaba
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Gandi Sex kahani दस जनवरी की रात

"ऐसा लगता है वैशाली, वह दिल्ली से फ्लाइट द्वारा यहाँ पहुंच गया था ।" विजय ने वैशाली को बताया, "और यह केस मैं ही इन्वेस्टीगेट कर रहा हूँ । हालांकि इसमें इन्वस्टीगेट को कुछ रहा नहीं, बस रोमेश को गिरफ्तार करना भर रह गया है ।"
"क्या सचमुच उन्होंने… ?"
"हाँ, वैशाली ! उसने मुझ पर भी गोली चलाई थी ।"
वैशाली केवल गहरी साँस लेकर रह गई । वह जानती थी कि विजय भी एक आदर्श पुलिस ऑफिसर है । वह कभी किसी निर्दोष को नहीं पकड़ता और अपराधी को पकड़ने के लिए वह अपनी नौकरी भी दांव पर लगा सकता है ।
रोमेश भी उसका आदर्श था । आदर्श है । परन्तु अब यह अजीब-सा टकराव दो आदर्शों में हो रहा था । रोमेश अब हत्यारा था और कानून उसका गिरेबान कसने को तैयार था ।
वैशाली की स्थिति यह थी कि वह किसी के लिए साहस नहीं बटोर सकती थी ।
रोमेश की पत्नी के साथ होने वाले अत्याचारों का खुलासा भी अब समाचार पत्रों में हो चुका था । सबको जे.एन. से नफरत थी । परन्तु कानून जज्बात नहीं देखता, केवल अपराध और सबूत देखता है । जे.एन ने क्या किया, यह कानून जानने की कौशिश नहीं करेगा । रोमेश अपराधी था, कानून सिर्फ उसे ही जानता था ।
जे.एन. की मृत्यु के बाद मंत्रीमंडल तक खलबली मच गई थी । परन्तु न जाने क्यों मायादास अण्डरग्राउण्ड हो गया था । शायद उसे अंदेशा था कि रोमेश उस पर भी वार कर सकता है या वह अखबार वालों के डर से छिप गया था ।
बटाला भी फरार हो गया था ।
पुलिस को अब बटाला की भी तलाश थी ।
उस पर कई मामले थे । वह सारे केस उस पर विजय ने बनाये थे । किन्तु अभी मुम्बई पुलिस का केन्द्र बिन्दु रोमेश बना हुआ था । हर जगह रोमेश की तलाश हो रही थी ।
☐☐☐
विजय ने टेलीफोन रिसीव किया ।
वह इस समय अपनी ड्यूटी पर था ।
"मैं रोमेश बोल रहा हूँ ।" दूसरी तरफ से रोमेश की आवाज सुनाई दी । आवाज पहचानते ही विजय उछल पड़ा, "कहाँ से ?"
"रॉयल होटल से, तुम मुझे गिरफ्तार करने के लिए बहुत बेचैन हो ना । अब आ जाओ । मैं यहाँ तुम्हारा इन्तजार कर रहा हूँ ।"
विजय ने एकदम टेलीफोन कट किया और रॉयल होटल की तरफ दौड़ पड़ा । बारह मिनट के भीतर वह रॉयल होटल में था । विजय दनदनाता हुआ होटल में दाखिल हुआ, सामने ही काउन्टर था और दूसरी तरफ डायनिंग हॉल ।
"यहाँ मिस्टर रोमेश कहाँ हैं ?" विजय ने काउंटर पर बैठे व्यक्ति से पूछा ।
''ठहरिये ।" काउन्टर पर बैठे व्यक्ति ने कहा, "आपका नाम इंस्पेक्टर विजय तो नहीं ? यह लिफाफा आपके नाम मिस्टर रोमेश छोड़ गये हैं, अभी दो मिनट पहले गये हैं ।"
"ओह माई गॉड !" विजय ने लिफाफा थाम लिया । वह रोमेश की हस्तलिपि से वाकिफ था । उस पर लिखा था, "मैं कोई हलवे की प्लेट नहीं हूँ, जिसे जो चाहे खा ले । जरा मेहनत करके खाना सीखो । मुझे पकड़कर तो दिखाओ, इसी शहर में हूँ । कातिल कैसे छिपता है ? पुलिस कैसे पकड़ती है ? जरा इसका भी तो आनन्द लो रोमेश !"
विजय झल्लाकर रह गया ।
रोमेश शहर से फरार नहीं हुआ था, वह पुलिस से आंख-मिचौली खेल रहा था । विजय ने गहरी सांस ली और होटल से चलता बना ।
☐☐☐
सात दिन गुजर चुके थे, रोमेश गिरफ्तार नहीं हो पा रहा था ।
आठवें दिन भी रोमेश का फोन चर्चगेट से आया । यहाँ भी वह धता बता गया । अब स्थिति यह थी कि रोमेश रोज ही विजय को दौड़ा रहा था, दूसरे शब्दों में पुलिस को छका रहा था ।
"कब तक दौड़ोगे तुम ?" विजय ने दसवें दिन फोन पर कहा, "एक दिन तो तुम्हें कानून के हाथ आना ही पड़ेगा । कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं रोमेश ! उनसे आज तक कोई बच नहीं पाया ।"
ग्यारहवें दिन पुलिस कमिश्नर ने विजय को तलब किया ।
"जे.एन. का हत्यारा अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं हुआ ?"
"सर, वह बहुत चालाक हत्यारा है । हम उसे हर तरफ तलाश कर रहे हैं ।"
"तुम पर आरोप लगाया जा रहा है कि वह तुम्हारा मित्र है । इसलिये तुम उसे गिरफ्तार करने की बजाय बचाने की कौशिश कर रहे हो ।"
"ऐसा नहीं है सर ! ऐसा बिल्कुल गलत है, बेबुनियाद है ।"
"लेकिन अखबार भी छापने लगे हैं यह बात ।" कमिश्नर ने एक अखबार विजय के सामने रखा ।
विजय ने अखबार पढ़ा ।
"यह अखबार वाले भी कभी-कभी बड़ी ओछी हरकत करते हैं सर ! आप यकीन मानिए, इस अखबार का रिपोर्टर मेरे थाने में कुछ कमाई करने आता रहा है । मेरे आने पर इसकी कमाई बन्द हो गई ।"
"मैं यह सब नहीं सुनना चाहता । अगर तुम उसे अरेस्ट नहीं कर सकते, तो तुम यह केस छोड़ दो ।"
"केस छोड़ने से बेहतर तो मैं इस्तीफा देना समझता हूँ । यकीन मानिए, मुझे एक सप्ताह की मोहलत और दीजिये । अगर मैं उसे गिरफ्तार न कर पाया, तो मैं इस्तीफा दे दूँगा ।"
"ओ.के. ! तुम्हें एक सप्ताह का वक़्त और दिया जाता है ।"
विजय वापिस अपनी ड्यूटी पर लौट आया । यह बात वैशाली को भी मालूम हुई ।
''इतना गम्भीर होने की क्या जरूरत है ? ऐसे कहीं इस्तीफा दिया जाता है ?"
"मैं एक अपराधी को नहीं पकड़ पा रहा हूँ, तो फिर मेरा पुलिस में बने रहने का अधिकार ही क्या है ? अगर मैं यह केस छोड़ता हूँ, तब भी तो मेरा कैरियर चौपट होता है । यह मेरे लिए चैलेंजिंग मैटर है वैशाली ।"
वैशाली के पास कोई तर्क नहीं था ।
वह विजय के आदर्श जीवन में कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहती थी और अभी तो वह विजय की मंगेतर ही तो थी, पत्नी तो नहीं ! पत्नी भी होती, तब भी वह पति की भावनाओं का आदर ही करती ।
"नौकरी चली भी गई, तो क्या फर्क पड़ता है । मैं ग्रेजुएट हूँ । हट्टा-कट्टा हूँ । कोई भी काम कर सकता हूँ । तुम इस बात से निश्चिन्त रहो, मैं गृहस्थी चला लूँगा, पुलिस की नौकरी के बिना भी ।"
"मैं यह कब कह रही हूँ विजय ! मेरे लिए आपका हर फैसला उचित है ।"
"थैंक्यू वैशाली ! कम-से-कम तुम मेरी भावनाओं को तो समझ ही लेती हो ।"
"काश ऐसी समझ सीमा भाभी में भी होती, तो यह सब क्यों होता ?"
"छोड़ो, इस टॉपिक को । रोमेश अब सिर्फ एक मुजरिम है । इसके अलावा हमारा उससे कोई रिश्ता नहीं । मैं उसे अरेस्ट कर ही लूँगा और कोर्ट में सजा कराकर ही दम लूँगा ।"
विजय ने संभावित स्थानों पर ताबड़तोड़ छापे मारने शुरू किए, परन्तु रोमेश हाथ नहीं आया । अब रोमेश के फोन आने भी बन्द हो गये थे । विजय ने टेलीफोन एक्सचेंज से मिलकर ऐसी व्यवस्था की हुई थी कि रोमेश अगर एक भी फोन करता, तो पुलिस वहाँ तुरन्त पहुँच जाती ।
इस मामले को लेकर पूरा कंट्रोल रूम और प्रत्येक थाना उसे अच्छी तरह सहयोग कर रहा था ।
शायद रोमेश को भी इस बात की भनक लग गई थी कि उसे पकड़ने के लिए जबरदस्त जाल बिछा दिया गया है । इसलिये वह खामोश हो गया था।
☐☐☐
 
एक सप्ताह बीत चुका था ।
विजय बैचैनी से चहलकदमी कर रहा था । एक सप्ताह की मोहलत मांगी थी उसने और आज मोहलत का अन्तिम दिन था । वह सोच रहा था कि यह सब क्या-से-क्या हो गया ? अब उसे त्यागपत्र देना होगा, उसकी पुलिसिया जिन्दगी का आज आखिरी दिन था ।
उसने गहरी सांस ली और त्यागपत्र लिखने बैठ गया ।
अभी उसने लिखना शुरू ही किया था ।
"ठहरो ।" अचानक उसे किसी की आवाज सुनाई दी ।
आवाज जानी-पहचानी थी ।
विजय ने सिर उठाकर देखा, तो देखते ही चौंक पड़ा । जो शख्स उसके सामने खड़ा था, हालांकि उसके चेहरे पर दाढ़ी मूंछ थी, परन्तु विजय उसे देखते ही पहचान गया था, वह रोमेश था ।
"तुम !" उसका हाथ रिवॉल्वर की तरफ सरक गया ।
"इसकी जरूरत नहीं ।" रोमेश ने दाढ़ी मूंछ नोचते हुए कहा, "जब मैं यहाँ तक आ ही गया हूँ, तो भागने के लिए तो नहीं आया होऊंगा । अपने आपको कानून के हवाले ही करने आया हूँ । तुम तो यार मेरे मामले में इतने सीरियस हो गये कि नौकरी ही दांव पर लगाने को तैयार हो गये । मुझे तुम्हारे लिये ही आना पड़ा यहाँ । चलो अब अपना कर्तव्य पूरा करो । लॉकअप मेरा इन्तजार कर रहा है ।"
"रोमेश तुम, क्या यह सचमच तुम ही हो ?"
"मेरे दोस्त ज्यादा सोचो मत, बस अपना फर्ज अदा करो ।" रोमेश ने दोनों हाथ आगे बढ़ा दिये, "दोनों कलाइयां सामने हैं, जिस पर चाहे हथकड़ी डाल सकते हो । या दोनों पर भी डालना चाहते हो, तब भी हाजिर हूँ । अच्छा लगेगा ।"
विजय उठा और फिर उसने रोमेश को हथकड़ी पहना दी ।
''मुझे तुम पर नाज है पुलिस ऑफिसर और हमेशा नाज रहेगा । तुम चाहते तो यह केस छोड़ सकते थे, लेकिन कानून की रक्षा करना कोई तुमसे सीखे ।"
☐☐☐
उधर थाने में जब पता चला कि रोमेश गिरफ्तार हो गया है, तो वहाँ भी हड़कम्प मच गया ।
वायरलेस टेलीफोन खटकने लगे । मीडिया में एक नई हलचल मच गई । रोमेश को पहले तो लॉकरूम में बन्द किया गया, फिर जब रोमेश को देखने के लिए भीड़ जमा होने लगी, तो उसे पुलिस को सेन्ट्रल कस्टडी में ट्रांसफर करना पड़ा । सेन्ट्रल कस्टडी में वरिष्ठ अधिकारियों के सामने रोमेश से पूछताछ शुरू हो गई ।
"तुमने जे.एन. का कत्ल किया ?"
"हाँ, किया ।"
"क्यों किया ?"
"मेरी उससे जाति दुश्मनी थी, उसकी वजह से मेरा घर तबाह हो गया । मेरी बीवी मुझे छोड़ कर चली गई । मेरे हरे-भरे संसार में आग लगाई थी उसने । उसके इशारे पर काम करने वाले गुर्गों को भी मैं नहीं छोड़ने वाला । मेरा बस चलता, तो उन्हें भी ठिकाने लगा देता । लेकिन मैं समझता हूँ कि मोहरों की इतनी औकात नहीं होती । मोहरे चलाने वाला असली होता है, मैंने मोहरों को छोड़कर इसीलिये जे. एन. को कत्ल किया ।"
"तुम्हारे इस प्लान में और कौन-कौन शामिल था ?"
"कोई भी नहीं । मैं अकेला था । मैंने उससे फोन पर ही डेट तय कर ली थी, मुझे दस जनवरी को हर हाल में उसका कत्ल करना था ।"
"तुम राजधानी से 9 तारीख को दिल्ली गये थे ।"
"जी हाँ और दिल्ली से फ्लाइट पकड़कर मुम्बई आ गया था । मैं शाम को 9 बजे मुम्बई पहुंच गया था, फिर मैंने बाकी काम भी कर डाला । मैं जानता था कि जे.एन. हर शनिवार को माया के फ्लैट पर रात बिताता है, इसलिये मैंने उसी जगह जाल फैलाया था । मैंने माया को फर्जी फोन करके वहाँ से हटाया और फ्लैट में दाखिल हो गया, उसके बाद माया को भी बंधक बनाया और जे.एन. को मार डाला ।"
रोमेश बेधड़क होकर यह सब बता रहा था ।
"क्या तुम अदालत में भी यही बयान दोगे ?"
