Hindi Antarvasna - चुदासी - Page 3 - SexBaba
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Hindi Antarvasna - चुदासी

शाम को सब्जी लेकर आ रही थी, तब रामू लिफ्ट के पास बैठा बीड़ी पी रहा था। मैं जैसे ही लिफ्ट के पास पहुँची तो रामू ने उठकर लिफ्ट की जाली खोल दी। मैं उसके सामने देखे बगैर लिफ्ट में दाखिल हो गई।

रामू ने जाली बंद करते हुये पूछा- “कल से फिर काम पे आ जाऊँ मेमसाब?”

मैंने मुँह से कोई जवाब दिए बगैर “हाँ” में सिर हिलाया और तीसरे फ्लोर का बटन दबाया। दूसरे दिन रामू के आने से पहले मैंने साड़ी पहन ली, सामान्य तौर पर मैं घर में हमेशा गाउन ही पहनती हूँ, और जब तक राम् घर में काम करता रहा, तब तक मैं दरवाजा बंद करके बेडरूम में चली गई।

रामू ने काम खतम करते ही दरवाजे पर खटखट करके कहा- “मैं जा रहा हूँ मेमसाब, घर बंद कर लीजिए...”

उसके जाने के 5 मिनट बाद मैंने बाहर निकालकर दरवाजा बंद किया, फिर तो ये रूटीन हो गया। वो हर रोज आता तो मैं बेडरूम में चली जाती। जाते वक़्त वो कहकर जाता तो मैं बाहर जाकर दरवाजा बंद कर लेती। 15 दिन निकल गये, मैं थोड़ी नार्मल हो गई। पर अभी भी मैं रामू के सामने देखती नहीं थी। उसके घर में आते ही मैं नजरें नीची करके बेडरूम में चली जाती थी, और जाने के थोड़ी देर बाद ही बाहर निकलती थी। कभी कभार लिफ्ट के पास बैठे हुये मिल जाता तो मैं सीढ़ियां चढ़ जाती।

फिर आज का दिन बहुत ही खराब उगा। सुबह से आज कुछ अच्छा नहीं हो रहा था। और सुबह को जो हुवा ना... वो तो मेरी ही गलती थी और गलती भी कितनी बड़ी... किसी को पता चले तो मेरे बारे में कुछ भी सोच ले। मैं रसोई करते हुये सुबह जो हुवा उसके बारे में सोच रही थी।
 
उसके जाने के 5 मिनट बाद मैंने बाहर निकालकर दरवाजा बंद किया, फिर तो ये रूटीन हो गया। वो हर रोज आता तो मैं बेडरूम में चली जाती। जाते वक़्त वो कहकर जाता तो मैं बाहर जाकर दरवाजा बंद कर लेती। 15 दिन निकल गये, मैं थोड़ी नार्मल हो गई। पर अभी भी मैं रामू के सामने देखती नहीं थी। उसके घर में आते ही मैं नजरें नीची करके बेडरूम में चली जाती थी, और जाने के थोड़ी देर बाद ही बाहर निकलती थी। कभी कभार लिफ्ट के पास बैठे हुये मिल जाता तो मैं सीढ़ियां चढ़ जाती।

फिर आज का दिन बहुत ही खराब उगा। सुबह से आज कुछ अच्छा नहीं हो रहा था। और सुबह को जो हुवा ना... वो तो मेरी ही गलती थी और गलती भी कितनी बड़ी... किसी को पता चले तो मेरे बारे में कुछ भी सोच ले। मैं रसोई करते हुये सुबह जो हुवा उसके बारे में सोच रही थी।

सुबह हर रोज की तरह बेल बजते ही मैं दूध लेने गई। जल्दी-जल्दी में मैं गाउन पहनना भूल गई, और सिर्फ नाइटी, जो घुटने से 2" इंच ऊपर तक की ही है, पहनकर दरवाजा खोल दिया।

चाचा की आँखें फट गई, वो मुझे घूर-घूर के देख रहे थे। फिर भी मुझे मालूम न पड़ा की मैं आधी नंगी हूँ। मैंने चाचा को दूध लिखने का कार्ड दिया, तो वो उनके हाथों से गिर गया। गिर गया या गिरा दिया? उन्होंने झुक के कार्ड लेते समय मेरी नाइटी पकड़ ली और ऊपर कर दी।

वो तो अच्छा हुवा की रात को हम कुछ किए बगैर ही सो गये थे तो मैंने अंदर पैंटी पहनी हुई थी, और तब मुझे मालूम पड़ा की मैं क्या पहनकर आई हूँ। मैंने चाचा के हाथ से नाइटी खींची और दूध को वहीं छोड़कर रूम में । दौड़ी और गाउन पहनकर बाहर आई, तब तक तो चाचा चले गये थे।

मुझे लगा की मैं सबको ज्यादा ही छूट दे देती हूँ। वो शंकर टिफिन लेते हुये कभी कभार मेरा हाथ दबा देता है, पर मैं उसे भी कुछ नहीं बोलती। मैंने सोचा कि आज आने दो शंकर को कुछ भी उल्टा सीधा करेगा तो एक तमाचा लगा देंगी।

