desiaks
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आशा का मन अमर से न मिल पाने के कारण इतना उदास हो गया कि उससे मिलने फिल्म इन्डस्ट्री के माने हुए डायरेक्टर विनोद तिवारी आए । उन्होंने आशा को उनकी नई फिल्म में हीरोईन का रोल करने का आफर दिया मगर चूंकि आशा का मूड इतना बिगड़ा हुआ था । अंत उसने उनसे भी सीधे मुंह बात नहीं की । अंत में हारकर वे आशा के घर का पता लेकर चले गए और यह चेतावनी भी देते गए कि वह आगे बात करने उसके घर पहुंचेगे ।
सारे दिन में एक बार भी सिन्हा ने आशा को डिक्टेशन के लिये नहीं बुलाया ।
शाम को सिन्हा अपने आफिस से बाहर निकला ।
आशा ने उसे देखा और वह उठकर खड़ी हो गई ।
“अरे, बैठो, बैठो, बाबा ।” - सिन्हा जल्दी से बोला ।
आशा सकुचाती हुई बैठ गई ।
सिन्हा उसकी मेज के सामने की कुर्सी पर आकर बैठ गया ।
“जेपी सेठ से तो सब तुम्हारी अक्सर मुलाकात हुआ करेगी ।” - सिन्हा बोला ।
“जी नहीं...”
“अब नहीं तो शादी के बाद तो हुआ ही करेगी ।”
“लेकिन शादी...”
“देखो ।” - सिन्हा उसकी बात काटता हुआ बोला - “मेरी बड़ी पुरानी इच्छा है कि जेपी की कोई फिल्म हमें मिल जाए । उसकी फिल्में सब हिट जाती हैं । उसकी एक फिल्म इतना बिजनेस देती है जो दूसरी कोई नहीं देती । अगर तुम चाहो तो मेरी बरसों पुरानी इच्छा पूरी हो सकती है ।”
“मै चाहूं तो ?” - आशा हैरानी से बोली ।
“हां । तुम अगर कभी मौका लगने पर जेपी सेठ के सामने मेरे इन्टरेस्ट का जिक्र भी कर दोगी तो मेरा काम बन जायेगा ।”
“जेपी सेठ भला मेरी बात क्यों मानेंगे ?”
“क्यों नहीं मानेंगे ? तुम उनकी होने वाली बहू हो । तुम्हारे लिये तो वे आसमान के तारे तोड़कर मंगवा देंगे । यह तो बड़ी मामूली बात है । जेपी ने किसी को तो फिल्म देनी ही है । किसी दूसरे को दी या मुझे दी उन्हें क्या फर्क पड़ता है ।”
“आप मेरा मतलब नहीं समझे ।” - आशा विनम्र स्वर से बोली - “मैं यह कहना चाहती थी कि मैं उसकी बहू नहीं बनने वाली हूं । मै अशोक से शादी नहीं कर रही हूं ।”
“यह तो टालने वाली बात हो गई ।”
“आप गलत समझ रहे हैं, सर । मेरा वाकई अशोक से शादी करने का कोई इरादा नहीं ।”
“अच्छा छोड़ो । मान लो तुम्हारा अशोक से शादी करने का इरादा बन गया और तुमने उससे शादी कर लो, तब तुम मेरा काम कर दोगी ?”
आशा चुप रही ।
“अच्छी बात है ।” - सिन्हा कुर्सी से उठता हुआ बोला - “वैसे मुझे यह उम्मीद नहीं थी कि तुम और लोगों की तरह मुझ से भी झूठ बोलकर पीछा छुड़ाने की कोशिश करोगी कि तुम अशोक से शादी नहीं कर रही हो ।”
“लेकिन सर” - आशा परेशान स्वर से बोली - “मैं आप को कैसे विश्वास दिलाऊं कि मैं आपसे झूठ नहीं बोल रही हूं ।”
“खैर, छोड़ो ।” - सिन्हा बोला - “मैं फिर बात करूंगा तुमसे ।”
और वह लम्बे डग भरता हुआ अपने आफिस में प्रविष्ट हो गया ।
हे भगवान ! - आशा ने सिर थाम लिया और मन ही मन बड़बड़ाई - यह किस झमेले में फंस गई मैं ।
पांच बजने से थोड़ी देर पहले टेलीफोन की घन्टी घनघना उठी ।
आशा ने रिसीवर उठाकर कान से लगा लिया और बोली - “हल्लो ।”
“आशा !” - दूसरी ओर से एक स्त्री का स्वर सुनाई दिया ।
“यस, मैडम ।”
“मैं अर्चना माथुर बोल रही हूं ।”
“नमस्ते जी, सिन्हा साहब से बात करवाऊं आपकी...”
