desiaks
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काला इश्क़
writter-Rockstar_Rocky
कहानी शुरू होती है एक छोटे से गाँव में जहाँ एक खेती बाड़ी करने वाला जमींदार परिवार रहता है| बड़े भाई सुमेश जमीन की खरीद फरोख करते हैं और उनके छोटे भाई राजेश इन जमीनों पर खेती बाड़ी का काम देखते हैं| बड़े भाई सुमेश का एक लड़का है जिसका नाम चन्दर है और उसकी शादी हो चुकी है| हाल ही में चन्दर के यहाँ बेटी पैदा हुई है परन्तु उसके पैदा होने से घर में कुछ ख़ास ख़ुशी का माहौल नहीं है| बेटी का नाम रितिका रखा गया है, नाम के अनुसार उसके गुण भी हैं, सूंदर और प्यारी सी मुस्कान लिए नन्ही सी परी| छोटे भाई राजेश का भी एक लड़का है जिसका नाम मानू है, और ये कहानी मानु की ही है!
(बाकी कहानी में जैसे जैसे पात्र आते जायेंगे आपको उनका नाम पता चल जायेगा|)
रितिका कुछ महीनों की होगी की कुछ ऐसा भयानक हुआ जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता| रितिका की माँ और चन्दर में जरा भी नहीं बनती थी, चन्दर हर छोटी छोटी बात पर रितिका की माँ पर हाथ छोड़ दिया करता था| रितिका के जन्म के बाद तो भाभी की हालत और भी ख़राब हो गई, चन्दर भैया उससे ढंग से बोलते-बतियाते भी नहीं थे| इसका कारन ये था की उन्हें लड़के की चाहत थी ना की लड़की की| रितिका को उन्होंने कभी अपनी गोद में भी नहीं उठाया था प्यार करना तो दूर की बात थी| मेरी (मानू) उम्र उस समय X साल की थी और तभी एक अनहोनी घटी! भाभी को हमारे खेतों में काम करने वाले एक लड़के से प्रेम हो गया| और प्रेम इस कदर परवान चढ़ गया की एक दिन वो लड़का भाभी को भगा के ले गया| जब ये बात सुबह सबको पता चली तो तुरंत सरपंचों को बुलाया गया और सरपँच ने गाँव के लठैतों को बुलावा भेजा| "बाहू" उन लठैतों का सरगना था और जब उसे सारी बात बताई गई तो उसने १ हफ्ते का समय माँगा और अपने सारे लड़के चारों दिशाओं में दौड़ा दिए| किसी को उस लड़के के घर भेजा जो भाभी को भगा के ले गया था तो किसी को भाभी के मायके| सारे रिश्तेदारों से उसने सवाल-जवाब शुरू कर दिए ताकि उसे किसी तरह का सुराग मिले| इधर रितिका को इस बात का पता भी नहीं था की उसकी अपनी माँ उसे छोड़ के भाग गई है और वो बेचारी अकेली रो रही थी| वो तो मेरी माँ थी जिन्होंने उसे अपनी गोद में उठाया और उसका ख़याल रखा|
छः दिन गुजरे थे की बाहू भाभी और उनके प्रेमी उस लड़के को उठा के सरपंचों के सामने उपस्थित हो गया| बाहु अपनी गरजती आवाज में बोला; "मुखिया जी दोनों को लखनऊ से दबोच के ला रहा हूँ| ये दोनों दिल्ली भागने वाले थे! पर ट्रैन में चढ़ने से पहले ही दबोच लिया हमने|" भाभी को देख के चन्दर का गुस्सा फुट पड़ा और उसने एक जोरदार तमाचा भाभी के गाल पर दे मारा| पंचों ने चन्दर को इशारे से शाँत रहने को कहा| मुखिया जी उठे और उन्होंने जो गालियाँ देनी शुरू की और उस लड़के के खींच-खींच के तमाचे मारे की उस लड़के की हालत ख़राब हो गई| भाभी हाथ जोड़ के मिन्नतें करने लगी की उसे छोड़ दो पर अगले ही पल मुखिया का तमाचा भाभी को भी पड़ा| "तेरी हिम्मत कैसे हुई हमारे गाँव के नाम पर थूकने की? घर से बहार तूने पैर निकाला तो निकाला कैसे?” ये देख के सभी सर झुका के खड़े हो गए! मुखिया ने बाहु की तरफ देखा और जोर से चिल्ला कर बोले; "बाहु ले जाओ दोनों को और उस पेड़ से बाँध कर जिन्दा जला दो!" ये सुन के सभी मुखिया को हैरानी से देखने लगे पर किसी की हिम्मत नहीं हुई कुछ कहने की| बाहु ने दोनों के जोरदार तमाचा मारा और भाभी और वो लड़का जमीन पर जा गिरे| फिर वो दोनों को जमीन पर घसींट के खेत के बीचों-बीच लगे पेड़ की और चल दिया| दोनों ने बड़ी मिन्नतें की पर बाहु पर उसका कोई फर्क नहीं पड़ा| उसके बलिष्ठ हाथों की