Hindi Antarvasna - चुदासी - Page 6 - SexBaba
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Hindi Antarvasna - चुदासी

मैं- “कुछ नहीं, सिक्योरिटी गार्ड नहीं था क्या?” मैंने नीरव से पूछा।

नीरव- “वो उनके साथ मिला हुवा था, जीतू बेचारा पागल हो गया है. नीरव ने उठते हुये कहा।

चाय-नाश्ते के बाद नीरव बेडरूम में जाकर लेट गया, पूरी रात की दौड़-भाग की वजह से वो थका हुवा था। 12:00 बजे खाना खाकर फिर सो गया। 3:00 बजे उठकर 4:00 बजे तैयार होकर वो आफिस के लिए निकला। नीरव के जाते ही आंटी की खबर लेने मैंने अंकल को मोबाइल लगाया।

अंकल- “हाँ बोलो बिटिया...” अंकल ने मोबाइल उठाते ही कहा, शायद उनके साथ कोई होगा इसलिए अंकल ने सही तरीके से बात की।

मैं- “जी, वो आंटी को होश आ गया?” मैंने पूछा।

अंकल- “सुबह नीरव के जाने के घंटे बाद आंटी को होश आ गया था, पर कल रात से मैं और मेरा लण्ड दोनों में से कोई होश में नहीं है...” अंकल अपने रियल मूड में आ गये। शायद वो कहीं साइड में जाकर अकेले हो गये होगे।

मैं- “आप भी अंकल..” मैंने शर्माते हुये कहा।

अंकल- “इतना शर्माती क्यों हो मधुबाला, तेरी चूत मुझे याद कर रही है की नहीं?” अंकल शरारत से बोले।

मैं- “अंकल..” मुझे अंकल की बातों में मजा आ रहा था। पर मैं उनसे क्या बात करूं ये मुझे समझ में नहीं आ रहा था।

अंकल- “क्या अंकल-अंकल कर रही हो? जवाब दो ना तुम्हारी चूत को हमारे लण्ड की याद आती है की नहीं?" अंकल ने फिर से कहा।।

मैं- “आती है...” मैंने बात करते-करते बेड पर लेटते हुये कहा।

अंकल- “किसे आती है? थोड़ा समझ में आए ऐसे बोलो..” अंकल ने कहा।

मैं- “मेरी योनि याद कर रही है...” मैंने अंकल को वो कहा जो वो सुनना चाहते थे।

अंकल- “किस जमाने में जी रही हो मधुबाला? ये योनि क्या है? चूत बोल चूत... बिटिया मैं हमारी बैंक की मीटिंग में जाता था ना तब तुम्हारी आंटी को फोन पे चोदता था, और तुम्हारी आंटी फोन पे जोरों से चिल्लाती थी मुझे चोदो, मुझे चोदो... और मेरा पानी निकल जाता। ये बात आज से 25 साल पहले की है। तब एस.टी.डी. में एक मिनट का 50 लगता था। आजकल के बच्चे तो अब सीखे हैं फोन सेक्स करना। हम तो उस जमाने में करते थे...” अंकल ने कहा।

मैं- “मेरी चूत को याद आ रही है..” मैं भी ये एक नया अनुभव लेना चाहती थी तो मैंने बहुत ही धीमी आवाज में कहा।

अंकल- “किसकी?” अंकल ने पूछा।

मैं- “आपके लण्ड की..” मैंने कहा।

अंकल- “कहां हो तुम?” अंकल ने सवाल किया।

मैं- “मैं बेड पे लेटी हुई हूँ...” मैंने कहा।

अंकल- “मैं बाथरूम में खड़ा हूँ हाथ में लण्ड पकड़ के...”

अंकल की बात सुनकर मेरे बदन में झंझनाहट हो गई। मेरी योनि गीली हो रही थी। मैंने मेरा गाउन खींचकर ऊपर किया और पैंटी निकाले बिना योनि को ऊपर-ऊपर से सहलाने लगी।

अंकल- “हम दोनों नंगे बेड पर हैं, और मेरा लण्ड तेरी चूत के अंदर है, हम दोनों के होंठ सटे हुये हैं। मैं तेरे मम्मों को सहलाते हुये तुझे चोद रहा हूँ..” अंकल की आवाज अटक-अटक के आ रही थी।
 
अंकल- “हम दोनों नंगे बेड पर हैं, और मेरा लण्ड तेरी चूत के अंदर है, हम दोनों के होंठ सटे हुये हैं। मैं तेरे मम्मों को सहलाते हुये तुझे चोद रहा हूँ..” अंकल की आवाज अटक-अटक के आ रही थी।

मैं- “उम्म्म्म ..” अंकल की बातें सुनकर मैं गरम हो रही थी। मैंने मेरा हाथ पैंटी के अंदर करके उंगली को योनि के अंदर सरका दिया।

