hotaks444
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आइ अम जस्ट पोस्टिंग दिस स्टोरी इन हिन्दी फ़ॉन्ट फॉर यू
दोस्तों , यह कहानी मेरी अपनी कहानी ..मेरे खुद की जुबानी .. मेरे दिल के बिलकुल करीब ..और आप ये समझिये मेरे दिल की धड़कन है .. !
मैं एक इंजिनियर हूँ... अच्छी कंपनी में अच्छी नौकरी करता हूँ .. मेरा अच्छा खासा परिवार है , मुझ से प्यार करने वाली पढ़ी लिखी पत्नी है , दो सुंदर और मुझे जान से प्यारी बेटियां हैं ..अब तो दोनों की शादी हो चुकी है .उनका अपना परिवार है ...
ये कहानी उन दिनों की है जब मेरी बेटियां छोटी थीं ...और मेरी पोस्टिंग एक ऐसी जगह हो गयी जहाँ अछे स्कूल नहीं थे ..मैंने अपने परिवार को यानि अपनी पत्नी और अपने बच्चों को उनके नानी के यहाँ , जो एक काफी बड़े शहर में है ..छोड़ दिया और खुद वापस अपनी नौकरी में आ गया !
शुरू के कुछ दिन तो नयी जगह और नयी पोस्टिंग में अपने को adjust करने में निकल गए ! समय कैसे बीत गया कुछ पता ही नहीं चला .बीबी बच्चों की याद तो आती थी पर उसका कुछ खास असर नहीं होता था .. काम की मसरूफियत में सब कुछ भूल जाता था ! अकेलापन कभी कचोटता नहीं .. सुबह जल्दी निकल जाता था और घर वापस आते काफी रात हो जाती थी ... नौकर खाना बना कर टेबल पर लगा कर चला जाता था , पास में ही servant quarter था , वहीं रहता था , रामू , मेरा नौकर !
करीब एक महीने तक ऐसा ही चलता रहा ..और फिर जब धीरे धीरे मैंने वहां का काम संभाल लिया .. काम कम होता गया और मेरे पास समय की कमी या काम का बोझ नहीं रहा ! शाम को अब मैं घर जल्दी अ जाता था ..पर अकेलापन मानो पहाड़ जैसे लगता था .. बीबी और बच्चों की याद आती ... समय काटे नहीं कटता .. उन दिनों मोबाइल और std जैसी सुवुधाएं भी नहीं थीं I घर में telephone था , पर STD की सुविधा नहीं थी इसलिए trunk कॉल करना पड़ता था ..और आपको मालूम होगा trunk कॉल से बात करना भी अपने आप में भारी मुसीबत होती थी ... ऐसे में अकेलापन और भी कचोटता था ..!
मैं वहां का seniormost ऑफिसर था इसलिए बाकि junior ओफ्फिसर्स से ज्यादा घूल मिल भी नहीं सकता .. शहर भी छोटा था , समय बीताने के कुछ और साधन भी नहीं थे ..बस ऑफिस , और घर और कभी कभी पिक्चर देख लेता था वहां के एक लौते हाल में !
इसी अकेलेपन ने मुझे एक अजीब मोड़ पे ला कर खड़ा कर दिया ..मैं एक ऐसे रास्ते पर चल पड़ा जो अनजान होते हुए भी ऐसा लगा मेरे हमसफ़र नए नहीं .. मेरे जाने पहचाने ..मेरे करीबी , मेरे बिलकुल अपने .. जब की किसी से भी मेरी कभी मुलाकात नहीं हुई ... इस नए मोड़ ने , इस नयी राह ने और इस सफ़र के हम सफ़र ने मेरी जिंदगी को झकझोर दिया ..!
मैं ऐसे दो राहे पर था जहाँ पीछे थी मेरी जिंदगी और सामने था मेरा दिल .. !