मैं टिफिन भर ही रही थी और बेल बजी। मैं समझ गई की शंकर टिफिन लेने आ गया है, इंतेजार तो मुझे उसका हर रोज होता है, पर आज इंतेजार का मकसद अलग था। मैंने जल्दी-जल्दी टिफिन पैक करके दरवाजा खोला और शंकर के हाथों में टिफिन थमाया। आज मैं खुद चाहती थी की वो मेरे हाथों को छुये, इसलिए मैंने थोड़ा ज्यादा हाथ आगे किया। शंकर ने टिफिन लेते हुये मेरे हाथ को छुवा। हर रोज तो मैं टिफिन देते ही हाथ को जल्दी से खींच लेती थी, पर आज मैं ऐसे ही खड़ी रही।

मैंने सोचा था कि थोड़ा ज्यादा नाटक करने की कोशिश करे तब मैं उसे फटकारूंगी। तभी आंटी (मिसेज़ गुप्ता) कचरा डालने बाहर आईं और मैं हड़बड़ा गई। मैंने घबराहट में शंकर के हाथों पर जोरों से नाखून मारके हाथ खींच लिया और मैंने आज ही के दिन दूसरी गलती कर दी।

शंकर ने उल्टा अर्थ निकाला- “आप तो बहुत तेज हो मेडम...” धीरे से कहते हुये वो सीढ़ियों से उतर गया।

शंकर के जाने के बाद रामू आया और हर रोज की तरह मैं अंदर चली गई, और जाते वक़्त वो दरवाजा बंद करने का कहकर गया। फिर बाकी का दिन शांती से गुजर गया। रात को नीरव ने बताया की कल रात वो 5 दिन के लिए बिजनेस टूर पे जा रहा है।
 
नीरव की बात सुनकर मैं टेन्शन में आ गई। पहले जब नीरव जाता था तब मैं घर पर अकेली रहती थी, पर आजकल जो हो रहा था, उस स्थिति में घर पे अकेले रहने से मुझे डर लगने लगा था। मैंने नीरव को कहामुझे अहमदाबाद छोड़ दो, मैं मेरे मम्मी-पापा के पास रहना चाहती हूँ, और वापसी में तुम अहमदाबाद से मुझे लेते आना...”

नीरव को मेरी बात ठीक लगी तो उसने कहा- “कल रात को जाएंगे पैकिंग कर लेना...”

अब मुझे सिर्फ कल सुबह की चिंता थी। फिर 5 दिन के बाद तो टेन्शन कम हो जाएगी। सुबह हर रोज के समय गोपाल चाचा दूध देने आए। मैं लेने गई पर उन्होंने मेरे सामने देखा तक नहीं, तो मुझे थोड़ी शांति हुई। दोपहर को मैंने थोड़ी देर पहले ही टिफिन भर दिया, और बाहर दरवाजे पर लटका दिया। शंकर वहीं से लेकर निकल । गया। दोपहर को रामू के जाते ही मैं पैकिंग करने लगी। तभी बेल बजी।

मैंने दरवाजा खोला तो गुप्ता अंकल थे, उनके हाथ में कुछ कपड़ा था- “बेटी ये तुम्हारा है क्या?” कहते हुये अंकल ने कपड़े को दो उंगली के बीच करके खोला। कपड़ा पूरा खुल गया, वो ब्रा थी।

मुझे गुस्सा तो बहुत आया पर गुस्से को काबू में करते हुये मैं बोली- “मेरा नहीं है...”

अंकल- “क्यों ना बोल रही हो बेटी, इसका साइज भी तो 34सी ही है..” अंकल ने साइज लिखा था, वहां गंदे तरीके से इशारा करके पूछा, जहां साइज लिखा था वहां दो उंगली से गोल किया और फिर ब्रा की कटोरी को दो बार पुस किया।

मेरा दिमाग घूम गया की ये बूढ़ा मेरी साइज का भी ध्यान रखता है, और कैसे-कैसे गंदे इशारे करता है? मैंने आजू-बाजू में देखा की कुछ मिल जाए तो बूढ़े का सिर फोड़ दें, लेकिन कुछ दिखा नहीं तो मैंने जोरों से दरवाजा बंद कर दिया, और अंदर जाते हुये मन ही मन बोली- “हरामी बूढा...”

सुबह पापा स्टेशन पे लेने आए, नीरव सीधा मुंबई जाने वाला था। घर पे पहुँचते ही मैं, मम्मी और पापा बातें करने बैठ गये। बीच में मम्मी एक बार उठीं, और चाय-नाश्ता लाई और हमलोग 11:30 बजे तक बातें करते। रहे। फिर मम्मी ने रसोई बनाई। मैंने खाना खाया और सो गई।

थोड़ी देर बाद कुछ जोरों की आवाज आई, और मेरी नींद टूट गई। मैंने घड़ी में देखा तो 4:00 बजे थे। तभी बाहर से मम्मी की आवाज आई- “तुम अभी जाओ, मेरी बेटी घर पे है...”