अंकल- “मैं मेरे लण्ड को जोरों से अंदर-बाहर कर रहा था। मैं जितनी बार लण्ड बाहर खींचता था उतनी बार तुम्हारी चूत उसको पकड़ने के लिये गाण्ड के बल ऊपर होती थी, और तुम चिल्ला-चिल्ला के मुझे कह रही हो की..." अंकल ने हाँफते हुये कहा। उनकी आवाज से साफ पता चल रहा था की वो अपना लण्ड हिला रहे हैं।

मैं- “क्या कहा मैंने?” मैंने भी मेरी योनि में जोरों से उंगली को अंदर-बाहर करते हुये पूछा।

अंकल- “वो तुम बताओ बिटिया जल्दी से..." अंकल की आवाज बिना लिफ्ट के दसवी मंजिल पे चढ़े हुये इंसान जैसी लग रही थी।

मैं- “मुझे चोदो... अंकल जोरों से चोदो...” मैंने सोचा मजा लेना है तो शर्म छोड़ दो।

अंकल- “फिर से बोल बिटिया..." अंकल की आवाज से लग रहा था की वो झड़ने वाले हैं।

मैं- “मुझे चोदो... मेरी चूत फाड़ दो अंकल...” मैंने मेरी उंगली की स्पीड बढ़ा दी।

अंकल- “आहह... बिटिया, मैं तो गया..” कहते हुये अंकल ने अपना पानी छोड़ दिया।

अंकल की बात सुनकर मैंने और जोर से मेरी उंगली की स्पीड बढ़ा दी।

अंकल- “तुम्हारा हुवा की नहीं बिटिया?” अंकल ने नार्मल होते हुये पूछा।

मैं- “नहीं अंकल...” मैंने कहा।

अंकल- “एक काम करो बिटिया, अपने मोबाइल को वाइब्रेशन मोड में करके चूत में डाल दो। मैं यहां से रिंग। मारता हूँ। चूत के अंदर मोबाइल वाइब्रेट होगा ना तो तुझे चुदवाने का अहसास होगा और तुम छूट जाओगी...” अंकल ने मस्ती में कहा।

मैं- “हरामी बूढे..” कहकर मैंने फोन काट दिया और मेरी मंजिल पाने के लिए मेरी योनि को कुरेदने लगी और थोड़ी ही देर में में झड़ गई।
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अंकल का फोन रखने के 15-20 मिनट बाद फिर से मोबाइल की रिंग बज उठी, मैंने मोबाइल उठाकर देखा तो मम्मी का फोन था- “हेलो...” मैंने कहा।

मम्मी- “मैं हूँ बेटा, कैसी हो? गई हो तब से फोन ही नहीं किया...” मम्मी ने कहा।

मैं- “मैं ठीक हूँ मम्मी, आप और पापा कैसे हैं?” मैंने पूछा।

मम्मी- “तेरे पापा की तबीयत तो आजकल अच्छी रहती है और मैं भी ठीक हूँ...” माँ ने कहा।

मैं- “दीदी आई थी घर पे?” मैंने पूछा।

मम्मी- “हाँ तीनों आए थे, तेरे जीजू कुछ टेन्शन में लग रहे थे। कल तेरा जनम दिन है याद है ना?" माँ ने कहा।

मैं- “हाँ, याद है मम्मी...” मैंने कहा।

मम्मी- “जनम दिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं बेटा..” मम्मी ने लगनी भरे लब्जों में कहा।

मैं- “थैक्स मम्मी, कल सुबह मैं फोन करूँगी अभी रखती हूँ..” मैंने कहा।

मम्मी- “हाँ बेटा, मैं भी रखती हूँ..” कहती हुई मम्मी ने फोन रख दिया।

 
हर साल मेरी या नीरव की बर्थ-डे होती है, तब हम सुबह सबसे पहले मंदिर जाते हैं, मंदिर से बड़े घर जाते हैं। वहां हम बड़ों के पाँव छूकर आशीर्वाद लेते हैं। दोपहर का खाना भी वहीं खाते हैं और शाम को मैं और नीरव मूवी देखकर होटेल में खाना खाकर घर आते हैं। ये हमारे दोनों के बर्थ-डे का फिक्स प्रोग्राम है और हर साल हम एक ही तरीके से विश करते हैं, और हम ये घर में रहने के लिए आए तब से कर रहे हैं।

थोड़ी देर बाद मैंने सोचा की यहां आने के बाद जीजू से बात नहीं हुई है तो चलो फोन करते हैं। मैंने जीजू का नंबर लगाया।

जीजू- “कहिए साली साहेबा, हमारी याद कैसे आ गई?” पहली ही रिंग में जीजू ने फोन उठा लिया।

मैं- “आपने याद नहीं किया तो मैंने किया, आप जैसे निष्ठुर जीजू के होते हुये मुझे ही फोन करना पड़ेगा ना...” मैं उनकी आवाज सुनते ही चहकने लगी।

