Hindi Antarvasna - चुदासी - Page 11 - SexBaba
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Hindi Antarvasna - चुदासी

पप्पू ने तुरंत उसके मामा को बुलाया। उन्होंने आकर नीरव के सामने सवालिया नजरों से देखा।
नीरव- “मनसुख भाई हम तो मजाक कर रहे थे, इसमें इतना सीरियस लेना जरूरी नहीं, पप्पू को पतंग उड़ाने दो..." नीरव ने समझाते हुये कहा।

मनसुख- "नीरव भाई, मैंने बोला है तो पप्पू यहां से तो पतंग नहीं चढ़ाएगा...”
मनसुख भाई अभी भी अपनी बात पे कायम थे, वो अपनी बात छोड़ना नहीं चाहते थे।
नीरव- “क्या मनसुख भाई, आप भी एक काम करो कि पप्पू को यहां भेज दो वो हमारे साथ पतंग चढ़ाएगा...” नीरव ने कहा।
मनसुख- “मान गये नीरव साहब आपको, दरियादिल हैं आप तो, जा पप्पू बेटा नीरव अंकल के साथ पतंग उड़ा...” मनसुख भाई की बात सुनकर पप्पू तुरंत वहां दिखना बंद हो गया, और दो मिनट में हमारी छत पर प्रगट हो। गया।
पप्पू ने आते ही नीरव से हाथ मिलाया और कहा- “बैंक्स अंकल, आपने मुझे पतंग उड़ाने बुलाया, मैं तो बोर हो गया था...”

नीरव- “बैंक्स मुझे नहीं आंटी को बोल, उसके कहने पे तुझे बुलाया..” नीरव ने कहा तो पप्पू ने मेरी तरफ देखकर स्माइल की और फिर नीरव से बातें करने लगा।

पप्पू- “अंकल, आपको भी मेरी तरह पतंग उड़ाने का काफी शौक लगता है..” पप्पू ने पूछा।

नीरव- “हाँ, शौक तो है, पर तेरे जैसा अच्छा आता नहीं...” नीरव ने कहा।

पप्पू- “आपको सीखना है?” पप्पू ने पूछा।

नीरव- "क्यों नहीं, लो डोरी तुम ले लो...” नीरव ने पप्पू के हाथ में डोरी देते हुये कहा।

फिर तो वो दोनों एक दूसरे में इतना मसगूल हो गये की मैं उनके साथ हूँ, ये भी वो भूल गये। मैं पीछे खड़ी उनकी बातें सुन रही थी पर दोनों में से कोई मेरी तरफ देख भी नहीं रहा था। एक-दो बार मैंने उनकी बात में इंटरेस्ट दिखाया तो पप्पू ने बात को टाल दिया। उसका ये रवैया मेरी समझ में नहीं आ रहा था। मैं पप्पू को ध्यान से देखने लगी की वो ऐसा क्यों कर रहा है?

बहुत देखने और सोचने के बाद मुझे लगा की शायद वो मुझसे शर्मा रहा है, वैसे उसकी उमर के ज्यादातर लड़के लड़कियां एक दूसरे से शर्माते ही हैं। मैं भी उसकी उम्र की थी तब कितना शर्माती थी, मैं कभी किसी लड़के के सामने आँख उठाकर भी नहीं देखती थी। मुझे पप्पू बहुत अच्छा लग रहा था, उससे प्यार करने को मन करता । था। पर इतना शर्मीला लड़का सामने से कुछ करने को तो क्या बोलने वाला भी नहीं था, और वो जिस तरह मुझे नजर-अंदाज कर रहा था उससे मुझे जलन हो रही थी।
 
बहुत देखने और सोचने के बाद मुझे लगा की शायद वो मुझसे शर्मा रहा है, वैसे उसकी उमर के ज्यादातर लड़के लड़कियां एक दूसरे से शर्माते ही हैं। मैं भी उसकी उम्र की थी तब कितना शर्माती थी, मैं कभी किसी लड़के के सामने आँख उठाकर भी नहीं देखती थी। मुझे पप्पू बहुत अच्छा लग रहा था, उससे प्यार करने को मन करता । था। पर इतना शर्मीला लड़का सामने से कुछ करने को तो क्या बोलने वाला भी नहीं था, और वो जिस तरह मुझे नजर-अंदाज कर रहा था उससे मुझे जलन हो रही थी।

अब पप्पू की जगह मैं बोर हो चुकी थी। मैं उसके साथ बातें करना चाहती थी इसलिए मैंने उसे यहां बुलाया था, पर वो तो यहां आकर मेरी तरफ नजर भी नहीं कर रहा था। 6:00 बज गये थे, अंधेरा हो चुका था, मैंने नीरव को कहा- “चलो अब नीचे चलते हैं, नीरव..” मैंने नीरव से कहा।

