Hindi Adult Kahani कामाग्नि - SexBaba
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Hindi Adult Kahani कामाग्नि

hotaks444

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Nov 15, 2016
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बात 1977 की है जब भारत के उत्तरी भाग के किसी गाँव में दो परिवार रहते थे। पड़ोसी तो वो थे ही लेकिन एक और बात थी, जो उनमें समान थी या शायद असामान्य थी; वो यह कि दोनों परिवारों में दो-दो ही सदस्य थे। एक परिवार में पिता का देहांत हो चुका था तो दूसरे में माँ नहीं थी, लेकिन दोनों के एक-एक बेटा था। विराज तब ग्यारह का होगा और जय दस का; दोनों की बहुत पक्की दोस्ती थी।


दोस्ती तो विराज की माँ से, जय के बाबा की भी अच्छी थी, लेकिन समाज को दिखाने के लिए वो अक्सर यही कहते थे कि अकेली औरत का इकलौता बेटा है तो उसकी मदद कर देते हैं। ऐसे तो विराज के घर के सारे बाहरी काम जय के बाबा ही करते थे; चाहे वो किराने का सामान लाने की बात हो या फिर खेती-बाड़ी के काम; लेकिन दुनिया को दिखाने के लिए विराज को हमेशा साथ रखना होता था।

विराज की माँ भी अपने लायक सारे काम कर दिया करती थी, जैसे कि जय और उसके बाबा के लिए खाना बनाना, कपड़े धोना और उनके घर की साफ़-सफाई। लेकिन ये शायद ही किसी को पता था कि वो केवल घर की साफ़-सफाई में ही नहीं बल्कि चुदाई में भी पूरा साथ देती थी।
सच कहें तो इसमें कोई बुराई भी नहीं थी; दोनों अपने जीवनसाथी खो चुके थे, ऐसे में हर तरह से एक दूसरे का सहारा बन कर ज़िन्दगी काटना ही सही तरीका था।

विराज को अक्सर खेती-बाड़ी के काम के लिए खेत-खलिहान में रहना पड़ता था। नाम के लिए ही सही लेकिन इस वजह से वो पढ़ाई में काफी पिछड़ गया था। यूँ तो सारा काम जय के बाबा करवाते थे लेकिन विराज उनके साथ घूम घूम कर दुनियादारी कुछ जल्दी ही सीख गया था। किताबों से ज़्यादा उसे खेती और राजनीति की समझ हो गई थी। वैसे भी उम्र में जय से थोड़ा बड़ा ही था तो स्कूल में उसके डर से जय की तरफ कोई नज़र उठा कर देख भी नहीं सकता था। जय भी पढ़ाई में विराज की मदद कर दिया करता था।

जब भी विराज को काम से और जय को पढ़ाई से फुर्सत मिलती तो दोनों साथ ही रहते थे। कभी अपने पहिये दौड़ाते हुए दूर खेतों में चले जाते तो कभी नदी किनारे जा कर चपटे पत्थरों को पानी पर टिप्पे खिलवाते। जब थक जाते तो कहीं अमराई में बैठ कर गप्पें लड़ते रहते। दोनों के बीच कभी कोई बात छिपी नहीं रह पाती थी। हर बात एक दूसरे को बता दिया करते थे।
अब तक तो ये बातें बच्चों वाली ही हुआ करतीं थीं लेकिन अब दोनों किशोरावस्था की दहलीज़ पर खड़े थे; अब बहुत कुछ बदलने वाला था।

विराज की माँ कामुक प्रवृत्ति की तो थी ही लकिन साथ में वो एक दबंग और बेपरवाह किस्म की औरत भी थी। विराज के सामने ही कपड़े बदल लेना, या नहाने के बाद अपने उरोजों को ढके बिना ही विराज के सामने से निकल जाना एक आम बात थी। वैसे विराज ने कभी उसे कमर से नीचे नंगी नहीं देखा था और न ही उसकी इस स्वच्छंदता के पीछे अपने बेटे के लिए कोई वासना थी। उसकी काम-वासना की पूर्ति जय के बाबा से हो जाती थी। ये तो शायद उसे ऐसा कुछ लगता था शायद कि माँ के स्तन तो होते ही उसके बच्चे के लिए हैं तो उस से उन्हें क्या छिपाना।

विराज बारह साल का होने को आ गया था लेकिन अब भी कभी कभी उसकी माँ उसे अपना दूध पिला दिया करती थी। दूध तो इस उम्र में क्या निकलेगा लेकिन ये दोनों के रिश्तों की नजदीकियों का एक मूर्त रूप था। वैसे तो ये माँ-बेटे के बीच का एक वात्सल्य-पूर्ण क्रिया-कलाप था, लेकिन आज कुछ बदलने वाला था। विराज आज अपनी फसल बेच कर आया था। आ कर उसने सारे पैसे माँ को दिए फिर नहा धो कर खाना खाया, और फिर माँ-बेटा सोने चले गए। दोनों एक ही बिस्तर पर साथ ही सोते थे।

विराज- माँ, तुझे पता है आज वो सेठ गल्ला कम भाव पे लेने का बोल रहा था।
माँ- फिर?
विराज- फिर क्या! मैंने तो बोल दिया कि सेठ! हमरे बैल इत्ते नाजुक भी नैयें के दूसरी मंडी तक ना जा पाएंगे। फिर आ गओ लाइन पे। जित्ते कई थी उत्तेई दिए।
माँ- अरे मेरा बेटा तो सयाना हो गया रे।

इतना कह कर माँ ने विराज को चूम लिया और गले से लगा लिया। फिर दोनों पहले जैसे लेटे थे वैसे ही लेट कर सोने की कोशिश करने लगे। कुछ देर के सन्नाटे के बाद धीरे से माँ की आवाज़ आई- दुद्दू पियेगा?
विराज- हओ!
माँ ने अपने ब्लाउज के नीचे के कुछ बटन खोले और अपन एक स्तन निकाल कर विराज की तरफ़ आगे कर दिया। विराज हमेशा की तरह एक हाथ से उसको सहारा दे कर चूचुक अपने मुँह में ले कर ऐसे चूसने लगा जैसे वो उसकी आज की मेहनत का इनाम हो।
 
लेकिन अब बचपन साथ छोड़ रहा था और समय के साथ माँ ने भी ऐसे आग्रह करना पहले कम और फिर धीरे धीरे बंद कर दिए। विराज भी अपनी किसानी के काम में व्यस्त रहने लगा और उसके अन्दर से भी ये बच्चों वाली चाहतें ख़त्म होने लगीं थीं और अब उसकी अपनी उम्र के लोगों के साथ ज्यादा जमने लगी थी खास तौर पर जय के साथ। समय यूँ ही बीत गया और दोनों शादी लायक हो गए।

एक दिन जय विराज को अपने साथ एक ऐसी जगह ले गया जहाँ से वे छुप छुप कर गाँव की लड़कियों को नहाते हुए देख सकते थे। उन लड़कियों के नग्न स्तनों को देख कर अचानक विराज को अपना बचपन याद आ गया जब वो अपनी माँ का दूध पिया करता था। चूंकि उसने 10-12 साल की उम्र तक भी स्तनपान किया था, उसकी यादें अभी ताज़ा थीं।

उसी रात विराज ने अपनी माँ को फिर दूध पिलाने को कहा। वैसे तो माँ को यह बड़ी अजीब बात लगी लेकिन उसके लिए तो विराज अब भी बच्चा ही था तो उसने हाँ कह दिया। माँ ने पहले की तरह अपने ब्लाउज के नीचे के कुछ बटन खोले और अपना एक स्तन निकाल कर विराज की तरफ़ आगे कर दिया। लेकिन आज उसे चूसने से ज़्यादा मज़ा छूने में आ रहा था। उसकी उँगलियाँ अपने आप उस स्तन को सहलाने लगीं जैसे की सितार बजाया जा रहा हो। लेकिन सितार एक हाथ से कैसे बजता। विराज का दूसरा हाथ अपने आप ब्लाउज के अंदर सरक गया और उसने अपनी माँ का दूसरा स्तन पूरी तरह अपनी हथेली में भर लिया।

एक स्तन आधा और एक पूरा उसके हाथ में था और वो दोनों को सहला रहा था। आज उसे कुछ अलग ही अनुभूति हो रही थी। धीरे धीरे सहलाना, मसलने में बदल गया। और तभी विराज ने महसूस किया कि उसका लंड कड़क हो गया है। यूँ तो उसने पहले भी कई बार सुबह सुबह नींद में ऐसा महसूस किया था लेकिन अभी ये जो हो रहा था उसका कोई तो सम्बन्ध था उसकी माँ के स्तनों के साथ। उसकी बाल बुद्धि में यह बात स्पष्ट नहीं हो पा रही थी कि ऐसा क्यों हो रहा है। इसी बेचैनी में वो चूसना छोड़ कर ज़ोर ज़ोर से स्तनों को मसलने लगा।

