hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
“क्या मैं अभय, मिस्टर अभय से बात कर रहा हूँ??” दूसरी ओर से एक मध्यम भारी सा आवाज़ सुनाई दिया |
“जी.. बोल रहा हूँ |” मैं बोला |
“ह्म्म्म... मुझे पूरी उम्मीद थी की तुम अभी मुझे घर पर ही मिलोगे.. |” दूसरी ओर से आवाज़ आई |
“जी, वो तो ठीक है पर मैंने आपको पहचाना नहीं.. |” मैं सशंकित लहजे में बोला |
“हम्म.. जानता हूँ.. तुम मुझे नहीं पहचानोगे और ना ही तुम मुझे जानते हो .. पर मैं तुम्हारे बारे में बहुत कुछ जानता हूँ.. वरन ये समझ लो की मैं तुम्हारे बारे में सब कुछ जानता हूँ |” दूसरी ओर से वही धीर स्थिर सी आवाज़ आई |
मेरे कान खड़े हो गए | मैं फ़ौरन पूरी सतर्कता के साथ उसकी आगे की बोली जाने वाली बातों के बारे में सोचने लगा और सबसे ज़्यादा इस बात पे फोकस था मेरा अब की आगे क्या होने वाला है, ये मुझे कैसे जानता है, क्या चाहता है इत्यादि |
“सुनो, मैं जानता हूँ की अभी तुम्हारे दिलो दिमाग में बहुत सारे ख्याल आ रहे होंगे .. आना वाजिब भी है.. मुझे तुम अपना दोस्त ही समझ लो | अपना शुभ चिन्तक.. | मैं बस अभी के लिए इतना ही कहना चाहूँगा कि तुम जो कुछ भी कर रहे हो वो खतरों से खाली नहीं है | जान भी जा सकती है | ऐसा भी हो सकता है की कोई तुम्हे मार कर फेंक दे और महीनो किसी को कुछ पता भी न चले.. | ये सब कोई बच्चो का खेल नहीं है जो तुम इन सबमें हाथ धो कर पीछे पड़ गए | बेहतर होगा की तुम किसी ओर की मदद लो... पुलिस की ही मदद ले लो |” – उस शख्स ने बड़े ही शांत पर चिंतित से स्वर में कहा |
“जी.. मैं आपके बातों और जज्बातों का कद्र करता हूँ.. अच्छा लगा की एक अजनबी-से हो कर भी आप मेरी इतनी फ़िक्र कर रहे हैं... पर बात जब परिवार की हो तो मदद के लिए खुद आगे आना चाहिए.. ऐसा मेरा मानना है | रही पुलिस की बात तो अभी उन्हें इसमें इन्वोल्व नहीं करना चाहता मैं | और मरने की बात तो छोड़ ही दीजिए .. जो जन्मा है वो मरा भी है | नथिंग स्ट्रेंज ओर डिफ्फरेंट इन इट | मैं पीछे नहीं हटने वाला | - मैंने पूरी दृढ़ता से अपनी बात रखी |
दूसरी ओर एक लम्बी सी ख़ामोशी छाई रही | सिर्फ़ गहरी सांस लेने की आवाज़ सुनाई दे रही थी |
फिर,
“ह्म्म्म.. ठीक है .. जब करने-मरने की ठान ही चुके हो तो मैं और कह भी क्या सकता हूँ | पर तुम्हारी मदद के लिए ज़रूर रहूँगा हमेशा |” – दूसरी ओर से आई आवाज़ में चिंता की लहरें थी |
“वैसे अभी मिल सकते हो क्या?” – उस आदमी ने पूछा |
“क्यों? कोई मदद करना चाहते हो क्या? किस बारे में मिलना है तुम्हें ?” मैंने रिटर्न प्रश्न किया |
“तुम्हारी चाची के बारे में बात करनी थी |” बहुत शोर्ट और गंभीर आवाज में कहा उसने |
सुनते ही मेरे सतर्कता के भी छक्के छूटे .. हाथ से रिसीवर छूटने को हो आया | थोड़ी हडबडाहट सी हुई | संभल कर मैंने भी उसी भाँति गंभीर आवाज़ में पूछा, “क्या बात करना है आपको मेरी चाची के बारे में?”
