Hindi Antarvasna - चुदासी - Page 4 - SexBaba
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Hindi Antarvasna - चुदासी

रीता ने मुझे विस्तार से समझाया पर मैं ज्यादा समझी नहीं थी- “मेरी सहेली पर कोई तकलीफ कभी ना आए...” मैंने लगनी भरे लब्जों में कहा।

रीता ने कहा- “वो हमारे हाथ में कहां है? पर तू ये बता की समझी कि नहीं समझी?"
मैंने ऐसे ही “हाँ” में सिर हिला दिया।

रीता- “वो तो मुझे ट्राई करनी थी की भैया आते हैं की नहीं? बाकी उसके जैसे 2-3 को तो मैं अकेली ही भारी पड़ती...” रीता ने अपनी बड़ाई करते हुये कहा।

मैं- “हाँ, तुम हंटरवाली जो ठहरी। पूरी कालेज तुझसे डरता है...” मैंने उससे हाथ जोड़ते हुये कहा।

थोड़े दिन बाद

रीता- “निशा वो पेड़ के नीचे लड़का खड़ा है ना उसको देख तो?” रीता ने कालेज के कंपाउंड के पेड़ के नीचे खड़े लड़के की तरफ उंगली करते हुये मुझसे कहा। रीता के कहने पर मैंने पेड़ की तरफ नजर डाली तो वहां जो लड़का खड़ा था, वो हमारी तरफ ही देख रहा था।

मैं- “क्या दिखा रही हो? वो हमें ही देख रहा है, हमारे बारे में क्या सोचेगा?” मैंने मेरी नजर उसपर से हटाते हुये रीता को नाराजगी से कहा।

रीता मेरी बात सुनकर हँसते हुये बोली- “वो हमें देख रहा है इसीलिए तो मैं तुझे दिखा रही हूँ... वो महाशय कैसे लगते हैं, ध्यान से देखकर बता ना...”

मैंने फिर से उस लड़के पर नजर डाली, लड़का मध्यम क़द का दुबला सा था और आँखों पर चश्मा लगाए हुये था- “ठीक है, सीधा-सादा लग रहा है...” मैंने कहा।

रीता- “वो तुमसे दोस्ती करना चाहता है.” रीता ने फिर हँसते हुये कहा।

मैं- “तुझे किसने बताया?” मैं समझ गई थी की रीता को उसी ने बताया होगा, पर मैं रीता के मुँह से सुनना चाहती थी।

रीता- “उसी ने बताया, और कौन बताएगा?” रीता ने कहा।

मैंने सवाल किया- “तो फिर तुमने उससे क्या कहा?”

रीता- “मैंने तो पहले उसे ना ही बोल दिया की मैं निशा से कुछ नहीं कहूँगी, पर उसने मुझसे बहुत रिकवेस्ट की तो मैं तुझे बता रही हूँ..” रीता ने अपनी सफाई दी।

मैं- “तुमने मुझे ये सब बताने की रिश्वत कितनी ली?” मैंने रीता को चिढ़कर पूछा।

मेरी बात सुनकर रीता हँसते हुये बोली- “पोलिस वाले की बहन हूँ, रिश्वत तो लँगी ही समझी... 500 का रिचार्ज करवाया। बहुत बड़ा आशिक है तेरा...”

मैंने गंभीरता से रीता को कहा- “तुम्हारी ये आदत हम पर कभी भी भारी पड़ सकती है..."

रीता- “तू यार, बहुत डरती है और मैं किसी भी लड़के से एकाध बार पैसे लेकर कह देती हूँ की निशा ने ना बोल दिया है, और बिचारों का दिल टूट जाता है, और फिर मुझे कभी नहीं मिलते...” रीता ने फिर से अपनी सफाई में कहा।
 
हम बात कर ही रहे थे, तभी एक कोने में से झगड़े की आवाज आई। मैं और रीता उस तरफ गये, जहां पर । लड़ाई हो रही थी, बहुत भीड़ थी। हम किसी तरह भीड़ चीरकर आगे गये तो देखा की हमारे कालेज के ट्रस्टी का बेटा विजय, जो संजय दत्त जैसा दिखता है और पूरे वक़्त कालेज में टपोरीगिरी करता रहता है, किसी बुजुर्ग को मार रहा था, और वो बुजुर्ग उससे हाथ जोड़कर माफी माँग रहा था।

मैं- “क्या हुवा?” मैंने वहां पहले से ही खड़ी एक लड़की को पूछा।

वो लड़की कोई जवाब दे उसके पहले ही रीता बोल पड़ी- “ये तो विजय का हर रोज का लफड़ा है, बाप नंबरी तो बेटा दस नंबरी...” मैंने उसे चुप रहने का इशारा किया।

तभी एक लड़की जोरों से रोती हुई वहां आई और विजय के पैरों पर गिरकर कहने लगी- “प्लीज़्ज़... विजय छोड़ दो मेरे पापा को प्लीज़... गलती हो गई पापा से...” ।

रीता- “यार ये तो पिंकी है ना?” रीता ने मुझसे पूछा।

मैं- “हाँ, लगती तो वही है, पर वो तो विजय की खास फ्रेंड है ना?” मैंने कहा।

हमारी बात सुनकर वो लड़की ने कहा- “कल पिंकी से विजय ने कुछ बदसलूकी की होगी, तो पिंकी के पापा प्रिन्सिपल से शिकायत करने गये थे। जैसे ही पिंकी के पापा सर की केबिन से बाहर निकले कि विजय वहां आ गया और घसीटता हुवा यहां तक लाया और मारने लगा...” लड़की ने अपनी बात पूरी की।

तब रीता ने पूछा- “पर विजय को इतनी जल्दी कैसे मालूम पड़ गया की पिंकी के पापा उसकी शिकायत करने गये हैं?”

मैं- “चल छोड़... अपने को क्या?” कहते हुये मैंने रीता का हाथ पकड़ा और हम भीड़ से बाहर निकल गये।

विजय हमारी कालेज का स्टूडेंट प्लस गुंडा था। उसके पापा शहर के नामी राजकर्मी थे साथ में कालेज के ट्रस्टी भी थे, इसलिए कालेज में कोई विजय को कुछ नहीं कर सकता था। हर वक्त विजय लुच्चों के साथ घूमता हुवा कालेज में दादागिरी करता रहता था। अगर विजय किसी से डरता था तो सिर्फ मेरी हंटरवाली सहेली से डरता था।

कालेज के शुरुवाती दिनों में मैं और रीता कैंटीन में जा रहे थे तो उसने हमारा रास्ता रोक लिया। पर वो रीता को जानता नहीं था (उस वक़्त हम भी उसे जानते नहीं थे) वो कुछ ज्यादा करे उसके पहले रीता ने उसके गाल पे एक थप्पड़ मार दी। उस दिन से आज का दिन विजय ने हमारे सामने आँख उठाकर देखा तक नहीं था। उसके बाद मैं कभी-कभार रीता को उस लड़के के साथ बात करते देखती थी, जिसने उस दिन 500 का रिचार्ज करवा दिया था। जब भी रीता उससे मिलकर आती थी, तब बहुत ही खुश दिखती थी क्योंकी वो लड़का उसे हर बार 200-300 देता रहता था।

रीता आकर मुझे बताती तो मैं उसे डांटती- “क्यों लेती हो पैसे? तुम कह रही थी ना की मैं किसी भी लड़के से एक बार ही पैसे लेती हूँ, तो इससे क्यों ले रही हो? इसे भी सच-सच बता दो...”

