Hindi Porn Stories कंचन -बेटी बहन से बहू तक का सफ़र - Page 7 - SexBaba
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Hindi Porn Stories कंचन -बेटी बहन से बहू तक का सफ़र

गतान्क से आगे ......

कंचन भाग के अंडर बाथरूम में गयी और मूतने लगी. नीलम ने उसे बताया था और उसने भी देखा था कि पापा ने कैसे मम्मी की पेशाब की हुई चूत को चॅटा था. मूतने के बाद उसने पॅंटी ऊपेर चढ़ा ली. अपनी टाँगों के बीच में देखा तो मुस्कुरा दी. पॅंटी पे पेशाब का बड़ा सा दाग लग गया था और उस जगह से पॅंटी गीली हो गयी थी.

शर्मा जी बेसब्री से बेटी के आने का इंतज़ार करने लगे. बिटिया की चूत में फँसी पॅंटी अब भी उनकी आखों के सामने घूम रही थी. बिटिया की चूत में से इस वक़्त निकलती हुई पेशाब की धार की कल्पना मात्र से उनका लंड हरकत करने लगा. इतने में कंचन पेशाब करके लॉन में आ गयी,

“चलिए पापा, मैं तैयार हूँ. लेकिन मैं सामने से आपके कंधों पे बैठूँगी ताकि गिरने लगूँ तो आप संभाल लेना.”

“नहीं गिरगी बेटी. खैर जैसे चाहो बैठो.”

शर्मा जी नीचे बैठे और कंचन सामने उनके कंधों के दोनो ओर टाँगें डाल कर बैठ गयी. अब तो शर्मा जी का मुँह बेटी की चूत से सटा हुआ था लेकिन स्कर्ट के ऊपर से. वो खड़े हो गये. कंचन बोली,

“ पापू, थोड़ा ऊपर उठाइए ना.. हाथ नहीं पहुँच रहा.”

शर्मा जी को बेटी को ऊपर की ओर उठाने के लिए उसके चूतरो को पकड़ना पड़ा. जैसे ही उन्होने बिटिया के चूतरो पर हाथ रखा उन्हें महसूस हुआ कि उनका आधा हाथ बेटी की पॅंटी पर और आधा हाथ उसके नंगे चूतरो पर था. उन्हें कुच्छ दिख वैसे भी नहीं रहा था क्योंकि उनका मुँह तो बेटी की टाँगों के बीच में दबा हुआ था.

“और थोड़ा ऊपर उठाओ, पापा.” कंचन चिल्लाई. शर्मा जी ने बेटी के चूतेर पकड़ कर उसे और ऊपर उठा दिया. स्कर्ट तो छ्होटी सी थी ही. कंचन के और ऊपर होने से उसकी स्कर्ट शर्मा जी के सिर के ऊपर आ गयी.

अब तो शर्मा जी का सिर बेटी की स्कर्ट के अंडर छुप गया था और उनका मुँह ठीक बेटी की चूत पर आ गया. अचानक शर्मा जी की नाक में बेटी की चूत की तेज़ महक गयी. आज तो उसकी चूत की खुश्बू बहुत तेज़ थी. इसका एक कारण था. कंचन ने धूलि हुई पॅंटी पहनने के बजाए जान के कल वाली ही पॅंटी पहनी हुई थी. दो दिन से पहनी हुई पॅंटी में से चूत की ज़ोरदार गंध तो आनी ही थी. शर्मा जी तो बिटिया की कुँवारी चूत की ज़ोरदार गंध से मदहोश हो गये. शर्मा जी को अपने होंठों पे गीलापन महसूस हुआ और वो समझ गये कि ये तो बेटी की पेशाब का गीलापन है क्योंकि अभी अभी तो वो पेशाब करके आई थी. अब तो शर्मा जी अपना आपा खो बैठे. उन्होने बेटी को और ऊपर उठाने के बहाने उसके चूतेर पकड़ के अपना मुँह बेटी की चूत में ज़ोर से दबा दिया. शर्मा जी ने अपने होंठ थोड़े से खोल दिए और बिटिया की पॅंटी में कसी फूली हुई चूत उनके मुँह में आ गयी. बिटिया की चूत की तेज़ स्मेल उनकी नाक में जा रही थी और उनका लंड अंडरवेर फाड़ कर बाहर निकलने को हो रहा था. उधेर कंचन को भी अपनी चूत पर पापा की गरम गरम साँसे महसूस हो रही थी. वो भी बास्केट ठीक करने के बहाने अपनी चूत पापा के मुँह पर रगड़ रही थी. नीलम ने फिर से मूवी कॅमरा शर्मा जी के लंड के उभार पे फोकस कर दिया. शर्मा जी को तो पता ही नहीं था कि नीलम उनका वीडियो बना रही है क्योंकि उनका मुँह तो बिटिया की स्कर्ट के नीचे च्छूपा हुआ उसकी चूत का आनंद ले रहा था. अब तो कंचन की पॅंटी उसके चूत के रस से गीली होने लगी थी. उसे डर था कि कहीं पापा को पता ना लग जाए. आख़िरी बार ज़ोर से पापा के मुँह में चूत को रगड़ती हुई बोली,

“ पापा ठीक हो गया नीचे उतारिये.”

शर्मा जी ने भी आख़िरी बार बेटी की पूरी चूत को मुँह में ले कर चूमा और बेटी को नीचे उतार दिया. शर्मा जी का चेहरा लाल हो रहा था और बिटिया के पेशाब से उनके होंठ नमकीन हो रहे थे. उनकी पॅंट तो ऐसे फूल गयी थी जैसे अंडरवेर पहना ही ना हो. शर्मा जी जल्दी से दूसरी ओर घूम गये और अंडर जाते हुए बोले,

“ चलो बच्चो खाना खा लो. कंचन बेटी नीलम को भी ले आओ.”

“जी पापू.” दोनो लड़कियाँ भी अंडर चली गयी. लेकिन शर्मा जी का ध्यान खाने में कहाँ. उनके मुँह में तो बिटिया की चूत का स्वाद था. खाना खा के वो उस स्वाद को खराब नहीं करना चाहते थे. जैसे ही शर्मा जी ऑफीस गये, दोनो सहेलियाँ वीडियो देखने लगी जिसमे शर्मा जी के लंड का उभार सॉफ नज़र आ रहा था. कंचन ये सोच कर बहुत खुश थी कि उसके पापा का लंड उसकी वजह से खड़ा हो गया था.
 
नीलम उसके चूतरो पे हाथ फेरते हुए बोली,

“हाई कंचन आज तो तेरे पापा ने तेरी चूत का स्वाद भी चख लिया. अब देख वो तेरे कैसे दीवाने हो जाते हैं.”

“हट पागल! तू तो सुचमुच बड़ी खराब है.”

“हाई मेरी जान, ये बता तुझे कैसा लगा?”

“हट ना.. मुझे तो शरम आती है.”

“हाई, अब कैसी शरम? जब अपने पापा के मुँह में चूत दे दी थी टब तो शरम आई नहीं. बता नाअ… मज़ा आया?” नीलम कंचन की चूत दबाती हुई बोली.

“इसस्स.. ये क्या कर रही है? छोड़ ना मेरी चूत. सच बताउ? आज ज़िंदगी में पहली बार किसी मरद के होंठ मेरी चूत पे लगे. ऊफ़! पापा ने मेरी चूत को काट क्यों नहीं लिया?”

“काटेंगे, काटेंगे. आज तो पहला दिन था. बिटिया की चूत मुँह में ले के उनकी भी नींद हराम हो जाएगी. अभी देख आगे आगे क्या होता है.” नीलम पॅंटी के ऊपर से ही कंचन की चूत मसल्ने लगी. कंचन की चूत रस छोड़ रही थी और उसकी पॅंटी बुरी तरह गीली होने लगी.

“इसस्सस्स…..आआईयईई… नीलम! छोड़ नाअ.. देख मेरी पॅंटी खराब हो रही है.”

“तेरी पॅंटी ही तो खराब करनी है. आज इस पॅंटी को पापा के बाथरूम में छोड़ देना. कल तक अपनी पॅंटी को पहचान नहीं पाएगी.”