“फ़ोन पर संभव नहीं है.. तुम बस ये बताओ की क्या तुम अभी मुझसे मिलने आ सकते हो ?” – दूसरी तरफ़ से भावहीन स्वर उभरा |
“जी... बिल्कुल आ सकता हूँ.. कहाँ आना होगा मुझे?” मैंने घड़ी की ओर देखते हुए उतावलेपन में कहा |
“दस मिनट बाद ही तुम्हारे घर से पहले वाले मोड़ पर एक कार .. आई मीन एक टैक्सी आ कर रूकेगी .. तुम्हें देख कर दो बार हेडलाइट्स ऑन-ऑफ़ करेगी .. उसमें बैठ जाना.. वो तुम्हे मुझ तक पहुँचा देगी...और हाँ, एक बात और.. उस बेचारे टैक्सी ड्राईवर से कोई सवाल जवाब मत करना .. वो तो सिर्फ़ मेरे कहने पर ही तुम्हे लेने आएगा और मुझ तक छोड़ जाएगा... ओके?” – निर्देशात्मक लहजे में कहा उस शख्स ने |
मेरे ओके या कुछ और कहने के पहले ही उसने फ़ोन रख दिया था | मैंने रिसीवर क्रेडल पर रखा | नज़र दौड़ाई घड़ी पर ... सवा नौ बज रहे थे रात के | इससे पहले कभी बाहर जाना नही हुआ रात में | ये पहली बार था और जाना ज़रूरी भी | मैं सीधे अपने रूम गया, तैयार हुआ और चाची को उनके रूम के बाहर से आवाज़ दिया, “चाची... थोड़ा काम से निकल रहा हूँ... कुछ ही देर में आ जाऊंगा |” कह कर बाहर निकल गया मैं.. तब तक चाची अपने रूम से निकल आई थी.. सवालिया नज़रों से मुझे देख रही थी | पर मेरे पास टाइम नही था रुकने का या फिर उनके किसी बात का जवाब देने का.. मैं जो भी कर रहा हूँ और करने जा रहा हूँ .. वो तो चाची के लिए ही है न...|
“जी.. बोल रहा हूँ |” मैं बोला |
“ह्म्म्म... मुझे पूरी उम्मीद थी की तुम अभी मुझे घर पर ही मिलोगे.. |” दूसरी ओर से आवाज़ आई |
“जी, वो तो ठीक है पर मैंने आपको पहचाना नहीं.. |” मैं सशंकित लहजे में बोला |
“हम्म.. जानता हूँ.. तुम मुझे नहीं पहचानोगे और ना ही तुम मुझे जानते हो .. पर मैं तुम्हारे बारे में बहुत कुछ जानता हूँ.. वरन ये समझ लो की मैं तुम्हारे बारे में सब कुछ जानता हूँ |” दूसरी ओर से वही धीर स्थिर सी आवाज़ आई |
मेरे कान खड़े हो गए | मैं फ़ौरन पूरी सतर्कता के साथ उसकी आगे की बोली जाने वाली बातों के बारे में सोचने लगा और सबसे ज़्यादा इस बात पे फोकस था मेरा अब की आगे क्या होने वाला है, ये मुझे कैसे जानता है, क्या चाहता है इत्यादि |
“सुनो, मैं जानता हूँ की अभी तुम्हारे दिलो दिमाग में बहुत सारे ख्याल आ रहे होंगे .. आना वाजिब भी है.. मुझे तुम अपना दोस्त ही समझ लो | अपना शुभ चिन्तक.. | मैं बस अभी के लिए इतना ही कहना चाहूँगा कि तुम जो कुछ भी कर रहे हो वो खतरों से खाली नहीं है | जान भी जा सकती है | ऐसा भी हो सकता है की कोई तुम्हे मार कर फेंक दे और महीनो किसी को कुछ पता भी न चले.. | ये सब कोई बच्चो का खेल नहीं है जो तुम इन सबमें हाथ धो कर पीछे पड़ गए | बेहतर होगा की तुम किसी ओर की मदद लो... पुलिस की ही मदद ले लो |” – उस शख्स ने बड़े ही शांत पर चिंतित से स्वर में कहा |
