Hindi Kamukta Kahani हिन्दी सेक्सी कहानियाँ - Page 3 - SexBaba
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Hindi Kamukta Kahani हिन्दी सेक्सी कहानियाँ

मेरी तो हवा निकल रही थी कि अब जाने आगे मेरे साथ क्या होने वाला है, इससे पहले जो हुआ वो कम था क्या...!!!
कि अचानक आवाज़ आई..
राजा : बोली ठीक 15 मिनट बाद आरम्भ होगी ताकि आप सभी इस समय में इसके जिस्म का मुआयना कर लें और अपने हिसाब से बोली लगायें..!!!
मेरे जिस्म से कपड़े फाड़ कर फिंकवा दिए गए, लोगों की तो मौज हो गई।
तभी एक मंत्री ने राजा से अनुरोध किया- महाराज, क्या हम इसे छूकर देख सकते हैं? ताकि हमें भी भरोसा हो जाये कि जो माल हम खरीद रहे हैं उसमें किसी बात की कमी तो नहीं..!!!
राजा : ठीक है छू लो !! आखिर ग्राहक को भी पता होना चाहिए कि जिस चीज की वो कीमत दे रहा है वो असल में क्या है और कैसा है..!!! हा ह़ा हा हा !!
मंत्री मेरी तरफ बढ़ चला, तो भीड़ से आवाज़ आई- मंत्री जी छुइएगा नहीं ! कहीं पानी न छोड़ दे राण्ड..!!!
एक और आवाज़ आई- और अगर छू भी रहे हैं जनाब, तो मसल डालियेगा ! और हाँ ! जिस्म का कोई अंग ना रहने पाए..!!!
यह सुन कर लोग ठहाके लगाने लगे..
मैं नंगी खड़ी पानी-पानी हो रही थी, मुझे अब तक केवल पाँच लोगो ने छुआ था, राजा और उसके सिपाहियों ने और अब छठे की बारी थी।
वो आया और आते ही उसने मेरे केशों में हाथ फेरा, फिर अचानक से बालों को खींच कर उसने मुझे धक्का दिया और भीड़ की तरफ मुँह करके बोला- क्यों कैसी रही?
सभी लोगों ने उसे वाह-वाही दी।
फिर वो मेरी तरफ बढ़ा, दोनों हाथों से मेरे चूचे थाम कर बोला- बहुत गरम माल है ! ऐसा लग रहा है कि हाथों में पिघल रहा है !
और मेरे चूचे बेदर्दी से मसलने लगा। चूचे पकड़ कर उसने यकायक मुझे अपनी ओर खींचा और मेरी गाण्ड पर ज़ोरदार तमाचे लगाने शुरू कर दिए, कहने लगा- नीचे से भी कड़क है !
फिर उसने मुझे ज़मीन पर धकेल दिया और दो सिपाही बुलवा कर मेरी टांगें हवा में खुलवा दी, मेरी चूत की फांकें खोल कर बोलने लगा- अरे कोई चोदो इस राण्ड को ! वरना पानी बहा बहा कर पूरा महल अपने काम रस से भर देगी...!!!
भीड़ से आवाज़ आई- हम भी तो उसमें डूबना चाहते हैं !
तभी महामंत्री ने एलान किया- बोली शुरू की जाये !
पहली बोली महाराज की।
महाराज ने कहा- सबसे पहले होंठो की बोली, एक सौ सोने की अशर्फियाँ !
बोली बढ़ते-बढ़ते 2500 अशर्फियों तक पहुँची और फिर मेरे होंठ आखिरकार बिक गए, किसी साहूकार ने खरीदे थे।
साहूकार आगे आया और मेरे होंठो पर चूमने लगा, भरा दरबार मेरी लुट ती हुई इज्ज़त देख रहा था, मेरे होंठ चूसते हुए उसने अपनी जबान मेरे मुँह में डाल दी और मेरी गर्दन पकड़ ली।
सभी लोगों के मुँह में पानी आ रहा था, लार टपक रही थी।
फिर मेरी बगलों की बोली हुई, जिन्हें 1500 अशर्फियों में दो भाइयों ने खरीदा।
दोनों अपना लण्ड झुलाते, मेरे दोनों तरफ आ गए और दोनों ने अपने अपने लण्ड मेरी बगलों में घुसा दिए और घिसने लगे।
उधर साहूकार ने भी अपने फनफ़नाता लण्ड निकाला और सर की तरफ खड़े हो मेरा चेहरा अपनी ओर करते हुए अपना लण्ड मेरे मुंह में पेल दिया...
अब मेरे जिस्म पर तीन लण्ड थे।
फिर मेरे चूचों की बोली शुरू हुई।
महामंत्री ने मेरे चूचे 5000 अशर्फियों में खरीद लिए और आकर मेरी कमर पर बैठ मेरे चूचे चूसने लगे।
फिर मेरे हाथों की बोली लगी।
दो व्यपारियो ने मेरे हाथ खरीदे और अपने अपने लण्ड मेरे हाथों में मुठ मराने के लिए दे दिए।फिर बोली लगी मेरी गांड की !
दस हज़ार अशर्फियों में गाण्ड भी बिक गई।
गाण्ड का फूल कोमल था, उसे एक बलिष्ठ पहलवान ने खरीदा था।
वो आया और मुझे अपने नीचे सीधा करके लेटा लिया। इस तरह कि मेरा चेहरा छत की तरफ हो।
अब मुझ पर सात लण्ड सवार थे, दो हाथों में, दो बगलों में, एक चूचों में, एक मुँह में और एक गाण्ड में !
और अब बारी राजकुमारी चूत की थी !
वो इतने लण्डों की वजह से रस चो चो कर बेहाल थी।
मैं जल्दी ही अपनी चूत में एक मोटा ताज़ा लौड़ा लेना चाहती थी।
मेरी इज्ज़त तो लुट ही चुकी थी, मैं सबके सामने नंगी हुई अलग अलग जगह से चुद रही थी, मैं खुद पर अपना नियंत्रण खो चुकी थी।
इतने मर्द मेरे जिस्म से लिपटे थे, मैं इसी सोच में थी कि मुझे सुनाई पड़ा- इसकी चूत आपकी हुई !
मैंने मुँह से साहूकार का लण्ड निकाला और चेहरा उठा कर इधर-उधर देखा तो क्या देखती हूँ,
चूत राजा ने खरीदी थी, वो भी दस-बीस हज़ार में नहीं, पूरे एक लाख अशर्फियों में !
राजा आया, जो कि पहले से नंगा था, आकर मेरे ऊपर चढ़ गया और मेरी चूत में अपना लण्ड घुसाने की नाकाम कोशिश करने लगा...
उधर मेरा मुँह लण्ड खा-खा कर थक चुका था...कि साहूकार ने अपना काम रस छोड़ दिया, मेरे मुँह में भर दिया और उठ कर पूरी कामलीला देखने लगा..
मेरी बगलों से लंड-रस बह रहा था, चूचो पर महामंत्री जी अपने हाथों से घुन्डियाँ घुमा कर मुझे मीठी सी टीस दे रहे थे, हाथ वाले लण्ड, मैं अभी भी जोर जोर से हिला रही थी, और पहलवान मेरी गाण्ड फाड़ रहा था।
उस पर चोट खाए राजा ने जोर से एक झटका मारा और मेरी चूत फाड़ डाली।
मेरी चूत से खून नहीं निकला तो राजा बोला- तू तो खेली-खाई है, तो भी तेरे इतने नखरे हैं... ये ले ...!!!
कह कर उसने एक और ज़ोर से झटका मारा.... एक मीठी सी आह के साथ एक .. तैरती सी तरंग मेरे जिस्म में फ़ैल गई।
 
अब तो गाण्ड का दर्द भी जा चुका था... ऐसा लग रहा था जैसी दुनिया भर का समंदर मेरी दो टांगों के बीच समा गया है।
सभी मंत्रिगण मेरे हाल देख कर मुठ मार रहे थे...
महामंत्री मेरे चूचे और जोर से मसल मसल के दाँतों से काटने लगे...
मैं कराह रही थी.. आःह्ह्ह आआह्ह्ह्ह से दरबार गूँज रहा था...
मेरी आहें.. राजा और पहलवान को लुभा रही थी कि तभी राजा अपने हाथ से मेरी चूत का दाना छेड़ने लगा..
मैं तड़प उठी...
मैंने अपने हाथ से एक लण्ड छोड़ राजा के हाथ पर हाथ रख दिया और जोर-जोर से भींचने लगी.. राजा के हाथ को अपने दाने पर दबाने लगी..
तभी मंत्री जी ने अपना काम रस मेरे चूचों पर छोड़ दिया... और जिस्म से हट गए..
उन्होंने हटते ही मेरे होंठों पे ज़ोरदार चुम्मा दिया और बोले-. तू कमाल की है... अगर राजा का चूचे काटने का फरमान नहीं होता तो शायद में तेरे चूचे चूसने, दबाने के लिए तुझे हमेशा के लिए अपने पास रख लेता...
तभी साहूकार पिनियाते हुए आया और बोला- इसके होंठ मेरे हैं... तू क्यों चूम रहा है..?
महामंत्री बोला- अरे सबसे पहले तो तूने ही मुँह मारा है इस पर.. तू हट गया तो मैंने भी मार लिया अपना मुँह ! अब कुआँ चाहे किसी का भी हो, कुआँ पानी तो हर किसी को पिलाता है ना...?
दोनों व्यापारियों की भी पिचकारी छूटने लगी थी, दोनों ने मेरे चेहरे पर पिचकारी दे मारी.. और बोले- चाट इसको... नहीं तो फिर से मुठ मारेगी तू हमारी...
मेरी हालत.. सचमुच की रांडों जैसी हो गई थी कि तभी पहलवान छूटने लगा और दोनों हाथों से मेरे चूचों पर जो माल गिरा था उसे मेरे चूचों पर मसलने लगा...
महामंत्री खड़े खड़े तमाशा देख रहा था.. कि कराहट से मेरा मुँह खुल गया है...
तभी राजा मेरे ऊपर आया और मेरे होंठो को उसने अपने मुँह में भर लिया, काटने-खसोटने लगा...
तभी पहलवान झड़ने लगा और उसने सारा रास मेरी गाण्ड में ही छोड़ दिया...
उसका लण्ड छोटा होकर मेरी गाण्ड से बाहर आ गया..
अब राजा को मौका मिल गया.. वो तो पहले से ही मुझ पर सवार था..
अब मेरे जिस्म पर वो हक़ ज़माने लगा, कभी मेरे चूचे मसलता, कभी मेरे मुँह में हाथ डाल देता..
वो मेरी जवानी लूट रहा था और मैं कुछ नहीं कर पा रही थी..
इतने में उसने पहलवान को मेरे नीचे से हटने का मौका दिया..
अब मैं कालीन पर और राजा मेरी चूत में घुसा बैठा था...
वो अब मेरी गाण्ड में दो ऊँगलियाँ घुसाने लगा.. और मैं मदमस्त हुई अपनी जवानी का रस लुटा रही थी..
कि तभी अचानक राजा ने लण्ड निकाल कर मेरी गाण्ड में पेल दिया...
राजा अब झड़ने वाला था... राजा ने एक झटके से अपना लण्ड फिर मेरी चूत में पेला और झड़ने लगा...
आगे बढ़ कर मेरे होंठ चूसने लगा... उसने मेरी चूचक मसले ... और मेरे अन्दर ही झड़ गया... उसके बाद वो मुझ पर से हट गया ..
उसने सिपाहियो को मुझे खड़ा करने को बोला..
मैं कामरस में भीगी हुई थी, मेरे से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था..
जैसे तैसे मैं सिपाहियो के सहारे खड़ी हुई।
हवा में कामरस की खुशबू मुझे और चुदने को मजबूर कर रही थी...
सभी मर्द मुझ पर हंस रहे थे, मेरी बेबसी का मजाक बना रहे थे, राजा ठहाके लगा रहा था...
कि तभी मुझ पर जोर से पानी फेंका गया..
मेरी आधी बेहोशी चूर चूर हो गई, मेरे जिस्म से काम रस हट गया..
मेरा गोरा जिस्म सबकी निगाहों में चमकने लगा..
मेरे गीले बाल मेरी चूचियों को ढकने की नाकाम कोशिश कर रहे थे..
मेरे थरथराते होंठ पानी से भीग कर कई लण्डों को आमंत्रित कर रहे थे...
मेरी चमकती गाण्ड चुद कर और चौड़ी हो गई थी...
मेरी हालत देखने लायक थी...
सभी सभासद मेरा आँखों से बलात्कार कर रहे थे..
मैंने अपने हाथों से अपने लाल चूचों और बहती चूत को छिपाने की कोशिश की..
कि तभी दो सिपाही आए और मेरे जिस्म से मेरे हाथों को अलग कर अलग अलग दिशा में थाम लिया।
मैं नंगी खड़ी जमीन में गड़े जा रही थी..!!
सब मंत्री खड़े होकर मुझ पर थूकने लगे.. और ठहाके लगा कर हंसने लगे...
एक सिपाही दो लट्ठ लेकर आया, मोटे-मोटे लट्ठ, जो लंड से कई गुना बड़े और मोटे थे।
एक मेरी चूत में और दूसरा मेरी गाण्ड में घुसा दिया गया..
दर्द के मारे मैं चिल्लाने लगी...
तभी एक कसाई को बुलवाया गया.. ताकि वो मेरे चूचे और ज़बान काट सके..
कसाई अपने औज़ारों की धार तेज कर रहा था..
वो मेरे करीब आया और काटने के लिए उसने अपनी कटार उठाई..
कि तभी पीछे से आवाज़ आई..
राजा : रुको ...!!!
सभी सभासद बातें बनाने लगे..- यह क्या हो गया .. चिकने बदन पर राजा फिसल गया...!!!
राजा : इस लड़की ने जितना दर्द सहना था, सह चुकी... और ऐसा नहीं कि इसने सिर्फ दर्द सहा... इसने सिपाहियों के हाथों से मसले जाने पर आहें भी भरी.. और अपनी चूत की मादक सुगंध सूंघ कर यह भी चुदने को बेताब हुई.. इससे यह साबित होता है कि लड़की में जिस्म का गुरूर जरूर है.. पर यदि इसे ठीक ढंग से गर्म किया जाये तो यह 8-10 लड़कियों का मज़ा एक ही बार में दे सकती है... इसलिए मैं इसकी चूत, गाण्ड सिलने का आदेश वापिस लेता हूँ और लड़की पर छोड़ता हूँ कि वो मेरी सबसे प्यारी रखैल बनना चाहती है या गली मोहल्ले में नंगी घूमने वाली रंडी? या फिर किसी टुच्चे की रखैल बन कर अपनी जवानी बर्बाद करना चाहती है और नौकरानी बने रहना चाहती है सारी ज़िन्दगी..!!!
मैं राजा के हाथ लुट चुकी थी और कई मर्द मुझे अब भोग चुके थे... राजा की बाकी दासियों की तरह मैं भी उसके लण्ड की दीवानी हो चुकी थी..
इसलिए मैंने उसकी रखैल बन कर रहना मंज़ूर किया।
अब राजा हर रात मेरे साथ गुज़ारता, मैं हर वक़्त नंगी रहती...मेरी अन्तर्वासना हर समय जागृत रहती...
राजा जब आता, तब मुझे चोदता...
मेरे जीवन में अब वासना.. काम .. चुदाई.. लंड के सिवा कुछ नहीं रह गया था...
समाप्त !!!!
कैसा लगा मेरा स्वप्न.
 