मैं सोच में पड़ गई कि कौन होगा जिससे मम्मी मेरे घर में होने की बात कर रही हैं। मैं धीरे से उठी और धीरे से दरवाजे को धक्का दिया। दरवाजा खुला तो थोड़ा ही पर बाहर देखने के लिए काफी था।

आदमी- “तेरी बेटी घर पे है तो मैं क्या करूं, तुम्हें पैसे चाहिए की नहीं?” कोई आदमी मेरी माँ को धमकाते हुए कह रहा था।

कौन है ये आदमी, जो मेरी मम्मी से इस तरह से बात कर रहा है? मैं सोचने लगी। मैं उस आदमी को गौर से देखने लगी। वो आदमी दिखने में बहुत रईस लग रहा था, 6' फुट लंबा कद, गोरा और कद्दावर शरीर, सिर और दाढ़ी के सफेद बाल, काले कपड़े (कुर्ता और पायजामा), ज्यादातर उंगलियों में सोने और हीरे की अंगूठियां और गले में 10-12 तोले की चैन से लगता था की वो कोई बड़ा आदमी होगा।

मम्मी- “तुम कल आकर कर लेना, कल निशा बाहर जाने वाली है तब आ जाना। अभी जाओ प्लीज़...” मेरी माँ उससे धीमी आवाज में बोलते हुये समझाने की कोशिश कर रही थी।

आदमी- “ज्यादा नाटक मत कर, और एक बात समझ ले। मैं तुझे पड़ोसी के नाते पैसा देता हूँ, बाकी तुम जैसी बूढ़ी को चोदने के पैसे कौन देगा? अब जल्दी कर, नहीं तो तेरी बेटी को जगाकर उसके मुँह में घुसा दूंगा...” वो
आदमी गुस्से से बोला।

उस आदमी के मुँह से मेरी बात सुनकर मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई। शायद मेरी माँ डर रही थी की कहीं मैं जाग ना जाऊँ, इसलिए वो उस आदमी के पैरों पे घुटनों के बल बैठ गई और माँ ने उस आदमी का पायजामा निकाल दिया। मेरी माँ की पीठ मेरी तरफ थी और वो आदमी मेरी तरफ मुँह करके खड़ा था, इसलिए और कुछ तो दिखाई नहीं दिया पर माँ का मुँह आगे-पीछे होने लगा, जिससे मैं समझ गई की माँ उस आदमी का लिंग । चूस रही है। मेरी आँखों में पानी आ गया। मैंने देखना बंद कर दिया और दरवाजे पर पीठ के बल बैठ गई। मेरी आँखों में से आँसू पानी की तरह बहने लगे।

इस उमर में मेरी माँ के ये हाल? वो मेरी माँ को बूढ़ी बोल रहा था और वो तो उससे ज्यादा उमर का था। कैसी दुनियां की रीत है, यहां औरतें बूढ़ी होती हैं मर्द कभी नहीं। औरतों को कठपुतली बना दिया है इन मर्दो ने। सोचते हुये मैंने फिर से दरवाजे की दरार में से देखा।
 
तब उस आदमी की नजर वहां ही थी और हमारी नजरें मिल गईं। वो मेरे सामने मुश्कुराते हुये मेरी माँ के मुँह को पकड़कर लिंग को जोर-जोर से हिलाने लगा। मैं वहां से हट गई और फिर से अंदर जाकर सो गई।

थोड़ी देर बाद मम्मी अंदर आई, और मुझे सोते हुये देखकर बाहर चली गईं। 15-20 मिनट बाद मैं उठकर बाहर गई। बाहर मम्मी चटाई डालकर सोई हुई थी। मेरी आँखें फिर से छलक उठी। मुझे मेरी मम्मी पर गुस्से के बजाय सहानुभूति हो रही थी। मैं जानती थी की उसके पास और कोई रास्ता नहीं है। मैंने चाय बनाई और फिर मम्मी को जगाया, और हम दोनों ने साथ मिलकर चाय पी। रात को खाना खाकर मैं और पापा बातें कर रहे थे तभी वो दोपहर वाला आदमी आया।

पापा एकदम से खड़े हो गये- “आइए अब्दुल भाई बैठिए.”

उस आदमी को इतना सम्मान देते हुये पापा को देखकर मेरे मन में कड़वाहट छा गई।

अब्दुल- “नहीं मैं बैठूगा नहीं। वो तो बिटिया रानी आई हैं तो मिलने आ गया...” फिर मेरी तरफ देखकर बोलाराजकोट रहती हो ना, कभी कभार आना होता है। ससुराल में तो सब अच्छे हैं ना? परेशानी हो तो बोल देना...”

मुझे बहुत शर्म आ रही थी उस आदमी से आँख मिलाने में। मैं नीचे देखकर नाखून से जमीन को खुरचने की नाकाम कोशिश कर रही थी

अब्दुल- “नाराज हो क्या हमसे बिटिया रानी? मासाल्लाह आप तो बहुत खूबसूरत हो। अल्लाह हर कदम पे बचाए आपको बुरी नजरों से। लीजिए बिटिया ये आप हमें पहली बार मिल रही हैं उस खुशी में...” कहते हुये उसने । 500 का नोट मेरे सामने किया।

मेरे सिर फटा जा रहा था इस इंसान के दोगले रूप से।

अब्दुल- “ले लो बिटिया... शर्माजी बिटिया को कहिए हम कोई गैर नहीं और उससे कहिए की हम सामने के फ्लैट पर ही रहते हैं...” मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो उसने फिर कहा।

पापा- “बेटा ले लो अब्दुल चाचा कह रहे हैं तो ले लो...” पापा ने कहा।

पापा के कहने पर मैंने पैसे ले लिए। पैसे लेते ही अब्दुल (ऐसे हरामी इंसान को चाचा कहने का मन नहीं करता) चला गया।

पापा- “बहुत अच्छा इंसान है बेटा, दिन में एकाध बार तो आता ही है मेरा हाल पूछने..” पापा ने कहा।

मैं- “मुझे मालूम है की वो कितना अच्छा है..” मैं मन ही मन बोली।

रात को मम्मी ने दीदी की बात निकाली, पूरे दिन में पहली बार मम्मी ने दीदी को याद किया वो भी पापा सो गये उसके बाद- “मीना यहां आने को बहुत तड़पती है बेटा, पहले तो कभी कभार चोरी छुपे मिल जाती थी, पर एक बार तेरे जीजू को मालूम पड़ गया और उसके बाद तो वो कभी नहीं आई। तेरे पापा को तो मीना से कुछ ज्यादा ही लगाव था। वो मन ही मन कुढ़ते रहते हैं."

