Hindi Antarvasna - चुदासी - Page 19 - SexBaba
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Hindi Antarvasna - चुदासी

मैंने अब्दुल के मुँह के अंदर मेरी जीभ डाल दी जिसे वो चूसने लगा। मैं उत्तेजना की चरम सीमा पे पहुँच गई। मैंने फिर से अब्दुल के टेटुवे पकड़े, लेकिन इस बार मैंने उसे सहलाए नहीं दबाए और अब्दुल के लण्ड में से गरम-गरम वीर्य मेरी चूत में बहने लगा और उस गरम धार के अहसास से मैं भी झड़ने लगी। मैंने अब्दुल को मेरी बाहों में जकड़ लिया था और अब्दुल मेरी गर्दन में उसका मुंह दबाकर लंबी-लंबी सांसें ले रहा था।

थोड़ी देर बाद अब्दुल ने मुझसे अलग होकर- “मैं उस लड़के को जानता हूँ, जो तेरी फ्रेंड को प्यार करता है?"

मैं- “तुम लड़के को नहीं जानते लेकिन लड़की को जानते हो, क्योंकि लड़का नहीं लड़की मुस्लिम है...” मैंने कहा।

अब्दुल- “कोई बात नहीं, तुम उसका नाम बताओ और मैं कैसे मदद कर सकता हूँ वो बताओ?”

मैं- “तुझे लड़की के अब्बू को समझाना है, शादी के लिए राजी करना है.”

अब्दुल- “अच्छा, नाम क्या है लड़की का और किसकी बच्ची है ये बता?”

मैं- “खुशबू, तुम्हारी बेटी..” मैंने हिम्मत करके बोल दिया।

अब्दुल एक-दो पल मुझे देखता रहा और फिर उसका हाथ उठ गया और मेरे गाल पर उसके हाथ की छाप छोड़ता गया।

मैंने अब्दुल के सीने पर मुक्के मारते हुये कहा- “क्यों मारते हो मुझे? थोड़ी देर पहले तो लंबी-लंबी छोड़ रहे थे.."

अब्दुल- “तू झूठ बोल रही है, मेरी बेटी ऐसा नहीं कर सकती...”

मैं- “क्यों तेरी बेटी ऐसा क्यों नहीं कर सकती? क्या वो नार्मल नहीं है?"

अब्दुल- “चुप साली रंडी...”

मैं- “चुप के बच्चे, तेरी बेटी सिर्फ किसी से प्यार ही नहीं करती, वो उसके साथ भाग भी गई है...”

मेरी बात सुनकर अब्दुल की आँखों में खून उतर आया, उसने मेरी गर्दन को पकड़ा और उसे दबोचकर चिल्लाने लगा- “मादरचोद ज्यादा बक-बक किया ना तो टेटुवा दबा दूंगा, मैं अभी खुशबू से बात करता हूँ..” कहकर वो मुझे छोड़कर उसका मोबाइल लेने गया।

मैं- “थोड़ी देर पहले मुझे जो फोन आया था, वो खुशबू का ही था और मैं यहां उसी के लिए ही आई हूँ..” मैंने अब्दुल को सारी बात खुलकर बता दी। लेकिन मैं बात करते हुये खड़ी हो गई थी और बेड पर से नीचे उतर गई
थीं।
 
मैं- “थोड़ी देर पहले मुझे जो फोन आया था, वो खुशबू का ही था और मैं यहां उसी के लिए ही आई हूँ..” मैंने अब्दुल को सारी बात खुलकर बता दी। लेकिन मैं बात करते हुये खड़ी हो गई थी और बेड पर से नीचे उतर गई
थीं।

अब्दुल- “क्या बोली तू मादरचोद? तूने मेरी बेटी को भागने में मदद की, ऐसे बदला लिया तेरी माँ की चुदाई का..." अब्दुल ने मेरी बात मान ली की उसकी बेटी भाग चुकी है, लेकिन वो बोलते-बोलते छलांगे भरता हुअ । मुझपर झपटा और मुझे दीवार पे धकेलकर फिर से मेरी गर्दन मरोड़ने लगा।

मैंने उसके पेट पर मुक्के मारते हुये जोरों से कहा- “अब्दुल एक बार पूरी बात सुन ले, बाद में जो करना है वो करना...”

अब्दुल- "कुछ नहीं सुनना, तुझे मारकर ही मुझे कुछ सकून मिलेगा.”