रीता कहती- “मैंने उससे बताया की निशा तुमसे दोस्ती नहीं करना चाहती, तो कह रहा है की मुझे सिर्फ 5 मिनट मिला दो निशा से, और पैसे मैं नहीं मांगती वो खुद दे रहा है...”

मैं- “पर तुम क्यों लेती हो? ना भी बोल सकती हो ना?” मैंने चिढ़कर कहा।

पर मेरी बात का रीता पर कोई असर नहीं होता और वो बेशर्मी से हँसते हुये कहती- “आई हुई लक्ष्मी को कौन ठुकराएगा? पर लड़का दिल का अच्छा है, तुझे एक बार उससे मिलना चाहिए...”
 
तभी बेल बजी और मैं अतीत की यादों में से बाहर निकली। उठकर मैंने दरवाजा खोला, पर दरवाजे पर तो कोई नहीं था। मैंने बाहर निकलकर भी देखा की शायद कोई बेल बजाकर जा रहा हो, पर कोई नहीं था। मैं अंदर जाकर दरवाजा बंद कर ही रही थी की गुप्ता अंकल की आवाज आई- “कब आई बिटिया?"

मैं मन ही मन बोली- “साला बूढ़ा, आजकल बिटिया-बिटिया करने लगा है, पहले तो नहीं कहता था...”

मैंने चाचा को कहा- “आज ही आई, ये बेल किसने बजाई अंकल?"

अंकल- “मैंने...” अंकल ने कहा।

मैं- “आपने, क्यों?” मैंने पूछने में गलती कर दी।

अंकल- “वाह री बिटिया, और कोई बजाए तो कुछ नहीं बोलती और हम बजाएं तो आँखें निकालती हो। हम बजाये तब दूसरे के जितना मजा नहीं आता क्या?”

साला हरामी हर बार डबल मीनिंग में बोलता रहता है। गुस्सा तो मुझे बहुत आया पर मैंने दिमाग को ठंडा रखते हुये कहा- “अंकल ऐसी बात मत कीजिए, नहीं तो मुझे आपके बारे में आंटी से बात करनी पड़ेगी...”

अंकल- “क्यों क्या बात करोगी आंटी से की मैं बजाता हूँ..”

मैंने अंकल की बात पूरी हो उसके पहले ही जोर से दरवाजा बंद कर दिया।

बाहर से अंकल की आवाज आ रही थी- “बिटिया, हम कुछ भी करें तुम्हें पसंद ही नहीं आता। मैं बजाऊँ या और कोई बजाए, ये बेल की आवाज की तरह मजा तो एक सरीखा ही आता है...”

मैं- “साला हरामी बूढ़ा...” कहते हुये मैं बेडरूम में जाकर बेड पे लेटकर फिर से पुरानी यादों में खो गई।

आज कालेज का आखिरी दिन था, ज्यादातर दोस्त आज के बाद दो महीने बाद मिलने वाले थे, और लास्ट साल वाले तो फिर कब मिलेंगे वो किश्मत के आधीन था। लेकिन मैं और रीता तो छुट्टयों में भी हर रोज मिलते थे।

आज सुबह से रीता एक ही रट लगाए बैठी थी की मैं उस लड़के से मिलू, वो मुझसे 5 मिनट के लिए मिलना चाहता है। बहुत बहस के बाद मैं रीता की बात मानकर उस लड़के से मिलने को तैयार हो गई।

मैं- “मुझे उसका नाम भी नहीं पता...” मैंने रीता से कहा।

रीता- “विकास नाम है, तुमने पूछा नहीं और मैंने बताया नहीं तो तुझे कैसे पता होगा?”

मैं- “बुला लो उसको, 5 मिनट बात कर लेती हूँ मैं..” मैं जल्दी-जल्दी बात को खतम करना चाहती थी।

रीता- “उसने 3:30 बजे बोला है...” रीता ने कहा।

मैं रीता की बात सुनकर चौंक गई- “3:30 बजे क्यों? उस वक़्त तो कालेज भी बंद हो गया होगा, और मैं कहीं बाहर नहीं मिलूंगी..."

रीता मेरी बात सुनकर हँसने लगी- “तुम तो यार बहनजी ही रह गई, विकास तुम्हें अभी ही मिल लेता, पर उसको किसी अर्जेंट काम से जाना पड़ा और वो तुम्हें यहां ही मिलने आ रहा है...”

फिर भी मेरे दिल ने सांसें नहीं छोड़ी- “3:30 बजे तो कालेज बंद हो जाएगा ना?"

मुझे जवाब देते-देते रीता थक गई थी, उसने मुझसे हाथ जोड़ते हुये कहा- “मेरी माँ कालेज के पीछे वाली जगह पर मिलना है, और वहां छोटा गेट है जहां से कूदकर हम बाहर निकल सकते हैं...”
 
मेरी शंका अब भी खतम नहीं हुई थी। पर मैंने और ज्यादा पूछना ठीक नहीं समझा तो मैं चुप हो गई। 3:00 बजे गये, पूरा कालेज खाली हो गया। मैं और रीता कालेज के पीछे वाले हिस्से में जाकर बैठे, वहां खास कोई आता जाता नहीं था। पहले तो वहां गार्डन बनाया हुवा था। पर ठीक तरह से मेंटिनेंस न करने की वजह से । जंगल जैसा लगने लगा था, टूटे हुये बेंचेस, कुर्सियां और ब्लैकबोई एक कोन में रखे हुये थे।

रीता- “विकास आएगा तो मैं वहां सामने चली जाऊँगी। निशा, वो तुमसे अकेले में बात करना चाहता है...” रीता ने कहा।

रीता की बात मुझे पसंद नहीं आई- “मैं अकेले में बात नहीं करूंगी, तुम कहीं गई ना तो मैं चली जाऊँगी...” मैंने रीता को धमकी दी।

रीता- “तुम्हें मुझ पर विस्वास है की नहीं? विकास ने मुझे पैसे दिए, इसलिए मैं उसकी तरफदारी नहीं कर रही, वो मुझे अच्छा लगा इसलिए तुम्हें मिलने को कहा और तुम्हें जाना है तो तुम जा सकती हो...” रीता ने कहा।

मुझे भी लगा की मैं बात को ज्यादा ही सियरियस ले रही हैं। मैंने बोलना बंद कर दिया और विकास की राह देखने लगी।

रीता- “विकास आ रहा है निशा...”