भाभी ने मुझसे और भी कई तरीकों से .........

उस समय तक मेरे लण्ड पर बाल उग आए थे। मैं अक्सर रात को अपने बिस्तर पर नंगा लेट कर अपने लण्ड के बालों को सहलाया करता था एवं अपने लण्ड को खड़ा कर उसे सहलाता रहता था।
एक रात मैं अपने लण्ड को सहला रहा था। उसमे मुझे बहुत आनंद आ रहा था। अचानक मैंने जोर जोर से अपने लण्ड को अपने हाथ से रगड़ना शुरू किया। मुझे ऐसा करना बहुत अच्छा लग रहा था। अचानक मेरे लण्ड से मेरा माल निकलने लगा। उत्तेजना से मेरी आँखे बंद हो गई। ५-६ मिनट तक मुझे होश ही नहीं रहा। ये मेरा पहला मुठ था। इसके पहले मुझे इसका कोई अनुभव नहीं था। मैंने बाथरूम में जा कर अपने लण्ड को धोया और बिस्तर पे आया तो मुझे गहरी नींद आ गई।
अगली सुबह मैं अपने कमरे से बाहर निकला तो देखा कि भइया अपने ऑफिस के लिए तैयार हो रहे हैं। उनकी शादी हुए २ साल हो गए थे। भाभी मेरे साथ बहुत ही घुली मिली थी। मैं अपनी हर प्रोब्लम उनको बताया करता था। मेरे माता-पिता भी हमारे साथ ही रहते थे। थोड़ी देर में भईया अपने ऑफिस चले गए। पिता जी को कचहरी में काम था इस लिए वो १० बजे चले गए। मेरे पड़ोस में एक पूजा का कार्यक्रम था सो माँ भी वहां चली गई।
मैंने देखा कि घर में मेरे और भाभी के अलावा कोई नहीं है। मैं भाभी के कमरे में गया। भाभी अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी। मैं उनके बगल में जा कर लेट गया। मेरे लिए ये कोई नई बात नहीं थी। भाभी को इसमें कोई गुस्सा नहीं होता था। भाभी ने करवट बदल कर मेरी कमर के ऊपर अपना पैर रख कर अपना बदन का भार मुझे पे डाल दिया और कहा- क्या बात है राजा जो आप कुछ परेशान लग रहे हैं?
भाभी अक्सर मेरे साथ ऐसा करती थी।
मैंने कहा- भाभी कल रात को कुछ गजब हो गया, आज तक मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ था।
भाभी ने पूछा- क्या हुआ?
मैंने कहा- कल रात को मेरे लण्ड से कुछ सफ़ेद सफ़ेद निकल गया, मुझे लगता है कि मुझे डाक्टर के पास जाना होगा।
भाभी ने मुस्कुरा के पूछा- अपने आप निकल गया?
मैंने कहा- नहीं ! मैं अपने लण्ड को सहला रहा था तभी ऐसा हुआ।
भाभी ने कहा- राजा बाबू ! अब आप जवान हो गए हो, ये सब तो होगा ही ! लगता है कि मुझे देखना होगा।
भाभी ने अपना हाथ मेरे लण्ड के ऊपर रख दिया तथा धीरे धीरे इसे दबाने लगी। इससे मेरे लण्ड खड़ा होने लगा।
भाभी बोली- जरा दिखाइए तो सही !
मैं कुछ नहीं बोला। मैंने धीरे से अपने पैन्ट का बटन खोल दिया। भाभी ने मेरे पैन्ट को नीचे की ओर खींचा और उसे पूरी तरह उतार दिया। अब मैं सिर्फ़ अंडरवियर में था।
भाभी अंडरवियर के ऊपर से ही मेरा लण्ड को सहला रही थी, बोली- क्या इसी से कल रात को सफ़ेद सफ़ेद निकला था?
मैंने कहा- हाँ !
भाभी ने कहा- अंडरवियर खोलिए !
मैंने कहा- क्या भाभी जी ! आपके सामने मैं अपना अंडरवियर कैसे खोल सकता हूँ?
भाभी बोली- अरे जब आप मेरे को अपनी पूरी समस्या नहीं बतायेंगे तो मैं कैसी जानूंगी कि आपको क्या हुआ है? और मुझे क्या शरमाना? अपनों से कोई शरमाता है भला? जब आपके भइया को मेरे सामने अपने कपड़े खोलने में कोई शर्म नहीं है तो फिर आप क्यों शरमाते हैं?
मैं इस से पहले कि कुछ बोलता भाभी ने मेरा अंडरवियर पकड़ कर अचानक नीच खींच लिया। मेरा लण्ड तन के खड़ा हो गया।
भाभी ने मेरे लण्ड को अपने हाथ से पकड़ लिया और कहा- अरे राजा बाबू ! आप तो बहुत जवान हो गए हैं।
भाभी मेरे लण्ड को पकड़ कर सहला रही थी। मेरे लण्ड से थोड़ा थोड़ा पानी निकलने लगा। अचानक भाभी मेरे को जकड़ कर नीचे की तरफ़ घूम गई। इस से मैं भाभी के शरीर पर चढ़ गया। भाभी का शरीर बहुत ही मखमली था। भाभी ने मुझसे कहा - मुझे चोदियेगा?
मैं कहा- मैं नहीं जानता।
भाभी ने मेरे शरीर को पकड़ लिया और कहा- मैं सीखा देती हूँ, मेरा ब्लाउज खोलिए।
मैंने भाभी का ब्लाउज खोल दिया। भाभी का चूची एकदम सफ़ेद सफ़ेद दिख रहा था। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि भाभी का चूची इतना सफ़ेद होगा। मैं भाभी के चूची को ब्रा के ऊपर से ही सहलाने लगा।
भाभी ने कहा- ब्रा तो खोलिए तब ना मज़ा आएगा।
मैंने भाभी का ब्रा भी खोल दिया। अब भाभी की समूची चूचियाँ मेरे सामने तनी हुई खड़ी थी। मैंने दोनों हाथो से भाभी की चूचियों को पकड़ लिया और कहा- क्या मस्त चूचियाँ है आपकी भाभी?
मैं भाभी के चुचियों को धीरे धीरे दबा रहा था । अचानक भाभी ने कहा- मेरी साड़ी खोलिए ना ! तब और भी मज़ा आएगा।
मैंने एक हाथ से भाभी की साड़ी को खोल दिया। भाभी अब सिर्फ़ पेटीकोट में थी। फ़िर मैंने भाभी को कहा- क्या पेटीकोट भी खोल दूँ?
भाभी बोली - हाँ।
मैंने बैठ कर भाभी के पेटीकोट का नाड़ा खोला और झट से उतार फेंका। अब मेरे सामने जो नजारा था, मैं उसकी कल्पना सपने में भी नहीं कर सकता था। भाभी की बुर एकदम सफ़ेद सी थी। उस पर घने घने बाल भी थे। मैं भाभी की बुर को देख रहा था। कितनी बड़ी बुर थी। बुर के अन्दर लाल लाल छेद दिख रहा था।
मैंने भाभी को कहा- आपके भी बाल होते हैं?
भाभी सिर्फ़ मुस्कुराई। भाभी बोली - छू कर तो देखिये।
मैं भाभी की बुर को धीरे धीरे छूने लगा। भाभी की बुर के बाल एक तरफ़ कर के मैं उसे फैला के देखने की कोशिश करने लगा कि इसका छेद कितना बड़ा है। मुझे उसके अन्दर छेद तो नजर आ रहा था पर भाभी से ही मैंने पुछा- भाभी ये छेद कितना बड़ा है?
भाभी ने कहा- ऊँगली डाल के देखिये न?
मैंने बुर में ऊँगली डाल दी। मैं अपनी ऊँगली को भाभी के बुर में चारों तरफ़ घुमाने लगा। बहुत बड़ी थी भाभी की बुर। मैं बुर से ऊँगली निकाल के भाभी के शरीर पर लेट गया। भाभी ने अपने दोनों पैर को ऊपर उठा के मेरे ऊपर से घुमा के मुझे लपेट लिया। मैंने भाभी के शरीर को जोर से पकड़ लिया।
मेरी साँसे बहुत तेज़ हो गई थी। मेरी पूरी छाती भाभी की चूचियों से रगड़ खा रही थी। भाभी ने मेरे सर को पकड़ के अपने तरफ़ खींचा और अपने होंठों को मेरे होंठों से लगा दिया।
मैं भी समझ गया कि मुझे क्या करना है? मैं काफी देर तक भाभी के होठो को चूमता रहा। चूमते चूमते मेरे शरीर में उत्तेजना भरती गई। मैं भाभी के होंठ छोड़ कर कुछ नीचे आया और भाभी की चूची को मुँह में ले कर काफ़ी देर तक चूसता रहा।
भाभी सिर्फ़ गर्म साँसें फेंक रही थी। फिर भाभी अचानक बैठ गई और मुझे बिस्तर पर सीधा लिटा दिया। मैं लेट कर भाभी का तमाशा देख रहा था। भाभी ने मेरे लण्ड को पकड़ कर सहलाना शुरू किया। वो मेरे लण्ड के सुपाड़े को ऊपर नीचे कर रही थी। मैं पागल हुआ जा रहा था।
भाभी ने अचानक मेरे लण्ड को अपने मुंह में ले लिया और चूसने लगी। मेरा पूरा लण्ड मुंह में घुसा लिया। मैं एकदम से उत्तेजित हो गया।
मैंने भाभी को कहा- भाभी प्लीज ऐसा मत कीजिये !
लेकिन भाभी नहीं मानी। वो मेरे लण्ड को अपने मुंह में पूरा घुसा कर मज़े से चूस रही थी। अचानक मेरे लण्ड से माल निकलने लग गया। मेरी आँखें बंद हो गई। मैं छटपटा गया। मेरा सारा माल भाभी के मुंह में गिर रहा था लेकिन भाभी ने मेरे लण्ड को अपने मुंह से नहीं निकाला। और मेरा सारा माल भाभी पी गई।
२-३ मिनट के बाद मुझे होश आया। देखा भाभी मेरे शरीर पर लेटी हुआ है और मेरे होठों को चूम रही है। भाभी बोली- अरे वाह राजा जी ! अभी तो खेल बांकी है। अब जरा मुझे चोदिये तो सही।
मैं बोला- क्या अभी भी कुछ बांकी है? अब क्या करना है मुझे?
भाभी बोली- आप क्या करना चाहते हैं?
मैं बोला- जिस तरह से आपने मेरे लण्ड को चूसा उसी तरह से मैं भी आपके बुर को चूसना चाहता हूँ।
भाभी ने बिस्तर पे लेट कर अपनी दोनों टांगें अगल-बगल फैला दी। अब मुझे भाभी की बुर की एक एक चीज साफ़ साफ़ दिख रही थी। मैंने नीचे झुक कर भाभी के बुर में अपना मुँह लगा दिया। पहले तो बुर के बालों को ही अपने मुंह से खींचता रहा। फ़िर एक बार बुर के छेद पर अपने होंठ रख कर उसका स्वाद लिया।
बड़ा ही मज़ा आया। मैं और जोर से भाभी के बुर को चूसने लगा। चूसते चूसते अपनी जीभ को भाभी के बुर के छेद के अन्दर भी घुसा दिया। भाभी को देखा तो वो अपनी आँख बंद कर के यूँ कर रही थी जैसे कि कोई दर्द हो रहा है।
तभी भाभी की बुर से हल्का हल्का पानी के तरह कुछ निकलने लगा। मैंने उसका स्वाद लिया तो मुझे कुछ नमकीन सा लगा।
थोड़ी ही देर में मेरा लण्ड तन के खड़ा हो गया था। मैं भाभी के होठ को चूमने के लिए जब उनके ऊपर चढ़ा तो मेरा लण्ड उनकी बुर से सट गया। भाभी ने मेरे लण्ड को अपने हाथ से पकड़ लिया और कहा- राजा जी अब मुझे चोदिये न !
मैंने कहा- अभी भी कुछ बाकी रह गया है क्या?
भाभी धीमे से मुस्कुराई और कहा- अभी तो असली मज़ा बाकी है !
मैंने कहा- आप ही बताइए कि मैं क्या करुँ?
भाभी बोली- अब आप अपने लण्ड को मेरी बुर में डालिए।
मैंने कहा- इतना बड़ा लण्ड आपकी बुर के इतने छोटे से छेद में कैसे घुसेगा? भाभी बोली- आप डालिए तो सही !
भाभी ने अपने दोनों पैरों को और फैलाया। और मेरे लण्ड को पकड़ के अपने बुर के छेद के पास ले आई और बोली- घुसाइए !
मैंने संदेहपूर्वक अपने लण्ड को उनकी बुर के छेद में घुसाना शुरू किया।
ये क्याऽऽऽ?
मेरा सारा का सारा लण्ड उनकी बुर में घुस गया। मुझे बहुत ही मज़ा आया। भाभी को देखा तो उनके मुंह से सिसकारी निकल रही थी। मैंने झट से अपने लण्ड को उनकी बुर से बाहर निकाल लिया। भाभी ने कहा- यह क्या किया?
मैंने कहा- आपको दर्द हो रहा था ना?
वो बोली- धत ! आपके भइया तो रोज़ मुझे ऐसा करते हैं, इसमें दर्द थोड़े ही होता है, इसमें तो मज़ा आता है ! चलिए ! डालिए फ़िर से अपना लण्ड मेरी बुर के छेद में।
मैं इस बार अपने लण्ड को अपने आप से ही पकड़ कर भाभी के बुर के छेद के पास ले गया और पूरा का पूरा लण्ड उनकी बुर में घुसा दिया। भाभी के मुंह से एक बार फ़िर सिसकारी निकली। मैं उनकी बुर में अपना लण्ड डाले हुए १ मिनट तक पड़ा रहा। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करना है। मैं अपने दोनों हाथो से भाभी के चुचियों से खेलने लगा।
भाभी बोली- खेल शुरू कीजिये ना।
मैं बोला- अब क्या करना है?
भाभी बोली- चोदना शुरू कीजिये ना !
मैं बोला- अभी भी कुछ बाकी है? अब क्या करुँ?
भाभी बोली- मेरे बुध्धू राजा बाबू ! अपने लण्ड को धीरे धीरे मेरी बुर में ही आगे पीछे कीजिये।
मैं बोला- मैं समझा नहीं।
भाभी बोली- अपनी कमर को आगे पीछे कर के अपने लण्ड को मेरी बुर में आगे पीछे कीजिये।
मैंने ऐसा ही किया। अपने कमर को आगे पीछे कर के लण्ड को भाभी के बुर में अन्दर बाहर करने लगा। भाभी का शरीर ऐंठने लगा।
मैं बोला- निकाल लूँ क्या भाभी?
भाभी बोली - नही ! और जोर से चोदिये।
मैंने भाभी की कमर को अपने हाथ से पकड़ लिया और अपने लण्ड को उनकी बुर में आगे पीछे करने लगा। मुझे अब इसमें काफ़ी मजा आ रहा था। मेरा लण्ड उनकी बुर से रगड़ा रहा था। मैं पागल सा होने लगा।
५ मिनट तक करने के बाद देखा कि भाभी की बुर से पानी निकल रहा था। भाभी अब निढाल सी हो रही थी। मैंने भाभी के शरीर पर लेट कर उनकी चुदाई जारी रखी।
भाभी बोली- जल्दी जल्दी कीजिये राजा जी !
मैं बोला- कितनी देर तक और करुँ?
वो बोली- मेरा तो माल निकल गया है, आपका माल जब तक नहीं निकलता तब तक करते रहिये।
मैंने और जोर जोर से उनको चोदना जारी कर दिया। उनका सारा शरीर मेरे चुदाई के हिसाब से आगे पीछे हो रहा था। उनकी चूचियां भी जोर जोर से हिल हिल कर ऊपर नीचे हो रही थी। मुझे ये सब देखने में बहुत मज़ा आ रहा था। मैं सोच रहा था कि ये चुदाई का खेल कभी ख़तम ना हो।
तभी मुझे लगा कि मेरे लण्ड से माल निकलने वाला है। मैं भाभी को बोला- भाभी मेरा लण्ड से माल निकलने वाला है।
भाभी बोली- लण्ड को बुर से बाहर मत निकालिएगा। सब माल बुर में ही गिरने दीजियेगा।
मैंने उनको चोदना जारी रखा। १५-२० धक्के के बाद मेरे लण्ड से माल निकलना शुरू हो गया। मेरी आँख जोर से बंद हो गई। मैंने अपने लण्ड को पूरी ताकत के साथ भाभी की बुर में धकेलते हुए उनके शरीर को कस के पकड़ के उनको लिपट कर उनके ही शरीर पर गिर गया, बोला- भाभी, फ़िर माल निकल रहा है।
भाभी ने मुझे कस के पकड़ के मेरे कमर को पीछे से पकड़ कर अपने तरफ़ नीचे की ओर खींचने लगी। २ मिनट तक मुझे कुछ होश नहीं रहा।
आँख खुली तो देखा मैं अभी भी भाभी के नंगे शरीर पे पड़ा हूँ। भाभी मेरे पीठ को सहला रही थी। मेरे लण्ड से सारा माल निकल के भाभी के बुर में समां चुका था। मेरा लण्ड अभी भी उनके बुर में ही था। मैं उनके चूची पर अपने सीने के दवाब को बढ़ते हुए कहा- क्या इसी को चुदाई कहते हैं?
भाभी बोली - हाँ, कैसा लगा?
मैंने कहा- बहुत मज़ा आता है ! क्या भईया आपको ऐसे ही करते हैं?
वो बोली- हाँ, लगभग हर रात को !
मैं कहा- क्या अब मुझे आप चोदने नहीं दोगी?
वो बोली- क्यों नहीं? रात को भइया की पारी और दिन में तुम्हारी पारी।
मैंने कहा- ठीक है।
भाभी बोली- जब तुम्हें मौका नहीं मिले अपने हाथ से ही लण्ड को सहला लेना और माल निकाल लेना।
मैंने कहा- ठीक है। उसके बाद मैंने अपना लण्ड को उनकी बुर से निकाला। भाभी ने उसे अपने हाथ में लिया और कहा कि रोज़ इसमें तेल लगाया कीजिये। इस से ये और भी बड़ा और मोटा होगा।
भाभी के बुर को मैं फ़िर से सहलाते हुए पुछा- मुझे नहीं पता था कि इस के अन्दर इतना बड़ा छेद होता है।
भाभी बोली- सुनिए, कल आप अपने लण्ड के बाल को शेव कर लीजियेगा। मैं भी आज रात को शेव कर लूंगी।
तब कल फिर आपको चोदने के और भी तरीके बताऊँगी। और हाँ ! यह बात किसी को बताइयेगा नहीं।
इसके बाद भाभी ने मुझसे और भी कई तरीकों से अपनी चुदवाई कराई। आज तक किसी को इस बात का नहीं चला।
 
