Hindi Antarvasna - चुदासी - Page 9 - SexBaba
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Hindi Antarvasna - चुदासी


तभी मेरे उरोजों पर स्पर्श होते ही मैंने आँखें खोल दीं। रामू मेरे उरोजों को सहला रहा था उसकी रूखी और सख्त हथेलियां मेरे उरोजों को कहीं खरोंच न दें ऐसा डर मुझे लगने लगा।

रामू- “मेमसाब आप घूम जाओ..” रामू ने मेरे बायें उरोज के निप्पल को दो उंगली से दबाते हुये कहा।

रामू की बात सुनकर मैं डर गई की कहीं ये मेरी गाण्ड का इस्तेमाल तो नहीं करना चाहता ना? थोड़ी ही देर पहले मैंने उसकी दी हुई सी.डी. में देखा भी था- “नहीं रामू, प्लीज़...” मेरे मुँह से इतने ही शब्द निकले।

रामू- “अरे मेमसाब अपुन आपके साथ कुछ उल्टा सीधा नहीं करने वाला, मैं जो करूंगा उससे आपका चुदवाने का मूड फिर से आ जाएगा...”

रामू की बात सुनकर मैं डरती हुई पीछे की तरफ हुई।
राम्- “अब मेमसाब कुतिया बन जाओ..” रामू ने कहा।

मैं- “क्या?” मैंने पूछा।

रामू- “दो हाथ और दो पैरों पे हो जाओ...” रामू ने कहा।

मैं उसके कहे मुताबिक हो गई और मेरे स्तन नीचे की तरफ झूलने लगे। रामू ने मेरी गाण्ड को थोड़ी देर सहलाया और फिर पीछे की तरफ चला गया।

अब क्या होगा वो सोचकर मुझे डर लग रहा था। तभी मुझे मेरी गाण्ड के छेद पे कुछ गीला लगने का अहसास हुवा। मैंने पूछा- “क्या कर रहे हो?”

रामू- “आपकी ये मस्त मलाई जैसी गाण्ड चाटने जा रहा हूँ मेमसाब, जिससे आप फिर से गरम हो जाओगी...” रामू ने कहा और फिर से उसने उसी जगह पर चाटा।

मैं देख तो नहीं सकती थी, पर स्पर्श से इतना पता तो चल ही रहा था की वो कहां-कहां और किस चीज से चाट रहा है। रामू ने उसकी जबान से मेरी गाण्ड के छेद के ऊपर के हिस्से को थोड़ी देर चाटा। रामू ने चाटना शुरू किया था तब से मेरी सिसकारियां चालू हो गई थी। रामू ने मेरे दो कूल्हों को अलग दिशा में खींचा और वो अब अंदर तक जबान डालकर चाटने लगा।

उसके बाद तो मैं बिल्कुल ही पागल हो गई और सिसकारियों की बजाय चीखने लगी और रामू को रुकने को कहने लगी- “अब बस करो रामू, मुझसे सहन नहीं हो रहा, कहीं मैं फिर से न छूट जाऊँ, छोड़ो रामू...”
 
उसके बाद तो मैं बिल्कुल ही पागल हो गई और सिसकारियों की बजाय चीखने लगी और रामू को रुकने को कहने लगी- “अब बस करो रामू, मुझसे सहन नहीं हो रहा, कहीं मैं फिर से न छूट जाऊँ, छोड़ो रामू...”

रामू मेरी बात सुने बगैर अपना काम किए ही जा रहा था और मैं अपना संतुलन खो बैठी, मैं एक तरफ ढल के झुक गई और लेट गई। रामू ने चाटना बंद किया और कहा- “मजा आया ना मेमसाब?”

मैंने मेरा सिर ‘हाँ, में हिलाया।

रामू बेड से नीचे उतारकर अपने कपड़े निकालने लगा। मैं सीधी हो गई और उसे देखने लगी। रामू हमेशा खाकी चड्डी और टी-शर्ट में ही होता है, शायद उसके पास 2-3 खाकी चड्डी होगी। रामू ने अपनी टी-शर्ट निकाल दी और अपना सीना तानकर मुझे दिखाने लगा, कहा- “देखिए मेमसाब, मेरी बाडी सलमान खान जैसी ही है ना?”

