Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी - Page 3 - SexBaba
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Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी

“क्या मैं अभय, मिस्टर अभय से बात कर रहा हूँ??” दूसरी ओर से एक मध्यम भारी सा आवाज़ सुनाई दिया |
“जी.. बोल रहा हूँ |” मैं बोला |
“ह्म्म्म... मुझे पूरी उम्मीद थी की तुम अभी मुझे घर पर ही मिलोगे.. |” दूसरी ओर से आवाज़ आई |
“जी, वो तो ठीक है पर मैंने आपको पहचाना नहीं.. |” मैं सशंकित लहजे में बोला |
“हम्म.. जानता हूँ.. तुम मुझे नहीं पहचानोगे और ना ही तुम मुझे जानते हो .. पर मैं तुम्हारे बारे में बहुत कुछ जानता हूँ.. वरन ये समझ लो की मैं तुम्हारे बारे में सब कुछ जानता हूँ |” दूसरी ओर से वही धीर स्थिर सी आवाज़ आई |

मेरे कान खड़े हो गए | मैं फ़ौरन पूरी सतर्कता के साथ उसकी आगे की बोली जाने वाली बातों के बारे में सोचने लगा और सबसे ज़्यादा इस बात पे फोकस था मेरा अब की आगे क्या होने वाला है, ये मुझे कैसे जानता है, क्या चाहता है इत्यादि |
“सुनो, मैं जानता हूँ की अभी तुम्हारे दिलो दिमाग में बहुत सारे ख्याल आ रहे होंगे .. आना वाजिब भी है.. मुझे तुम अपना दोस्त ही समझ लो | अपना शुभ चिन्तक.. | मैं बस अभी के लिए इतना ही कहना चाहूँगा कि तुम जो कुछ भी कर रहे हो वो खतरों से खाली नहीं है | जान भी जा सकती है | ऐसा भी हो सकता है की कोई तुम्हे मार कर फेंक दे और महीनो किसी को कुछ पता भी न चले.. | ये सब कोई बच्चो का खेल नहीं है जो तुम इन सबमें हाथ धो कर पीछे पड़ गए | बेहतर होगा की तुम किसी ओर की मदद लो... पुलिस की ही मदद ले लो |” – उस शख्स ने बड़े ही शांत पर चिंतित से स्वर में कहा |

“जी.. मैं आपके बातों और जज्बातों का कद्र करता हूँ.. अच्छा लगा की एक अजनबी-से हो कर भी आप मेरी इतनी फ़िक्र कर रहे हैं... पर बात जब परिवार की हो तो मदद के लिए खुद आगे आना चाहिए.. ऐसा मेरा मानना है | रही पुलिस की बात तो अभी उन्हें इसमें इन्वोल्व नहीं करना चाहता मैं | और मरने की बात तो छोड़ ही दीजिए .. जो जन्मा है वो मरा भी है | नथिंग स्ट्रेंज ओर डिफ्फरेंट इन इट | मैं पीछे नहीं हटने वाला | - मैंने पूरी दृढ़ता से अपनी बात रखी |
दूसरी ओर एक लम्बी सी ख़ामोशी छाई रही | सिर्फ़ गहरी सांस लेने की आवाज़ सुनाई दे रही थी |


फिर,

“ह्म्म्म.. ठीक है .. जब करने-मरने की ठान ही चुके हो तो मैं और कह भी क्या सकता हूँ | पर तुम्हारी मदद के लिए ज़रूर रहूँगा हमेशा |” – दूसरी ओर से आई आवाज़ में चिंता की लहरें थी |
“वैसे अभी मिल सकते हो क्या?” – उस आदमी ने पूछा |
“क्यों? कोई मदद करना चाहते हो क्या? किस बारे में मिलना है तुम्हें ?” मैंने रिटर्न प्रश्न किया |
“तुम्हारी चाची के बारे में बात करनी थी |” बहुत शोर्ट और गंभीर आवाज में कहा उसने |
सुनते ही मेरे सतर्कता के भी छक्के छूटे .. हाथ से रिसीवर छूटने को हो आया | थोड़ी हडबडाहट सी हुई | संभल कर मैंने भी उसी भाँति गंभीर आवाज़ में पूछा, “क्या बात करना है आपको मेरी चाची के बारे में?”

“फ़ोन पर संभव नहीं है.. तुम बस ये बताओ की क्या तुम अभी मुझसे मिलने आ सकते हो ?” – दूसरी तरफ़ से भावहीन स्वर उभरा |
“जी... बिल्कुल आ सकता हूँ.. कहाँ आना होगा मुझे?” मैंने घड़ी की ओर देखते हुए उतावलेपन में कहा |
“दस मिनट बाद ही तुम्हारे घर से पहले वाले मोड़ पर एक कार .. आई मीन एक टैक्सी आ कर रूकेगी .. तुम्हें देख कर दो बार हेडलाइट्स ऑन-ऑफ़ करेगी .. उसमें बैठ जाना.. वो तुम्हे मुझ तक पहुँचा देगी...और हाँ, एक बात और.. उस बेचारे टैक्सी ड्राईवर से कोई सवाल जवाब मत करना .. वो तो सिर्फ़ मेरे कहने पर ही तुम्हे लेने आएगा और मुझ तक छोड़ जाएगा... ओके?” – निर्देशात्मक लहजे में कहा उस शख्स ने |

मेरे ओके या कुछ और कहने के पहले ही उसने फ़ोन रख दिया था | मैंने रिसीवर क्रेडल पर रखा | नज़र दौड़ाई घड़ी पर ... सवा नौ बज रहे थे रात के | इससे पहले कभी बाहर जाना नही हुआ रात में | ये पहली बार था और जाना ज़रूरी भी | मैं सीधे अपने रूम गया, तैयार हुआ और चाची को उनके रूम के बाहर से आवाज़ दिया, “चाची... थोड़ा काम से निकल रहा हूँ... कुछ ही देर में आ जाऊंगा |” कह कर बाहर निकल गया मैं.. तब तक चाची अपने रूम से निकल आई थी.. सवालिया नज़रों से मुझे देख रही थी | पर मेरे पास टाइम नही था रुकने का या फिर उनके किसी बात का जवाब देने का.. मैं जो भी कर रहा हूँ और करने जा रहा हूँ .. वो तो चाची के लिए ही है न...|

 
जैसा फ़ोन पे कहा गया था ठीक वैसा ही हुआ... मोड़ पे एक टैक्सी आ कर रुकी | दो बार हेडलाइट्स ऑन-ऑफ़ हुई | मैं टैक्सी के पास गया | दरवाज़ा खोला और उसमें बैठ गया | ड्राईवर ने टैक्सी के अन्दर का लाइट ऑफ़ कर रखा था.. शायद उसे ऐसा करने के लिए कहा गया था .. मैंने कुछ पूछना और सोचना उचित नहीं समझा, फिलहाल तो मंजिल पर पहुँचना ज़्यादा ज़रूरी था | करीब चालीस मिनट तक टैक्सी चलती रही | ड्राईवर चुप.. मैं चुप... एक अजीब सी विरानियत छाई हुई थी टैक्सी के अन्दर | शहर के व्यस्त सड़कों और माहौल को पीछे छोड़ते हुए एक सुनसान से रास्ते पे टैक्सी बढे चले जा रही थी |

