Hindi Chudai Kahani हमारा छोटा सा परिवार - Page 7 - SexBaba
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Hindi Chudai Kahani हमारा छोटा सा परिवार

मीनू ने शर्मा कर चाची के कहे शादी की शपथ को दुहराया। फिर मेरी बारी थी मैं भी शर्मा उठी ,"मैं अपनी चूत पूरे दिल से बड़े मामा के लंड को 
समर्पित करती हूँ। बड़े मामा जब और जैसे चाहें मेरी चूत मार सकते हैं। " 
नम्रता चाची ने इसके बाद हम चरों से पहला फेरा लगवाया। हम दोनों ने अपने दूल्हों का लंड पकड़ केर फेरा पूरा किया। 
नम्रता चाची ने फिर से रंगमंच जैसी आवाज़ में कहा, " देखो इस लैंड से जब तक सातों फेरे न हो जाएँ हाथ नहीं हिलना चाहिये। " हम दोनों ने अपने 
छोटे छोटे हाथों की पकड़ मूसल लंडों पैर और भी मजबूत कर ली। 
नम्रता चाची ने दूसरी शपथ कही, " मेरी गांड, मुंह और दोनों चूचियाँ मेरे दुल्हे के आनंद के लिये हमेशा के लिए समर्पित हैं ।" 
हमारे शपथ दोहराने के दूसरा फेरा पूर हुआ। बड़े मामा और सुरेश चाचा के लंड अब पूरे फनफना उठे थे। 
ऋतू मौसी के हाथों में भी गंगा बाबा और संजू के लोहे जैसे सख्त लंड कुलबुला रहे थे। जमुना दीदी भी राज मौसा और नानू के भीमकाय लंडों को 
काबू में करने का निर्थक प्रयास कर रहीं थीं। 
चाची ने शपथ दी, " मैं अपने दुल्हे को अपने शरीर से उपजे हर द्रव्य, पदार्थ और कुछ और जो वो चाहे उसे समर्पित करूंगीं। " 
हम ली और पूरा हो गया। 
अब 'दूल्हों' की बारी थी। 
"मैं अपनी दुल्हन के कुंवारेपन को अपने महाकाय लंड से ध्वस्त कर दूंगा। और उसके कौमार्यभंग चीखें निकलें और मेरे लंड पे उसके कौमार्य का 
खून न लगे तो मैं मर्द नहीं हूँ। नम्रता चाची की मन घड़न्त शपथें को सुन कर हंसी आने लगी थी। पर सुरेश चाचा और बड़े मामा ने गम्भीरता से 
शपथ ली और पूरा हो गया। 
"मैं अपनी दुल्हन अपने शरीर से उपजे हर द्रव्य, पदार्थ और और कुछ जो वो चाहे उसे समर्पित करता हूँ। " नम्रता चाची ने दोनों नारी और पुरुषों को 
बराबरी का उत्तरदायित्व दे दिया। इस शपथ के बाद पांचवां फेरा भी पूरा हो गया। 
नम्रता चाची के चेहरे से साफ़ पता चल वो सातवीं शपथ के लिए अपना मस्तिष्क कुरेद रहीं थीं। 
अचानक उन्हें कुछ विचार आया, "और जब मेरी दुल्हन चाहे और जितने भी वो चाहे मैं उसे उतने बच्चों से उसका गर्भ भर दूंगा। " 
इस अनापशनाप शपथ के बाद सातवां फेरा भी पूरा हो गया। नम्रता चाची ने दुल्हनों से अपने स्वामियों के पैर छुबवाये। 
"अब आप दोनों अपनी दुल्हनो के कौमार्य का विध्वंस कर दीजिये। यदि कुंवारे वधु की पहली चुदाई में चीखें न निकलें और वर के मोटे लंड पे उसके 
कौमार्यभंग का लाल लहू न दिखे तो दुल्हे के लंड की ताकत पर हम सबका जायेगा। " नम्रता चाची अब पूरे प्रवाह में थीं। 

हॉल में कई मोटे नरम गद्दे थे. दो पर गुलाब की पंखुड़ियाँ फ़ैली हुई थीं। यह हमारी 'सुहागरात' के गद्दे थे। 
बड़े मामा ने मुझे अपनी बाँहों में उठा लिया और मेरे गरम जलते हुए होंठों को कस कर लगे। सुरेश चाचा ने भी अपनी नव-वधु को अपनी बलशाली 
बाँहों में उठा कर सुहागरात के गद्दे की और चल पड़े। सब दर्शकों को दोनों गद्दों पर होने वाले कार्यकलाप का अबाधित दृष्टिकोण था। नम्रता चाची ने 
सारा रंगमंच सोचसमझ कर व्यस्थित किया था। 
सुरेश चाचा ने अपनी अपरिपक्व 'दुल्हन' को गद्दे पर लिटा कर उसके होंठों के रसपान करने लगे। उँगलियाँ मीनू के जलते यौवन से खेलेने लगीं। 
मीनू के भगोष्ठ वासना के अतिरेक से सूज से गए थे। मेरी चूत बड़े मामा के दानवीय विकराल लंड की प्यासी हो चली थी। 
हम दोनों की चूतें हमारे रति रस से सराबोर थीं। 
नम्रता चाची ने पुकार लगायी , "अरे दुल्हे राजाओं यह दुल्हने तो पूरी तैयार हैं। इन्हे और गरम करने की ज़रुरत नहीं है। आप तो यह सोचो कि चीखें 
निकलवाओगे और कैसे इनकी छूट फाड़ कर अपने लंड पर विजय का प्रतीक लाल रंग दिखाओगे। " 
मीनू और की तरफ देखा। वो बेचारी भी लंड लेने के लिए उत्सुक थी। 
नम्रता चाची ने दोनों दूल्हों को हमारी फ़ैली टांगों के बीच में स्थापित करने के बाद उनके तनतनाते हुए लंडों को चूस कर और भी खूंटे जैसे सख्त कर 
दिया।
 