अब्दुल के हाथ की पकड़ मेरी गर्दन पर बढ़ रही थी, मैं खांसने लगी थी, मेरी आँखों में से पानी निकलने लगा था। मैंने कहा- “मेरी बात सुन ले अब्दुल, मारने वाले की अंतिम इच्छा तो कोई भी पूरी करता है...” मैंने खांसते हुये टूट-टूटकर शब्दों में कहा।

भगवान जाने अब्दुल के दिमाग में क्या आया और उसने मेरा गला छोड़ दिया और फिर मुझे खींचकर बेड की तरफ धक्का दे दिया। मैं गिरी पर बेड के ऊपर। मैंने मेरे गले को सहलाया और फिर खड़े होकर टेबल पर से बिसलेरी पानी की बोतल ली और पानी पिया।

अब्दुल- “जल्दी बोल कुतिया, मेरे पास वक़्त कम है। और सुन मैं तेरी ये बक-बक इसलिए सुनूंगा की तुझे बाद में ये भी बताना है की खुशबू किसके साथ और कहां भागी है?”

मैं- “तुम्हारी बेटी किसी अच्छे लड़के के साथ भागी हो तो? तुम्हें वो हिंदू है उसमें तो कोई प्राब्लम नहीं होनी चाहिए। तुमने थोड़ी देर पहले ये बात कही भी थी...”

अब्दुल- “सच में अच्छा लड़का हो तो वो हिंदू हो या मुस्लिम मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन मैंने उसके लिए अच्छा लड़का ढूंढ़ लिया है...”

मैं- “कौन वो इमरान?”

अब्दुल- “हाँ उसका बेटा...”

मैं- “मुझे लगता है तुम्हारी कोई गलती हो रही है, तुम खुशबू की शादी इमरान से करा रहे हो, उसके बेटे से । नहीं..."

मेरी बात सुनकर अब्दुल फिर से भड़क उठा- “तू मुझे पागल समझती है क्या? मैं मेरी बेटी की शादी किसी बूढ़े से क्यों करूंगा?”

मैं- “तू नहीं करा रहा है। लेकिन मेरी एक बात याद रखना कि वो बूढ़ा कर रहा है तेरी बेटी से शादी...”

अब्दुल- “घुमा-घुमा के मत बोल, जो भी कहना है साफ-साफ कह दे...”

मैंने पर्स में से मेरा मोबाइल निकाला और उसमें खुशबू की क्लिप को शुरू करके मोबाइल अब्दुल को देखने को दिया।
 
पहले तो अनिच्छा से अब्दुल ने मोबाइल को हाथ में लिया लेकिन बाद में जैसे-जैसे वो क्लिप देखता गया उसके चेहरे का रंग उतरता गया। क्लिप खतम होने के बाद उसने मोबाइल को मेरे हाथ में देकर वो उसके सिर पर हाथ रखकर लेट गया।

मैं- “इमरान तेरी बेटी की शादी उसके बेटे से इसलिए करवाना चाहता है की वो उसे जिंदगी भर भोग सके...”

अब्दुल- “मादरचोद, दोस्ती के नाम पे इतना बड़ा धोखा? भोसड़ी का जानता नहीं की अब्दुल को धोखा देने का मतलब मौत है...”

मैं- “मैं मेरी फ्रेंड के यहां से आ रही थी तभी मैंने खुशबू को एक होटेल में इमरान के साथ देखा। मैंने उस वक़्त क्लिप बनाई थी कि तेरे साथ सोना न पड़े इसलिए। लेकिन बाद में खुशबू से बात की तो मालूम पड़ा की पहली बार इमरान ने उसे जोर जबरदस्ती चोदा और बाद में ब्लैकमेल करता है। और साथ में खुशबू एक लड़के से प्यार भी करती है जो अच्छा है, वो भी मुझे मालूम पड़ा।

तुमने कभी खयाल ही नहीं रखा खुशबू का, पूरा दिन दूसरों । के घर की औरतों को चोदने के चक्कर में तुम्हारी बेटी किस हाल में है वो तूने कभी देखा ही नहीं। मैंने सोचा मैं तुम्हारे साथ एक बार न सोने के लिए ये क्लिप तुम्हें दिखाउँगी और हो सकता है तुम इर के; अब कौन सा । लड़का खुशबू से शादी करेगा ये डर; मारे इमरान के बेटे से खुशबू की शादी करा दोगे तो उस बिन माँ की बच्ची को पूरी जिंदगी इमरान के नीचे सोना पड़ेगा और मैंने तेरे नीचे लेटने का फैसला कर लिया। मैंने तुझे चार बजे इसलिए बुलाया क्योंकी खुशबू पाँच बजे भागने वाली थी। मैंने इस वक़्त मेरी माँ के लिए नहीं तेरी बेटी के लिए तुझसे चुदवाया है..."

