Hindi Antarvasna - चुदासी - Page 20 - SexBaba
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Hindi Antarvasna - चुदासी

महेश ने उठकर उसकी पैंट और अंडरवेर निकाल दी, मैंने उसके लण्ड की तरफ देखा, कोई पाँच-छे इंच का होगा।

महेश- “मेरी कुतिया, तू यहां रहने आई तब से मैं तेरे नाम की मूठ मार रहा हूँ...” महेश फिर से मेरे ऊपर झुकते हुये बोला।

मैंने उसे मेरी बाहों के घेरे में ले लिया, वो फिर से मुझे किस करने लगा। मैंने मेरा हाथ नीचे किया और लण्ड पकड़ लिया जो बहुत ही सख़्त और गरम हो गया था। मैंने उसे मेरी चूत के द्वार पर रख दिया। महेश धक्का देने की बजाय लण्ड से मेरी चूत के बाहरी भाग को सहलाने लगा।

महेश- “तुझे होटेल बुलाने के फोन आते थे, याद है?”

मैं- “हाँ... कहता था की इतने बजे होटेल आ जाओ..”

महेश- “वो मैं करता था रंडी...” कहकर महेश ने धीरे से धक्का देकर मेरी चूत में उसका आधा लण्ड घुसेड़ दिया।

मैं- “क्यों करते थे?"

महेश- “मैं कोशिश मारता था की कहीं तुम मेरी बात में इंटरेस्ट लो, और बात करो तो मेरी बात बन जाय। लेकिन तुम मादरचोद हर बार फोन काट देती थी...” महेश ने अब धक्के लगाने शुरू कर दिए थे।

मैं- “ऐसे थोड़ी कोई लड़की आ जाती है...” मैंने मेरे पैरों को उठाकर उसकी कमर पे रख दिए।

महेश- “आज तो आ गई ना कुतिया तू मेरे नीचे... मुझे शक था पर रामू बता ही नहीं रहा था तेरे और उसके संबधों के बारे में। पोलिस की धमकी दी तब माना..”

मैं- “रामू कहां है, तुझे मालूम है?”

महेश- “हाँ... मालूम है..” महेश अब जोर से धक्के देने लगा था।

मैं भी मेरी गाण्ड ऊपर उठा-उठाकर मस्ती से चुदवा रही थी, हम दोनों के मुँह से गरम सांसे निकल रही थीं, जो एक दूसरे को और गरम कर रही थीं।

महेश- “रामू ने बताया तब ही तू आई ना अपनी माँ चुदवाने...”

महेश की बात सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया की बात-बात पे गाली, मैंने उसके सीने पर मेरे दोनों हाथ रखे और जोर से धक्का दिया, तो उसका लण्ड मेरी चूत में से बाहर निकल गया।

महेश- “साली, हरामजादी, मादरचोद, कुतिया, धक्का क्यों दे रही हो?” महेश ने मेरे गले को पकड़ते हुये कहा।

मैं- “प्यार से नहीं कर सकते, गाली क्यों दे रहे हो?”

महेश- “तेरी जैसी रंडी को गली ना दें तो पूजा करूं क्या?”

मैं- “देख करना है तो प्यार से कर ले और गाली मत दे...” मैंने अपने आपको शांत करके उसे अपने ऊपर खींचते हुये कहा। क्योंकि उसकी बात सुनकर मेरे दिमाग में जो गर्मी बढ़ गई थी उससे ज्यादा गर्मी इस वक़्त मेरे बदन
में थी, जिसे वोही ठंडा करने वाला था।

महेश- “कुतिया को चुदना भी है और नखरे भी कर रही है...” महेश मेरे ऊपर झुकते हुये बोला।
 
मैंने उसकी बात को अनसुना करके उसका लण्ड पकड़ा और मेरी चूत पे अडजस्ट करने लगी।

महेश- “अब नखरे किए ना तो तेरी माँ चोद दूंगा...”

इस बार की गली ने मुझे पूरी तरह झिझोड़कर रख दिया, मेरे हाथ में उसका लण्ड था, जिसे मैंने पूरी ताकत से दबाया। वो चीखते हुये मेरे हाथ को झटका मारकर मेरे हाथ से उसका लण्ड छुड़ाकर खड़ा हो गया। मैं भी खड़ी होकर मेरे कपड़े ठीक करने लगी।

मुझे कपड़े ठीक करते देखकर महेश गुर्राया- “तुम भूल गई शायद रामू को..."

मैंने मुश्कुराते हुये उसके लण्ड की तरफ नजर की, वो मुझ गया था- “मुझे नहीं लगता कि अब तुम कुछ घंटों तक कर सकते हो?”

मेरी बात सुनकर महेश और गुस्सा हो गया- “तुम जानती हो की तुम यहां से बाहर निकली तो मैं पूरी बिल्डिंग में सबको रामू के बारे में बता दूंगा..."

