Hindi Kamukta Kahani हिन्दी सेक्सी कहानियाँ - Page 2 - SexBaba
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Hindi Kamukta Kahani हिन्दी सेक्सी कहानियाँ

मुझे दीदी ना कहो


मैं दिन को घर में अकेली होती हूँ। बस घर का काम करती रहती हूँ, मेरा दिल तो यूँ पाक साफ़ रहता है, मेरे दिल में भी कोई बुरे विचार नहीं आते हैं। मेरे पति प्रातः नौ बजे कर्यालय चले जाते हैं फिर संध्या को छः बजे तक लौटते हैं। स्वभाव से मैं बहुत डरपोक और शर्मीली हूँ, थोड़ी थोड़ी बात पर घबरा जाती हूँ।
मेरे पड़ोस में रहने वाला लड़का आलोक अक्सर मुझे घूरता रहता था। यूँ तो वो मुझसे काफ़ी छोटा था। कोई 18-19 साल का रहा होगा और मैं 25 साल कि भरपूर जवान स्त्री थी। कभी कभी मैं उसे देख कर सशंकित हो उठती थी कि यह मुझे ऐसे क्यूँ घूरता रहता है। इसका असर यह हुआ कि मैं भी कभी कभी उसे यहाँ-वहाँ से झांक कर देखने लगी थी कि वो अब क्या कर रहा है। पर हाँ, उसकी जवानी मुझे अपनी तरफ़ खींचती अवश्य थी। आखिर एक मर्द में और एक औरत में आकर्षण तो स्वाभाविक है ना। फिर अगर वो मर्द सुन्दर, कम उम्र का हो तो आकर्षण और ही बढ़ जाता है।
एक दिन आलोक दिन को मेरे घर ही आ धमका। मैं उसे देख कर नर्वस सी हो गई, दिल धड़क गया। पर उसके मृदु बोलों पर सामान्य हो गई। वो एक सुलझा हुआ लड़का था, उसमें लड़कियों से बात करने की तमीज थी।
वो एक पैकेट लेकर आया था, उसने बताया कि मेरे पति ने वो पैकेट भेजा था। मैंने तुरन्त मोबाईल से पति को पूछा तो उन्होंने बताया कि उस पैकेट में उनकी कुछ पुस्तकें हैं, आलोक एक बहुत भला लड़का है, उसे जलपान कराए बिना मत भेजना।
मैंने आलोक को बैठक में बुला लिया और उसे चाय भी पिलाई। वो एक खुश मिज़ाज़ लड़का था, हंसमुख था और सबसे अच्छी बात यह थी उसमें कि वो बहुत सुन्दर भी था। उसकी सदैव चेहरे पर विराजती मुस्कान मुझे भा गई थी। मुझे तो आरम्भ से ही उसमें आकर्षण नजर आता था। मेरे खुशनुमा व्यवहार के कारण धीरे धीरे वो मेरे घर आने जाने लगा। कुछ ही दिनों में वो मेरा अच्छा दोस्त बन गया था।
अब मुझे कोई काम होता तो वो अपनी बाईक पर बाज़ार भी ले जाता था। वो मुझे कामिनी दीदी कहता था। आलोक की नजर अक्सर मेरी चूचियों पर रहती थी या वो मेरे सुडौल चूतड़ों की बाटियों को घूरता रहता था।
आप बाटियाँ समझते हैं ना ... ? अरे वही गाण्ड के सुन्दर सुडौल उभरे हुए दो गोले ...।
मुझे पता था कि मैं जब मेरी पीठ उसकी ओर होगी तो उसकी निगाहें पीछे मेरे चूतड़ों का साड़ी के अन्दर तक जायजा ले रही होंगी और सामने से मेरे झुकते ही उसकी नजर वर्जित क्षेत्र ब्लाऊज के अन्दर सीने के उभारो को टटोल रही होती होंगी। ये सब हरकतें मेरे शरीर में सिरहन सी पैदा कर देती थी। कभी कभी उसका लण्ड भी पैंट के भीतर हल्का सा उठा हुआ मुझे अपनी ओर आकर्षित कर लेता था।
शायद उसकी यही अदायें मुझे भाने लगी थी इसलिये जब भी वो मेरे घर आता तो मेरा मन उल्लासित हो उठता था। मुझे तो लगता था कि वो रोज आये और फिर वापस नहीं जाये। लालसा शायद यह थी कि शायद वो कभी मेरे पर मेहबान हो जाये और अपना लण्ड मुझे सौंप दे।
छीः छीः ! मैं यह क्या सोचने लगी?
या फिर वो ऐसा कुछ कर दे कि दिल आनन्द की हिलौरें लेने लगे।
एक दिन वो ऐसे समय में आ गया जब मैं नहा रही थी। जब मैं नहा कर बाहर आई तो मैंने देखा आलोक मुझे ऊपर से नीचे तक निहार रहा था। मैं शरमा गई और भाग कर अपने शयनकक्ष में आ गई।
"कामिनी दीदी, आप तो गजब की सुन्दर हैं !" मुझे अपने पीछे से ही आवाज आई तो मैं सिहर उठी।
अरे! यह तो बेड रूम में ही आ गया? फिर भी उसके मुख से ये शब्द सुन कर मैं और शरमा गई पर अपनी तारीफ़ मुझे अच्छी लगी।
"तुम उधर जाओ ना, मैं अभी आती हूँ !" मैंने सिर झुका कर शरमाते हुये कहा।
"दीदी, ऐसा गजब का फ़िगर? तुम्हें तो मिस इन्डिया होना चाहिये था !" वो बोलता ही चला गया।
उसके मुख से अपनी तारीफ़ सुन कर मैं भोली सी लड़की इतरा उठी।
"आपने ऐसा क्या देख लिया मुझ में भैया?" मैं कुछ ऐसी ही और बातें सुनने के लिये मचल उठी।
"गजब के उभार, सुडौल तन, पीछे की मस्त पहाड़ियाँ ... किसी को भी पागल कर देंगी !"
मेरा दिल धड़कने लगा। मेरे मन में उसके लिये प्यार भी उमड़ आया। मैं तो स्वभाव से शर्मीली थी, शर्म के मारे जैसे जमीन में गड़ी जा रही थी। पर अपनी तारीफ़ सुनना मेरी कमजोरी थी।
"भैया... उधर बैठक में जाओ ना ... मुझे शरम आ रही है..." मैंने शर्म से पानी पानी होते हुये कहा।
वो मुझे निहारता हुआ वापस बैठक में आ गया। पर मेरे दिल को जैसे धक्का लगा, अरे ! वो तो मेरी बात बहुत जल्दी ही मान गया ? मान गया ... बेकार ही कहा ... अब मेरी सुन्दरता की तारीफ़ कौन करेगा? मैंने हल्के फ़ुल्के कपड़े पहने और जान कर ब्रा और चड्डी नहीं पहनी, ताकि उसे मेरी ऊँचाइयाँ और स्पष्ट आ नजर आ सके और वो मेरी मस्त तारीफ़ करता ही जाये। बस एक सफ़ेद पाजामा और सफ़ेद टॉप पहन लिया, ताकि उसे पता चले कि मेरे उरोज बिना ब्रा के ही कैसे सुडौल और उभरे हुये हैं और मेरे पीछे का नक्शा उभर कर बिना चड्डी के कितना मस्त लगता है। पर मुझे नहीं पता था कि मेरा यह जलवा उस पर कहर बन कर टूट पड़ेगा।
मैं जैसे ही बैठक में आई, वो मुझे देखते ही खड़ा हो गया।
उफ़्फ़्फ़ !
यह क्या?
उसके साथ उसका लण्ड भी तन कर खड़ा हो गया था। मुझे एक क्षण में पता चल गया कि मैंने यह क्या कर दिया है? पर तब तक देर हो चुकी थी, वो मेरे पास आ गया था।
"दीदी, आह्ह्ह ये उभार, ये तो ईश्वर की महान कलाकृति हैं ..." उसके हाथ अनजाने में मेरे सीने पर चले गये और सहला कर उभारों का जायजा ले लिया। मेरे जिस्म में जैसे हजारों पावर के तड़ तड़ करके झटके लग गये। उसके स्पर्श से मानो मुझे नशा सा आ गया। मेरे गालों पर लालिमा छा गई, मेरी बड़ी बड़ी आँखें धीरे से नीचे झुक गई। तभी मैंने उसके हाथों को धीरे से थाम लिया और अपने गोल गोल उरोजों से हटाने लगी।
"मुझे छोड़ दो आलोक, मैं मर जाऊंगी... मेरी जान निकल जायेगी ... आह्ह !"
"आपकी सुन्दरता मुझे आपकी ओर खींच रही है, बस एक बार चूमने दो !" और उसके अधर मेरे गालों से चिपक गये। मुझे अहसास हुआ कि मेरे गुलाबी गाल जैसे फ़ट जायेंगे ... तभी उसकी बाहें मेरी कमर से लिपट गई। उसके अधर मेरे अधरों से मिल गये। सिर्फ़ मिल ही नहीं गये जोर से चिपक भी गये।
मुझे जैसे होश ही नहीं रहा। यह कैसी सिरहन थी, यह कैसा नशा था, तन में जैसे आग सी लग गई थी।
उसका नीचे से लण्ड तन कर मेरी योनि को छू कर अपनी खुशी का अहसास दिला रहा था। मुझे लगा कि मेरी योनि भी लण्ड का स्पर्श पा कर खिल उठी थी। इन दो प्रेमियों को मिलने से भला कोई रोक पाया है क्या ?
मेरा पजामा नीचे से गीला हो उठा था। दिल में एक प्यारी सी हूक उठ गई। तभी जैसे मैं हकीकत की दुनिया में लौटने लगी। मुझे अहसास हुआ कि हाय रे ! मुझे यह क्या हो गया था? मैंने अपने जिस्म को उसे कैसे छूने दिया... ।
"आलोक, तुम मुझे बहका रहे हो ..." मैंने उसे तिरछी मुस्कान भरी निगाह से देखा। वो भी जैसे होश में आ गया। उसने एक बार अपनी और मेरी हालत देखी ... और उसकी बाहों का कमर में से दबाव हट गया। पर मैं जान कर के उससे चिपकी ही रही। आनन्द जो आ रहा था।
"ओह ! नहीं दीदी, मैं खुद बहक गया था ... मैंने आपके अंग अनजाने में छू लिये ... सॉरी !" उसकी नजरें अब शर्म से नीचे होने लगी थी।
"आलोक, यह तो पाप है, पति के होते हुये कोई दूसरा मुझे छुए !" उसके भोलेपन पर मैंने इतराते हुये कहा।
अन्दर ही अन्दर मेरा मन कुछ करने को तड़पने लग गया था। शायद मुझे एक मर्द की... ना ना ... आलोक की आवश्यकता थी ... जो मुझे आनन्दित कर सके, मस्त कर सके। इतना खुल जाने के बाद मैं आलोक को छोड़ देना नहीं चाह रही थी।
"पर दीदी, यह तो बस हो गया, आपको देख कर मन काबू में नहीं रहा... मुझे माफ़ करना !" कुछ हकलाते हुये वो बोला।
"अच्छा, अब तुम जाओ ..." मेरा मन तो नहीं कर रहा था कि वो जाये, पर शराफ़त का जामा पहनना एक तकाजा था कि वो मुझे कही चालू, छिनाल या रण्डी ना समझ ले। मैं मुड़ कर अपने शयनकक्ष में आ गई। मुझे घोर निराशा हुई कि वो मेरे पीछे पीछे नहीं आया।
फिर जैसे एक झटके में सब कुछ हो गया। वो वास्तव में कमरे में आ गया था और मेरी तरफ़ बढ़ने लगा और वास्तव में जैसा होना चाहिये था वैसा होने लगा। मुझे अपनी जवानी पर गर्व हो उठा कि मैंने एक जवां मर्द को मजबूर कर दिया वो मुझे छोड़ ना सके। मैं धीरे धीरे पीछे हटती गई और अपने बिस्तर से टकरा गई, वो मेरे समीप आ गया।
"दीदी, आज मैं आपको नहीं छोड़ूंगा ... मेरी हालत आपने ही ऐसी कर दी है..." आलोक की आँखों में एक नशा सा था।
"नहीं आलोक, प्लीज दूर रहो ... मैं एक पतिव्रता नारी हूँ ... मुझे पति के अलावा किसी ने नहीं छुआ है।" मन में मैं खुश होती हुई उसे ऐसा करने मजबूर करते हुये उसे लुभाने लगी। पर मुझे पता था कि अब मेरी चुदाई बस होने ही वाली है। बस मेरे नखरे देख कर कहीं यह चला ना जाये। उसकी वासना भरी गुलाबी आँखें यह बता रही थी कि वो अब मुझे चोदे बिना कहीं नहीं जाने वाला है।
उसने अपनी बाहें मेरी कमर में डाल कर मुझे दबा लिया और अपने अधरों से मेरे अधर दबा लिये। मैं जान करके घू घू करती रही। उसने मेरे होंठ काट लिये और अधरपान करने लगा। एक क्षण को तो
मैं सुध बुध भूल गई और उसका साथ देने लगी।
उसके हाथ मेरे ब्लाऊज को खोलने में लगे थे ... मैंने अपने होंठ झटक दिये।
"यह क्या कर रहे हो ...? प्लीज ! बस अब बहुत हो गया ... अब जाओ तुम !"
 