मेरी बात खतम होते ही अब्दुल सिर्फ इतना ही बोला- “मैं साला कितना बड़ा चूतिया, जिसकी हवस से तू मेरी बेटी को बचाना चाहती थी, दोपहर को उसी के सहारे मैं मेरी बेटी को छोड़ आया। कुत्ते ने मेरी बेटी को आज भी नहीं छोड़ा होगा...”

* * * * * * * * * *

दूसरे दिन दोपहर को बारह बजे खाना खाते हुये मम्मी ने मुझे बताया- “बेटा, खुशबू की मंगनी वो सातवें माले वाले प्रेम से हुई है, और इस बात का सबको आश्चर्य हो रहा है, और सभी यही एक चर्चा कर रहे हैं की पहली बार हिंदू और मुस्लिम की शादी होगी, उन दोनों के परिवार वालों की मर्जी से...”

सच में अजूबे जैसी बात थी सबके लिए पर मेरे लिए नहीं, मुझे पिछले दिन ये बात हुई थी तब क्या-क्या हुवा
था वो सब याद आ गया।

अब्दुल को अपनी करनी पर अफसोस हुवा। उसके बाद मैंने उसकी और खुशबू की मोबाइल पे बात कराई। खुशबू से बात करते हुये अब्दुल मुझे ए.के-हंगल जैसा लग रहा था। वो मोबाइल पे बात करते हुये रो रहा था, सामने शायद खुशबू भी रो रही थी।

मुझे वो लोग क्या बोल रहे थे वो सुनाई नहीं दे रहा था और उसकी जगह ये गाना सुनाई दे रहा था- “बाबुल की दुवाएं लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले...”

अब्दुल- “निशा, निशा...” कहकर अब्दुल ने मुझे जगाया, और कहा- “चलो चलते हैं."

मैं- “क्या बात की खुशबू से तूने? उसे वापिस आने को कहा?” मैंने पूछा।

अब्दुल- “नहीं, वो जहां है वहीं उसे रहने दो...”

मैं- "क्यों?”

अब्दुल- “क्यों-क्यों, क्या कर रही हो? मैं उन लोगों को बुलाऊँगा तो दोनों को अलग करना पड़ेगा मुझे...”

मैं- “क्यों?” मैंने फिर से अगले सवाल जैसा ही सवाल किया।

अब्दुल- “बिरादरी के डर से, मैं उन्हें मेरी बिरादरी के सामने अपनी मर्जी से रजा नहीं दे सकता शादी की...”
 
अब्दुल- “क्यों-क्यों, क्या कर रही हो? मैं उन लोगों को बुलाऊँगा तो दोनों को अलग करना पड़ेगा मुझे...”

मैं- “क्यों?” मैंने फिर से अगले सवाल जैसा ही सवाल किया।

अब्दुल- “बिरादरी के डर से, मैं उन्हें मेरी बिरादरी के सामने अपनी मर्जी से रजा नहीं दे सकता शादी की...”

अब्दुल की बात सुनकर मैं हँसने लगी और बोली- “इमरान भी तो तुम्हारी बिरादरी का ही था, और तुम तो हिंदू मुस्लिम में फर्क नहीं मानते ना...”

अब्दुल- “सच में नहीं मानता, लेकिन बिरादरी से डरता हूँ..” अब्दुल ने कहा।

लेकिन मैंने उसे खूब समझाया और अंत में वो मान भी गया। फिर हमने फिर से खुशबू को फोन लगाया और उसे वापिस आने को कहा। खुशबू तो वापिस आने को तैयार हो गई।

लेकिन पप्पू ने कहा- “उसके मम्मी-पापा खुशबू से शादी की बात नहीं मानेंगे...”

तब अब्दुल ने कहा- “मैं मनाऊँगा..”

पप्पू ने कहा- “आप तो धमकी देकर मनाओगे...”

अब्दुल ने हँसते हुये कहा- “अब तो मैं लड़की का बाप हूँ, आप टेन्शन मत लो, मैं हाथ पैर जोड़कर मनाऊँगा...”

