desiaks
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#47
मेघा- मेरा नसीब मैं खुद लिखूंगी, मेरे नसीब की इबारत तो उसी दिन से लिखनी शुरू हो गयी थी जब से मैंने उस डोर को पूरा करने की ठानी थी ,
वो- जिंदगी की डोर का सोच
मेघा- सोच लिया मैंने जो सोचना था ,
वो- राह बड़ी कठिन, चलना और मुश्किल , तेरी मंशा क्या है बता जरा, किस सिद्धि को पाना चाहती है तू
मेघा- मैं बस अपने प्यार को पाना चाहती हु,
वो- झूठ , फिर झूठ
मेघा- आपको झूठ लगे तो झूठ ही सही , कबीर जानता है किस हद तक प्यार करती हु मैं उस से
वो- तेरे प्रेम में सच्चाई होती तो उसे बताती तेरी असलियत क्यों छुपी, तूने तो प्रेम की नींव ही झूठ पर रखी
मेघा- आपने तो कह दिया, और कह लो , ज़माने का काम ही है कहने का , क्या बताती मैं उसे , किन हालातो में करीब आये हम , हम दोनों हि जानते है , दुश्मनी के बीच मोहब्बत की लौ जलाई है , कोशिश कर रहे है उसे मुकाम तक ले जाने की , आप क्या जाने मोहब्बत, कभी आपने प्यार किया किसी से तो समझ पाती , मेरे दर्द को जब मैं उसके उन जख्मो को देखती हु तो मेरे आंसू गिरते है
“मेरी मोहब्बत, मेरी मोहब्बत, ”उसने मेघा की बातो को जैसे अनसुना कर दिया .
“सुन रहे हो सरकार ये छोरी मुझसे पूछती है मोहब्बत के बारे में , ” पागलो की तरह वो हंसने लगी ,
“जा चली जा, जा ” उसने मेघा से बस इतनाही कहा .
मेघा बस उसे देखती रह गयी, पर वो गयी नहीं, और न उसने मेघा की मोजुदगी की परवाह की , रात धीरे धीरे बढ़ने लगी थी , ये मैं था जो उस जगह पर पहुच गया था ,
“क्या ये तुम हो मेघा, ” मैंने आहिस्ते से पूछा
मेरी आवाज सुन कर जैसे होश में आयी वो , सीधा मेरे सीने से आ लगी, रोने लगी,
मैं- क्या हुआ, ठीक तो हो
मेघा-कबीर, मैं तुमसे बहुत प्यार करती हु, बहुत प्यार करती हु तुमसे
मैं- जानता हु पर हुआ क्या
मेघा- कबीर मैंने तुमसे झूठ बोले, तुम्हारी इस हालत की जिम्मेदार मैं हु
मैं-जानता हु ,
मेघा- नहीं तुम नहीं जानते, कुछ भी नहीं जानते
मैं- जानता हु तुम पुजारी की बेटी नहीं हो.
मेघा चुप हो गई.
मैं- दुःख इस बात का हैं की तुमने इतना हक़ नहीं दिया की तुम्हे जान सकू
मेघा- मैं डरती थी कबीर, सोचती थी की जब समय आएगा तब बता दूंगी
मैं- हाँ तो ठीक हैं न , जब समय आये बता देना, फ़िलहाल तो मुझे भूख लगी है और मैं तुम्हारे हाथ का बना कुछ खाना चाहता हु
मेघा- चलते है तुम्हारे घर वहीँ बनाती हु खाना
मैं- देखो जरा चाँद, को चांदनी को और इस मेहरबान रात को . और हम दोनों इस पल यहाँ
मेघा- सो तो है , तो क्या इरादे है जनाब के
मैं-तुम्हे प्यार करने का , तुम्हे अपना बनाने का तुम्हारी मांग को इन सितारों से भरने का . मैं तुमसे ब्याह करना चाहता हु
मेघा- वो दिन जल्दी ही आएगा मेरे राजा , मै भी तुमसे दूर नहीं रहना चाहती , तुम्हारी बाँहों के साए तले अब जीना है मुझे,
उसने मेरी गोद में सर रक्खा और लेट गयी . मैं उसकी जुल्फे सुलझाने लगा.