 
मैंने जीजू का मुँह खींचा और उनके होंठ को चूसने लगी और उनकी पीठ को नाखून से कुरेदने लगी। जीजू भी शायद झड़ने ही वाले थे, उनके फटके की स्पीड बढ़ गई और थोड़ी ही देर में मैं और जीजू एक साथ झड़ गये।

जीजू- “सच में निशा तूने मुझे बहुत तड़पाया है." जीजू मेरे बाजू में सोते हुये मेरी निप्पल की चारों तरफ उंगली से सहलाते हुये बोले।

मैंने भी शरारत से कहा- “मुझे भी मालूम होता ना की आप इतने गरम हो तो, मैं कब की दौड़ी आ गई होती। जीजू मुझे ये दे दो... ये मैं मेरे साथ ले जाना चाहती हूँ..” मैंने मेरे हाथ को नीचे करके लिंग को दबाते हुये कहा।

जीजू- “फिर तेरी दीदी क्या करेगी पगली?” कहकर जीजू ने मेरे गुदा-द्वार में उंगली घुसेड़ दी।

मैं- “अब चलिए जीजू जाते हैं, आप दीदी को लेकर जल्दी से घर आइए...” मैंने जीजू का हाथ वहां से खींचकर कहा।

जीजू- “हाँ चलो...कहकर जीजू खड़े होकर कपड़े पहनने लगे। मैंने भी कपड़े पहन लिए और फिर जीजू मुझे घर छोड़कर दीदी को लेने चले गये।

रात को जब मुझे मालूम पड़ा की मम्मी और दीदी भी जानते हैं की जीजू की क्या इच्छा है? तब मैंने बहुत सोचने के बाद फाइनल किया की चाहे मुझे जो भी करना पड़े, पर मैं दीदी को फिर से घर ले आऊँगी। और फिर आज दोपहर को जब जीजू को मिली तो देखा की जीजू आज भी उतने ही चार्मिंग और खूबसूरत दिख रहे हैं, जितने 6 साल पहले दिखते थे। फिर तो मैंने मन ही मन सोच ही लिया की मैं आज पूरे दिल से जीजू से मिलूंगी, उन्हें इतना खुश कर देंगी की वो पुराने सारे गिले सिकवे भूल जाएंगे और फिर जीजू ने भी मुझसे बहुत अच्छा बर्ताव किया और सच्चे दिल से कहूँ तो मैंने भी जीजू के साथ खूब मजा लूटा।।

शाम को जब मैं घर पे आई तब पापा नहीं थे। मम्मी और घर की हालत देखकर ऐसा लग रहा था की अब्दुल अभी ही घर से गया है, और ये बात मुझे कांटे की तरह चुभी। मैंने मन ही मन सोचा की मैं नीरव से कहकर । मम्मी-पापा को पैसे भेजूंगी, पर इस उमर में मैं मम्मी को ऐसे काम नहीं करने देंगी। चाहे कुछ भी करना पड़े मैं मम्मी को उस दोगले इंसान के नीचे सोने नहीं देंगी।

पापा के आने के थोड़ी देर बाद दीदी, जीजू और पवन आए। उनसे मिलकर मम्मी-पापा को जो खुशी हासिल हुई वो देखकर मुझे लगा की आज मैंने जो किया वो मुझे बहुत पहले करना चाहिए था। और पवन को तो हम लोग पहली बार देख रहे थे क्योंकी मेरी शादी के बाद पवन पहली बार आया था। मम्मी ने खाना बनाया, सबने साथ मिलकर खाया। खाना खाने के बाद मैं पानी लेने किचन में गई।

तब दीदी पीछे से आई और मुझसे गले लगकर बोली- “निशा आज तूने जो किया है, वो दुनियां की कोई भी बहन नहीं करती..."

मैंने देखा की दीदी की आँखों से पानी छलक गया है। मैंने वो पोंछते हुये कहा- “अब ये कहो दीदी की तुम राजकोट कब आती हो, जीजू को लेकर...”

मेरी बात सुनकर ना जाने क्यों दीदी का मुँह बिगड़ गया, फिर मुझे समझ में आया की मैंने दीदी को जीजू के साथ राजकोट आने को कहा तो वो उसे पसंद नहीं आया।

दीदी के जाने के बाद मैंने और मम्मी ने ढेर सारी बातें की। पापा सो गये उसके बाद हम दो घंटे तक बातें करते रहे। बातें करते वक़्त मुझे ऐसा लग रहा था की मम्मी मुझसे जीजू के बारे में बात करके मुझे शुक्रिया अदा करना चाहती हैं, पर मम्मी कह ना सकी।
* * *
* *
 
दूसरे दिन सुबह जब मैं चाचा के घर से वापिस आकर लिफ्ट में घुसी की तुरंत अब्दुल भी लिफ्ट में आ गया। उसको देखकर मेरा मूड खराब हो गया। अगर मुझे पहले से मालूम होता की वो आने वाला है तो मैं सीढ़ियां चढ़ जाती।