फिर पप्पू भी वापस आने को मान गया।

उसके बाद मैं अब्दुल के साथ ही उसकी गाड़ी में घर वापिस आई, लेकिन थोड़ी दूर उतर गई। रात को दस बजे। खुशबू का फोन भी आ गया कि- “हम लोग वापिस आ गये हैं..." और आज ही अब्दुल ने उन दोनों की मंगनी भी कर दी। इतनी जल्दी वो ये सब करेगा ये तो मैंने भी सोचा नहीं था।

खाना खाकर मैं सो गई, तभी घंटी बजी। मैं नींद में से उठकर धीरे-धीरे बाहर आई तब तक तो घंटी चार पाँच बार बज उठी थी- "कौन है इस वक़्त?” कहते हुये मैंने दरवाजा खोला और देखा तो सामने नीरव खड़ा था, बिखरे बाल, बढ़ी हुई दाढ़ी और मैले कपड़ों में नीरव हर रोज से अलग लग रहा था।

मैं- “तुम तो दो दिन बाद आने वाले थे ना?” मैंने नीरव के हाथ से बैग लेकर उसे अंदर आने के लिए जगह देते हुये पूछा।

नीरव कुछ भी बोले बगैर अंदर आ गया, और दरवाजा बंद करके मुझसे लिपट गया। उसके वर्ताव से मुझे डर लगने लगा। मेरे दिल में एक ही पल में कई अमंगल विचार आ गये- “क्या हुवा? बता ना नीरव...”

कुछ देर तक नीरव ने कोई जवाब नहीं दिया तो मैंने उसकी पीठ को सहलाते हुये फिर से पूछा- “बता ना नीरव क्या हुवा?”

नीरव ने मुझे उसकी बाहों से अलग करके मेरे सामने देखते हुये कहा- “निशु...” और फिर चुप हो गया।

मैं- “जल्दी से बोलो नीरव और तुम तो दो दिन बाद आने वाले थे ना?” मैंने घबराहट और अधीरता से पूछा।

नीरव- “वो मैं तुम्हें सरप्राइज देने के लिए झूठ बोला था। पर वापिस आते वक़्त मेरी बैग कोई उठा ले गया और उसमें तीन लाख की कैश थी..."
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मैं- “तीन लाख... इतने पैसे तुम साथ में क्यों लेकर आए?”

नीरव- “नहीं लाता था कभी भी। हर बार ड्राफ्ट में ही लाते हैं। लेकिन इस बार लेट हो गया, पैसे रात के 9:00 बजे के बाद आए, और मैंने साथ में ले लिया..." नीरव ने हताशा से कहा।

मैं- “पापा को मालूम है तुम साथ में लेकर निकले हो?”

नीरव- “वही तो टेन्शन है निशा, मैं पापा को बताए बगैर पैसा साथ में लेकर निकल पड़ा..”
 
मैं आगे कुछ बोलूं उसके पहले मम्मी अंदर के रूम से बाहर आई। उन्होंने नीरव को देखकर मुझे चाय नाश्ता बनाने को कहा और नीरव का हाल-चाल पूछने लगीं। मैं चाय नाश्ता लेकर आई, तब तक नीरव ने मम्मी को भी पैसे की चोरी के बारे में बताया।

चाय नाश्ता करते हुये नीरव ने बताया की वो परसों रात को निकला था। रास्ते में उसकी एक मुसाफिर से दोस्ती हो गई जिसके साथ नीरव ने चाय पी थी और फिर वो सो गया था। दूसरे दिन दोपहर को वो ट्रेन तब तक अहमदाबाद छोड़कर पालनपुर पहुँच चुकी थी और वो उसका अंतिम स्टेशन था। जागते ही उसे मालूम पड़ गया की उसकी बैग कोई ले गया है। उसने पोलिस स्टेशन में शिकायत भी की, उन लोगों ने सरकारी हास्पिटल में नीरव का बाडी चेकप करवाया और फिर जाने दिया और फिर वो अहमदाबाद
आया।

नीरव की बात खतम होते ही मैंने कहा- “पापा को फोन करके बता दो...”

नीरव- “नहीं निशु...”

मैं- “तो क्या करोगे?"

नीरव- “कुछ भी करूंगा लेकिन पापा को नहीं बताना है निशु, तुम जानती हो, वो मेरी बात को झूठ ही मानेंगे...”