श्रेया के साथ


मेरा नाम संजय है। पंजाब के जालंधर शहर का रहने वाला हूँ। मेरी उम्र 24 साल है, रंग साफ़, दिखने में अच्छा हूँ। लण्ड का आकार भी ठीक-ठाक है, वैसे कभी नापा नहीं। मैं यहाँ भारत में अकेला रहता हूँ, मेरी मम्मी-पापा विदेश में रहते हैं। मैंने कंप्यूटर में डिग्री की है। डिग्री पूरी करने के बाद मैंने एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। दरअसल मैं एक कंप्यूटर प्रोफेसर बनना चाहता हूँ इसलिए सोचा क्यों ना स्कूल से शुरुआत की जाए।
उस स्कूल में मुझे नौवीं से बारहवीं तक के बच्चों को कंप्यूटर सिखाना था। सभी कक्षाओं में लड़के और लड़कियों की संख्या तक़रीबन बराबर बराबर ही थी। लड़कियाँ एक से बढ़कर एक सुंदर और चालू थी। दरअसल एक तो जिस शहर में पढ़ाता हूँ वहाँ पर लड़कियाँ बहुत फ्रेंक हैं, दूसरे उस स्कूल में सब प्रौढ़ अध्यापक हैं। इसलिए जब लड़कियों ने मुझे अपने अध्यापक के रूप में देखा तो सब बहुत खुश हो गई।
स्कूल काफी बड़ा था और कक्षाओं में बच्चे भी काफी थे लेकिन कंप्यूटर लैब में कंप्यूटर 12 ही थे। इसलिए मुझे एक एक कक्षा को 2 भागों में बांटकर पढ़ाने के लिए कहा गया।
और यहीं से मेरे गंदे दिमाग ने काम कर दिया। मैंने हर कक्षा के लड़कों को अलग और लड़कियों को अलग से कंप्यूटर सिखाना शुरू किया।
इससे मेरा यह डर निकल गया कि अगर मैं किसी लड़की से छेड़खानी करूँगा तो कम से कम कोई मेरी शिकायत नहीं करेगा क्योंकि हर लड़की पहले ही दिन से मुझे बड़ी वासना भरी निगाह से देख रही थी।
असली मजा शुरु हुआ तीसरे दिन से।
अब सब लड़कियाँ बड़ी सजधज कर, मेकअप करके आने लगी थी। उस दिन बारिश हो रही थी और शनिवार था। हर कक्षा में बच्चे बहुत कम आये थे और एक दो अध्यापक भी छुट्टी पर थे इसलिए मुझे बोला गया कि मैं बारहवीं कक्षा के बच्चों का टेस्ट ले लूँ।
लड़के तो 2 ही आये थे और लड़कियाँ 12-13 आई थी। मैंने उनको एक कतार में बिठाया और कुछ प्रश्न हल करने के लिये दे दिये।
एक लड़की कतार के आखिर में बैठी थी, उसका नाम श्रेया था, वो बार बार मेरी ही तरफ़ देख रही थी। जब भी मैं उसे देखता तो मुस्कुराने लगती।
मैंने सोचा कि पहले इसी पर कोशिश करता हूँ।
मैं चलते चलते उसके पीछे आया। वो एक स्टूल पर बैठी थी। उसके पीछे से गुजरते हुए मैंने उसकी पीठ पर हाथ फ़ेर दिया। वो एकदम से कांप गई पर बोली कुछ नहीं। जब मैंने उसे घूम कर देखा तो वो फ़िर से मुस्कुराने लगी।
मैं समझ गया कि रास्ता साफ़ है।
थोड़ी देर बाद मैं फ़िर से घूमते हुए उसके पीछे आया और इस बार उसकी पीठ पर हाथ फ़ेरने के साथ ही धीरे से उसका एक मुम्मा भी दबा दिया।
वाह ! मजा आ गया।
मैंने पहली बार किसी लड़की को छेड़ा था। ऐसे ही मैंने उसको दो-तीन बार छेड़ा।
वो बुरी तरह से कांप रही थी। इससे मुझे लगा कि यह भी अभी कुंवारी है।
मैंने सोचा कि क्यों ना इसे घर पर बुलाया जाये !
पर कैसे?
अचानक मेरे दिमाग में एक तरकीब आई। मैंने कक्षा में सबको कह दिया कि जिसको लैक्चर समझ में नहीं आया वो मेरे घर पर आकर समझ सकता है।
यह बात कहने के साथ साथ मैं उसे देख भी रहा था।
श्रेया बहुत खुश हुई।
उसे खुश देखकर मैं भी खुश था कि शायद वो घर पर आ ही जाए।
कक्षा खर्म करने के बाद मैं लाईब्रेरी में जाकर बैठ गया। उस वक्त लाईब्रेरी में मेरे सिवा सिर्फ़ एक लाईब्रेरियन था जो दूसरे सैक्शन में बैठा किताबें सैट कर रहा था।
तभी श्रेया लाईब्रेरी में आई, वो शायद मुझे ही ढ़ूंढ़ रही थी।
वो मेरे पास आकर बोली- सर, मैं और मेरी सहेली श्वेता आपके घर पर आकर आपके साथ कुछ टॉपिक्स डिस्कस करना चाहती हैं।
मैं- ठीक है। पर अच्छा होगा कि तुम अकेली ही आओ क्योंकि मेरे पास एक ही कम्प्यूटर है। अगर तुम अकेले आओगी तो तुम्हेंअच्छे से समझा दूँगा।
ऐसा कहते कहते मैंने उसके नितम्बों पर हाथ फ़ेर दिया। उसका चेहरा एकदम लाल हो गया और उसने हाँ में सिर हिलाया और चलने लगी।
अभी वो दरवाजे पर ही थी कि मैंने उसे आवाज लगाई- श्रेया !
श्रेया- जी?
मैं- कल भी स्कर्ट पहन कर आना।
और वो शरमा कर भाग गई।
अगले दिन एक बजे तक सब नौकर अपना-अपना काम निबटाकर चले गए। मैंने भी दुबारा से नहा-धो कर लोअर और टी-शर्ट पहन ली। मैंने जानबूझ कर लोअर के नीचे अंडरवियर नहीं पहना।
ठीक 1:25 पर घण्टी बजी। जैसे ही मैंने दरवाजा खोला, मैं तो एकदम से सुन्न ही रह गया। ऐसे लगा जैसे एक परी मेरे सामने खड़ी है। वो सफ़ेद स्कर्ट और नीली टी-शर्ट में थी, उसकी स्कर्ट पैरों तक लम्बी थी, टी-शर्ट में उसके मम्मे एकदम मस्त लग रहे थे, जी कर रहा था कि अभी पकड़ कर दबा दूँ। उसके होंठ एकदम रसीले लग रहे थे। अचानक उसने एक चुटकी बजाई तो मैं जैसे नींद से जागा।
वो बोली- अंदर आऊँ या नहीं?
मैं- माफ़ करना। आओ ! आओ !
वो अंदर आ गई। मैंने उसे सोफ़े पर बिठाया और उसके लिए पानी लेकर आया।
वो बोली- अरे सर, आप क्यों तकलीफ़ कर रहे हैं !
मैं- कोई बात नहीं।
उसने पानी पिया। पानी पीते हुए भी वो मेरी तरफ़ ही देख रही थी। पानी पिलाने के बाद मैं उसे अपने बैडरूम में ले गया जहाँ मेरा कम्प्यूटर रखा था।
वो कम्प्यूटर के सामने वाली स्टूल पर बैठ गई और मैं भी उसके साथ ही उसके बाएँ वाली स्टूल पर बैठ गया। उसे समझाते समझाते कभी मैं उसकी जांघ पर हाथ रख देता तो कभी धीरे से उसके मम्मे को छेड़ देता।
कुछ देर बाद मैंने जानबूझ कर अपने हाथ में पकड़ी हुई पैंसिल नीचे फ़ेंक दी और उसे उठाते वक्त ्जानबूझ कर पेंसिल की नोक उसकी स्कर्ट के नीचे कर दी, इससे पेंसिल के साथ साथ उसकी स्कर्ट भी ऊपर उठ गैइ और उसकी गोरी मखमली जांघे उघड़ कर मेरे सामने आ गई। मैंने उसकी टांगों पर हाथ फ़िरा दिया तो उसकी आँखें बन्द हो गई और उसने शरमा कर अपनी स्कर्ट नीचे कर ली।
कुछ देर ऐसे ही मैं किसी ना किसी बहाने उसे छेड़ता रहा।
कुछ देर बाद मैं खड़ा होकर उसके पीछे आया और उसके कंधों पर अपने दोनों हाथ रख दिए। उसने आँखें बंद कर ली और होंठों पर जीभ फ़िराने लगी। थोड़ी देर बाद मैं हाथ उसके दोनों मम्मों पर ले आया और धीरे धीरे दबाने लगा। 2-3 मिनट बाद वो भी सिसकारियाँ सी भरने लगी।
कुछ देर बाद मैंने उसका चेहरा पीछे घुमाया और उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिए।
वाह ! मजा आ गया, ऐसा लगा जैसे मेरे मुँह में शरबत घुल गया हो।
दस मिनट तक मैं ऐसे ही उसके होंठ चूसता रहा। कुछ देर बाद मैंने अपने मुँह में एक कैंडी रख ली और फ़िर से उसे किस करना शुरु कर दिया। किस करते हुए मैं उसके मम्मे भी दबा रहा था। धीरे धीरे मैं कैंडी को हमारे होंठों के बीच ले आया और उसे तब तक चूमता रहा जब तक कैंडी खत्म ना हो गई।
थोड़ी देर बाद जब मैंने उसे छोड़ा तो वो मजाक करते हुए बोली- अरे, कैंडी कहाँ गई?
मैं- अभी बताता हूँ।
और मैंने फ़िर से उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिए।
चुम्बन करते हुए मैं उसके पीछे ही खड़ा था। मम्मे दबाते और लगातार चुम्बन करते हुए मैंने उसे खड़ा किया और उसी अवस्था में चलता हुआ मैं बिस्तर पर बैठ गया। उसे मैंने अपनी गोद में बिठा लिया। उस वक्त भी उसकी मेरी तरफ़ पीठ ही थी। मैं उसके मम्मे दबाता रहा और वो सिसकारी भरती रही।