पप्पू- “थोड़ी देर रुकते हैं ना, आंटी...” पप्पू ने पहली बार मुझसे बात की।

मैं- “नहीं मुझे जाना है..” मैंने कहा।

नीरव- “रुक ना निशु, पप्पू कह रहा है तो थोड़ी देर रुकते हैं..” दोनों में शायद दोस्ती अच्छी हो गई थी।

मैं- “मुझे नहीं ठहरना, तुम दोनों रुक जाओ, मैं जाती हूँ..” कहते हुये मैंने फिरकी जमीन पर फेंकी, और छत से बाहर निकल गई। घर पे जाकर मैंने पोहा बनाया, एकाध घंटे बाद नीरव आया और साथ में पप्पू भी था।

नीरव- “पप्पू भी हमारे साथ खाना खाएगा निशु..” नीरव ने कहा।

पप्पू इतना पसंद था मुझे, फिर भी वो यहां आया ये मुझे अच्छा नहीं लगा। क्योंकि वो जिस तरह से मुझे । नजर-अंदाज कर रहा था वो मेरे लिए सहन करना मुश्किल था। खाना खाने के बाद वो बातें करने बैठा रहा, मैं तो थोड़ी ही देर में अंदर जाकर सो गई। न जाने वो कब गया और कितनी देर तक रहा।।

सुबह गोपाल चाचा से दूध लेने के बाद मैं हर रोज की तरह फिर से सो गई।

और तब उठी जब मुझे नीरव ने जगाया- “निशु 9:00 बज गये यार...”

नीरव की बात सुनकर मैं जल्दी से उठी और फटाफट चाय-नाश्ता बनाया। तब तक नीरव नहाकर तैयार होकर आ गया, फिर हम दोनों ने साथ मिलकर चाय-नाश्ता किया, तब तक तो 9:30 बज गये। नीरव के निकलते ही मैं जल्दी से रसोई की तैयारी करने लगी, नहाने का पोग्राम दोपहर को रखा क्योंकी इतना समय नहीं था मेरे पास। मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की पर शंकर आया तब तक पूरी रसोई तैयार नहीं हुई थी।

मैं- “शंकर 5 मिनट ठहरो, सिर्फ रोटियां बाकी हैं..” इतना कहकर मैं जल्दी-जल्दी में दरवाजा खुल्ला छोड़कर अंदर चली गई। रोटियां बनाकर मैंने टिफिन भरा और बाहर गई।

देखा तो शंकर मेनडोर बंद करके खड़ा था, मैं उसका इरादा तो पहले से जानती थी फिर भी मैंने अंजान होकर पूछा- “दरवाजा क्यों बंद किया? ले ये टिफिन तैयार है...”
 
शंकर- “टिफिन को मारो गोली मेडम, आज मोका है तो मस्ती कर लो...” शंकर ने बड़ी निर्लज्जता से कहा।

मैं- “क्या बकते हो? निकलो बाहर...” मैंने गुस्से से कहा।

शंकर- “क्यों नखरा कर रही हो मेडम, हर बार मैं इशारे करता था, तब आप रिस्पोन्स तो देती थी..” कहते हुये शंकर मेरे नजदीक आया।

शंकर के नजदीक आते ही मैंने उसके गाल पे एक थप्पड़ दे मारा, मैं मानती थी की थप्पड़ पड़ते ही शंकर डर जाएगा और फिर चला जाएगा क्योंकि वो देखने में कुछ ऐसा ही था, उसकी क़द, बाडी 15 साल के लड़कों जितनी ही थी। पर मेरी धारणा गलत साबित हुई।

शंकर गुस्से में आ गया और दांत पीसते हुये गालियां देते हुये धमकी देने लगा- “साली मादरचोद रंडी, आज तो तुझे चोदकर ही जाऊँगा, प्यार से तो प्यार से, नहीं तो बलात्कार से..." और मुझ पर झपटने के लिए नजदीक आया।

मैंने उसे धक्का दे दिया, तो वो जमीन पर गिर गया और मैंने जाकर दरवाजा खोला त0 सामने रामू खड़ा था। उसे देखकर मुझे आश्चर्य हुवा क्योंकि उसका आने का वक़्त अभी नहीं हुवा था और इतनी आवाज भी नहीं हुई थी की वो आवाज सुनकर आया हो।

रामू- “क्या हुवा मेडम?” रामू समझ तो गया था की क्या हुवा है फिर भी उसने पूछा।

मैंने कोई जवाब नहीं दिया और सिर्फ शंकर की तरफ उंगली करके कहा- “मारो उसको रामू..”