"ऑफकोर्स ।"
"मिस्टर रोमेश सक्सेना, तुम एक वकील हो । तुमने अपने बचाव के लिए अवश्य ही कोई तैयारी की होगी ।"
"इससे क्या फर्क पड़ता है, आप देखिये । चाकू की मूठ पर मेरी उंगलियों के ही निशान होंगे । बियर की एक बोतल और गिलास पर भी मिलेंगे निशान । आपके पास इतने ठोस गवाह हैं, फिर आप मेरी तरफ से क्यों परेशान हैं ?"
पुलिस ने अपनी तरफ से मुकदमे में कोई कोताही नहीं बरती, मुकदमे के चार मुख्य गवाह थे चंदू, राजा, कासिम, मायादेवी । इसके अलावा और भी गवाह थे । अखबारों ने अगले दिन समाचार छाप दिया ।
☐☐☐
 
रोमेश को जब अदालत में पेश किया गया, तो भारी भीड़ उसे देखने आई थी । अदालत ने रोमेश को रिमाण्ड पर जेल भेज दिया । रोमेश ने अपनी जमानत के लिए कोई दरख्वास्त नहीं दी । पत्रकार उससे अनेक तरह के सवाल करते रहे, वह हर किसी का उत्तर हँसकर संतुलित ढंग से देता रहा । हर एक को उसने यही बताया कि कत्ल उसी ने किया है ।
"क्या आपको सजा होगी ?" एक ने पूछा ।
''क्यों ?"
"एक गूढ़ प्रश्न है, जाहिर है कि इस मुकदमे में आप पैरवी खुद करेंगे और आपका रिकार्ड है कि आप कोई मुकदमा हारे ही नहीं ।"
"वक्त बतायेगा ।" इतना कहकर रोमेश ने प्रश्न टाल दिया ।
वैशाली दूर खड़ी इस तमाशे को देख रही थी । बहुत से वकील रोमेश का केस लड़ना चाहते थे, उसकी जमानत करवाना चाहते थे । परन्तु रोमेश ने इन्कार कर दिया ।
रोमेश को जेल भेज दिया गया ।
रोमेश की तरफ से जेल में एक ही कौशिश की गई कि मुकदमे का प्रस्ताव जल्द से जल्द रखा जाये ।
उसकी यह कौशिश सफल हो गई ,केवल दो माह के थोड़े से समय में केस ट्रायल पर आ गया और अदालत की तारीख लग गई । पुलिस ने केस की पूरी तैयारी कर ली थी ।
यह एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक मुकदमा था, एक संगीन अपराध का सनसनीखेज का मुकदमा ।
चुनौती और कत्ल का मुकदमा, जिस पर न सिर्फ कानून के दिग्गजों की निगाह ठहरी हुई थी बल्कि शहर की हर गली में यही चर्चा थी ।
☐☐☐
"क्राइम नम्बर 343, मुलजिम रोमेश सक्सेना को तुरंत अदालत में हाजिर किया जाये ।" जज ने आदेश दिया और कुछ ही देर बाद पुलिस कस्टडी में रोमेश को अदालत में पेश किया गया ।
उसे कटघरे में खड़ा कर दिया गया ।
अदालत खचाखच भरी थी ।
"क्राइम नम्बर 343 मुलजिम रोमेश सक्सेना, भारतीय दण्ड विधान की धारा जेरे दफा 302 के तहत मुकदमे की कार्यवाही प्रारम्भ करने की इजाजत दी जाती है ।" न्यायाधीश की इस घोषणा के बाद मुकदमे की कार्यवाही प्रारम्भ हो गई ।
राजदान के चेहरे पर आज विशेष चमक थी, वह सबूत पक्ष की तरफ से अपनी सीट छोड़कर उठ खड़ा हआ । लोगों की दृष्टि राजदान की तरफ मुड़ गई ।
"योर ऑनर, यह एक ऐसा मुकदमा है, जो शायद कानून के इतिहास में पहले कभी नहीं लड़ा गया होगा । एक ऐसा संगीन मुकदमा, कोल्ड ब्लडेड मर्डर, इस अदालत में पेश है जिसका मुलजिम एक जाना माना वकील है । ऐसा वकील जिसकी ईमानदारी, आदर्शो, न्यायप्रियता का डंका पिछले एक दशक से बजता रहा है । जिसके बारे में कहा जाता था कि वह अपराधियों के केस ही नहीं लड़ता था, वकालत का पेशा करने वाले ऐसे शख्स ने देश के एक गणमान्य, समाज के प्रतिष्ठित शख्स का बेरहमी से कत्ल कर डाला । कत्ल भी ऐसा योर ऑनर कि मरने वाले को फोन पर टॉर्चर किया जाता रहा, खुलेआम, सरेआम कत्ल, जिसके एक नहीं हजारों लोग गवाह हैं । मेरी अदालत से दरख्वास्त है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना को जेरे दफा 302 के तहत जितनी भी बड़ी सजा हो सके, दी जाये और वह सजा केवल मृत्यु होनी चाहिये । कानून की रक्षा करने वाला अगर कत्ल करता है, तो इससे बड़ा अपराध कोई हो ही नहीं सकता ।" कुछ रुककर राजदान, रोमेश की तरफ पलटा, "दस जनवरी की रात साढ़े दस बजे इस शख्स ने जनार्दन नागारेड्डी की बेरहमी से हत्या कर दी । दैट्स ऑल योर ऑनर ।"
"मुलजिम रोमेश सक्सेना, क्या आप अपने जुर्म का इकबाल करते हैं ?" अदालत ने पूछा ।
रोमेश के सामने गीता रखी गई ।
"आप जो कहिये, इस पर हाथ रखकर कहिये ।"
"जी, मुझे मालूम है ।" रोमेश ने गीता पर हाथ रखकर कसम खाई ।
कसम खाने के बाद रोमेश ने खचाखच भरी अदालत को देखा, एक-एक चेहरे से उसकी दृष्टि गुजरती चली गई । इंस्पेक्टर विजय, वैशाली, सीनियर-जूनियर वकील, पत्रकार, कुछ सियासी लोग, अदालत में उस समय सन्नाटा छा गया था ।
"योर ऑनर !" रोमेश जज की तरफ मुखातिब हुआ, "मैं रोमेश सक्सेना अपने जुर्म का इकबाल करता हूँ, क्योंकि यही हकीकत भी है कि जनार्दन नागारेड्डी का कत्ल मैंने ही किया है । सारा शहर इस बात को जानता है, मैं अपना अपराध कबूल करता हूँ और इस पक्ष को कतई स्पष्ट नहीं करना चाहता कि यह कत्ल मैंने क्यों किया है । दैट्स आल योर ऑनर ।"
अदालत में फुसफुसाहट शरू हो गई, किसी को यकीन नहीं था कि रोमेश अपना जुर्म स्वीकार कर लेगा । लोगों का अनुमान था कि रोमेश यह मुकदमा स्वयं लड़ेगा और अपने दौर का यह मुकदमा जबरदस्त होगा ।
"फिर भी योर ऑनर ।" राजदान उठ खड़ा हुआ, "अदालत के बहुत से मुकदमों में मेरी मुलजिम से बहस होती रही है । एक बार इन्होंने एक इकबाली मुलजिम का केस लड़ा था और कानून की धाराओं का उल्लेख करते हुए अदालत को बताया कि जब तक पुलिस किसी इकबाली मुलजिम पर जुर्म साबित नहीं कर देती, तब तक उसे सजा नहीं दी जा सकती । हो सकता है कि मेरे काबिल दोस्त बाद में उसी धारा का सहारा लेकर अदालत की कार्यवाही में कोई अड़चन डाल दें ।" राजदान ने आगे कहा, "इसलिये मैं मुलजिम पर जुर्म साबित करने की इजाजत चाहूँगा ।" राजदान के होंठों पर व्यंगात्मक मुस्कान थी ।
"इजाजत है ।" न्यायाधीश ने कहा ।
राजदान, रोमेश के पास पहुंचा, "हर बार तुम मुझसे मुकदमा जीतते रहे, आज बारी मेरी है और मैं कानून की कोई प्रक्रिया नहीं तोड़ने वाला मिस्टर एडवोकेट रोमेश सक्सेना । इस बार मैं तुमसे जरूर जीतूँगा, डेम श्योर ।"
"अदालत के फैसले से पहले जीत-हार का अनुमान लगाना मूर्खता होगी ।" रोमेश ने कहा, "बहरहाल मेरी शुभकामनायें आपके साथ हैं ।"
''योर ऑनर ! मैं गवाह पेश करने की इजाजत चाहता हूँ ।"
अदालत ने गवाह पेश करने की अगली तारीख दे दी ।
☐☐☐
 
अदालत की अगली तारीख ।
फिर वही दृश्य, खचाखच भरी अदालत । रोमेश सक्सेना को अदालत में पेश किया गया । रोमेश को कटघरे में पहुंचाया गया । राजदान आज पुलिस की तरफ से सबूत पेश करने वाला था । लोगों में और भी उत्सुकता थी ।
"योर ऑनर ।" राजदान ने अदालत में सीलबन्द चाकू खोलकर कहा, "यह वह हथियार है, जिससे मुलजिम रोमेश सक्सेना ने दस जनवरी की रात जनार्दन नागारेड्डी का बेरहमी से कत्ल कर डाला ।"
राजदान ने चाकू न्यायाधीश की मेज पर निरीक्षण हेतु रखा ।
"इस पर मौजूद फिंगर प्रिंटस रोमेश सक्सेना के हैं । उंगलियों के निशानों से साफ जाहिर होता है कि रोमेश सक्सेना ने इस चाकू का इस्तेमाल किया और बाकायदा योजनाबद्ध तरीके से जनार्दन नागारेड्डी को इस हथियार से मार डाला ।"
न्यायाधीश ने चाकू को उलट-पलटकर देखा और फिर यथास्थान रख दिया ।
"एनी क्वेश्चन ।" न्यायाधीश ने रोमेश से पूछा ।
"नो मी लार्ड ।" रोमेश ने उत्तर दिया ।
"मेरे काबिल दोस्त के पास अब सिवाय नो मी लार्ड कहने के कोई चारा भी नहीं है ।" राजदान ने व्यंगात्मक मुस्कान के साथ कहा ।
राजदान के साथ-साथ बहुत से लोगों के होंठों पर भी मुस्कान आ गई ।
राजदान ने सबूत पक्ष की ओर से सीलबन्द लिबास निकाला । काला ओवरकोट, काली पैन्ट शर्ट, मफलर, बेल्ट ।
"बिल्कुल फिल्मी अंदाज है योर ऑनर ! जरा इस गेटअप पर गौर फरमाये । इस पर पड़े खून के छींटों का निरीक्षण करने पर पता चला कि यह छींटे उसी ब्लड ग्रुप के हैं, जो चाकू पर पाया गया और यह ग्रुप जनार्दन नागारेड्डी का था । यह रही एग्जामिन रिपोर्ट ।"
राजदान ने रिपोर्ट पेश की ।
रिपोर्ट पढ़ने के बाद न्यायाधीश ने रोमेश की तरफ देखा ।
"आई रिपीट नो मी लार्ड ।" इस बार रोमेश ने मुस्कराकर कहा, तो अदालत में बैठे लोग हँस पड़े ।
अदालत में वैशाली भी मौजूद थी,जो खामोश गम्भीर थी । वह सरकारी वकीलों की बेंच पर बैठी थी और राजदान के साथ वाली सीट पर ही थी ।
"मिस वैशाली, प्लीज गिव मी पोस्टमार्टम रिपोर्ट ।" राजदान ने कहा ।
वैशाली ने एक फाइल उठाकर राजदान को दे दी ।
"यह पोस्टमार्टम रिपोर्ट ।" राजदान ने रिपोर्ट न्यायाधीश के सामने रखी, "रिपोर्ट से पता चलता है कि कत्ल 10 जनवरी की रात दस से ग्यारह के बीच हुआ और किसी धारदार शस्त्र से चार वार किये गये, चारों वार पेट की आंतों पर किये गये । आंतें कटने से तेज रक्तस्त्राव हुआ, जिससे मकतूल मौका-ए-वारदात पर ही खत्म हो गया और योर ऑनर इसका ग्रुप चाकू पर लगे खून का ग्रुप, कपड़ों पर लगे खून एक ही वर्ग का है ।"
उसके बाद अदालत में बियर की दो बोतलें पेश की गई, जिनमें से एक पर जे.एन. की उंगलियों के निशान थे, दूसरी पर रोमेश की उंगलियों के ।
रोमेश का हर बार एक ही उत्तर होता ।
"नो क्वेश्चन मी लार्ड ।"
"अब मैं जिन्दा गवाह पेश करने की इजाजत चाहता हूँ योर ऑनर ।" राजदान ने कहा ।
"इजाजत है ।"
"मेरा पहला गवाह है चंदूलाल चन्द्राकर ।"
"चंदूलाल चंद्राकर हाजिर हो ।" चपरासी ने आवाज लगाई ।
डिपार्टमेन्टल स्टोर का सेल्स मैन चंदू तैयार ही था ।
वह चलता हुआ, विटनेस बाक्स में जा पहुँचा । इससे पहले कि उसके हाथ में गीता रखी जाती, कटघरे में पहुंचते ही उसने रोमेश को देखा, मुस्कराया और बिना किसी लाग लपेट के शुरू हो गया ।
"योर ऑनर, मैं गीता, रामायण, बाइबिल, कुरान की कसम खाकर कहता हूँ, जो कुछ कहूँगा, वही कहूँगा, जो मैं कई दिन से तोते की तरह रट रहा हूँ, कह दूँ ।"
लोग ठहाका मारकर हँस पड़े ।
राजदान ने उसे रोका, "मिस्टर चंदूलाल चन्द्राकर, जरा रुकिये । मेरे कहने के बाद ही कुछ शुरू करना ।"
"यह मुझसे नहीं कहा गया था कि आपके पूछने पर शुरू करना है,क्यों मिस्टर ?" उसने रोमेश की तरफ घूरा, "ऐसा ही है क्या ?"
रोमेश ने सिर हिलाकर हामी भरी ।
"चलो ऐसे ही सही ।"
अब सरकारी वकील ने गीता की कसम खिलाई ।
"जो मैं कहूँ, वही दोहराते रहना । उसके बाद गवाही देना ।"
"ठीक है- ठीक है ।" चंदू ने कहा और फिर अदालत की कसम खाने वाली रस्म पूरी की । इस रस्म के बाद राजदान ने पूछा, "तुम्हारा नाम ?"
"चन्दूलाल चन्द्राकर ।" चन्दू ने कहा ।
"क्या करते हो?"