पकड़ जरा भी ढीली नहीं हुई और उसने दोनों को अलग अलग पेड़ों से बाँध दिया| फिर अपने चमचों को इशारे से लकड़ियाँ लाने को कहा| चमचों ने सारी लकड़ियाँ भाभी और उस लड़के के इर्द-गिर्द लगा दी और पीछे हट गए| बाहु ने मुड़ के मुखिया के तरफ देखा तो मुखिया ने हाँ में अपनी गर्दन हिलाई और फिर बाहु ने अपने कुर्ते की जेब से माचिस निकाली और एक तिल्ली जला के लड़के की ओर फेंकी| कुछ दो मिनट लगे होंगे लकड़ियों को आग पकड़ने में और इधर भाभी और वो लड़का दोनों छटपटाने लगे| फिर उसने भाभी की तरफ देखा और एक और तिल्ली माचिस से जला कर उनकी और फेंक दी| भाभी और वो लड़का धधकती हुई आग में चीखते रहे ... चिलाते रहे.... रोते रहे ... पर किसी ने उनकी नहीं सुनी| सब हाथ बाँधे ये काण्ड देख रहे थे| ये फैसला देख और सुन के सभी की रूह काँप चुकी थी और अब किसी भी व्यक्ति के मन में किसी दूसरे के लिए प्यार नहीं बचा था| जब आग शांत हुई तो दोनों प्रेमियों की राख को इकठ्ठा किया गया और उसे एक सूखे पेड़ की डाल पर बांध दिया गया| ये सभी के लिए चेतावनी थी की अगर इस गाँव में किसी ने किसी से प्यार किया तो उसकी यही हालत होगी| मैं चूँकि उस समय बहुत छोटा था तो मुझे इस बात की जरा भी भनक नहीं थी और रितिका तो थी ही इतनी छोटी की उसकी समझ में कुछ नहीं आने वाला था| इस वाक्य के बाद सभी के मन में मुखिया के प्रति एक भयानक खौफ जगह ले चूका था| कोई भी अब मुखिया से आँखें मिला के बात नहीं करता था और सभी का सर उनके सामने हमेशा झुका ही रहता था| पूरे गाँव में उनका दबदबा बना हुआ था जिसका उन्होंने भरपूर फायदा भी उठाया| आने वाले कुछ सालों में वो चुनाव के लिए खड़े हुए और भारी बहुमत से जीत हासिल की और सभी को अपने जूते तले दबाते हुए क्षेत्र के विधायक बने| बाहु लठैत उनका दाहिना हाथ था और जब भी किसी ने उनसे टकराने की कोशिश की तो उसने उस शक़्स का नामो-निशाँ मिटा दिया|
writter-Rockstar_Rocky
कहानी शुरू होती है एक छोटे से गाँव में जहाँ एक खेती बाड़ी करने वाला जमींदार परिवार रहता है| बड़े भाई सुमेश जमीन की खरीद फरोख करते हैं और उनके छोटे भाई राजेश इन जमीनों पर खेती बाड़ी का काम देखते हैं| बड़े भाई सुमेश का एक लड़का है जिसका नाम चन्दर है और उसकी शादी हो चुकी है| हाल ही में चन्दर के यहाँ बेटी पैदा हुई है परन्तु उसके पैदा होने से घर में कुछ ख़ास ख़ुशी का माहौल नहीं है| बेटी का नाम रितिका रखा गया है, नाम के अनुसार उसके गुण भी हैं, सूंदर और प्यारी सी मुस्कान लिए नन्ही सी परी| छोटे भाई राजेश का भी एक लड़का है जिसका नाम मानू है, और ये कहानी मानु की ही है!
(बाकी कहानी में जैसे जैसे पात्र आते जायेंगे आपको उनका नाम पता चल जायेगा|)
रितिका कुछ महीनों की होगी की कुछ ऐसा भयानक हुआ जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता| रितिका की माँ और चन्दर में जरा भी नहीं बनती थी, चन्दर हर छोटी छोटी बात पर रितिका की माँ पर हाथ छोड़ दिया करता था| रितिका के जन्म के बाद तो भाभी की हालत और भी ख़राब हो गई, चन्दर भैया उससे ढंग से बोलते-बतियाते भी नहीं थे| इसका कारन ये था की उन्हें लड़के की चाहत थी ना की लड़की की| रितिका को उन्होंने कभी अपनी गोद में भी नहीं उठाया था प्यार करना तो दूर की बात थी| मेरी (मानू) उम्र उस समय X साल की थी और तभी एक अनहोनी घटी! भाभी को हमारे खेतों में काम करने वाले एक लड़के से प्रेम हो गया| और प्रेम इस कदर परवान चढ़ गया की एक दिन वो लड़का भाभी को भगा के ले गया| जब ये बात सुबह सबको पता चली तो तुरंत सरपंचों को बुलाया गया और सरपँच ने गाँव के लठैतों को बुलावा भेजा| "बाहू" उन लठैतों का सरगना था और जब उसे सारी बात बताई गई तो उसने १ हफ्ते का समय माँगा और अपने सारे लड़के चारों दिशाओं में दौड़ा दिए| किसी को उस लड़के के घर भेजा जो भाभी को भगा के ले गया था तो किसी को भाभी के मायके| सारे रिश्तेदारों से उसने सवाल-जवाब शुरू कर दिए ताकि उसे किसी तरह का सुराग मिले| इधर रितिका को इस बात का पता भी नहीं था की उसकी अपनी माँ उसे छोड़ के भाग गई है और वो बेचारी अकेली रो रही थी| वो तो मेरी माँ थी जिन्होंने उसे अपनी गोद में उठाया और उसका ख़याल रखा|