कुछ हद तक नीरव की बात सही भी थी। मेरे ससुर को उसपर विस्वास ही नहीं है, और ऐसा भी हो सकता है। की मेरे ससुर को तो यही लगेगा की ये पैसे मेरे पापा ने ही लिए होंगे। उसके बाद हम रात को राजकोट के लिए निकले, लेकिन पूरा दिन मेरा और नीरव का मूड नहीं था। मैंने अहमदाबाद से निकलते हुये मेरे मम्मी-पापा कोकह दिया की किसी को नीरव के बैग की चोरी के बारे में मत बताना।

सुबह हम राजकोट पहुँचे, कंपाउंड में जहां खटिया डालकर रामू सोता था, वहां चादर ओढ़कर नया चौकीदार सो। रहा था। दोपहर का एक बजा था, मैंने रसोई तो की थी लेकिन अभी तक हम खाने नहीं बैठे थे, मन ही नहीं हो रहा था। नीरव घर पर ही था अभी तक, आफिस नहीं गया था, वो हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहा था। हम सोफे पर बैठकर तीन लाख कहां से लाएं? उस बारे में सोच रहे थे।

नीरव- “निशु फ्लैट के कागजात भी पापा के पास हैं, नहीं तो उसके उपर पैसे ले आता...”

मैं- “आपका दोस्त नहीं है, जो आपको तीन लाख दे सके...”

नीरव- “कोई नहीं है...

मैं- “तो फिर एक ही रास्ता बचा है..” मैंने कहा।

नीरव- “कौन सा?”
 
मैं- “आपका दोस्त नहीं है, जो आपको तीन लाख दे सके...”

नीरव- “कोई नहीं है...

मैं- “तो फिर एक ही रास्ता बचा है..” मैंने कहा।

नीरव- “कौन सा?”

मैं- “एक मिनट.." कहकर मैं रूम में गई और कपबोर्ड से जेवर का पैकेट लेकर आई और नीरव को देकर बोली“ये बेच दो...”

नीरव ने पैकेट हाथ में ले तो लिया लेकिन तुरंत उसे तिपाई पर रख दिया और कहा- “नहीं..”

मैं- “क्यों क्या प्राब्लम है?”

नीरव- “मैंने या मेरे घर वालों ने तुझे कुछ दिया है तो वो ये है, और वो भी मैं ले लँ...”

मेरे मम्मी-पापा ने मुझे शादी में सिर्फ एक मंगलसूत्र ही दिया था, मेरे पास जो भी जेवर हैं सब नीरव के घर से ही दिए हुये हैं वो हैं। इसलिये मैंने कहा- “कहते हैं सोना मुशीबत के वक़्त काम आता है और हमारे पास है तो हम उसका इस्तेमाल नहीं करेंगे तो किस काम का?”

नीरव- “नहीं निशु... मैं तेरे जेवर बेच नहीं सकता, ये अच्छा नहीं लगता मुझे...”

मैं- “नीरव इस वक़्त भावनात्मक तरीके से सोचना नहीं चाहिए, हमारे पास और कोई चारा नहीं है...”

नीरव- “निशु ना तो तुम्हें मेरे घर वालों ने प्यार दिया है ना सम्मान, एक यही चीज दी है उसे भी मैं ले लँ? नहीं निशु नहीं...”

मैं- “तुम तो मुझे प्यार करते हो ना? मैं तुमसे शादी करके यहां आई हूँ नीरव, तुम्हारे घर वालों से नहीं, तुम मुझे सम्मान देते हो बहुत है मेरे लिए..” मैंने कहा।

नीरव कुछ बोले बगैर एकटक मुझे देखता रहा, जो देखकर मुझे लगा की शायद वो मेरी बात मान चुका है।

मैंने उससे कहा- “चलो अब खाना खा लेते हैं...” फिर मैंने और नीरव ने खाना खाया।

खाना खाते हुये नीरव ने कहा- “हम ये जेवर बेचेंगे नहीं, आजकल हर बैंक जेवर पे लोन देती है तो हम लोन ले लेंगे और जब भी पैसे का इंतेजाम होगा तब जेवर वापस ला दें..."

नीरव के जाने के बाद मैंने घर का सारा काम निपटाया और फिर सो गई। शाम के पाँच बजे उठकर फ्रेश होकर सब्जी लेने मार्केट निकली। वापिस आते वक़्त स्टूल पर चौकीदार को बैठा देखा तो उसे देखकर मुझे रामू की। याद आ गई, क्योंकि इसकी भी क़द, बाडी और कलर रामू जैसे ही थे।
 
मुझे देखकर वो स्टूल पर से खड़ा हो गया और बोला- “मेमसाब काम बढ़ाना है...”

