Hindi Antarvasna - चुदासी - Page 7 - SexBaba
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Hindi Antarvasna - चुदासी

रामू- “मजा आ रहा है ना मेडम?” रामू ने फिर से पूछा।

मैंने फिर से पहली बार की तरह सिर हिलाकर हाँ कहा।

रामू- “बोलकर कहो ना मेडम...” रामू ने कहा।

मैं- “हाँ..” मैंने इतना ही कहा।

फिर रामू भी झूम उठा, और पूछा- “और ज्यादा मजा चाहिए मेडम?”

मैं सोच में पड़ गई कि कैसे? फिर भी मैं धीरे से बोली- “हाँ..."

उसने अपनी जीभ से फिर से मेरी चूत चाटनी चालू कर दी, पर इस बार वो अंदर डालने की बजाय चूत को दो उंगली से चौड़ी करके आगे के भाग पर जो जी-स्पाट होता है उसे चाटने लगा। उसकी ये हरकत मुझ पर भारी पड़ने लगी। आज तक सेक्स करते वक़्त एकाध दो बार मैं छोटी-छोटी सिसकारियां ले लेती थी, पर आज तो मेरे मुँह से सिसकारियां बंदूक की गोली की तरह फूटने लगीं- “आहह... उहह... उह्ह... अयाया... ओहह... अयाया...” और मुझे मजा बहुत आया।

रामू जोरों से जी-स्पाट चाट रहा था। मैं पागलों की तरह कराह रही थी। मुझे लगने लगा था कि अब मैं कभी भी झड़ सकती हूँ। मैंने सख्ती से रामू की सिर पकड़ लिया।

रामू- “मेडमजी इसे चूत का दाना कहते हैं..." रामू ने इतना कहकर फिर से चूत चुसाई चालू कर दी।

मेरा खड़े रहना भी मुश्किल हो रहा था। मैं बेड पर सोकर चुसवाना चाहती थी, पर इतनी देर रामू चूसना बंद कर दे वो भी मेरे लिए असह्य था।

रामू ने उंगली चूत में डाल दी और उससे चूत की चुदाई करने लगा, साथ में उसका चूसना जारी था। मेरी सांसें तो कब की भारी हो चुकी थीं, मैं जोरों से सांसें ले रही थी। तभी रामू ने मेरे ‘जी-स्पाट' को मुँह में लेकर जीभ से दबाया, और मेरी सहनशीलता खतम हो गई। मैं झड़ गई पर ये ओगैस्म मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा और सबसे शानदार था।
 
रामू ने उंगली चूत में डाल दी और उससे चूत की चुदाई करने लगा, साथ में उसका चूसना जारी था। मेरी सांसें तो कब की भारी हो चुकी थीं, मैं जोरों से सांसें ले रही थी। तभी रामू ने मेरे ‘जी-स्पाट' को मुँह में लेकर जीभ से दबाया, और मेरी सहनशीलता खतम हो गई। मैं झड़ गई पर ये ओगैस्म मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा और सबसे शानदार था।

मेरे झड़ते ही राम जमीन पर बैठे-बैठे ही खिसक गया और बेड पे पीठ के सहारे बैठ गया।

मेरे छोटे-छोटे ओगैस्म अभी भी चालू थे। मैं धीरे-धीरे सांसें लेती हुई जमीन पर बैठ गई। झड़ने के बाद मुझे अपने आप पर गुस्सा आने लगा था। हर इंसान के साथ ऐसा ही होता है। शुरू-शुरू में गलत काम करते वक़्त कुछ नहीं सोचते, पर काम खतम होते ही पश्चाताप होता है, 2-4 बार गलत काम करने के बाद इंसान गुनहगार जैसा हो जाता है, फिर उसको अफसोस नहीं होता।

रामू- “अब तो मैडमजी आप हमसे हर रोज चुदवाएंगी ना?” रामू ने अपने गंदे दांत दिखाते हुये हँसते हुये मुझसे पूछा।

मैंने उसके सामने देखा, मेरी आँखों में आँसू थे। मैंने उससे कहा- “अब तुम जाओ रामू..."

रामू- “वाह री मेडम, आपने मजा ले लिया और हमारी बारी आई तब आप जाने को कह रही हैं...”