"डिपार्टमेन्टल स्टोर में रेडीमेड शॉप का सेल्समैन हूँ ।"
''यह कपड़े तुम्हारे स्टोर से खरीदे गये थे ।"
"जी हाँ ।"
"अब सारी बात अदालत को बताओ ।"
चंदू ने तनिक गला खंखार कर ठीक किया और फिर बोला, "योर ऑनर ! यह शख्स जो कटघरे में मुलजिम की हैसियत से खड़ा है, इसका नाम है रोमेश सक्सेना । योर ऑनर 31 दिसम्बर की शाम यह शख्स मेरी दुकान पर आया और इसने मेरी दुकान से इन कपड़ों को खरीदा, जो खून से सने हुए आपके सामने रखे हैं । इसने मुझसे कहा कि मैं इन कपड़ों को पहनकर एक आदमी का कत्ल करूंगा और इसने सचमुच ऐसा कर दिखाया ।"
"मुलजिम को यदि इस गवाह से कोई सवाल करना हो, तो कर सकता है योर ऑनर ।" राजदान ने कहा ।
"नो क्वेश्चन ।" मुलजिम रोमेश ने कहा ।
अदालत ने गवाह चंदू की गवाही दर्ज कर ली ।
सबूत पक्ष का दूसरा गवाह राजा था ।
"चाकू छुरी बेचना मेरा धंधा है माई बाप ! मैं इस शख्स को अच्छी तरह जानता हूँ, यह एडवोकेट रोमेश सक्सेना है । जिस चाकू से इसने कत्ल किया, वह इसने मेरी दुकान से खरीदा था और सरेआम कहा था कि इस चाकू से वह मर्डर करने वाला है । किसी को यकीन ही नहीं आया । सब लोग इसे पागल कह रहे थे । भला ऐसा कहाँ होता है कि कोई आदमी इस तरह कत्ल का ऐलान करे । मगर रोमेश सक्सेना ने वैसा ही किया, जैसा कहा था ।"
तीसरा गवाह नाम गोदने वाला कासिम था ।
"आमतौर पर मेरे यहाँ बर्तनों पर नाम लिखे जाते हैं और ज्यादातर मियां बीवी के नाम होते हैं । जबसे मैंने होश संभाला और धंधा कर रहा हूँ, तबसे मेरी जिन्दगी में ऐसा कोई शख्स नहीं आया, जो मियां बीवी की बजाय मकतूल और कातिल का नाम खुदवाये । कटघरे में खड़े मुलजिम रोमेश सक्सेना ने दो नाम मुझसे लिखवाये । एक उसका जिसका कत्ल होना था जनार्दन नागारेड्डी । यह नाम चाकू की ब्लैड पर लिखवाया गया, दूसरा नाम मूठ पर लिखवाया गया । यह नाम खुद रोमेश सक्सेना का था । इन्होंने मुझसे कहा कि इस चाकू से वह जनार्दन नागारेड्डी का ही कत्ल करेगा ।"
"क्या यही वह चाकू है ?" राजदान ने चाकू दिखाते हुए कहा, "जिस पर दो नाम गुदे थे ।"
"जी हाँ, यही चाकू है ।"
"योर ऑनर मेरा चौथा और आखरी गवाह है मायादेवी ! वह औरत, जिसकी आँखों के सामने कत्ल किया गया । इस वारदात की चश्मदीद गवाह ।"
"नो क्वेश्चन ।" रोमेश ने पहले ही कहा, रोमेश के होंठों पर मुस्कराहट थी ।
लोग हँस पड़े ।
मैडम माया सिर झुकाये धीरे-धीरे अदालत में दाखिल हुई । वह अब खुली किताब थीं, उसके बारे में पहले ही समाचार पत्रों में खूब छप चुका था और लोग उसे देखना भी चाहते थे । आखिर वह कौन-सी सुन्दरी है, जिसके फ्लैट पर एक वी.आई.पी. का मर्डर हुआ । जे.एन. के इस लेडी से क्या ताल्लुक थे ?
माया देवी सफेद साड़ी पहने हुये थी । इस साड़ी में लिपटा उसका चांदी-सा बदन झिलमिला रहा था । लबों पर ताजगी थी, चेहरा अब भी सुर्ख गुलाब की तरह खिला हुआ था । आँखों में मदहोशी थी, अगर वह किसी की तरफ देख भी लेती, तो बिजली-सी कौंध जाती थी।
माया कटघरे में आ खड़ी हुई ।
"आपका नाम ?" राजदान ने सवाल किया ।
"माया देवी ।"
"गीता पर हाथ रखकर कसम खाइये ।"
माया देवी के सामने गीता रख दी गयी । हाथ रखने से पूर्व उसने सामने के कटघरे में खड़े रोमेश को देखा । दोनों की आंखें चार हुई । कभी वह नजरों से खुद बिजली गिराती थी, अभी रोमेश की आंखों से बिजली उतरकर खुद उसी पर गिर रही थी ।
उसने शपथ की रस्म शुरू कर दी ।
"हाँ, तो मैडम माया देवी ! आप विवाहिता हैं ?" राजदान ने पूछा ।
"विवाहिता के बाद विधवा भी ।" माया देवी बोली, "उचित होगा कि मेरी प्राइवेट लाइफ के सम्बन्ध में आप कोई प्रश्न न करें ।"
"नहीं, हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं है । हम सिर्फ यह जानना चाहते हैं कि जिस रात जे.एन. की हत्या की गयी, वारदात की उस रात यानि दस जनवरी की रात क्या हुआ ?"
"वारदात की रात से पहले एडवोकेट रोमेश सक्सेना मेरे फ्लैट पर मुझसे मिलने आये, उस मुलाकात से पहले मैंने यह नाम सुना था कि यह शख्स मर्डर मिस्ट्री सुलझाने वाला ऐसा एडवोकेट है, जैसा वर्णन किताबों में पाया जाता है । मैंने इनके सॉल्व किये कई केस अखबारों में पढ़े थे । उस दिन जब यह मुझसे मिलने आये, तो मुझे बड़ी हैरानी हुई, धड़कते दिल से मैंने इनका स्वागत किया । इस पहली मुलाकात में ही इन्होंने मुझे स्तब्ध कर दिया ।"
माया देवी कुछ पल के लिए रुकी ।
"इन्होंने मुझसे कहा कि यह मुझे एक केस का चश्मदीद गवाह बनाने आये हैं । मैं हैरान हो गई कि जब कोई वारदात मेरे सामने हुई ही नहीं, तो मैं चश्मदीद गवाह कैसे बन सकती हूँ ? मैंने यह सवाल किया, तो रोमेश सक्सेना ने कहा कि वारदात हुई नहीं होने वाली है । एक कत्ल मेरे सामने होगा और मैं उस मर्डर की आई विटनेस बनूंगी । मुझे उस वक्त वह किसी जासूसी फिल्म का या किसी कहानी का प्लाट महसूस हुआ । उस वक्त क्या, कत्ल होने तक मुझे यकीन ही नहीं आता था कि सचमुच मेरे सामने कत्ल होगा और मैं यहाँ कटघरे में आई विटनेस की हैसियत से खड़ी होऊँगी ।"
"क्या हुआ उस रात ?"
"उस रात !" माया देवी की निगाह एक बार फिर रोमेश पर ठहर गयी, "किसी अजनबी ने मुझे फोन किया । करीब साढ़े नौ बजे फोन आया कि मेरे अंकल का एक्सीडेंट हो गया और वह जसलोक में एडमिट कर दिये गये हैं । मैं उसी वक्त हॉस्पिटल के लिए रवाना हो गयी । वहाँ पहुँचकर पता लगा कि फोन फर्जी था । वह फोन किसने किया था मिस्टर ?" यह प्रश्न माया ने रोमेश से किया ।
रोमेश चुप रहा ।
"मिस्टर रोमेश, मैं तुमसे पूछ रही हूँ, किसने किया वह फोन ?"
"आपको मुझसे पूछताछ करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है ।" रोमेश ने उत्तर दिया, "फिर भी मुझे यह बताने में कोई हर्ज नहीं कि फोन मैंने आपके फ्लैट के करीबी बूथ से किया था और आपको जाते हुए भी देखा ।"
"सुन लिया आपने मी लार्ड ।" राजदान बोला, "कितना जबरदस्त प्लान था इस शख्स का ।"
"आगे क्या हुआ ?" न्यायाधीश ने पूछा ।
"जब मैं लौटकर आई, तो मेरा फ्लैट हत्यारे के कब्जे में आ चुका था, नौकरानी को बांधकर स्टोर में डाल दिया गया और बैडरूम में मुझ पर अटैक हुआ । वह शख्स मुझे दबोचकर बैडरूम से अटैच बाथरूम में ले गया और मुझे चाकू की नोंक पर विवश किया कि चुपचाप खड़ी रहूँ । इसने मेरे हाथ मोड़कर बांध दिये थे । कुछ देर बाद ही जे.एन. आये । इसने बाथरूम का शावर चला दिया, ताकि जे.एन. यह समझे कि मैं नहा रही हूँ ।"
वह कुछ रुकी ।
"फिर यह शख्स मुझे बाथरूम में छोड़कर बैडरूम में पहुँचा और पीछे से मैं भी डरती-डरती बाथरूम से निकली । मेरे मुंह पर इसने टेप चिपका दिया था, मैं कुछ बोल भी नहीं सकी, यह व्यक्ति आगे बढ़ा और इसने जे.एन. को चाकू घोंपकर मार डाला । मैं अदालत से रिक्वेस्ट करूंगी कि वह यह जानने की कौशिश न करें कि जे.एन. मेरे पास क्यों आये थे ।"
"योर ऑनर !" राजदान के चेहरे पर आज विशेष चमक थी, "मेरे ख्याल से अदालत को यह जानने की आवश्यकता भी नहीं कि जे.एन. वहाँ क्यों आये थे, क्योंकि मर्डर का प्राइवेट लाइफ से कोई ताल्लुक नहीं । माया देवी के बयानों से साफ जाहिर होता है कि क़त्ल कि प्लानिंग बड़ी जबरदस्त थी और कातिल पहले से जानता था कि जे.एन. ने वहाँ पहुंचना ही है । अब सब आइने की तरह साफ है । रोमेश सक्सेना ने ऐसा जघन्य अपराध किया है, जैसा इससे पहले किसी ने कभी नहीं किया, अदालत से मेरा अनुरोध है कि रोमेश सक्सेना को बहुत कड़ी से कड़ी सजा दी जाये । दैट्स आल योर ऑनर ।"
"मुलजिम रोमेश सक्सेना क्या आप माया देवी से कोई प्रश्न करना चाहेंगे ?" न्यायाधीश ने पूछा ।
"नहीं योर ऑनर ! मैं किसी की प्राइवेट लाइफ के बारे में कोई सवाल नहीं करना चाहता, मेरा एक सवाल सैंकड़ों सवाल खड़े कर देगा । मुझे माया देवी से सहानुभूति है, इसलिये कोई प्रश्न नहीं ।"
माया देवी ने गहरी सांस ली । वह सोच रही थी कि रोमेश उसकी प्राइवेट लाइफ के सवालों को उछालेगा, पूछेगा, क्या जे.एन. हर शनिवार उसके फ्लैट पर बिताता था ? जे.एन. से उसके क्या सम्बन्ध थे, वह इस किस्म के सवालों से डरती थी ।
लेकिन अब कोई डर न था ।
रोमेश ने उसे शरारत भरी मुस्कराहट से विदा किया ।
☐☐☐
 
"अब मैं अपना आखिरी गवाह पेश करता हूँ, इंस्पेक्टर विजय ।"
इंस्पेक्टर विजय अदालत में उपस्थित था और अगली कतार में बैठा था । वह उठा और गवाह बॉक्स में चला गया । अदालत की रस्में पूरी करने के बाद राजदान ने अपना काम शुरू कर दिया ।
"इस शहर की कानूनी किताब में पिछले कुछ अरसे से दो व्यक्ति चर्चित रहे । नम्बर एक मुल्जिम रोमेश सक्सेना, जो ईमानदारी और सही न्याय दिलाने की प्रतिमूर्ति कहे जाते थे । यह बात सारे कानूनी हल्के में प्रसिद्ध थी कि रोमेश सक्सेना किसी क्रिमिनल का मुकदमा कभी नहीं लड़ते । जिस मुकदमे की पैरवी करते हैं, पहले खुद उसकी छानबीन करके उसकी सच्चाई का पता लगाते हैं, रोमेश सक्सेना ने कभी कोई मुकदमा हारा नहीं ।"
राजदान, रोमेश की तरफ से पलटा ।
उसने विजय की तरफ देखा ।
"यानि दो अपराजित हस्तियां आमने सामने और बीच में, मैं हूँ । जो हमेशा रोमेश से हारता रहा । रोमेश, इंस्पेक्टर विजय का मित्र भी है, किन्तु कर्तव्य के साथ यह रिश्ते नातों को कोई महत्व नहीं देते । यह बेमिसाल पुलिस ऑफिसर है योर ऑनर ! आज भी यह अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करेंगे । क्योंकि जीत हमेशा सत्य की होती है ।"
इस बार रोमेश ने टोका, "आप गलत कह रहे हैं राजदान साहब; कि जीत सत्य की होती है । अदालतों में नब्बे प्रतिशत जीत झूठ की होती है । यहाँ पर हार जीत का फैसला झूठ सच पर नहीं सबूतों और वकीलों के दांव पेंचों पर निर्भर होता है ।"
"देखना यह है कि आप कौन-सा दांव इस्तेमाल करते हैं मिस्टर सक्सेना ।"
"मैं न तो दांव इस्तेमाल कर रहा हूँ और न कोई इरादा है । अदालत को भाषण मत दीजिए, अपने गवाह के बयान जारी करवाइये ।"
"ऑर्डर…ऑर्डर !" न्यायाधीश ने दोनों की नोंक झोंक पर आपत्ति प्रकट की ।
राजदान ने कार्यवाही शुरू की ।
"इंस्पेक्टर विजय अब आप अपना बयान दे सकते हैं ।"
विजय ने बयान शुरू किए ।