शंकर ने जब से रामू को देखा, तब से वो डर के मारे थरथर कांप रहा था। डरता नहीं तो क्या करता बेचारा, पहलवान खली के सामने रामपाल यादव हो ऐसा लग रहा था रामू के सामने शंकर। रामू ने शंकर को गिरेबान से पकड़कर उठाया और एक थप्पड़ मारा तो शंकर के मुँह से खून निकलने लगा।

शंकर- “माफ करिये मेडम, मुझे जाने दो, इसको कहो छोड़ दे और मेडम साहेब को भी मत कहना नहीं तो मेरे बाल-बच्चे भूखे मर जाएंगे...” शंकर मेरी तरफ हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगा।

रामू- “चल भड़वे, नीचे तेरी गाण्ड मारता हूँ.” कहते हुये रामू ने पहले तो शंकर को जमीन पे पटका और फिर खींचता हुवा बाहर ले जाने लगा।

शंकर अभी भी मुझसे माफी माँग रहा था, क्योंकि वो जानता था की रामू मेरे कहने पर ही छोड़ने वाला है।

मैंने रामू को उसे छोड़ने को कहा- “रामू उसे जाने दो...”

रामू- “मेमसाब, ऐसे आदमी को तो छोड़ना नहीं चाहिए, मुझे ले जाने दो, साले को इतना मारूंगा ना की अपनी बीवी को भी नहीं चोदेगा...” रामू ने शंकर को मारते हुये कहा।

क्या कहूँ मैं रामू को? वो आज क्यों शंकर को गलत बता रहा है, पहली बार तो उसने भी यही किया था जो आज शंकर करने जा रहा था, क्या फर्क है उसमें और शंकर में? फर्क है तो सिर्फ इतना ही की वो शंकर से ज्यादा ताकतवर और तकदीर वाला है। वो अपने आपको इस वक़्त फिल्मी हीरो समझ रहा है। क्यों ना समझे मैं जो उसके हाथ में थी। शंकर ने आज जो हिम्मत की, वो रामू बहुत पहले कर चुका है।

मैं- “छोड़ दो उसे रामू...” मैंने कहा।

दूसरी बार कहने पर रामू ने शंकर को छोड़ दिया तो शंकर जल्दी-जल्दी से जाने लगा।

मैं- “एक मिनट शंकर, ये टिफिन ले जाओ और याद रखना आज के बाद किसी भी शरीफ घर की औरत को आँख उठाकर भी देखना नहीं, और मैं तुझे तेरी फेमिली के लिए जाने दे रही हैं, जाओ अब...”

मेरे इतने कहते ही शंकर टिफिन लेकर 3-3 सीढ़ियां कूदते हुये भागा।

शंकर के जाते ही मैंने रामू से पूछा- “क्यों आज जल्दी आ गये, अभी तो मैंने खाना भी नहीं किया..”

रामू- “मेमसाब मुझे बाहर जाना है, तो कहने आया था..." रामू ने कहा।

मैं- “क्यों, कहां जाना है?” मैंने पूछा। रामू की पहले से ही आदत थी, वो हर महीने 2-3 दिन आता नहीं था पर वो कभी बताने भी नहीं आता था, पर अब बात अलग है।

रामू- “महेश साहब के साथ जा रहा हूँ, काम क्या है वो तो वहां जाकर पता चलेगा, बड़े लोग हैं यहां से बताकर थोड़े ले जाएंगे मेमसाब...” रामू की आवाज में लाचारी थी।

मैं कुछ बोली नहीं और सिर्फ सिर हिलाकर उसे जाने को कहा। वो जाने के लिए पलटा और मैं घर के अंदर जाकर दरवाजा बंद करने गई।

तभी रामू की आवाज आई- “मेमसाब..."

मैं फिर से बाहर निकली और परेशान चेहरे से उसके सामने देखने लगी।
 
मैं कुछ बोली नहीं और सिर्फ सिर हिलाकर उसे जाने को कहा। वो जाने के लिए पलटा और मैं घर के अंदर जाकर दरवाजा बंद करने गई।

तभी रामू की आवाज आई- “मेमसाब..."

मैं फिर से बाहर निकली और परेशान चेहरे से उसके सामने देखने लगी।

रामू- “वो मैं जाता नहीं मेमसाब, पर आप महेश साहेब को जानती हैं ना, वो यहां से निकल दें तो?” इतना कहकर रामू ने चारों तरफ देखा और धीरे से बोला- “आधे घंटे बाद जाना था, इसलिए जल्दी आया था पर वो हरामी ने आधे घंटे की माँ चोद डाली, वो नहीं होता तो बैंड बजा के जाता...”

मैंने इस बार भी कुछ नहीं बोला सिर्फ उसके सामने सिर हिलाया।

तब रामू उसने कहा- “मैं चलता हूँ मेमसाब...”

मैंने फिर से सिर हिलाया। वो फिर से पलटा और सीढ़ियां उतरने लगा, और पाचवीं सीढ़ी पर पहुँचा होगा तभी मेरे मुँह से निकल गया- “रामू एक मिनट..”

मेरी बात सुनकर रामू ने पलटकर पूछा- “क्या मेमसाब?”

मैं- “इधर आ ना...” मैं धीरे से बोली।

मेरी बात सुनकर रामू ने ऐसी छलाँग लगाई की सीधा मेरे पास आ गया- “बोलिए मेमसाब..." झूमते हुये उसने पूछा।

मैं- “मैं बहुत थकी हुई हूँ, किसी को कहना आकर काम कर जाय...”