मैं- “प्लीज़... रामू, समझने की कोशिश करो, मैं अपनी मर्जी से नहीं करती, बहक जाती हैं...” मैंने उसे समझाने की कोशिश की।

रामू- “मैं तो मेडम आपको जितनी बार देखता हूँ उतनी बार बहक जाता हूँ। आप जानती नहीं कि आपके घर काम करते वक़्त आप रूम में हों या बाहर मेरा लण्ड हमेशा आपको सलामी देता रहता है..." रामू ने कहा।

मैं- “प्लीज़... रामू, कल कर लेना..” मैंने बिनती की।

रामू- “मेडमजी आज भी करेंगे और कल भी करेंगे, पर कल आप कहेंगी तब करेंगे। एक काम करो मेडम, आप अपनी टाँगें चौड़ी करके सो जाओ मैं चोद लूंगा..." रामू ने बड़ी निर्लज्जता से कहा।

मैं जान चुकी थी कि रामू ऐसे मानने वाला नहीं। मैं खड़ी हुई और बेड पर दोनों टांगों को चौड़ी करके लेट गई। बेड पर मेरे लेटने के बाद रामू रूम से बाहर निकल गया। मैं सोच में पड़ गई कि कहां गया होगा? तभी बाथरूम में से उसके पेशाब के गिरने की आवाज आई।

पेशाब करके वो अंदर आया तो मैंने उससे कहा- “पानी डालकर आना चाहिए था ना...”

रामू- “आप डाल देना मेडम...” कहते हुये उसने बीड़ी और माचिस निकाली।

मुझे उसकी बात पर बहुत गुस्सा आया की मैं तेरा पेशाब साफ करूं, पर मैं कुछ बोली नहीं। वो शांति से बीड़ी पी रहा था, तभी घड़ी में डंके बजे। मैंने इंके गिने और मन ही मन बोली- “ओह, 3:00 बज गये, 5:00 बजे तो नीरव आ जाएगा, और उसके पहले मुझे बहुत काम है...”

मैंने रामू की तरफ देखा वो तो बड़ी अदा से बीड़ी पी रहा था। मैंने कहा- “जल्दी कारो ना रामू...”
 
रामू- “क्या मेडम? कभी ना बोलती हो, कभी जल्दी करने को कहती हो। लगता है आपकी चूत इस इंडे की मार माँग रही है...” रामू ने बीड़ी के धुर्वे को मेरी तरफ छोड़ते हुये कहा।

मैं- “बाहर जाकर पियो ये बीड़ी, इसका धुंवां मुझे पसंद नहीं..” मैंने कहा।

रामू- “कहा जाऊँ मेडम? बालकनी में जाऊँगा तो सब देखेंगे तो क्या सोचेंगे?” रामू ने हँसते हुये कहा।

मैं- “तो फिर जल्दी करो प्लीज़..” मैंने फिर कहा।

रामू- “लगता है आपको उस दिन की याद आ रही है, जब मैंने आपको पहली बार चोदा था..” रामू गंदी तरह हँसते हुये बोला।

मैं- “ऐसी कोई बात नहीं है। मुझे देरी हो रही है, जो करना है वो जल्दी करो, नहीं तो चले जाओ..” मैंने गुस्से से कहा।

मेरी बात सुनकर रामू अपने कपड़े निकालने लगा।

मैंने मेरा मुँह दूसरी तरफ फेर लिया, क्योंकि मैंने जितना भी रामू को नंगा देखा था उससे इतना जरूर मालूम हो गया था की अब उसे ज्यादा देगी तो शायद मैं मेरी नजरों से ही गिर जाऊँगी।

रामू नंगा होकर बेड पर आ गया फिर उसने मेरे स्तनों को बारी-बारी चूसा और दबाया, और पूछा- “साहब नहीं दबाते क्या मेमसाब?”

मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया, तो वो फिर चाटने लगा। थोड़ी देर वो यही करता रहा। फिर उसने । मेरी एक टांग उठाई और उसे जांघ तक चूमकर अपने कंधे पर रख ली, फिर दूसरी टांग उठाकर भी वही किया। उसके कंधों पर मेरी टांग होने की वजह से मेरी गाण्ड ऊपर हो गई। उसने तकिया लिया और मेरी गाण्ड के नीचे रख दिया। फिर वो दोनों हाथ मेरी गर्दन से थोड़ी दूर रखकर झुक गया, उसने अपनी टांग पीछे की तरफ मोड़ दी
थी।

मुझे उसकी और मेरी पोजीशन बहुत अच्छी लगी, क्योंकि इस पोजीशन में हमारे चेहरे बहुत दूर रहते थे, जिससे मुझे उसके मुँह की बदबू का टेन्शन नहीं था।