मैं- “तुम क्या बताओगे? मैं बताऊँगी सबको की तुम रामू को आज भी मिलते हो, वो कहां छुपा है तुम जानते हो और तुम मुझे ब्लैंक काल करते थे उसकी रिपोर्ट दे देंगी पोलिस में...” मैंने बेडरूम में से बाहर निकलते हुये कहा।

महेश नंगा ही दौड़ता हुवा बाहर आया, पीछे से मुझे पकड़ लिया और मेरी गाण्ड पे उसका लण्ड घिसने लगा।

मैंने मेरी कलाई उसके पेट पर मारी और उसकी पकड़ से छूट गई तो वो जल्दी से दो कदम जोर से चलकर मेरे सामने आ गया- “साली मुझे धमकी दे रही है, अब तो तेरे पूरे खानदान को चोद दूंगा...”

मैं- “तुम नहीं सुधरोगे?" मैंने मुश्कुराते हुये उसकी दो टांगों की बीच में जोर से लात मारी।

मुझे जितना मारना था उससे भी जोर से लग गया था शायद, वो अपना लण्ड पकड़कर जमीन पे बैठ गया। वो चिल्लाना चाहता था पर मुँह से आवाज नहीं निकल रही थी, दर्द से उसकी आँखों से पानी निकल रहा था।
 
मुझे जितना मारना था उससे भी जोर से लग गया था शायद, वो अपना लण्ड पकड़कर जमीन पे बैठ गया। वो चिल्लाना चाहता था पर मुँह से आवाज नहीं निकल रही थी, दर्द से उसकी आँखों से पानी निकल रहा था।

मैंने उसके घर से निकलते हुये कहा- “तुम्हें रामू के लण्ड की साइज किसने बताई? तुम्हारी बीवी संगीता ने? या फिर तुम खुद उसका लण्ड लेते थे?”

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मेरी शादी को सात साल हो गये हैं, शादी के एकाध साल के अंदर हमें बच्चा हो जाता तो आज छे साल का होता और मुझे उससे फुरसत ही नहीं मिलती। मैंने अपने आपसे कहा- “अभी देर नहीं हुई है निशा, रात को नीरव के आते ही उससे बात करो और पूछो की वो रिपोर्ट का क्या हुवा? और जल्दी से बेबी ला दो तो तुम्हारी जिंदगी फिर से बदल सकती है..." और रात को नीरव से बात करने की ठान ली।

खाना खाने के बाद मैंने नीरव से पूछा- “नीरव तुम वो रिपोर्ट लाए की नहीं?”

नीरव- “कौन सी रिपोर्ट?”

नीरव के सवाल से मैं गुस्सा हो गई, और कहा- “अब तुम ये भी भूल गये की कौन से रिपोर्ट तुम्हें लानी थी? अहमदाबाद जाने से पहले मैं माँ बन सकती हूँ की नहीं उसके लिए मैंने जो टेस्ट करवाए थे उसके रिपोर्ट? मैं तुम्हें हर रोज लाने को कहती हूँ और तुम भूल जाते हो वो रिपोर्ट..”

नीरव- “मैं मजाक कर रहा था, यार मुझे याद है रिपोर्ट और कल ले आऊँगा..”

मैं- “मजाक तो मेरा बन चुका है। लोग हमेशा माँ को बांझ कहते हैं, बाप को नहीं..” बोलते-बोलते मेरी आवाज भारी हो गई और आँखों में पानी भर आया।

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एक दिन मैंने नीरव से कहा- “नीरव, मैं काम करना चाहती हूँ...”

नीरव- “पागल हो गई हो क्या, तुम्हें कौन काम देगा? तुम सिर्फ एक साल कालेज गई हो...”

मैं- “कोई भी काम करूंगी, कोई तो देगा...”

नीरव- “पापा नहीं करने देगे, उनकी इज्ज़त का तो खयाल करो...”

मैं- “वाह मेरे पातिदेव वाह.. तुम्हारे पापा हमें घर खर्च के लिए भी कम पैसे दें तो उनकी इज़्ज़त मेरी नजरों से कितनी कम हो गई है वो तुम्हें मालूम है और मैं बाहर काम पे जाऊँ तो दुनियां के सामने उनकी इज्ज़त कम होगी वो तुम्हें मंजूर नहीं होगा। इंसान की इज्ज़त पहले घर में होनी चाहिए बाद में बाहर...”

नीरव- “निशा मुझे आगे बहस नहीं चाहिए, तुम बाहर काम भी नहीं करोगी और हमें बच्चा भी नहीं चाहिए." इतना कहकर नीरव बेडरूम के अंदर चला गया।

पहली बार नीरव ने मुझसे इस तरह बात की थी, इसके पहले मुझे याद नहीं की वो कभी मुझ पर गुस्सा हुवा हो। मुझे रोना आ गया। मैं रोती हुई सारा काम निपटाकर बेडरूम में गई और नीरव से दूसरी तरफ मुँह करके
सो गई।

थोड़ी देर बाद नीरव ने मुझे पीछे से सटकर, आगे हाथ करके मेरे स्तन को सहलाते हुये बोला- “आई एम सारी, निशु डार्लिंग...”