कुछ ही देर में एक टूटे फूटे से घर के पास आ कर टैक्सी रुकी | ड्राईवर ने एक कागज़ का टुकड़ा बढ़ा दिया मेरी तरफ़ | मैं बिना कुछ बोले उस टुकड़े को ले कर टैक्सी से उतरा .. जेब से छोटी पॉकेट टॉर्च निकाल कर कागज़ को देखा | उसमें लिखा था, “अपने सीध में देखो. घर की तरफ़ .. लाल ईंटों के तरफ़ चले आओ |” मैंने नज़र उठा कर घर की तरफ़ टॉर्च की लाइट फेंकी.. पेंट भी उतर गई थी घर की.. सीमेंट पलस्टर भी आधे अधूरे से निकल आये थे | सामने तीन खम्बे थे घर के ... उनमें से एक खम्भे का बहुत बुरा हाल था | सिर्फ़ ईंटें ही बचीं थी | लाल ईंटें ...ऑफ़ कोर्स ...| मैं धीरे सधे कदमों से आगे बढ़ा |


उस खम्भे के पास पहुँच कर रुका..और इधर उधर देखने लगा | तभी एक आवाज़ गूँजी, “ आ गए...?! अब बिना कोई सवाल किये इस खम्भे से अपनी पीठ टिका कर पलट कर खड़े हो जाओ.. जिधर से आये, तुम्हारा मुँह उस तरफ़ होना चाहिए..|” मैं बिना कुछ कहे ठीक वैसा ही किया जैसा की करने को कहा गया | फिर आवाज़ आई और इस बार महसूस हुआ की आवाज़ ठीक मेरे पीछे से आ रहा है और इस आवाज़ का मालिक जो भी है, वो भी मेरी तरह ही उसी खम्भे से पीठ टिकाए बात कर रहा है, “सुनो अभय.. तुम बहादुर हो इसमें अब मुझे कोई संदेह नहीं है.. मौत का डर दिखाने पर और रात को अचानक से बुलाने पर भी तुम नहीं डरे.. ये काबिले तारीफ़ है.. पर एक बात हमेशा याद रखना की बहादुरी और बेवकूफी के बीच एक बहुत महीन; बारीक सी रेखा होती है... अगर काम कर गया तो रेखा के इस तरफ़.. यानि बहादुरी का गोल्ड मैडल और अगर कहीं चूक गये और रेखा के उस तरफ़ चले गये तो समझो जिल्लतों भरी, तौहीन वाली, साथ ही जग हँसाई वाली बेवकूफी के मशहूर किस्से... | और इन दोनों का या इनमें से किसी एक का चुनाव हम नहीं हमारी नियत और वक़्त करता है ... नियत कैसी भी हो ... वक़्त बड़ा बेरहम होता है.. वो किसी का सगा नहीं... इसलिए एक बार फिर सोच लो... क्या विचार हैं तुम्हारे... क्या वाकई तुम पूरी तरह से तैयार हो .. ऐसे काम के लिए..??”


मैंने शालीनता पर साथ ही कठोरता के साथ उत्तर दिया, “आपकी बातें बहुत पसंद आई मुझे .. माफ़ी चाहूँगा .. आपका दिल दुखाते हुए.. मैं उन लोगों में से नहीं जो फैसला कर के सोचते है और पलट जाते हैं... मैं जो भी फैसला करता हूँ ... हमेशा सोच कर ही फैसला करता हूँ... अब ये बताइए की इतनी रात में मुझे यहाँ बुलाने का क्या कारण है ?”
दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई, “ह्म्म्म.. ठीक है.. सुनो.. पिछले कुछ महीनो से शहर में अंडरवर्ल्ड और टेररिस्ट आर्गेनाइजेशन के लोग काफ़ी सक्रिय हो गए हैं और एकदम से बाढ़ आई हुई सी लग रही है इन लोगों की | चरस, कोकेन, गांजा, और कई तरह के दुसरे ड्रग्स सप्लाई किये जा रहे हैं मार्किट में... पुलिस भी कुछ खास नहीं कर पा रही क्यूंकि इन लोगों के काम करने का ढंग काफ़ी अलग और समझ से परे है | सिर्फ़ इतना ही नहीं.. ये लोग आर्म्स .. यानि की हथियारों की स्मगलिंग में भी शामिल हैं | और ऐसे काम में ये खुद शामिल ना होकर यहाँ के भोले भाले स्टूडेंट्स, बच्चे और यहाँ तक की घर की औरतों को भी शामिल कर रहे हैं.. और मुझे लगता है की तुम्हारी चाची भी ऐसे लोगों के साथ या तो मिली हुई है या फिर इनके चंगुल में फंस गई है | सच क्या है ये तो पता चल ही जाएगा... पर अब ये तुम सोचो की तुम्हे आगे क्या करना है.. और हाँ मैं तुम्हारी मदद के लिए हमेशा रहूँगा... पर दिखूंगा नहीं...|”
 
इतना सुनते ही मैं से बोल पड़ा, “तो क्या मेरी माँ भी??”
इसपर आवाज़ आई, “नहीं....मुझे नहीं लगता.. जैसा तुम सोच रहे हो.. अगर वैसा ही कुछ होता तो अभी तक तुम्हें बहुत कुछ पता चल गया होता या फिर उन लोगों ने खुद ही तुम्हें इसके बारे में कोई इशारा या सन्देश दे दिया होता... तुम्हारी माँ बिल्कुल ठीक है और सुरक्षित है.. तुम निश्चिंत रहो | उन लोगों ने किसी तरह तुम्हारे घर में घुस कर वो तस्वीरें लीं होंगी |”
मैं आश्चर्य में भरकर बोला, “तो आपको ये भी पता है की उन लोगों ने मेरी माँ की तस्व....”
मेरी बात को बीच में काटते हुए उस शख्स ने कहा, “मैंने तुम्हे पहले ही कहा था की मैं सब कुछ जानता हूँ ... अगर मेरे सब कुछ जान लेने पर तुम्हें यकीं नहीं तो अब इतना तो मानोगे ही की मैं बहुत कुछ जानता हूँ..?!” सब कुछ और बहुत कुछ पर जोर देते हुए कहा उसने |