"यदि इन कुंवारी कन्याओं की चीखों से हमारे कान न भरें और आप दोनों के लंडों पर इनके कौमार्यभंग का खून न दिखे तो 
बहित शर्मिन्दगी की बात होगी चलिए मैं आप दोनों की थोड़ी सी मदद कर देतीं हूँ।" नम्रता चाची ने कोमल सूती चादर से मेरी 
और मीनू की चूतों का सारा रस सुखा दिया। 
"अब इस से पहली इन दोनों कामुक कुंवारियों की चूतें फिर से गीली हो जाएँ आप दोनों किला फतह कर लीजिये। " नम्रता चाची 
ने बड़े मामा और अपने पति को सलाह दी। 
बड़े मामा और सुरेश चाचा के चेहरों पर नम्रता चाची के शब्दों को वास्तविक रूप देने का ढृढ़ संकल्प साफ़ झलक रहा था। 
बड़े मामा ने मेरी भरी भरी जांघों पूरा चौड़ा कर अपना दानवीय लंड मेरी सूखी छूट पर टिका दिया। मैं उनके अगले प्रयत्न के 
अनुमान से रोमांचित हो उठी। 
बड़े मामा का लंड मेरी सूखी चूत की धज्जियाँ उड़ा देगा। 
बड़े मामा ने अपने बड़े सेब जैसे सुपाड़े को मेरी चूत में बेदर्दी से ठूंस दिया। यदि मैं इस दर्द से बिलबिला उठी तो आगे होने वाले 
क्रिया से तो मर ही जाऊंगी। 
बड़े मामा ने मुझे नन्ही बकरी के तरह अपने नीचे दबा कर अपने विशाल शरीर के पूूरी ताकत से अपना अमानवीय लंड मेरी 
लगभग सूखी चूत में निर्ममता से ठूंस दिया। 
मेरी चीख ने सरे हॉल को गूंजा दिया। 
"हाय, बड़े मामा मेरी चूत फाड़ दी आपने। अऊऊ उउउन्न्नन्न नहीईईईइ ," मैं चीखी। मेरी चीख अभी भी उन्नत हो रही थी कि 
मीनू के दर्द भरी चीख भी हॉल में गूँज उठी। 
दोनों दूल्हों ने बेदर्दी से अपने विकराल लंड को अपनी शक्तिशाली शरीर के ज़ोर से हम दोनों कमसिन अविकसित दुलहनों की 
'कुंवारी' चूत में जड़ तक ठूंसने के बाद ही सांस ली। मीनू औए मेरी चीखों से सबके कान दर्द कर उठे होंगें। जब बड़े मामा का 
लंड मेरी दर्द से बिलबिलाती चूत से बाहर आया तो पूरा का पूरा लाल हो गया था। बड़े मामा ने मेरी चूत की कोमल दीवारों को 
फाड़ कर मेरे कुंवारेपन को फिर से जीवन दे दिया। 
नम्रता चाची ने हौसला बढ़ाया ,"शाबास दुल्हे राजाओं। इसी तरह इन दोनों की चूतों का लतमर्दन करते रहो। क्याचीखें 
निकलवाई हैं आप दोनों ने। " 
बड़े मामा और सुरेश चाचा ने मुझे और मीनू को निर्ममता से चोदना शुरू कर दिया। अगले पन्द्र्ह मिनटों तक हम दोनों ने चीख 
चीख कर अपना गला बिठा लिया। 
जान लेवा दर्द के बावज़ूद हम दोनों की चूतें मोटे लंडों के तड़प रहीं थीं। 
बड़े मामा की निर्मम चुदाई से मैं सुबक सुबक कर और भी चुदने की दुहाई देने लगी। 
वासना का पागलपन ने मेरे मस्तिष्क को अभिभूत कर लिया। 
मुझे तो पता ही नहीं चला कि हॉल में क्या हो रहा था। नम्रता चाची ने पूरा हंगामा का अगले दिन मुझे और मीनू को विस्तार से 
विवरण दिया था। 
राज ने जमुना दीदी को अपने डैडी के लंड पर पटक दिया। जैसे ही नानाजी का लंड जमुना दीदी की चूत में समा गया राज ने 
उनकी गांड में अपना वृहत लंड चार धक्कों से जड़ तक ठूंस दिया। दोनों पुरुषों ने जमुना दीदी के उरोज़ों को मसल कर लाल 
कर दिया। जमुना दीदी की चीखें शीघ्र ही सीसकारियों में बदल गयीं। 
ऋतू दीदी भी गरम हो गयीं थी। उन्होंने गंगा बाबा के लंड से अपनी चूत भर कर संजू को अपनी गांड मरने का आदेश दिया। 
हाल में में सिस्कारियों और चीखों की बाड़ आ गयी। 
मेरे जलती हुई चूत में रस की नदी बह उठी। मेरी चूत में बड़े मामा ने उतना हे दर्द उपजाया था जितना उन्होंने मेरे कौमार्यभंग 
करते हुए किया था। उस एतहासिक घटना को सिर्फ तीन दिन हे तो हुए थे। 
नम्रता चाची हम दोनों को चुदते हुए देख कर अपनी चूत को चार उंगलीओं से बेसब्री से चोद रहीं थीं। 
मैं अचानक निर्मम चुदाई के प्रभाव से विचलित हॉट हुए भी चरम-आनंद के कगार पर जा पहुँची,"बड़े मामा मैं झड़ने वाले हूँ। मेरी 
चूत और मारिये। " 
बड़े मामा को किसी भी उत्साहन की आवश्यकता नहीं थी। उनका अमानवीय विकराल लंड अब रेल के इंजन के पिस्टन की 
तरह मेरी फटी चूत में अंदर बाहर जा रहा था। 
मीनू भी चीख मर कर झड़ गयी। 
बड़े मामा और सुरेश चाचा ने अब लम्बी चुदाई की रफ़्तार पकड़ ली। 
जमुना दीदी और ऋतू मौसी की सिस्कारियां और भी ऊंची और तेज हो चलीं थीं। 
उनके रति-स्खलन के बारे में कोई भ्रम नहीं रहा। 
अगले एक घंटे तक हॉल में घुटी घुटते और हलक फाड़ सिस्कारियां गूँज रहीं थीं।सारे वातावरण में सम्भोग के मादक सुगंध 
व्याप्त हो गयी थी। 
मेरे रति-निष्पति कि तो कोई गिनती ही नहीं थी। मैं न जाने कितनी बार झाड़ चुकी थी पर बड़े मामा तो मानो चुदाई के देवता 
बन गए थे। न वो रुकेंगे और न वो थकेंगें । 
जब बड़े मामा के महाकाय लंड ने उनके गरम जननक्षम वीर्य की बौछार मेरे गर्भाशय पर की तो मैं कामोन्माद के अतिरेक से 
थकी बेहोश सी हो गयी। उसके बाद के लम्बे क्षणों से मेरा सम्बन्ध टूट गया। 
हम सब वासना की अग्नि के ही रति सम्भोग की मीठी थकान के आलिंगन में समा कर गए। मैं सुबह देर से उठी। मेरे सारे शरीर में फैला 
मीठा-मीठा दर्द मुझे रात की प्रचंड चुदाई की याद दिलाने लगा। मेरे होंठों पर स्वतः हल्की सी मुस्कान चमक उठी। ख़िड़की से देर सुबह की 
मंद हवा ने चमेली, रजनीगंधा और अनेक बनैले फूलों की महक से मेरा शयनकक्ष महका दिया। मैंने गहरी सांस भर कर ज़ोर से अंगड़ाई भरी। 
कमरे में पुष्पों की सुगंध के साथ रति रस और सम्भोग की महक भी मिल गयी। 

मेरा अविकसित कमसिन शरीर में उठी मदमस्त ऐंठन ने मेरे अपरिपक्व मस्तिष्क में एक बार फिर से सिवाए संसर्ग और काम-क्रिया के 
अलावा कोई और विचार के लिए कोइ अंश नहीं बचा था। नासमझ नेहा की जगह अब मैं स्त्रीपन की ओर लपक रही थी। 
मैं अपने ख्यालों में इतनी डूबी हुई थी कि कब मीनू कमरे में प्रविष्ट हो गयी। उसने मेरे बिस्तर में कूद कर मुझे सपनों से वापिस यथार्थ में 
खींच लिया। 

मीनू खिलखिला कर हंस रही थी, "क्या नेहा दीदी? अभी तक रात की चुदायी याद आ रही है? कोइ फ़िक्र की बात नहीं अब तो पापा, 
चाचा और गंगा बाबा गंगा बाबा के अलावा नानू, संजू और राजन भैया भी हैं। आपके लिए अब लंड की कोई कमी नहीं है। " 
मैंने भी हँसते हुए मीनू को अपनी बाँहों में जकड़ लिया, "मीनू की बच्ची तू कैसी गंदी बातें करने लगी है ? तू तो ऐसे कह रही है जैसे न 
जाने कितने सालों से चुद रही है ?" 
मीनू ने मेरे होंठों को चूम लिया, "नेहा दीदी, आपकी छोटी बहन का कौमार्य तो तीन साल पहले ही भंग हो गया था। आप आखिरी कुंवारी 
थीं सारे परिवार में।" 
मीनू नम्रता चाची की बड़ी बेटी है. मीनू मुझसे छोटी है. उसका छरहरा शरीर देख कर कोई सोच भी नहीं सकता था कि मीनू इतनी 
चुदक्कर है। उसके लड़कपन जैसे शरीर पे अभी स्तन भी अच्छी तरह नहीं विकसित हुए थे। लेकिन नम्रता चाची और ऋतु दीदी की तरह 
मीनू का शरीर अपनी मम्मी और मौसी के जैसे ही भरा गदराया हुआ हो जायेगा। उन दोनों का भी विकास देर किशोर अवस्था में हुआ था। 
"अच्छा मीनू की बच्ची यह बता कि अपने डैडी का लंड अभी तक नहीं मिस किया," मैंने मीनू को कस कर भींच ज़ोर से उसकी नाक की 
नोक को काट कर उसे छेड़ा। 
"नेहा दीदी डैडी के लंड का ख़याल तो रहीं थीं। मुझे और ऋतु दीदी को तीन लंडों की सेवा करनी पड़ी थी। अब तो संजू का लंड भी 
लम्बा मोटा हो चला है। " मीनू मेरे दोनों उरोज़ों को मसल कर मेरे होठों को चूसने लगी। 

संजू मीनू से डेढ़ साल छोटा है। मुझे संजू शुरू से ही बहुत प्यारा लगता है। उसके अविकसित शरीर से जुड़े वृहत लंड के विचार से ही मैं रोमांचित हो गयी। 

मीनू ने मेरे सूजे खड़े चूचुकों को मसल कर कुछ बेसब्री से बोली, "अरे मैं तो सबसे ज़रूरी बात तो भूल गयी। दीदी संजू को जबसे आपके कौमार्यभंग के बारे में पता चला है तबसे मेरा प्यारा छोटा नन्हा भाई अपनी नेहा दीदी को चोदने के विचार से मानों पागल हो गया है। बेचारा सारे रास्ते आपको चोदने की आकांशा से मचल रहा था। उसने मुझे आपसे पूछने के लिए बहुत गुहार की है। "


मेरी योनि जो पहले से ही मीनू से छेड़छाड़ कर के गीली हो गयी थी अब नन्हे संजू की मुझे चोदने की भावुक और तीव्र तृष्णा से मानों सैलाब से भर उठी। 

मीनू ने मेरे गालों को कस कर चूम कर फिर से कहा, "दीदी चुप क्यों हो। हाँ कर दो ना," मीनू ने धीरे से फुसफुसाई, 

"बेचारा संजू बाहर ही खड़ा है। "

मैं अब तक कामोन्माद से मचल उठी थी। मैंने धीरे से मीनू को संजू को अंदर बुलाने को कहा.