अब तो कंचन का भी साहस बढ़ गया था. उसे अपने पापा को तड़पाने में बड़ा मज़ा आने लगा था. लेकिन वो पापा का लंड भी महसूस करना चाहती थी. उस दिन जब शाम को शर्मा जी ऑफीस से वापस आए तो कंचन अब भी उसी स्कूल की छ्होटी सी स्कर्ट में थी.

“अरे बेटी तुमने अभी तक कपड़े नहीं बदले?”

“नीलम अभी अभी गयी है. हम दोनो पढ़ रहे थे.”

“अच्छा बेटी मैं ज़रा नहा के आता हूँ.”

“नहीं पाप्पो आप बाद में जाना, मैं एक मिनिट में नहा के आती हूँ.”

“बिटिया तुम तो बहुत टाइम लगाती हो.”

“आप देख लेना मैं बस गयी और आई.”

“ठीक है जल्दी जाओ.”

कंचन ये ही तो चाहती थी. बाथरूम में जाते ही कंचन ने पेशाब किया और पॅंटी फिर से ऊपर चढ़ा के पेशाब का दाग लगा दिया. फिर उसने सारे कपड़े उतार दिए. पॅंटी को उतार कर उसने दरवाज़े के पीछे लगे हुक पर टाँग दिया. पॅंटी पर पेशाब का दाग सॉफ नज़र आ रहा था. कंचन ने देखा कि पॅंटी पे उसकी झांतों का एक बॉल भी चिपका हुआ है. कंचन ने अपनी चूत रगड़ कर तीन चार बाल और निकाल कर पॅंटी पे चिपका दिए. फिर वो जल्दी से नहा के बाहर निकल आई,

“जाइए पाप्पो. मैं नहा चुकी.”

शर्मा जी भी नहाने बाथरूम में चले गये. जैसे ही उन्होने बाथरूम का दरवाज़ा बन्द किया उनकी नज़र उसके पीछे हुक पर तंगी बेटी की पॅंटी पर गयी. शरमाजी का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा. आज करीब साल भर के बाद उन्हें बिटिया की पॅंटी इस तरह तंगी हुई मिली थी. सवेरे इसी पॅंटी में कसी हुई बिटिया की चूत उनके मुँह में थी. शर्मा जी ने काँपते हुए हाथो से बेटी की पॅंटी को अपने हाथ में लिया और पॅंटी के मुलायम कपड़े पर हाथ फेरने लगे. तभी शर्मा जी की नज़र पॅंटी पे चिपके हुए बिटिया की झांतों के बालों पे गयी. शर्मा जी का लॉडा फंफना गया. उन्होने जी भर के बिटिया की पॅंटी को चूमा और चाता. फिर जहाँ पेशाब का दाग लगा था उसे अपने तने हुआ लॉड के सुपारे पे रख उसकी चूत का गीलापन महसूस करने लगे. बिटिया की चूत की कल्पना करते हुए पॅंटी को अपने लंड पे रगड़ते हुए उन्होने ढेर सारा वीर्य उसकी पॅंटी में उंड़ेल दिया. जब रात को शर्मा जी सो गये तो कंचन चुपके से बाथरूम में गयी और अपनी पॅंटी देख कर उसका दिल धक धक करने लगे.

वीर्य तो वो पहले भी देख चुकी थी मम्मी की चूत और गांद में से बाहर बहता हुआ लेकिन आज ज़िंदगी में पहली बार मरद के वीर्य को हाथ लगा के देखा था. कंचन ने अपनी मम्मी को पापा का वीर्य पीते हुए देखा था. उससे ना रहा गया और उसने अपनी पॅंटी में लगे हुए वीर्य को चाट लिया. पापा का वीर्य चाटते हुए उसे बहुत खुशी हो रही थी क्योंकि ये अनुभव अभी तक सिर्फ़ उसकी मम्मी ने ही किया था. कंचन को अब अपनी मम्मी से थोड़ी थोड़ी जलन सी होने लगी थी.

नीलम अब कंचन के पीछे पड़ गयी की जिस दिन मम्मी वापस आने वाली हो उस दिन भी वो कंचन के साथ रहना चाहती थी. नीलम को पता था कि जिस दिन मम्मी वापस आएगी उस दिन फिर से सारी रात चुदाई का नज़ारा देखने को मिलेगा. वही हुआ. जिस दिन मम्मी वापस आई उस रात सिर दर्द का बहाना बना कर जल्दी ही सोने चली गयी. कंचन को लगा कि आज तो चुदाई देखने नहीं मिलेगी, पर नीलम बोली, “कंचन तू इतनी भोली क्यों है? सिर दर्द का तो बहाना है. तेरी मम्मी चुदवाने के लिए उतावली हो रही है.” हम दोनो जल्दी से अपने कमरे में पहुँच गये. नीलम की बात बिल्कुल सच निकली. मम्मी बिस्तेर पर चादर ओढ़ के लेटी हुई थी. जैसे ही पापा अंडर आए, बोली,

“ कितनी देर से इंतज़ार कर रही हूँ ? आ भी जाइए.”
 
पापा ने मम्मी की चादर उतार दी. मम्मी एकदम नंगी थी. उसके बाद का नज़ारा तो कंचन की ज़िंदगी का एक और यादगार नज़ारा बन गया. पापा ने मम्मी को पूरी रात कयि नयी नयी मुद्राओं में चोदा. नीलम और कंचन ने एक बार फिर से एक दूसरे की चूत चाट के अपनी प्यास को ठंडा किया. इसके बाद मम्मी पापा की चुदाई का नज़ारा एक बार और देखने को मिला . इतने में शर्मा जी ने एक कमरा घर के ऊपर बनवा लिया था. पापा मम्मी उस कमरे में शिफ्ट हो गये. ये कमरा कंचन के कमरे के ठीक ऊपर था. अब तो कभी कभी जब मम्मी ज़्यादा जोश में होती थी तभी उनके मुँह से चुदाई की आवाज़ें नीचे तक आती थी. पापा मम्मी की चुदाई देखने के बाद से कंचन की कामुकता बढ़ती जा रही थी. नीलम ने भी कंचन की चूत पर हाथ फेर फेर कर तंग कर रखा था. नीलम तो सुधीर से चुदवा कर अपनी प्यास बुझा लेती लेकिन कंचन तड़पति रह जाती. कंचन को अब एक मोटे लंबे लॉड की सख़्त ज़रूरत महसूस होने लगी थी. पापा का तना हुआ लंड अक्सर उसकी आँखों के सामने घूम जाता. कंचन की अब एक ही तमन्ना थी कि उसकी शादी ऐसे मर्द से हो जिसका लंड मोटा तगड़ा हो और उसे चोदने का शोक हो. जब से अपने भाई विकी के लंड के बारे में सुना था तब से उसके लंड की कल्पना से ही कंचन की चूत गीली हो जाती. अब जब भी नीलम कंचन के घर आती वो दोनो घंटों एक दूसरे के बदन के साथ खेलते और एक दूसरे की चूत चाटते. बड़ा मज़ा आता था, लेकिन वो मज़ा तो नहीं आ सकता था जो एक मरद के साथ आता है.

आख़िर मरद का मज़ा कंचन को शादी के बाद ही मिला.
 
