desiaks
Administrator
- Joined
- Aug 28, 2015
- Messages
- 24,893
#२६
जब मैं वहां पर पहुंचा तो आरती खत्म हो गयी थी, लोग मंदिर से निकल रहे थे, सीढिया चढ़ते हुए मैं बस मंदिर के आँगन में पहुंचा ही था की मेरा सामना उन्ही लडको से हो गया , जो मुझे मेले में मिले थे, उनमे से एक मुझे पहचान गया .
लड़का- अरे ये तो वही है , यारो देखो ये तो वही है
मैंने भी उनको पहचान लिया था और ये तो एक न एक दिन होना ही था
“साले, तेरी इतनी हिमाकत तू यहाँ तक आ पहुंचा ” बोला वो
मैं- हाँ तो या तेरी रजिस्ट्री है मंदिर पर, देवता अधीन है क्या तेरे
लड़का- हाँ ये सब हमारा है , और उस दिन तो तू बच गया था आज समझ तेरे दिन पुरे हुए.
“सुन बे चूतिये, ये चुतियापा किसी और के साथ करना, होगा तू कोई भी , मुझे घंटा मतलब नहीं है तेरे से, मैं इस मंदिर में आता हु सिर्फ दर्शन करने और चला जाता हूँ, मुझे न तेरे से कुछ लेना देना है और न तेरे गाँव से, और न तेरी जागीरदारी से, मेरी बात समझ और रस्ते से परे हो ” मैंने कहा
“देख क्या रहा है सुमेर, मार न साले को दिखा इसकी औकात इसे ” उनमे से एक बोला
“उसको क्या बोलता है तू आ न सबसे पहले तू कर तेरा शौक पूरा ” मैंने कहा
बचे खुचे लोग जो मंदिर में रह गए थे आँगन में जमा होने लगे थे,थोडा घबरा तो मैं भी गया था क्योंकि वो चार- पांच लोग थे और मैं अकेला पर अब मामले को देखना तो था ही .
सुमेर- बड़ी दिलेरी है तेरे अन्दर , ये जानते हुए भी की बकरी शेरो की टक्कर नहीं ले सकती
मैं- आजमाना चाहता है मुझे
सुमेर - आ तुझे कुछ दिखाता हु , मेरे साथ आ , तेरी औकात क्या है तू खुद देख
मुझे लगभग खीचते हुए वो मंदिर की दक्षिण दिशा में ले गया , जहाँ बहुत झाडिया थी, बेतारिब पेड़ पौधे थे .
सुमेर- देख इस जगह को, ये जमीन खून से सींची गयी है , तेरे गाँव के लोगो के खून से, उनमे भी तेरी तरह उबाल था यही ठंडा हुआ सबका, तेरा भी होगा, रतन गढ़ की तलवारों ने यही खेली थी होली, आज भी बड़े गुमान से वो किस्से सुनाये जाते है ,तेरे गाँव के बड़े बड़े सुरमा लोगो के सरो का भोग इसी मंदिर में लगा है माता को, जिसने भी हमारे सामने सर उठाया ,फिर वो सर कभी धड पर नहीं रहा , और तू हमसे नजरे मिलाता है . गौर से देख इस जमीन को और महसूस कर उस खून को जो फिर कभी खौल नहीं पाया हमारे सामने
मेरे लिए ये बहुत अजीब पल था, मुझे समझ नहीं आ रहा था की उसकी बात का मैं क्या जवाब दूँ
सुमेर- क्यों क्या हुआ , फट गयी, अच्छे अच्छे घबरा जाते है तेरी तो बिसात ही क्या , पर न जाने क्यों चल तुझ पर दया करने को जी कर रहा है , चल वापिस मुड जा. तू भी क्या याद करेगा, किस मर्द से पाला पड़ा था , मैं तुम्हे माफ़ करता हूँ प्राण बक्श दिए तेरे .