माँ- ऊँ…हूँ… बहुत पी लिया दूध… अब सो जा।

विराज समझ गया कि माँ उसकी इस हरकत से खुश नहीं है। वैसे तो उसकी माँ वात्सल्य की मूर्ति थी लेकिन अगर गुस्सा हो जाए तो इकलौता बेटा होने का लिहाज़ नहीं करती थी। विराज को पता था कि अब ये सब कोशिश करना खतरे से खाली नहीं है और उसने निश्चय किया कि अब वो ये सब माँ के साथ नहीं करेगा।

अगले दिन विराज अपने इस नए अनुभव के बारे में जय को बताने के लिए बेचैन था। जैसे ही मौका मिला, जय को कहा- चल अमराई में चल कर बैठते हैं।
दोनों अपनी हमेशा वाली आरामदायक जगह पर जा कर बैठे और विराज ने जय को सारा किस्सा बताया की कैसे माँ के स्तन दबाने से उसका लंड कड़क हो गया था।

जय को विश्वास नहीं हुआ- क्या बात कर रहा है? ऐसा भी कोई होता है क्या! मैं नहीं मानता।
विराज- अरे मैं सच कह रहा हूँ। कैसे समझाऊं? अब तेरे सामने तो नहीं कर सकता न…
जय- आंख बंद करके सोच उस टाइम कैसा लग रहा था।
विराज- एक काम कर मैं तेरे पुन्दे मसलता हूँ, आँखें बंद करके और सोचूंगा कि माँ के दुद्दू दबा रहा हूँ।
जय- तू मेरे मज़े लेने के लिए बहाना तो नहीं मार रहा है ना? तू भी अपनी चड्डी उतार! मैं भी देखूंगा तेरा नुन्नू कैसे खड़ा होता है।

दोनों ने अपनी चड्डी उतार दी। जय, विराज के बगल में थोड़ा आगे होकर खड़ा हो गया और पीछे मुड़ कर विराज के मुरझाये लण्ड को देखने लगा। विराज ने आँखें बंद कीं और जय के नितम्बों को सहलाते हुए कल रात वाली यादों में खो गया। थोड़ी ही देर में उसका लण्ड थोड़े थोड़े झटके लेने लगा।

जय- अरे ये तो उछल रहा है। कर-कर और अच्छे से याद कर!!

जय की बात ने विराज की कल्पना में विघ्न डाल दिया था, लेकिन कल्पना कब किसी के वश में रही है। विराज की कल्पना के घोड़े जो थोड़े सच्चाई की धरती पर आये तो एक नया मोड़ ले लिया और उसे लगा कि जैसे वो अपनी माँ के नितम्ब सहला रहा है। इतना मन में आते ही टन्न से उसका लण्ड खड़ा हो गया।
जय- अरे! ये तो सच में खड़ा हो गया!!
विराज ने भी आँखें खोल लीं।
विराज- तू तो मान ही नहीं रहा था!
जय- छू के देखूं?
विराज- देख ले! अब मैंने भी तो तेरे पुन्दे छुए हैं तो तुझे क्या मना करूँ।

जय ने अपनी दो उंगलियों और अंगूठे के बीच उस छोटे से लण्ड को पकड़ कर देखा, थोड़ा दबाया थोड़ा सहलाया।

विराज- और कर यार! मज़ा आ रहा है।
जय- ऐसे?
विराज- हाँ… नहीं-नहीं ऐसे नहीं… हाँ… बस ऐसे ही करता रह… बड़ा मज़ा आ रहा है याऽऽऽर!

इस तरह धीरे धीरे दोनों यार जल्दी ही अपने आप सीख गए कि लण्ड को कैसे मुठियाते हैं। ये पहली बार था तो विराज को ज़्यादा समय नहीं लगा। वो जय के हाथ में ही झड़ गया।

विराज- ओह्ह… आह…!
जय- अबे, ये क्या है? पेशाब तो नहीं है… सफ़ेद, चिपचिपा सा?
विराज- पता नहीं यार लेकिन जब निकला तो एक करंट जैसा लगा था। मज़ा आ गया लेकिन मस्त वाला।
जय- सफ़ेद करंट! हे हे हे… चल तुझे इतना मज़ा आया तो मुझे भी कर ना।
विराज- लेकिन तेरा तो खड़ा नहीं है?

भले ही दोनों जवान हो चुके थे, 18 पार कर चुके थे लेकिन मासूमियत अभी साथ छोड़ कर गई नहीं थी। वक़्त धीरे धीरे सब सिखा देता है। धीरे धीरे दोनों दोस्त अपने इस नए खेल में लग गए थे। उन्होंने लण्ड को खड़ा करना, मुठियाना और तो और चूसना भी सीख लिया। लेकिन दोनों में से कोई भी समलैंगिक नहीं था। उनकी कल्पना की उड़ान हमेशा विराज की माँ के चारों और ही घूमती रहती थी।

इसी बीच एक रात विराज ने अपनी माँ को बिस्तर से उठ कर जाते हुए देखा। थोड़ी देर बाद जब उसने छिप कर दूसरे कमरे में देखा तो उसकी माँ जय के पापा से चुदवा रही थी। इस बात से तो विराज-जय की दोस्ती और गहरी हो गई। दोनों अपने माँ बाप की चुदाई की बातें कर-कर के एक दूसरे का लण्ड मुठियाते तो कभी पूरे नंगे हो कर एक साथ एक दूसरे का लण्ड चूसते और साथ-साथ एक दूसरे के बदन को सहलाते भी जाते।

कभी कभी तो जब मौका मिलता तो दोनों छिप कर अपने माँ-बाप की चुदाई देखते हुए एक दूसरे की मुठ मार लेते। लेकिन दोनों की इस लंगोटिया यारी में एक बड़ा मोड़ तब आया जब विराज के लिए शादी का रिश्ता आया।
 
दोस्तो, आपने पिछले भाग में पढ़ा कि कैसे विराज ने जवानी की दहलीज़ पर उसने अपने दोस्त के साथ परस्पर हस्तमैथुन करना सीखा। दोनों की दोस्ती घनिष्ठता की हर सीमा लाँघ चुकी थी।
अब आगे…

पास के ही गाँव में एक बहुत बड़े ज़मींदार थे। लोग तो उनको उस पूरे इलाके का राजा ही मानते थे। उनका एक लड़का सुनील और एक लड़की शालू थी। ज़मीन कुछ ज़्यादा ही थी तो इस डर से कि कहीं सरकार कब्ज़ा ना कर ले, काफी ज़मीन बेटी शालू के नाम पर भी कर दी थी। हुआ ये कि इतने ऐश-ओ-आराम में बच्चे थोड़े बिगड़ गए। चौधरी जी ने भी सोचा इतना पैसा है; ज़मीन-जायदाद है; बच्चे थोड़े बिगड़ भी जाएं तो क्या फर्क पड़ता है।

लेकिन चिंता की बात तो तब सामने आई जब गाँव में काना-फूसी होने लगी कि शालू का अपने ही बड़े भाई सुनील के साथ कोई चक्कर है। यूँ तो चौधरी साहब खुद भी बड़े ऐय्याश किस्म के थे; तो उनको कोई फर्क नहीं पड़ता अगर उनके बेटे ने कोई रखैल पाल ली होती या गाँव में किसी और की बीवी से टांका भिड़ा लिया होता; लेकिन यह मामला तो अलग ही तरह का था। चौधरी जी ने सोचा की अपवाहों के आधार पर अपने बेटे-बेटी से इन सब के बारे में बात करना सही नहीं होगा लेकिन लोगों का मुँह भी बंद नहीं कर सकते। वैसे भी किसी की इतनी हिम्मत तो थी नहीं कि कोई उनके सामने मुँह खोल सके।

आखिर चौधरी जी ने सोचा कि बेटी की शादी करके विदा कर दें, तो न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी।