मैंने कोई जवाब नहीं दिया, वो मेरे स्तनों को ऐसे ही सहलाते हुये मेरी प्रतिक्रिया की राह देखने लगा। लेकिन मैंने कोई रिस्पोन्स नहीं दिया तो थोड़ी देर बाद उसने मुझे उसकी तरफ खींचना चाहा तो मैंने उसके हाथ से मेरे स्तन को छुड़ाकर उसके हाथ को झटक दिया और बेड पर थोड़ा आगे सरक गई।

नीरव- “जा नीचे जाकर सो जा...” नीरव फिर से चिढ़ गया।

और मैं उसकी बात सुनकर जोर से रोने लगी।

नीरव उठकर मेरी तरफ आया- “रियली सारी निशु...”

और मेरी साइड में थोड़ी सी जगह थी वहीं पर लेट गया, उस तरफ जगह कम थी तो मुझे लगा की वो गिर जाएगा तो मैं थोड़ा पीछे सरक गई। जब तक मेरी सिसकियां बंद नहीं हुई तब तक नीरव ने मेरे मुँह को उसके सीने पर दबाकर रखा और फिर मेरा चेहरा ऊपर उठाया- “आई लव यू...” कहकर मेरे होंठों पर उसके होंठ रख दिए।

मैंने एक-दो बार मेरे होंठ उसके होंठों से छुड़ाने की कोशिश की पर उसने मेरा मुँह सख्ती से पकड़ रखा था और कुछ ही देर में मैं भी सारी बातें भूलकर उसके होंठ चूसने लगी। उस रात नीरव ने मुझे अविस्मरणीय आनंद दिया। उसने मेरी चूत को भी चाटा जो उसे पसंद नहीं। शायद ये उसका सारी कहने का नया तरीका था, या वो कुछ दिन से मेरी सेक्स के प्रति रूचि देखकर इस तरह से मुझे मना रहा था।
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दूसरे दिन दोपहर को चन्दा, जिसने मुझे धोखे से महेश के पास भेजा था, काम पर आई। मैंने सोचा था की वो अब कभी नहीं आएगी। मैंने मन ही मन उसकी हिम्मत की दाद दी, काम खतम करके वो निकल ही रही थी कि मैंने उसे रोका- “चन्दा..."

मेरे टोकने से चन्दा रुक गई और मैं सोफे पर बैठी थी वहां आई।

मैंने पूछा- “कल वहां संगीता नहीं थी, तुम जानती थी ना?”

चन्दा ने कोई जवाब दिए बगैर अपना सिर झुका दिया, तो मैंने मेरा सवाल अलग तरीके से दोहराया- “कल वहां महेश था, तुम जानती थी ना...”

चन्दा- “मुझे माफ कर दो भाभी...”

क्या कहा था उसने?” मैंने कड़क लब्जों में कहा।

चन्दा- “हमें यहां से निकाल देने की धमकी दी थी...”

मैं- “और तू मान गई...”

चन्दा- "तो क्या करती भाभी? मेरे पति को यहां चौकीदार की नौकरी मिल गई है, ऊपर से रहने की जगह और मैं भी महीना भर काम करके दो हजार कम लेती हैं। यहां से निकाल देंगे तो कहा जाएंगे हम?”

मैं- “तो उसके लिए तूने मेरी इज़्ज़त दांव पे लगा दी...”

चन्दा- “पहले तो मैंने ना बोला था भाभी, पर बाद में मैं उसकी बातों में आ गई। मुझे माफ कर दो, आइन्दा मैं ऐसा किसी के साथ नहीं करूंगी...”

तीन-चार बार चन्दा ने माफी मांगी तो मैं थोड़ी शांत हो गई तब मेरे दिमाग में एक नई बात आई- “एक बात पूंछू, सच-सच बताना.."

चन्दा- “पूछिये भाभी...”

मैं- “तेरे साथ करता है, महेश?”

चन्दा- “हाँ..” इतना बोलकर चन्दा ने अपना सिर झुका दिया।

मैं- “तेरे पति को मालूम पड़ेगा तो?”

चन्दा- “पड़ेगा तो वो कुछ नहीं करेगा भाभी, दिन को शराब पीकर पड़ा रहता है और रात को चौकीदारी करता है, कभी मुझे नहीं देखता। शादी के शुरुआती दिनों में ठीक था, अब तो कभी नहीं आता मेरे पास..”

चन्दा की बातों ने मेरा एक भ्रम तोड़ दिया। मैं हमेशा मनती थी की लंबे, चौड़े मर्द सेक्स में ज्यादा इंटरेस्ट लेते। हैं, लेकिन चन्दा की बातों ने वो बात गलत साबित कर दी थी। चन्दा के जाने के बाद मैं सोचने लगी की अब मुझे महेश से डरने की कोई जरूरत नहीं है। वो मेरे और रामू के बारे में सबको बताएगा तो मेरे पास उसकी और चन्दा की बात है।

आज भी रात को नीरव पूरे मूड में था, बेडरूम में जाते ही उसने मुझे बाहों में भर लिया और मेरे होंठों को चूमने लगा और फिर मेरे कपड़े निकालकर मेरी चूचियों को चूसने लगा। फिर नीचे झुक गया और मेरी चूत चाटने लगा। कुछ देर बाद मुझे लगा की मैं आज भी कल की तरह ऐसे ही झड़ जाऊँगी तो मैंने उसे अपने ऊपर खींचा
और अंदर डालने को कहा।

लेकिन वो हर रोज की तरह तुरंत झड़ गया और कुछ ही देर में सो गया और मुझे बहुत देर बाद नींद आई।
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चन्दा बाहर काम कर रही थी और मैं बेडरूम में सो रही थी, कुछ दिनों से रात को जल्दी से नींद नहीं आ रही थी, जिस वजह से मैं बहुत थक जाती हूँ।

तभी करण आया- “हाय मेरी जान... कैसी है तू?”