कुछ देर बाद मैंने उसके होंठ छोड़े और बिस्तर पर लेट गया और उसको भी अपने ऊपर ही लिटा लिया। लोअर में मेरा लण्ड खड़ा उसकी गाण्ड में घुसने की कोशिश सी कर रहा था। उसको भी बहुत मजा रहा था।
कुछ देर बाद मैंने उसके मम्मे छोड़े और लेटे लेटे ही दोनों हाथ उसकी स्कर्ट में डाल दिए। लेकिन मैंने उसकी चूत को नहीं छेड़ा। पहले मैंने उसकी दोनों जांघों को सहलाना शुरु किया। 2-3 मिनट तक मैं उसकी जांघों को सहलाता रहा।
कुछ देर बाद मैंने अपना एक हाथ उसकी पैंटी के ऊपर से ही उसकी चूत पर पर रखा तो ऐसे लगा जैसे भट्टी पर हाथ रख दिया हो। उसकी चूत तप रही थी और वो भी बुरी तरह से कांप रही थी।
जब मैंने एक उंगली उसकी पैंटी के अन्दर सरका कर उसकी चूत का जायजा लिया तो पाया कि उसकी चूत पर एक भी बाल नहीं था, एकदम फ़ूल की तरह कोमल थी उसकी चूत। कुछ कुछ गीली भी थी। मैं एक ही उंगली से धीरे धीरे उसकी चूत को सहलाता रहा।
जब मैंने चूत को हल्के से दबाया तो उसमे से कुछ पानी निकल आया जिससे मेरी पूरी उंगली गीली हो गई। मैंने वो उंगली उसके मुँह में डाल दी, वो उसको चाटने लगी। फ़िर तो बस यही सिलसिला चल निकला। 4-5 मिनट तक ऐसा ही चलता रहा, मैंने उसे खूब उसकी चूत का रस चटवाया।
थोड़ी देर बाद मैंने उसे बिस्तर पर सीधा करके लिटा दिया। मैं उसके ऊपर सीधा लेट गया और उसके होंठों पर चूमने लगा। 3-4 मिनट चुम्बन करने के बाद मैं बैठ गया और अपना सिर उसकी स्कर्ट के अंदर डाल दिया।
धीरे धीरे मैं उसकी दोनों टांगों को चाटने लगा और अपने हाथों से उसकी जांघों को सहलाने लगा। उसका पूरा शरीर बुरी तरह से कांपने लगा, वो सिसकारियों पर
सिसकारियाँ भर रही थी।
धीरे धीरे मैं थोड़ा ऊपर आया और उसकी जांघें चाटने लगा। साथ साथ मैं उसके मम्मे भी दबा रहा था। मुझे ऐसा लगा जैसे मैंने दुनिया भर का नशा कर लिया हो। एक
तो उसका पूरा बदन फ़ूल की तरह कोमल था, दूसरे उसकी चूत के रस की मदहोश करने वाली खुशबू आ रही थी। थोड़ी देर बाद मैंने अपनी जीभ उसकी पैंटी के ऊपर से ही चूत पर फ़िरानी शुरु कर दी। जैसे जैसे मैं अपनी जीभ फ़िरा रहा था, वैसे वैसे उसकी उसकी सिसकारियाँ भी तेज हो रही थी।
थोड़ी देर बाद मैंने उसकी पैंटी दांतों से नीचे की और उसकी चूत पर हल्के से चूमा फ़िर अपने दोनों हाथ नीचे ले जाकर उसकी पैंटी को नीचे करके घुटनों तक उतार दिया और उसकी चूत को मैंने अच्छी तरह से निहारा, एकदम गुलाब जामुन की तरह लग रही थी, चूत का दाना बुरी तरह से फ़ड़फ़ड़ा रहा था।
धीरे धीरे मैंने अपनी जीभ उसके दाने के आसपास फ़िरानी शुरु की और दाने के आसपास जो पानी था वो चाटने लगा। उसने अपनी दोनों टांगों को स्कर्ट पहने-पहने ही मेरे सिर के इर्द-गिर्द लपेट दिया और अपने हाथों से मेरे सिर के बालों को जोर जोर से खींचने लगी।
मैंने अपना पुरा मुँह खोला, जीभ सीधी की और मुँह उसकी चूत पर लगा दिया।
और यह क्या?
उसका पूरा शरीर ऐसे कांपने लगा जैसे बिजली का झटका लग गया हो और वो झर झर झड़ने लगी। सारे का सारा पानी मेरे मुँह में ही गया।
वाह! क्या स्वाद था। एक दम खट्टा सा।
हम दोनों एक दम नशेड़ी लग रहे थे, हम दोनों की आँखें बंद थी।
थोड़ी देर बाद मैंने अपना सिर बाहर निकाला। अभी मैं सीधा भी नहीं हुआ था कि उसने मुझे खींच कर अपने ऊपर गिरा लिया और पागलों की तरह चूमने लगी। साथ ही साथ वो अपनी गाण्ड को उठाकर स्कर्ट के ऊपर से ही मेरे लण्ड पर रगड़ रही थी। मैंने अपनी लोअर नहीं उतारी थी फ़िर भी मुझे इतना मजा आ रहा था कि क्या बताऊँ।
कुछ देर की चूमाचाटी के बाद मैंने बिस्तर पर खड़े होकर अपनी लोअर उतार दी। टी-शर्ट नहीं उतारी क्योकि सुना है कि सारे कपड़े उतार कर सेक्स करने का मजा नहीं आता। उसकी भी मैंने सिर्फ़ पैंटीही उतारी, स्कर्ट और टी-शर्ट नहीं उतारा। फ़िर मैं बेड पर बैठ गया और उसे अपनी गोद में बिठा लिया। वो एक दम फ़ुल की तरह हल्की थी। मैंने उसकी गाण्ड पर हाथ रख कर उसे ऊपर उठाया और अपने लण्ड पर बैठा लिया। पर लण्ड उसकी चूत में जा ही नहीं रहा था क्योंकि वो कुँवारी थी।
मैंने उसे बोला- मैं तेल की शीशी लेकर आता हूँ। अगर ऐसे ही डाल दिया तो तुम्हें बहुत दर्द होगा।
श्रेया - सर, अब कंट्रोल नहीं होता। अब ऐसे ही डाल दीजिए।
ऐसा कहते कहते वो खुद ही मेरे लण्ड पर बैठ कर जोर लगाने लगी। तो मैंने भी उसकी गाण्ड पकड़ कर जोर का धक्का दिया। आधा इंच लण्ड उसके अंदर था। वो चीखने लगी। पर मैं रुका नहीं। चार पाँच झटकों में पूरा लण्ड उसकी चूत के अंदर डाल दिया। उसका चीख चीख कर बुरा हाल था। थोड़ी देर बाद वो सामान्य हुई तो मैंने उसकी गाण्ड को उठाकर धक्के देने शुरु कर दिए।
उसे भी अब मजा आ रहा था, वो चिल्ला रही थी- और तेज सर, और तेज ! आह…… मजा आ रहा है, फ़क मी सर, फ़क मी।
उसे चोदते चोदते मैंने उसका एक मम्मा अपने मुँह में ले लिया और उसे बुरी तरह चूसने लगा। उसने अपनी टी-शर्ट नीचे कर ली। यानि मेरा सिर अब उसकी टी-शर्ट के अंदर था। धक्के लगाते लगाते मैंने अपनी एक ऊँगली उसकी गाण्ड में डाल दी। उसकी एक चीख निकल गई पर वो रुकी नहीं ओर ना ही मैं रुका। मैं धक्के पर धक्का लगा रहा था। उसकी चूत के पानी और खून से मेरी जांघें भर चुकी थी। पर इससे मुझे बहुत आनन्द आ रहा था।
12-13 मिनट के बाद वो तीसरी बार झड़ी। अब वो रुकने की प्रार्थना करने लगी। मैंने सोचा कि अब अगर रुक गया तो मैं कैसे झड़ुँगा? तो मैंने उसे चोदते चोदते ही बिस्तर की चादर के नीचे से एक बबल गम निकाली और रैपर समेत ही उसके मुँह में डाल दी। वो मुझे मेरे एक दोस्त ने दी थी। उससे शरीर की सारी गर्मी कुछ मिनटों में ही निकल जाती है। पर उसे लगा कि ये पहले की तरह ही कोई आम कैंडी है। वो उसे मजे ले लेकर चबाने लगी। एक मैंने अपने मुँह में भी डाल ली क्योकि मैं मजे का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहता था।
थोड़ी देर बाद हम दोनों का शरीर पूरी तरह लाल हो गया। वो भी अब मुझसे ज्यादा जोर से धक्के लगाने लगी और साथ साथ चिल्ला भी रही थी- ओह, फ़क मी, हेल्प मी, सर। आई लव यू सर।
नीचे उसका झड़ झड़ कर बुरा हाल था। चादर भी गीली हो गई। आखिर के समय तो हम दोनों जैसे मशीन ही बन गए थे। मैं भी उस समय उसे चोदते चोदते तीन बार झड़ा। उसके झड़ने की तो कोई गिनती ही नहीं थी। जैसे ही मैं चौथी बार झड़ा तो मैंने उसे बेड पर लिटाया और खुद उसके ऊपर गिर प्ड़ा। उस गीले बेड पर लेटने के बाद भी हम दोनों गहरी नींद में सो गए।
एक घण्टे बाद मेरी आँख खुली। वो अभी भी सो रही थी। मैंने उसे जगाया और बड़ी मुश्किल से उसे खड़ा किया। उसकी चूत सूज कर सेब बन चुकी थी। किसी तरह उसे सहारा देकर मै बाथरुम में लेकर आया। बाथरुम में हम दोनों ने इकट्ठे ही पेशाब किया और फ़िर इकट्ठे ही नहाए। फ़िर मैंने चादर भी धो दी।
उसके बाद हम दोनो ने काफ़ी के दो दो मग पिए।
फ़िर मैं उसे बाहर तक छोड़ने आया और बोला- अगली बार अपनी सहेली को भी लेते आना। हम दोनों मिलकर उसे कम्प्यूटर सिखाएंगे।
उसने जोर से मेरे होंठो पर चूमा और बाय करती हुई चली गई।