छः दिन गुजरे थे की बाहू भाभी और उनके प्रेमी उस लड़के को उठा के सरपंचों के सामने उपस्थित हो गया| बाहु अपनी गरजती आवाज में बोला; "मुखिया जी दोनों को लखनऊ से दबोच के ला रहा हूँ| ये दोनों दिल्ली भागने वाले थे! पर ट्रैन में चढ़ने से पहले ही दबोच लिया हमने|" भाभी को देख के चन्दर का गुस्सा फुट पड़ा और उसने एक जोरदार तमाचा भाभी के गाल पर दे मारा| पंचों ने चन्दर को इशारे से शाँत रहने को कहा| मुखिया जी उठे और उन्होंने जो गालियाँ देनी शुरू की और उस लड़के के खींच-खींच के तमाचे मारे की उस लड़के की हालत ख़राब हो गई| भाभी हाथ जोड़ के मिन्नतें करने लगी की उसे छोड़ दो पर अगले ही पल मुखिया का तमाचा भाभी को भी पड़ा| "तेरी हिम्मत कैसे हुई हमारे गाँव के नाम पर थूकने की? घर से बहार तूने पैर निकाला तो निकाला कैसे?” ये देख के सभी सर झुका के खड़े हो गए! मुखिया ने बाहु की तरफ देखा और जोर से चिल्ला कर बोले; "बाहु ले जाओ दोनों को और उस पेड़ से बाँध कर जिन्दा जला दो!" ये सुन के सभी मुखिया को हैरानी से देखने लगे पर किसी की हिम्मत नहीं हुई कुछ कहने की| बाहु ने दोनों के जोरदार तमाचा मारा और भाभी और वो लड़का जमीन पर जा गिरे| फिर वो दोनों को जमीन पर घसींट के खेत के बीचों-बीच लगे पेड़ की और चल दिया| दोनों ने बड़ी मिन्नतें की पर बाहु पर उसका कोई फर्क नहीं पड़ा| उसके बलिष्ठ हाथों की पकड़ जरा भी ढीली नहीं हुई और उसने दोनों को अलग अलग पेड़ों से बाँध दिया| फिर अपने चमचों को इशारे से लकड़ियाँ लाने को कहा| चमचों ने सारी लकड़ियाँ भाभी और उस लड़के के इर्द-गिर्द लगा दी और पीछे हट गए| बाहु ने मुड़ के मुखिया के तरफ देखा तो मुखिया ने हाँ में अपनी गर्दन हिलाई और फिर बाहु ने अपने कुर्ते की जेब से माचिस निकाली और एक तिल्ली जला के लड़के की ओर फेंकी| कुछ दो मिनट लगे होंगे लकड़ियों को आग पकड़ने में और इधर भाभी और वो लड़का दोनों छटपटाने लगे| फिर उसने भाभी की तरफ देखा और एक और तिल्ली माचिस से जला कर उनकी और फेंक दी| भाभी और वो लड़का धधकती हुई आग में चीखते रहे ... चिलाते रहे.... रोते रहे ... पर किसी ने उनकी नहीं सुनी| सब हाथ बाँधे ये काण्ड देख रहे थे| ये फैसला देख और सुन के सभी की रूह काँप चुकी थी और अब किसी भी व्यक्ति के मन में किसी दूसरे के लिए प्यार नहीं बचा था| जब आग शांत हुई तो दोनों प्रेमियों की राख को इकठ्ठा किया गया और उसे एक सूखे पेड़ की डाल पर बांध दिया गया| ये सभी के लिए चेतावनी थी की अगर इस गाँव में किसी ने किसी से प्यार किया तो उसकी यही हालत होगी| मैं चूँकि उस समय बहुत छोटा था तो मुझे इस बात की जरा भी भनक नहीं थी और रितिका तो थी ही इतनी छोटी की उसकी समझ में कुछ नहीं आने वाला था| इस वाक्य के बाद सभी के मन में मुखिया के प्रति एक भयानक खौफ जगह ले चूका था| कोई भी अब मुखिया से आँखें मिला के बात नहीं करता था और सभी का सर उनके सामने हमेशा झुका ही रहता था| पूरे गाँव में उनका दबदबा बना हुआ था जिसका उन्होंने भरपूर फायदा भी उठाया| आने वाले कुछ सालों में वो चुनाव के लिए खड़े हुए और भारी बहुमत से जीत हासिल की और सभी को अपने जूते तले दबाते हुए क्षेत्र के विधायक बने| बाहु लठैत उनका दाहिना हाथ था और जब भी किसी ने उनसे टकराने की कोशिश की तो उसने उस शक़्स का नामो-निशाँ मिटा दिया|