ने गेट की तरफ देखा, तो विकास जीन्स और टी-शर्ट में आ रहा था। रीता जाने लगी तो मैंने उससे कहाविकास को बोलकर जाना, 5 मिनट मतलब, 5 मिनट ही..."

रीता कुछ भी जवाब दिए बगैर चली गई और पेड़ के पीछे जाकर बैठ गई। विकास मेरे करीब आ गया। मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा, मैं पहली बार किसी लड़के को अकेले में मिल रही थी।

विकास ने हाथ आगे बढ़ाया और कहा- “आज का दिन मेरी जिंदगी का सबसे हसीन दिन है...”

मैं विकास से हाथ मिलना नहीं चाहती थी पर उसकी आवाज में कोई जादू था। मैंने मेरा हाथ आगे करके मिलाया।

विकास- “निशा तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो, मुझसे शादी करोगी?”

विकास की बात सुनकर मेरा दिल इतनी जोर से धड़कने लगा की मुझे लगा की कहीं मेरा सीना फट ना जाए।

मैंने सोचा भी नहीं था की ये लड़का इस तरह से सीधा अपने दिल की बात करेगा। मैंने तो सोचा था की वो

कहेगा की मुझसे दोस्ती कर लो और मैं ना बोलकर निकल जाऊँगी, पर यहां तो उल्टा हुवा। मैं उसका दिल नहीं तोड़ना चाहती थी थोड़ा सोचकर बोली- “तुम बहुत अच्छे इंसान हो, जो भी लड़की तुमसे शादी करेगी वो खुश रहेगी। पर मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती...”

विकास- “क्यों, तुम किसी और से प्यार करती हो?” विकास ने पूछा।

मैं- “नहीं, मैं किसी से प्यार नहीं करती..” मैंने कहा।

विकास- “तो फिर क्यों ना बोल रही हो?” विकास की आवाज थोड़ी ऊंची हो रही थी।

पर मैंने शांति से कहा- “वो मैं अभी शादी नहीं करना चाहती...”

मेरी बात सुनकर विकास मेरे करीब आया और बोला- “मैं राह देगा, बस तुम सिर्फ हाँ बोल दो...”

मुझे अब उससे डर लगने लगा था- “मुझे जाना है मैं जा रही हूँ..” कहकर मैं वहां से निकलने लगी।

विकास ने मेरा हाथ पकड़ लिया- “मुझे जवाब देकर जाओ, ऐसे कैसे जा सकती हो?”

मैंने उसके हाथ से मेरा हाथ छुड़ाने की नाकाम कोशिश करते हुये कहा- “मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती,मुझे जाने दो..."

विकास मेरे करीब आ गया और मुझे बाहों में लेकर बोला- “शादी नहीं करना चाहती हो तो सुहागरात मनाते हैं, चलो अपने कपड़े निकालो..."
उसकी बात सुनकर मैं उसके सीने पे मारते हुये चिल्लाने लगी- “रीता, रीता..”
 
मेरी बात सुनकर रीता ने पेड़ के पीछे से निकलकर हमारी तरफ दौड़ लगाई। पर कहीं से दो लड़के आए और रीता को पकड़कर हमारी तरफ घसीटते हुये लाए। मैं बहुत डर गई और जोर-जोर से रोने लगी।

रीता दोनों लड़कों से अपने आपको छुड़ाने की नाकाम कोशिश करते विकास को गालियां बोलने लगीविस्वाशघात किया है तुमने मेरे साथ, हम लोगों को छोड़ दे, मेरे भैया पोलिस में हैं, उन्हें मालूम पड़ेगा तो तेरी चमड़ी उतार लेंगे...”

तभी पीछे से कोई आया और उसने रीता के चेहरे पे थप्पड़ मारा।

मैंने रोते हुये उस तरफ देखा तो वो विजय था।

विजय- “हरामजादी, उसने कुछ नहीं किया, जो किया वो मैंने किया है...” विजय ने गुस्से से कहा।

मैंने भी अब अपने आपको थोड़ा संभाल लिया था। मैंने नजरें उठाकर चारों तरफ नजर घुमाई, तो रीता को थप्पड़ जोरों से पड़ा हुवा लगता था, उसके होंठों के कोने से खून निकला हवा था। रीता को जिन लड़कों ने पकड़ा हुवा था, वो शायद हमारे कालेज के नहीं थे। विकास ने मेरे दोनों हाथों को कलाई से मरोड़कर पीछे से खींचकर मुझे पकड़ा हुवा था। मैंने विजय की तरफ देखा, उसके पीछे हमारी कालेज का पियून (नरेश) था। जो बेहद ही निक्कमा और जलील इंसान था, और देखने में कोई गुंडा जैसा दिखता था। उसे कालेज से क्यों नहीं निकालते थे, वो भी हमें आज समझ में आ गया था।

विजय को देखने के बाद रीता ठंडी हो गई थी। रीता ने नर्मी से कहा- “प्लीज़... हमें छोड़ दो, हमने तेरा क्या बिगाड़ा है?”

विजय जोर-जोर से हँसने लगा और फिर बोला- “तू भूल गई होगी, पर मैं अभी तक नहीं भूला तुम्हारे थप्पड़ को। साली मादरचोद, कालेज में किसी की हिम्मत नहीं है मेरे सामने बोलने की और तुमने थप्पड़ मार दिया,
और अब छोड़ने की नहीं चोदने की बात होगी। आज के बाद तुम दोनों मेरी रंडियां बनकर रहोगी...” कहते हुये। विजय ने रीता को बालों से पकड़कर उसे नजदीक खींचा और फिर रीता के होंठों से लगे खून को जीभ से चाटने लगा।

मैं रीता को जहां तक जानती थी, उस हिसाब से मुझे लग रहा था की वो विजय पे हमला कर देगी, पर मेरी सोच गलत निकली। विजय जब उसका खून चाट रहा था उस वक़्त रीता ने अपनी जीभ निकालकर विजय के गाल को चाटा।

रीता की इस हरकत से विजय तो क्या मैं भी सोच में पड़ गई की ये क्या कर रही है।

रीता ने मेरी तरफ देखकर मस्ती भरी आवाज में कहा- “चल निशा आज मोका मिला है, मजा ले लेते हैं...”