रामू ने अपना लण्ड मेरी चूत पर रखा और थोड़ी देर झांटों में रगड़ा। उसकी इस हरकत से मेरी चूत थोड़ी-थोड़ी गीली होने लगी। फिर उसने चूत पर लण्ड टिकाया और मैं कुछ भी सोचूं समझें उसके पहले एक जोर का झटका मारा, और पूरा लण्ड मेरी चूत के अंदर घुसेड़ दिया।

मैंने उस दिन उसके लण्ड पर एक नजर डाली थी, मैं जानती थी की उसका लण्ड दूसरे के मुकाबले में काफी बड़ा है। पर इस बार मैं पूरी तरह से तैयार थी, उसके बड़े लण्ड को लेने के लिए। फिर भी मुझसे एक छोटी सी चीख निकल गई- “ऊओ मरी...”

रामू- “लगता है साहब चूत भी नहीं मारते होंगे, जो इतनी टाइट है..." रामू ने कहा और फिर उसने लण्ड थोड़ा बाहर निकाला और फिर अंदर डाला। ऐसा उसने थोड़ी देर किया।
 
मैंने उस दिन उसके लण्ड पर एक नजर डाली थी, मैं जानती थी की उसका लण्ड दूसरे के मुकाबले में काफी बड़ा है। पर इस बार मैं पूरी तरह से तैयार थी, उसके बड़े लण्ड को लेने के लिए। फिर भी मुझसे एक छोटी सी चीख निकल गई- “ऊओ मरी...”

रामू- “लगता है साहब चूत भी नहीं मारते होंगे, जो इतनी टाइट है..." रामू ने कहा और फिर उसने लण्ड थोड़ा बाहर निकाला और फिर अंदर डाला। ऐसा उसने थोड़ी देर किया।

मेरा डर भी गायब हो गया था, साथ में मैं मजा भी लेने लगी थी। चोदने की इस स्टाइल में एक बहुत बड़ा फायदा ये भी था की इसमें पूरा लण्ड चूत में जाता था। लण्ड की गोटियां तक आसानी से अंदर जाकर बाहर आती थीं। धीरे-धीरे मैं और रामू दोनों सिसकियां लेने लगे थे। हमारा दोनों का शरीर पसीने से तरबतर हो रहा था। रामू पूरे जोश से मेरी चुदाई कर रहा था। मैं भी पूरी मस्ती से उसकी पीठ को सहलाकर उसे उकसा रही थी। हम दोनों धीरे-धीरे हमारी मंजिल के करीब जा रहे थे। रामू कभी कभार झुक के चूचियो को चूस रहा था।

मुझे अब मेरी मंजिल बहुत करीब दिखने लगी थी। मैंने मेरी गाण्ड को आगे-पीछे करना चालू कर दिया। रामू ने थोड़े और धक्के दिए और मैंने उसके कंधों को जोरों से पकड़ लिया और मैं एक घंटे में दूसरी बार झड़ गई। मेरे झड़ते ही रामू जोरों से करने लगा और थोड़ी देर बाद वो भी झड़ गया। झड़ते वक़्त उसका सारा वीर्य मेरी चूत में गया। मैं खड़े होकर बाथरूम में जाकर मेरी चूत धोना चाहती थी पर रामू ने मुझे खड़े ही नहीं होने दिया, वो 5 । मिनट तक मेरे ऊपर सोता रहा और फिर किस करने गया तो मैंने उसे मना किया- “प्लीज़... रामू नहीं...”

रामू कुछ बोले बगैर खड़ा हो गया और अपने कपड़े पहनने लगा। मैंने भी उठकर गाउन पहन लिया।

कपड़े पहनकर रामू निकलते हुये बोला- “जा रहा हूँ मेडम...”

रामू के जाने के बाद मैं बेड पर लेट गई। मैं बहुत ज्यादा ही थकान महसूस कर रही थी। मेरा सारा शरीर दुखने लगा था, खासकर मेरी चूत की हालत बहुत बुरी थी। उसके दोनों होंठ सूज गये थे। मैंने मेरा हाथ चूत पर रखा और फिर चूत के अंदर उंगली डालकर 'जी-स्पाट' को छू। उसे छूते ही मैं मुश्कुरा उठी। आज रामू ने मुझे सेक्स का एक नया आयाम सिखाया था।

तभी मोबाइल की रिंग बजी। मैंने मोबाइल हाथ में लेकर देखा तो नीरव का काल था।

मैं- “हाँ, बोलो...” मैंने कहा।

नीरव- “निशु, देर लगेगी। फिल्म देखने नहीं जा पाएंगे...” नीरव ने धीरे से कहा। वो डर रहा होगा की उसकी बात सुनकर मैं भड़क जाऊँगी।