उसने अपनी बाहें मेरी कमर में डाल कर मुझे दबा लिया और अपने अधरों से मेरे अधर दबा लिये। मैं जान करके घू घू करती रही। उसने मेरे होंठ काट लिये और अधरपान करने लगा। एक क्षण को तो मैं सुध बुध भूल गई और उसका साथ देने लगी।
उसके हाथ मेरे ब्लाऊज को खोलने में लगे थे ... मैंने अपने होंठ झटक दिये।
"यह क्या कर रहे हो ...? प्लीज ! बस अब बहुत हो गया ... अब जाओ तुम !" मेरे नखरे और बढ़ने लगे।
पर मेरे दोनों कबूतर उसकी गिरफ़्त में थे। वो उसे सहला सहला कर दबा रहा था। मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी। मेरे दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी। बस जुबान पर इन्कार था, मैंने उसके हाथ अपने नर्म कबूतरों से हटाने की कोशिश नहीं की। उसने मेरा टॉप ऊपर खींच दिया, मैं ऊपर से नंगी हो चुकी थी। मेरे सुडौल स्तन तन कर बाहर उभर आये। उनमें कठोरता बढ़ती जा रही थी। मेरे चुचूक सीधे होकर कड़े हो गये थे। मैं अपने हाथों से अपना तन छिपाने की कोशिश करने लगी।
तभी उसने बेशर्म होकर अपनी पैंट उतार दी और साथ ही अपनी चड्डी भी। यह मेरे मादक जोबन की जीत थी। उसका लण्ड 120 डिग्री पर तना हुआ था और उसके ऊपर उसके पेट को छू रहा था। बेताबी का मस्त आलम था। उसका लण्ड लम्बा था पर टेढा था। मेरा मन हुआ कि उसे अपने मुख में दबा लूँ और चुसक चुसक कर उसका माल निकाल दूँ। उसने एक झटके में मुझे खींच कर मेरी पीठ अपने से चिपका ली। मेरे चूतड़ों के मध्य में पजामे के ऊपर से ही लण्ड घुसाने लगा। आह्ह ! कैसा मधुर स्पर्श था ... घुसा दे मेरे राजा जी ... मैंने सामने से अपनी चूचियाँ और उभार दी। उसका कड़क लण्ड गाण्ड में घुस कर अपनी मौजूदगी दर्शा रहा था।
"वो क्या है? ... उसमें क्या तेल है ...?"
"हाँ है ... पर ये ऐसे क्या घुसाये जा रहा है ... ?"
उसने मेरी गर्दन पकड़ी और मुझे बिस्तर पर उल्टा लेटा दिया। एक हाथ बढ़ा कर उसने तेल की शीशी उठा ली। एक ही झटके में मेरा पाजामा उसने उतार दिया,"बस अब ऐसे ही पड़े रहना ... नहीं तो ध्यान रहे मेरे पास चाकू है ... पूरा घुसेड़ दूँगा।"
मैं उसकी बात से सन्न रह गई। यह क्या ... उसने मेरे चूतड़ों को खींच कर खोल दिया और तेल मेरे गाण्ड के फ़ूल पर लगाने लगा। उसने धीरे से अंगुली दबाई और अन्दर सरका दी। वो बार बार तेल लेकर मेरी गाण्ड के छेद में अपनी अंगुली घुमा रहा था। मेरे पति ने तो ऐसा कभी नहीं किया था। उफ़्फ़्फ़्... कितना मजा आ रहा था।
"आलोक, देख चाकू मत घुसेड़ना, लग जायेगी ..." मैंने मस्ती में, पर सशंकित होकर कहा।
पर उसने मेरी एक ना सुनी और दो तकिये नीचे रख दिये। मेरी टांगें खोल कर मेरे छेद को ऊपर उठा दिया और अपना सुपाड़ा उसमें दबा दिया।
"देख चाकू गया ना अन्दर ..."
"आह, यह तो तुम्हारा वो है, चाकू थोड़े ही है?"
"तो तुम क्या समझी थी सचमुच का चाकू है मेरे पास ... देखो यह भी तो अन्दर घुस गया ना ?"
उसका लण्ड मेरी गाण्ड में उतर गया था।
"देख भैया, अब बहुत हो गया ना ... तूने मुझे नहीं छोड़ा तो मैं चिल्लाऊँगी ..." मैंने अब जानबूझ कर उसे छेड़ा।
पर उसने अब धक्के लगाने शुरू कर दिये थे, लण्ड अन्दर बाहर आ जा रहा था, उसका लण्ड मेरी चूत को भी गुदगुदा रहा था। मेरी चूत की मांसपेशियाँ भी सम्भोग के तैयार हो कर अन्दर से खिंच कर कड़ी हो गई थी।
"नहीं दीदी चिल्लाना नहीं ... नहीं तो मर जाऊँगा ..." वो जल्दी जल्दी मेरी गाण्ड चोदने लगा पर मैंने अपने नखरे जारी रखे,"तो फिर हट जा ... मेरे ऊपर से... आह्ह ... मर गई मैं तो !" मैंने उसे बड़ी मस्त नजर से पीछे मुड़ कर देखा।
"बस हो गया दीदी ... दो मिनट और ..." वो हांफ़ता हुआ बोला।
"आह्ह ... हट ना ... क्या भीतर ही अपना माल निकाल देगा?" मुझे अब चुदने की लग रही थी। चूत बहुत ही गीली हो गई थी और पानी भी टपकाने लगी। इस बार वो सच में डर गया और रुक गया। मुझे नहीं मालूम था कि गाण्ड मारते मारते सच में हट जायेगा।
"अच्छा दीदी ... पर किसी को बताना नहीं..." वो हांफ़ते हुये बोला।
अरे यह क्या ... यह तो सच में पागल है ... यह तो डर गया... ओह... कैसा आशिक है ये?
"अच्छा, चल पूरा कर ले ... अब नहीं चिल्लाऊंगी..." मैंने उसे नरमाई से कहा। मैंने बात बनाने की कोशिश की- साला ! हरामजादा ... भला ऐसे भी कोई चोदना छोड़ देता है ... मेरी सारी मस्ती रह जाती ना !
उसने खुशी से उत्साहित होकर फिर से लण्ड पूरा घुसा दिया और चोदने लगा। आनन्द के मारे मेरी चूत से पानी और ही निकलने लगा। उसमे भी जोर की खुजली होने लगी ... अचानक वो चिल्ला उठा और उसका लण्ड पूरा तले तक घुस पड़ा और उसका वीर्य निकलने को होने लगा। उसने अपना लण्ड बाहर खींच लिया और अपने मुठ में भर लिया। फिर एक जोर से पिचकारी निकाल दी, उसका पूरा वीर्य मेरी पीठ पर फ़ैलता जा रहा था। कुछ ही समय में वो पूरा झड़ चुका था।
"दीदी, थेन्क्स, और सॉरी भी ... मैंने ये सब कर दिया ..." उसकी नजरें झुकी हुई थी।
पर अब मेरा क्या होगा ? मेरी चूत में तो साले ने आग भर दी थी। वो तो जाने को होने लगा, मैं तड़प सी उठी।
"रुक जाओ आलोक ... दूध पी कर जाना !" मैंने उसे रोका। वो कपड़े पहन कर वही बैठ गया। मैं अन्दर से दूध गरम करके ले आई। उसने दूध पी लिया और जाने लगा।
"अभी यहीं बिस्तर पर लेट जाओ, थोड़ा आराम कर लो ... फिर चले जाना !" मैंने उसे उलझाये रखने की कोशिश की। मैंने उसे वही लेटा दिया। उसकी नजरें शरम से झुकी हुई थी। इसके विपरीत मैं वासना की आग में जली जा रही थी। ऐसे कैसे मुझे छोड़ कर चला जायेगा। मेरी पनियाती चूत का क्या होगा।
"दीदी अब कपड़े तो पहन लूँ ... ऐसे तो शरम आ रही है।" वो बनियान पहनता हुआ बोला।
"क्यूँ भैया ... मेरी मारते समय शरम नहीं आई ?... मेरी तो बजा कर रख दी..." मैंने अपनी आँखें तरेरी।
"दीदी, ऐसा मत बोलो ... वो तो बस हो गया !" वो और भी शरमा गया।
"और अब ... ये फिर से खड़ा हो रहा है तो अब क्या करोगे..." उसका लण्ड एक बार फिर से मेरे यौवन को देख कर पुलकित होने लगा था।
"ओह, नहीं दीदी इस बार नहीं होने दूंगा..." उसने अपना लण्ड दबा लिया पर वो तो दूने जोर से अकड़ गया।
"भैया, मेरी सुनो ... तुम कहो तो मैं इसकी अकड़ दो मिनट में निकाल दूंगी..." मैंने उसे आँख मारते हुये कहा।
"वो कैसे भला ...?" उसने प्रश्नवाचक निगाहों से मुझे देखा।
"वो ऐसे ... हाथ तो हटाओ..." मैं मुस्करा उठी।
मैंने बड़े ही प्यार से उसे थाम लिया, उसकी चमड़ी हटा कर सुपाड़ा खोल दिया। उसकी गर्दन पकड़ ली। मैंने झुक कर सुपाड़े को अपने मुख में भर लिया और उसकी गर्दन दबाने लगी। अब आलोक की बारी थी चिल्लाने की। बीच बीच में उसकी गोलियों को भी खींच खींच कर दबा रही थी। उसने चादर को अपनी मुठ्ठी में भर कर कस लिया था और अपने दांत भीच कर कमर को उछालने लगा था।
"दीदी, यह क्या कर रही हो ...?" उसका सुपाड़ा मेरे मुख में दब रहा था, मैं दांतों से उसे काट रही थी। उसके लण्ड के मोटे डण्डे को जोर से झटक झटक कर मुठ मार रही थी।
"भैया , यह तो मानता ही नहीं है ... एक इलाज और है मेरे पास..." मैंने उसके तड़पते हुये लण्ड को और मसलते हुये कहा। मैं उछल कर उसके लण्ड के पास बैठ गई। उसका तगड़ा लण्ड जो कि टेढा खड़ा हुआ था, उसे पकड़ लिया और उसे चूत के निशाने पर ले लिया। उसका लम्बा टेढा लण्ड बहुत खूबसूरत था। जैसे ही योनि ने सुपाड़े का स्पर्श पाया वो लपलपा उठी ... मचल उठी, उसका साथी जो जाने कब से उसकी राह देख रहा था ... प्यार से सुपाड़े को अपनी गोद में छुपा लिया और उसकी एक इन्च के कटे हुये अधर में से दो बूंद बाहर चू पड़ी।
आनन्द भरा मिलन था। योनि जैसे अपने प्रीतम को कस के अपने में समाहित करना चाह रही थी, उसे अन्दर ही अन्दर समाती जा रही थी यहा तक कि पूरा ही समेट लिया। आलोक ने अपने चूतड़ों को मेरी चूत की तरफ़ जोर लगा कर उठा दिया।
... मेरी चूत लण्ड को पूरी लील चुकी थी। दोनों ही अब खेल रहे थे। लण्ड कभी बाहर आता तो चूत उसे फिर से अन्दर खींच लेती। यह मधुर लण्ड चूत का घर्षण तेज हो उठा। मैं उत्तेजना से सरोबार अपनी चूत लण्ड पर जोर जोर पटकने लगी।
दोनो मस्त हो कर चीखने-चिल्लाने लगे थे। मस्ती का भरपूर आलम था। मेरी लटकती हुई चूचियाँ उसके कठोर मर्दाने हाथों में मचली जा रही थी, मसली जा रही थी, लाल सुर्ख हो उठी थी। चुचूक जैसे कड़कने लगे थे। उन्हें तो आलोक ने खींच खींच कर जैसे तड़का दिये थे। मैंने बालों को बार बार झटक कर उसके चेहरे पर मार रही थी। उसकी हाथ के एक अंगुली मेरी गाण्ड के छेद में गोल गोल घूम रही थी। जो मुझे और तेज उत्तेजना से भर रही थी। मैं आलोक पर लेटी अपनी कमर से उसके लण्ड को दबाये जा रही थी। उसे चोदे जा रही थी। हाय, शानदार चुदाई हो रही थी।
तभी मैंने प्यासी निगाहों से आलोक को देखा और उसके लण्ड पर पूरा जोर लगा दिया। ... और आह्ह्ह ... मेरा पानी निकल पड़ा ... मैं झड़ने लगी। झड़ने का सुहाना अहसास ... उसका लण्ड तना हुआ मुझे झड़ने में सहायता कर रहा था। उसका कड़ापन मुझे गुदगुदी के साथ सन्तुष्टि की ओर ले जा रहा था। मैं शनैः शनैः ढीली पड़ती जा रही थी। उस पर अपना भार बढ़ाती जा रही थी। उसके लण्ड अब तेजी से नहीं चल रहा था। मैंने धीरे से अपनी चूत ऊँची करके लण्ड को बाहर निकाल दिया।
"आलोक, तेरे इस अकड़ू ने तो मेरी ही अकड़ निकाल दी..."
फिर मैंने उसके लण्ड की एक बार फिर से गर्दन पकड़ ली, उसके सुपाड़े की जैसे नसें तन गई। जैसे उसे फ़ांसी देने वाली थी। उसे फिर एक बार अपने मुख के हवाले किया और सुपाड़े की जैसे शामत आ गई। मेरे हाथ उसे घुमा घुमा कर मुठ मारने लगे। सुपाड़े को दांतों से कुचल कुचल कर उसे लाल कर दिया। डण्डा बहुत ही कड़क लोहे जैसा हो चुका था। आलोक की आनन्द के मारे जैसे जान निकली जा रही थी। तभी उसके लौड़े की सारी अकड़ निकल गई। उसका रस निकल पड़ा ... मैंने इस बार वीर्य का जायजा पहली बार लिया। उसका चिकना रस रह रह कर मेरे मुख में भरता रहा। मैं उसे स्वाद ले ले कर पीती रही। लन्ड को निचोड़ निचोड़ कर सारा रस निकाल लिया और उसे पूरा साफ़ कर दिया।
"देखा निकल गई ना अकड़......... साला बहुत इतरा रहा था ..." मैंने तमक कर कहा।
"दीदी, आप तो मना कर रही थी और फिर ... दो बार चुद ली?" उसने प्रश्नवाचक नजरों से मुझे देखा।
"क्या भैया ... लण्ड की अकड़ भी तो निकालनी थी ना ... घुस गई ना सारी अकड़ मेरी चूत में !"
"दीदी आपने तो लण्ड की नहीं मेरी अकड़ भी निकाल दी ... बस अब मैं जाऊँ ...?"
"अब कभी अकड़ निकालनी हो तो अपनी दीदी को जरूर बताना ... अभी और अकड़ निकालनी है क्या ?"
"ओह दीदी ... ऐसा मत कहो ... उफ़्फ़्फ़ ये तो फिर अकड़ गया ..." आलोक अपने लण्ड को दबा कर बैठाता हुआ बोला। तो अब देर किस बात की थी, हम दोनों इस बार शरम छोड़ कर फिर से भिड़ गये। भैया और दीदी के रिश्तों के चीथड़े उड़ने लगे ... मेरा कहना था कि वो तो मेरा मात्र एक पड़ोसी था ना कि कोई भैया। अरे कोई भी मुझे क्या ऐसे ही दीदी कहने लग जायेगा, आप ही कहें, तो क्या मैं उसे भैया मान लूँ? फिर तो चुद ली मैं ? ये साले दीदी बना कर घर तक पहुँच तो जाते है और अन्त होता है इस बेचारी दीदी की चुदाई से। सभी अगर मुझे दीदी कहेंगे तो फिर मुझे चोदेगा कौन ? क्या मेरा सचमुच का भैया ... !!! फिर वो कहेंगे ना कि 'सैंया मेरे राखी के बन्धन को निभाना ...'
 