मैं – “अच्छा, एक बात बताइए... अगर आप मुझे दिखेंगे नहीं तो मैं आपसे मदद कैसे मांगूंगा?? आपको कैसे पता चलेगा की मैं मुसीबत में हूँ भी या नहीं...?”
“वो मैं देख लूँगा.. और कभी अगर कांटेक्ट करने की ज़रूरत महसूस हुई तो मैं खुद ही कांटेक्ट कर लूँगा...| अभी इससे ज़्यादा और कुछ नहीं बता सकता |” भावहीन स्वर में बोला वो...|
मैं – “अच्छा, एक और बात.. कम से कम इतना तो बताइए की आप हैं कौन या फिर आप मेरी ही मदद क्यों कर रहे हैं??” मेरे इस प्रश्न में मेरे उतावलेपन का स्तर साफ़ नज़र आ रहा था |
“सही समय आने पर सब खुद ब खुद ही पता चल जाएगा... डोंट वरी.. आज के लिए इतना ही.. वो टैक्सी तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ देगी ... बाय...|” पहले जैसे स्वर में ही कहा उसने |
अभी मैं कुछ कहता या कोई प्रतिक्रिया देता... खट से एक आवाज़ हुई.. मैं धड़कते दिल को संभाले धीरे धीरे खम्भे के दूसरी तरफ़ गया.. घुप्प अँधेरा... टॉर्च जलाया... चारों तरफ़ ईंटें और कई दूसरी चीज़ें गिरी हुई थीं... उस शख्स का कहीं कोई नामो निशान नहीं था.. ऐसा लग रहा था जैसे की हवा में विलीन हो गया हो | मन में कई सवाल, अंदेशों और संदेहों को टटोलता – संभालता मैं टैक्सी की ओर बढ़ चला.. घर वापस जाने के लिए .......
.
 
घर पहुँचा और हाथ मुँह धो कर सीधे छत पर | आते समय एक पैकेट सिगरेट लेते आया था | तय था की रात को नींद जल्दी और आसानी से आने वाली है नहीं | कुछ पहले से ही थे और पूरा एक अभी ले आया | कुछ देर टहलने के बाद वहीँ रखे एक चेयर पर बैठ गया | दूसरों का पता नहीं, पर जब भी मेरा दिमाग उलझ जाता या चीज़ों को बारीकी से समझने की ज़रुरत महसूस होती; मैं कश लगाने लगता | और चूँकि अभी मैं बिल्कुल ऐसी ही स्थिति में था इसलिए शुरू हो गया कश लगाने |

और साथ ही चालू हुआ दिमाग के घोड़े दौड़ाने .. |


उस शख्स की बातें बार बार दिमाग में गूँज रही थी, “पिछले कुछ महीनो से शहर में अंडरवर्ल्ड और टेररिस्ट आर्गेनाइजेशन के लोग काफ़ी सक्रिय हो गए हैं और एकदम से बाढ़ आई हुई सी लग रही है इन लोगों की | चरस, कोकेन, गांजा, और कई तरह के दूसरे ड्रग्स सप्लाई किये जा रहे हैं मार्किट में... पुलिस भी कुछ खास नहीं कर पा रही क्यूंकि इन लोगों के काम करने का ढंग काफ़ी अलग और समझ से परे है | सिर्फ़ इतना ही नहीं.. ये लोग आर्म्स .. यानि की हथियारों की स्मगलिंग में भी शामिल हैं | और ऐसे काम में ये खुद शामिल ना होकर यहाँ के भोले भाले स्टूडेंट्स, बच्चे और यहाँ तक की घर की औरतों को भी शामिल कर रहे हैं.. और मुझे लगता है की तुम्हारी चाची भी ऐसे लोगों के साथ या तो मिली हुई है या फिर इनके चंगुल में फंस गई है |”
और इन्ही बातों में उसके द्वारा जिक्र किये गए कुछ शब्द बार बार दिमाग पर हथौड़े से पड़ रहे थे ...
१) अंडरवर्ल्ड
२) टेररिस्ट आर्गेनाइजेशन
३) चरस
४) कोकेन
५) गाँजा
६) ड्रग्स
७) आर्म्स..
८) हथियारों की स्मगलिंग
९) भोले भाले स्टूडेंट्स, बच्चे और यहाँ तक की घर की औरतों को भी शामिल कर रहे हैं
१०) तुम्हारी चाची
११) मिलीं हुई है या चंगुल में फंस गई है


सभी प्रमुख बिन्दुओं पर बहुत अच्छे से ध्यान दे रहा था पर हर बार दो बिंदुओ पर आ कर ठहर जाता .. पहला ये कि भोले भाले स्टूडेंट्स, बच्चे और घर की औरतों को शामिल किया जाना और दूसरा यह की मेरी चाची का इनसे मिला होना या फिर इनके चंगुल में फंसा होना.. | ऐसे लोगों के साथ चाची जैसी एक सुदक्ष एवं संस्कारी गृहिणी का मिला होना समझ से परे है, मतलब ऐसा नहीं हो सकता, पर पता नहीं क्यों मैं ऐसे किसी सम्भावना से इंकार भी नहीं कर पा रहा था | पर चंगुल में फंसा होना... इस बात पर गौर करने की आवश्कता है | क्योंकि ये / ऐसा हो सकता है पर ये हुआ कैसे; ये पता लगाना है और यही पता लगाना फिलहाल तो टेढ़ी खीर सा प्रतीत हो रहा है | इसके बाद जो सबसे बड़ा प्रश्न मेरे समक्ष आ खड़ा हो रहा है वो यह कि स्टूडेंट्स, बच्चे और घर की औरतों को क्यों इन कामों में लगाया जा रहा है.. क्योंकि सिंपल सी बात है की स्मगलिंग के लिए वेल ट्रेंड लोगों की आवश्यकता होती है और स्टूडेंट्स और छोटे बच्चे; ख़ास कर घर की गृहिणियां-औरतें तो बिल्कुल भी ऐसे कामों के लिए ट्रेंड नहीं होतीं और इन सब चीज़ों से अनभिज्ञ भी होती हैं .... ह्म्म्म, कहीं ऐसा तो नहीं की इन्हें इन कामों के लिए किसी खास तरह से ट्रेनिंग मुहैया कराया जा रहा है ... पर कैसे ... कैसे... ??
 