मैं- “हाँ, कल से आ जाना..” मैंने कहा और लिफ्ट में जाकर मैंने तीसरे फ्लोर का बटन दबाया।

मैं घर का ताला खोल ही रही थी कि पापा का फोन आया, उन्होंने तीन लाख का इंतेजाम कैसे किया वो पूछा
और पोलिस केस आगे बढ़ा की नहीं उस बारे में पूछा।

मैंने पापा को झूठ बोला की तीन लाख नीरव के फ्रेंड से लेकर आफिस में दे दिए हैं, और पोलिस केस के बारे में मुझे मालूम नहीं है। उसके बाद मैं रसोई में गई और खाना बनाया और नीरव के आने के बाद हमने खाया, रात को सोते वक़्त मैंने नीरव से कहा- “सुबह जल्दी उठना, मंदिर जाना है...”

नीरव- “क्यों कल क्या है?”

मैं- “मैंने कल सोचा था की पैसे का इंतेजाम होगा तो हम मंदिर जाएंगे...” मैंने कहा।

नीरव- “पैसे का इंतेजाम तो तेरे करण हुवा है निशु..” ।

मैं- “रास्ता तो भगवान ही दिखाता है नीरव, सुबह जल्दी उठना...”

नीरव- “ओके मेडम, जो आपका हुकुम..” नीरव ने नाटकीय अंदाज में कहा और मैं हँसने लगी।

सुबह गोपाल चाचा दूध देकर गये और मैं बाथरूम में नहाने बैठ गई। बाहर आकर मैंने गाउन पहनकर गैस पर चाय रखी और नीरव को जगाया और फिर हम दोनों ने साथ मिलकर चाय नाश्ता किया फिर नीरव नहाकर तैयार हुवा, तब तक मैं भी साड़ी पहनकर तैयार हो गई।

मंदिर से वापिस आकर मैंने फिर से गाउन पहनकर खाना बनाया और टिफिन भरा, बारह बजे शंकर टिफिन लेकर गया। बाद में मैंने खाना खाया और फिर टीवी देखने सोफे पर बैठ गई। थोड़ी देर बाद बेल बजी और मैंने उठकर दरवाजा खोला तो सामने एक औरत खड़ी थी। उसकी शकल सूरत और कपड़ों के देखने से वो कामवाली लग रही थी। लेकिन मैं उसे पहली बार इस बिल्डिंग में देख रही थी, पूछा- “क्या काम है?”

औरत- “भाभी मैं आपके घर का काम करने के लिए आई हूँ..”

मैं- “किसने कहा तुझे?” कहकर मैंने दरवाजा बंद कर लिया।

दो मिनट बाद फिर से बेल बजी, मैंने दरवाजा खोला और देखा तो चौकीदार था और उसके साथ वो औरत थीमेमसाब, ये मेरी बीवी है, कल आपने मुझे काम के लिए हाँ बोला था ना...”

मैंने सिर हिलाकर 'हाँ' कहा और वो औरत को अंदर आने को कहा। उस औरत ने काम करते हुये मुझे बताया की उसका नाम चन्दा है और उसके पति का नाम माधो है। वो लोग चार दिन पहले ही यहां आए हैं और जहांजहां रामू काम करता था वहां-वहां वो काम कर रही है।

मैंने उससे पूछा- “रामू पकड़ा गया की नहीं?”

चन्दा- “नहीं भाभी रामू नहीं पकड़ा गया और कान्ता भी उसके बच्चों के साथ कहीं चली गई है..” चन्दा ने कहा।

मैं सोच में पड़ गई की कान्ता कहां गई होगी? कहीं रामू के पास तो नहीं चली गई होगी ना? शायद वहीं गई होगी...” मेरे मुँह से निकल गया।

चन्दा पोंछा लगा रही थी, वो रुक गई और मुझे पूछने लगी- “कुछ कहा भाभी आपने मुझे..”

मैं- “नहीं तो..” मैंने सिर हिलाकर ना कहा और फिर रामू और कान्ता के विचारों में खो गई।
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अहमदाबाद से आए मुझे 15 दिन हो गये थे। फिर से मेरी जिंदगी में मुझे सेक्स की कमी महसूस होने लगी थी, फिर से मैं अपनी संतुष्टि नीरव की उंगली से करने लगी थी। पंद्रह दिन में मैंने कई बार नीरव को ‘मी आंड मम्मी हास्पिटल' जाकर मेरी रिपोर्ट लाने को कहा, पर वो हर रोज भूल ही जाता है। कई बार तो मैं उससे लड़ भी पड़ी और कहा- “रिपोर्ट लाओगे तो ही क्या प्राब्लम है वो मालूम पड़ेगा ना और तो ही हम दवा चालू करा सकेंगे..."