[font=Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,[/font]
 
कैसीमेरीदीवानगी




मेरी उम्र तेतीस साल है, इस उम्र में भी मेरा अंग-अंग खिला हुआ है, अभी भी मेरे जिस्म से जवानी वाली खुशबू निकलती है।
मैं जन्म से एक गाँव की हूँ, अपनी चालाक माँ की तरह मैं एक बहुत चालाक लड़की निकली थी, लड़के क्या मुझे फ़ंसाएँगे, मैं उनको अपने जाल में फ़ंसाना जानती हूँ। मैं अभी-अभी एक बच्चे की माँ बनी हूँ, दस महीने पहले !
मेरा चुदना स्कूल से चालू हो गया था, संस्कार ही वैसे थे, पापा के विदेश जाने के बाद और फिर चाचा भी पीछे-पीछे विदेश च्ले गए। पीछे मटरगश्ती के लिए दो बला की खूबसूरत बीवियाँ छोड़ गए मेरे बापू और चाचू यानि मेरी माँ और चाची ! खर्चा वहाँ से आता था लेकिन बिस्तर यहीं किसी और के संग सजाती थी दोनों !
वैसे तो मैं काफ़ी छोटी थी जब एक लड़के ने मुझ पर हाथ फेरा था, तब मेरी छाती पर नींबू थे, उसका नहीं मेरा कसूर था, फिल्में देखदेख मेरा भी मन फ़िल्मी बन गया था। वो बेचारा तो मुझसे भागता था मगर मैं उसके पीछे पड़ गई हाथ धोकर, जब उसका जवाब नहीं मिला तो एक दिन मैं उसके घर चली गई। वो मेरा पड़ोसी था, अकेला घर था, मैंने उसका कालर पकड उसको खींचा और कहा- लड़का है या पत्थर? एक लड़की तुझे खुद प्यार करना चाहती है और तू है कि बस देखता ही नहीं?
" तुम अभी बहुत छोटी हो!"
" कौन कहता है? कहाँ हूँ छोटी?"
उठक र उसके होंठ चूम लिए और बोली- देखो, मुझे सब कुछ पता है कि लड़का लड़की को क्या करता है।
मैंने उसकी टी शर्ट उतार दी, वो गुस्सा होने लगा तो मैंने फ्रॉक उठाकर कहा- यह देखो यहाँ भी बाल आने लगे हैं!
मैं बिनापैन्टीकेथी।
" तू पागल हो गई क्या?"
मैंने ज़बरदस्ती उससे हाथ फिरवाया लेकिन बाद में वो बहुत पछताता रहा कि क्यूँ उसने मेरी पतंग की डोर छोड़ी। वो मुझे हवा में उड़ाना चाहता था लेकिन मैं औरों से उड़ने लगी थी।
धीरे धीरे नींबू अब अनार बन गए, वो भी रसीले ! मैं खुले आम लड़कों को लाइन देती थी, सभी मेरी इस अदा के दीवाने बन गए। कुछ ही दिनों में अनारों के आम बन गए वो भी तोतापरी, क्यूं कि तोतापरी आगे से तिरछे होते हैं, मेरे चूचूक भी तोतापरी बन गए थे।
हम तीन सहेलियाँ थी, जब अकेली बैठती तो एक दूसरी की स्कर्ट उठवाकर चूतों को देखती। गुड़िया और कम्मो की चूत मेरी चूत से थोड़ी अलग थी, उनकी झिल्ली बाहर दिखने लगी थी, वहीं मेरी झिल्ली लटकती नहीं थी।
तभी हमारे स्कूल में मर्द स्पोर्ट्स टीचर आये, पहले हमेशा कोई औरत ही उस पोस्ट पर आती थी।
उस को नई-नई नौकरी मिली थी, बहुत खूबसूरत था, स्मार्ट था, हम लड़कियों ने उसका नाम चिपकू डाल दिया क्योंकि वो किसी न किसी मैडम से बतियाता रहता था।
उधर मैं उस पर जाल फेंकने लगी, उसको अपनी जान बनाने के लिए ! मैं स्टुडेंट, वो टीचर था लेकिन मेरी ख़ूबसूरती उस पर हावी पड़ने लगी, वो जान गया था कि मैं उस पर फ़िदा हुई पड़ी हूँ। हमारा स्कूल सिर्फ लड़कियों का था, वो अभी नया था इसलिए भी और वैसे भी अपनी रेपो बनानी थी तो वो मुझसे दूरी बनाकर रख रहा था मगर मुझे उस पर मर मिटना था, कच्ची उम्र की मेरी नादान दीवानगी ने मेरे दिमाग पर पर्दा डाल रखा था।
लेकिन वो भी मुझे चाहता है, यह मैं जानती थी। छुटी के वक़्त वो सबसे बाद में हाजरी लगाता था।
एक दिन जब सारे टीचर चले गये, मैं तब भी अपनी क्लास में बैठी रही, जब वो स्पोर्ट्स रूम बंद करके आया, मैं क्लास से निकली। मुझे देख वो थोड़ा हैरान हुआ।
" गुड आफ्टरनून सर!" मैंने कहा।
उसने भी जवाब दिया। स्कूल में और कोई नहीं था, मैं उसकी इतनी दीवानी हो गई थी कि मैं उसके पीछे दफ़्तर में चली गई।
" तुम घर क्यूँ नहीं जाती?"
" आप जब सब जानते हैं तो फिर यह सवाल क्यूँ?"
" देख, मैं यहाँ नया हूँ, क्यूँ मेरी बदनामी करवाना चाहती है सबके सामने?"
" कौन है यहाँ? और आप बताओ, कभी स्कूल टाइम मैंने आपको कुछ कहा है?"
मैंने अपना बैग परे रख दिया, उसके करीब गई, बिल्कुल सामने उनके कंधे को पकड़ते हुए उनके सीने से लग गई।
वो परेशान हो गया था, मैंने दोनों बाहें अब कस दी। मेरी जवानी का दबाव पड़ता देख वो पिंघलने लगा, उसने भी मेरी पीठ पर हाथ रख लिए, उसके हाथ रेंगने लगे थे।
मेरी दीवानगी मालूम नहीं कैसी है, हालाँकि यह मेरा ऐसा दूसरा अवसर था।
मैंने अपने अंगारे सेत पर हे होंठ उसके होंठ पर लगाए तो वो और पिंघल गया, उसने अपना हाथ मेरी कमीज़ में घुसा दिया और मेरे एक मम्मे को दबाया।
यह पहली बार था कि मेरे मम्मा दबाया गया, मैंने उसके सर पर दबाव डाला अपने मम्मों पर ताकि वो मेरे मम्मे चूसे और निप्पल चूसे।
वो वैसा ही करने लगा, उसने मेरा हाथ पकड़ा और अपने लौड़े पर रख दिया। किसी आहट सुन अलग हुए, मैं प्रिंसिपल के निजी वाशरूम में घुस गई और वो वहीं बैठ रजिस्टर कर पन्ने पलटने लगा।
वो स्कूल का चौकीदार था, जब वो गया तो हम वहाँ से निकले और उसने अपना कमरा दुबारा खोला, मैं भाग कर उस में घुस गई।
उसने मुझे बिठाया और खुद बाहर गया, जाकर चौकी दार से कहा कि दफ्तर वगैरा बंद करदे, मैं अपना थोड़ रजिस्टर का काम पूरा करके जाऊँगा।
वो वापिस आया, मैंने दोनों बाहें उसके गले मेंडा लदी और उसके होंठ चूमने लगी। उसने मेरी शर्ट उतार और फिर ब्रा को खोला, मेरे दोनों मम्मों को चूसने लगा।
मैंने भी उसकी जिप खोलदी, उसने बाकी काम खुद किया, लौड़ा निकाल लिया, पहली बार जोबन में पहला लौड़ा पकड़ा और वहीं बैठकर चूसने लगी।
बहुत सुना था लौड़ा चुसाई के बारे में ! सर का लौड़ा था भी मस्त ! खूब चूसा और फिर टांगें खोल दी। ये सब बातें भाभी से सुनी थी, अपनी कज़न भाभी से !
जब सर ने झटका दिया, मेरी चीख निकल गई लेकिन मैंने खुद को संभाल लिया। यह फैसला मेरा था, मुझे मालूम था कि पहली बार दर्द होगा, उसके बाद मजा ही आता है और मर्द मुट्ठी में आ जाता है।जल्दी मुझे बहुत मजा आने लगा।
उस दिन जब मैं स्कूल से निकली तो बहुत खुश थी। मैं कलि से फूल बन गई थी और अपनी दीवानगी की हद पूरी कर ली थी। अपनी सर को पटाने वाली जिद पूरी की !
 
*-*-*-*-*-*-*-*-* "गोआ में खुशी मिली"*-*-*-*-*-*-*-*-*

हाय दोस्तो, मेरा नाम रोहित है और मैं 35 साल का अविवाहित हूँ मगर मेरी सेहत बहुत ही अच्छी है और मैं दिखने में भी ठीकठाक हूँ। शायद अविवाहित होने का ही यह एक फ़ायदा है। मैं इस समय गोआ में एक थ्री स्टार होटेल में मैनेजर के पद पर काम कर रहा हूँ।

मैं आपको एक सच्ची आपबीती सुनाता हूँ। मेरे होटेल में मुम्बई से एक सात लोगों के ग्रुप की बुकिंग थी जिसमें चार लड़कियाँ और तीन लड़के थे यानि के तीन जोड़े शादीशुदा थे और एक अकेली थी, उसके साथ कोई नहीं था। उनके चार कमरे बुक थे।

मैंने उन चारों कमरों में उन्हें चेक-इन करवा दिया और अपने काम में लग गया।

दोस्तो, लोग गोआ में मस्ती करने आते हैं और मेरा काम है कि होटल में किसी मेहमान को कोई तकलीफ़ ना हो।

मैं यों ही होटल में राऊन्ड मार कर देख़ रहा था कि सब अपना काम ठीक से कर रहे हैं या नहीं कि तभी मैंने देखा कि वो लड़की जो उस ग्रुप के साथ थी, वो स्वीमिंग पूल के एक तरफ़ खड़ी अपने दोस्तों को मजे करते हुए गुमसुम सी देख रही थी।

मैं यों ही उसके पास गया और उसे गुड मोर्निंग बोल कर उससे पूछा- आपको होटल में कोइ असुविधा तो नहीं है?

तो उसने कोई जवाब नहीं दिया।

तो मैंने कहा- मैडम, मैं इस होटल का मैनेजर हूँ, मेरा नाम रोहित है, अगर आप को किसी भी तरह की कोई परेशानी हो तो मुझे जरूर बोलें, मुझे आपकी मदद करने में बहुत खुशी होगी।

उसने मेरी तरफ़ एकदम से देखा और बोली- ठीक है, मेरे पति को यहाँ ला दो ताकि मैं भी मजे कर सकूँ।

और रोते हुए वो अपने कमरे की तरफ़ चली गई।

मैं उसकी तरफ़ देखता ही रह गया कि मैंने कुछ गलत तो नहीं कह दिया। बाद में उनके ग्रुप के लोगों से पता चला कि उसका नाम सोनल (काल्पनिक नाम) है वो एक विधवा है और उसके पति को गुजरे एक साल और कुछ महीने ही हुए हैं।

मुझे बहुत बुरा लगा क्योंकि उसकी उम्र 30-32 साल होगी और देखने में भी खूबसूरत थी। मैंने ऊपर वाले को बहुत गाली दी और अपने काम में लग गया।

दूसरे दिन वो मुझे होटल के रेस्तराँ में मिल गई, वह नाश्ता कर रही थी। मैंने उसे दूर से ही स्माइल दी और नजदीक जाकर पूछा- आप अकेली नाश्ता कर रही हैं, आपके सभी दोस्त कहाँ गये?

तो उसने बताया कि सब "कलनगुट बीच" पर गये हैं पर मैं नहीं गई।

मैंने कहा- आपको जाना चाहिये था।

तो उसने कहा- मुझे अच्छा नहीं लग रहा था, इसलिये नहीं गई।

मैंने बोला- आपको खुश रहना चाहिए और आप जब तक गोआ में हैं उसमें जितना हो सके, खुश रहने की कोशिश करनी चाहिये। किसी की याद में दुखी होने के बजाय जो साथ है उनके साथ खुश रहो और याद रखो कि यह दुनिया बहुत खूबसूरत है।

और मैं वहाँ से चला आया, मैंने सोचा कि अगर मैंने कुछ ज्यादा बोला तो कहीं वो फिर ना रोने लगे।

शाम को मेरी छुट्टी थी, मैंने नाईट मार्केट (ग़ोआ का नाईट में लगने वाला बाजार जिसमें ज्यादातर विदेशी जाते हैं) जाने की योजना बनाई क्योंकि मुझे वहाँ बहुत मजा आता है।

मैं बाईक से निकल ही रहा था कि सोनल मेरे सामने आ गई और पूछा- कहीं जा रहे हो?

तो मैंने उसे बताया कि मैं कहाँ जा रहा हूँ।

तो उसने पूछ लिया- क्या मैं भी साथ चल सकती हूँ?

मैंने कहा- क्यों नहीं !

और उसे बोला- रुको, मैं कार निकाल लेता हूँ।

तो उसने मना किया और कहा- बाइक पर चलेंगे तो पेट्रोल भी बचेगा और पार्किंग की भी समस्या नहीं होगी !

मैंने कहा- ठीक है, चलो !