मेरी बात सुनकर रामू का उत्साह ठंडा पड़ गया और उसने कुछ बोले बगैर सिर्फ सिर हिलाया। तभी लिफ्ट आई।
और उसमें से महेश परमार की आवाज आई- “कितनी देर रामू?”

आवाज सुनते ही मैं घर के अंदर घुस गई। थोड़ी देर बाद मैं टीवी देख रही थी, तभी बाहर से आवाज आईभाभी, भाभी..."

मैंने दरवाजा खोला और देखा तो सामने कान्ता खड़ी थी। कान्ता को देखते ही मुझे उसकी और रामू की चुदाई के दृश्य किसी मूवी की तरह मेरे सामने दिखने लगे, और मैं उसमें खो गई और थोड़ी देर कुछ न बोली।

तब कान्ता ने मुझसे कहा- “मुझे रामू ने कहा है यहां काम करने को...”

मैंने साइड में होकर उसे अंदर आने के लिए जगह दी और बाद में दरवाजा बंद करके फिर से टीवी देखने लगी। कान्ता किचन में जाने लगी तो मैंने उससे कहा- “मैंने अभी खाना नहीं खाया, पहले झाडू पोंछा कर दो...”

मेरी बात सुनकर कान्ता ने हाथ में झाडू लिया और कचरा साफ करने लगी।
 
मेरा जी अब नहीं लग रहा था टीवी देखने में तो मैं कान्ता को ध्यान से देखने लगी। कान्ता का चेहरा मुरझाया हुवा था और साथ में उसका शरीर भी पहले से हल्का लग रहा था। मैं पूछना चाहती थी की क्यों ऐसी हो गई हो? फिर सोचा जाने दो मुझे क्या है? मैं अपना मन टीवी में लगाने की कोशिश कर रही थी पर बार-बार मेरा ध्यान कान्ता पर चला जाता था।

कान्ता सोफे के नीचे से कचरा निकाल रही थी तब मैं उससे पूछ बैठी- “कान्ता तू कोई टेन्शन में है क्या?”

मेरी बात सुनकर कान्ता झाड़ छोड़कर रोने लगी। वो ऐसे रोने लगी की मानो वो राह देख रही थी की कोई उससे उसकी तकलीफ के बारे में पूछे और पूछते ही वो रोना शुरू कर दे।

थोड़ी देर मैंने उसे रोने दिया, सोचा की उसका मन हल्का हो जाय। फिर पूछा- “क्या हुवा है कान्ता? कुछ बताओगी तो मालूम पड़ेगा ना की ऐसे ही रोती रहेगी?”

फिर भी कान्ता रोती रही, थोड़ी देर बाद वो चुप हो गई।

तब मैंने उसके सामने हाथ से इशारा करके फिर से पूछा- “क्या बात है?”

कान्ता- “रामू ने मुझे.......” इतना ही कह पाई कान्ता और फिर से रोने लगी।

मुझे अंदाजा तो था ही कि रामू का ही लफड़ा होगा, और कान्ता के मुँह से तो पहला शब्द ही रामू निकला तो मेरा इंटरेस्ट बढ़ गया। मैंने उसकी पीठ पर हाथ फेरकर सांत्वना देते हुये पूछा- “क्या किया रामू ने?”

कान्ता- “रामू और मैं मेरे बच्चों को लेकर यहां से एक महीने पहले चले जाने वाले थे। पर उस वक़्त हमारे पास पैसे कम थे तो हमने थोड़े दिन बाद जाने को सोचा और अब छे-सात दिन से रामू ना बोल रहा है..” इतना कहकर कान्ता फिर से रोने लगी।

मैं- “पर तू क्यों रामू के साथ जाना चाहती है?” मैं बहुत कुछ जानती थी, पर ये नहीं जानती थी की वो दोनों भाग जाने वाले थे।

कान्ता- “आप नहीं जानती क्या मेरे और रामू के बारे में?” कान्ता अब थोड़ी नार्मल हो गई थी।

मैं- “सुना तो है तुम दोनों के बारे में...” मैंने कहा।

कान्ता- “रामू और मेरे पति के बीच लड़ाई हुई उसके बाद तो सबको मालूम पड़ गया है...” कान्ता ने कहा।

मैं- “वो तो ठीक है पर ऐसे गोल-गोल बात मत कर, पूरी बात बता...” मैंने कान्ता से कहा।

कान्ता- “भाभीजी, मेरा पति पहले से ही एक नंबर का जुआरी और शराबी है। मेरा लड़का सोलह साल का और लड़की तेरह साल की हुई, पर आज तक उसने घर में एक फूटी कौड़ी भी नहीं दी। कई-कई बार तो कई महीनों घर में भी नहीं आता था। छे महीने से मेरा और रामू का लफड़ा हो गया, दो महीने पहले उसे (मेरे पति को) मालूम पड़ गया तब से कह रहा है- 'मुझे और मेरे बेटे को मार देगा और बेटी को बेच देगा' और एक बार तो। रंडी के बच्चे ने अपनी ही बेटी की इज्ज़त लूटने की कोशिश की। वो तो अच्छा हुवा की ऐन मोके पे मैं पहुँच
गई...” कान्ता बात करते-करते फिर से रोने लगी।