मैं क्या बोलँ उसकी बाडी सलमान खान तो क्या पृनीत इस्सर से भी ज्यादा थी, उसका बदन बहत भारी था और साथ में आगे से निकली हुई तोंद देखकर उसका शरीर और तगड़ा लगता था। उसकी बाहें मेरी जांघों जितनी भरावदर थी। उसने जैसे ही चड्डी निकाली तो सबसे पहले मैंने उसके लण्ड की तरफ नजर डाली। बहुत ही बड़ा लण्ड था उसका, सुबह देखी हुई ब्लू-फिल्मों के माडेल के जितना। लण्ड के आजू-बाजू में बाल भी खूब थे। उसका लण्ड इतना बड़ा न होता तो शायद बालों के पीछे से दिखता भी नहीं। रामू काला तो था ही पर उसका लण्ड उससे भी ज्यादा काला था, मतलब की रामू में देखने जैसा कुछ भी नहीं था। फिर भी मैं उसे निहारती रही। कपड़े निकालकर रामू मेरे ऊपर आ गया और मेरे मम्मों को चूसने लगा।

मैं गरम तो पहले से हो ही गई थी और गरम होकर उसके बालों को सहलाने लगी।

रामू ने अपना लण्ड मेरी चूत के आजू-बाजू रगड़ना चालू किया और कहा- “सच में मेमसाब आप आज भी कोरा माल लगती हो...”

मैं आने वाले दर्द को सहने के लिए दिल को तैयार करने लगी। रामू ने अपना लण्ड मेरी चूत के द्वार पर रखा। मेरी सांसें रुक गई और मैं आने वाले हर एक पल का इंतेजार करने लगी। रामू ने अपने चूतड़ों को ऊपर उठाया और एक ही झटके में पूरे लण्ड को अंदर घुसेड़ दिया। मेरे मुँह से छोटी सी चीख निकल गई।

रामू- “मेमसाब बहुत ही नाझुक हो आप, दो बार की चुदाई के बाद भी सह नहीं पा रही हो...” रामू ने लण्ड को थोड़ा बाहर निकाला और फिर धीरे से अंदर डाला, 2-3 बार ऐसा करने के बाद वो स्पीड से करने लगा। धीरे-धीरे गति बढ़ने के साथ-साथ वो लण्ड भी ज्यादा अंदर तक और बाहर तक ले जाने लगा।
 
मैं मस्ती के महासागर में खोने लगी। मैंने रामू को मेरी बाहों की गिरफ्त में कैद कर लिया।

चोदते-चोदते रामू ने उसके होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। उसके मुँह से बीड़ी और शराब की मिली-जुली बदबू आ रही थी। मैंने सोचा रामू को हर रोज ना बोलूंगी, तो शायद उसे अच्छा नहीं लगेगा, थोड़ी देर कर लेने दो। रामू ने मेरे ऊपर के होंठ को उसके दोनों होंठों के बीच लेकर चूसना चालू किया। रामू बड़े इतनिनम और लज़्ज़त से मेरे होंठ चूसते हुये तेजी से मेरी चुदाई कर रहा था। वो अब ऊपर का होंठ छोड़कर नीचे का होंठ चूस रहा था।

मैंने मेरे पैरों को उसकी कमर के चौतरफा लपेट दिए थे, और साथ में वो जब लण्ड पीछे लेता था तब मैं गाण्ड उठाकर ऊपर कर रही थी। मेरे हाथ उसकी नंगी पीठ को सहला रहे थे, मतलब की आज मैं उसे पूरा सहयोग दे रही थी। मैं सिर्फ उसे होंठ चूसने में सहयोग नहीं दे रही थी, बल्की मेरे मुँह को ज्यादा खुला रखकर उसके होंठों से मेरा दूसरा होंठ दूर रख रही थी।

रामू ने मेरा सिर ऊपर करके उसका हाथ मेरे सिर के नीचे डाल दिया, जिससे मेरा सिर थोड़ा और ऊपर हो गया और एक साइड के बालों को वो अपनी उंगलियों से सहलाने लगा। उसने दूसरे हाथ से मेरे स्तनों को सहलाना। चालू किया तो मैं और मदहोश होने लगी।

रामू ने अब मेरे होंठ छोड़कर गर्दन को चूमना चालू कर दिया। ये सब करने के साथ-साथ वो अपनी चुदाई की। स्पीड धीरे-धीरे बढ़ाते ही जा रहा था। मुझे उसका लण्ड नाभि तक जाता हुवा महसूस हो रहा था। वो लण्ड को सुपाड़े तक बाहर निकालकर फिर से पूरा अंदर डालता था। वो जब भी लण्ड को पूरा अंदर डालता था तब उसके लण्ड के आजू-बाजू के बालों से मुझे गुदगुदी हो रही थी।

मेरे मुँह से सिसकारियां रामू की स्पीड के साथ बढ़ती जा रही थीं, मैं अपने आप पर का काबू खो चुकी थी।

रामू- “सच में मेमसाब आप मस्त चुदवाती हो..” रामू ने मेरी गरदन पर अपनी जबान से चाटते हुये कहा।

मैं- “उम्म्म्म हूँ.” मेरे मुँह से इतना ही निकला और मैं फिर से सिसकारियां लेने लगी।
 