तो उसने जल्दी से अपने दोस्तों को जाकर बताया कि वो मेरे साथ जा रही है। उन लोगों ने भी कोई आपत्ति नहीं की और बोले- ठीक है।

सोनल ने कपड़े बदले, नीली जीन्स और गुलाबी टीशर्ट पहन ली।

क्या लग रही थी वो ! मैं कह नही सकता।

सोनल बाहर आकर मेरे बाइक के पीछे बैठ गई।

बाईक मैं आराम से चला रहा था और सोनल को गोआ के टूरिस्ट-स्पाट्स के बारे में बता रहा था। वो भी रुचि ले रही थी मेरी बातों में ! और मैं भी खुश था कि चलो एक सुन्दर औरत की कम्पनी मिल रही थी।

मार्केट जाकर मैंने उसे पूरा मार्केट दिखाया, वो हैरान रह गई कि विदेशी इतने कम कपड़े कैसे पहनते हैं।

मैंने सोनल से पूछा- क्या ड्रिन्क लोगी?

तो पहले तो ना कहा पर बाद में उसने अपने लिये बीयर ली और मैंने भी साथ देने के लिये बीयर ही ली।

बाद में मैं वहाँ से उसे टिटो क्लब में ले गया और उसके साथ बीयर पीते हुए डान्स किया।

रात के दो बज रहे थे, वो वापस जाना चाह रही थी। मैंने कहा- ठीक है, चलो।

शायद सोनल ने बीयर ज्यादा पी ली थी। मैंने उसे बेमतलब छूने की कोई कोशिश नहीं की थी, शायद वो इसी वजह से मेरे साथ इतनी कम्फ़रटेबल थी। रास्ते में ज्यादा बात तो नहीं की पर उसने मेरे पीठ पर अपना पूरा शरीर चिपका दिया। तो मेरी हालत खराब होने लगी।

किसी तरह हम होटल पहुँचे और उसे मैं उसके कमरे तक ले गया। जैसे ही मैं उसे बिस्तर पर लिटा कर जाने लगा, सोनल मेरे गले में अपने हाथ डाल कर बोली- तुम बहुत अच्छे हो !

और मुझे चूम लिया। तब तक तो मैं कन्ट्रोल में था और वैसे भी ऐसे काम में कभी किसी की मजबूरी का फ़ायदा नहीं उठाना चाहिये। मुझे लगा कि शायद वो नशे में है तो मैं बाहर जाने लगा तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और पूछा- क्या मैं तुम्हें अच्छी नहीं लगती?

तो मैंने कहा- नहीं, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो !

तो उसने कहा- तुम मुझे खुश होने का मौका क्यों नहीं देते? तुमने ही तो कहा था कि हमेशा खुश रहना चाहिये ! तो मुझे खुश क्यों नहीं करते?

वो मेरी तरफ़ देखने लगी।

अब मेरी बारी थी, मैंने प्यार से उसके ओठों पर अपने ओंठ रखे और उसे चूमने लगा, वो मेरा साथ देने लगी। उसकी बेताबी बता रही थी कि वो प्यार की भूखी थी।

मैं अपने ओठों की प्यास बुझाते हुए सोनल के शरीर पर अपना हाथ फिराने लगा। तब वो पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी और पता ही नहीं चला कि कब हमारे शरीर के सारे कपड़े हमसे अलग हो गये। अब उसका स्तन मेरे मुँह में था और मैं उन्हें एक एक करके चूस रहा था।

वो एकदम से बेचैन हो गई मगर मैंने अपना काम चालू रखा और धीरे-धीरे मैंने अपनी जीभ का कमाल दिखाया और उसकी दोनों टाँगों के बीच के फ़ूल को मैंने बड़ी ही कोमलता से चूसने लगा।

सोनल के मुंह से अजीब-अजीब सी आवाज आने लगी- चूसो ! और चूसो ! रुकना मत प्लीज़ ! और और और आह आह आह !

और अचानक उसने मेरा सर अपनी जांघों के बीच कस कर दबा लिया। मैं समझ गया कि अब वो झड़ने वाली है और वो झड़ गई।

सोनल ने तब कहीं जाकर मेरा सर छोड़ा। उसने मेरा चुम्बन लिया और हम एक दूसरे की गोद में आराम करने लगे।

थोड़ी देर बाद मैं अपने कमरे में गया और कोन्डम का एक पैकेट ले आया, फ़िर हम एक दूसरे को अब हराने के खेल में लग गये।

मैंने कोन्डम पहन लिया था, मैं सोनल के ऊपर था उसकी प्यास बुझाने को एकदम तैयार !

मैंने अपना हथियार निकाला और उसकी चूत पर रख कर रगड़ने लगा। उससे रहा नहीं गया तो सोनल ने कहा- अब चोदो भी ! और इन्तजार मत करवाओ।

उसकी बात को मानते हुए मैं धीरे धीरे अपना लण्ड अन्दर दबाने लगा अन्दर जाते ही उसने मुझे कस कर पकड़ लिया। सायद वो पूरा मजा चूस लेना चाहती थी। किसी तरह मैंने उसकी पकड़ ढीली की और धीरे धीरे अपनी कमर हिलाने लगा।

सोनल भी अब अपना कमर हिला हिला कर मेरा साथ देने लगी। थोड़ी देर बाद मैंने सोनल के कहने पर आसन बदला, अब सोनल ऊपर थी और मैं नीचे !

तब सोनल ने जो घुड़सवारी की उसको मैं शब्दों में ब्यान नहीं कर सकता।

हम दोनों लगभग एक साथ झड़े। सोनल मेरी बाहों में थी और उसके चेहरे पर पूरी सन्तुष्टि थी।

थोड़ी देर में वो सो गई तो मैं उठा और अपने कमरे में चला आया।

सुबह के छः बज रहे थे इसलिये मैं नहा कर अपने डयूटी पर जाकर खड़ा हो गया और उनके दोस्तो को बोल दिया कि वो अभी अभी सोई है तो किसी ने डिस्टर्ब नहीं किया।

सोनल थोड़ी देर तक सोती रही और उसी दिन उनके ग्रुप का मुम्बई लौटने की योजना थी तो मैंने आधे दिन की छुट्टी ली और सोनल और उसके ग्रुप को थोड़ी-बहुत शॉपिंग करा दी। शाम को वो होटल से अपना सामान लेकर जब चले तो मैंने देखा कि सोनल का चेहरा रोने वाला हो रहा था तो मैंने बड़ी ही अदा से कहा- मैडम, मैं इस होटल का मैनेजर हूँ, मेरा नाम रोहित है, अगर आपको किसी भी तरह की कोई परेशानी हो तो मुझे जरूर बोलें, मुझे आपको खुश रखने की कोशिश करने में बहुत खुशी होगी।

इतना कहना था कि सोनल हंस पड़ी।

सोनल आज भी मुझे फ़ोन करती है और मैं उसे खुश रखने की कोशिश करता हूँ।
 
कुछ सुहागरात सा



मैं एक प्राईवेट स्कूल में पढ़ाती हूँ। उसका एक बड़ा कारण है कि एक तो स्कूल कम समय के लिये लगता है और इसमें छुट्टियाँ खूब मिलती हैं। बी एड के बाद मैं तब से इसी टीचर की जॉब में हूँ। हाँ बड़े शहर में रहने के कारण मेरे घर पर बहुत से जान पहचान वाले आकर ठहर जाते हैं खास कर मेरे अपने गांव के लोग। इससे उनका होटल में ठहरने का खर्चा, खाने पीने का खर्चा भी बच जाता है। वो लोग यह खर्चा मेरे घर में फ़ल सब्जी लाने में व्यय करते हैं। एक मल्टी स्टोरी बिल्डिंग में मेरे पास दो कमरो का सेट है।
जैसे कि खाली घर भूतों का डेरा होता है वैसे ही खाली दिमाग भी शैतान का घर होता है। बस जब घर में मैं अकेली होती हूँ तो कम्प्यूटर में मुझे सेक्स साईट देखना अच्छा लगता है। उसमें कई सेक्सी क्लिप होते है चुदाई के, शीमेल्स के क्लिप... लेस्बियन के क्लिप... कितना समय कट जाता है मालूम ही नहीं पड़ता है। कभी कभी तो रात के बारह तक बज जाते हैं।
फिर दिलकश कहानियाँ... लगता है मेरा दिल किसी ने बाहर निकाल कर रख दिया हो। इन दिनों मैं एक मोटी मोमबती ले आई थी। बड़े जतन से मैंने उसे चाकू से काट कर उसका अग्र भाग सुपारे की तरह से गोल बना दिया था। फिर उस पर कन्डोम चढ़ा कर मैं बहुत उत्तेजित होने पर अपनी चूत में पिरो लेती थी। पहले तो बहुत कठोर लगता था। पर धीरे धीरे उसने मेरी चूत के पट खोल दिये थे। मेरी चूत की झिल्ली इन्हीं सभी कारनामों की भेंट चढ़ गई थी।
फिर मैं कभी कभी उसका इस्तेमाल अपनी गाण्ड के छेद पर भी कर लेती थी। मैं तेल लगा कर उससे अपनी गाण्ड भी मार लिया करती थी। फिर एक दिन मैं बहुत मोटी मोमबत्ती भी ले आई। वो भी मुझे अब तो भली लगने लगी थी। पर मुझे अधिकतर इन कामों में अधिक आनन्द नहीं आता था। बस पत्थर की तरह से मुझे चोट भी लग जाती थी।
उन्हीं दिनों मेरे गांव से मेरे पिता के मित्र का लड़का लक्की किसी इन्टरव्यू के सिलसिले में आया। उसकी पहले तो लिखित परीक्षा थी... फिर इन्टरव्यू था और फिर ग्रुप डिस्कशन था। फिर उसके अगले ही दिन चयनित अभ्यर्थियों की सूची लगने वाली थी।
मुझे याद है वो वर्षा के दिन थे... क्योंकि मुझे लक्की को कार से छोड़ने जाना पड़ता था। गाड़ी में पेट्रोल आदि वो ही भरवा देता था। उसकी लिखित परीक्षा हो गई थी। दो दिनों के बाद उसका एक इन्टरव्यू था। जैसे ही वो घर आया था वो पूरा भीगा हुआ था। जोर की बरसात चल रही थी। मैं बस स्नान करके बाहर आई ही थी कि वो भी आ गया। मैंने तो अपनी आदत के आनुसार एक बड़ा सा तौलिया शरीर पर डाल लिया था, पर आधे मम्मे छिपाने में असफ़ल थी। नीचे मेरी गोरी गोरी जांघें चमक रही थी।
इन सब बातों से बेखबर मैंने लक्की से कहा- नहा लो ! चलो... फिर कपड़े भी बदल लेना...
पर वो तो आँखें फ़ाड़े मुझे घूरने में लगा था। मुझे भी अपनी हालत का एकाएक ध्यान हो आया और मैं संकुचा गई और शरमा कर जल्दी से दूसरे कमरे में चली गई। मुझे अपनी हालत पर बहुत शर्म आई और मेरे दिल में एक गुदगुदी सी उठ गई। पर वास्तव में यह एक बड़ी लापरवाही थी जिसका असर ये था कि लक्की का मुझे देखने का नजरिया बदल गया था। मैंने जल्दी से अपना काला पाजामा और एक ढीला ढाला सा टॉप पहन लिया और गरम-गरम चाय बना लाई।
वो नहा धो कर कपड़े बदल रहा था। मैंने किसी जवान मर्द को शायद पहली बार वास्तव में चड्डी में देखा था। उसके चड्डी के भीतर लण्ड का उभार... उसकी गीली चड्डी में से उसके सख्त उभरे हुये और कसे हुये चूतड़ और उसकी गहराई... मेरा दिल तेजी से धड़क उठा। मैं 24 वर्ष की कुँवारी लड़की... और लक्की भी शायद इतनी ही उम्र का कुँवारा लड़का...
जाने क्या सोच कर एक मीठी सी टीस दिल में उठ गई। दिल में गुदगुदी सी उठने लगी। लक्की ने अपना पाजामा पहना और आकर चाय पीने के लिये सोफ़े पर बैठ गया।
पता नहीं उसे देख कर मुझे अभी क्यू बहुत शर्म आ रही थी। दिल में कुछ कुछ होने लगा था। मैं हिम्मत करके वहीं उसके पास बैठी रही। वो अपने लिखित परीक्षा के बारे में बताता रहा।
फिर एकाएक उसके सुर बदल गये... वो बोला- मैंने आपको जाने कितने वर्षों के बाद देखा है... जब आप छोटी थी... मैं भी...
"जी हाँ ! आप भी छोटे थे... पर अब तो आप बड़े हो गये हो..."
"आप भी तो इतनी लम्बी और सुन्दर सी... मेरा मतलब है... बड़ी हो गई हैं।"
मैं उसकी बातों से शरमा रही थी। तभी उसका हाथ धीरे से बढ़ा और मेरे हाथ से टकरा गया। मुझ पर तो जैसे हजारों बिजलियाँ टूट पड़ी। मैं तो जैसे पत्थर की बुत सी हो गई थी। मैं पूरी कांप उठी। उसने हिम्मत करते हुये मेरे हाथ पर अपना हाथ जमा दिया।
"लक्की जी, आप यह क्या कर रहे हैं? मेरे हाथ को तो छोड़..."
"बहुत मुलायम है जी लक्ष्मी जी... जी करता है कि..."
"बस... बस... छोड़िये ना मेरा हाथ... हाय राम कोई देख लेगा..."
लक्की ने मुस्कराते हुये मेरा हाथ छोड़ दिया।
अरे उसने तो हाथ छोड़ दिया- वो मेरा मतलब... वो नहीं था...
मेरी हिचकी सी बंध गई थी।
उसने मुझे बताया कि वो लौटते समय होटल से खाना पैक करवा कर ले आया था। बस गर्म करना है।
"ओह्ह्ह ! मुझे तो बहुत आराम हो गया... खाने बनाने से आज छुट्टी मिली।"
शाम गहराने लगी थी, बादल घने छाये हुये थे... लग रहा था कि रात हो गई है। बादल गरज रहे थे... बिजली भी चमक रही थी... लग रहा था कि जैसे मेरे ऊपर ही गिर जायेगी। पर समय कुछ खास नहीं हुआ था। कुछ देर बाद मैंने और लक्की ने भोजन को गर्म करके खा लिया। मुझे लगा कि लकी की नजरें तो आज मेरे काले पाजामे पर ही थी।मेरे झुकने पर मेरी गाण्ड की मोहक गोलाइयों का जैसे वो आनन्द ले रहा था। मेरी उभरी हुई छातियों को भी वो आज ललचाई नजरों से घूर रहा था। मेरे मन में एक हूक सी उठ गई। मुझे लगा कि मैं जवानी के बोझ से लदी हुई झुकी जा रही हूँ... मर्दों की निगाहों के द्वारा जैसे मेरा बलात्कार हो रहा हो। मैंने अपने कमरे में चली आई।
बादल गरजने और जोर से बिजली तड़कने से मुझे अन्जाने में ही एक ख्याल आया... मन मैला हो रहा था, एक जवान लड़के को देख कर मेरा मन डोलने लगा था।
"लक्की भैया... यहीं आ जाओ... देखो ना कितनी बिजली कड़क रही है। कहीं गिर गई तो?"
"अरे छोड़ो ना दीदी... ये तो आजकल रोज ही गरजते-बरसते हैं।"
ठण्डी हवा का झोंका, पानी की हल्की फ़ुहारें... आज तो मन को डांवाडोल कर रही थी। मन में एक अजीब सी गुदगुदी लगने लगी थी। लक्की भी मेरे पास खिड़की के पास आ गया। बाहर सूनी सड़क... स्ट्रीटलाईट अन्धेरे को भेदने में असफ़ल लग रही थी। कोई इक्का दुक्का राहगीर घर पहुँचने की जल्दी में थे। तभी जोर की बिजली कड़की फिर जोर से बादल गर्जन की धड़ाक से आवाज आई।
 