मैं रीता को जानती थी, वो हर मुशीबत में हिम्मत हारने वाली लड़की नहीं थी, वो कभी भी मुशीबतों के आगे घुटने टेकने वाली नहीं थी। उसने यहां से बाहर निकलने का रास्ता सोच लिया होगा। ये सब सोचकर मैं मुश्कुराई।

रीता- “विजय इन लोगों को बोलो ना की हमारे हाथ छोड़ दें, हम दोनों तैयार हैं मौज मस्ती के लिए..” रीता ने विजय को कहा।

वो लोग थोड़ा भी सोचते ना तो शायद समझ जाते की रीता नाटक कर रही है। पर है ये मर्द जात, हम औरतें थोड़े भी लटके झटके दिखा दें ना तो मर्दों का दिमाग काम करना बंद कर देता है, और वही उन लोगों के साथ हुवा।

विजय- “छोड़ दो यारों, लड़कियां राजी हैं तो हमें कहां जबरदस्ती करने का शौक है...” और विजय के कहने पर मुझे और रीता को छोड़ दिया गया।

मैंने मेरे दोनों हाथों को आगे करके जहां से पकड़ा था वहां पर सहलाया।

तभी विजय मेरी तरफ मुड़ा और नजदीक आकर बोला- “हे रसमलाई, तू भी तैयार है ना?”

मैंने रीता की तरफ देखा, उसने मुझे पाकेट की तरफ इशारा किया और मेरे दिमाग में बत्ती जली की किसी भी तरह अब रीता को मेसेज़ भेजना है। फिर तो भैया और ये मवाली, सबकी नानी याद दिला देंगे भैया। मैंने विजय के सामने देखा, थोड़ा मुश्कुराई और सिर हिलाकर हाँ कहा।।

विजय- “वाह भाई, आज तो अपनी निकल पड़ी, बहुत ठोकेंगे दोनों को..."

रीता को जिन लड़कों ने पकड़ा था उसमें से एक लड़के से कहा- “चुप भोसड़ी के...” कहते हुये विजय उसका चेहरा मेरे चहरे के बिल्कुल करीब लाकर बोला- “मेरा लौड़ा बाहर निकाल...”
 
रीता को जिन लड़कों ने पकड़ा था उसमें से एक लड़के से कहा- “चुप भोसड़ी के...” कहते हुये विजय उसका चेहरा मेरे चहरे के बिल्कुल करीब लाकर बोला- “मेरा लौड़ा बाहर निकाल...”

उसकी बात सुनकर मैं एक ही सेकेंड में पसीने से तरबतर हो गई, मेरा गला सूखने लगा। जी करता था की यहां से भाग जाऊँ, पर भागना नामुमकिन था। मैंने रीता की तरफ देखा तो उसने पलकें झपका के समझाया- “वो जो चाहता है वो कर..."

विजय- “आइ छम्मकछल्लो, उसके सामने क्या देख रही है, उसकी भी बारी आएगी..." विजय ने मेरा हाथ पकड़कर उसके पैंट के उभार पर रखते हुये कहा।

मैंने खड़े-खड़े ही विजय के पैंट की बक्कल को खोलना चाहा।
तो विजय ने मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा- “चैन खोलकर निकाल...”

मैंने उसके पैंट की चैन खोली, वहां जितने भी आदमी खड़े था उन सबके मुँह से लार टपकने लगी थी। मैंने मेरी उंगलियां उसके पैंट के अंदर डाली।

विजय- “क्यों तड़पा रही है, जल्दी से पकड़ ना...” विजय ने आहें भरते हुये कहा।

मैंने फौरन पूरा हाथ अंदर डाला और अंडरवेर को नीचे करके उसका लिंग बाहर निकाला। हम दोनों ही खड़े थे इसलिए उसका लिंग मुझे दिखाई नहीं दे रहा था। पर उसका अहसास इतनी टेन्शन में भी मुझे रोमांचित कर रहा था।

नरेश- “साहेब इस लौंडिया के हाथ में मेरा दू?" नरेश ने रीता की तरफ हाथ करके पूछा।

विजय- “साले क्या जल्दी है तेरे को, जा बोतल ला..." विजय मेरे गले पर उंगली से 'वी' लिखते हुये बोला और फिर बार-बार वोही करने लगा।

नरेश ने उन दो लड़कों को पूछा- “शराब कहां है?”

लड़के ने कहा- “लाना भूल गया...” एक लड़के ने गंभीर होते हुये कहा

विजय- “तेरी माँ की चूत, तेरा बाप लेकर आने वाला था जो तू भूल गया। जा लेकर आ...” विजय ने गुस्से से कहा।

वो लड़का इतना हसीन माहौल छोड़कर जाना तो नहीं चाहता था, पर बेचारा क्या करता? वो दारू लेने गया।

तब विजय ने दूसरे लड़के को भी साथ में भेज दिया- “तू भी जा, कुछ खाना लेकर आ जा...”

वो दोनों बाइक लेकर निकल गये। उन लोगों के जाने के बाद विजय मुझे छोड़कर रीता के पास गया और उसे बाहों में लेकर उसके होंठों को चूमने लगा। रीता भी उसे बहुत ही अच्छे तरीके से जवाब दे रही थी। विजय ने रीता का हाथ पकड़कर उसके हाथ में लिंग पकड़ा दिया।

नरेश- “साहेब इसको तो पकडू ना?" नरेश ने फिर से पूछा।

विजय- “चूतिए तुझे बहुत जल्दी है, जा पकड़ ले, तू भी क्या याद करेगा?” विजय दरियादिली दिखाते हुये बोला।

पर मेरा टेन्शन और बढ़ गया। मैंने रीता और विजय की तरफ देखा तो वो दोनों एक दूसरे में मसगूल हो गये थे, दोनों एक दूसरे की गर्दन पे किस करते हुये एक दूसरे में समाने की कोशिश कर रहे थे। मुझे रीता पर बहुत गुस्सा आया की वो जिसके साथ कर रही है, उसमें ना मर्जी होने से शायद मजा नहीं आता होगा पर और कोई परेशानी तो नहीं।

नरेश मेरे नजदीक आया और मुझे बाहों में जकड़कर बोला- “मेरा भी लौड़ा निकालो ना, मेडम...”