"संजूऊऊ," मीनू चहक कर ज़ोर से चिल्लायी," नेहा दीदी मान गयीं हैं। "

संजू कमरे के अंदर प्रविष्ट हो गया। उसकी कोमल आयु के बावज़ूद उसका कद काफी लम्बा हो गया था। उसका देवदूत जैसा सुंदर चेहरा कुछ लज्जा और कुछ वासना से दमक रहा था। 

संजू शर्मा कर मुस्कराया और हलके से बोला, "हेलो नेहा दीदी। "

मीनू बेताबी से बोली, "संजू अब काठ के घोड़े की तरह निचल खड़े ना रहो। जल्दी से अपने उतारो और अपनी नेहा दीदी की चूत ले लो। कितने दिनों से इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हो।"

मीनू बेताबी से बोली, "संजू अब काठ के घोड़े की तरह निष्चल खड़े ना रहो। जल्दी से अपने उतारो और अपनी नेहा दीदी की चूत ले लो। कितने दिनों से इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हो।"

संजू ने शर्माते हुए पर लपक कर अपने कपड़े उतार कर फर्श पर दिए। उसका गोरा लम्बा शरीर उस समय बिलकुल बालहीन था। 

मेरी आँखे अपने आप ही संजू के खम्बे जैसे सख्त मोटे गोरे लंड पर टिक गयीं। उसके अंडकोष के ऊपर अभी झांटों का आगमन नहीं हुआ था। मेरा मुँह संजू के जैसे गोरे औए मक्खन जैसे चिकने लंड को देख कर लार से भर गया। 

"संजू, जल्दी से बिस्तर पर आ जाओ न अब, " मुझसे भी अब सब्र नहीं हो रहा था। 

संजू को हाथ से पकड़ कर मैंने उसे बिस्तर पर बैठ दिया। 

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संजू मीनू से डेढ़ साल छोटा है। मुझे संजू शुरू से ही बहुत प्यारा लगता है। उसके अविकसित शरीर से जुड़े वृहत लंड के विचार 
से ही मैं रोमांचित हो गयी। 
मीनू ने मेरे सूजे खड़े चूचुकों को मसल कर कुछ बेसब्री से बोली, "अरे मैं तो सबसे ज़रूरी बात तो भूल गयी। दीदी संजू को 
जबसे आपके कौमार्यभंग के बारे में पता चला है तबसे मेरा प्यारा छोटा नन्हा भाई अपनी नेहा दीदी को चोदने के विचार से 
मानों पागल हो गया है। बेचारा सारे रास्ते आपको चोदने की आकांशा से मचल रहा था। उसने मुझे आपसे पूछने के लिए 
बहुत गुहार की है। " 
मेरी योनि जो पहले से ही मीनू से छेड़छाड़ कर के गीली हो गयी थी अब नन्हे संजू की मुझे चोदने की भावुक और तीव्र तृष्णा 
से मानों सैलाब से भर उठी। 
मीनू ने मेरे गालों को कस कर चूम कर फिर से कहा, "दीदी चुप क्यों हो। हाँ कर दो ना," मीनू ने धीरे से फुसफुसाई, 
"बेचारा संजू बाहर ही खड़ा है। " 
मैं अब तक कामोन्माद से मचल उठी थी। मैंने धीरे से मीनू को संजू को अंदर बुलाने को कहा. 
"संजूऊऊ," मीनू चहक कर ज़ोर से चिल्लायी," नेहा दीदी मान गयीं हैं। " 
संजू कमरे के अंदर प्रविष्ट हो गया। उसकी कोमल आयु के बावज़ूद उसका कद काफी लम्बा हो गया था। उसका देवदूत जैसा 
सुंदर चेहरा कुछ लज्जा और कुछ वासना से दमक रहा था। 
संजू शर्मा कर मुस्कराया और हलके से बोला, "हेलो नेहा दीदी। " 
मीनू बेताबी से बोली, "संजू अब काठ के घोड़े की तरह निचल खड़े ना रहो। जल्दी से अपने उतारो और अपनी नेहा दीदी की 
चूत ले लो। कितने दिनों से इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हो।" 
मीनू बेताबी से बोली, "संजू अब काठ के घोड़े की तरह निष्चल खड़े ना रहो। जल्दी से अपने उतारो और अपनी नेहा दीदी 
की चूत ले लो। कितने दिनों से इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हो।" 
संजू ने शर्माते हुए पर लपक कर अपने कपड़े उतार कर फर्श पर दिए। उसका गोरा लम्बा शरीर उस समय बिलकुल बालहीन 
था। 

मेरी आँखे अपने आप ही संजू के खम्बे जैसे सख्त मोटे गोरे लंड पर टिक गयीं। उसके अंडकोष के ऊपर अभी झांटों का आगमन 
नहीं हुआ था। मेरा मुँह संजू के जैसे गोरे औए मक्खन जैसे चिकने लंड को देख कर लार से भर गया। 
"संजू, जल्दी से बिस्तर पर आ जाओ न अब, " मुझसे भी अब सब्र नहीं हो रहा था। 
संजू को हाथ से पकड़ कर मैंने उसे बिस्तर पर बैठ दिया। 

मैंने उसके दमकते सुंदर चेहरे को कोमल चुम्बनों से भर दिया। 
संजू अब अपने पहले झिझकपन से मुक्त हो चला। 
संजू ने मुझे अपनी बाँहों में कस कर पकड़ कर अपने खुले मुँह को मेरे भरी साँसों से भभकते मुँह के ऊपर कस कर 
चिपका दिया। 
संजू के मीठे थूक से लिसी जीभ मेरे लार से भरे मुँह में प्रविष्ट हो गयी। मीनू मेरी फड़कती चूचियों को मसलने लगी। 
मेरा एक हाथ संजू के मोटे लंड को सहलाने को उत्सुक था। मेरी तड़पती उंगलियां उसके धड़कते लंड की कोतलकश 
को नापने लंगी। 
मेरा नाज़ुक हाथ संजू के मोटे लंड के इर्दगिर्द पूरा नहीं जा पा रहा था। पर फिर भी मैं उसके लम्बे चिकने स्तम्भ को 
हौले-हौले सहलाने लगी। 
 
संजू ने मेरे मुँह में एक हल्की से सिसकारी भर दी। मैं संजू के लंड को चूसने के लिए बेताब थी। 
मैंने हलके से अपने को संजू के चुम्बन और आलिंगन से मुक्त कर उसके लंड के तरफ अपना लार से भरा 
मुँह ले कर उसे प्यार से चूम लिया। 
संजू का लंड इस कमसिन उम्र में इतना बड़ा था। इस परिवार के मर्दों की विकराल लंड के अनुवांशिक श्रेष्ठता के 
आधिक्य से वो सबको पीछे छोड़ देगा। 
मैंने संजू के गोरे लंड के लाल टोपे को अपने मुँह में भर लिया। 
मीनू मेरे उरोज़ों को छोड़ कर मेरे उठे हुए नीतिमबोन को चूमने और चूसने लगी। मीनू मेरे भरे भरे चूतड़ों को 
मसलने के साथ साथ मेरे गांड की दरार को अपने गरम गीली जीभ से चाटने भी लगी। 
मेरी लपकती उन्माद से भरी सिसकी ने दोनों भाई बहिन को और भी उत्तेजित कर दिया। 
संजू ने मेरे सर तो पकड़ कर अपने लंड के ऊपर दबा कर मापने मोटे लंड को मेरे हलक में ढूंस दिया। मेरे घुटी-घुटी 
कराहट को उनसुना कर संजू ने अपने लंड से मेरे मुँह को चोदने लगा। 
मीनू ने मेरी गुदा-छिद्र को अपनी जीभ की नोक से चाट कर ढीला कर दिया था और उसकी जीभ मेरी गांड के गरम 
अंधेरी गुफा में दाखिल हो गयी। 
मीनू ने ज़ोर से सांस भर कर मेरी गांड की सुगंध से अपने नथुने भर लिए। 
"दीदी, अब मुझे आपको चोदना है," संजू धीरे से बोला। 
मैंने अनिच्छा से उसके मीठे चिकने पर लोहे के खम्बे जैसे सख्त लंड तो अपने लालची मुँह से मुक्त कर बिस्तर पे अपनी 
जांघें फैला कर लेट गयी। 
संजू घुटनो के बल खिसक कर मेरी टांगों के बीच में मानों पूजा करने की के लिए घुटनों पर बैठा था। मीनू घोड़ी बन 
कर मेरे होंठों को चूस थी। पर उसकी आँखे आँखें अपने भाई के मोटे लम्बे चिकने लंड पर टिकी थीं। संजू का मोटा 
फड़कता सुपाड़ा मेरी गुलाबी चूत के द्वार पे खटखटा रहा था। मेरी चूत पे पिछले दो सालों में कुछ रेशम मुलायम जैसे 
घुंघराले बाल उग गए थे। संजू ने सिसकी मार कर अपने मोटे लम्बे हल्लवी लंड के सुपाड़े को मेरी गीली योनि की 
तंग दरार पर रगड़ा। मेरी भगशिश्न सूज कर मोटी और लम्बी हो गयी थी। संजू के लंड ने उसे रगड़ कर और भी 
संवेदनशील कर दिया। मेरी हल्की सी सिसकारी और भी ऊंची हो चली। 