अब्दुल- “तुम और तुम्हारी माँ दोनों कैसी हो?” कहते हुये अब्दुल हँसते हुये मुझे घूरने लगा।

मैंने सोचा की ऐसे हरामी को तो नजरअंदाज ही करना चाहिए, तो मैंने उसके सामने देखा तक नहीं। तभी लिफ्ट दो और तीन फ्लोर के बीच रुक गई। मैंने लिफ्ट के बटन की तरफ देखा तो स्टाप के बटन पर अब्दुल की उंगली थी।

मैं- “लिफ्ट चालू करो...” मैंने गुस्से से कहा।

अब्दुल कोई जवाब दिए बगैर मेरे करीब आ गया और मेरे आजू-बाजू में उसने हाथ रख दिया और कहा- “लड़की तू चाहती है की तेरे अब्बू की दवाई होती रहे और तेरी अम्मी को कोई उल्टे-सुल्टे काम ना करने पड़े तो एक बार मुझे खुश कर दे...

मैं अब्दुल के सामने देखकर मुश्कुराई और फिर नीचे झुक के उसके कदमों के पास घुटनों के बल बैठ गई। अब्दुल ने अपनी आँखें बंद कर ली और मैंने मेरे दाहिने पैर को आगे करके झुकी-झुकी ही अब्दुल के दो हाथों के बीच से बाहर निकलकर लिफ्ट का 5 नंबर का बटन दबा दिया।

लिफ्ट के चलते ही अब्दुल को मालूम पड़ गया और वो मेरी तरफ होते हुये बोला- “तुझे अपनी अम्मी को चुदवाने का बड़ा शौक लगता है?”

दोपहर को मैं दीदी के घर गई। वहां हम दोनों बहनों ने बातों ही बातों में बचपन की यादें ताजा की। दीदी के साथ बातों-बातों में कब शाम हो गई, मालूम ही नहीं पड़ा। फिर दीदी रसोई बनाने लगी और मैं पवन के साथ खेलने लगी। थोड़ी ही देर में खाना बन गया और हम तीनों ने साथ मिलकर खाया। मैं जीजू से मिलकर जाना चाहती थी, पर कल दीदी का मुँह बिगड़ गया था। वो याद आते ही मन खट्टा हो गया और मैं जीजू के आने से पहले ही घर वापिस आ गई।

रात को नींद नहीं आ रही थी। कल जीजू के साथ बिताए हुये एक-एक पल याद आ रहे थे। मेरा दिल कह रहा था की जीजू कहीं से आ जायें और मुझे अपनी बाहों में लेकर मेरी योनि में अपना लिंग डाल दें। मैंने मेरा हाथ नीचे किया और उंगली को योनि में डाला, तो योनि गीली थी। मैं मेरे दूसरे हाथ से मेरे उरोजों को दबाते हुये मसलने लगी और जीजू के साथ बिताए हुये पलों को याद करती हुई उंगली को योनि में अंदर-बाहर करने लगी। थोड़ी देर ऐसा करने के बाद मैं झड़ गई। मेरे बदन की आग तो ठंडी हो गई, पर शाम से जो आग मन में लगी थी वो बुझ नहीं रही थी।

झड़ने के बाद मैं जीजू को छोड़कर अब्दुल के बारे में सोचने लगी। मैंने उसकी बीवी को देखा नहीं था। सोचा की कल सुबह उन्हें बता दें या फिर पोलिस में रिपोर्ट कर दें। पर दुविधा ये थी की उससे माँ की बदनामी भी तो हो सकती थी, और अब्दुल भी कहां जबरजस्ती कर रहा था। बहुत सोचने के बाद मुझे लगा की इसका एक ही हल है कि मैं मम्मी-पापा को पैसे भेजूंगी तो ही मम्मी मजबूरी में उस दरिंदे के नीचे नहीं सोएंगी।

दूसरे दिन दोपहर को जीजू का फोन आया- “कैसी हो सालीजी? जीजू की याद आ रही की नहीं?"

मैं भी जीजू का फोन आते ही खिल उठी- “बहुत ही याद आ रही है जीजू आपकी और आपके.....” मैंने मेरी बात को मस्ती से अधूरी छोड़ दी।

जीजू- “किसकी, बताओ ना?” जीजू ने पूछा।
 
मैं- “वो... वो आपका..” मैंने फिर मस्ती की।

जीजू- “क्यों तड़पा रही हो बताओ ना...” जीजू ने कहा।

मैं- “आपके लिंग की..” मैंने शर्माते हुये धीरे से कहा।

जीजू- “हाय... मर जाऊँ तेरी इस अदा पर। कब मिलती हो? कहो तो लेने आ जाऊँ?” जीजू ने पूछा।

मैं मिलना तो चाहती थी जीजू को, पर दीदी के बारे में सोचकर मैंने दिल पर पत्थर रखते हुये जीजू से झूठ कहा- “जीजू मेरा मासिक आ गया है...”

जीजू ने मेरी बात सुनकर ढीली आवाज में कहा- “अरे यार, तुम्हारा मासिक भी अभी ही आने वाला था। तुम तो कल जाने भी वाली हो ना..."