जीजू- “हम तो राह देख रहे थे आपके फोन की, देख रहे थे कि आप हमें याद कर रही हैं की नहीं?" जीजू की आवाज में एक अलग सी मस्ती थी। थोड़ी देर पहले मम्मी ने जो उनके टेन्शन की बात की थी, वो उनकी आवाज से तो नहीं लग रहा था।

मैं- “हाँ तो अब मैंने किया ना... कैसे हैं आप?” मैंने कहा।

जीजू- “सच कहूँ तो तुम्हारे बिना ठीक नहीं हैं। हर लम्हा तुम्हें याद करता हूँ..." जीजू की आवाज सच्ची लग रही थी।

मैं- “दीदी कैसी हैं?” मैं बात को टालना चाहती थी। मैं दीदी की सौतन बनना नहीं चाहती थी।

जीजू- “तुम्हारी दीदी और हमारा लाड़ला राजकुमार दोनों अच्छे हैं, नीरव को भी कहो की कभी कभार हमें याद कर ले..." जीजू ने कहा।

मैं- “कह देंगी... जीजू, फोन रखती हूँ मैं.” कहते हुये मैंने फोन काट दिया। क्योंकि मैं उनसे कोई ऐसी बात नहीं करना चाहती थी, जिससे मुझे दीदी से कभी भी आँख चुरानी पड़े।

मोबाइल रखने के बाद मुझे घंटे भर पहले अंकल के साथ किया हुवा फोन–सेक्स याद आ गया। अंकल की जगह जीजू होते तो और ज्यादा मजा आता। पर दीदी का खयाल आते ही मैंने मन से विचार को निकाल डाला।

रात को मैं और नीरव खाना खा रहे थे तब मैंने उससे कहा- “कल सुबह जल्दी जागना नीरव, मंदिर जाकर बड़े घर जाएंगे...”

नीरव- “मंदिर जाएंगे, पर निशु मम्मी-पापा के पास नहीं जाएंगे..." नीरव ने गंभीरता से कहा।

मैं- “क्यों सभी यहां आने वाले हैं क्या?” दो साल पहले नीरव ने मेरे सास-ससुर और जेठ-जेठानी और उनके बच्चों को उनकी बर्थ-डे पर यहां इन्वाइट किया था। तब उन्होंने कहा था की फिर कभी आएंगे।
 
रात को मैं और नीरव खाना खा रहे थे तब मैंने उससे कहा- “कल सुबह जल्दी जागना नीरव, मंदिर जाकर बड़े घर जाएंगे...”

नीरव- “मंदिर जाएंगे, पर निशु मम्मी-पापा के पास नहीं जाएंगे..." नीरव ने गंभीरता से कहा।

मैं- “क्यों सभी यहां आने वाले हैं क्या?” दो साल पहले नीरव ने मेरे सास-ससुर और जेठ-जेठानी और उनके बच्चों को उनकी बर्थ-डे पर यहां इन्वाइट किया था। तब उन्होंने कहा था की फिर कभी आएंगे।

नीरव- “नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। पर पापा ने उस दिन तुमसे जिस तरह बात की, मेरा दिल ना बोल रहा है। वहां जाने को..." नीरव की बात सुनकर मैं अचंभे में पड़ गई कि वो अपने माँ बाप के घर जाने को ना बोल रहा

मैं- “छोड़ो ना नीरव, वो हमारे माँ बाप हैं। चाहे कुछ भी किया उन्होंने, हमें जाना चाहिए..” मैंने नीरव को समझाते हुये कहा।

नीरव- “नहीं निशु, हमारा भी कोई आत्मसम्मान होता है..."

आज मुझे नीरव की बात सुनकर अच्छा लग रहा था पर घर पर भी नहीं जाना वो सही नहीं लग रहा था। मैंने थोड़ा जोर से कहा- “कल जाते हैं नीरव, ऐसा होगा तो वहां रहेंगे नहीं आशीर्वाद लेकर वापस आ जाएंगे..."

नीरव- “ना बोला ना निशा... कोई बात समझ में नहीं आती क्या?" नीरव ने अचानक भड़कते हुये कहा।

मैं- “इसमें इतना भड़कने की क्या बात है नीरव, नहीं जाना है तो नहीं जाएंगे...” कहते हुये मैं जल्दी से खाना खाने लगी।

सारा काम निपटाकर मैं बेडरूम में गई। तब नीरव बेड पे लेटे हुये सुबह का न्यूजपेपर पढ़ रहे थे। मैंने उसके बगल में सोते हुये पूछा- “क्या हुवा नीरव? सच बताओ मुझे, तुम क्यों नहीं जाना चाहते?”