"मेरा दुर्भाग्य यह है कि जिसकी हिफाजत के लिए मुझे तैनात किया गया था, उसे नहीं बचा सका और उसके कातिल के रूप में एक ऐसा शख्स मेरे सामने खड़ा है, जो कानून का पाठ पढ़ने वाले होनहार नवोदित हाथों का आदर्श था और जिसका मैं भी उतना ही सम्मान करता हूँ, यहाँ तक कि मैं मुलजिम की मनोभावना और घरेलू स्थिति से भी परिचित था और मित्र होने के नाते इनसे कभी-कभी मदद भी ले लिया करता था । मैं इस मुलजिम को कानून का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति मानता था । परन्तु मुलजिम ने मेरा सारा भ्रम ही तोड़ डाला, इस मुकदमे के हर पहलू को मुझसे अधिक करीब से किसी ने नहीं देखा । यहाँ मैं मकतूल की समाज सेवाओं का उल्लेख नहीं करूँगा, मैं यह बताना चाहता हूँ कि कानून हाथ में लेने का अधिकार किसी को भी नहीं है, जे.एन. कोई वान्टेड इनामी डाकू नहीं था, जो रोमेश सक्सेना उसका क़त्ल करके किसी इनाम का हकदार बनता । लिहाज़ा यह क्रूरतम अपराध था ।"
विजय कुछ रुका ।
"शायद मैं भी गलत रौ में बह गया, बयान की बजाय भाषण देने लगा । वारदात किस तरह हुई, यह मैं बताने जा रहा हूँ । मुझे फोन द्वारा इस क़त्ल की सूचना मिली और मैं तेजी के साथ घटनास्थल की तरफ रवाना हुआ ।"
उसके बाद विजय ने दस जनवरी से लेकर मुलजिम की गिरफ्तारी तक का पूरा बयान रिकार्ड में दर्ज करवाया, यह बताया कि किस तरह सारे सबूत जुटाये गये । विजय के बयान काफी लम्बे थे । बीच-बीच में उसकी टिप्पणियां भी थीं ।
बयान समाप्त होने के बाद विजय ने सीधा रोमेश से सवाल किया, "एनी क्वेश्चन ? "
"नो ।" रोमेश ने उत्तर दिया, "तुम्हारे बयान अपनी जगह बिल्कुल दुरुस्त हैं, तुम एक होनहार कर्त्तव्यपालक पुलिस ऑफिसर हो, यह बात पहले ही अदालत को बताई जा चुकी है ।"
विजय विटनेस बॉक्स से बाहर आ गया ।
तमाम गवाहों और सबूतों को मद्देनजर रखते हुए अदालत इस निर्णय पर पहुंचती है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना ने कानून को मजाक समझते हुए इस तरह योजना बनाकर हत्या की, जैसे हत्या करना अपराध नहीं धार्मिक अनुष्ठान हो । जनार्दन नागारेड्डी समाज सेवा और राजनीतिक क्षितिज की एक महत्वपूर्ण हस्ती थी । ऐसे व्यक्ति की हत्या को सार्वजनिक बनाकर अत्यन्त क्रूरतापूर्ण तरीके से मार डाला गया । मुलजिम ने भी अपना अपराध स्वीकार किया और किसी भी गवाह से जिरह करना उचित नहीं समझा, इससे साफ साबित होता है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना ने हत्या की, अत: ताजेरात-ए-हिन्द जेरे दफा 302 के तहत मुलजिम को अपराधी ठहराया जाता है । परन्तु इससे पूर्व अदालत रोमेश सक्सेना को दण्ड सुनाये, उसे एक मौका और देती है । रोमेश सक्सेना की कानूनी सेवा में स्वच्छ छवि होने के कारण अन्तिम अवसर प्रदान किया जाता है, यदि वह अपनी सफाई में कुछ कहना चाहे, तो अदालत सुनने के लिए तैयार है और यदि रोमेश सक्सेना इस आखिरी मौके को भी नकार देता है, तो अदालत दण्ड सुनाने के लिए तारीख निर्धारित करेगी ।”
न्यायाधीश द्वारा लगी इस टिप्पणी को अदालत में सुनाया गया ।
राजदान के होंठों पर जीत की मुस्कान थी ।
विजय गम्भीर और खामोश था । वैशाली उदास नजर आ रही थी । किसी को यकीन ही नहीं आ रहा था कि रोमेश इतनी जल्दी हार मानकर स्वयं के गले में फंदा बना देगा । किन्तु अदालत में कुछ लोग ऐसे भी बैठे थे, जिन्हें यकीन था कि अब भी पलड़ा पलटेगा, केस अभी फाइनल नहीं हुआ । उनकी अकस्मात दृष्टि रोमेश की तरफ उठ जाती थी ।
रोमेश ने धीरे-धीरे फिर अदालत में बैठे लोगों का अवलोकन किया । घूमती हुई दृष्टि वैशाली, विजय से घूमती राजदान पर ठहर गई ।
"अदालत ने यह एक आखिरी मौका न दिया होता, तो तुम केस जीत चुके थे राजदान ! लेकिन लगता है कि तुम्हारी किस्मत में हमेशा मुझसे बस हारना ही लिखा है ।"
"रस्सी जल गई, मगर बल नहीं गया ।" राजदान बोला ।
"मैं वह रस्सी हूँ राजदान, जिसे कानून की आग कभी नहीं जला सकती ।"
"ऑर्डर… ऑर्डर ?" न्यायाधीश ने मेज बजाई, "मिस्टर रोमेश सक्सेना, आपको जो कुछ कहना है अदालत के समक्ष कहें ।"
रोमेश अब अदालत से मुखातिब हुआ ।
"योर ऑनर, मैं जानता था कि मेरी कानूनी सेवाओं को ध्यान में रखते हुए अदालत मेरे प्रति सॉफ्टकार्नर रखती है और वह मुझे एक आखिरी मौका देगी । मुझे भी इसी मौके का इन्तजार था । योर ऑनर, यह तो अपनी जगह अटल सत्य है कि क़त्ल मैंने ही किया है, परन्तु यह भी अपनी जगह सत्य है कि रोमेश सक्सेना ने जिस मुकदमे को अपने हाथों में लिया, जिसकी पैरवी कि उसे कभी हारा नहीं । यह अलग बात है कि रोमेश पहली बार एक अपराधी का मुकदमा लड़ रहा है ।"
अदालत में बैठे लोग कानाफूसी करने लगे, पीछे से एक शोर-सा उठा ।
"शांत रहिये, शांत !" न्यायाधीश को कहना पड़ा ।
लोग चुप हो गये ।
"आप कहना क्या चाहते हैं सक्सेना ? "
"यही योर ऑनर कि अपराध के इतिहास में ऐसा विचित्र मुकदमा कभी पेश नहीं हुआ होगा कि यह साबित होने पर भी कि मुलजिम ने क़त्ल किया है, अदालत मुलजिम को सजा न देते हुए बाइज्जत रिहा करेगी ।"
"व्हाट नॉनसेन्स !" राजदान चीखा, "यह अदालत का अपमान कर रहा है । कानून का मजाक उड़ा रहा है, क्या समझ रखा है इसने कानून को ?"
"चुप बे कानून के सिपहसालार ! तेरी तो आज बहुत बुरी गत होने होने वाली है, ऐसे औंधे मुंह गिरने वाला है तू कि कई दिन तक होश नहीं आएगा । कानून के नाम पर हमेशा मेरा भूत तुझे सपनों में डराता रहेगा ।"
"योर ऑनर यह गाली गलौज पर उतर आया है ।" राजदान चीखा ।
"ऑर्डर ! ऑर्डर !!"
एक बार फिर सब शांत हो गया ।
"हाँ, योर ऑनर !" रोमेश अदालत से मुखातिब हुआ, "आप मुझे बाइज्जत रिहा करेंगे । क्योंकि मैं जिन तीन गवाहों को अदालत में पेश करूंगा, वह ही इसके लिए काफी हैं, साबित हो जायेगा कि क़त्ल मैंने नहीं किया, जबकि साबित यह भी हो चुका है कि क़त्ल मैंने ही किया है ।"
पीछे वाली बेंच पर ठहाके गूँज उठे ।
"मैं अदालत से दरख्वास्त करूंगा कि मुझे गवाह पेश करने का अवसर दिया जाये ।"
न्यायाधीश ने पानी मांग लिया था । छक्के तो सभी के छूट रहे थे । मुकदमे ने एक सनसनीखेज नाटकीय मोड़ ले लिया था ।
"इजाजत है ।" न्यायाधीश ने कहा ।
"थैंक्यू योर ऑनर, जिन तीन सरकारी अधिकारियों को मैं बुलाना चाहता हूँ, अदालत उन्हें तलब करने का प्रबन्ध करे । नम्बर एक, रेलवे विभाग के टिकट चेकर मिस्टर रामानुज महाचारी ! नम्बर दो, बड़ौदा रेलवे पुलिस स्टेशन का इन्चार्ज इंस्पेक्टर बलवंत सिन्हा ! नम्बर तीन, बड़ौदा डिस्ट्रिक जेल का जेलर कबीर गोस्वामी ! इनके वर्तमान कार्यक्षेत्र के पते भी नोट कर लिए जायें ।"
☐☐☐
 
अदालत से बाहर चंदू, राजा और कासिम डिस्कस कर रहे थे ।
"यार यह तीन नये गवाह कहाँ से आ गये ?" चंदू बोला ।
"अपुन को लगता है कि इसने उनको भी पहले से हमारी तरह फिट करके रखा
होगा । यह तो साला लफड़े पे लफड़ा हो गया ।"
"अरे यार अब तो उसे ख़ुदा भी बरी नहीं करा सकता ।" कासिम बोला ।
"यार मेरे को लगता है, बरी हो जायेगा ।" चंदू बोला, "अगर हो गया, तो मैं उसे मुबारकबाद दूँगा ।"
"अपुन का धंधा भी चमकेगा भाई, सबको पता चल जायेगा कि राजा का खरीदा चाकू-छुरे से क़त्ल करने वाला बरी होता है ।" राजा बोला ।
"मगर क़त्ल तो उसने किया ही है ।"
"यह तो सबको पता है, मगर अब लफड़ा हो गया ।"
शाम के समाचार पत्रों में यह खबर प्रमुख सुर्खियों में छपी थी ।
जे० एन० मर्डर केस में एक नाटकीय मोड़
अपराध जगत का सबसे सनसनीखेज मुकदमा
क्या अदालत रोमेश को बरी करेगी ?यह कहानी आप राजशर्मास्टोरीजडॉटकॉम में पढ़ रहे हैं
तरह-तरह की सुर्खियां थीं, जो अख़बारों में छपी हुई थीं । हॉकरों की बन आई थी । लोग अख़बार पढ़ने के लिये टूटे पड़ रहे थे । गयी रात तक चौराहों, बाजारों, नुक्कड़ो में यही एक बात चर्चा का विषय थी ।
☐☐☐
अदालत खचाखच भरी थी ।
अदालत के बाहर भी लोगों का हुजूम उमड़ा था । हर कोई जे.एन. मर्डर केस में दिलचस्पी लेने लगा था । रोमेश सक्सेना को जिस समय अदालत में पेश किया जा रहा था, कुछ पत्रकारों के कैमरों की फ़्लैश चमकी और कुछ ने आगे बढ़कर सवाल करने चाहे, तरह तरह के प्रश्न थे ।
"आप किस तरह साबित करेंगें कि क़त्ल आपने नहीं किया ?"
"मैं यह साबित नहीं करने जा रहा हूँ ।" रोमेश का जवाब था, "मैं सिर्फ अपने को बरी करवाने जा रहा हूँ ।"
प्रश्न : "आपके तीनों गवाह क्या कहने जा रहे हैं ? "
उत्तर: "वक्त का इन्तजार कीजिए, अभी अदालत में सब कुछ आपके सामने आने वाला है ।"
रोमेश अदालत के कटघरे में पहुँचा ।
अदालत की कार्यवाही शुरू हो चुकी थी ।
"गवाह नम्बर एक, रामानुज महाचारी पेश हों ।"
अदालत ने रामानुज को तलब किया । रामानुज मद्रासी था । करीब पचास साल उम्र होगी, रंग काला तो था ही, ऊपर से काला सूट पहने हुये था । रामानुज को शपथ दिलाई गयी । उसने शपथ ली और अपने चश्मे के अन्दर से पूरी अदालत पर सरसरी निगाह दौड़ाई, फिर उसकी नजरें रोमेश पर ठहर गयी । वह चौंक पड़ा ।
"उसके मुँह से निकला,"तुम, यू बास्टर्ड !"
"हाँ, मैं !" रोमेश बोला, "मेरा पहला सवाल यही है मिस्टर रामानुज, कि क्या तुम मुझे जानते हो ? "
"अरे अपनी सर्विस लाइफ में साला ऐसा कभी नहीं हुआ, तुमने हमारा ऐसा बेइज्जती किया कि हम भूल नहीं पाता आज भी, मिस्टर बास्टर्ड एडवोकेट ।"
"मिस्टर रामानुज, यह अदालत है, अपनी भाषा दुरुस्त रखें ।" न्यायाधीश ने रोका ।
"ठीक सर, बरोबर ठीक बोलूंगा ।"
"गाली नहीं देने का ।" रोमेश बोला, "हाँ तो रामानुज, क्या तुम अदालत को बता सकते हो कि तुम मुझे कैसे जानते हो ?"
"यह आदमी नौ जनवरी को राजधानी में सफर कर रहा था । उस दिन हमारा ड्यूटी था । मैं रेलवे का एम्प्लोई हूँ और मेरी ड्यूटी राजधानी एक्सप्रेस में रहती है । टिकट चेक करते समय मैं इसकी सीट पर पहुँचा, तो यह शख्स दारू पी रहा था । मेरे रोकने पर इसने पहले तो दारू का पैग मेरे मुंह पर मारा और उठकर मेरे गाल पर थप्पड़ मारा जी । मेरी सर्विस लाइफ में पहला थप्पड़ सर ! मैंने टिकट माँगा, तो दूसरा थप्पड़ पड़ा जी । मेरी सर्विस लाइफ का दूसरा थप्पड़ जी, मैं तो रो पड़ा जी । पैसेंजर लोगों ने मुझे इस बदमाश से बचाया, यह बोला मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना हूँ, कौन मेरे को दारू पीने से रोकेगा ? कौन मुझसे टिकट मांगेगा ? हमने यह बात अपने स्टाफ के लोगों को बताया, पुलिस का मदद लिया और बड़ौदा में इसको उतारकर रेलवे पुलिस के हवाले कर दिया । लेकिन मेरी सर्विस लाइफ का पहला और दूसरा थप्पड़, वो मैं कभी भी नहीं भूल पाऊंगा माई लार्ड !"