मैंने उसके पैंट की चैन खोलकर अंदर हाथ डाला और उसका लिंग बाहर निकाला। उस वक़्त मेरा चेहरा विकास की तरफ था। वो अभी तक कुछ भी बोला नहीं था। हम दोनों की नजरें मिली तो उसने अपनी गर्दन झुका ली। इतनी टेन्शन में भी मुझे इतना पता तो चल ही गया की नरेश का लिंग विजय के लिंग से बड़ा है।

नरेश- “मेडम आप लौड़ा पकड़ने में मास्टर हो..." नरेश ने गंदी तरह से हँसते हुये कहा।

सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने जिस मुठ्ठी में उसका लिंग था वो जोरों से दबाया।

नरेश- “भाई ये तो जितनी चिकनी है उससे भी ज्यादा गरम है। मेरा लौड़ा दबाकर कह रही है की मुझे चोदो...” नरेश ने विजय को कहा।

विजय- “भोसड़ी के जो भी करना, वो ऊपर-ऊपर से करना, दोनों को पहले मैं ही चोदूंगा..."

विजय की बात सुनकर नरेश का जोश थोड़ा कम हो गया। वो कपड़ों के साथ ही मेरे उरोजों को दबाने लगा।
 
विजय ने भी रीता के कपड़े नहीं निकलवाए थे, उसने एक हाथ रीता की जीन्स के अंदर डाला हुवा था, और दूसरे हाथ की उंगली रीता के मुँह के अंदर डाल दी थी, जिसे रीता चूसते हुये सिसकारियां ले रही थी।

विकास- “भाई, वो लोग अभी तक नहीं आए बहुत देर कर दी...” विकास ने कहा।

विजय- “आते होंगे, तू क्यों अकेला खड़ा है? जो पसंद है उसके साथ चिपक जा...” विजय ने रीता को जमीन पर बिठाते हुये कहा।

उधर रीता जमीन पर बैठकर विजय का लिंग सहलाने लगी।

ये देखकर मुझे बहुत टेन्शन होने लगी की कहीं नरेश भी मुझे जमीन पर बैठने को न कहे। नरेश मेरी टी-शर्ट को ऊपर करके मेरी ब्रा को निकालने की कोशिश करने लगा। पर वो इस बात में अनाड़ी था, उससे ब्रा खुली नहीं तो उसने भी मुझे जमीन पर बैठने को कहा।

मेरे पास और कोई रास्ता तो था नहीं। मैं जैसे ही जमीन पर बैठने को झुकी तो विजय की आवाज आई- “आइ मेरी रसमलाई, तू भी यहां आ जा.."

विजय की बात सुनकर में ऐसे दौड़ी, जैसे जन्मों-जन्मों से उसकी राह देख रही थी।

उस वक़्त नरेश का मुँह देखने लायक था। उसका चेहरा गुस्से से काले से लाल हो गया था और अगर विजय की जगह और कोई होता तो वो शायद उसका खून कर देता।

मैं विजय के पास गई तो उसने एक हाथ आगे करके मुझे अपनी बाहों में ले लिया। मैंने रीता को देखा तो मेरी आँखें फट गई। रीता विजय का लिंग चूस रही थी। विजय मेरे होंठों को चूसने लगा। पूरा माहौल गरम हो गया था। विजय मुझे किस करते हुये मेरे पूरे शरीर का जायजा ले रहा था, 2-3 मिनट में मेरे बदन का कोई ऐसा हिस्सा नहीं रहा, जिसे उसने सहलाया न हो। मैं भी गरम हो गई थी। विजय ने थोड़ी देर मुझे किस करके जमीन पर बैठने को कहा।

तभी वो लड़के आए, जो दारू और खाना लेने गये थे। लड़के बाइक फुल स्पीड से लेकर आ रहे थे तो मैं और रीता डरकर मारे विजय से अलग हो गई, और लड़के ने बाइक उसके पैरों के पास लाकर खड़ी कर दी।

विजय- “अबे साले मादरचोद मेरा पैर तोड़ेगा?” विजय गुस्से से चिल्लाया।

पर उसकी बात अधूरी रह गई। उसके गाल पर एक जोरों का थप्पड़ पड़ा। हमने देखा तो वो अमित भैया थे और वो बाइक की पीछे की सीट पर बैठे हुये थे। पीछे-पीछे ही पोलिस की जीप आ गई। जीप के अंदर पहले से ही वो लड़का बैठा हुवा था, जो खाना लेने गया था। फिर पोलिस वालों के साथ मिलकर भैया ने सबको जीप में बैठा दिया। जीप की बाहर की सीट पर विजय बैठा था। भैया एक कांस्टेबल को लेकर पूरी जगह को चेक करने गये।

तब विजय रीता को डांटने लगा- “चूतमरानी, तू ही कोई गेम खेल गई। आज तो बच गई, पर अभी जिंदगी कहां खतम हुई है, फिर मिलेंगे...” विजय बोला तो धीरे-धीरे, फिर भी भैया ने सुन लिया।

भैया विजय को शर्ट से पकड़कर जीप में से नीचे उतारकर मारने लगे। जब तक भैया का हाथ दुखने ना लगा, तब तक उन्होंने विजय की पिटाई की और फिर विजय को जीप में डालकर भैया ने हमें घर छोड़ दिया।

दूसरे दिन मैं रीता के घर गई, मैंने पूछा- “कल भी मेसेज भेजा था क्या?”

रीता- “हाँ, मेरी भोली बहना, कल भी वोही किया था...”

मेरे पास कल की घटना के बाद कुछ सवाल खड़े हो गये थे। फिर मैंने रीता से पूछा- “तो फिर इतनी देर क्यों लगाई आने में?”

रीता ने बहुत ही लंबा जवाब दिया- “भैया तो कब के आ गये थे, पर कालेज को बंद देखकर उन्हें ज्यादा गड़बड़ लगी तो उन्होंने पोलिस वैन भी मंगा ली, और फिर वो लड़के मिल गये। 2-4 थप्पड़ लगाये तो सब सच बोल गये। फिर तो भैया उसके पीछे ही बैठकर आ गये...”

मैं- “थॅंक्स गोड कल भैया समय से आ गये, नहीं तो हम दोनों तो बहक गई थी...” मैंने रीता से हँसते हुये कहा।

रीता- “ऐसे कैसे नहीं आते, आखिर भैया किसके हैं?” रीता अपने असली मूड में आते हुये बोली।

मैं- “पर किसी को बताना नहीं, कोई सुनेगा तो हमारी बदनामी होगी...” मैंने रीता को कहा।

रीता- “पागल हो गई है क्या? ये कोई बताने की बात थोड़ी है...”