सोचते सोचते अचानक से टैक्सी वाले की याद आ गई और साथ ही उसे दिया गया काम जो मैंने ही उसे करने को कहा था.. एक मोटी टिप दे कर | सुबह जब मैं होटल में घुसा था तब मेरा टैक्सी वाला अपनी टैक्सी को चाची वाले टैक्सी के बिल्कुल बगल में खड़ा कर दिया और फिर कुछ देर इधर उधर की गप्पे हांकने के बाद उसने उस टैक्सी वाले से होटल और यहाँ आने वाले लोगों के बारे में घूमा फिरा कर पूछना शुरू कर दिया | थोड़ा से खुलने पर कुछ ही देर में उस टैक्सी वाले ने बहुत सी जानकारियाँ दे दी थीं मेरे टैक्सी वाले को | बाद में जो मुझे जानने को मिला वो ये था कि, ‘उस होटल में बहुत पहले से ही अवैध गतिविधियाँ चल रही हैं | पुलिस और प्रशासन को भी लगभग सब कुछ पता है पर मामला काफ़ी हाई प्रोफाइल होने के कारण कोई कुछ करने से बचता है | अक्सर गलत कामों में संलिप्त लोग, अंडरवर्ल्ड के लोग यहाँ आते और दावत उड़ाते हुए देखे गए हैं | होटल के मालिक का भी कई सरगनाओ के साथ उठना-बैठना है और बहुत ही अच्छे सम्बन्ध हैं .. | सुनने में आया है की पड़ोसी और दूसरे मुल्कों के भी अंडरवर्ल्ड या अपराधी सरगना यहाँ आने लगे हैं.. पिछले काफ़ी समय से इसी होटल में कई अवैध चीज़ों की खरीद-फ़रोख्त भी हो रही है | डायमंड्स, सोने के बिस्किट्स, आर्म्स (हथियार) और दूसरे कई तरह के नशीली दवाईयों और ड्रग्स धरल्ले से बिक और बेचे जा रहे हैं यहाँ.. कहने को तो होटल है ठहरने, राहगीरों के आराम करने, खाने पीने के लिए पर अब सिर्फ़ नाम का है ... | और तो और काफ़ी समय से यहाँ, इस होटल में वेश्यावृति भी चालू है | कम उम्र की या कॉलेज जाने वाली लड़कियां यहाँ लायी जाती हैं; सरगनाओं के रातें रंगीन करने के लिए | कुछ, जिनके आगे पीछे कोई नहीं, बेचीं भी गई हैं | सुनने में आ रहा है की आज कल संभ्रांत घर की गृहिणीयों-औरतों को भी यहाँ लाया जाने लगा है | ऐसे कई अपराधी और सरगनायें हैं जिन्हें लड़कियों की तुलना में खेली खिलाई अच्छे घरों की औरतों में ज़्यादा दिलचस्पी है और उनका साथ ही उन्हें अच्छा लगता है | सिर्फ़ यही नहीं, ये लोग इन्हीं औरतों और कुछ बेहद स्मार्ट और अंग्रेजी बोलने वाली लड़कियों के माध्यम से स्मगलिंग की डीलिंग को अंजाम देते हैं | ऐसे लोगों के चंगुल में जो भी फंसा या फंसी, उसे दो ही बचा सकते हैं,... एक, या तो ऊपरवाला ... दूसरा, ये लोग.. ऊपरवाले का तो पता नहीं, पर ये लोग अपने मोहरों को सिर्फ़ मौत दे कर ही छोड़ते हैं |’
 
सोचते सोचते चेयर से उठ कर, छत की बाउंड्री वॉल तक पहुँच गया था मैं | चार सिगरेट ख़त्म कर चुका था | अभी और भी बहुत कुछ सोचना चाहता था पर कुछ देर के लिए अपने सभी विचारों पर विराम लगा दिया | बस, चाँदनी रात में छत पर खड़े रह कर इस क्षण का भरपूर आनंद लेने को दिल चाह रहा था | आँखें बंद कर धीमी चलती हवा के झोंकों का आनंद लेने लगा | कुछ ही मिनट्स बीते थे की तभी लगा, जैसे की वहां आस पास एक बहुत ही प्यारी सी खुशबू फ़ैल गई है | बहुत ही मदमस्त कर देने वाली खुशबू थी यह... कहाँ से आने लगी ये सोचने के बजाए उस खुशबू को भर भर कर अपने मन और दिलो दिमाग में ले लेने को जी करने लगा | और तभी,.... किसी ने मेरे दाएँ कंधे पर बहुत मुलायम सा हाथ रखा... मैं चौंक कर पलटा और अपने दाएँ तरफ़ देखा... चाची थी..! उसी नाईट गाउन... ओह्ह .. सॉरी.. नाईट रोब में थी, मुस्कुराती हुई.. मुझे ज़बरदस्त तरीके से चौंकते देख कर उनकी हंसी निकल गई | ‘हाहाहाहाहा’ कर खिलखिला कर हँस दी... कसम से, बहुत ही प्यारी और साथ ही बहुत ही कातिलाना लग रही थी वो ...
“क्या हुआ भतीजे जी... इतनी बुरी तरह से कब से डरने लगे..?” हँसते हुए पूछा उन्होंने...|
“जी... वो... आप आएँगी, सोचा नहीं था मैंने... अचानक से हाथ रख दिया आपने... लगता है डराने के लिए ही किया था...|” ज़ोरों से धड़कने लगे दिल को शांत करने के असफल प्रयास में लगा मैं बच्चों सी टोन में बहाने गिना दिए |




चाची अब भी हँसे जा रही थी | हँसते हुए ही पूछा उन्होंने,
“अच्छा, ये बताओ.. यहाँ कर क्या रहे हो और कितनी देर तक खड़े रहोगे?”
“बस, जाने ही वाला था... आप कहिये.. आप यहाँ कैसे... और चाचा आयें की नहीं?”
मेरे इस प्रश्न पर चाची ने अपनी हंसी बंद कर मुझे ऐसे घूर कर देखा जैसे की मैंने बहुत ब्लंडर वाला कोई बात पूछ लिया | आवाज़ में आश्चर्य का भाव लिए पूछी,
“अरे... तुम्हें तो टाइम का बिल्कुल भी कोई अंदाजा नहीं.. जानते हो.. पूरे डेढ घंटे बीत गए हैं... तुम्हारे चाचा कब के आ भी गए और खा-पी कर सो भी गए हैं... अब चलो.. जल्दी से नीचे चल कर कुछ खा लो... मुझे भी बहुत भूख लगी है |”
“आपने खाया नहीं?” मैंने पूछा |
 
इसपर मेरे दाएँ गाल पर चिकोटी काटते हुए चाची बोली, “ अपने प्राण प्यारे राजा भतीजे को छोड़ कर मैं भला कैसे खा सकती हूँ ?” उनके आवाज़ में शरारत के साथ साथ शिकायत वाला लहजा भी था | उनके लम्बे नाखून मुझे मेरे गाल पर चुभते हुए से लगे पर न जाने क्यों मुझे ये चुभन बहुत प्यारा सा लगा | कुछ कह तो नहीं सकता था इसलिए सिर्फ़ मुस्करा कर रह गया | चाची को शायद मेरा शर्माना बहुत अच्छा लगा, इसलिए मेरे बहुत पास आ कर मेरे आँखों में झाँकने का प्रयास करती हुई बोली, “वैसे इतनी रात को यहाँ अकेले अकेले कर क्या रहे हो... किससे मिलने गए थे अचानक से... कहीं कोई इश्क विश्क का चक्कर तो नहीं?” आवाज़ में अजब सी मिठास और शरारत का मिश्रण था | मैंने थोड़ा हँसते हुए जवाब दिया, “नहीं चाची... ऐसी कोई बात नहीं... और वादा रहा .. जिस दिन और जिससे ऐसी कोई बात होगी.. सबसे पहले आप ही को पता चलेगा.. यहाँ तो मैं बस हर दिन आने वाली चुनौतियों के बारे में सोच रहा था... हर नया दिन.. नई चुनौती.. नए संघर्ष... नए मुश्किलें ले कर आती हैं... सोच रहा था की इन सबसे कैसे निपटू .. कैसे सुलझाऊं हरेक परेशानियों को | कुछ बातें ऐसी भी होती हैं, जिन्हें खुद से सुलझाना आसान नहीं... किसी से शेयर करने को जी चाहता है.. क्या पता किसी एक की परेशानियो का हल किसी दूसरे के पास हो... |” ये कहते हुए मैं तिरछी निगाहों से चाची की ओर देखा...