मैं- “कोई बात नहीं नीरव, वैसे भी मैं आज आराम करना चाहती हूँ...” मैंने कहा।

नीरव- “बैंक्स डार्लिंग, खाना तो हम बाहर ही खाएंगे। 8:00 बजे तैयार रहना..” नीरव ने कहा।

मैं- “ओके...” कहा और फिर उसकी काल काट दी।

मैं सोना चाहती थी पर मुझे नींद नहीं आ रही थी। मेरा दिमाग आज के दिन के बारे में सोच रहा था। आज जो भी हुवा वो सब मेरे ससुर की वजह से हुवा। वो कहते हैं की मैंने नीरव से पैसे माँगे, इसलिए नीरव ने चोरी की, नीरव मेरे खातिर चोर बना।

आज उन्होंने मुझे बड़े घर आने को ना बोला तो मैं यहां थी, इसलिए रामू ने मेरी चुदाई की। मैं वहां होती तो कहां ये सब होने वाला था। मैं आज मेरे ससुर की वजह से छिनाल बनी। मेरे सामने आज के दिन में जो-जो। हुवा था वो सब मुझे दिखने लगा। सुबह उठकर मंदिर जाना, वहां से आने के बाद दीदी का काल आना। दीदी की बातें याद आते ही आँखें छलक उठी। फिर शंकर का मेरा हाथ पकड़ना। और फिर रामू के साथ किया हुवा सेक्स। ऐसा नहीं था की रामू ने मेरी चूत चाटी थी, उसके बारे में मैं जानती नहीं थी। मैंने ब्लू-फिल्म में देखा था, पर
आज तक किसी ने मेरी चूत चाटी नहीं थी।
 
एक बार मैं और नीरव ब्लू-फिल्म देख रहे थे तब उसमें चूत की चुसाई का दृश्य आया था। वो देखते हुये मैंने नीरव को कहा था- “मुझे भी वो लोग जैसा कर रहे हैं वैसा कर दो ना..."

मेरी बात सुनकर नीरव हँसने लगा और बोला- “पगली, ये सब ऐसे ही दिखाते हैं। इसमें डाला जाता है, चाटा नहीं जाता..." तब नीरव की बात सुनकर मैं खामोश हो गई थी। पर धीरे-धीरे नीरव डालना भी भूल गया था।

ये सब सोचते-सोचते मुझे कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला, और कितनी देर सोती रही वो भी पता नहीं।

करण ने आकर मुझे जगाया तब मैं जागी।

करण- “कैसी हो निशा डार्लिंग?” करण ने आते ही मेरी तबीयत का हाल पूछा।

मैं- “मैं तो ठीक हूँ, पर तुम कहां थे? बहुत दिनों बाद मेरी याद आई..” मैंने बनावटी गुस्से से कहा।

करण- “अब हमारी जरूरत कहां है आपको? दो दिन पहले अंकल और आज रामू... तुम्हारे तो आजकल मजे ही मजे हैं...” करण ने शरारत से कहा।

मैं- “नहीं करण ऐसी बात नहीं... वो अंकल तो बेचारे न जाने कितने सालों से सेक्स के बिना तड़प रहे थे। इसलिए...” मैंने करण का हाथ खींचा और उसे बेड पर बिठाते हुये कहा।

 
मैं- “मैं तो ठीक हूँ, पर तुम कहां थे? बहुत दिनों बाद मेरी याद आई..” मैंने बनावटी गुस्से से कहा।

करण- “अब हमारी जरूरत कहां है आपको? दो दिन पहले अंकल और आज रामू... तुम्हारे तो आजकल मजे ही मजे हैं...” करण ने शरारत से कहा।

मैं- “नहीं करण ऐसी बात नहीं... वो अंकल तो बेचारे न जाने कितने सालों से सेक्स के बिना तड़प रहे थे। इसलिए...” मैंने करण का हाथ खींचा और उसे बेड पर बिठाते हुये कहा।

करण- “वाह निशा वाह... पूरी दुनियां में तुम जैसी समाज-सेविका नहीं मिलेगी। तुम्हें तो अवार्ड मिलना चाहिए कि तुम कभी अपने लिए करती ही नहीं हो। कभी दीदी के लिए, तो कभी जोर जबरदस्ती होता है, और आज तो तूने एक नया बहाना निकाला की वो बेचारे को सेक्स किए कितने साल हो गये थे इसलिए? ऐसे लोग तो बहुत हैं दुनियां में सबसे चुदवाएगी क्या? सारी दुनियां प्यासी है। तुमने उन लोगों के लिए चूत की प्याऊ खोल रखी है। क्या?” करण व्यंग में बोले ही जा रहा था।