“अरे नहीं । ऐसा मत करना । मैंने तुम्हीं से बात करने के लिये फोन किया है ।”
“मुझ से !” - आशा आश्चर्यपूर्ण स्वर से बोली ।
“हां । देखो, मैं तुम्हारे पास दफ्तर में नहीं आ सकती क्योंकि इस वक्त मैं सिन्हा से मिलने के मूड में नहीं हूं । मैं नीचे अपनी कार में बैठी तुम्हारा इन्तजार कर रही हूं । तुम फौरन नीचे आ जाओ ।”
“लेकिन...”
“अरे आओ न, बाबा ।”
“अच्छा जी । आती हूं ।”
“मैं इन्तजार कर रही हूं । फेमससिने बिल्डिंग से सौ सवा सौ गज दूर जेकब सर्कल की ओर मेरी कार खड़ी है । नम्बर है ब्यालीस चौवालीस । तलाश कर लोगी ?”
“कर लूंगी ।”
“ओके।”
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
आशा ने भी रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया ।
पांच बजे वह दफ्तर से बाहर निकल आई ।
इमारत के मुख्य द्वार से बाहर निकलते समय उसके कानों में एक स्वर पड़ा - “अबे यही है वो लड़की जिसकी आज फिल्मी धमाका में अर्चना माथुर के साथ फोटो छपी है । जेपी सेठ के लड़के अशोक से शादी हो रही है इसकी । और सुना है जेपी की अगली फिल्म में देवानन्द के साथ हीरोइन आ रही है ।”
आशा ने घूमकर पीछे नहीं देखा । वह इमारत से बाहर निकला और तेज कदमों से जेकब सर्किल की दिशा में चल दी ।
अर्चना माथुर बड़े बड़े शीशों वाला चश्मा लगाये कार की ड्राइविंग सीट पर बैठी थी ।
सारे दिन में एक बार भी सिन्हा ने आशा को डिक्टेशन के लिये नहीं बुलाया ।
शाम को सिन्हा अपने आफिस से बाहर निकला ।
आशा ने उसे देखा और वह उठकर खड़ी हो गई ।
“अरे, बैठो, बैठो, बाबा ।” - सिन्हा जल्दी से बोला ।
आशा सकुचाती हुई बैठ गई ।
सिन्हा उसकी मेज के सामने की कुर्सी पर आकर बैठ गया ।
“जेपी सेठ से तो सब तुम्हारी अक्सर मुलाकात हुआ करेगी ।” - सिन्हा बोला ।
“जी नहीं...”
“अब नहीं तो शादी के बाद तो हुआ ही करेगी ।”
“लेकिन शादी...”
“देखो ।” - सिन्हा उसकी बात काटता हुआ बोला - “मेरी बड़ी पुरानी इच्छा है कि जेपी की कोई फिल्म हमें मिल जाए । उसकी फिल्में सब हिट जाती हैं । उसकी एक फिल्म इतना बिजनेस देती है जो दूसरी कोई नहीं देती । अगर तुम चाहो तो मेरी बरसों पुरानी इच्छा पूरी हो सकती है ।”
“मै चाहूं तो ?” - आशा हैरानी से बोली ।
“हां । तुम अगर कभी मौका लगने पर जेपी सेठ के सामने मेरे इन्टरेस्ट का जिक्र भी कर दोगी तो मेरा काम बन जायेगा ।”
“जेपी सेठ भला मेरी बात क्यों मानेंगे ?”