मैं सिहर उठी और अन्जाने में ही लक्की से लिपट गई,"आईईईईईई... उफ़्फ़ भैया..."
लक्की ने मुझे कस कर थाम लिया,"अरे बस बस भई... अकेले में क्या करती होगी...?" वो हंसा।
फिर शरारत से उसने मेरे गालों पर गुदगुदी की। तभी मुहल्ले की बत्ती गुल हो गई। मैं तो और भी उससे चिपक सी गई। गुप्प अंधेरा... हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था।
"भैया मत जाना... यहीं रहना।"
लक्की ने शरारत की... नहीं शायद शरारत नहीं थी... उसने जान करके कुछ गड़बड़ की। उसका हाथ मेरे से लिपट गया और मेरे चूतड़ के एक गोले पर उसने प्यार से हाथ घुमा दिया। मेरे सारे तन में एक गुलाबी सी लहर दौड़ गई। मेरा तन को अब तक किसी मर्द के हाथ ने नहीं छुआ था। ठण्डी हवाओं का झोंका मन को उद्वेलित कर रहा था। मैं उसके तन से लिपटी हुई... एक विचित्र सा आनन्द अनुभव करने लगी थी।
अचानक मोटी मोटी बून्दों की बरसात शुरू हो गई। बून्दें मेरे शरीर पर अंगारे की तरह लग रही थी। लक्की ने मुझे दो कदम पीछे ले कर अन्दर कर लिया।
मैंने अन्जानी चाह से लक्की को देखा... नजरें चार हुई... ना जाने नजरों ने क्या कहा और क्या समझा... विक्की ने मेरी कमर को कस लिया और मेरे चेहरे पर झुक गया। मैं बेबस सी, मूढ़ सी उसे देखती रह गई। उसके होंठ मेरे होंठों से चिपकने लगे। मेरे नीचे के होंठ को उसने धीरे से अपने मुख में ले लिया। मैं तो जाने किस जहाँ में खोने सी लगी। मेरी जीभ से उसकी जीभ टकरा गई। उसने प्यार से मेरे बालों पर हाथ फ़ेरा... मेरी आँखें बन्द होने लगी... शरीर कांपता हुआ उसके बस में होता जा रहा था। मेरे उभरे हुये मम्मे उसकी छाती से दबने लगे। उसने अपनी छाती से मेरी छाती को रगड़ा मार दिया, मेरे तन में मीठी सी चिन्गारी सुलग उठी।
उसका एक हाथ अब मेरे वक्ष पर आ गया था और फिर उसका एक हल्का सा दबाव ! मेरी तो जैसे जान ही निकल गई।
"लक्की... अह्ह्ह्ह...!"
"दीदी, यह बरसात और ये ठण्डी हवायें... कितना सुहाना मौसम हो गया है ना..."
और फिर उसके लण्ड की गुदगुदी भरी चुभन नीचे मेरी चूत के आस-पास होने लगी। उसका लण्ड सख्त हो चुका था। यह गड़ता हुआ लण्ड मोमबत्ती से बिल्कुल अलग था। नर्म सा... कड़क सा... मधुर स्पर्श देता हुआ। मैं अपनी चूत उसके लण्ड से और चिपकाने लगी। उसके लण्ड का उभार अब मुझे जोर से चुभ रहा था। तभी हवा के एक झोंके के साथ वर्षा की एक फ़ुहार हम पर पड़ीं। मैंने जल्दी से मुड़ कर दरवाजा बन्द ही कर दिया।
ओह्ह ! यह क्या ?
मेरे घूमते ही लक्की मेरी पीठ से चिपक गया और अपने दोनों हाथ मेरे मम्मों पर रख दिये। मैंने नीचे मम्मों को देखा... मेरे दोनों कबूतरों को जो उसके हाथों की गिरफ़्त में थे। उसने एक झटके में मुझे अपने से चिपका लिया और अपना बलिष्ठ लण्ड मेरे चूतड़ों की दरार में घुमाने लगा। मैंने अपनी दोनों टांगों को खोल कर उसे अपना लण्ड ठीक से घुसाने में मदद की।
उफ़्फ़ ! ये तो मोमबत्ती जैसा बिल्कुल भी नहीं लगा। कैसा नरम-सख्त सा मेरी गाण्ड के छेद से सटा हुआ... गुदगुदा रहा था।
मैंने सारे आनन्द को अपने में समेटे हुये अपना चेहरा घुमा कर ऊपर दिया और अपने होंठ खोल दिये। लक्की ने बहुत सम्हाल कर मेरे होंठों को फिर से पीना शुरू कर दिया। इन सारे अहसास को... चुभन को... मम्मों को दबाने से लेकर चुम्बन तक के अहसास को महसूस करते करते मेरी चूत से पानी की दो बून्दें रिस कर निकल गई। मेरी चूत में एक मीठेपन की कसक भरने लगी।
"दीदी... प्लीज मेरा लण्ड पकड़ लो ना... प्लीज !"
मैंने अपनी आँखें जैसे सुप्तावस्था से खोली, मुझे और क्या चाहिये था। मैंने अपना हाथ नीचे बढ़ाते हुये अपने दिल की इच्छा भी पूरी की। उसका लण्ड पजामे के ऊपर से पकड़ लिया।
"भैया ! बहुत अच्छा है... मोटा है... लम्बा है... ओह्ह्ह्ह्ह !"
उसने अपना पजामा नीचे सरका दिया तो वो नीचे गिर पड़ा। फिर उसने अपनी छोटी सी अण्डरवियर भी नीचे खिसका दी। उसका नंगा लण्ड तो बिल्कुल मोमबत्ती जैसा नहीं था राम... !! यह तो बहुत ही गुदगुदा... कड़क... और टोपे पर गीला सा था। मेरी चूत लपलपा उठी... मोमबती लेते हुये बहुत समय हो गया था अब असली लण्ड की बारी थी। उसने मेरे पाजामे का नाड़ा खींचा और वो झम से नीचे मेरे पांवों पर गिर पड़ा।
"दीदी चलो, एक बात कहूँ?"
"क्या...?"
"सुहागरात ऐसे ही मनाते हैं ! है ना...?"
"नहीं... वो तो बिस्तर पर घूंघट डाले दुल्हन की चुदाई होती है।"
तो दीदी, दुल्हन बन जाओ ना... मैं दूल्हा... फिर अपन दोनों सुहागरात मनायें?"
मैंने उसे देखा... वो तो मुझे जैसे चोदने पर उतारू था। मेरे दिल में एक गुदगुदी सी हुई, दुल्हन बन कर चुदने की इच्छा... मैं बिस्तर पर जा कर बैठ गई और अपनी चुन्नी सर पर दुल्हनिया की तरह डाल ली।
वो मेरे पास दूल्हे की तरह से आया और धीरे से मेरी चुन्नी वाला घूँघट ऊपर किया। मैंने नीचे देखते हुये थरथराते हुये होंठों को ऊपर कर दिया। उसने अपने अधर एक बार फ़िर मेरे अधरों से लगा दिये... मुझे तो सच में लगने लगा कि जैसे मैं दुल्हन ही हूँ। फिर उसने मेरे शरीर पर जोर डालते हुये मुझे लेटा दिया और वो मेरे ऊपर छाने लगा। मेरी कठोर चूचियाँ उसने दबा दी। मेरी दोनों टांगों के बीच वो पसरने लगा। नीचे से तो हम दोनो नंगे ही थे। उसका लण्ड मेरी कोमल चूत से भिड़ गया।
"उफ़्फ़्फ़... उसका सुपारा... " मेरी चूत को खोलने की कोशिश करने लगा। मेरी चूत लपलपा उठी। पानी से चिकनी चूत ने अपना मुख खोल ही दिया और उसके सुपारे को सरलता से निगल लिया- यह तो बहुत ही लजीज है... सख्त और चमड़ी तो मुलायम है।
"भैया... बहुत मस्त है... जोर से घुसा दे... आह्ह्ह्ह्ह... मेरे राजा..."
मैंने कैंची बना कर उसे जैसे जकड़ लिया। उसने अपने चूतड़ उठा कर फिर से धक्का मारा...
"उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़... मर गई रे... दे जरा मचका के... लण्ड तो लण्ड ही होता है राम..."
उसके धक्के तो तेज होते जा रहे थे... फ़च फ़च की आवाजें तेज हो गई... यह किसी मर्द के साथ मेरी पहली चुदाई थी... जिसमें कोई झिल्ली नहीं फ़टी... कोई खून नहीं निकला... बस स्वर्ग जैसा सुख... चुदाई का पहला सुख... मैं तो जैसे खुशी के मारे लहक उठी। फिर मैं धीरे धीरे चरमसीमा को छूने लगी। आनन्द कभी ना समाप्त हो । मैं अपने आप को झड़ने से रोकती रही... फिर आखिर मैं हार ही गई... मैं जोर से झड़ने लगी। तभी लक्की भी चूत के भीतर ही झड़ने लगा। मुझसे चिपक कर वो यों लेट गया कि मानो मैं कोई बिस्तर हूँ।
 