रामू- “सच में मेमसाब आप मस्त चुदवाती हो..” रामू ने मेरी गरदन पर अपनी जबान से चाटते हुये कहा।

मैं- “उम्म्म्म हूँ.” मेरे मुँह से इतना ही निकला और मैं फिर से सिसकारियां लेने लगी।

रामू ने फिर से उसके होंठों के बीच मेरा ऊपर का होंठ ले लिया।

रामू के लण्ड की सख्ती और ताकत मुझसे सहन नहीं हो पा रही थी। मुझे हर फटके के साथ मीठा दर्द दे जाती थी। मैंने अपने होंठ भींचे और मैं भी रामू के होंठ को चूसने लगी। मुझे मेरा दर्द कम होता महसूस हुवा और मजा बढ़ गया। अब मेरे हाथ की उंगलियां रामू के बालों में थी। हम दोनों एक दूसरे के होंठों को चूस रहे थे। रामू की और मेरी सांसें भारी होने लगी थीं, और रूम हमारी दोनों की सांसें और सिसकरियों से गूंज रहा था। एसी चालू था फिर भी रामू का शरीर पसीने से तरबतर हो गया था, और उसके बदन से चूकर मुझे भिगा रहा था। रामू ने स्तन पे से हाथ उठाकर मेरी गाण्ड पे रख दिया और उसे सहलाते हुये ऊपर की तरफ करने लगा।

मुझे अब लगने लगा था की मैं अब कभी भी झड़ सकती हैं, क्योंकि मेरे मुँह से अब सिसकारियों की जगह सीटियां निकलने लगी थीं। पर रामू अभी भी पूरे जोश में था। मुझे लगा की शायद मैं झड़ने के बाद रामू को झेल नहीं पाऊँगी, इसलिये वो मुझसे पहले झड़ जाए तो अच्छा होगा।

तभी रामू ने अचानक ही मेरी गाण्ड के अंदर उंगली घुसेड़ दी, जिससे मेरे मुँह से हल्की सी चीख निकल गई। मेरे मुँह खोलते ही रामू ने अपनी जबान मेरे मुँह के अंदर डाल दी, जो मेरे लिए सहन करना ज्यादा मुश्किल हो गया। मेरा चुदाई का मजा थोड़ा किरकिरा हो गया। मेरा सारा ध्यान मेरे मुँह के अंदर उसकी दाखिल की हुई। जबान पर चला गया। वो अपनी जबान से मेरे मुँह का जायजा लेने लगा। उसने उसकी जबान मेरे पूरे मुँह के अंदर घुमाई और फिर वो मेरी जीभ के साथ उसे घिसने लगा।

धीरे-धीरे फिर से मेरा मस्तिष्क चुदाई की तरफ हो गया। साथ में जबान से जबान लड़ाने में मुझे भी मजा आने लगा। रामू के मुँह में से थूक मेरे मुँह में आकर मेरे गले में उतर रहा था।

रामू- “आज से आप अपुन की रंडी बन चुकी हैं मेमसाब...” रामू ने मेरे मुँह में मुँह रखकर ही कहा।

मुझे उसकी बात ज्यादा समझ में नहीं आई।

अब हम दोनों की सांसें भारी होने लगी थीं। रामू झड़ने से पहले अपनी स्पीड बढ़ाता ही जा रहा था। मैं भी अपनी गाण्ड को ऊपर कर-करके चुदवाकर जल्दी झड़ना चाहती थी। रामू ने मेरी जीभ से उसकी जबान को भी घिसना तेज कर दिया था। हम दोनों एक दूसरे के बदन में ज्यादा से ज्यादा समाने की कोशिश करने लगे थे।

और फिर थोड़ी ही देर में मैं झड़ने लगी और मेरे झड़ने के चंद सेकंड के बाद ही रामू ने भी अपना वीर्य मेरी चूत में छोड़ दिया। रामू के लण्ड से जब तक वीर्य निकलता रहा तब तक वो मेरे ऊपर रहा और फिर मुँह पर से हटकर वो मेरे बाजू में लेट गया।
 
रामू- “मजा आया ना मेमसाब?” थोड़ी देर बाद रामू ने पूछा।

मैंने कोई जवाब नहीं दिया।

तब उसने फिर से पूछा- “बोलो ना मेमसाब?”

मैं- “हाँ..”