“जानते हो कबीर कभी कभी लगता है मैंने जोग ले लिया है, जैसे जोगन हुई मैं ” मेघा ने कहा
मैं- मैं भी यही मानता हु, तुम हो तो ये जिन्दगी जिन्दगी लगती है , तुम नहीं थी तो कुछ भी नहीं था , ये तमाम रंग जो मैंने देखे है सिर्फ तुम्हारी वजह से,
मेघा- कभी कभी सोचती हूँ अपनी मोहब्बत का अंजाम क्या होगा
मैं- शुरुआत हुई तो अंजाम भी देख ही लेंगे, एक बार रतनगढ़ वाली बात सुलट जाए,
मेघा- पर तुमने नहीं मारा उसे
मैं- उन लोगो को कौन समझाए, जब आँखों पर नफरत का पर्दा लगा हो तो सच कैसे दिखे
मेघा- बहुत चिंता रहती है तुम्हारी, हर पल बस तुम्हारे बारे में ही सोचती हूँ, ये तो मेरा बस नहीं चलता वर्ना एक पल तुम्हे ओझल न होने दूँ आँखों आगे से
मैं- नसीब , पर मैं तुम्हे किसी से मिलवाना चाहता हूँ
मेघा- अपने घरवालो से
मैं- हाँ वो ही है मेरा परिवार, जब तुम उनसे मिलोगी तो जानोगी, बहुत अहसान है उनके मेरे ऊपर
मेघा- जरुर,
मैं- कब समय होगा तुम्हारे पास
मेघा- दो- तीन दिन बाद जब तुम चाहो.
मैं- ठीक है ,
मैं भी उसके पास ही लेट गया , मुझे सुख इसलिए नहीं मिल रहा था की मेरे पास मेघा थी , मेरे सुख का कारण थी ये धरती की गोद जो बस नसीब वालो को मिलती है , मेघा ने अपना सर मेरे सीने पर टिका दिया मैंने उसे अपनी बाँहों में भर लिया. रात थी न जाने कब बीत गयी .
सुबह मेरी नींद टूटी तो देखा वो उसी तरह मेरी बाँहों में थी,
“उठो सुबह हुई ” मैंने कहा तो उसने आँखे खोली
वो उठ ही रही थी की उसकी जुल्फे मेरे लॉकेट में उलझ गयी
“उफ़, क्या है ये ” उसने कहा
मैं- रुको मैं निकालता हु,
मैंने लॉकेट से बालो को अलग किया .
मेघा- ये क्या पहना है तुमने
मैं- बस यूँ ही
वो- दिखाओ जरा
मैं- हाँ
मैंने लॉकेट मेघा को दिया उतार के .
मेघा- बहुत खूबसूरत है ये, एक मिनट एक मिनट कबीर तुमने देखा ये
मैं- क्या मेरी जान
मेघा- देखो , ये नक्काशी कोई मामूली नक्काशी नहीं है ये दुआए है ,
मैंने गौर से देखा , कुछ तो था पर मुझे समझ नहीं आया
मैं- तुम ही जानो , मेरे बस की नहीं ये सब
मेघा- कहाँ से मिला तुम्हे ये
मैं- जंगल में
मेघा- कबीर, तुम भी न
मैं- तुम्हे पसंद है तो तुम रख लो, पहन के देखो जरा , जंचेगा तुम पर
मैंने लॉकेट मेघा के गले में पहनाया, और जैसे गजब ही हो गया
वो चीख पड़ी ,”बहुत भारी है ये कबीर, मेरी गर्दन ”
इस से पहले की उसकी बात पूरी हो पाती मेघा के बदन में आग लग गयी, सुनहरी आग ने उसके बदन पर कब्ज़ा कर लिया, चीखने लगी वो , एक पल मैं हक्का बक्का रह गया , पर तभी न जाने क्या सुझा मुझे , मैंने आग में हाथ दिया और मेघा के गले से लॉकेट उतार लिया.
कहने को तो ये छोटी से घटना थी , पर जैसे मेरी जिन्दगी छीन लेता ये छोटा सा पल. लोकेट उतारते ही मेघा सामान्य हो गयी. जैसे कुछ हुआ ही नहीं था, मैंने उसे बाँहों में भर लिया . हम दोनों ही हकीकत से नजरे चुराने की कोशिश कर रहे थे .
