hotaks444
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उसी दिन शाम को,
उसी चाय दुकान में,
एक कोने में मंगरू और विनय बैठे थे | विनय सादे लिबास में था |
“बोल मंगरू... क्या ख़बर है?”
“साब... उस दिन जो तीन फ़ोटो आप दिए थे ... उन तीनो के बारे में पता किया... आदमी का नाम आलोक है... मिस्टर आलोक शर्मा... औरत का नाम दीप्ति शर्मा है.. उस आदमी की धर्मपत्नी... और लड़का जो है ..वो है इनका भतीजा.. अभय... अभय शर्मा... होनहार है .. अच्छा है.. कोचिंग सेंटर चलाता है |”
“ठीक है... आगे बोलो..|”
“साब.. ये जो आलोक है... ये आदमी अच्छा है... किसी से कोई झगड़ा नहीं.. लफड़ा नहीं... खा पी के ऑफिस जाता है और टाइम पे आता है.. थोड़ा भुलक्कड़ स्वाभाव का है... पर और कोई दोष नहीं है इसमें.. पर....|”
“पर क्या मंगरू??”
“इसकी पत्नी और भतीजा... दोनों कुछ दिन से ठीक से नहीं लग रहे थे |”
“क्या मतलब?”
“मतलब ये की सरकार .... पिछले काफ़ी दिनों से इस महिला की कुछ गतिविधियाँ संदिग्ध सी लग रही थी .. घर से निकलती रहती और अक्सर घंटो घर नहीं आती थी... इसके भतीजे को शायद इसपर किसी तरह का कोई शक हो गया था... इसलिए शायद इस औरत के निकलने के कुछेक मिनट बाद ये भी निकल जाता और इसका पीछा करता... पर शायद कुछ हाथ नहीं लगा था लड़के के.. ”
“ह्म्म्म... अच्छा... एक बात बताओ... जिस दिन ये गायब हुआ... क्या उस दिन भी ये इस औरत का पीछा कर रहा था?” विनय बड़ी दिलचस्पी से पूछा |
“ये पता नहीं लगा सका हुजूर...|” – बेबसी से बोला मंगरू |
“ये बताओ ... ये महिला घर से निकल कर जाती कहाँ थी?”
“पता नहीं साब... क्योंकि इसे लेने एक काली रंग की वैन आया करती थी | अभी चार पांच दिनों से ये कहीं नहीं जाती... सारा वक़्त घर में ही बिताती.. इसलिए पता करना थोड़ा मुश्किल है |”
“कोई बात नहीं... इतना पता लगाया... ये बहुत है.. ये लो.. अपना इनाम..|” कहते हुए विनय ने एक पाँच सौ का नोट थमाया मंगरू को |
मंगरू ख़ुशी से उस नोट को चूम कर अपने शर्ट के अन्दर वाले पॉकेट में भर लेता है ; नमस्ते कर जा ही रहा होता है कि रुक जाता है... कुछ सोचते हुए पीछे मुड़ता है और हाथ जोड़ कर बोला, “साब... एक विनती है... आगे से इतनी जोर से मत मारा करो... हेहे.. दर्द होता है |” सुन कर विनय हँस देता है | मंगरू के चले जाने के बाद एक सिगरेट सुलगाया और जेब से वही फ़ोटो निकाला जिसे वह होटल के रजिस्टर से फाड़ा था | कुछ देर तक उस फ़ोटो को अच्छी तरह से निहारने के बाद वह दो बार उस फ़ोटो पर ऊँगली फेरा और फिर लाइटर जला कर उस फ़ोटो को आग लगा दिया |
----
कुछ देर बाद,
शाम के साढ़े छ: बज रहे थे | अभय के घर के सामने एक पुलिस जीप आ कर रुकी... और फ़िर उसमे से उतरा विनय... अपने पूरे यूनिफार्म में था वह.. | खादी वर्दी, सिर पे टोपी, कमर पर रिवोल्वर और हाथ में छोटा सा डंडा जो अक्सर पुलिस इंस्पेक्टरों के हाथों में होता है | सधे कदमों से चलते हुए वह बिल्डिंग की सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ मेन डोर के पास पहुँचा और उसी डंडे से कुछेक बार दरवाज़ा पीटा | थोड़े ही देर में दरवाज़ा खुला, सामने मिसेस दीप्ति शर्मा थीं अर्थात चाची .. एक सुंदर सी हलकी चमकीली पतली सी एक लाल साड़ी में... ब्लाउज भी कुछ वैसा ही था .. काला और पतला.. पर ब्रा है या नहीं ; समझना थोड़ा मुश्किल है | चाची को साइड करता हुआ अन्दर घुसा | चाची दरवाज़ा लगाकर धीरे क़दमों से चलते हुई उसके पास आई...
विनय – “कैसी हैं आप दीप्ति जी....?”
चाची – “जी ठीक हूँ...|”
“कौन कौन हैं घर पर...?”
“कोई नहीं... मेरे पति को आने में थोड़ा लेट है अभी |”
“हम्म... तो दीप्ति जी.. क्या आपने योर होटल का नाम सुना है?”