मैं- “मैं झूठ नहीं बोल रही करण, जो सच है वोही कह रही हूँ...” मैं करण के सीने पर मेरा सिर रखते हुये बोली।

करण- “चलो मैं मान लेता हूँ की तुम सच कह रही हो। पर अब जब भी करो अपने लिए करो, दूसरों के लिए नहीं...” कहकर करण ने एक हाथ से मुझे बाहों में ले लिया था और दूसरे हाथ से मेरी पीठ को सहलाने लगा। करण ने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए और मेरे दोनों होंठों को बारी-बारी चूसने लगा।

मैं भी पूरी तल्लीनता से उसके होंठ चूस रही थी। थोड़ी देर हम दोनों इसी मुद्रा में रहे।

फिर करण ने मुझे उससे अलग करते हुये कहा- “निशा जिससे भी सेक्स करो, दिल से करो दिमाग से नहीं। जिससे प्यार करो उसी से सेक्स करो..”

मैं- “प्यार... प्यार तो मैं सिर्फ नीरव से ही करती हूँ, करण...” मैंने कहा।

करण- “और किसी से भी नहीं करती?” करण ने एक पेचीदा सवाल पूछ डाला।

मैं- “और... और जीजू और तुम, तुम दोनों भी मुझे पसंद हो। पर करण तुम कहां हो? बताओ मुझे कहां हो तुम

और जीजू, तुमने आज सुबह देखा था ना दीदी ने मुझे क्या-क्या बोला?” ये सब बोलते हुये मैं रो पड़ी।

करण- "तो निशा उल्टा करो, जिससे सेक्स करो उससे प्यार करो। तुम सेक्स करते वक़्त सिर्फ अपने बारे में ही सोचती हो, अब सामने वाले के बारे में भी सोचा करो। सामने वाला तुम्हें जो मजा देता है तुम भी उसे दो...” करण ने कहा।

मैं- “अब छोड़िए इन बातों को मेरे सेक्स टीचर, तुम कुछ भूल रहे हो करण...” मैंने चंचलता से करण को कहा।

करण- “मुझे सब कुछ याद है निशा रानी... आज तुम्हारी बर्थ-डे है, मेनी मेनी हैपी रिटर्न्स आफ द ई, आप जियो हजारों साल और साल के दिन हों पचास हजार..” करण ने मेरे सिर को अपने सीने से लगाया और कहा।

मैं- “बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब का..” मैंने मुश्कुराकर कहा।

करण- "तुम्हारी उमर तो बताओ निशा?” करण ने पूछा।

मैं- “लड़कियों की उमर नहीं पूछी जाती जनाब, फिर भी तुम ही बताओ...” मैंने कहा।
 
करण- “साड़ी में 21 साल, जीन्स में 19 साल और स्कूल ड्रेस पहन लोगी ना तो 15 साल...” करण ने अपने गाल पर उंगली रखकर सोचने की मुद्रा बनाते हुये कहा।

मैं- “साड़ी में 21 साल? इतनी बड़ी नहीं हूँ मैं, कह देती हूँ मैं..” मैंने बनावटी गुस्से से कहा।

करण- “ये तो बताओ कि नीरव ने आज तुम्हें क्या दिया?” करण ने पूछा।

मैं- “वो तो शाम को आते वक़्त लेकर आएगा, फिर हम होटेल में भी जाने वाले हैं...” मैंने कहा।

करण- “तो फिर आज का सबसे पहला गिफ्ट तुम्हें रामू ने दिया ना?” करण ने मुश्कुराते हुये पूछा।

मैं- “ये क्या करण? हमेशा तुम ऐसी बातें करके मुझे चिढ़ाते रहते हो, उसे कोई गिफ्ट कहता है भला?”