लेकिन इतनी बदनामी के बाद किसी बड़े ज़मींदार के पास रिश्ता भेजा और उसने मना कर दिया तो यह बड़ी बेइज़्ज़ती की बात होगी इसलिए चौधरी ने यह रिश्ता विराज के लिए भेज दिया। उन्होंने बचपन से उसे अनाज मंडी में या खाद-बीज और कीटनाशक लेते हुए देखा था। उनको हमेशा लगता था कि वो बहुत मेहनती लड़का है। उनको विश्वास था कि जो जमीन उनकी बेटी के नाम है उसका सही उपयोग करके विराज ज़रूर उनकी बेटी को सुखी रख पाएगा।

विराज और उसकी माँ ने भी कुछ उड़ती उड़ती बातें सुनी थीं शालू के बारे में लेकिन विराज की माँ कौन सी दूध की धुली थी। उस पर जो ज़मीन शालू अपने साथ लेकर आने वाली थी वो पहले ही उनकी ज़मीन से दोगुनी थी। यह बहू सिर्फ कहने के लिए नहीं बल्कि सच में लक्ष्मी का रूप थी। अब घर आती लक्ष्मी को कौन मना करता है तो विराज की माँ ने तुरंत हाँ कर दी।

चौधरी साहब भी जल्दी में थे तो चट मंगनी पट ब्याह हो भी गया।

बारात वापस आई और सारे पूजा पाठ ख़तम हुए तब दुल्हन रिश्तेदार महिलाओं के साथ एक कमरे में बैठी थी। सुहागरात में अभी समय था तो विराज और जय पीछे बाड़े में अकेले बैठे गप्पें लड़ा रहे थे।

जय- भाई, अब तेरी तो शादी हो गई। मुझे तो अब अपने ही हाथ से मुठ मारनी पड़ेगी।
विराज- अरे नहीं! ऐसा कैसे होगा? पहली बार मुठ मारी थी तब से आज तक हमने हमेशा एक दूसरे की मुठ मारी है लंड चूसा है। ऐसे थोड़े ही कोई शादी होने से दोस्ती में दरार पड़ेगी।
जय- वो तो सही है, लेकिन अब तुझे चूत मिल गई है तो तू मुठ क्यों मारेगा?

विराज- हम्म! यार जब एक दूसरे के हाथ से मुठ मार सकते हैं। एक दूसरे का लंड चूस सकते हैं तो एक दूसरे की बीवी की चूत क्यों नहीं मार सकते?
जय- अरे! ऐसा थोड़े ही होता है।
विराज- अरे तू चल आज मेरे साथ … दोनों भाई साथ में सुहागरात मनाएँगे। वैसे भी छिनाल पता नहीं क्या क्या गुल खिला के बैठी है; बड़े चर्चे थे इसके गाँव में।

जय- अरे यार तू इतना गर्म मत हो। क्या पता किसी ने जलन के मारे यूँ ही खबर उड़ा दी हो। तू अकेले ही जा और प्यार से चोदना भाभी को; अगर पहले कोई गुल खिलाए होंगे तो पता चल ही जाएगा; और नहीं तो जिस दिन मेरी शादी हो जाएगी और अपन दोनों की जोरू राज़ी होंगी तो ही मिल के चोदेंगे। बीवी है यार … अपना हाथ नहीं है कि जो उसकी खुद की कोई मर्ज़ी ना हो।
विराज- हाँ यार, बात तो ये भी तूने सही कही। लेकिन तू अपने हाथ से मुठ नहीं मारेगा। जब तक तेरी शादी नहीं हो जाती तब तक मैं अपनी बीवी और तुझे दोनों को मज़े देने लायक दम तो रखता हूँ।

ऐसे ही बातें करते करते रात हो गई और कुछ औरतें विराज को बुलाने आ गईं। उनमें से एक कहने लगी- काय भैया? मीता संगेई सुहागरात मन ले हो, के जोरू की मूँ दिखाई बी करे हो?
इतना कह के हँसी मजाक करते हुए औरतें विराज को सुहागरात वाले कमरे में धकेल आईं।

अन्दर मंद रोशनी वाला बल्ब जल रहा था। विराज ने दूसरा बल्ब भी जला दिया जिससे कमरा रोशनी से जगमगा गया। विराज के अन्दर प्रेम की भावना कम थी और गुस्सा ज्यादा था क्योंकि उसने काफी लोगों के ताने सुने थे कि विराज ने ज़मीन के लालच में बदचलन लड़की से शादी कर ली। वो देखना चाहता था कि शालू कितनी दुष्चरित्र है? उस ज़माने में गाँव की शादियों में दुल्हनें लम्बे घूंघट में रहतीं थीं तो अभी तक विराज ने शालू को देखा नहीं था।
 
शालू अपने दोनों पैर सिकोड़े सजे धजे पलंग के बीचों बीच घूंघट में छिपी बैठी थी। विराज सीधे गया और जा कर उसका घूंघट ऐसे उठा दिया जैसे किसी सामान के ऊपर ढका कपड़ा हटाया जाता है। लेकिन जैसे ही उसकी नज़र शालू पर पड़ी, उसका आधा गुस्सा तो वहीं गायब हो गया। इतनी सुन्दर लड़की की तो उसने कल्पना भी नहीं की थी।
लेकिन शालू में लाज शर्म जैसी कोई बात नज़र नहीं आई; वो विराज की तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी। उसकी ये मुस्कराहट उसके सुन्दर रूप पर और चार चाँद लगा रही थी।

विराज से रहा नहीं गया और उसने उन मुस्कुराते हुए होंठों को चूम लिया। शालू ने भी को शर्म किये बिना उसका पूरा साथ दिया।
लेकिन अचानक विराज को विचार आया कि ये इतनी बेशर्मी से चुम्बन कर रही है; ज़रूर लोगों की बात सही होगी। इस विचार ने एक बार फिर उसके अन्दर बैचेनी पैदा कर दी। अब वो जल्दी से जल्दी पता करना चाहता था कि सच्चाई क्या है।

उसने ताबड़-तोड़ अपने और शालू के कपड़े निकाल फेंके, शालू ने भी उसका पूरा साथ दिया। जैसे ही वो पूरी नंगी हुई तो एक बार फिर उस संग-ए-मरमर की तरह तराशे हुए बदन को देख कर विराज मंत्रमुग्ध हो गया।

जिस ज़माने की से बात है तब लड़कियां बहुत शर्मीली हुआ करती थीं और जो नहीं भी होतीं थीं वो भी कम से कम ऐसा अभिनय ही कर लेतीं थीं क्योंकि ऐसा कहते थे कि लाज-शरम औरत का गहना होती है।
पर यहाँ तो शालू ज़रा भी नहीं शरमा रही थी। कपड़े निकालने में ना-नुकर करना तो दूर वो तो खुद मदद कर रही थी। विराज काफी भ्रमित था कि वो इसका क्या मतलब निकाले लेकिन जब सामने ईश्वर की इतनी खूबसूरत रचना अपने प्राकृतिक रूप में मुस्कुराते हुए आपके सामने हो तो दिमाग कम ही काम करता है।

विराज से एक बार फिर रहा नहीं गया और वो शालू के होंठ चूमने के लिए झुका। इस बार निशाना वो होंठ थे जो बोला नहीं करते।
दरअसल विराज को चूत की चुम्मी लेने की जल्दी इसलिए भी थी कि वो यह जानना चाहता था कि शालू कुंवारी है या नहीं। इसीलिए उसने कमरे में ज्यादा रोशनी की थी।

जैसे ही वो शालू की जाँघों के बीच पहुंचा, उसे एक गंध ने मदहोश कर दिया। ये कुछ ऐसी गंध थी जो अक्सर नदी या झील के आसपास के पौधों में आती है, एक ताजेपन का अहसास था उसमें।

एक और वजह जिसने विराज को अपनी ओर खींचा था वो ये थी कि शालू की चूत पर एक भी बाल नहीं था। छूने से साफ़ पता लगता था कि ये बाल शेव करके नहीं निकाले गए हैं, क्योंकि शेव करने के बाद त्वचा इतनी मुलायम और चिकनी नहीं रह जाती।

उत्तेजना में विराज ने अपनी दुल्हन की पूरी चूत को चाट डाला। शालू भी सिसकारियां लेने लगी और विराज के सर को अपनी चूत पर दबाने लगी। विराज ने अपनी एक उंगली गीली करके उसकी चूत में डाल दी और उसे अंदर बहार करते हुए उसकी चूत का दाना चूसने लगा।

अब तक विराज को शालू की चूत पर खरोंच का एक निशान तक नहीं मिला था और लंड तो दूर की बात है उसकी चूत उसे अपनी एक उंगली पर भी कसी हुई महसूस हो रही थी। अब उसे पूरा भरोसा हो गया था कि वो सब बातें झूठ थीं।
हाँ … वो दूसरी लड़कियों के मुकाबले थोड़ी ज़्यादा ही बिंदास थी लेकिन इतना तो पक्का था कि उसने अब तक किसी से चुदवाया तो नहीं था। लेकिन उसकी हरकतों से तो वो काफी अनुभवी लग रही थी।
खैर ये तो वक्त ही बताएगा कि असलियत क्या थी।