फिर थोड़ी देर बाद कान्ता शांत होकर फिर से कहने लगी- “मैंने एकाध महीना पहले रामू को बताया। बहुत सोचने के बाद हम लोगों ने तय किया की बच्चों को लेकर कहीं चले जाते हैं, और छे-सात दिन पहले उसने ना बोल दिया की मैं यहां से कहीं नहीं जाऊँगा। मालूम नहीं क्या हुवा है उसे? वो यहां से क्यों नहीं जाना चाहता, वो मेरी समझ में नहीं आ रहा है। आप समझाओ ना उसे, मेरी हालत के बारे में। मुझे मेरी नहीं मेरे बच्चों की फिकर हो रही है...”

कान्ता की बात पूरी होते ही मैंने उसे खाने को पूछा तो एकाध बार उसने ना बोला फिर वो बैठ गई। खाना खाते ये उसे लगा की खाना कम था तो वो बोली- “मैंने तो आपके हिस्से का खाना ले लिया...”

तुम तो आज पहली बार मेरे हिस्से का ले रही हो, जबकी मैं तो कई दिनों से... मैं आगे सोच नहीं पाई और बोली- “मैं रामू से बात करूंगी, पर तुम उसे मत बताना की तुमने मुझसे ये सब कहा है...”
 
कान्ता की बात पूरी होते ही मैंने उसे खाने को पूछा तो एकाध बार उसने ना बोला फिर वो बैठ गई। खाना खाते ये उसे लगा की खाना कम था तो वो बोली- “मैंने तो आपके हिस्से का खाना ले लिया...”

तुम तो आज पहली बार मेरे हिस्से का ले रही हो, जबकी मैं तो कई दिनों से... मैं आगे सोच नहीं पाई और बोली- “मैं रामू से बात करूंगी, पर तुम उसे मत बताना की तुमने मुझसे ये सब कहा है...”

शाम के छ बजे आस-पास बेल बजी, मैंने दरवाजा खोला तो सामने पप्पू था। उसे देखकर मैं खुश हो गई पर जिस तरह से उसने मुझे कल नजर-अंदाज किया था वो याद आते ही मैंने उसके सामने अपनी खुशी जाहिर होने
नहीं दी।

पप्पू- “अंकल आ गये क्या?” पप्पू ने पूछा।

मैं- “अभी तो छे ही बजे हैं, नीरव तो 9:00 बजे आता है हमेशा, क्यों कुछ काम था?” मैंने पूछा।

पप्पू- “नहीं, काम तो कुछ नहीं है, पर कल मैंने उन्हें आफिस से जल्दी आने को कहा था, और उन्होंने हाँ भी बोला था...”

मैं पप्पू को ध्यान से देखने लगी, बच्चू बहाना तो अच्छा बनाकर आया है घर में घुसने का, सफेद झूठ बोलकर अंकल-अंकल करते घर में आ जाएगा। मैंने पप्पू का झूठ ही आगे बढ़ते हुये कहा- “हाँ, याद आया नीरव कह तो रहा था की जल्दी आ जाऊँगा, बस आता ही होगा तुम टीवी देखो और मैं तेरे लिए नाश्ता लाती हूँ तब तक नीरव आ जाएगा...” पप्पू के अंदर आते ही मैंने दरवाजा बंद कर दिया और स्टापर लगाकर किचन में गई।

मैं नाश्ता निकाल रही थी तभी पप्पू की आवाज आई- “आंटी रिमोट कहां है?”

मैं- “वो तिपाई के नीचे होगा..” मैंने जोर से कहा, और धीरे से बड़बड़ाई- “रिमोट ना मिले तो भी कोई बात नहीं मैं बाहर ही आ रही हैं, फिर तो तू मुझे ही देखने वाला है...” मैं नाश्ता की प्लेट लेकर बाहर गई तब तक पप्पू ने रिमोट ढूँढ़कर टीवी देखना भी शुरू कर दिया था। मैंने तिपाई पे नाश्ता रखा और उसे लेने को कहा तो वो टीवी । देखते-देखते नाश्ता करने लगा।

थोड़ी देर हुई और पप्पू ने कहा- “अंकल को मोबाइल करो ना आंटी..”

मैं- “बस आते ही होगे...” किस किश्म का है ये लड़का, टीवी में से नजर ही नहीं हटा रहा, उसका ध्यान मेरी तरफ खींचने के लिए मैंने उससे बातें शुरू की- “कहां रहते हो तुम?”

पप्पू- “बरोडा...” पप्पू ने जवाब दिया।

मैं- “क्या करते हो?” मेरा दूसरा सवाल।
पप्पू- “कालेज का दूसरा साल है...”

मैं- “कालेज में गर्ल्स भी है की...”