मैं- “मैं और तेरी जान... कुछ दिन पहले तो तुम कह रहे थे की मैं तो सबकी जान लेती हूँ...” मैं करण को देखकर खुश तो बहुत हुई थी, लेकिन उसके साथ हुई अंतिम मुलाकात की बात को याद करके बोली।

करण- “छोड़ पुरानी बात को, तुम पे जान छिड़कने वालों की तादात तो हर रोज बढ़ती ही जा रही है...”

मैं- “मुझ पर... कौन?”

करण- “महेश परमार, तुम्हारा नया आशिक...”

मैं- “उस हलकट का नाम मत लो मेरे सामने...”

करण- “क्यों क्या खराबी है उसमें?” करण ने मेरी आँखों में आँख डालकर पूछा।

मैं- “वो... वो अच्छा आदमी नहीं है...” मुझे कोई जवाब नहीं सूझा तो मेरे दिमाग में जो आया वो बोल गई।

करण- “महेश अच्छा आदमी नहीं है तो क्या रामू अच्छा आदमी था? अंकल और अब्दुल अच्छे थे?” करण ने मुझे ताने मारते हुये कहा।

मैं- “तुम यहां से जाओ करण, मैं तुमसे बात नहीं करना चाहती...” मैंने चिढ़कर कहा।

करण- "क्यों चला जाऊँ मैं? क्यों तुम मुझसे बात नहीं करना चाहती?”
मैं- "मेरी मर्जी..."

करण- “मर्जी नहीं निशा, तुम्हारे पास मेरी बात का कोई जवाब नहीं इसलिए तुम मुझे जाने को बोल रही हो..”

मैं- “आज मैं जो हूँ तुम्हारी वजह से हूँ करण, पहली बार तुमने मुझे बहकाया था."

करण- “अपनी गलतियों को दूसरों पे थोपना कोई तुमसे सीखे, कभी मेरी वजह से, कभी नीरव की वजह से...”

मैं- “तो मैं कहां गलत कह रही हूँ करण? नीरव मुझे संतुष्ट नहीं कर पा रहा था, तभी तुमने मुझे अपनी बातों में फँसाया और फिर मैं... मैं...”

करण- “फिर क्या बताओ?"

मैं- “तुम यहां से जाओ करण, मुझे तुमसे बात नहीं करनी...” मैंने ऊंची आवाज में कहा।

करण- “क्यों नीरव जैसे भोले भाले इंसान को धोखा दे रही हो? क्या बिगाड़ा है उसने तेरा? वो तुमसे प्यार करता है वो गलती है उसकी? सेक्स ही जीवन है क्या? प्यार के कोई मायने नहीं?”

मैं- “तुम यहां से चले जाओ, करण..” मैंने मेरा मुँह नीचे करके दोनों हाथ के अंगूठे से सिर को दबाते हुये कहा।

करण- “सच हमेशा कड़वा ही होता है, निशा और सच ये है की तुम्हें वेश्या कहना भी वेश्या के लिए गाली होगा..."

मैं- “चुप्प... चुप हो जाओ तुम, निकलो यहां से नहीं तो मैं तुम्हें मार देंगी...” मैं चीखने लगी, रोती हुई जोरों से चीखने लगी।

चन्दा- “भाभी, भाभी क्या हुवा?”

करण की जगह चन्दा की आवाज आई तो मैंने आँखें खोलकर उसकी तरफ देखा।

चन्दा- “क्या हुवा भाभी, आप अचानक नींद में क्यों चीखने लगी?”

अब तक मैं समझ गई थी की आज भी हर रोज की तरह करण मेरे सपनों में आया था- "कुछ नहीं, तुम जाओ...” मेरा बदन पसीने से तरबतर था और मैं बोलते हुये हॉफ रही थी।
 
चन्दा- “हमने उस दिन बहुत बड़ा पाप कर दिया, भाभी हमें भगवान भी माफ नहीं करेगा..”

चन्दा से मेरी हालत देखी नहीं जा रही थी। लेकिन वो क्या बोल रही थी मुझे समझ में नहीं आ रहा था। मैं । कुछ बोलूं उसके पहले वो खड़ी हुई और किचन में जाकर पानी ले आई और मुझे दिया, और पूछा- “भाभी आपको सपनों में महेश आया था ना? वो आप पर जबरदस्ती कर रहा था ना? हमें माफ कर दीजिए, हमने उस दिन आपको वहां भेजा इसलिए आपको इस तरह के गलत-गलत खयाल आ रहे हैं..." इस बार उसकी बात मेरी समझ में आ गई।

मैं कुछ बोले बगैर चन्दा के मासूम चेहरे को देखने लगी। अच्छे कपड़े पहन ले तो कोई उसे देखकर वो कामवाली है' ऐसा नहीं कह सकता। मैंने कहा- “मेरी एक बात मनोगी, चन्दा?”