बेचैन निगाहे
मेरी शादी हुए दो साल हो चुके हैं। मेरी पढ़ाई बीच में ही रुक गई थी। मेरे पति बहुत ही अच्छे हैं, वो मेरी हर इच्छा को ध्यान में रखते हैं। मेरी पढ़ाई की इच्छा के कारण मेरे पति ने मुझे कॉलेज में फिर से प्रवेश दिला दिया था। उन्हें मेरे वास्तविक इरादों का पता नहीं था कि इस बहाने मैं नए मित्र बनाना चाहती हूँ। मैं कॉलेज में एडमिशन लेकर बहुत खुश हूँ। मेरे पति बी.एच.ई.एल. में कार्य करते हैं। उन्हें कभी कभी उनके मुख्य कार्यालय में कार्य हेतु शहर भी बुला लिया जाता है। उन दिनों मुझे बहुत अकेलापन लगता है। कॉलेज जाने से मेरी पढ़ाई भी हो जाती है और समय भी अच्छा निकल जाता है। धीरे धीरे मैंने अपने कई पुरुष मित्र भी बना लिए हैं।
कई बार मेरे मन में भी आता था कि अन्य लड़कियों की तरह मैं भी उन मित्रों लड़को के साथ मस्ती करूँ, पर मैं सोचती थी कि यह काम इतना आसान नहीं है। ऐसा काम बहुत सावधानी से करना पड़ता है, जरा सी चूक होने पर बदनामी हो जाती है। फिर क्या लड़के यूँ ही चक्कर में आ जाते है, हाँ, लड़के फ़ंस तो जाते ही है। छुप छुप के मिलना और कहीं एकान्त मिल गया तो पता नहीं लड़के क्या न कर गुजरें। उन्हें क्या ... हम तो चुद ही जायेंगी ना। आह !फिर भी जाने क्यूँ कुछ ऐसा वैसा करने को मन मचल ही उठता है, शायद नए लण्ड खाने के विचार से। लगता है जवानी में वो सब कुछ कर गुजरें जिसकी मन में तमन्ना हो। पराये मर्द से शरीर के गुप्त अंगों का मर्दन करवाना, पराये मर्द का लण्ड मसलना, मौका पाकर गाण्ड मरवाना, प्यासी चूत का अलग अलग लण्डों से चुदवाना ...। फिर मेरे मस्त उभारों का बेदर्दी से मर्दन करवाना ...
धत्त ! यह क्या सोचने लगी मैं? भला ऐसा कहीं होता है ? मैंने अपना सर झटका और पढ़ाई में मन लगाने की कोशिश करने लगी। पर एक बार चूत को लण्ड का चस्का लग जाए तो चूत बिना लण्ड लिए नहीं मानती है, वो भी पराये मर्दों के लिए तरसने लगती है, जैसे मैं ... अब आपको कैसे समझाऊँ, दिल है कि मानता ही नहीं है। यह तो आप सभी ही समझते हैं।
मेरी कक्षा में एक सुन्दर सा लड़का था, उसका नाम संजय था, जो हमेशा पढ़ाई में अव्वल आता था। मैंने मदद के लिए उससे दोस्ती कर ली थी। उससे मैं नोट्स भी लिया करती थी।
एक बार मैं संजय से नोट्स लेकर आई और उसे मैंने मेज़ पर रख दिए। भोजन वगैरह तैयार करके मैं पढ़ने बैठी। कॉपी के कुछ ही पन्ने उलटने के बाद मुझे उसमें एक पत्र मिला। उसे देखते ही मेरे शरीर में एक झुरझुरी सी चल गई। क्या प्रेम पत्र होगा... जी हाँ... संजय ने वो पत्र मुझे लिखा था। मेरा मन एक बार तो खुशी से भर गया।
जैसा मैंने सोचा था ... उसमें उसने अपने प्यार का इज़हार किया था। बहुत सी दिलकश बातें भी लिखी थी। मेरी सुन्दरता और मेरी सेक्सी अदाओं के बारे में खुल कर लिखा था। उसे पढ़ते समय मैं तो उसके ख्यालों में डूब गई। मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि कोई मुझसे प्यार करने लगेगा और यूँ पत्रों के द्वारा मुझे अपने दिल की बात कहेगा।
मेरे जिस्म में खलबली सी मचने लगी। चूत में मीठा सा रस निकल आया। फिर मुझे लगा कि मेरे दिल में यह आने लगा ... मैं तो शादीशुदा हूँ, पराये मर्द के बारे में भला कैसे सोच सकती हूँ। पर हे राम, इस चूत का क्या करूँ। वो पराया सा भी तो नहीं लग रहा था।
तभी अचानक घर की घण्टी बजी। बाहर देखा तो संजय था ... मेरा दिल धक से रह गया। यह क्या ... यह तो घर तक आ गया, पर उसके चेहरे पर हवाईयाँ उड़ रही थी।
"क्या हुआ संजय?" मैं भी उसके हाल देख कर बौखला गई।
"वो नोट्स कहाँ हैं शीला?" उसने उखड़ती आवाज में कहा।
"वो रखे हुए हैं ... क्यों क्या हो गया?"
वो जल्दी से अन्दर आ गया और कॉपी देखने लगा। जैसे ही उसकी नजर मेज़ पर रखे पत्र पर पड़ी ... वो कांप सा गया। उसने झट से उसे उठा लिया और अपनी जेब में रख लिया।
"शीलू, इसे देखा तो नहीं ना ... ?"
"हाँ देखा है ... क्यूँ, क्या हुआ ...? अच्छा लिखते हो !"
"सॉरी ... सॉरी ... शीलू, मेरा वो मतलब नहीं था, ये तो मैंने यूँ ही लिख दिया था।" उसका मुख रुआंसा सा हो गया था।
"इसमें सॉरी की क्या बात है ... तुम्हारे दिल में जो था... बस लिख दिया...। अच्छा लिखा था ... कोई मेरी इतनी तारीफ़ करे ... थैंकयू यार, मुझे तो बहुत मजा आया अपनी तारीफ़ पढ़कर !"
"सॉरी ... शीला !" उसे कुछ समझ में नहीं आया। वो सर झुका कर चला गया।
मैं उसके भोलेपन पर मुस्करा उठी। उसके दिल में मेरे लिए क्या भावना है मुझे पता चल गया था। रात भर बस मुझे संजय का ही ख्याल आता रहा। हाय राम, कितना कशिश भरा था संजय... काश ! वो मेरी बाहों में होता। मेरी चूत इस सोच से जाने कब गीली हो गई थी।
संजय ने मेरे स्तन दबा लिए और मेरे चूतड़ो में अपना लण्ड घुस दिया। मैं तड़प उठी। वो मुझसे चिपका जा रहा था, मुझे चुदने की बेताबी होने लगी।
'क्या कर रहे हो संजू ... जरा मस्ती से ... धीरे से...'
मैंने घूम कर उसे पकड़ लिया और बिस्तर पर गिरा दिया। उसका लण्ड मेरी चूत में घुस गया। मेरा शरीर ठण्ड से कांप उठा। मैंने उसके शरीर को और जोर से दबा लिया। मेरी नींद अचानक खुल गई। जाने कब मेरी आँख लग गई थी ... ठण्ड के मारे मैं रज़ाई खींच रही थी ... और एक मोहक सा सपना टूट गया। मैंने अपने कपड़े बदले और रज़ाई में घुस कर सो गई। सवेरे मेरे पति नाईट ड्यूटी करके आ चुके थे और वो चाय बना रहे थे। मैंने जल्दी से उठ कर बाकी काम पूरा किया और चाय के लिए बैठ गई।
कॉलेज में आज संजय मुझसे दूर-दूर भाग रहा था, पर कैन्टीन में मैंने उसे पकड़ ही लिया। उसकी झिझक मैंने दूर कर दी। मेरे दिल में उसके लिए प्रेम भाव उत्पन्न हो चुका था। वो मुझे अपना सा लगने लगा था। मेरे मन में उसके लिए भावनाएँ पैदा होने लगी थी।
"मैंने आप से माफ़ी तो मांग ली थी ना?" उसने मायूसी से सर झुकाए हुए कहा।
"सुनो संजय, तुम तो बहुत प्यारा लिखते हो, लो मैंने भी लिखा है, देखो अकेले में पढ़ना !" मैंने उसकी ओर देख कर शर्माते हुए कहा।
उसे मैंने एक कॉपी दी, और उठ कर चली आई। काऊन्टर पर पैसे दिए और घूम कर संजय को देखा। वो कॉपी में से मेरा पत्र निकाल कर अपनी जेब में रख रहा था। हम दोनों की दूर से ही नजरें मिली और मैं शर्मा गई।
उसमें मर्दानगी जाग गई ... और फिर एक मर्द की तरह वो उठा और काऊन्टर पर आकर उसने मेरे पैसे वापस लौटाए औए स्वयं सारे पैसे दिए। मैं सर झुकाए तेजी से कक्षा में चली आई। पूरा दिन मेरा दिल कक्षा में नहीं लगा, बस एक मीठी सी गुदगुदी दिल में उठती रही। जाने वो पत्र पढ़ कर क्या सोचेगा।
रात को मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई, मैं अनमनी सी हो उठी। हाय ... उसे मैंने रात को क्यों बुला लिया ? यह तो गलत है ना ! क्या मैं संजय पर मरने लगी हूँ? क्या यही प्यार है? हाय ! वो पत्र पढ़ कर क्या सोचेगा, क्या मुझे चरित्रहीन कहेगा? या मुझे भला बुरा कहेगा। जैसे जैसे उसके आने का समय नजदीक आता जा रहा था, मेरी दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी। मुझे लगा कि मैं पड़ोसी के यहाँ भाग जाऊँ, दरवाजा बन्द देख कर वह स्वतः ही चला जायेगा। बस ! मुझे यही समझ में आया और मैंने ताला लिया और चल दी।[
जैसे ही मैंने दरवाजा खोला तो दिल धक से रह गया। संजय सामने खड़ा था। मेरा दिल जैसे बैठने सा लगा।
"अरे मुझे बुला कर कहाँ जा रही हो?"
"क्... क... कहां भला... कही नहीं ... मैं तो ... मैं तो ..." मैं बदहवास सी हो उठी थी।
"ओ के, मैं कभी कभी आ जाऊँगा ... चलता हूँ !" मेरी चेहरे पर पड़ी लटों को उंगली से एक तरफ़ हटाते हुए बोला।
"अरे नहीं... आओ ना... वो बात यह है कि अभी घर में कोई नहीं है..." मैं हड़बड़ा सी गई। सच तो यह था कि मुझे पसीना छूटने लगा था।
"ओह्ह ... आपकी हालत कह रही है कि मुझे चला जाना चाहिए !"
मैंने उसे अन्दर लेकर जल्दी से दरवाजा बन्द कर दिया और दरवाजे पर पीठ लगा कर गहरी सांसें लेने लगी।
"देखो संजू, वो खत तो मैंने ऐसे ही लिख दिया था ... बुरा मत मानना..." मैंने सर झुका कर कहा।
उसका सर भी झुक गया। मैंने भी शर्म से घूम कर उसकी ओर अपनी पीठ कर ली।
"पर आपके और मेरे दिल की बात तो एक ही है ना ..." उसने झिझकते हुए कहा।
मुझे बहुत ही कोफ़्त हो रही थी कि मैंने ऐसा क्यूँ लिख दिया। अब एक पराया मर्द मेरे सामने खड़ा था। मुझे बार बार कुछ करने को उकसा रहा था। उसकी भी भला क्या गलती थी। तभी संजय के हाथों का मधुर सा स्पर्श मेरी बाहों पर हुआ।
"शीलू जी, आप मुझे बहुत अच्छी लगती हो...!" उसने प्रणय निवेदन कर डाला।
यह सुनते ही मेरे शरीर में बर्फ़ सी लहरा गई। मेरी आँखें बन्द सी हो गई।"य... यह ... क्या कह रहे हो? ऐसा मत कहो ..." मेरे नाजुक होंठ थरथरा उठे।
"मैं ... मैं ... आपसे प्यार करने लगा हूँ शीलू जी ... आप मेरे दिल में बस गई हो !" उसका प्रणय निवेदन मेरी नसों में उतरता जा रहा था। वो अपने प्यार का इजहार कर रहा था। उसकी हिम्मत की दाद देनी होगी।
"मैं शादीशुदा हूँ, सन्जू ... यह तो पाप... अह्ह्ह्... पाप है ... " मैं उसकी ओर पलट कर उसे निहारते हुए बोली।
उसने मुझे प्यार भरी नजरों से देखा और मेरी बाहों को पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया। मैं उसकी बलिष्ठ बाहों में कस गई।
"पत्र में आपने तो अपना दिल ही निकाल कर रख दिया था ... है ना ! यही दिल की आवाज है, आपको मेरे बाल, मेरा चेहरा, सभी कुछ तो अच्छा लगता है ना?" उसने प्यार से मुझे देखा।
"आह्ह्ह ... छोड़ो ना ... मेरी बांह !" मैं जानबूझ कर उसकी बाहों में झूलती हुए बोली।
"शीलू जी, दिल को खुला छोड़ दो, वो सब हो जाने दो, जिसका हमें इन्तज़ार है।"
उसने अपने से मुझे चिपका लिया था। उसके दिल की धड़कन मुझे अपने दिल तक महसूस होने लगी थी। पर मेरा दिल अब कुछ ओर कहने लगा था। यह सुहानी सी अनुभूति मुझे बेहोश सी किए जा रही थी। सच में एक पराये मर्द का स्पर्श में कितना मधुर आनन्द आता है ... यह अनैतिक कार्य मुझे अधिक रोमांचित कर रहा था ... । उसके अधर मेरे गुलाबी गोरे गालों को चूमने लगे थे। मैं बस अपने आप को छुड़ाने की जानकर नाकामयाब कोशिश बस यूँ ही कर रही थी। वास्तव में मेरा अंग अंग कुचले और मसले जाने को बेताब होने लगा था। अब उसके पतले पतले होंठ मेरे होंठों से चिपक गए थे।
आह्ह्ह्ह ...... उसकी खुशबूदार सांसें ...
उसके मुख से एक मधुर सी सुगंध मेरी सांसों में घुल गई। धीरे धीरे मैं अपने आप को उसको समर्पण करने लगी थी। उसके अधर मेरे नीचे के अधर को चूसने लगे थे। फिर उसकी लपलपाती जीभ मेरे मुख द्वार में प्रवेश कर गई और मेरी जीभ से टकरा गई। मैंने धीरे से उसकी जीभ मुख में दबा ली और चूसने लगी। मैं तो शादीशुदा थी... मुझे इन सेक्सी कार्यों का बहुत अच्छा अनुभव था... और वो मैं कुशलता से कर लेती थी। उसके हाथ मेरे जिस्म पर लिपट गए और मेरी पीठ, कमर और चूतड़ों को सहलाने लगे। मेरे शरीर में बिजलियाँ तड़कने लगी। उसका लण्ड भी कड़क उठा और मेरे कूल्हों से टकराने लगा। मेरा धड़कता सीना उसके हाथों में दब गया। मेरे मुख से सिसकारी फ़ूट पड़ी। मैंने उसे धीरे से अपने से अलग कर दिया।
"यह क्या करने लगे थे हम ...?" मैं अपनी उखड़ी सांसें समेटते हुई जान करके शर्माते हुए नीचे देखते हुए बोली।
"वही जो दिल की आवाज थी ... " उसकी आवाज जैसे बहुत दूर से आ रही हो।
"मैं अपने पति का विश्वास तोड़ रही हूँ ना ... बताओ ना?" मेरा असमंजस चरम सीमा पर थी, पर सिर्फ़ उसे दर्शाने के लिए कि कहीं वो मुझे चालू ना समझ ले।
"नहीं, विश्वास अपनी जगह है ... जिससे पाने से खुशी लगे, उसमें कोई पाप नहीं है, खुशी पाना तो सबका अधिकार है ... दो पल की खुशी पाना विश्वास तोड़ना नहीं होता है।"
"तुम्हारी बातें तो मानने को मन कर रहा है ... तुम्हारे साथ मुझे बहुत आनन्द आ रहा है, पर प्लीज संजू किसी कहना नहीं..." मैंने जैसे समर्पण भाव से कहा।
"तो शर्म काहे की ... दो पल का सुख उठा लो ... किसी को पता भी नहीं चलेगा... आओ !"
मैं बहक उठी, उसने मुझे लिपटा लिया। मेरा भी उसके लण्ड को पकड़ने का दिल कर रहा था। मैंने भी हिम्मत करके उसके पैंट की ज़िप में हाथ घुसा दिया। उसका लण्ड का आकार भांप कर मैं डर सी गई। वो मुझे बहुत मोटा लगा। फिर मैं उसे पकड़ने का लालच मैं नहीं छोड़ पाई। उसे मैंने अपनी मुट्ठी में दबा लिया। मैं उसे अब दबाने-कुचलने लगी। लण्ड बहुत ही कड़ा हो गया था। वो मेरी चूचियाँ सहलाने लगा ...
एक एक कर के उसने मेरे ब्लाऊज के बटन खोल दिये। मेरी स्तन कठोर हो गए थे। चुचूक भी कड़े हो कर फ़ूल गए थे। ब्रा के हुक भी उसने खोल दिए थे। ब्रा के खुलते ही मेरे उभार जैसे फ़ड़फ़ड़ा कर बाहर निकल कर तन गये। जवानी का तकाजा था ... मस्त हो कर मेरा एक एक अंग अंग फ़ड़क उठा। मेरे कड़े स्तनाग्रों को संजू बार बार हल्के से घुमा कर दबा देता था।
मेरे मन में एक मीठी सी टीस उठ जाती थी। चूत में से धीरे धीरे पानी रिसने लगा था। भरी जवानी चुदने को तैयार थी। मेरी साड़ी उतर चुकी थी, पेटिकोट का नाड़ा भी खुल चुका था। मुझे भला कहाँ होश था ... उसने भी अपने कपड़े उतार दिए थे। उसका लण्ड देख देख कर ही मुझे मस्ती चढ़ रही थी।
उसके लण्ड की चमड़ी धीरे से खोल कर मैंने ऊपर खींच दी। उसका लाल फ़ूला हुआ मस्त सुपाड़ा बाहर आ गया, मैंने पहली बार किसी का इस तरह लाल सुर्ख सुपाड़ा देखा था। मेरे पति तो बस रात को अंधेरे में मुझे चोद कर सो जाया करते थे, इन सब चीज़ों का आनन्द मेरी किस्मत में नहीं था। आज मौका मिला था जिसे मैं जी भर कर भोग लेना चाहती थी।
इस मोटे लण्ड का भोग का आनन्द पहले मैं अपनी गाण्ड से आरम्भ करना चाहती थी, सो मैंने उसका लण्ड मसलते हुए अपनी गाण्ड उसकी ओर कर दी।
"संजय, 19 साल का मुन्ना, मेरे 21 साल के गोलों को मस्त करेगा क्या?"
"शीलू ... इतने सुन्दर, आकर्षक गोलों के बीच छिपी हुई मस्ती भला कौन नहीं लूटना चाहेगा, ये चिकने, गोरे और मस्त गाण्ड के गोले मारने में बहुत मजा आयेगा।"
मैं अपने हाथ पलंग पर रख कर झुक गई और अपनी गाण्ड को मैंने पीछे उभार दिया। उसके लाल सुपाड़े का स्पर्श होते ही मेरे जिस्म में कंपकंपी सी फ़ैल गई। बिजलियाँ सी लहरा गई। उसका सुपाड़े का गद्दा मेरे कोमल चूतड़ों के फ़िसलता हुआ छेद पर आ कर टिक गया। कैसा अच्छा सा लग रहा था उसके लण्ड का स्पर्श। उसके लण्ड पर शायद चिकनाई उभर आई थी, हल्के से जोर लगाने पर ही फ़क से अन्दर उतर गया था। मुझे बहुत ही कसक भरा सुन्दर सा आनन्द आया। मैंने अपनी गाण्ड ढीली कर दी ... और अन्दर उतरने की आज्ञा दे दी। मेरे कूल्हों को थाम कर और थपथपा कर उसने मेरे चूतड़ों के पट को और भी खींच कर खोल दिया और लण्ड भीतर उतारने लगा।
"शीलू जी, आनन्द आया ना ... " संजू मेरी मस्ती को भांप कर कहा।
"ऐसा आनन्द तो मुझे पहली बार आया है ... तूने तो मेरी आँखें खोल दी है यार... और यह शीलू जी-शीलू जी क्या लगा रखा है ... सीधे से शीलू बोल ना।"
मैंने अपने दिल की बात सीधे ही कह दी। वो बहुत खुश हो गया कि इन सभी कामों में मुझे आनन्द आ रहा है।
"ले अब और मस्त हो जा..." उसका लण्ड मेरी गाण्ड में पूरा उतर चुका था। मोटा लण्ड था पर उतना भी नहीं मोटा, हाँ पर मेरे पति से तो मोटा ही था। मंथर गति से वो मेरी गाण्ड चोदने लगा। उजाले में मुझे एक आनन्दित करती हुई एक मधुर लहर आने लगी थी। मेरे शरीर में इस संपूर्ण चुदाई से एक मीठी सी लहर उठने लगी ... एक आनन्ददायक अनुभूति होने लगी। जवान गाण्ड के चुदने का मजा आने लगा। दोनों चूतड़ों के पट खिले हुये, लण्ड उसमें घुसा हुआ, यह सोच ही मुझे पागल किए दे रही थी। वो रह रह कर मेरे कठोर स्तनों को दबाने का आनन्द ले रहा था ... उससे मेरी चूत की खुजली भी बढ़ती जा रही थी। चुदाई तेज हो चली थी पर मेरी गाण्ड की मस्ती भी और बढ़ती जा रही थी। मुझे लगा कि कही संजय झड़ ना जाए सो मैंने उसे चूत मारने को कहा।
"संजू, हाय रे अब मुझे मुनिया भी तड़पाने लगी है ... देख कैसी चू रही है..." मैंने संजय की तरफ़ देख कर चूत का इशारा किया।
"शीलू, गाण्ड मारने से जी नहीं भर रहा है ... पर तेरी मुनिया भी प्यासी लग रही है।"
उसने अपना हाथ मेरी चूत पर लगाया तो मेरा मटर का फ़ूला हुआ मोटा दाना उसके हाथ से टकरा गया।
"यह तो बहुत मोटा सा है ... " और उसको हल्के से पकड़ कर हिला दिया।
"हाय्य्य , ना कर, मैं मर जाऊँगी ... कैसी मीठी सी जलन होती है..." मैंने जोर की सिसकी भरी।
उसका लण्ड मेरी गाण्ड से निकल चुका था। उसका हाथ चूत की चिकनाई से गीला हो गया था। उसने नीचे झुक कर मेरी चूत को देखा और अंगुलियों से उसकी पलकें अलग अलग कर दी और खींच कर उसे खोल दिया।
"एकदम गुलाबी ... रस भरी ... मेरे मुन्ने से मिलने दे अब मुनिया को !"
उसने मेरी गुलाबी खुली हुई चूत में अपना लाल सुपाड़ा रख दिया। हाय कैसा गद्देदार नर्म सा अहसास ... फिर उसे चूत की गोद में उसे समर्पित कर दिया। उसका लण्ड बड़े प्यार से दीवारों पर कसता हुआ अन्दर उतरता गया, और मैं सिसकारी भरती रही। चूंकि मैं घोड़ी बनी हुई थी अतः उसका लण्ड पूरा जड़ तक पहुँच गया। बीच बीच में उसका हाथ, मेरे दाने को भी छेड़ देता था और मेरी चूत में मजा दुगना हो जाता था। वो मेरा दाना भी जोर जोर से हिलाता जा रहा था। लण्ड के जड़ में गड़ते ही मुझे तेज मजा आ गया और दो तीन झटकों में ही, जाने क्या हुआ मैं झड़ने लगी। मैं चुप ही रही, क्योंकि वो जल्दी झड़ने वाला नहीं लगा।
उसने धक्के तेज कर दिए ... शनैः शनैः मैं फिर से वासना के नशे में खोने लगी। मैंने मस्ती से अपनी टांगें फ़ैला ली और उसका लण्ड फ़्री स्टाईल में इन्जन के पिस्टन की तरह चलने लगा। रस से भरी चूत चप-चप करने लगी थी। मुझे बहुत खुशी हो रही थी कि थोड़ी सी हिम्मत करने से मुझे इतना सारा सुख नसीब हो रहा है, मेरे दिल की तमन्ना पूरी हो रही है। मेरी आँखें खुल चुकी थी... चुदने का आसान सा रास्ता था ... थोड़ी सी हिम्मत करो और मस्ती से नया लण्ड खाओ, ढेर सारा आनन्द पाओ। मुझे बस यही विचार आनन्दित कर रहा था ... कि भविष्य में नए नए लण्ड का स्वाद चखो और जवानी को भली भांति भोग लो।
"अरे धीरे ना ... क्या फ़ाड़ ही दोगे मुनिया को...?"
वो झड़ने की कग़ार पर था, मैं एक बार फिर झड़ चुकी थी। अब मुझे चूत में लगने लगी थी। तभी मुझे आराम मिल गया ... उसका वीर्य निकल गया। उसने लण्ड बाहर निकाल लिया और सारा वीर्य जमीन पर गिराने लगा। वो अपना लण्ड मसल मसल कर पूरा वीर्य निकालने में लगा था। मैं उसे अब खड़े हो कर निहार रही थी। वो अपने लण्ड को कैसे मसल मसल कर बचा हुआ वीर्य नीचे टपका रहा था।
"देखा, संजू तुमने मुझे बहका ही दिया और मेरा फ़ायदा उठा लिया?"
"काश तुम रोज ही बहका करो तो मजा आ जाए..." वो झड़ने के बाद जाने की तैयारी करने लगा। रात के ग्यारह बजने को थे। वो बाहर निकला और यहाँ-वहाँ देखा, फिर चुपके से निकल कर सूनी सड़क पर आगे निकल गया।
सन्जय के साथ मेरे काफ़ी दिनो तक सम्बन्ध रहे थे। उसके पापा की बदली होने से वो एक दिन मुझसे अलग हो गया। मुझे बहुत दुख हुआ। बहुत दिनो तक उसकी याद आती रही।
]मैंने अब राहुल से दोस्ती कर ली। वह एक सुन्दर, बलिष्ठ शरीर का मालिक है। उसे जिम जाने का शौक है। पढ़ने में वो कोई खास नहीं, पर ऐसा लगता था वो मुझे भरपूर मजा देगा। उसकी वासनायुक्त नजर मुझसे छुपी नहीं रही। मैं उसे अब अपने जाल में लपेटने लगी हूँ। वो उसे अपनी सफ़लता समझ रहा है। आज मेरे पास राहुल के नोट्स आ चुके हैं ... मैं इन्तज़ार कर रही हूँ कि कब उसका भी कोई प्रेम पत्र नोट्स के साथ आ जाए ... जी हाँ ... जल्द ही एक दिन पत्र भी आ ही गया ...।
प्रिय पाठको ! मैं नहीं जानती हूँ कि आपने अपने छात्र-जीवन में कितना मज़ा किया होगा। यह तरीका बहुत ही साधारण है पर है कारगर। ध्यान रहे सुख भोगने से पति के विश्वास का कोई सम्बन्ध नहीं है। सुख पर सबका अधिकार है, पर हाँ, इस चक्कर में अपने पति को मत भूल जाना, वो कामचलाऊ नहीं है वो तो जिन्दगी भर के लिए है।
 