करण- “ये तुम्हारी तृप्ति गिफ्ट नहीं है तो क्या है? ये इतने सारे ओगैस्म क्या हैं? कभी सोचा था की एक घंटे के अंदर तुम दो-दो बार झड़ जाओगी? ये गिफ्ट ही तो है.." करण बोले ही जा रहा था।

तभी मोबाइल की रिंग बज उठी, मैं मेरी सपनों की दुनियां से वापस लौट आई, और मैंने मोबाइल उठाकर देखा तो नीरव की काल थी।

मैं- “हाँ, बोलो नीरव..” मैंने कहा।

नीरव- “अभी 5:00 बजे हैं, जल्दी-जल्दी तैयार हो जाओ फिल्म देखने जाते हैं..” नीरव ने कहा।

मैं- “नहीं... फिल्म में नहीं जाना, तुम जल्दी घर आ जाओ..” मैंने कहा।

नीरव- “ओके बेबी... मैं जल्दी से आ रहा हूँ.” कहकर नीरव ने काल काट दी।

थोड़ी देर बाद नीरव आया तब तक मैं तैयार हो चुकी थी।

नीरव मेरे लिए गिफ्ट लेकर आया था, जो मुझे बहुत पसंद आई। फिर हम दोनों ने बाहर खाना खाया और रात को बेड पर नीरव आज भी उंगली से ही सेक्स करना चाहता था, पर मैंने उससे जिद करके मेरी चुदाई करवाई। हर रोज सेक्स न करने की वजह से आज भी वो जल्दी से झड़ गया और उसने मेरी चूत को अपने वीर्य से भर दिया। पर आज मैं इतनी संतुष्ट थी की मैंने नीरव से कोई फरियाद नहीं की। और वैसे भी मैं तो उसका वीर्य मेरी चूत में लेना चाहती थी। क्योंकि कल मैं किसी और से प्रेगनेंट हो जाऊँ तो उसे मुझ पर कोई शक न हो।

दूसरे दिन सुबह जब मैं उठी तब मुझे हर रोज से ज्यादा ताजगी महसूस हो रही थी। नीरव के जाने के बाद रसोई करते हुये मैं कल करण के साथ हुई बातें याद कर रही थी- “निशा, जिसे तुम प्यार करती हो वो तुम्हारी बदन की भूख न मिटा सकता हो तो, उससे प्यार करो जो तुम्हारी वासना की आग को ठंडा कर रहा हो...”
 
दूसरे दिन सुबह जब मैं उठी तब मुझे हर रोज से ज्यादा ताजगी महसूस हो रही थी। नीरव के जाने के बाद रसोई करते हुये मैं कल करण के साथ हुई बातें याद कर रही थी- “निशा, जिसे तुम प्यार करती हो वो तुम्हारी बदन की भूख न मिटा सकता हो तो, उससे प्यार करो जो तुम्हारी वासना की आग को ठंडा कर रहा हो...”

करण की आवाज़ मेरे मस्तिष्क में गूंज रही थी। करण मर्द है और उसके लिए सेक्स से ज्यादा कुछ नहीं। पर। हम औरतें तो प्यार पाने के लिए सेक्स करती हैं, और मर्द सेक्स के लिए प्यार जताते हैं। यही तो फर्क है हम औरतों और मर्दो में। पर मुझे तो दोनों चाहिए... सेक्स भी चाहिए और प्यार भी चाहिए। पर मेरी विडंबना तो । देखो कि मुझे दोनों को लिए दो अलग-अलग इंसानों की जरूरत पड़ती है। मैं न जाने क्या-क्या सोचती रही और कितनी देर तक सोचती रही, बीच-बीच में मेरा रूटीन काम करती रही।

शंकर आया तो उसे टिफिन दे दिया और मैंने खाना भी खा लिया। तभी मेरा ध्यान घड़ी पर गया तो एक बज चुका था, रामू अभी तक नहीं आया था। हर रोज तो 12:30 बजे के आसपास आ जाता था तो आज कहां गया होगा? कभी कभार देरी करता होगा तो मेरा ध्यान भी नहीं जाता होगा। पर आज मुझे उसका इंतेजार था, और 15 मिनट हो गई पर रामू नहीं आया। मुझे हर एक सेकेंड घंटे के समान लग रहा था।

तभी लिफ्ट आई और रामू दिखाई दिया। मैं मन ही मन खुश हो गई, पर मैं अपनी खुशी उसके सामने जाहिर करना नहीं चाहती थी। मैं उठकर हर रोज की तरह रूम में चली गई और उस पल का इंतेजार करने लगी की रामू काम खतम होते ही दरवाजा खटखटाएगा और अंदर आ जाएगा।

थोड़ी देर बाद रामू ने दरवाजा खटखटाया- “जा रहा हूँ मेडम...”