“क्यों नहीं मानेंगे ? तुम उनकी होने वाली बहू हो । तुम्हारे लिये तो वे आसमान के तारे तोड़कर मंगवा देंगे । यह तो बड़ी मामूली बात है । जेपी ने किसी को तो फिल्म देनी ही है । किसी दूसरे को दी या मुझे दी उन्हें क्या फर्क पड़ता है ।”
“आप मेरा मतलब नहीं समझे ।” - आशा विनम्र स्वर से बोली - “मैं यह कहना चाहती थी कि मैं उसकी बहू नहीं बनने वाली हूं । मै अशोक से शादी नहीं कर रही हूं ।”
“यह तो टालने वाली बात हो गई ।”
“आप गलत समझ रहे हैं, सर । मेरा वाकई अशोक से शादी करने का कोई इरादा नहीं ।”
“अच्छा छोड़ो । मान लो तुम्हारा अशोक से शादी करने का इरादा बन गया और तुमने उससे शादी कर लो, तब तुम मेरा काम कर दोगी ?”
आशा चुप रही ।
“अच्छी बात है ।” - सिन्हा कुर्सी से उठता हुआ बोला - “वैसे मुझे यह उम्मीद नहीं थी कि तुम और लोगों की तरह मुझ से भी झूठ बोलकर पीछा छुड़ाने की कोशिश करोगी कि तुम अशोक से शादी नहीं कर रही हो ।”
“लेकिन सर” - आशा परेशान स्वर से बोली - “मैं आप को कैसे विश्वास दिलाऊं कि मैं आपसे झूठ नहीं बोल रही हूं ।”
“खैर, छोड़ो ।” - सिन्हा बोला - “मैं फिर बात करूंगा तुमसे ।”
और वह लम्बे डग भरता हुआ अपने आफिस में प्रविष्ट हो गया ।
हे भगवान ! - आशा ने सिर थाम लिया और मन ही मन बड़बड़ाई - यह किस झमेले में फंस गई मैं ।
पांच बजने से थोड़ी देर पहले टेलीफोन की घन्टी घनघना उठी ।
आशा ने रिसीवर उठाकर कान से लगा लिया और बोली - “हल्लो ।”
“आशा !” - दूसरी ओर से एक स्त्री का स्वर सुनाई दिया ।
“यस, मैडम ।”
“मैं अर्चना माथुर बोल रही हूं ।”
“नमस्ते जी, सिन्हा साहब से बात करवाऊं आपकी...”
“अरे नहीं । ऐसा मत करना । मैंने तुम्हीं से बात करने के लिये फोन किया है ।”
“मुझ से !” - आशा आश्चर्यपूर्ण स्वर से बोली ।
“हां । देखो, मैं तुम्हारे पास दफ्तर में नहीं आ सकती क्योंकि इस वक्त मैं सिन्हा से मिलने के मूड में नहीं हूं । मैं नीचे अपनी कार में बैठी तुम्हारा इन्तजार कर रही हूं । तुम फौरन नीचे आ जाओ ।”
“लेकिन...”
“अरे आओ न, बाबा ।”
“अच्छा जी । आती हूं ।”
“मैं इन्तजार कर रही हूं । फेमससिने बिल्डिंग से सौ सवा सौ गज दूर जेकब सर्कल की ओर मेरी कार खड़ी है । नम्बर है ब्यालीस चौवालीस । तलाश कर लोगी ?”
“कर लूंगी ।”
“ओके।”
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
आशा ने भी रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया ।
पांच बजे वह दफ्तर से बाहर निकल आई ।
इमारत के मुख्य द्वार से बाहर निकलते समय उसके कानों में एक स्वर पड़ा - “अबे यही है वो लड़की जिसकी आज फिल्मी धमाका में अर्चना माथुर के साथ फोटो छपी है । जेपी सेठ के लड़के अशोक से शादी हो रही है इसकी । और सुना है जेपी की अगली फिल्म में देवानन्द के साथ हीरोइन आ रही है ।”
आशा ने घूमकर पीछे नहीं देखा । वह इमारत से बाहर निकला और तेज कदमों से जेकब सर्किल की दिशा में चल दी ।
अर्चना माथुर बड़े बड़े शीशों वाला चश्मा लगाये कार की ड्राइविंग सीट पर बैठी थी ।