दोस्तो यहाँ से कहानी अपनी वास्विकता मे आती है


रात के 12 बज रहे थे. मम्मी मेरे कमरे में नींद की गोली खा कर बेख़बर सो रही थी. लाइट आने का कोई अंदेशा नहीं था. बाहर तूफान अब भी ज़ोरों पर था. इधर मेरे दिल और दिमाग़ पर भी बचपन की यादों ने ज़ोर का तूफान ला दिया था. इतने में पापा के आने आवाज़ सुनाई दी. मैं झट से कॅंडल जला के मम्मी के बिस्तेर पे पेट के बल लेट गयी और चादर से मुँह धक लिया, लेकिन पेटिकोट को चूतरो तक ऊपर चढ़ा लिया. मेरी मांसल जांघें बिल्कुल नंगी थी. ध्यान से देखने वाले को जांघों के बीच से झँकति हुई गुलाबी पॅंटी की झलक भी मिल जाती. पापा कमरे में आए. शायद काफ़ी पी रखी थी. लरखरा रहे थे. अंडर आके उन्होने कपड़े उतारने शुरू किए. मेरे मन में एक बार आया की कह दूं मम्मी मेरे कमरे में सो रही है. मैं इसी उधेर बुन में थी कि पापा बिल्कुल नंगे हो गये. अब तो बहुत देर हो चुकी थी. अब तो जो होगा देखा जाएगा. मेरी नज़र उनके लॉड पे पर गयी. बिल्कुल सिकुदा हुआ नहीं था लेकिन खड़ा भी नहीं था. कॅंडल की रोशनी में बहुत मोटा और डरावना लग रहा था. बाप रे ! खड़ा हो के तो बहुत ही मोटा हो जाएगा. आज कयि बरसों के बाद पापा के लंड को देखा था. पहले से कहीं ज़्यादा काला और मोटा लग रहा था. पापा ने एक नज़र मेरी तरफ डाली. मेरी गोरी गोरी मांसल नंगी जांघें कॅंडल की लाइट में चमक रही थी. पापा थोड़ी देर तक मेरी नंगी टाँगों को देखते रहे. उनके लंड ने हरकत शुरू कर दी थी. उन्होने मेरी नंगी जांघों की ओर देख कर धीरे धीरे अपने लंड को दो तीन बार सहलाया और फिर बाथरूम में पेशाब करने चले गये. मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गयी. वापस आ के उन्होने मेरी ओर ललचाई नज़रों से देखा. उनका लंड थोड़ा और बड़ा हो चुक्का था. लंड में तनाव आना शुरू हो गया था. उनका इरादा सॉफ था. फिर उन्होने कॅंडल को बुझा दिया और नंगे ही बिस्तेर पे आ गये और मुझसे चिपक गये. मेरी पीठ उनकी ओर थी. मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा. धीरे धीरे मेरे चूतरो को सहलाने लगे. उनका लंड तन चुका था और मेरे चूतरो की दरार में चुभ रहा था. मैं गहरी नींद में होने का बहाना कर रही थी. पापा ने मेरा पेटिकोट मेरे चूतरो के ऊपेर खिसका दिया. अब तो मेरे विशाल नितुंबों की इज़्ज़त मेरी छ्होटी सी पॅंटी के हाथ में थी. पेटिकोट ऊपर करके पॅंटी के ऊपेर से ही मेरे चूतरो को सहलाते हुए बोले,

“कविता, सो गयी क्या? इतना तो मत तडपाओ मेरी जान. आज बरसों बाद तो तुम्हें चोदने का मौका मिला है.” मैं चुप रही. अब पापा ने मेरी टाँगों के बीच हाथ सरका दिया और पॅंटी के ऊपेर से मेरी चूत सहलाते हुए बोले,

‘क्या बात है मेरी जान आज तो तुम्हारी चूत कुच्छ ज़्यादा ही फूली हुई लग रही है?’ मैं तो बिल्कुल चुपचाप पड़ी रही. मेरी चूत अब गीली होने लगी थी. कोई जबाब ना मिला तो बोले,

“ समझा, बहुत नाराज़ लग रही हो. माफ़ कर दो मेरी जान, थोरी देर हो गयी. देखो ना ये लॉडा तुम्हारे लिए कैसा पागल हो रहा है.” यह कहते हुए उन्होने अपना तना हुआ लॉडा मेरे चूतरो से सटा दिया और एक हाथ सामने डाल कर धीरे धीरे मेरी चूचियाँ सहलाने लगे. मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा. मेरी हिम्मत टूट रही थी लेकिन अब कोई चारा नहीं था. धीरे धीरे पापा ने मेरे ब्लाउस के बटन खोलने शुरू कर दिए. ब्रा तो पहना नहीं था. पीठ नंगी हो गयी. उनके मोटे लॉड ने मेरी पॅंटी को चूतरो की दरार में धकेल दिया था. मेरी चूत बुरी तरह से गीली हो गयी थी. अब पापा ने मेरी बारी बारी नंगी चूचिओ को सहलाना शुरू कर दिया. मेरे निपल तन गये थे. अचानक पापा ने मेरी चूचिओ को पकड़ कर ज़ोर से दबा दिया और मुझे अपनी तरफ पलटने की कोशिश की. चूचियाँ इतनी ज़ोर से दबाई थी कि अब और नींद का नाटक करना मुश्किल था.मैने हड़बड़ा के गहरी नींद में से उठने का नाटक किया,

“ क्क्क…कौन ? पापा आप !”

पापा को तो जैसे बिजली का झटका लगा. नशे के कारण मानो सोचने की शक्ति ख़तम हो गयी थी. उनके हाथ अब भी मेरी चुचिओ पे थे.

“कंचन तुम ! बेटी तुम यहाँ कैसे ?” पापा हड़बड़ाते हुए बोले.

“ज्ज्ज्जी… मम्मी के सिर में बहुत दर्द हो रहा था, तबीयत बहुत खराब थी इसलिए उन्होने हमे यहाँ सुला दिया और वो हम कमरे में सो रही है. आप कब आए हमे पता ही नहीं चला.”

“ बेटी मैं तो अभी अभी आया. मैने समझा कि मम्मी यहाँ सो रही है.”

मैं उनके बदन पे हाथ रख के चौंकते हुए बोली,

“ हाई राम ! आप तो बिल्कुल नंगे…….. हमारा मतलब है… आपके…..आपके कपड़े..? और …और… ऊई.. माआ ये क्या ?…! हमारा ब्लाउस ……..?”

पापा अब बुरी तरह घबडा गये थे.

“देखो बेटी, हमें क्या मालूम था कि तुम यहाँ लेटी हो. हम तो समझे कि तुम्हारी मम्मी लेटी है.” पापा का लंड भी अब सिकुड़ने लगा था.

“लेकिन हमारे कपड़े क्यों….?”

“बेटी तुम तो शादीशुदा हो, तुम्हें तो समझना चाहिए. हमने तो मम्मी समझ के तुम्हारे कपड़े….”

“ओ ! समझी. आपको मम्मी की ज़रूरत है. ठीक है मम्मी को ही आपके पास भेज देती हूँ.”

“नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है. उन्हें सोने दो. तबीयत खराब है तो क्यों डिस्टर्ब करती हो. लेकिन बेटी, मम्मी को आज जो कुच्छ हुआ उसका पता नहीं लगना चाहिए. नहीं तो अनर्थ हो जाएगा. हम से जो कुच्छ हुआ अंजाने में हुआ.”“ आप फिकर क्यों करते हैं पापा ?. मम्मी को कुच्छ नहीं पता चलेगा.”

क्रमशः.........
 
गतान्क से आगे ......

पापा खुश हो गये और मेरे गालों पे किस करते हुए बोले,

“ शाबाश, कंचन तुम सुचमुच बहुत समझदार हो. लेकिन तुमने हमे पहले क्यों नहीं बताया ?”

“ कैसे बताती ? हमारी तो आँख लग गयी थी. लेकिन कॅंडल तो जल रही थी ना. आपने हमें पहचाना कैसे नहीं?”

“ कैसे पहचानते? एक तो तुम पेट के बल लेटी हुई हो ऊपर से तुम्हारा मुँह भी ढका हुआ था, और पीछे से तुम बिल्कुल मम्मी की तरह लगती हो.”

“ क्या मुतलब आपका ?”

“ बेटी तुम्हारा डील डोल बिल्कुल मम्मी की तरह है. ऊपर से सोती भी तुम बिल्कुल मम्मी के ही अंदाज़ में हो.”

“ मम्मी के अंदाज़ में सोती हूँ? मैं कुच्छ समझी नहीं?”

“ वो भी जब सोती है तो उसके कपड़े कहाँ जा रहे हैं उसको कोई खबर नहीं होती है. तभी तो हमसे आज ग़लती हुई.”