मैं- “हाँ जीजू, आपकी याद बहुत आएगी...” मैंने कहा।

जीजू- “मुझे भी, चलो बाइ...” कहते हुये जीजू ने फोन काट दिया।

उस दिन रात को भी मैंने जीजू के बारे में सोचते हुये मास्टरबेट किया और झड़ने के बाद मैं सो गई।

सुबह नीरव का फोन आया की वो 6:00 बजे आने वाला है तो पैकिंग करके रखना। शाम को नीरव के आते ही हम खाना खाकर स्टेशन के लिए निकल गये। जीजू और दीदी भी हमें मिलने आए थे, जो हमें उनकी गाड़ी में स्टेशन छोड़ने आए। नीरव जीजू के साथ आगे की सीट पर बैठा बातें कर रहा था और मैं और दीदी पीछे बैठी बातें कर रही थीं। स्टेशन आते ही जीजू भी हमारे साथ उतरे। जीजू ने 2-3 बार मुझे इशारा किया की मैं किसी भी बहाने से साइड में जाऊँ और वो वहां आएंगे। पर मेरी हिम्मत नहीं हुई और उनकी बात समझकर भी मैं नासमझ बनी रही।

रात के 5:00 बजे हम राजकोट पहुँचे और हम आटो लेकर घर गये, कांप्लेक्स में दाखिल होते ही देखा की रामू जमीन पर सिर्फ एक चड्डी पहनकर सोया हुवा था। नंगा रामू सोते हुये किसी राक्षस जैसा लग रहा था।

नीरव- “ये हमारा रात का चौकीदार देखो कैसे सो रहा है?” नीरव लिफ्ट में दाखिल होते हुये चिढ़कर बोला।

घर के अंदर दाखिल होते ही मैं सीधी बेडरूम में गई। मैंने जो ड्रेस पहना था, वो मुझे ज्यादा ही फिट हो रहा था इसलिए मुझे वो जल्दी ही चेंज करना था। नीरव ने सामान घर के अंदर लिया, दरवाजे को लाक करके अंदर
आया, तब तक मैं नंगी हो गई थी। उसने शर्ट निकाला और जैसे ही नाइट टी-शर्ट पहनने गया तो मैंने कहाबाद में पहनना यहां आओ ना...”

नीरव नजदीक आते हुये बोला- “बहुत थका हुवा हूँ निशु..”

मैं- “5 दिन के बाद मिल रहे है और तुम हो की.....” मेरी बात अधूरी रह गई।

नीरव ने मेरे होंठों पर अपने होंठ चिपका दिये थे। हम दोनों एक दूसरे के होंठ चूसते हुये बेड पर लेट गये। बेड पर लेटते ही नीरव ने मुझे उल्टा कर दिया, और मेरी कमर पर चुंबन किया फिर थोड़ा ऊपर-ऊपर करते हुये नीरव मेरी गर्दन तक चुंबन करता रहा। मैं रोमांचित हो उठी, और मैं पलट गई। मैंने नीरव को मेरी तरफ । खींचकर उसकी गर्दन को मैंने बाहों में ले लिया। हम दोनों के चेहरे के बीच सिर्फ दो इंच जगह थी।

मैंने एक हाथ नीचे की तरफ करके उसकी पैंट की चैन खोलते हुये कहा- “तुम्हारी पैंट निकाल दो?”

नीरव ने मुझे किस करते हुये उसकी पैंट निकाल दी, और फिर नीचे झुक के मेरे उरोजों को चूसते हुये मेरी चूत के होंठों से खेलने लगा। मेरे मुँह से धीरे-धीरे सिसकारियां फूटने लगी थीं। नीरव ने अपनी उंगली मेरी योनि के अंदर दाखिल की।

तो मैंने उसका हाथ पकड़ा और कहा- “ऊपर आकर करो ना..."

नीरव मेरी दोनों टांगों के बीच आ गया और उसका लिंग मेरी योनि में डालने की कोशिश करने लगा। मैंने मेरा हाथ नीचे किया और नीरव का लिंग पकड़कर मेरी योनि पर टिकाकर रखा। नीरव ने धक्का देना चालू किया। उसका लिंग सरलता से अंदर चला गया, क्योंकी मेरी योनि बहुत ज्यादा ही गीली हो गई थी। नीरव ने चार-पाँच धक्के लगाए और उसकी सांसें भारी होने लगीं। नीरव ने कहा- “निशु मेरा छूटने वाला है, तुम भी जल्दी करो
ना..."
 
नीरव मेरी दोनों टांगों के बीच आ गया और उसका लिंग मेरी योनि में डालने की कोशिश करने लगा। मैंने मेरा हाथ नीचे किया और नीरव का लिंग पकड़कर मेरी योनि पर टिकाकर रखा। नीरव ने धक्का देना चालू किया। उसका लिंग सरलता से अंदर चला गया, क्योंकी मेरी योनि बहुत ज्यादा ही गीली हो गई थी। नीरव ने चार-पाँच धक्के लगाए और उसकी सांसें भारी होने लगीं। नीरव ने कहा- “निशु मेरा छूटने वाला है, तुम भी जल्दी करो
ना..."