चाची दूर क्षितिज में, बड़े बड़े बिल्डिंग्स में छोटे छोटे चमकते से रोशनी और आस पास के पेड़ पौधों को एकटक देखे जा रही थी... ऐसा लग रहा था मानो, मेरी एक एक बात उनके जेहन, उनकी जिस्म में उतरती चली जा रही हो | कुछ देर की चुप्पी के बाद वो बोली, “परेशानियो को शेयर करने का जी सबका चाहता है अभय.. संघर्षों से मिलकर लड़ने को जी सबका चाहता है ... मेरा भी... पर... पर... कुछ बातें ऐसी भी हो जाती हैं कि चाह कर भी हम जो चाहते है... वो लाख चाहने पर भी कर नहीं पाते..|” कहते हुए उनका गला भर आया था.. बहुत रुआंसा सी हो कर बोली,” ज़िंदगी इम्तेहान लेती हैं.... अभय... ज़िंदगी इम्तेहान लेती हैं |” ऐसा लगने लगा था की जैसे अब किसी भी क्षण उनकी रुलाई फूटने वाली है | बात को अलग मोड़ देने के लिए मैं उनसे पूछ बैठा,

“ आपको ऐसी क्या परेशानी है जो आप किसी से शेयर नहीं कर सकती... कौन से संघर्ष हैं जो मिलकर नहीं लड़ सकती...?? किसी और को नहीं तो कम से कम मुझे ही बता दीजिए... एस अ भतीजा ओर अ फ्रेंड समझ कर... आप ही तो कभी कभी कहती हैं न की मैं आपके लिए आपके फ्रेंड जैसा हूँ...| तो फिर मुझी से अपनी परेशानी शेयर कर लिया कीजिए | और अगर वैसी ज़रूरत ही आन पड़ी तो मैं आपके साथ कंधे से कन्धा मिलाकर संघर्ष के साथ दो दो हाथ करूँगा... |” बेहद अपनेपन और आत्म विश्वास के साथ कहा मैंने |
मेरे सवाल करने पर जैसे उन्हें होश आया और ऐसी प्रतिक्रिया दी कि मानो उन्होंने कुछ ऐसी बात कह दी जो उन्हें नहीं कहनी चाहिए थी...| बात को संभालते हुए उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा,
“अरे नहीं अभय... ऐसा कुछ नहीं है मेरे साथ... फिलहाल के लिए... पर मेरी तरफ़ से भी वादा रहा की जिस दिन किसी को पता चलेगा... तो वो पहला व्यक्ति तुम होगे..|” एक पल के लिए मेरी ओर देख कर वो दूसरी ओर देखने लगी... होंठों पर एक हल्की मुस्कान दिखी | उस मुस्कान में कोई बात छिपी थी | शायद कुछ और भी कहना था उन्हें पर शायद कहना ठीक नहीं लगा होगा |
उनकी मुस्कान को देखते हुए मेरी नज़र उनके चेहरे से फ़िसल कर उनके वक्षस्थल पर अटक गई | दूधिया चाँद की रोशनी में नहाया उनका बदन किसी संगमरमर की तराशी हुई मूर्ति की भांति लग रही थी | उनके रोब (नाईट गाउन) के आगे से बांधे जाने वाले फ़ीतों के थोड़ा ढीला हो जाने से उनके रोब से उनकी कसी चूचियों के बीच की थोड़ी सी घाटी, उनका सुन्दर क्लीवेज जैसे आमंत्रण सा देता हुआ प्रतीत हो रहा था | जी तो चाहा की अभी इन्हें अपनी बाँहों में कस लूं और इनके पूरे बदन, ख़ास कर इनके चेहरे पर चुम्बनों की बारिश कर दूँ |
पर रोक लिया खुद को ... सही समय नहीं था अभी | क़िस्मत में है या नहीं, ये तो पता नहीं पर फ़िलहाल तो सिर्फ़ इंतज़ार ही दिख रहा है सामने | उनके बायीं कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “चलो चाची... खा लें... बहुत देर हो गई है |” इसपर चाची मेरे चेहरे की तरफ़ एक बार देखी, कुछ पलों के लिए रुकी, फिर ‘हाँ’ कहते हुए मुड़ कर चल दी.. मैं रोब में उनके उभरे हुए गांड को देखता हुआ आहें भरता हुआ मुड़ने ही वाला था की तभी मेरी छठी इंद्रिय सतर्क हो उठी.. | मैंने तुरंत मोड़ वाले रास्ते की तरफ़ देखा | एक काली रंग की कार खड़ी थी वहाँ.. जो कि अब धीरे धीरे पीछे हो रही थी..................................................................|
 
अगले कुछ दिनों तक मैंने कोई जासूसी नहीं की क्योंकि मुझे कोई संदिग्ध गतिविधि नहीं दिखी | मैंने सोचा की शायद अब चाची का कोई काम नहीं रह गया है | शायद उन लोगों का मन भर गया है चाची से | पर जल्दी ही मेरा यह भ्रम टूट गया | वो कहते हैं ना कि पाप और अपराध का दलदल, शुरू में एक हरा भरा खुशबूदार मैदान/ बगीचा सा लगता है जहां जब चाहो, जैसे चाहो, घूम फिर सकते हो, टहल सकते हो पर जब तक असल सच्चाई का पता लगता है; उस दलदल में सिवाय डूबने के और कोई रास्ता नहीं रह जाता है |
रोज़ की तरह, एक शाम को छत पर टहलते हुए मैंने देखा की चाची दूर रास्ते से पैदल चलती हुई आ रही है और उनके कंधे से एक बैग भी लटक रहा है | बैग भी शायद कुछ भारी सा रहा होगा, इसलिए चाची के चेहरे से परेशानी छलक रही थी | चूँकि कुछ दिनों से बिल्कुल भी कोई संदिग्ध गतिविधि नहीं हुई थी, इसलिए मैंने भी कोई खास ध्यान नहीं दिया और वापस अपने सिगरेट के कश लेने और कॉफ़ी की चुस्कियाँ पर ध्यान केन्द्रित करने की सोचने लगा |


पर इसी तरह मैंने चाची को लगातार अगले चार दिनों तक बैग लिए आते देखा | मेरा जासूस मन फिर से हिलोरें मारने लगा | कुछ ख़ास शक तो नहीं पर मन में बस ऐसे ही एक इच्छा हुई की ‘ ये चाची रोज़ बैग में कुछ लाती है, न जाने क्या होगा अन्दर? मुझे देखना चाहिए | ’ यही सोच कर मैंने अगले दिन के शुरुआत से ही चाची पर नज़र रखनी शुरू कर दी | नोटिस किया की चाची अपने घर के कामों को करते हुए बीच बीच में रुक जाती और बड़ी ही परेशानी में दोनों हाथों की मुट्ठियों को आपस में भींच कर रगड़ती और फिर थोड़ी देर में दोनों हाथों की अंगुलिओं को आपस में रगड़ते खुजलाते, वो बैठ जाती और जैसे किसी गहन सोच में डूब जाती | चेहरे पर रह रह कर उभर आती चिंता की लकीरें साफ़ इशारा करतीं की वो किसी ऐसे सोच में डूबी है जिसके बारे में वो सोचना तो नहीं चाहती पर बिना सोचे कोई उपाय भी नहीं है | फिर अचानक से सिर को झटक कर खड़ी हो जाती और अपने पल्लू से अपना चेहरा पोंछती हुई काम पर लग जाती |


कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि, वह अपने पल्लू के बिल्कुल निचले सिरे को किनारे से पकड़ कर अपने ऊँगली पर गोल गोल लपेटते हुए दूर कहीं देखते हुए किसी बहुत ही ज़बरदस्त सोच में डूब जाती और ऐसा डूबती कि कई बार तो उनको होश भी नहीं रहता की कब उनका पल्लू उनके दाएँ चूची को अनावरित करता हुआ बिल्कुल साइड में सरक गया है और कई बार तो उनका पल्लू ही पूरा का पूरा चूचियों पर से हट कर नीचे गिर चूका होता है | पर वो अपनी ही सोच में मगन रहती थी | ब्लाउज के बिल्कुल बीचों-बीच से होकर सामने नज़र आता उनका पांच इंच का हेल्दी क्लीवेज और दोनों तरफ़ के ब्लाउज कप्स से ऊपर उठ कर झाँकते उनके हृष्ट पुष्ठ चूचियों के ऊपरी गोरे गोरे सुडोल उभारों को देखकर, बरमुडा के अन्दर कड़ा होकर खड़े-हाँफते मेरे लंड में एक ऐँठन सी पैदा होने लगती | लंड भी शायद मुझे कोसते गाली देते हुए कहा होगा की, ‘साले, अब तो झड़ ले |’ पर सच कहूं तो मैंने सोच ही रखा था अपने दिमाग के किसी कोने में की जिस दिन झडूंगा, चाची के अन्दर ही झडूंगा |’



एक दिन चाची, चाचा के ऑफिस जाते ही नहाने चली गई और करीब चालीस-पैंतालीस मिनट बाद अच्छे से तैयार हो कर, मुझे दरवाज़ा अच्छे से लगा लेने और ठीक समय पर खाना खा लेने की हिदायत दे कर एक बैग उठा कर चली गई | पूछने पर सिर्फ़ इतना ही बोली कि, ‘ज़रूरी काम है.. शाम को ही आ पाऊँगी |’ अब तो मेरा शक और गहराया | शक का बीज तो पहले ही बो गया था; अब चाची के इन बातों ने उस बीज को आवश्यक खाद-पानी भी दे गया | थोड़ी देर कुछ सोचा और फिर रोज़ की तरह अपने काम में लग गया | शाम को चाची उसी तरह एक बैग कंधे पर लिए घर आई और तुरंत अपने कमरे में घुस गई | उनकी चाल में भी कुछ परिवर्तन सा लग रहा था | शायद लंगड़ा रही थी... दर्द से हल्का कराह भी रही थी | मैं बिना कुछ बोले अगले दिन का इंतज़ार करने लगा |


अगले दिन चाचा के ऑफिस के लिए निकलते ही, आधे घंटे के बाद चाची नहाने के लिए जैसे ही बाथरूम में घुसी, मैं उनके कमरे में घुस गया और उस बैग को ढूँढने लगा | बैग का रंग ब्लैक और ग्रे के बीच का था | जिधर भी नज़र दौड़ा सकता था और जो भी उलट पुलट कर देख सकता था, मैंने सब देखा और किया पर कुछ हाथ नहीं लगा | मायूस होकर मैं लौटने ही वाला था कि मेरा नज़र एक बार के लिए पलंग पर गया और मैं झट से झुक कर पलंग के नीचे देखा | एक बैग नज़र आया !! वह बैग मुझे पलंग के नीचे सिरहाने की ओर मिला | मैंने बैग को काफ़ी सावधानी से नीचे से निकाला और खोल कर देखने लगा | अन्दर एक कपड़े रखने वाला प्लास्टिक था | मोटा वाला प्लास्टिक | प्लास्टिक को खोला तो देखा वाकई उसमें कपड़े रखे थे | पर वो साड़ी नहीं थी | कपड़े को निकाल कर मैं देखना चाहता था पर मन हिचकिचा रहा था | पर अगले दो मिनट में ही मेरी उत्सुकता ने मेरे मन पर विजय पाया और मैंने कपड़े बाहर निकालकर देखा और देखते ही मेरी आँखें आश्चर्य से फटी की फटी रह गई | वो कपड़े दरअसल, स्लीवलेस टॉप, (जोकि सामने से बहुत डीप नेक वाला था) और मैक्रो मिनी स्कर्ट थे !!!
 
कुछ ही देर बाद चाची नहा धो कर बाथरूम से निकली | तब तक मैं अपने कमरे में पहुँच चुका था | अभी कुछ देर पहले जो कुछ देखा, उससे अभी भी आश्चर्य और असमंजस की स्थिति में था | चाची का यूँ बैग छुपा कर रखना और उस बैग से ऐसे कपड़ों का मिलना चाहे और कुछ भी हो, कम से कम संयोग तो हरगिज़ नहीं हो सकता है | तो क्या चाची इन कपड़ों को बाहर कहीं पहनती है? और अगर पहनती भी होगी तो क्यों और किसलिए? और सबसे बड़ा प्रश्न – किसके लिए?


पौन घंटे बीता होगा कि चाची की आवाज़ आई – “अभयssss..!! मैं मार्किट के लिए निकल रही हूँ | दरवाज़ा लगा दो.... शाम में लौटूँगी |” मैं तो उनके निकलने के ही इंतज़ार में था | चाची एक गहरी नीली फ्लोरल साड़ी और मैचिंग शॉर्ट स्लीव ब्लाउज पहन कर, पिछवाड़ा मटकाते हुए घर से बाहर निकली | आज उनके स्तन युगल भी साड़ी के नीचे से थोड़े तने हुए से लग रहे थे | उनके वक्षों के तने हुए होने की बात मैंने पिछले पाँच-छह दिनों से नोट किया था पर सही तरह से ध्यान आज दे पाया | उनके वक्ष तो सदैव ही से मुझे बेहद आकर्षक लगते रहे हैं; पर इन दिनों बात कुछ बदले – बदले से हैं | और इतना ही नहीं, उनके चेहरे की रंगत भी कुछ खिली खिली सी लग रही है पिछले कुछ दिनों से | चेहरे पर थकान बहुत ज़्यादा होने के कारण शायद मैंने या चाचा ने पहले नोटिस नही किया हो पर अब मैंने ये भी नोट कर लिया ... चाचा का मुझे पता नहीं |