योर होटल का नाम सुनते ही चाची का चेहरा सफ़ेद पड़ गया... सकपका कर बोली,
“नहीं.. हाँ... आई मीन... हाँ सुना तो है |”
“गुड... कभी गयी हैं वहाँ ?” ये प्रश्न करते हुए विनय चाची की आँखों में देखा |
खुद को सामान्य दिखाते हुए चाची बोली, “नहीं... कभी संयोग नहीं हुआ |”
“सच?? अच्छे से सोच कर बोलिए... ऐसा कुछ है जो हमें आपकी इस बात को मानने नहीं देती |” होठों पर एक शरारती मुस्कान लिए विनय बड़े अर्थपूर्ण तरीके से प्रश्न किया |
“आं.. मम्म.. अह.. हो सकता है कभी गई हूँ... हर बात तो हर समय याद नही रहता है ना...” चाची थोड़ा काँप उठी इस बार |
विनय मुस्कराता हुआ दीप्ति के बहुत करीब आया, डंडे के एक सिरे को दीप्ति के चेहरे के एक तरफ़ रखते हुए धीरे धीरे नीचे गले तक आया, वहाँ दो बार गोल गोल डंडे को घूमाया और फिर डंडे को वक्षों तक ला कर पल्लू को हटा कर क्लीवेज देखने लगा ... बड़े ही हसरत के साथ... दीप्ति, जो अभी तक डर रही थी किसी तरह का कोई प्रतिरोध करने से ; पल्लू के हट जाने से तुरंत पीछे हटते हुए पल्लू को संभाली और वक्षों को भली प्रकार ढकते हुए ज़ोर से बोली,
“ये क्या बेहूदगी है इंस्पेक्टर साहब... होश में हैं? ये कोई तरीका है किसी महिला से बात करने का ?”
चाची के अचानक से इस रवैये का अंदाज़ा नहीं किया था विनय ने.. इसलिए कुछ देर के लिए हक्का बक्का सा रह गया पर बहुत जल्दी ही खुद को संभालते हुए कहा,
“तरीका हमें अच्छे से मालूम है मिसेस शर्मा... आज कोई ख़ास पूछताछ नही करनी थी.. पर अगली बार सबूतों के साथ आऊंगा... और यकीं मानिए, बहुत अच्छे से पूछताछ करूँगा |” कहते हुए दीप्ति को ऊपर से नीचे तक खा जाने वाली नज़र से देखा और फ़िर एक कुटिल मुस्कान देता हुआ दरवाज़े से बाहर निकल गया |
उसी चाय दुकान में,
एक कोने में मंगरू और विनय बैठे थे | विनय सादे लिबास में था |
“बोल मंगरू... क्या ख़बर है?”
“साब... उस दिन जो तीन फ़ोटो आप दिए थे ... उन तीनो के बारे में पता किया... आदमी का नाम आलोक है... मिस्टर आलोक शर्मा... औरत का नाम दीप्ति शर्मा है.. उस आदमी की धर्मपत्नी... और लड़का जो है ..वो है इनका भतीजा.. अभय... अभय शर्मा... होनहार है .. अच्छा है.. कोचिंग सेंटर चलाता है |”
“ठीक है... आगे बोलो..|”
“साब.. ये जो आलोक है... ये आदमी अच्छा है... किसी से कोई झगड़ा नहीं.. लफड़ा नहीं... खा पी के ऑफिस जाता है और टाइम पे आता है.. थोड़ा भुलक्कड़ स्वाभाव का है... पर और कोई दोष नहीं है इसमें.. पर....|”
“पर क्या मंगरू??”
“इसकी पत्नी और भतीजा... दोनों कुछ दिन से ठीक से नहीं लग रहे थे |”
“क्या मतलब?”
“मतलब ये की सरकार .... पिछले काफ़ी दिनों से इस महिला की कुछ गतिविधियाँ संदिग्ध सी लग रही थी .. घर से निकलती रहती और अक्सर घंटो घर नहीं आती थी... इसके भतीजे को शायद इसपर किसी तरह का कोई शक हो गया था... इसलिए शायद इस औरत के निकलने के कुछेक मिनट बाद ये भी निकल जाता और इसका पीछा करता... पर शायद कुछ हाथ नहीं लगा था लड़के के.. ”
“ह्म्म्म... अच्छा... एक बात बताओ... जिस दिन ये गायब हुआ... क्या उस दिन भी ये इस औरत का पीछा कर रहा था?” विनय बड़ी दिलचस्पी से पूछा |
“ये पता नहीं लगा सका हुजूर...|” – बेबसी से बोला मंगरू |
“ये बताओ ... ये महिला घर से निकल कर जाती कहाँ थी?”