आसपास के तमाम लोग हंसने लगे, जीवन में पहली बार इस उपहास का बहुत बुरा लगा मुझे, और मैंने उसे उलझने का निर्णय ले लिया पर मैं कहाँ जानता था की मेरा ये निर्णय मेरा भूत, वर्तमान और भविष्य सब बदल देगा
“रतन गढ़ की तलवारों को जंग लग गया क्या , क्या उनकी लहू पीने की हसरत नहीं रही ” मैंने हस्ते हुए सुमेर के अहंकार पर चोट की
“मुर्ख लड़के, तू क्यों मरना चाहता है , चला क्यों नहीं जाता यहाँ से ” ये पुजारी की आवाज थी जो दौड़ते हुए हमारी तरफ आ रही थी
मैं- सुमेर, अपनी तलवारों की धार तेज कर ले, मैं वचन देता हु की रक्त से स्नान होगा माँ तारा की मूर्ति का चाहे वो रक्त तेरा हो या मेरा , मैं तेरे अभिमान को तिनको की तरह बिखेर दूंगा, मेरे लिए ये धरती , ये मंदिर मेरी श्रद्धा रहा है पर तूने बात ही ऐसी कह दी, सुमेर, मैं तुझे चुनोती देता हु,
सुमेर की आँखों में मैंने बिजली की सी चमक देखि
“लगता है इस बार होली, चोमासे में आएगी, बाबा , शंखनाद कर दे, रतनगढ़ का ये बीर इस चुनोती को स्वीकार करता है मैं शुकिया करता हु तेरा जो तेरी वजह से मेरे भाग में ये दिन आया, जा कर तयारी ढाल सजा ले अपनी, और ऐसी ढाल बनाना जो मेरी तलवार का भार सह पाए, जब तेरा सीना चिरुंगा तो असीम ख़ुशी होगी मुझे ” बहुत ख़ुशी से बोला वो
“ऐसी कोई तलवार नहीं बनी जो मेरा सीना चीर दे, देख ले कोई शुभ मुहूर्त , कोई तिथि , जब तू और मैं होंगे आमने सामने , ” मैंने बस इतना कहा
सुमेर- सावन की तीज ,,,,,,,,,,,,,,,
मैं- मंजूर
सुमेर- जा जीले अपने बचे खुचे दिन , बाबा केसरिया झंडा लगा दो प्राचीर पर ताकि हर किसी को मालूम हो जाये रतनगढ़ की तलवार की प्यास जाग उठी है .
मैं वहां से वापिस जाने को हुआ पर तभी मुझे याद आया की माता के दर्शन तो किये ही नहीं मैंने तो मैं सर झुकाने चला गया मेरे पीछे पीछे पुजारी भी आ गया
पुजारी- मुर्ख, माफ़ी मांग ले पाँव पकड ले बात आई गयी हो जाएगी, प्राण सलामत रहेंगे तेरे,
मैं- पुजारी,अहंकार का सर झुकाने की जिम्मदारी सबकी होती है , मैं बस अपनी निभा रहा हु, आगे मेरी नियति
उस रात बहुत देर तक मैं मंदिर में ही बैठा रहा उस मुस्कुराती हुई मूर्ति के सामने , सबकी पालनकर्ता ये ही तो थी मेरा ध्यान भी यही रखेगी मुझे फिर क्या डर
अगला दिन बस बेचैनी में कटा मेरा , शाम को खेत पर बैठे मैं सोच रहा था की क्या करू की तभी मैंने गाड़ी को आते देखा, ये मेरे पिता की गाडी थी ,और जैसे ही वो गाड़ी से उतर के मेरी तरफ आये, एक जोरदार थप्पड़ मेरे गाल पर आ पड़ा .
जब मैं वहां पर पहुंचा तो आरती खत्म हो गयी थी, लोग मंदिर से निकल रहे थे, सीढिया चढ़ते हुए मैं बस मंदिर के आँगन में पहुंचा ही था की मेरा सामना उन्ही लडको से हो गया , जो मुझे मेले में मिले थे, उनमे से एक मुझे पहचान गया .
लड़का- अरे ये तो वही है , यारो देखो ये तो वही है
मैंने भी उनको पहचान लिया था और ये तो एक न एक दिन होना ही था
“साले, तेरी इतनी हिमाकत तू यहाँ तक आ पहुंचा ” बोला वो
मैं- हाँ तो या तेरी रजिस्ट्री है मंदिर पर, देवता अधीन है क्या तेरे
लड़का- हाँ ये सब हमारा है , और उस दिन तो तू बच गया था आज समझ तेरे दिन पुरे हुए.
“सुन बे चूतिये, ये चुतियापा किसी और के साथ करना, होगा तू कोई भी , मुझे घंटा मतलब नहीं है तेरे से, मैं इस मंदिर में आता हु सिर्फ दर्शन करने और चला जाता हूँ, मुझे न तेरे से कुछ लेना देना है और न तेरे गाँव से, और न तेरी जागीरदारी से, मेरी बात समझ और रस्ते से परे हो ” मैंने कहा
“देख क्या रहा है सुमेर, मार न साले को दिखा इसकी औकात इसे ” उनमे से एक बोला
“उसको क्या बोलता है तू आ न सबसे पहले तू कर तेरा शौक पूरा ” मैंने कहा
बचे खुचे लोग जो मंदिर में रह गए थे आँगन में जमा होने लगे थे,थोडा घबरा तो मैं भी गया था क्योंकि वो चार- पांच लोग थे और मैं अकेला पर अब मामले को देखना तो था ही .
सुमेर- बड़ी दिलेरी है तेरे अन्दर , ये जानते हुए भी की बकरी शेरो की टक्कर नहीं ले सकती
मैं- आजमाना चाहता है मुझे
सुमेर - आ तुझे कुछ दिखाता हु , मेरे साथ आ , तेरी औकात क्या है तू खुद देख
मुझे लगभग खीचते हुए वो मंदिर की दक्षिण दिशा में ले गया , जहाँ बहुत झाडिया थी, बेतारिब पेड़ पौधे थे .