"संजू मेरी चूत में अपना लंड अंदर तक दाल दो, मेरे प्यारे छोटे भैया। अपनी बड़ी बहिन की चूत को अब और 
तरसाओ," मैं अपनी कामाग्नि से जल उठी थी। 
संजू ने मेरे दोनों थरकते चूचियों को अपने बड़े हाथों में भर कर अपने मोटे सुपाड़े को हौले हौले मेरी नाजुक चूत में 
धकेल दिया। मेरी तंग योनि की सुरंग संजू के मोटे लंड के स्वागत करने के लिए फैलने लगी। संजू ने एक एक इंच 
करके अपना लम्बा मोटा लंड मेरी चूत में जड़ तक ठूंस दिया। 
मैं संजू के कमसिन लंड को अपनी चूत में समा पा कर सिहर उठी। मेरा प्यारा छोटा सा भैया अब इतने बड़े लंड का 
स्वामी हो गया था। 
"संजू, तेरा लंड कितना बड़ा है। अब अपनी बहिन को इस लम्बे मोटे खम्बे जैसे लंड से चोद डाल," मैं वासना के 
अतिरेक से व्याकुल हो कर बिलबिला उठी। 
मीनू ने भी मेरी तरफदारी की, "संजू, कितने दिनों से नेहा दीदी की चूत के लिए तड़प रहे थे। अब वो खुद कह रहीं हैं 
की उनकी चूत को चोद कर फाड़ दो। संजू नेहा दीदी की चूत तुम्हारे लंडे के लिए तड़प रही है। " 
संजू ने हम दोनों को उनसुना कर अपने लंड को इंच इंच कर मेरी फड़कती तड़पती चूत के बाहर निकल उतनी ही 
बेदर्दी से आहिस्ता-आहिस्ता अंदर बाहर करने लगा। 
मैंने अपनी बाहें में कस कर मीनू को जकड लिया। हम दोनों के होंठ मानों गोंद से चिपक गए थे। मैं अब तड़प गयी 
थी। अब तक बड़े मामा, सुरेश चाचा और गंगा बाबा मेरी चूत की धज्जियां उड़ा रहे होते। संजू किसी जालिम की तरह 
मेरी चूत को अपने चिकने मोटे लंड से धीरे धीरे मेरी चूत को मार रहा था। 
मेरी चूत झड़ने के लिए तैयार थी पर उसे संजू के मोटे लंड की मदद की ज़रुरत थी। 
मैं कामाग्नि से जल रही थी। मुझे पता भी नहीं चला कि कब किसी ने मीनू को बिस्तर के किनारे पर खींच लिया। 

मैंने मीनू की ऊंची कर उसकी तरफ देखा। सुरेश चाचा ने अपनी कमसिन अविकसित बेटी की चूत में अपना 
दैत्याकार लंड एक बेदर्द धक्के से जड़ तक ठूंस दिया था। 
"डैडी, आअह आप कितने बेदर्द हैं। अपनी छोटी बेटी की कोमल चूत में अपना दानवीय लंड कैसी निर्ममता से ठूंस दिया 
है आपने। मिझे इतना दर्द करने में आपको क्या आनंद आता है?" मीनू दर्द से बिलबिला उठी थी। 
"मेरी नाजुक बिटिया इस लंड को तो तुम तीन सालों से लपक कर ले रही हो। अब क्यों इतने नखरे करने का प्रयास 
कर रही हो। मेरी बेटी की चूत तो वैसे भी मेरी है। मैं जैसे चाहूँ वैसे ही तुम्हारी चूत मारूंगा," सुरेश चाचा ने तीन 
चार बार बेदर्दी से अपना लंड सुपाड़े तक निकल कर मीनू की तंग संकरी कमसिन अविकसित चूत में वहशीपने से ठूंस 
दिया। 
"डैडी, आप सही हैं। आपकी छोटी बेटी की चूत तो आपके ही है। आप जैसे चाहें उसे चोद सकते हैं," मीनू दर्द सी 
बिलबिला उठी थी अपर अपने पिताजी के प्यार को व्यक्त करने की उसकी इच्छा उसके दर्द से भी तीव्र थी। 
"संजू, भैया, देखो चाचू कैसे मीनू की चूत मार रहें हैं। प्लीज़ अब मुझे ज़ोर से चोदो," मैंने मौके का फायदा उठा कर 
संजू को उकसाया। 
शीघ्र दो मोटे लम्बे लंड दो नाजुक संकरी चूतों का मर्दन निर्मम धक्कों से करने लगे। कमरे में मेरी और मीनू की 
सिस्कारियां गूंजने लगीं। 
संजू मेरे दोनों उरोज़ों का मर्दन उतनी ही बेदर्दी से करने लगा जितनी निर्ममता से उसका लंड मेरी चूत-मर्दन में 
व्यस्त था। सुरेश चाचा और संजू के लंड के मर्दाने आक्रमण से मीनू और मेरी चूत चरमरा उठीं। उनके मूसल जैसे लंड 
बिजली की तीव्रता से हमारी चूतों के अंदर बाहर रेल के पिस्टन की तरह अविरत चल रहे थे। सपक-सपक की आवाज़ें 
कमरे में गूँज उठीं। 

मेरी सिस्कारियां मेरे कानों में गूँज रहीं थीं। मीनू की सिस्कारियों में वासनामय दर्द की चीखें भी शामिल थीं। सुरेश 
चाचा का दानवीय लंड न जाने कैसे कैसे मीनू सम्भाल पा रही थी? सुरेश चाचा का दानवीय लंड न जाने कैसे कैसे 
मीनू सम्भाल पा रही थी? चाचू के विशाल भरी-भरकम शरीर के नीचे हाथों में फांसी नन्ही बेटी किसी चिड़िया जैसी 
थी. 
चाचू मीनू को दनादन जान लेवा धक्कों से चोदते हुए उसके सूजे चूचुकों को बेदर्दी से मसल रहे थे। अभी मीनू के 
उरोज़ों का विकास नहीं हुआ था। 
"डैडी,चोदिये अपनी लाड़ली बेटी को। फाड़ डालिये अपनी नन्ही बेटी की चूत अपने हाथी जैसे लंड से," मीनू 
कामवासना के अतिरेक से अनाप-शनाप बोलने लगी। 
 
20


जब हम सब लोगों की कामाग्नि कम से कम कुछ क्षणों के लिए शांत हो गयी तब नम्रता चाची ने खाने की घोषणा कर दी। 

"उब सारे पुरुषों के लंडों को थोडा भी है। आखिर इन विशाल हाथी जैसे लण्डों को मेरी बहिन के रन्डीपने की समस्या तो 
भी सुलझानी है। " नम्रता चाची ने बड़े मामा और सुरेश चाचा के लंडों को मेरी और मीनू की चोलियों से पोंछ कर हमें इनाम की तरह पेश किया, "देखो तुम दोनों के कौमार्यहरण की साक्षीण हैं खून से सनी तुम्हारी चोलिया। इन्हें सम्भाल कर रखना। "

मीनू और मैं दर्द के मारे टांगें चौड़ा कर चल रहे थे। 


भोजन वाकई स्वादिष्ट था। सब पुरुष बियर और वाइन पी रहे थे। स्त्रियों ने शैम्पेन का रसा स्वाद कर रहीं थीं। 

मीनू और मैंने भी उस क्षणों की मादकता में तीन गिलास पी लिए और थोड़ी मतवाली हो उठीं। 

नम्रता चाची अपनी अश्लील टिप्प्णियों से अविरत ऋतू मौसी को अविरत भोजन के बीच चिढ़ाती रही। 

" अरे,देखते रहो। आज इस रंडी की चूत और गांड फट कर ही रहेगी। मैंने सब महाकाय लंडों को सेहला कर फुसला दिया है। 