मेरे इतना कहते ही रामू खुश हो गया और उसने अपना एक हाथ मेरे नीचे डाला और दूसरे हाथ से मेरा हाथ पकड़कर मुझे उसके ऊपर खींच लिया। मैं उसके पसीने से लथपथ शरीर पर हो गई।

रामू- “किस करो ना मेमसाब...” रामू ने कहा।

मैंने झुक के उसके होंठों को चूमना चालू कर दिया। थोड़ी देर में ऐसे ही उसके होंठों को चूसती रही तो रामू ने। अपना मुँह खोल दिया। मैंने अपनी जबान उसके मुँह के अंदर डाल दी और उसी की तरह मैंने भी उसके मुँह का पूरा जायजा लिया। फिर मैंने अपनी जीभ बाहर निकाली।

मैं- “अब तुम जाओ...” कहते हुये मैं रामू के ऊपर से हट गई।

रामू- “आपको छोड़कर जाने का दिल नहीं करता मेमसाब, पर जाना पड़ेगा...” कहते हुये रामू खड़ा हुवा और अपने कपड़े पहनने लगा।

मैंने भी खड़े होकर कपबोर्ड से गाउन निकालकर पहन लिया।

कपड़े पहनकर बाहर निकलते हुये रामू बोला- “मेमसाब, एक बार आपकी चुदाई मैं झंडू बाम लगाकर करूँगा...”

रामू के जाने के बाद मैं गहरी सोच में पड़ गई। मैंने आज जो रामू के साथ पूरे समर्पण से मेरी चुदाई करवाई थी, वो मैंने सही किया या गलत? वो मैं समझ नहीं पा रही थी। मैं अब मेरे जिश्म की भूख सह नहीं पा रही थी। रामू मुझे पसंद नहीं था, फिर भी मैंने जिस तरह से उसके सामने मेरा बदन परोस दिया था, वो मेरे लिए भी एक आश्चर्य था। फिर भी एक बात तो तय ही थी की रामू मुझे पसंद नहीं है, फिर भी उसके साथ संभोग के बाद मेरे दिल को जो शांती और बदन को जो सकून मिलता है वो उसके पहले मुझे किसी के साथ नहीं मिला था। बहुत सोचने के बाद भी मैं कोई नतीजे पे न पहुँच सकी तो मैंने सोचना छोड़ दिया।

दूसरे दिन जैसे ही रामू काम करने आया तो मैं बेडरूम में चली गई और वो कब काम खतम करके अंदर आए उसकी राह देखने लगी।

तभी मेरे मोबाइल की रिंग बजी। मैंने उसकी स्क्रीन पे नजर डाली। मीना दीदी का काल था। मैं सोच में पड़ गई की दीदी ने क्यों मुझे काल किया होगा? फिर से तो कोई झगड़ा नहीं करेगी ना? और मैंने काल काट दिया।
 
दूसरे दिन जैसे ही रामू काम करने आया तो मैं बेडरूम में चली गई और वो कब काम खतम करके अंदर आए उसकी राह देखने लगी।

तभी मेरे मोबाइल की रिंग बजी। मैंने उसकी स्क्रीन पे नजर डाली। मीना दीदी का काल था। मैं सोच में पड़ गई की दीदी ने क्यों मुझे काल किया होगा? फिर से तो कोई झगड़ा नहीं करेगी ना? और मैंने काल काट दिया।

चंद सेकंड में फिर से दीदी का काल आ गया। दीदी के साथ झगड़े के बाद मम्मी का भी फोन नहीं आया था। मैं जीजू के साथ मम्मी के कहने पर तो सोई थी, उसका शायद उन्हें अफसोस होगा। शायद मम्मी ने मेरी और दीदी की सुलह के लिए भी दीदी के पास फोन किया हो?

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डरते हुये मैंने मोबाइल उठाया तो सामने दीदी थी- “निशा...”

मैं- “हाँ बोलो...” मैं ज्यादा बोल ना पाई।

दीदी- “निशा, अपने जीजू को काल कर...” दीदी के स्वर में घबराहट थी।

मैं- “क्यों? कभी आप मुझसे जीजू से बात करने को ना बोलें, और कभी बोलने को कहें, ये क्या है?” मैंने रूखेपन से कहा।

दीदी- “प्लीज़्ज़... निशा अभी ज्यादा बात करने का समय नहीं है, तेरे जीजू आत्महत्या करने गये हैं..” बोलते हुये दीदी रोने लगी।

मैं- “क्या?” मैं चौंक पड़ी।

दीदी- “हाँ निशा...” दीदी ने कहा।

मैं- “पर क्यों दीदी?” मैंने आज की बातों में पहली बार दीदी को दीदी कहकर पुकारा।

दीदी- “तेरे जीजू को शेयर मार्केट में बहुत ज्यादा घाटा हो गया है। सब बेच के भी नुकसान की भरपाई होना नामुमकिन है। और पैसे लेने वालों ने भी उन्हें जान से मारने की धमकी दी हुई है। वो घर पे आज चिट्ठी लिखकर चले गये हैं की मैं मरने जा रहा हूँ..” दीदी ने उनकी बात फटाफट कह दी।