मैंने एकाध मिनट के बाद दरवाजा खोला। मैंने सोचा था की रामू बाहर होगा पर वहां कोई नहीं था। मैं दरवाजे पर गई, वहां रामू नहीं था। मैं समझ गई की वो अंदर होगा। दरवाजा बंद करके जल्दी-जल्दी अंदर गई पर वहां कोई नहीं था। फिर मैंने सारा घर छान मारा पर रामू कहीं नहीं था। मैं निराश होकर बेड पर लेट गई।

मैं सोचने लगी- “रामू ने ऐसा क्यों किया होगा? क्यों चला गया होगा? क्या उसे मुझसे ज्यादा कान्ता अच्छी। लगती होगी?” ढेरों सवालों ने मुझे घेर लिया था, पर मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मेरे बदन में आग सी लगी हुई थी। मुझे दोनों टांगों के बीच इंडे की जरूरत महसूस हो रही थी।

मैंने मेरा गाउन ऊपर उठाया, अंदर कुछ नहीं पहना था। मैंने मेरी उंगलियों से मेरी चूत के बाहरी भाग को सहलाया। ज्यादा बालों की वजह से कम मजा आया। मैंने मेरी उंगली चूत के अंदर डालकर आगे-पीछे करनी शुरू कर दी। मैं बहुत कम मास्टरबेट करती हूँ, पर जब भी करती हूँ तब किसी की कल्पना करते हुये करती हूँ।

पर आज मेरी आँख बंद करते ही कितने सारे लण्ड मुझे दिखाई दिए। उंगली चूत के अंदर-बाहर करते हुये वो सारे लण्ड देखते हुये मैं जल्दी से झड़ गई।
 
थोड़ी देर बाद अंकल की काल आई, मैं चहक उठी। क्योंकि मुझे अंकल के साथ चुदाई करने से ज्यादा मजा फोन सेक्स में आया था। शायद उसकी वजह ये भी हो सकती है की वो मेरे लिए एक नया खेल था, और आजकल मैं हर रोज नये-नये खेल सीख रही थी।

मैं- “हाँ कहिए अंकल, आंटी कैसी हैं?” मैंने पूछा।

अंकल- “फिर से तेरी आंटी कोमा में चली गई है बिटिया। कहीं मुझे अकेला छोड़कर चली तो नहीं जाएगी ना? ये डर सारा दिन मुझे सताता रहता है। मैंने बहुत ही पाप किए हैं, भगवान उसकी सजा मुझे इस तरह न दे दे...” अंकल की आवाज में दर्द था।

मैं- “नहीं-नहीं अंकल, ये कैसी बातें कर रहे है आप? आंटी बहुत जल्दी ही ठीक हो जाएंगी...” मैंने अंकल को सांत्वना देते हुये कहा।

अंकल- “भगवान करे और तेरी बात सही हो जाय, तुम लोग नहीं आए दो दिन से...” अंकल ने कहा।

मैं- “नीरव को कहीं जाना नहीं होगा तो, रात को जरूर आएंगे अंकल। कुछ लाना हो तो बताना, हम लेकर आएंगे...” मैंने कहा।

अंकल- “नहीं बिटिया, कुछ नहीं लाना। थोड़ी देर आप लोग आओगे तो मन लगा रहेगा...” अंकल ने कहा।

मैं- “फिर भी अंकल, जरूरत हो तो कहना। आते वक़्त लेकर आएंगे, रखती हूँ.” मैंने कहा।

अंकल- “हाँ, बिटिया...” कहकर अंकल ने काल काट दी।

मैं सोच में पड़ गई की बूढ़ा कुछ उल्टा सीधा नहीं बोला। सच में सुधर गया क्या? मुझे तो यकीन नहीं हो रहा था। पर आज उनकी बातों में बहुत ही दर्द नजर आ रहा था। फिर मैंने सोचा कि जो भी होगा रात को जाएंगे। तब सब पता चल जाएगा।

9:00 बजे नीरव आया, खाना खाकर हम हास्पिटल गये। अंकल आंटी का हाथ पकड़कर स्टूल पर बैठे हुये थे। हमें देखकर उनके चेहरे पे थोड़ी सी मुश्कान आई। आंटी की हालत तो वैसी की वैसी थी। उनको देखकर ऐसा लग रहा था की न जाने कितने सालों से थककर वो आराम कर रही हैं।
 
9:00 बजे नीरव आया, खाना खाकर हम हास्पिटल गये। अंकल आंटी का हाथ पकड़कर स्टूल पर बैठे हुये थे। हमें देखकर उनके चेहरे पे थोड़ी सी मुश्कान आई। आंटी की हालत तो वैसी की वैसी थी। उनको देखकर ऐसा लग रहा था की न जाने कितने सालों से थककर वो आराम कर रही हैं।