पप्पू- “नहीं केवल लड़कों का कालेज है...”

मैं- “तेरी कोई गर्लफ्रेंड है...”

पप्पू- “नहीं हैं..." पप्पू हर सवाल का जवाब दे तो रहा था पर उसका ध्यान टीवी पर ही था।
 
मैं- “क्यों तुम्हें कोई पसंद नहीं आती की, लड़कियां तुम्हें पसंद नहीं करती?” मैंने पप्पू को पूछा।

पप्पू- “वो ऐसे ही, अंकल कब आएगे?” पप्पू के चेहरे पे परेशानी के भाव साफ दिख रहे थे।

अब तो मुझे भी उसपर गुस्सा आने लगा था। कब से अंकल-अंकल कर रहा था और सामने इतनी खूबसूरत आंटी उसे नहीं दिख रही थी। गुस्सा तो इतना आया की शंकर की तरह इसे भी एक थप्पड़ मार दें, पर अब पप्पू को पटाना मुझे चैलेंज जैसा लग रहा था। मैंने पप्पू के साथ बात करना बंद कर दिया था और अब मेरी आँखें टीवी
की तरफ थीं। पर मेरा दिमाग किसी भी तरह पप्पू को पटाने के बारे में सोच रहा था।

तभी मुझे देखी हुई एक इंग्लिश मूवी का दृश्य याद आया की हीरो बाहर बैठा हुवा था और हेरोइन रूम के अंदर थी। हीरो को पटाने के लिए हेरोइन रूम के अंदर अपने ऊपर के कपड़े निकालकर किसी बहाने से हीरो को अंदर बुलाती है, और हीरो के अंदर आते ही वो उससे लिपट जाती है और फिर हीरो गरम होकर हेरोइन की चुदाई करता है।

मुझे ऐसे पप्पू को अंदर बुलाना और सामने से नंगे होकर उससे लिपटना घटिया लग रहा था। पर और कुछआइडिया दिमाग में नहीं आ रहा था तो मैं सोफे से उठी और बेडरूम में जाते हुये बोली- “दो मिनट में आती हूँ, तुम बैठना नीरव आता होगा...”

मैंने गाउन पहना हुवा था। मैं तो उसे निकालते ही पूरी नंगी हो गई। मैंने कपबोर्ड से थोड़े दिन पहले ही लाया हुवा जालीदार ब्रा, पैंटी का सेट निकाला और पहन लिया। मैंने हल्का सा मेकप किया और फिर अपने आपको
आदमकद मिरर में देखने लगी। कयामत लग रही थी मैं।

मैंने पप्पू को आवाज लगाई- “पप्पू, पप्पू जल्दी आओ...” और मैं दरवाजे की तरफ वाली दीवार से सटकर खड़ी हो गई।
 
मैंने गाउन पहना हुवा था। मैं तो उसे निकालते ही पूरी नंगी हो गई। मैंने कपबोर्ड से थोड़े दिन पहले ही लाया हुवा जालीदार ब्रा, पैंटी का सेट निकाला और पहन लिया। मैंने हल्का सा मेकप किया और फिर अपने आपको
आदमकद मिरर में देखने लगी। कयामत लग रही थी मैं।

मैंने पप्पू को आवाज लगाई- “पप्पू, पप्पू जल्दी आओ...” और मैं दरवाजे की तरफ वाली दीवार से सटकर खड़ी हो गई।

पप्पू के अंदर आते ही मैं उसके पीछे लिपट पड़ी और हाथ आगे करके उसका सीना शर्ट के साथ सहलाने लगी, पप्पू आहें भरते हुये अपनी गाण्ड को पीछे से मेरी चूत पर दबाने लगा। मैंने धीरे-धीरे उसकी शर्ट के बटन खोल डाले और उसके नंगे सीने को सहलाने लगी। उसके सीने पर कोई बाल नहीं था, जिसकी वजह से मुझे सहलाने
में मजा आ रहा था।

पर मालूम नहीं क्यों इतनी देर हो गई फिर भी पप्पू ऐसे ही खड़ा था, वो मेरी तरफ अपना मुँह नहीं कर रहा। था। वो अब तक मेरे से क्यों भाग रहा था, वो मुझे समझ में आने लगा था। मैं उसे बहुत शातिर समझ रही थी पर ये तो शर्मीला था, इसलिए अब तक ऐसा व्यवहार मुझसे कर रहा था। मैंने अपना हाथ थोड़ा नीचे किया और उसकी पैंट की बक्कल और चैन खोल दी। मैं बहुत खुश थी, अब उसका इंडा और मेरे हाथ के बीच सिर्फ पाँच इंच की ही दूरी थी। मैंने उसके अंडरवेर के अंदर हाथ डाला और एक ही सेकेंड में बाहर खींच लिया, क्योंकि उसका लण्ड अभी भी सुस्त अवस्था में ही था। मैंने उसे मेरी तरफ पलटने को कहा तो वो नजर झुकाए मेरी तरफ हुवा।

मैंने पूछा- “ये क्या है पप्पू?”