“हाई राम ! तो क्या हमारे कपड़े….?”

“ हां बेटी तुम्हारा पेटिकोट भी मम्मी की तरह जांघों के ऊपर तक चढ़ा हुआ था और पूरी टाँगें नंगी नज़र आ रही थी.”

“ हाअ….पापा ! आपने हमे ऐसी हालत में देख लिया ?”

“ तो क्या हुआ बेटी ? बचपन में तो हम ना जाने कितनी बार तुम्हें नंगी देख चुके हैं.” अब पापा का डर थोड़ा दूर हो गया था और शायद उनके लंड में फिर से जान आ रही थी.

“ जी बचपन में और अब में तो बहुत फरक है.” मैं शरमाती हुई बोली.

“ फरक है तभी तो हम तुम्हें पहचान नहीं सके. अब तो तुम्हारी जांघें बिल्कुल तुम्हारी मम्मी की तरह हो गयी हैं. इसके इलावा एक और भी कारण था जो हम समझे कि यहाँ मम्मी लेटी है.”

“ और क्या कारण था ?”

“ नहीं छोड़ो वो हम नहीं बता सकते.”

“ प्लीज़ बताइए ना पापा.”

“ नहीं बेटी वो बताने लायक नहीं है.”

“ ठीक है नहीं बता सकते तो हम कल ही मम्मी को बता देंगे की आपने हमारे कपड़े…..”.

“ नहीं नहीं बेटी ऐसा अनर्थ मत करना.”

“ तो फिर बता दीजिए.”

“ समझ नहीं आता कैसे बताएँ.”

“ अरे पापा हम भी तो शादी शुदा हैं. और फिर अपनी बेटी से क्या च्छुपाना ? बता दीजिए ना.” मैने पापा को उकसाते हुए कहा. मुझे पता था कि अभी तो शराब के नशे में वो सब कुच्छ बता सकते हैं.

“ ठीक है बता देते हैं. देखो बेटी बुरा मत मानना. सोते वक़्त तुम्हें कम से कम अपने कपड़ो का तो ध्यान रखना चाहिए. आज तो तुम्हारा पेटिकोट बिल्कुल ऊपर तक चढ़ा हुआ था और सच कहें बेटी, तुम्हारे नितूंब भी बिल्कुल तुम्हारी मम्मी की तरह बड़े बड़े हैं. यहाँ तक की तुम्हारी जांघों के बीच में से तुम्हारी गुलाबी पॅंटी भी नज़र आ रही थी. तुम्हारी मम्मी के पास भी बिल्कुल ऐसी ही पॅंटी है. सोते पे तुम पैर भी अपनी मम्मी की तरह फैला के सोती हो. तभी तो तुम्हारे वहाँ के….. हमारा मतलब है…… तुम्हारी जांघों के बीच के बॉल भी पॅंटी में से बाहर निकाल रहे थे. तुम्हारी मम्मी भी जब टाँगें फैला कर सोती है तो उसके वहाँ के बॉल पॅंटी से बाहर निकले हुए होते हैं. हमे ये बहुत ही मादक लगता है. इसलिए तुम्हारी मम्मी अक्सर हमे रिझाने के लिए भी जान बुझ कर ऐसे सोती है. हमे लगा कि तुम्हारी मम्मी हमें रिझा रही है.बस इसी कारण ग़लती ही गयी.”

“सच पापा हमे तो बहुत शरम आ रही है. आपने तो हमारा सब कुच्छ देख लिया.”

“अरे बेटी इसमें शरमाने की क्या बात है ? सब कुच्छ कहाँ देखा . थोड़ा बहुत देख भी लिया तो क्या हुआ ? आख़िर हम तुम्हारे पापा हैं.”

“ हमे तो अब भी विश्वास नहीं हो रहा कि आप हमे पहचान नहीं सके.”

“तो तुम सोचती हो कि हमने जान बुझ के तुम्हारे कपड़े उतारे ? नहीं बेटी, तुम्हें बिल्कुल अंदाज़ नहीं है कि तुम कितनी अपनी मम्मी की तरह लगने लगी हो. आज तो दूसरी बार है, हमे तो पहले भी एक बार बहुत ज़बरदस्त धोका हो चुक्का है.” मैं ये सुन कर चौंक उठी.

“ पहले कब आपको धोका हुआ ?”

“ बेटी एक दिन किचन में पानी पीने गया था. तुम शायद नहा के निकली थी और सिर्फ़ पेटिकोट और ब्लाउस में ही थी. बदन गीला होने की वजह से ब्लाउस और पेटिकोट भी तुम्हारे बदन से चिपके जा रहे थे. तुम्हारी पीठ मेरी तरफ थी और तुम आगे झुक कर फ्रिज में से कुच्छ निकाल रही थी. मैं तो समझा की तुम्हारी मम्मी है.”

“ फिर क्या हुआ ?”

“ बस बेटी अब आगे बताने लायक बात नहीं है.”

“ बताइए ना….प्लीईएआसए पापा..” मैने बारे ही मादक स्वर में कहा. मैं उनकी वासना की आग फिर से भड़का देना चाहती थी ताकि वो खुल कर मुझसे बात कर सकें.

“ तुम तो बहुत ही ज़िद्दी हो. सच बेटी , पीछे से तुम बिल्कुल अपनी मम्मी जैसी लग रही थी. बिल्कुल मम्मी की तरह ही फैले हुए नितूंब हैं तुम्हारे. मुझे शक इसलिए भी नहीं हुआ क्योंकि तुमने वोही गुलाबी रंग की पॅंटी पहनी हुई थी जो आज पहनी है और जैसी मम्मी के पास भी है. और ठीक उसी तरह वो पॅंटी तुम्हारे इन नितुंबों के बीच में सिमटी जा रही थी जैसे ये मम्मी के नितुंबों के बीच में सिमट जाती है.” पापा फिर से मेरे चूतरो को पॅंटी के ऊपर से सहलाते हुए बोले.मेरा पेटिकोट तो पहले से ही कमर तक ऊपर चढ़ा हुआ था.
 
“ हाई पापा ! आपने तो अपनी बेटी की पॅंटी तक देख ली ?. और आज तो दूसरी बार देखी है. सच, हमे तो ये सोच सोच के ही बहुत शरम आ रही है.”

“ क्या करता बेटी ? एक तो तुम झुकी हुई थी और ऊपर से गीला पेटिकोट तुम्हारे नितुंबों पे चिपका जा रहा था. पॅंटी सॉफ नज़र आ रही थी. बस एक बहुत बड़ी ग़लती होते होते बची.”

“ कैसी ग़लती पापा?”

“ मैं तो पीछे से हाथ डाल के तुम्हें मम्मी समझ कर पकड़ने ही वाला था.”

“तो इसमें कैसी ग़लती ? एक बाप ने बेटी को पीछे से पकड़ भी लिया तो क्या हुआ ?”

“ नहीं नहीं तुम समझी नहीं. हम तो वो चीज़ पकड़ने जा रहे थे जो एक बाप अपनी बेटी की नहीं पकड़ सकता.”

“ ऐसी भी क्या चीज़ है हमारे पास पापा जो आप नहीं पकड़ सकते ?”

“ बस बेटी अब ज़िद ना करो. आगे हम नहीं बता सकते.”

“क्यों पापा….? प्लीईआसए…! बताइए ना…”

“नहीं नहीं अब आगे नहीं बता सकते. ज़िद ना करो.”

“ठीक है मत बताइए. हम ही कल सुबह मम्मी को सुबकुच्छ बता देंगे.”

“ऊफ़.. तुम तो बहुत खराब हो गयी हो. अच्छा बेटी बता देते हैं. हम तुम्हें मम्मी समझ कर तुम्हारी टाँगों के बीच में से हाथ डाल कर तुम्हारी उसको पकड़ने वाले थे.”

“ हाई राम ! पापा आप तो सुचमुच बहुत खराब हैं. क्यों इस तरह परेशान करते हैं आप मम्मी को ?” मैं पापा के साथ चिपकते हुए बोली. अब तो उनका लंड लोहे की रोड की तरह तना हुआ था. इस बातचीत के दौरान उनके हाथ अब भी मेरी चूचिओ पर थे, लेकिन अभी तक उन्हें इस बात का एहसास नहीं था.