चन्दा- “कहिए, भाभी...

मैं- “तुम यहां से चली जाओ, तुम्हारे पति को बोलो की वो कहीं और नौकरी ढूंढ़ ले...”

चन्दा- “ऐसा क्यों कह रही हो भाभी? हमने अपनी गलती मान ली ना..” चन्दा मेरी बात सुनकर चिंतित स्वर में बोली।

मैं- “मैं उसके लिए नहीं कह रही, मैं तुम्हारे भले के लिए कह रही हूँ..” मैंने उसे समझाते हुये कहा।

चन्दा- “हमारे भले के लिए? हमारी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा...”

मैं- “तुम तुम्हारे पति और महेश के सिवा और किसी के साथ सोई हो?”

मैंने अचानक ही एक ऐसा सवाल उससे पूछ लिया की वो दो पल के लिए मुझे देखती ही रही, फिर सिर हिलाकर उसने 'ना' बोला।

मैं- “कितनी बार सोई हो महेश के साथ?”

मेरे सवाल का जवाब देने के लिए उसने अपना हाथ आगे किया और अपनी पाँच उंगलियां दिखाई।

मैं- “अभी भी कोई देरी नहीं हुई है चन्दा, लेकिन कुछ वक़्त और निकल जाएगा तो तुम्हारी वासना इतनी बढ़ जाएगी की तुम कोई भी मर्द के साथ हमबिस्तर होने के लिए तैयार हो जाओगी..”

चन्दा- “लेकिन भाभी..."

मैं- “तुम यहां रहोगी तब तक किसी ना किसी तरीके से तुझे फुसलाकर महेश तुम्हारे साथ सोता रहेगा और धीरेधीरे तुम्हें उसका चस्का लग जाएगा और फिर तो तुम किसी के साथ भी सोने के लिए हमेशा तैयार ही रहोगी...”

चन्दा- “लेकिन भाभी हमारा पति भी तो हमारा खयाल नहीं रखता...'
 
मैं- “ये हम औरतों का सबसे बड़ा वहम है। हम हमेशा मानते हैं की हमारा पति हमसे प्यार नहीं करता, लेकिन उसके लिए कुछ हद तक हम भी जिम्मेदार होते हैं। तुम अपना दाम्पत्य जीवन बचाना चाहती हो तो मेरी बात मानो, और यहां से कहीं और चली जाओ...” मैं बोलते हुये ध्यान से चन्दा का चेहरा देख रही थी, उसके चेहरे के बदलते भाव से ऐसा लग रहा था की उसके दिमाग में मेरी बातें बैठ रही थी- “और अपने बच्चों के बारे में भी तो सोचो, उन्हें बड़े होकर तुम्हारे बारे में पता चलेगा तब उन पर क्या असर होगा? कभी सोचा है तूने..” ।

चन्दा- “भाभी, हमें अच्छी नौकरी नहीं मिलती है, तब तक हम यहां रहते हैं। लेकिन आज के बाद हम महेश को छूने भी नहीं देंगे हमारे बदन को...”

मैं- “ये भी ठीक है, यहां रहते-रहते नौकरी ढूँढ़ते रहना, मिल जाय तब छोड़ देना...”

चन्दा- “आप बहुत अच्छी हैं भाभी, हम जा रहे हैं...” कहकर चन्दा बेडरूम में से निकल गई।

मैंने एक लंबी सांस ली और चन्दा को सुनाई न दे इतना धीरे से बोली- “मैं अच्छी नहीं हूँ चन्दा, मैं तो हर रोज भगवान से एक ही दुआ करती हूँ की कोई और लड़की मेरी तरह चुदासी न बन जाए...”

चन्दा को मैंने महेश के साथ संबध ना रखने के बारे में समझाया था, तब उसने मुझे जिस तरह से प्रतिभाव दिए थे, जो देखकर मुझे लगा था की अब वो महेश के सामने थूकेगी भी नहीं। लेकिन ये उसका बैडलक मानो
या मेरे अंतर की आवाज। दूसरे ही दिन, रात को दस बजे नीचे से महेश की चीखने की आवाज आई जो सुनकर मैं बाल्कनी में गई, वहां नीरव पहले से ही मोजूद था।

मैंने नीचे की तरफ देखा तो माधो (चन्दा का पति) महेश को मारते हुये गालियां दे रहा था- “मादरचोद, तेरी । बीवी को चोदू कुत्ते...” माधो महेश के मुँह पर मार रहा था और महेश अपने हाथों को ऊपर करके उसकी मार से बचने की नाकाम कोशिश कर रहा था।

माधो- “शक तो मुझे कई दिन से था, लेकिन आज रंगे हाथ पकड़ा। साले बहनचोद मेरी पीठ पीछे मेरी बीवी के साथ रंगरेलियां मनाता है...” माधो ने महेश को कालर से पकड़कर मुँह पर मुक्का मारते हुये कहा।