बहरहाल विराज का सारा गुस्सा हवा हो चुका था बल्कि उसे ख़ुशी हो रही थी कि उसे इतनी सुन्दर और बिंदास बीवी मिली थी। वो ऊपर की ओर सरका और अपना एक से हाथ शालू के सर को पीछे से अपनी ओर दबाते हुए उसके रसीले होंठों को चूसने लगा।
शालू भी एक कदम आगे निकली और उसने अपनी जीभ से विराज के होंठों के भीतरी हिस्से को गुदगुदाना शुरू कर दिया। विराज का दूसरा हाथ शालू के बाएँ स्तन को हल्के हल्के मसलते हुए उसके चूचुक के साथ छेड़खानी कर रहा था।

काफी देर तक अलग अलग तरह से चुम्बन और नग्न शरीरों के आलिंगन के बाद जब विराज से अपने लिंग की अकड़न और शालू से अपनी योनि का गीलापन बर्दाश्त नहीं हुआ हुआ तो विराज ने अपना लंड शालू की चूत में डालने की कोशिश की। लेकिन उसकी चूत का छेद इतना कसा हुआ था कि काफी कोशिश करने पर भी केवल लंड का सर अन्दर जा सका। अब ना केवल शालू बल्कि विराज को भी दर्द होने लगा था।
शालू- सुनो जी! आप ज्यादा परेशान मत हो। अभी इतना चला गया है तो इतने को ही अन्दर बाहर कर लो। बाकी ऐसे ही कोशिश करते रहोगे तो कुछ दिन में पूरा चला जाएगा।
विराज- मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मुझे तुम्हारे जैसी बिंदास बीवी मिलेगी।

इतना कहकर विराज ने कुछ देर छोटे छोटे धक्के मार कर चुदाई की लेकिन वो पहले ही थक चुका था और इसलिए वो इस चुदाई का उतना आनन्द नहीं ले पा रहा था जितना उम्मीद थी।

शालू को ये बात जल्दी ही समझ आ गई, वो बोली- एक काम करो …ये अंदर बाहर रहने दो… लाओ मैं आपका लंड चूस के झड़ा देती हूँ।
विराज- ठीक है, तुम लंड चूस लो, मैं तुम्हारी चूत चाट देता हूँ।

विराज वैसे ही करवट ले कर लेट गया जैसे वो जय का लंड चूसते समय लेटता था। शालू ने भी करवट ली और अपना नीचे वाला पैर सीधा रखा लेकिन ऊपर वाला सिकोड़ कर घुटना ऊपर खड़ा कर लिया जिससे उसकी चूत खुल गई। फिर लंड और चूत की चुसाई-चटाई जोर शोर से शुरू हो गई।

शालू एक अनुभवी की तरह विराज का लंड चूस रही थी। यहाँ तक कि वो उसके लंड का लगभग दो-तिहाई अपने गले तक अन्दर ले रही थी। इतनी अच्छी लंड चुसाई तो जय भी नहीं कर पाता था जबकि वो काफी समय से विराज का लंड चूस रहा था। आखिर जब विराज झड़ने वाला था तो जैसे वो जय के मुंह से निकाल लिया करता था वैसे ही शालू के मुंह से भी निकालने की कोशिश की लेकिन शालू ने निकालने नहीं दिया।

विराज- मैं झड़ने वाला हूँऽऽऽ…

विराज की बात पूरी तो हुई लेकिन शालू ने अपना दूसरा पैर उसके सर के ऊपर से घुमाते हुए विराज के सर को अपनी जाँघों के बीच दबा लिया और जोर जोर से अपनी कमर हिलाने लगी। अब तो विराज को अपनी जीभ हिलाना भी नहीं पड़ रहा था, शालू की चूत खुद ही उसके मुंह पर रगड़ रही थी। शालू विराज के साथ ही झड़ना चाहती थी और वही हुआ। दोनों साथ में झड़ने लगे लेकिन शालू ने विराज का लंड अपने मुंह से निकलने नहीं दिया। थोड़ी देर तक यूँ ही हाँफते हुए दोनों पड़े रहे।

जब विराज का लंड ढीला पड़ा तो शालू ने उसे किसी स्ट्रॉ की तरह चूसते हुए पूरा निचोड़ लिया। विराज जब उठा तो शालू ने उसे अपना मुँह खोल कर दिखाया और फिर सारा वीर्य एक घूँट में पी गई और एक बार फिर अपनी खूबसूरत मुस्कराहट बिखेर दी।

विराज- एक बात पूछूँ?
शालू- पूछो!
विराज- शादी के पहले तुम्हारे बारे में बहुत खुसुर-फुसुर सुनने को मिली थी। अभी तो साफ़ समझ आ रहा है कि तुम्हारी चूत बिलकुल कुँवारी है लेकिन फिर बाक़ी सब काम तुम ऐसे कर रही हो जैसे बड़ा अनुभव हो। ये चक्कर क्या है?

शालू- देखिये मैं आपसे झूठ नहीं बोलना चाहती लेकिन आप वादा करो कि आप गुस्सा नहीं करोगे?
 
विराज- अब यार गुस्सा तो मैं पहले ही था सब लोगों के ताने सुन सुन के लेकिन तुम्हारी खूबसूरती देख के आधा गुस्सा ख़त्म हो गया और बाकी यह देख कर कि तुम कुँवारी ही हो। बाकी जो भी किया हो तुमने वो खुल के बता दो मैं गुस्सा नहीं करूँगा।

शालू- देखिये, हमारे बाबा बहुत शौकीन किस्म के हैं। जब हम जवान होना शुरू हुए तभी से हमको समझ आने लगा था कि उनके कई औरतों के साथ सम्बन्ध थे। कई बार हम खुद उन्हें घर में काम करने वाली औरतों के साथ छेड़खानी करते हुए देख चुके थे।
विराज- हाँ ये तो सही है। उनके भी कई किस्से सुने हैं मैंने, लेकिन फर्क ये है कि समाज में जब लोग उनके किस्से सुनाते हैं तो ऐसे सुनाते हैं जैसे उन्होंने कोई बड़ा तीर मारा हो।

शालू- हाँ, वो मर्द हैं ना, ऐसा तो होगा ही। फिर एक दिन हमको उनके कमरे में एक छिपी हुई अलमारी मिली उसमें वैसी वाली किताबों का खज़ाना था। हमने छिप छिप कर पढ़ना शुरू किया और हमको बड़ी गुदगुदी होती थी ये सब सोच कर। हमारा भी मन करता था कि हम ये सब करके देखें। फिर हमें लगा कि जैसे बाबा घर में काम करने वाली औरतों के साथ चोरी छिपे मज़े करते है ऐसे ही क्यों ना हम भी किसी काम वाले को अपना रौब दिखा के वो सब करने को कहें जो उन किताबों में लिखा था और जिसके फोटो भी छपे थे।

विराज- फिर?
शालू- फिर हमने वही किया। एक हमारी ही उम्र का कामदार था, हट्टा-कट्टा गठीले बदन वाला। हमने उसको अकेले में बुलाया और डरा धमका के उसको नंगा होने के लिए कहा। उस दिन पहली बार हमने लंड छू कर देखा था। फिर अक्सर हम मौका देख कर उसको घर के किसी कोने में बुलाते और उसका लंड चूसते थे। हमको जैसे फोटो में दिखाया था वैसे उसका पूरा लंड अपने मुंह में लेना था।

विराज- ओह्ह तभी इतना मस्त लंड चूस लेती हो… लेकिन अपवाह तो कुछ और सुनी थी। तुम्हारा भाई…
शालू- वही बता रही हूँ। एक दिन घर के सब लोग दूसरे गाँव शादी में गए थे। मेरा जाने का मन नहीं था इसलिए मुझे भैया के साथ घर छोड़ गए थे। दोपहर को भैया जब खले की तरफ गए तो मैंने वो कामदार को बुलाया। उस दिन मैं सब कुछ कर लेना चाहती थी। हम दोनों कपड़े उतार के नंगे हुए ही थे कि भैया वापस आ गए।