“ हम नहीं, तुम्हारी मम्मी हमें परेशान करती है. उसकी है ही ऐसी कि जब तक दिन में एक दो बार ना पकड़ लें, हमे चैन नहीं आता.” अब तो पापा का लंड मेरे चूतरो में चुभ रहा था. मेरी चूत भी उनकी बातें सुन के गीली हो गयी थी. उनका डर दूर हो गया था और अब शराब का सरूर फिर असर कर रहा था. मैने उन्हें और बढ़ावा देते हुए पूचछा,

“ सच बहुत प्यार करते हैं आप मम्मी से. लेकिन ऐसा भी क्या है मम्मी कि उसमें जो आप हमेशा उतावले रहते हैं ?”

“ हाई बेटी क्या बताएँ, तुम तो शादीशुदा हो इसलिए तुम्हें बता सकते हैं. तुम्हारी मम्मी की वो तो बहुत फूली हुई है. बहुत ही जानलेवा है. हमने सोचा कि क्यों ना दिन की शूरवात अपनी प्यारी बीवी की फूली हुई उसको पकड़ के करें. हमने तो सपने में भी नहीं सोचा था की तुम हो. हमारे आने की आहट सुन के जब तुम सीधी हुई तब हमे पता चला कि वो मम्मी नहीं तुम थी. नहीं तो अनर्थ हो जाता. बोलो बेटी अब भी कहोगी कि एक बाप ने बेटी को पीछे से पकड़ लिया तो क्या हुआ ?”

“ हम तो अब भी वही कहेंगे पापा. अगर ग़लती से आपने हमारी वो पकड़ भी ली होती तो क्या हुआ. ग़लती तो सभी से हो जाती है.” मैं अब पापा को उकसा रही थी.

“ बेटी वोही ग़लती आज रात भी होने जा रही थी.”

“ तो क्या हुआ? ग़लती किसी की भी हो माफ़ कर देनी चाहिए और फिर आप तो हमारे पापा हैं, हम आपकी ग़लती माफ़ नहीं करेंगे तो फिर किसकी माफ़ करेंगे .”

पापा बारे प्यार से फिर मेरे गालों को चूमते हुए बोले,

“सच हमारी बिटिया तो बहुत समझदार है. लेकिन आज हमे, तुम्हारे और मम्मी के बीच एक फरक ज़रूर नज़र आया.”

“वो क्या पप्पू?”

“तुम्हारी वो तो मम्मी से भी ज़्यादा फूली हुई है.”

“हाई राम! आपको कैसे पता?” मैने चोन्क्ने का नाटक करते हुए पूचछा.

“बेटी अभी जब तुम गहरी नींद में सो रही थी तो हमने मम्मी समझ के तुम्हारी उसको सहला दिया था.”

“हे भगवान!.......सच?”

“देखो बुरा ना मानो बेटी, तुम जानती हो ये अंजाने में हो गया.”

“और क्या क्या फरक देखा आपने? ज़रा हमें भी तो पता लगे.”

“ बस एक और फरक ये है की तुम्हारी छातियाँ बहुत सख़्त और सुडोल हैं और तुम्हारी मम्मी की अब ढीली होती जा रही हैं.”

“लगता है आपकी ये ग़लती हमें कुच्छ ज़्यादा ही महेंगी पड़ रही है. और बताइए, और क्या क्या फरक देख लिया आपने?”

“बस बेटी इतना ही. उसके बाद तो तुम जाग गयी.”

“मान लीजिए मैं नहीं जागती, तो फिर क्या होता?”

“तब तो अनर्थ हो जाता.”

“क्या अनर्थ हो जाता?”

“देखो बेटी तुम तो जानती हो हम आज 15 दिन बाद आए हैं. हम तुम्हारे साथ वो ही कर बैठते जो एक पति अपनी पत्नी के साथ करता है.”
 
“लेकिन पापा आप तो कल फिर दो महीने के लिए जा रहे हैं. आप तो इस वक़्त मम्मी को बहुत मिस कर रहे होंगे?” पापा लंबी साँस लेते हुए बोले,

‘क्या करें बेटी किस्मत ही खराब है.”

इस बात पे मैं बनावटी गुस्सा करते हुए बोली,

“अच्छा! तो आप मुझे कोस रहे हैं, कि मैं क्यूँ यहाँ सोने आ गयी?”

“नहीं बेटी ऐसी बात नहीं है. तुम यहाँ लेटो हमे तुम्हारे पास भी बहुत अच्छा लग रहा है.” ये कहते हुए पापा ने फिर मेरे गालों को चूम लिया.

मैं ठंडी साँस भरती हुई बोली,

“ये तो आप हमे खुश करने के लिए बोल रहे हैं. एक बात पूछु, सच सच बताएँगे?”

“पूच्छो बेटी.”

“आपने आज हमारी दो चीज़ें देखी. देखी ही नहीं बल्कि हाथ भी लगाया. वो दोनो चीज़ें मम्मी की ज़्यादा अच्छी हैं या हमारी?”

“ये कैसा सवाल है? ये हम कैसे कह सकते हैं?”

“क्यूँ नहीं कह सकते. मम्मी की उन चीज़ों को तो आप रोज़ ही हाथ लगाते हैं, और आज आपने हमारी उनको भी हाथ लगा के देख लिया है. बताइए ना प्लीज़...” मैने अपने चूतरो को पापा की ओर उचकाते हुए कहा. पापा का लंड अब तना हुआ था और मेरे चूतरो की दरार में फँस गया था. अब पापा भी वासना की आग में जल रहे थे. उन्होने मेरी चूत को अपनी मुट्ठी में कस लिया और सहलाते हुए बोले,

“तुम्हारी अच्छी हैं बेटी. तुम्हारी ये तो कहीं ज़्यादा फूली हुई है. तुम्हारी छातियाँ भी कहीं ज़्यादा सख़्त और कसी हुई हैं. तुमने तो हमें सुहाग रात की याद दिला दी”

“आऐईयईई……..इसस्स्स्स्सस्स……पापा ! ये क्या कर रहे हैं? प्लीज़….से ! छोड़िए ना…. ऊपफ़ आपने तो अपनी बेटी की ही पकड़ ली. अपनी बेटी के साथ…….”

“ बेटी अभी अभी तुम ही ने तो पूचछा था, किसकी अच्छी है. हम तो सिर्फ़ एक बार फिर चेक कर रहे हैं कि तुम्हारी कितनी अच्छी है.” पापा मेरी चूत को सहलाते हुए बोले.

“इसस्सस्स…..एयाया…… अब छोड़ भी दीजिए. चेक तो कर लिया ना.” लेकिन मैने अपने आप को छुड़ाने की कोई कोशिश नहीं की. बल्कि अपने बदन को इस तरह से अड्जस्ट किया कि मेरी चूत अच्छी तरह से पापा के हाथ में समा जाए.

“बस थोड़ा और चेक कर लें ताकि शक की कोई गुंजाइश ना रहे.” पापा मेरी फूली हुई चूत को अपनी मुट्ठी में मसल्ते हुए बोले.

“ हाई राम ! पापा… ! कितने खराब हैं आप? कितनी चालाकी से हमारी वो पाकर ली.” अब तो पापा खुले आम मेरी चूत को मसल रहे थे और सहला रहे थे.

“ ईइसस्सस्स…. छोड़िए ना….पापा…आआआअ…. प्लीज़.… अब तो देख लिया ना आपकी बेटी की कैसी है, अब तो छोड़ दीजिए.”

“इतनी जल्दी कैसे पता चलेगा ? हमे अच्छी तरह देखना पड़ेगा.”

“अब और कैसे देखेंगे… छोड़िए भी.”

“सच बेटी टाँगों के बीच में तो तुम अपनी मम्मी से भी दो कदम आगे हो.”

“ क्या मट्लब है आपका ?”

“तुम्हारी वो तो बिकुल डबल रोटी की तरह फूली हुई है.”