इतना कहकर रामानुज चुप हो गया ।
"योर ऑनर ।" रोमेश ने कहा, "यह बात नोट की जाये कि रामानुज ने मुझे बड़ौदा स्टेशन पर राजधानी से उतार दिया था । नौ जनवरी की रात राजधानी एक्सप्रेस बड़ौदा में नौ बजकर अठ्ठारह मिनट पर पहुंची थी । मेरे काबिल दोस्त राजदान को अगर कोई सवाल करना हो, तो पूछ सकते हैं ।"
"नो क्वेश्चन ।" राजदान ने रोमेश के अंदाज में कहा, "रामानुज के बयानों से यह बात और भी साफ हो जाती है कि रोमेश सक्सेना को बड़ौदा में उतारा गया और यह शख्स बड़ौदा से सीधा मुम्बई आ पहुंचा, जाहिर है कि इसने बड़ी आसानी से अपनी जमानत करवा ली होगी या फिर पुलिस ने ही नशा उतरने पर इसे छोड़ दिया होगा ।"
"अंधेरे में तीर न चलाइये राजदान साहब, मेरा दूसरा गवाह बुलाया जाये । बड़ौदा रेलवे पुलिस स्टेशन का इंचार्ज इंस्पेक्टर बलवंत आपके इन सब सवालों का जवाब दे देगा । मैं अदालत से दरख्वास्त करूंगा कि बलवंत को अदालत में बुलाया जाये ।"
अदालत ने इंस्पेक्टर बलवंत को तलब किया ।यह कहानी आप राजशर्मास्टोरीजडॉटकॉम में पढ़ रहे हैं
"इंस्पेक्टर बलवन्त सिन्हा हाजिर हो ।"
बलवन्त सिन्हा पुलिस की वर्दी में था । लम्बा तगड़ा जवान था, कटघरे में पहुंचते ही उसने न्यायाधीश को सैल्यूट मारा । अदालती रस्में पूरे होने के बाद बलवन्त की दृष्टि रोमेश पर ठहर गयी ।
"इंस्पेक्टर बलवन्त आप मुझे जानते हैं ?"
"ऑफकोर्स ।” बलवन्त ने उत्तर दिया, "एडवोकेट रोमेश सक्सेना ।"
"कैसे जानते हैं ?"
"क्योंकि मैंने आपको नौ जनवरी की रात लॉकअप में बन्द किया था और रामानुज की रिपोर्ट पर आप पर मुकदमा कायम किया था । फिर अगले दिन आपको कोर्ट में पेश किया गया, जहाँ से आपको बिना टिकट यात्रा करने के जुर्म में दस दिन की सजा हो गई । यह सजा इसलिये हुई, क्योंकि आपने जुर्माना देने से इन्कार कर दिया और न ही अपनी जमानत करवाई !"
"क्या आप बता सकते हैं मुझे सजा किस दिन हुई ?"
"दस जनवरी को ।"
"यह बात नोट कर ली जाये योर ऑनर ! नौ जनवरी को मुझे पुलिस ने कस्टडी में लिया और दस जनवरी को मुझे दस दिन की सजा हो गयी ।"
राजदान एकदम उठ खड़ा हुआ ।
"हो सकता है योर ऑनर सजा होने के बाद मुलजिम के किसी आदमी ने जमानत करवा ली हो और यह बात इंस्पेक्टर बलवंत की जानकारी में न हो । यह भी हो सकता है कि आज तक जुर्माना भर दिया गया हो और मुलजिम सीधा मुम्बई आ गया । अगर यह ट्रेन से आता है, तब भी छ: सात घंटे में बड़ौदा से मुम्बई पहुंच सकता है ।"
"लगता है मेरे काबिल दोस्त या तो बौखलाकर ऊलजलूल बातें कर रहे हैं, या फिर इन्हें कानून की जानकारी नहीं है ।" रोमेश ने कहा, "अगर मेरी जमानत होती या जुर्माने की राशि भर दी जाती, तो पुलिस स्टेशन में केस दर्ज है, वहाँ पूरी रिपोर्ट लगा दी जाती है ।"
"रिपोर्ट लगने पर भी कोई जरूरी नहीं कि इंस्पेक्टर बलवन्त को इसकी जानकारी हो, यह कोई ऐसा संगीन केस था नहीं ।"
"क्यों इंस्पेक्टर, इस बारे में आपका क्या कहना है ?"
"मेरी पक्की जमानत और पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार ही मैंने बयान दिया है । मगर यह एक संभ्रांत फेमस एडवोकेट का मामला न होता, तो मुझे याद भी न रहता । मैं तो इनको रात को ही छोड़ देता, मगर रोमेश सक्सेना ने पुलिस स्टेशन में भी अभद्रता दिखाई, मुझे सस्पेंड तक करा देने की धमकी दी, इसलिये मैंने इनका मामला अपनी पर्सनल डायरी में नोट कर लिया । इन्हें सजा हुई और यह पूरे दस दिन जेल में बिताकर ही बाहर निकले ।"
"ऐनी क्वेश्चन मिस्टर राजदान ?"
राजदान ने इन्कार में सिर हिलाया और रूमाल से चेहरा साफ करता हुआ बैठ गया । साथ ही उसने एक गिलास पानी भी मंगा लिया ।
"जिन लोगों के गले खुश्क हो गये हों, वह अपने लिये पानी मंगा सकते हैं, क्योंकि अब जो गवाह अदालत में पेश किया जाने वाला है, वह साबित करेगा कि मैंने पूरे दस दिन बड़ौदा डिस्ट्रिक जेल में बिताये हैं । मेरा अगला गवाह है बड़ौदा डिस्ट्रिक जेल का जेलर कबीर गोस्वामी ।"
इंस्पेक्टर विजय के चेहरे से भी हवाइयां उड़ने लगी थीं ।
रोमेश का अन्तिम गवाह अदालत में पेश हो गया ।
"मैं मुजरिम को इसलिये जानता हूँ, क्योंकि यह शख्स जब मेरी जेल में लाया गया, तो इसने पहली ही रात जेल में हंगामा खड़ा कर दिया । इसके हंगामा के कारण जेल में अलार्म बजाया गया और तमाम रात हम सब परेशान रहे । मुझे जेल में दौरा करना पड़ गया ।"
"क्या आप पूरी घटना का ब्यौरा सुना सकते हैं ?" न्यायाधीश ने पूछा ।
"क्यों नहीं, मुझे अब भी सब याद है । यह वाक्या दस जनवरी की रात का है, सभी कैदी बैरकों में बन्द हो चुके थे । कैदियों की एक बैरक में रोमेश सक्सेना को भी बन्द किया गया था । रात के दस बजे इसने ड्यूटी देने वाले एक सिपाही को किसी बहाने दरवाजे तक बुलाया और सींखचों से बाहर हाथ निकालकर उसकी गर्दन दबोची, फिर उसकी कमर में लटकने वाला चाबियों का गुच्छा छीन लिया । ताला खोला और बाहर आ गया । उसके बाद अलार्म बज गया । उसने उन्हीं चाबियों से कई बैरकों के ताले खोल डाले । कई सिपाहियों को मारा-पीटा, सारी रात यह तमाशा चलता रहा ।"यह कहानी आप राजशर्मास्टोरीजडॉटकॉम में पढ़ रहे हैं
"उसके बाद तुम्हारे सिपाहियों ने मुझे मिलकर इतना मारा कि मैं कई दिन तक जेल के अन्दर ही लुंजपुंज हालत में घिसटता रहा । मुझे जेल की तन्हाई में ही बन्द रखा गया ।"
"यह तो होना ही था । दस जनवरी की रात तुमने जो धमा-चौकड़ी मचाई, उसका दंड तो तुम्हें मिलना ही था ।"
"दैट्स आल योर ऑनर ! मैं यही साबित करना चाहता था कि दस जनवरी की रात मैं मर्डर स्पॉट पर नहीं बड़ौदा जेल में था, जेल का पूरा स्टाफ और सैकड़ों कैदी मेरा नाटक मुफ्त में देख रहे थे । वहाँ भी मेरे फोटोग्राफ, फिंगरप्रिंट्स मौजूद हैं और क़त्ल करने वाले हथियार पर भी । अब यह फैसला आपको करना है कि मैं उस समय कानून की कस्टडी में था या मौका-ए-वारदात पर था ।"
अदालत में सन्नाटा छा गया ।
"यह झूठ है ।" राजदान चीखा, "तीनों गवाह इस शख्स से मिले हुए हैं, यह जेलर भी ।"
"शटअप ।" जेलर ने राजदान को डांट दिया, "मेरी सर्विस बुक में बैडएंट्री करने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं । मैंने जो कहा है, वह अक्षरसः सत्य है और प्रमाणिक है ।"
"अ… ओके… नाउ यू कैन गो ।" राजदान ने कहा और धम्म से अपनी सीट पर बैठ गया ।
☐☐☐
 
"कानून की किताब में यह फैसला और मुकदमा ऐतिहासिक है । मुलजिम रोमेश सक्सेना पर ताजेरात-ए-हिन्द जेरे दफा 302 का मुकदमा अदालत में चलाया गया । मकतूल जनार्दन नागारेड्डी का क़त्ल मुल्जिम के हाथों हुआ, पुलिस ने साबित किया । लेकिन रोमेश सक्सेना उस रात कानून की हिरासत में पाया गया, इसीलिये यह तथ्य साबित करता है कि दस जनवरी की रात रोमेश सक्सेना घटनास्थल पर मौजूद नहीं था । जो शख्स कानून की हिरासत में है, वह उस वक्त दूसरी जगह हो ही नहीं सकता, इसीलिये यह अदालत रोमेश सक्सेना को बाइज्जत रिहा करती है ।"
अदालत उठ गयी ।
एक हड़कम्प सा मचा, रोमेश की हथकड़ियाँ खोल दी गयीं । जब तक वह अदालत की दर्शक दीर्घा में पहुंचा, उसे वहाँ पत्रकारों ने घेर लिया । बहुत से लोग रोमेश के ऑटोग्राफ लेने उमड़ पड़े ।यह कहानी आप राजशर्मास्टोरीजडॉटकॉम में पढ़ रहे हैं
" नहीं, मैं ऑटोग्राफ देने वाली शख्सियत नहीं हूँ, मैं एक मुजरिम हूँ । जिसने कानून के साथ बहुत बड़ा मजाक किया है । यह अलग बात है कि जिसे मैंने मारा, वह कानून की पकड़ से सुरक्षित रहने वाला अपराधी था । उसे कोई कानून सजा नहीं दे सकता था । अब एक बड़ा सवाल उठेगा, क्योंकि मैं सरेआम क़त्ल करके बरी हुआ हूँ और यही कानून की मजबूरी है । उसके पास ऐसी ताकत नहीं है, जो हम जैसे चतुर मुजरिमों या जे.एन. जैसे पाखण्डी लोगों को सजा दे सके, मैं इसके अलावा कुछ नहीं कहना चाहता ।"
अदालत से बाहर निकलते समय रोमेश की मुलाकात विजय से हो गई ।
"हेल्लो इंस्पेक्टर, जंग का नतीजा पसन्द आया ?"
"नतीजा कुछ भी हो दोस्त, मगर मैंने अभी हार नहीं कबूल की है ।"
"अब क्या करोगे, मुकदमा तो खत्म हो चुका, हम छूट गये ।"
"मैंने जिस अपराधी को पकड़ा है, वह अपराधी ही होता है, उसे सजा मिलती है, मैंने अपनी पुलिसिया जिन्दगी में कभी कोई केस नहीं हारा ।"
"मुश्किल तो यही है कि मैं भी कभी नहीं हारा, तब भला अपना केस कैसे हार जाता ।"
"तुम उस रात मौका-ए-वारदात पर थे ।"
"क्या तुम्हें याद है, जब मैं तुम्हारे फ्लैट को घेर चुका था, तो तुमने मुझ पर फायर किया था, मुझे चेतावनी दी थी, क्या मैं तुम्हारी भावना नहीं पहचानता ।"यह कहानी आप राजशर्मास्टोरीजडॉटकॉम में पढ़ रहे हैं
"बेशक पहचानते हो ।"
"तो फिर जेल में उस वक्त कैसे पहुंच गये ?"
"अगर मैंने यह सब बता दिया, तो सारा मामला जग जाहिर हो जायेगा । लोग इसी तरह क़त्ल करते रहेंगे, कानून सिर्फ एक मजाक बनकर रह जायेगा ।"
"मैं तब तक चैन से नहीं बैठूँगा, जब तक मालूम न कर लूं कि यह सब कैसे हुआ ।"
"छोड़ो, यह बताओ शादी कब रचा रहे हो ?"
विजय ने कोई उत्तर नहीं दिया । आगे बढ़कर जीप में सवार हो गया ।
☐☐☐
शंकर नागारेड्डी शाम के छ: बजे रोमेश के फ्लैट पर आ पहुँचा । रोमेश उसका इन्तजार कर रहा था । रोमेश उस वक्त फ्लैट में अकेला था । डोरबेल बजते ही उसने दरवाजा खोला, शंकर नागारेड्डी एक चौड़ा-सा ब्रीफकेस लिए दाखिल हुआ ।
"बाकी की रकम ।" सोफे पर बैठने के बाद शंकर ने कहा, "एक बार फिर आपको मुबारकबाद देना है । जैसे मैंने चाहा और सोचा, ठीक वैसा ही परिणाम मेरे सामने आया है । रकम गिन लीजिये ।"
"ऐसे धंधों में रकम गिनने की जरुरत नहीं पड़ती ।" रोमेश ने ब्रीफकेस एक तरफ रख लिया ।
"आज के अखबार आपके कारनामे से रंगे पड़े हैं ।" शंकर बोला ।
"मेरे मन में एक सवाल अभी भी कुलबुला रहा है ।"
"वो क्या ?"
"यही कि तुमने यह क़त्ल मेरे हाथों से क्यों करवाया और तुम्हें इससे क्या मिला ?"