मेघा- मेरा नसीब मैं खुद लिखूंगी, मेरे नसीब की इबारत तो उसी दिन से लिखनी शुरू हो गयी थी जब से मैंने उस डोर को पूरा करने की ठानी थी ,
वो- जिंदगी की डोर का सोच
मेघा- सोच लिया मैंने जो सोचना था ,
वो- राह बड़ी कठिन, चलना और मुश्किल , तेरी मंशा क्या है बता जरा, किस सिद्धि को पाना चाहती है तू
मेघा- मैं बस अपने प्यार को पाना चाहती हु,
वो- झूठ , फिर झूठ
मेघा- आपको झूठ लगे तो झूठ ही सही , कबीर जानता है किस हद तक प्यार करती हु मैं उस से
वो- तेरे प्रेम में सच्चाई होती तो उसे बताती तेरी असलियत क्यों छुपी, तूने तो प्रेम की नींव ही झूठ पर रखी
मेघा- आपने तो कह दिया, और कह लो , ज़माने का काम ही है कहने का , क्या बताती मैं उसे , किन हालातो में करीब आये हम , हम दोनों हि जानते है , दुश्मनी के बीच मोहब्बत की लौ जलाई है , कोशिश कर रहे है उसे मुकाम तक ले जाने की , आप क्या जाने मोहब्बत, कभी आपने प्यार किया किसी से तो समझ पाती , मेरे दर्द को जब मैं उसके उन जख्मो को देखती हु तो मेरे आंसू गिरते है
“मेरी मोहब्बत, मेरी मोहब्बत, ”उसने मेघा की बातो को जैसे अनसुना कर दिया .
“सुन रहे हो सरकार ये छोरी मुझसे पूछती है मोहब्बत के बारे में , ” पागलो की तरह वो हंसने लगी ,
“जा चली जा, जा ” उसने मेघा से बस इतनाही कहा .
मेघा बस उसे देखती रह गयी, पर वो गयी नहीं, और न उसने मेघा की मोजुदगी की परवाह की , रात धीरे धीरे बढ़ने लगी थी , ये मैं था जो उस जगह पर पहुच गया था ,
“क्या ये तुम हो मेघा, ” मैंने आहिस्ते से पूछा
मेरी आवाज सुन कर जैसे होश में आयी वो , सीधा मेरे सीने से आ लगी, रोने लगी,
मैं- क्या हुआ, ठीक तो हो
मेघा-कबीर, मैं तुमसे बहुत प्यार करती हु, बहुत प्यार करती हु तुमसे
मैं- जानता हु पर हुआ क्या
मेघा- कबीर मैंने तुमसे झूठ बोले, तुम्हारी इस हालत की जिम्मेदार मैं हु
मैं-जानता हु ,
मेघा- नहीं तुम नहीं जानते, कुछ भी नहीं जानते
मैं- जानता हु तुम पुजारी की बेटी नहीं हो.
मेघा चुप हो गई.
मैं- दुःख इस बात का हैं की तुमने इतना हक़ नहीं दिया की तुम्हे जान सकू
मेघा- मैं डरती थी कबीर, सोचती थी की जब समय आएगा तब बता दूंगी
मैं- हाँ तो ठीक हैं न , जब समय आये बता देना, फ़िलहाल तो मुझे भूख लगी है और मैं तुम्हारे हाथ का बना कुछ खाना चाहता हु
मेघा- चलते है तुम्हारे घर वहीँ बनाती हु खाना
मैं- देखो जरा चाँद, को चांदनी को और इस मेहरबान रात को . और हम दोनों इस पल यहाँ
मेघा- सो तो है , तो क्या इरादे है जनाब के
मैं-तुम्हे प्यार करने का , तुम्हे अपना बनाने का तुम्हारी मांग को इन सितारों से भरने का . मैं तुमसे ब्याह करना चाहता हु
मेघा- वो दिन जल्दी ही आएगा मेरे राजा , मै भी तुमसे दूर नहीं रहना चाहती , तुम्हारी बाँहों के साए तले अब जीना है मुझे,
उसने मेरी गोद में सर रक्खा और लेट गयी . मैं उसकी जुल्फे सुलझाने लगा.