नीरव- “क्यों एक ही बात की रट लगाए हुये बैठी हो, मुझे नहीं जाना वहां...” नीरव का गुस्सा अभी भी ठंडा नहीं हुवा था।

मैं- “कभी नहीं जाओगे?” मैंने भी चिढ़ते हुये कहा।

नीरव- “हाँ, कभी नहीं जाऊँगा। पापा ने भैया से कहलाया है की तुम लोग घर पे मत आना...” नीरव बोलते-बोलते रोने लगा।

मुझसे नीरव की पीड़ा देखी न गई मैंने उसे बाहों में भर लिया और उसकी पीठ सहलाकर उसे सांत्वना देने लगी

क्या गलती है हमारी नीरव?” मैंने पूछा।

नीरव- “20000 तुम्हारे पापा को दिए इसलिए...” नीरव ने कहा।

मैं- “क्या?” अब भड़कने की मेरी बारी थी। मैं नीरव से जुदा हो गई।

नीरव- “हाँ, तुम्हारी वजह से ये सब हुवा..” नीरव ने कहा।

मैं- “20000 कोई बड़ी चीज नहीं है नीरव। इतनी सी बात की इतनी बड़ी सजा तुम्हारे घर के रूल्स मेरी समझकर बाहर हैं, और तुम मेरी गलती क्यों निकल रहे हो?” बोलते हुये मेरी आवाज भारी हो गई।

नीरव- “तुम्हारी ही तो गलती है निशा। तुमने कहा इसलिए तो मैं लिया...” नीरव ने सारा दोष मुझ पर थोपा।

मैं- “मैंने चोरी करने को तो नहीं कहा था..” नीरव का बात करने रवैया मुझे जरा भी पसंद नहीं आया था तो मैं गुस्से से गलत शब्दों का इस्तेमाल कर बैठी।
 
नीरव- “मैंने कोई चोरी नहीं की थी, मैं अडजस्ट करके वापस रखने ही वाला था और तुम भी सबकी तरह मुझे चोर बोल रही हो...” कहते हुये नीरव फिर से भावुक हो उठा।

मुझे मेरी गलती का अहसास हो गया था। मैं जल्दी-जल्दी में न बोलने की बात बोल गई थी- “सारी नीरव, पर तुम्हें पापा से इस बारे में बात करनी चाहिए...” मैंने नर्मी से कहा।

नीरव- “निशु तुम पापा का गुस्सा जानती हो, उनसे बात करने का कोई फायदा नहीं...” नीरव ने कहा।

मैं- “फिर भी नीरव... कोशिश तो करो..” मैंने मेरी बात दोहराई।

नीरव- “उनकी बात को छोड़ ना निशु, वरना हम फिर से लड़ पड़ेंगे.” नीरव फिर से चिढ़ गया।

नीरव के चिढ़ने के बाद मैं कुछ बोली नहीं पर मुझे उसकी यही बात पसंद नहीं। हमेशा सबसे डरना और सिर । झुकाकर जीना, ये कोई जीना थोड़ी है। थोड़ी देर बाद नीरव तो सो गया, पर मुझे बहुत देर बाद नींद आई। मुझे हमारे भविष्य की चिंता होने लगी थी।

सुबह कितने बजे होंगे मालूम नहीं पर नींद से मुझे नीरव ने जगाया- “मेनी मेनी हैपी रिटर्स आफ द डे माइ स्वीटहार्ट..” नीरव ने मुझे बाहों में लेकर कहा और फिर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए।

मैंने भी उसका चेहरा मेरे दोनों हाथों से पकड़ लिया और बोली- “बैंक यू नीरव..” और फिर मैं भी उसके होंठों को चूसने लगी। हम दोनों 3-4 मिनट तक ऐसे ही एक दूसरे को किस करते रहे।

तभी बेल बाजी।

मैं- “दूध वाला आया है...” मैंने नीरव के होंठों से मेरे होंठ छुड़ाकर कहा।

नीरव- “उसे बाहर ही खड़े रहने दो...” मैं खड़ी होने लगी तो नीरव ने मुझे हाथ पकड़कर नीचे बिठा दिया, और कहा- “ठहरो, मैं लेता हूँ..” कहते हुये वो रूम से बाहर निकल गया। दूध लेकर आने के बाद नीरव ने मुझे फिर से बाहों में ले लिया।

तब मैंने उसे धक्का दिया- “जनाब को बहुत प्यार आ रहा है आज...”

नीरव- “आज 9 जनवरी के दिन आज से 27 साल पहले हमारी मेडम का जनम हुवा था, तो आज हम बहुत खुश हैं और आपको प्यार कर रहे हैं...” नीरव ने नाटकीय अंदाज में कहा।

मैं खिलखिलाकर हँसने लगी, और- “तुम बहुत अच्छे हो नीरव आई लव योउ...” कहते हुये मैं नीरव के सीने से लिपट गई।

नीरव- “आई लव यू टू, निशु डार्लिंग...” कहते हुये नीरव मेरी पीठ को सहलाने लगा।
 
मैं खिलखिलाकर हँसने लगी, और- “तुम बहुत अच्छे हो नीरव आई लव योउ...” कहते हुये मैं नीरव के सीने से लिपट गई।