"आपके हाथों क़त्ल तो इसलिये करवाया, क्योंकि आप ही यह नतीजा सामने ला सकते थे । आपकी जे.एन. से ठन गयी थी और लोगों को सहज ही यकीन आ जाता कि आपने जे.एन. का बदला लेने के लिए मार डाला । रहा इस बात का सवाल कि मैंने ऐसा क्यों किया, उसका जवाब देने में अब मुझे कोई आपत्ति नहीं ।"
शंकर थोड़ा रूककर बोला ।
"यह तो सारी दुनिया जानती है कि जे.एन. को लोग ब्रह्मचारी मानते थे । उसने शादी नहीं की, लिहाजा उसकी प्रॉपर्टी का कोई वारिस भी नहीं था । लोग समझते थे कि उसने समाज सेवा के लिए अपने को समर्पित किया है । लेकिन हकीकत में वह कुछ और ही था ।"
"उसके कई औरतों से नाजायज सम्बन्ध रहे होंगे, यही ना ।"
"इसके अलावा उसने एक लड़की की इज्जत लूटने के लिये उससे शादी भी की थी । यह शादी उसने एक प्रपंच के तौर पर रची और उस लड़की को कई वर्षो तक इस्तेमाल करता रहा । वह अपने को जे.एन. की पत्नी ही समझती रही, फिर जब जे.एन. का उससे मन भर गया, तो वह उस लड़की को छोड़कर भाग गया । अपनी तरफ से उसने फर्जी शादी के सारे सबूत भी नष्ट कर दिये थे, किन्तु लड़की गर्भवती थी और उसका बच्चा सबसे बड़ा सबूत था । जे.एन. उस समय आवारागर्दी करता था । लड़की माँ बन गयी, उसका एक लड़का हुआ । बाद में जब जे.एन. राजनीति में उतरकर अच्छी पॉजिशन पर पहुंच गया, तो उसकी पत्नी ने अपना हक माँगा । जे.एन. ने उसे स्वीकार नहीं किया बल्कि उसे मरवा डाला । किन्तु वह उसके पुत्र को न मार पाया और पुत्र के पास उसके खिलाफ सारे सबूत थे । या यूं समझिये कि सबूत इकट्ठे करने में उसने कई साल बिता दिये और तब उसने बदला लेने की ठान ली । उसने अपना एक भरोसे का आदमी जे.एन. के दरबार तक पहुँचा दिया और जे.एन. से तुम टकरा गये और मेरा काम आसान हो गया ।"
"यानि तुम जे.एन. की अवैध संतान हो ?"
"अवैध नहीं, वैध संतान ! क्योंकि अब मैं उसकी पूरी सम्पत्ति का वारिस हूँ । उसकी अरबों की जायदाद का मालिक ! मैं साबित करूंगा कि मैं उसका बेटा हूँ । उसने मेरी माँ को मार डाला था, मैंने उसे मार डाला और अब मेरे पास बेशुमार दौलत होगी । मैं जे.एन. की दौलत का वारिस हूँ ।"
"यह बात अब मेरी समझ आ गयी कि तुमने जे.एन. को मायादेवी के फ्लैट पर पहुंचने के लिए किस तरह विवश किया होगा । तुम्हारा आदमी जोकि जे.एन. का करीबी था, यकीनन इतना करीबी है कि मर्डर की तारीख दस जनवरी को आसानी से जे.एन. को मेरे बताये स्थान पर भेजने में कामयाब हो गया ।"
"हाँ, तुमने बीच में मुझे फोन किया था और बताया कि जे.एन. की सुरक्षा व्यवस्था इंस्पेक्टर विजय के हाथों में है, उससे बचकर जे.एन. का क़त्ल करना लगभग असम्भव है । तब मैंने तुमसे कहा, कि इस मामले में मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ । तुम जहाँ चाहोगे, जे.एन. खुद ही अपनी सुरक्षा तोड़कर पहुंच जायेगा और यही हुआ । जे.एन. उस रात वहाँ पहुँचा, जहाँ तुमने उसे क़त्ल करना था ।"
"अब मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि वह शख्स और कोई नहीं सिर्फ मायादास है ।"
"हम दोनों इस गेम में बराबर के साझीदार हैं, अन्दर के मामलों को ठीक करना उसी का काम था । अगर मायादास हमारी मदद न करता, तो तुम हरगिज अपने काम में कामयाब नहीं हो सकते थे ।"
"एक सवाल आखिरी ।"
"पूछो ।"
"तुम्हें यह कैसे पता लगा कि पच्चीस लाख की रकम हासिल करने के लिए मैं यह सब कर गुजरूँगा ।"
"यह बात मुझे पता चल गई थी कि तुम्हारी पत्नी तुम्हें छोड़कर चली गई है और तुम उसे बहुत चाहते हो । उसे दोबारा हासिल करने के लिए तुम्हें पच्चीस लाख की जरुरत है, बस मैंने यह रकम अरेंज कर दी और कोई सवाल ?"
"नहीं, अब तुम जा सकते हो । हमारा बिजनेस यही पर खत्म होता है, दुनिया को कभी यह न मालूम होने पाये कि हमारा तुम्हारा कोई सम्बन्ध था ।"यह कहानी आप राजशर्मास्टोरीजडॉटकॉम में पढ़ रहे हैं
शंकर, रोमेश को रुपया देकर चलता बना ।
अब रोमेश सोच रहा था कि इस पूरे खेल में मायादास ने एक बड़ी भूमिका अदा की और हमेशा पर्दे के पीछे रहा । मायादास ने ही जे.एन. को मर्डर स्पॉट पर बिना किसी सुरक्षा के भेज दिया था । मायादास का ध्यान आते ही रोमेश को याद आया कि किस तरह इसी मायादास ने उसकी पत्नी सीमा को उसके फ्लैट पर नंगा कर दिया था । इसकी उसी हरकत ने सीमा को उससे जुदा कर डाला ।
"सजा तो मुझे मायादास को भी देनी चाहिये ।" रोमेश बड़बड़ाया, "मगर अभी नहीं । अभी तो मुझे सिर्फ एक काम करना है, एक काम । सीमा की वापसी ।"
सीमा का ध्यान आते ही वह बीती यादों में खो गया ।
"अब मैं तुम्हें पच्चीस लाख भी दूँगा सीमा ! मैं आ रहा हूँ, जल्द आ रहा हूँ तुम्हारे पास । मैं जानता हूँ कि तुम भी बेकरारी से मेरा इन्तजार कर रही होगी ।"
रोमेश उठ खड़ा हुआ ।
☐☐☐
 
रोमेश ने दिल्ली फोन मिलाया ।
उसने फोन कैलाश वर्मा को मिलाया था ।
कैलाश वर्मा घर पर मिल गया ।
"हैलो, मैं रोमेश बोल रहा हूँ ।"
"हाँ रोमेश, मैं तो तुम्हें याद ही कर रहा था ।"
"अब मैंने वह पेशा छोड़ दिया है, अब न तो मैं किसी के लिए जासूसी करता हूँ, न ही वकालत ।"
"यह बात नहीं है यार, मैं तो तुम्हारे आर्ट की दाद देना चाहता था । तुमने किस सफाई से जे.एन. का क़त्ल किया और ऐसे कामों की तो बड़ी मोटी रकम मिल सकती है, करोगे ?"
"नो मिस्टर कैलाश वर्मा ! मुझे यह काम इसलिये करना पड़ा, क्योंकि तुमने जे.एन. को बचा लिया था । खैर छोड़ो, मैं फिलहाल तुम्हारी एजेन्सी से एक काम लेना चाहता हूँ । काम की फीस मिलेगी ।"
"बोलो ।"
"दिल्ली में मेरी पत्नी सीमा कहीं रहती है ।" रोमेश बोला, "तुम तो सीमा से मिल चुके हो न ।"
"हाँ, शक्ल से अच्छी तरह वाफिक हूँ । मगर बात क्या है ? "
"सीमा आजकल दिल्ली में है, मुझे सिर्फ एक सूत्र का पता है, उसी के सहारे तुम सीमा का अता-पता निकालो । वह आजकल मुझसे अलग रह रही है ।"
"अच्छा-अच्छा ! यह बात है, सूत्र बताओ ।"
"होटल डिलोरा में उसका आना-जाना है । वह एक अच्छी सिंगर भी है । हो सकता है कि वहाँ आती हो । उसने दस जनवरी की रात वहाँ एक रूम भी बुक किया हुआ था, आगे तुम खुद पता लगाओ ।"
"तुम मुझे उसका एक फोटो तुरन्त भेज दो, बाकी मुझ पर छोड़ दो ।"
"काम जल्दी करना है ।"
"जल्दी ही होगा ।"
"फीस ?"
"अपने लोग खो जायें, तो उन्हें खोजकर घर पहुंचाने में बड़ा सुख मिलता है रोमेश ! यही सुख और खुशी मेरी फीस है । मैंने एक बार तुम्हें बहुत नाराज कर दिया था, शायद नाराजगी दूर करने का मौका मेरे हाथ आ गया है ।"
कैलाश वर्मा ने वह काम जल्दी ही कर डाला ।
एक सप्ताह में ही उसका फोन आ गया ।
"भाभी यहाँ नहीं है । वह कुछ दिन राजौरी गार्डन में रहीं, उसके बाद मुम्बई लौट गयीं । दिल्ली में उसकी एक खास सहेली रहती है, उससे मुम्बई का एक पता मिला है । नोट कर लो, शायद सीमा भाभी उसी पते पर मिल जायेगी ।"
रोमेश ने मुम्बई के पते पर मालूम किया ।
पता लगा सीमा मुम्बई में ही है और उसी फ्लैट पर रहती है, जिसका पता कैलाश वर्मा ने दिया था ।
☐☐☐
हल्की बरसात हो रही थी ।
आकाश पर सुबह से बादल छाये हुए थे ।
रोमेश एक टैक्सी में बैठा था । टैक्सी में नोटों से भरा सूटकेस रखा था । वह कोलाबा के क्षेत्र में एक इमारत के सामने रुका । इमारत की पहली मंजिल पर उसकी दृष्टि ठहर गई । टैक्सी से बाहर कदम रखने से पहले वह फ्लैट का जायजा ले लेना चाहता था ।
रात के ग्यारह बज रहे थे ।
दिन भर से वह प्रतीक्षा कर रहा था कि बारिश रुक जाये, तो वह चले । लेकिन बारिश ने रुकने का नाम नहीं लिया । बेताबी इतनी बढ़ चुकी थी कि वह अपने को रोक भी न सका और उसी रात को ही चल पड़ा । उसने क़त्ल की सारी कमाई सूटकेस में भर ली थी और अब वह ये सारी रकम सीमा को देने जा रहा था ।
फ्लैट की खिड़की पर रोशनी थी ।
खिड़की पर एक स्त्री का साया खड़ा था ।
"शायद वह हर रात मेरा इसी तरह से इंतजार करती होगी ।"
"उसे भी तो हमारी मुहब्बत की यादें सताती होंगी ।"
"वह भी तो मेरी तरह तन्हाई में रोती होगी ।"
"उसको हम कितना प्रेम करते थे ।"
रोमेश देखते ही पहचान गया कि खिड़की पर खड़ी स्त्री उसकी पत्नी सीमा ही है । वह हसीन ख्यालों में खो गया, इतनी दौलत उसने चाही थी । मनचाही दौलत देखकर वह कितनी खुश होगी, उसे बांह में समेट लेगी और ?
तभी रोमेश को एक झटका-सा लगा ।
खिड़की पर धीरे-धीरे एक पुरुष साया उभरा । उसे देखकर रोमेश के छक्के ही छूट गये, पुरुष ने स्त्री को बांहों में लिया । दोनों खिड़की से हटते चले गये ।
"हैं, यह कौन था ?"
"कहीं ऐसा तो नहीं, वह औरत सीमा न हो ।"
"देखना चाहिये छिपकर ।"
रोमेश ने टैक्सी का भुगतान किया, सूटकेस को उठाया और नीचे उतर गया । वह रेनकोट पहने हुए था । इमारत का गेट पार करके वह अन्दर चला गया और फिर शीघ्र ही उस फ्लैट तक पहुंच गया । उसने दरवाजे पर कान लगा दिये । फ्लैट का दरवाजा अन्दर से बन्द था, फिर भी अन्दर से हँसने की आवाजें बाहर तक पहुंच रही थी । हँसने की आवाज सीमा की थी । वह खिलखिलाकर हँस रही थी ।
फिर एक पुरुष का स्वर सुनाई दिया, वो कुछ कह रहा था ।
रोमेश ने की-होल से झांककर देखा, अन्दर रोशनी थी । रोशनी में जो कुछ रोमेश ने देखा, उसके तो छक्के ही छूट गये । उसकी पत्नी किसी पुरुष की बांहों में थी, दोनो एक-दूसरे को बेतहाशा चूम रहे थे । रोमेश का शरीर सर से पाँव तक कांप गया । उसने ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि उससे क़त्ल करवाने वाला शंकर नागारेड्डी उसकी बीवी का आशिक है और उसकी बीवी इस काम में शामिल है । उसके सामने सारे चेहरे घूमने लगे, कैसे सब कुछ हुआ ?
उसकी बीवी का घर छोड़कर जाना और पच्चीस लाख की रकम की मांग करना, फिर शंकर का आना और पच्चीस लाख की डील करना, तो क्या उसकी बीवी सीमा पहले से ही शंकर से मिली हुई थी ? क्या मायादास ने भी नाटक ही किया था, ताकि ऐसी परिस्थिति खड़ी की जा सके ?
"मैं अपने आपको कितना चतुर खिलाड़ी समझ रहा था और यहाँ तो खुद मेरी बीवी ने मुझे मात दे दी ।"
रोमेश पर जुनून सवार हो गया । उसने दरवाजे पर ठोकरें मारनी शुरू कर दीं । धाड़-धाड़ की आवाजें इमारत में गूँजने लगीं । रोमेश तब तक पागलों की तरह टक्करें मारता रहा, जब तक दरवाजा टूट न गया । दरवाजा तोड़ते ही रोमेश आंधी तूफान की तरह अंदर घुसा ।
"खबरदार आगे मत बढ़ना ।" शंकर ने रोमेश की तरफ रिवॉल्वर तान दी ।
"तो यह है उस सवाल का जवाब कि तुमको कैसे पता चला कि मैं पच्चीस लाख के लिए कुछ भी कर सकता हूँ ।"
"हाँ, और मैं वह रकम वापिस भी चाहता था । तुम इस रकम को सीमा के हवाले करते और सीमा मुझे दे देती । लेकिन इस रकम को हम अब तुम्हें दान करते हैं । जाओ यहाँ से ।"
"साले ।" रोमेश ने पास रखा सूटकेस उछाला ।
शंकर ने फायर किया, उसी समय सूटकेस शंकर के हाथ से टकराया, सूटकेस के साथ-साथ रिवॉल्वर भी जमीन पर आ गिरी । रोमेश का ध्यान रिवॉल्वर पर था । उसका अनुमान था कि शंकर दोबारा रिवॉल्वर पर झपटेगा, इसलिये रोमेश ने रिवॉल्वर पर ही छलांग लगाई । रिवॉल्वर रोमेश ने अपने काबू में तो कर ली, लेकिन तब तक शंकर टूटे दरवाजे के रास्ते छलांग लगाकर भाग चुका था । रोमेश दरवाजे तक आया, लेकिन तब तक शंकर उसकी दृष्टि से ओझल हो गया ।
रोमेश हांफ रहा था ।
उसने शंकर का पीछा करना व्यर्थ समझा ।
वह टूटे दरवाजे से पलटा ।
सामने उसकी बीवी खड़ी थी । उसकी बेवफा बीवी, वह बीवी जिसने उसे कहीं का न छोड़ा था, जिसे वह बहुत प्यार करता था, जिसके लिए उसने अपने आदर्शों का खून कर दिया था । रोमेश का हाथ धीरे-धीरे उठने लगा ।
रिवॉल्वर की नाल उठ रही थी, ज्यों-ज्यों उसका हाथ सीमा की तरफ उठता जा रहा था, उसका चेहरा जर्द पड़ता जा रहा था । फिर वह सूखे पत्ते की तरह कांपती पीछे हटी, कहाँ तक हटती, चंद कदम के फासले पर ही तो दीवार थी, वह दीवार से जा लगी ।
रिवॉल्वर वाला हाथ पूरी तरह तन गया था ।
रोमेश की आँखों में खून उतर आया था ।
"नहीं ।" सीमा के मुंह से निकला, "नहीं, मुझे माफ कर दो ।"
"धांय ।" एक गोली चली ।
सीमा के मुंह से चीख निकली ।
"धांय धांय धांय ।"
रोमेश ने पूरी रिवॉल्वर खाली कर डाली । रिवॉल्वर की सारी गोलियां ख़ाली होने पर भी वह ट्रिगर दबाता रहा, पिट ! पिट !! पिट !!!