उसके बाद एक बार मुझे रीता ने बताया था की विजय को कोई खास सजा नहीं हुई थी, और फिर वो दुबई चला गया था। और आज इतने सालों बाद वो फिर से रीता को मिला था। मेरा दिल किसी अंजान भय से धड़क उठा। तभी मोबाइल की रिंग बजी और मैं मेरी पुरानी यादों में से बाहर आई और मोबाइल उठाकर देखा तो कोई नया नंबर था। मैंने उठाया
तब किसी ने भारी आवाज में पूछा- “तुझे आज रात को आकाश होटेल में कमरा नंबर 5 में जाना है...”
 
उसके बाद एक बार मुझे रीता ने बताया था की विजय को कोई खास सजा नहीं हुई थी, और फिर वो दुबई चला गया था। और आज इतने सालों बाद वो फिर से रीता को मिला था। मेरा दिल किसी अंजान भय से धड़क उठा। तभी मोबाइल की रिंग बजी और मैं मेरी पुरानी यादों में से बाहर आई और मोबाइल उठाकर देखा तो कोई नया नंबर था। मैंने उठाया
तब किसी ने भारी आवाज में पूछा- “तुझे आज रात को आकाश होटेल में कमरा नंबर 5 में जाना है...”
मुझे गुस्सा तो बहुत आया पर फोन पे क्या कर सकते हैं? और मैं बात को लंबी खींचना भी नहीं चाहती थी तो मैंने 'रांग नंबर' कहकर फोन काट दिया।

शाम की रसोई बनाते हुये मैं मम्मी-पापा के बारे में सोच रही थी। मुझे किसी भी तरह उन्हें पैसे देने थे। नीरव से तो रात को बात करनी ही है, पर मेरे जेठ और ससुर नहीं मानेंगे। मैंने जीजू से भी बात करने का सोचा, फिर सोचा अभी-अभी तो जीजू के साथ के रिस्ते में थोड़ा सुधार आया है और पैसे माँगेंगे तो फिर से कोई प्राब्लम हो। जाएगी तो? नहीं नहीं... जीजू से तो बात ही नहीं करना चाहिए। और कोई रिश्तेदार हमारी मदद करे ऐसी स्थिति में नहीं था। बहुत सोचने के बाद मैंने फाइनल किया की आज रात नीरव से बात करनी ही पड़ेगी।

नीरव घर आया तब तक मैंने उसकी मनपसंद चीजें बना ली थी। पाव-भाजी उसकी सबसे फेवरिट आइटम थी। साथ में मैंने गाजर का हलवा भी बनाया हुवा था, जो उसे बहुत पसंद था। खाना खाते वक़्त वो मेरी रसोई की तारीफ करता गया और खाता गया। खाना खाकर मैंने बर्तन मांजे, सफाई की और नहाने चली गई। मैं नहाकर बेडरूम में गई, तब बेड पर बैठकर नीरव मोबाइल में गेम खेल रहा था। मैं बाथरूम में से बाहर सिर्फ तौलिया में आई थी।

मैं नीरव के पास बैठ गई- "नीरव, मम्मी-पापा को पैसे की कुछ ज्यादा ही तकलीफ है...”

नीरव मोबाइल में देखते हुये बोला- “तो हम क्या करें निशु? मैं भी तुम्हारे मम्मी-पापा की मदद करना चाहता हूँ, पर तू तो जानती है हमारे घर वालों को...”

मैंने नीरव के पायजामे में हाथ डालकर लिंग पकड़ा और बोली- “तुम्हारा कोई हक नहीं बनता की तुम अपनी । मर्जी से कुछ कर सको? तुम वहां नौकरी तो नहीं करते, तुम भी तो मलिक ही हो...” नीरव को मैं किसी भी तरह उकसाना चाहती थी पर यहां तो पत्थर पे पानी था।

नीरव- “निशु, तुम सही हो पर घर के अंदर ही लड़ाई करके क्या फायदा?”
मैंने कोई जवाब दिये बगैर नीरव का पायजामा निकाल दिया, और उसका लिंग मुँह में लेकर चूसने लगी।

नीरव आँखें बंद करके सिसकने लगा। उसने मेरा तौलिया खींच लिया और फिर वो हाथ को नीचे करके मेरे उरोजों को सहलाने लगा, बीच-बीच मेरे बालों को भी सहलाता रहता था। मैंने उसके लिंग 5-6 बार अंदर-बाहर किया तो वो जोर-जोर से सांसें लेने लगा और बोला- “निशु मुँह में से निकाल दो, मेरा निकलने वाला है...”

मैंने उसकी कोई बात नहीं सुनी और चूसती रही।

नीरव- “ऊऊऊ... निशु...” कहते हुये नीरव मेरे मुँह में ही झड़ गया।

मैंने नीरव के सामने अपना मुँह खोला और वीर्य दिखाया और फिर गटक गई। मैंने ऐसा ब्लू-फिल्मों में देखा था। नीरव मुझे आँखें फाड़कर ऐसे देख रहा था की जैसे मैं उसकी पत्नी नहीं और कोई हूँ।
मैं- “नीरव प्लीज़... एक-दो दिन में कुछ पैसों का इंतजाम कर दो ना...”

नीरव ने मेरी बात सुनकर 'हाँ' में सिर हिलाया और फिर सोने की कोशिश करने लगा। मैं बाथरूम में से मुँह साफ करके आई, तब तक तो वो सो भी गया था।

दूसरे दिन रात को खाना खाते हुये नीरव ने मुझे बताया- “मैंने तुम्हारे पापा को बीस हजार रूपए भेज दिए हैं.”

नीरव की बात सुनकर मैं खुश हो गई- “पापा (मेरे ससुर) को कैसे मनाया?”

मेरी बात सुनकर नीरव सोच में पड़ गया और थोड़ी देर बाद बोला- “पापा से नहीं लिए, एक फ्रेंड से लिए हैं। पापा से मांगने से वो देने वाले थे नहीं, इसलिए मैंने उनसे बात ही नहीं की...”

नीरव की बात सुनकर मुझे बहुत बुरा लगा, कहा- “कोशिश तो करनी थी, ना बोलते तो क्या फर्क पड़ता?”

नीरव को मेरी बात पसंद नहीं आई- “छोड़ ना निशु, मैंने तो दिए ना पैसे तेरे पापा को, कहां से लाया उसका टेन्शन तुम क्यों कर रही हो?” नीरव चिढ़ते हुये बोला।

तब मैंने बात को खींचना ठीक नहीं समझा, कहा- “ओके बाबा, अब नहीं पूछूगी...” कहते हुये मैंने नीरव के गाल पर किस किया।

सब काम निपटाकर मैं रूम में गई। तब तक तो नीरव सो भी गया था। मैं भी उसके बाजू में लेट गई, और 1015 मिनट हुई होगी कि करण आ गया। उसने बेडरूम के दरवाजे के पास खड़े रहकर मुझे बाहर आने का इशारा किया। मैंने नीरव की तरफ देखा वो गहरी नींद में था। मैं उठकर बाहर आई तो करण सोफे पर बैठा था।

मैंने उसके पास जाकर बैठते हुये पूछा- “इस वक़्त क्यों आए? नीरव घर में है...”