फ़ोन-सेक्स


यह कहानी मेरे अनुभव और भावनाओं को व्यक्त करती है। मैं शशांक, उम्र 25 वर्ष, कद 5'11", दिल्ली का रहने वाला हूँ।
मेरे मन में हमेशा सेक्स करने की इच्छा रहती है सबकी तरह, पर मैं रोज उसमें कुछ नया और अच्छा करने की कोशिश करता रहता हूँ।
मैं देखने में पता नहीं कैसा लगता हूँ पर हाँ, लड़कियाँ हमेशा मुझे पर नजर गड़ाए रहती हैं। मुझे अब तक यही सुनने को मिला है कि मैं सबसे सेक्सी लड़का हूँ।
यह कहानी मेरी गर्लफ्रेंड की है जिसकी अब किसी और से शादी हो चुकी है, उसी ने मुझसे प्रथम प्रणय-निवेदन किया था। तब वो 22 साल की और मैं 23 का था।
और मैंने हाँ बोल दिया था क्योंकि मेरे मन में भी उसके लिए भावनाएँ थी पर ग़लत नहीं। वो देखने में बहुत ही सुंदर है, कद 5'5", रंग गोरा चेहरा परी की तरह और तनाकृति 32-28-32
वो मुझ पर जान देती थी। मैं उससे फोन पर घंटों बात करता पर मिलना कम ही हो पाता था। हम दोनो अपने अपने परिवारों के कारण बस दूर से ही एक दूसरे को देख पाते थे पर एक दूसरे से ना मिल पाने के कारण हम दोनों के मन में आकर्षण बढ़ता जा रहा था।
और एक दिन उसने व्रत रखा करवा चौथ का।
शाम को फोन पर बोली- मैं व्रत कैसे खोलूँ?
मैंने कहा- तुम्हारे पास मेरा फोटो है, उसे देख कर !
वो बोली- वो तो कर लूँगी पर पानी कैसे पिलओगे?
मैंने कहा- तुम फोन करना मैं कुछ करूँगा।
उसने शाम को फोन किया और मैंने दिन भर सोचा था पर मुझे कुछ समझ नहीं आया था।
तब तक उसका फोन आ गया- वो फोटो मैंने देख लिया है ! अब मुझे पानी कैसे पिलाओगे?
मैंने फिर सोचा, अचानक मेरे दिमाग़ की बत्ती जली और मुझे एक आइडिया आया, मैंने कहा- तुम्हारा मुँह ही तो जूठा करना है आज ! मैं तुम्हें चूम लेता हूँ ! तुम अपना व्रत खोल लो।
वो शरमा गई और कुछ नहीं बोली।
और हमने फोन पर ही अपना पहला चुम्बन किया। उसके बाद पता नहीं मुझे और उसे क्या हो गया कि हम दोनों एक दूसरे के लिए तड़पने लगे।
एक दिन आख़िर हमें मौका मिला और हम मिले और सिर्फ़ एक दूसरे का हाथ पकड़ कर एक दूसरे की आँखों में देखते रहे। तब उसकी मम्मी आने वाली थी, सो वो चली गई।
फिर फोन पर हमारी बात हुई, उसने पूछा- आपने मुझे बाहों में क्यों नहीं लिया?
मैंने कहा- तुम्हारी मम्मी आने वाली थी ना ! तो मुझे तुम्हें जल्दी ही छोड़ना पड़ता। मैं तुम्हें हमेशा अपने से चिपकाए हुए रखना चाहता हूँ।
वो शरमा गई। फिर हम दोनो इसी तरह बातें करते रहे और बातों में ही बहुत खुल गये। वो अपनी निजी बातें भी मुझसे करने लगी।
एक दिन वो बहुत गर्म हो रही थी और मेरे से मिलकर सेक्स करने की इच्छा (शादी के बाद) जता रही थी पर साथ में अफ़सोस भी कि हम अभी नहीं मिल सकते।
उसी वक़्त मैंने उससे उसके बदन का नाप पूछा और चुचूकों का रंग भी।
उसने कहा- आप खुद ही देख लेना..
अचानक हम दोनों को पता नहीं क्या हुआ, हमने बातों में ही फोन सेक्स शुरु कर दिया।
जो इस प्रकार था...
शशांक : मैं तुम्हें हग करना चाहता हूँ.....
वो : करो ना.... पूछो मत...... मैं आपकी ही हूँ।
शशांक : मेरी आँखो में देखो....महसूस करो...
वो : देख रही हूँ....
शशांक : मैं तुम्हारे होठों को देख रहा हूँ...
वो : हाँ...
शशांक : मैं तुम्हें कंधों से पकड़ रखा है। अब मैं तुम्हारे बाल चेहरे से हटा रहा हूँ और धीरे से अपने होंठ तुम्हारे होंठों की तरफ ला रहा हूँ, फील इट, युअर आइज हस बिन क्लोस्ड...न माई लिप्स आर गोयिंग टू मीट विद यूअर लिप्स...
वो : ह्म्*म्ममममम करो ना प्लज़्ज़्ज़्ज़्ज़
शशांक : बॅट मैंने किस नहीं किया...
वो : करो नाआआआअ...
शशांक : मैंने सिर्फ़ अपनी जीभ को बाहर निकाल कर उसकी टिप से तुम्हारे होंठो को छुआ। लिक कर रहा हूँ....
वो : उमौमौममौमौमा....... आइयी कॅन फील यू शशंकककक
शशांक : अब मेरे हाथ तुम्हें हग कर चुके हैं ! मैं तुम्हारी कमर पर टॉप के ऊपर सहला रहा हूँ...फील कर रही हो नाआआ माइ लाइफ माइ जान..........
वो : हाँ....
शशांक : अब तुमने अपने हाथ से मेरी शर्ट को जींस से निकाल कर मेरी कमर पर सहलाना शुरु कर दिया है।
वो : और मैँने तुम्हे ज़ोर से हग कर लिया है और स्मूच कर रही हूँ ! मैं मर जाऊँगी शशाआआआन्क्क्क्क !
शशांक : ऐसे नहीं मरने देंगे अपनी जान को ! हम साथ में मरेंगे... मैंने धीरे से तुम्हारी आइज पर किस किया और तुम ने अपनी आँखें खोली और अब शरमा रही हो
वो : मुझे कुछ हो रहा है...
शशांक : अब मैंने तुम्हारे लिप्स पर एक छोटा सा किस किया और अपने हाथ से तुम्हारी गर्दन पर से बाल पीछे कर दिए कान के ऊपर से और अपने लिप्स तुम्हारे गले पर रख दिए
वो : मेरे रोए खड़े हो रहे हैं ! मैं मर जाऊँगी.. प्लज़्ज़्ज मेरे पास आ जाओ नाआआ....
शशांक : मैं वहीं हूँ तुम्हारे पास......अब मैंने तुम्हारे पीछे जा कर हग कर लिया है...और अब मैं तुम्हारे कान की लटकन को चूस रहा हूँ....
वो : उम्म्ममम शाआ शाआअंकक
शशांक : मेरा हाथ तुम्हारे दिल के पास हैं मैं तुम्हारी गरदन और कान को चाट रहा हूँ ! मेरा दूसरा हाथ तुम्हारी नाभि के पास है.... और मैं टॉप को थोड़ा सा ऊपर कर पेट पर हाथ फ़िरा रहा हूँ ! अब धीरे धीरे ऊपर करके बूब्स को अपने हाथों से ढक लिया है ! होंठों से गले को लगातार किस कर रहा हूँ....
वो : मुझे तुम्हारे कपड़े तो निकालने दो ! तुमने मेरा टॉप तो निकाल दिया है......
शशांक : हाँ निकालो ना प्लज़्ज़्ज़्ज़्ज़
फिर उसने बातों से मेरे कपड़े निकाल दिए
फिर मैंनें आगे कहा- और अब मेरे तुम्हारे बीच सिर्फ़ ब्रा है, मैंनें पीछे से हग किया हुआ है और तुम्हारी कमर को चाट रहा हूँ ! पर यह ब्रा की हुक स्ट्रीप बीच में आ रही है...
वो : उसे निकाल दो ना प्लज़्ज़्ज़
शशांक : मेरे हाथ तुम्हारे कंधे पर हैं ! मैं पीछे और मैंने धीरे से हाथ बूब्स की ओर बढ़ाने शुरु कर दिए हैं और वक्ष की उंचाइयों पर अपने हाथ ले जा रहा हूँ....
वो : ह्म्*ममम उम्म्म्म
शशांक : मैं तुम्हारे दिल की धड़कन को फील कर सकता हूँ ! अब मैं सामने आकर तुम्हारे कंधे को चूम रहा हूँ ! पर यह ब्रा की स्ट्रीप बीच मे आ रही है.... मैंने दातों के बीच इसे फंसा कर कंधे से नीचे उतार दिया पर सिर्फ़ एक तरफ़ का... फिर अपने लिप्स को तुम्हारे बूब्स के ऊपर ला रहा हूँ लिक करते हुए
वो : उफ्ह्ह्ह ह्ह्ह्हह्ह्ह्ह्ह
शशांक : मैंने बूब निकाल लिया है दूसरे को ब्रा के अंदर ही हाथ से पकड़ लिया है अब जीभ से तुम्हारे चुचूक को खोज रहा हूँ, उधर उंगली से....
वो : देखो... ये रहे..... जानुउउउउउ.....
शशांक : अहहह मिल गये निप्पल......मैंने सिर्फ़ ज़ीभ की टिप से निपल को छुआ है।
वो : ये कड़ा हो रहा है..............ह्म्*म्म्ममममम उम्म्म्मम जन्नन टच इट विद योर फिंगर प्लज़्ज़्ज़्ज़
शशांक : फिर मैंने झीभ से ही उसे ऊपर मोड़ दिया, फिर नीचे..... फिर लेफ्ट और फिर राइट.... और फिर गोल गोल घुमा रहा हूँ .... अब मैंने इसे चूसना शुरु कर दिया....
वो : लिक इट बेबी.... उम्म्म्मम
मैं चूसता जा रहा था और वो मस्त हुई जा रही थी !
शशांक : अब मैंने पीछे से ब्रा की स्ट्रीप खोल दी और दूसरे बूब को भी मुँह में भर लिया है....
वो : दबाओ दूसरे को... उम्म्म्म इसको भी चूस लो...
काफ़ी देर हम ऐसे ही मज़ा लेते रहे, मुझे उसकी वासना भरी आवाज़ मस्त कर रही थी तो उसे उसे मेरी किस और लिक करने की आवाज़ गरम कर रही थी....
कुछ देर बाद उस ने मुझे कहा....फक मी शशांकककक अब नहीं रुका जा रहा..... फक मी वेरी हार्ड......
शशांक : (पर मैं तो और भी कुछ करना चाह रहा था) रूको मेरी जान...... अभी तो बहुत कुछ करना है.......
अब मैंने टोपलेस तुम्हें हग कर लिया है और तुम्हारे निपल्स मेरे चेस्ट पर निपल्स से रब हो रहे हैं...... और रब करो.....
वो : उम्म्म्मम ह्म्*म्म्ममम ऊएईईईईईमाआआअ शशांकककक यू आर सो सेक्सीईई फक मी प्लज़्ज़ज़्ज़
शशांक : वेट...... जान, आज मैं तुम्हें जन्नत की सैर करा रहा हूँ... अब मैं नीचे जा रहा हूँ और नाभि को लिक कर रहा हूँ... अब और नीचे... मैंने लोअर को लिप्स से पकड़ कर पूरा उतार दिया है...
वो : निकाल दो .... पेंटी भी निकल दो... उम्म्म
शशांक : अब मैं तुम्हारे पैर क अंगूठे को चूस रहा हूँ और लिक करते हुए ऊपर आ रहा हूँ..... अब मेरे लिप्स तुम्हारी जाँघो पर हैं... बहुत सुंदर हो तुम मेरी जान... मुझे आज इस पूरी सुंदरता को भोगने दो..
वो : उम्म्म्मम ह्म्*म्म्ममम ऊएईई मैं तिईईई हूँ..... जो चाहे कर लो ! मुझे इतना सुख कभी नहीं मिला....(उसकी आवाज़ मे वासना घुली थी)
शशांक : अब मैं जन्नत की खुशबू ले रहा हूँ, कौन से रंग की पेंटी पहनी है?
वो : पिंक....
शशांक : बहुत सुंदर है.. अब मैंने लिप्स से पकड़ कर पेंटी नीचे कर दी....
वो : पूरी निकाल दो ना आआ...
शशांक : पूरी निकाल दी... अब मैं ज़ीभ की टिप से तुम्हारी चूत को सहला रहा हूँ, और लिप्स को ज़ीभ से खोलने की कोशिश कर रहा हूँ...... कैसा लग रहा है.... जान....?
वो : उईईई मममम्ममी..... बहुत्त्त्त मस्त लग रहाआआ हैईईइ... करते रहो...
शशांक : (थोड़ी देर बाद.......) जान क्या रेडी हो ? अब डाल दूं?
वो : पूछो मत अब फाड़ दो इसे पर धीरे से करना शुरू में... फकक्क्क मीईईईई प्लज़्ज़्ज़
शशांक : लो जान अब ले लो........ ये देखो कितना तड़प रहा है अंदर जाने को.....
वो : डाल दो नाआआआ अब प्लज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़
शशांक : लो... ये लो....
वो : ह्म्*म्म्मममम ऊएईईईईईई मममयययी
शशांक : अहहह धप्प.......लो जनंननन्
वो : फक्क मीईई जानुउ हार्ड वेरी हार्ड
इस तरह हम तीस मिनट तक लगे रहे वो सीत्कार करती रही।
वो कह रही थी मुझे आज मम्मी बना दो और मैं कह रहा था कि मेरी आज तुम बनोगी हमारे बच्चों की मम्मी....
फिर वो बोली क़ि जो चरम सुख मैंने उसे दिया वो उसे कभी नहीं भूलेंगी और मुझसे मिलने के लिए कहने लगी और बोली- प्लीज़ मुझ ही शादी करना ! मैं तुम्हारा दिया सुख रोज पाना चाहती हूँ...
इस तरह हम आगे बढ़ते रहे।
और एक दिन मेरे घर पर कोई नहीं था, मैंने उसे घर बुला लिया और उसे जम कर चोदा ! वो तो मुझ पर निहाल हो गई। मैंने उस दिन आइस क्यूब और शहद भी प्रयोग किया। उसे उस दिन चरम सुख की प्राप्ति हो गई और मुझे भी...
 