मैं- “पर उसमें मैं क्या कर सकती हूँ?” मैंने कहा।

दीदी- “मैं कब से उनका मोबाइल लगा रही हूँ, रिंग बज रही है, पर वो उठा नहीं रहे। शायद तुम्हारा काल उठा लें...” दीदी ने कहा।

मैं- “आप रखो दीदी, मैं जीजू को काल लगाती हूँ..” कहकर मैंने दीदी की काल काट दी।

दीदी का काल काटते ही रामू रूम के अंदर आया, बेड पर बैठ गया, और मेरे पैरों को सहलाने लगा। मेरा बदन भी वासना की आग में सुलग रहा था। मैं भी तो कब से उसका इंतेजार कर रही थी, पर दीदी से बात करने बाद मुझे पहले जीजू से बात करनी थी।

मैंने रामू को कहा- “अभी तुम जाओ रामू, मैं कुछ प्राब्लम में हूँ...” मैं सोचती थी की शायद रामू मेरी बात जल्दी मानेगा नहीं, उसे मुझे समझाना पड़ेगा।

रामू मेरी सोच से विपरीत खड़ा हुवा और बाहर निकलने लगा। बाहर निकलते हुये ठहरा और मुझसे पूछा- “मेरे । लायक कोई काम हो तो बताना मेमसाब...”
 
मैं- “नहीं, तुम जाओ अभी प्लीज़्ज़...” मैं कुछ चिढ़ते हुये बोल उठी। मैं रामू के पीछे गई और उसके बाहर निकलते ही घर का मेनडोर बंद करके सोफे पर बैठ गई।

मैंने जीजू का मोबाइल लगाया, रिंग की जगह उनके मोबाइल में हेलो ट्यून बजने लगी- “जिंदगी एक सफर है। सुहाना, यहां कल क्या हो किसने जाना, मौत आनी है आएगी एक दिन, जान जानी है जाएगी एक दिन, ऐसी बातों से क्या घबराना जिंदगी एक सफर है सुहाना, यहां कल क्या हो किसने जाना...”

पूरी हेलो ट्यून खतम हो गई, पर जीजू ने फोन नहीं उठाया।

मैंने रिडायल किया और बोलने लगी- “प्लीज़... जीजू फोन उठाओ प्लीज़... जीजू प्लीज़... फोन उठाओ जीजू... फोन उठाओ, जीजू फोन उठाओ, जीजू आपको अपनी साली की कसम फोन उठाओ...”

और जैसे जीजू ने मेरी बात सुन ली हो, वैसे उन्होंने फोन उठाया और उनकी आवाज सुनाई दी- “हेलो..”

मैं- “हाय जीजू कैसे हो?” मैंने मन ही मन सोच लिया की पहले ऐसे ही बात करूंगी फिर धीरे से बात निकालूंगी।

जीजू- “अच्छा हूँ और दसवीं मंजिल पर बैठा हूँ, कूदने के लिए हिम्मत जुटा रहा हूँ..” जीजू ने सीधा ऐसी बात कही की मेरी बोलती बंद हो गई।

मैंने धीरे-धीरे एक-एक शब्द को अलग-अलग करके बोला- “क्यों जीजू, क्या हुवा?”

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जीजू- “तेरी दीदी ने नहीं बताया क्या? तुझे फोन करने को कहा और क्यों मर रहा हूँ वो नहीं कहा क्या?” जीजू ने फिर से मेरी बोलती बंद कर दी।

मैं- “जीजू ऐसी बातों के लिए कोई मरता है? आप दीदी का और पवन का तो खयाल कीजिए...” मैंने कहा।

जीजू- “मैं नहीं रहूँगा तो लेनदार पैसे लेने नहीं आएंगे, और जो है उससे पवन और तेरी दीदी का गुजारा आराम से हो जाएगा...” जीजू ने कहा। पर उसकी आवाज में जो दर्द था उससे मेरी आँखें नम हो गईं।

मैं- “कैसी बातें कर रहे हैं आप? दीदी को सिर्फ हर महीने घर चलाने के लिए पैसे चाहिए, उतनी ही जरूरत है। क्या आपकी? हो सकता है पवन को भी आपके बगैर सब कुछ मिल जाय, पर इतनी ही अहमियत है क्या आपकी? दीदी को पति का प्यार और पवन को पापा का प्यार कौन देगा बताओ जीजू?” बोलते हुये मैं भावुक होकर रोने लगी।