मैं यहाँ बता दूं मुझे सब सागर साहेब कह कर बुलाते हैं...मेरा नाम प्रीतम सागर है ! और हाँ मुझे पान खाने का बड़ा शौक है ..खाना खाने के बाद लंच हो या डिनर मुझे पान जरूर चाहिए ..मेरे पानवाले को मालूम है मुझे कैसा पान पसंद है .मेरे जाते ही मेरे पसंद का पान बड़े प्यार से लगा कर देता था .! उस से काफी अच्छी पहचान हो गयी थी और हम लोग काफी घूल मिल भी गए थे ..उसे मालूम था की मैं यहाँ अकेला ही रहता हूँ I
एक दिन की बात है ...मुझे अपनी बीबी बच्चों की बहोत याद आ रही थी ..मैं काफी उदास था ... डिनर के बाद उसी उदास मूड में ही पान खाने निकला ..सोचा बाहर घूम आऊं .थोडा दिल बहल जायेगा .. पानवाले ने मुझे देख कर कहा :" लगता है साहब का आज मूड कुछ ढीला है .."
मैंने कहा " हाँ यार ढीला तो है ..बस तुम आज ऐसा पान बनाओ मूड tight हो जाये ...! "
उसने जवाब दिया " साहब कब तक सिर्फ पान से मूड tight करोगे ..?? मूड तो आपका tight हो भी गया तो क्या ? आप के अन्दर वाला तो ढीला ही रहेगा ..! " और जोरों से हंस पड़ा !!
" क्या मतलब ..??' " मैं जरा serious होता हुआ बोला !
पानवाला कोई कच्चा खिलाडी नहीं था , जल्दी हार मानने वाला नहीं !
उसने कहा " क्यों बनते हो साहब ? आप कहो तो आपके अकेलेपन का इलाज कर दूं ??"
तब तक मेरा पान लग चूका था ..यह सब बातें उस ने पान लगाते लगाते ही कहा ..
मैंने उस के हाथ से पान ली .मुंह में डाला और कहा " देखो यार मैं समझता हूँ तुम क्या कहना चाह रहे हो .पर फिर भी .."
"सोच लो साहेब ..कोई जल्दी नहीं .. बस इतना समझ लो मेरे पास शर्तिया इलाज है ..!"
मैं उस की ओर पान चबाता हुआ देखा , मुस्कुराया और कहा " ठीक है ठीक है ...अभी मेरा मर्ज़ ला इलाज नहीं ..यार जब उस हालत पे होगी तो देखा जायेगा ."
पानवाले ने भांप लिया ... उस ने पहली बाज़ी जीत ली थी !
काश मैं उस दिन उस से ज्यादा बातें नहीं की होती ..... !!!!
दोस्तों , यह कहानी मेरी अपनी कहानी ..मेरे खुद की जुबानी .. मेरे दिल के बिलकुल करीब ..और आप ये समझिये मेरे दिल की धड़कन है .. !
मैं एक इंजिनियर हूँ... अच्छी कंपनी में अच्छी नौकरी करता हूँ .. मेरा अच्छा खासा परिवार है , मुझ से प्यार करने वाली पढ़ी लिखी पत्नी है , दो सुंदर और मुझे जान से प्यारी बेटियां हैं ..अब तो दोनों की शादी हो चुकी है .उनका अपना परिवार है ...
ये कहानी उन दिनों की है जब मेरी बेटियां छोटी थीं ...और मेरी पोस्टिंग एक ऐसी जगह हो गयी जहाँ अछे स्कूल नहीं थे ..मैंने अपने परिवार को यानि अपनी पत्नी और अपने बच्चों को उनके नानी के यहाँ , जो एक काफी बड़े शहर में है ..छोड़ दिया और खुद वापस अपनी नौकरी में आ गया !
शुरू के कुछ दिन तो नयी जगह और नयी पोस्टिंग में अपने को adjust करने में निकल गए ! समय कैसे बीत गया कुछ पता ही नहीं चला .बीबी बच्चों की याद तो आती थी पर उसका कुछ खास असर नहीं होता था .. काम की मसरूफियत में सब कुछ भूल जाता था ! अकेलापन कभी कचोटता नहीं .. सुबह जल्दी निकल जाता था और घर वापस आते काफी रात हो जाती थी ... नौकर खाना बना कर टेबल पर लगा कर चला जाता था , पास में ही servant quarter था , वहीं रहता था , रामू , मेरा नौकर !