चूत पूजा



न जाने कब से यह मेरे ख्याल में बस गया था मुझे याद तक नहीं, लेकिन अब 35 साल की उम्र में उस ख्वाहिश को पूरा करने की मैंने ठान ली थी। जीवन तो बस एक बार मिला है तो उसमें ही अपनी चाहतों और आरजू को पूरा करना है। क्या इच्छा थी यह तो बताना मैं भूल ही गया। तो सुनिए। मेरी इच्छा थी कि दुनिया की हर तरह की चूत और चूची का मज़ा लूँ ! गोरी बुर, सांवली बुर, काली बुर, जापानी बुर, चाइनीज़ बुर !
यूँ समझ लीजिये कि हर तरह की बुर का स्वाद चखना चाहता था। हर तरह की चूत के अंदर अपने लंड को डालना चाहता था।
लेकिन मेरी शुरुआत तो देशी चूत से हुई थी, उस समय मैं सिर्फ बाईस साल का था। मेरे पड़ोस में एक महिला रहती थी, उनका नाम था अनीता और उन्हें मैं अनीता आंटी कहता था। अनीता आंटी की उम्र 45-50 के बीच रही होगी, सांवले रंग की और लम्बे लम्बे रेशमी बाल के अलावा उनके चूतड़ काफी बड़े थे, चूचियों का आकार भी तरबूज के बराबर लगता था। मैं अक्सर अनीता आंटी का नाम लेकर हस्तमैथुन करता था।
एक शाम को मैं अपना कमरा बंद करके के मूठ मार रहा था। मैं जोर जोर से अपने आप बोले जा रहा था-
यह रही अनीता आंटी की चूत और मेरा लंड ...
आहा ओहो ! आंटी चूत में ले ले मेरा लंड ...
यह गया तेरी बुर में मेरा लौड़ा पूरा सात इंच ...
चाची का चूची .. हाय हाय .. चोद लिया ...
अनीता .. पेलने दे न ... क्या चूत है ... !
अनीता चाची का क्या गांड है ...!
और इसी के साथ मेरा लंड झड़ गया।
फिर बेल बजी ...मैंने दरवाज़ा खोला तो सामने अनीता आंटी खड़ी थी, लाल रंग की साड़ी और स्लीवलेस ब्लाउज में, गुस्से से लाल !
उन्होंने अंदर आकर दरवाज़ा बंद कर लिया और फिर बोली- क्यों बे हरामी ! क्या बोल रहा था? गन्दी गन्दी बात करता है मेरे बारे में? मेरा चूत लेगा ? देखी है मेरी चूत तूने...? है दम तेरी गांड में इतनी ?
और फिर आंटी ने अपनी साड़ी उठा दी। नीचे कोई पैंटी-वैन्टी नहीं थी, दो सुडौल जांघों के बीच एक शानदार चूत थी : बिलकुल तराशी हुई :बिल्कुल गोरी-चिट्टी, साफ़, एक भी बाल या झांट का नामो-निशान नहीं, बुर की दरार बिल्कुल चिपकी हुई !
ऐसा मालूम होता था जैसे गुलाब की दो पंखुड़ियाँ आपस में लिपटी हुई हों..
हे भगवान ! इतनी सुंदर चूत, इतनी रसीली बुर, इतनी चिकनी योनि !
भग्नासा करीब १ इंच लम्बी होगी।
वैसे तो मैंने छुप छुप कर स्कूल के बाथरूम में सौ से अधिक चूत के दर्शन किए होंगे, मैडम अनामिका की गोरी और रेशमी झांट वाली बुर से लेकर मैडम उर्मिला की हाथी के जैसी फैली हुई चूत ! मेरी क्लास की पूजा की कुंवारी चूत और मीता के काली किन्तु रसदार चूत।
लेकिन ऐसा सुंदर चूत तो पहली बार देखी थी।
आंटी, आपकी चूत तो अति सुंदर है, मैं इसकी पूजा करना चाहता हूँ .. यानि चूत पूजा ! मैं एकदम से बोल पड़ा।
"ठीक है ! यह कह कर आंटी सामने वाले सोफ़े पर टांगें फैला कर बैठ गई।
अब उनकी बुर के अंदर का गुलाबी और गीला हिस्सा भी दिख रहा था।
मैं पूजा की थाली लेकर आया, सबसे पहले सिन्दूर से आंटी की बुर का तिलक किया, फिर फूल चढ़ाए उनकी चूत पर, उसके बाद मैंने एक लोटा जल चढ़ाया।
अंत में दो अगरबत्ती जला कर बुर में खोंस दी और फिर हाथ जोड़ कर
बुर देवी की जय ! चूत देवी की जय !
कहने लगा ..
आंटी बोली- रुको मुझे मूतना है !
"तो मूतिये आंटी जी ! यह तो मेरे लिए प्रसाद है, चूतामृत यानि बुर का अमृत !"
आंटी खड़ी हो कर मूतने लगी, मैं झुक कर उनका मूत पीने लगा। मूत से मेरा चेहरा भीग गया था। उसके बाद आंटी की आज्ञा से मैंने उनकी योनि का स्वाद चखा। उनकी चिकनी चूत को पहले चाटने लगा और फिर जीभ से अंदर का नमकीन पानी पीने लगा .. चिप चिपा और नमकीन ..
आंटी सिसकारियाँ लेती रही और मैं उनकी बूर को चूसता रहा जैसे कोई लॉलीपोप हो.. मैं आनंद-विभोर होकर कहते जा रहा था- वाह रसगुल्ले सरीखी बुर !
फिर मैंने सम्भोग की इज़ाज़त मांगी !
आंटी ने कहा- चोद ले .. बुर ..गांड दोनों ..लेकिन ध्यान से !
मैं अपने लंड को हाथ में थाम कर बुर पर रगड़ने लगा .. और वोह सिसकारने लगी- डाल दे बेटा अपनी आंटी की चूत में अपना लंड !
अभी लो आंटी ! यह कह कर मैंने अपना लंड घुसा दिया और घुच घुच करके चोदने लगा।
"और जोर से चोद.. "
"लो आंटी ! मेरा लंड लो.. अब गांड की बारी !"
कभी गांड और कभी बुर करते हुए मैं आंटी को चोदता रहा करीब तीन घंटे तक ...
आंटी साथ में गाना गा रही थी :[
तेरा लंड मेरी बुर ...
अंदर उसके डालो ज़रूर ...
चोदो चोदो, जोर से चोदो ...
अपने लंड से बुर को खोदो ...
गांड में भी इसे घुसा दो ...
फिर अपना धात गिरा दो ...
इस गाने के साथ आंटी घोड़ी बन चुकी थी और और मैं खड़ा होकर पीछे चोद रहा था। मेरा लंड चोद चोद कर लाल हो चुका था.. नौ इंच लम्बे और मोटे लंड की हर नस दिख रही थी। मेरा लंड आंटी की चूत के रस में गीला हो कर चमक रहा था।
जोर लगा के हईसा ...
चोदो मुझ को अईसा ...
बुर मेरी फट जाये ...
गांड मेरी थर्राए ...
आंटी ने नया गाना शुरू कर दिया।
मैं भी नये जोश के साथ आंटी की तरबूज जैसे चूचियों को दबाते हुए और तेज़ी से बुर को चोदने लगा .. बीच बीच में गांड में भी लंड डाल देता ... और आंटी चिहुंक जाती ..
चुदाई करते हुए रात के ग्यारह बज चुके थे और सन्नाटे में घपच-घपच और घुच-घुच की आवाज़ आ रही थी ..
यह चुदने की आवाज़ थी ... यह आवाज़ योनि और लिंग के संगम की थी ..
यह आवाज़ एक संगीत तरह मेरे कानों में गूँज रही थी और मैंने अपने लंड की गति बढ़ा दी।
आंटी ख़ुशी के मारे जोर जोर से चिल्लाने लगी- चोदो ... चोदो ... राजा ! चूत मेरी चोदो ...
 
थोड़ा दर्द तो होगा ही"*-*-*-*-*-*-*-*-*

कॉलेज के दिनों से ही मेरा एक बहुत ही अच्छा दोस्त था जिसका नाम सुरेश था। हम दोनों के बीच बहुत ही अच्छी समझ थी, दोनों को जब भी मौका मिलता तो हम चुदाई कर लिया करते थे। जितनी बार भी हम चुदाई करते, सुरेश किसी नए और अलग तरह के आसन के साथ चुदाई करता था।

आप कह सकते हैं कि हमने कामसूत्र के लगभग सभी आसनों में चुदाई की, यहाँ तक कि उसकी शादी के बाद भी हम दोनों को जब भी समय और मौका मिलता हम चुदाई किया करते थे।

मुझे आज भी याद है कि एक बार मैं उसके सामने नंगी हो कर उसको उकसा रही थी, तभी उसने मेरे सामने अपनी मुठ मार कर अपना सारा वीर्य मेरे चेहरे और मेरे मम्मों पर छिड़क दिया।

मैंने तब तक कभी भी गाण्ड नहीं मरवाई थी। एक बार एक रात को ब्लू फिल्म देखने के बाद मुझे भी गाण्ड मरवाने की इच्छा हुई। चूँकि मैं जानती थी कि गाण्ड मरवाने के साथ साथ दर्द भी सहन करना होगा इसलिए मैं असमंजस में थी। फिर मैंने निर्णय किया कि मैं अपनी यह इच्छा सुरेश से ही पूरी करूँगी क्योंकि उसका लण्ड तो साढ़े छः इंच लंबा है परंतु उसके लण्ड की मोटाई कोई दो इंच ही है।

साथ ही मैं आश्वस्त थी कि चाहे कुछ भी हो जाए सुरेश मुझे कभी कोई तकलीफ नहीं पहुँचाएगा।

एक बार जब उसकी पत्नी अपने मायके गई हुई थी तो हमने जानवरों की तरह बहुत जोरदार चुदाई की। चुदाई के बाद जब हम दोनों बिस्तर में लेटे हुए आराम कर रहे थे तब सुरेश ने मुझे सहलाते हुए मेरी गाण्ड मारने की इच्छा जाहिर की। हालाँकि मैं भी चाहती थी कि वह मेरी गाण्ड मारे परंतु तब तक भी मन में कुछ संकोच था।

अब चूँकि मैं सुरेश पर विश्वास करती थी इसलिए मैंने सब कुछ उस पर छोड़ने का फैसला कर लिया। उसने मुझे घोड़ी की तरह बनने को कहा और मैं बिस्तर पर अपने हाथों और घुटनों के बल घोड़ी की तरह बन गई। सुरेश ने मेरी कुँवारी गाण्ड का निरीक्षण करना शुरू कर दिया। कभी वो मेरे मम्मे दबाता, कभी मेरी कमर सहलाता और कभी मेरी गाण्ड को सहलाता चूमता।

फिर उसने मेरी गाण्ड को चाटना शुरू कर दिया। उसके एक हाथ की उँगलियाँ मेरी चूत के होठों को और दूसरे हाथ की उँगलियाँ मेरी गाण्ड के छेद को सहला रहीं थी। मैं जानती थी कि वो सिर्फ अभी सब तरफ से देख रहा है परंतु इसके बाद मेरी गाण्ड को चुदना ही है।

"छोड़ दो मुझे सुरेश....!" मैंने उसको कहा।

"चिचियाना बंद करो शालिनी !" उसने जोर से कहा,"तुम भी जानती हो कि तुम भी मज़ा लेने वाली हो।"

असल में उसका मेरी गाण्ड को देखने का तरीका ही मेरी चूत और मेरी गाण्ड को गरमाने के लिये बहुत था और यह तो सुरेश को दिखाने के लिये सिर्फ एक दिखावा था कि मैं बहुत ही डरी हुई हूं परंतु उसका लण्ड अपनी गाण्ड में लेने के लिये मैं भी बेताब थी।

चूँकि मैं जानती थी कि एक बार उसका लण्ड मेरी गाण्ड में घुस गया तो वह प्यार से मेरी गाण्ड नहीं मारेगा क्योंकि थोड़ी देर पहले ही उसने मेरी चूत को बहुत क्रूरता से चोदा था और अभी तक मेरी टांगों में हल्का सा दर्द था।

तभी सुरेश ने मेरी चूत से अपनी उँगलियाँ बाहर निकाल कर कहा,"तुम अभी भी उत्साहित हो शालिनी?"

मैं उत्साहित थी क्योंकि उसकी उँगलियाँ मेरी चूत को चोद रहीं थी। लेकिन मैं अभी तक गाण्ड मरवाने के लिए आश्वस्त नहीं थी इसलिए मैंने सिर्फ एक आह सी अपने मुँह से निकाली।

तब वो बाथरुम में गया और तेल की शीशी लेकर आया और बहुत सा तेल अपनी उँगलियों में लगाने लगा,"देखो शालिनी, तुमको थोड़ा सा तो झेलना पड़ेगा और चूँकि तुम मेरी सबसे खास दोस्त हो इसलिए मैं तुमको दर्द नहीं दे सकता।" सुरेश ने अपनी एक ऊँगली मेरी गाण्ड के छेद में डालते हुए कहा।

उसने ठीक कहा था, मुझे दर्द नहीं हुआ पर जैसे ही उसकी ऊँगली का स्पर्श मेरी गाण्ड के अंदर हुआ मैं चिंहुक उठी।

और जैसे ही सुरेश ने अपनी ऊँगली थोड़ी और अंदर तक डाली मेरे मुँह से थोड़ी अजीब सी आवाज़ निकली और मैंने अपनी गाण्ड को जोर से हिलाया। मुझे उसकी वह ऊँगली भी अपनी गाण्ड में बहुत बड़ी लग रही थी और मैं सोच रही थी कि उसका लण्ड मेरी तंग गाण्ड में कैसे घुसेगा और कितना दर्द करेगा।

उसकी ऊँगली से भले मेरी गाण्ड में ज्यादा दर्द नहीं हुआ पर उसका लण्ड तो ऊँगली से ज्यादा लंबा और मोटा था। उसने धीरे अपनी ऊँगली मेरी गाण्ड में अंदर बाहर करनी शुरू कर दी ताकि मेरी गाण्ड नर्म और अभ्यस्त हो जाए।

मैंने अपना चेहरा तकिये में दबा लिया और कराहने लगी।

"आराम से ! बस अब तुमको मज़ा आने लगेगा शालिनी।" सुरेश ने कहा।

जैसे ही अपनी दूसरी ऊँगली भी मेरी गाण्ड में डाली, मैं फिर से चिंहुक उठी और उससे दूर होने की कोशिश करने लगी पर सफल नहीं हो सकी। अबकी बार मैं जोर से चिल्ला उठी और तकिये को अपने दाँतों से काटने लगी। अब मेरी कुंवारी गाण्ड के लिया दर्द सहना बहुत कठिन हो गया था क्योंकि मैं जानती थी कि उसका लण्ड मेरी गाण्ड के लिये मोटा है और मैं उसको सहन नहीं कर पाऊँगी।

पर सुरेश रुका नहीं और अपनी दोनों उँगलियों को मेरी गाण्ड के अंदर-बाहर करता रहा ताकि मेरी गाण्ड का छेद कुछ खुल जाए।

अब उसने अपने लण्ड पर तेल लगाना शुरू किया और फिर अपने लण्ड के सिरे को मेरी गाण्ड के छेद पर रगड़ने लगा तो मैं बहुत ही उत्सुकता से उसके लण्ड का अपनी गाण्ड में घुसने का इंतज़ार कर रही थी परंतु उसने अपना लण्ड मेरी ऊपर उठी हुई गाण्ड की अपेक्षा मेरी चूत में डाल दिया। मैं खुशी के मारे जोर जोर से अपने को पीछे की ओर धकेलने लगी ताकि उसके लण्ड का पूरा मज़ा ले सकूँ।

कुछ धक्कों के बाद उसने अपना लण्ड मेरी चूत में से बाहर निकाल लिया और मेरी गाण्ड के छेद पर रख कर धक्का देने लगा।

जैसे ही उसके लण्ड का सिरा मेरी गाण्ड में घुसा, मैं जोर से चिल्लाई और उससे दूर जाने की कोशिश करने लगी परंतु उसने मेरी कमर से मुझे पकड़ लिया और मैं उसकी मज़बूत गिरफ्त से छूट नहीं पाई। उसके लण्ड के सिरे ने मेरी गाण्ड के छेद को उसकी उँगलियों से भी ज्यादा खोल दिया था। हालाँकि उसका लण्ड तेल और मेरे चूत के रस से बहुत ही चिकना था परंतु फिर भी मुझे दर्द हुआ।

मैंने उसको छोड़ देने को कहा परंतु सुरेश ने मेरी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया और मेरी गाण्ड के छेद को अपने दोनों हाथों से और खोल कर अपना लण्ड मेरी गाण्ड में डालने में लगा रहा।

जैसे ही उसका लण्ड थोडा सा और अंदर गया तो मैंने अपनी गाण्ड के छेद को अपने पूरे जोर से भींच लिया ताकि उसका लण्ड बाहर निकाल जाए पर सुरेश ने मेरी गाण्ड पर धीरे धीरे चपत मारनी शुरू कर दी और चपत मारते हुए कहा कि मैं अपनी गाण्ड को ढीला छोड़ दूँ।

जैसे ही मैं गाण्ड के छेद को हल्का सा ढीला किया उसका लण्ड और अंदर तक घुस गया। अब उसने मेरी कमर को अपने मज़बूत हाथों से पकड़ लिया और एक ही झटके में बाकी का लण्ड मेरी कुंवारी गाण्ड में घुसेड़ दिया।

मेरी चीख निकल गई, लगा कि जैसे जान ही चली जायेगी।

तब थोड़ी देर तक सुरेश ने कोई हरकत नहीं की, केवल मेरी गाण्ड और पीठ को सहलाता रहा और फिर उसने पूछा,"क्या बहुत दर्द हो रहा है? लण्ड बाहर निकाल लूँ क्या?"