सारे लंडों ने मेरे कान में फुसफुसा कर घोषणा कर दी है कि आज शाम वो मेरी के भेष में चुद्दक्कड़ रंडी के हर चुदाई के छेदों को विदीर्ण कर भिन्न-भीं करने के लिए उत्सुक हैं। आज के बाद मेरी छोटी बहिन की चूत में रेल गाड़ी भी चली जाएंगीं और गांड में तो बस का गैराज बन जायेगा। " नम्रता चाची ने खिलखिला कर ऋतू को चिड़ाया। 

हम सब पहले तो खूब हंसें फिर ऋतू मौसी तो नम्रता चाची को उचित उतना ही श्लील सरोत्कर के लिए उत्साहित करने लगे। 

"थोड़ी देर में ऋतू मौसी ने मनमोहक मुस्कान के साथ जवाब दिया , "नम्मो दीदी, आप क्या बक-शक रहीं हैं। अरे जब क़ुतुब मीनार खो गयी थी तो दिल्ली की पुलिस ने उसे आपकी चूत से ही तो बरामद किया था। " मुश्किल से रुक पा रही थी। 

लेकिन अभी ऋतू मौसी का सरोत्कर समाप्त नहीं हुआ था , "और पिताजी के लंड से सालों से चुद कर आपकी गांड और चूत इतनी फ़ैल गयीं हैं कि जब बस-चालक रास्ता भूल कर इन गहरायों में खों जाते है तो उन्हें महीनों लगते हैं वापस बहार आने में। "

हम सब ने तालियां बजा कर ऋतू मौसी के लाजवाब टिप्पिणि की कर प्रंशसा की। 

नम्रता चाची भी अपने प्यारी बेटी जैसे छोटी बहिन के उत्तर से कुछ क्षणों के लिए लाजवाब हो गयीं पर फिर भी खूब ज़ोरों से हंसीं। 

दोनों का इसी तरह का अश्लील आदान प्रदान चलता रहा। सारे पुरुष भी इसका आनंद उठाने लगी.

जब सब लोगों केई उदर-संतुष्टी हो गयी तो सबकी उदर के नीचे की भूख फिर से जाग उठी। 

हम सब ऋतू मौसी को तैयार करने के लिए शयन-कक्ष में ले गए। जैसे जैसे उनके वस्त्र उतरे वैसे ही उनके दैव्य-सौंदर्य की 
उज्जवल धुप से हम सब चका-चौंध हो गए। ऋतू मौसी के बालकपन लिए चेहरे का अवर्णनीय सौंदर्य उनके देवी जैसे गदराये सुडौल घुमावों से भरे शरीर के स्त्री जनन मादकता से इंद्र भी उन्मुक्त नहीं रह पाते। 

ऋतू मौसी ने सिर्फ चोली और लहंगा पहनने का निश्चय किया। उन्होंने न तो कंचुकी पहनी और न कोई झाँगिया। 

उनका प्राकृतिक रूप से दमकता माखन जैसा कोमल शरीर और चेहरे को किसी भी श्रृंगार की आवश्यकता नहीं थी। 

हम सब कुछ क्षणों के लिए ऋतू मौसी के अकथ्य सौंदर्य से अभीभूत हो चुप हो गए। 

"अरे मैं इतनी बुरी लग रहीं तो बोल दो। चुप होने से तो काम नहीं चलेगा ना ," ऋतू मौसी लज्जा से लाल हो गयीं और उनके सौंदर्य में और भी निखार आ गया। 


नम्रता चाची ने जल्दी से अपनी छोटी बहिन को अपने आलिंगन में ले कर उनका माथा चूम लिया, "अरे मेरी बिटिया को किसी की नज़र न लग जाये।" नम्रता चाची के प्यार की कोई सीमा नहीं थी।
अगले घंटे में हम सब फिर 'रस-वभन' में एक बार फिर से इकट्ठे हो गए। इस बार सारे मर्द दूसरी तरफ थे। हमारा प्यारा 
संजू लम्बे भारी भरकम पुरुषों के बीच में उसके बालकों जैसे चहरे से वो और भी नन्हा लग रहा था। पर उसके लोहे के 
खम्बे जैसे खड़े लंड में कोई भी नन्हापन नहीं था। 

नम्रता चाची ने सब पुरुषों के लिए गिलासों ओ फिर से भर दिया। संजू उस दिन व्यक्त मर्दों में शामिल हो गया था। सही 
मात्र में मदिरा पान कामुकता को बड़ा सकता है। उसके प्रभाव से पुरुष यदि कोई अवरोधन हों भी तो मुक्त हो चलेंगें। 

नम्रता चाची अपनी बहिन के लिए सारे पुरुषों की निर्दयी चुदाई के चाहत से विव्हल थीं। 

नम्रता चाची ने सारे पुरुषों के बचे-कूचे न्यूनतम वस्त्रों को उत्तर दिया। छः महाकार के लंडों को देख कर हम सब नारियों 
की योनियों में रति-रस का सैलाब आ गया। 

नम्रता चाची ने नाटकीय अंदाज़ में घोषणा की ,"अब आपके उपभोग के लिए आज रात की रंडी को अर्पण करने का समय 
आ गया है। आप सब मोटे, लम्बे, विकराल लंडों के स्वामियों से अनुरोध है कि इस रंडी की वासना की प्यास को पूरी 
तरह से भुझा दें। इस रंडी के हर चुदाई के छिद्र को अपने घोड़े जैसे लंडों से फाड़ दें। इसकी गांड की अपने हाथी जैसे 
वृहत्काय लंडों से धज्जियां उड़ा दें। उसकी गाड़ आज इतनी फट जानी चाहिये कि अगले तीन हफ़्तों तक इस रंडी को 
मलोत्सर्ग में होते दर्द से यह बिलबिला उठे।"

हम सब नम्रता चाची के अश्लील उद्घोषण से हसने की बजाय कामोन्माद से गरम हो गए। छह पुरुषों के पहले से ही 
थरकते लंडों में और भी उठान आ गया। मेरा तो छः महाकाय लंडों को इकठ्ठा देख कर हलक सूख गया। मुझे ऋतू मौसी 
के फ़िक्र होने लगी। 

हम सब नम्रता चाची के अश्लील उद्घोषण से हसने की बजाय कामोन्माद से गरम हो गए। छह पुरुषों के पहले से ही 
थरकते लंडों में और भी उठान आ गया। मेरा तो छः महाकाय लंडों को इकठ्ठा देख कर हलक सूख गया। मुझे ऋतू मौसी 
के फ़िक्र होने लगी। 

नम्रता चाची अभी पूर्ण रूप से संतुष नहीं थीं, "जो भी स्त्री इस सामूहिक सम्भोग के लिए रंडी बनने का सौभाग्य प्राप्त 
करती है वो इस लिए कि आप सब सब मर्यादा भूल कर अपने भीमकाय लंडों से उसकी हर वासनामयी क्षुदा की पूर्ण 
संतुष्टि करेंगें। और उसकी हार्दिक अपेक्षा कि आप सब उसे निम्न कोटि की सस्ती रंडी से भी निकृष्टतर मान कर उसे उसी 
तरह बर्ताव करें। "

नम्रता चाची ने अपने कोमल हाथों से बारी-बारी छः उन्नत विशाल लंडों को सहला कर अपनी छोटी सी घोषणा को 
समापन की और मोड़ा ," अंत में इस रंडी की हार्दिक चाहत है कि आज रात इसे आप निम्न कोटी की रंडी की तरह 
समझ कर इसे शौचालय की तरह इस्तेमाल करें। "

नम्रता चाची ने ऋतू मौसी का हाथ पकड़ कर एक बकरी की तरह खींच कर उन्हें छः निर्मम कठोर लंडों के हवाले कर 
दिया।
 
मनोहर नानाजी ने अपनी छोटी बेटी की चोली के बटन खोल कर उनके विशाल पर गोल उन्नत स्तनों को मुक्त कर 
दिया। ऋतू मौसी के भारी, कोमल, मलायी जैसे गोर उरोज़ अपने ही भार से थोड़े ढलक गए। 

इनके होल होल हिलते मादक उरोज़ों ओ देख कर सारे लंड और भी थिरकने लगे। राज मौसा ने अपनी छोटी बहिन के 
लहंगे का नाड़ा खोल दिया और ऋतू मौसी का लहंगा लहरा कर उनके फुले गदराये भरे-भरे गोल उन्नत नीतिम्बो के 
मनमोहक घुमाव को और भी बड़ा-चढ़ा दिया। 

ऋतू मौसी की गोल भरी-पूरी झाँगों के बीच में घघुंघराली झांटों से ढके ख़ज़ाने की ओर सब की नज़र टिक गयी। ऋतू 
मौसी की झांटें उनके रतिरस से भीग गयीं थीं। और उनसे एक हल्की सी मादक सुगंध रजनीगंधा और चमेली के फूलों की 
महक से मिल सारे पुरुषों की इंद्रियों पर धावा बोल दिया। 