“ हाई पापा ऐसी तो सभी लड़कियों की होती है.”

“नहीं बेटी सभी की इतनी फूली हुई नहीं होती.”

“अच्छा जी ! तो और कितनों की पकड़ चुके हैं आप ?”

“ सच तुम्हारी मम्मी की छोड़ के और किसी की नहीं.”

“झूट !”

“तुम्हारी कसम बेटी. हमने आज तक किसी दूसरी औरत के बारे में सोचा तक नहीं, उसकी वो पकड़ना तो दूर की बात है.”

मैं ये बात तो अच्छी तरह जानती थी कि पापा ने मम्मी को कभी धोखा नहीं दिया. वो तो मम्मी के ही दीवाने थे. पिच्छाले 25 सालों से उन्होने सिर्फ़ एक ही औरत को चोदा था. और वो थी मेरी मम्मी. लेकिन मैने सोच लिया था कि आज की रात वो एक दूसरी औरत को चोदेन्गे -- उनकी प्यारी बेटी.

“अगर हम सबूत पेश कर दें कि आपने दूसरी औरत की भी पकड़ी है तो ?”

“हम ज़िंदगी भर तुम्हारे गुलाम बन जाएँगे.” पापा बड़े विश्वास के साथ बोले.

“सोच लीजिए.”

“इसमें सोचना क्या है?”

“ अच्छा, तो इस वक़्त आप इतनी देर से मम्मी की मसल रहे हैं ?”

“ओह…! ये कोई दूसरी औरत थोड़े ही है. ये तो हमारी प्यारी बिटिया रानी है.” पापा ने फिर से मेरे गाल को चूमते हुए मेरी चूत को अपनी मुट्ठी में ज़ोर से दबा दिया.

“ आआईयइ…ईईस्स्स्स्स्स्स………धीरे……तो क्या बेटी औरत नहीं होती है ?”

“ औरत होती है लेकिन दूसरी औरत नहीं कहलाती है. वो तो अपनी ही होती है ना.”

“अगर आपने अच्छी तरह चेक कर लिया हो कि आपकी बिटिया की कितनी फूली हुई है तो अब हमारी छोड़ भी दीजिए प्लीज़.....”

क्रमशः.........
 
गतान्क से आगे ......

“ठीक है छोड़ देते हैं लेकिन थोड़ा ऊपर भी चेक करना पड़ेगा.”

ये कहते हुए पापा ने मेरी चूत छोड़ के मेरे खुले हुए ब्लाउस के नीचे से हाथ डाल के चूचिओ को पकड़ लिया और सहलाते हुए बोले,

“ कंचन तुम तो ऊपर से भी बिल्कुल मम्मी जैसी हो. अब हमे समझ में आया कि हम तुम्हें बार बार मम्मी क्यों समझ लेते हैं. लेकिन तुम्हारी छातियाँ तो सुचमुच बहुत सुन्दर और कसी हुई हैं.”

“इससस्स….आअहह…. धीरे प्लीज़…” पापा पीछे से मेरे साथ चिपके हुए थे और मेरी बड़ी बड़ी चूचिओ को सहला रहे थे. उनका तना हुआ मोटा लंड मेरे चूतरो की दरार में घुसा हुआ था और मेरी पॅंटी को भी मेरे चूतरो के बीच की दरार में घुसेड दिया था. मैं भी पापा का लंड पकड़ना चाहती थी.

“ऊओफ़.. पापा ये क्या चुभ रहा है ?”

ये कहते हुए मैं हाथ पीछे की ओर ले गयी और पापा के लंड को पकड़ लिया जैसे कि मैं चेक करना चाहती हूँ कि क्या चुभ रहा है. पापा का लंड हाथ में आते ही मैने हाथ एकदम वापस खींच लिया.

“हाई राम ! पापा ! आपका तो खड़ा हुआ है. हे भगवान ! कहीं आपका अपनी बेटी के लिए तो नहीं खड़ा है ?” मैं झूठा गुस्सा करते हुए बोली.

“नहीं नहीं बेटी, देखो आज हम 15 दिन के बाद वापस आए हैं और कल फिर दो महीने के लिए चले जाएँगे. तुम तो शादीशुदा हो और समझदार हो. अगर तुम्हारा पति इतने दिनों के बाद वापस आए और उसे अगले दिन फिर दो महीने के लिए जाना हो तो वो तुम्हारे साथ क्या करेगा ?”

जी हमें क्या पता ?”

“अब क्यों भोली बनती हो, बोलो ना.”

“जी कैसे बोलें हमे तो बहुत शरम आ रही है.”

“बेटी अपने पापा से क्या शरमाना. बोलो , जबाब दो”

“जी वो तो….वो तो……हमारा मट्लब है…”

“अरे शरमाओ नहीं बोलो.”

“जी वो तो सारी रात ही……”

“सारी रात क्या बेटी ?”

“जी हमारा मतलब है कि वो तो सारी रात हमे तंग करते.”

“ कैसे तंग करता बेटी ?”

“ जैसे एक मरद अपनी बीवी को करता है.”

“ ओ ! अगर वो तुम्हें सारी रात तंग करता तो तुम उसे तंग करने देती ?”

“जी ये तो उनका हक़ है. हम कौन होते हैं उन्हें रोकने वाले.”

“ तुम्हारा मट्लब है तुम उसे इसलिए तंग करने देती क्यूंकी ये उसका हक़ है, इसलिए नहीं कि तुम्हें भी तंग होने में मज़ा आता है ? बोलो ?”

“ तंग होने में तो हर औरत को मज़ा आता है.”

“ तो तुम्हें तंग करने के लिए उसका खड़ा तो होता होगा ना बेटी ?”

“ कैसी बातें करते हैं पापा ? बिना खड़ा हुए कैसे तंग कर सकते हैं ?”

“ बस ये ही तो हम भी तुमसे कहना चाहते हैं. हमारा भी इसीलिए खड़ा है क्योंकि हम भी आज तुम्हारी मम्मी को तंग करना चाहते थे. लेकिन तुमने तो हाथ ऐसे खींच लिया जैसे ये तुम्हें काट खाएगा. तुम भी देख लो कि हमारा ये तुम्हारी मम्मी के लिए कितना परेशान है.” ये कहते हुए पापा ने मेरा हाथ पकड़ के अपने लंड पे रख दिया. मेरी तो मानो बरसों के मुराद पूरी हो गयी. मैं शरमाने का नाटक करती हुई बोली,

“ हाई पापा ये क्या कर रहे हैं हमे तो बहुत शरम आ रही है.”

“ बेटी शरम की क्या बात है ? किसी मरद का पहली बार तो पकड़ नहीं रही हो. ठीक से पाकड़ो ना. तुम्हें अक्च्छा नहीं लगा हमारा ?”

बाप रे ! क्या मोटा लॉडा था. इतना मोटा की मेरी उंगलिओ के घेरे में भी नहीं आ रहा था. मैं उनके लॉड पे हाथ फेरते हुए बोली,

“हाई राम! ये तो कितना मोटा है!”

“पसंद नहीं आया?”

“ नहीं पापा आपका तो बहुत अक्च्छा है. लेकिन सच ! ये तो बहुत ही मोटा है !”

“तुम्हारे पति का ऐसा नहीं है ?”

“ जी इतना मोटा नहीं है. बेचारी मम्मी कैसे झेलती है इसे ?”

“ हाई बेटी क्या बताएँ, तुम्हारी मम्मी तो इसे बहुत प्यार करती है. सच वो इसके बिना रह नहीं सकती है. काश इस वक़्त वो यहाँ होती. लेकिन कोई बात नहीं हमारी प्यारी बिटिया तो है ना हमारे पास.” अब मैं पापा के मोटे लॉड को बड़े प्यार से सहला रही थी. अब मैने पापा की ओर करवट ले ली थी. पापा भी मेरी चूचिओ को सहला रहे थे. मैं पापा के लॉड को दबाते हुए बोली,

“ हाई पापा आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे बीवी नहीं तो बेटी ही चलेगी.”