खून से लहूलुहान सीमा फर्श पर ढेर हो गई थी ।
रोमेश का हाथ धीरे-धीरे नीचे आता चला गया । खट की आवाज हुई । रिवॉल्वर फर्श पर आ गिरी । कुछ देर तक रोमेश खामोश खड़ा रहा । सूटकेस खुला हुआ था, कमरे में नोट बिखरे पड़े थे । रोमेश ने जुनूनी हालत में नोटों को फाड़-फाड़कर सीमा की लाश पर फेंकना शुरू कर दिया ।
"यह ले, पच्चीस लाख की दौलत ! तुझे यही चाहिये था न, ले ।"
वह नोट फेंकता रहा ।
टूटे हुए खुले दरवाजे के बाहर कुछ चेहरे नजर आ रहे थे ।
रोमेश, सीमा की लाश पर गिरकर रोने लगा । फूट-फूटकर रोता रहा । फिर उसने धीरे-धीरे खुद को शव से हटाया और टेलीफोन के करीब पहुँचा । टेलीफोन पर वह पुलिस को फोन करने लगा ।
☐☐☐
 
रोमेश का मुकदमा हारने के बाद इंस्पेक्टर विजय का ट्रांसफर हो गया था ।
गोरेगांव से कोलाबा पुलिस स्टेशन में उसका तबादला हुआ था, विजय का प्रमोशन ड्यू था, परन्तु इस केस में पुलिस की जो छीछालेदर हुई, उसका दण्ड भी विजय को भोगना पड़ा, उसका एक स्टार उतर गया था । अब वह सब-इंस्पेक्टर बन गया था । उसकी सर्विस बुक में एक बड़ी बैडएन्ट्री हो चुकी थी ।
कोलाबा पुलिस स्टेशन में स्टेशन का इंचार्ज रविकांत बोरेड था, विजय उसका मातहत बनकर गया था ।
इस वक्त इंचार्ज घर पर सो रहा था और ड्यूटी पर विजय मौजूद था । रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे, अचानक कोलाबा पुलिस थाने में टेलीफोन की घंटी बज उठी । विजय ने फोन रिसीव किया ।
"हैलो कोलाबा पुलिस स्टेशन ।" दूसरी तरफ से पूछा गया ।
"यस, इट इज कोलाबा पुलिस स्टेशन ।"
"मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना बोल रहा हूँ ।"
"क्या ?" विजय चौंक पड़ा, "तुमको कैसे पता चला कि मेरा ट्रांसफर इस थाने में हो गया है, आज ही तो मैं यहाँ आया हूँ ।"
"ओह विजय तुम बोल रहे हो ? सॉरी, मुझे नहीं मालूम था कि यहाँ भी तुम मिलोगे । खैर अच्छा ही है यार, तुम हो । देखो, अब जो मैं कह रहा हूँ, जरा गौर से सुनो ।"
"बोलो, तुम्हारी हर बात मैंने आज तक गौर से ही तो सुनी है । तभी तो मैं इंस्पेक्टर से सब इंस्पेक्टर बन गया, थाना इंचार्ज से सहायक बन गया । लेकिन यह मत समझना कि मैं हार गया हूँ, मैं यह जरुर पता लगा लूँगा कि तुमने जे.एन. का क़त्ल कैसे किया ?"
"यह मैं तुम्हें खुद ही बता दूँगा ।"
"नहीं दोस्त, मैं तुमसे नहीं पूछने वाला, मैं खुद इसका पता लगाऊंगा ।"
"खैर यहाँ मैंने तुम्हें फोन एक और काम के सिलसिले में किया है । अभी इन बातों के लिए मेरे पास वक्त नहीं है । तुम अभी अपनी रवानगी दर्ज करो, पता मैं बताता हूँ । मैंने यहाँ एक खून कर डाला है ।”
"क्या ? " विजय उछल पड़ा ।
"हाँ विजय, मैंने अपनी बीवी का खून कर डाला है ।"
"त… तुमने… भाभी का खून ? मगर भाभी तो दिल्ली में रहती हैं ?"
"रहती थी, अब यहाँ है, वो भी जिन्दा नहीं मुर्दा हालत में ।"
"देखो रोमेश, मेरे साथ ऐसा मजाक मत करो ।"
"यह मजाक नहीं है । तुरन्त अपनी फोर्स लेकर मेरे बताए पते पर पहुंचो, यहाँ मैं पुलिस का इन्तजार कर रहा हूँ । अगर तुमने कोताही बरती, तो मैं पुलिस कमिश्नर को फोन करूंगा । उसके बाद तुम्हारी वर्दी भी उतर सकती है, एक कातिल तुम्हें फोन करता रहा और तुम मौका-ए-वारदात पर नहीं पहुंचे ।"
"पता बताओ ।"
रोमेश ने पता बताया और फोन कट गया ।
विजय ने थाना इंचार्ज रविकांत को उसी वक्त जगाया और स्वयं रवानगी दर्ज करके घटनास्थल की तरफ रवाना हो गया । उसके साथ चार सिपाही थे ।
☐☐☐
बिल्डिंग के बाहर भीड़ जमा हो गई थी । बारिश थम गई थी । इमारत में रहने वाले दूसरे लोग भी हलचल में शामिल थे । इसी हलचल से पता चल जाता था कि कोई वारदात हुई है । विजय अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुँचा ।
खून से लथपथ सीमा की लाश पड़ी थी । रोमेश के लिबास पर भी खून के धब्बे थे । वह विक्षिप्त-सा बैठा था । पास ही रिवॉल्वर पड़ी थी । पूरे कमरे में नोट बिखरे पड़े थे, लाश के ऊपर भी नोट पड़े हुए थे ।
विजय ने कैप उतारी और लाश का मुआयना करना शुरू किया । जरा से भी प्राण न बचे, सीमा की मौत को काफी समय हो गया था । उसका सीना गोलियों से छलनी नजर आ रहा था ।
विजय उठ खड़ा हुआ । उसने एक चुभती दृष्टि रोमेश पर डाली, फिर उसका ध्यान रिवॉल्वर पर गया । उसने रिवॉल्वर पर रुमाल डाला और बड़े एतिहायत से उसे उठा लिया ।
रिवॉल्वर अपनी कस्टडी में लेने के बाद वह रोमेश की तरफ मुड़ा ।
रोमेश ने दोनों हाथ आगे बढ़ा दिये ।
विजय ने हथकड़ी पहना दी । रोमेश को कस्टडी में लेने के उपरान्त पुलिस की जांच पड़ताल शुरू हो गयी । घटनास्थल पर रविकांत बोरेड के अतिरिक्त वरिष्ट अधिकारी भी आ पहुंचे । पुलिस फोटो एंड फिंगर प्रिन्टस स्कैन के अतिरिक्त वैशाली भी घटनास्थल पर पहुंची थी ।
रोमेश को कोलाबा पुलिस थाने के लॉकअप में बंद कर दिया गया ।
लॉकअप में बन्द होते समय रोमेश ने कहा, "विजय ! मैंने इंसानों की अदालत को धोखा तो दे दिया, लेकिन आज मुझे यकीन हुआ कि इंसानों की अदालत से भी बड़ी एक अदालत और है । वह अदालत भगवान की अदालत है । जहाँ हर गुनाह की सजा मिलती है । उसी भगवान ने मुझसे यह दूसरा खून करवाया और मैं इस खून के जुर्म से अपने आपको बचा नहीं सकता, क्योंकि मैं इस अपराध से बचना भी नहीं चाहूँगा ।"
विजय ने कोई उत्तर नहीं दिया और लॉकअप में ताला डाल दिया ।
☐☐☐
एक बार फिर अख़बारों की सुर्खियों में रोमेश का नाम था । सीमा की तस्वीरें भी समाचार पत्रों में छपी थीं । वह बड़ा सनसनीखेज कांड था, एक पति ने अपनी पत्नी के सीने में रिवॉल्वर की सारी गोलियां उतार दी थीं । रोमेश ने उसकी बेवफाई की दास्तान किसी को नहीं बताई थी, इसलिये अखबारों में तरह-तरह की शंकायें छपी ।
"वहाँ एक आदमी और मौजूद था ।" विजय ने अगली सुबह रोमेश से पूछताछ शुरू कर दी ।
"मुझे नहीं मालूम ।" रोमेश ने कहा ।
"लेकिन मैं पता निकाल लूँगा ।"
"उसका कसूर ही क्या है । सारा कसूर तो मेरी बीवी का है, उसने मेरे साथ बेवफाई की, मैंने उसे इसी की सजा दी ।"
"हमें यह भी तो पता लगाना है कि उस कमरे में जो नोट बिखरे पाये गये और बची हुई नोटों की गड्डियां जो सूटकेस में थीं, वह कहाँ से आयीं ? तुम्हें इतनी मोटी रकम किसने दी ?"
"ठहरो, मैं तुम्हें सब कुछ बता सकता हूँ, मगर मेरी एक शर्त है ।"
"क्या ?"
"तुम उसे सार्वजनिक नहीं करोगे । मैंने जे.एन. का मर्डर किया, उसे अदालत में ओपन नहीं करोगे । मुझे जो सजा मिलनी थी, वह सीमा के क़त्ल से मिल जायेगी । खून एक हो या दो, उससे क्या फर्क पड़ता है । उसकी सजा एक ही होती है, जो दो बार तो नहीं दी जा सकती । अगर मुझे फाँसी मिली, तो फाँसी दो बार नहीं दी जा सकती । इस शर्त पर मैं तुम्हें सब कुछ बता सकता हूँ ।"
"नहीं, एडवोकेट सक्सेना ! इस बेदाग पुलिस इंस्पेक्टर की बड़ी जग हंसाई हुई है । बड़ी रुसवाई हुई है । इसलिये यह फिर से अपना मान-सम्मान पाने के लिए छटपटा रहा है और यह तब तक मुमकिन नहीं, जब तक तुम्हें जे.एन. मर्डर केस में सजा न हो जाये, भले ही तुम्हें इस ताजे केस में सजा न हो ।"
"फिर मैं कुछ नहीं बताने वाला ।"
"मैं मालूम कर लूँगा । तुम्हें घटनास्थल पर बहुत से लोगों ने देखा है । मैं आज तुम्हें रिमाण्ड पर ले लूंगा, तुमने इतनी जल्दी दूसरा क़त्ल किया है इसलिये रिमाण्ड लेने में हमें कोई परेशानी नहीं होगी ।"
"तो क्या तुम मुझे टार्चर करोगे ?"