नीरव- “आई लव यू टू, निशु डार्लिंग...” कहते हुये नीरव मेरी पीठ को सहलाने लगा।

न जाने कितनी देर हम दोनों ऐसे ही बैठे रहे। पर घड़ियाल के घंटों ने हमें हमारे खयालों में से बाहर निकाल । दिया। 9:00 बजे हम दोनों मंदिर गये। मैंने आज नीले रंग की साड़ी पहनी थी, जो मुझ पर बहुत जंच रही थी। मंदिर से वापस आते वक़्त नीरव ने मुझे घर छोड़ते हुये कहा- “तुम पर साड़ी जंच रही है या तुमसे साड़ी जंच रही है? वो समझ में नहीं आ रहा। पर तुम आज कमाल की लग रही हो...”

मैंने मुश्कुराते हुये कहा- “शाम को जल्दी घर आ जाना...”

नीरव- “ओके मेडम जैसा आपका हुकुम...” कहते हुये नीरव निकल गया।

मैं कंपाउंड में दाखिल हुई तो मैंने एक पल के लिए रामू को खुले में सिर्फ चड्डी पहनकर नहाते हुये देखा। वो तब खड़े-खड़े टब उठाकर अपने ऊपर डाल रहा था। एक पल में हम दोनों की नजरें तो मिल ही गईं, और तब उसने मुझे घूरते हुये अपने लिंग को मसला तो मैं मेरी आँखें नीची करके बिल्डिंग में दाखिल हो गई।

थोड़ी देर बाद दीदी का मोबाइल आया। मैं बहुत खुश हो गई, क्योंकि मेरी शादी के बाद जीजू दीदी को मुझसे बात नहीं करने देते थे। आज शादी के बाद मेरी पहली बर्थ-डे पर दीदी मुझे विश करने वाली थी।

मैं- “हेलो, दीदी कैसी हो?” मैंने चहकते हुये कहा।

दीदी- “मैं ठीक नहीं हूँ..” दीदी ने बहुत ही रुखाई से जवाब दिया।

मैं- “क्यों, क्या हुवा दीदी, सब खैरियत तो है ना?” मैंने चिंता जताते हुये कहा।

दीदी- "तुम्हारे होते हुये खैरियत कैसे रह सकती है?” आज दीदी का बात करने का तरीका कुछ अजीब था।

मैं- “क्या हुवा दीदी कुछ खुल के बताओ?” मैंने कहा।

दीदी- “तुमने कल अनिल (मेरे जीजू) को फोन किया था...” दीदी अब भी वोही टोन में बात कर रही थी।

मैं- “हाँ दीदी। वहां से आने के बाद आप लोगों को फोन नहीं किया था तो...” मैंने मेरी बात को अधूरी छोड़ दी।

दीदी- “हमें या अनिल को?” दीदी की आवाज ऊँची होने लगी।

मैं- “दीदी, ये आप क्या कह रही हैं? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा...” मैंने कहा।

दीदी- “मैं समझती हूँ तुम्हें, तुमने अनिल को फोन क्यों किया? तुम्हें शर्म नहीं आई चोरी छिपे अनिल से फोन करने में? इतनी ही आग है शरीर में तो कहीं और बुझाया कर..."

दीदी की बात सुनकर मुझे इतना बुरा लगा की मेरी आँखें भर आई- “दीदी, मैंने जो भी किया था आपके और मम्मी के कहने पर किया था..” और इतना बोलकर मैं रोने लगी।

दीदी- “अब अपना नाटक बंद कर। मैंने तुम्हें एक बार करने को कहा था, पीछे पड़ने को नहीं कहा था। मुझे तो उसी दिन शक हो गया था जब हम तुमलोगों को स्टेशन छोड़ने आए थे...” दीदी जो मन में आए वो बोले जा रही थी।

मैं- “दीदी प्लीज़...” मैंने रोते हुये कहा।

दीदी- “मैं तो हर रोज अनिल का मोबाइल चेक करती थी की तुम्हारा नंबर है की नहीं? पर वो डेलिट कर देता था। पर आज भूल गया होगा तो पकड़ा गया...” दीदी मनगढंत कहानियां बनाकर सुना रही थी।

मैं- “दीदी मेरा विस्वास करो...” मैंने कहा।

दीदी- “क्या विस्वास करूं तेरा, मैं नहीं जानती थी की तुम 7 साल में रंडी बन चुकी हो...” दीदी ने अब बोलतेबोलते सारी हदें पार कर दीं।

मेरी अब सुनने की शक्ति खतम हो चुकी थी, कहा- “मैं अब जीजू को फोन नहीं करूंगी...” कहते हुये मैंने फोन काट दिया और फिर बेड पे उल्टा लेटकर तकिये में मुंह दबाकर रोने लगी।
 