मुझे दर्द तो बहुत हो रहा था परंतु मैं जानती थी कि सुरेश अपना लण्ड किसी भी हाल में मेरी गाण्ड से बाहर नहीं निकालेगा। इसलिए तकिये में अपना मुँह दबा कर सिर्फ कराहती रही। थोड़ी देर के बाद सुरेश ने अपना लण्ड धीरे-धीरे बाहर निकालना शुरू किया तो मुझे लगा कि शायद अब मैं छूट जाऊंगी पर वह सिर्फ एक खुशफ़हमी थी। कोई आधे से ज्यादा लण्ड बाहर निकलने के बाद उसने फिर से लण्ड मेरी गाण्ड में डालना शुरू
कर दिया।

मैंने सुरेश को कहा- मुझे बहुत दर्द हो रहा है !

तब सुरेश ने कहा कि अब वो धीरे धीरे करेगा और जैसे ही उसने अपना लण्ड मेरी गाण्ड में दुबारा डालना शुरू किया तो ऊपर से और तेल डालने लगा।

तेल डालने से मेरी गाण्ड का छेद और भी ज्यादा चिकना हो गया और अब उसका लण्ड आराम से गाण्ड के अंदर घुस रहा था। चार पाँच बार उसने बड़े ही धीरे धीरे अपना लण्ड मेरी गाण्ड में अंदर-बाहर किया और फिर मेरी पीठ ओर गाण्ड को सहलाते हुए सुरेश ने पूछा,"अब भी बहुत दर्द हो रहा है क्या शालू?"

पहले जहाँ मुझे दर्द हों रहा था, वहीं अब मुझे भी मज़ा आ रहा था और अब मैं भी गाण्ड मरवाने का आनन्द ले रही थी। मैंने अपनी पूरी शक्ति से अपनी गाण्ड को सुरेश की तरफ धकेला और कहा,"बस ऐसे धीरे धीरे ही करना इससे दर्द नहीं होता !"

"ठीक है तो मैं रुक जाता हूँ और अब तुम आगे पीछे हो कर अपने आप से गाण्ड मरवाओ !" सुरेश ने कहा।

सुरेश ने मेरी कमर को पकड़ लिया ताकि लण्ड बाहर ना निकल जाए और मैंने धीरे धीरे से अपने आप को आगे पीछे करना शुरू कर दिया। कुछ देर के बाद जैसे सुरेश का संयम टूट गया और उसने कहा,"बस शालिनी, अब मेरी बारी है। अब मैं अपने तरीके से तुम्हारी गाण्ड मारूँगा।"

सुरेश ने एक जोरदार धक्का मारा तो मैं समझ गई कि अब गाण्ड की असली चुदाई का समय आ गया है।

सुरेश ने मुझे अपना मुँह तकिये में दबाने को कहा और जैसे ही मैंने अपनी गर्दन नीचे की ओर की, उसने अपनी गति बढ़ानी शुरू कर दी और अब जोर जोर से मेरी कमर को पकड़ कर धक्के देने लगा। मेरी आह निकल रही थी।

धीरे धीरे मैंने अपना एक हाथ अपने नीचे किया और अपनी चूत के होठों को छुआ। मुझे जैसे बिजली का झटका लगा। फिर मैंने अपनी हथेली अपनी चूत पर रगड़नी शुरू कर दी। अब मैं पूरी तरह से गाण्ड मरवाने का मज़ा ले रही थी और तकिया में मुँह दबाए चिल्ला रही थी। और सुरेश अब अपने असली रंग में मेरी गाण्ड मार रहा था।

"चोदो और जोर से चोदो ! सुरेश मेरी गाण्ड को चोदो ! सुरेश ओहहहह ओहहहह!!!! मैं झड़ने वाली हूँ सुरेश!!!" मैं जोर से चिल्लाई और झड़ने लगी।

अब सुरेश भी क्रूरता से मेरी गाण्ड में अपना लण्ड अंदर-बाहर कर रहा था। एक बार फिर उसने अपना लण्ड अपनी पूरी शक्ति से मेरी गाण्ड में धकेल दिया और मेरी गाण्ड को जोर से दबाते हुए उसमें ही झड़ने लगा। उसका गर्म-गर्म वीर्य मेरी गाण्ड में भर रहा था। तब वो मेरे ऊपर ही गिर पड़ा उसका लण्ड अभी भी मेरी गाण्ड में ही था और हम दोनों हांफ रहे थे।

"देखा?" सुरेश ने मेरी पीठ को चूमते हुए कहा,"मैंने कहा था ना शालिनी कि तुमको बहुत मज़ा आएगा !"

मैं हल्के के कराही, मेरी गाण्ड अभी भी उसके ढीले होते हुए लण्ड की चुदाई से दर्द कर रही थी।

उस रात उसने कुल तीन बार मेरी गाण्ड मारी और अगले दो दिनों तक मेरी टांगों और गाण्ड में दर्द होता रहा।
 
जब मस्ती चढ़ती है तो

दोस्तों मैं बरखा एक शादीशुदा औरत हूँ। मैंने शादी से पहले अपनी मौसी के संग मज़े किये। फिर मेरी शादी हो गई और मैंने शिमला जाकर अपने पिया संग हनीमून भी मनाया। जिंदगी बहुत खुशहाल मोड़ पर थी और मैं अपने पिया संग एक मस्त जिंदगी जी रही थी। मेरे पति अजय भी मुझे बहुत प्यार करते हैं। उनके प्यार की निशानी मेरी बेटी है। मेरे पति मेरी हर ख्वाहिश को पूरा करते है और मैं भी उनको बहुत प्यार करती हूँ।
पर कुछ बातें इंसान के हाथ में नहीं होती...
बात तब की है जब मेरी ननद रजनी कुछ दिनों के लिए मेरे पास रहने आई और फिर जैसे सब कुछ बदल गया। रजनी के बारे में बता दूँ। रजनी मेरी बड़ी ननद यानि मेरे पति की बड़ी बहन है, शादीशुदा है और दो बच्चों की माँ है। अगर शारीरिक बनावट की बात करें तो सुन्दर है और शरीर भी भरा भरा सा है, बड़ी-बड़ी चूचियाँ और मोटी सी गाण्ड उसकी सुंदरता पर चार चाँद लगाते हैं, बेहद आकर्षक भी है और सेक्सी भी। उसका ज्यादा समय सेक्स के बारे में बातें करने में ही बीतता है।
अजय यानि मेरी पति को अपनी कम्पनी के काम से एक महीने के लिए बाहर जाना पड़ा तो मैंने रजनी को अपने पास बुला लिया। क्यूँकि एक तो मेरी बेटी अभी छोटी थी और मैं अकेली भी थी। रजनी आ गई और एक दो दिन ऐसे ही बीत गए।
पर एक रात...
मैं रात को पेशाब करने के लिए उठी तो रजनी अपने बिस्तर पर नहीं थी। मैंने पहले तो सोचा कि वो भी पेशाब करने गई होगी पर जब बाथरूम में जाकर देखा तो वो वहाँ नहीं थी। मैं पेशाब करके अंदर आई तो मुझे रसोई से कुछ आवाज आई। ध्यान से सुना तो ये किसी की मस्ती भरी सिसकारियाँ थी। मैं डर गई पर फिर मैंने हिम्मत करके रसोई में जाकर देखा तो यह रजनी थी जो एक बैंगन को अपनी चूत में घुसा कर अंदर-बाहर कर रही थी। उसकी आँखें बंद थी और वो पूरी तन्मयता से अपनी चूत में बैंगन अंदर-बाहर कर रही थी। उसे तो मेरे आने का भी पता नहीं लगा था।
मैं वहीं खड़ी उसको देखती रही। मुझे तभी मौसी का वो लकड़ी वाला मस्त कलंदर याद आ गया जिसने मुझे पहली बार सेक्स का अनुभव करवाया था। मैं सोच में डूबी हुई थी की रजनी की मस्ती भरी आह ने मुझे जगाया। रजनी झड़ चुकी थी और वो अब उस बैंगन को चाट रही थी जो कुछ देर पहले उसकी चूत की गहराई नाप रहा था।
"जीजी...(हमारे राजस्थान में ननद को जीजी कह कर बुलाते हैं)"
रजनी ने एकदम चौंक कर आँखें खोली।
"जीजी... आप यह क्या कर रही थी?"
"वो...वो...?
रजनी थोड़ी हकला गई। उसका हकलाना देख कर मेरी हँसी छूट गई।
"अरे जीजी.. बहुत खुजली हो रही है चूत में...? हमारे ननदोई सा चोदे कौनी के तमने?"
मुझे हँसता देख कर रजनी भी कुछ सामान्य हुई और वो भी हँस पड़ी और बोली- भाभी... इस निगोड़ी चूत को लण्ड लिए बिना सब्र ही नहीं होता। जब तक लण्ड से एक बार चुदवा न लूँ तब तक तो नींद ही नहीं आती !
"पर मेरी रानी अब तो इस चूत से दो दो बच्चे निकाल चुकी है अब भी यह शांत नहीं हुई?"
"पता नहीं भाभी? पर बस रहा ही नहीं जाता। तुम्हारे ननदोई जी भी अब चोद नहीं पाते हैं सही से तो रसोई के बैंगन खीरे और मूली से ही काम चला रही हूँ।"
मेरी हँसी छूट गई। रजनी भी अब उठ खड़ी हुई थी। हम दोनों ऐसे ही बातें करते करते अपने बिस्तर पर आ गए और बहुत देर तक हम दोनों ऐसे ही सेक्सी बातें करते रहे। रजनी की सेक्सी बातें सुन कर मेरी चूत में भी खुजली होने लगी थी। ऊँगली से सहला सहला कर मैंने भी अपनी चूत को किसी तरह शांत किया और फिर हम सो गए।
सुबह उठ कर हम दोनों ने मिल कर नाश्ता तैयार किया और एक साथ बैठ कर खाने लगे।
तभी घर के बाहर सब्जी वाले ने आवाज लगाई,"आलू ले लो... बैंगन ले लो... खीरा ले लो..."
आवाज सुनते ही हम दोनों जोर से हँस पड़ी।
मैंने रजनी से पूछ लिया- जीजी... ले कर आऊँ क्या मोटा सा खीरा रात के लिए?
वो भी बेशर्मी से हँस कर बोली- फिर तो दो लेना, एक मेरे लिए और एक तुम्हारे लिए !
दिन में भी रजनी ज्यादातर सेक्स की ही बातें करती रही। तो बातों बातों में मैंने रजनी को अपनी और मौसी की दास्तान सुना दी। रजनी मेरी बात सुन कर मस्त हो गई और बार बार लकड़ी के मस्त कलंदर के बारे में पूछने लगी। मैंने टालने की बहुत कोशिश की पर रजनी नहीं मानी। तब मैंने अपने संदूक में से अपना पहला प्यार अपना लाडला मस्त कलंदर निकाल कर रजनी को दिखाया। बेचारा मेरी शादी के बाद एक बार भी प्रयोग में नहीं आया था।
"हाय भाभी... यह तो बहुत मस्त है... देखो तो तुम्हारे ननदोई के लण्ड से भी मोटा और लम्बा...!"
"ह्म्म्म !" मैंने हामी भरी।
रजनी ने उसको ऐसे मुँह में लेकर चाटा जैसे असली लण्ड हाथ में आ गया हो। रजनी तो उसको अपनी साड़ी के ऊपर से ही चूत पर रगड़ने लगी। देख कर मेरी फिर से हँसी छूट गई। रजनी वहीं सोफे पर टाँगें फैला कर लेट गई और अपनी साड़ी ऊपर करके पेंटी के बराबर में से मस्त कलंदर को चूत पर रगड़ने लगी।
"जीजी, क्यों तड़प रही हो... साड़ी उतार कर अच्छे से डाल लो इसे अपनी चूत में !" मैंने कहा।
रजनी तो जैसे मेरी इसी बात का इन्तजार कर रही थी। उसने झट से अपनी साड़ी और पेटीकोट उतार कर एक तरफ़ फैंक दिया और पेंटी भी उतार दी। मैंने तब पहली बार रजनी की चूत देखी। अच्छे से चुदी हुई रजनी की चूत बहुत मस्त लग रही थी। मुझे मौसी के साथ बिताए दिन याद आ गए और मैं रजनी की टांगों के पास जाकर बैठ गई। रजनी मस्ती के मारे मस्त कलन्दर को अपनी चूत पर रगड़ रही थी और सिसकारियाँ भर रही थी।
तभी मैंने रजनी के हाथ से डण्डा ले लिया और एक हाथ से रजनी की चूत सहलाने लगी। रजनी की चूत पानी छोड़ रही थी। मैंने दो उँगलियाँ रजनी की तपती हुई चूत में डाल दी। रजनी की चूत पूरी गीली हो चुकी थी।
"भाभी... अब जल्दी से यह मूसल डाल ना मेरी चूत में... जल्दी कर मेरी जान !"
रजनी डण्डा अपनी चूत में लेने को बेचैन थी। मैंने भी तेल लगा कर डंडा रजनी की चूत में घुसा दिया और अंदर-बाहर करने लगी। ऐसा करने से मेरी चूत में कीड़े रेंगने लगे थे। मैं अब लकड़ी के मस्त कलन्दर से रजनी की चूत चोद रही थी और रजनी ने भी आहें भरते-भरते मेरी साड़ी जांघों तक ऊपर उठा दी और मेरी चूत पर हाथ फेरने लगी। मेरी चूत भी पानी से लबालब हो गई थी।
रजनी दो ऊँगलियाँ मेरी चूत में पेल रही थी। मेरे बदन में भी मस्ती की लहर दौड़ रही थी। मैं झट से रजनी के ऊपर आ गई और मैंने अपनी चूत रजनी के मुँह के सामने कर दी। अब हम दोनों 69 की अवस्था में थीं।
मैं रजनी की चूत मस्त कलंदर से चोद रही थी और अब रजनी ने भी अपनी जीभ मेरी चूत के मुहाने पर टिका दी थी। रजनी मस्ती में भर कर मेरी चूत चाट रही थी, मुझे मस्त कर रही थी और मैं भी पूरी मस्त होकर मस्त कलंदर को रजनी की चूत के अंदर-बाहर कर रही थी।
रजनी की सीत्कारें और मेरी मस्ती भरी सिसकारियाँ कमरे में गूंज रही थी और माहौल को और मस्त कर रही थी।
लगभग बीस मिनट की धमाचौकड़ी के बाद रजनी की चूत अकड़ी और झमाझम बरस पड़ी। रजनी को परम-आनन्द बहुत तेज़ी से मिला था, ढेर सारा पानी छोड़ा था रजनी की चूत ने।
इधर मेरी चूत में भी रजनी की जीभ ने कमाल कर दिया और मेरी चूत भी मस्त होकर बरस पड़ी और ढेर सारा पानी रजनी के मुँह पर फेंक दिया। रजनी सारा पानी चाट गई तो मैंने भी डण्डा बाहर निकाल कर अपनी जीभ रजनी की चूत पर लगा दी और चाट चाट कर पूरी चूत साफ़ कर दी।
हम दोनों थक कर चूर-चूर हो रही थी और नंगी ही बिस्तर पर लेट गई। मुझे तो खैर पहले भी लेस्बियन सेक्स का मज़ा पता था पर रजनी ने शायद यह सब पहली बार किया था। वो तो इस मस्ती से इतनी खुश हुई कि बहुत देर तक वो डण्डे को अपनी चूत में डाल कर ही लेटी रही।
उसके बाद रजनी करीब बीस-पच्चीस दिन मेरे साथ रही और हर रोज हमने भरपूर मज़ा लिया।
******Conti.******************
 