मेरी बात सुनकर नीरव हमेशा एक ही बात कहता- “मेरी जानू को कोई प्राब्लम नहीं हो सकती, शाम को आफिस से घर आते वक़्त हास्पिटल बंद हो जाती है इसलिए भूल जाता हूँ...”

मैं उसकी बात सुनकर मुँह फुलाकर कहती हैं- “तुम्हें चाहिए की नहीं चाहिए पर मुझे अब बच्चा चाहिए.”

मेरी बात सुनकर वो हँसकर कहता- “इतना बड़ा बच्चा तो है तुम्हारे सामने..."

नीरव की बात सुनकर मैं हँस पड़ती और फिर दो दिन तक रिपोर्ट याद करना भूल जाती।

* * * * * * * * *
 
मैंने पीछे देखा तो मालूम पड़ा की इस तरह से मुझे पकड़ने वाला महेश था, तो मैं जोर से चिल्लाई- “ये क्या बद-तमीजी है...”

महेश- “इसे बदतमीजी नहीं प्यार कहते हैं...” महेश ने मेरे उरोजों को दबाते हुये कहा।

मैं- “बहुत प्यार उमड़ रहा हो तो अपनी बीवी से करो, समझे...” मैंने अपना मुँह नीचे करके उसके हाथ को काटते हुये कहा।

मेरी उस हरकत से वो गुस्सा हो गया और जोर से मेरे उरोजों को दबाकर मेरे कान में फुसफुसाया- “हरामजादी रामू के नीचे लेट जाती हो और मेरे सामने नखरे दिखा रही हो..."

उसकी बात सुनकर मैं कुछ पल के लिए डर गई पर मैंने तुरंत अपने आपको संभाल लिया- “ये क्या बक रहे हो? कौन रामू?”

महेश- “इतनी जल्दी भूल गई... मादरचोद हर रोज तो चखती थी उसका लण्ड लेकर...”

मैं- “तमीज से बात कर और मुझे छोड़..” मैं रामू के बारे में कोई बात नहीं करना चाहती थी।

महेश- “चुपचाप बेडरूम में चल, नहीं तो पूरे बिल्डिंग में तेरे और रामू के बारे में बता दूंगा और फिर तो पोलिस भी आ जाएगी तेरे घर...” इतना कहकर महेश ने मुझे छोड़ दिया और फिर बोला- “जिस तरफ जाना चाहती हो। जा सकती हो, लेकिन जो भी कदम उठाना अंजाम के बारे में सोचकर उठाना...”

बात तो सही थी उसकी। रामू के बारे में पता चलते ही मेरी पूरी जिंदगी में उथल-पुथल मच सकती थी। नीरव मुझे एक सेकेंड घर में रहने नहीं देगा, और मम्मी-पापा तो पागल हो जाएंगे और ऊपर से पोलिस का टेन्शन
और मैं पहली बार तो पराए मर्द से चुद नहीं रही हूँ, अब तो गिनती भी भूल गई हूँ और कई दिन से मैं भी तो प्यासी हूँ। मैं बेडरूम की तरफ चल दी।

मुझे बेडरूम की तरफ जाते देखकर महेश हँसने लगा- “मुझे मालूम था की तुम मान जाओगी, क्योंकि तुम रांड़ नंबर एक हो...”

मुझे उसका बात करने तरीका अच्छा नहीं लगा, पर मैं कुछ बोली नहीं। वो मुझे दीवार से सटाकर मेरे होंठ । चूसने लगा। उसने मुझे ब्लैकमेल करके सेक्स के लिए तैयार किया था, इसलिए मैंने अपनी तरफ से उसे कोई रिस्पोन्स नहीं दिया। फिर वो मेरी साड़ी निकालने लगा तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया- “मेरे पास इतना वक़्त नहीं है जो भी करना है फटाफट करो...”

महेश- “साली रांड नखरे बहुत करती है। कोई बात नहीं, चल अपनी साड़ी उठाकर बेड पर लेट जा...” महेश ने मुझे बेड पर धक्का देते हुये कहा।

मैं मेरी साड़ी को कमर तक उठाकर बेड पर लेट गई।

महेश भी बेड पर आ गया और मेरे पैरों को सहलाकर पैंटी निकालने लगा, कहा- “रामू के लण्ड से चुदने के बाद भी तेरी चूत इतनी टाइट कैसे है?”