“जानते हो कबीर कभी कभी लगता है मैंने जोग ले लिया है, जैसे जोगन हुई मैं ” मेघा ने कहा
मैं- मैं भी यही मानता हु, तुम हो तो ये जिन्दगी जिन्दगी लगती है , तुम नहीं थी तो कुछ भी नहीं था , ये तमाम रंग जो मैंने देखे है सिर्फ तुम्हारी वजह से,
मेघा- कभी कभी सोचती हूँ अपनी मोहब्बत का अंजाम क्या होगा
मैं- शुरुआत हुई तो अंजाम भी देख ही लेंगे, एक बार रतनगढ़ वाली बात सुलट जाए,
मेघा- पर तुमने नहीं मारा उसे
मैं- उन लोगो को कौन समझाए, जब आँखों पर नफरत का पर्दा लगा हो तो सच कैसे दिखे
मेघा- बहुत चिंता रहती है तुम्हारी, हर पल बस तुम्हारे बारे में ही सोचती हूँ, ये तो मेरा बस नहीं चलता वर्ना एक पल तुम्हे ओझल न होने दूँ आँखों आगे से
मैं- नसीब , पर मैं तुम्हे किसी से मिलवाना चाहता हूँ
मेघा- अपने घरवालो से
मैं- हाँ वो ही है मेरा परिवार, जब तुम उनसे मिलोगी तो जानोगी, बहुत अहसान है उनके मेरे ऊपर
मेघा- जरुर,
मैं- कब समय होगा तुम्हारे पास
मेघा- दो- तीन दिन बाद जब तुम चाहो.
मैं- ठीक है ,
मैं भी उसके पास ही लेट गया , मुझे सुख इसलिए नहीं मिल रहा था की मेरे पास मेघा थी , मेरे सुख का कारण थी ये धरती की गोद जो बस नसीब वालो को मिलती है , मेघा ने अपना सर मेरे सीने पर टिका दिया मैंने उसे अपनी बाँहों में भर लिया. रात थी न जाने कब बीत गयी .
सुबह मेरी नींद टूटी तो देखा वो उसी तरह मेरी बाँहों में थी,
“उठो सुबह हुई ” मैंने कहा तो उसने आँखे खोली
वो उठ ही रही थी की उसकी जुल्फे मेरे लॉकेट में उलझ गयी
“उफ़, क्या है ये ” उसने कहा
मैं- रुको मैं निकालता हु,
मैंने लॉकेट से बालो को अलग किया .
मेघा- ये क्या पहना है तुमने
मैं- बस यूँ ही
वो- दिखाओ जरा
मैं- हाँ
मैंने लॉकेट मेघा को दिया उतार के .
मेघा- बहुत खूबसूरत है ये, एक मिनट एक मिनट कबीर तुमने देखा ये
मैं- क्या मेरी जान
मेघा- देखो , ये नक्काशी कोई मामूली नक्काशी नहीं है ये दुआए है ,
मैंने गौर से देखा , कुछ तो था पर मुझे समझ नहीं आया
मैं- तुम ही जानो , मेरे बस की नहीं ये सब
मेघा- कहाँ से मिला तुम्हे ये
मैं- जंगल में
मेघा- कबीर, तुम भी न
मैं- तुम्हे पसंद है तो तुम रख लो, पहन के देखो जरा , जंचेगा तुम पर
मैंने लॉकेट मेघा के गले में पहनाया, और जैसे गजब ही हो गया
वो चीख पड़ी ,”बहुत भारी है ये कबीर, मेरी गर्दन ”
इस से पहले की उसकी बात पूरी हो पाती मेघा के बदन में आग लग गयी, सुनहरी आग ने उसके बदन पर कब्ज़ा कर लिया, चीखने लगी वो , एक पल मैं हक्का बक्का रह गया , पर तभी न जाने क्या सुझा मुझे , मैंने आग में हाथ दिया और मेघा के गले से लॉकेट उतार लिया.
कहने को तो ये छोटी से घटना थी , पर जैसे मेरी जिन्दगी छीन लेता ये छोटा सा पल. लोकेट उतारते ही मेघा सामान्य हो गयी. जैसे कुछ हुआ ही नहीं था, मैंने उसे बाँहों में भर लिया . हम दोनों ही हकीकत से नजरे चुराने की कोशिश कर रहे थे .