वो खले की चाभी घर पर ही भूल गए थे। जैसे ही उन्होंने हमको इस हालत में देखा, उन्होंने उस कामदार को बहुत पीटा और लात मार के बाहर निकाल दिया। फिर बाद में भैया ने समझाया कि ऐसे लोगों के साथ ये सब करने से बदनामी हो सकती है और वो तो बाहर जा कर लोगों को शान से बताएगा कि उसने तुम्हारे साथ क्या किया। नाम तो हमारा ही ख़राब होगा ना। मुझे उनकी बात समझ आ गई इसीलिए मेरी चूत अब तक अनछुई है। बाद में उसी कामदार ने ये सब बातें मेरे बारे में फैलाई थी।

विराज- खैर अब इतना तो मैं भी कर चुका हूँ। मुझे ये सुन कर बुरा ज़रूर लगा कि तुमने एक काम वाले का लंड चूसा लेकिन ठीक है ये सोच कर तसल्ली कर लूँगा कि इसी बहाने तुम इतना अच्छा लंड चूसना सीख गईं। वैसे मैं और मेरा लंगोटिया यार जय भी एक दूसरे का लंड चूसते हैं।
शालू- हाय राम! आप वैसे तो नहीं हो ना जिनको लड़के पसंद होते हैं?
विराज- हा हा हा… अरे नहीं! वो तो बचपन में हमने एक दूसरे की मुठ मारना साथ ही सीखा था। अभी शाम को उसके साथ यही बात हो रही थी। मैंने कहा साथ मुठ मारते थे तो चल साथ चूत भी चोदेंगे तो वो बोला अगर दोनों की बीवियों को मंज़ूर होगा तो ही करेंगे नहीं तो नहीं। बोलो क्या बोलती हो?

शालू- मैंने तो अपने आप को आपके नाम कर दिया है। आप बोलोगे कि कुएँ में कूद जाओ तो मैं कूद जाउंगी। लेकिन उनकी पत्नी ने हाँ कर दी है क्या?
विराज- नहीं बाबा! उसकी तो अभी शादी भी नहीं हुई।
शालू- देखिये, मैं तो आपको किसी भी बात के लिए मना नहीं करुँगी; लेकिन आप मुझे ऐसे किसी से भी चुदवाओगे क्या?
विराज- नहीं यार, वो तो मैंने गुस्से में कह दिया था। वैसे भी जय के साथ मेरा सब सांझा है इसलिए बोल दिया था। नहीं तो कोई और तुमको आँख उठा के देख भी लेगा तो आँख फोड़ दूंगा साले की।
शालू- अरे, मेरे भाई की आँख क्यों फोड़ोगे। अब वही तो तुम्हारा साला है ना!

शालू के इस मजाक पर दोनों खिलखिला कर हंस पड़े। यूँ ही बातों बातों में आधी रात गुज़र गई और आखिर दोनों चैन की नींद सो गए।
 
दोस्तो, आपने पिछले भाग में पढ़ा कि कैसे विराज ने अपनी सुहागरात पर यह जाना कि उसे कुँवारी लेकिन बहुत ही वासना से भरी चुदक्कड़ और शायद थोड़ी अनुभवी पत्नी मिली है। वो उसे अपने दोस्त के साथ मिल कर चोदना चाहता था लेकिन क्या ऐसा हो पाएगा? ये तो आगे चल कर ही पता चलेगा। अब आगे…

अगले दिन जब विराज ने सारी बात जय को बताई तो जय को बड़ी ख़ुशी हुई। उसने विराज को मुबारकबाद दी और मिलवाने के लिए कहा।

विराज- मिल लेना यार, ये सब मेहमान चले जाएं तो आराम से मिलवा दूंगा और तू कहे तो और भी बहुत कुछ कर सकते हैं साथ मिल कर।
जय- नहीं यार, ऐसे एक तरफ़ा काम नहीं करते। मेरी भी शादी हो जाने दे, फिर अगर दोनों की तरफ से हाँ हुई तो करेंगे साथ में।
विराज- तो फिर जल्दी से शादी कर ले यार … सब मिल के मस्ती करेंगे फिर।

कुछ ही दिन में जय को भी लगने लगा कि वो अब विराज के साथ उतना समय नहीं गुज़ार पा रहा था और जो मस्ती वो पहले किया करते थे वो काफी कम हो गई थी। विराज को भी अपनी पत्नी को समय देना ज़रूरी था और फिर एक विषम-लैंगिक पुरुष को तो स्त्री के साथ ही सम्भोग करने का मन करेगा। जय के साथ तो ये सब इसलिए शुरू हुआ था कि कोई और चारा नहीं था और अब केवल दोस्ती निभाने के लिए चल रहा था।

जय ने भी अपने पिता को शादी के लिए इशारा किया कि हमारे घर में भी बहू होती तो काम आसान हो जाता। उनको भी बात सही लगी तो उन्होंने अपनी बिरादरी की एक पढ़ी-लिखी सुन्दर लड़की ढूँढ निकाली और शादी पक्की कर दी। लड़की का नाम शीतल था। पास के छोटे शहर में शीतल के पिता की रेडियो और घड़ी की दूकान थी। शीतल की माँ बचपन में ही गुज़र गईं थीं और बाप-बेटी अकेले वहीं शहर में रहते थे।

बहरहाल शादी हो गई और सुहागरात की बारी आई। जय के घर में कोई महिला नहीं थी इसलिए शादी के बाद रिश्तेदारों में भी कोई महिला रुकी नहीं। आखिर विराज और शालू ने ही मिल कर सुहागरात के लिए कमरा सजाया और शालू ने शीतल को उसके बिस्तर पर बैठा कर एक सहेली की तरह समझा कर बाहर आ गई।

शालू- अरे, अब आपस में चिपकना बंद करो। अब तो देवर जी को तो सुन्दर सी दुल्हन मिल गई है। जाओ देवर जी अपनी गिफ्ट खोल के देखो कैसी मिली है?
जय- आपने तो देख ली है ना आप ही बता दो कैसी है?
शालू- बाहर से तो बहुत अच्छी है। अब अन्दर से तो आप ही खोल के देखोगे ना!
शालू ने चुटकी लेते हुए कहा और खिलखिला के हँसते हुए अपने घर की तरफ चली गई।

विराज- चल भाई जा, मुझे तो पता है कि तू आज पूरी चुदाई नहीं करेगा। तेरी सलाह पे तो मैंने 15 दिन लगा दिए पूरा लंड घुसाने में, तू पता नहीं कितने दिन लगाएगा। मौका मिले तो पूछ लेना। भाभी भी शालू जैसी बिंदास हुई तो मज़े करेंगे साथ में।
जय- देखते हैं क्या लिखा है किस्मत में। शालू भाभी सही कह रहीं थीं। गिफ्ट खोल के देखेंगे तभी पता लगेगा।

इतना कह कर जय ने विराज से विदा ली और अपनी सुहागरात के सपने सजाए अपने कमरे की ओर चला गया। सुहागरात मनी और ठीक ही मनी लेकिन उसमें ऐसा कुछ हुआ नहीं जिसको जय उतने ही जोश से सुना पाता जितने जोश से विराज ने उसे अपनी सुहागरात की कहानी सुनाई थी।

शीतल के ऊपर कम उम्र में ही ज़िम्मेदारियों का बोझ आ गया था और शहर में जीवन कुछ ऐसा होता है होता है कि बाहर के लोगों से मेलजोल कम ही हो पाता है उस पर शीतल के पिता को डर था कि कहीं बिन माँ की बेटी गलत रास्ते पर चली गई तो जीवन बरबाद हो जाएगा इसलिए हमेशा उसे ऐसी शिक्षा दी कि कभी स्कूल-कॉलेज की सहेलियों के साथ भी सेक्स के बारे में बात करने की हिम्मत नहीं कर सकी।

एक तरह से उसके मन में सेक्स को लेकर एक डर भर गया था। मानो सेक्स करने से कुछ तो बुरा हो जाएगा। इतना तो उसे पता था कि शादी के बाद पति के साथ ये सब सामान्य जीवन का हिस्सा होता है लेकिन फिर भी सेक्स को लेकर उत्साह तो दूर की बात है, वो तो कामक्रीड़ा को लेकर सहज भी नहीं हो पा रही थी।

जय भी सौम्य पुरुष था और उस पर किसी तरह का जोर डालना नहीं चाहता था।
 
दोस्तो, आपने पिछले भाग में पढ़ा कि कैसे विराज ने अपनी सुहागरात पर यह जाना कि उसे कुँवारी लेकिन बहुत ही वासना से भरी चुदक्कड़ और शायद थोड़ी अनुभवी पत्नी मिली है। वो उसे अपने दोस्त के साथ मिल कर चोदना चाहता था लेकिन क्या ऐसा हो पाएगा? ये तो आगे चल कर ही पता चलेगा। अब आगे…