दीदी ने आज मेरे साथ जो सलूक किया है वैसा आज तक मेरे साथ किसी ने नहीं किया था। दुश्मन भी न करे, वैसा दीदी ने काम किया था। दीदी का फोन रखा तब से मैं रो रही थी। पर अब मेरी आँखों में से आँसू निकलने बंद हो गये थे, शायद खतम हो गये थे या सूख गये थे।

कल मेरे ससुर ने हमें अपने ही घर आने को ना बोल दिया, वो घर हमारा भी तो था। और आज दीदी ने न जाने क्या-क्या बोल दिया? रंडी बना दिया मुझे। वो मुझसे 4 साल ही बड़ी हैं, पर मैंने उन्हें आज तक नाम से नहीं बुलाया, हमेशा दीदी कहकर ही पुकारती थी। बचपन से लेकर जवानी तक हम दोनों शायद कभी ही जुदा हुई होंगी। मैंने जो किया था उनके लिए तो किया था और उन्होंने मुझ पर इतना बड़ा इल्ज़ाम लगा दिया। तभी मुझे टिफिन का खयाल आया। अगर मुझे नीरव को टिफिन नहीं भेजना होता तो मैं आज रसोई नहीं बनाती।

मैं खड़ी होकर किचन में गई। धीरे-धीरे रसोई बनाने लगी। कब 12:00 बज गये मालूम ही नहीं पड़ा। शंकर टिफिन लेने आ गया, तब तक रसोई तैयार नहीं थी। मैंने उसे सीढ़ियों पर बैठने को कहा और जल्दी-जल्दी रसोई करके टिफिन भर के उसे देने गई। उस दिन शंकर के साथ जो हुवा था तब से मैं टिफिन बाहर ही लटका देती। थी। शंकर वहां से लेकर निकल जाता था। उस दिन के बाद आज पहली बार मैं शंकर को हाथों में हाथ टिफिन दे रही थी।

जैसे ही मैंने शंकर के हाथों में टिफिन दिया और उसने आजू-बाजू में देखा तो सामने गुप्ता अंकल का घर बंद देखा और फिर उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। मैं उसकी हिम्मत देखकर सन्न हो गई और जल्दी ही कोई । प्रतिक्रिया ना दे सकी। 10 सेकेंड बाद मैंने मेरा हाथ उसके हाथ से छुड़ाया और दरवाजा बंद करने लगी।

तब उसने दरवाजा पकड़ लिया और बोला- “मेडमजी कभी हमें भी मोका दे दो...”

मैंने जोर से दरवाजा खींचा तो हाथ कटने के इर से उसने दरवाजा छोड़ दिया, और मैंने दरवाजा बंद कर दिया। इतनी मेहनत के बाद मैं हाँफ गई थी तो मैं सोफे पर बैठकर जोरों से हाँफने लगी।

रामू के आने के बाद मैं बेडरूम में चली गई, साड़ी निकालकर गाउन पहनकर बेड पर लेट गई। मैंने सोने के लिए आँखें बंद की तो एक तरफ मुझे मेरे ससुर खड़े दिखे- “तेरी वजह से मेरा बेटा चोर बन गया। तुमने उसे उकसाया था। तुम्हारे मम्मी-पापा हमारे पैसे पर जी रहे हैं.”

उनकी बाजू में नीरव खड़ा था और उनकी बात सुनकर वो भी मुझसे कहने लगा- “हाँ, हाँ तुम्हारी वजह से ही मुझे मेरा घर छोड़ना पड़ा तुम्हारी वजह से ही...” मैं नीरव की बात सुनकर रोने लगी।

तभी दूसरी तरफ दीदी दिखाई दी- “इतनी ही आग है तेरे जिम में तो किसी दूसरे को हँसा ले, मेरे घर में ही क्यों आग लगा रही हो?” दीदी गुस्से में मुझे बोले जा रही थी, और उसके पीछे जीजू खड़े मेरे सामने देखकर मुकुरा रहे थे।

मैं और जोरों से रोने लगी। तभी बेडरूम के दरवाजे को थपथापने की आवाज आई। मैंने अपने आपको संभाला।

बाहर से रामू की आवाज आई- “जा रहा हूँ मेमसाब, दरवाजा बंद कर लीजिएगा..."
 
मैं और जोरों से रोने लगी। तभी बेडरूम के दरवाजे को थपथापने की आवाज आई। मैंने अपने आपको संभाला।

बाहर से रामू की आवाज आई- “जा रहा हूँ मेमसाब, दरवाजा बंद कर लीजिएगा..."