करण ने मेरा हाथ उसके हाथ में लेते हुये कहा- “तुम्हारी बहुत याद आ रही थी...”

मैं- “झूठे... तो फिर इतने दिन बाद क्यों आए?” मैंने उसके कंधे पर सिर रखते हुये पूछा।

करण- “तुमने ही तो बोला था ना। कभी मत आना ऐसा भी तो कहा था...” करण ने कहा।
 
करण ने मेरा हाथ उसके हाथ में लेते हुये कहा- “तुम्हारी बहुत याद आ रही थी...”

मैं- “झूठे... तो फिर इतने दिन बाद क्यों आए?” मैंने उसके कंधे पर सिर रखते हुये पूछा।

करण- “तुमने ही तो बोला था ना। कभी मत आना ऐसा भी तो कहा था...” करण ने कहा।

मैं- “तो फिर क्यों आए?” मैंने पूछा।

करण- “तुम्हारी याद आ गई इसलिए..” करण ने मेरे बालों को सहलाते हुये कहा।

मैं- “इतने दिनों बाद याद आई मेरी..” मैंने दुखी मन से पूछा।

करण- “तुम भी कहां मुझे याद करती थी। पूरा दिन जीजू के बारे में ही सोचती थी...”

करण की बात सुनकर मैं हँस पड़ी और बोली- “लगता है तुम्हें जलन हो रही है जीजू से...”

करण- “मुझे क्यों जलन होगी? मैं तो उस दिन भी तुम्हें कहता था की रामू ने जो तुम्हारे साथ किया उसमें तुम्हारी थोड़ी बहुत मर्जी भी थी। उस दिन तुम नहीं मान रही थी, पर आज तो सच सामने आ ही गया। जीजू के साथ तुम सोई उसमें तो तुम्हारी मर्जी थी...” करण ने मेरी जांघ को सहलाते हुये कहा।

मैं- “मैं दीदी को घर लाने के लिए सोई थी, कोई मजा लेने के लिए नहीं समझे? और तुम्हें ऐसी ही बातें करनी हो तो मुझसे मिलने मत आओ..."

करण- “तो फिर जीजू के सपने क्यों देख रही थी? सच तो यही है निशा की तुम्हें नीरव संतुष्ट नहीं कर पा रहा, चाहे तुम कबूलो या ना कबूलो?"

नीरव की उंगलियां मेरी योनि को छेड़ रही थीं।

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मैं- “नहीं करण ऐसी बात नहीं है। तुमने आज देखा नहीं, मैंने कल ही बोला था और आज ही नीरव ने मेरे पापा को पैसे भेज भी दिए...” मैं आँखें बंद करके बोली। करण मेरी योनि में उंगली अंदर-बाहर कर रहा था, मेरी योनि कामरस से गीली हो गई थी।

करण- “मेरी जान, इस वक़्त भी तेरी चूत गीली हो गई है। उसे एक फौलादी लण्ड की जरूरत है, जो नीरव के पास नहीं है। नीरव तुम्हारी हर इच्छा चाहे छोटी हो या बड़ी, वो पूरी करता है। पर तुम्हारे शरीर की जो भूख है, वो पूरी नहीं कर पा रहा। आओ निशा मेरी बाहों में आ जाओ, मैं तुम्हारी वासना को शांत कर दें, तुम्हारे अंदर लगी हुई आग को ठंडा कर दें...” कहते हुये करण ने अपने दोनों हाथों को फैलाया।

मैंने आँखें खोली और करण से लिपटकर उसके होंठों पर मेरे होंठ रख दिए। हम दोनों एक दूसरे के होंठों को चूमने लगे। किस करते-करते करण ने मेरी नाइटी गर्दन तक ऊपर कर दी। फिर वो किस करना छोड़कर मेरे उरोजों को चूसने लगा। मैंने उसके हाथों से नाइटी ले ली, और हाथ ऊपर करके निकाल दी। मेरे हाथ ऊपर करते ही मेरे उरोज खिंचे और उसके साथ निप्पल भी ऊपर उठे। उसके मुँह में मेरी दाईं निप्पल थी, जिस पर उसका दांत लग गया। मेरे मुँह से धीमी सी सिसकारी निकल गई।

करण ने मेरे होंठों पर अपनी उंगली रख दी, और खड़ा हो गया- “धीरे से जान, नीरव अंदर सो रहा है...” कहते हये करण अपने कपड़े निकालने लगा।

करण कपड़े निकालकर फिर से मेरे उरोजों को बारी-बारी चूसने लगा। थोड़ी देर चूसने के बाद मैंने करण को धक्का दिया और सोफे पे गिराकर उसपर चढ़ गई और झुक के उसके कान की लौ को मुँह में ले लिया और धीरे से काटा।

मेरे काटते ही करण ने मेरी बाई उरोज को जोर से दबाया। दबाने से दर्द तो हुवा पर मीठा दर्द हुवा, जो मुझे अच्छा लगा। मैंने नीचे झुक के उसके निप्पल को लेकर उसे भी काटा। करण ने जोरों से मेरे चूतड़ों पर मारा। फिर तो थोड़ी देर हम दोनों यही करते रहे। मैं उसके शरीर के अलग-अलग हिस्से को काटती रही और वो मेरे चूतड़ों पर मारता रहा।

बहुत मजा आया मुझे और इस नये खेल से मेरी योनि को कुछ ज्यादा ही उसके लिंग की जरूरत महसूस होने लगी। वो मेरी दोनों टांगों के बीच आ गया और मेरी योनि पर उसने लिंग रखकर धक्का मारा। मैंने मेरे होंठों को दबाकर रखा था कि कहीं दर्द से चीख न निकल जाय, और नीरव कहीं जाग न जाय। पर मेरी योनि में उसके लिंग के प्रवेश से मेरे शरीर में दर्द की जगह वासना की आग बढ़ गई। मैंने मेरी टाँगें उठाकर उसकी कमर पर रख दीं, और उसकी ताल से ताल मिलाने लगी। उसके लिंग की मार से मेरी योनि ज्यादा से ज्यादा गीली होती जा रही थी।
 