खैर, मैं भी अगले पांच मिनट में तैयार हो कर घर का दरवाज़ा लॉक कर लपका चाची के पीछे | स्कूटर निकाल कर चाची के पीछे हो लिया | मोड़ के पास पहुँच कर देखा कि चाची एक पेड़ के नीचे खड़ी है और बार बार अपना रिस्ट वॉच देख कर सड़क के दाएँ - बाएँ देख रही है | ‘ह्म्म्म....किसी के आने का इंतज़ार हो रहा है |’ मैंने मन में सोचा | कुछ ही सेकंड्स के अन्दर एक काली वैन आकर चाची के सामने रुकी और चाची पलक झपकते ही उसमें बैठ गई | ‘अरे, ये तो वही वैन है |’ – सहसा मेरे मुँह से निकला | मेरे इतना कहते कहते वैन आगे बढ़ चुकी थी | अब और कुछ सोचने का समय न था |


पीछा करने के उद्देश्य से मैंने स्कूटर पर किक लगाया | पर वह स्टार्ट नहीं हुआ | तीन – चार बार ऐसे ही किक मारा पर वह स्टार्ट न हुआ | झल्लाकर मैंने स्कूटर को बगल के एक दुकान के सामने खड़ी कर; दुकान वाले को उसपे ज़रा ध्यान देने को बोलकर सड़क को पार कर उसी जगह पहुँचा जहां थोड़ी देर पहले चाची थी और आने वाले हर टैक्सी को रुकने का इशारा करने लगा | तीन टैक्सी बिना रुके – देखे निकल गई और इधर मारे झुँझलाहट के मेरा पारा धीरे धीरे चढ़ने लगा था | अभी एक और टैक्सी को रूकने का इशारा करता; उससे पहले ही एक नीली वैन आकर ठीक मेरे सामने रुकी | उसके शीशों पर काली फिल्म चढ़ाई हुई थी इसलिए अन्दर कौन बैठा या बैठे हैं ये जानना मुश्किल था | अपने सामने एक अनजानी गाड़ी को अचानक से यूँ आकर खड़ी होते देखकर मुझे बेहद आश्चर्य भी हुआ और डर भी लगा | इससे पहले की मैं कुछ सोचता, ड्राईवर के बगल वाली सीट वाला कला शीशा नीचे हुआ......


अन्दर उस सीट पर आँखों पर काला चश्मा लगाए, होंठों में एक लम्बी सी सिगार सुलगाए एक आदमी बैठा था | बिना कुछ बोले एक कागज़ का टुकड़ा बढ़ाया मेरी ओर उसने | कागज़ पर लिखे शब्दों को पढ़कर मैं आश्चर्य से उस आदमी को देखा | जवाब में आदमी ने भावहीन चेहरा बनाए, सिर को ज़रा सा हिलाकर पीछे की ओर इशारा किया और इसके साथ ही वैन का पीछे का दरवाज़ा खुल गया | उस कागज़ के टुकड़े को हाथ में मरोड़कर मुट्ठी में भींचते हुए मैं चुपचाप वैन के अन्दर बैठ गया | मेरे बैठते ही वैन का दरवाज़ा बंद हुआ और वैन अपने गंतव्य की ओर चल पड़ा |

अन्दर सीट बड़ा ही आरामदायक था | पर्दे लगे थे आस पास | एक मीठी सी, भीनी भीनी सी खुशबू फ़ैली थी अन्दर | अन्दर बैठने पर मैं ड्राईवर और उसके बगल में बैठे उस काले चश्मे वाले आदमी को देख नहीं पा रहा था और शायद वो भी मुझे नहीं देख पा रहे होंगे; क्योंकि उनके सीट के ठीक पीछे एक मेटलिक दीवार था जिस कारण मैं उनको देख नहीं पा रहा था और शायद वो मुझे | अभी और जायज़ा ले ही रहा था की तभी,
“हेल्लो अभय.. हाऊ आर यू?” – एक आवाज़ गूँजा |
मैं आवाज़ की दिशा की तरफ़ मुड़ा, सामने वाली सीट के ही बिल्कुल किनारे में एक छोटा टेप रेकॉर्डर सा बॉक्स रखा था | आवाज़ वहीँ से आई थी | मैं एकटक दृष्टि लगाए रखा उस पर | आवाज़ दुबारा आई ..
“हैरान मत हो अभय, ये स्पीकर कम माइक्रोफोन है | तुम मुझे सुन सकते और मैं तुम्हे | ”
“जी, आप कौन?” – घबराये स्वर में मैंने पूछा |
“ह्म्म्म... आवाज़ क्लियर नहीं पहुँच रही होगी तुम तक शायद... इसलिए पहचान नहीं पाए | मैं एक्स हूँ.. मिस्टर एक्स.. तुम्हारा शुभचिंतक |” – दूसरी ओर से आवाज़ आई |
“ओहह.. तो ये आप हैं ... जी, बड़ी ख़ुशी हुई आपसे मिलकर .. आई मीन, आपकी आवाज़ सुनकर |” – मैं अभी भी घबराया हुआ था |
“ह्म्म्म... थैंक्स, तुम पहले आदमी हो जिसे मुझसे मिलकर या मेरी आवाज़ सुनकर ख़ुशी हुई | खैर, तो अब ये बताओ की तुम भरी दिन में ही इस तरह से जासूसी करने लगे? तुम्हें मैंने समझाया था न कि इस तरह का कोई भी काम करने की गलती; गलती से भी मत करना...|” – दूसरी तरफ़ से आई आवाज़ में नाराज़गी साफ़ महसूस की जा सकती थी |
“मैं इसे तुम्हारी दृढ़ता समझूँ या ढीटता ....??” – फ़िर आवाज़ आई |
 
दो पल ठहर कर थोड़ी हिम्मत जुटा कर होंठों पर जीभ फ़ेर कर भीगोते हुए बोला, “अंग्रेजी में एक कहावत है, अ मैन इज़ जज्ड बाई हिज़ एक्शन नट बाई हिज़ इंटेंशन .. अब आप ही तय कीजिए.. मेरी इस हरकत को आप क्या नाम देना चाहेंगे?”



कुछ सेकंड्स की शान्ति छाई रही |
और फ़िर आवाज़ आई, “देखो अभय, मैं तुम्हे दिशा दे सकता हूँ, निर्देश नहीं.. और न आदेश | तुम्हें कौन सी बात माननी है और कौन सी नहीं माननी.. क्या करना है और क्या नहीं..ये सब तुम्हारे ही फैसलों पर निर्भर है | अगर तुम्हें लगता है की हमसे तुम्हारा कोई फायदा नहीं तो तुम चाहो तो हमारे रास्ते अलग हो सकते हैं |”
इस बार चौंका मैं | मेरी नादानी की वजह से कहीं मैं अपने इस अनजाने मददगार को खो न दूँ | एक तो वैसे भी काफ़ी कुछ क्लियर नहीं है चाची या उनसे जुड़े घटनाओं और गतिविधियों के बारे में और ऊपर से इसकी ऐसी पेशकश | उफ़.. बुरा फँसा मैं |
मैंने जल्दी से बात को संभालने की कोशिश की |
“जी, देखिये, बात मेरी परिवार की है | चाचा और चाची, दोनों से ही मुझे बहुत प्यार मिला है | तो फ़िर, ऐसे में जब उनके आस पास कोई संकट हो और चाची भी उस से घिरी हो; तो आप ही बताइए की क्या मैं चुप रह सकता हूँ ऐसे हालात में? कुछ तो करना ही था मुझे | और जब तक पूरी विषयवस्तु अच्छे तरह से स्पष्ट नहीं हो जाती तब तक मैं सिवाए जासूसी के और कर भी क्या सकता हूँ ??”
इन तर्कों के साथ मैंने अपनी मजबूरी बतानी और नादानी छुपानी चाही | इधर स्पीकर से भी कुछ पलों के लिए कोई आवाज़ नहीं आई | फिर अचानक से वही खरखराती आवाज़ गूँजी उन वैन में ....
“तुम्हारे बातों में दम है... पर एक बात बताओ...”
“जी, पूछिए...” – मैं तपाक से बोल पड़ा |
“तुम्हें इतना यकीं क्यूँ है की तुम्हारी चाची वाकई किसी मुसीबत में है....ऐसा भी तो हो सकता है की वो खुद कोई मुसीबत हो?? ”