जीजू- “काश.. निशा, तुम जो कह रही हो ऐसा होता, पर सच ये है की तुम्हारी दीदी को मेरी जरूरत हर महीने ही पड़ती है। मेरी आदत है बरसों से मैं घर खर्च के लिए हर महीने एक साथ तेरी दीदी को पैसे देता हूँ और पिछले दो साल से तेरी दीदी में भी एक आदत आ गई है कि वो भी महीने में एक ही बार मेरा लण्ड लेती है, वो भी मासिक के दो दिन बाद, पूरी सुरक्षा के दिनों में। और रही बात पवन की तो वो अभी छोटा है, थोड़े दिन में भूल जाएगा...” जीजू बोलते हुये हॉफने लगे।

मैं- “जीजू अभी आप जो कह रहे हैं, उसके लिए आप ये सब कर रहे हैं की पैसे के लिए?” मैंने जीजू को पूछा।

जीजू- “पैसे के लिए ही मैं मर रहा हूँ निशा, मुझे कभी-कभी लगता है कि मैं जिंदगी की हर लड़ाई में फेल हूँ, ना पैसे, ना नाम, ना इज्ज़त, ना शोहरत, ना प्यार, मैं कुछ भी पा नहीं सका, बीवी भी सेक्स की जगह पूरा दिन । शक करे? ऐसी होती है लाइफ क्या? और इंसान को कोई चाहने वाला हो तो वो पूरी दुनियां से लड़ सकता है." जीजू ने निराशा से कहा।

मैं- “जीजू शोहरत और दौलत हर इंसान की तकदीर में नहीं होती, और जिस्मानी ताल्लुकात से ही प्यार का पता चलता है, ऐसा किसने कहा आपको? और आपने ये कैसे सोच लिया की आपको कोई प्यार नहीं करता...” मैंने भावुकता से कहा।

जीजू- “जिस्मानी ताल्लुकात से ही प्यार है ऐसा नहीं होता, पर प्यार जताने के लिए तो जिस्मानी ताल्लुकात जरूरी हैं, और मुझे हर रोज सेक्स चाहिए, वो तुम्हारी दीदी जानती है। फिर भी वो समझती क्यों नहीं? निशा, क्यों तेरी दीदी इस बारे में समझना नहीं चाहती और उसके सिवा मुझे प्यार करने वाला कौन है और मैं उससे नहीं तो किससे सेक्स की अपेक्षा रखू?” जीजू ने कहा।
 
जीजू- “जिस्मानी ताल्लुकात से ही प्यार है ऐसा नहीं होता, पर प्यार जताने के लिए तो जिस्मानी ताल्लुकात जरूरी हैं, और मुझे हर रोज सेक्स चाहिए, वो तुम्हारी दीदी जानती है। फिर भी वो समझती क्यों नहीं? निशा, क्यों तेरी दीदी इस बारे में समझना नहीं चाहती और उसके सिवा मुझे प्यार करने वाला कौन है और मैं उससे नहीं तो किससे सेक्स की अपेक्षा रखू?” जीजू ने कहा।

मैं- “मैं जीजू मैं, मैं हूँ ना आपसे प्यार करने वाली, और सामने वाला हमें न समझे तो हमारा प्यार थोड़ा कम हो जाता है। जीजू, दीदी आपको समझ नहीं पा रही, मैं समझाऊँगी उनको। आप अभी के अभी घर जाओ मैं आपकी जो फरियाद दीदी के लिए है वो मैं उसे समझाऊँगी...” मैंने जीजू को कहा।

जीजू- “झूठ बोल रही हो तुम... तुम अपने जीजू से प्यार करती होती तो मुझे पहले इतना तड़पाती क्यों? तुमने जो किया था वो तो अपनी दीदी के लिए किया था..” जीजू ने कहा। उनकी बात कुछ हद तक सही भी थी।

मैं- “नहीं जीजू, ऐसी बात नहीं है। मैं सच में आपसे प्यार करती हूँ, दिन रात बस आप ही के बारे में सोचती हूँ..” मैंने जीजू को आधा सच और आधा झूठ कहा।

जीजू- “सच में, मेरी कसम खाकर मुझसे कहो और हाँ जीजू मत कहना...” जीजू की बातों में अब निराशा कम हो गई थी।

मैं- “हाँ सच में, आपकी कसम, अनिल आई लोव यू..” मैंने शर्माते हुये कहा।

जीजू- “बैंक्स निशा, कोई प्यार करने वाला और हिम्मत देने वाला हो तो इंसान पूरी दुनियां से लड़ सकता है, वो जंगल में भी मंगल कर सकता है...” जीजू ने कहा।

मैं- “अब आप घर जा रहे हैं ना?” मैंने पूछा।

जीजू- “हाँ जान...” जीजू ने कहा।

मैं- “तो फिर जल्दी जाइए और आज के बाद कभी ये मत सोचना की दीदी आपसे प्यार नहीं करती। मैं उन्हें समझाऊँगी, और अनिल बाकी की बातों के लिए मैं हूँ ना...” मैंने शरारत से कहा।

जीजू- “हाँ, तुम हो ना... पर एक बात कह देता हूँ कि तुम्हारी दीदी गुस्सा करे या लड़ाई पर उसको सुधारने की जवाबदारी तुम्हारी...” जीजू भी अब टेन्शन फ्री हो गये थे।

मैं- “ओके जीजू। अब जल्दी करो और मुझसे बात करना छोड़ो, बाइ..”