मैंने मेरे हाथों को उसकी गर्दन के चौतरफा लपेटकर खींचा और उसके होंठ मेरे होंठों की गिरफ्त में ले लिए। नीरव ने और दो धक्के लगाए और वो झड़ गया। उसके वीर्य से मेरी योनि भर गई।

नीरव- “बहुत दिन बाद इस तरह से किया ना निशु... इसलिए कि मैं बहुत ही उत्तेजित हो गया था..." नीरव ने मेरे ऊपर से उठते हुये कहा।

मेरा मूड खराब हो गया था इसलिए कोई जवाब दिए बगैर मैंने गाउन उठाकर पहन लिया और तभी बेल बजी, और मैं दूध लेने उठी। मैं दूध लेकर वापिस आई तब तक तो नीरव सो भी गया था। थकान की वजह से नीरव 2:00 बजे सोकर उठा और 3:00 बजे आफिस जाने के लिए निकला।

थोड़ी देर बाद मेरी फ्रेंड रीता का फोन आया- “निशा दीदी अहमदाबाद आई और मिले बिना ही भाग गई...”

मैं- “मैं आने वाली थी, पर समय ही नहीं मिला...” मैं जानती थी कि उसको चाहे कितना ही समझाओ वो समझने वाली नहीं थी।

रीता- “एक फोन भी नहीं किया और मिलने वाली थी... फोन करती ना तो मैं मिलने आ जाती..” उसने नाराजगी से कहा।

मैं- “ऐसी बात नहीं है, मैं तुझसे मिलने आने वाली थी, पर काम आ गया तो आ ना सकी। तुझे किसने बताया की मैं आई थी?” मैंने रीता को समझाते हुये पूछा।

रीता- “तू मिलने नहीं आओगी तो मालूम नहीं पड़ेगा क्या? सुबह मम्मी मिली थी उन्होंने बताया...” रीता का गुस्सा अभी खतम नहीं हुवा था।

मैं- “सारी कहा ना, कान पकडूंगी तो ही माफी दोगी क्या?” मैंने मस्ती में कहा।

रीता- “चलो माफ किया, कहो तुम्हारे मिट्ठू मियां कैसे हैं?” रीता भी मजाक के मूड में आ गई।

मैं- “मजे में है नीरव, तूने ढूँढ़ा की नहीं अपने लिए कोई मिट्ठू मियां?” मैंने पूछा।

रीता- “नहीं यार। पहले मुझे कोई पसंद नहीं आ रहा था और अब मुझे कोई पसंद नहीं कर रहा...” रीता ने निराशा के सुर में कहा।

मैं- “क्यों?” मैंने पूछा।
 
रीता- “बस आजकल के लड़कों को 28 साल की लड़की बड़ी लगने लगी है, और बता क्या चल रहा है?” उसने टापिक चेंज करते हुये पूछा।।

मैं- “बस, मेरा तो क्या रूटीन चल रहा है, तू अपनी बता?” मैंने पूछा।

रीता- “मेरा भी वोही हाल है, वो विजय मिला था याद है ना?” रीता ने पूछा।

मैं- “हाँ याद है। कहां मिला था?” और मुझे कालेज का लास्ट दिन याद आ गया।

रीता- “मैं बाजार जा रही थी, तो गाड़ी लेकर आ गया। तेरे बारे में पूछा तो मैंने बहुत भला बुरा कहा...” रीता ने कहा।

सुनकर मैं उत्तेजित हो गई और पूछा- “उसने तुझे कुछ नहीं कहा?”

रीता- “धमकियां दे रहा था मुझे की तेरी नथ मैं ही उतारूँगा... मैं कहां डरने वाली थी, मैंने भी गालियां दी तो भाग गया.” रीता ने गुस्से से कहा।

मैं- “हाँ, तेरी तो बात ही निराली है, तू हंटरवाली जो है। तेरी बातों में भूल गई की मुझे सब्जी लेने जाना है। मैं फोन रखती हूँ..” मैंने कहा।

रीता- “तुम्हें तो कभी फुरसत ही नहीं मिलती, चलो बाइ..” कहकर रीता ने फोन काट दिया।

रीता के साथ बात होने के बाद, मुझे मेरी कालेज लाइफ याद आ गई। कितने सुहाने दिन थे वो, बहुत मौजमस्ती करते थे हम, ना कोई रोक-टोक, ना कोई झिक-झिक और ना ही कोई टेन्शन। टेन्शन रहता तो सिर्फ इतना रहता की कभी ना कभी हमें भी यहां से जाना पड़ेगा। मेरी और रीता की जोड़ी पूरे कालेज में मशहूर थी।

उसकी कछ वजह भी थी, एक तो मैं और रीता हर समय साथ ही रहती थीं, कभी किसी ने हम दोनों में से किसी को अकेला नहीं देखा था। हम दोनों में से कोई एक ना आने वाला हो तो दूसरा भी उस दिन नहीं आता था। दूसरी वजह मैं थी, क्योंकी कालेज में स्टूडेंट तो क्या सारे प्रोफेसर भी मुझे पहचानते थे और मेरे बारे में जानने की कोशिश करते रहते थे, और उसका पूरा लाभ रीता उठाती थी। मेरी बदौलत वो इनकमिंग चार्ज के जमाने में भी मोबाइल इश्तेमाल करती थी। जो लड़के मुझसे दोस्ती करना चाहते थे, वो रीता को मिलते तो रीता उनसे मोबाइल का रीचार्ज करवाती, या फिल्मों की टिकेट मँगवाती, या कभी स्कूटी में पेट्रोल डलवाती। फिर भी। मेरी अच्छी चाहने वाली पक्की सहेली थी। मुझे कभी ना कहती की तुम मेरे लिए ये लड़के से दोस्ती करो, और हमेशा मुझे लड़कों से दूर रहने की हिदायत देती रहती।।

मैं पढ़ने में बहुत कमजोर थी क्योंकी बचपन से ही सबकी बातें सुन-सुनकर मेरे दिमाग में घर कर गया था की मैं इतनी खूबसूरत हूँ की मुझे सबसे अच्छा और धनवान पति मिलने वाला है, इसलिए मुझे कहां नौकरी करनी है जो मैं पढ़ाई करूं?