उसके बाद मेरे पति वापिस आ गए। आते ही मैंने उन्हें उलहाना दिया और अकेले छोड़ कर जाने के लिए थोड़ा सा झूठ-मूठ का झगड़ा भी किया। पर उस रात अजय ने पूरी रात असली लण्ड से मेरी चूत का पोर-पोर मसल दिया और मेरा सारा गुस्सा ठण्डा कर दिया। उस रात रजनी दूसरे कमरे में मेरे लकड़ी के मस्त कलन्दर के साथ मस्ती करती रही।
अगले दिन मेरे पति के जाने के बाद रजनी ने मेरे साथ एक बार फिर मस्ती की और मस्त कलन्दर को अपने साथ ले जाने के लिए पूछा। मैं देना तो नहीं चाहती थी पर जब रजनी बोली कि तुम्हारे ननदोई सा का अब सही से खड़ा नहीं हो रहा है और मुझे बैंगन खीरे से काम चलाना पड़ता है तो मैंने देने के लिए हाँ कर दी। उसी शाम को ननदोई सा आ गए रजनी को लेने और अगली सुबह वो रजनी को लेकर चले गए।
जिंदगी फिर से अपने पुराने रस्ते पर आ गई थी।
मुझे छोटी बच्ची को सँभालने और घर का काम करने में परेशानी हो रही थी और इस कारण अजय भी ड्यूटी के लिए लेट हो जाते थे कभी कभी। मैंने अजय को एक नौकर रखने के लिए कहा तो अजय ने जरुरत को ध्यान में रखते हुए हामी भर दी। पर एक समस्या थी की नौकर किसे रखें। बाहर के आदमी पर विश्वास करने का मन नहीं मान रहा था क्योंकि एक दो घटना मेरे शहर में हो चुकी थी और टी वी पर भी अक्सर ख़बरें आती रहती थी।
काफी सोच समझ कर फैसला किया कि मेरे पति के गाँव से किसी नौकर को शहर बुला लिया जाए। मेरे पति इस मकसद से गाँव में गए और जब अगले दिन वो वापिस आये तो एक बीस इक्कीस साल का नौजवान उनके साथ था।
मैं उसको जानती थी , यह राजकुमार था जिसको सभी प्यार से राजू कहते थे। वह मेरे पति के घर के पास ही रहता था और गाँव में मेरी ससुराल में ही घर का काम करता था।
मैं बहुत खुश हुई कि ठीक है , घर का ही एक आदमी मिल गया। हमने राजू को अपने घर के पीछे का एक कमरा रहने के लिए दे दिया। राजू ने आते ही घर का सारा काम संभाल लिया। अब मैं तो सिर्फ उसकी थोड़ी बहुत मदद कर देती थी नहीं तो सारा काम वो ही करता था। काम खत्म करने के बाद हम अक्सर गाँव की बातें करने लगते समय बिताने करने के लिए। पर सब कुछ मर्यादा में ही था।
जिंदगी चल रही थी पर जैसा मैंने बताया कि पता नहीं जिंदगी कब कौन सा रंग बदल ले।
कुछ दिन बाद होली का त्यौहार था और सभी जानते हैं कि कितना मस्ती भरा त्यौहार है यह। हमारे राजस्थान में तो होली पर बहुत मस्ती होती है।
होली वाले दिन सुबह जल्दी नाश्ता करके सब होली खेलने के लिए इकट्ठे हुए। मेरे पति के एक-दो दोस्त भी आये और मुझे रंग कर चले गए। कुछ देर बाद मेरे पति को भी उनके दोस्त अपने साथ ले गए। राजू आज सुबह से बाहर था। कुछ देर बाद जब आया तो वो पूरी मस्ती में था , आते ही बोला- भाभी.... अगर आप बुरा न मानो तो क्या मैं आपको रंग लगा सकता हूँ?
वो मुझे भाभी ही कहता था। वो मेरे ससुराल का था और मेरे देवर की तरह था तो मैं उसको हाँ कर दी। मेरा हाँ करना मुझे भारी पड़ गया क्योंकि मेरी हाँ सुनते ही राजू रंग लेकर कर मुझ पर टूट पड़ा और मुझे रंग लगाने लगा।
मैं कहती रही- आराम से ! आराम से !
पर राजू ने मेरे बदन पर रंग मल दिया।
रंग लगाते लगाते राजू के हाथ कई बार मेरी चूची और मेरी गाण्ड पर भी लगा जिसे मैंने तब महसूस नहीं किया पर जब वो रंग लगा कर हटा तो अपने कपड़ों की हालत देख कर मेरा मन बेचैन हो गया क्योंकि मेरी चूचियाँ पूरी रंग से सराबोर थी। मेरे पेट पर भी रंग लगा था और मेरी साड़ी भी अस्त-व्यस्त हो चुकी थी।
राजू के हाथ का एहसास अब भी मेरे बदन के ऊपर महसूस हो रहा था। उसने मेरी चूचियाँ कुछ ज्यादा जोर से मसल दी थी।
लगभग बारह बजे तक ऐसे ही मस्ती चलती रही। राजू ने भांग पी ली थी जिस कारण उस पर होली का नशा कुछ ज्यादा ही चढ़ा हुआ था और उसने कम से कम तीन-चार बार मुझे रंग लगाया। मैं मना करती रही पर वो नहीं माना।
करीब एक बजे मैंने राजू को नहा कर दोपहर का खाना तैयार करने के लिए कहा। मैं भी अब नहा कर अपना रंग छुड़वाने की तैयारी करने लगी।
कुछ देर बाद मैं नहा कर कपड़े बदल कर रसोई में गई तो देखा राजू अभी वहाँ नहीं आया था। मैं उसको बुलाने के लिए उसके कमरे की तरफ गई तो वो अपने कमरे के बाहर खुले में ही बैठ कर नहा रहा था।
मैंने आज पहली बार राजू का बदन देखा था। गाँव के दूध-घी का असर साफ़ नजर आ रहा था। राजू का बदन एकदम गठीला था। उसके पुट्ठे अलग से ही नज़र आते थे। होते भी क्यों ना ! गाँव के लोग मेहनत भी तो बहुत करते हैं तभी तो उनका बदन इतना गठीला होता है।
बदन तो अजय का भी अच्छा है पर शहर की आबो-हवा का असर नजर आने लगा है। पर ना जाने क्यों मुझे राजू का बदन बहुत आकर्षक लगा। कुछ देर मैं उसके बदन को देखती रही पर उसने शायद मुझे नहीं देखा था। तभी मैं उसको आवाज देते हुए उसके पास गई और थोड़ा सा डाँटते हुए बोली- तू नहाया नहीं अभी तक... ? दोपहर का खाना नहीं बनाना है क्या?
" भाभी पता नहीं तुमने कैसा रंग लगाया है छूट ही नहीं रहा है... अगर बुरा ना मानो तो मेरी पीठ से रंग को साफ़ करने में मेरी मदद करो ना !"
मैं कुछ देर सोचती रही और फिर अपने आप को उसके बदन को छूने से नहीं रोक पाई और बोली- लया साबुन इयाँ दे... यो मेरो रंग है इया कौनी उतरेगो !
राजू मेरी बात सुन कर हँस पड़ा और मैं बिना कुछ कहे साबुन उठा कर राजू की पीठ पर लगाने लगी।अचानक साबुन फिसल कर नीचे गिर गया और जब मैं उसको उठाने के लिए झुकी तो मेरी नज़र राजू के कच्छे में बने तम्बू पर पड़ी। शायद मेरे स्पर्श से राजू का लण्ड रंगत में आ गया था और सर उठा कर कच्छे में खड़ा था। तम्बू को देख कर ही लग रहा था की अंदर बहुत भयंकर चीज होगी।
मेरे अंदर अब कीड़े रेंगने लगे थे। मैं राजू को जल्दी नहा कर आने का कह कर अंदर चली गई और अपने कमरे में जाकर अपनी चूत सहलाने लगी। मुझे अब अजय या मस्त कलंदर की बहुत जरुरत थी पर दोनों ही इस समय मेरे पास नहीं थे।
मन बहुत बेचैन हो रहा था कि तभी अजय की गाड़ी की आवाज आई।
ये रंग से सराबोर होकर वापिस आये थे। मैंने इन्हें नहाने के लिए कहा पर इन्होंने मुझे पकड़ कर मुझे फिर से रंग लगा दिया। कुछ देर की हँसी मजाक के बाद ये नहाने जाने लगे तो मैंने कहा- मेरा क्या होगा ?
तो इन्होने मुझे पकड़ कर बाथरूम में खींच लिया।
मैं कहती रही कि बाहर राजू है पर इन्होंने मेरी एक ना सुनी। दिल तो मेरा भी बहुत कर रहा था सो मैं भी जाकर इनके पास खड़ी हो गई। हमने एक दूसरे के कपड़े उतारे और फ़व्वारे के नीचे खड़े होकर नहाने लगे।
नहाते नहाते जब बदन एक दूसरे से रगड़े तो चिंगारी निकली और मैं वही बाथरूम में चुद गई।
ऐसा नहीं था कि मैं बाथरूम में नहाते नहाते पहली बार चुदी थी पर आज राजू का लण्ड देख कर जो मस्ती चढ़ी थी उसमे चुदवाने से और भी ज्यादा मज़ा आया था या यूँ कहो कि आज जितना मज़ा पहले कभी अजय ने मुझे नहीं दिया था।
इस होली ने मेरी नियत खराब कर दी थी। अब मेरा बार बार दिल करता था राजू का लण्ड देखने को।अब मैं भी इस ताक में रहती कि कब राजू का लण्ड देखने को मिले। वो घर के पिछवाड़े में पेशाब करता था तो मैं अब हर वक्त नजर रखती कि कब वो पेशाब करने जायगा। जब वो पेशाब करते हुए अपना लण्ड बाहर निकालता और उसमे से मोटी मूत की धार निकलती मेरी चूत चुनमुना जाती। मेरे कमरे की खिड़की से पिछवाड़े का सारा नज़ारा दिखता था। मेरे कमरे की खिड़की के शीशे में से अंदर का नहीं दिखता था पर बाहर का सब कुछ नज़र आता था। राजू का लण्ड देखने के बाद रात को अजय से चुदवाते हुए भी राजू का लण्ड दिमाग में रहता और चुदाई में भी और ज्यादा मज़ा आता।
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होली वाले दिन साबुन लगवाने के बाद अब राजू मेरे से कुछ ज्यादा खुल गया था। अब वो मेरे साथ भाभी देवर की तरह मजाक करने लगा था और कभी कभी तो द्विअर्थी शब्दों का भी प्रयोग करने लगा था। अब वो अक्सर मुझे साबुन लगाने के लिए बोल देता और मैं भी ये मौका ज्यादातर नहीं छोड़ती थी।
ऐसे ही एक दिन साबुन लगाकर जब मैं वापिस मुड़ी तो साबुन के पानी से फिसल कर गिर गई और मेरे कूल्हे पर चोट लग गई। डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने मुझे दस पन्द्रह दिन का पूर्ण आराम बता दिया। कूल्हे की हड्डी खिसक गई थी।
अजय काम से इतनी लम्बी छुट्टी नहीं ले सकता था। और राजू ने भी अजय को बोला कि वो पूरा ध्यान रखेगा तो अजय ने ऑफिस जाना बंद नहीं किया।
पर तभी एक जरूरी काम से अजय को टूर पर जाना पड़ा और तभी एक मुश्किल आन पड़ी कि मेरी माहवारी शुरू हो गई।मैंने अजय को अपनी दिक्कत बताई तो उसने छुट्टी लेने की कोशिश की पर काम जरूरी होने के कारण छुट्टी नहीं मिली। मैं तो बिस्तर पर से उठ नहीं सकती थी तो अब नैपकिन कैसे बदलूंगी।
नित्यकर्म के लिए भी मुझे बहुत दिक्कत थी। जब अजय थे तो वो मुझे सहारा देकर बाथरूम में बैठा देते थे और पेशाब तो मुझे बिस्तर पर बैठे बैठे ही करना पड़ता था। पर अजय के जाने के बाद कैसे होगा यह भी एक बड़ी दिक्कत थी।
अजय ने रजनी को बुला लिया पर वो भी एक दिन से ज्यादा नहीं रुक सकती थी क्यूँकि उसके ससुराल में कुछ कार्यक्रम था। खैर रजनी को छोड़ कर अजय चले गए।
रजनी भी अगली सुबह मेरा नैपकिन बदल कर चली गई। अब घर पर मैं मेरी मुनिया और सिर्फ राजू थे। दोपहर को मुझे नैपकिन बदलने की जरुरत महसूस होने लगी क्यूंकि माहवारी बहुत तेज हो गई थी।
मैंने राजू को व्हिस्पर के पैड लाने के लिए भेजा। वो जब लेकर आया तो मैंने लेटे लेटे ही पुराना पैड निकाल कर दूसरा पैड लगा लिया। पर पुराने गंदे नैपकिन का क्या करूँ , यह सोच कर मैं परेशान हो गई।
मैंने राजू से एक पोलिथिन मंगवा कर उसमें डाल कर पैड बाहर कूड़ादान में डाल कर आने के लिए दे दिया।
राजू बार बार पूछ रहा था- इसमें क्या है...
तो मेरी हँसी छूट गई।
मेरी एक समस्या कुछ देर के लिए तो खत्म हो गई पर दूसरी शुरू हो गई बाथरूम जाने वाली।
पर राजू ने यहाँ भी मेरी बहुत मदद की। वो मुझे अपनी बाहों में उठा कर बाथरूम में ले गया और मुझे अंदर बैठा कर बाहर इन्तजार करने लगा। उसके बदन का एहसास और उसकी बाहों की मजबूती का एहसास आज मुझे पहली बार हुआ था सो मैं अंदर ही अंदर रोमांचित हो उठी। इसी तरह उसने अगले चार दिन तक मेरी खूब सेवा की।
मैं उसकी मर्दानगी और उसके सेवा-भाव के सामने पिंघल गई थी।
चार दिन के बाद अजय वापिस आये और उन्होंने एक सप्ताह की छुट्टी ले ली और मेरी खूब सेवा की। मैं ठीक हो गई।
पर अब घर का माहौल कुछ बदला बदला सा था। अब मैं अजय के जाने के बाद देर-देर तक राजू के साथ बैठी रहती और बातें करती रहती। कुछ दिन के बाद ही बातें सेक्सी रूप लेने लगी। पर हम खुल कर कुछ नहीं बोलते थे। बस ज्यादातर दो अर्थों वाले शब्दों का प्रयोग करते थे।
करीब दो महीने ऐसे ही निकल गए।
एक दिन मैं जब नहाने जा रही थी तो राजू बोला- भाभी अगर जरुरत हो तो क्या मैं आपकी पीठ पर साबुन लगा दूँ ?
मैं कुछ नहीं बोली और चुपचाप नहाने चली गई।
वापिस आई तो राजू रसोई में खाना बनाने की तैयारी कर रहा था। मैंने नहाने के बाद मैक्सी पहनी हुई थे जो मेरे बदन पर ढीली ढीली थी। मैं गीले बदन ही रसोई में चली गई और कुछ तलाश करने लगी। जैसे ही मैंने ऊपर से सामान उतारने के लिए हाथ ऊपर किये राजू ने एकदम से मुझे बाहों में भर लिया और बेहताशा मेरी गर्दन और मेरे कान के आस-पास चूमने लगा।
मैंने थोड़ा सा छुड़वाने की कोशिश की तो उसके हाथ मेरे बदन पर और जोर से जकड़ गए और उसने अपने एक हाथ से मेरी चूची को ब्रा के ऊपर से ही पकड़ कर मसल दिया। मैं हल्का विरोध करती रही पर मैंने उसको रोका भी नहीं।
मैं तो खुद कब से समर्पण करने के मूड में थी। यह तो राजू ने ही बहुत समय लगा दिया।
कुछ देर बाद ही मैंने विरोध बिलकुल बंद कर दिया और अपने आप को राजू के हवाले कर दिया।
राजू ने भी शायद देर करना उचित नहीं समझा और मेरी मैक्सी को मेरे बदन से अलग कर दिया। अब मैं सिर्फ ब्रा और पेंटी में राजू की बाहों में थी। राजू मेरे नंगे बदन को बेहद उत्तेजित होकर चूम और चाट रहा था। राजू ने अपनी मजबूत बाहों में मुझे उठाया और अंदर कमरे में ले गया। वहाँ मुझे बिस्तर पर लिटा कर मेरे ऊपर छा गया। मेरे बदन का रोम रोम राजू ने चूम डाला।
राजू की बेताबी मुझे बदहवास कर रही थी। मैं मस्त होती जा रही थी। मेरी सिसकारियाँ और सीत्कारें निकल रही थी।
" आह... राजू... यह क्या कर दिया रे तुमने? इतना वक्त क्यों गंवा दिया रे बावले... बहुत तड़पाया है तूने अपनी भाभी को... मसल डाल रे.. आह.." मैं मदहोशी की हालत में बड़बड़ा रही थी।
राजू ने मेरे बदन पर बची हुई ब्रा और पैंटी को भी मेरे बदन से अलग कर दिया और अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। वो जीभ से मेरे होंठों को चाट रहा था और मेरे निचले होंठ को अपने होंठों में दबा कर चूम रहा था। अब मेरे हाथ भी राजू के कपड़े उतारने की कोशिश करने लगे। राजू जैसे समझ गया कि मैं क्या चाहती हूँ और उसने खड़े होकर अपने सारे कपड़े उतार फेंके।
कच्छा निकालते ही राजू का काला सा लण्ड निकल कर मेरे सामने तन कर खड़ा हो गया। राजू का मूसल आज मैंने पहली बार इतनी नजदीक से देखा था। नंग-धडंग राजू मेरे पास बिस्तर पर आकर बैठ गया और मेरी चूचियों से खेलने लगा। मेरा हाथ भी अपने आप राजू के लण्ड पर पहुँच गया और सहलाने लगा। राजू का लण्ड सच में अजय के लण्ड से ज्यादा मोटा और लम्बा था। और सच कहूँ तो राजू का लण्ड अजय के लण्ड से ज्यादा कड़क लग रहा था।
राजू मेरी चूचियाँ मुँह में लेकर चूस रहा था और मैं मस्ती के मारे आहें भर रही थी।
" आह... मेरे राजा.... चूस ले रे... ओह्ह्ह्ह बहुत मज़ा आ रहा है रे... जोर जोर से चूस रे.."
राजू मुझे चूमते-चूमते नीचे की तरफ बढ़ रहा था और मेरी चूचियों की जोरदार चुसाई के बाद अब वो जीभ से मेरे पेट और नाभि के क्षेत्र को चूम और चाट रहा था जो मेरे बदन की आग में घी का काम कर रहा था। मेरा बदन भट्ठी की तरह सुलगने लगा था और मैं राजू का लण्ड बार बार अपनी ओर खींच रही थी।
राजू का लण्ड लकड़ी के डण्डे की तरह कड़क था। राजू चूमते-चूमते मेरी जांघों पर पहुँच गया और उसने अपने होंठ मेरी चूत पर रख दिए।
मेरे सुलगते बदन से चिंगारियाँ निकलने लगी... मेरी सीत्कारें और तेज और तेज होती जा रही थी या यूँ कहें कि मैं मस्ती के मारे चीखने लगी थी।
मेरी चीखें बंद करने के लिए राजू ने अपना लण्ड मेरे मुँह में डाल दिया। मैं मस्ती के मारे राजू का लण्ड चूसने लगी। अब चीखें निकलने की बारी राजू की थी। पाँच मिनट की चुसाई के बाद मेरी चूत अब लण्ड मांगने लगी थी और मेरा अपने ऊपर काबू नहीं रहा था।
मैंने राजू को पकड़ कर अपने ऊपर खींच लिया। राजू मेरी बेताबी समझ चुका था। उसने अपना लण्ड मेरी चूत पर लगाया और एक जोरदार धक्का लगा दिया। हालाँकि मैं पूरी मस्ती में थी पर फिर भी धक्का इतना दमदार था कि मेरी चीख निकल गई। राजू ने मेरी चीख पर कोई ध्यान नहीं दिया और एक और दमदार धक्का लगा कर अपना पूरा लण्ड मेरी चूत में स्थापित कर दिया।
दूसरा धक्का इतना जोरदार था कि लण्ड सीधा मेरी बच्चेदानी से जा टकराया और मैं बेहोश होते होते बची।
फिर तो राजू ने अपनी जवानी का पूरा जोश दिखा दिया और इतने जोरदार धक्कों के साथ मेरी चुदाई की मेरे बदन का रोम-रोम खिल उठा , मेरा पूरा बदन मस्ती के हिंडोले में झूले झूल रहा था। मैं गाण्ड उठा-उठा कर राजू का लण्ड अपनी चूत में ले रही थी।
" फाड़ दे मेरे राजा... अपनी भाभी की चूत को फाड़ डाल... ओह्ह्ह आह्ह चोद और जोर से चोद... मैं तो आज से तेरी हो गई मेरे राजू... चोद मुझे जोर.. से... ओह्ह आह्हह्ह सीईईईई आह्हह्ह...."
" जब से आया तब से तेरी चूत चोदने को बेताब था ! साली ने इतना वक्त लगा दिया चूत देने में...आह्हह्ह बहुत मस्त है भाभी तू तो.... ये ले एक खा मेरा लण्ड अपनी चूत में.."
हम दोनों मस्त होकर चुदाई में लगे थे और करीब पन्द्रह बीस मिनट के बाद मेरी चूत दूसरी बार झड़ने को तैयार हुई तो राजू का बदन भी तन गया और उसका लण्ड मुझे अपनी चूत में मोटा मोटा महसूस होने लगा। राजू के धक्के भी अब तेज हो गए थे।
और फिर राजू के लण्ड से गाढ़ा-गाढ़ा गर्म-गर्म वीर्य मेरी चूत को भरने लगा। वीर्य की गर्मी मिलते ही मेरी चूत भी पिंघल गई और बरस पड़ी और राजू के अंडकोष को भिगोने लगी। हम दोनों झमाझम झड़ रहे थे। हम दोनों ने एक दूसरे को अपनी बाहों में जकड़ रखा था जैसे एक दूसरे में समा जाना चाहते हों।
कुछ देर ऐसे ही लेटे रहने के बाद मैं उठी और मैंने राजू का लण्ड और अपनी चूत दोनों को कपड़े से साफ़ किया। मेरा हाथ लगते ही राजू का लण्ड एक बार फिर सर उठा कर खड़ा होने लगा और कुछ ही पल में फिर से कड़क होकर सलामी देने लगा। मैं उठकर जाना चाहती थी पर राजू ने फिर से बिस्तर पर खींच लिया और अपना लण्ड एक बार फिर मेरी चूत में घुसा दिया और एक बार फिर जबरदस्त चुदाई शुरू हो गई।
तब से आज तक पता नहीं कितनी बार राजू ने मेरी चुदाई की... पति के जाने के बाद घर का काम खत्म होते ही राजू और मैं कमरे में घुस जाते और फिर बदन पर कपड़े बोझ लगने लगते हैं। फिर तो दो तीन घंटे हम दोनों नंग-धडंग बिस्तर पर सिर्फ और सिर्फ लण्ड चूत के मिलन का आनन्द लेते हैं.. और यह सब आज भी चल रहा है...
मेरी ननद भी अब राजू से चुदवा चुकी है। उसका भी जब दिल करता है वो मेरे घर आ जाती है और फिर दोनों राजू के लण्ड के साथ एक साथ मस्ती करती हैं। राजू का लण्ड भी इतना मस्त है कि कभी भी उसने हमें निराश नहीं किया। वो तो हर समय मुझे चोदने के लिए खड़ा रहता है।
 