मैंने जीजू की बाइ सुने बिना ही काल काट दी और दीदी को फोन करके उन्हें खुश खबरी दी। जीजू का काल काटकर मैंने जब दीदी को काल किया और बताया की जीजू घर आ रहे हैं, तब दीदी ने उस दिन मेरे साथ जो सलूक किया था उसकी माफी माँगी और अपनी गलती को स्वीकार किया। मैंने भी दीदी को ज्यादा शर्मिंदा करना उचित नहीं समझा और उन्हें माफी दे दी।
 
शाम को मैं मार्केट से सब्जी लेकर आ रही थी, तब मैंने कान्ता को गेट से निकलते देखा, वो रो रही थी। मैंने उसे क्या हवा वो पूछने का मन बनाया, तब तक वो निकल गई। लिफ्ट के पास रामू बैठा बीड़ी पी रहा था, मुझे देखकर वो खड़ा हो गया और हँसने लगा। मैं भी मुश्कुरा पड़ी।

रामू ने लिफ्ट की जाली खोली, मैं अंदर दाखिल हुई तो वो भी अंदर आ गया और जाली बंद करके थर्ड फ्लोर का बटन दबाकर पूछा- “अभी समय है मेमसाब?”

मैं कुछ बोली नहीं पर उसकी बात सुनकर मेरी चूत गीली हो गई तो फिर से मुश्कुराई।

मेरी मुश्कुराहट को देखकर रामू समझ गया की मेरी इच्छा है और वो खुश होकर कुछ अलग किश्म का गीत गुनगुनाने लगा- “हो तुझे प्यार तो आ जाना पान की दुकान पे.."

तभी नीचे से आवाज आई- “रामू, रामू कहां गये?” हमारे बिल्डिंग के प्रमुख महेश परमार की आवाज थी। महेश परमार की उमर 30 साल की ही थी, पर छोटी उमर में भी वो बहुत आगे बढ़ चुके थे, बिल्डिंग में सबसे ज्यादा आमिर वोही हैं।

रामू धीरे से बोला- “मैं दो मिनट में आता हूँ मेमसाब...”

तीसरा फ्लोर आते ही मैं लिफ्ट से निकली, रामू वापस नीचे गया, मैं दरवाजे का ताला खोल रही थी पर मेरा ध्यान नीचे था।

महेश- “मेरे साथ चलो, कल उत्तरायण है तो पतंग और डोरी लेने जाना है..” महेश की आवाज आई।

रामू- “कुछ काम था निशा मेमसाब को...” रामू ने कहा।

महेश- “चल ना वहां बहुत भीड़ होगी, गाड़ी बहुत दूर पार्क करनी पड़ती है, तू जाकर ले आना, मैं गाड़ी में बैठा रहूँगा...” महेश ने ऊंची आवाज में कहा।

बाद में रामू की कोई आवाज नहीं आई तो मैं समझ गई की वो महेश के साथ चला गया है।

रात को नीरव भी देर से साथ में पतंग और डोरी लेकर आया। मुझे और नीरव को पतंग उड़ाने का कुछ ज्यादा ही शौक है। हर साल हम सुबह उठते ही चाय नाश्ता करके सबसे पहले छत पर चढ़ जाते हैं, और दोपहर को फटाफट खाना खाकर फिर से ऊपर चले जाते हैं, और शाम को सबसे लास्ट में नीचे उतरते हैं। मैं और नीरव एक मिनट भी बरबाद नहीं करते उस दिन, और पूरा दिन पतंग उड़ाते रहते हैं।

नीरव ने आकर खाना खाया और फिर वो पतंग पे कन्नी बांधने बैठ गया। मैं काम निपटाकर उसे मदद करने लगी। रात के बारह बजे सारी पतंगों को कन्नी बांधकर हम बेड पर लेट गये।

लेटते ही मैं नीरव को बाहों में लेकर किस करने लगी तो उसने अपने हाथ से मेरे मुँह को दूर करके मेरी बाहों से निकलकर दूसरी तरफ मुँह करके बोला- “सो जाओ निशु, बहुत देर हो गई है और कल जल्दी भी उठना है..." और दो ही मिनट में नीरव सो गया।पर मुझे बहुत देर बाद नींद आई।
 
नीरव ने आकर खाना खाया और फिर वो पतंग पे कन्नी बांधने बैठ गया। मैं काम निपटाकर उसे मदद करने लगी। रात के बारह बजे सारी पतंगों को कन्नी बांधकर हम बेड पर लेट गये।

लेटते ही मैं नीरव को बाहों में लेकर किस करने लगी तो उसने अपने हाथ से मेरे मुँह को दूर करके मेरी बाहों से निकलकर दूसरी तरफ मुँह करके बोला- “सो जाओ निशु, बहुत देर हो गई है और कल जल्दी भी उठना है..." और दो ही मिनट में नीरव सो गया।पर मुझे बहुत देर बाद नींद आई।

सुबह होते ही बेल बजी- “डिंग-डोंग, डिंग-डोंग...”