बचपन की बातें याद आते ही मैं मन ही मन मेरी उस वक़्त की नासमझी पर हँस पड़ी और फिर से पुरानी यादों में खो गई। खूबसूरत तो मैं थी ही, जीजू जब दीदी को देखने आए थे तब मम्मी ने मुझे हिदायत दी थी की मैं । कहीं बाहर ना आ जाऊँ, और जीजू की नजर में ना चढ़ जाऊँ। दीदी बहुत ही खूबसूरत थी, पर सभी कहते थे की जब तक सामने वाला मुझे देख ना ले तब तक ही दीदी उन्हें खूबसूरत लगती थी।

रीता भी हमेशा मजाक में कहती रहती थी- “तू साथ होती है ना तो मैं सेफ रहती हूँ, लड़के तुझे ही देखते रहते हैं। मैं तो किसी की नजर में ही नहीं आती...”
 
दिल की बहुत अच्छी थी रीता, उसे कभी ईर्ष्या नहीं होती थी मेरी। रीता के माँ-बापू गाँव में रहते थे। वो यहां उसके भाई भाभी के साथ रहती थी। उसका भाई पोलिस आफिसर था। एक बार हम सब्जी मंडी में गये थे और वहां एक लफंगा हमारे पीछे पड़ गया। ना जाने दस ही मिनट में अमित भाई (रीता का भाई) कहां से आ गये और लफंगे को इतनी धोया की उसे दिन में तारे नजर आ गये होंगे।

दूसरे दिन रीता से मिलते ही मैंने पूछा- “कल भैया वहां कैसे आ गये?”

मेरी बात सुनकर रीता मूड में आ गई- “भैया ने मेरे ऊपर कैमरे लगाए हैं, मैं जो करती हूँ उन्हें मालूम पड़ जाता है, और मुझ पर मुशीबत आती है ना तब भैया मुझे बचाने के लिए सुपरमैन की तरह आ जाते हैं..”

रीता की बात सुनकर मैं अकड़ गई- “बताना हो तो बताओ, नहीं तो मैं जाती हूँ...” मैंने खड़े होते हुये कहा।

रीता ने मेरा हाथ पकड़ा- “बैठ यार, इसने भैया को बुलाया...” कहते हुये रीता ने मुझे मोबाइल दिखाया।

मैं- “मोबाइल से तुमने कब फोन किया था भैया को?” मुझे उसकी बात हजम ना हुई।

रीता- “ये देख...” कहकर रीता ने मोबाइल में कुछ बटन दबाकर मेरे हाथ में दिया। मैंने मोबाइल हाथ में लिया

और देखा तो मोबाइल में कुछ लिखा था, मैं वो पढ़ने लगी।
1. घर 2. कालेज 3. कंप्यूटर क्लासेस 4. निशा का घर 5. सब्जी मंडी 6. रिलीफ रोड 7. बस नंबर 142

मैंने ये सब पढ़ा तो सही, पर समझ में कुछ नहीं आया। ये बात उस समय की है जब ज्यादातर लोगों के पास मोबाइल नहीं होता था और हमारे घर पे तो लैंडलाइन भी नहीं था- “इससे कैसे भैया आ गये?” मैंने पूछा।

रीता ने मेरे हाथ से मोबाइल लिया और कहा- “मोबाइल के अंदर मेसेज बाक्स होता है उसके अंदर ड्राफ्ट्स का फोल्डर होता है जिसमें हम मनचाहे मेसेज सेव करके रख सकते हैं। मैंने वहां पर, मैं ज्यादातर जिस जगह पर जाती हूँ उस जगह का नाम लिखकर सेव किया हुआ है, जो तुमने अभी देखे। और कभी कोई नई जगह पर । जाने वाली होती हैं तो उस जगह का नाम ये खाली रखी लाइन पर लिखकर सेव कर लेती हैं। ये करने को मुझे भैया ने ही कहा है। अब कल वो लड़के ने हमें परेशान किया तो मैंने मोबाइल को ऐसे दो बार दबाया तो मैं ड्राफ्ट्स में आ गई। फिर सब्जी मंडी पर करके वही बटन दबाया तो मेसेज तैयार हो गया और कान्टैक्टस में । भैया का नंबर और नाम सबसे पहले है तो वही बटन फिर से दबाते ही मेसेज भैया को भेज दिया। मेसेज पाते ही भैया समझ गये की मैं किसी तकलीफ में हैं। जगह का नाम तो मेसेज में लिखा ही था। भैया वहां आ गये और उस लड़के की पिटाई की। ये सब घर पे भैया ने मुझसे इतनी बार करवाया है की मैं देखे बिना भी कर सकती हूँ, और मोबाइल पाकेट के अंदर होता है तब भी भैया को मेसेज भेज सकती हैं। पर भैया ने मुझे हिदायत दी है की मैं ये मेसेज तभी उन्हें कर सकती हूँ, जब मुझे कोई मुशीबत या तकलीफ हो...”
 
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