सुमेर- देख इस जगह को, ये जमीन खून से सींची गयी है , तेरे गाँव के लोगो के खून से, उनमे भी तेरी तरह उबाल था यही ठंडा हुआ सबका, तेरा भी होगा, रतन गढ़ की तलवारों ने यही खेली थी होली, आज भी बड़े गुमान से वो किस्से सुनाये जाते है ,तेरे गाँव के बड़े बड़े सुरमा लोगो के सरो का भोग इसी मंदिर में लगा है माता को, जिसने भी हमारे सामने सर उठाया ,फिर वो सर कभी धड पर नहीं रहा , और तू हमसे नजरे मिलाता है . गौर से देख इस जमीन को और महसूस कर उस खून को जो फिर कभी खौल नहीं पाया हमारे सामने
मेरे लिए ये बहुत अजीब पल था, मुझे समझ नहीं आ रहा था की उसकी बात का मैं क्या जवाब दूँ
सुमेर- क्यों क्या हुआ , फट गयी, अच्छे अच्छे घबरा जाते है तेरी तो बिसात ही क्या , पर न जाने क्यों चल तुझ पर दया करने को जी कर रहा है , चल वापिस मुड जा. तू भी क्या याद करेगा, किस मर्द से पाला पड़ा था , मैं तुम्हे माफ़ करता हूँ प्राण बक्श दिए तेरे .
आसपास के तमाम लोग हंसने लगे, जीवन में पहली बार इस उपहास का बहुत बुरा लगा मुझे, और मैंने उसे उलझने का निर्णय ले लिया पर मैं कहाँ जानता था की मेरा ये निर्णय मेरा भूत, वर्तमान और भविष्य सब बदल देगा
“रतन गढ़ की तलवारों को जंग लग गया क्या , क्या उनकी लहू पीने की हसरत नहीं रही ” मैंने हस्ते हुए सुमेर के अहंकार पर चोट की
“मुर्ख लड़के, तू क्यों मरना चाहता है , चला क्यों नहीं जाता यहाँ से ” ये पुजारी की आवाज थी जो दौड़ते हुए हमारी तरफ आ रही थी
मैं- सुमेर, अपनी तलवारों की धार तेज कर ले, मैं वचन देता हु की रक्त से स्नान होगा माँ तारा की मूर्ति का चाहे वो रक्त तेरा हो या मेरा , मैं तेरे अभिमान को तिनको की तरह बिखेर दूंगा, मेरे लिए ये धरती , ये मंदिर मेरी श्रद्धा रहा है पर तूने बात ही ऐसी कह दी, सुमेर, मैं तुझे चुनोती देता हु,
सुमेर की आँखों में मैंने बिजली की सी चमक देखि
“लगता है इस बार होली, चोमासे में आएगी, बाबा , शंखनाद कर दे, रतनगढ़ का ये बीर इस चुनोती को स्वीकार करता है मैं शुकिया करता हु तेरा जो तेरी वजह से मेरे भाग में ये दिन आया, जा कर तयारी ढाल सजा ले अपनी, और ऐसी ढाल बनाना जो मेरी तलवार का भार सह पाए, जब तेरा सीना चिरुंगा तो असीम ख़ुशी होगी मुझे ” बहुत ख़ुशी से बोला वो
“ऐसी कोई तलवार नहीं बनी जो मेरा सीना चीर दे, देख ले कोई शुभ मुहूर्त , कोई तिथि , जब तू और मैं होंगे आमने सामने , ” मैंने बस इतना कहा
सुमेर- सावन की तीज ,,,,,,,,,,,,,,,
मैं- मंजूर
सुमेर- जा जीले अपने बचे खुचे दिन , बाबा केसरिया झंडा लगा दो प्राचीर पर ताकि हर किसी को मालूम हो जाये रतनगढ़ की तलवार की प्यास जाग उठी है .
मैं वहां से वापिस जाने को हुआ पर तभी मुझे याद आया की माता के दर्शन तो किये ही नहीं मैंने तो मैं सर झुकाने चला गया मेरे पीछे पीछे पुजारी भी आ गया
पुजारी- मुर्ख, माफ़ी मांग ले पाँव पकड ले बात आई गयी हो जाएगी, प्राण सलामत रहेंगे तेरे,
मैं- पुजारी,अहंकार का सर झुकाने की जिम्मदारी सबकी होती है , मैं बस अपनी निभा रहा हु, आगे मेरी नियति
उस रात बहुत देर तक मैं मंदिर में ही बैठा रहा उस मुस्कुराती हुई मूर्ति के सामने , सबकी पालनकर्ता ये ही तो थी मेरा ध्यान भी यही रखेगी मुझे फिर क्या डर
अगला दिन बस बेचैनी में कटा मेरा , शाम को खेत पर बैठे मैं सोच रहा था की क्या करू की तभी मैंने गाड़ी को आते देखा, ये मेरे पिता की गाडी थी ,और जैसे ही वो गाड़ी से उतर के मेरी तरफ आये, एक जोरदार थप्पड़ मेरे गाल पर आ पड़ा .