मेरी पैंटी निकालते ही महेश मेरी चूत को अपनी उंगली से सहलाने लगा।

मैं कोई जवाब दिए बगैर आँखें बंद करके उसकी उंगली का मजा लेने लगी।
 
महेश- “बोल ना रंडी...” महेश ने इस बार जोर से मेरी चूत में उंगली घुसेड़ दी थी।

मैं- “क्या?”

महेश- “रामू का बड़ा लण्ड लेने के बाद भी तेरी चूत इतनी टाइट क्यों है?”

क्या कहूँ मैं इस हरामी आदमी को की बच्चा आने तक चूत टाइट ही होती है, वो ये बात जानता भी होगा पर मुझसे गंदी बातें करके मजा लेना चाहता था वो। मैंने कहा- “तुझे कैसे मालूम की रामू का लण्ड बड़ा है?” मैंने उससे ऐसा सवाल कर दिया जिसके बारे में उसने सोचा भी नहीं था।

महेश- “वो... वो... हम ए-एक बार..” महेश बोलते हुये अटकने लगा।

मैं- “तुम हकलाने क्यों लगे?” मैंने उससे उपहास भरे स्वर में पूछा।

महेश कोई जवाब दिए बगैर मेरा ब्लाउज खोलकर मेरी ब्रा के कप को ऊपर करके मेरे निप्पल चूसने लगा।

मैंने महेश के बालों का सहलाया और फिर पूछा- “बोल ना महेश, तुझे रामू के लण्ड की साइज कैसे मालूम?"

मेरी बात से चिढ़कर महेश ने मेरे निप्पल को काट दिया, तो मैंने उसकी पीठ पे हाथ मारकर कहा- “प्यार से करो, अब मैं कहीं भाग जाने वाली नहीं हूँ...” ।

फिर महेश कुछ देर तक मेरे दोनों स्तनों को प्यार से बारी-बारी चूसने लगा। मैं मस्त होकर उसकी पीठ और बाल को बारी-बारी सहलाने लगी। कुछ ही पलों में मेरी चूत गीली हो गई, तो मैंने मेरा हाथ नीचे किया और उसके लण्ड को पैंट के साथ सहलाने लगी। उसने निप्पल को छोड़कर मेरी तरफ देखा तो मैंने मुश्कुराकर उसके बाल खींचे। वो ऊपर की तरफ खिंचता चला आया और मेरे होंठों को उसके होंठों के बीच लेकर चूसने लगा। मैं भी पूरी तरह से उसे सहयोग देने लगी। वो मेरे ऊपर के होंठ चूसता तो मैं उसका नीचे का होंट चूसती और वो मेरा नीचे का होंठ चूसता तो मैं उसका ऊपर का होंठ चूसती।

कुछ देर बाद वो मेरी जांघों तक नीचे झुका, उसने मेरी चूत पे किस ली तो मेरे मुँह से मादक सिसकारी निकल गई- “आह्ह...”

महेश- “तुम जितनी मासूम और भोली दिखती हो, उतनी ही शातिर हो बेड पर...” पहली बार महेश ने मुझसे ठीक तरह से बात की।

मैंने उसका मुँह मेरी चूत पर दबाया तो वो उसकी जबान निकालकर मेरी चूत चाटने लगा। कुछ ही पलों में मैं। मदहोश होने लगी, मेरे मुँह से अनगिनत सिसकारियां निकलने लगीं। मुझे लग रहा था की मैं अभी छूट जाऊँगी लेकिन छूट नहीं पा रही थी। मुझसे अब मेरे बदन की तपन सहन नहीं हो रही थी। मैंने फिर से उसके बालों को खींचा।

महेश ने फिर से मेरी तरफ देखा- क्या है?

मैं- “अब जल्दी करो...”

महेश- “क्या जल्दी करूं?”

मैं समझ गई कि महेश मुझसे क्या बुलवाना चाहता है, जो मेरे लिए नहीं बात नहीं थी- “जल्दी चुदाई करो...”

महेश- “क्यों... क्या जल्दी है?”

मैं- “मुझसे अब रहा नहीं जा रहा, जल्दी से अपना लण्ड मेरी चूत में डालो...” मैंने पूरी तरह निर्लज्ज होकर कहा।

महेश ने उठकर उसकी पैंट और अंडरवेर निकाल दी, मैंने उसके लण्ड की तरफ देखा, कोई पाँच-छे इंच का होगा।

महेश- “मेरी कुतिया, तू यहां रहने आई तब से मैं तेरे नाम की मूठ मार रहा हूँ...” महेश फिर से मेरे ऊपर झुकते हुये बोला।
 
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