ऋतु मौसी के मोहक रति रस की सौंदाहटके प्रभाव से सब पुरुषों के नाममात्र के संयम के बाँध टूट गए। 
छः अमानवीय विशाल लंडों के बीच में निरीह मृगनी की तरह घिरी ऋतु 

मौसी को सब पुस्रुषों में मिल कर चूमना चाटना शुरू कर दिया। अनेक हाथ उनके थिरकते मादक विशाल उरोज़ों को मसलने मडोड़ने लगे। कई उंगलियां उनकी रेशमी घुंघराली झांटों को भाग कर उनकी कोमल योनि-पंखुण्डियों को खोल कर उनकी रति रस से भरे छूट की तंग गलियारे में घूंस गयीं। 

ऋतू मौसी की ऊंची पहली सिकारी ने रात की रासलीला की माप-दंड को और भी उत्तर दिशा की और प्रगतिशील कर दिया। 

"मम्मी, हमारे पास तो एक भे लंड नहीं है," मीनू कुनमुनाई। उसकी नन्ही गुलाबी चूत मादक रतिरस से भर उठी थी। 

मीनू परेशान नहीं हो, हमने सारा इंतिज़ाम कर रखा है ," जमुना दीदी लपक कर भागीं और शीघ्र दो दो-मुहें बड़े मोटे ठोस नम्र रबड़ के बने लिंग के प्रतिरूप डिल्डो को विजय-पताका की तरह हिलाती हुईं वापस आयीं। 

एक डिल्डो नम्रता चाची को दे कर उन्होंने दुसरे डिल्डो के बहुत मोटे पर थोड़े छोटे नकली लंड को सिसक कर अपनी योनि में घुसा कर डिल्डो की पत्तियां अपने झांघों और कमर पे बाँध कर एक मर्द की तरह लम्बे मोटे 'लंड' को अपने हाथ से सहलाती हुईं बोलीं ,"आजा मीनू रानी। तुम्हारे लिए लंड खड़ा है। यह लंड हमेश सख्त रहेगा। चाहे जितनी देर तक चाहो यह चोदने के 
लिए तैयार है। 

नम्रता चाची भी तैयार थीं। उन्होंने सोफे पर बैठ कर मुझे अपनी और। खींचा मैं उनकी तरफ कमर करके धीरे धीरे उनके लम्बे मोटे लंड पर अपनी मुलायम चूत को टिका कर नीचे लगी। मैंने अपना निचला होंठ दबा कर थोड़े दर्द को दबाने का निष्फल प्रयास किया। बड़े मामा के निर्मम 'कौमार्यभंग' से फटी मेरी चूत जैसे जैसे नम्रता चाची के 'लंड' को भीतर लेने लगी उसमे उपजे दर्द से मैं बिलबिला उठी। 

"नेहा बेटी, बड़े मामा के लंड को तो बड़े लपक के अपनी चूत में निगल रहीं थीं। क्या चाची के लंड आया और इतना बिलबुला रही हो ?" नमृता चाची ने मेरे दोनों फड़कते स्तनों को कस कर मसल दिया। 

चाची ने अपने भारी चूतड़ों को कास ऊपर धकेला और मेरे कमसिन चूचियों को को कस कर मसलते हुए मुझे नीच दबाते हुए अपना नकली लंड मेरी चूत में पूरा का पूरा जड़ तक ढूंस दिया। मेरी सिसकती चीख के बिना नम्रता चाची मर्दों की तरह बेदर्दी से मेरे उरोज़ों को मसल कर बोलीं, "नेहा बेटी आज आई है बकरी ऊँट के नीचे। अपनी चूत और गांड को घर के हर लंड से 
चुदवा चुकी अब चाची की बारी है। मैं नहीं छोड़ने वाले अपने प्यारी बेटी को बिना चूत और गांड फाड़े। "

मैं भी वासना के ज्वार से भभक उठी , "चाची आप भी चोद लीजिये मेरी चूत। "

जमुना दीदी भी मीनू को भीच कर अपने लंड पे बिठा रहीं थी ,"ठीक है मीनू यदि तुम्हारी चूत अभी दर्दीली है तो गांड 
मरवाओ। पर आज रात तुम्हारी मस्तानी चूत मारे बिना तुम्हे नहीं छोड़ने वाले तुम्हारी जमुना दीदी। "

जमुना दीदी अपने थूक और मीनू के चूत के रस से सने चिकने भरी रबड़ के लंड को इंच इंच करके मीनू की गांड में डालने 
लंगी। मीनू ने होंठों को दबा कर गांड में उपजे दर्द को घूंट कर पी जाने का प्रयास किया। पर जमुना दीदी भी खेली-खाईं थीं। 

उन्होंने डिल्डो की सात इंच मीनू की गांड में ठूंस उसकी गोल कमर को मज़बूती से पकड़ कर नीचे खींचते हुए अपने 'लंड' को पूरी ताकत से ऊपर धकेला। 

"ऊईईईई दीदी मैं मर गयी। मेरी गांड फाड़ दी आपने तो।” मीनू बिलबिलायी। 

"मीनू रानी अभी कहाँ फटी है आपकी गांड। आपकी गांड तो अभी मुझे फाड़नी है। वैसे भी अपने डैडी से गांड फड़वाने में आपको कोई तकलीफ नहीं होती ?" जमुना दीदी ने मीनू के सीने पे तने चूचुकों को कस कर निचोड़ कर उसे अपने 'लंड' पे बेदर्दी से दबा लिया। 
 
21

छः मर्दों ने ऋतु मौसी को घुटनों पे बिठा कर उनके पुनः को बारी-बारी अपने विकराल लंड से चोदना शुरू कर दिया था। ऋतु 

मौसी घूम कर घूम कर सबके लंड की बराबर आवभगत कर रहीं थीं। उनके गोरे मुलायम छोटे छोटे नाज़ुक हाथ मर्दों के बालों से 

भरे भरी चूतड़ों को सहला रहे थे। जब संजू की बारी आते थी तो ऋतु मौसी उसके चिकने मखमली चूतड़ों को औए भी प्यार से 

मसल देंतीं। 

छहों अपने लंड को बेदारी से ऋतू मौसी के मुंह में धकेलने लगे। ऋतु मौसी की उबकाई की जैसी 'गों गों' की निसहाय गला घोंटू 

आवाज़ें हॉल में गूंज उठीं। उनकी भूरी आँखें आंसुओं से भर उठीं। 

उनकी लार उनकी थोड़ी से होती हुई उनके फड़कते नाचते उरोज़ों को नहलाने लगी। जितनी ज़ोर से ऋतु मौसी की 'गों गों' होती 

जातीं उतनी ज़ोर से ही हर लंड उनका मुँह चोदने लगता। ऋतू मौसी का मनमोहक सीना उनके अपने थूक से सराबोर हो गया। 

ऋतु मौसी जो लंड भी उनके मुँह को बेदर्दी से चोद रहा होता उसके चूतड़ों को कस कर दबा कर और भी उसके लंड को अपने 

हलक में घोंटने की कोशिश करतीं। 

लगातार गला घोंटू चुदाई की वजह से ऋतु मौसी की आँखे बरसने लगीं। उनके आँसूं उनकी सुंदर नासिका में बह चले। 

बारी बारी से मुँह चोदने के प्रकिर्या से हर लंड झड़ने से मीलों दूर था। 

जितना अधिक ऋतु मौसी सिसकती हुई गों गों करती उतनी और निर्ममता से हर एक लंड उनका गला चोदता। 

उनका सुंदर चेहरा उनके आंसुओ, थूक और बहती नाक से मलीन हो गया। मुझे विश्वास था कि हर पुरुष उनके दैव्य सौंदर्य को 

मलिन कर और भी सुंदर बना रहा था। 

ऋतू मौसी बेदर्दी से होती अपने लिंग चूषण से इतनी उत्तेजित हो गयी कि हर दस मिनट पर वो झड़ने लगीं। 

जब उनका रति-स्खलन होता तो उनका सारा शरीर उठता जैसे कि उन्हें तीव्र ज्वर ने जकड़ लिया हो। 

उनके आखिरी चरम-आनंद ने उन्हें बहुत शिथिल कर दिया और वो फर्श पर ढलक गयीं। 

**********************************************

नम्रता चाची ने मुझे अपने नकली लंड पर ऊपर नीचे होने में मदद कर पूरे घंटे से चोद रहीं थीं। मैं अनगिनत बार झड़ चुकी थी। 

मेरी चूत बड़े मामा की बेदर्द और चाची की बेदर्द चुदाई से रिरयाने लगी। उनके छूट में फांसे लंड ने उन्हें भी मेरी तरह बार बार 

झाड़ दिया था। 

नम्रता चाची ने मेरे दोनों उरोज़ों का लतमर्दन कर उन्हें लाल कर दिया था। मेरे चूचुक तो उनके मसलने और खींचने से सूज गए 