“ क्यों नहीं चलेगी ? बेटी बिल्कुल बीवी जैसी ही तो लगती है. लेकिन लगता है हमारी बेटी को हमारा पसंद नहीं आया.”

“नहीं पापा हमे तो आपका बहुत पसंद आया. हम तो सोच रहे हैं कि इस मोटे राक्षस ने तो अब तक बेचारी मम्मी की उसको बहुत चौड़ा कर दिया होगा.”

“ नहीं बेटी हम 25 साल से तुम्हारी मम्मी को चोद रहे हैं लेकिन अभी तक उसकी बहुत टाइट है.” पापा ने पहली बार चोदने जैसे शब्द का इस्तेमाल किया. मैं समझ गयी कि पापा अब धीरे धीरे लाइन पे आ रहे थे.

“ सच पापा, काश हम आपकी बेटी ना हो के आपकी बीवी होते !. हम आपको आज इस तरह तड़पने नहीं देते.”

पापा मेरे विशाल चूतरो पे हाथ फेरते हुए बोले,

“ बेटी हम तो तुम्हें बिकुल मम्मी ही समझ रहे हैं. देखो ना तुम्हारे ये विशाल नितूंब बिल्कुल मम्मी की तरह ही फैले हुए हैं. और ये तुम्हारी पॅंटी भी इनके बीच में ठीक मम्मी की पॅंटी की तरह ही घुसी जा रही है.” पापा ने पॅंटी के ऊपर से ही एक उंगली मेरी गांद के छेद पे टिका दी.

“ इसस्सस्स…पापा ! ये पॅंटी अपने आप हमारे नितुंबों के बीच में नही घुसी जा रही है. इसे तो आपके इस डंडे ने धकेल के हमारे नितुंबों के बीच में घुसेड दिया है. अक्च्छा हुआ हमने पॅंटी पहनी हुई है नहीं तो राम जाने आज आपका ये मोटा डंडा कहीं और ही घुस जाता.”

“ अक्च्छा होता अगर घुस जाता. आख़िर अंजाने में ही तो घुसता.” पापा ने अब मेरी पॅंटी के अंडर हाथ डाल के मेरे चूतरो को सहलाना शुरू कर दिया था.

“ कंचन एक बात पूच्छें, बुरा तो नहीं मानोगी ?”

“ नहीं पापा पूच्हिए ना. बुरा क्यों मानेंगे ?”

“ बेटी जब तुम 10थ में थी तब एक बार तुम्हारी मम्मी ने हमे बताया था कि तुम्हारी चूत पे बहुत घने और लंबे बाल हैं. क्या ये बात सच है? हम इस लिए पूछ रहे हैं क्योंकि आज भी जब हम आए तो तुम्हारी फैली हुई टाँगों के बीच में से , पॅंटी से बाहर निकले हुए तुम्हारी चूत के बाल नज़र आ रहे थे.” अब तो पापा खुल के चूत जैसे शब्द इस्तेमाल करने लगे. शायद वासना की आग और शराब के नशे का असर था. पापा के मुँह से अपनी चूत की बात सुन के मेरे तन बदन में वासना की आग लग गयी. मैं बहुत भोले स्वर में बोली,

“जी पापा, हम क्या करें, बचपन से ही हमारे वहाँ बहुत घने बाल हैं. 12 साल की उमर में ही खूब बाल आ गये थे. और 16 साल की होते होते तो बिल्कुल जंगल ही हो गया था. हमारी सहेलियाँ हमे चिढ़ाती थी कि क्या जंगल उगा रखा है. हमे तो स्कूल में भी बहुत शरम आती थी. हमेशा बाल पॅंटी से बाहर निकले रहते थे और लड़के हमारी स्कर्ट के नीचे झाँकने की कोशिश करते थे.”

“ हाई कितने नालायक थे ये लड़के जो हमारी बेटी की स्कर्ट के नीचे झाँकते थे. वैसे बेटी जब तुम 16 साल की थी तो एक बार हमारी नज़र भी ग़लती से तुम्हारी स्कर्ट के नीचे चली गयी थी.”

“हाई राम! ना जाने क्या दिखा होगा आपको ?” मैं पापा के लॉड को बारे प्यार से सहलाते हुए बोली.

“अब बेटी तुम बैठती ही इतनी लापरवाही से थी कि तुम्हारी स्कर्ट के नीचे से सब दिख जाता था.”

“ हाई 16 साल की उमर में आपने हमारा सब कुच्छ देख लिया ?”
 
“ अरे नहीं बेटी सब कुच्छ कहाँ दिखा. हां तुम्हारी पॅंटी ज़रूर नज़र आ रही थी. सिर्फ़ पॅंटी नज़र आती तब भी हम ध्यान नहीं देते लेकिन पॅंटी में कसी हुई तुम्हारी चूत का उभार तो हम देखते ही रह गये. हम तो सोच भी नहीं सकते थे कि 16 साल की उमर में ही हमारी बेटी की चूत इतनी फूली हुई होगी. सच हम तो उसी दिन से अपनी बिटिया रानी के दीवाने हो गये थे.” शराब का नशा और वासना की आग में अब पापा बिना किसी झिझक के अपनी बेटी की चूत के बारे में बातें कर रहे थे. मेरे पास उनसे सब कुच्छ उगलवाने का बहुत अच्छा मोका था.

“झूट ! बिल्कुल झूट. आप तो हमेशा मम्मी के ही आगे पीछे घूमते रहते थे. हमारी तरफ तो आपने कभी देखा ही नहीं. हम कब जवान हुए और कब हमारी शादी हो गयी, आपको तो पता ही नहीं चला होगा.” मैं पापा के बारे बारे बॉल्स सहलाते हुए बोली.

“ नहीं बेटी, ऐसा ना कहो. तुम्हारी बड़ी होती चूचिओ पे तो हमारी नज़र बहुत पहले से ही थी लेकिन जिस दिन पॅंटी में कसी हुई तुम्हारी फूली हुई चूत देखी तब से तो हम तुम्हारी चूत के भी दीवाने हो गये. हमेशा तुम्हारी स्कर्ट के नीचे झाँकने का मोका ढूढ़ते थे. लेकिन ये सब तुम्हारी मम्मी की नज़र बचा के करना आसान नहीं था. बाथरूम में जा के तुम्हारी उतारी हुई पॅंटी को एक बार जब सूँघा तो ज़िंदगी में पहली बार एक कुँवारी चूत की खुश्बू का नशा कैसा होता है, पता चला. सच हमारी बिटिया रानी की चूत की खुश्बू हमे पागल बना देती थी. और तुम्हारी झांतों के लंबे लंबे बाल भी कभी कभी तुम्हारी पॅंटी में लगे मिलते थे. हम तो वो दिन कभी भुला नहीं सकते. ज़रा देखें हमारी बिटिया की चूत पे अब भी उतने ही बाल हैं की नहीं.” ये कहते हुए पापा ने मेरी पॅंटी नीचे सरका दी और मेरी घनी झांतों में हाथ फेरने लगे.

“ इसस्स्सस्स…आआआआअ…..बहुत लंबे हैं ना बाल पापा ?”

“ हां बेटी बहुत ही घने हैं. जब औरत नंगी हो जाती है तो औरत की चूत के बाल ही उसकी लाज होते हैं, उसका गहना होते हैं और उसका शृंगार होते हैं.”

“ लेकिन पापा, मम्मी की में और हमारी में ऐसा क्या फरक था ? सभी औरतों की एक ही सी तो होती है.”

“तुम नहीं समझोगी बेटी. एक कुँवारी चूत और कई बार चुदी हुई चूत की खुश्बू में बहुत फरक होता है. सच तुम्हारी कुँवारी चूत की खुश्बू ने तो हमे पागल कर दिया था. जिस दिन स्कर्ट के नीचे से तुम्हारी पॅंटी में कसी हुई चूत की झलक मिल जाती हम धन्य हो जाते.” पापा मेरी चूत को ज़ोर से मसल्ते हुए बोले.

“ इसस्स..आऐ….अगर आपको हमारी इतनी अच्छी लगती थी तो कभी लेने की इच्छा नहीं हुई ?”