पप्पू- “वो... वो आंटी..." पप्पू कांप रहा था बोलते हुये, उसके मुँह से आवाज नहीं निकल रही थी।

मैं- “क्या?” मैं चिल्लाई।

पप्पू- “मुझे लड़कियां नहीं पसंद आंटी, मैं लड़कों के साथ ही कंफर्टेबल महसूस करता हूँ.” पप्पू ने डरते हुये । कहा।

उसकी बात पहले तो मेरी समझ में नहीं आई, पर जब आई तब मेरा गुस्सा और बढ़ गया- “इसीलिए तू कब से अंकल-अंकल कर रहा है, और तुझे लड़कियां नहीं पसंद तो कल मेरे सामने क्यों देख रहा था?”

पप्पू- “वो... आंटी मैं आपके सामने नहीं, अंकल के सामने देख रहा था...” पप्पू ने कहा।

मैं- “अब निकल यहां से और नीरव के सामने तो दिखना ही नहीं...” मन किया साले को दो-चार थप्पड़ मार दें।

मेरी बात सुनकर पप्पू ने जल्दी से अपनी शर्ट के बटन बंद किये और तुरन्त बाहर निकल गया।

रात को खाना खाने के बाद मैं नहाने जा रही थी तब नीरव ने बताया- “अंकल और केयूर आंटी को मुंबई ले जा रहे हैं..."

मैं- “क्यों?” मैंने पूछा।

नीरव- “यहां के डाक्टर कह रहे हैं की केस फेल है, जितने दिन जिएं, उतने दिन घर पे ले जाकर सेवा करो। ज्यादा दिन नहीं जिएंगे, पर अंकल का दिल नहीं मान रहा.”

नीरव की बात पूरी होते ही मैं बाथरूम में गई और नहाकर बाहर आई, नीरव मोबाइल में गेम खेल रहा था, मैंने कपबोर्ड से गाउन निकाला और पहनकर उसके बाजू में लेट गई, और नीरव के सीने को सहलाते हुये कहा“नीरव, अब हमें डाक्टर को दिखाना चाहिए...”

नीरव- “क्यों?” नीरव ने पूछा।

मैं- “बच्चे के लिए, सात साल हुये नीरव हमारी शादी को, मैंने तुम्हें एक साल पहले भी कहा था तब भी तुमने बात टाल दी थी...” मैंने कहा।

नीरव- “बात करें गे एक-दो दिन में हम दोनों..." नीरव ने कहा।

नीरव की बात सुनकर मैं थोड़ी देर बाद में फिर से बोली- “तुम्हें नहीं लगता उसके सिवा भी तुम्हें सेक्स स्पेसलिस्ट को भी बात करना चाहिए..” मैं थोड़ा हिचकिचाते हुये बोली।
 
नीरव- “क्यों इसकी क्या जरूरत है?” नीरव ने पूछा।

मैं डर रही थी कि मेरी बात सुनकर नीरव गुस्सा होगा, पर उसने बात को इतने नार्मल तरीके से ली थी की मुझे शांती हुई- “वो जल्दी से तुम्हारा हो जाता है ना इसके लिए मैंने कहा। मैं अपने पति के साथ सेक्स की बात । करते हिचकती थी, और पराए मर्दो के साथ मैं गंदी से गंदी बात कर सकती थी, कैसी विडम्बना थी मेरी जिंदगी की।

नीरव- “मैं समझा नहीं..." नीरव ने कहा।

मैं- “तुम्हारा पानी जल्दी छूट जाता है ना, उसके लिए..” मैंने कहा।

नीरव- “हाँ.. हाँ शायद तुम नहीं जानती इसलिए ऐसा कह रही हो, पानी जल्दी छूटने से प्रेगनेंसी रहने में कोई फर्क नहीं पड़ता...” नीरव ने कहा।

मैं- “मैं इसलिए नहीं कह रही नीरव...” मैं शब्दों को माप-तौल के बोल रही थी।

नीरव- “तो फिर क्या, मजा तो मैं तुम्हें उंगली से देता ही हूँ ना... अब हम हर हफ्ते एक बार बच्चे के लिए करेंगे और उस वक़्त तुम्हें मजा नहीं आया तो मैं बाद में तुम्हें उंगली से कर दूंगा...” नीरव ने कहा।

क्या बोलूं मैं इस इंसान को... और चुपचाप अपना सिर हिलाकर घूम गई। थोड़ी ही देर में नीरव के खर्राटे की आवाज आने लगी। शाम को पप्पू के जाने के बाद मुझे अपने आप से नफरत सी हो गई। थोड़ी देर के लिए मुझे सेक्स के लिए घृणा हो गई और मैंने कसम भी खा ली की आज के बाद मैं नीरव के सिवा किसी और से नहीं। चुदवाऊँगी। पर थोड़ी देर बाद मुझे अपनी स्थिति समझ में आई की मैं अब चुदवाए बिना तो नहीं रह सकती।