"हो गई ना सुहाग रात हमारी...?"
"हाँ दीदी... कितना मजा आया ना...!"
"मुझे तो आज पता चला कि चुदने में कितना मजा आता है राम..."
बाहर बरसात अभी भी तेजी पर थी। लक्की मुझे मेरा टॉप उतारने को कहने लगा। उसने अपनी बनियान उतार दी और पूरा ही नंगा हो गया। उसने मेरा भी टॉप उतारने की गरज से उसे ऊपर खींचा। मैंने भी यंत्रवत हाथ ऊपर करके उसे टॉप उतारने की सहूलियत दे दी।
हम दोनो जवान थे, आग फिर भड़कने लगी थी... बरसाती मौसम वासना बढ़ाने में मदद कर रहा था। लक्की बिस्तर पर बैठे बैठे ही मेरे पास सरक आया और मुझसे पीछे से चिपकने लगा। वहाँ उसका इठलाया हुआ सख्त लण्ड लहरा रहा था। उसने मेरी गाण्ड का निशाना लिया और मेरी गाण्ड पर लण्ड को दबाने लगा।
मैंने तुरन्त उसे कहा- तुम्हारे लण्ड को पहले देखने तो दो... फिर उसे चूसना भी है।
वो खड़ा हो गया और उसने अपना तना हुआ लण्ड मेरे होंठों से रगड़ दिया। मेरा मुख तो जैसे आप ही खुल गया और उसका लण्ड मेरे मुख में फ़ंसता चला गया। बहुत मोटा जो था। मैंने उसे सुपारे के छल्ले को ब्ल्यू फ़िल्म की तरह नकल करते हुये जकड़ लिया और उसे घुमा घुमा कर चूसने लगी। मुझे तो होश भी नहीं रहा कि आज मैं ये सब सचमुच में कर रही हूँ।
तभी उसकी कमर भी चलने लगी... जैसे मुँह को चोद रहा हो। उसके मुख से तेज सिसकारियाँ निकलने लगी। तभी लक्की का ढेर सारा वीर्य निकल पड़ा। मुझे एकदम से खांसी उठ गई... शायद गले में वीर्य फ़ंसने के कारण। लक्की ने जल्दी से मुझे पानी पिलाया।
पानी पिलाने के बाद मुझे पूर्ण होश आ चुका था। मैं पहले चुदने और फिर मुख मैथुन के अपने इस कार्य से बेहद विचलित सी हो गई थी... मुझे बहुत ही शर्म आने लगी थी। मैं सर झुकाये पास में पड़ी कुर्सी पर बैठ गई।
"लक्की... सॉरी... सॉरी..."
"दीदी, आप तो बेकार में ही ऐसी बातें कर रहीं हैं... ये तो इस उम्र में अपने आप हो जाता है... फिर आपने तो अभी किया ही क्या है?"
"इतना सब तो कर लिया... बचा क्या है?"
"सुहागरात तो मना ली... अब तो बस गाण्ड मारनी बाकी है।"
मुझे शरम आते हुये भी उसकी इस बात पर हंसी आ गई।
"यह बात हुई ना... दीदी... हंसी तो फ़ंसी... तो हो जाये एक बार...?"
"एक बार क्या हो जाये..." मैंने उसे हंसते हुये कहा।
"अरे वही... मस्त गाण्ड मराई... देखना दीदी मजा आ जायेगा..."
"अरे... तू तो बस... रहने दे..."
फिर मुझे लगा कि लक्की ठीक ही तो कह रहा है... फिर करो तो पूरा ही कर लेना चाहिये... ताकि गाण्ड नहीं मरवाने का गम तो नहीं हो अब मोमबत्ती को छोड़, असली लण्ड का मजा तो ले लूँ।
"दीदी... बिना कपड़ों के आप तो काम की देवी लग रही हो...!"
"और तुम... अपना लण्ड खड़ा किये कामदेव जैसे नहीं लग रहे हो...?" मैंने भी कटाक्ष किया।
"तो फिर आ जाओ... इस बार तो..."
"अरे... धत्त... धत्त... हटो तो..."
मैं उसे धीरे से धक्का दे कर दूसरे कमरे में भागी। वो भी लपकता हुआ मेरे पीछे आ गया और मुझे पीछे से कमर से पकड़ लिया। और मेरी गाण्ड में अपना लौड़ा सटा दिया।
"कब तक बचोगी से लण्ड से..."
"और तुम कब तक बचोगे...? इस लण्ड को तो मैं खा ही जाऊँगी।"
उसका लण्ड मेरी गाण्ड के छेद में मुझे घुसता सा लगा। 
"अरे रुको तो... वो क्रीम पड़ी है... मैं झुक जाती हूँ... तुम लगा दो।"
लक्की मुस्कराया... उसने क्रीम की शीशी उठाई और अपने लण्ड पर लगा ली... फिर मैं झुक गई... बिस्तर पर हाथ लगाकर बहुत नीचे झुक कर क्रीम लगाने का इन्तजार करने लगी। वह मेरी गाण्ड के छिद्र में गोल झुर्रियों पर क्रीम लगाने लगा। फिर उसकी अंगुली गाण्ड में घुसती हुई सी प्रतीत हुई। एक तेज मीठी सी गुदगुदी हुई। उसके यों अंगुली करने से बहुत आनन्द आने लगा था। अच्छा हुआ जो मैं चुदने को राजी हो गई वरना इतना आनन्द कैसे मिलता।
उसके सुपारा तो चिकनाई से बहुत ही चिकना हो गया था। उसने मेरी गाण्ड के छेद पर सुपारा लगा दिया। मुझे उसका सुपारा महसूस हुआ फिर जरा से दबाव से वो अन्दर उतर गया।
"उफ़्फ़्फ़ ! यह तो बहुत आनन्दित करने वाला अनुभव है।"
"दर्द तो नहीं हुआ ना..."
"उह्ह्ह... बिल्कुल नहीं ! बल्कि मजा आया... और तो ठूंस...!'
"अब ठीक है... लगी तो नहीं।"
"अरे बाबा... अन्दर धक्का लगा ना।"
वह आश्चर्य चकित होते हुये समझदारी से जोर लगा कर लण्ड घुसेड़ने लगा।
"उस्स्स्स्स... घुसा ना... जल्दी से... जोर से..."
इस बार उसने अपना लण्ड ठीक से सेट किया और तीर की भांति अन्दर पेल दिया।
"इस बार दर्द हुआ..."
"ओ...ओ...ओ... अरे धीरे बाबा..."
"तुझे तो दीदी, दर्द ही नहीं होता है...?"
"तू तो...? अरे कर ना...!"
"चोद तो रहा हूँ ना...!"
उसने मेरी गाण्ड चोदना शुरू कर दिया... मुझे मजा आने लगा। उसका लम्बा लण्ड अन्दर बाहर घुसता निकलता महसूस होने लगा था। उसने अब एक अंगुली मेरी चूत में घुमाते हुये डाल दी। बीच बीच में वो अंगुली को गाण्ड की तरफ़ भी दबा देता था तब उसका गाण्ड में फ़ंसा हुआ लण्ड और उसकी अंगुली मुझे महसूस होती थी। उसका अंगूठा और एक अंगुली मेरे चुचूकों को गोल गोल दबा कर खींच रहे थे। सब मिला कर एक अद्भुत स्वर्गिक आनन्द की अनुभूति हो रही थी। आनन्द की अधिकता से मेरा पानी एक बार फिर से निकल पड़ा... उसने भी साथ ही अपना लण्ड का वीर्य मेरी गाण्ड में ही निकाल दिया।
बहुत आनन्द आया... जब तक उसका इन्टरव्यू चलाता रहा... उसने मुझे उतने दिनों तक सुहानी चुदाई का आनन्द दिया। मोमबत्ती का एक बड़ा फ़ायदा यह हुआ कि उससे तराशी हुई मेरी गाण्ड और चूत को एकदम से उसका भारी लण्ड मुझे झेलना नहीं पड़ा। ना ही तो मुझे झिल्ली फ़टने का दर्द हुआ और ना ही गाण्ड में पहली बार लण्ड लेने से कोई दर्द हुआ।... बस आनन्द ही आनन्द आया... ।
एक वर्ष के बाद मेरी भी शादी हो गई... पर मैं कुछ कुछ सुहागरात तो मना ही चुकी थी। पर जैसा कि मेरी सहेलियों ने बताया था कि जब मेरी झिल्ली फ़टेगी तो बहुत तेज दर्द होगा... तो मेरे पति को मैंने चिल्ला-चिल्ला कर खुश कर दिया कि मेरी तो झिल्ली फ़ाड़ दी तुमने... वगैरह...
गाण्ड चुदाते समय भी जैसे मैंने पहली बार उद्घाटन करवाया हो... खूब चिल्ल-पों की...
आपको को जरूर हंसी आई होगी मेरी इस बात पर... पर यह जरूरी है, ध्यान रखियेगा...
 
प्यार की कहानी स्वीटी के साथ



दोस्तो, मैं 30 साल का मर्द हूँ, अहमदाबाद मैं रहता हूँ। अहमदबाद मैं वैसे तो बहुत गर्मी होती है और अप्रैल-मई की बात ही अलग है।
कहानी की शुरुआत के लिए हमें 10 साल पीछे जाना पड़ेगा। मेरी उम्र उस वक़्त 20 साल की थी जब मैंने पहली बार अपने पडोसी की लड़की पर प्यार का जाल बिछाया था, जाल तो सिर्फ इक बहाना था उसको चोदने का।

उसका नाम था स्वीटी, कद लम्बा, उसकी चूची छोटी थी पर देखने मैं वह बहुत अच्छी लगती थी। पड़ोसी होने के नाते हम दोनों घरों के बीच कभी बनती नहीं थी और हर वक्त लड़ाई होती रहती थी। इसी बात का फायदा उठा कर मैंने उसके साथ प्यार का नाटक करना शुरू किया क्यूंकि उसी वजह से मेरे और उसके घरवालों को कभी हमारे बारे में शक न हो।

वह हर रोज दोपहर को कपड़े सुखाने के लिए छत पर आती थी और मैं उससे बात करने की कोशिश करता।

एक दिन हमारी बात होना शुरू हुई और जैसा चाहा था, वैसे ही उसने जवाब दिया क्यूंकि मैं भी जनता था कि उसको भी लण्ड की ज़रूरत है जो मैंने कई बार उसकी आँखों में देखा था। प्यार का इज़हार बहुत जल्दी हो गया और हम दोनों एक दूसरे को मिलने के बारे में सोचने लगे। हमारा गाँव बहुत छोटा था, हम इसी वजह से मिल नहीं पाते थे।
रात को जब वह कभी कचरा डालने के लिए नीचे आती तो मैं चुपके से मिल लेता और थोड़ी बात कर लेता, पर कब तक....?

एक दिन मैंने उसको पकड़ लिया और अपने गर्म होंठ उसके होंठों पर रख दिए। वह मेरे और उसके लिए पहला एहसास था। मुझे अब तक याद है कि उस दिन के बाद तीन दिन तक मेरा लण्ड पानी बहाता रहा था। अब इतना होने के बाद मैं अपने आप को काबू के बाहर समझने लगा, मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करूँ, और उससे मिलने को बेताब हो रहा था।

एक दिन मैंने उसको छत पर बुलाया और कहा- मैं तुझे नंगा देखना चाहता हूँ।

वो इन्कार करने लगी और मैं उसको किसी भी तरह मनाने लगा। वैसे तो मैंने काफी लड़कियों और औरतो को छुपछुप के कपड़े बदलते देखा है कभी कभी मैंने उसके लिए 2 से 3 घंटे तक इंतज़ार भी किया है।
आखिर वो राजी हो गई और मैंने उसको बोला- तू खिड़की पर आ जा और सामने की खिड़की पर मैं रहूँगा।

हम दोनों की खिड़की बिल्कुल आमने-सामने थी और मैं उसके बेडरूम का नज़ारा देख सकता था जहाँ मैंने कई बार उसकी माँ को कपड़े बदलते हुए भी देखा था।

वैसे दोपहर के 3 बजे का समय तय हुआ था और मैं उसकी इंतजार में 2:30 पर ही खिड़की के पास खड़ा हो गया।

तभी उसकी माँ आ गई जो एक बहुत बदनाम औरत थी, उसके कई चक्कर थे और मैंने कई बार उसको दूसरे मर्दों के साथ देखा था।

मैंने अपने आपको छुपा लिया और थोड़ा इधर-उधर होकर उसकी राह देखने लगा।

थोड़ी देर बाद वो आई और बोली- मेरी मम्मी बाहर जा रही है, 15 मिनट के बाद बेडरूम में आ जाऊँगी।

मैंने कहा- ठीक है !

और फिर मैं किसी और काम में लग गया।

15 मिनट के बाद वो आई। उसने आसमानी रंग का ड्रेस पहना हुआ था जो के एक चूड़ीदार सूट था और वो काफी सजधज कर आई थी।

मैंने पूछा- क्यूँ इतना सजधज कर आई हो?

तो उसने बताया- पहली बार किसी लड़के को अपना जिस्म दिखा रही हूँ तो थोड़ा अपने आप पर प्यार आ गया।

मैं बोला- जानेमन, इतना मत तड़पाओ और शुरुआत करो।

वो बोली- राहुल, मुझे शर्म आती है।

मैंने कहा- अगर तुझे शर्म आती है तो मैं भी अपने कपड़े उतारूँगा ताकि तेरी शर्म दूर हो जाये।

आखिर उसने पहले अपने बालों को साइड में किया और पीछे घूम कर मुझे अपना पूरा जिस्म कपड़ों के साथ दिखाने लगी।

मैं उसकी चूची पर तो फ़िदा था ही और आज मैं उसकी गाण्ड पर भी फ़िदा हो गया।

मैं सोच रहा था- कपड़ों के साथ इतनी अच्छी लग रही हैं तो बिना कपड़ो के क्या क़यामत लगेगी !

फिर पीछे होकर धीरे-धीरे अपनी कमीज़ के हुक खोलने लगी।

मैं धीरे-धीरे गर्म हो रहा था मुझे लड़की को धीरे धीरे नंगी होती देखने में बहुत मज़ा आता है।

हुक खुलते ही पीछे से उसकी काली ब्रा की पट्टी दिखने लगी। उसने पहले बाएं और फ़िर दाएं कंधे से ब्रा को धीरे धीरे जीचे सरकाया और पीछे से पूरा कमीज़ नीचे कर दिया।

मैं उसको सिर्फ पीछे से देख पा रहा था, मैंने उसको घूम कर आगे से दिखाने के लिए कहा तो उसने जवाब दिया- राहुल, मुझे कुछ हो रहा है, अभी धीरज रखो।

फिर वो घूम गई। वाह ! क्या नज़ारा था !

काली ब्रा के अन्दर उसकी चूची जो क़यामत थी ! उसके गोरे बदन पर काली ब्रा बहुत अच्छी लग रही थी।

मेरा लण्ड अब तक पूरा खड़ा हो चुका था और उसके जवाब में मैंने भी अपनी टीशर्ट उतार दी।

फिर उसने ब्रा की पट्टी के साथ खेलते हुए पीछे से ब्रा के हुक खोल दिए।

शायद यह नज़ारा मेरे लिए जिंदगी का सबसे अच्छा नज़ारा था, एक लड़की जिसको पाने के लिए मैं काफी अरसे से राह देख रहा था, उसका नंगा बदन मेरे सामने था पर मैं कुछ कर नहीं पा रहा था।

ब्रा के हुक खुलते ही उसकी दोनों छोटी छोटी चूचियाँ मेरे सामने आ गई जो सिर्फ 28 इन्च की लग रही थी और उसके ऊपर भूरे रंग का छोटा सा निप्पल!

मैं अपने लण्ड को सहलाने लगा और मैंने अपनी बनियान निकाल दी।
अब बारी उसकी सलवार की थी!

वो मना करने लगी कि सलवार नहीं उतारूँगी!

पर मेरे जोर और कसम देते ही वो मान गई और उसके अपनी सलवार का नाड़ा खोल दिया।
 
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