desiaks
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वो गाड़ी से उतरते हुए लडखडा गयी, मैंने उसे सहारा दिया और इस तरह मेरा उस से स्पर्श हुआ, किसी महंगे इत्र की खुशबु उसके जिस्म से मैंने अपने जिस्म में महसूस की. एक कमरे में बिस्तर था मैंने उसे वहां पर बिठा दिया. उसने फिर से बोतल मुह को लगा ली.
मैं- पहले से ही काफी नशा है और मत करो.
वो- ये जिन्दगी ही नशा है बोतल तो बस बहाना है .... खुद को सकूं देने का .
मुझे समझ नहीं आ रहा था की किस झमेले में पड़ गया हूँ मैं
मैं- तो मैं चलू , मुझे देर हो रही है , दूर जाना है
वो- चंपा को बुलाओ, कहाँ मर गयी वो .
मैं- कौन चंपा
वो- यहाँ की नौकरानी ,
मैं- यहाँ तो कोई नहीं , ताला तो हमने ही खोला है,
वो- कहाँ मर गयी हरामजादी, उसमे मालूम था मैं आउंगी आज .
तभी कमरे में एक औरत आई-
“माफ़ करना मालकिन मुझे आने में देर हुई, ”
तो ये चंपा थी, कोई चालीस- पैंतालिस साल की औरत , शायद यही कहीं आस पास रहती होगी, नौकरानी थी इस औरत की,
“कहाँ थी तू कुतिया , जल्दी से एक बोतल ला मेरे लिए ” वो चिल्लाते हुए बोली.
“जी ”चंपा बस इतना ही बोली और बाहर की तरफ मुड गयी
मैं-बस बहुत हुआ, अब और नहीं पीनी तुम्हे, एक तो चोट लगी है और ऊपर से ये तमाशा
वो- किसकी मजाल जो मुझे रोके
तभी चंपा एक बोतल ले आई , उस औरत ने ढक्कन खोला और मुह से लगा ली , मुझे भी थोडा गुस्स्सा आया मैंने वो बोतल छीनी और फेक दी,
वो- गुस्ताख, तेरी ये जुर्रत
उसने अपना हाथ मुझे मरने को किया पर मैंने उसे थाम लिया और बोला- बस , बस बहुत हुआ, अभी मेरे सामने नहीं चलेगा ये सब तू होगी किसी महल की रानी , पर ये ड्रामा कही और करना .
मैं- काकी इसको चोट लगी है कुछ मरहम वगैरा है तो ला दो लगाते है इसके .
चंपा बाहर गयी और थोड़ी से रुई और एक टियूब ले आई.
मैं- अभी दो मिनट चुप रहना मुझे दवाई लगाने दे.
न जाने मेरी बात का उस पर कैसा असर हुआ, उसने विरोध नहीं किया , मैंने उसके सर पर लगे कट पर दवाई लगाई और वापिस चुन्नी बाँध दी.
मैं- काकी कुछ खाने को है तो खिलाओ इसे और मुझे भी.
चंपा ने सर हिलाया और बाहर चली गयी.
“तुम जानते नहीं हो मुझे, इस गुस्ताखी की सजा तेरी जान भी हो सकती है ”
मैं- हाँ ले लेना मेरी जान , पहले अपनी हालत ठीक कर , अच्छा भला जा रहा था न जाने किस घडी में तू मिल गयी.
मैं- पहले से ही काफी नशा है और मत करो.
वो- ये जिन्दगी ही नशा है बोतल तो बस बहाना है .... खुद को सकूं देने का .
मुझे समझ नहीं आ रहा था की किस झमेले में पड़ गया हूँ मैं
मैं- तो मैं चलू , मुझे देर हो रही है , दूर जाना है
वो- चंपा को बुलाओ, कहाँ मर गयी वो .
मैं- कौन चंपा
वो- यहाँ की नौकरानी ,
मैं- यहाँ तो कोई नहीं , ताला तो हमने ही खोला है,
वो- कहाँ मर गयी हरामजादी, उसमे मालूम था मैं आउंगी आज .
तभी कमरे में एक औरत आई-
“माफ़ करना मालकिन मुझे आने में देर हुई, ”
तो ये चंपा थी, कोई चालीस- पैंतालिस साल की औरत , शायद यही कहीं आस पास रहती होगी, नौकरानी थी इस औरत की,
“कहाँ थी तू कुतिया , जल्दी से एक बोतल ला मेरे लिए ” वो चिल्लाते हुए बोली.
“जी ”चंपा बस इतना ही बोली और बाहर की तरफ मुड गयी
मैं-बस बहुत हुआ, अब और नहीं पीनी तुम्हे, एक तो चोट लगी है और ऊपर से ये तमाशा
वो- किसकी मजाल जो मुझे रोके
तभी चंपा एक बोतल ले आई , उस औरत ने ढक्कन खोला और मुह से लगा ली , मुझे भी थोडा गुस्स्सा आया मैंने वो बोतल छीनी और फेक दी,
वो- गुस्ताख, तेरी ये जुर्रत
उसने अपना हाथ मुझे मरने को किया पर मैंने उसे थाम लिया और बोला- बस , बस बहुत हुआ, अभी मेरे सामने नहीं चलेगा ये सब तू होगी किसी महल की रानी , पर ये ड्रामा कही और करना .
मैं- काकी इसको चोट लगी है कुछ मरहम वगैरा है तो ला दो लगाते है इसके .
चंपा बाहर गयी और थोड़ी से रुई और एक टियूब ले आई.
मैं- अभी दो मिनट चुप रहना मुझे दवाई लगाने दे.
न जाने मेरी बात का उस पर कैसा असर हुआ, उसने विरोध नहीं किया , मैंने उसके सर पर लगे कट पर दवाई लगाई और वापिस चुन्नी बाँध दी.
मैं- काकी कुछ खाने को है तो खिलाओ इसे और मुझे भी.
चंपा ने सर हिलाया और बाहर चली गयी.
“तुम जानते नहीं हो मुझे, इस गुस्ताखी की सजा तेरी जान भी हो सकती है ”
मैं- हाँ ले लेना मेरी जान , पहले अपनी हालत ठीक कर , अच्छा भला जा रहा था न जाने किस घडी में तू मिल गयी.