अगले दिन जब विराज ने सारी बात जय को बताई तो जय को बड़ी ख़ुशी हुई। उसने विराज को मुबारकबाद दी और मिलवाने के लिए कहा।

विराज- मिल लेना यार, ये सब मेहमान चले जाएं तो आराम से मिलवा दूंगा और तू कहे तो और भी बहुत कुछ कर सकते हैं साथ मिल कर।
जय- नहीं यार, ऐसे एक तरफ़ा काम नहीं करते। मेरी भी शादी हो जाने दे, फिर अगर दोनों की तरफ से हाँ हुई तो करेंगे साथ में।
विराज- तो फिर जल्दी से शादी कर ले यार … सब मिल के मस्ती करेंगे फिर।

कुछ ही दिन में जय को भी लगने लगा कि वो अब विराज के साथ उतना समय नहीं गुज़ार पा रहा था और जो मस्ती वो पहले किया करते थे वो काफी कम हो गई थी। विराज को भी अपनी पत्नी को समय देना ज़रूरी था और फिर एक विषम-लैंगिक पुरुष को तो स्त्री के साथ ही सम्भोग करने का मन करेगा। जय के साथ तो ये सब इसलिए शुरू हुआ था कि कोई और चारा नहीं था और अब केवल दोस्ती निभाने के लिए चल रहा था।

जय ने भी अपने पिता को शादी के लिए इशारा किया कि हमारे घर में भी बहू होती तो काम आसान हो जाता। उनको भी बात सही लगी तो उन्होंने अपनी बिरादरी की एक पढ़ी-लिखी सुन्दर लड़की ढूँढ निकाली और शादी पक्की कर दी। लड़की का नाम शीतल था। पास के छोटे शहर में शीतल के पिता की रेडियो और घड़ी की दूकान थी। शीतल की माँ बचपन में ही गुज़र गईं थीं और बाप-बेटी अकेले वहीं शहर में रहते थे।
इसी तरह कुछ महीने बीत गए और अब कहीं जा कर जय ठीक तरह से शीतल को चोद पाता था। शीतल को भी मज़ा आने लगा था लेकिन उसके लिए अभी भी चुदाई एक बहुत ही गंभीर काम था जिसका वो आनंद तो लेती थी लेकिन इतनी स्वच्छंदता के साथ नहीं जिसमें कोई होश खो कर बस उड़ने सा लगता है। उसके हाव-भाव से ही जय कभी ऐसा नहीं लगा कि वो कभी विराज और जय की दोस्ती में उस हद तक शामिल हो पाएगी जिसमे शर्म-लिहाज़ की सीमाएं बेमानी हो जाती हैं।

जीवन ठीक ठाक चल ही रहा था कि पता चला, शीतल के पापा बीमार रहने लगे थे। तय हुआ कि कुछ दिन के लिए जय और शीतल शहर जा कर रहेंगे। शीतल अपने पिता की सेवा करेगी और जय दुकान का काम सम्हाल लेगा। कुछ दिन कुछ महीनों में बदल गए। शीतल के पापा की तबीयत तो ठीक नहीं हुई लेकिन जय को शहर की हवा रास आ गई। पढ़े लिखे व्यक्ति को वैसे भी खेती-बाड़ी में मज़ा कम ही आता है। एक साल के अन्दर शीतल के पिता का देहांत हो गया।

लेकिन तब तक जय ने उस रेडियो घड़ी की दूकान को काफी बढ़ा लिया था। अब वो इलेक्ट्रोनिक्स के और भी सामान बेचने लगा था। उसने अपने पिता को भी शहर आने का निमंत्रण दिया लेकिन उन्होंने यह कह कर मना कर दिया कि उनको गाँव का वातावरण ही पसंद है। सच तो यह था कि उनका चक्कर अभी भी विराज की माँ के साथ बदस्तूर चल रहा था। विराज दोनों परिवारों की खेती सम्हाल ही रहा था और शालू ने भी अच्छे से दोनों घरों को सम्हाल लिया था।

खैर, जीवन में एकरसता आने लगी थी, इसी बीच शालू गर्भवती हो गई। बात ख़ुशी की थी लेकिन कुछ ही दिन में विराज को समझ आ गया कि अब उसका कामजीवन उतना रसीला नहीं रहेगा लेकिन फिर भी शालू इतनी चपल थी कि विराज को किसी ना किसी तरह खुश कर ही देती थी। आखिर जब मामला ज्यादा नाज़ुक हुआ तो शालू ने विराज को उसके पुराने दिनों के बारे में याद दिलाया। शालू अब विराज के साथ बहुत खुल कर बात करने लगी थी।

शालू- अब जब तक मैं कुछ करने लायक नहीं बची हूँ तो अपने पुराने दोस्त को क्यों नहीं बुला लेते; कब तक ऐसे तरसते रहोगे। मुझे आपको ऐसे देख कर अच्छा नहीं लगता।
विराज- बात तो तुम सही कह रही हो लेकिन अब उसको ऐसे बुलाऊंगा तो बड़ा अजीब लगेगा कि मतलब पड़ा तो बुला लिया।
शालू- अरे ऐसे कैसे? वो तो आपका इतना लंगोटिया यार था कि आप उससे मुझे भी चुदवाने को तैयार हो गए थे। अब क्या वो अपने दोस्त के लिए इतना भी नहीं कर सकता।

विराज- चुदवाने को तैयार हुआ था, चुदवाया तो नहीं था ना?
शालू- हाँ तो चुदवा भी देना लेकिन अभी मुझसे नहीं देखा जा रहा कि आप ऐसे मुरझाए हुए फिरते रहो।
विराज- अब यार अपन तो हैं ही चोदू लोग अपने को तो कोई फर्क नहीं पड़ता अगर दोस्ती यारी में एक दूसरे की बीवी चोद लें तो, लेकिन वो भाई भी बीवी की मर्ज़ी बिना कुछ करने को मना करता है और उसकी बीवी सती सावित्री है तो वो तो मानेगी नहीं।

शालू- ठीक है उसकी बीवी नहीं मान रही तो कोई बात नहीं मैं हाँ कह रही हूँ ना… आपको ना कोई एहसान लेने की ज़रूरत है ना को स्वार्थी महसूस करने की। बिंदास मस्ती करो अपने दोस्त के साथ। जब मैं चुदवाने लायक हो जाऊँगी तो मैं भी आप लोगों की मस्ती में शामिल हो जाऊँगी। फिर तो कोई बुरा नहीं लगेगा ना आपको?
 
विराज- हाँ यार, ये तो तूने सही कही। मैं हमेशा उसी के साथ करता था सब अगर तू भी साथ रहेगी तो मज़ा ही आ जाएगा। तू कितना प्यार करती है ना मुझसे।

विराज ने जय को गाँव बुलाया। जय, छुट्टी वाले दिन शीतल को ले कर पहुँच गया। दिन भर तो घर में सबके साथ बातचीत में गुज़र गया लेकिन रात को विराज और जय खेत पर जा कर सोने के बहाने निकल गए। सच तो ये था कि दोनों ने खेत पर प्राइवेट में दारू पार्टी करने का प्लान बनाया था। दारू के बाद एक दूसरे का लंड चूसने का कार्यक्रम तो ज़रूर होना ही था।

रात को शीतल, शालू के साथ ही सोई। शालू बहुत तेज़ दिमाग थी, तो उसने शीतल के मन की टोह लेने के लिए उससे बात करना शुरू किया। वो ना केवल ये पता करना चाहती थी कि शीतल में कामवासना कितनी है, बल्कि उसे सेक्स की ओर आकर्षित भी करना चाहती थी।

शालू- तुमको पता है, ये लोग खेत पर क्यों गए है?
शीतल- सोने के लिए। … नहीं?
शालू- सोएंगे… सोएंगे… लेकिन सोने से पहले और भी बहुत कुछ करेंगे।
शीतल- क्या करेंगे? और आपको कैसे पता ये सब?