"नहीं वकील साहब, आप एक दिग्गज वकील हैं । आपको टार्चर नहीं किया जा सकता । आप अपना मेडिकल करवाकर कस्टडी में आयेंगे, मैं तुम्हें उसी तरह दस दिन सताऊंगा जिस तरह तुमने जे.एन. को सताया और हर दिन मैं तुम्हें एक चौंका देने वाली खबर सुनाऊंगा ।"
"तुम कभी नहीं जान पाओगे ।"
"वक्त बतायेगा ।"
विजय ने रोमेश को अदालत में पेश करके रिमाण्ड पर ले लिया । उसने दस दिन का ही रिमाण्ड लिया था । रोमेश ने मेडिकल करवाने की कोई आवश्यकता नहीं समझी, वह चुप हो गया था । अब वह किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे रहा था, अदालत में भी वह चुप रहा । उसने अपना कोई बयान नहीं दिया ।
☐☐☐
 
"आज पहला दिन गुजर गया दोस्त ।"
रोमेश चुप रहा, उसने कोई उत्तर नहीं दिया ।
"आज मैं तुम्हें पहली खबर बताने आया हूँ । पहली जोरदार खबर यह है एडवोकेट साहब कि हमने उस शख्स का पता लगा लिया है, जो उस फ्लैट में आपके आने से पहले आपकी पत्नी के साथ मौजूद था । उसका नाम है- शंकर नागारेड्डी ।"
विजय इतना कहकर मुस्कराता हुआ वापिस लौट गया ।
रोमेश ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की ।
वह चुप रहा ।
☐☐☐
एक दिन और गुजर गया ।
विजय एक बार फिर लॉकअप के सामने था । उसने हवलदार से कहा कि ताला खोलो । लॉकअप का ताला खोला गया, विजय अन्दर दाखिल हो गया ।
"एडवोकेट रोमेश सक्सेना साहब, आपके लिए दूसरी खबर है, वह रकम जो फ्लैट में बिखरी पड़ी थी उसके बारे में एक अनुमान है कि वह पच्चीस लाख रुपया आपको शंकर नागारेड्डी ने दिया था । हम शंकर नागारेड्डी को तलाश कर रहे हैं, वह अन्डरग्राउंड हो गया है । मगर हम उसे सरकारी गवाह बना लेंगे और वह सरकारी गवाह बनना भी चाहेगा, वरना हम थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करके उससे उगलवा लेंगे कि उसने यह रकम आपको क्यों दी ।"
विजय रूककर रोमेश के खामोश चेहरे को देखता रहा, जिस पर कोई भाव नहीं था ।
"ऐनी क्वेश्चन ?" विजय ने पूछा ।
रोमेश ने कोई प्रश्न नहीं किया ।
"नो क्वेश्चन ?" विजय ने गर्दन हिलाई और बाहर निकल गया । एक बार फिर लॉकअप पर ताला पड़ गया ।
☐☐☐
तीसरा दिन गुजर गया ।
विजय एक बार फिर लॉकअप में दाखिल हुआ ।
"मेरे साथ वैशाली भी काम कर रही है । वैशाली अब सरकारी वकील बन गई हैं । अगली बीस तारीख को हमारी शादी होने वाली है, ये रहा निमंत्रण ।" विजय ने रोमेश को निमंत्रण दिया ।
"इस तारीख को तुम पैरोल पर छूट सकते हो रोमेश ।"
रोमेश कुछ नहीं बोला ।
"इस खुशी के मौके पर मैं तुम्हें कोई बुरी खबर नहीं सुनाना चाहता । हालात कुछ भी हो, तुम्हें शादी में शरीक होना है ।"
रोमेश ने कोई उत्तर नहीं दिया । कार्ड उसके हाथ में थमाकर गर्दन हिलाता बाहर निकल गया ।
☐☐☐
चौथा दिन भी बीत गया ।
रोमेश का मौन व्रत अभी टूटा नहीं था ।
"आज की खबर बहुत जोरदार है रोमेश सक्सेना ?" विजय ने लॉकअप में कदम रखते हुए कहा, "शंकर नागारेड्डी सरकारी गवाह बन गया है और उसने हमें बताया कि उसने पच्चीस लाख रुपया तुम्हें जे.एन. की हत्या के लिए दिया था । उसका तुम्हारी पत्नी से भी लगाव था । अब यह बात भी समझ में आ गई कि तुमने अपनी पत्नी की हत्या क्यों कर डाली । तुम्हारी बीवी यह कहकर तुम्हारी जिन्दगी से रुखसत हो गई कि अगर तुम उसे फिर से पाना चाहते हो, तो उसके एकाउन्ट में पच्चीस लाख रुपया जमा करना होगा और शंकर यह रकम लेकर आ गया । तुमने जे.एन. के क़त्ल का ठेका ले लिया, शर्त यह थी कि तुम्हें क़त्ल के जुर्म में गिरफ्तार भी होना है और बरी भी, तुमने शर्त पूरी कर दी ।"
विजय लॉकअप में टहलता रहा ।
"बाद में तुम यह रुपया लेकर अपनी पत्नी के पास पहुंचे, वह लोग यह सोच भी नहीं सकते थे कि तुम उस फ्लैट तक पहुंच जाओगे । वह एक दूसरे से शादी करने का प्रोग्राम बनाये बैठे थे । सीमा यह चाहती थी कि पहले पच्चीस लाख की रकम भी तुमसे ले ली जाये, उसके बाद वह शंकर से शादी कर लेती और तुम हाथ मलते रह जाते ।"
रोमेश चुप रहा ।
"तुमने बड़ी जल्दी अपनी पत्नी का पता निकाला और जा पहुंचे उस जगह, जहाँ तुम्हारी बीवी किसी और की बांहों में मौजूद थी और फिर तुमने अपनी बीवी को बेरहमी से मार डाला । शंकर नागारेड्डी अपना लाइसेन्सशुदा रिवॉल्वर छोड़ गया था, जिसकी पहली गोली उसने तुम पर चलाई, तुम बच गये, शंकर को भागने का मौका मिल गया । वरना तुम उसका भी खून कर डालते । हो सकता है, तुम अभी भी यह तीसरा खून करने का इरादा रखते हो ।"
रोमेश चुप रहा ।
"मैं चाहता था कि जिस तरह तुम अदालत में बहस करते हो, उसी तरह यहाँ भी करो । लेकिन लगता है, तुम्हारा मौन व्रत फाँसी के फंदे पर ही टूटेगा ।"
इतना कहकर विजय बाहर निकल गया ।
☐☐☐
"अब यह बात तो साफ है कि इस काम के लिए दो आदमियों का इस्तेमाल हुआ ।" विजय ने कहा ।
"दूसरा कौन ?" वैशाली बोली, "क्या कोई हमशक्ल था ?"
"मेरे ख्याल से यह डबल रोल वाला मामला हरगिज न था, जेल के अन्दर तो रोमेश ही था, यह पक्के तौर पर प्रमाणिक है ।"
"कैसे कह सकते हो विजय ?"
"साफ सी बात है, हमने रोमेश को राजधानी में बिठाया । राजधानी बड़ौदा से पहले कहीं रुकी ही नहीं । रामानुज ने रोमेश को बड़ौदा में पुलिस के हैण्डओवर कर दिया । जहाँ से रोमेश को जेल भेज दिया गया । जब किसी आदमी को सजा होती है, तो उसके फोटो और फिंगर प्रिंट उतारे जाते हैं । जेल में दाखिल होते समय भी फिंगर प्रिंट लिये जाते हैं । रोमेश सक्सेना दस जनवरी को जेल में था । अब हमें यह पता लगाना है कि मौका-ए-वारदात पर कौन शख्स पहुँचा । लेकिन अगर वह शख्स कोई और था, तो माया देवी ने उसे रोमेश क्यों बताया ? क्या वह सचमुच रोमेश का हमशक्ल था ? अगर वह रोमेश का हमशक्ल नहीं था, तो क्या माया देवी भी इस प्लान में शामिल थी ।"
"थोड़ी देर के लिए मैं अपने आपको रोमेश समझ लेता हूँ । मेरी पत्नी पच्चीस लाख की डिमांड करके मुझे छोड़कर चली गई और मैं उसे हर कीमत पर हासिल करना चाहता हूँ । नागारेड्डी को भी उसके किये का सबक पढ़ाना चाहता हूँ । कानून उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता । कानून की निगाह में वह फाँसी का मुजरिम है, किन्तु उसे एक दिन की भी सजा नहीं हो सकती । मेरे मन में एक जबरदस्त हलचल हो रही है, मैं फैसला नहीं कर पा रहा हूँ कि जनार्दन नागारेड्डी को क्या सजा दूं या दिलवाऊं और कैसे ? "
विजय खड़ा हुआ और टहलने लगा ।
"तभी शंकर आता है ।" वैशाली बोली, "और जनार्दन नागारेड्डी की हत्या के लिये पच्चीस लाख देने की बात करता है ।"
"कुछ देर के लिये मैं धर्म संकट में पड़ता हूँ, फिर सौदा स्वीकार कर लेता हूँ । सौदा यह है कि मुझे क़त्ल करके खुद को बरी भी करना है, इसका मतलब यह हुआ कि मुझे गिरफ्तार भी किया जायेगा । अब मैं पूरा प्लान बनाता हूँ और सबसे पहले तुम्हें अपने करीब से हटाता हूँ, नौकर को चले जाने के लिये कहता हूँ । अब मैं खास प्लान बनाता हूँ कि मुझे यह काम किस तरह करना है ।"
विजय बैठकर सोचने लगा ।
"चारों गवाहों के बयानों से पता चलता है कि रोमेश पहले ही इनसे मिलकर इन्हें अपने केस के लिये गवाह बना चुका था । इसका मतलब रोमेश यह चाहता था कि पुलिस को वह उस ट्रैक पर ले जाये, जो वह चाहता है । उसने गवाह खुद इसीलिये तैयार किए और पुलिस ठीक उसी ट्रैक पर दौड़ पड़ी, जिस पर रोमेश यानि मैं दौड़ना चाहता था ।"
"और ट्रैक में यह था कि पुलिस इस केस को एक ही दृष्टिकोण से इन्वेस्टीगेट करे । यानि सबको पहले से ही एक लाइन दी गयी, यह कि अगर जे.एन. का मर्डर हुआ, तो रोमेश ही करेगा । रोमेश के अलावा कोई कर ही नहीं सकता । पुलिस को भी इसका पहले ही पता था, इसलिये मर्डर स्पॉट से इंस्पेक्टर विजय तुरंत रोमेश के फ्लैट पर पहुंचा । जहाँ उसे एक आवाज सुनाई दी, रुक जाओ विजय, और इंस्पेक्टर विजय ने एक पल के लिये भी यह नहीं सोचा कि वह आवाज रिकॉर्ड की हुई भी हो सकती है ।"
"माई गॉड !" विजय उछल पड़ा, "यकीनन वह आवाज टेप की हुई थी, खिड़की के पास एक स्पीकर रखा था । मुझे ध्यान है, उसने एक ही तो डायलॉग बोला था, लेकिन वो शख्स जिसे मैंने खिड़की पर देखा ।"
विजय रुका और फिर उछल पड़ा, "चलो मेरे साथ, हम जरा उस डिपार्टमेंटल स्टोर में चलते हैं, जहाँ रोमेश ने कॉस्ट्यूम खरीदा था ।"
विजय और वैशाली डिपार्टमेन्टल स्टोर में पहुंच गये ।
चंदू सेल्स कांउटर पर मौजूद था । इंस्पेक्टर विजय को देखते ही वह चौंका ।
"सर आप कैसे, क्या फिर कोई झगड़ा हो गया ?" चंदू घबरा गया ।
"हमें वह ड्रेस चाहिये, जो तुमने रोमेश को दी थी ।"
"क… क्यों साहब ? क… क्या आपको भी ?"
"हाँ, हमें भी उसी तरह एक खून करना है, जैसे रोमेश ने किया । हम भी बरी होकर दिखायेंगे ।”
"ब… बाप रे ! क… क्या मुझे फिर से गवाही देनी होगी ?"
"तुमने ही गवाही दी थी चंदू ! मैं तुम्हें झुठी गवाही देने के जुर्म में गिरफ्तार कर सकता हूँ ।"
"म… मैंने झूठी गवाही नहीं दी सर ! वह ही वो सब कहकर गया था ।"
"बस ड्रेस निकालो ।" विजय ने पुलिस के रौब में कहा, "मेरा मतलब है, वैसी ही ड्रेस ।"
"द… देता हूँ ।" चंदू अन्दर गया, वह बड़बड़ा रहा था, "लगता है सारे शहर के खूनी अब मेरी ही दुकान से ड्रेस खरीदा करेंगे और मैं रोज अदालत में गवाही देने के लिये खड़ा रहूँगा ।"
चंदू ने ओवरकोट, पैंट, शर्ट, सब लाकर रख दिया ।
"मैं जरा यह ड्रेस चैंज करके देखता हूँ ।" विजय बराबर में बने एक केबिन में दाखिल हो गया, जो ड्रेस चैंज करने के ही काम में इस्तेमाल होता था । जब वह बाहर निकला, तो ठीक उसी गेटअप में था, जिसमें रोमेश ने क़त्ल किया था ।
विजय ने ड्रेस का मुआयना किया और शॉप से बाहर निकल गया ।
"तुमने एक बात गौर किया वैशाली ?" रास्ते में विजय ने कहा ।
"क्या ?"
"रोमेश ने कॉस्ट्यूम चुनते समय मफलर भी रखा था, जबकि वह मफलर हमें बरामद नहीं हुआ । उसकी वजह क्या हो सकती है ? वार्निंग के अनुसार उसने सारे कपड़े बरामद कराये, फिर मफलर क्यों नहीं करवाया और इस मफलर का क्या इस्तेमाल था, मैं आज रात इस मफलर का इस्तेमाल करना चाहता हूँ ।"
रात के ठीक दस बजे विजय एक मोटर साईकिल द्वारा माया देवी के फ्लैट पर पहुँचा । उसने फ्लैट की बेल बजाई, कुछ ही पल में द्वार खुला । दरवाजा खोलने वाली माया की नौकरानी थी ।
नौकरानी ने चीख मारी, "तुम !"
वह दरवाजा बन्द करना चाहती थी, लेकिन विजय ने दरवाजे के बीच अपनी टांग फंसा दी । नौकरानी बदहवास पलटकर भागी ।
"मालकिन ! मालकिन !! वह फिर आ गया ।" नौकरानी अभी भी चीखे जा रही थी ।
"कौन आ गया ?" माया की आवाज सुनाई दी ।
तब तक विजय अन्दर कदम रख चुका था, वह ड्राइंगरूम में कमर पर हाथ रखे और टांगे फैलाये खड़ा था, तभी माया देवी ने ड्राइंगरूम में कदम रखा ।
"तुम !" वह चीख पड़ी, "रोमेश सक्सेना, तुम ! मैं अभी पुलिस को फोन करती हूँ, तुम यहाँ क्यों आये ? क्या फिर किसी का खून ?"
विजय ने सिर से हेट उतारा और फिर चेहरे से मफलर । अब विजय को सामने देखकर माया भी हैरान हो गयी । वह हैरत से फटी आँखों से विजय को देख रही थी ।
"अ… आप ?"
"हाँ, मैं !"
"म… मगर… ब… बैठिये ।"
विजय बैठ गया ।
"मगर यह सब क्या है ?"
"मैं एक शक दूर करना चाहता था ।"
"क्या ? "
"माया देवी अगर आपने पुलिस को बयान देते वक्त यह बताया होता कि फ्लैट में दाखिल होने वाले रोमेश ने अपना चेहरा मफलर में छिपाया हुआ था, तो कहानी कुछ और बनती । मैं अदालत में कभी केस न डालता और सबसे पहले यह जानने की कौशिश करता कि जिस रोमेश सक्सेना का आपने चेहरा नहीं देखा, वह दरअसल रोमेश ही था या कोई और ।"
"त… तो क्या वह रोमेश नहीं था ?"
"नहीं मैडम, वह कोई और था ।"
"मगर उससे पहले जब रोमेश मिला था, तो वह धमकी देकर गया था, उसने यही ड्रेस पहना हुआ था ।"
"सारा धोखा ड्रेस का ही तो है, पहली बार यहाँ आया और तुम्हें गवाह बनाने के लिये कह गया । क्या उस वक्त भी उसने चेहरा मफलर में ढ़का हुआ था ?"
"नहीं, लेकिन वापिस जाते समय उसने चेहरा मफलर में छिपा लिया । उस वक्त मैंने यह समझा कि हो सकता है, वह अपना चेहरा छिपाना चाहता हो । ताकि कोई राह चलता शख्स उसकी शिनाख्त न कर बैठे । क़त्ल की रात वह इसी तरह मफलर लपेटे था ।"
"और तुमने केवल उसका गेटअप देखकर यह समझ लिया कि वह रोमेश है । लेकिन वह कोई और था । जिसकी कद-काठी हूबहू रोमेश से मिलती थी, हो सकता है कि उसकी चाल ढाल भी रोमेश जैसी हो । यह भी हो सकता है कि उसने रोमेश की आवाज की नक़ल करने की भी प्रैक्टिस भी कर ली हो ।"
विजय उठ खड़ा हुआ ।
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