इस बात ने जैसे एक बम सा गिराया मेरे सिर पर ....


“जी???...ज.....ज......जी, आ.... आप.... आप क्या कहना चाहते हैं?” – मेरे मुँह से शब्द किसी तरह निकले |
“मैं पक्के तौर पर कुछ भी कह रहा हूँ अभय, और न ही मैं ऐसे किसी नतीजे पर पहुँचा हूँ ... सिर्फ़ शक समझो इसे... क्या ये कोई हैरानी की बात नहीं कि जिस चाची के तुम किसी तरह के किसी संकट में होने बात कर रहे हो, परेशान रहते हो और इस बात को अब एक महिना होने को आ गया ; वो चाची अभी तक पूरी तरह से महफूज़ है | उसे कोई परेशानी ज़रूर है पर वो तुमसे या तुम्हारे चाचा से अभी तक शेयर नहीं की... चलो ठीक है, शायद परेशानी शेयर करने लायक नहीं हो .. पर ऐसी कौन सी परेशानी है जिससे वो सुबह शाम परेशान रहती है लेकिन फ़िर भी बहोत ही अच्छे तरीके से खुद ही हैंडल कर ले रही है?? सोचो अभय, ज़रा सोचो.. वो अक्सर घर से किसी न किसी बहाने निकलती है और देर शाम को या देर से घर लौटती है... अब ये मत कहना की आजकल कुछ दिनों से तुमने अपनी चाची को अपने साथ कोई बैग लाते हुए नहीं देखा... देखा तो ज़रूर होगा.. है ना ...? वो बैग क्यों लाती है और उसमें बैग में क्या होता होगा... इस बारे में सोचा तुमने? जानने की कोशिश की?”
जैसे जैसे उस आवाज़ ने कई सारे पॉइंट्स और उन पॉइंट्स के साथ प्रश्न किए .. मेरे सोच में डूबता गया और मेरी पेशानिओं में बल पड़ते गए | उस वैन में ऊपर की ओर दो साइड से दो छोटे छोटे टेबल फैननुमा पंखे लगे थे जिनसे अच्छी हवा भी मिल रही थी पर अभी मेरे माथे पर पसीने की कुछ बूँदें छलक आई थीं.. मैंने पॉकेट से रुमाल निकाल कर माथे को पोछा और इसी के साथ ही दूसरी ओर से आवाज़ आई,

“पोछ लो अभय, पसीने को पोछ लो... पर साथ ही मेरे दागे गए सवालों के बारे में भी सोचो |”
“क्या आप बता सकते हैं कि अभी मेरी चाची कहाँ होगी?” रूमाल को वापस पॉकेट में रखते हुए मैंने पूछा |
“बता सकता हूँ पर बताऊंगा नहीं .. इसकी अपनी वजह है | खैर, तुम कल शाम साढ़े छह बजे फ्री रहना | सात बजे तुम्हें योर होटल कम रेस्टोरेंट में पहुँचना है; वहां पहुँचने पर तुम्हें एक अलग ही चाची दिखेगी | आज और अभी वो जिसके साथ होगी, कल भी उसी के साथ होगी और आज जो कर रही होगी शायद कल भी वही करेगी.. मैं चाहता हूँ की तुम खुद अपनी आँखों से सब देखो |”
संशय भरे लहजे में मैंने पूछा, “आं... म्मम्म... पर आप खुद भी तो बता सकते हैं..”
“हाँ, ज़रूर बता सकता हूँ पर बताना आसान नहीं है.. बेहतर यही होगा की कल तुम खुद ही सब देख आओ |”


कुछ सोचते हुए मैं बोला,
“पर मैं ऐसे ही तो नहीं जा सकता न.. मेरा निजी अनुभव कहता है कि वो लोग और वो जगह बहुत खतरनाक है |”
“हाँ, सही कह रहे हो | अपने सीट के नीचे देखो | एक बैग होगा वहाँ |” – दूसरी ओर से आवाज़ आई |
मैंने तुरंत सीट के नीचे देखा, एक काले रंग का मध्यम आकार का बैग रखा था |
“बैग को निकालो और खोल कर देखो |” – फ़िर आवाज़ आई |
मैंने उस आवाज़ के कहे अनुसार तुरंत उस बैग को सीट के नीचे से निकाला और चेन खोल कर अन्दर देखा | हल्के नारंगी रंग के कपड़े रखे थे, शायद ब्लेजर होगा | एक पैंट भी था .. नारंगी रंग का और साथ था एक सफ़ेद शर्ट |
मैं आश्चर्य और आँखों में ढेर सारे प्रश्न लिए उन कपड़ों को अभी देख ही रहा था कि फ़िर से आवाज़ आई –
“हैरानी हो रही होगी तुम्हें और साथ ही सोच भी रहे होगे की ये सब आखिर क्या है?... हैरान न हो.. ये कपड़े दरअसल उसी योर होटल के वेटर्स के यूनिफार्म में से एक है ; कल तुम्हें इन्हीं कपड़ो में योर होटल में जाना है | इससे लोग तुम्हें उसी होटल का ही एक वेटर समझेंगे | कई बार होटल का मालिक ख़ास मौकों पर वेटर की कमी होने पर बेरोज़गार लड़कों को एक रात के लिए काम पर रख लेता है | और अगले दिन अच्छी खासी रकम देकर अलविदा कर देता है | यहाँ एक बड़ी बात ये है की वो एक बार लड़कों को रखने के बाद दोबारा उनकी जांच नहीं करता इसलिए तुम बेफ़िक्र हो कर वहाँ घुस सकते हो और फ़िर सावधानी से अपना काम कर के निकल सकते हो.... और हाँ, तुम्हें कपड़े कहाँ बदलने हैं, होटल में घुसने के बाद तुम्हें क्या क्या करना है, कैसे सर्विस शुरू करनी है...ये सब इसी बैग में एक पेपर में लिख कर रखा हुआ है ; घर जा कर अच्छे से पढ़ लेना... ओके? ”
 
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