नीरव- “सच कहता होगा चौकीदार, महेश हर जगह मुँह मारता फिरता है...” नीरव ने मुझसे कहा।।

मैंने देखा की बिल्डिंग के ज्यादातर लोग अपनी बाल्कनी में आ चुके थे, और तमाशा देख रहे थे।

माधो- “तेरी बीवी को आने दे भोसड़ी के, तेरे सामने चोदूंगा नहीं तो मेरा नाम माधो नहीं..." माधो ने महेश के पेट में लात मारते हुये कहा।

लात शायद बहुत जोरों से पड़ी थी। महेश चीखता हुवा तीन-चार फुट दूर जाकर गिरा और फिर वो लड़खड़ाता हुवा उठा और बाहर की तरफ भाग गया। थोड़ी दूर तक माधो भी उसके पीछे भागा और फिर वापस आया।

अब तक मेरे ध्यान में चन्दा नहीं आई थी, लेकिन माधो को एक कोने की तरफ जाते देखकर मैंने उस तरफ देखा तो अपने दोनों पैरों के बीच अपना मुँह छिपाए चन्दा जमीन पर बैठी हुई थी।

माधो ने चन्दा के पास जाकर उसे भी लात मारी, लात उसके हाथ पर लगी। चन्दा घुटनों के बीच मुँह छिपाकर बैठी ना होती तो लात शायद उसके पेट पर लगती। चन्दा जो अभी तक धीरे-धीरे रो रही थी, वो जोरों से चीखती हुई रोने लगी। मेरे खयाल से वो मार के दर्द से रो नहीं रही थी, पर इतने लोगों के बीच उसकी इज्ज़त उछल रही थी ये सोच-सोचकर रो रही थी।

माधो ने चन्दा को बालों से पकड़कर खड़ा किया और कंपाउंड के बीच लेजाकर धक्का देकर पटका और फिर वो चन्दा पर थूका- “कुतिया, तेरा यार तो भाग गया, लेकिन तुझे जिंदा नहीं छोडूंगा...”

चन्दा अभी भी सिसकती हुई रो रही थी। उसने माधो के पैर पकड़ लिए और माफी मांगने लगी।

माधो- “मत दिखा अपना स्त्री चरित्र, मैं बहुत पहचानता हूँ तुमको। आज तो तुझे मार ही दूंगा...” कहते हुये माधो सीढियां के पीछे गया।

मैं- “नीरव, माधो के सिर पर खून सवार है, कुछ करो...” मैंने चन्दा की जगह अपने आपको सोचते हुये नीरव को कहा।

तभी माधो लकड़ी का इंडा लेकर आया।

मैं- “माधो मार डालेगा चन्दा को, चलो नीरव नीचे चलते हैं..” मैंने नीरव से कहा।

नीरव- “तो क्या गलत कर रहा है माधो? अपनी बीवी को दूसरों की बाहों में देखकर कोई भी आदमी यही करेगा...”

नीरव की बात सुनकर मेरा पूरा बदन कांप उठा। नीचे डंडा लेकर खड़ा माधो मुझे नीरव दिखने लगा।

मैं- “कोई तो नीचे उतरो, उसको पकड़ो... नहीं तो वो मार डालेगा अपनी बीवी को.." नीरव ने कोई रिस्पोन्स नहीं दिया तो मैंने दूसरे लोगों को जो अपनी-अपनी बाल्कनी में खड़े थे, उनको चिल्लाकर नीचे उतारने को कहा।

लेकिन सभी को सिर्फ तमाशा देखने में ही इंटरेस्ट था।
 
माधो चन्दा के पास गया और अपना हाथ ऊपर करके इंडा उठाया, डर के मारे चन्दा के साथ-साथ मैंने भी अपनी आँखें बंद कर ली।

पापा, पापा, छोड़ दो मम्मी को..” बच्चों की आवाज सुनकर मैंने मेरी आँखें खोली और नीचे देखा तो चन्दा के दोनों बच्चे अपने माँ-बाप के बीच दीवार बनकर खड़े थे।

कुछ पल के लिए माधो नरम पड़ा पर तुरंत बच्चों को साइड में करने लगा।
मैंने अब अकेले नीचे जाने का फैसला कर लिया। मैं दौड़ती हुई मेरे घर में से बाहर निकली और लिफ्ट की तरफ देखे बिना सीढ़ियां उतरने लगी। मैंने नीचे उतारकर देखा तो माधो ने बच्चों को चन्दा के आगे से हटा दिया था। बच्चे रोते हुये थोड़ी दूर खड़े थे। माधो ने फिर डंडा ऊपर उठाया, लेकिन वो इंडे को नीचे करके चन्दा को मारे उसके पहले मैं वहां पहुँच गई और मैंने डंडे को पकड़ लिया- “ये क्या कर रहे हो?”