थे। 

उनके पर्वत से विशाल भारी स्तन मेरे पीठ को रगड़ कर मेरे वासना के उन्माद को हर क्षण बढ़ावा दे रहे थे। 

उधर जमुना दीदी ने थकी मांदी मीनू को घोड़ी बना कर उसे पीछे से मर्द की तरह लम्बे ज़ोरदार धक्कों से उसकी गांड की हालत 

ख़राब कर रहीं थीं। मीनू ज़ोरों से सिसक रही थी। उसके हिलते शरीर के कम्पन से साफ़ प्रत्यक्ष था कि उसके रति-निष्पत्ति अब एक 

लगातार लहर में हो रही थी। 
 
"मीनू रानी तुम्हारी मखमली गांड की चुदाई करते हुए मैं तो न जाने कितनी बार आ चुकीं हूँ। हाय मेरे पास पापाजी जैसा 

वास्तविक लंड होता। " जमुना दीदी सिसक कर फिर से झड़ते हुए मीनू की गांड में नकली लंड को लम्बी ज़ोरदार ठोकरों से रेल 

के पिस्टन की तरह अंदर बाहर धकेल रहीं थीं। 

मीनू की महकभरी की गांड की सुगंध से वातावरण की हवा सुगन्धित हो चली थी। 

जमुना दीदी के रबड़ के लंड पर मीनू की गांड का महक भरा रस सन चूका था, "मीनू देख मेरे लंड पर तेरी गांड का रस कैसे 

चमक रहा है। जब चुदाई से मैं संतुष हो जाऊंगीं तो मेरे लंड को चाट कर साफ़ करेगी। गांड की चुदाई का प्रशाद चाहिये ना ?" 

जमुना दीदी कामोन्माद से जलती हुईं घुटी घुटी आवाज़ से सिसक कर बोल रहीं थीं। 

"हाँ दीदी, मैं आपका लंड कर चमका दूंगी। मेरी गांड से निकले आपके लंड को मुझे ज़रूर चुस्वाना।" मीनू बिलबिलाते हुए 

सिस्कारियां मार कर अपनी गांड जमुना दीदी के मोटे लंड के ऊपर पटक रही थी। 

जमुना दीदी ने अपने रति-निष्पत्ति से सुलगते हुए मीनू के थरकते चूतड़ों पर ज़ोर से तीन चार थप्पड़ तड़ाक से जमा दिए। मीनू 

की घुटी चीखों में दर्द थोड़ा कामोन्माद अधिक था। 

जमुना दीदी की मीनू की गांड की चुदाई घर के किसी भी पुरुष की चुदाई तुलना में बीस से बहुत दूर नहीं थी।

नानाजी गुर्रा कर बोले, " इस रंडी की की मुंह-चुदाई से तो हम में से एक भी नहीं झड़ा। देखें इसकी चूत कुछ बेहतर हो 

शायद ?"

उन्होंने अपनी सुंदर बेटी का गदराया लज्जत भरा शरीर को उठा कर घोड़ी बना सोफे पर टिका दिया। उस ऊंचाई से लम्बे मर्दों 

को झुकने की कोई आवश्यकता नहीं थी। 

उनका अपनी बेटी पर प्राकृतिक अधिकार था और उन्होंने अपने घोड़े जैसे वृहत ऋतु मौसी के थूक, आंसुओं से सने लंड को 

उनकी रति-रस से भरी चूत में तीन षण -पंजर हिला धक्के से धक्कों से मोटी जड़ तक ठूंस दिया। सुरेश चाचा ने उनके मौंग 

के आगे बैठ कर अपना लंड ऋतू मौसी के सिसकते हाँफते खुले मुँह में ठूंस दिया। दोनों ने ठीक शुरूआत से ही ऋतू की चुदाई 

जानलेवा धक्कों से करनी शुरू कर दी। ऋतु मौसी के हलक से एक बार फिर से घुटने की गों गों आवाज़ें उबलने लगीं। 

राज मौसा और बड़े मामा ने ऋतु मौसी के एक एक हिलते मनमोहक स्तनों को मसलना रगड़ना शुरू कर दिया। संजू और 

गंगा बाबा ने ऋतु मौसी के नाजुक हाथों को अपने भूखे लंडों को सहलाने के लिए उनके ऊपर रख दिया। ऋतु मौसी का सर 

सुरेश चाचा अपने लंड पर दबा रहे थे। 

मनोहर नानू ऋतु मौसी के थिरकते चूतड़ों को जकड़ कर अपने लंड से उनकी चूत लतमर्दन निर्मम धक्कों से करने लगे। ऋतु 

मौसी वासना की आग में जलती रिरिया रहीं थीं। उनकी सिस्कारियां उनके घुटते गले से और भी मादक हो गयीं। 

जैसे ही ऋतू मौसी मचल कर झड़ने लगीं तो सुरेश चाचा और नानू ने अपने लंड निकाल कर बड़े मामा और गंगा बाबा को 

चोदने का मौका दिया। 

गंगा बाबा ने ऋतु मौसी की चूत हथिया ली। बड़े मामा ने ऋतू मौसी के सुंदर मलिन चेहरे को और भी बेदर्दी से छोड़ना 

प्रारम्भ कर दिया। 

गंगा बाबा ने अपना लंड जैसे ही ऋतू मौसी का शरीर उनकी रति -निष्पत्ति से कपकपाने लगा भर निकल लिया। राज मौसा ने 

अपनी बहन की चूत में अपना लंड दो विध्वंसक धक्कों से ढूंस कर ऋतू मौसी की भीषण चुदाई की लहर को निरंतर कायम 

रखा। संजू ने अपनी प्यारी देवी सामान मौसी के मलिन सुबकते चेहरे को उठा कर पहले प्यार से चाट कर साफ़ कर लिया। 

ऋतू मौसी के सुंदर नथुने उनकी वासना के अतिरेक से हांफने से फड़क रहे थे। संजू ने अपनी जीभ की नोक से ऋतु मौसी के 

दोनों फड़कते नथुनों को चोदने लगा। 

ऋतु मौसी की सिस्कारियों में अनुनासिक ध्वनि मिल गयी। 

संजू ने कुछ देर बाद अपने मुँह को अपने थूक से भर कर ऋतु मौसी के खुले हाँफते मुँह को भर दिया। मौसी ने सिसक कर 

सटकने की कोशिश की पर संजू के बेसब्र लंड ने उनके मुँह एक बार फिर से चोदने के लिए ठूंस दिया। 

ऋतु मौसी के कांपते शरीर ने उनके अगले चरम-आनंद की घोषणा कर दी। राज मौसा और संजू ने ऋतु मौसी को कुछ देर तक 

और चोदा और फिर उन्हें अनगिनत रति-निष्पत्ति के अतिरेक से शिथिल हो गए मांसल गदराये देवियों जैसे घुमावदार कमनीय 

शरीर को चौड़े सोफे पर लुड़कने दिया।
 
22


नम्रता चाची ने भी मुझे घोड़ी बना कर पीछे से मेरी चूत छोड़ कर मेरी हालत बहुत ख़राब करदी थी। इस अवस्था में हम चारों ऋतू दीदी का सामूहिक लतमर्दन साफ़-साफ़ देख सकते थे। 

हम सब अनेकों बार झड़ कर हांफ रहीं थीं। आखिर कार जमुना दीदी ने लगभग दो घंटों तक मीनू की गांड रौंदने के बाद अपना रबड़ का नकली लंड उसके मुँह में ठूंस दिया। मीनू सुबकते हुए जमुना दीदी के डिल्डो को चूस चाट कर साफ़ करने लगी। उसके चूसने के प्रयास से जमुना दीदी की चूत में घुसा लंड उनकी भी अति-संवेदन योनि को जला देता था। जमुना दीदी सिसक कर मीनू के मुँह को अपने लंड पर और भी ज़ोर से खींच लेतीं। 

नम्रता चाची ने अपना लंड निकाल कर मुझे अपने गोद में बिठा कर मेरे ज़ोर से भारी भारी अध्-खुले मुंह को चूम चाट कर गिला कर दिया। 

हम सब एक टक आँखें टिका कर छः अतृप्य लंडों की आगे की प्रक्रिया के लिए उत्सुक हो उठे। गहन सम्भोग के परिश्रम और प्रभाव से हम सब पर पसीने से लतपथ थे। 

*********************************************** 

कुछ एक फुसफुसाने के बाद एक बार फिर से पूर्णरूप से सचेत ऋतु मौसी को घेर कर सुरेश चाचा ने अपने छोटी साली को आदेश दिया, "चलिए साली साहिबा। अच्छी रंडी की तरह गांड चाटिये। आप की और आगे की चुदाई इस पर ही निर्भर करती है। " 