शालू- मुझे इसलिए पता है कि मैंने ही विराज को कहा था। और रही बात ये कि क्या करेंगे तो हुआ ये कि जब से मैं पेट से हुई हूँ तब से हमारी मस्ती ज़रा कम हो गई थी। विराज ने बताया था कि ये दोनों दोस्त बचपन में ये सब मस्ती आपस में किया करते थे तो मैंने कहा एक बार पुरानी यादें ही ताज़ा कर लो।
शीतल- क्या बात कर रही हो दीदी ऐसा भी कोई होता है क्या? और आपके इन्होंने आपको बताया लेकिन मेरे यहाँ तो इन्होंने ऐसा कुछ नहीं बताया।

शालू- अब तुम थोड़ी रिज़र्व टाइप की हो ना इसलिए बताने में झिझक रहे होंगे।
शीतल- नहीं आप झूठ बोल रही हो। मेरे ये ऐसे नहीं हैं।
शालू- ये तो सही कही तुमने जय भाईसाहब हैं तो बड़े सीधे सच्चे आदमी लेकिन मैं झूठ नहीं बोल रही।
शीतल- सीधे सच्चे हैं ये भी बोल रही हो और ऐसे गंदे काम करने गए हैं ये भी बोल रही हो, ऐसा कैसे हो सकता है।

शालू- शीतल… शीतल… ! कितनी भोली है री तू। देख, तू जितना खुल के बात करेगी अपने पति से, वो भी उतना खुल के बताएगा ना तुझे सब। मैंने तो पहली रात को ही सब बातें जान ली थीं।

फिर शालू ने शीतल को विराज-जय की सारी कहानी सुना डाली जो विराज ने उसे बताई थी।

शीतल- सच कहूँ तो मेरी कभी इतनी करीब की कोई सहेली रही ही नहीं। माँ के नहीं रहने के बाद कभी इतना समय ही नहीं मिला कि इन सब बातों में बारे में सोच सकूँ। लेकिन अब मैं कोशिश करुँगी कि इन के साथ खुल कर ये सब बातें कर सकूँ।
शालू- मुझे ही अपनी करीब की सहेली मान लो।
शीतल- वो तो मान ही लिया है तभी तो आपसे इतनी सब बातें कर लीं।

शालू- ऐसा है तो हम भी वो करें जो ये लोग वहां खेत पर करने गए हैं।
शीतल- नहीं दीदी, मेरी इतनी हिम्मत नहीं है। आपने किया है कभी।
शालू- नहीं किया लेकिन सोच रही थी कि तुम हाँ कह देतीं तो एक बार ये भी करके देख लेती।

फिर थोड़ी देर के लिए चुप्पी छा गई। थोड़ी देर बाद जब शीतल ना अपना सर घुमा कर शालू की ओर देखा तो पाया कि शालू बड़ी ही कामुक अदा और नशीली आँखों से एक टक उसी को देख रही थी। कुछ पलों तक वो भी उसकी आँखों में आँखें डाले सम्मोहित सी देखती रही अचानक शालू ने अपने होंठ शीतल के होंठों पर रख दिए। शीतल की आँखें अपने आप बंद हो गईं और उसने अपने आप को उस कोमल चुम्बन की लहरों पर हिचकोले खाते हुआ पाया।

शीतल भी अब तक कम से कम चुम्बन की कला में तो पारंगत हो ही चुकी थी। वो वैसे ही शालू का साथ देने लगी जैसे जय का देती थी। लेकिन ये अनुभव कुछ नया ही था। शालू के पतले मुलायम होंठों के स्पर्श से मंत्रमुग्ध शीतल को पता ही नहीं चला कि कब शालू ने उसके ब्लाउज के सारे हुक खोल दिए। शालू ने ब्रा को नीचे सरकाया और शीतल के एक स्तन का चूचुक चूसने लगी। शीतल कभी जय को कहने की हिम्मत नहीं कर पाई थी कि वो किस तरह से अपने स्तन चुसवाना चाहती है लेकिन शालू को तो जैसे पहले से ही पता था।

शीतल आनंद के सागर में गोते लगा रही थी कि उसका ध्यान गया कि शालू भी एक हाथ से अपना ब्लाउज खोलने की कोशिश कर रही थी। शीतल ने भी उसकी मदद की और जल्दी ही दोनों स्त्रियाँ अर्धनग्न अवस्था में एक दूसरी के स्तनों को चूस रही थीं। शालू शीतल के ऊपर झुक कर उसका दाहिना स्तन चूस रही थी और बायाँ अपने एक हाथ से सहला रही थी। उधर उसका दाहिना स्तन शीतल के चेहरे पर झूल रहा था जिसे शीतल किसी आम की तरह पकड़ का ऐसे चूस रही थी जैसे बछड़ा गाय का दूध पीता है।

इसी बीच वासना से सराबोर शालू ने अपना बायाँ हाथ शीतल के साए के अन्दर सरका दिया और उसकी चूत का दाना खोजने लगी। लेकिन जैसे ही उसकी उंगली शीतल की गीली चूत के दाने को छू पाई, शीतल उठ कर बैठ गई।
शीतल- नहीं दीदी! ये सब सही नहीं है… हमको ये सब नहीं करना चाहिए।
इतना कह कर उसने जल्दी जल्दी अपनी ब्रा और ब्लाउज पहना और साड़ी ठीक करके दूसरी ओर करवट ले कर सो गई।
 
नींद तो दोनों को देर रात तक नहीं आई लेकिन फिर कोई बात भी नहीं हुई। अगली सुबह सब ऐसे रहा जैसे रात को कुछ हुआ ही नहीं। जय और शीतल नाश्ता करके वापस शहर चले गए।

आगे भी कई बार विराज ने जय को बुलाया लेकिन फिर शीतल उसके साथ नहीं गई। जय की वजह से विराज को अपने जीवन में काम-वासना की कोई कमी महसूस नहीं हो पाई। यूँ तो शालू भी विराज का लंड चूस कर झड़ा सकती थी और झड़ाती भी थी लेकिन अभी वो लोट-पोट होकर उत्तेजना वाली मस्ती करने की स्थिति में नहीं थी तो ये सब विराज जय के साथ कर लेता था। यूं ही दिन बीत गए और शालू ने एक स्वस्थ लड़के को जन्म दिया जिसका नाम आगे चल कर राजन रखा गया।

राजन के जन्म पर तो शीतल को जय के साथ गाँव जाना ही था और वैसे भी जिस कारण से तो उसके साथ जाने से कतराती थी वो अब था नहीं। शालू अभी इस अवस्था में नहीं थी कि शीतल के साथ कोई शरारत कर सके। वैसे शीतल को शालू पसंद थी। उसी की सलाह का नतीजा था कि पिछले कई दिनों से जय-शीतल के सम्बन्ध बहुत रंगीन हुए जा रहे थे। लेकिन शीतल के संस्कार उसे अपने पति के अलावा किसी और के साथ कामानंद की अनुभूति करने से रोकते थे और इसीलिए वो शालू से ज्यादा नजदीकी रखने में झिझक रही थी।

जो भी हो, शीतल ने आते ही शालू की मदद करना शुरू कर दिया ताकि वो आराम कर सके और अपने बच्चे का ध्यान रख सके। विराज, जय और जय के बाबा खेती-बाड़ी की बातों में लगे रहे। रात को हमेशा की तरह विराज और जय खेत पर दारू पार्टी और मस्ती करने चले गए। आज विराज बहुत खुश था उसके घर में बेटा जो हुआ था, लेकिन नशे का थोडा सुरूर चढ़ने के बाद विराज ने जय को एक और खुशखबरी सुनाई।

विराज- यार! इतने दिन तूने मेरा बहुत साथ दिया। बहुत मज़े करे अपन ने यहाँ मिल के।
जय- दोस्त ही दोस्त के काम आता है यार।
विराज- हम्म… लेकिन तू मेरा खास दोस्त है… तो तेरे लिए एक और खुशखबरी है।
जय- क्या?