राजा का फ़रमान

मैं वृंदा पहली बार अपना एक स्वप्न प्रस्तुत कर रही हूँ, मुझे अक्सर इस तरह के स्वप्न आते हैं !
और मैंने आज तक किसी को इनके बारे में नहीं बताया है, आज पहली बार बहुत हिम्मत करके लिखने का प्रयास कर रही हूँ !
इस स्वप्न में मैं एक ऐसे देश में पहुँच गई हूँ जहाँ का राजा बहुत ही क्रूर और कामोत्तेजित है, उसके देश में लड़कियाँ जैसे ही जवान होती हैं, उन्हें राजा के पास एक महीने के लिए भेज दिया जाता है और वो उनका कामार्य भंग करता है, उन्हें भोगता है और एक महीने बाद उन्हें अपने घर वापिस भेज देता है।
यदि कोई लड़की उसके बाद माँ बनती है, तो उसकी महल में वापसी राजा की रखैल के रूप में होती है वो वहाँ बच्चे को जन्म देने और चालीस साल पार करने के बाद दासी बन कर रहती है, जो कोई परिवार अपनी बेटी को राजा से भोग लगवाने नहीं भेजता, उसकी बेटी उठवा ली जाती और उसकी बाज़ार में बोली लगवाई जाती, जो उसे खरीदता वो सबके सामने उसे चोदता, खसोटता और उसे अपनी नोकरानी बना कर रखता अपने ख़ास आदमियों से उसे चुदाता और जब मन भर जाता तो फिर किसी को बेच देता!!
इस तरह जब मैंने वहाँ कदम रखा तो बहुत से मर्द मुझे बेचैन निगाहों से देखने लगे मेरे आसपास मंडराने लगे कोई मेरी गाण्ड छूकर चला जाता तो कोई फबतियाँ कसता यह कहते हुए कि आज तुझे रखैल नहीं, अपनी रानी बनाऊँगा।
एक ने तो हद ही कर दी, पीछे से आते हुए मेरी अन्तःचोली कपड़ों के भीतर से ही खोल दी !!! वहाँ कहीं जाकर चोली फिर से बंद करने की जगह नहीं थी तो मैं कुछ आगे बढ़ी, चलने से मेरी चूचियाँ हिलने लगी, तो एक आदमी सामने से आया और कहने लगा- तुम से नहीं संभल रही तो मैं थाम लूँ !!
उस पर मैंने उस आदमी पर हाथ उठा दिया, उसने हाथ पकड़ लिया और मुझे अपनी और खींच कर दूसरे हाथ से मेरी चूचियाँ मसल दी।
तभी वहाँ खड़े भूखे मर्द मेरी और बढ़ने लगे और बोले- आओ, इसे राजा के पास ले जाते हैं ! खूब बड़ा इनाम मिलेगा !
और सभी मुझे पकड़ कर राजा के दरबार में ले गए, दरबार बहुत बड़ा था, वहाँ बहुत सी दासियाँ थी, सभी दासियाँ अधनंगी थी, आते जाते मंत्री, तंत्री, रक्षक उन दासियों को छेड़ रहे थे, उनका बदन मसल रहे थे, बहुत कामुक माहौल था।
राजा ने सुनवाई शुरू की तो एक रखैल राजा की गोद में आ बैठी। राजा ने उसके बदन से सारे कपड़े उतार दिए और सुनवाई करते करते अपना लण्ड चुसवाने लगा।
सभी मंत्री इतनी सारी नंगी औरतों को देख कर अपना लण्ड अपने हाथों से मसल रहे थे।
तभी मेरी सुनवाई की बारी आई, बाहर हुई घटना विस्तार में बताई गई।
सब कुछ सुनकर राजा ने पूछा- इतना गुरूर किस बात का तुझे लड़की...? आखिर ऐसा क्या है तेरे पास? ये चूचियाँ? यह गाण्ड? यह चूत? ये तो हर औरत के पास होती है और इस देश में औरतों की कमी नहीं ! मेरी एक आवाज़ पर यहाँ चूतों की कतार लग जाती है।
तभी वो अपनी रखैल को चूमने लगा और उसने अपनी रखैल को कुछ इशारा किया और ताली बजाई।
रखैल उसके पैरों के पास लेट गई और हवा में टांगें करके उसने अपनी टांगें खोल के चूत उसके सामने पेश कर दी। देखते ही देखते बीस-पच्चीस रखैलें आई और अपनी टांगें खोल कर हर मंत्री के सामने चूत पेश करने लगी !!
मंत्रियों के मसलते लण्ड फुफकारने लगे, और सभी ने रखैलो की चूतों में अपने अपने लण्ड घुसा दिए और चुदाई करने लगे।
राजा ने पूछा- अब बोल लड़की !
मैं शर्म से पानी पानी हुए जा रही थी, मैंने राजा से जबान लड़ाई- आप यह सब क्यों कर रहे हैं...?
राजा बोला- ताकि तुझे तेरी औकात पता लगे कि तुम औरतें सिर्फ मर्दों से चुदने और चूसने-चुसवाने के लिए पैदा होती हो ! हाथ उठाने के लिए नहीं, और अगर हाथ उठ भी जाता है तो भी लण्ड के लिए उठना चाहिए...!!!
कहते हुए राजा ने फैसला सुनाया- आज से लेकर कल इसी समय तक तेरी लगातार चुदाई होगी और वो भी भरे महल में..!!!
राजा: सिपाहियो ले जाओ इस लड़की को और तैयार करो हमारे लिए ! इसकी अक्ल तो हम ठिकाने लगायेंगे, आजकल बहुत पर निकल आए हैं इन रांडों के !!
मुझे महल में ले जाया गया और स्नानघर में ले जाकर एक तालाब में कपड़ों समेत धकेल दिया गया। फिर सिपाही भी नंगे हो अन्दर उतर आए और मेरे बदन को धोने के बहाने मसलने लगे।
एक ने मेरी चूत में ऊँगली डाल दी, एक ने गाण्ड में अंगूठा घुसा दिया और हाथों की उंगलियों और हथेलियों से मेरी गोल-गोल गाण्ड को मसल कर मज़े लेने लगा।
एक ने मेरे चूचे दबोच लिए और एक मेरा दाना हिला हिला के मुझे तड़पाने लगा।
मेरे मुँह से आनन्द भरी आहें निकलने लगी।
तभी एक ने मेरे मुँह में दो उंगलियाँ डाल दी, कोई भी अपने औजार का प्रयोग नहीं कर रहा था, क्यूंकि सबको पता था कि मैं राजा का माल हूँ, और मुझ में मुँह मारना यानि जान से हाथ धोना !
तभी राजा अन्दर आया और मुझे 5-6 सिपाहियों के बीच कसमसाता देख मजे लेने लगा। मैं आँखें बंद कर आहें भर रही थी, मेरी अन्तर्वासना जाग चुकी थी, आँखों में कामवासना भर चुकी थी।
तभी जाने अनजाने मेरे हाथ एक सिपाही के लण्ड तक जा पहुँचे, सिपाही झेंपते हुए पीछे हो गया यह सोच कर कि राजा को पता लगा तो लण्ड कटवा देंगे!
मैं चुदने को तड़पने लगी।
तभी राजा ने सिपाहियों को जाने का इशारा किया और मेरी कामतन्द्रा टूट गई।
राजा पानी में उतर आया और उसने मेरे कंधे पर जोर से काट खाया, मेरा खून निकलने लगा और मुझे अपनी ओर खींचा...
राजा : मैं जानता हूँ कि तू अब खुद के काबू में भी नहीं है...
मैं : जा जा ! तुझ में इतनी हिम्मत नहीं कि किसी औरत का सतीत्व बिना उसकी मर्जी के तोड़ सके ! इतनी हिम्मत होती तो क्या औरतों पर जुल्म करता? उन्हें मजबूर करके अपनी रखैल बनाता? अपने फरमान से प्रजा को दुखी करता?? नहीं, तू तो एक नपुंसक है, जब तेरी कोई भी पत्नी माँ नहीं बन सकी तो तूने बाहरी औरतों का शोषण किया, तेरे जैसा बुज़दिल और बेगैरत इन्सान मैंने आज तक नहीं देखा..!!
राजा : मैं बेगैरत..? मैं बुज़्दिल..? तो तू क्या है? रण्डियो की रानी? जब सिपाही तुझे मसल कुचल रहे थे, तब कहाँ था तेरा सतीत्व..!!!
मैं : वो तेरे आदेश का पालन कर रहे थे और अगर मैं साथ न देती तो तू उनका क़त्ल करवा देता ! मेरी वजह से किसी बेक़सूर की जान जाये, यह पाप मैं अपने सर नहीं ले सकती..!!
राजा : अच्छा !!!
यह कहते ही राजा ने मेरी चूचियों पर से कपड़ा नीचे सरका दिया। मैंने बिन कंधे का टॉप पहना था और ब्रा तो रास्ते में ही खुल चुकी थी, सो चूचियाँ उसके सामने झूलने लगी और राजा की आँखों में लालच आने लगा...
उसने मेरी चूचियाँ थामने के लिए अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा दिए, मैं दो कदम पीछे हो गई, राजा भी देखते ही देखते आगे आ गया।
मेरे मन में एक तरकीब सूझी, राजा जैसे ही और आगे बढ़ा, मैंने पानी के अन्दर ही उसके लण्ड पर दबाव बनाया, राजा मन ही मन खुश हो रहा था, तभी उसकी शरारत भरी मुस्कान, दर्द भरी कराह में बदल गयी, मैंने उसका लण्ड जो मरोड़ दिया था।
राजा लण्ड पकडे वहीं खड़ा रहा और मैं वहाँ से भाग निकली।
राजा ने मेरे पीछे सैनिक लगा दिए, मैं एक शयनकक्ष में जा घुसी, शयन कक्ष खाली था, मैंने परदे उतार कर जल्दी से अपना बदन ढका, और एक मूरत के पीछे छिप गई।
तभी दरवाजे पे दस्तक हुई...
सिपाही: महारानी जी, यहाँ कोई स्त्री आई है..??
मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था सो मैंने जवाब दिया.. अगर जवाब न देती तो वो सिपाही अन्दर चला आता .!!!
मैं कमरे के भीतर से : नहीं यहाँ कोई नहीं आया, तुम जाओ हम कुछ देर विश्राम करना चाहते हैं..!!
सिपाही: महारानी जी, क्षमा करें, महाराज का आदेश है...!!!
तब तक मैंने महारानी के वस्त्र पहन लिए थे और खिड़की की तरफ मुँह करके खड़ी हो गई और थोड़ा सा घूँघट भी निकाल लिया..
मैं : ठीक है, आ जाओ..
सिपाही कमरे में घुसा और कमरा तलाशने लगा, मेरे पास आया और सर झुका कर कहने लगा- क्षमा कीजिए महारानी जी ! यहाँ कोई नहीं है..!!
सिपाही के जाते ही मैं भी रानी के वेश में कमरे से बाहर निकली, ताज्जुब की बात तो यह थी कि कहीं पर भी कच्छी और ब्रा नाम की चीज़ नहीं थी, मैं महारानी के वस्त्रों में तो थी पर अन्दर से एकदम नंगी
! मेरे चूचे चलते-भागते हिल रहे थे, कि तभी मैं एक जगह जाकर छुपी..... और पकड़ ली गई।
जगह थी "वासना गृह"
वहाँ राजा नग्नावस्था में था, उसके आसपास उसकी बहुत सी रखैलें थी, एक की चूची एक हाथ में दूसरी की चूची दूसरे हाथ में, तीसरी छाती पर बैठी चूत चटवा रही थी, चौथी टट्टे चाट रही थी, पांचवी लण्ड
एक बार गाण्ड में लेती फिर उछल कर चूत में लेती।
परदे के पीछे से देख देख कर मैं अपना घाघरा उठा कर ऊँगली करने लगी, महारानी के कंगनों की आवाज़ से मैं पकड़ी गई।
राजा ने आपातकाल बैठक बुलाई, राज्य के सभी मर्दों को न्योता दिया गया, राजा नग्न अवस्था में ही बैठक में आया...
राजा ने फरमान सुनाया- इस लड़की ने मुझसे चुदने से इनकार किया है, इसलिए इसकी इसी दरबार में बोली लगेगी, ऐसी बोली जैसी आज तक किसी की नहीं हुई होगी। इस बोली के बाद इसका इसी सभा में चीरहरण होगा, उसके बाद यह रखैल तो क्या किसी की दासी बनने के लायक भी नहीं रह जाएगी, इसके चीर और यौवनहरण के बाद इसकी चूत और गांड सिल दी जाएगी, चूचे और जबान काट लिए जायेंगे। और हाँ, बोली लड़की की नहीं उसकी जवानी की लगेगी, चूचे, गाण्ड, गदराया बदन, जांघें, बाहें, होंठ, बगलें जिस्म के हर हिस्से की बोली लगेगी..!!!
यह सुन कर तो मेरे होश उड़ गए..
अब और क्या होना बाकी है मेरे साथ...?
मुझे मन ही मन डर लग रहा था..!!!
यह सुन सभा में ख़ुशी से शोरगुल होने लगा, लोग ठहाके लगाने लगे, फबतियाँ कसने लगे, भीड़ में से आवाज़ आई- आज मज़ा आयेगा ! मैं अभी घर से अशर्फ़ियाँ उठा लाता हूँ !
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