आजकल मैंने रात को नाइटी पहनना छोड़ दिया है, मैं गाउन पहनकर ही सो जाती हूँ। मैं बाहर निकली और बर्तन लेकर दूध लेने के लिए दरवाजा खोला। उस दिन जो मुझसे गलती हुई थी और उसके बाद चाचा ने जो शरारत की थी, और मैं गुस्सा होकर बर्तन छोड़कर रूम में चली गई थी। उस दिन के बाद से चाचा मेरी तरफआँख उठाकर भी नहीं देखते थे, वो चुपचाप दूध देकर निकल जाते थे। क्योंकि 25 साल से चाचा मेरे ससुराल में दूध दे रहे हैं, वो जानते हैं की उस दिन मैंने जानबूझ के नहीं किया था। वो कुछ गलत करने जाएंगे और मैं कहीं बता दूंगी तो उनको खराब लगेगा।

चाचा से दूध लेकर मैंने दरवाजा बंद किया और मैं सोच में पड़ गई की कल जीजू घर पहुँचे उसके बाद दीदी का फोन नहीं आया, क्या हुवा होगा? मैंने दीदी को मोबाइल लगाया।

पहली ही रिंग में दीदी ने उठाया- “हाँ, निशा पतंग उड़ाने नहीं गई अभी..” उनकी आवाज में आज अलग ही मिठास थी।

मैं- “9:00 तो बजने दो, क्या जल्दी है?” मैंने कहा।

दीदी- “याद है निशा, शादी से पहले उत्तरायण के अगले दिन तुम सोती ही नहीं थी, और मैं हमेशा तुम्हारी फिरकी पकड़ती थी...” दीदी ने कहा।

मैं- “हाँ, दीदी... कल जीजू के आने के बाद पूरा दिन घर पे ही रहे थे क्या?” मैंने मुद्दे पर आते हुये पूछा।

दीदी- “हाँ निशा, कही नहीं गये, और पापा और मेरी सास-ससुर भी यहीं थे, और पापा कह रहे थे की अब्दुल चाचा को बात करेंगे तो लेनदार कुछ नहीं कर सकेंगे...” और सारे दिन में जो-जो हुवा था दीदी ने सब बताया।

मैं- “और रात को कुछ किया था? जीजू घर वापस आए उस खुशी में?” मुझे जो जानना था वो भी मैंने पूछ ही लिया।

दीदी- “रात को तो मेरा सर फटा जा रहा था, सारा दिन कितना रोई थी मैं, 9:00 बजे तो सो गई मैं.." दीदी ने कहा।

मैं- “ओके दीदी मैं रखती हूँ, बाइ...” मैंने कहा।

दीदी- “बाइ..” कहकर दीदी ने काल काट दी।

मैं सोफे पर लेटकर मेरे और दीदी के बारे में सोचने लगी। कितना फर्क है मुझमें और दीदी में? उतना ही फर्क है। जीजू और नीरव में। जितना मुझे सेक्स में इंटरेस्ट है उतना ही जीजू को है, और दीदी और नीरव भी एक जैसे । हैं। क्या जोड़ियां बन गई हैं हमारी उलट-सुलट, देखने से दोनों (मैं और जीजू) सुखी, पर अंदर की पीड़ा अंदर जाने ऐसी हालत थी हमारी। मैं दीदी की जगह जीजू के साथ होती, और दीदी नीरव के साथ होती तो हम चारों ज्यादा सुखी होते।

थोड़ी देर बाद मैंने नहाकर नीरव को जगाया। वो नहा रहा था तब तक मैंने चाय-नाश्ता तैयार किया और फिर खाने बैठे।

नाश्ता करते हुये नीरव ने अंकल, आंटी को याद किया- “हर साल अंकल और आंटी होते हैं, आज नहीं होंगे..."

मैं- “हाँ, केयूर आया की नहीं?” मैंने पूछा।

नीरव- “आ गया, आंटी अभी भी ठीक नहीं हैं, मुंबई ले जाने की बात कर रहे हैं...” नीरव ने खड़े होते हुये कहा।
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