माधो- “हमारे रास्ते से हट जाओ मेमसाब, ये हमारा आपसी मामला है...” माधो ने गुस्से से इंडे को जमीन पर पटकते हुये कहा।

मैं- “पागल हो गये हो क्या? अपने बच्चों के बारे में तो सोचो, तुम्हारी बीवी को मारकर तुम तो जेल में चले जाओगे, फिर तुम्हारे बच्चों को भीख मांगने के सिवा कोई चारा नहीं रहेगा...” मैंने माधो के हाथ से इंडा खींचकर नीचे फेंकते हुये कहा। न जाने कहां से मुझमें इतनी हिम्मत आ गई थी कि मुझसे दोगुनी ताकत वाले आदमी के हाथ से मैंने इंडा खींचकर नीचे फेंक दिया था।

दोनों बच्चे दौड़ते हुये आकर अपने बाप से लिपट गये। माधो अपने बच्चों को बाहों में लेकर रोने लगा। चन्दा भी रोती हुई खड़ी हुई। बच्चे माधो से अलग होकर अपनी माँ से लिपट गये। चन्दा रोती हुई घुटनों पे बैठकर अपने बच्चों को चूमने लगी।

मैं- “चन्दा की गलती बहुत बड़ी है माधो, लेकिन तुम्हारी भी कई गलतियां हैं। तुम पूरा दिन दारू पीते हो और अपने परिवार का ध्यान भी नहीं रखते, अभी भी देरी नहीं हुई है..."

मेरी बात सुनकर माधो चन्दा की तरफ आगे बढ़ा और बाहों में भरकर रोने लगा।
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दूसरे दिन रात को मैंने नीरव से कहा- “कल तुम नीचे नहीं उतरे, माधो मार डालता चन्दा को तो?”

नीरव- “दूसरे के झगड़े में हमें दखल नहीं देनी चाहिए निशु, और चन्दा की गलती भी थी...”

मैं- “चन्दा की गलती है, लेकिन माधो की भी गलती है नीरव। वो दिन में दारू पीकर पड़ा रहता है और रात को चौकीदारी करता है, चन्दा का जरा सा भी खयाल नहीं रखता..” मुझे चन्दा ने जो कहा था वो अक्षरसः मैंने नीरव को कह दिया।

नीरव- “चल छोड़ उन लोगों की बात को...” नीरव ने मुझे बाहों में लेकर किस करते हुये कहा।

मुझे भी नीरव की बात सही लगी और मैं उसे चूमने लगी।

दस दिन में ही माधो और चन्दा कहीं और रहने चले गये। बिल्डिंग का कार्यभार महेश के बजाय दूसरों को सौंप दिया गया, और दिन-रात के लिए चौकीदार की जगह किसी कंपनी के सेक्योरिटी गार्ड रख दिए गये। बिल्डिंग में बहुत कुछ बदल गया दस-पंद्रह दिन में मेरी तरह।

उस दिन चन्दा की हालत देखकर मैं बहुत डर गई थी। नीरव मुझे भी किसी के साथ पकड़ ले तो मेरा क्या हाल होगा, वो सोचकर मेरी रातों की नींद हराम हो गई थी। मैंने सिर्फ सेक्स करना ही नहीं उसके बारे में सोचना भी।
छोड़ दिया था। मैं धीरे-धीरे पुरानी वाली निशा बनने लगी थी।

तभी एक दिन अचानक सुबह मैंने न्यूसपेपर में एक खबर पढ़ी। अखबार के दूसरे पन्ने पर खबर थी- “पोलिस इंस्पेक्टर की बहन पर बलात्कार...”

अहमदाबाद, रविवार (हमारे सावंददाता सूचित) अहमदाबाद में नारायण नगर बी-22 में रहते पोलिस इंस्पेक्टर अमित जयंतीलाल शुक्ला की दिन दहाड़े हत्या की गई और उनकी बहन पर बलात्कार किया गया। पोलिस का कहना है की इसमें अंधारी आलम का हाथ हो सकता है, क्योंकि अमित ने उन लोगों की नाक में दम कर रखा था। सूत्रों के मुताबिक ये भी हो सकता है की अमित की कोई पुरानी अदावत हो। लेकिन अमित की बीवी का कहना है की उनको किसी से भी कोई अदावत नहीं थी।

अमित की बीवी नयना ने दरियापुर पोलिस स्टेशन में अमित की हत्या और अपनी ननद के बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज करवाई है, और वहां से इंस्पेक्टर जादव इस केस की तहकीकात करने वाले हैं। खबर पढ़ते-पढ़ते मेरा बदन पसीने से तरबतर हो गया था, रीता पर बलात्कार...