करीब एक महीने तक ऐसा ही चलता रहा ..और फिर जब धीरे धीरे मैंने वहां का काम संभाल लिया .. काम कम होता गया और मेरे पास समय की कमी या काम का बोझ नहीं रहा ! शाम को अब मैं घर जल्दी अ जाता था ..पर अकेलापन मानो पहाड़ जैसे लगता था .. बीबी और बच्चों की याद आती ... समय काटे नहीं कटता .. उन दिनों मोबाइल और std जैसी सुवुधाएं भी नहीं थीं I घर में telephone था , पर STD की सुविधा नहीं थी इसलिए trunk कॉल करना पड़ता था ..और आपको मालूम होगा trunk कॉल से बात करना भी अपने आप में भारी मुसीबत होती थी ... ऐसे में अकेलापन और भी कचोटता था ..!
मैं वहां का seniormost ऑफिसर था इसलिए बाकि junior ओफ्फिसर्स से ज्यादा घूल मिल भी नहीं सकता .. शहर भी छोटा था , समय बीताने के कुछ और साधन भी नहीं थे ..बस ऑफिस , और घर और कभी कभी पिक्चर देख लेता था वहां के एक लौते हाल में !
इसी अकेलेपन ने मुझे एक अजीब मोड़ पे ला कर खड़ा कर दिया ..मैं एक ऐसे रास्ते पर चल पड़ा जो अनजान होते हुए भी ऐसा लगा मेरे हमसफ़र नए नहीं .. मेरे जाने पहचाने ..मेरे करीबी , मेरे बिलकुल अपने .. जब की किसी से भी मेरी कभी मुलाकात नहीं हुई ... इस नए मोड़ ने , इस नयी राह ने और इस सफ़र के हम सफ़र ने मेरी जिंदगी को झकझोर दिया ..!
मैं ऐसे दो राहे पर था जहाँ पीछे थी मेरी जिंदगी और सामने था मेरा दिल .. !
मैं यहाँ बता दूं मुझे सब सागर साहेब कह कर बुलाते हैं...मेरा नाम प्रीतम सागर है ! और हाँ मुझे पान खाने का बड़ा शौक है ..खाना खाने के बाद लंच हो या डिनर मुझे पान जरूर चाहिए ..मेरे पानवाले को मालूम है मुझे कैसा पान पसंद है .मेरे जाते ही मेरे पसंद का पान बड़े प्यार से लगा कर देता था .! उस से काफी अच्छी पहचान हो गयी थी और हम लोग काफी घूल मिल भी गए थे ..उसे मालूम था की मैं यहाँ अकेला ही रहता हूँ I
एक दिन की बात है ...मुझे अपनी बीबी बच्चों की बहोत याद आ रही थी ..मैं काफी उदास था ... डिनर के बाद उसी उदास मूड में ही पान खाने निकला ..सोचा बाहर घूम आऊं .थोडा दिल बहल जायेगा .. पानवाले ने मुझे देख कर कहा :" लगता है साहब का आज मूड कुछ ढीला है .."
मैंने कहा " हाँ यार ढीला तो है ..बस तुम आज ऐसा पान बनाओ मूड tight हो जाये ...! "
उसने जवाब दिया " साहब कब तक सिर्फ पान से मूड tight करोगे ..?? मूड तो आपका tight हो भी गया तो क्या ? आप के अन्दर वाला तो ढीला ही रहेगा ..! " और जोरों से हंस पड़ा !!
" क्या मतलब ..??' " मैं जरा serious होता हुआ बोला !
पानवाला कोई कच्चा खिलाडी नहीं था , जल्दी हार मानने वाला नहीं !
उसने कहा " क्यों बनते हो साहब ? आप कहो तो आपके अकेलेपन का इलाज कर दूं ??"
तब तक मेरा पान लग चूका था ..यह सब बातें उस ने पान लगाते लगाते ही कहा ..
मैंने उस के हाथ से पान ली .मुंह में डाला और कहा " देखो यार मैं समझता हूँ तुम क्या कहना चाह रहे हो .पर फिर भी .."
"सोच लो साहेब ..कोई जल्दी नहीं .. बस इतना समझ लो मेरे पास शर्तिया इलाज है ..!"
मैं उस की ओर पान चबाता हुआ देखा , मुस्कुराया और कहा " ठीक है ठीक है ...अभी मेरा मर्ज़ ला इलाज नहीं ..यार जब उस हालत पे होगी तो देखा जायेगा ."
पानवाले ने भांप लिया ... उस ने पहली बाज़ी जीत ली थी !
काश मैं उस दिन उस से ज्यादा बातें नहीं की होती ..... !!!!