मैं करण की नंगी पीठ को बाहों में लेकर हाथों से सहला रही थी। करण चूतड़ उठा-उठाकर मेरी योनि में लिंग अंदर-बाहर कर रहा था और उसके हर फटके से मैं मेरी मंजिल के करीब जा रही थी। करण भी धीरे-धीरे करके स्पीड बढ़ा रहा था। थोड़ी देर बाद मुझे लगा की मैं अब झड़ने वाली हैं, तो मैंने करण के बाजुओं को जोर से । पकड़ लिया। मेरी सांसें भारी हो गई और मेरे पैरों को जमीन पर खींचते हुये मैं झड़ गई। मेरे झड़ते ही मैं मेरी आँखें बंद करके परमसुख में खो गई। थोड़ी देर ऐसे ही सोने के बाद मैंने आँखें खोली तो करण चला गया था, और मेरा हाथ मेरी पैंटी में था।

दूसरे दिन दोपहर को रामू घर का काम करके गया। उसके बाद मुझे बाजार जाना था तो मैं थोड़ी देर सोकर जाग गई, और 3:00 बजे घर से निकली। लिफ्ट बिगड़ी हुई थी तो मैं सीढ़ियां उतरने लगी। बिल्डिंग के नीचे पार्किंग की जगह में दीवार के पीछे एक रूम बनाई हुई थी, जहां रामू रहता था। वैसे तो वो वहां सिर्फ खाना ही बनाता था, सोता तो बाहर ही था।

मैं पार्किंग में पहँची, तभी किसी औरत की आवाज आई। उस आवाज से ऐसा लग रहा था की उस औरत को बहुत पीड़ा हो रही है। मैंने चारों तरफ देखा की कहां से आ रही है ये आवाज? पर कोई दिखाई नहीं दे रहा था। मैं निकलने ही वाली थी कि फिर से वही आवाज आई, पर इस बार मुझे लगा की आवाज रामू के रूम से आ रही है। मैं धीरे-धीरे रूम की तरफ गई, रूम का दरवाजा बंद था और कहीं खिड़की भी नहीं थी। मेरी आज शापिंग लिस्ट लंबी थी, इसलिए मैं आज जल्दी निकली थी। मैंने सोचा यहां समय बरबाद करूँगी तो देर हो जाएगी। मैं फिर से वहां से निकल पड़ी।

मैं थोड़ा ही आगे गई थी कि इस बार उसी औरत की हँसने की आवाज आई। मैं रुक गई, मेरी जिज्ञाशा जाग गई की अंदर कौन है? शायद रामू की बीवी वापिस आ गई हो? मैंने पीछे मुड़कर चारों तरफ से रूम चेक किया कि कहीं अंदर झांकने की जगह है की नहीं? रूम के पीछे की साइड पर एक रोशनदान था पर बहुत ही ऊँचा था। मैंने चारों तरफ नजर दौड़ाई की कुछ ऐसा मिल जाए जिसपर चढ़कर मैं रूम के अंदर देख सकें कि कौन है वो?

कुछ दिखाई नहीं दिया तो मैंने अपने आपको कहा- “छोड़ ना निशा, तुझे क्या काम है? रामू की बीवी आई होगी तो कल तो पता चल ही जाएगा..." बात तो सही थी। मुझे क्या मतलब था जो मैं रामू के रूम में झाकू? मैं वहां से थोड़ी आगे आई और मैंने लिफ्ट के पास पड़े स्टूल को देखा, जिस पर पूरा दिन रामू बैठा रहता है।

रामू वहां था नहीं, स्टूल ऐसे ही पड़ा था। स्टूल को देखकर मुझे रूम में कौन है वो देखने की इच्छा तीव्र हो गई। मैंने स्टूल उठाया और रोशनदान के नीचे रखा और ऊपर चढ़ गई। वहां से रूम के सामने की साइड ही मुझे दिखनी थी, पर शायद वहां जो हो रहा था वो देखना मेरी किश्मत में लिखा होगा। इसलिए अंदर जो लोग थे वो उसी साइड पे थे।

मैंने अंदर जो हो रहा था वो देखा तो मेरी धड़कनें तेज हो गईं, मेरी नशों में खून जोरों से दौड़ने लगा। वहां कोई मर्द और औरत संभोग कर रहे थे। औरत नीचे सोई हुई थी और मर्द उसपर लेटकर कर रहा था। मर्द के हर धक्के के बाद वो औरत सिसकारियां ले रही थी। मर्द का तो चेहरा नहीं दिखाई दे रहा था, पर उस औरत का थोड़ा बहुत चेहरा दिख रहा था। मैंने ध्यान से देखा तो वो कान्ता थी जो बिल्डिंग में 2-3 फ्लैट में काम करने को आती है, उसे सब तुलसी कहकर बुलाते हैं, क्योंकि वो अपने आपको स्मृती ईरानी समझती है।

कान्ता- “थोड़ा धीरे दबा रामू, बाद में दुखता है...” कान्ता ने कहा।

कान्ता की बात सुनकर मैं समझ गई की वो मर्द रामू है। रामू अंदर है ये पता चलने के बाद मुझे अंदर का । नजारा देखने का इंटरेस्ट बढ़ गया। उन लोगों की आवाज तो साफ-साफ आ रही थी पर जहां से मैं देख रही थी वहां से साफ-साफ नहीं दिख रहा था।

मैंने मेरे पैरों को पीछे से ऊंचा किया तो मैं थोड़ी ऊपर हुई और मुझे अंदर का थोड़ा ज्यादा दिखने लगा। रामू बहुत जोरों से कान्ता के साथ कर रहा था। रामू के भारी भरकम शरीर के पीछे कान्ता दिखती भी नहीं थी। कुछ दिखता था तो सिर्फ कान्ता का चेहरा दिखता था, जो देखकर ऐसा लगता था की वो कोई असीम सुख पा रही है।

ये सारा नजारा देखकर मेरा बदन जलने लगा, मेरा गला सूखने लगा।

कान्ता- “भड़वे धीरे कर ना... कितनी बार कहँ?” कान्ता की आवाज तो औरत की ही थी पर उसका भाषा प्रयोग किसी मर्द जैसा था।

रामू- “साली, छिनाल किसको भड़वा बोलती है तू?” कहते हुये रामू और जोर-जोर से कान्ता को ठोंकने लगा।

कान्ता- “तेरे को बोलती हूँ मैं, क्या कर लेगा? मेरा मर्द आएगा ना तो तेरी गाण्ड फाड़ देगा...” कान्ता ने कहा।

रामू- “तेरे मर्द का खड़ा होता तो साली तू क्यों मुझसे चूत मरवाने आती? आने दे तेरे मर्द को उसकी भी गाण्ड मारता हूँ.” रामू ने कहा और वो जोरों से कान्ता की योनि में उसके लिंग से प्रहार करने लगा। वो देखकर ऐसा लगता था जैसे रामू उसकी योनि के अंदर घुसना चाहता है।
 
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