मैं रोने लगी, मैंने टीवी के पास पड़ा मेरा मोबाइल लिया और कंपकंपाते हाथों से रीता का नंबर लगाया। रीता का मोबाइल स्वीच आफ आ रहा था। मेरे पास उसका और कोई कांटैक्ट नंबर नहीं था। मैंने पापा को फोन लगाया। पापा को भी अभी ही अखबार पढ़कर ही पता चला था, वो भी कुछ खास नहीं जानते थे इस बारे में।

नीरव कुछ ही देर पहले आफिस के लिए निकल चुका था, उसे टिफिन भी भेजना था। मैं रसोई करने लगी पर मेरा पूरा ध्यान रीता की तरफ ही था। मुझे वो हर पल याद आ गये जो मैंने रीता के साथ बिताए थे। वो हमेशा से मेरी खास सहेली थी, कालेज में कोई लड़का मुझसे छेड़छाड़ करता तो वो उससे लड़ पड़ती थी, मेरा पूरा खयाल रखती थी वो।

टिफिन भेजने के बाद मैं खाना खाने बैठी, पर खाना मेरे गले से नीचे नहीं उतरा। मैं फिर से रोने लगी और खाना छोड़कर बेडरूम में जाकर सो गई, पर नींद नहीं आई।

पूरा दिन मैं बेचैन रही, ना कुछ सूझ रहा था, ना समझ में आ रहा था। शाम को नीरव के आने का वक़्त हवा तब मैंने रसोई बनाई। सुबह से मेरे पेट में कुछ नहीं गया था, इसलिए शाम को नीरव के साथ बैठकर थोड़ा बहुत खाया। खाना खाते हुये मैंने नीरव को रीता के साथ हुये हादसे के बारे में बताया। नीरव तीन-चार बार रीता को मिल चुका था इसलिए उसे पहचानता था।

मैंने नीरव से कहा- “मुझे रीता से मिलने जाना है...”

नीरव ने तुरंत “हाँ” कर दी।

मैंने पहले से ही बैग भर रखी थी, मैंने जल्दी से घर काम निपटाया और फिर मुझे नीरव अहमदाबाद जाती बस में छोड़ गया। मैंने पापा को मोबाइल करके कह दिया- “मैं आ रही हूँ..” और सुबह छे बजे मैं अहमदाबाद पहुँच गई।
 
11:00 बजे मैं और पापा रीता के घर जाने के लिए निकल ही रहे थे तब मैंने रीता को फोन लगाया, रिंग बजने लगी और मेरी धड़कनें तेज हो गईं। मैंने कहा- “हेलो...”
भाभी- “कौन..." सामने से धीरे से सिर्फ इतनी आवाज आई जो रीता की नहीं थी शायद उसकी भाभी नयना की थी।

मैं- “भाभी मैं निशा...” मैं आगे क्या बोलू कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

सामने कुछ पल के लिए खामोशी छा गई और फिर धीरे से रोने की आवाज आई।

मैं भी रोने लगी- “भाभी, मैं घर आ रही हूँ...”

भाभी- “निशा, हम सिविल हास्पिटल में है, तुम वहीं पर आ जाओ...”

मैं- “सिविल हास्पिटल? भाभी, रीता कहां है?”

भाभी- “रीता की तबीयत ठीक नहीं है, तुम यहीं पर आ जाओ, तीसरे माले पर रूम नंबर 33 है...”

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मैं- “अच्छा भाभी, मैं आती हूँ...” मैंने काल काटते हुये कहा।

कुछ ही देर में पापा मुझे सिविल हास्पिटल छोड़कर निकल गये। मैं तीसरे माले पर पहुँची, तीसरा माला पूरा आई.सी.यू. था, मैं रूम नंबर 33 पर पहुँची तो वहां बाहर दो पोलिस वाले खड़े थे। अंदर बेड पर रीता सोई हुई थी, वो वेंटीलेटर पर थी और भाभी बाजू में कुर्सी पर बैठी थीं। मुझे देखकर भाभी खड़ी हो गई और मुझे बाहों में लेकर रोने लगी। मैं भी रोती हुई उन्हें सांत्वना देने लगी।

थोड़ी देर बाद भाभी शांत हो गई तो मैंने उन्हें कुर्सी पर बिठाते हुये पूछा- “ये सब कैसे हो गया भाभी?”

भाभी- “परसों शाम को आठ बजे तक रीता घर पे नहीं आई तो मैंने उसका मोबाइल लगाया। मोबाइल लग नहीं रहा था तो मैंने तुम्हारे भैया को मोबाइल करके बताया...” इतना कहकर भाभी फिर से रोने लगी।

मैं खड़ी होकर रीता के नजदीक गई, उसे देखकर मेरी आँखें भर आई, मैं उसके बालों को सहलाने लगी।

भाभी- “तुरंत तुम्हारे भैया घर आ गये और वो रीता की जो-जो फ्रेंड हैं, उसे मोबाइल करके रीता को ढूंढ़ने लगे।

आधे घंटे बाद रीता के मोबाइल से मेसेज़ आया तुम्हारे भैया के मोबाइल पर। रीता ने किसी जगह का नाम लिखा था, तुम्हारे भैया वहां गये और फिर कभी वापस न आए...” भाभी फिर से रोने लगी।

थोड़ी देर बाद मैंने भाभी को पूछा- “रीता ने बताया तो होगा ना की कौन थे वो लोग...”

भाभी- “कुछ बोलने की हालत में होगी तो बोलेगी ना...”

मैं- “मतलब?”

भाभी- “हादसे का असर रीता के दिमाग पर इतना ज्यादा हुवा है की वो कोमा में चली गई है, डाक्टर भी कुछ नहीं कहते...”

भाभी की बात सुनकर मेरा पूरा अस्तित्व हिल गया।
 
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