फिर मैंने सोचा कि मैं धीरे-धीरे करके जितनी जल्दी हो सकेगा उतनी जल्दी ये सब छोड़ देंगी। फिर मैंने मेरा सेक्स के प्रति इतना ज्यादा आकर्षण कैसे हो गया उसकी वजह ढूँढ़ना शुरू किया तो मुझे कई वजह मिली। पर उसमें से दो वजह ज्यादा जरूरी लगी। एक तो नीरव की सेक्स के प्रति उदासीनता और दूसरी बच्चा न होना।। अगर मुझे कोई बच्चा होता तो मेरा ध्यान उसकी ही तरफ रहता और मैं इतना नहीं गिरती।

सुबह मोबाइल की रिंग की आवाज से मेरी नींद खुल गई। हर रोज मैं बेल की आवाज सुनने के बाद ही जागती हैं, पर आज मोबाइल की रिंग से जागी। मैंने घड़ी में देखा तो छ बजे थे। फिर मैंने मोबाइल में देखा, तो दीदी का काल था। इतनी सुबह-सुबह दीदी का काल, कोई टेन्शन तो नहीं होगा ना?
 
सुबह मोबाइल की रिंग की आवाज से मेरी नींद खुल गई। हर रोज मैं बेल की आवाज सुनने के बाद ही जागती हैं, पर आज मोबाइल की रिंग से जागी। मैंने घड़ी में देखा तो छ बजे थे। फिर मैंने मोबाइल में देखा, तो दीदी का काल था। इतनी सुबह-सुबह दीदी का काल, कोई टेन्शन तो नहीं होगा ना?

मैंने कांपते हाथ से ग्रीन बटन दबाया और कहा- “हेलो...”

दीदी- “निशा, हम पापा के यहां हैं...” दीदी की आवाज में खुशी थी, जिसे सुनकर मुझे कुछ शांति हुई पर दीदी पापा के वहां क्यों?

मैं- “वो क्यों? मैं समझी नहीं दीदी...” मैंने कहा।

दीदी- “अरे हाँ, तेरे से बात ही कहां हुई थी?” दीदी ने कहा।

मैं- “हाँ, पर अब जल्दी-जल्दी से बताओ..” मैंने इंतेजारी से कहा।

दीदी- “सारे लेनदारों को भी रात को ही यहां बुला लिया था, मैं, अनिल और मेरे सास-ससुर भी यहां आ गये थे।

अब्दुल चाचा के कहने पर ये सब किया था..." दीदी ने कहा।

जो सुनकर मैं समझ गई की अब्दुल ने सारे लेनदरों को धमकाकर मनवा लिया होगा। मैंने पूछा- “सब शांति से हो गया ना दीदी?”

दीदी- “शुरू में तो कोई नहीं मान रहे थे, एक-दो लोग तो अनिल को मारने उठे थे पर अब्दुल चाचा ने उनको ऐसे मारा की सब ठंडे पड़ गये और जितना है उतना लेने को तैयार हो गये...”

दीदी की बात सुनकर मैं सोचने लगी की अब्दुल चाचा के उपकार का बदला कौन देगा? मम्मी या फिर दीदी?” दीदी का खयाल आते ही मेरा सारा बदन थरथरा गया।

मैं- “कुछ रखा दीदी अपने पास की सब दे दिया?” मैंने पूछा।

दीदी- “सब देना पड़ा निशा, और कोई रास्ता भी नहीं था। फिर भी सब बोल रहे थे कि 20% पैसे ही मिले हैं। उनको..” दीदी ने कहा।

मैं- “ठीक है दीदी, पैसे का क्या? कल वापस भी आ जाएंगे...” मैंने दीदी को सांत्वना देते हुये कहा।

दीदी- “वो तो है निशा, सबसे पहले तुझे काल की है हमने, तुमने जो किया है हमारे लिए वो हम कभी भूल नहीं सकते निशा, और हाँ नीरव को भी बता देना..” दीदी ने कहा।

मैं- “बता देंगी दीदी, चिंता मत करना अब सब ठीक हो जाएगा...” मैंने कहा।

दीदी- “तेरे मुँह में घी-शक्कर... रखती हूँ..” कहकर दीदी ने काल काट दी।

दीदी की बात सुनकर मुझे याद आया की मैंने अब तक नीरव को तो कुछ बताया ही नहीं था जीजू के बारे में। नाश्ता करते वक़्त मैंने नीरव को जीजू ने घाटा किया है वो बात बताई, सब कुछ तो मैं बता नहीं सकती थी। नीरव ने जीजू को मोबाइल भी किया।

आज शंकर टिफिन लेने आया तब मुझे हँसी आ रही थी। उसने मेरे सामने आँख उठाकर भी नहीं देखा, और जब मैं टिफिन उसके हाथ में देने गई, तो उसने कहा- “दीदी आप टिफिन नीचे रख दीजिए, मैं ले लूंगा...”
 
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