“जी.. मैं आपके बातों और जज्बातों का कद्र करता हूँ.. अच्छा लगा की एक अजनबी-से हो कर भी आप मेरी इतनी फ़िक्र कर रहे हैं... पर बात जब परिवार की हो तो मदद के लिए खुद आगे आना चाहिए.. ऐसा मेरा मानना है | रही पुलिस की बात तो अभी उन्हें इसमें इन्वोल्व नहीं करना चाहता मैं | और मरने की बात तो छोड़ ही दीजिए .. जो जन्मा है वो मरा भी है | नथिंग स्ट्रेंज ओर डिफ्फरेंट इन इट | मैं पीछे नहीं हटने वाला | - मैंने पूरी दृढ़ता से अपनी बात रखी |
दूसरी ओर एक लम्बी सी ख़ामोशी छाई रही | सिर्फ़ गहरी सांस लेने की आवाज़ सुनाई दे रही थी |
फिर,
“ह्म्म्म.. ठीक है .. जब करने-मरने की ठान ही चुके हो तो मैं और कह भी क्या सकता हूँ | पर तुम्हारी मदद के लिए ज़रूर रहूँगा हमेशा |” – दूसरी ओर से आई आवाज़ में चिंता की लहरें थी |
“वैसे अभी मिल सकते हो क्या?” – उस आदमी ने पूछा |
“क्यों? कोई मदद करना चाहते हो क्या? किस बारे में मिलना है तुम्हें ?” मैंने रिटर्न प्रश्न किया |
“तुम्हारी चाची के बारे में बात करनी थी |” बहुत शोर्ट और गंभीर आवाज में कहा उसने |
सुनते ही मेरे सतर्कता के भी छक्के छूटे .. हाथ से रिसीवर छूटने को हो आया | थोड़ी हडबडाहट सी हुई | संभल कर मैंने भी उसी भाँति गंभीर आवाज़ में पूछा, “क्या बात करना है आपको मेरी चाची के बारे में?”
“फ़ोन पर संभव नहीं है.. तुम बस ये बताओ की क्या तुम अभी मुझसे मिलने आ सकते हो ?” – दूसरी तरफ़ से भावहीन स्वर उभरा |
“जी... बिल्कुल आ सकता हूँ.. कहाँ आना होगा मुझे?” मैंने घड़ी की ओर देखते हुए उतावलेपन में कहा |
“दस मिनट बाद ही तुम्हारे घर से पहले वाले मोड़ पर एक कार .. आई मीन एक टैक्सी आ कर रूकेगी .. तुम्हें देख कर दो बार हेडलाइट्स ऑन-ऑफ़ करेगी .. उसमें बैठ जाना.. वो तुम्हे मुझ तक पहुँचा देगी...और हाँ, एक बात और.. उस बेचारे टैक्सी ड्राईवर से कोई सवाल जवाब मत करना .. वो तो सिर्फ़ मेरे कहने पर ही तुम्हे लेने आएगा और मुझ तक छोड़ जाएगा... ओके?” – निर्देशात्मक लहजे में कहा उस शख्स ने |
मेरे ओके या कुछ और कहने के पहले ही उसने फ़ोन रख दिया था | मैंने रिसीवर क्रेडल पर रखा | नज़र दौड़ाई घड़ी पर ... सवा नौ बज रहे थे रात के | इससे पहले कभी बाहर जाना नही हुआ रात में | ये पहली बार था और जाना ज़रूरी भी | मैं सीधे अपने रूम गया, तैयार हुआ और चाची को उनके रूम के बाहर से आवाज़ दिया, “चाची... थोड़ा काम से निकल रहा हूँ... कुछ ही देर में आ जाऊंगा |” कह कर बाहर निकल गया मैं.. तब तक चाची अपने रूम से निकल आई थी.. सवालिया नज़रों से मुझे देख रही थी | पर मेरे पास टाइम नही था रुकने का या फिर उनके किसी बात का जवाब देने का.. मैं जो भी कर रहा हूँ और करने जा रहा हूँ .. वो तो चाची के लिए ही है न...|