“ बहुत मन करता था. लेकिन अपनी 16 साल की फूल सी बेटी की कुँवारी चूत लेते हुए डर भी लगता था. और फिर तुम्हारी मम्मी भी हमेशा घर में होती थी.”

“ झूट ! जिसका लेने का दिल करता है वो किसी भी तरह ले लेता है. आप हमारी लेना ही नहीं चाहते होंगे. मम्मी की तो आप रोज़ लेते थे और कभी कभी तो सारी सारी रात लेते थे.”

“ ये सब तुम्हें कैसे पता बेटी ?”

“ मम्मी की मुँह से आवाज़ें जो आती थी.”

“ किसी आवाज़ें ?”

“ वैसी आवाज़ें जो एक औरत के मुँह से उस वक़्त निकलती हैं जब कोई दमदार मरद उसकी ले रहा होता है.” मैं पापा के मोटे लॉड को दबाते हुए बोली. “और उस वक़्त तो आपको अपनी बेटी की याद भी नहीं आती होगी.”

“बेटी तुम्हारी कसम, जब से तुम्हारी पॅंटी में कसी हुई चूत के दर्शन हुए तब से हम चोदते तुम्हारी मम्मी को ज़रूर थे लेकिन ये सोच सोच के कि हम अपनी 16 साल की प्यारी बिटिया की कुँवारी चूत चोद रहे हैं. एक बार तो मम्मी को चोदते हुए हमारे मुँह से तुम्हारा नाम भी निकल गया . बड़ी मुश्किल से हमने बात पलटी थी नहीं तो तुम्हारी मम्मी को शक हो जाता.” पापा के चूत पे हाथ फेरने से मेरी चूत बुरी तरह गीली हो चुकी थी और चूत का रस बाहर निकल कर मेरी झांतों को भी गीला कर रहा था. पापा की उंगलियाँ भी शायद चूत के रस में गीली हो गयी थी क्योंकि अचानक पापा ने एक उंगली मेरी गीली चूत में सरका दी.

“ऊऊिइ….इससस्स…पापा ! … अगर आपने सचमुच हमारी 16 साल की उमर में ले ली होती तो आज हमारी वो किसी और के लायक नहीं रह जाती.”

“ऐसा क्यों कहती हो कंचन ?”

“आपका ये कितना मोटा है. हमारी कुँवारी चूत का क्या हाल कर देता. कभी सोचा भी है ? हमारे पति को सुहाग रात को ही पता चल जाता.” अब तो मैने भी ‘चूत’ जैसे शब्द का इस्तेमाल कर लिया. मैं जानती थी कि लोहा अब काफ़ी गरम था.
 
“तभी तो हमने अपनी बिटिया की उस वक़्त नहीं ली.” पापा ने इस बार मेरे होंठों को चूमते हुए कहा.

“लेकिन अब तो हम शादीशुदा हैं.”

“क्या मतलब?”

“पापा, 16 साल की उमर में आप अपनी बेटी की लेना चाहते थे, लेकिन अब अपनी बेटी की लेने का मन नहीं करता?”

“बहुत करता है बेटी.”

“तो फिर ले क्यूँ नहीं लेते अपनी प्यारी बिटिया की चूत? देखिए ना आपके मोटे लॉड के लिए कितना तरस रही है.”

“तुम तो हमारी बेटी हो.” पापा थोड़ा हिचकिचाए. लेकिन मैं अच्छी तरह जानती थी कि अपनी बेटी को चोदने के लिए वो हमेशा से ही पागल थे.

“ओफ! पापा बेटी के पास चूत नहीं होती क्या? अच्छा चलिए हमें मम्मी समझ के चोद लीजिए.”

“नहीं, नहीं मम्मी समझ के क्यों, हम अपनी बेटी को बेटी समझ के ही चोदेन्गे.” ये कहते हुए पापा ने मेरे पेटिकोट का नाडा खींच लिया और पेटिकोट को मेरे बदन से अलग कर दिया. फिर उन्होने मेरा ब्लाउस भी उतार दिया. अब पापा पागलों की तरह मेरे बदन को और चूचिओ को चूमने और चाटने लगे. मेरे मुँह से भी वासना से भरी सिसकारियाँ निकलने लगी.

“कंचन बेटी तुम्हारा बदन तो बिल्कुल वैसा है जैसा तुम्हारी मम्मी का सुहाग रात के वक़्त था.”

“हाई पापा, अपनी सुहाग रात समझ के अपनी बेटी को चोद लीजिए.” धीरे धीरे पापा मेरे बदन को चूमते हुए मेरी टाँगों के बीच में पहुँच गये.

“ईइस्स्स...अया...पापा मेरी इस पॅंटी ने ही तो आपको इतना तंग किया है ना, उतार दीजिए अपनी बेटी की पॅंटी अपने हाथों से.”

“हाँ बेटी तुम्हारी इस पॅंटी ने तो बरसों से मेरी नींद हराम कर रखी है. आज तो मैं इसे अपने हाथों से उतारूँगा.” ये कहते हुए पापा ने मेरी पॅंटी खींच के मेरी टाँगों से निकाल दी. अब मैं बिल्कुल नंगी पापा के सामने टाँगें फैलाए पड़ी हुई थी. पापा ने मेरी टाँगें चौड़ी की और अपने होंठ मेरी जलती हुई चूत पे टिका दिए. मैं आज अपने ही बाप से चुदने जा रही थी, ये सोच के मेरी वासना की आग और भी भड़क रही थी. मैने चूतेर उचका के अपनी चूत पापा के होंठों पे रगड़ दी. अब तो पापा पागलों की तरह मेरी चूत चाट रहे थे. आज तक तो सिर्फ़ मेरी पॅंटी सूंघ कर ही मेरी चूत की खुश्बू लेते थे, लेकिन आज तो असली चीज़ सामने थी. मैं पापा का सिर अपनी चूत पे दबाते हुए बोली,

“पापा, किसकी खुश्बू ज़्यादा अच्छी लगी, मेरी पॅंटी की या चूत की?”

“अरे बिटिया, दोनो ही बहुत मादक हैं. पति के घर जाने से पहले अपनी पॅंटी हमें ज़रूर देती जाना.”

“हाई पापा, अब तो ये चूत और पॅंटी दोनो आपकी है, जब मन करे ले लीजिए.” काफ़ी देर चूत चाटने के बाद पापा खड़े हुए और अपने मोटे लॉड का सूपड़ा मेरे होंठों पे टीका दिया. मैने जीभ निकाल के सुपरे को चॅटा और फिर पूरा मुँह खोल के उस मोटे काले मूसल को मुँह में लेने की कोशिश करने लगी. बड़ी मुश्किल से मैने उनका लंड मुँह में लिया. पापा का लंड चूस के तो मैं धन्य हो गयी. आज तक तो इस मूसल को सिर्फ़ मम्मी ने ही चूसा था. सपनों में तो मैं ना जाने कितनी बार चूस चुकी थी. पापा मेरे मुँह को पकड़ के मेरे मुँह को चोदने लगे. उनके मोटे मोटे बॉल्स नीचे पेंडुलम की तरह झूल रहे थे. फिर उन्होने मेरे मुँह से लंड निकाला और मेरे होंठों को चूमते हुए बोले,

“कंचन मेरी जान, अब अपनी प्यारी चूत को चोदने दो.” मैने चुदवाने की मुद्रा में अपनी टाँगें चौड़ी कर के मोड़ ली. अब मेरी चूत पापा के सामने थी.

“लीजिए पापा, अब मेरी चूत आपके हवाले है.” पापा ने अपना मोटा सुपरा मेरी चूत के मुँह पे टीका दिया. मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धक धक करने लगा. आख़िर वो घड़ी भी आ गयी थी जब पापा का लंड मेरी चूत में जाने वाला था. पापा ने लॉड के सुपरे को मेरी चूत के कटाव पे थोड़ी देर रखा और फिर धीरे से मेरी चूत में दाखिल कर दिया. मेरी आखों के सामने तो जैसे अंधेरा सा च्छा गया.

क्रमशः.........
 
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