केयूर (अंकल का बेटा) का भेजा हुवा आदमी बैठा हुवा था। हमारे जाते ही अंकल ने उससे कहा- “तुम तुम्हारी बहन को मिल आओ, एकाध घंटा हैं ये लोग, तब तक वापस आ जाना.." और फिर हमारी तरफ होते हुये बोले

ये आदमी आया तब से यहां से बाहर नहीं निकाला था, उसकी बहन यहीं पर रहती है पर मिलने नहीं गया। बहुत अच्छा इंसान है...”

अंकल की बात पूरी होते ही वो खड़ा हुवा और बाथरूम में जाकर फ्रेश होकर बाहर निकल गया।

नीरव- “डाक्टर क्या कह रहे हैं?” नीरव ने पूछा।

अंकल- “वही पुराने आलाप बजा रहे हैं की उमर की वजह से ठीक होने में समय लगेगा ही..." अंकल ने कहा।

नीरव- “अंकल दूसरे डाक्टरों को दिखाना चाहिए मेरे खयाल से..." नीरव ने कहा।

अंकल- “इस उमर में मैं कितना दौडू बेटा? परसों तक केयूर आ जाएगा, फिर वो जहां-जहां दिखाना है वहां-वहां दिखाएगा...” अंकल ने कहा और फिर पलंग पर से खड़े हुये जैसे की अचानक उन्हें कुछ याद आया हो। फिर कहा- “तुम दोनों बैठो बेटा, मैं दवाई लेकर आता हूँ..”

अंकल दरवाजा खोलकर बाहर निकल ही रहे थे की नीरव ने कहा- “लाइए अंकल मैं ला देता हूँ...”

अंकल ने तुरंत अपने पाकेट में से दवाई का कागज निकाला और नीरव को थमाकर फिर से पलंग पर बैठ गये।

कागज लेकर नीरव खड़ा हुवा और दरवाजे पर जाकर दरवाजा खोलकर बाहर निकल ही रहा था कि अंकल फिर से बोले- “बेटा सिविल हास्पिटल जाकर लाना, वो लोग 10% लेस देते हैं। बहुत ही महँगी दवाइयां हैं, कम से कम 1500 का फायदा होगा...”

अंकल की बात सुनकर मेरे चेहरे पर मुश्कुराहट आ गई और मैं मन ही मन बोली- “हरामी बूढ़ा...”

नीरव- “ओके अंकल...” इतना कहकर नीरव निकल गया।

नीरव के जाने के बाद अंकल पलंग पर से उठे और किसी फिल्मी हीरो की अदा से दोनों हाथों को चौड़ा करके खड़े हो गये। मैं उनकी इस अदा पर मर मिटी और उनको सामने देखकर जोरों से हँसने लगी और फिर खड़ी होकर उनसे लिपट गई।

थोड़ी देर तक हम दोनों लिपटकर ऐसे ही खड़े रहे फिर मैंने अंकल को कहा- “दरवाजे का लाक खुला है अंकल...”

अंकल मुझसे अलग होकर दरवाजे पर लाक लगाकर आए और मेरे पास जमीन पर बैठ गये और मेरा हाथ पकड़कर मुझे खींचा तो मैं भी बैठ गई।

अंकल- “सो जाओ बिटिया..” अंकल ने कहा तो मैं जमीन पर लेट गई।

अंकल ने झुक के मेरे पेट पर चुंबन लिया और फिर थोड़ा और झुक के नाभि पर भी चुंबन लिया और बोलेएक तुम और दूसरी तुम्हारी आंटी, नाभि के नीचे से साड़ी पहनती हो, बाकी ज्यादातर गुज्जू लड़कियां तो नाभि को साड़ी में ही छुपा देती हैं, जैसे नाभि नहीं चूत हो...”

अंकल की बातें हमेशा मजेदार ही होती हैं। अंकल ने मेरी साड़ी जांघ तक ऊपर उठाई और फिर उसे सहलाने लगे और फिर वो भी मेरे बाजू में लेट गये और मेरे होंठों पर होंठ रखकर किस करने लगे।

मैंने भी अंकल को बाहों में भींच लिया। अंकल मेरे उरोजों को दबाते हुये मेरे ब्लाउज के बटन खोलने लगे, तो मैंने उन्हें रोका- “अंकल, नीरव कभी भी आ सकता है...”
 
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