मैंने खड़े होकर दरवाजा खोला और मैं दरवाजा बंद करने गई तो रामू बाहर कहीं नहीं था, शायद वो सीढ़ियों से उतर गया होगा। मैं दरवाजा बंद करके फिर से बेडरूम की तरफ गई तो उसके दरवाजे के आगे ही मेरे पैर ठिठक गये। अंदर रामू खड़ा था।

रामू- “इतना इतराती क्यों हो?” रामू ने मेरे नजदीक आते हुये कहा।

मैं- “क्या बक रहे हो? मैंने कुछ नहीं देखा...” मैंने कहा।

रामू- “क्यों झूठ बोल रही हो मेमसाब? मैंने स्टूल को खिड़की के नीचे देखा तभी मैं समझ गया था कि कोई हमारा और कान्ता का खेल देख गया है, पर मालूम नहीं था कौन देख गया है? परसों जब आपने मुझे कान्ता से 100 लेने को बोला तो मैं समझ गया की देखने वाला और कोई नहीं हमारी मेडम हैं, नहीं तो आप मुझे क्यों कान्ता से पैसे लेने को कहती? हम और कान्ता मिलते हैं वो आपको कैसे मालूम?”

मैंने अपना सिर झुका दिया। मेरी गलती का अहसास तो मुझे उस दिन बोलने के बाद तुरंत हो ही गया था।

रामू ने मुझे खींचकर दीवाल के सटाकर खड़ा कर दिया और वो मेरे करीब आकर मेरे दोनों तरफ हाथ रखकर खड़ा हो गया। उसके पसीने की तीव्र बदबू रूम में फैली हुई थी। रामू झुक के मेरी गर्दन चाटने लगा।

मैंने मेरी आँखें बंद ली- “इतनी ही आग है तेरे जिम में तो दूसरों को पकड़, मेरे पति के पीछे क्यों पड़ी है साली रंडी..” आँखें बंद करते ही दीदी दिखाई दी, मुझे गालियां देती हई। मैंने अपनी आँखें खोल दी।

रामू ने मेरे गुलाबी होंठों पर उसके होंठ रख दिया। उसके मुँह से शराब, बीड़ी और तंबाकू की मिली ली बदबू आ रही थी।

मैं- “किस मत करो रामू.” मैंने उसके मुँह को दूर करते हुये कहा।

मेरी बात सुनकर वो जमीन पर बैठ गया और गाउन को थोड़ा ऊपर करके मेरी पिंडलियां पकड़ ली और धीरे-धीरे वो अपने हाथों को ऊपर लाने लगा, उसके साथ-साथ मेरा गाउन भी ऊपर होने लगा। उसके हाथ के पंजे बहुत ही बड़े-बड़े थे और पूरा दिन मेहनत करने की वजह से छाले पड़ गये थे, जो मेरे नाजुक पैरों को चुभ रहे थे। धीरेधीरे वो अपने हाथ मेरी कमर तक ले आया, उसके दो पंजों से पकड़ी हुई मेरी कमर को उसने कसकर दबाया तो उसके अलग-अलग हाथ की उंगलियां जुड़ गईं।

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रामू की इस हरकत से मेरे मुँह से आऽs निकल गई और मैंने गाउन को पकड़ लिया।

उसका चेहरा मेरी योनि (योनि कहो या चूत, रंडिया तो कुछ भी बोलती हैं) के बिल्कुल सामने था। मैं सिसक उठी। आज तक कोई भी मर्द ने अपना चेहरा मेरी योनि के इतने नजदीक नहीं लाया था। मेरी बालों से ढकी चूत के करीब उसने अपना मुँह करके जोरों से नाक से सांस खींचा। उसकी ये हरकत मुझे अजीब लगी। वहां से कोई महक नहीं आने वाली थी, वहां से तो मेरे पेशाब की बदबू आ रही होगी क्योंकि इतने बालों के बीच से पेशाब की धार निकलती है तो पेशाब की कुछ बूंदें तो लग ही जाती है बालों में। शायद उसे मेरे पेशाब की बदबू अच्छी लग रही है, ऐसा लग रहा था। क्योंकी वो बार-बार अपनी नाक से खींचकर जोरों से सांस ले रहा था।
 
रामू बालों के पीछे मेरी चूत के होंठों को उंगलियों से पकड़ते हुये बोला- “बहुत ही मस्त खुशबू आ रही है मेडम आपकी बुर से...” कहकर रामू ने मेरी चूत के होंठों को अलग-अलग तरफ खींचा।

उसकी हर हरकत मुझे नई, अनोखी और आलादक लग रही थी।

रामू मेरी चूत के होठों को दोनों तरफ खींचकर आँखें फाड़-फाड़कर देख रहा था- “मेडम आप तो वो नंगी पिक में गोरी लड़कियां दिखती है ना उससे भी गोरी हैं.” रामू ने उंगली ज्यादा ही अंदर तक डालते हुये कहा।

रामू के उंगली अंदर डालते ही मेरे मुँह से चीख के साथ सिसकारी निकल गई- “आहह..”