सारे छहों पुरुष एक सोफे पर अपनी टांगें ऊपर कर तैयार हो गये। ऋतु मौसी ने सिसक कर पहले अपने नन्हे भांजे की गोरी गुलाबी गुदा के छल्ले को अपनी से चाटने लगीं। उन्होंने संजू के चिकने चूतड़ों को और भी खोल कर उसकी मलाशय के तंग संकरे द्वार को चूम कर अपने जीभ से उसे खोलने लगीं। 

ऋतु मौसी ने प्यार से दिल लगा कर संजू की गांड के नन्हे संकरे छिद्र को आखिर कायल कर राजी कर लिया और संजू का मलाशय द्वार होले-होले खुल गया। ऋतु मौसी ने गहरी सांस ले कर संजू के गुदा के अंदर की सुगंध से अपनी घ्राण इंद्री को लिया। 

उनकी जीभ की नोक सन्जू की गांड में प्रविष्ट हो गयी। संजू की सिसकी ने उसकी प्रसन्नता को उजागर कर दिया। ऋतु मौसी ने अपने प्यारे भांजे की गांड को अपने जीभ से चोदा और उसके गोरे चिकने अंडकोष को भी चूस कर उसे खुश कर दिया। 

ऋतु मौसी ने अब गंगा बाबा के बालों से भरे चूतड़ों के बीच अपना मुंह दबा दिया। गंगा बाबा के चूतड़ों की दरार में उनके चोदने की मेहनत के पसीने की सुगंध ने वास्तव में ऋतु मौसी को पागल कर दिया। उन्होंने चटकारे ले कर ज़ोर से सुड़कने की आवाज़ों के साथ गंगा बाबा की गांड की दरार को चूम चाट कर अपने थूक से भिगो कर बिलकुल साफ़ कर दिया। उन्होंने पहली की तरह गंगा बाबा की गांड को प्यार से अपनी जीभ से कुरेद कुरेद कर दिया। उनकी विजयी जीभ की नोक गंगा बाबा के मलाशय की सुरंग में दाखिल हो गयी। 

ऋतु मौसी ने गहरी सांस भर कर गंगा बाबा की गांड की मेहक का आनंद लेते हुए उनकी गुदा का अपनी गीली गरम जीभ से मंथन करना प्रारम्भ कर दिया। ऋतु मौसी के कोमल हाथ गंगा बाबा के भारी विशाल से ढके अंडकोषों को सेहला कर उनके गुदा-चूषण के आनंद को और भी परवान चढ़ा रहे थे। 

ऋतु मौसी ने गंगा बाबा की गांड का रसास्वादन दिल भर कर किया और उन्हें गुदा-चूषण के आनंद से अभिभूत करने के बाद वो अपने पिता के विशाल चूतड़ों के बीच फड़कती गांड की और अपना ध्यान केंद्रित करने को उत्सुक हो गयीं। 

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ऋतु मौसी ने अपने पिताजी की आँख झपकाती मलाशय-छिद्र की आवभगत उतने ही प्यार और लगन के साथ की। उन्होंने नानू की गांड की गहराइयों को अपनी जिज्ञासु जिव्ह्या से कुरेद कर उनके मलाशय के तीखे, कसैले मीठे रस का आनंद अविरत अतिलोभी पिपासा से उठाया। ऋतु मौसी ने बारी-बारी से बाकी बची गांड भी लालच भरे प्यार और लालसा से कर सब मर्दों का मन हर लिया 

राज भैया बोले, "डैडी इस सस्ती रंडी ने बड़ी लगन से। क्या विचार है आप सबका इसे और चोदे या नहीं ?" 

ऋतु मौसी जो अब कामाग्नि से जल रहीं थीं उठीं, "मुझे आपके लंड चाहियें। मुझे अब और नहीं तड़पाइये। " 

बड़े मामा ने नानू और गंगा बाबा को उकसाया ,"भाई मैं तो राजू से इत्तफ़ाक़ हूँ। इस रंडी ने और चुदाई का हक़ जीत लिया है। " 
 
नानू ने वासना के ज्वर से कांपती अपनी बेटी को गोद में उठा लिया। ऋतु मौसी ने अपनी गुदाज़ बाहें पिता के गले के इर्द-गिर्द फैंक कर अपनी जांघों से उनकी कमर जकड़ कर उनसे लिपट गयीं। 
राज मौसा ने बिना कोई क्षण खोये, जैसे ही उनके पिता का लंड उनकी बहन की चूत में जड़ तक समा गया, उन्होंने अपने लंड के पिता समान मोटे सुपाड़े को अपनी बहन की गांड के नन्हे छेद पर दबा दिया। नानू ने राज मौसा को अपना सुपाड़ा ऋतु मौसी की गांड में डालने का मौका दिया। फिर दोनों लम्बे ऊंचे मर्दों ने ऋतू मौसी को निरीह चिड़िया की तरह मसल कर ऊंचा उठाया और फिर नीचे अपने वज़न से गिरने दिया। 

दो वृहत मोटे लंड एक साथ एक लम्बे जानलेवा ठेल से ऋतू मौसी की और गांड में रेल के इंजन के पिस्टन की ताक़तभरी रफ़्तार से जड़ तक ठुंसगए। दो मोटे लंडों के निर्मम आक्रमण ने ऋतु मौसी को मीठी पीड़ा भरे आनंद से अभिभूत कर दिया। 

ऋतु मौसी की ऊंची सिस्कारियां उनकी घुटी-घुटी चीखों में मिलकर वासना के संगीत का वाद यंत्र बजाने लगीं। राज मौसा और मनोहर नाना ने ऋतु मौसी को दो बार झड़ने में लम्बी देर नहीं लगाई। उन्होंने कांपती सिसकती ऋतु मौसी को बड़े मामा और गंगा बाबा के नादीदे उन्नत मोटे लंडों के प्रहार के लिए भेंट कर दिया। 

ऋतू मौसी की सिस्कारियां जो उनके रति -निष्पति के आभार से मंद हो उठीं थीं बड़े मामा और गंगा बाबा के मोटे लंडों के उनकी चूत और गांड के ऊपर निर्दयी आक्रमण से फिर चलीं। 

दोनों लंड बिजली की रफ़्तार से ऋतू मौसी की गांड और चूत का लतमर्दन करने लगे। ऋतू मौसी का देवी सामान सुंदर चेहरा वासना की अग्नि से लाल हो गया था। उनकी सांस अटक-अटक कर आ रही थी। उनके सिस्कारियां कभी-कभी वासना के अतिरेक से भद्र महिला की शोभा से भिन्न कामुकता की कराहटों से गूँज जाती। 

हॉल में हज़ारों साल पुराना सम्भोग नग्न नृत्य के संगीत से गूँज उठा। वासना में लिप्त नारी की सिकारियां और उसके गुदाज़ शरीर के लतमर्दन में व्यस्त पुरुषों की आदिमानव सामान गुरगुराहट हम सबके कानों में मीठे संगीत के स्वर के सामान प्रतीत हो रहे थे। 

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हम चारों की कामाग्नि भी प्रज्ज्वलित हो गयी थी। नम्रता चाची ने इस बार मुझे घोड़ी की तरह निहार कर पीछे से मेरी तंग रेशमी गांड में अपना लम्बा मोटा नकली रबड़ का लंड दो भीषण धक्कों से ठूंस कर मेरी सिसकियों की अपेक्षा कर मेरी हिलते डोलते उरोज़ों को मसलने लगीं। 

जमुना दीदी ने मीनू के नन्हे शरीर को मेरी तरह घोड़ी बना कर उसकी दर्दीली चूत में डिल्डो उसके बिलबिलाने के बावज़ूद पूरा का पूरा ठूंस कर उसे मर्दों की तरह चोदने लगीं। 

हम चारों की सिस्कारियां ऋतु मौसी की सिस्कारियों से स्वर मिला कर हॉल में कामोन्माद के संगीत को बलवान चढ़ाने लगीं। 

ऋतु मौसी की चुदाई तुकबंदी की रीति से हो रही थी। दो मर्द जब झड़ने के निकट पहुँचते तो उन्हें दो और लंडों को सौंप कर खुद को शांत कर लेते थे। पर ऋतु मौसी के चरम-आनंद अविरत उन्हें समुन्द्र में तैरते वनस्पति के सामान तट पर पटक रहे थे। दो घंटों तक ऋतू मौसी की दोनों सुरंगों की चुदाई की भीषणता देखते ही बनती थी। 

नम्रता चाची और जमुना दीदी भी मेरी और मीनू की अविरत ताबड़तोड़ चुदाई करने की साथ-साथ बार-बार झड़ने की थकान से थोड़ी शिथिल हो चलीं थीं। मीनू और मैं तो थक कर फर्श पर ढलक गए। 

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