“पता नहीं साब... क्योंकि इसे लेने एक काली रंग की वैन आया करती थी | अभी चार पांच दिनों से ये कहीं नहीं जाती... सारा वक़्त घर में ही बिताती.. इसलिए पता करना थोड़ा मुश्किल है |”
“कोई बात नहीं... इतना पता लगाया... ये बहुत है.. ये लो.. अपना इनाम..|” कहते हुए विनय ने एक पाँच सौ का नोट थमाया मंगरू को |
मंगरू ख़ुशी से उस नोट को चूम कर अपने शर्ट के अन्दर वाले पॉकेट में भर लेता है ; नमस्ते कर जा ही रहा होता है कि रुक जाता है... कुछ सोचते हुए पीछे मुड़ता है और हाथ जोड़ कर बोला, “साब... एक विनती है... आगे से इतनी जोर से मत मारा करो... हेहे.. दर्द होता है |” सुन कर विनय हँस देता है | मंगरू के चले जाने के बाद एक सिगरेट सुलगाया और जेब से वही फ़ोटो निकाला जिसे वह होटल के रजिस्टर से फाड़ा था | कुछ देर तक उस फ़ोटो को अच्छी तरह से निहारने के बाद वह दो बार उस फ़ोटो पर ऊँगली फेरा और फिर लाइटर जला कर उस फ़ोटो को आग लगा दिया |
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कुछ देर बाद,
शाम के साढ़े छ: बज रहे थे | अभय के घर के सामने एक पुलिस जीप आ कर रुकी... और फ़िर उसमे से उतरा विनय... अपने पूरे यूनिफार्म में था वह.. | खादी वर्दी, सिर पे टोपी, कमर पर रिवोल्वर और हाथ में छोटा सा डंडा जो अक्सर पुलिस इंस्पेक्टरों के हाथों में होता है | सधे कदमों से चलते हुए वह बिल्डिंग की सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ मेन डोर के पास पहुँचा और उसी डंडे से कुछेक बार दरवाज़ा पीटा | थोड़े ही देर में दरवाज़ा खुला, सामने मिसेस दीप्ति शर्मा थीं अर्थात चाची .. एक सुंदर सी हलकी चमकीली पतली सी एक लाल साड़ी में... ब्लाउज भी कुछ वैसा ही था .. काला और पतला.. पर ब्रा है या नहीं ; समझना थोड़ा मुश्किल है | चाची को साइड करता हुआ अन्दर घुसा | चाची दरवाज़ा लगाकर धीरे क़दमों से चलते हुई उसके पास आई...
विनय – “कैसी हैं आप दीप्ति जी....?”
चाची – “जी ठीक हूँ...|”
“कौन कौन हैं घर पर...?”
“कोई नहीं... मेरे पति को आने में थोड़ा लेट है अभी |”
“हम्म... तो दीप्ति जी.. क्या आपने योर होटल का नाम सुना है?”
योर होटल का नाम सुनते ही चाची का चेहरा सफ़ेद पड़ गया... सकपका कर बोली,
“नहीं.. हाँ... आई मीन... हाँ सुना तो है |”
“गुड... कभी गयी हैं वहाँ ?” ये प्रश्न करते हुए विनय चाची की आँखों में देखा |
खुद को सामान्य दिखाते हुए चाची बोली, “नहीं... कभी संयोग नहीं हुआ |”
“सच?? अच्छे से सोच कर बोलिए... ऐसा कुछ है जो हमें आपकी इस बात को मानने नहीं देती |” होठों पर एक शरारती मुस्कान लिए विनय बड़े अर्थपूर्ण तरीके से प्रश्न किया |
“आं.. मम्म.. अह.. हो सकता है कभी गई हूँ... हर बात तो हर समय याद नही रहता है ना...” चाची थोड़ा काँप उठी इस बार |
विनय मुस्कराता हुआ दीप्ति के बहुत करीब आया, डंडे के एक सिरे को दीप्ति के चेहरे के एक तरफ़ रखते हुए धीरे धीरे नीचे गले तक आया, वहाँ दो बार गोल गोल डंडे को घूमाया और फिर डंडे को वक्षों तक ला कर पल्लू को हटा कर क्लीवेज देखने लगा ... बड़े ही हसरत के साथ... दीप्ति, जो अभी तक डर रही थी किसी तरह का कोई प्रतिरोध करने से ; पल्लू के हट जाने से तुरंत पीछे हटते हुए पल्लू को संभाली और वक्षों को भली प्रकार ढकते हुए ज़ोर से बोली,
“ये क्या बेहूदगी है इंस्पेक्टर साहब... होश में हैं? ये कोई तरीका है किसी महिला से बात करने का ?”
चाची के अचानक से इस रवैये का अंदाज़ा नहीं किया था विनय ने.. इसलिए कुछ देर के लिए हक्का बक्का सा रह गया पर बहुत जल्दी ही खुद को संभालते हुए कहा,
“तरीका हमें अच्छे से मालूम है मिसेस शर्मा... आज कोई ख़ास पूछताछ नही करनी थी.. पर अगली बार सबूतों के साथ आऊंगा... और यकीं मानिए, बहुत अच्छे से पूछताछ करूँगा |” कहते हुए दीप्ति को ऊपर से नीचे तक खा जाने वाली नज़र से देखा और फ़िर एक कुटिल मुस्कान देता हुआ दरवाज़े से बाहर निकल गया |