रामू ने अपनी जीभ निकाली जो देखकर मेरी धड़कनें तेज हो गईं। अब वो जो करने वाला था वो सोचकर मेरे बदन में झंझनाहट होने लगी। रामू ने मेरी चूत से उंगली को बाहर निकाला और फिर वो उंगली को नाक के । नीचे रखकर सँघने लगा। उसकी जीभ लंबी थी, वो उंगली के ऊपर के हिस्से को नाक के पास सँघ रहा था और नीचे के हिस्से को चाट रहा था। थोड़ी देर बाद नाक के पास रखी उंगली उसने जीभ के साथ मुँह के अंदर ले ली

और उंगली को अंदर-बाहर दो-तीन बार किया और उंगली पे लगे चूत-रस को चाट लिया। फिर उंगली को बाहर निकाला।

उसकी हर हरकत में ध्यान से देख रही थी, ऐसा नहीं था की उसकी सारी हरकतें मुझे अच्छी लग रही थीं।

लेकिन उसकी हर हरकत में मुझे मेरे बदन के प्रति उसका आकर्षण छलक के दिख रहा था, जिससे मेरी चूत ज्यादा से ज्यादा गीली होती जा रही थी।

रामू ने उसकी जीभ फिर से निकाली और फिर मेरी चूत की झांटों से भरे बाहरी भाग को चाटने लगा। बाल ज्यादा ही होने की वजह से मुझे कोई खास अहसास नहीं हो रहा था और थोड़ी-थोड़ी देर में वहां से बाल टूटकर उसके मुँह में जाते थे, तब वो चाटना बंद करके मुँह में से बाल निकाल देता था और फिर से चाटने लगता था। मेरी चूत के अंदर इतना ज्यादा पानी हो गया था की वो कभी भी छलक के बाहर आ सकता था। अचानक ही उसने अपनी उंगलियों से चूत को फैलाया और अंदर जीभ डाल दी।
 
रामू ने उसकी जीभ फिर से निकाली और फिर मेरी चूत की झांटों से भरे बाहरी भाग को चाटने लगा। बाल ज्यादा ही होने की वजह से मुझे कोई खास अहसास नहीं हो रहा था और थोड़ी-थोड़ी देर में वहां से बाल टूटकर उसके मुँह में जाते थे, तब वो चाटना बंद करके मुँह में से बाल निकाल देता था और फिर से चाटने लगता था। मेरी चूत के अंदर इतना ज्यादा पानी हो गया था की वो कभी भी छलक के बाहर आ सकता था। अचानक ही उसने अपनी उंगलियों से चूत को फैलाया और अंदर जीभ डाल दी।

रामू जब से नीचे बैठा था तब से मैं इस पल का इंतेजार कर रही थी। मैंने जितना सोचा था उससे कहीं ज्यादा उत्तेजना मेरी नशों में दौड़ने लगी।

2-3 बार धीरे-धीरे चूत को चाटने के बाद रामू जल्दी-जल्दी मेरी चूत को चाटने लगा। मुझे सनसनी होने लगी, मेरी नशों में खून के दौड़ने की गति बढ़ने लगी। मुझे ऐसा लगने लगा की मैं जीते जी स्वर्ग में पहुँच गई हूँ। चूत चाटते हुये रामू ने अपना हाथ मेरे पेट को सहलाते हुये ऊपर किया। उसका हाथ मेरी नाभि के ऊपर आया तो उसने अपनी उंगली मेरी नाभि के अंदर घुमाई और फिर हाथ को और ऊपर किया।

मैं समझ गई कि वो मेरी चूचियों को पकड़ना चाहता है। मैंने गाउन को निकाल दिया और मादरजात नंगी हो गई। रामू ने अपने एक हाथ में मेरे बायें मम्मे को पकड़ लिया और उसे सहलाने लगा। उसकी इस हरकत ने मेरा मजा दूना कर दिया।

तभी रामू ने अपना मुँह ऊपर की तरफ किया और मुझसे पूछा- “मजा आ रहा है ना मेडम?”

मैंने हाँ में सिर हिलाया।

राम्- “मेडमजी आपका बदन तो मक्खन की तरह चिकना और गोरा है, आप हमारी बहू होती ना तो रात दिन आपकी सेवा करते रहते...” कहकर रामू फिर से चूत चाटने लगा।

और किसी वक़्त रामू ऐसी बात करता तो शायद मैं उसका मुँह तोड़ देती। लेकिन इस वक़्त मैं उसकी कोई भी बात सुनने को तैयार थी। वो फिर चूत चाटने में मसगूल हो गया, चूत के अंदर जीभ को वो कभी ऊपर करता था, तो कभी नीचे करता था। कभी दाईं तरफ, तो कभी बाईं तरफ घुमाता था, कभी अंदर तक डालकर बाहर निकालता था। उसकी जीभ लंबी होने की वजह से ज्यादा ही अंदर तक जाती थी और वो जब अंदर डालता था तब कड़क कर देता था, जिसकी वजह से मुझे तब वो गीले लण्ड जैसा अहसास दिलाता था। वो मेरी चूत को ऐसे चाट रहा था जैसे चोदने से पहले उसकी सफाई करना चाहता हो।

मैंने मेरे हाथ से उसका सिर पकड़ लिया था, और उसके बालों को सहलाने लगी थी।
 
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