विराज- मैं शालू के साथ मज़े नहीं कर पा रहा था तब उसी ने मुझे बोला था तुझे बुलाने को। वो ये भी बोली थी कि अगर तू मेरे साथ मस्ती करेगा तो वो भी टाइम आने पर हमारी मस्ती में साथ देगी।
जय- वो साथ तो दे ही रही है ना… पता होते हुए भी हमको यहाँ आने देती है। मेरी बीवी को भी वासना की ऐसी पट्टी पढ़ाई है कि कुछ महीनों से तो मेरी जिंदगी रंगीन हो गई है।
विराज- अरे नहीं यार… तुझे चढ़ गई है… तू समझ नहीं रहा है।
जय- समझ रहा हूँ यार। पिछली बार शीतल एक रात भाभी के साथ रुकी थी और उन्होंने जाने क्या पट्टी पढ़ाई कि जो औरत पहले ठीक से चुदवाती भी नहीं थी वो अब खुद ही मुझे चोद देती है।
विराज- अरे यार मैं बोल रहा हूँ कि शालू भी अब हम दोनों को एक साथ चोद देगी!
जय- क्या? हम दोनों को? मतलब…

विराज- मतलब ये कि मेरी भाभी तैयार हो ना हो… तेरी भाभी तैयार है अपन दोनों से साथ में चुदवाने के लिए। तो अब अगली बार जब तू आएगा तो अपन साथ मिल उसके साथ मज़े करेंगे।
जय- ऐसा है तो यार, एक खुशखबरी मेरे पास भी है।
विराज- क्या? बता भाई बता… आज तो दिन ही ख़ुशी का है।

जय- देख वो मेरी दूकान पर मैंने जो टीवी कूलर बेचना शुरू किया था ना तो टीवी कंपनी ने टारगेट दिया था। पूरा करने वाले डीलर को यूरोप में दो लोगों के लिए 5 दिन घुमाने का इनाम था। तो मैंने तो टारगेट से ज्यादा टीवी बेच डाले। तो अब जल्दी ही यूरोप जाने का प्रोग्राम है।
विराज- मुबारक हो भाई। लेकिन, इसका मेरी वाली खुशखबरी से क्या वास्ता।

जय- वास्ता ये है कि मैंने अभी तुझे बताया ना कि भाभी की संगती में रह के शीतल ढंग से चुदाई करना सीख गई। इसलिए मुझे उम्मीद है कि वहां विदेशी लोगों का खुलापन देखेगी तो शायद वो भी हमारी मस्ती में शामिल होने को राजी हो जाए। मैंने सुना है वहां किसी किसी बीच पर नंगे घूमना आम बात है।
विराज- ऐसा है क्या? फिर तो घुमा ला। तब तक शालू की चूत भी थोड़ी टाइट हो जाएगी। फिर दोनों भाई मिल के साथ में भाभीचोद बनेंगे।
इस बात पर दोनों बहुत हँसे।

नशे का सुरूर और वासना अब सर चढ़ चुका था। दोनों जल्दी ही नंगे हो गए और एक दूसरे की बीवी को कैसे चोदेंगे ये बातें करते करते मस्ती करने लगे। ऐसे तो दोनों एक दूसरे की पत्नी के बारे इज्ज़त से ही बात करते थे लेकिन आज नशे में उनको शायद लग रहा था कि उनकी कल्पना सच हो ही जाएगी। आगे क्या होने वाला था ये तो समय को ही पता था।

दोस्तो, मेरी वासना भरी कहानी आपको कैसी लग रही है,
 
दोस्तो, आपने इस शौहर बीवी की इस नंगी कहानी के पिछले भाग में पढ़ा कि कैसे जय और विराज ने अपनी बीवियों को अदल-बदल करके चोदने की योजना बनाई थी। इस योजना के तहत जय अपनी देसी बीवी को हनीमून पर ले जाने वाला था ताकि वो थोड़ी खुल के चुदवाने में अभ्यस्त हो जाए।

इस भाग में देखते हैं जय उसे कितना खुल के चुदवाना सिखा पाया…

जय- देख वो मेरी दूकान पर मैंने जो टीवी कूलर बेचना शुरू किया था ना तो टीवी कंपनी ने टारगेट दिया था। पूरा करने वाले डीलर को यूरोप में दो लोगों के लिए 5 दिन घुमाने का इनाम था। तो मैंने तो टारगेट से ज्यादा टीवी बेच डाले। तो अब जल्दी ही यूरोप जाने का प्रोग्राम है।
विराज- मुबारक हो भाई। लेकिन, इसका मेरी वाली खुशखबरी से क्या वास्ता।

जय- वास्ता ये है कि मैंने अभी तुझे बताया ना कि भाभी की संगती में रह के शीतल ढंग से चुदाई करना सीख गई। इसलिए मुझे उम्मीद है कि वहां विदेशी लोगों का खुलापन देखेगी तो शायद वो भी हमारी मस्ती में शामिल होने को राजी हो जाए। मैंने सुना है वहां किसी किसी बीच पर नंगे घूमना आम बात है।
विराज- ऐसा है क्या? फिर तो घुमा ला। तब तक शालू की चूत भी थोड़ी टाइट हो जाएगी। फिर दोनों भाई मिल के साथ में भाभीचोद बनेंगे।
इस बात पर दोनों बहुत हँसे।

नशे का सुरूर और वासना अब सर चढ़ चुका था। दोनों जल्दी ही नंगे हो गए और एक दूसरे की बीवी को कैसे चोदेंगे ये बातें करते करते मस्ती करने लगे। ऐसे तो दोनों एक दूसरे की पत्नी के बारे इज्ज़त से ही बात करते थे लेकिन आज नशे में उनको शायद लग रहा था कि उनकी कल्पना सच हो ही जाएगी। आगे क्या होने वाला था ये तो समय को ही पता था।


अगले दिन जय वापस शहर आ गया। अगले दो महीने तो पासपोर्ट और वीज़ा के जुगाड़ में निकल गए, उसके बाद जय ने ट्रेवल एजेंट के साथ मिल कर काफी विचार विमर्श किया और प्लान में काफी सारे बदलाव करवाए। ट्रेवल एजेंट को कंपनी जो भी पैसे दे रही थी उसके अलावा जय ने भी अपनी तरफ से उसे पैसे दिए ताकि प्लान में कुछ और चीज़ें जोड़ी जा सकें। जो ज़रूरी नहीं लगा उसे हटा कर कुछ पैसे बचा भी लिए। जय अब असली बनिया बनता जा रहा था।

जय ने शीतल को जैसा देस वैसा भेस का हवाला दे कर कुछ मॉडर्न कपड़े खरीदवा दिए थे। शीतल भी शालू की सलाह मान कर कुछ खुल गई थी इसलिए उसने ज्यादा आनाकानी नहीं की।

आखिर वो दिन आ गया जब जय और शीतल को अपने हनीमून पर निकलना था।
एक लम्बी फ्लाइट के बाद सुबह ये लोग पेरिस पहुंचे। शुरुवात हल्के फुल्के घूमने फिरने से ही करने का प्लान था। कुछ उत्तेजना बनाए रखने के लिए जय ने शीतल को स्कर्ट-टॉप के अन्दर कुछ ना पहनने की सलाह दी थी जो कि शीतल ने मान ली थी।

सबसे पहले लूव्र संग्रहालय जाने का कार्यक्रम था। जब कभी शीतल थोड़ी बोर होने लगती तो मौका देख कर जय उसके कसे हुए टॉप के ऊपर से ही उसके उरोजों को छेड़ देता जो कि बिना ब्रा के उस टॉप के ऊपर से भी काफी मुलायम लग रहे थे। यूं तो गर्मी के दिन थे लेकिन पेरिस में थोड़ी ठण्ड तो फिर भी थी ही। जब तक ये लूव्र संग्रहालय में घूम रहे थे तब तक तो महसूस नहीं हुआ था, लेकिन जैस ही वो वहां से बाहर आये, अचानक ठंडी हवा के झोके ने दोनों के रोंगटे खड़े कर दिए।

कुछ देर बाद जय का ध्यान गया कि केवल रोंगटे ही खड़े नहीं हुए थे बल्कि साथ कुछ और भी खड़े हुए थे। नहीं नहीं अभी तक तो जय का लंड सोया हुआ था, लेकिन अब शायद शीतल के खड़े हुए चूचुक देख कर वो भी जागने लगा था। उसके कसे हुए टॉप के अन्दर वो नग्न उरोज जो अपनी गोलाइयों को पूरे प्राकृतिक रूप में उस टॉप के अन्दर से भी प्रदर्शित कर पा रहे थे. अब और भी नग्नता के और भी करीब आ गए थे क्योंकि अब शीतल के दोनों चूचुक साफ़ खड़े हुए दिखाई दे रहे थे। उसे इस रूप में देख कर उसकी नंगी देह की कल्पना करना बहुत मुश्किल काम नहीं रह गया था।

जय ने इस दृश्य को हमेशा के लिए संजो लेने के लिए अपने कोडॅक कैमरा से उसकी एक तस्वीर ले ली। फिर वो एफिल टावर जैसे और भी कई जगहों पर गए। दोनों ने बहुत मज़ा किया। शाम को अपने अगले गंतव्य पर जाने के लिए एअरपोर्ट पर चेक-इन करने के बाद जब दोनों वहीँ एअरपोर्ट के शौपिंग एरिया में घूम रहे थे तब अचानक जय की नज़र में कुछ आया और चलते चलते जय ऊपर वाली मंज़िल पर शीतल को कुछ दिखाने लगा।
 
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